“अधिकार पर अंध विश्वास सत्य का सबसे बड़ा दुश्मन है।”
“Blind faith in authority is the greatest enemy of truth.”
– अल्बर्ट आइंस्टीन
व्याख्या:
प्रस्तुत उद्धरण अधिकार प्राप्त व्यक्तियों को बिना आलोचना के स्वीकार करने के जोखिमोंके बारे में एक शक्तिशाली संदेश देता है। इस निश्चिंतता से कि भले ही वे मशहूर हस्तियां हों, नेता हों, धार्मिक गुरु हों, विशेषज्ञ हों या संस्थान हों।
ऐसा तब होता है जब लोग आलोचनात्मक ढंग से सोचने में विफल हो जाते हैं और चीजों को उनके वास्तविक रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, धार्मिक नेताओं का आँख मूंदकर अनुसरण करना या बिना सवाल किए सेलिब्रिटी के विज्ञापनों पर भरोसा करना।
अक्सर लोग सत्ता को चुनौती देने के नतीजों से डरते हैं और व्यावहारिक रूप से सोचने में असफल रहते हैं।
औपनिवेशिक काल के दौरान, अंग्रेजों ने इस सिद्धांत का प्रचार किया कि भारतीय असभ्य थे और अपने शासन के औचित्य के रूप में “श्वेत व्यक्ति के बोझ” को बढ़ावा दिया।
अतः इस विचार से यह ज्ञात होता है कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने इसे आँख मूंदकर स्वीकार कर लिया होता, तो शायद वे यह मान लेते कि स्वतंत्रता अप्राप्य है।
कई बार, सत्ता में बैठे लोग अपने स्वयं के एजेंडे या हितों को बढ़ावा देते हैं, जो सच्चाई को विकृत कर सकते हैं। इसलिए, तथ्यों के आधार पर अधिकार का मूल्यांकन करना और बिना किसी पूर्वाग्रह के निर्णय लेना महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष :
यद्यपि प्राधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए, परंतु उसका आँख मूंदकर पालन नहीं किया जाना चाहिए।
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