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जनजातीय गौरव दिवस और बिरसा मुंडा

Lokesh Pal November 16, 2024 05:00 17 0

संदर्भ :

बिरसा मुंडा जयंती, जिसे जनजातीय गौरव दिवस के रूप में भी जाना जाता है| इसे प्रत्येक वर्ष 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की विरासत का सम्मान करने के लिए भी मनाया जाता है।

बिरसा मुंडा के बारे में 

  • वे एक महान आदिवासी नेता थे, जिन्हें ब्रिटिश औपनिवेशिक शासनकाल के दौरान स्वदेशी समुदायों के उत्पीड़न के खिलाफ उनके द्वारा लड़ी गई लड़ाई के लिए जाना जाता है ।
  • बिरसा मुंडा के अनुयायी उन्हें ‘भगवान’ के नाम से पूजते थे।
  • कई घटनाओं ने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि भगवान ने उन्हें उपचारात्मक स्पर्श का उपहार दिया है, इसलिए उन्हें एक उपचारक और चमत्कारी व्यक्ति के रूप में पहचाना जाता है |
  • आदिवासी भूमि की सुरक्षा तथा अपने लोगों के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों की रक्षा संबंधी उनके प्रयासों के लिए उन्हें “धरती आबा” (पृथ्वी के पिता) की उपाधि प्रदान की गई थी ।
  • उन्होंने शोषक जमींदारों और ब्रिटिश अधिकारियों के विरुद्ध एक आंदोलन का नेतृत्व किया।
  • बिरसा मुंडा ने 1895 ई. में शुरू हुए “उलगुलान विद्रोह” (महान उथल-पुथल) का नेतृत्व किया। यह आंदोलन जनजातीय विद्रोह से कहीं अधिक न्याय तथा सांस्कृतिक पहचान के लिए एक आंदोलन या संग्राम था।

बिरसा मुंडा का दृष्टिकोण

  • उन्होंने आदिवासी स्वायत्तता की पुरजोर वकालत की, औपनिवेशिक शोषण का विरोध करने के लिए अपनी भूमि और संसाधनों के नियंत्रण पर बल दिया।
  • ब्रिटिश उत्पीड़न के खिलाफ अपनी लड़ाई में न्याय, सांस्कृतिक संरक्षण तथा आत्मनिर्भरता को मुख्य सिद्धांतों के रूप में मजबूती से बनाए रखा।
  • आदिवासी रीति-रिवाज़ो और सामाजिक परंपराओं को गहराई से महत्त्व दिया, उन्हें सामुदायिक पहचान का अभिन्न अंग माना ।
  • गांधीवादी आदर्शों के साथ संरेखित, उनका संघर्ष सत्य और न्याय के प्रति अटूट प्रतिबद्धता में निहित था।

बिरसा मुंडा की विरासत

  • उनकी विरासत आदिवासी अधिकारों और स्वायत्तता के लिए आंदोलनों को प्रेरित करती है।
  • उनका जीवन साहस और बलिदान की गाथा था, उन्होंने न सिर्फ आदिवासी अधिकारों के लिए बल्कि ब्रिटिश औपनिवेशिक शोषण के विरुद्ध भी लड़ाई लड़ी।
  • स्वतंत्रता, न्याय और पहचान के उनके आदर्श प्रत्येक भारतीय युवा की आकांक्षाओं से जुड़ते हैं।
  • उनका संघर्ष भारत के क्रांतिकारी आंदोलनों के समृद्ध इतिहास में, मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों के मध्य, एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है ।

राष्ट्र निर्माण और समावेशी विकास में जनजातीय समुदायों की भूमिका

  • जनजातीय समुदायों के बलिदान और संघर्ष भारत के इतिहास का अभिन्न अंग हैं, जो उत्पीड़न का विरोध करने तथा सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने में उनकी भूमिका को दर्शाते हैं।
  • राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भागीदारी भारत की समावेशिता की परंपरा को उजागर करती है।
  • आदिवासी हमेशा से ही राष्ट्र की पहचान का अभिन्न अंग रहे हैं, जिन्होंने भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत में महत्त्वपूर्ण रूप से योगदान दिया है।
  • 15 नवंबर को “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में मनाए जाने की घोषणा की गई है, बिरसा मुंडा जैसे आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को मान्यता देने की दिशा में एक विशेष कदम है।
  • “आज़ादी का अमृत महोत्सव” जैसे आयोजन गुमनाम नायकों का जश्न मनाते हैं और युवाओं में भारत की सांस्कृतिक तथा क्रांतिकारी विरासत के बारे में गर्व पैदा करने का कार्य करते हैं।

जनजातीय मूल्यों से शिक्षा

  • पारिस्थितिक सद्भाव : जनजातीय समुदाय स्थायी जीवन और प्रकृति के प्रति सम्मान पर बल देते हैं।
  • सामूहिक कल्याण : व्यक्तिगत लाभ से अधिक सामुदायिक कल्याण पर उनका ध्यान समावेशी विकास के लिए एक मूल्यवान मॉडल प्रस्तुत करता है।

जनजातीय विकास संबंधी प्रमुख सरकारी पहलें

जनजातीय समुदाय और उनके योगदान को सम्मानित करने हेतु निम्नलिखित पहलें शुरू की गई हैं :

  • धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान : लगभग 63,000 आदिवासी गाँवों में सामाजिक बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना ।
  • पीएम-जनमन (प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान) : प्रभावी कल्याणकारी उपायों के लिए 11 प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना।
  • जनजातीय दर्पण गैलरी : राष्ट्रपति भवन में आदिवासी कला और संस्कृति का प्रदर्शन।
  • विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTGs) तक पहुँच : PVTGs के प्रतिनिधियों के साथ वार्ता एक समावेशी विकास के दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है। उनकी अनूठी चुनौतियों का समाधान करना तथा संबंधित नीति में उनके दृष्टिकोण को एकीकृत करना इस योजना की प्राथमिकता है।

निष्कर्ष

बिरसा मुंडा का जीवन सभी के लिए आदर्श और प्रेरणा का स्रोत है। आदिवासी अधिकारों, सांस्कृतिक पहचान और पारिस्थितिक संतुलन के लिए उनकी लड़ाई आधुनिक भारत की आकांक्षाओं के अनुरूप है। आदिवासी समुदायों के योगदान को मान्यता देना और उनके विकास को बढ़ावा देना न केवल उनकी विरासत के प्रति श्रद्धांजलि है, बल्कि एक अधिक समावेशी और समतावादी समाज के निर्माण की दिशा में एक व्यापक कदम है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

भारतीय जनजातीय आंदोलन में बिरसा मुंडा के योगदान पर चर्चा कीजिए । बताइए कि आदिवासी अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करते हुए सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए उनकी विरासत आधुनिक शासन का किस तरह से मार्गदर्शन कर सकती है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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