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पूर्वोत्तर राज्य मेघालय में यूरेनियम खनन संबंधी विवाद

Lokesh Pal September 22, 2025 05:00 91 0

संदर्भ:

स्थानीय नेताओं के साथ विचार-विमर्श के निरर्थक सिद्ध होने के बाद मेघालय से किसी भी कीमत पर यूरेनियम खनन करने का केंद्र का निर्णय, भारत के संसाधन निष्कर्षण के इतिहास में एक चिंताजनक मानदंड है।

यूरेनियम के बारे में:

  • प्रकृति: यूरेनियम एक भारी, रेडियोधर्मी धातु है जो पृथ्वी की भू-पर्पटी में पाई जाती है।
  • परमाणु ऊर्जा में भूमिका: यह परमाणु ऊर्जा के लिए ईंधन के रूप में कार्य करता है (यूरेनियम-235 परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों में प्राथमिक ईंधन है)।
  • महत्त्व: इसे भारत की ऊर्जा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
    • यह विकिरण चिकित्सा, रेडियोग्राफी और परमाणु आइसोटोप उत्पादनमें भी उपयोगी है।

मेघालय में यूरेनियम खनन की पृष्ठभूमि:

  • खासी विरोध: मेघालय के पश्चिमी खासी पहाड़ियों में, विशेष रूप से डोमियासियाट और वाखाजिमन में, 1984 के आसपास उच्च गुणवत्ता वाले यूरेनियम भंडार की खोज की गई थी।
    • खासी समूह 1980 के दशक से डोमियासियात और वाहकाजी में यूरेनियम अन्वेषण का विरोध कर रहे हैं।
    • आदिवासी लोगों को भय है, कि खनन से विकिरण के कारण स्थानीय स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, उनकी भूमि दूषित हो जाएगी और उनकी संस्कृति खतरे में पड़ जाएगी, क्योंकि वे भूमि को अपनी पहचान और अपने पूर्वजों की विरासत मानते हैं।
  • कार्यालय ज्ञापन (OAM) मुद्दा: कार्यालय ज्ञापन (OAM) कार्यकारी दस्तावेज हैं, जो स्वतंत्र जाँच के बिना जारी किए जाते हैं, अक्सर प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को दरकिनार कर दिए जाते हैं।
    • सार्वजनिक परामर्श से छूट: केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी कार्यालय ज्ञापन में परमाणु, महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिज खनन को सार्वजनिक परामर्श से छूट दी गई है।
      • स्थानीय समुदायों पर प्रभाव: यह छूट जनजातीय समुदायों के प्रबंधन को दरकिनार कर देती है तथा उन्हें ऐसे निर्णयों में मूकदर्शक बना देती है, जो उनकी भूमि और आजीविका को गहराई से प्रभावित करते हैं।

झारखंड में यूरेनियम खनन का उदाहरण:

  • सिंहभूम जनजातियों के मुद्दे: यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (UCIL) ने विरोध के बावजूद दशकों से झारखंड के सिंहभूम जिले में यूरेनियम का खनन किया है।
    • हालाँकि, झारखंड के जादुगोड़ा से विकिरण के कारण कैंसर और जन्म दोष तथा नदियों और कुओं के प्रदूषण जैसी शिकायतों की कई रिपोर्टें दर्ज की गई हैं।
    • स्थानीय लोगों की चिंताओं को प्रायः नजरअंदाज कर दिया जाता था, क्योंकिजन सुनवाई के नोटिस अंग्रेजी या ऐसी जटिल भाषा में जारी किए जाते थे, जिसे स्थानीय लोग समझ नहीं पाते थे।
    • डॉक्यूमेंट्री ”बुद्धा वीप्स इन जादुगोड़ा” ने इस पीड़ा को उजागर किया, जिसमें एक व्यक्ति के हवाले से कहा गया कि “विकास ने हमें विकिरण दिया, प्रकाश नहीं।”
  • शोषण की अवधारणा: आदिवासी समुदायों के लिए, ऐसे अनुभवइस विश्वास को मजबूत करते हैं कि उनकी भूमि को शेष भारत के लिए केवल एक “संसाधन सीमा” के रूप में देखा जाता है।
  • संघवाद: यह संघर्ष संघवाद (केन्द्र बनाम स्थानीय स्वायत्त निकाय) के टकराव तथा शासन दृष्टिकोण (टॉप-डाउन बनाम सहभागी) की परीक्षा का प्रतिनिधित्व करता है।

संवैधानिक, लोकतांत्रिक और न्यायिक सुरक्षा उपाय:

  • छठी अनुसूची स्वायत्तता: खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद के पास छठी अनुसूची के तहत आदिवासी अधिकारों तथा संसाधनों की रक्षा करने का अधिकार है।
    • छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के लिए एक विशेष प्रावधान है, जिसका उद्देश्य जनजातीय पहचान, संस्कृति तथा संसाधनों की रक्षा करना है।
    • खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद (KHADC), जिसका क्षेत्राधिकार भंडार क्षेत्र पर है, के पास भूमि, वन और स्थानीय शासन से संबंधित पर्याप्त शक्तियाँ हैं।
  • सहमति सिद्धांतों का उल्लंघन: केंद्र सरकार का दृष्टिकोण यह संकेत देता है, कि अब मना करना स्वीकार्य नहीं है, जो स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति के सिद्धांत को कमजोर करता है।
  • सहमति के वैश्विक मानदंड:अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक परिणामों वाली परियोजनाओं को केवल वास्तविक सामुदायिक सहमति से ही आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
  • नियमगिरि पहाड़ियाँ (2013):नियमगिरि मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने खनन से पूर्व समुदाय की सहमति को अनिवार्य बनाकर जनजातीय अधिकारों को बरकरार रखा।
  • संभावित न्यायिक चुनौती: स्थानीय समूह संविधान की पाँचवी और छठी अनुसूचियों के तहत संरक्षण का हवाला देते हुए, न्यायालयों में OM की वैधता को चुनौती दे सकते हैं।

आगे की राह:

  • कार्यालय ज्ञापन वापस लेना: पर्यावरण मंत्रालय को प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों को बहाल करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि खनन प्रबंधन में लोकतांत्रिक परामर्श की अनदेखी न हो, इस आदेश को वापस लेना चाहिए।
  • विकल्प तलाशना:राज्य को थोरियम जैसे अन्य विकल्पों पर भी विचार करना चाहिए (भारत के पास विधव का 25% थोरियम भंडार है, तीन-स्तरीय परमाणु कार्यक्रम को और तीव्र करना चाहिए)।
    • नवीकरणीय ऊर्जा (सौर और पवन) प्रबंधन।
    • कजाख्स्तान और कनाडा जैसे देशों से यूरेनियम का आयात जारी रखना।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: मेघालय में यूरेनियम निष्कर्षण के संदर्भ में, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील और जनजातीय क्षेत्रों में खनन से उत्पन्न होने वाली शासन संबंधी चुनौतियों का परीक्षण कीजिए। संसाधन प्रबंधन के प्रति एक सतत और समावेशी दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं?

(10 अंक, 150 शब्द)

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