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ई-गवर्नेंस द्वारा विकसित भारत के लक्ष्य को आगे बढ़ाने के तरीके

Lokesh Pal May 28, 2025 05:15 12 0

संदर्भ:

भारत 2047 तक विकसित भारत के महत्वाकांक्षी लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, सहयोगात्मक संघवाद और डिजिटल परिवर्तन के माध्यम से शासन को मजबूत करना नीतिगत प्रयासों का केंद्र बन गया है। इसमें पारदर्शिता, दक्षता और जवाबदेही के लिए ई-गवर्नेंस पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

ई-गवर्नेंस का आशय

  • ई-गवर्नेंस से तात्पर्य सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने, संचार को सक्षम करने और प्रशासन में नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों – जैसे इंटरनेट और आईसीटी उपकरण – के उपयोग से है।
  • मूलतः, ई-गवर्नेंस का उद्देश्य: नागरिकों और राज्य के बीच के अंतराल को समाप्त करना।।
  • ई-गवर्नेंस के स्तंभ: नागरिकों को सशक्त बनाना अंतिम लक्ष्य

ई-गवर्नेंस के हितधारक

  • जनता/ नागरिक: नागरिक ई-गवर्नेंस के केंद्र में हैं। उनका डिजिटल समावेशन और भागीदारी किसी भी डिजिटल पहल की सफलता निर्धारित करती है।
    • भारतनेट जैसी परियोजनाएं, जिसने 2 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड से जोड़ा है, ग्रामीण आबादी को सशक्त बनाने और शहरी-ग्रामीण डिजिटल विभाजन को समाप्त करने में महत्वपूर्ण हैं।
  • प्रक्रिया: डिजिटल शासन पुरानी प्रशासनिक प्रक्रियाओं को पुनः तैयार करने पर निर्भर करता है ताकि उन्हें अधिक तीव्र, अधिक पारदर्शी और नागरिक-केंद्रित बनाया जा सके।
    • ई-फाइलों में परिवर्तन, ऑनलाइन आरटीआई फाइलिंग की उपलब्धता, तथा सरलीकृत अंतर-विभागीय कार्यप्रवाह ने विलम्ब को काफी हद तक कम कर दिया है तथा सरकार की प्रतिक्रियाशीलता में सुधार किया है।
  • प्रौद्योगिकी: मजबूत तकनीकी प्लेटफॉर्म ई-गवर्नेंस के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा प्रदान करते हैं।
    • आधार, उमंग, डिजीलॉकर और ई-कोर्ट जैसे प्रमुख उपकरण इस बात के उदाहरण हैं कि किस प्रकार प्रौद्योगिकी सेवा वितरण को बढ़ाती है, कागजी कार्रवाई को कम करती है, और विभिन्न क्षेत्रों में सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच बढ़ाती है।
  • भौतिक और मानवीय संसाधन: ई-गवर्नेंस को लागू करने और बनाए रखने के लिए भौतिक और मानवीय दोनों प्रकार के संसाधनों की उपलब्धता महत्वपूर्ण है।
    • राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र (एनआईसी) जैसी संस्थाएं आवश्यक डेटा केन्द्र और डिजिटल अवसंरचना उपलब्ध कराती हैं, जबकि समर्पित बजट आवंटन और प्रशिक्षित मानवशक्ति परिचालन निरंतरता और मापनीयता सुनिश्चित करती हैं।

ई-गवर्नेंस के चार चैनल

ये चार चैनल – G2C, G2B, G2G और G2E – मिलकर शासन संबंधी अंतःक्रियाओं के सम्पूर्ण स्पेक्ट्रम को कवर करते हैं।

  • सरकार-से-नागरिक (G2C): बिल भुगतान, परमिट और प्रमाण-पत्र जैसी ऑनलाइन सेवाएँ।
    • उदाहरण: उमंग (न्यू-एज गवर्नेंस के लिए एकीकृत मोबाइल एप्लीकेशन) ऐप 1,200 से अधिक सेवाओं तक पहुंच प्रदान करता है।
  • सरकार-से-व्यवसाय (G2B): लाइसेंस, कर फाइलिंग और नियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाना।
    • उदाहरण: जीएसटी पोर्टल और सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जीईएम) जैसे प्लेटफॉर्म जो पारदर्शी, कुशल सार्वजनिक खरीद सुनिश्चित करते हैं।
  • सरकार-से-सरकार (जी2जी): अंतर-विभागीय डेटा विनिमय और समन्वय को बढ़ावा देना।
    • उदाहरण: भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) प्लेटफॉर्म द्वारा संचालित पीएम गतिशक्ति जैसी पहल, वास्तविक समय की योजना के लिए मंत्रालयों और विभागों को एकीकृत करती है।
  • सरकार-से-कर्मचारी (G2E): वेतन, स्थानांतरण और अवकाश जैसे मानव संसाधन कार्यों का डिजिटल रूप से प्रबंधन करना।
    • उदाहरण: स्पैरो (स्मार्ट परफॉरमेंस अप्रेजल रिपोर्ट रिकॉर्डिंग ऑनलाइन विंडो) सिविल सेवकों के लिए मूल्यांकन और मानव संसाधन प्रबंधन प्रक्रिया को डिजिटल बनाता है।

भारत में ई-गवर्नेंस के विकास में मील के पत्थर संबंधी प्रावधान

  • 1976: राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) की स्थापना की गई।
    • आईटी-सक्षम शासन की नींव 1976 में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र (एनआईसी) की स्थापना के साथ रखी गई थी।
  • 2006: राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (एनईजीपी) का शुभारंभ किया गया।
    • इसने प्रमुख सरकारी सेवाओं को डिजिटल बनाने के उद्देश्य से 27 मिशन मोड परियोजनाएं (एमएमपी) प्रारंभ की गई।
  • सामान्य सेवा केंद्रों (सीएससी) का विस्तार: ये केंद्र डिजिटल हब के रूप में कार्य करते हैं जो दूरदराज के क्षेत्रों में नागरिकों को विभिन्न सरकारी सेवाएं और जानकारी प्रदान करते हैं।
  • 2015: डिजिटल इंडिया और ई-क्रांति पहल
    • ई-क्रांति राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (एनईजीपी 2.0) का उन्नत चरण है, जिसका उद्देश्य सरकारी सेवाओं को सीधे नागरिकों तक पहुंचाना है।
    • डिजिटल सेवाओं की पहुंच और मापनीयता बढ़ाने के लिए मोबाइल फर्स्ट, क्लाउड फर्स्ट रणनीति की शुरूआत करना।
    • जेएएम त्रिमूर्ति – जन धन खाते, आधार और मोबाइल कनेक्टिविटी, जो डिजिटल वित्तीय समावेशन और सेवा वितरण के लिए रीढ़ की हड्डी के समान हैं का कार्यान्वयन करना।
    • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) को सक्षम बनाया गया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि सब्सिडी और कल्याणकारी भुगतान सीधे लाभार्थियों तक पहुंचे, तथा लीकेज में कमी आए।

ई-गवर्नेंस के लाभ

  • पारदर्शिता: डिजिटल रिकॉर्ड और ऑनलाइन लेनदेन से छेड़छाड़ और भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम हो जाती है, जिससे सरकार की कार्यप्रणाली अधिक पारदर्शी हो जाती है।
  • समय की बचत और सुविधा: ऑनलाइन प्लेटफॉर्म सरकारी कार्यालयों में भौतिक रूप से जाने की आवश्यकता को समाप्त कर देते हैं, जिससे समय की बचत होती है और नौकरशाही संबंधी देरी कम होती है।
  • समावेशिता: डिजिटल गवर्नेंस प्लेटफॉर्म पारंपरिक रूप से वंचित समूहों जैसे ग्रामीण आबादी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) और महिलाओं तक सेवाएं पहुंचाते हैं, जिससे समान पहुंच और सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलता है।
  • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी): यह तंत्र सब्सिडी और कल्याणकारी भुगतान सुनिश्चित करता है – जैसे एलपीजी सब्सिडी और पीएम-किसान आय सहायता – सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में स्थानांतरित की जाती है, जिससे रिसाव को कम किया जा सके।
  • कुशल शिकायत निवारण: सीपीजीआरएएमएस (केन्द्रीयकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली) और लोकमित्र जैसे प्लेटफार्म नागरिकों को शिकायत दर्ज करने और उनके समाधान पर नज़र रखने के लिए सुलभ, पारदर्शी तंत्र प्रदान करते हैं, जिससे सरकारी प्रक्रियाओं में विश्वास मजबूत होता है।

डिजिटल गवर्नेंस के मार्ग पर चुनौतियाँ

  • डिजिटल डिवाइड: आईसीआरआईईआर स्टेट ऑफ इंडियाज डिजिटल इकोनॉमी (एसआईडीई) रिपोर्ट, 2025, बताती है कि हालांकि भारत तीसरी सबसे बड़ी डिजिटल अर्थव्यवस्था है, लेकिन प्रति व्यक्ति डिजिटलीकरण में यह केवल 28वें स्थान पर है, जो ग्रामीण-शहरी असमानताओं को उजागर करता है।
  • साइबर सुरक्षा और गोपनीयता संबंधी चिंताएं: संवेदनशील डेटा के बढ़ते डिजिटलीकरण से डेटा सुरक्षा से संबंधित जोखिम बढ़ रहे हैं।
    • उदाहरण: 2023 में हैकर्स ने एम्स के सर्वर पर रैनसमवेयर हमला किया।
  • डिजिटल साक्षरता की कमी: कई नागरिकों (विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं) और सरकारी कर्मचारियों में डिजिटल प्लेटफॉर्म का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के कौशल का अभाव है।
  • भाषाई बाधाएं: अधिकांश प्लेटफॉर्म अंग्रेजी और हिंदी में संचालित होते हैं, जिससे क्षेत्रीय भाषा बोलने वालों की पहुंच सीमित हो जाती है।
  • परिवर्तन का प्रतिरोध: नौकरशाही की जड़ता और अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, जैसे खराब कनेक्टिविटी, कार्यान्वयन में और बाधा डालते हैं।

आगे की राह

  • डिजिटल डिवाइड को समाप्त करना: अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी और किफायती डिजिटल उपकरणों तक पहुंच सुनिश्चित करना।
  • डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना: नागरिकों और लोक सेवकों दोनों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश को बढ़ावा देना।
  • भाषाई सुलभता में वृद्धि: BHASHINI जैसी पहलों के माध्यम से बहुभाषी प्लेटफार्मों का समर्थन करना।
  • नागरिक प्रतिक्रिया को प्रोत्साहित करना: नियमित प्रतिक्रिया के माध्यम से सहभागी शासन के लिए तंत्र सुनिश्चित करना।
  • डेटा सुरक्षा को मजबूत करना: मजबूत साइबर सुरक्षा और डेटा संरक्षण ढांचे को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • स्थानीय शासन को सशक्त बनाना: डिजिटल शासन के लिए गांव को बुनियादी योजना इकाई के रूप में सशक्त बनाने पर बल देना।

निष्कर्ष:

ई-गवर्नेंस पारदर्शी, जवाबदेह और नागरिक-प्रथम शासन मॉडल के प्रति भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाता है। जैसे-जैसे देश 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है, ई-गवर्नेंस नागरिकों को सशक्त बनाने, प्रशासन को सरल बनाने और भारत में शासन के भविष्य को नया आकार देने में मदद करेगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: चर्चा करें कि ई-गवर्नेंस 2047 तक विकसित भारत के विज़न में किस प्रकार योगदान देता है। सेवा वितरण और नागरिक भागीदारी को बदलने में डिजिटल इंडिया मिशन के तहत प्रमुख पहलों की भूमिका पर प्रकाश डालें।

(15 अंक, 250 शब्द)

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