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युद्ध और शांति: रूस-यूक्रेन तनाव पर भारत का दृष्टिकोण

Lokesh Pal August 29, 2024 05:45 63 0

संदर्भ: 

हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कीव यात्रा के कुछ ही दिनों बाद, उनकी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ टेलीफोन पर बातचीत ने अटकलों को हवा दे दी है कि नई दिल्ली रूस-यूक्रेन संघर्ष के संबंध में शांति प्रयासों में भूमिका निभाने के लिए कोई ठोस प्रयास कर रही है। हालांकि, आलोचकों में भारत की प्रभावशीलता के बारे में संदेह हैं, उनका तर्क है कि भारत रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध विराम कराने के लिए अच्छी स्थिति में नहीं है।

शांति स्थापना में भारत की संभावित भूमिका पर आलोचकों का दृष्टिकोण: 

हालाँकि प्रधानमंत्री की हालिया और आगामी गतिविधियों, जिसमें सितंबर में यू.एस. और यूरोपीय नेताओं से मिलने के लिए संयुक्त राष्ट्र की यात्रा और अक्टूबर में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए रूस की एक और यात्रा शामिल है। इन गतिविधियों ने शांति प्रक्रिया में भारतीय पहल की उम्मीदों को बढ़ावा दिया है, आलोचकों का तर्क है कि शांति स्थापना के लिए भारत की उच्च उम्मीदें अवास्तविक हो सकती हैं। 

युद्धविराम प्रयासों में बाधक तत्व : 

निम्नलिखित कारक युद्धविराम कराने की उसकी क्षमता में बाधा डाल सकते हैं:

  • भारत का तटस्थ रुख: आलोचकों का तर्क है कि रूस और यूक्रेन के बीच शांति स्थापित करना एक कठिन चुनौती है। भारत ने युद्ध के प्रति तटस्थ रुख बनाए रखा है, प्रधानमंत्री ने घोषणा की है कि भारत यूक्रेन या रूस के साथ गठबंधन करने के बजाय “केवल शांति के पक्ष में है”। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पहले इस संघर्ष को “यूरोप का युद्ध” बताया था।
  • शांति पहल में शामिल होने की अनिच्छा: भारत ने स्विस शांति शिखर सम्मेलन से भी स्वयं को दूर रखा, जो युद्धरत पक्षों के बीच सीधे संवाद के बिना शांति पहल में शामिल होने की उसकी अनिच्छा को दर्शाता है।
  • पक्षपात की धारणा: रूस के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंधों, जिसमें सैन्य और ऊर्जा निर्भरताएं शामिल हैं, ने पक्षपात की धारणाओं को जन्म दिया है। भारत को एक विश्वसनीय मध्यस्थ बनने के लिए, उसे वास्तव में तटस्थ रुख प्रस्तुत करने की आवश्यकता होगी।
  • लगातार संघर्ष और शांति की चुनौती: हालांकि रूस-यूक्रेन संघर्ष में लगातार वृद्धि हो रही है। जैसे कि जुलाई में पीएम मोदी की मॉस्को यात्रा से ठीक पहले यूक्रेन पर रूस के घातक हमले और पिछले कुछ दिनों में कीव की यात्रा से पहले रूस के कुर्स्क ओब्लास्ट में यूक्रेन की कार्रवाई से समझा जा सकता है। जो सतत सत्ता संघर्ष और युद्ध की निरंतरता को दर्शाता है। शांति तभी प्राप्त हो सकती है जब युद्धरत देश स्वयं बातचीत करने के लिए तैयार हों हालांकि वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा संभव नहीं लगता है।

सकारात्मक संकेत 

  • इन चुनौतियों के बावजूद, हाल की शांति पहलों में आशा की कुछ किरणें भी दिखाई दे रही हैं।
    • ब्लैक सी ग्रेन इनिशिएटिव (बीएसजीआई): ब्लैक सी ग्रेन इनिशिएटिव (बीएसजीआई) एक संयुक्त राष्ट्र-मध्यस्थ समझौता था, जिसमें रूस, यूक्रेन, तुर्की और संयुक्त राष्ट्र शामिल थे, जिसका उद्देश्य आक्रमण के दौरान ब्लैक सी के माध्यम से यूक्रेन के खाद्य और उर्वरक के निर्यात को सुविधाजनक बनाना था।
    • ज़ापोरिज्ज्या परमाणु ऊर्जा संयंत्र की IAEA निगरानी: अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) यूक्रेन के ज़ापोरिज्ज्या परमाणु ऊर्जा संयंत्र की निगरानी और सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्रिय रही है, जो रूस के नियंत्रण में है और युद्ध के कारण परमाणु रिसाव के जोखिम का सामना कर रहा है। विशेषज्ञों को तैनात करने और साइट का निरीक्षण करने के अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रयास संघर्ष के बीच परमाणु सुरक्षा बनाए रखने की प्रतिबद्धता को उजागर करते हैं।
    • रूस-यूक्रेन कैदियों की अदला-बदली: रूस और यूक्रेन के बीच कैदियों की हाल ही में हुई अदला-बदली व्यापक संघर्ष के बीच भी वृद्धिशील प्रगति की संभावना को दर्शाती है।

वर्तमान संघर्ष किस प्रकार भिन्न है?

  • ऐतिहासिक शांति प्रयास: स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से, भारत ने विश्व शांति स्थापित करने के लिए विभिन्न संघर्षों में मध्यस्थता करने का प्रयास किया है। एक उल्लेखनीय उदाहरण 1950 का लिया जा सकता है जिसमें, जब भारत ने ऑस्ट्रिया के आग्रह पर सोवियत संघ के साथ बातचीत करने के लिए हस्तक्षेप किया। सोवियत संघ को चिंता थी कि अगर उसने ऑस्ट्रिया से अपने सैनिकों को वापस बुला लिया, तो वह संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ गठबंधन कर सकता है, जिससे शीत युद्ध तेज हो सकता है। ऑस्ट्रिया ने भारत को अपनी तटस्थता का आश्वासन दिया, जिससे भारत को सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव के साथ मध्यस्थता करने के लिए प्रेरित किया। इससे एक समझौता हुआ जिसके तहत ऑस्ट्रिया की तटस्थता की प्रतिबद्धता के बदले में सोवियत सैनिकों ने ऑस्ट्रिया के पूर्वोत्तर क्षेत्र से वापसी कर ली ।
  • वर्तमान रूस-यूक्रेन संघर्ष में चुनौतियाँ:  वर्तमान रूस-यूक्रेन संघर्ष ऑस्ट्रियाई मध्यस्थता से काफी अलग है। ऑस्ट्रियाई मामले की स्पष्ट शर्तों के विपरीत, रूस-यूक्रेन स्थिति में दोनों पक्षों की ओर से परस्पर विरोधी मांगें और दृढ़ रुख शामिल हैं। यह जटिलता सफल वार्ता को और अधिक चुनौतीपूर्ण बनाती है और सफलता की संभावना को कम करती है।

आगे की राह

  • शांति स्थापना में भारत की संभावित भूमिका के लिए उसे युद्ध विराम और स्थायी शांति के लिए सिद्धांतों को स्पष्ट करना होगा।
  • रूस और यूक्रेन के परस्पर विरोधी प्रस्ताव संभावनाओं को और जटिल बनाते हैं। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की यूक्रेनी क्षेत्र से रूस की पूर्ण वापसी पर जोर देते हैं, जबकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेनी सेना को कब्जे वाले क्षेत्रों से वापस जाने और कीव से नाटो की किसी भी आकांक्षा को त्यागने की मांग करते हैं।
  • ये अलग-अलग मांगें शांति वार्ता में महत्वपूर्ण बाधाओं को उजागर करती हैं। दोनों पक्षों की कठिन चुनौतियों और दृढ़ स्थितियों के बावजूद, शांति प्रक्रिया में शामिल होने के लिए भारत के चल रहे प्रयास वैश्विक कूटनीति के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हैं।
  • भले ही युद्ध विराम की तत्काल संभावनाएँ सीमित प्रतीत होती हैं लेकिन निरंतर प्रयास और छोटे पैमाने की पहल अंततः सुलह और शांति का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं।

 निष्कर्ष

हालांकि रूस-यूक्रेन संघर्ष में लगातार वृद्धि हो रही है। जो सतत सत्ता संघर्ष और युद्ध की निरंतरता को दर्शाता है। बातचीत एवं शांति समझौतों व भारत की ही भांति अंतरराष्ट्रीय पहलों के माध्यम से शांति स्थापित की जा सकती है।

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