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चीन में तीसरा पूर्ण अधिवेशन

Lokesh Pal July 13, 2024 05:45 87 0

संदर्भ :

पश्चिमी देशों के टिप्पणीकार कुछ समय से यह कहते आ रहे हैं कि अब शीत युद्ध के बाद की दुनिया के सुनहरे सपने से आगे बढ़ने का समय आ गया है, क्योंकि उनके अनुसार, मास्को और बीजिंग (और उनके साथ जुड़े कुछ अन्य देश) से अब नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में जिम्मेदार हितधारक बनने की उम्मीद नहीं की जा सकती।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : वैश्विक विकास पहल (जीडीआई), वैश्विक सुरक्षा पहल (जीएसआई) और वैश्विक सभ्यता पहल (जीसीआई), आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : भारत-चीन संबंध, चीन की आर्थिक प्रगति, चीन की भू-राजनीतिक आकांक्षाएं आदि।

चीन का तीसरा पूर्ण अधिवेशन:

  • चीन की आक्रमक स्थिति  में, संभावित नरमी के संकेतों के लिए चीन की 20वीं पार्टी कांग्रेस के तीसरे पूर्ण अधिवेशन पर काफी ध्यान दिया जा रहा है।
  • ऐसी आशा बनी हुई है कि 15-18 जुलाई तक आयोजित होने वाला यह अधिवेशन, कम से कम चीन के संबंध में, नीति में बदलाव और दिशा में परिवर्तन का संकेत दे सकता है।
  • फिर भी, पश्चिम में इस बात को लेकर निराशा व्याप्त है कि चीन कभी भी इस विचार को स्वीकार करेगा कि प्रत्येक देश की सुरक्षा दूसरे देश की सुरक्षा से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है।
  • फिर भी, चीन आश्चर्यचकित करने के लिए जाना जाता है।
  • इस बीच, पश्चिम में यह धारणा प्रचलित है कि चीन अपनी विनाशकारी ‘जीरो कोविड’ नीति के बाद आर्थिक रूप से ‘शिखर’ पर पहुंच गया था।
  • वर्तमान में चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट के संकेत मिल रहे है।
  • इसलिए, पूर्ण अधिवेशन आर्थिक सुधारों की दिशा में परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
  • इस प्रकार, पूर्ण अधिवेशन के अंतिम परिणाम को लेकर वैश्विक जगत और आर्थिक एवं रणनीतिक नीति निर्माताओं के बीच काफी रुचि है।

आर्थिक सुधार, मुद्दे:

  • इस बार तीसरे पूर्ण अधिवेशन की तिथि में बदलाव हुआ है – यह सामान्यतः मानक पंचवर्षीय पार्टी कांग्रेस अंतराल के बाद वाले वर्ष के अक्टूबर या नवंबर में होता है – जिससे यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि चीन आगामी समय में अपनी तीव्र प्रगति सुनिश्चित करने के लिए व्यापक सुधारों पर विचार कर रहा है।
  • तीसरे प्लेनम में आमतौर पर अगले पांच से 10 वर्षों के लिए आर्थिक रणनीति निर्धारित की जाती है, और इसे आम तौर पर केंद्रीय समिति के पांच-वर्षीय चक्र में सबसे महत्वपूर्ण प्लेनम के रूप में देखा जाता है।
  • तीसरे प्लेनम को चीन के आर्थिक सुधारों और नीति निर्माण की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। दिसंबर 1978 में 11वीं पार्टी कांग्रेस के तीसरे पूर्ण अधिवेशन में ही डेंग जियाओपिंग ने आर्थिक सुधारों की एक पूरी नई श्रृंखला को पेश किया था, जिसने चीन को आर्थिक पुनरुत्थान के मार्ग पर अग्रसर किया था।
  • इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान चीन में आर्थिक समस्याएं हैं: वृद्ध होती जनसंख्या, सिकुड़ता कार्यबल, उच्च स्तर का ऋण, तथा एक ऐसी अर्थव्यवस्था जो अभी भी समस्याओं का सामना कर रही है, भले ही इसके समाधान के लिए अनेक उपाय किए गए हों।
  • इससे चीन के भीतर अपने भविष्य के प्रति काफी निराशा पैदा हो गई है।
  • उम्मीदें बहुत अधिक हैं कि पूर्ण अधिवेशन कुछ नए दिशानिर्देश लेकर आएगा, जिससे कम से कम लोगों और बाहरी दुनिया को यह संदेश जाएगा कि चीन की अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है।
  • चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं द्वारा पूरी तरह से आर्थिक सुधारों को समर्पित कोई बैठक आयोजित किये हुए भी काफी समय हो गया है, इसलिए भी आर्थिक नीतियों की दृष्टि से इस बैठक का काफी महत्व है।  
  • हालाँकि, अधिकांश वैश्विक विशेषज्ञ इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि क्या यह अधिवेशन वास्तव में चीन को नए विचारों के साथ प्रयोग करने का अवसर प्रदान करेगा। इसके अलावा, वर्तमान नेतृत्व इन नीतियों या विचारों को कितने उत्साह से लागू करेगा इस पर भी प्रश्नचिन्ह है।
  • जाहिर है, चीन के ‘सर्वोच्च नेता’ शी जिनपिंग शायद ही वह बात दोहराने की स्थिति में हैं जो डेंग जियाओपिंग ने 1978 में (जो माओ के निधन के बाद आयोजित किया गया था) पूर्ण अधिवेशन में कही थी, कि चीन 30% गलत था, हालांकि 70% सही था।
  • यह श्री शी जिनपिंग की ओर से अपनी नीतियों की विफलता की स्वीकृति होगी, जिसका उनके भविष्य पर प्रभाव पड़ सकता है।

चीन के ‘इरादों’ के बारे में दृष्टिकोण:

  • इस बीच, चीन के खिलाफ पश्चिमी देशों द्वारा आरोपों का सिलसिला जारी रहने वाला है।
  • तीसरे प्लेनम पर पूर्ण विचार-विमर्श के बाद भी, पश्चिमी देश अपने इस मत पर अडिग रह सकते है कि चीन अपनी ‘ग्रे जोन दबाव’ रणनीति को जारी रखेगा।
  • पश्चिमी देशों का मानना है कि चीन ‘भ्रामक सूचना’ अभियान, लोकतांत्रिक देशों के चुनावों में हस्तक्षेप, चीन के आसपास के समुद्रों में, प्रथम और द्वितीय द्वीप श्रृंखलाओं के भीतर और बाहर सैन्य उकसावे जैसी चीनी गतिविधियां, ताइवान और दक्षिण तथा पूर्वी चीन सागर के देशों के लिए खतरा बना रहेगी।
  • ताइवान चीन के सैन्य और दुष्प्रचार अभियान का केंद्रबिंदु बना रहेगा।
  • इसलिए, विशेष रूप से एशिया के देशों को चीनी विस्तारवादी मूल्यों, सांस्कृतिक विस्तारवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी आशंकाओं के मिश्रण से उत्पन्न खतरे से निपटने की आवश्यकता हो सकती है।
  • चीन की वैश्विक विकास पहल (जीडीआई), वैश्विक सुरक्षा पहल (जीएसआई) और वैश्विक सभ्यता पहल (जीसीआई) में चीन की कई मान्यताएं समाहित हैं, जिससे किसी भी समायोजन की गुंजाइश नहीं बचती।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को सर्वोच्च स्तर तक उठाने के बाद, श्री शी जिनपिंग को हर जगह खतरा ही खतरा नजर आता है।
  • इससे एशिया तथा अन्य स्थानों पर चीन की मंशा के बारे में आशंका बढ़ रही है।
  • इस प्रकार, चीन का विस्तारवादी दृष्टिकोण पहले से ही कठिन क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिति में और अधिक उथल-पुथल पैदा कर सकता है।
  • यह भारत के नीति निर्माताओं के लिए भी दुविधा पैदा कर सकता है। पिछले कई वर्षों से, विशेष रूप से गलवान झड़प 2020 के बाद तो, भारत और चीन के बीच संबंध कई दशकों में सबसे ख़राब दौर में हैं।
  • संबंधो में तनाव केवल चीन-भारत सीमा पर व्याप्त तनावपूर्ण स्थिति के कारण नहीं है, बल्कि चीन के विभिन्न क्षेत्रो में उकसावे की कार्यवाही के कारण  भी है।
  • जहां तक ​​सीमा विवाद का सवाल है, भारत द्वारा अधिक लचीलापन दिखाने की इच्छा जताए जाने के बावजूद चीन अपनी हठधर्मिता छोड़ता नज़र नहीं आ रहा जिससे संबंधो में तनाव बना हुआ है। 

निष्कर्ष :

चीन के आगामी तीसरे पूर्ण अधिवेशन को लेकर काफी अटकलें लगाई जा रही हैं, जिसमें आर्थिक सुधारों की उम्मीदें और पश्चिम एवं विशेष रूप से भारत के साथ संबंधो में निरंतर भू-राजनीतिक तनावों को लेकर चिंताएं शामिल हैं।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

चीन की आर्थिक प्रगति और भू-राजनीतिक आकांक्षाओं का भारत और वैश्विक व्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। चर्चा करें कि भारत को इन घटनाक्रमों से उत्पन्न चुनौतियों और अवसरों का समाधान करने के लिए किस प्रकार रणनीतिक रूप से खुद को तैयार करना चाहिए। (15 अंक, 250 शब्द)

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