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Lokesh Pal September 04, 2024 05:00 82 0
“समान वितरण का वास्तविक निहितार्थ यह है, कि प्रत्येक व्यक्ति के पास अपनी सभी प्राकृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साधन होंगे, इससे अधिक नहीं |” – महात्मा गांधी
महात्मा गांधी का यह कथन निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाज के उनके दृष्टिकोण का उदाहरण है। गांधीजी का मानना था कि संसाधनों का आवंटन इस तरह होना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति के पास भोजन, आश्रय, वस्त्र, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन हों। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि समान वितरण का तात्पर्य सभी के पास समान मात्रा से नहीं, बल्कि इसका तात्पर्य यह है कि किसी को भी बुनियादी ज़रूरतों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए |
महात्मा गांधी का यह दृष्टिकोण बढ़ती असमानता और पर्यावरण क्षति के मद्देनजर आज भी प्रासंगिक है । उनका दृष्टिकोण उपभोक्ता-संचालित आर्थिक विकास प्रतिमान से हटकर मानव कल्याण, सामाजिक निष्पक्षता और पारिस्थितिक सद्भाव को प्राथमिकता देने वाले प्रतिमान की ओर बढ़ने का आह्वान करता है। यह दृष्टिकोण हमें अपने मूल्यों और विकल्पों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करता है तथा एक ऐसे समाज को बढ़ावा देता है, जिसमें संसाधनों को समान रूप से साझा कर, प्रत्येक व्यक्ति की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है।
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