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विश्व न्यायालय की सलाहकारी राय: जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देने में सहायक

Lokesh Pal August 08, 2025 05:30 5 0

संदर्भ:

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे), जिसे विश्व न्यायालय के नाम से भी जाना जाता है, ने जलवायु परिवर्तन के संबंध में राज्यों के दायित्वों पर एक ऐतिहासिक व सलाहकारी राय प्रदान की है।

सलाहकार राय की प्रकृति और महत्व:

  • यद्यपि सलाहकारी राय तकनीकी रूप से बाध्यकारी नहीं होती, फिर भी यह विश्व न्यायालय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की आधिकारिक व्याख्या होती है।
  • इसकी घोषणाएं महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय दबाव उत्पन्न करती हैं, जो राज्यों के व्यवहार को प्रभावित करती हैं।
  • उदाहरण: इस मामले पर आईसीजे की सलाहकार राय के बाद यूनाइटेड किंगडम द्वारा चागोस द्वीप समूह को मॉरीशस को सौंप दिया गया है

विश्व न्यायालय की सलाहकार राय के मुख्य बिंदु

  • राज्य अपने कर्तव्यों की अनदेखी नहीं कर सकते: विश्व न्यायालय ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया है कि राज्यों पर जलवायु प्रणाली की रक्षा करने का कानूनी दायित्व है
    • राजनीतिक कारणों की परवाह किए बिना इस कर्तव्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
    • यह अन्य अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों, जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून न्यायाधिकरण (आईटीएलओएस) और अंतर-अमेरिकी मानवाधिकार आयोग (आईएसीएचआर) द्वारा राज्य के उत्तरदायित्वों की इसी प्रकार की मान्यता को पुष्ट करता है।
  • जलवायु संधियों और महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की निर्बाध व्याख्या: न्यायालय ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन, क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते सहित सभी जलवायु संधियों की, सर्वोत्तम उपलब्ध वैज्ञानिक सहमति के साथ, निर्बाध तरीके से व्याख्या की है, ताकि संधि के अनेक महत्त्वपूर्ण प्रावधानों के संचालन को मजबूत किया जा सके।
    • इस संबंध में न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि:
    • 5°C की सीमा सर्वोपरि: जबकि पेरिस समझौते का लक्ष्य “2°C से काफी नीचे” तथा “1.5°C तक सीमित करने के प्रयास” थे, न्यायालय ने नवीनतम विज्ञान तथा COP निर्णयों का हवाला देते हुए पुष्टि की कि 1.5°C प्रासंगिक सीमा है, जिसके लिए राज्यों को निश्चित रूप से काम करना चाहिए।
      • इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि औसत वैश्विक तापमान को 1.5°C से अधिक बढ़ने नहीं दिया जाना चाहिए।
    • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी): न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि राज्यों को अपने एनडीसी तैयार करने में असीमित विवेकाधिकार प्राप्त है, जो राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई की रूपरेखा तैयार करते हैं।
    • इसके बजाय, इसने दृढ़तापूर्वक यह भी स्पष्ट किया कि एनडीसी एक स्वतंत्र विकल्प नहीं है; उन्हें ‘सर्वोच्च संभव महत्वाकांक्षा’ को प्रतिबिंबित करना चाहिए
    • राज्यों को इन एनडीसी नियमों को पूरा करने के लिए यथोचित रूप से व सक्रिय रूप से उपाय करने चाहिए, तथा वास्तविक कार्रवाई का प्रदर्शन करना चाहिए।
  • वैश्विक उत्तर-दक्षिण विभाजन और जलवायु न्याय पर विचार: न्यायालय की सलाहकारी राय में जलवायु न्याय और वैश्विक उत्तर-दक्षिण विभाजन के लिए भी महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं:
    • सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियां (सीबीडीआर-आरसी): न्यायालय ने सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं के सिद्धांत के महत्व पर प्रकाश डाला है।
      • इसका अर्थ यह है कि यद्यपि सभी देश उत्सर्जन कम करने की जिम्मेदारी साझा करते हैं, फिर भी यह समान नहीं है।
      • विकसित देश ऐतिहासिक रूप से बड़े उत्सर्जक होने के कारण अधिक जिम्मेदारी वहन करते हैं।
  • वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए कानूनी दायित्व: विकसित राष्ट्रों का कानूनी रूप से बाध्यकारी दायित्व है कि वे जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन दोनों के लिए विकासशील देशों को वित्तीय संसाधन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रदान करने की पहल करें।
    • यह कोई चुनाव या विवेक का मामला नहीं है बल्कि एक दृढ़ कर्तव्य है।
    • वित्तीय सहायता की सटीक राशि सद्भावना और उचित परिश्रम के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए।
  • ‘स्व-निहित व्यवस्था’ के तर्क को खारिज करना: न्यायालय ने भारत सहित कुछ देशों द्वारा प्रस्तुत इस तर्क को खारिज कर दिया कि जलवायु संधियाँ एक ‘स्व-निहित व्यवस्था’ का निर्माण करती हैं, जहाँ सामान्य अंतर्राष्ट्रीय कानून और पर्यावरणीय सिद्धांत लागू नहीं होते हैं।
    • न्यायालय ने घोषणा की कि प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय कानून और पर्यावरण सिद्धांत हमेशा लागू होते हैं
      • व्यवहार में, इसका अर्थ यह है कि जलवायु संधियों से पीछे हटने से, जैसा कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने किया है, किसी देश को उसके जलवायु-संबंधी दायित्वों से छूट नहीं मिलती है
      • इसका यह भी अर्थ है कि हरित परिवर्तन की दिशा में कार्य करते हुए देशों को यह सुनिश्चित करना होगा कि मानवाधिकारों का उल्लंघन किए बगैर ही न्यायसंगत परिवर्तन प्राप्त हो।
  • मानवाधिकारों का संरक्षण: न्यायालय ने विभिन्न मानवाधिकारों, विशेषकर विशेष रूप से कमजोर लोगों के अधिकारों पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों पर भी ध्यान केंद्रित किया, जिसे जलवायु कार्रवाई करते समय देशों द्वारा ध्यान में रखा जाना चाहिए।
    • व्यवहार में, इसका अर्थ यह है कि जलवायु संधियों से पीछे हटने से, जैसा कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने किया है, किसी देश को उसके जलवायु-संबंधी दायित्वों से छूट नहीं मिलती है।
    • इसका यह भी अर्थ है कि हरित परिवर्तन की दिशा में काम करते हुए देशों को यह सुनिश्चित करना होगा कि मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो तथा न्यायसंगत परिवर्तन सुनिश्चित हो।
  • वैश्विक दक्षिण के लिए जवाबदेही और लाभ: न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि इन दायित्वों के उल्लंघन के लिए देशों को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि इस संदर्भ में सटीक कारण और आरोप को साबित करना कठिन है।
    • इसमें बताया गया कि ऐतिहासिक और वर्तमान उत्सर्जन दोनों को ध्यान में रखते हुए, वैश्विक उत्सर्जन में प्रत्येक राज्य के कुल योगदान का निर्धारण करना वैज्ञानिक रूप से संभव है।

निष्कर्ष:

यह सलाहकारी राय उन छोटे द्वीपीय देशों के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी उपलब्धि है, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा के इस अनुरोध की वकालत की थी, तथा जो जलवायु परिवर्तन के कारण अस्तित्व के लिए खतरा बने हुए हैं

  • इससे प्रमुख उत्सर्जकों को जवाबदेह बनाने तथा अधिक महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई के लिए उनके प्रयासों को बल मिलेगा।
  • भारत सहित वैश्विक दक्षिण के देशों के लिए, यह निर्णय जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के संबंध में अपनी प्रतिबद्धताओं को बेहतर ढंग से पूरा करने के लिए विकसित देशों पर सामूहिक रूप से दबाव डालने के लिए महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है।
  • इसके साथ ही यह विभिन्न देशों में चल रहे रणनीतिक जलवायु मुकदमेबाजी को भी मजबूत करता है।

 मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: जलवायु प्रणाली की रक्षा के लिए राज्यों के कानूनी दायित्वों की पुष्टि करने वाली अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की हालिया सलाहकारी राय के आलोक में, सभी देशों के लिए बाध्यकारी और न्यायसंगत जलवायु संरक्षण प्रतिबद्धताओं की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए। जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध प्रभावी वैश्विक कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए ऐसे दायित्वों को किस प्रकार से मज़बूत किया जा सकता है? समझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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