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Jan 10 2025

संदर्भ

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) का द्विवार्षिक ‘फ्यूचर ऑफ जॉब्स’ रिपोर्ट, 2025 संस्करण जारी किया गया है।

वर्ष 2030 तक 10 सबसे तेजी से बढ़ती नौकरियाँ

  • बिग डेटा विशेषज्ञ
  • फिनटेक इंजीनियर
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तथा मशीन लर्निंग विशेषज्ञ
  • सॉफ्टवेयर और एप्लिकेशन डेवलपर्स
  • सुरक्षा प्रबंधन विशेषज्ञ
  • डेटा वेयरहाउसिंग विशेषज्ञ
  • स्वायत्त और इलेक्ट्रिक वाहन विशेषज्ञ
  • UI तथा UX डिजाइनर
  • लाइट ट्रक या डिलीवरी सेवा ड्राइवर
  • इंटरनेट ऑफ थिंग्स विशेषज्ञ

‘फ्यूचर ऑफ जॉब्स’ रिपोर्ट, 2025 के बारे में

  • उद्देश्य: रिपोर्ट में व्यावसायिक व्यवधान को समझने और श्रमिकों के लिए भविष्य की नौकरियों में संक्रमण के अवसरों की पहचान करने के लिए विकसित हो रहे तकनीकी, सामाजिक तथा आर्थिक रुझानों पर प्रकाश डाला गया है।

  • डेटासेट: रिपोर्ट 22 उद्योग समूहों और 55 अर्थव्यवस्थाओं में 1,000 अग्रणी वैश्विक नियोक्ताओं के व्यापक सर्वेक्षण से प्राप्त एक अद्वितीय डेटासेट का परिणाम है।
  • मुख्य विशेषताएँ 
    • रिपोर्ट के अनुसार,  वर्ष 2030 तक 170 मिलियन नई नौकरियाँ सृजित होंगी तथा नौकरियों में व्यवधान वर्ष 2030 तक 22 प्रतिशत नौकरियों के बराबर होगा।
    • चालक: वर्ष 2030 तक वैश्विक श्रम बाजार को आकार देने और बदलने के लिए अपेक्षित प्रमुख चालक हैं:-
      • तकनीकी परिवर्तन: AI और सूचना प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों (81%) का सबसे बड़ा प्रभाव होगा, उसके बाद रोबोट और ऑटोमेशन प्रणालियाँ (58%) और ऊर्जा उत्पादन एवं भंडारण प्रौद्योगिकियाँ (41%) वर्ष 2030 तक अपने व्यवसाय को बदल देंगी।
      • भू-आर्थिक विखंडन: व्यापार और निवेश प्रतिबंध लगाने, सब्सिडी बढ़ाने आदि जैसे वैश्विक स्तर पर सरकारों द्वारा बढ़ते संरक्षणवादी उपाय वैश्विक आर्थिक विकास के लिए मध्यम अवधि का जोखिम उत्पन्न करते हैं, जिससे खुले नवाचार एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के अवसर कम हो जाते हैं।
      • आर्थिक अनिश्चितता: मुद्रास्फीति में कमी और लचीली मौद्रिक नीति कुछ उम्मीद प्रदान करती है, लेकिन धीमी वृद्धि और राजनीतिक अस्थिरता कई देशों को आर्थिक झटकों के जोखिम में स्थान देती है।
      • जनसांख्यिकीय बदलाव: रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में 40% नियोक्ता, उम्र बढ़ने और कार्य करने की आयु में कमी को बढ़ावा दे रहे है, जबकि 25% कार्य करने की आयु में वृद्धि को बढ़ावा दे रहे हैं।
      • हरित परिवर्तन: ऑटोमोटिव और एयरोस्पेस, तथा खनन और धातु जैसे उद्योगों में महत्त्वपूर्ण संगठनात्मक परिवर्तन होगा, क्योंकि श्रमिक कार्बन-मुक्ति की ओर बढ़ने के साथ ही वैकल्पिक नौकरियों में बदलाव के लिए कौशल उन्नयन और पुनर्कौशलीकरण का सहारा लेंगे। 
      • कौशल सेट में रुझान: वर्ष 2025 तथा वर्ष 2030 के बीच अगले कुछ वर्षों में जिन कौशल सेटों में वृद्धि देखी जाएगी, वे हैं एआई, बिग डेटा, साइबर सुरक्षा, क्रिएटिव थिंकिंग, बहुभाषावाद आदि।
      • क्रिएटिव थिंकिंग कौशल में ‘रिजिलियंस, फ्लेक्सिबिलिटी और एगिलिटी’ के कौशल के साथ-साथ 66 प्रतिशत की नेट वृद्धि देखी गई।
      • सबसे कम वृद्धि: ‘निर्भरता और विस्तार पर ध्यान’ के कौशल में केवल 12 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।
      • नकारात्मक वृद्धि: ‘पढ़ना, लिखना और गणना अधिगम’ कौशल में नकारात्मक वृद्धि दर 4 प्रतिशत रही, तथा ‘शारीरिक निपुणता, सहनशक्ति और परिशुद्धता’ में नकारात्मक वृद्धि दर 24 प्रतिशत रही।
    • तेजी से बढ़ती नौकरियाँ
      • प्रतिशत के हिसाब से: AI और मशीन लर्निंग, सॉफ्टवेयर और एप्लिकेशन डेवलपर्स, और फिनटेक इंजीनियर।
      • पूर्ण मात्रा के हिसाब से: खेतिहर मजदूर, डिलीवरी ड्राइवर, निर्माण मजदूर, विक्रेता, खाद्य प्रसंस्करण मजदूर, नर्सिंग पेशेवर, सामाजिक कार्य आदि जैसी केयर इकॉनमी की नौकरियों में मात्रा के हिसाब से सबसे अधिक वृद्धि देखी जाएगी।
    • सबसे तेजी से घट रही नौकरियाँ: इस सूची में डाक सेवा क्लर्क, बैंक टेलर और संबंधित क्लर्क, डेटा एंट्री क्लर्क, कैशियर और टिकट क्लर्क सबसे ऊपर हैं।
      • अन्य भूमिकाएँ: इसमें मुद्रण और व्यापार कर्मचारी, लेखा, बहीखाता तथा पेरोल क्लर्क, सामग्री-रिकॉर्डिंग और स्टॉक-कीपिंग क्लर्क, परिवहन परिचारक और कंडक्टर, कानूनी सचिव और टेलीमार्केटर शामिल थे।
    • भारत पर फोकस
      • चालक: वर्ष 2030 तक नौकरियों के भविष्य को आकार देने वाले प्राथमिक रुझान हैं, डिजिटल पहुँच में वृद्धि, भू-राजनीतिक तनाव और जलवायु-शमन प्रयास।
      • निवेश: ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ AI, रोबोटिक्स और स्वायत्त प्रणालियों जैसी प्रौद्योगिकियों में कंपनियों द्वारा निवेश में वृद्धि हुई है।
      • प्रौद्योगिकी अपनाना: भारत में सेमीकंडक्टर और कंप्यूटिंग प्रौद्योगिकियों (35%) जैसी कुछ प्रौद्योगिकियों को अपनाने में वैश्विक स्तर पर आगे निकलने की उम्मीद है और 21 प्रतिशत लोगों को उम्मीद है कि क्वांटम और एन्क्रिप्शन उनके संचालन को बदल देंगे।
      • सबसे तेजी से बढ़ती नौकरी भूमिकाएँ: बिग डेटा विशेषज्ञ, AI और मशीन लर्निंग संबंधी विशेषज्ञ तथा सुरक्षा प्रबंधन विशेषज्ञ

विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum)

  • विश्व आर्थिक मंच (WEF) एक अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन है, जो सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • स्थापना: WEF की स्थापना वर्ष 1971 में जर्मन अर्थशास्त्री क्लॉस श्वाब (Klaus Schwab) द्वारा यूरोपीय प्रबंधन मंच के रूप में की गई थी।
    • संगठन ने वर्ष 1987 में अपना नाम बदलकर विश्व आर्थिक मंच कर लिया।
  • मुख्यालय: कोलोग्नी-जिनेवा (Cologny-Geneva)।
  • अधिदेश: मंच का मुख्य लक्ष्य वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने और सरकारी, उद्योग तथा सामाजिक एजेंडा को आकार देने के लिए सहयोगी उद्यमशीलता की भावना को बढ़ावा देना है।
  • वित्तपोषण: WEF को सदस्य कंपनियों द्वारा वित्तपोषित किया जाता है, जो वैश्विक उद्यम हैं और जिनका टर्नओवर पाँच बिलियन डॉलर से अधिक है।
  • प्रमुख रिपोर्ट
    • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता रिपोर्ट (Global Competitiveness Report) 
    • वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट (Global Gender Gap Report)
    • वैश्विक जोखिम रिपोर्ट (Global Risk Report)
    • ऊर्जा संक्रमण सूचकांक (Energy Transition Index)
    • वैश्विक यात्रा और पर्यटन रिपोर्ट (Global Travel and Tourism Report) आदि।

टाइडल टेल (Tidal Tail)

हाल ही में NGC 3785 आकाशगंगा से जुड़ी टाइडल टेल (Tidal Tail) के अंत में बनने वाली एक नई अति-विसरित आकाशगंगा की खोज की गई है।

  • खोज: राष्ट्रीय रेडियो खगोलभौतिकी केंद्र (NCRA) पुणे एवं भारतीय खगोलभौतिकी संस्थान (IIA) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने NCG 3785 गैलेक्सी की टाइडल टेल का विस्तृत फोटोमेट्रिक विश्लेषण किया।
    • NGC 3785 आकाशगंगा: आकाशगंगा पृथ्वी से लगभग 430 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर सिंह तारामंडल (Leo Constellation) में स्थित है।
  • प्रकाशित: यह अध्ययन यूरोपीय जर्नल, एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स लेटर्स में प्रकाशित हुआ था।
  • एक अल्ट्रा-डिफ्यूज गैलेक्सी का गठन: NGC 3785 की टाइडल टेल के अंत में, खगोलविदों ने एक नवजात अल्ट्रा-डिफ्यूज गैलेक्सी (UDG) के निर्माण को देखा है। 
    • अल्ट्रा-डिफ्यूज गैलेक्सी: इनकी विशेषता इनका कम चमकीला होना है, जो प्रायः पारंपरिक सर्वेक्षणों में पता नहीं चल पाती है।
    • इन आकाशगंगाओं का निर्माण NGC 3785 एवं एक पास की आकाशगंगा के बीच गुरुत्वाकर्षण संपर्क से प्रेरित है।
  • महत्त्व
    • आकाशगंगा विकास को समझना: यह समझने के लिए नए रास्ते खोलेगा कि विशाल ब्रह्मांड में आकाशगंगाएँ कैसे विकसित होती हैं एवं कैसे परस्पर क्रिया करती हैं।
    • नई ब्रह्मांडीय संरचनाओं की खोज: यह शोध आकाशगंगाओं की परस्पर क्रिया एवं ब्रह्मांड में नई संरचनाओं के निर्माण में शामिल प्रक्रियाओं पर प्रकाश डालता है।

टाइडल टेल के बारे में

  • टाइडल टेल तारों एवं अंतरतारकीय गैस की एक लंबी, पतली धारा है, जिसका निर्माण तब होता है, जब दो आकाशगंगाएँ आपस में एक-दूसरे से निकटता से जुड़ती हैं और प्रत्येक आकाशगंगा से सामग्री को दूर खींचती हैं।
  • गठन: आकाशगंगाओं के बीच गुरुत्वाकर्षण संबंधी अंतःक्रियाएँ टकराव या विलय के दौरान हो सकती हैं, जहाँ गैस और तारों को अक्सर आकाशगंगाओं के बाहरी क्षेत्रों से अलग करके दो टाइडल टेल बनती हैं।
    • प्रत्येक आकाशगंगा में एक अनुगामी एवं एक पूर्ववर्ती टाइडल टेल का निर्माण होता है।
  • सबसे लंबी टाइडल टेल: गैलेक्सी NGC 3785 की टाइडल टेल आश्चर्यजनक रूप से 1.27 मिलियन प्रकाश वर्ष तक फैली हुई है, जो इसे अब तक खोजी गई सबसे लंबी टाइडल टेल है।

हेनले पासपोर्ट इंडेक्स 2025

हेनले पासपोर्ट इंडेक्स के अनुसार, सिंगापुर ने विश्व के सबसे शक्तिशाली पासपोर्टों में शीर्ष स्थान पुनः प्राप्त कर लिया है, जिसके द्वारा विश्वभर में 227 में से 195 स्थानों पर वीजा-मुक्त पहुँच प्राप्त की जा सकती है।

भारत की रैंकिंग:

  • वर्ष 2025 रैंक: 85वीं।
    • 57 देशों में वीजा-मुक्त पहुँच।
  • हालिया रुझान: 90वीं रैंक (वर्ष 2021) से 80वीं रैंक (वर्ष 2024) तक सुधार लेकिन गिरकर 85वें (वर्ष 2025) पर आ गया।

हेनले पासपोर्ट इंडेक्स 2024 

  • बिना किसी पूर्व वीजा के सुलभ गंतव्यों के आधार पर विश्व पासपोर्ट की मूल, आधिकारिक रैंकिंग।
  • वर्ष 2006 में हेनले एंड पार्टनर्स वीजा प्रतिबंध सूचकांक (Henley & Partners Visa Restrictions Index- HVRI) के रूप में शुरू किया गया।  
  • अंतरराष्ट्रीय वायु परिवहन संघ (International Air Transport Association-IATA) और ‘हेनले एंड पार्टनर्स’ की शोध टीम के डेटा का उपयोग करता है। 
  • डेटा एवं कवरेज: सूचकांक में 199 पासपोर्ट और 227 यात्रा गंतव्य शामिल हैं।
    • पासपोर्ट का वीजा-मुक्त ‘स्कोर’ उन देशों की संख्या से निर्धारित होता है, जहाँ यह बिना वीजा के पहुँच प्रदान करता है।
  • सूचकांक प्राधिकरण: पासपोर्ट रैंकिंग और वैश्विक गतिशीलता का आकलन करने में वैश्विक नागरिकों और संप्रभु राज्यों के लिए मानक संदर्भ उपकरण माना जाता है।

संदर्भ

बहुप्रतीक्षित फ्लेमिंगो महोत्सव 2025 (Flamingo Festival 2025) 18 से 20 जनवरी, 2025 तक आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिले के सुल्लुरपेटा (Sullurpeta) में आयोजित किया जाएगा।

संबंधित तथ्य

  • इस मौसम में 200 से अधिक प्रकार के पक्षियों के इस क्षेत्र में आने की उम्मीद है।
  • इस मौसम में नेलापट्टू पक्षी अभयारण्य (Nelapattu Bird Sanctuary) में दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र से ग्रे पेलिकन (Grey Pelicans), स्पूनबिल स्टॉर्क (Spoonbill Storks), कॉर्मोरेंट्स (Cormorants), ओपन बिल स्टॉर्क (Open Bill Storks) और अन्य पक्षी आते हैं।

फ्लेमिंगो के वितरण के बारे में

  • यह उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
  • भारत में फ्लेमिंगो की 2 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। ये हैं ग्रेटर फ्लेमिंगो (Greater Flamingo) और लेसर फ्लेमिंगो (Lesser Flamingo)।

विभिन्न फ्लेमिंगो प्रजातियों, उनकी संरक्षण स्थिति और विशेषताओं के बारे में विवरण

प्रजातियाँ

वितरण

IUCN की रेड लिस्ट में स्थिति

विशिष्ट विशेषताएँ

ग्रेटर फ्लेमिंगो [फोनीकोप्टेरस रोसियस (Phoenicopterus Roseus)] अफ्रीका, यूरोप और एशिया (भारत) कम चिंताग्रस्त (Least Concern)

CITES → परिशिष्ट II (Appendix II)

सबसे बड़ी फ्लेमिंगो प्रजाति, हल्के गुलाबी पंख
चिली फ्लेमिंगो [(फीनिकोप्टेरस चिलेंसिस (Phoenicopterus Chilensis)] दक्षिण अमेरिका निकट संकटग्रस्त (Near Threatened) ग्रेटर फ्लेमिंगो के समान लेकिन गहरे गुलाबी रंग के साथ
अमेरिकी या कैरेबियाई फ्लेमिंगो [फोनीकोप्टेरस रूबर (Phoenicopterus Ruber)] कैरिबियन, दक्षिण अमेरिका और फ्लोरिडा निकट संकटग्रस्त (Near Threatened) चमकीले गुलाबी पंख, लंबी, पतली गर्दन
लेसर फ्लेमिंगो [फोनीकोनायस माइनर (Phoeniconaias Minor)] अफ्रीका और भारत निकट संकटग्रस्त (Near Threatened)

CITES → परिशिष्ट II (Appendix II)

सबसे छोटी फ्लेमिंगो प्रजाति, चमकीले गुलाबी पंख
एंडियन फ्लेमिंगो [फोनीकोपारस एंडिनस (Phoenicoparrus Andinus)] दक्षिण अमेरिका में एंडीज पर्वत सुभेद्य (Vulnerable) पीले पैर और पंजे, नाक के बीच लाल धब्बा
जेम्स या पुना फ्लेमिंगो [फोनीकोपारस जेमसी (Phoenicoparrus Jamesi)] दक्षिण अमेरिका में एंडीज पर्वत निकट संकटग्रस्त (Near Threatened) पूर्णतः काले पंख, अद्वितीय चोंच का आकार

संदर्भ

शोधकर्ताओं ने प्रदर्शित किया है कि पौधों में नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) के स्तर को कम करने से चावल और अरेबिडोप्सिस (Arabidopsis) में नाइट्रोजन अवशोषण और नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (Nitrogen Use Efficiency- NUE) में उल्लेखनीय सुधार होता है।

नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (Nitrogen Use Efficiency- NUE)

  • NUE पौधों द्वारा नाइट्रोजन के उपयोग की दक्षता का वर्णन करता है, चाहे वह उर्वरक के रूप में लगाया गया हो या बायोमास उत्पादन के लिए वायुमंडल से स्थिर किया गया हो।
  • इसे फसल की उपज और मृदा या वायुमंडल से अवशोषित नाइट्रोजन के बीच के अनुपात के रूप में मापा जाता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • यह अध्ययन पौधों में NO के स्तर को कम करने के तरीकों को प्रोत्साहित करके सतत् कृषि प्रथाओं के लिए एक आशाजनक दृष्टिकोण पर प्रकाश डालता है।
  • नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) का महत्त्व
    • नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) पौधों में विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • NO के स्तर को कम करने से हाई-एफिनिटी नाइट्रेट ट्रांसपोर्टर (HAT) सक्रिय होते हैं, जो सीमित नाइट्रोजन स्थितियों के तहत विशेष रूप से प्रभावी होते हैं।
  • हाई-एफिनिटी नाइट्रेट ट्रांसपोर्टर (High-Affinity Nitrate Transporters- HATs): ‘हाई-एफिनिटी नाइट्रेट ट्रांसपोर्टर’ विशेष रूप से कम नाइट्रोजन स्थितियों में नाइट्रोजन अवशोषण के लिए आवश्यक हैं।

NUE फार्माकोलॉजिकल परिवर्तन को बेहतर बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली विधियाँ

  • शोधकर्ताओं ने पौधों में NO की सांद्रता को कम करने के लिए नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) ‘स्कैवेंजर’ नामक रासायनिक यौगिकों का उपयोग किया।
  • फाइटोग्लोबिन का अधिक अनुसरण करना: फाइटोग्लोबिन, एक प्राकृतिक नाइट्रिक ऑक्साइड स्कैवेंजर, पौधों में अधिक देखा गया है।
    • इससे NRT2.1 और NRT2.4 जैसे हाई-एफिनिटी नाइट्रेट ट्रांसपोर्टर (HAT) के अनुसरण में वृद्धि हुई, जिससे कम NO स्थितियों में नाइट्रोजन का अवशोषण बढ़ा है।
  • आनुवंशिक परिवर्तन: आनुवंशिक परिवर्तन में कोशिकाओं में नाइट्रिक ऑक्साइड के स्तर को विनियमित करने के लिए पौधों के जीन में परिवर्तन करना शामिल है।
  • प्रोटीन नाइट्रोसिलेशन: प्रोटीन नाइट्रोसिलेशन, नाइट्रिक ऑक्साइड द्वारा जैव रासायनिक संशोधन, नाइट्रोजन विनियमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • प्रोटीन नाइट्रोसिलेशन को लक्षित करने से NUE में सुधार करने की क्षमता दिखाई दी है।

NUE में सुधार का महत्त्व

  • NUE को बढ़ाने से नाइट्रोजन उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग को कम करने में मदद मिलती है।
  • यह नाइट्रेट निक्षालन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन सहित पर्यावरण प्रदूषण को कम करता है।
  • बेहतर NUE, फसल की पैदावार को लगातार बढ़ाने में योगदान देता है।

संदर्भ

भारत की तटरेखा 47.6% बढ़ गई है, जो वर्ष 1970 में 7,516 किमी. से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 11,098 किमी. हो गई है। यह वृद्धि तटीय विशेषताओं को मापने के लिए नई पद्धतियों को अपनाने के कारण है।

तुलना: पुरानी बनाम नई माप पद्धति

पहलू पुरानी पद्धति (वर्ष 1970) नई पद्धति (वर्ष 2023-24)
माप का आधार सीधी रेखा की दूरियाँ। जटिल तटीय संरचनाएँ शामिल हैं।
तटीय विशेषताएँ मापी गईं सामान्य तटरेखा की लंबाई तक सीमित। खाड़ियाँ, मुहाना, प्रवेशद्वार और अन्य भूआकृति विज्ञान संबंधी विशेषताएँ सम्मिलित की गईं।
प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया गया बुनियादी उपकरण एवं मैन्युअल गणना। उन्नत भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियाँ एवं मानचित्रण उपकरण।
शुद्धता अपेक्षाकृत कम सटीक। गतिशील समुद्र तट का अधिक सटीक प्रतिनिधित्व।
रिपोर्ट की गई तट रेखा लंबाई 7,516 किमी.। 11,098 किमी.।

राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा तटरेखा परिवर्तन

  • महत्त्वपूर्ण विकास वाले राज्य/केंद्रशासित प्रदेश
    • गुजरात: 1,214 किमी. (वर्ष 1970) से बढ़कर 2,340 किमी. (वर्ष 2023-24) हो गई।
      • समुद्र तट की लंबाई में सर्वाधिक पूर्ण वृद्धि के लिए जिम्मेदार। सबसे लंबी तटरेखा वाले राज्य की स्थिति बरकरार रखी।
    • पश्चिम बंगाल: 357% की वृद्धि, 157 किमी. से 721 किमी. तक, जो प्रतिशत के संदर्भ में सबसे अधिक वृद्धि है।
    • तमिलनाडु: संशोधित लंबाई 906 किमी. से बढ़कर 1,068 किमी. हो गई, जो आंध्र प्रदेश से अधिक हो गई है।
  • न्यूनतम या नकारात्मक परिवर्तन वाले राज्य/केंद्रशासित प्रदेश
    • केरल: केवल 30 किमी. (5%) जोड़कर सबसे कम वृद्धि दर्ज की गई।
    • पुडुचेरी: कटाव एवं पुनर्गणना के कारण समुद्र तटीय लंबाई 4.9 किमी. (-10.4%) कम हो गई है।
  • तमिलनाडु बनाम आंध्र प्रदेश: नए माप के बाद समुद्र तट की लंबाई में तमिलनाडु अब आंध्र प्रदेश से ऊपर है।
  • पुडुचेरी का संकुचन: संकुचन का कारण क्षरण एवं परिष्कृत गणना है, जो अन्यत्र समुद्र तट के विकास की सामान्य प्रवृत्ति के विपरीत है।

तटरेखा विस्तार का प्रभाव

  • आर्थिक विकास
    • बंदरगाह एवं बुनियादी ढाँचा: आंध्र प्रदेश रसद, औद्योगीकरण एवं रोजगार को बढ़ावा देने के लिए रामायपट्टनम, कृष्णापट्टनम एवं काकीनाडा गेटवे जैसे बंदरगाहों का विकास कर रहा है।
    • समुद्री अर्थव्यवस्था: तटीय राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश उन्नत समुद्री व्यापार एवं पर्यटन के लिए विस्तारित तटरेखाओं का लाभ उठा रहे हैं।

उद्भव एवं जलमग्न तटरेखाएँ

  • निर्गमन तटरेखाएँ (Coastlines of Emergence): यह तब घटित होती हैं, जब भूमि ऊपर उठती है या जब समुद्र का स्तर कम हो जाता है।
    • विशेषताओं के उदाहरणों में बार, स्पिट्स, लैगून, लवणीय दलदल, समुद्र तट, समुद्री चट्टानें और मेहराब शामिल हैं।
  • भारत में उदाहरण
    • तमिलनाडु तट (कोरोमंडल तट)
    • केरल तट (मालाबार तट)
  • जलमग्न तटरेखाएँ (Coastline of Submergence): तब निर्मित होती हैं, जब भूमि धँसाव के कारण जलमग्न हो जाती है या जब समुद्र का स्तर बढ़ जाता है।
  • भारत में उदाहरण
    • भारत का पश्चिमी तट: निर्गमन एवं जलमग्न दोनों को प्रदर्शित करता है।
      • उत्तरी भाग: भ्रंशन के कारण जलमग्न।
      • केरल तट: तटरेखा का एक उभरता हुआ भाग।


  • जैव विविधता एवं पर्यावरण संबंधी विचार
    • विस्तारित तटीय डेटा तटीय जैव विविधता के बेहतर संरक्षण में सहायता करता है।
    • बेहतर मानचित्रण तटीय अपरदन एवं अभिवृद्धि की निगरानी में सहायता करता है।
  • नीति एवं योजना: समुद्री सुरक्षा, बुनियादी ढाँचे की योजना एवं आपदा तैयारियों के लिए सटीक तटीय डेटा महत्त्वपूर्ण है।

भारत की तटरेखा का भौगोलिक कवरेज

  • क्षेत्र: बंगाल की खाड़ी (पूर्व), हिंद महासागर (दक्षिण), एवं अरब सागर (पश्चिम) से घिरा।
  • राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश
    • तटीय राज्य: गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा एवं बंगाल।
    • केंद्रशासित प्रदेश: दमन एवं दीव, लक्षद्वीप, पुडुचेरी, तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह।

संदर्भ

भाषिणी-सक्षम ई-श्रम पोर्टल अब सभी 22 अनुसूचित भाषाओं में उपलब्ध है, जिससे असंगठित श्रमिकों की पहुँच में वृद्धि हुई है। पहले यह पोर्टल केवल अंग्रेजी, हिंदी, कन्नड़ तथा मराठी भाषाओं का समर्थन करता था।

अनुसूचित भाषाएँ

  • भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची: भारत की 22 आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है।
  • महत्त्व: इन भाषाओं को आधिकारिक दर्जा प्रदान करता है, उनके उपयोग एवं विकास को बढ़ावा देता है।
  • नई भाषा को जोड़ना: समय के साथ संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से आठवीं अनुसूची में भाषाओं को जोड़ा गया है।

भाषिणी AI टूल 

  • भाषिणी AI टूल, एक वास्तविक समय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-आधारित अनुवाद टूल है।
  • इस टूल का उद्देश्य नागरिकों को उनकी मूल भाषा में भाषण और पाठ सामग्री तथा सेवाएँ प्रदान करके भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करना है।
  • नोडल मंत्रालय: इलेक्ट्रॉनिक्स तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY)।
    • यह टूल व्यापक राष्ट्रीय भाषा अनुवाद मिशन (National Language Translation Mission-NLTM) का हिस्सा है।
  • भाषिणी AI-आधारित भाषा अनुवाद प्रदान करता है, जिससे भारतीय भाषाओं के लिए बहुभाषी समर्थन प्राप्त होता है।
  • भाषादान अनुभाग: भाषादान में नागरिकों के योगदान के लिए निम्नलिखित श्रेणियाँ शामिल हैं:
    • सुनो इंडिया: ऑडियो सामग्री टाइप करके या दूसरों द्वारा किए गए ट्रांसक्रिप्शन को मान्य करके योगदान देना।
    • बोलो इंडिया: वाक्य रिकॉर्डिंग के माध्यम से अपनी आवाज देना। दूसरों द्वारा योगदान की गई ऑडियो रिकॉर्डिंग को मान्य करना।
    • लिखो इंडिया: दिए गए पाठ का अनुवाद करके योगदान देना। दूसरों द्वारा प्रस्तुत अनुवादों को मान्य करना।
    • देखो इंडिया: देखे गए पाठ को टाइप करके या इमेज को लेबल करना। दूसरों द्वारा प्रदान की गई छवियों को सत्यापित करना।

ई-श्रम पोर्टल (e-Shram Portal) 

  • उद्देश्य: ई-श्रम पोर्टल का उद्देश्य पोर्टल पर पंजीकृत असंगठित श्रमिकों के लिए विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तक निर्बाध पहुँच प्रदान करना है।
  • एकीकृत कल्याण योजनाएँ: यह प्लेटफॉर्म वर्तमान में प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं को एकीकृत करता है, जैसे:-
    • एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ONORC)।
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)।
    • राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP)।
    • राष्ट्रीय कैरियर सेवा (NCS)।
    • प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन (PMSYM)।

  • लॉन्च तथा विकास
    • भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा अगस्त 2021 में ई-श्रम पोर्टल लॉन्च किया गया था।
    • इसमें 30 करोड़ से अधिक असंगठित श्रमिक पंजीकृत हैं।
    • इस पोर्टल का उद्देश्य असंगठित श्रमिकों का एक व्यापक राष्ट्रीय डेटाबेस पंजीकृत करना एवं बनाना है।
  • राष्ट्रीय कैरियर सेवा (NCS) के साथ एकीकरण: ई-श्रम को NCS पोर्टल के साथ एकीकृत किया गया है।
    • अपने यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (UAN), जो एक 12-अंकीय विशिष्ट संख्या है, का उपयोग करके असंगठित श्रमिक NCS पर पंजीकरण करा सकते हैं और उपयुक्त रोजगार के अवसरों की खोज कर सकते हैं।

संदर्भ

डिजिटल इंडिया कॉरपोरेशन के तहत एक स्वतंत्र प्रभाग इंडियाAI ने भारत में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को अपनाने और विकास को बढ़ाने के लिए माइक्रोसॉफ्ट के साथ साझेदारी की है। 

संबंधित तथ्य 

  • यह सहयोग समुदायों को सशक्त बनाने और नवाचार को बढ़ावा देने के इंडियाAI मिशन के उद्देश्यों के अनुरूप है।

साझेदारी की मुख्य विशेषताएँ

  • कौशल विकास पहल: वर्ष 2026 तक 5,00,000 व्यक्तियों को प्रशिक्षित करना, जिनमें छात्र, शिक्षक, डेवलपर्स, सरकारी अधिकारी तथा महिला उद्यमी शामिल होंगे।

  • ग्रामीण क्षेत्रों में AI नवाचार: टियर 2 और टियर 3 शहरों में AI विकास को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्टता केंद्र के रूप में AI उत्प्रेरकों को लॉन्च करना।
  • AI उत्पादकता प्रयोगशालाएँ: 10 राज्यों में 20 राष्ट्रीय कौशल प्रशिक्षण संस्थानों (NSTI) या NIELIT केंद्रों में प्रयोगशालाएँ स्थापित करना।
    • 20,000 शिक्षकों को प्रशिक्षित करना तथा 200 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITIs) में 1,00,000 छात्रों को AI पाठ्यक्रम प्रदान करना।
  • इंडिक AI मॉडल (Indic AI Models) का विकास: भारत की भाषायी तथा सांस्कृतिक विविधता को पूरा करने के लिए भारतीय भाषा समर्थन के साथ आधारभूत AI मॉडल का निर्माण करना।
  • जिम्मेदार AI अभ्यास: नैतिक AI के लिए रूपरेखा विकसित करना, मूल्यांकन मानक निर्धारित करना तथा भारत में AI सुरक्षा संस्थान की स्थापना करना।

इंडियाAI मिशन 

  • इंडियाAI मिशन एक सरकारी पहल है, जिसका उद्देश्य भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है।
  • लॉन्च की तारीख: मार्च 2024
  • यह नवाचार, पहुँच तथा AI प्रौद्योगिकियों के जिम्मेदार विकास पर केंद्रित है।
  • मंत्रालय: यह मिशन इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तहत एक अंब्रेला कार्यक्रम है।
  • मिशन की मुख्य विशेषताएँ
    • समावेशिता पर ध्यान केंद्रित करना: यह सुनिश्चित करना कि AI सभी को लाभ पहुँचाए, पहुँच में अंतर को पाटना।
    • डिजिटल सेवाओं में विश्वास को मजबूत करना: AI सिस्टम को सुरक्षित, नैतिक और सुरक्षित बनाने के लिए उपकरण विकसित करना।
    • सहयोग को प्रोत्साहित करना: शैक्षणिक संस्थानों, स्टार्टअप और उद्योगों को एक साथ नवाचार करने के लिए शामिल करना।

संदर्भ

भारत के प्रधानमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती पर केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना (KBLP) का शुभारंभ किया।

केन-बेतवा परियोजना

  • केन-बेतवा परियोजना एक नदी जोड़ो पहल है, जिसे मध्य प्रदेश में केन नदी से उत्तर प्रदेश में बेतवा नदी में अधिशेष जल स्थानांतरित करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिसंबर, 2021 में KBLP परियोजना के लिए 44,605 ​​करोड़ रुपये मंजूर किए थे।
  • केन-बेतवा लिंक परियोजना प्राधिकरण (KBLPA) इस ‘विशेष प्रयोज्य व्हीकल’ (SPV) परियोजना के कार्यान्वयन की देखरेख करेगा।
  • लिंक नहर की लंबाई: 221 किमी लंबाई, जिसमें 2 किमी. सुरंग भी शामिल है।
  • केन-बेतवा लिंक परियोजना के दो चरण हैं-
    • चरण I में दौधन बाँध परिसर और इसकी सहायक इकाइयों जैसे कि निम्न-स्तरीय सुरंग, उच्च-स्तरीय सुरंग, केन-बेतवा लिंक नहर और बिजलीघरों का निर्माण शामिल होगा।
    • चरण II में तीन घटक शामिल होंगे: लोअर ओर बाँध (Lower Orr Dam), बीना कॉम्प्लेक्स परियोजना और कोठा बैराज।
  • लाभ
    • सिंचाई: इस परियोजना का उद्देश्य भारत के सर्वाधिक सूखा प्रभावित क्षेत्रों में से एक बुंदेलखंड को सिंचाई हेतु जल उपलब्ध कराना है।
      • जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना से 10.62 लाख हेक्टेयर (मध्य प्रदेश में 8.11 लाख हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश में 2.51 लाख हेक्टेयर) भूमि को वार्षिक सिंचाई हेतु जल प्रदान करने और लगभग 62 लाख लोगों को पेयजल उपलब्ध कराने की उम्मीद है।
    • विद्युत उत्पादन: इस परियोजना का उद्देश्य 103 मेगावाट से अधिक जल विद्युत और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पन्न करना भी है।

केन और बेतवा नदियाँ

  • उद्गम: दोनों नदियों का उद्गम मध्य प्रदेश से होता है।
    • केन नदी मध्य प्रदेश के जबलपुर में कैमूर रेंज के उत्तर-पश्चिमी ढलान से प्रवाहित होती है और उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में यमुना नदी से मिलती है।
    • बेतवा नदी मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के पास विंध्य रेंज से निकलती है, बुंदेलखंड से होकर बहती है और उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में यमुना नदी में मिल जाती है।

  • सहायक नदियाँ: दोनों नदियाँ यमुना नदी की सहायक नदियाँ हैं।
  • बेतवा नदी पर बाँध: राजघाट, पारीछा और माताटीला बाँध बेतवा नदी पर स्थित हैं।
  • केन नदी पन्ना टाइगर रिजर्व से होकर गुजरती है।

नदी जोड़ो परियोजनाओं के बारे में

  • नदी जोड़ो परियोजनाओं में नहरों एवं बाँधों का निर्माण शामिल है, ताकि जल की अधिकता वाले नदी बेसिन से जल की कमी वाले बेसिन में जल पहुँचाया जा सके।
    • ऐसा प्रायः जल की कमी को दूर करने, सिंचाई में सुधार करने और जलविद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है।
  • उदाहरण
    • रूस में वोल्गा-डॉन नहर: कैस्पियन और काला सागर को जोड़ने वाली यह नहर दो प्रमुख नदी घाटियों के बीच नौवहन और जल हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

नदियों को जोड़ने की अवधारणा सर्वप्रथम 130 वर्ष पहले सर आर्थर कॉटन द्वारा प्रस्तावित की गई थी; उन्होंने गोदावरी और कृष्णा नदी घाटियों में सिंचाई बाँधों का डिजाइन तैयार किया था।

  • वर्ष 1972: डॉ. के.एल. राव ने गंगा और कावेरी नदियों को जोड़ने के लिए राष्ट्रीय जल ग्रिड का सुझाव दिया, लेकिन उच्च लागत के लिए उनकी आलोचना की गई।
  • वर्ष 1977: कैप्टन दस्तूर ने हिमालय और प्रायद्वीपीय नदियों को जोड़ने के लिए गारलैंड नहर का प्रस्ताव रखा, लेकिन तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
  • वर्ष 1980: राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) शुरू की गई, जिसमें जल हस्तांतरण के लिए 30 नदी लिंक (14 हिमालयी, 16 प्रायद्वीपीय) की पहचान की गई।
  • वर्ष 1982: व्यवहार्यता अध्ययन करने के लिए राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) की स्थापना की गई।
  • वर्ष 2002: उच्चतम न्यायालय ने एक जनहित याचिका के माध्यम से सरकार को इंटरलिंकिंग परियोजनाओं में तेजी लाने का निर्देश दिया।

राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) 

  • भारत सरकार ने वर्ष 1980 में नदियों को आपस में जोड़ने के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National Perspective Plan-NPP) तैयार की।
  • राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA), NPP के तहत नदियों को आपस में जोड़ने के कार्य को संचालित करने के लिए जिम्मेदार है।
  • NPP में दो घटक शामिल हैं:
    • हिमालयी नदियाँ विकास घटक।
    • प्रायद्वीपीय नदियाँ विकास घटक।
  • NPP के तहत कुल 30 लिंक परियोजनाओं की पहचान की गई है।
    • 14 हिमालयी और 16 प्रायद्वीपीय लिंक।
  • केन-बेतवा लिंक परियोजना (KBLP), NPP के तहत नदियों को जोड़ने की पहली परियोजना है और वर्तमान में कार्यान्वयन के अधीन है।

राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) 

  • NWDA जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग (DoWR, RD&GR), जल शक्ति मंत्रालय (MoJS) के तहत एक पंजीकृत सोसायटी है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1982 में जल संसाधन विकास के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) से संबंधित विस्तृत अध्ययन, सर्वेक्षण और जाँच करने के लिए सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत की गई थी।
  • इसका एक प्रमुख कार्य प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के तहत परियोजनाओं को शुरू करना, निर्माण करना, मरम्मत करना, जीर्णोद्धार करना, पुनर्वास और लागू करना है।

भारत में नदी जोड़ो की आवश्यकता 

  • जल की कमी: जून 2018 में नीति आयोग द्वारा प्रकाशित ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक’ (Composite Water Management Index-CWMI) नामक एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था कि लगभग 600 मिलियन लोग उच्च से लेकर चरम जल संकट का सामना कर रहे थे।
    • लिंक परियोजना से ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों से अधिशेष जल राजस्थान और बुंदेलखंड जैसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जा सकता है।
  • असमान जल वितरण: भारत का 80% जल प्रवाह मानसून के दौरान होता है, जिससे कुछ क्षेत्रों में बाढ़ आती है और अन्य में सूखा पड़ता है।
    • गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन में बाढ़ आती है, जबकि प्रायद्वीपीय नदियाँ जल की कमी का सामना करती हैं।
  • कृषि संबंधी आवश्यकताएँ: भारत की कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है, जो अनियमित और अप्रत्याशित होती है।
    • लिंक परियोजनाएँ 35 मिलियन हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि की सिंचाई कर सकती हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा में वृद्धि हो सकती है।
  • बाढ़ और सूखा प्रबंधन: SBI की शोध रिपोर्ट, इकोरैप (Ecowrap) के अनुसार, बाढ़ से होने वाले आर्थिक नुकसान का अनुमान 10,000-15,000 करोड़ रुपये के बीच है।
    • अतिरिक्त जल को जल की कमी वाले क्षेत्रों में भेजने से इन चरम स्थितियों को कम करने में मदद मिलती है।
  • शहरी और औद्योगिक जल माँग: तेजी से शहरीकरण और औद्योगिक विकास ने जल की माँग को बढ़ा दिया है।
    • दमनगंगा-पिंजल लिंक जैसी परियोजनाओं का उद्देश्य मुंबई जैसे शहरों को जल की आपूर्ति करना है।
  • जलविद्युत क्षमता: भारत में जलविद्युत क्षमता का दोहन नहीं हुआ है; नदी जोड़ो परियोजना 34,000 मेगावाट स्वच्छ ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: समान जल वितरण प्रदान करके राज्यों के बीच जल विवादों को हल करता है।
    • उदाहरण के लिए, कावेरी विवाद को हल करने के लिए तमिलनाडु और कर्नाटक में नदियों को जोड़ना।
  • जलवायु परिवर्तन लचीलापन: जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित वर्षा जल संसाधनों को प्रभावित करती है।
    • यह लिंक परियोजनाओं से संबंधित क्षेत्रों में जल संसाधनों को पुनर्वितरित करके एक बफर प्रदान करता है।

नदी जोड़ो परियोजनाओं (ILR) के लाभ

  • सिंचाई सुविधाओं में सुधार: ILR का उद्देश्य अतिरिक्त जल को स्थानांतरित करके सूखाग्रस्त क्षेत्रों की सिंचाई करना है।
    • केन-बेतवा लिंक बुंदेलखंड में 1.07 मिलियन हेक्टेयर भूमि को सिंचाई हेतु जल  प्रदान करेगा, जिससे कृषि उत्पादकता में सुधार होगा।
  • बढ़ी हुई जल आपूर्ति: पेयजल, औद्योगिक और कृषि उपयोग के लिए निरंतर जल उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
    • दमनगंगा-पिंजल लिंक को शहरी जल की कमी को दूर करते हुए मुंबई को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • बाढ़ नियंत्रण: ILR बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों से अतिरिक्त जल को कमी वाले क्षेत्रों में पुनर्वितरित करता है, जिससे बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
    • ब्रह्मपुत्र बेसिन से जल को मोड़ने से असम में आने वाली बाढ़ को रोका जा सकता है जबकि राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों को लाभ मिल सकता है।
  • जलविद्युत उत्पादन: ILR परियोजनाएँ ऊर्जा की माँग को पूरा करने के लिए जलविद्युत संयंत्रों को एकीकृत करती हैं।
    • दौधन बाँध (केन-बेतवा परियोजना) से 103 मेगावाट जलविद्युत उत्पादन होने की उम्मीद है।
  • आर्थिक विकास: विश्वसनीय जल आपूर्ति उद्योगों, कृषि और रोजगार सृजन का समर्थन करती है।
    • आंध्र प्रदेश में पोलावरम परियोजना कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देती है और औद्योगिक निवेश को आकर्षित करती है।
  • भूजल पुनर्भरण: जल के पुनर्वितरण से शुष्क क्षेत्रों में भूजल स्तर में सुधार होता है, जिससे दीर्घकालिक जल स्थिरता सुनिश्चित होती है।
    • पार-तापी-नर्मदा लिंक से जल की कमी वाले गुजरात में भूजल में वृद्धि होने की उम्मीद है।
  • क्षेत्रीय असंतुलन को कम करना: क्षेत्रीय जल उपलब्धता असमानताओं को संबोधित करना, अंतरराज्यीय संघर्षों को कम करना।
    • तमिलनाडु और कर्नाटक में नदियों को जोड़ने से जल-बँटवारे के विवादों का समाधान हो सकता है और सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है।
  • अंतर्देशीय जलमार्ग: नदियों को जोड़ने से नदी घाटियों में एक सतत् नौगम्य नेटवर्क बनाकर अंतर्देशीय जलमार्गों को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाने की क्षमता है।

नदी जोड़ो की पर्यावरणीय चुनौतियाँ

  • जैव विविधता का नुकसान: नदियों को आपस में जोड़ने से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होता है, जिससे जलीय और स्थलीय प्रजातियों को खतरा होता है।
    • उदाहरण: केन-बेतवा लिंक पन्ना टाइगर रिजर्व में वन्यजीवों को खतरे में डालता है।
  • सामान्य मानसून पैटर्न: अधिकांश नदियों में आमतौर पर मानसून के दौरान अतिरिक्त जल होता है और शुष्क मौसम के दौरान कमी का अनुभव होता है।
    • उदाहरण: गंगा, ब्रह्मपुत्र और गोदावरी जैसी प्रायद्वीपीय नदियाँ मानसून के दौरान उफान पर रहती हैं, लेकिन गर्मियों में कम प्रवाह का सामना करती हैं।
  • डेल्टा पारिस्थितिकी तंत्र का विघटन: डेल्टा में तलछट के प्रवाह में कमी से लवणता की मात्रा बढ़ सकती है और उपजाऊ भूमि का नुकसान हो सकता है।
    • उदाहरण: सिंधु और नर्मदा डेल्टा नदी के मोड़ के बाद इसी तरह के क्षरण का सामना करते हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र का विखंडन: नदियों के बीच प्राकृतिक संपर्क को बाधित कर सकता है, जिससे प्रवासी प्रजातियाँ और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्त्वपूर्ण तलछट प्रवाह प्रभावित हो सकता है।
  • लवणता अतिक्रमण: मीठे जल के प्रवाह में कमी से डेल्टा में समुद्री जल का प्रवेश बढ़ जाता है, जिससे भूमि की उर्वरता कम हो जाती है।
    • सिंधु डेल्टा में लवणता, भूमि क्षरण, तथा ऊपरी धारा मोड़ से ताजे जल के प्रवाह में कमी के कारण मत्स्यपालन में हानि का सामना करना पड़ा।
  • प्रदूषण और आक्रामक प्रजातियाँ: अंतर-बेसिन जल स्थानांतरण से प्रदूषक और आक्रामक प्रजातियों का प्रसार होता है, जिससे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।

नदी जोड़ो परियोजना की सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ

  • समुदायों का विस्थापन: गाँवों और कृषि भूमि के बड़े पैमाने पर जलमग्न होने से हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ रहा है।
    • केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना (KBLP) के कारण अपर्याप्त पुनर्वास उपायों के कारण 6,628 परिवारों के विस्थापित होने की आशंका है।
  • आजीविका का नुकसान: प्राकृतिक नदी पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर मत्स्याखेट, कृषि और संबद्ध गतिविधियाँ बाधित होती हैं।
    • डेल्टा में मीठे पानी के प्रवाह में कमी से सिंधु डेल्टा जैसे क्षेत्रों में मछली पकड़ने वाले समुदाय प्रभावित होते हैं।
  • उच्च वित्तीय बोझ: राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना (NRLP) के लिए अनुमानित ₹5.5 लाख करोड़, अन्य महत्त्वपूर्ण सामाजिक कल्याण परियोजनाओं से धन हटाना।

नदी जोड़ो की अन्य चुनौतियाँ

  • अंतरराज्यीय जल विवाद: जल का पुनर्वितरण जल-बँटवारे के अधिकारों को लेकर राज्यों के बीच संघर्ष को बढ़ा सकता है।
    • कावेरी जल विवाद जैसे लंबे समय से चले आ रहे विवाद अंतरराज्यीय परियोजनाओं में संभावित मुद्दों को उजागर करते हैं।
  • कानूनी और नीतिगत ढाँचा: एक व्यापक केंद्रीय नियामक ढाँचे की कमी अंतरराज्यीय सहयोग और विवाद समाधान को जटिल बनाती है।

जल के स्थानांतरण संबंधी विफलता के वैश्विक उदाहरण

  • फ्लोरिडा में किस्सिम्मी (Kissimmee) नदी को चैनलाइजेशन के कारण व्यापक रूप से आर्द्रभूमि का नुकसान हुआ, जिसके लिए महंगे पुनर्स्थापन प्रयासों की आवश्यकता थी।
  • अरल सागर (Aral Sea), जो कभी एक बड़ी झील थी, सोवियत सिंचाई परियोजनाओं के लिए नदियों के जोड़ने के बाद रेगिस्तान बन गई।

    • जल-बँटवारा समझौते प्रायः अलग-अलग राज्य प्राथमिकताओं के कारण रुक जाते हैं, जैसा कि केन-बेतवा परियोजना में देखा गया है।
  • जलवायु परिवर्तन अनिश्चितता: जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित वर्षा पैटर्न और नदी प्रवाह की परिवर्तित गतिशीलता जल हस्तांतरण की विश्वसनीयता को कम कर सकती है।
    • ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों को भविष्य के दशकों में कम प्रवाह का सामना करना पड़ सकता है।
  • परिचालन चुनौतियाँ: बाँधों और नहरों सहित विशाल अवसंरचना के रखरखाव के लिए निरंतर वित्तपोषण और तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
  • अंतरराष्ट्रीय निहितार्थ: हिमालयी नदियों से जुड़ी परियोजनाओं के लिए नेपाल और भूटान जैसे पड़ोसी देशों के साथ सहयोग की आवश्यकता होती है, जिससे बातचीत जटिल हो जाती है।
    • उदाहरण: सप्तकोसी-सुन कोसी लिंक जैसी हिमालयी नदी को जोड़ने वाली परियोजनाओं के लिए भारत-नेपाल सहयोग आवश्यक है, लेकिन जलमग्नता और लाभ-साझाकरण की चिंताएँ प्रगति में बाधा डालती हैं।
  • सांस्कृतिक एवं वैचारिक संघर्ष: नदी जोड़ो परियोजना धार्मिक विचारधारा के विपरीत है, जो नदियों को पवित्र मानती है।

नदी जोड़ो से संबंधित केस स्टडी

  • टेनेसी वैली अथॉरिटी (संयुक्त राज्य अमेरिका): एक व्यापक नदी बेसिन प्रबंधन परियोजना जिसने नेविगेशन, बाढ़ नियंत्रण और जल विद्युत के लिए नदियों को आपस में जोड़ा।
    • कृषि, उद्योग और रोजगार को बढ़ावा देकर क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को सफलतापूर्वक पुनर्जीवित किया।
  • मेकांग नदी बेसिन (दक्षिण पूर्व एशिया): अंतर-बेसिन जल हस्तांतरण ने लाओस, वियतनाम और कंबोडिया में कृषि और ऊर्जा उत्पादन को सुविधाजनक बनाया।
    • देशों के बीच जल-साझाकरण आवश्यकताओं को संतुलित करते हुए क्षेत्रीय सहयोग बनाया।

भारत में नदी जोड़ो परियोजनाओं के लिए आगे की राह

  • व्यापक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA): पारिस्थितिकी क्षति, जैव विविधता हानि और लवणता अतिक्रमण का आकलन करने और उसे कम करने के लिए विस्तृत EIA का विश्लेषण करना।
    • पर्यावरण प्रबंधन योजनाओं (EMP) और पुनर्स्थापन पहलों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
  • समान जल साझाकरण तंत्र: अंतरराज्यीय विवादों को संबोधित करने और जल संसाधनों का उचित वितरण सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत कानूनी ढाँचा विकसित करना।
    • सुव्यवस्थित निर्णय लेने के लिए अनुसूची 7 (संविधान) की संघ सूची की प्रविष्टि 56 के तहत एक केंद्रीय प्राधिकरण की स्थापना करना।
  • स्थायी विकल्पों पर ध्यान देना: नदी को जोड़ने के पूरक के रूप में वाटरशेड प्रबंधन, वर्षा जल संचयन और सूक्ष्म सिंचाई जैसे स्थानीय समाधानों को प्राथमिकता देना।
    • ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी उच्च दक्षता वाली सिंचाई प्रणालियों को बढ़ावा देना।
    • आभासी जल व्यापार (Virtual Water Trade-VWT): व्यापार के माध्यम से जल की कमी को दूर करके व्यापक अंतर-संयोजन बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता को कम करता है।
  • पुनर्वास और पुनर्स्थापन (Rehabilitation and Resettlement-R&R) नीतियों में सुधार: विस्थापित समुदायों के लिए पर्याप्त मुआवजा, रोजगार के अवसर और सामाजिक सहायता प्रदान करना।
    • प्रभावित आबादी को उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए नियोजन प्रक्रिया में शामिल करना।
  • आधुनिक तकनीक का लाभ उठाना: नदी जोड़ो परियोजनाओं की सटीक योजना और निगरानी के लिए उपग्रह इमेजरी और GIS उपकरणों का उपयोग करना।
    • दक्षता सुनिश्चित करने और अपव्यय को कम करने के लिए वास्तविक समय जल प्रवाह प्रबंधन प्रणालियों को लागू करना।
  • जलवायु लचीलापन योजना: वर्षा परिवर्तनशीलता का पूर्वानुमान लगाने और जल हस्तांतरण की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए जलवायु परिवर्तन मॉडल को शामिल करना।
    • अधिशेष जल वाली नदियों में कथित ‘अतिरिक्त’ जल पर अत्यधिक निर्भरता से बचना।
  • चरणबद्ध कार्यान्वयन और पायलट परियोजनाएँ: व्यवहार्यता को प्रदर्शित करने और आगे बढ़ने से पहले सबक सीखने के लिए छोटे, क्षेत्र-विशिष्ट लिंक से शुरुआत करना।
    • केन-बेतवा और पार-तापी-नर्मदा जैसे प्राथमिकता वाले लिंक पर कार्य में तेजी लाना।

निष्कर्ष 

नदियाँ महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करती हैं, जिसमें डेल्टा निर्माण के लिए अवसाद का परिवहन, जैव विविधता के लिए समर्थन, भूमि की उर्वरता में वृद्धि और भूजल पुनर्भरण शामिल हैं। नीति निर्माताओं को देश के दीर्घकालिक पारिस्थितिक और सामाजिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरणीय स्थिरता के साथ तकनीकी हस्तक्षेप को संतुलित करना चाहिए। प्राकृतिक प्रणालियों को अपरिवर्तनीय क्षति से बचने के लिए नदी जोड़ परियोजनाओं को जलवायु परिवर्तन शमन रणनीतियों के साथ संरेखित करना चाहिए।

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