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भोजन की खाली प्लेट किसका प्रतीक होनी चाहिए?

Lokesh Pal September 29, 2025 05:00 22 0

संदर्भ

प्रत्येक वर्ष 29 सितंबर को खाद्य हानि और बर्बादी के प्रति जागरूकता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस (IDAFLW) मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों की बर्बादी और नुकसान के प्रति लोगों को जागरूक करना है।

  • वैश्विक स्तर पर उत्पादित कुल खाद्यान्न का एक तिहाई (33%) या तो नष्ट हो जाता है या बर्बाद हो जाता है।

खाद्य हानि और खाद्य अपव्यय के बारे में

  • खाद्यान्न की हानि खेत से लेकर बाजार तक होती है।
    • इसमें परिवहन और भंडारण से संबंधित मुद्दे शामिल हैं, जैसे कि कटाई के बाद अचानक हुई बारिश के कारण फसलों को नुकसान, फलों और सब्जियों जैसी शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं का बिक्री से पहले खराब हो जाना, या चूहों तथा कीटों के कारण भंडारण में खराब हो जाना।
  • दूसरी ओर, खाद्य अपव्यय खुदरा और ग्राहक स्तर पर होता है
    • उदाहरण के लिए, ब्रांड की छवि बनाए रखने के लिए सुपरमार्केट द्वारा फल और सब्जियों को अस्वीकार करना, ग्राहकों द्वारा प्लेट में ज़्यादा खाना लेना और बचा हुआ खाना फेंक देना, या घर पर ज़्यादा खाना पकाना जो बाद में बच जाता है।

खाद्य हानि पर भारत से संबंधित आकड़ें

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के लिए NABCONS (NABARD की एक सहायक कंपनी) द्वारा किए गए एक अध्ययन में चौंकाने वाले आकड़े का पता चला है:

  • वित्तीय हानि: खाद्यान्न हानि के कारण भारत को प्रतिवर्ष 1.5 ट्रिलियन रुपए का नुकसान होता है।
  • जीडीपी प्रभाव: यह आंकड़ा भारत के कृषि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 3.7% है।
  • कमोडिटी ब्रेकडाउन: सबसे अधिक नुकसान फलों और सब्जियों में होता है (10% से 15%)
    • चावल में 4.8 % और गेहूं में 4.2% की हानि हुई है।
  • छिपी हुई लागतें: बर्बादी केवल भोजन की ही नहीं है, बल्कि उत्पादन में प्रयुक्त जल, ऊर्जा और श्रम की भी हुई है।

जलवायु परिवर्तन का खाद्य हानि से संबंध

  • जीएचजी उत्सर्जन: जब भोजन विघटित होता है, तो यह ग्रीनहाउस गैसों, विशेष रूप से मीथेन (CH4) उत्सर्जित करता है, जो CO2 से अधिक हानिकारक है।
  • वैश्विक प्रभाव की तुलना: अगर खाद्य अपशिष्ट एक देश होता, तो यह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले देशों में चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर होता।
  • भारत का उत्सर्जन: खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) और राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी, उद्यमिता एवं प्रबंधन संस्थान (NIFTEM) द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में केवल 30 वस्तुओं के कारण प्रतिवर्ष 33 मिलियन टन CO2 के बराबर कार्बन उत्सर्जन होता है।
  • धान (चावल): चावल: चावल की खेती मुख्य रूप से इसके लिए जिम्मेदार है क्योंकि जल में डूबे खेतों में बिना ऑक्सीजन के सड़ने की क्रिया होती है, जिससे बड़ी मात्रा में मीथेन (CH4) गैस का उत्सर्जन होता है।

खाद्य हानि और खाद्य अपव्यय के मामले में भारत और पश्चिमी देशों के बीच अंतर

  • भारत: खेत और बाजार के बीच खराब बुनियादी ढाँचे के कारण खाद्यान्न की हानि अधिक होती है।
    • सापेक्ष सांस्कृतिक विनम्रता का अर्थ है कि उपभोक्ताओं द्वारा कम भोजन बर्बाद किया जाता है।
  • पश्चिमी देश: खाद्यान्न की बर्बादी अधिक होती है (उपभोक्तावाद और खुदरा दुकानों द्वारा अस्वीकृति के कारण)।
    • बेहतर बुनियादी ढाँचे के कारण खाद्यान्न की हानि कम होती है।

आगे की राह

  • अवसंरचना और भंडारण क्षमता: शीत श्रृंखलाओं और शीत भंडारणों को बेहतर तथा अनाज के अनुकूल बनाने से उपज का शेल्फ जीवन बढ़ जाता है।
    • फल, सब्जियां, दूध और मांस जैसे खराब होने वाले खाद्य पदार्थों के परिवहन के लिए रेफ्रिजेरेटेड ट्रांसपोर्ट के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए।
    • प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) जैसी योजनाओं का मुख्य उद्देश्य आधुनिक भंडारण सुविधाओं का विकास करना है, जिसमें कृषि और समुद्री उत्पादों के क्लस्टर और अनाज भंडारण केंद्र शामिल हैं।
  • प्रौद्योगिकी और स्मार्ट समाधान: छोटे किसानों को सहायता देने के लिए सौर शीत भंडारण और कम लागत वाले शीतलन कक्षों के निर्माण तथा उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए
    • अनाज के लिए नमीरोधी साइलो का प्रयोग।
    • ट्रकों में IoT सेंसर लगाएं ताकि वास्तविक समय का तापमान ट्रैक किया जा सके और मांग-आपूर्ति प्रबंधन के लिए AI-आधारित पूर्वानुमान लगाया जा सके।
    • खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) फूड लॉस ऐप जैसे उपकरण नुकसान की निगरानी करने और उसे कम करने में मदद कर सकते हैं।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था और संसाधन पुनर्प्राप्ति: अपव्यय को न्यूनतम करने के लिए पुन: उपयोग-पुनर्चक्रण सिद्धांतों को लागू करें।
    • अतिरिक्त भोजन को खाद्य बैंकों या सामुदायिक रसोईघरों (जैसे, रॉबिन हुड आर्मी) में भेजें।
    • बचे हुए भोजन को खाद, पशु आहार या जैव ऊर्जा में परिवर्तित करें, जिससे लैंडफिल पर कम दबाव पड़ेगा और उत्सर्जन भी कम होगा।
  • साझा जिम्मेदारी और हितधारक भूमिका: सरकार को खाद्य हानि को जलवायु रणनीतियों में एकीकृत करना चाहिए और बुनियादी ढाँचे के विकास का समर्थन करना चाहिए।
    • निजी क्षेत्र को नवाचार और आपूर्ति श्रृंखलाओं में निवेश करना चाहिए।
    • नागरिक समाज संगठनों (CSO) को अनुसंधान करने, जागरूकता अभियान चलाने और पुनर्वितरण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • उपभोक्ताओं को सोच-समझकर चुनाव करना चाहिए, जैसे कि कम आकर्षक दिखने वाले उत्पादों को भी खरीदना और प्लेट में खाना बर्बाद न करना।

निष्कर्ष

IDAFLW का पालन केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि यह एक कार्रवाई का आह्वान है – भोजन बचाना अर्थात जलवायु बचाना, संसाधनों का संरक्षण करना तथा लोगों की आजीविका की रक्षा करना है। खाली थाली इस बात का प्रतीक होनी चाहिए कि भोजन का आनंद लिया गया है, न कि संसाधनों की बर्बादी की गई है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत में खाद्यान्न हानि केवल एक आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि जलवायु परिवर्तन में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता और अवसंरचनात्मक कमियों का प्रतिबिंब है। इस कथन के आलोक में, भारत में फसल-उपरांत खाद्यान्न हानि के बहुआयामी प्रभावों पर चर्चा कीजिए। इस चुनौती से निपटने के लिए एक बहुआयामी रणनीति सुझाइए, जिसमें प्रौद्योगिकी और नीतिगत हस्तक्षेप की भूमिका पर ज़ोर दिया जाए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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