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80 वर्षों पश्चात् संयुक्त राष्ट्र की उपयोगिता तथा वैश्विक भू-राजनीतिक महत्त्व

Lokesh Pal October 24, 2025 05:15 94 0

संदर्भ:

संयुक्त राष्ट्र अपने गठन के 80वें वर्ष में, वैश्विक मामलों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए प्रगति पर कार्य कर रहा है।

वर्तमान परिदृश्य में संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धि

  • गठन: द्वितीय विश्व युद्ध गंभीर वैश्विक तबाही के बाद 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की गई थी।
    • भविष्य के युद्धों को रोकने के उद्देश्य से, राष्ट्र संघ (League of Nations) की विफलता से सीखते हुए, 50 राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्र के निर्माण के लिए सैन फ्रांसिस्को में एक बैठक आयोजित की।
  • वैश्विक व्यवस्था में परिवर्तन: एक द्विध्रुवीय (अमेरिका बनाम यूएसएसआर) से बहुध्रुवीय विश्व में बदलाव, जिसमें अमेरिका, चीन, रूस, यूरोपीय संघ, भारत और जापान जैसी प्रमुख शक्तियाँ शामिल हैं।
  • उभरती वैश्विक चुनौतियाँ: जलवायु परिवर्तन, साइबर युद्ध, महामारी और आतंकवाद मज़बूत बहुपक्षीय सहयोग की माँग करते हैं।
  • बढ़ता राष्ट्रवाद: अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के प्रति बढ़ता संदेह संयुक्त राष्ट्र की प्रभावशीलता को चुनौती देता है।

संयुक्त राष्ट्र की असफलताएँ

  • रवांडा नरसंहार (वर्ष 1994): 100 दिनों में 8 लाख से अधिक लोग मारे गए; सुरक्षा परिषद की निष्क्रियता के कारण संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक हस्तक्षेप करने में असमर्थ थे।
  • स्रेब्रेनिका नरसंहार (वर्ष 1995): डच संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों की उपस्थिति के बावजूद, इस क्षेत्र को “सुरक्षित क्षेत्र” घोषित किए जाने के बावजूद 8,000 मुस्लिम मारे गए।

संयुक्त राष्ट्र की सफलताएँ

  • नामीबिया की स्वतंत्रता (1990): संयुक्त राष्ट्र ने दक्षिण अफ्रीकी शासन से सफल संक्रमण का प्रबंधन किया।
  • पूर्वी तिमोर (1999): संयुक्त राष्ट्र ने इंडोनेशिया से अलग होने के बाद राष्ट्र को स्थिर किया, शासन और शांति स्थापित करने में व्यापक सहायता की।

मुख्य समस्या – UNSC की शिथिलता

  • P5 का प्रभुत्व: यूएनएससी वीटो शक्तियों वाले पाँच स्थायी सदस्यों द्वारा नियंत्रित है।
  • वीटो का दुरुपयोग: P5 प्रायः राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करने वाले प्रस्तावों को अवरुद्ध करता है (उदाहरण के लिए, रूस-यूक्रेन, अमेरिका-इज़राइल/फिलिस्तीन)।
  • संरचनात्मक समस्या: परिषद 1945 की शक्ति संरचनाओं को दर्शाती है; अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और भारत जैसे क्षेत्रों में स्थायी प्रतिनिधित्व का अभाव है।

यूएनएससी से परे संयुक्त राष्ट्र का महत्व

  • मानव संगठन:
    • डब्ल्यूएफपी (WFP): विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) संघर्ष क्षेत्रों में लाखों लोगों के लिए खाद्यान्न आपूर्ति सुनिश्चित करता है और इसे 2020 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
    • यूएनएचसीआर (UNHCR): यह शरणार्थियों की रक्षा करता है, जिसमें सीरिया और यूक्रेन में संघर्षों से प्रभावित लोग शामिल हैं।
    • यूनिसेफ (UNICEF): यह विश्व में बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा आदि का समर्थन करता है।
  • शांति स्थापना: संयुक्त राष्ट्र के ब्लू हेलमेट साइप्रस, कांगो और लेबनान जैसे अस्थिर राज्यों को स्थिर करने में सहायता करते हैं।
  • संयोजन शक्ति (Convening Power): महासभा शत्रु राष्ट्रों के मध्य संवाद के लिए एक मंच और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की सुविधा प्रदान करती है।
  • मानदंड संबंधी प्रभाव (Normative Influence):
    • यूडीएचआर (UDHR, 1948): मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR, 1948) ने कई देशों के संविधानों को प्रभावित किया है।
    • लैंगिक समानता: संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक लैंगिक समानता को अपने उद्देश्य के एक प्रमुख भाग के रूप में समर्थन दिया है।
    • एसडीजी (SDG, 2015): सतत विकास लक्ष्य (SDG, 2015) गरीबी, भुखमरी, जलवायु परिवर्तन और समग्र विकास को संबोधित करने वाले 17 वैश्विक लक्ष्य निर्धारित करते हैं।

भारत का दृष्टिकोण

  • रणनीतिक स्वायत्तता और बहु-संरेखण: भारत की विदेश नीति रणनीतिक स्वायत्तता और बहु-संरेखण द्वारा निर्देशित है, जिसमें QUAD, BRICS और SCO जैसे मंचों में सक्रिय अंतरसंबंध है।
  • बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था: भारत एक बहुलतावादी और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था बनाना चाहता है, जो सभी राष्ट्रों के लिए गरिमा, समानता और निष्पक्ष प्रतिनिधित्व की गारंटी प्रदान करे।

आगे की राह

  • यूएनएससी सुधार: भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के रूप में स्वयं के साथ जर्मनी, ब्राजील, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका को शामिल करने का समर्थन करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र क्षमता में निवेश: भारत डिजिटल उपकरणों को अपनाकर और अपने संचालन का आधुनिकीकरण करके संयुक्त राष्ट्र को अधिक सशक्त और उत्तरदायी संगठन बनाने का समर्थन करता है।
  • सदस्य-राज्य प्रतिबद्धता: संयुक्त राष्ट्र के संचालन के प्रभावी कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए सदस्य राज्यों को समय पर और अनुमानित वित्तीय सहयोग प्रदान करना चाहिए।

निष्कर्ष

संयुक्त राष्ट्र अपूर्ण, वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिए विकसित होता हुआ एक महत्वपूर्ण संगठन बना हुआ है। इसे अस्वीकार करने का अर्थ है – अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को त्यागना, जो डैग हैमरस्कजॉल्ड के मानवता को “स्वर्ग तक नहीं, बल्कि नरक से बचाने” के दृष्टिकोण के विपरीत है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: संयुक्त राष्ट्र के गठन को कुल 80 वर्ष हो चुके हैं, जबकि बढ़ता भू-राजनीतिक विखंडन और बहुपक्षवाद में घटता विश्वास आज भी एक गंभीर समस्या है। आलोचनात्मक रूप से परीक्षण कीजिए, कि संयुक्त राष्ट्र 21वीं सदी की वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में किस प्रकार प्रासंगिक बना रह सकता है।

(15 अंक, 250 शब्द)

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