लोग सरकार के खिलाफ शिकायत करने में तो जल्दी करते हैं, लेकिन अक्सर वे अपने कामों पर विचार करने में विफल रहते हैं।
सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ा फेंकना, गुटखा थूकना या सरेआम प्रदूषण फैलाना जैसी छोटी-छोटी गतिविधियां जनता और सरकार के इस अंतर को दर्शाती हैं।
उदाहरण के लिए, प्रत्येक वर्ष भारतीय रेलवे विभाग गुटखा के दागों को साफ करने के लिए लगभग ₹1200 करोड़ खर्च करता है, यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे बुनियादी नागरिक अनुशासन से टाला जा सकता है।
महात्मा गांधी के अनुसार ,“वह बदलाव खुद बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।”
हमें मिजोरम जैसे राज्यों से प्रेरणा लेनी चाहिए जो मजबूत नागरिक जिम्मेदारी का उदाहरण देते हैं, जहां लोग यातायात नियमों का सम्मान करते हैं और अनावश्यक हॉर्न नहीं बजाते हैं।
अगर नागरिक भावना को गंभीरता से अपनाया जाए, तो हम प्रदूषण को धीरे-धीरे समाप्त कर एक स्वच्छ वातावरण का हिस्सा बन सकते हैं।
अतः हमें जिम्मेदार नागरिक बनना चाहिए और अधिक जागरूक समुदाय की दिशा में काम करना चाहिए।
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