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बच्चों के लिए सोशल मीडिया का विनियमन

Lokesh Pal March 30, 2024 05:02 285 0

संदर्भ

हाल ही में फ्लोरिडा (संयुक्त राज्य अमेरिका) ने एक कानून पारित किया है, जो माता-पिता की सहमति की परवाह किए बिना 14 वर्ष से कम उम्र के लोगों को सोशल-मीडिया अकाउंट रखने पर  प्रतिबंध लगाता है।

फ्लोरिडा विनियमन कानून (Florida Regulation Law) के बारे में

  • सोशल मीडिया अकाउंट बंद करना: नए कानून के तहत, सोशल मीडिया कंपनियों को ऐसे अकाउंट बंद करने होंगे, जिनके बारे में माना जाता है कि उनका इस्तेमाल 14 वर्ष से कम उम्र के नाबालिगों द्वारा किया जाता है।
    • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को माता-पिता या नाबालिगों के अनुरोध पर खाते भी रद्द करने होंगे और खातों से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी हटानी होगी।
  • प्रतिबंध: यह स्पष्ट रूप से पोर्नोग्राफिक वेबसाइटों पर विजिट करने वालों के लिए आयु सत्यापन की आवश्यकता के द्वारा अश्लील वेबसाइटों पर भी प्रतिबंध लगाता है।

संबंधित तथ्य 

  • हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया था कि उसे सोशल मीडिया के इस्तेमाल के लिए एक उम्र सीमा संबंधी प्रस्ताव लाना चाहिए।
  • मार्च 2023 में, यूटाह (Utah) सोशल मीडिया तक बच्चों की पहुँच को विनियमित करने वाले कानूनों को अपनाने वाला संयुक्त राज्य अमेरिका का पहला प्रांत बन गया।

बच्चों द्वारा सोशल मीडिया का उपयोग

  • सोशल मीडिया के बारे में: यह डिजिटल तकनीकी प्लेटफॉर्मों को संदर्भित करता है, जो लोगों को एक-दूसरे से बात करने, शामिल होने, जानकारी साझा करने और एक साथ काम करने में सक्षम बनाता है।
  • सांख्यिकी: संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, युवा लोगों में विश्व स्तर पर कनेक्टिविटी की प्रेरक शक्ति होती है, वर्ष 2023 में 15 से 24 वर्ष के 79% बच्चे सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे थे, हालाँकि दुनिया की बाकी आबादी 65% है, जो सोशल मीडिया का उपयोग कर रही है। दुनिया भर में हर आधे सेकंड में एक बच्चा पहली बार सोशल मीडिया पर ऑनलाइन आता है।
  • विशेष रूप से भारत के संदर्भ में: लोकलसर्कल्स के एक हालिया सर्वेक्षण से पता चलता है कि शहरी भारतीय युवा इंटरनेट पर अधिक समय बिताते हैं।
    • इस प्रवृत्ति ने 9 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की लत को बढ़ाया है।
    • वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Education Report- ASER) के अनुसार, 90% से अधिक किशोर सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं।

सोशल मीडिया पर बच्चों का प्रदर्शन

  • माता-पिता का एक्सपोजर: कुछ बच्चे अपने माता-पिता द्वारा सोशल मीडिया के संपर्क में आते हैं, जो जाने-अनजाने उन्हें इसकी लत लगा देते हैं।
  • मनोरंजन: सोशल मीडिया मनोरंजन का केंद्र बन गया है। यह युवा दिमागों के लिए एक मध्यम आकर्षण के रूप में कार्य करता है।
  • बोरियत: आधुनिक समाज में, मानव आबादी शारीरिक गतिविधियों वाले कार्यों से दूर जा रही है और बच्चे अपनी बोरियत से छुटकारा पाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करने के लिए मजबूर हैं।
  • डिजिटल उपकरणों तक आसान पहुँच: डिजिटल उपकरणों तक आसान पहुँच ने बच्चों के लिए सोशल मीडिया अकाउंट खोलना और इसका बार-बार उपयोग करना आसान बना दिया है।
  • कोविड-19 अवधि: कोविड-19 महामारी अवधि की शुरुआत से, मीडिया उपकरणों, इंटरनेट पहुँच एवं परामर्श तथा सोशल मीडिया में तेजी से वृद्धि हुई। ‘लॉकडाउन’ के दौरान, इंटरनेट के उपयोग ने साथियों के साथ संचार एवं स्कूल शिक्षण जैसी निरंतरता गतिविधियों की अनुमति दी।

बच्चों के बीच सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग के कारण

  • साथियों का प्रभाव: बच्चे अक्सर अपने दोस्तों से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। सामाजिक दायरे में फिट होने और उसका हिस्सा बनने की इच्छा उन्हें उन लोकप्रिय प्लेटफॉर्मों से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है, जहाँ उनके दोस्त पहले से ही सक्रिय हैं।
  • मनोरंजन और सामग्री की खपत: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीडियो, गेम और इंटरैक्टिव सुविधाओं सहित सामग्री की एक विस्तृत शृंखला पेश करते हैं। बच्चे इन प्लेटफॉर्मों पर उपलब्ध मनोरंजक और आकर्षक सामग्री की ओर आकर्षित होते हैं।
  • शैक्षिक अवसर: कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शैक्षिक सामग्री और सीखने के अवसर प्रदान करते हैं। बच्चे शैक्षिक संसाधनों तक पहुँचने, विशेषज्ञों से जुड़ने और ऑनलाइन शिक्षण समुदायों में भाग लेने के लिए इन प्लेटफॉर्मों का उपयोग कर सकते हैं।
  • माता-पिता का प्रभाव और अनुमति: कई मामलों में, बच्चे अपने माता-पिता की अनुमति या प्रोत्साहन से सोशल मीडिया तक पहुँच प्राप्त करते हैं।
  • डिजिटल संस्कृति का प्रभाव: डिजिटल युग में बड़े होते हुए बच्चे डिजिटल संस्कृति में पूरी तरह संबद्ध हैं। स्मार्टफोन, टैबलेट और अन्य कनेक्टेड डिवाइसों का प्रचलन उनके लिए सोशल मीडिया तक पहुँच को आसान बनाता है, जो इसके बढ़ते उपयोग में योगदान देता है।
    • विभिन्न सोशल मीडिया साइटें ‘इनफिनिटी स्क्रॉलिंग’ (Infinite Scrolling) को बढ़ावा देती हैं, ऑटो-प्ले वीडियो की सुविधा देती हैं और लाइव-स्ट्रीमिंग संबंधी सूचनाएँ देती हैं।

बच्चों पर सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रभाव

  • क्रिटिकल थिंकिंग: सोशल मीडिया बच्चों को गंभीर रूप से सोचने और भविष्य के लिए महत्त्वपूर्ण कौशल बनाने में मदद कर सकता है।
  • संचार: सोशल मीडिया बच्चों को समान रुचियों वाले लोगों के साथ संवाद करने में मदद करता है, ज्ञान बढ़ाने में सहायक है।
  • संबंध स्थापित करना: सोशल मीडिया दूर रहने वाले दोस्तों एवं रिश्तेदारों के साथ संबंध स्थापित करने में मदद करता है।
  • सीखने की कला विकसित करना: सोशल मीडिया व्यक्तियों को जीवन में नई चीजें सीखने की कला विकसित करने और उनमें महारत हासिल करने में मदद करता है।
    • डिजिटल युग और सोशल मीडिया ने बच्चों और युवाओं के लिए संवाद करने, सीखने, मेलजोल एवं गेमिंग के अभूतपूर्व अवसर पैदा किए हैं, जिससे उन्हें नए विचारों और जानकारी के अधिक विविध स्रोतों से अवगत कराया गया है।
  • पारदर्शिता: संदर्भ और साक्ष्य प्रदान करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग पारदर्शिता को बढ़ावा देता है, संभावित रूप से झूठी कहानियों और अफवाहों को दूर करता है।
  • समर्थन और एकजुटता: कहानी को सोशल मीडिया पर साझा करने से ऑनलाइन समुदाय से समर्थन मिलता है।

बच्चों पर सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभाव

  • हिंसा: सोशल मीडिया, अपनी अनफिल्टर्ड सामग्री के साथ, बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति पैदा कर सकता है। सोशल मीडिया विवाद में बच्चे को शामिल करने से अनपेक्षित मनोवैज्ञानिक परिणाम हो सकते हैं, जिससे संभावित रूप से अतिरिक्त तनाव और नुकसान हो सकता है।
    • मुंबई स्थित एसोसिएशन ऑफ एडोलेसेंट एंड चाइल्ड केयर इन इंडिया (Association of Adolescent and Child Care in India- AACCI) ने मुंबई और गुरुग्राम के स्कूलों का सर्वेक्षण किया और पाया कि बच्चों में आक्रामकता की भावना बढ़ रही थी।
  • साइबर बुलिंग: छोटे बच्चे, विशेषकर लड़कियाँ, आसानी से साइबर बुलिंग का शिकार होती हैं। सोशल मीडिया ऐसे दुर्व्यवहार का सबसे संभावित स्रोत है।
    • नवीनतम साइबर बुलिंग आँकड़ों के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में साइबर बुलिंग तेजी से बढ़ी है, विशेषकर स्कूल स्तर के युवाओं में।
  • पोर्नोग्राफी: सोशल मीडिया और पोर्नोग्राफी में गहरा संबंध है। बच्चों का युवा दिमाग आसानी से अश्लील सामग्री का आदी हो सकता है, जिससे उनका शैक्षणिक जीवन प्रभावित हो सकता है।
  • अवैध सट्टेबाजी: सोशल मीडिया साइटें कई अवैध सट्टेबाजी पेजों की मेजबानी करती हैं। बच्चे संभावित रूप से ऐसी आर्थिक रूप से खतरनाक गतिविधियों के आदी हो सकते हैं।
  • मानसिक अस्थिरता: सोशल मीडिया सामग्री को देखकर बच्चे आभासी दुनिया में रहने लगते हैं। इससे उनकी भविष्य की मानसिक शांति और स्थिरता प्रभावित होती है।
    • जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (JAMA) में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि जो किशोर प्रतिदिन तीन घंटे से अधिक सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, उनमें मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है।
  • सामाजीकरण: सोशल मीडिया भौतिक सामाजीकरण का विकल्प नहीं है। सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग बच्चे के सामाजिक जीवन को प्रभावित कर सकता है।
  • झूठी सूचना: सोशल मीडिया झूठी सूचनाओं का केंद्र है। प्रचार-प्रसार के माध्यम से बच्चों का आसानी से ब्रेनवॉश किया जा सकता है।
    • यूनीसेफ (UNICEF) के एक अध्ययन के अनुसार, केवल 2% बच्चों और युवाओं के पास महत्त्वपूर्ण साक्षरता कौशल है, जो यह तय करने के लिए आवश्यक है कि कोई समाचार वास्तविक है या गलत।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: सोशल मीडिया की लत, कुछ मामलों में, अधीरता, आक्रामकता, एकाग्रता की समस्याएँ, स्मृति समस्याएँ, सिरदर्द, आँख और पीठ का दर्द, तनाव, संचार कठिनाइयों, सुस्ती और यहाँ तक ​​कि अवसाद के रूप में प्रकट हुई है।
    • सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग के कारण बच्चों की नींद का पैटर्न प्रभावित होता है।

किडफ्लुएंसर और नैतिक दुविधाएँ (Kidfluencers and Ethical Dilemmas)

  • किडफ्लुएंसर (Kidfluencers): यह उन बच्चों (आमतौर पर 16 वर्ष से कम उम्र के) को संदर्भित करता है, जो सोशल मीडिया पर प्रभावशाली बन जाते हैं। वयस्क प्रभावशाली लोगों की तरह, वे भी विभिन्न ब्रांडों और कंपनी के उत्पादों को बढ़ावा देने में शामिल हैं।
  • चिंताएँ: सोशल मीडिया पर बाल मुद्रीकरण का प्रभाव, सुरक्षा और कानून प्रवर्तन का अस्पष्ट होना तथा साथ ही इन बच्चों का समाज के सामने आना निश्चित रूप से अपना प्रभाव डालता है।

किडफ्लुएंसर्स द्वारा सामना की जाने वाली विभिन्न नैतिक चिंताएँ

  • गोपनीयता का मुद्दा: किडफ्लुएंसर अक्सर अपने व्यक्तिगत जीवन के अधिकांश पहलुओं को सोशल मीडिया पर साझा करते हैं, जो बच्चों की गोपनीयता के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है।
  • उपभोक्तावाद का मुद्दा: किडफ्लुएंसर अपने ब्रांड और उत्पाद प्रचार से प्रभावित हो सकते हैं, जो संभवतः उन्हें कम उम्र से ही अस्वास्थ्यकर उपभोग की ओर आकर्षित कर सकता है।
  • स्पष्टता की कमी: प्रचार सामग्री और वास्तविक सामग्री के बीच अंतर के बारे में किडफ्लुएंसर्स की सीमित समझ सदाचार और नैतिकता के संदर्भ में स्पष्टता की कमी पैदा कर सकती है।
  • शिक्षा पर प्रभाव: किडफ्लुएंसर स्कूल में या अपने दैनिक जीवन में सीखने के महत्त्वपूर्ण अनुभवों से चूक सकते हैं। वे लगातार आकर्षक सामग्री बनाने की माँगों से दबाव महसूस कर सकते हैं।
  • वृद्धि और विकास पर प्रभाव: सोशल मीडिया का अत्यधिक संपर्क बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। वे सोशल मीडिया पर एक आदर्श छवि बनाए रखने के लिए दबाव महसूस कर सकते हैं और यह उनकी पहचान के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
    • कभी-कभी, धमकाने और उत्पीड़न के कारण ऑनलाइन दुरुपयोग और इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।

बच्चों पर सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के तरीके

  • माता-पिता का नियंत्रण: माता-पिता को अपने बच्चों की सोशल मीडिया गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए। माता-पिता को अपने बच्चों का विश्वास जीतना चाहिए और उनका मार्गदर्शन करना चाहिए।
    • डिजिटल शिक्षा: यह माता-पिता, शिक्षकों के साथ-साथ अधिकारियों की भी जिम्मेदारी है कि वे बच्चों में डिजिटल शिक्षा संबंधी दृष्टिकोण विकसित करें, ताकि वे सोशल मीडिया का लाभकारी तरीके से उपयोग कर सकें।
    • सोशल मीडिया का विनियमन: सोशल मीडिया कंपनियों को अपनी गतिविधियों को स्व-विनियमित करना होगा या सरकार को उनसे ऐसा कराना होगा।
      • भारतीय संविधान द्वारा मत और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। सोशल मीडिया के उपयोग के लिए उचित नैतिक मानकों को डिजाइन करने की आवश्यकता है, लेकिन प्रौद्योगिकियों को भी गतिशील होना चाहिए और प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने का तरीका लगातार बदल रहा है।
  • परामर्श: पेशेवर परामर्शदाता बच्चों को सोशल मीडिया से जुड़ी आदत और लत से उबरने में मदद कर सकते हैं।
  • उदाहरण: विश्व स्वास्थ्य संगठन 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन पर समय न बिताने और 2 से 4 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए दिन में एक घंटे से अधिक स्क्रीन पर समय न बिताने की सलाह देता है।
  • प्रौद्योगिकी समाधान: केवल सेंसरशिप पर निर्भर रहने के बजाय, सरकार और मध्यस्थ गलत सूचना तथा फर्जी खबरों से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी समाधान में निवेश कर सकते हैं।
    • उदाहरण: गलत जानकारी को पहचानने और चिह्नित करने के लिए एल्गोरिदम विकसित की जा सकती है, और तथ्य-जाँच करने वाली वेबसाइटों को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • स्व-नियमन: फर्जी खबरों और गलत सूचना के प्रसार को रोकने के लिए मध्यस्थ स्व-नियामक उपाय अपना सकते हैं।
    • उदाहरण: सामग्री की निगरानी करने और किसी भी गलत जानकारी को चिह्नित करने के लिए आंतरिक समितियों की स्थापना करके तथा सटीकता सुनिश्चित करने के लिए फैक्ट चेकिंग वेबसाइटों के साथ काम करना।
  • सहयोगात्मक दृष्टिकोण: सरकार, मध्यस्थ और नागरिक समाज संगठन बच्चों और सभी के लिए डिजिटल तथा सोशल मीडिया सुरक्षित वातावरण विकसित करने के लिए मिलकर काम कर सकते हैं।
  • कानूनी दिशा-निर्देश अपनाएँ और अधिनियमित करना: बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र समिति (UN Committee on the Rights of the Child- CRC) ने सिफारिश की है कि सभी राष्ट्रों को बच्चों को हानिकारक और भ्रामक सामग्री से बचाने के लिए कानून सहित विभिन्न मजबूत उपाय करने चाहिए।
    • बच्चों को बाल तस्करी, लैंगिक हिंसा, साइबर आक्रामकता, साइबर हमले सहित सभी प्रकार की हिंसा से भी बचाया जाना चाहिए।
    • युवा लोगों के डिजिटल उपयोग को नियंत्रित करने वाली नीतियों का मसौदा तैयार करते समय, साथ ही प्रौद्योगिकी को डिजाइन करते समय बच्चों के दृष्टिकोण और अनुभवों पर विचार करने की आवश्यकता है।
    • चीन ने नाबालिगों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिन्हें रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक, मोबाइल उपकरणों पर अधिकांश इंटरनेट सेवाओं का उपयोग करने की अनुमति नहीं होगी और 16 से 18 वर्ष की आयु के बच्चे दिन में केवल दो घंटे ही इंटरनेट का उपयोग कर सकेंगे।

युवाओं की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय कार्रवाइयाँ

  • साइबर सुरक्षा: चाइल्ड ऑनलाइन प्रोटेक्शन (Child Online Protection- COP) पहल ऑनलाइन दुनिया में बाल सुरक्षा के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने और सरकारों, उद्योग तथा शिक्षकों की सहायता के लिए व्यावहारिक उपकरण विकसित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ द्वारा शुरू किया गया एक बहु-हितधारक नेटवर्क है।
  • साइबरबुलिंग: संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund- UNICEF) ने साइबर बुलिंग के बारे में कुछ सबसे आम सवालों के जवाब देने और इससे निपटने के तरीकों पर सलाह देने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ मिलकर काम किया है।
  • UNICEF की काइंडली (Kindly) पहल का उद्देश्य साइबर बुलिंग (एक समय में एक संदेश) को समाप्त करना है।
  • यौन शोषण और दुर्व्यवहार: यूनिसेफ ‘WePROTECT ग्लोबल एलायंस मॉडल’ का उपयोग करके 20 से अधिक देशों में ऑनलाइन बाल यौन शोषण के लिए समन्वित राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं का समर्थन करता है, जिससे पीड़ितों को सेवाएँ प्रदान करने हेतु प्रतिक्रिया ढाँचा प्रभावी रूप से कार्य करता है। 
  • मानव तस्करी: ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (United Nations Office on Drugs and Crime- UNODC) मानव तस्करी को रोकने और उससे निपटने के प्रयासों में सदस्य देशों का समर्थन करता है, जिसमें बच्चों एवं युवाओं के लिए ऑनलाइन सुरक्षा जागरूकता गतिविधियाँ भी शामिल हैं।
  • इंटरनेट फॉर ट्रस्ट: यूनेस्को (UNESCO) बढ़ते दुष्प्रचार की स्थिति में डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर जानकारी की विश्वसनीयता में सुधार के लिए नियामक समाधान विकसित करने के वैश्विक प्रयास का नेतृत्व कर रहा है।
  • बाल अधिकारों पर कन्वेंशन (Convention on the Rights of the Child): इस कन्वेंशन में बच्चों के अधिकार निहित हैं। बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र समिति (CRC) कन्वेंशन के कार्यान्वयन की निगरानी करती है और उसने ऐसे तरीके बताए हैं कि डिजिटल दुनिया में युवाओं एवं बच्चों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए तथा उनके अधिकारों की रक्षा कैसे की जानी चाहिए।

भारत में बाल ऑनलाइन संरक्षण अधिनियम (Child Online Protection Act)

  • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (‘DPDPA’ या ‘अधिनियम’): अधिनियम की धारा 9 बच्चों के व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण से संबंधित है। 18 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों के लिए अनुभाग, बच्चों के व्यक्तिगत डेटा को संसाधित करने के लिए निम्नलिखित तीन शर्तें स्थापित की हैं-
    • माता-पिता की सत्यापन योग्य सहमति प्राप्त करना।
    • व्यक्तिगत डेटा का प्रसंस्करण बच्चे की भलाई के अनुरूप होना चाहिए।
    • बच्चों की ट्रैकिंग या व्यवहार संबंधी निगरानी अथवा बच्चों पर निर्देशित लक्षित विज्ञापन पर प्रतिबंध।

सुरक्षित इंटरनेट दिवस (Safer Internet Day) के बारे में

  • समर्थित: निजी क्षेत्र के नवप्रवर्तकों सहित संयुक्त राष्ट्र एजेंसियाँ और साझेदार, विशेष रूप से बच्चों और युवाओं के लिए ऑनलाइन सुरक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में एक डिजिटल मार्ग बना रहे हैं।
    • ITU, UNICEF और UNODC के समर्थन से, प्रत्येक वर्ष फरवरी में सुरक्षित इंटरनेट दिवस मनाया जाता है।
  • उद्देश्य: साइबर बुलिंग और सोशल नेटवर्किंग से लेकर डिजिटल पहचान तक, प्रत्येक वर्ष इसका उद्देश्य उभरते ऑनलाइन मुद्दों और वर्तमान चिंताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।

निष्कर्ष 

सिक्के की तरह, सोशल मीडिया के भी दो पहलू हैं, यह एक शक्तिशाली उपकरण हो सकता है और दूसरी ओर, यह कुछ नैतिक चुनौतियाँ भी पेश करता है, जिन्हें उचित उपायों को अपनाकर संबोधित करने की आवश्यकता है। डिजिटल युग में, हमारी भावी पीढ़ी के लिए सोशल मीडिया की पहुँच पर प्रतिबंध लगाने के बजाय, मानसिक स्वास्थ्य प्रणालियों और कार्यक्रमों में बड़े निवेश के साथ-साथ बेहतर अभिभावकीय निगरानी उपकरण, आपराधिक तत्त्वों को रोकने के लिए डेटा तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित करना बेहतर होगा।

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