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ट्रम्प की टैरिफ़ नीती: वैश्वीकरण की नींव पर प्रभाव

Lokesh Pal April 09, 2025 05:00 23 0

संदर्भ:

हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीनी आयात पर 104% की भारी ड्यूटी सहित नए टैरिफ लगाये हैं जिसका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।

वैश्वीकरण का विकास:  

  • परिभाषा: सरल शब्दों में, वैश्वीकरण का अर्थ है वैश्विक बनने की प्रक्रिया से है, अर्थात विश्व की अर्थव्यवस्थाओं, समाजों और संस्कृतियों का एकीकरण।
  • विद्वानों के विचार: हालाँकि, इस शब्द की सरलता इसकी वास्तविक जटिलता को नहीं दर्शाती है; विद्वानों ने इसे विभिन्न दृष्टिकोणों से परिभाषित किया है, जिसमें संबद्धताआर्थिक एकीकरणगतिशीलतासमरूपता और राज्य की घटती भूमिका पर प्रकाश डाला गया है
  • महत्व: समकालीन राजनीतिअर्थव्यवस्थासंस्कृति और समाज को समझने के लिए वैश्वीकरण एक प्रभावी एवं महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है
  • समझ: वैश्विक मामलों पर किसी भी सार्थक चर्चा के लिए वैश्वीकरण की गहन समझ की आवश्यकता होती है, जो आधुनिक जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करने वाली एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में कार्य करती है।
  • मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य:  मार्क्सवादी विद्वानों का तर्क है कि वैश्वीकरण कोई नई घटना नहीं है बल्कि पूंजीवाद के ऐतिहासिक विकास का हिस्सा है।
    • मार्क्सवादियों के मुताबिक वैश्वीकरण पूंजीवाद का एक अपरिहार्य चरण है जहाँ पूंजीवाद दुनिया भर में फैलता है, उत्पादन और उपभोग की गतिशीलता को आकार देता है। इमैनुएल वालरस्टीन और फर्नांड ब्राउडल जैसे प्रमुख विद्वान वैश्वीकरण  को आगे बढ़ाने में पूंजीवाद की भूमिका पर जोर देते हैं।
  • प्राचीन विश्व का दृष्टिकोण: कुछ विद्वान वैश्वीकरण का इतिहास प्राचीन काल से जोड़ते हैं, तथा प्राचीन राज्यों के बीच व्यापार नेटवर्क और संबंधों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • युद्धोत्तर युग: द्वितीय विश्व युद्ध  के बाद, पूंजीवाद और समाजवाद नामक प्रमुख विचारधाराएं बन गईं, जिनमें क्रमशः अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ही अग्रणी रहे।
  • वैश्वीकरण का उदय: समय के साथ, पूंजीवाद ने समाजवाद को पीछे छोड़ना प्रारंभ किया, विशेष रूप से 1980 के दशक तक, जिसके परिणामस्वरूप दो बड़ी घटनाएँ घटी जिसमें प्रथम बर्लिन की दीवार (1989) का गिरना और दूसरा यूएसएसआर (1991) का विघटन था
    • इसने समाजवाद के अंत और पूंजीवाद के वैश्विक उदय को चिह्नित किया, जिसने एक नए युग को आकार दिया जहां राज्य नियंत्रण पर बाजार को प्राथमिकता दी गई।
  • उत्पत्ति: वैश्वीकरण शब्द का पहली बार प्रयोग 1930 के दशक में किया गया था, मुख्यतः शिक्षा और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में, जो राष्ट्रों के बीच बढ़ते अंतर्संबंधों को दर्शाता था।
    • हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थियोडोर लेविट को वैश्विक आर्थिक परिचालन के संदर्भ में वैश्वीकरण की अवधारणा को लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिया जाता है।
    • अपने 1983 के लेखद ग्लोबलाइजेशन ऑफ मार्केट्स  में, लेविट ने वैश्वीकरण को “सामाजिक व्यवहार और प्रौद्योगिकी में परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया, जिसने कंपनियों को दुनिया भर में समान उत्पाद बेचने की अनुमति दी।” 

वैश्वीकरण के प्रमुख चालक:

  • प्रौद्योगिकी में प्रगति: तकनीकी प्रगति ने वैश्वीकरण को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी और संचार के क्षेत्र में, देखा जा सकता है।
  • प्रभाव: डिजिटल रूप से एकीकृत अर्थव्यवस्थासमय और स्थान का संपीड़न, तथा बहुराष्ट्रीय निगमों का सामूहिक संचालन तकनीकी प्रगति के कारण ही संभव हो पाया है।
  • सरकारी नीतियाँ: सरकारों ने समय के साथ व्यापार बाधाओं को कम करके, मुक्त बाजार परिचालन को अपनाकर और उपभोग पैटर्न को मानकीकृत करके वैश्वीकरण को सुविधाजनक बनाया है
  • बाजार व्यवस्था में परिवर्तन: उभरती अर्थव्यवस्थाओं में आकांक्षी मध्यम वर्ग का उदय  वैश्विक उपभोक्ता बाजार को संचालित करने वाली एक महत्वपूर्ण शक्ति बन गया है।

वैश्वीकरण के लाभ: 

  • आर्थिक अवसर: वैश्वीकरण विकासशील देशों के लिए अपार संभावनाएं प्रदान करता है , उन्हें वैश्विक बाजारों में एकीकृत होने और अपने आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के अवसर प्रदान करता है ।
  • वैश्विक मुद्दों पर सहयोग: वैश्वीकरण के माध्यम से वैश्विक सहयोग बढ़ा है, विशेष रूप से आतंकवादभुखमरी और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर, राष्ट्र इन आम चुनौतियों से निपटने के लिए सक्रिय रूप से सहयोग कर रहे हैं।
  • विदेशी संस्कृतियों और विचारों तक पहुंच: विदेशी संस्कृतियों तक अधिक पहुंच समाज को अधिक उदार बनाती हैखुले विचारों को बढ़ावा देती है और अधिक सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देती है
  • बाजार प्रतिस्पर्धा से कीमतों पर प्रभाव: वैश्विक बाजार प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें कम हो जाती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ होता है।
  • जागरूकता में वृद्धि: वैश्वीकरण परिधीय और हाशिए पर स्थित क्षेत्रों के बारे में जागरूकता बढ़ाता है, जिससे अक्सर मीडिया कवरेज के माध्यम से अन्यथा उपेक्षित समुदायों को एक मंच मिलता है।

वैश्वीकरण के नुकसान:

  • आर्थिक असमानता: वैश्वीकरण के कारण आर्थिक असमानता राष्ट्रों के बीच (अमीर राष्ट्र और अधिक अमीर होते जा रहे हैं, जबकि गरीब राष्ट्र और अधिक हाशिए पर चले गए हैं) और देशों के भीतर (धन के बीच अंतर बढ़ता जा रहा है) गहरी हो गई है।
  • सांस्कृतिक समरूपता: वैश्वीकरण के मानकीकरण के प्रयास से सांस्कृतिक विविधता में गिरावट आई है, विशेष रूप से भाषावस्त्र, भोजन, और मनोरंजन आदि जैसे क्षेत्रों में इसे स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है।
    • समाजशास्त्री जॉर्ज रिट्जर की “समाज का मैकडोनाल्डीकरण” की अवधारणा उस प्रक्रिया का वर्णन करती है जहां वैश्वीकरण एकरूपता को, अक्सर स्थानीय परंपराओं और संस्कृतियों की कीमत पर, बढ़ावा देता है।
  • पर्यावरण क्षरण: बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा परिचालन के बड़े पैमाने पर विस्तार ने पर्यावरणीय क्षरण को तीव्र कर दिया है क्योंकि व्यवसाय स्थिरता की परवाह किए बिना नए बाजारों तक अपनी पहुंच का विस्तार कर रहे हैं
  • वर्ग विभाजन: वैश्वीकरण के लाभ अक्सर समान रूप से वितरित नहीं होते हैं। जबकि यह किसी एक वर्ग विशेष को महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, यह मध्यम और उच्च वर्गों को महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है, यह गरीबों के लिए हानिकारक हो सकता है, जिससे हाशिए पर पड़े समूहों के लिए आर्थिक कठिनाइयाँ बढ़ सकती हैं।
  • संरक्षणवाद का उदय:  चूंकि वैश्वीकरण के कारण सीमाओं के पार श्रमिकों की आवाजाही बढ़ गई, इसलिए कई विकसित देशों ने विदेशी श्रमिकों के प्रति नाराजगी व्यक्त करना शुरू कर दिया तथा उन्हें स्थानीय नौकरियों के लिए खतरा व नुकसानदायक करार दिया। 
    • इस आक्रोश ने उच्च टैरिफ और आयात पर प्रतिबंध जैसी संरक्षणवादी नीतियों को जन्म दिया।
  • नस्लीय घृणा: नस्लीय घृणा और वैश्वीकरण को एक खतरे के रूप में देखने की धारणा ने वैश्विक उत्तर में नस्लवाद के नए रूपों के उदय में योगदान दिया है।
  • विकासशील देशों में संरक्षणवाद: अविकसित देशों में, वैश्वीकरण के कारण बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में  घरेलू उद्योगों का पतन हो गया है।
    • कई राष्ट्र प्रतिक्रियास्वरूप संरक्षणवाद की ओर मुड़ गए हैं, ताकि स्थानीय उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाया जा सके।

वैश्वीकरण के प्रति राष्ट्रों की प्रतिक्रिया:

  • भारतभारत में लघु उद्योगों और पारंपरिक शिल्पों की गिरावट के कारण ‘मेक इन इंडिया’ अभियान शुरू हुआ है। हालांकि यह पूरी तरह से संरक्षणवादी नहीं है, लेकिन यह अभियान बहुराष्ट्रीय निगमों के प्रभुत्व पर बढ़ती चिंताओं की एक सशक्त प्रतिक्रिया है।
    • अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने उत्पादों की घरेलू मांग पर ध्यान केंद्रित करते हुए ‘मेक फॉर इंडिया’ दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव दिया है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की संरक्षणवादी नीतियों में अंतर्राष्ट्रीय समझौतों से हटना, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को मिलने वाले वित्त पोषण में कटौती करना और उच्च टैरिफ लगाना शामिल है। 
    • इन कार्रवाइयों ने वैश्विक व्यापार और सहयोग पर संरक्षणवाद के नकारात्मक प्रभाव के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं।

निष्कर्ष:

संरक्षणवाद का उदय व्यापक हितों की पूर्ति व राष्ट्रीय कल्याण के बजाय संकीर्ण, हित-संचालित समूहों के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है। अतः वैश्वीकरण का आलोचनात्मक मूल्यांकन किया जाना चाहिए, खासकर जब दीर्घकालिक परिणामों पर विचार किया जाए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: “टैरिफ युद्ध वैश्विक उदार व्यवस्था में गहरे संकट को दर्शाते हैं।” हाल के वैश्विक व्यापार तनावों के आलोक में इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। ऐसे घटनाक्रमों ने भारत की व्यापार नीति और भारत के रणनीतिक हितों को कैसे प्रभावित किया है? समझाइए ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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