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वाइब्रेंट ग्रामीण भारत की ओर

Lokesh Pal June 29, 2024 05:15 29 0

संदर्भ: 

वर्ष 2022-23 के लिए नवीनतम घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) के अनुसार, भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रगति और बढ़ती आय के आशाजनक संकेत को प्रदर्शित कर रही है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES), पंचायती राज मंत्रालय, भारतनेट, मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री जन धन योजना आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारत में सतत ग्रामीण विकास में बाधा डालने वाले प्रमुख संरचनात्मक मुद्दे, वाइब्रेंट ग्रामीण भारत अवधारणा आदि।

घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) 2022-23 के प्रमुख निष्कर्ष:

  • व्यय पैटर्न में बदलाव: ग्रामीण परिवारों में खाद्य व्यय का हिस्सा पहली बार मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग के 50% से नीचे आ गया है।
  • विवेकाधीन व्यय में वृद्धि: ग्रामीण भारतीय परिवहन, चिकित्सा व्यय और उपभोक्ता सेवाओं जैसे क्षेत्रों पर अधिक व्यय कर रहे हैं।
  • ग्रामीण-शहरी अभिसरण: ग्रामीण और शहरी उपभोग पैटर्न के बीच का अंतर कम हो रहा है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की बेहतर गुणवत्ता का संकेत देता है।

ग्रामीण विकास के लिए शासन संरचना:

  • केन्द्र सरकार: केंद्र सरकार के अधीन पंचायती राज मंत्रालय नीतियाँ बनाता है और पंचायती राज संस्थाओं के कार्यान्वयन की देखरेख करता है।
  • राज्य सरकार: राज्य सरकार के अधीन ग्रामीण विकास विभाग ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की योजना बनाता है और उनका क्रियान्वयन करता है।
  • स्थानीय सरकार: स्थानीय सरकार के अधीन पंचायती राज संस्थाएँ स्थानीय स्तर पर विकास कार्यक्रमों की योजना बनाती हैं और उनका क्रियान्वयन करती हैं।

ग्रामीण भारत के विकास के प्रमुख चालक:

  • बढ़ती प्रयोज्य आय: खाद्य व्यय में ऐतिहासिक रूप से कम हिस्सेदारी विवेकाधीन व्यय के लिए अधिक धन की ओर संकेत करती है।
  • कृषि सुधार: विभिन्न कृषि सुधारों के सफल कार्यान्वयन और आधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाने से ग्रामीण उत्पादकता में वृद्धि हुई है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: ग्रामीण सड़कों, संपर्क सूत्रों और बाजार पहुँच में निवेश से आर्थिक गतिविधियों में सुविधा हुई है।
  • डिजिटल कनेक्टिविटी: भारतनेट जैसी पहलों ने डिजिटल विभाजन को समाप्त करने का प्रयास किया है तथा ई-गवर्नेंस सेवाओं तक पहुँच प्रदान की है।

ग्रामीण उद्यमिता और वित्तीय समावेशन:

  • कौशल विकास: ग्रामीण उद्यमिता और कौशल विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई पहलों ने ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाया है और आय सृजन के अवसर प्रदान किए हैं।
  • ऋण उपलब्धता: मुद्रा योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों सहित लघु एवं सूक्ष्म उद्यमों को किफायती ऋण उपलब्ध कराया है।
  • वित्तीय पहुँच: प्रधानमंत्री जन धन योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधा से वंचित लाखों लोगों के लिए बैंक खाते खोलने में सुविधा प्रदान की है।
  • शिल्पकारों-कारीगरों को प्रोत्साहन: हुनर ​​हाट जैसी योजनाओं ने ग्रामीण कारीगरों और शिल्पकारों को अपने उत्पाद प्रदर्शित करने और उसकी विक्री करने के लिए एक मंच प्रदान किए हैं।

वर्तमान में ग्रामीण भारत की प्रमुख चुनौतियाँ:

  • कृषक ऋणग्रस्तता : अनियमित मानसून और अपर्याप्त ऋण पहुँच जैसे कारकों ने किसानों को ऋणग्रस्तता में धकेल दिया है।
  • बुनियादी ढाँचे का अभाव: कई गाँवों में अभी भी बारहमासी सड़कें और बिजली आपूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच का अभाव है।
  • स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं का अभाव होता है, जिसके कारण निराशाजनक स्वास्थ्य परिणाम देखने को मिलते हैं जो ग्रामीण स्वास्थ्य के लिए प्रमुख चुनौती है।
  • शैक्षिक चुनौतियाँ: ग्रामीण शिक्षा में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे, गुणवत्तायुक्त शिक्षा और उच्च ड्रॉपआउट दर जैसी समस्याएँ बनी हुई हैं।

लैंगिक असमानता संबंधी ग्रामीण चुनौतियाँ:

 

चुनौती

विवरण

प्रभाव

भूमि स्वामित्व अंतर सांस्कृतिक मानदंड और कानूनी बाधाएं महिलाओं को भूमि विरासत का अधिकार पाने या उसका स्वामित्व प्राप्त करने से रोकती हैं। आर्थिक वंचितता। 
कृषि का स्त्रीकरण (Feminization) पुरुषों के बढ़ते प्रवास के कारण महिलाएं कृषि में बड़ी भूमिका निभाने लगी हैं। महिलाओं के लिए कार्यभार में वृद्धि। 
सीमित निर्णय लेना महिलाओं को अक्सर कृषि संबंधी निर्णय लेने की प्रक्रिया से बाहर रखा जाता है। कृषि उत्पादकता में कमी। 

ग्रामीण विकास में तेजी लाने के उपाय:

  • ग्रामीण औद्योगीकरण: कृषि प्रसंस्करण और हस्तशिल्प पर केंद्रित ग्रामीण औद्योगिक पार्क और क्लस्टर स्थापित करना।
  • स्वास्थ्य सेवा संवर्धन: टेलीमेडिसिन एकीकरण के साथ ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा के लिए हब-एंड-स्पोक मॉडल को लागू करना।
  • डिजिटल परिवर्तन: ग्रामीण ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी का विस्तार करना और पंचायतों में टेक मित्रों के माध्यम से डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना।
  • टिकाऊ कृषि: उन्नत व टिकाऊ कृषि प्रौद्योगिकियों को अपनाने को प्रोत्साहित करना और जलवायु-अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देना।

ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाना:

  • महिला-नेतृत्व में कृषक उत्पादक संगठनों का गठन : ऋण, इनपुट और बाजार संपर्क तक अधिक पहुँच प्रदान करने के लिए महिलाओं के नेतृत्व में कृषक उत्पादक संगठनों के गठन (एफ.पी.ओ.) को प्रोत्साहित करना।
  • ग्रामीण पर्यटन को प्रोत्साहन : स्थानीय सांस्कृतिक विरासत को उजागर करते हुए ग्रामीण पर्यटन सर्किट विकसित करना तथा प्लक-कुक-ईट रेस्तरां सुविधाओं को बढ़ावा देना।
  • सुदृढ़ स्थानीय शासन को प्रोत्साहन : पर्याप्त बुनियादी संसाधनों के साथ पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त बनाना तथा प्रौद्योगिकी के माध्यम से भागीदारीपूर्ण ग्रामीण शासन को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष: 

ग्रामीण भारत का विकास बेहतर व्यय संरचना, बुनियादी ढांचे और डिजिटल कनेक्टिविटी के साथ प्रगति को दर्शाता है, फिर भी ग्रामीण भारत को कृषि, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और लैंगिक समानता में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिसके लिए उपयुक्त उपायों को अपनाने की आवश्यकता है।  

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

प्रश्न : दशकों के नीतिगत प्रयासों के बावजूद ग्रामीण विकास भारत के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बना हुआ है। इस संदर्भ में, भारत में सतत ग्रामीण विकास में बाधा डालने वाले प्रमुख संरचनात्मक मुद्दों का विश्लेषण करें। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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