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तेल पर केंद्रित दुनिया: भारत को उर्वरक आपूर्ति शृंखला को मजबूत करने की आवश्यकता

Lokesh Pal July 07, 2025 05:00 64 0

संदर्भ:

चूंकि विशेष रूप से ईरान-इजराइल संघर्ष के बीच वैश्विक ध्यान तेल की कीमतों पर केंद्रित है। भारत को भी तात्काल अपना ध्यान उर्वरक आपूर्ति शृंखला को मजबूत करने पर केंद्रित करना होगा, जो राष्ट्रीय स्थिरता और खाद्य सुरक्षा के लिए समान रूप से गंभीर मुद्दा है।

वैश्विक तनाव के प्रति भारत की गहरी संवेदनशीलता:

  • भारत की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था आयातित उर्वरकों पर अत्यधिक निर्भर है, जिससे यह बाह्य चुनौतियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
    • यूरिया की लगभग 20% आवश्यकता आयातित होती है।
    • लगभग 60% डायमोनियम फॉस्फेट (DAP) का आयात किया जाता है।
    • भारत अपनी 100% म्यूरिएट ऑफ पोटाश (MOP) का आयात करता है।
  • मध्य पूर्व पर निर्भरता: देश की उर्वरक सुरक्षा मध्य पूर्व से अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है, जहां तैयार उर्वरकों और प्राकृतिक गैस (यूरिया उत्पादन के लिए एक महत्वपूर्ण कच्चा माल) का महत्वपूर्ण आयात कतर, सऊदी अरब और ओमान जैसे देशों से सम्पन्न होता है।
    • वर्ष 2023 में, भारत के कुल उर्वरक आयात का लगभग 20-25 % खाड़ी देशों से, मुख्य रूप से महत्वपूर्ण होर्मुज जलडमरूमध्य के माध्यम से आयात किया गया था।
    • इस महत्वपूर्ण शिपिंग मार्ग में किसी भी प्रकार का व्यवधान, जैसा कि ईरान की संसद ने धमकी दी है, सीधे तौर पर भारत की आपूर्ति श्रृंखला को खतरे में डालेगा, जिससे वैश्विक कीमतें बढ़ सकती हैं और भारतीय किसान प्रभावित हो सकते हैं।

भू-राजनीतिक संघर्ष और उर्वरक क्षेत्र के लिए खतरे:

  • ईरान-इज़राइल संघर्ष: इस संघर्ष से खाड़ी देशों से यूरिया, डायमोनियम फॉस्फेट (DAP) और प्राकृतिक गैस की आपूर्ति हेतु ख़तरा बना हुआ है। म्यूरिएट ऑफ पोटाश (MOP) आयात भी ख़तरे में है क्योंकि इज़राइल इसका एक प्रमुख स्रोत है।
  • रूस-यूक्रेन युद्ध: वर्ष 2022 के संघर्ष ने नाइट्रोजन, पोटाश और अमोनिया की आपूर्ति को बाधित कर दिया, जिससे भारत की कमज़ोरी उजागर हुई। इस संकट से सीखने की कमी एक मज़बूत बफर स्टॉक नीति की अनुपस्थिति में स्पष्ट है।

अपर्याप्त तैयारी और नीतिगत खामियाँ:

  • सीमित रणनीतिक भंडार: तेल या खाद्यान्न के विपरीत, भारत के पास उर्वरकों का कोई भी बड़े पैमाने पर रणनीतिक भंडार नहीं है।
    • इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (IFFCO), राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स (RCF), और नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड (NFL) जैसी कंपनियां सिर्फ 30-45 दिनों का स्टॉक संग्रहीत करती हैं, जो महत्वपूर्ण खरीफ और रबी बुवाई सीजन के लिए अपर्याप्त है।
  • प्रतिक्रियात्मक नीति निर्माण: हालांकि नीतियां लगातार प्रतिक्रियात्मक रही हैं, तथा संकट उत्पन्न होने के बाद ही उनका समाधान किया जाता है।
    • इससे DAP और MOP जैसे महत्वपूर्ण आयातों के लिए बफर स्टॉक या न्यूनतम भंडारण मानदंडों की स्थापना में बाधा उत्पन्न होती है।
  • संरचनात्मक चुनौतियाँ: इस क्षेत्र को फॉस्फेटिक और पोटाशिक उर्वरकों के लिए आयातित कच्चे माल पर निर्भर रहना पड़ता है। इसके साथ ही पुराने और ऊर्जा-अकुशल संयंत्रों और बंदरगाहों से खेतों तक वितरण में देरी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • लागत प्रभावशीलता को प्राथमिकता: भारत की उर्वरक खरीद रणनीति, हालांकि दीर्घकालिक आयात समझौतों पर आधारित है और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के माध्यम से संचालित होती है, लेकिन इसमें लचीलेपन की तुलना में लागत प्रभावशीलता और सुनिश्चित आपूर्ति को प्राथमिकता दी जाती है।
    • इस दृष्टिकोण के आधार पर स्पष्ट है कि राष्ट्र वैश्विक व्यवधानों के लिए तैयार नहीं है।

उर्वरक आपूर्ति में व्यवधान के परिणाम:

  • खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा: इसका तत्काल प्रभाव खाद्य उत्पादन पर पड़ता है, जिससे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है।
  • किसानों की समस्या: वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी से किसानों के लिए खुदरा लागत, खासकर पोषक तत्व आधारित सब्सिडी योजना के तहत DAP और MOP के लिए बढ़ जाती है। इससे छोटे और सीमांत किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है, जिससे उत्पादकता में कमी, फसल में बदलाव और आर्थिक समस्या की संभावना बढ़ जाती है। इससे संबंधित पीएम-किसान जैसी योजनाएं केवल सीमित राहत प्रदान करती हैं।
    • पोषक तत्व आधारित सब्सिडी योजना: पोषक तत्व सामग्री (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, सल्फर) के आधार पर उर्वरकों पर सब्सिडी देकर संतुलित उर्वरक और कुशल पोषक तत्वों के उपयोग को बढ़ावा देना।
      • सरकारी तंत्र के मानक: सरकार प्रत्येक पोषक तत्व के लिए प्रति किलोग्राम सब्सिडी दर तय करती है और कंपनियां सब्सिडी को छोड़कर बाजार-निर्धारित कीमतों पर उर्वरक बेचती हैं।
      • अपवर्जन: यूरिया को इसके दायरे में नहीं लाया गया है तथा यह पूर्ण सब्सिडी के साथ नियंत्रित मूल्य पर बने रहता है।
  • राजकोषीय बोझ: सरकार यूरिया को किफायती बनाए रखने के लिए वैश्विक मूल्य के उतार-चढ़ाव भरे झटकों को सहन करती है, जिससे उर्वरक सब्सिडी बिल संभावित रूप से 2.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो जाता है।
    • यह राजकोषीय दबाव कृषि अवसंरचना में दीर्घकालिक निवेश को सीमित करता है।

आगे की राह:

  • रणनीतिक भंडार स्थापित करना: घरेलू आपूर्ति को स्थिर करने और अंतर्राष्ट्रीय वार्ता में लाभ प्रदान करने के लिए बड़े पैमाने पर रणनीतिक उर्वरक भंडार बनाए जाने चाहिए क्योंकि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों का सामना करने के लिए यह बफर के रूप में आवश्यक है।
  • आपूर्तिकर्ता संबंधी आधार संरचना का विस्तार: कुछ देशों पर निर्भरता कम करना और आपूर्तिकर्ता संबंधी आधार संरचना का विस्तार करना चाहिए।
    • उदाहरण: भारत को समझौता ज्ञापनों से आगे बढ़कर संसाधन संपन्न देशों जैसे मोरक्को (वैश्विक फॉस्फेट भंडार का 70%), कनाडा (पोटाश), जॉर्डन और इजरायल में वास्तविक निवेश करना होगा।
  • अनुबंध और रसद लचीलापन: दीर्घकालिक समझौतों के माध्यम से आपूर्ति को सुरक्षित करना और भू-राजनीतिक टकराव से बचने के लिए वैकल्पिक शिपिंग मार्गों की खोज करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • घरेलू उत्पादन:
    • यूरिया में आत्मनिर्भरता: गोरखपुर और सिंदरी जैसे संयंत्रों को पुनर्जीवित करके 90% आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना।
    • कच्चे माल पर निर्भरता को कम करना: फॉस्फेटिक और पोटाशिक उर्वरकों के कच्चे माल के लिए आयात पर निर्भरता को रणनीतिक रूप से संबोधित करना।
    • संयंत्रों का आधुनिकीकरण करना और अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना: पुराने संयंत्रों को ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों से उन्नत करना चाहिए और उन्नत विनिर्माण में अनुसंधान का समर्थन करना चाहिए।
  • सक्रिय योजना: वैश्विक झटकों का पूर्वानुमान लगाना और केवल प्रतिक्रिया देने के बजाय लचीलापन विकसित करना चाहिए।
  • वैकल्पिक उर्वरक: कृत्रिम उर्वरकों पर अत्यधिक निर्भरता कम करने और मृदा स्वास्थ्य को संरक्षित करने के लिए नैनो यूरिया, जैवउर्वरकों और जैविक आदानों को अपनाने को प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • सब्सिडी वितरण: संवितरण में तेजी लाना तथा किसानों में टिकाऊ प्रथाओं के बारे में जागरूकता बढ़ानी चाहिए।

निष्कर्ष:

मौजूदा भू-राजनीतिक तनावों के मद्देनजर भारत को प्रतिक्रियात्मक रणनीति से हटकर सक्रिय, लचीली और दूरदर्शी रणनीति अपनानी होगी। भारत की खाद्य प्रणाली और राष्ट्रीय स्थिरता के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए शीघ्र और निर्णायक कार्रवाई महत्वपूर्ण है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान उर्वरक संबंधी झटकों का सामना करने के बावजूद, भारत मध्य पूर्व में इस तरह के व्यवधानों के लिए तैयार नहीं है। भारत की उर्वरक नीति में मौजूदा खामियों का मूल्यांकन करें और कुछ सुधारात्मक उपाय सुझाएँ।

(10 अंक, 150 शब्द)

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