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संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता क्यों कम हो रही है?

Lokesh Pal September 15, 2025 05:15 87 0

संदर्भ:

संयुक्त राष्ट्र (UN) की संरचनात्मक सीमाओं, विशेष रूप से सुरक्षा परिषद का वीटो (Veto) अधिकार, ने यूक्रेन की अपील के बावजूद 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्ज़े के दौरान इसे शक्तिहीन बना दिया।

  • इज़राइल-गाजा और सूडान जैसे संघर्षों में भी इसी तरह की विफलताएँ इस आलोचना को बल देती हैं कि संयुक्त राष्ट्र अपने मूल उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहा है।

पृष्ठभूमि और उद्देश्य:

  • संयुक्त राष्ट्र का गठन द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका के बाद हुआ था, जब विश्व के नेताओं ने तीसरे विश्व युद्ध को रोकने और विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाने की मांग की थी।
  • इसका प्राथमिक उद्देश्य “आने वाली पीढ़ियों को युद्ध के संकट से बचाना” था।

वीटो पावर: एक दोधारी तलवार

  • उत्पत्ति और प्रारंभिक शक्ति: संयुक्त राष्ट्र के निर्माताओं ने सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों (P5: USA, USSR/Russia, China, UK, France) को “वीटो पावर” दिया था ताकि शक्ति संतुलन स्थापित किया जा सके और किसी भी एक राष्ट्र को इतना अधिक प्रभावशाली बनने से रोका जा सके, जिससे एक और वैश्विक संघर्ष पैदा हो सकता था।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद: सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य (5 स्थायी, 10 अस्थायी) होते हैं।
    • वीटो पावर का अर्थ है कि यदि कोई भी एक P5 सदस्य किसी प्रस्ताव पर वोट “नहीं” देता है, तो वह प्रस्ताव पारित नहीं हो सकता।
      • “वीटो” का शाब्दिक अर्थ है “मैं मना करता हूँ”
  • वर्तमान समस्या (“दंतहीन शेर”): वीटो पावर, जिसका उद्देश्य विश्व के विभिन्न देशों के मध्य संतुलन स्थापित करना था, P5 के लिए अपने स्वयं के एजेंडे को आगे बढ़ाने का एक उपकरण बन गया है, जिससे संयुक्त राष्ट्र की कार्य करने की क्षमता काफी कमज़ोर हो गई है और यह एक “दंतहीन शेर” बन गया है। उदाहरण के रूप में निम्नलिखित को शमिल कर सकते हैं:
    • रूस: इसने 2014 में क्रीमिया पर कब्ज़े और 2022 से यूक्रेन में चल रहे युद्ध के खिलाफ किसी भी संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई को रोकने के लिए अपने वीटो का इस्तेमाल किया।
    • USA: गाजा में 500 लोगों के मारे जाने जैसी कार्रवाई के बावजूद, इसने लगातार इज़राइल के खिलाफ प्रस्तावों को रोकने के लिए अपने वीटो का इस्तेमाल किया है। यूएसए इज़राइल को एक “बड़ा भाई” मानता है और “भाईचारे को सर्वोपरि” प्राथमिकता देता है।
      • इसने अपने वीटो के कारण संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का सामना किए बिना कई लैटिन अमेरिकी देशों में (तख्तापलट, प्रतिबंध) हस्तक्षेप किया है।
    • चीन: तिब्बत में अपने सैन्य हस्तक्षेप के बाद वीटो पावर के कारण इसे किसी भी संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा।
    • UK: फ़ॉकलैंड द्वीप समूह को लेकर अर्जेंटीना के साथ अपने विवाद के दौरान अपने वीटो का इस्तेमाल किया।
    • फ्रांस: आइवरी कोस्ट और मध्य अफ्रीकी गणराज्य जैसे अफ्रीकी देशों में हस्तक्षेप किया, और संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई से बचने के लिए अपने वीटो का इस्तेमाल किया।

संयुक्त राष्ट्र के वित्तीय मुद्दे:

  • सदस्यों के योगदान पर निर्भरता: संयुक्त राष्ट्र के पास अपना कोई स्वतंत्र कोष नहीं है और यह सदस्य देशों के स्वैच्छिक योगदान पर निर्भर करता है।
  • US का प्रभुत्व: यूएसए सबसे बड़ा दाता है, जो संयुक्त राष्ट्र के बजट का 22% योगदान देता है, जिससे उसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव मिलता है।
    • ट्रंप प्रशासन की कटौती: ट्रंप प्रशासन ने वैश्विक स्तर पर विकास परियोजनाओं का समर्थन करने वाली यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) को बंद करते हुए, फंडिंग में भारी कटौती की।
      • ट्रंप ने 2026 तक संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी योगदान में 87% की कमी की घोषणा की।
  • योगदान में देरी: कई छोटे देश भी अपने योगदान में देरी करते हैं।
  • दाताओं का प्रभाव: बड़े वित्तीय योगदान से दाता देश संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों को प्रभावित कर सकते हैं।
    • उदाहरण: WHO को चीन की महत्त्वपूर्ण फंडिंग ने कथित तौर पर COVID-19 महामारी के दौरान WHO के रुख को प्रभावित किया, जहाँ ऐसा लगा कि यह चीन का पक्ष ले रहा है और उसके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं की।

वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता:

  • “बहस क्लब” बनाम “समस्या को रोकना”: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र सिर्फ एक “बहस क्लब” बन गया है, जहाँ बहुत बातें होती हैं लेकिन कार्रवाई बहुत कम होती है।
    • हालाँकि, पूर्व संयुक्त राष्ट्र महासचिव डैग हैमरस्कजोल्ड ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र मानवता को स्वर्ग तक ले जाने के लिए नहीं, बल्कि उसे नरक में गिरने से रोकने के लिए बनाया गया था, एक ऐसा कार्य जिसे इसने तीसरे विश्व युद्ध को रोककर यकीनन हासिल किया है।
    • WHO, यूनिसेफ (UNICEF) और विश्व खाद्य कार्यक्रम जैसी संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने ज़मीनी स्तर पर सराहनीय काम किया है, जीवन बचाया है, बीमारियों (जैसे पोलियो) का उन्मूलन किया है, और शरणार्थियों को सहायता प्रदान की है।
  • नया विश्व युद्ध: कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि तीसरा विश्व युद्ध पहले ही शुरू हो चुका है, जो प्रॉक्सी युद्धों, व्यापार युद्धों, साइबर युद्धों और क्षेत्रीय संघर्षों के रूप में प्रकट हो रहा है, और संयुक्त राष्ट्र युद्ध के इस नए रूप को पहचानने या संबोधित करने में विफल रहा है।
  • साहस की कमी: मानवीय मामलों के पूर्व संयुक्त राष्ट्र अवर-महासचिव मार्टिन ग्रिफिथ्स का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र ने अपना “साहस” खो दिया है – संघर्षों को हल करने के लिए नेतृत्व करने, प्रयास करने और यदि आवश्यक हो, तो विफल होने और फिर से कोशिश करने की इच्छाशक्ति।
    • संयुक्त राष्ट्र का नेतृत्व अक्सर सख्त रुख अपनाने या संघर्ष का सामना करने के लिए विश्व के नेताओं को एक साथ लाने से बचता है।

आगे की राह:

  • वीटो पावर को समाप्त करना: इसे संयुक्त राष्ट्र की अप्रासंगिकता का मूल कारण माना जाता है।
    • इसे समाप्त करने से संयुक्त राष्ट्र अधिक लोकतांत्रिक और वास्तविक कार्रवाई में सक्षम हो पाएगा, हालाँकि इस बात का जोखिम है कि P5 देश संगठन छोड़ सकते हैं।
  • वित्तीय स्वतंत्रता: संयुक्त राष्ट्र को यूएस और चीन जैसे प्रमुख दाताओं पर अपनी निर्भरता कम करने की आवश्यकता है।
    • एक नया वित्तीय मॉडल, जिसमें संभवतः एक “वैश्विक कर” शामिल हो, स्वतंत्र फंडिंग प्रदान कर सकता है।
  • मुख्यालय: न्यूयॉर्क में एक स्थायी मुख्यालय के बजाय, संयुक्त राष्ट्र का मुख्यालय हर कुछ महीनों में संघर्ष वाले क्षेत्रों (जैसे- किगाली, सना, कीव) क्षेत्रों में कुछ समय के लिए स्थापित किया जा सकता है।
    • यह सुनिश्चित करेगा कि प्रतिभागी संघर्ष की ज़मीनी वास्तविकताओं के करीब हों, न कि “एसी कमरों” से निर्णय लें।
  • गहरे सुधार: महासचिव गुटेरेस द्वारा किए गए वर्तमान सुधारों (उदाहरण के लिए, 20% बजट कटौती, नौकरी में कमी) को केवल “दर्द निवारक” के रूप में देखा जाता है, न कि संयुक्त राष्ट्र को वास्तव में प्रासंगिक बनाने के लिए आवश्यक “सर्जरी” के रूप में।
    • संयुक्त राष्ट्र का ढाँचा, जो 1945 की स्थितियों पर आधारित है, पुराना हो चुका है और इसमें आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और साइबर युद्ध जैसी 21वीं सदी की समस्याओं से निपटने के लिए आवश्यक साधनों की कमी है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न. 1945 के बाद से, संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य वैश्विक शांति बनाए रखना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना रहा है, लेकिन इसकी प्रासंगिकता पर तेजी से सवाल उठ रहे हैं। इसकी घटती प्रभावशीलता में योगदान देने वाले कारकों पर चर्चा कीजिए और इस वैश्विक संस्था को मज़बूत करने के लिए सुधारों का सुझाव दें।

(10 अंक, 150 शब्द)

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