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वैभव और वज्र कार्यक्रम (Vaibhav and Vajra Program)

Samsul Ansari January 29, 2024 06:47 114 0

संदर्भ 

हाल ही में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा क्रमशः आईआईटी-बॉम्बे और आईआईटी-कानपुर में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और कंप्यूटर विज्ञान के क्षेत्र में सहयोगात्मक अनुसंधान परियोजनाओं को शुरू करने के लिए “प्रतिष्ठित वैभव शोधार्थी” के रूप में भारतीय मूल के 22 वैज्ञानिकों को वैभव (वैश्विक भारतीय वैज्ञानिक) फेलोशिप प्रदान करने की घोषणा की गई। 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: वैभव फेलोशिप योजना और वज्र योजना।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: विज्ञान, प्रौद्योगिकी और इसके विकास हेतु  सरकारी नीतियों और भारतीय प्रवासियों की भूमिका।

वैभव फेलोशिप योजना

  • पात्रता: भारतीय मूल या भारतीय वंशावली  के वैज्ञानिक इस योजना हेतु पात्र होंगे ।
  • समय सीमा: इन वैज्ञानिकों द्वारा भारत की किसी मेजबान (Host) अनुसंधान प्रयोगशाला में, तीन वर्ष के लिए, एक वर्ष में तीन माह तक का समय बिताने के लिए आवेदन किया जा सकता है।
  • उद्देश्य: उस अवधि में, इन शोधकर्ताओं से एक परियोजना या प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप शुरू करने, संस्थान के साथ दीर्घकालिक संबंध बनाने, मेजबान संकाय के साथ सहयोग करने और भारतीय विश्वविद्यालय तथा अनुसंधान क्षेत्र में नए विचारों को लाने की संभावना है।
  • अनुदान: इस योजना के अंतर्गत दिए जाने वाले फेलोशिप में फेलोशिप अनुदान ( 4,00,000 रुपये प्रति माह), अंतरराष्ट्रीय और घरेलू यात्रा, आवास और आकस्मिक खर्चे इत्यादि शामिल होंगी।
  • महत्त्व:  बदलाव हेतु ज्ञान को बढ़ावा देना– भारतीछात्रों, विभिन्न सहभागियों और यहाँ तक ​​की डिग्रियों के पर्यवेक्षण हेतु भी प्रोत्साहित किया जा सकता है, जिससे ज्ञान, नवाचार और कार्य संस्कृति का वास्तविक रूप से हस्तांतरण हो सकेगाI इससे अनिवासी भारतीय वैज्ञानिक भी आशावादी होकर भारत में रहने पर भी विचार कर सकते हैं।

पूर्व में कार्यान्वित संबंधित पहल एवं महत्त्व

  • वज्र योजना: वैभव कोई मौलिक विचार नहीं है क्योंकि इससे पहले, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा भी इसी प्रकार के उद्देश्यों के साथ वज्र (विजिटिंग एडवांस्ड ज्वाइंट रिसर्च) संकाय योजना की कल्पना की गई थी।
  •  हालाँकि अधिकारियों के अनुसार, फिलहाल दोनों योजनाएँ ‘वैभव एवं व्रज’ जारी रहेंगी।
  • महत्त्व: अल्पकालिक फेलोशिप, विदेशी संकाय और शोधकर्ताओं को भारत में विज्ञान की संभावनाओं के लिए प्रेरित करने हेतु काफी उपयोगी सिद्ध हुई हैं।
  •  इस कदम से इस क्षेत्र की अन्तर्निहित चुनौतियाँ यथा – बुनियादी अनुसंधान के लिए धन की कमी, मुख्य अनुसंधान और विकास में निजी कंपनियों की भागीदारी की कमी और अकादमिक स्वतंत्रता पर सीमाएँ भी हो सकती हैं तथा साथ ही नीति परिवर्तन को गति भी दी जा सकती है।

वैभव फेलोशिप योजना और वज्र योजना के मध्य अंतर

  • पात्रता: वैभव योजना विशेष रूप से भारतीय प्रवासियों (Indian diaspora) के लिए है, जबकि वज्र में अन्य राष्ट्रीयताओं(Nationalities) को भी शामिल किया जा सकता है।
  • समय सीमा और अनुदान: हालाँकि वज्र फेलोशिप के तहत एक मात्रा में अनुदान राशि प्रदान की जाती है लेकिन वह केवल एक वर्ष के लिए होता था, जबकि वैभव फेलोशिप द्वारा प्रदान की जाने वाली अनुदान राशि अपेक्षाकृत कम है लेकिन यह तीन वर्षों के लिए प्रदान की जाती है।

चुनौतियाँ जिनका समाधान आवश्यक है

  • प्रभावशीलता के संबंध में : DST जो दोनों योजनाओं के लिए प्रभारी के रूप में कार्य करता है, का मानना है कि लगभग 70 अंतरराष्ट्रीय संकाय द्वारा वज्र योजना के हिस्से के रूप में भारत में समय योगदान दिया गया है, लेकिन संबंधित योजना की प्रभावशीलता अभी भी एक चिंता का विषय बनी हुई है।
  • लक्ष्य के संबंध में स्पष्टता: हालाँकि भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के मध्य आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान किए जाने के कदम का स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन इस बात पर भी स्पष्टता होनी चाहिए कि विशेष रूप से भारतीय प्रवासियों पर ध्यान केंद्रित करके भारत क्या हासिल करना चाहता है।

निष्कर्ष

विदेशों में प्रशिक्षित कुशल वैज्ञानिक जनशक्ति का एक विशाल समूह है, जिन्हें भारत में वापस लाया या उन्हें बनाए रखा जा सकता है, क्योंकि अमेरिकी और यूरोपीय विश्वविद्यालयों में स्थायी नौकरियों के लिए बढती प्रतिस्पर्द्धा को देखते हुए ऐसा संभव हो सकता है। इस तरह की पहल के द्वारा अधिक नवीन विचारों की ओर बढ़ने की दिशा में इसे एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है, जिससे सामाजिक-आर्थिक विकास और समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।

                                                                                                                                                 News Source: The Hindu

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