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युवा राजनीति में नहीं शामिल होना चाहते हैं, क्यों ?

Lokesh Pal May 04, 2024 05:30 115 0

प्रारंभिक परीक्षा की प्रासंगिकता: परिसीमन अधिनियम और आयोग, हिंदू महासभा, ए.ओ. ह्यूम

मेन्स के लिए प्रासंगिकता: युवाओं के राजनीति में शामिल न होने के कारण

संदर्भ:

  • युवाओं का मतदाताओं में सर्वाधिक  संख्या होने के बावजूद ,चुनावी प्रक्रिया के प्रति उनकी उदासीनता चिंता का विषय है।\

भारत में युवा मतदाताओं की स्थिति:

  • युवा मतदाता पंजीकरण: तेजी से, देश की जनसांख्यिकी में  युवा नागरिकों की वृद्धि हुई  है। लेकिन, यह चिंताजनक है कि हाल ही में 18 वर्ष के होने वाले लोगों के बीच मतदाता पंजीकरण में कमी आई है। 
    • लगभग साठ वर्ष से अधिक या लगभग बारह आम चुनावों के जीवनकाल को ध्यान में रखते हुए, देश का भविष्य युवाओं के हाथ में  है।
  • युवा मतदाताओं के  पंजीकरण में कमी : हमारे सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में केवल 25 प्रतिशत योग्य युवाओं ने खुद को मतदाता के रूप में पंजीकृत किया है।

राजनीतिक जुड़ाव का ऐतिहासिक आधार:

  • स्वतंत्रता-पूर्व राजनीतिक संगठन: भारत में सार्वजनिक राजनीतिक जीवन स्वतंत्रता से पचास साल से भी पूर्व   का है, जिसमें कांग्रेस, मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा और कम्युनिस्ट पार्टी जैसे संगठन 1885 और 1925 के बीच बने थे।
  • आदर्शवाद से मोहभंग: प्रारंभिक प्रेरणा स्वतंत्रता की आदर्शवादी खोज से उत्पन्न हुई, लेकिन जल्द ही मोहभंग हो गया, जिसके साथ नैतिक और सामाजिक मूल्यों में गिरावट आई।

युवाओं के राजनीति में शामिल न होने के कारण:

  • राजनीतिक उदासीनता की धारणा: समय के साथ, देश के युवाओं के एक महत्वपूर्ण हिस्से ने यह विश्वास विकसित कर लिया है कि चाहे सत्ता किसी के भी पास हो, उनके जीवन में सुधार नहीं होगा, वे राजनेताओं को एक स्व-सेवारत वर्ग के रूप में देखते हैं।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व की गुणवत्ता: सभी राजनीतिक दल समाज के सबसे शिक्षित या जानकार क्षेत्रों से सदस्यों का दावा नहीं करते हैं। 
    • अकादमिक और व्यावसायिक रूप से योग्य व्यक्तियों के राजनीति में प्रवेश के हालिया रुझानों के बावजूद, राजनेताओं और समग्र राजनीतिक परिदृश्य के प्रति संशय बरकरार है।
  • राजनीतिक भागीदारी में चुनौतियाँ: निर्वाचन क्षेत्र में अधिक  आबादी और चुनाव अभियान की अत्यधिक लागत राजनीतिक भागीदारी में महत्वपूर्ण बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।
    • सामान्य उम्मीदवार प्रति सीट लगभग दो मिलियन मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए इतनी बड़ी रकम खर्च नहीं कर सकता।
  • समृद्धशाली उम्मीदवारों का राजनीति की ओर आकर्षण : धनी उम्मीदवारों के राजनीति की ओर आकर्षित होने का एक अन्य कारण यह पारंपरिक मान्यता है कि एक बार निर्वाचित होने के बाद, उम्मीदवार चुनाव प्रचार पर खर्च किए गए धन को वापस पाने में सक्षम होगा और इसके अतिरिक्त  काफी धन लाभ प्राप्त करेगा।

आगे की राह:

  • चुनावी चुनौतियों का समाधान: परिसीमन और सीटों में वृद्धि का उद्देश्य इन चुनौतियों का समाधान करना है, लेकिन भ्रष्टाचार को कम करने और राजनीति को व्यापक जनसंख्या हेतु  सुलभ बनाने के लिए और सुधार की आवश्यकता है।
  • अवसरवादी उम्मीदवारों के लिए प्रतिरोध: एक बार जब भ्रष्टाचार के लिए दरवाजे बंद हो जाएंगे, तो अवसरवादियों के लिए उम्मीदवार बनने का आकर्षण बहुत कम हो जाएगा।
  • अनिवार्य मतदान के लाभ: अनिवार्य मतदान से न केवल चुनावी प्रणाली में सुधार होता है बल्कि अभियान की लागत भी कम होती है।
    • यह वोट-बैंक की राजनीति को कायम रखने को भी ख़त्म करता है। पहले, जब मतदान प्रतिशत 50 प्रतिशत या उससे कम होता था, तो सुरक्षित वोट बैंक वाले उम्मीदवारों के लिए जीत की राह आसान होती थी।
  • मतदाता मतदान में वृद्धि का प्रभाव: जैसे-जैसे मतदान प्रतिशत बढ़ता है, एक समर्पित वोट बैंक का प्रभाव कम हो जाता है। उदाहरण के लिए, 100,000 लोगों के निर्वाचन क्षेत्र में, एक उम्मीदवार का प्रतिबद्ध वोट बैंक 25 प्रतिशत या 25,000 मतदाताओं का हो सकता है।
    • यदि कुल मतदान केवल 50 से 55 प्रतिशत है, तो यह समर्पित समर्थन, जीत को  सुनिश्चित करता है। हालाँकि, 100 प्रतिशत मतदान के साथ, ऐसा वोट बैंक अपना निर्णायक लाभ खो देता है।
  • वास्तविक राजनीतिक भागीदारी के लिए मुफ्त वस्तुओं पर अंकुश लगाना: वास्तविक राजनीतिक भागीदारी के लिए मुफ्त वस्तुओं के उपयोग को सीमित करना आवश्यक है।
    • इस तरह के उपहार लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करते हैं, जिससे चुनाव महज रिश्वतखोरी बनकर रह जाता है। ऐसे में लोकतंत्र की अखंडता और युवाओं की भागीदारी की चर्चा निरर्थक हो जाती है।

निष्कर्ष:

अनिवार्य मतदान और मुफ्तखोरी पर अंकुश लगाने सहित उपर्युक्त चुनौतियों का समाधान करना, एक अधिक समावेशी और जीवंत राजनीतिक प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है जो वास्तव में राष्ट्र की विविध आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है।

प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न :                                                                                        (UPSC :2012)

प्रश्न.  “परिसीमन आयोग” ; के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: 

  1. परिसीमन आयोग के आदेश को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।  
  2. जब परिसीमन आयोग के आदेश लोकसभा या राज्य विधानसभा के समक्ष रखे जाते हैं, तो वे आदेशों में कोई संशोधन नहीं कर सकते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

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