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भारत में कार्य-घंटे की नीतियाँ तथा श्रमिक हित

Lokesh Pal January 18, 2025 05:30 14 0

संदर्भ :

लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एस. एन. सुब्रह्मण्यन ने हाल ही में सुझाव दिया था, कि कर्मचारियों को प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए रविवार सहित प्रति सप्ताह 90 घंटे तक कार्य करना चाहिए।

कार्य-जीवन संतुलन (वर्क-लाइफ बैलेंस) तथा लैंगिक असमानता

  • पुरुष कर्मचारियों का घरेलू योगदान : पुरुष कर्मचारी अक्सर घरेलू कार्यों में बहुत कम योगदान देते हैं, यहाँ तक कि सप्ताहांत पर भी उनका योगदान नगण्य ही होता है।
    • बच्चों की देखभाल, उनकी आवश्यकताओं को पूरा करना, सामाजिक दायित्वों का प्रबंधन तथा बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल जैसी ज़िम्मेदारियाँ बड़े पैमाने पर महिलाओं द्वारा संभाली जाती हैं।
    • घर की देखभाल तथा पारिवारिक और सामाजिक प्रतिबद्धताएँ पुरुषों की महत्त्वपूर्ण भागीदारी के बिना पूरी की जाती हैं।
  • घरेलू भूमिकाओं से अधिक व्यावसायिक कार्य : एमडी ने प्रस्ताव दिया कि घर पर व्यर्थ बैठने के बजाय, पुरुष कर्मचारी अपने समय का उपयोग कार्यस्थल पर उत्पादकता बढ़ाने के लिए कर सकते हैं।
    • यह दृष्टिकोण इस विचार से जन्मा है, कि मुख्य आय अर्जक के रूप में पुरुष घरेलू कर्तव्यों से छूट पाने में उचित महसूस कर सकते हैं।
  • आराम और अवकाश हेतु तर्क : प्रति-तर्क का सुझाव है, कि आय अर्जक के रूप में पुरुषों को अपनी आय क्षमता को बनाए रखने तथा अपनी पेशेवर ज़िम्मेदारियों के लिए पुनः कार्य करने के लिए आराम तथा अवकाश की ज़रूरत होती है।
  • व्यापक निहितार्थ : यह दृष्टिकोण पेशेवर और घरेलू भूमिकाओं के बीच संतुलन पर चर्चा को स्पष्ट करता है। यह घरेलू जिम्मेदारियों में लैंगिक समानता और कामकाजी पुरुषों से सामाजिक अपेक्षाओं के संबंध में प्रश्न उठाता है।
  • घरेलू कार्यों में असमानताएँ: भारतीय महिलाएँ पुरुषों की तुलना में 10 गुना अधिक अवैतनिक घरेलू कार्य और देखभाल की ज़िम्मेदारियाँ वहन करती हैं, जिसमें भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है।
    • कुछ राज्यों में यह असमानता और भी अधिक है (जैसे- हरियाणा में 17 गुना, गुजरात में 14 गुना) तथा यह ग्रामीण/शहरी, शिक्षा और सामाजिक वर्ग सहित जनसांख्यिकी में बनी रहती है।
    • यहाँ तक कि धनी महिलाएँ भी नौकर रखने के बावजूद, घरेलू कार्यों के प्रबंधन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार रहती हैं।
  • कार्यबल में भागीदारी में लैंगिक असमानताएँ : अवैतनिक घरेलू श्रम में असंतुलन सीधे कार्यबल में लैंगिक असमानताओं को दर्शाता है।
    • महिला श्रम बल में भागीदारी कम बनी हुई है, जहाँ प्रत्येक 10 पुरुषों पर केवल 4 महिलाएँ कार्यरत हैं।
  • अनौपचारिक कार्य के प्रतिरूप : अशिक्षित महिलाएँ और सबसे कम आय वाले चतुर्थक में रहने वाली महिलाएँ घरेलू कार्यों में निम्न लैंगिक असमानता का अनुभव करती हैं, क्योंकि उनके पति अधिक योगदान देते हैं।
    • हालाँकि, ये महिलाएँ अनिश्चित, निम्न वेतन वाली नौकरियाँ करती हैं, अक्सर बिना किसी सुरक्षा या लाभ के सप्ताह में 90 घंटे से अधिक कार्य करती हैं। 
    • भारत के अनौपचारिक क्षेत्र से मिले साक्ष्य बताते हैं, कि कार्य के घंटे बढ़ाने से ज़रूरी नहीं कि उत्पादकता बढ़े।
  • कार्य-जीवन संतुलन : आराम और स्वास्थ्य लाभ सभी कर्मचारियों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, चाहे वे किसी भी लिंग या रोज़गार प्रकार के हों।
    • यहाँ समाप्त हो चुकी बैटरी की उपमा (The analogy of drained batteries) लागू होती है – पर्याप्त आराम के बिना अधिक कार्य करने से मानव उत्पादकता और कल्याण कम हो जाता है।
  • कॉर्पोरेट प्रथाओं में असमानता : पुरस्कारों में असमानताएँ इस मुद्दे को और जटिल बनाती हैं। एलएंडटी जैसी कंपनियों में प्रबंधकीय वेतन में 20.38% की वृद्धि हुई, जबकि श्रमिकों के वेतन में केवल 1.74% की वृद्धि हुई।
    • 70-90 घंटे प्रति सप्ताह कार्य करने वाले कॉर्पोरेट कर्मचारियों को वेतन में स्थिरता, मुद्रास्फीति के दबाव और घर तथा कार्यस्थल दोनों पर लगातार लैंगिक असमानता का सामना करना पड़ता है।

लैंगिक भूमिका पर रोज़गार का प्रभाव

  • ग्रीडी जॉब्स : नोबेल पुरस्कार विजेता क्लाउडिया गोल्डिन “ग्रीडी” जॉब्स को ऐसी भूमिकाएँ मानती हैं, जिनमें वेतन तो बहुत ज़्यादा मिलता है, लेकिन लंबे समय तक कार्य करना पड़ता है, नेटवर्किंग करनी पड़ती है, देर रात तक मीटिंग करनी पड़ती है और बार-बार यात्रा करनी पड़ती है।
    • ये भूमिकाएँ अक्सर लोगों को व्यक्तिगत तथा पारिवारिक ज़िम्मेदारियों से दूर रखती हैं एवं  शेष अन्य आवश्यकताओं पर पेशेवर प्रतिबद्धताओं को प्राथमिकता देती हैं।
  • दो कामकाजी माता-पिता वाले परिवारों के लिए चुनौतियाँ : दो कामकाजी माता-पिता वाले परिवारों में, बच्चों की परवरिश की माँगों के कारण आमतौर पर केवल एक ही “ग्रीडी जॉब्स” कर सकता है।
    • दूसरे माता-पिता को एक माध्यमिक भूमिका में रखा जाता है, जिसे अक्सर “मम्मी ट्रैक” के रूप में संदर्भित किया जाता है, जहाँ वे घरेलू और बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारियाँ संभालते हैं, जैसे- स्कूल की गतिविधियाँ, चिकित्सा संबंधी ज़रूरतें और पाठ्येतर गतिविधियाँ।
  • “मम्मी ट्रैक (mommy track)” की लैंगिक गतिशीलता : जबकि “मम्मी ट्रैक (mommy track)” की भूमिका माता-पिता में से किसी एक द्वारा निभाई जा सकती है, सामाजिक मानदंड और अपेक्षाएँ अक्सर महिलाओं पर यह बोझ डालती हैं।
    • परिणामस्वरूप, महिलाएँ अक्सर पारिवारिक जिम्मेदारियों के पक्ष में करियर की उन्नति और उच्च वेतन को छोड़ देती हैं।
  • करियर की प्रगति : महिलाओं के करियर की दिशा अक्सर अवरुद्ध होती है, जिससे नेतृत्व की भूमिका और करियर के विकास के उनके अवसर सीमित हो जाते हैं।
  • लिंग वेतन अंतराल : “ग्रीडी जॉब्स” (Greedy Jobs) और “मम्मी ट्रैक” (mommy track) के बीच का विभाजन वेतन अंतराल को बढ़ाता है, यहाँ तक कि उच्च शिक्षित व्यक्तियों के बीच भी, क्योंकि पुरुष उच्च वेतन मांग वाली भूमिकाओं पर प्रभावी होते हैं।
  • असमानता को सुदृढ़ करना : यह गतिशीलता कार्यस्थल और समाज में प्रणालीगत लैंगिक असमानता को बनाए रखती है।

लंबे समय तक कार्य करने के पक्ष में तर्क

  • एलएंडटी का सिद्धांत और उपलब्धियाँ : चेयरमैन एस. एन. सुब्रह्मण्यन के नेतृत्व में लार्सन एंड टुब्रो ने राम मंदिर निर्माण जैसी चुनौतीपूर्ण परियोजनाओं को समर्पण तथा सफलता के साथ पूरा करते हुए उल्लेखनीय रूप से विकास किया है। कर्मचारियों ने कार्य के प्रति जुनूनी संस्कृति के बजाय परिवार जैसा माहौल होने का हवाला देते हुए समर्पण दिखाया है।
  • सांस्कृतिक मूल : भगवद्गीता जैसी भारतीय परंपराओं से प्रेरणा लेते हुए, काम (कर्मयोग) को बोझ के बजाय कर्तव्य के रूप में देखा जाता है। ऐतिहासिक रूप से भारतीयों ने अवकाश की तलाश करने से पहले स्वयं को जिम्मेदारियों के लिए समर्पित किया है, जो लंबे, उद्देश्य-संचालित कार्य घंटों के विचार के साथ संरेखित है।
  • पश्चिमी प्रथाओं की आलोचना : बढ़ती “अवकाश की संस्कृति” को एक उधार ली गई अवधारणा के रूप में देखा जाता है, जो कार्य के प्रति समर्पण और प्रतिबद्धता के भारतीय सिद्धांत से अलग है।
  • राजनीतिक उपकरण के रूप में सार्वजनिक अवकाश : भारत में, सरकारें अक्सर मतदाताओं को खुश करने के लिए समुदाय के नेताओं के जन्मदिन और पुण्यतिथि को सार्वजनिक अवकाश के रूप में घोषित करती हैं। यह प्रवृत्ति उत्पादकता और कार्य प्रतिबद्धता की संस्कृति को बढ़ावा देने की तुलना में प्रतीकात्मक संकेतों को प्राथमिकता देने की दिशा में परिवर्तन को दर्शाती हैं।
  • कर्म से मुक्ति : अवकाश अथवा छुट्टियों के लिए प्राथमिकता एक प्रमुख प्रवृत्ति के रूप में उभर रही है, जो समर्पित कार्य (कर्मयोग) के पारंपरिक मूल्यों को पीछे छोड़ रही है।
    • ऐसी प्रथाओं से कर्तव्य-संचालित कार्य की भावना कमजोर होने का जोखिम है, जो ऐतिहासिक रूप से भारतीय संस्कृति की आधारशिला रही है।
  • क्षेत्रीय तुलना : अवकाश-केंद्रित ट्रेड यूनियन प्रथाओं ने पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था में गिरावट में योगदान दिया और इसकी कार्य संस्कृति को नष्ट कर दिया, जो एक चेतावनी पूर्ण उदाहरण के रूप में कार्य करता है।
    • इसके विपरीत, गुजरात के “कठोर मेहनत (work hard)” के सिद्धांत ने इसे उद्यमिता और आर्थिक विकास का केंद्र बना दिया, जो उत्पादकता-केंद्रित कार्य संस्कृति के लाभों को प्रदर्शित करता है।

आगे की राह 

  • सतत कार्य प्रणाली : लंबे समय तक कार्य करने का महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए, इसके बजाय ध्यान सतत और कुशल कार्य प्रणाली पर केंद्रित होना चाहिए, जो उत्पादकता और कर्मचारी कल्याण दोनों को बढ़ावा देता है।
  • उचित मुआवज़ा : संतुलित और प्रेरित कार्यबल बनाने के लिए समान वेतन संरचना और वास्तविक समावेशिता आवश्यक है। प्रणालीगत असमानताओं को पहचानना और उनका समाधान करना एक निष्पक्ष कार्य वातावरण को बढ़ावा दे सकता है।
  • कल्याण और पारिवारिक जीवन का मूल्य : एक संपन्न कार्यबल व्यक्तिगत कल्याण और पारिवारिक जीवन के महत्त्व को स्वीकार करता है, इन मूल्यों को कार्यस्थल संस्कृति में एकीकृत करता है।

निष्कर्ष

लक्ष्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है, जहाँ पुरुष और महिलाएँ दोनों स्वास्थ्य, परिवार या व्यक्तिगत समय से समझौता किए बिना व्यावसायिक सफलता प्राप्त करें तथा एक समतापूर्ण और समृद्ध भविष्य के लिए सभी श्रमिकों की पूरी क्षमता को उजागर करें।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

कार्य-घंटे की नीतियों में परिवर्तन का आर्थिक उत्पादकता, श्रमिकों के हित और सामाजिक गतिशीलता पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए। अपने उत्तर को स्पष्ट करने के लिए वैश्विक कार्य प्रथाओं को उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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