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Oct 05 2024

संदर्भ 

भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री, चेन्नई ने असम के आठ बोडो उत्पादों को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्रदान किए।

राइस बीयर की प्रजातियाँ

बोडो जोऊ ग्व्रान 

(Bodo Jou Gwran)

राइस बीयर में अल्कोहल की मात्रा सबसे अधिक (16.11%) होती है। इसे बोडो समुदाय द्वारा तैयार किया गया है।
मैबरा जोऊ बिदवी 

(Maibra Jou Bidwi)

इसे ‘मैबरा ज्वू बिदवी’ (Maibra Jwu Bidwi) या ‘मैबरा ज्वू बिडवी’ (Maibra Zwu Bidwi) भी कहा जाता है।
बोडो जोऊ गिशी 

(Bodo Jou Gishi)

एक एवं पारंपरिक चावल आधारित मादक पेय है। माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति का संबंध भगवान शिव से है एवं इसे औषधीय पेय माना जाता है।

पारंपरिक खाद्य पदार्थ

  • पारंपरिक खाद्य उत्पादों के संघ (Association of Traditional Food Products) ने चार GI टैग के लिए सफलतापूर्वक आवेदन किया।
बोडो नेफम 

(Bodo Napham)

एक किण्वित मछली का व्यंजन 2-3 महीने के लिए एक सीलबंद कंटेनर में अवायवीय रूप से तैयार किया जाता है। 

  • उच्च वर्षा एवं सीमित मछली की उपलब्धता के कारण किण्वन एक पसंदीदा संरक्षण विधि है।
बोडो ओंडला 

(Bodo Ondla)

चावल के पाउडर से बनी करी, जिसमें लहसुन, अदरक, नमक एवं क्षार का स्वाद होता है।
बोडो ग्वाखा 

(Bodo Gwkha)

इसे ‘ग्वका ग्वखी’ (Gwka Gwkhi) भी कहा जाता है, जिसे बिविसागु उत्सव (Bwisagu Festival) के दौरान तैयार किया जाता है।

बोडो नारजी 

(Bodo Narzi)

जूट के पत्तों से बना एक अर्द्ध-किण्वित व्यंजन, जो ओमेगा 3, विटामिन, कैल्शियम एवं मैग्नीशियम से भरपूर होता है।

पारंपरिक परिधान: बोडो अरोनाई (Bodo Aronai)

  • ‘एसोसिएशन ऑफ ट्रेडिशनल बोडो वीवर्स’ (Association of Traditional Bodo Weavers) के आवेदन के बाद एक छोटे पारंपरिक कपड़े (1.5-2.5 मीटर लंबा, 0.5 मीटर चौड़ा) को GI टैग प्राप्त हुआ।
  • बोडो परंपराएँ नृत्य, संगीत, त्योहारों एवं कपड़ों में प्रतिबिंबित होती हैं, जिनमें पेड़, फूल, पहाड़ तथा पक्षियों सहित प्रकृति से प्रेरित डिजाइन शामिल हैं।

भौगोलिक संकेतक (GI) टैग क्या है?

  • भौगोलिक संकेत (GI) टैग उन उत्पादों के लिए एक लेबल है, जो एक विशिष्ट स्थान से एवं उस क्षेत्र से जुड़े विशेष गुण से संबंधित होते हैं।
  • सुरक्षा का प्रकार: यह उत्पाद की उत्पत्ति के आधार पर उसकी गुणवत्ता एवं प्रतिष्ठा की रक्षा करने के कानूनी अधिकार के रूप में कार्य करता है।
  • कानूनी ढाँचा
    • अंतरराष्ट्रीय मान्यता: GI टैग को पेरिस कन्वेंशन एवं ट्रिप्स (TRIPS) समझौते जैसे वैश्विक समझौतों के तहत स्वीकार किया जाता है।
  • उत्पादों के प्रकार
    • विस्तृत शृंखला: GI टैग विभिन्न उत्पादों जैसे खाद्य पदार्थों, कृषि उत्पादों, वाइन, हस्तशिल्प एवं अन्य को प्रदान किए जाते हैं।
    • विशिष्ट गुण: उत्पाद में उसके क्षेत्र से जुड़े अद्वितीय गुण या विशेषताएँ होनी चाहिए।

असम से संबंधित अन्य GI टैग उत्पाद 

  • असम (रूढ़िवादी) लोगो
  • असम का मुगा सिल्क (लोगो)
  • जोहा राइस
  • बोका चौल (Boka Chaul)
  • मुगा रेशम (Muga Silk)
  • असम कार्बी आंगलोंग अदरक (Assam Karbi Anglong Ginger)
  • तेजपुर लीची 
  • काजी नेमु (Kaji Nemu)
  • चोकुवा चावल (Chokuwa Rice)
  • गमोसा (Gamosa)

GI टैग के लाभ

  • दुरुपयोग रोकता है: यह दूसरों को उन उत्पादों के लिए लेबल का उपयोग करने से रोकता है, जो निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करते हैं।
  • विशिष्ट उपयोग: केवल अधिकृत उत्पादक ही अपने उत्पादों के लिए GI टैग का उपयोग कर सकते हैं।
  • नकल से सुरक्षा: उत्पाद की नकल या नकली संस्करण से बचाता है।
  • कानूनी कार्रवाई: निर्माता अपने GI अधिकारों का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कदम उठा सकते हैं।

बोडो समुदाय

  • उत्पत्ति: बोरो (या बोडो) भारत के असम का एक नृजातीय समूह है।
  • भौगोलिक विस्तार: वे मुख्य रूप से असम के बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र में रहते हैं, लेकिन असम एवं मेघालय के अन्य जिलों में भी मौजूद हैं।

पहचान एवं भाषा

  • अनुसूचित जनजाति का दर्जा: संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में ‘बोरो’ एवं ‘बोरोकाचारी’ (Borokachari) के रूप में सूचीबद्ध।
  • बोरो भाषा: तिब्बती-बर्मन परिवार की एक बोरो-गारो भाषा, जिसे भारत की 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • द्विभाषावाद: अधिकांश बोरो असमिया को दूसरी भाषा के रूप में संवाद के लिए उपयोग करते हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • प्रागैतिहासिक निवासी: बोरो एवं अन्य बोडो-कछारी समूह 3,000 वर्ष पहले स्थानांतरित हुए थे।
  • व्यवसाय: मुख्य रूप से पारंपरिक सिंचाई प्रणालियों वाले किसान, जिन्हें ‘डोंग’ (Dong) कहा जाता है।

विशेष स्थिति

  • मैदानी जनजाति: भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत मान्यता प्राप्त है।
  • स्वायत्त क्षेत्र: बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र में उनके पास विशेष शक्तियाँ हैं।

जन योजना अभियान 2024 

(People’s Plan Campaign 2024)

केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय ने जन योजना अभियान 2024: सबकी योजना सबका विकास (People’s Plan Campaign 2024-Sabki Yojana Sabka Vikas) पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया, जिसने अभियान के राष्ट्रव्यापी शुभारंभ के लिए मंच तैयार किया।

जन योजना अभियान के बारे में

  • यह वर्ष 2019 में केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय द्वारा ग्रामीण भारत में भागीदारी योजना को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई एक वार्षिक पहल है, जो विकेंद्रीकृत शासन के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
  • उद्देश्य: यह सुनिश्चित करता है कि पंचायती राज संस्थाएँ (PRIs) स्थानीय समुदायों को ग्राम पंचायत विकास योजनाओं (Gram Panchayat Development Plans- GPDPs) का मसौदा तैयार करने में शामिल करके विकास प्रक्रिया का नेतृत्व करें।
  • वर्ष 2024 का यह अभियान पिछले प्रयासों पर आधारित है, जिसमें सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को ग्रामीण विकास रणनीतियों में एकीकृत करने पर मुख्य ध्यान दिया गया है।

अभियान के प्रमुख घटक

  • ग्राम पंचायत विकास योजना (GPDP): पंचायतों द्वारा विकसित समुदाय संचालित योजना, जो स्थानीय प्राथमिकताओं को प्रतिबिंबित करती है और सतत् विकास लक्ष्य लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करती है।
  • विलेज प्रोस्परिटी एंड रिजिलियंस प्लान (Village Prosperity and Resilience Plan- VPRP): स्वयं सहायता समूहों (SHGs) द्वारा तैयार की गई यह योजना गरीबी उन्मूलन से लेकर सामुदायिक क्षमता एवं समृद्धि पर ध्यान केंद्रित करती है। 
  • विशेष ग्राम सभाएँ: विकास योजनाओं पर चर्चा करने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय निवासियों की भागीदारी के साथ नियमित बैठकों का आयोजन।
  • प्रौद्योगिकी का एकीकरण: स्वामित्व मानचित्र जैसे AI/ML आधारित नियोजन उपकरणों का उपयोग, जो ग्रामीण बुनियादी ढाँचे, जल निकायों और सौर क्षमता के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे संसाधन आवंटन तथा परियोजना कार्यान्वयन में सुधार करने में मदद मिलती है।

नेपाल, भारत, बांग्लादेश ने सीमा पार विद्युत व्यापार के लिए त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए 

भारत, नेपाल और बांग्लादेश ने भारत के पॉवर ग्रिड के माध्यम से नेपाल से बांग्लादेश को 40 मेगावाट विद्युत निर्यात करने के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

समझौते के मुख्य बिंदु

  • निर्यात की समयसीमा: नेपाल प्रतिवर्ष 15 जून से 15 नवंबर तक बांग्लादेश को अधिशेष विद्युत का निर्यात करेगा।
  • प्रारंभिक चरण: पहले चरण में, नेपाल भारत के माध्यम से बांग्लादेश को 40 मेगावाट जलविद्युत निर्यात करेगा।
  • आर्थिक लाभ: नेपाल को विद्युत निर्यात से प्रतिवर्ष लगभग 9.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर की आय होने की उम्मीद है।
  • शामिल पक्ष: NEA के कार्यकारी निदेशक, NTPC विद्युत व्यापार निगम के CEO और बांग्लादेश विद्युत विकास बोर्ड के अध्यक्ष के बीच काठमांडू में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।

संदर्भ

पर्यावरण अनुकूल उत्पादों की लेबलिंग पर अपनी प्रमुख योजना को नए सिरे से तैयार करते हुए, हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अपने मसौदा नियमों को अधिसूचित किए जाने के लगभग एक वर्ष बाद, इकोमार्क नियम, 2024 (Ecomark Rules, 2024) को अधिसूचित किया है।

इकोमार्क नियम, 2024 (Ecomark Rules, 2024)

  • केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इकोमार्क नियमों को अधिसूचित कर दिया है।

  • संरेखण: ये नियम वर्ष 2021 में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए LiFE मिशन (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) का हिस्सा हैं।
  • प्रतिस्थापन: ये नियम वर्ष 1991 की इकोमार्क योजना के स्थान पर लाए गए हैं।
  • इन नियमों को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के साथ साझेदारी में लागू किया जाएगा।

मुख्य उद्देश्य

  • हरित उद्योगों को बढ़ावा देना: यह पहल पर्यावरण अनुकूल उत्पादों के उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहित करती है, तथा स्थिरता और ऊर्जा/संसाधन दक्षता को बढ़ावा देती है।
  • उपभोक्ता जागरूकता: इकोमार्क का उद्देश्य उपभोक्ताओं को कम पर्यावरणीय प्रभाव वाले उत्पादों की पहचान करके संसूचित खरीद निर्णय लेने में मदद करना है।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकोनॉमी): ये नियम संसाधन संरक्षण का समर्थन करते हैं और ‘LiFE’ (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) सिद्धांत के साथ संरेखित करते हुए पुनर्चक्रण एवं अपशिष्ट में कमी को बढ़ावा देते हैं।

इकोमार्क के लिए पात्रता मानदंड

  • उत्पादों द्वारा प्रदूषण कम होना चाहिए, अपशिष्ट को न्यूनतम करना चाहिए या पर्यावरणीय उत्सर्जन को समाप्त करना चाहिए।
  • पुनर्चक्रणीयता: पुनर्चक्रित सामग्रियों से बने उत्पादों या पुनर्चक्रणीय उत्पादों को प्राथमिकता देना।
  • संसाधनों का संरक्षण: अनवीकरणीय ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को कम करना।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: कच्चे माल की सोर्सिंग, उत्सर्जन और पुनर्चक्रित या हानिरहित पदार्थों के उपयोग सहित उत्पादन प्रक्रिया पर विचार करना।

इकोमार्क के अंतर्गत आने वाले उत्पाद

  • सौंदर्य प्रसाधन: स्किन पाउडर, जिसमें शिशुओं के लिए पाउडर भी शामिल है; टूथपेस्ट पाउडर एवं टूथपेस्ट, स्किन क्रीम, बालों का तेल, शैंपू, साबुन, बालों का जेल, नेल पॉलिश, आफ्टरशेव लोशन, शेविंग क्रीम, कॉस्मेटिक पेंसिल, लिपस्टिक, आदि।
  • साबुन और डिटर्जेंट: पर्यावरण के अनुकूल विकल्प।
  • खाद्य पदार्थ: खाद्य तेल, चाय, कॉफी।
  • इलेक्ट्रिक/इलेक्ट्रॉनिक सामान: टीवी, रेफ्रिजरेटर, फूड मिक्सर, गीजर, टोस्टर, पंखे, आदि।
  • वस्त्र: पर्यावरण के अनुकूल कपड़े एवं परिधान।

आवेदन एवं सत्यापन प्रक्रिया

  • आवेदन: निर्माताओं को इकोमार्क के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) में आवेदन करना होगा। 
  • सत्यापन: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) या नामित सत्यापनकर्ता विस्तृत रिपोर्ट के माध्यम से अनुपालन का आकलन करेगा। 
  • वैधता: इकोमार्क तीन वर्ष या मानदंड में बदलाव होने तक वैध रहेगा। इसे नवीनीकृत किया जा सकता है।

अनुपालन एवं निगरानी

  • वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना: इकोमार्क के धारकों को प्रत्येक वर्ष 31 मई तक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
  • गलत जानकारी के लिए दंड: यदि गलत जानकारी प्रदान की जाती है तो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) मार्क को निलंबित या रद्द कर सकता है, हालाँकि धारक ऐसे निर्णयों के विरुद्ध अपील कर सकता है।

संस्थागत ढाँचा

  • संचालन समिति: पर्यावरण सचिव की अध्यक्षता में, जिसमें विभिन्न मंत्रालयों, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR), भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के सदस्य शामिल हैं।
  • भूमिका: समिति उत्पादों की सिफारिश करेगी, समय-समय पर मानदंडों की समीक्षा करेगी, तथा पर्यावरणीय प्रभावों के सत्यापन के लिए अनुसंधान को समर्थन देगी।

इकोमार्क का महत्त्व

  • सतत् विकास को बढ़ावा: इकोमार्क औद्योगिक प्रथाओं को सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के साथ संरेखित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • पर्यावरण के अनुकूल नवाचारों को प्रोत्साहित करता है: उद्योगों को पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार प्रौद्योगिकियों और प्रक्रियाओं की ओर प्रेरित करता है, जो संसाधनों की खपत तथा प्रदूषण को कम करते हैं।
  • पर्यावरणीय क्षरण को कम करता है: पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों के उत्पादन को प्रोत्साहित करके, प्रदूषण, अपशिष्ट और विभिन्न क्षेत्रों में कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में सहायता  करता है।
  • उपभोक्ताओं को सशक्त बनाता है: उपभोक्ताओं को सूचित एवं प्रभावी निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाता है, जिससे वे पारंपरिक उत्पादों की तुलना में हरित उत्पादों को चुनकर पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे सकें।
  • राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण प्रतिबद्धताओं का समर्थन करता है: ये नियम पेरिस समझौते और जैव विविधता संरक्षण पहल जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों के तहत जलवायु संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करते हैं।
  • हरित विनिर्माण को प्रोत्साहित करता है: निर्माताओं को पर्यावरण के अनुकूल उत्पादन प्रक्रियाओं की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
    • भारत में हरित उद्योगों के विकास को प्रोत्साहित करता है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB)

  • गठन: इसका गठन सितंबर 1974 में जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम, 1974 के तहत किया गया था।
  • शक्तियाँ: इसे वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत शक्तियाँ और कार्य भी सौंपे गए हैं।
  • प्रमुख कार्य
    • जल प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और कमी करके राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में नदियों तथा कुओं की सफाई को बढ़ावा देना, और
    • देश में वायु की गुणवत्ता में सुधार करना और वायु प्रदूषण को रोकना, नियंत्रित करना या कम करना।
    • यह पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी प्रदान करता है।

इकोमार्क योजना (Ecomark Scheme

  • लॉन्च: इकोमार्क योजना की शुरुआत भारत सरकार ने वर्ष 1991 में की थी।
  • प्रशासन: इसका प्रशासन भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा किया जाता है, जिसकी निगरानी केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा की जाती है।
  • प्रतीक: इकोमार्क का प्रतीक ‘मटका’ (मिट्टी का बर्तन) है, जो भारतीय बाजार में पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों का प्रतिनिधित्व करता है।
  • स्वैच्छिक आधार: यह योजना स्वैच्छिक रूप से संचालित होती है, गैर-बाध्यकारी, जिससे निर्माता लेबल के लिए आवेदन कर सकते हैं।
  • मानकों का अनुपालन: ECO लोगो और ISI मार्क दोनों प्रदर्शित करने वाले उत्पाद यह दर्शाते हैं कि वे पर्यावरण मानदंडों के साथ-साथ प्रासंगिक भारतीय मानकों में निर्दिष्ट गुणवत्ता मानकों को पूरा करते हैं।

मिशन LiFE (Mission LiFE) 

  • मिशन LiFE का शुभारंभ प्रधानमंत्री द्वारा 20 अक्टूबर, 2022 को किया गया।
  • यह पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली (LiFEStyle For Environment) को बढ़ावा देता है, जो विचारहीन एवं बेकार उपभोग के बजाय सचेत और उद्देश्यपूर्ण उपयोग पर केंद्रित है।
  • मिशन LiFE की अवधारणा, जिसका अर्थ है ‘पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली”, पहली बार प्रधानमंत्री द्वारा 1 नवंबर, 2021 को ग्लासगो में COP-26 सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया था।
  • उद्देश्य
    • ‘उपयोग और निपटान’ वाली अर्थव्यवस्था से सक्रिय एवं प्रभावी उपभोग पर आधारित एक चक्रीय अर्थव्यवस्था में स्थानांतरित करना।
    • लोगों को एक स्थायी और पर्यावरण के प्रति जागरूक तरीके से जीने के लिए प्रोत्साहित करना।
    • वर्ष 2022 और 2028 के बीच पर्यावरण की रक्षा तथा संरक्षण के लिए व्यक्तिगत एवं सामूहिक कार्रवाई करने के लिए कम-से-कम 1 बिलियन लोगों को प्रेरित करना।
  • यह P3 मॉडल यानी ‘प्रो प्लैनेट पीपल’ की अवधारणा को बढ़ावा देता है।
  • यह ‘ग्रह की जीवनशैली, ग्रह के लिए और ग्रह द्वारा’ (Lifestyle of the planet, for the planet and by the planet) के मूल सिद्धांतों पर कार्य करता है।

संदर्भ 

हाल ही में जारी ‘आल ओडिशा लेपर्ड एस्टीमेशन 2024’ के अनुसार, राज्य में तेंदुओं की आबादी 668 से 724 के मध्य होने का अनुमान है।

आल ओडिशा लेपर्ड एस्टीमेशन 2024’ 

  • मुख्य निष्कर्ष 
    • तेंदुए की आबादी में वृद्धि: ओडिशा राज्य में तेंदुओं की आबादी वर्ष 2022 से 2024 के मध्य 22% बढ़कर 568 से 696 हो गई है।
    • वर्ष 2024 में तेंदुओं की आबादी का अनुमान: ‘आल ओडिशा लेपर्ड एस्टीमेशन, 2024’ में 668 से 724 के मध्य तेंदुए की संख्या बताई गई है, जिसमें औसत संख्या 696 माना जा रहा है।
    • पिछली गणना से तुलना: वर्ष 2018 में, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NCTA) ने ओडिशा में तेंदुओं की आबादी 760 होने का अनुमान लगाया था; हालाँकि, वर्ष 2022 तक यह संख्या घटकर 568 रह गई थी।
    • राज्यव्यापी निगरानी: यह आकलन 47 वन प्रभागों में क्षेत्र सर्वेक्षण और कैमरा ट्रैप दोनों का उपयोग करके किया गया।
    • मेलानिस्टिक तेंदुए (Melanistic Leopards): ओडिशा में दुर्लभ मेलानिस्टिक तेंदुए (ब्लैक पैंथर) की संख्या भी दर्ज की गई है।
      • मेलेनिज्म (Melanism) तेंदुओं में एक आम लक्षण है, जिसके कारण उनकी पूरी त्वचा एवं उस पर पड़े धब्बे काले हो जाते हैं। यह एगौटी सिग्नलिंग प्रोटीन (Agouti Signalling Protein-ASIA) जीन में एक अप्रभावी उत्परिवर्तन के कारण होता है।
  • आबादी का आकलन करने संबंधी तकनीकें
    • कैमरा ट्रैप: तेंदुओं की पहचान कैमरा ट्रैप के माध्यम से की गई, जिसमें उनके अद्वितीय रोसेट पैटर्न (Rosette Patterns) पर ध्यान केंद्रित किया गया।
      • इस तकनीक का राष्ट्रीय तेंदुआ संख्या आकलन में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
    • क्षेत्र सर्वेक्षण: तेंदुए की उपस्थिति का पता लगाने के लिए पैरों के निशान, मल, खरोंच वाले निशान एवं उनकी आवाजों सहित अप्रत्यक्ष साक्ष्य का उपयोग किया गया।
  • महत्त्वपूर्ण आवास
    • सिमलीपाल  टाइगर रिजर्व: ओडिशा राज्य के इस टाइगर रिजर्व में तेंदुओं की सबसे बड़ी आबादी पाई जाती है। यह परिदृश्य हडागढ़ और कुलडीहा जैसे आस-पास के वन्यजीव अभयारण्यों में तेंदुओं के विस्तार के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • सतकोसिया टाइगर रिजर्व: राज्य के सतकोसिया परिदृश्य में तेंदुओं की दूसरी सबसे बड़ी आबादी पाई जाती है।
    • हीराकुंड वन्यजीव प्रभाग: देबरीगढ़ वन्यजीव अभयारण्य सहित, इस वन्यजीव प्रभाग में तेंदुओं की एक महत्त्वपूर्ण आबादी पाई जाती है।
    • गैर-संरक्षित क्षेत्रों में तेंदुओं की उपस्थिति: 45% तेंदुए प्रादेशिक वन प्रभागों में संरक्षित क्षेत्रों के बाहर रहते हैं।

भारत में तेंदुओं की आबादी: तेंदुए की आबादी का अनुमान (वर्ष 2022)

  • जारी: वर्ष 2024 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा जारी।
  • शामिल संगठन: राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII), राज्य वन विभागों के साथ।
  • सर्वेक्षण का कवरेज: तेंदुए की आबादी उनके अनुमानित निवास स्थान के लगभग 70% पर केंद्रित थी और इसमें भारत के 18 राज्य शामिल थे।
    • इस आकलन में बाघ से संबंधित 18 राज्यों के अंतर्गत बाघ संरक्षण के मुख्य क्षेत्रों  (वन्य आवासों) को शामिल किया गया है।
    • उच्च हिमालयी परिदृश्य (2000 मीटर से ऊपर) और गैर-वनीय क्षेत्रों को इसमें शामिल नहीं किया गया था।
  • कार्यप्रणाली: तेंदुओं की आबादी का अनुमान लगाने के लिए, फोटो-कैप्चर, निवास स्थान और मानवजनित कारकों पर स्थानिक डेटा के साथ संयोजित किया गया, जिसमें संभावना-आधारित स्थानिक रूप से स्पष्ट कैप्चर मार्क-रिकैप्चर (Spatially Explicit Capture Mark Recapture) सहसंयोजक ढाँचे का उपयोग किया गया।
  • संख्या अनुमान: भारत में 13,874 तेंदुए मौजूद हैं, जो वर्ष 2018 के अनुमान (12,852) की तुलना में एक स्थिर संख्या है। 
  • भौगोलिक रुझान: मध्य भारत में इनकी संख्या स्थिर या थोड़ी बढ़ रही है, हालाँकि शिवालिक पहाड़ियों एवं गंगा के मैदानों जैसे क्षेत्रों में इनकी संख्या में गिरावट आ रही है।
    • चयनित क्षेत्रों में इनकी आबादी वार्षिक रूप से 1.08% की दर से बढ़ रही है।
  • राज्यवार वितरण: 3,907 (वर्ष 2018 में 3421 की संख्या) तेंदुओं के साथ, मध्य प्रदेश में देश में सबसे अधिक तेंदुओं की आबादी है। इसके बाद महाराष्ट्र (वर्ष 2022 में 1985 की संख्या; वर्ष 2018 में 1,690 की संख्या), कर्नाटक (वर्ष 2022 में 1,879 की संख्या; वर्ष 2018 में 1,783 की संख्या) और तमिलनाडु (वर्ष 2022 में 1,070 की संख्या; वर्ष 2018 में 868 की संख्या) का स्थान है।
  • पर्यावरण: तेंदुओं की सर्वाधिक संख्या वाले बाघ अभयारण्य या स्थान सतपुड़ा (आंध्र प्रदेश), पन्ना (मध्य प्रदेश) और नागार्जुनसागर श्रीशैलम् (आंध्र प्रदेश) हैं।
  • घटती संख्या: अरुणाचल प्रदेश, असम और पश्चिम बंगाल में संयुक्त रूप से 150% की वृद्धि दर्ज की गई और और इन राज्यों में तेंदुओं की संख्या 349 हो गई।
    • उत्तराखंड में बिग कैट की संख्या में 22% की गिरावट दर्ज की गई, जो संभवतः अवैध शिकार और मानव-पशु संघर्ष के कारण हुई।

भारतीय तेंदुए (Indian Leopard)

  • वैज्ञानिक नाम: पैंथेरा पार्डस फुस्का (Panthera Pardus Fusca) 
  • भारतीय तेंदुआ, तेंदुआ की एक उप-प्रजाति है, जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से पाई जाती है।
  • वे बिग कैट में सबसे छोटी प्रजाति होते हैं।
  • वे विभिन्न प्रकार के वातावरणों के अनुकूल होने की अपनी क्षमता के लिए जाने जाते हैं।
  • वे शक्तिशाली और फुर्तीले शिकारी है, जो पेड़ों पर चढ़ने और अपने शिकार को सुरक्षित स्थान पर ले जाने में सक्षम होते हैं।

संरक्षण स्थिति

  • IUCN की रेड लिस्ट में: सुभेद्य (Vulnerable)
  • CITES की सूची में:  परिशिष्ट I  (Appendix I)
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में: अनुसूची I (Schedule I) 

संदर्भ

नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में, पर्ड्यू विश्वविद्यालय (Purdue University) के शोधकर्ताओं ने निर्वात में फ्लोरोसेंट नैनोडायमंड्स (Fluorescent Nanodiamonds- FND) को सफलतापूर्वक उत्तोलित कर अल्ट्रा-हाई स्पीड पर घूर्णित किया है, जिससे विभिन्न उद्योगों में नए अनुप्रयोगों का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

फ्लोरोसेंट नैनोडायमंड्स (FND)

  • परिभाषा: फ्लोरोसेंट नैनोडायमंड (FND) कार्बन नैनोकणों से बने नैनोमीटर आकार के हीरे हैं।
  • फ्लोरोसेंट नैनोडायमंड्स (FND) की मुख्य विशेषताएँ 
    • उत्पादन प्रक्रिया: इन्हें उच्च तापमान और उच्च दाब प्रक्रिया के माध्यम से निर्मित किया गया है।
    • स्थिरता: ये प्रकाश में स्थिर होते हैं तथा प्राणियों के लिए गैर-विषैले होते हैं।
    • प्रतिदीप्ति: वे 10 नैनोसेकंड से अधिक का लंबा प्रतिदीप्ति जीवनकाल (Fluorescence Lifespan) प्रदर्शित करते हैं, जो क्वांटम डॉट्स से बेहतर प्रदर्शन करता है।
      • लंबे समय तक विकिरण के संपर्क में रहने पर FNDs परिवर्तित नहीं होते हैं।
      • प्रतिदीप्ति कुछ पदार्थों का वह गुण है, जो उच्च आवृत्ति के प्रकाश से विकिरणित होने पर कम आवृत्ति का प्रकाश उत्सर्जित करता है।
  • FND के अनुप्रयोग
    • चिकित्सा निदान: AND कोशिकीय और आणविक दृश्य के लिए हाई-रिजॉल्यूशन इमेजिंग में मदद करता है।
      • कोशिकाओं की निगरानी: जीव विज्ञान में, वैज्ञानिक लंबी अवधि तक कोशिकाओं एवं उनके जनन पर नजर रखने के लिए FNDs का उपयोग करते हैं।
      • उन्नत इमेजिंग तकनीकें: FND विभिन्न इमेजिंग विधियों के बीच सहसंबंध को बेहतर बनाती हैं, जिससे नमूनों का व्यापक विश्लेषण संभव हो पाता है। 
    • औद्योगिक अनुप्रयोग
      • जाइरोस्कोप (Gyroscopes): FND के गुणों का उपयोग रोटेशन को मापने के लिए उन्नत जाइरोस्कोप बनाने के लिए किया जा सकता है।
      • उन्नत गुणों के लिए डोपिंग: नाइट्रोजन मिलाकर FNDs को संशोधित करने से क्वांटम प्रौद्योगिकी में अनुप्रयोगों के लिए उनकी कार्यक्षमता में सुधार हो सकता है।
      • तापमान संवेदन (Temperature Sensing): जैविक और औद्योगिक परिवेश में सूक्ष्म स्तर पर सटीक तापमान माप के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।
      • संवेदनशील एक्सेलेरोमीटर (Sensitive Accelerometers): FND, त्वरण के दौरान में सूक्ष्म परिवर्तनों का पता लगा सकते हैं, जिससे वे विभिन्न उद्योगों में उच्च-मूल्य वाले सेंसरों के लिए उपयुक्त बन जाते हैं।
    • क्वांटम कंप्यूटिंग: FND को स्पिन क्यूबिट्स की मेजबानी के लिए तैयार किया जा सकता है, जो क्वांटम कंप्यूटिंग प्रौद्योगिकियों के विकास में योगदान देगा।
    • बायोसेंसिंग: FND का उपयोग पर्यावरण प्रदूषकों या बायोमार्कर्स का पता लगाने के लिए किया जा सकता है, जो पारिस्थितिकी एवं स्वास्थ्य निगरानी में योगदान देता है।

FND से संबंधित अवधारणाएँ

  • क्वांटम स्पिन: क्वांटम स्पिन इलेक्ट्रॉनों जैसे सूक्ष्म कणों का एक मौलिक गुण है, जिसे एक प्रकार का आंतरिक ‘घूर्णन’ माना जा सकता है।
    • एक इलेक्ट्रॉन की स्पिन दो मुख्य दिशाओं अर्थात् ‘ऊपर’ और ‘नीचे’ की ओर इंगित कर सकती है।
  • बेरी चरण (Berry Phase): बेरी चरण क्वांटम यांत्रिकी में एक अवधारणा है, जो एक ऐसी घटना का वर्णन करती है, जहाँ एक कण की स्थिति परिवर्तित हो जाती है क्योंकि वह अंतरिक्ष में एक बंद पथ पर घूर्णन करता है।
    • क्वांटम यांत्रिकी में, जब एक इलेक्ट्रॉन विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है और अपनी मूल अवस्था में लौटता है, तो उसका तरंग फलन एक अतिरिक्त चरण, बेरी चरण, ग्रहण कर सकता है।
    • शोधकर्त्ताओं द्वारा यह दर्शाया गया कि वे घूर्णन के कारण स्पिन क्यूबिट के बेरी चरण को माप सकते हैं, भविष्य में यह प्रक्रिया नए संदर्भों में FND के उपयोग के लिए प्रभावी हो सकती है।
  • नाइट्रोजन वैकेंसी (Nitrogen Vacancy) केंद्र: NV केंद्र हीरे के क्रिस्टल में विशिष्ट दोष हैं, जहाँ एक नाइट्रोजन परमाणु एक कार्बन परमाणु को प्रतिस्थापित करता है, जिससे लैटिस (Lattice) संरचना में एक रिक्ति स्थान (विलुप्त कार्बन परमाणु) उत्पन्न हो जाता है। 
    • यह संरचना अद्वितीय इलेक्ट्रॉनिक गुणों की अनुमति देती है।

संदर्भ 

ब्रिटेन ने चागोस द्वीपसमूह की संप्रभुता मॉरीशस को सौंपने पर सहमति व्यक्त की है, जिससे यूनाइटेड किंगडम के अंतिम अफ्रीकी उपनिवेश पर लंबे समय से चल रहा विवाद समाप्त हो गया है।

  • यह घटना अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) द्वारा दिए गए उस निर्णय के बाद हुई, जिसमें कहा गया था कि ब्रिटेन ने मॉरीशस को स्वतंत्रता देने से पूर्व चागोस द्वीपसमूह को अवैध रूप से मॉरीशस से पृथक कर दिया था।

चागोस द्वीपसमूह की पृष्ठभूमि

  • 19वीं शताब्दी: चागोस द्वीपसमूह पर मॉरीशस का शासन था, जो उस समय ब्रिटिश उपनिवेश का भाग था।
  • वर्ष 1968 में मॉरीशस को स्वतंत्रता प्राप्त हुई: वर्ष 1968 में मॉरीशस को स्वतंत्रता प्राप्त हो गई, लेकिन चागोस द्वीपसमूह ब्रिटिश शासन के नियंत्रण में रहा तथा ब्रिटेन ने इसे ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र (British Indian Ocean Territory- BIOT) के रूप में संदर्भित किया। 

  • सामरिक महत्त्व: इस द्वीपसमूह में डिएगो गार्सिया एयरबेस भी शामिल है, जो ब्रिटेन और अमेरिका दोनों के लिए सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।
  • वर्ष 1966 में डिएगो गार्सिया को लीज पर देना: ब्रिटेन ने चागोस द्वीपसमूह के सबसे बड़े द्वीप डिएगो गार्सिया को संयुक्त राज्य अमेरिका को लीज पर दे दिया, जो इस क्षेत्र में एक सैन्य अड्डा बनाना चाहता था।
  • हालिया घटनाक्रम: मौजूदा समझौता वर्ष 2022 में शुरू हुई 13 दौर की वार्ताओं के बाद हुआ है और यह वर्ष 2019 और 2021 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ), संयुक्त राष्ट्र महासभा और समुद्री कानून के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण (ITLOS) द्वारा मॉरीशस के संप्रभुता के दावे का समर्थन करने वाले फैसलों के बाद आया है।
  • संधि के प्रावधान: इस संधि के हिस्से के रूप में, ब्रिटेन  डिएगो गार्सिया पर UK-US सैन्य अड्डे पर नियंत्रण बनाए रखेगा, लेकिन चागोस द्वीपसमूह के बाकी हिस्से को मॉरीशस को वापस कर देगा।

चागोस द्वीपसमूह 

  • अवस्थिति: चागोस द्वीपसमूह भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में, मध्य हिंद महासागर में अवस्थित है।

  • प्रमुख द्वीप
    • डिएगो गार्सिया एटाॅल (Diego Garcia atoll)
    • डेंजर आइलैंड (Danger Island)
    • एग्मोंट आइलैंड्स (Egmont Islands)
    • ईगल आइलैंड्स (Eagle Islands)
    • नेल्सन आइलैंड (Nelsons Island)
    • पेरोस बानहोस एटाॅल (Peros Banhos atoll)
  • जलवायु: यहाँ की जलवायु उष्णकटिबंधीय समुद्री जलवायु है। 
  • यह द्वीप पूर्वी दिशा में एक अर्द्धवृत्ताकार आकृति का निर्माण करता हैं, जिसमें डिएगो गार्सिया सबसे बड़ा एवं सबसे दक्षिणी द्वीप है, जो 30 वर्ग किमी. के क्षेत्र को कवर करता है।
  • इस द्वीप का सबसे उच्च स्थल डिएगो गार्सिया पर समुद्र के किनारे स्थित एक टीला है, जिसकी ऊँचाई केवल 9 मीटर है।

संदर्भ

स्वच्छ भारत मिशन 2.0 (Swachh Bharat Mission 2.0) के अंतर्गत भारत के लीगेसी वेस्ट प्रोजेक्ट ने वर्ष 2024 के मध्य तक केवल 19.43% बड़ी डंप साइट्स का ही सुधार किया है।

स्वच्छ भारत मिशन (Swachh Bharat Mission- SBM) के संबंध में 

  • शुरुआत: केंद्र सरकार द्वारा 2 अक्टूबर, 2014 को शुरू किया गया, जिसका लक्ष्य महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर, 2019 तक खुले में शौच को समाप्त करना और खुले में शौच मुक्त (Open Defecation Free-ODF) गाँव बनाना है।

स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 (SBM-U 2.0) के संबंध में

  • लॉन्च: वर्ष 2026 तक सभी शहरों को ‘कचरा मुक्त’ बनाने के लिए पाँच वर्ष की पहल के रूप में वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया।
  • उद्देश्य: 4,372 शहरी स्थानीय निकायों (ULB) में ODF स्थिति बनाए रखना।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय (MoHUA)।
  • मुख्य विजन: 100% स्रोत पृथक्करण, डोर-टू-डोर अपशिष्ट संग्रह और सभी अपशिष्ट अंशों के वैज्ञानिक प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना।
    • वैज्ञानिक लैंडफिल के लिए प्रावधान, ताकि अनुपचारित निष्क्रिय अपशिष्ट का सुरक्षित तरीके से निपटान किया जा सके और नई डंपसाइटों के विकसित होने को रोकने के लिए अस्वीकृत अपशिष्टों को संसाधित किया जा सके।
    • स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 के तहत, वर्ष 2026 तक सभी पुराने लैंडफिल को साफ किया जाना है।

  • लीगेसी डंपसाइट रेमेडिएशन (Legacy Dumpsite Remediation)
    • SBM-U 2.0 में सभी पुरानी अपशिष्ट डंपसाइटों को सुधार कर उन्हें हरित क्षेत्र में बदलने की योजना शामिल है। 
    • इस सुधार प्रयास के लिए कुल 3,226 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता स्वीकृत की गई है।

लीगेसी वेस्ट (Legacy Waste) या पुराना अपशिष्ट (Aged Waste) उस अपशिष्ट को कहते हैं, जो समय के साथ लैंडफिल या अन्य निपटान स्थलों पर जमा हो गया है और जिसका उचित तरीके से प्रसंस्करण या उपचार नहीं किया गया है।

लीगेसी वेस्ट डंपसाइट्स (Legacy Waste Dumpsites) के संबंध में

  • परिभाषा: लीगेसी डंपसाइट वे अपशिष्ट निपटान स्थल हैं, जहाँ कई वर्षों से अवैज्ञानिक और अनियंत्रित तरीके से ठोस अपशिष्ट जमा हो रहा है।
    • उदाहरण: मुंबई का देवनार डंपसाइट (Deonar Dumpsite), अहमदाबाद में पिराना साइट (Pirana Site), दिल्ली का गाजीपुर और मुंबई में भलस्वा साइट (Bhalaswa Sites), चेन्नई का कोडुंगैयुर साइट (Kodungaiyur Site) आदि।
    • उचित अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं की कमी के कारण ये डंपसाइट बड़े ‘कचरे के पहाड़’ (Garbage Hills) बन गई हैं।
  • लीगेसी वेस्ट के घटक: इसमें जैविक अपशिष्ट, प्लास्टिक, धातु और खतरनाक सामग्रियों का मिश्रण शामिल है, जो महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न करते हैं।
  • लीगेसी वेस्ट या पुराने अपशिष्ट के उपचार के तरीके
    • साइंटिफिक कैपिंग; आमतौर पर वैज्ञानिक रूप से निर्मित लैंडफिल (इंजीनियर्ड लैंडफिल / सैनिटरी लैंडफिल) पर लागू होता है। इसमें निक्षालितक (Leachate) और गैस के उत्सर्जन को रोकने के लिए सामग्री की परतों के साथ लैंडफिल को कवर करना शामिल है।
    • लैंडफिल माइनिंग/ बायोमाइनिंग (Landfill Mining/Biomining): जो पहले से ही लैंडफिलिंग द्वारा निपटाए गए अपशिष्ट पदार्थों से पुनर्चक्रण योग्य और अन्य राजस्व-उत्पादक अंशों का तकनीकी रूप से सहायता प्राप्त तथा आर्थिक रूप से प्रबंधित निष्कर्षण है।
      • डंपसाइटों की बायोमाइनिंग (Biomining) आमतौर पर बायो-रेमेडिएशन नामक प्रक्रिया द्वारा सहायता प्राप्त होती है।
    • बायो-रेमेडिएशन (Bioremediation): यह जैविक अपशिष्ट का एक सूक्ष्माणु-मध्यस्थ अपघटन (Microbe-Mediated Degradation) है, जो डंपसाइट में जैविक इनोकुलम जोड़कर किया जाता है।
      • बायो-रेमेडिएशन केवल उच्च कार्बनिक सामग्री वाली डंपसाइटों में प्रभावी है, आमतौर पर जहाँ ताजा अपशिष्ट को लीगेसी वेस्ट के साथ मिलाया जाता है।

लीगेसी डंपसाइट्स से संबंधित आँकड़े

  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM) एक राज्य सूची का एक विषय है।
  • भारत के पर्यावरण की स्थिति-2023 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में नगरपालिका ठोस अपशिष्ट उत्पादन लगभग 1,50,000 टन प्रतिदिन होने का अनुमान है।
  • भारत में डंपसाइट: भारत में 3,000 से अधिक लीगेसी वेस्ट डंपसाइट हैं, जिनमें से 2,424 में 1,000 टन से ज्यादा अपशिष्ट है।
  • प्रमुख शहरों में भूमि की सफाई: 27 सितंबर, 2024 को केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा गठित एसबीएम डैशबोर्ड (SBM Dashboard) के अनुसार, 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में 69 लैंडफिल साइटों में से 35 साइटों पर भूमि की सफाई अभी भी बाकी है।
  • अंतर्हित प्रमुख रियल एस्टेट: केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुमान के अनुसार, देश भर में लगभग 15,000 एकड़ प्रमुख रियल एस्टेट लगभग 16 करोड़ टन लीगेसी अपशिष्ट के नीचे अंतर्हित है।

लीगेसी वेस्ट डंपसाइटों से संबंधित खतरे

  • स्वास्थ्य संबंधी खतरा: लीगेसी वेस्ट डंप स्थल आस-पास के समुदायों और अपशिष्ट प्रबंधन शृंखला में शामिल श्रमिकों के लिए महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न करते हैं।
    • पुरानी डंपसाइट कीटों और कृमियों को आकर्षित कर सकती हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • उदाहरण: श्वसन संबंधी समस्याएँ, त्वचा रोग और अन्य पुरानी स्वास्थ्य समस्याएँ।
  • पर्यावरण संबंधी खतरा: इन डंपसाइटों से मिट्टी और जल प्रदूषण हो सकता है, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकता है। जहरीले रिसाव भूजल स्रोतों को दूषित कर सकते हैं, जिससे पौधों एवं जानवरों को हानि पहुँच सकती है।
    • विघटित अपशिष्ट से निकलने वाली हानिकारक गैसों के कारण वायु की गुणवत्ता खराब हो सकती है, जिससे वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की वृद्धि दर बढ़ सकती है।
  • आर्थिक प्रभाव: पुराने कचरे के ढेर आस-पास के क्षेत्रों में संपत्ति के मूल्यों को कम कर सकते हैं, जिससे रियल एस्टेट बाजार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • सरकारों द्वारा किए जाने वाले सुधारात्मक प्रयास महँगे हो सकते हैं, जिसके कारण आवश्यक सेवाओं के लिए फंड में कटौती करनी पड़ सकती है।
  • स्थान की कमी: शहरी आबादी बढ़ने से उपलब्ध भूमि की कमी हो रही है, और पुरानी डंपसाइट बहुमूल्य स्थान घेर रही हैं, जिसका उपयोग आवास, पार्क या वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
  • आग का खतरा: ये डंपसाइट आग का खतरा उत्पन्न करती हैं, क्योंकि विघटित जैविक अपशिष्ट स्वतःस्फूर्त दहन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकते हैं।
    • उदाहरण: गाजीपुर लैंडफिल, दिल्ली में मुख्यतः अपशिष्ट के सड़ने से उत्पन्न मेथेन के कारण यहाँ अक्सर आग लग जाती है।

लीगेसी वेस्ट रेमेडिएशन पर मुख्य चिंताएँ

  • अकुशल जैव-उपचार विधियाँ (Inefficient Bioremediation Methods): जैव-उपचार सभी प्रकार के लीगेसी वेस्ट्स के लिए प्रभावी रूप से कार्य नहीं कर सकता है, विशेष रूप से पुरानी लैंडफिल में, जहाँ अपशिष्ट की संरचना समय के साथ काफी बदल गई है।
    • बायोरेमेडिएशन की सफलता साइट-विशिष्ट स्थितियों, जिसमें सूक्ष्मजीवों की संख्या, नमी का स्तर और ऑक्सीजन की उपलब्धता शामिल है, के आधार पर काफी भिन्न हो सकती है। यह असंगतता अप्रत्याशित परिणामों को जन्म दे सकती है।
    • यह एक धीमी प्रक्रिया हो सकती है, जिसमें अक्सर वांछित परिणाम प्राप्त करने में वर्षों लग जाते हैं।
    • स्रोत पर खराब अपशिष्ट पृथक्करण से लैंडफिल में मिश्रित अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिससे बायोरेमेडिएशन अधिक जटिल एवं कम कुशल हो जाता है।
  • ताजा कचरे की एक साथ डंपिंग: सुधार के दौर से गुजर रहीं कई डंपसाइटों पर ताजा कचरा आना जारी है, जिससे पुराने कचरे को हटाने की प्रगति बाधित हो रही है और प्रक्रिया अनिश्चित काल के लिए लंबी हो रही है।
    • लीगेसी वेस्ट मैनेजमेंट तथा ताजा अपशिष्ट प्रबंधन दोनों ही पूरक गतिविधियाँ होनी चाहिए।
  • उत्पन्न सामग्री में संदूषण का खतरा: उपचार प्रक्रिया से उत्पन्न मिट्टी जैसी महीन सामग्री में भारी धातुएँ हो सकती हैं, जिससे खाद के रूप में इसके उपयोग को लेकर चिंताएँ बढ़ जाती हैं, जिससे पर्यावरण तथा स्वास्थ्य संबंधी खतरे उत्पन्न हो सकते हैं।
  • सीमित वैकल्पिक अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाएँ: ताजा अपशिष्ट को संसाधित करने के लिए निर्दिष्ट स्थानों की कमी के कारण एक ही स्थान पर लगातार डंपिंग होती रहती है, जिससे उपचार के प्रयास जटिल हो जाते हैं।

भारत में लीगेसी वेस्ट मैनेजमेंट के सफल उदाहरण

  • इंदौर: इंदौर को अपनी प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन रणनीतियों के कारण भारत के सबसे स्वच्छ शहरों में से एक माना गया है। इसने जैव-खनन के माध्यम से अपने लैंडफिल को सफलतापूर्वक सुधारा है।
  • दिल्ली: इसने नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट को ऊर्जा में बदलने के लिए अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्र विकसित किए हैं, जिससे लैंडफिल में भेजे जाने वाले अपशिष्ट की मात्रा कम हो गई है। ओखला डंपसाइट में पुराने अपशिष्ट का उपचार एवं पृथककरण किया जा रहा है।
  • केरल का कुदुम्बश्री मिशन (Kudumbashree Mission): यह स्थानीय स्व-सरकारों को सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से ठोस अपशिष्ट प्रबंधन करने का अधिकार देता है, जिसमें स्रोत पृथक्करण एवं विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रसंस्करण पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

लीगेसी वेस्ट मैनेजमेंट के लिए संभावित कार्रवाई का आह्वान

  • अपशिष्ट संरचना की बेहतर समझ: लीगेसी वेस्ट की संरचना को समझने के लिए उसका विस्तृत विश्लेषण करने की आवश्यकता है। यह ज्ञान प्रभावी जैव उपचार रणनीतियों और पुनर्चक्रण प्रयासों का मार्गदर्शन कर सकता है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन के लिए बुनियादी ढाँचे का विकास
    • संग्रहण एवं पृथक्करण केंद्र: अपशिष्ट प्रबंधन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए कुशल अपशिष्ट संग्रहण एवं पृथककरण के लिए निर्दिष्ट सुविधाएँ स्थापित करना।
    • सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाएँ (MRF): अपशिष्ट से मूल्यवान सामग्री को पुनर्प्राप्त करने, पुनर्चक्रण प्रयासों को बढ़ाने और लैंडफिल उपयोग को कम करने के लिए MRF में निवेश करना।
    • गीले और सूखे अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाएँ: लैंडफिल पर निर्भरता को कम करने के लिए जैविक अपशिष्ट से खाद बनाने और सूखे अपशिष्ट के पुनर्चक्रण के लिए अलग-अलग सुविधाएँ लागू करना।
  • जैविक अपशिष्ट उपचार पर ध्यान देना: अपशिष्ट को ईंधन में परिवर्तित करने, लैंडफिल दबाव को कम करने के लिए खाद तथा बायो-मेथेनेशन के माध्यम से जैविक अपशिष्ट के उपचार को बढ़ावा देना।
  • अपशिष्ट प्रबंधन नियमों का सख्त क्रियान्वयन: अपशिष्ट उत्पादकों को जवाबदेह बनाने तथा जिम्मेदार अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को प्रोत्साहित करने के लिए ‘प्रदूषणकर्ता भुगतान सिद्धांत’ जैसे नियमों को लागू करना।
  • 4 ’R’ सिद्धांत: व्यक्तियों को अपने घरों में अपशिष्ट कम करना, पुनः उपयोग करना, पुनः चक्रित करना और पुनर्प्राप्त करना (Reduce, Reuse, Recycle, and Recover- 4 R’s) के सिद्धांतों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना तथा अपशिष्ट उत्पादन को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए कार्य करना।
  • स्क्रैप का उपयोग: विद्युत उत्पादन के लिए अपशिष्ट-व्युत्पन्न ईंधन (Refuse-Derived Fuel- RDF) के उत्पादन हेतु स्क्रैप पॉलिमेरिक और दहनशील सामग्रियों (लीगेसी वेस्ट का 4-19%) को पुनर्प्राप्त करने के लिए प्रणालियों को लागू करना।
    • इंजीनियर्ड लैंडफिल में मिट्टी के आवरण के रूप में, गाद तथा निर्माण और विध्वंस (C&D) अपशिष्ट के साथ संयुक्त विघटित जैविक अपशिष्ट के बारीक अंश का उपयोग करने का अन्वेषण करना।
  • अपशिष्ट प्रबंधन शृंखला में अनौपचारिक अपशिष्ट श्रमिकों का एकीकरण: ऐसे तंत्र स्थापित किए जाने चाहिए, जो अनौपचारिक श्रमिकों को उचित मजदूरी, लाभों तक पहुँच आदि की गारंटी दे सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, अपशिष्ट पृथककरण, पुनर्चक्रण तथा सुरक्षित प्रबंधन प्रथाओं में उनके कौशल को बढ़ाने, समग्र अपशिष्ट प्रबंधन दक्षता में सुधार करने के लिए प्रशिक्षण प्रदान किए जाने चाहिए।

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पाँच भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने को मंजूरी दी है।

  • ये भाषाएँ हैं- मराठी, बंगाली, असमिया, पाली और प्राकृत

संबंधित तथ्य 

  • पूर्व में मान्यता प्राप्त शास्त्रीय भाषाएँ: तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, संस्कृत और ओडिया।
  • भाषा विज्ञान विशेषज्ञ समिति ने जुलाई 2024 में शास्त्रीय स्थिति के लिए मानदंड संशोधित किए है।
    • इस समिति में केंद्रीय गृह और संस्कृति मंत्रालयों के प्रतिनिधि और भाषायी विशेषज्ञ शामिल हैं, जिसकी अध्यक्षता साहित्य अकादमी द्वारा की जाती है।

शास्त्रीय भाषाएँ क्या हैं?

  • भारतीय शास्त्रीय भाषाएँ, उन भाषाओं को कहा जाता है, जिनकी प्राचीन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, समृद्ध साहित्यिक परंपराएँ एवं अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत होती है।
  • इन भाषाओं ने क्षेत्र के बौद्धिक तथा सांस्कृतिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है तथा इनके ग्रंथ साहित्य, दर्शन और धर्म जैसे विभिन्न क्षेत्रों में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त करने के लिए मानदंड: संस्कृति मंत्रालय के कुछ नियम हैं, जिनका पालन भारत में शास्त्रीय भाषा के रूप में वर्गीकृत होने के लिए किया जाना चाहिए:

  • प्राचीन मूल: भाषा में 1,500-2,000 वर्षों की अवधि में अपने प्रारंभिक ग्रंथों/अभिलेखित इतिहास की प्राचीनता होनी चाहिए।
  • साहित्यिक विरासत: भाषा में प्राचीन साहित्य या ग्रंथों का एक समूह होना चाहिए, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।

भारतीय संविधान में भाषाओं के संबंध में कई प्रावधान हैं

  • आठवीं अनुसूची: इसमें भारत की आधिकारिक भाषाओं की सूची दी गई है, जिसमें प्रारंभ में 14 भाषाएँ शामिल थीं, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 22 भाषाएँ कर दिया गया है।
    • इन भाषाओं को सरकारी संचार, परीक्षाओं और विधायी मामलों में उपयोग के लिए मान्यता प्राप्त है।
    • सभी शास्त्रीय भाषाएँ संविधान की 8वीं अनुसूची के अंतर्गत सूचीबद्ध हैं।
  • अनुच्छेद-120: संसद में कार्य हिंदी या अंग्रेजी में किया जाएगा।
    • हालाँकि, सदस्य सदन के पीठासीन अधिकारी की पूर्व अनुमति से अपनी मूल भाषा में वक्तव्य दे सकते हैं।
  • अनुच्छेद-210: यह हिंदी, अंग्रेजी या संबंधित राज्य की भाषा के उपयोग की अनुमति देता है।
    • हालाँकि, विधायी उद्देश्यों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग तब तक जारी रह सकता है, जब तक विधानमंडल इसकी अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद-345: अनुच्छेद 345 के अनुसार, किसी राज्य की विधायिका राज्य के आधिकारिक प्रयोजनों के लिए एक या एक से अधिक भाषाओं को अपना सकती है, लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक अंग्रेजी उन प्रयोजनों के लिए आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

  • मौलिकता: साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषा समुदाय से उधार ली हुई नहीं होनी चाहिए।
  • आधुनिक स्वरूप से पृथकता: उक्त भाषा तथा साहित्य अपने आधुनिक स्वरूप से भिन्न होना चाहिए तथा शास्त्रीय भाषा और उसके बाद के रूपों या उसकी शाखाओं के बीच स्पष्ट पृथकता होनी चाहिए।

शास्त्रीय स्थिति के लाभ

  • शैक्षणिक तथा अनुसंधान सहायता: शास्त्रीय भाषाओं में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना।
  • अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार: शास्त्रीय भाषाओं के विद्वानों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो प्रमुख वार्षिक पुरस्कार समारोह का आयोजन।
  • व्यावसायिक पीठ: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भाषाओं के लिए अकादमिक पीठ बनाने का अनुरोध किया गया है।
  • सांस्कृतिक मान्यता: यह मान्यता भारतीय विरासत में इन भाषाओं के साहित्यिक और ऐतिहासिक योगदान को सम्मानित करती है।
  • रोजगार सृजन: प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण, दस्तावेजीकरण तथा  डिजिटलीकरण से अभिलेखीकरण, अनुवाद, प्रकाशन एवं डिजिटल मीडिया जैसे क्षेत्रों में रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे।

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