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यूक्रेन युद्ध : भारत और यूरोप का परस्पर महत्व

Lokesh Pal August 01, 2024 05:00 81 0

संदर्भ: 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगले माह की संभावित यूक्रेन यात्रा से यूरोपीय सुरक्षा के प्रति भारत के दृष्टिकोण में पुनः परिवर्तन के कयास लगाए जा रहे हैं ।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: यूक्रेन युद्ध, व्यापारिकता, नाटो, युद्धग्रस्त क्षेत्रों का मानचित्र आदि। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: यूरोप के साथ पुनः जुड़ने में भारत के लिए चुनौतियाँ और अवसर आदि।

यूक्रेन युद्ध ने भारत और यूरोप को एक-दूसरे के लिए महत्वपूर्ण बना दिया है:

  • यद्यपि यूरोपीय शक्तियों के बीच की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने आधुनिक भारत और एशिया के विकास को आकार दिया है, तथापि हाल के दशकों में यूरोपीय भू-राजनीति भारत के रणनीतिक क्रियाबिंदु से निष्क्रिय या अप्रभावी प्रतीत होती है।
  • हालाँकि, यूक्रेन युद्ध ने यूरोप के प्रश्न को भारत के अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष में शीर्ष स्थान पर लाने का कार्य किया है।
  • भारत के सार्वजनिक विमर्श में यूक्रेन के प्रश्न को या तो पश्चिम की ओर से “दबाव बिंदु” के रूप में या रूस के साथ एकजुटता के क्षण के रूप में देखा गया है। 
  • इसके बजाय, यूक्रेन युद्ध को दिल्ली द्वारा यूरोपीय शांति और सुरक्षा के साथ लंबे समय से लंबित पुनः जुड़ाव के लिए एक अनिवार्यता के रूप में देखना चाहिए। 
  • निश्चित रूप से, भारत ने पिछले कुछ वर्षों में यूरोप के साथ अपने राजनीतिक और कूटनीतिक जुड़ाव को बढ़ाया है, जो एक प्रमुख आर्थिक साझेदार है और यह नागरिक तथा सैन्य प्रौद्योगिकी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। 
  • अब इसे अपने राजनीतिक और कूटनीतिक जुड़ाव को एक रणनीतिक दिशा प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • पिछले एक दशक से भी अधिक समय में, दिल्ली ने एशिया और उसके जलक्षेत्रों और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रति अपनी रणनीति में बदलाव किया है, साथ ही मध्य पूर्व के प्रति अपने दृष्टिकोण को भी पुनर्गठित किया है।
  • लेकिन यूरोप भारत के मानचित्रों को फिर से बनाने के प्रयास से बाहर रहा है।
  • शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से, भू-राजनीतिक दृष्टि से शांतिपूर्ण और एकीकृत यूरोप के बारे में सोचने के लिए दिल्ली के पास बहुत कम कारण थे।
  • यूरोप के बारे में भारत की “गैर-रणनीतिक” सोच को यूरोप के “व्यापारवाद” ने मजबूत किया।
  • यद्यपि यूरोप ने “भू-राजनीतिक अभिनेता” बनने की महत्वाकांक्षा की घोषणा की, लेकिन वह व्यापार और वाणिज्य के प्रति अपने प्रबल पूर्वाग्रह को दूर नहीं कर सका। 
  • यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से यूरोप और भारत दोनों की आत्मसंतुष्टि प्रभावित हुई है। 
  • अमेरिका में कुछ लोग चाहते हैं कि यूरोप रूस के खिलाफ अपने क्षेत्र की रक्षा करने की अधिक जिम्मेदारी ले और अमेरिका को एशिया पर ध्यान केंद्रित करने से मुक्त करे। 
  • बदलते अमेरिकी दृष्टिकोण से निपटने की यूरोप की समस्या रूसी प्रश्न से निपटने के तरीके पर गहरे आंतरिक विभाजन से जटिल है। 
  • दो ऐतिहासिक रूप से तटस्थ देश – फिनलैंड और स्वीडन क्षेत्र पर रूस से बढ़ते खतरे के बीच नाटो में शामिल हो गए हैं।
  • लेकिन नाटो के दो सदस्य – हंगरी और तुर्की – यूक्रेन में युद्ध से निपटने के लिए अपने-अपने रास्ते पर चलने की कोशिश कर रहे हैं।
  • बाएं और दाएं दोनों तरफ़ से कई यूरोपीय राजनीतिक दल मास्को के साथ समझौता करने के पक्ष में हैं।
  • मामले को और भी बदतर बनाने के लिए, यूरोप यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के लिए चीन की भौतिक सहायता की आलोचना करने और बीजिंग से मास्को को नियंत्रित करने की गुहार लगाने के बीच उलझा हुआ है।

यूरोपीय भू-राजनीतिक दुविधा

  • सरल शब्दों में कहें तो यूरोप कठिन भू-राजनीतिक दुविधाओं का सामना कर रहा है।
  • यूरोप की समस्या का समाधान उसकी अपनी रक्षा क्षमता के निर्माण में निहित है; लेकिन यह तभी संभव है जब दीर्घकालिक रूप से एकता और उद्देश्य की गंभीरता हो।
  • यूरोप में युद्ध की वापसी ने भारत के लिए कई आर्थिक चुनौतियाँ पैदा कर दी हैं।
  • इसने भारत की सुरक्षा चुनौतियों को भी जटिल बना दिया है।
  • हालांकि रूस के साथ भारत के हालिया सम्बन्ध पश्चिम में राजनीतिक संदेह के घेरे में हैं जिससे मॉस्को के साथ चीन के बढ़ते सम्बन्धों और यूरोप में इसके रणनीतिक प्रयासों ने भारत की सुरक्षा गणना में नई अनिश्चितता पैदा कर दी है।
  • इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि यूक्रेन में दिल्ली की शांति कूटनीति यूरोपीय सुरक्षा के साथ भारत की रणनीतिक पुनः संलग्नता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगी। 
  • यह लंबे समय से चले आ रहे भारत-यूरोपीय भू-राजनीतिक अवकाश का अंत है। 

उपमहाद्वीप द्वारा औपनिवेशिक युग में यूरोपीय प्रतिद्वंद्विता का लाभ उठाया गया  

  • औपनिवेशिक युग में, भारतीय राजकुमारों ने अपनी कार्रवाई की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए उपमहाद्वीप में यूरोपीय प्रतिद्वंद्विता का फायदा उठाने की कोशिश की।
  • जैसे-जैसे ग्रेट ब्रिटेन ने अपनी स्थिति मजबूत की, भारतीय राष्ट्रवादियों के कुछ वर्गों ने ब्रिटिश शासन को हराने के लिए यूरोपीय शक्तियों – फ्रांस, जर्मनी और रूस – के साथ मिलकर काम किया। 
  • उदाहरण के लिए, इंपीरियल जर्मनी ने 1915 में काबुल में भारत की पहली अनंतिम सरकार के गठन का समर्थन किया।
  • ब्रिटेन ने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में अपनी प्रतिद्वंद्वी शक्तियों को हराने के लिए भारतीय सैनिकों पर भरोसा किया। 
  • यही कारण है कि प्रथम विश्व युद्ध में दस लाख और द्वितीय विश्व युद्ध में दो मिलियन भारतीय सैनिकों ने भाग लिया। 
  • शीत युद्ध के दौरान और शीत युद्ध के बाद के युग में यूरोप के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी में लगातार कमी देखी गई।
  • अतः यूक्रेन में युद्ध विराम के बाद भी यूरोप में संघर्ष समाप्त होने की संभावना नहीं है। इसलिए एक नई यूरोपीय सुरक्षा व्यवस्था के निर्माण में अभी और काफी समय लगेगा। 
  • चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसी एशियाई शक्तियाँ अब यूरोपीय सुरक्षा में सक्रिय रूप से शामिल हैं। 
  • यूरोपीय भू-राजनीति में भारत का दांव और भी अधिक है।

निष्कर्ष: 

यूक्रेन युद्ध भारत की यूरोप के साथ पुनः रणनीतिक सहभागिता की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जो ऐतिहासिक आत्मसंतुष्टि से हटकर एक नई यूरोपीय सुरक्षा व्यवस्था को आकार देने में सक्रिय भागीदारी की ओर अग्रसर है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न: 

प्रश्न: यूक्रेन में चल रहे संघर्ष के बीच यूरोपीय सुरक्षा के साथ पुनः जुड़ने के मार्ग मे, भारत के समक्ष उपस्थित विभिन्न चुनौतियों और अवसरों का मूल्यांकन करें। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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