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यूजीसी मसौदा विनियमन : एक प्रमुख संवैधानिक मुद्दा

Lokesh Pal January 21, 2025 05:45 3 0

संदर्भ :

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने हाल ही में विश्वविद्यालयों में कुलपतियों (VC) के चयन और नियुक्ति के लिए मसौदा नियमों का अनावरण किया है।

प्रमुख प्रस्ताव

  • पात्रता मानदंड का विस्तार : वर्तमान नियम यह है, कि केवल प्रोफेसर के रूप में न्यूनतम 10 वर्ष का अनुभव रखने वाले शिक्षाविद ही कुलपति के पद के लिए पात्र हैं और अब प्रस्तावित परिवर्तन में उद्योग, लोक प्रशासन या सार्वजनिक नीति में 10+ वर्ष का अनुभव रखने वाले शिक्षाविदों को शामिल किया जाएगा ।
  • संवैधानिक चिंताएँ : शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है, जिसके लिए केंद्र और राज्यों के बीच सहकारी निर्णय लेने की आवश्यकता होती है। 
    • राज्य सरकारों का तर्क है, कि यह विनियमन विश्वविद्यालय प्रशासन पर उनके अधिकार को कमजोर करता है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के कार्य

  • उद्देश्य : यूजीसी अधिनियम, 1956 को संसद द्वारा “विश्वविद्यालय मानकों का समन्वय और निर्धारण” सुनिश्चित करने तथा इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की स्थापना करने के लिए अधिनियमित किया गया था।
  • प्रोत्साहन और समन्वय : देश में विश्वविद्यालयी शिक्षा को बढ़ावा देने और समन्वय करने के लिए उपाय करना।
  • मानकों को बनाए रखना : विश्वविद्यालयों में शिक्षण, परीक्षाओं और शोध की गुणवत्ता सुनिश्चित करना।
  • निधियों का आवंटन : रखरखाव और विकास उद्देश्यों के लिए विश्वविद्यालयों को धन आवंटित करना।
  • सलाहकार की भूमिका : उच्चतर शिक्षा में सुधार के लिए अनुदान और अन्य उपायों के आवंटन पर संघ या राज्य सरकारों को सलाह देना।
  • सूचना प्रसार : भारत और विदेशों में विश्वविद्यालय शिक्षा के बारे में जानकारी एकत्र करना तथा  संबंधित संस्थानों के साथ साझा करना।
  • शुल्क का विनियमन : विश्वविद्यालयों में शुल्क तथा अन्य मौद्रिक आवश्यकताओं और सहायता  को विनियमित करने के लिए नियम निर्धारित करना।
  • विनियम के निर्धारण की शक्तियाँ : अधिनियम की धारा-26 यूजीसी को अधिनियम के अधिदेश को लागू करने के लिए आवश्यक विनियम बनाने का अधिकार देती है। विनियमन, अधिनियम और इसके तहत बनाए गए नियमों के अनुरूप होने चाहिए।
  • विनियमन के क्षेत्र : विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए मानदंड परिभाषित करना, शिक्षण और डिग्री प्रदान करने की प्रक्रिया के लिए न्यूनतम मानक स्थापित करना तथा विश्वविद्यालयों के बीच संसाधनों और सुविधाओं के उपयोग में समन्वय स्थापित करना।

न्यायिक व्याख्याएँ

  • सुरेश पाटिलखेड़े मामला (2011):  इसमें बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रो-चांसलर और वाइस चांसलर की नियुक्ति की योग्यता और प्रक्रिया शैक्षिक मानकों पर ‘प्रत्यक्ष प्रभाव’ परीक्षण के अनुरूप नहीं होते हैं।
  • धारा-26 संबंधी समस्या : यूजीसी अधिनियम की धारा-26 के तहत, यूजीसी के पास कुलपतियों के चयन या नियुक्ति को विनियमित करने का अधिकार नहीं है।
    •  यूजीसी विनियम जैसे अधीनस्थ कानून, पूर्ण विधायी शक्तियों द्वारा बनाए गए राज्य कानूनों को रद्द नहीं कर सकते।
  • कल्याणी मथिवनन मामला (2015) : इसमें उच्चतम न्यायालय ने कहा, कि अधीनस्थ कानून के रूप में यूजीसी के नियम उन विश्वविद्यालयों पर बाध्यकारी प्रभाव रखते हैं जिन पर वे लागू होते हैं। संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद ये नियम प्रभावी हो जाते हैं।
    • संसदीय अनुमोदन के संबंध में अवलोकन संसदीय प्रक्रिया की गलत व्याख्या करता है; संसद समीक्षा करती है, लेकिन विनियमों को औपचारिक रूप से अनुमोदित नहीं करती है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि विनियमन 7.3.0 राज्य विधान के तहत विश्वविद्यालयों के लिए अनुशंसात्मक है। 
    • इससे यह सिद्धांत पुष्ट होता है, कि यूजीसी के नियम राज्य-शासित विश्वविद्यालयों में प्रशासनिक नियुक्तियों को अनिवार्य रूप से निर्धारित नहीं कर सकते।

संवैधानिक मुद्दे

  • अनुच्छेद 254 : यदि कोई राज्य विधि किसी केंद्रीय विधि के प्रतिकूल है, तो राज्य विधि उस प्रतिकूलता की सीमा तक शून्य होगी। हालाँकि, यूजीसी विनियमों जैसे अधीनस्थ कानून को अनुच्छेद 254 के तहत “केंद्रीय कानून” के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है।
  • अनुच्छेद 254(2): राष्ट्रपति के लिए आरक्षित और उनकी स्वीकृति वाली राज्य विधियाँ किसी भी असंगत केंद्रीय विधि पर लागू होती हैं। यह खंड केवल राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर लागू होता है, उसके बाद बनाए गए नियमों या विनियमों पर नहीं।
    • केवल संसद द्वारा पारित और राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत विधेयक ही राज्य विधान को रद्द कर सकता है, न कि यूजीसी द्वारा जारी किए गए अधीनस्थ विनियमों को।

निष्कर्ष  

स्पष्ट है कि यूजीसी विनियमों और राज्य विधियों के मध्य परस्पर क्रिया अधीनस्थ कानून और संघीय सिद्धांतों के बीच जटिल संबंध को उजागर करती है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

यूजीसी द्वारा प्रस्तावित केंद्रीय विनियमों के शैक्षणिक संस्थानों के प्रबंधन में राज्य सरकारों की स्वायत्तता पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण कीजिए । साथ ही विनियामक प्राधिकरण और राज्य स्वायत्तता के बीच संतुलन निर्धारण के उपाय सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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