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भारत के आर्थिक हितों के संबंध में अमेरिकी ‘पारस्परिक टैरिफ नीति’ और वैश्विक व्यापार युद्ध

Lokesh Pal April 04, 2025 05:30 106 0

संदर्भ:

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा पारस्परिक टैरिफ लगाए जाने से वैश्विक व्यापार में व्यापक अनिश्चितता उत्पन्न हो गई है, जिसका प्रभाव भारत जैसे देशों पर भी पड़ रहा है।

टैरिफ पर आर्थिक सहमति

  • कम टैरिफ के लाभ: अर्थशास्त्रियों के बीच इस बात पर लगभग आम सहमति है, कि कम टैरिफ आमतौर पर आर्थिक विकास के लिए लाभकारी होते हैं। टैरिफ जब अधिक होते हैं, तो बाजार की दक्षता को विकृत करते हैं, जिससे संसाधनों के आवंटन में अक्षमता उत्पन्न होती है।
  • आर्थिक दक्षता: अर्थशास्त्रियों का तर्क है, कि कम टैरिफ प्रतिस्पर्धा और वैश्विक एकीकरण को बढ़ावा देकर आर्थिक दक्षता में सुधार करते हैं। इससे उपभोक्ताओं को लाभ होता है, जो कम कीमतों का लाभ  लेते हैं, और व्यवसायों को अधिक प्रतिस्पर्धी माहौल में कार्य करने की अनुमति मिलती है
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा: अजय शाह ने कहा, कि “भारत को उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जहाँ उसे प्रतिस्पर्धात्मक लाभ है। भारत को उन वस्तुओं का आयात करना चाहिए, जिन्हें वह कुशलता से उत्पादित नहीं कर सकता है, जिससे वैश्विक रूप से एकीकृत अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।”

टैरिफ का प्रभाव

  • उपभोक्ताओं पर प्रभाव: जब किसी वस्तु पर सीमा शुल्क लगाया जाता है, जैसे कि कारों पर 20% टैरिफ, तो उपभोक्ताओं के लिए उसकी  कीमत बढ़ जाती है। इससे समान वस्तुओं की लागत बढ़ जाती है और उपभोक्ता कल्याण कम हो जाता है
  • उत्पादकों पर प्रभाव: जबकि घरेलू उत्पादकों को उच्च लाभ मार्जिन से लाभ होता है (क्योंकि वे उत्पादों को बढ़ी हुई कीमतों पर बेच सकते हैं), आर्थिक तर्क यह है कि अकुशल उद्योगों को टैरिफ द्वारा संरक्षित नहीं किया जाना चाहिए। 
    • यदि कोई फर्म प्रतिस्पर्धात्मक रूप से उत्पादन नहीं कर सकती, तो उसे सरकारी सहायता की  बजाय बाजार से बाहर होना चाहिए।
  • दक्षता और संसाधन आवंटन: व्यापक मुद्दा यह है, कि भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और केवल वही उत्पादन करना चाहिए, जिसमें वह बेहतर है। गैर-प्रतिस्पर्धी उद्योगों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाना चाहिए और भारत को उन वस्तुओं का आयात करना चाहिए जिनका घरेलू स्तर पर उत्पादन करना व्यवहार्य नहीं है।

अमेरिकी पारस्परिक टैरिफ

  • पारस्परिक टैरिफ (Reciprocal Tariffs) की भूमिका: लवीश भंडारी मानते हैं, कि ट्रम्प की टैरिफ रणनीति पूरी तरह से निराधार नहीं है। कई देश अपने घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए संरक्षणवादी उपायों का उपयोग करते हैं, जो प्रायः विदेशी फर्मों की कीमत पर होता है।
  • विभेदित टैरिफ: समस्या तब उत्पन्न होती है, जब ट्रम्प विभिन्न देशों पर अलग-अलग टैरिफ लागू करते हैं, जिससे अमेरिकी उद्योगों को दीर्घकालिक नुकसान हो सकता है। विभेदित टैरिफ प्रणाली समस्याग्रस्त है और वैश्विक व्यापार को बाधित कर सकती है।
  • पारस्परिक टैरिफ की आवश्यकता: संभावित नकारात्मक प्रभावों के बावजूद, भंडारी का तर्क है कि पारस्परिक टैरिफ संभवतः अमेरिका के पास अन्य देशों को अपने टैरिफ कम करने के लिए प्रेरित करने का एकमात्र साधन था। 
    • विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत आयोजित पारंपरिक व्यापार वार्ताएँ धीमी और अप्रभावी रही हैं।

पारस्परिक टैरिफ की चुनौतियाँ

  • डब्ल्यूटीओ की निष्क्रियता: अजय शाह बताते हैं, कि चीन की आर्थिक विकृतियों, जैसे- सब्सिडी और सरकार द्वारा नियंत्रित उत्पादन, ने वैश्विक व्यापार में प्रणालीगत समस्याएँ उत्पन्न की हैं। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) इन मुद्दों को हल करने के लिए संघर्ष कर रहा है, जिससे वैश्विक व्यापार ढाँचा विकृत हो गया है।
  • वैश्विक आर्थिक व्यवधान: जबकि पारस्परिक टैरिफ का उद्देश्य देशों पर टैरिफ कम करने के लिए दबाव बनाना है, शाह का मानना ​​है कि सभी देशों को टैरिफ के साथ लक्षित करने से वैश्विक व्यापार और आर्थिक गतिविधि के लिए हानिकारक परिणाम हो सकते हैं, जिससे उत्पादन दक्षता और व्यापार प्रवाह बाधित हो सकता है 
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिका की भूमिका: वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 20-25% का योगदान देने वाला अमेरिका वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालाँकि, टैरिफ के माध्यम से अमेरिका द्वारा की गई एकतरफा कार्रवाई वैश्विक आर्थिक स्थिरता को बाधित करने का जोखिम उठाती है और सम्पूर्ण विश्व में आर्थिक विकास को हानि पहुँचा सकती है।

वैश्विक व्यापार पर अमेरिकी टैरिफ के परिणाम

  • भारत की रणनीतिक स्थिति: वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख नेतृत्वकर्ता के रूप में, भारत को अपनी आर्थिक प्रतिस्पर्धात्मकता सुनिश्चित करते हुए अमेरिका की टैरिफ कार्रवाइयों की जटिलताओं को समझना होगा। भारत को वैश्विक व्यापार गतिशीलता के साथ अपनी घरेलू टैरिफ नीतियों को संतुलित करने की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता: भारत को अमेरिका की टैरिफ नीतियों से उत्पन्न  अनिश्चितता का प्रबंधन करने की आवश्यकता है।
    • यद्यपि कम टैरिफ वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने में लाभकारी हैं, लेकिन बढ़ते संरक्षणवाद के कारण भारत को अपनी आर्थिक रणनीति को सावधानीपूर्वक निर्धारित करना होगा।

गैर-टैरिफ व्यापार बाधाएँ

  • एनटीबी का प्रचलन: नॉन-टैरिफ बाधाएँ (एनटीबी) लगभग प्रत्येक क्षेत्र और देश में पाई जाती हैं, तथा भारत अपने स्वयं के अवरोध लगाता है। इनमें गुणवत्ता विनिर्देशस्वच्छता मानक और आयात प्रतिबंध शामिल हैं, जो व्यापार को जटिल बनाते हैं।
  • वैश्विक व्यापार प्रभाव: कृषि उत्पादों पर स्वच्छता मानकों जैसे- नॉन-टैरिफ बैरियर्स (एनटीबी), छिपी हुई बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं, लागत बढ़ाते हैं और व्यापार में देरी करते हैं। जबकि अंगूर जैसे उत्पादों पर यूरोपीय संघ के मानकों जैसे नियम एक समान हैं, फिर भी अगर उन्हें लागू किया जाए तो वे व्यापार में बाधा डाल सकते हैं।
  • घरेलू बाधाएँ: भारत के उच्च गुणवत्ता नियंत्रण उपायों और लाइसेंसिंग आवश्यकताओं को प्रायः व्यापार में बाधा के रूप में देखा जाता है। इनसे निपटने से व्यापार दक्षता में वृद्धि हो सकती है
  • सुधार की आवश्यकता: भारत को एनटीबी के नकारात्मक प्रभावों को कम करने और सुचारू व्यापार को बढ़ावा देने के लिए अपने नियमों को अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप बनाना होगा।

अमेरिकी टैरिफ पर भारत की प्रतिक्रिया

  • क्रमिक कमी: भारत को समय के साथ धीरे-धीरे टैरिफ में कमी करनी चाहिए, जिससे व्यवसायों को  व्यवधान के बिना समायोजन करने की सुनिश्चितता मिल सके।
  • विश्वसनीयता का निर्माण: दीर्घकालिक प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने और निवेश को बढ़ावा देने के लिए व्यापार उदारीकरण की घोषणा पहले ही की जानी चाहिए
  • मुक्त व्यापार समझौते: भारत को अमेरिकायूरोपीय संघब्रिटेन और जापान के साथ मुक्त व्यापार समझौतों से लाभ हो सकता है, जिससे व्यापार बाधाएँ कम होंगी और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा
  • भारत-अमेरिका एफटीए: अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौता बाधाओं को दूर कर सकता है, जिससे टेक्सास के फ्रोजन चिकन जैसे उत्पादों को  भारतीय  निर्मित वस्तुओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलेगी।

निष्कर्ष

गैर-टैरिफ बाधाएँ वैश्विक व्यापार और भारत की अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण चुनौतिएँ प्रस्तुत करती हैं। धीरे-धीरे टैरिफ में कटौती और रणनीतिक एफटीए (मुक्त व्यापार समझौता) भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में और अधिक गहराई से एकीकृत करने में मदद कर सकते हैं, साथ ही नॉन-टैरिफ बैरियर्स (एनटीबी) द्वारा उत्पन्न बाधाओं का समाधान भी कर सकते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

विश्व में बढ़ते टैरिफ के संबंध में व्यापार युद्धों की पृष्ठभूमि में, भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता और व्यापार संतुलन पर संरक्षणवादी नीतियों के प्रभाव का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

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