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Jan 13 2025

सीरिया के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रवासन एजेंसी की सहायता अपील

संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (International Organization for Migration) ने कहा है कि वह सीरिया के लिए सहायता राशि को $30 मिलियन से बढ़ाकर $73.2 मिलियन कर रहा है। ऐसा अगले 6 महीनों में सीरिया में 1.1 मिलियन लोगों की सहायता करने के उद्देश्य से किया जा रहा है।

अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) 

  • वर्ष 1951 में स्थापित। 
  • संयुक्त राष्ट्र संबद्धता
    • यह एक संबंधित संगठन के रूप में संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का एक हिस्सा है।
    • IOM कोई विशेष एजेंसी नहीं बल्कि वर्ष 2016 से संयुक्त राष्ट्र का एक संबंधित संगठन है। 
  • सिद्धांत: प्रवासियों एवं समाज के लाभ के लिए मानवीय तथा व्यवस्थित प्रवास की सिफारिश करता है।
  • मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड।
  • सदस्यता: 175 सदस्य राष्ट्र एवं 8 पर्यवेक्षक राष्ट्र।
    • भारत 18 जून, 2008 से IOM का सदस्य है।
  • प्रकाशन
    • विश्व प्रवासन रिपोर्ट (World Migration Report)। 
    •  प्रवासन स्वास्थ्य वार्षिक रिपोर्ट (Migration Health Annual Report)।
  • कार्य
    • प्रवासन प्रबंधन: व्यवस्थित एवं मानवीय प्रवासन प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करता है।
    • सहयोग: प्रवासन मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है।
    • समाधान एवं सहायता: प्रवासन चुनौतियों के लिए व्यावहारिक समाधान।
    • मानवीय सहायता: प्रवासियों, शरणार्थियों एवं आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों के लिए।
  • महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ
    • श्रम गतिशीलता एवं प्रवासन के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी निम्नलिखित पर नीति तथा परिचालन मार्गदर्शन प्रदान करती है: 
      • श्रम गतिशीलता।
      • प्रवासी समुदाय एवं विकास लिंक।
      • प्रवासी एकीकरण।
    • प्रवासन पर संयुक्त राष्ट्र नेटवर्क के समन्वयक: प्रवासन के लिए संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल कॉम्पैक्ट की सुविधा प्रदान की गई (वर्ष 2018 में अपनाया गया)।
  • IOM सदस्य देशों में प्रवासन नीतियों को लागू नहीं करता है। इसके बजाय, IOM प्रवासन नीति पर सरकारों को सलाह एवं सहायता प्रदान करता है।

1,25,000 शरणार्थी निराशाजनक परिस्थितियों में सीरिया लौटे

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के मानवतावादियों ने लगभग 1,25,000 शरणार्थियों के संबंध में चेतावनी दी है, जो “कई वर्षों के निर्वासन के बाद उम्मीद लिए हुए” सीरिया लौटे हैं तथा स्वयं को निराशाजनक परिस्थितियों का सामना करते हुए पा रहे हैं।

सीरिया के बारे में 

  • अवस्थित: दक्षिण-पश्चिम एशिया में भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर।
  • सीमाएँ: तुर्किए (उत्तर), इराक (पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व), जॉर्डन (दक्षिण), इजरायल तथा लेबनान (दक्षिण पश्चिम)।
  • महत्त्वपूर्ण शहर: दमिश्क (बरादा नदी के किनारे), होम्स, अलेप्पो।
  • जलवायु : बड़े पैमाने पर भूमध्यसागरीय जलवायु।
  • पर्वत शृंखलाएँ: एंटी-लेबनान (सीरिया एवं लेबनान को अलग करती हैं), अल-अंसारियाह (Al-Ansariyyah) आदि।
  • प्रमुख नदियाँ: यूफ्रेट्स, टाइग्रिस, ओरोंटेस आदि।

मैक्सिको की खाड़ी

हाल ही में नव निर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मैक्सिको की खाड़ी का नाम बदलकर ‘अमेरिका की खाड़ी’ (Gulf of America) करने की अपनी योजना की घोषणा की।

मैक्सिको की खाड़ी का नामकरण

  • यह नाम पहली बार 16वीं शताब्दी में स्पेनिश खोजकर्ताओं द्वारा उपयोग किए गए मानचित्रों पर दर्शाया गया था।
  • ऊर्जा संसाधनों के मामले में यह खाड़ी अमेरिका के लिए महत्त्वपूर्ण है, कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा यहीं से आता है।

मैक्सिको की खाड़ी के बारे में

  • मैक्सिको की खाड़ी (स्पेनिश: गोल्फो डी मेक्सिको) अटलांटिक महासागर का एक महासागरीय बेसिन एवं सीमांत समुद्र है।
  • यह अधिकतर उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप से घिरा हुआ है।
  • अन्य नाम: ‘अमेरिका का भूमध्यसागरीय’ (Mediterranean of the Americas)।
  • गठन: 300 मिलियन वर्ष पहले टेक्टॉनिक प्लेटों के संचलन के कारण समुद्र तल के धँसने के परिणामस्वरूप इसका निर्माण हुआ था।
  • सिग्सबी डीप (Sigsbee Deep) (मैक्सिको बेसिन) मैक्सिको की खाड़ी का सबसे गहरा क्षेत्र है।
  • सीमाएँ
    • पूर्वोत्तर, उत्तर, उत्तर-पश्चिम: संयुक्त राज्य अमेरिका का खाड़ी तट।
    • दक्षिण-पश्चिम एवं दक्षिण: मैक्सिकन राज्य तमाउलिपास, वेराक्रूज, टबैस्को, कैम्पेचे, युकाटन तथा क्विंटाना रू।
    • दक्षिण-पूर्व: क्यूबा।
  • ‘थर्ड कोस्ट’ (Third Coast): खाड़ी की सीमा से संलग्न दक्षिणी अमेरिकी राज्य टेक्सास, लुइसियाना, मिसिसिपी, अलबामा एवं फ्लोरिडा को अटलांटिक तथा प्रशांत तटों के साथ-साथ अमेरिका के ‘थर्ड कोस्ट’ के रूप में जाना जाता है।
  • अन्य जल निकायों से जुड़ाव
    • फ्लोरिडा जलडमरूमध्य (अमेरिका एवं क्यूबा के बीच) के माध्यम से अटलांटिक महासागर से जुड़ी हुई है।
    • युकाटन चैनल (मैक्सिको एवं क्यूबा के बीच) के माध्यम से कैरेबियन सागर से जुड़ा हुआ है।
  • मैक्सिको की खाड़ी में बहने वाली नदियाँ: मिसिसिपी नदी, रियो ग्रांडे एवं मोबाइल नदी।
  • मैक्सिको की खाड़ी के आसपास की महत्त्वपूर्ण झीलें: पोंटचार्टेन झील, लगुना माद्रे (Laguna Madre) एवं बोर्गने झील।
  • ‘फ्लावर गार्डन बैंक’: यह चमकीले रंग की प्रवाल चट्टानें हैं। 
    • मैक्सिको की खाड़ी के उत्तर-पश्चिमी भाग में, गैलवेस्टन के दक्षिण-पूर्व में लगभग 185 किमी. दूर स्थित है।

किसान आई. डी. को पीएम-किसान से लिंक करना

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने पीएम-किसान योजना के तहत नए लाभार्थियों के पंजीकरण के लिए किसान आई. डी. प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया है।

  • नए आवेदकों के लिए यह प्रणाली 1 जनवरी, 2025 से 10 राज्यों में लागू हो गई है।
    • 10 राज्य हैं: आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश में 11 करोड़ पीएम-किसान लाभार्थियों में से लगभग 84 प्रतिशत (9.25 करोड़) हैं।
  • पीएम-किसान योजना के लिए नए आवेदकों को किसान रजिस्ट्री के साथ पंजीकृत होना होगा एवं आवेदन-पत्र में अपनी किसान आई.डी. प्रदान करनी होगी। 
  • उद्देश्य: PM-किसान योजना की पंजीकरण प्रक्रिया को सरल बनाना, क्योंकि किसान आई.डी.  यह गारंटी प्रदान करेगी कि आवेदक-किसान के पास भूमि है।

किसान पहचान-पत्र या किसान आई.डी. 

  • किसान आई.डी. किसानों के लिए आधार जैसी विशिष्ट डिजिटल पहचान है।
  • यह जनसांख्यिकी, बोई गई फसल एवं स्वामित्व विवरण जैसी जानकारी प्रदान करता है तथा राज्य के भूमि रिकॉर्ड से गतिशील रूप से जुड़ा हुआ है।
  • लक्ष्य: मार्च 2025 तक 6 करोड़ किसान आई.डी. बनाने का लक्ष्य रखा गया है। 
  • किसान रजिस्ट्री: यह किसान आईडी के माध्यम से बनाया गया डेटाबेस है।
    • कृषि क्षेत्र में डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए केंद्र के डिजिटल कृषि मिशन के एग्री-स्टैक घटक के तहत किसान रजिस्ट्री तीन रजिस्ट्रियों में से एक होगी।

PM किसान योजना 

  • PM किसान योजना विशेष रूप से किसानों को उनके कृषि एवं घरेलू खर्चों को पूरा करने में मदद करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए शुरू की गई।
  • लॉन्च: यह वर्ष 2019 में शुरू की गई एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना (100 प्रतिशत फंडिंग) है।
  • नोडल मंत्रालय: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (भारत सरकार)
  • पात्रता: इस योजना में सभी भूमिधारक किसान परिवार पात्र हैं।
  • बहिष्करण: निम्नलिखित व्यक्ति योजना के तहत लाभ के लिए अयोग्य हैं:
    • संस्थागत भूमिधारक; संवैधानिक पद धारण करने वाले सदस्य; सेवारत या सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी; ₹10,000 से अधिक प्राप्त करने वाले पेंशनभोगी; आयकरदाता; डॉक्टर एवं इंजीनियर जैसे पेशेवर।

विशेषताएँ 

  • पात्र किसान परिवारों को प्रत्येक चार महीने में आधार से जुड़े खातों के माध्यम से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के द्वारा तीन समान किस्तों में प्रति वर्ष 6,000 रुपये मिलेंगे। 
  • स्व-पंजीकरण: किसान पीएम-किसान पोर्टल या मोबाइल ऐप का उपयोग करके अपना पंजीकरण करा सकते हैं, जिससे उनके लिए लाभ प्राप्त करना आसान हो जाएगा।
  • कृषि व्यय के लिए सहायता: इस धनराशि का उपयोग किसान किसी भी कृषि-संबंधी खर्च के लिए कर सकते हैं, चाहे वह इनपुट, उपकरण या व्यक्तिगत जरूरतों के लिए हो।

एनीमियाफोन (AnemiaPhone)

कॉर्नेल विश्वविद्यालय ने एक विज्ञप्ति में आयरन की कमी का आकलन करने के लिए अपनी तकनीक अर्थात् ‘एनीमियाफोन’ (AnemiaPhone) को शून्य लागत पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) को हस्तांतरित कर दिया है।

  • उद्देश्य: पूरे देश में एनीमिया, महिला स्वास्थ्य, तथा मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के लिए अपने कार्यक्रमों में एनीमियाफोन प्रौद्योगिकी को एकीकृत करना।

एनीमियाफोन 

  • इस तकनीक में एक ‘टेस्ट स्ट्रिप’ शामिल है, जिसे छोटे, पोर्टेबल वाई-फाई या ब्लूटूथ-सक्षम टेस्ट स्ट्रिप रीडर के साथ जोड़ा जा सकता है।
  • परीक्षण किया गया: इसका परीक्षण जोन क्लेन जैकब्स सेंटर फॉर प्रिसिजन न्यूट्रिशन एंड हेल्थ में किया गया।
  • कार्य: इस तकनीक के लिए एक छोटी छड़ी, एक परीक्षण पट्टी पर खून की एक बूँद और पाठक को मूल्यांकन करने के लिए कुछ मिनटों की आवश्यकता होती है।
    • जानकारी को एक क्लिनिकल डाटाबेस में अपलोड किया जाता है, जिसे स्वास्थ्य कार्यकर्ता मार्गदर्शन, प्राथमिकता निर्धारण और रेफरल, या मौके पर हस्तक्षेप प्रदान करके समझ सकते हैं।

एनीमिया 

  • एनीमिया एक ऐसी स्थिति है, जिसमें हीमोग्लोबिन (Hb) सांद्रता, लाल रक्त कोशिका की संख्या या पैक्ड-सेल वॉल्यूम में एक स्थापित सीमा से नीचे कमी होती है।
    • प्रभाव: एनीमिया की स्थिति शरीर की ऑक्सीजन (फेफड़ों से ऊतकों तक) और कार्बन डाइऑक्साइड (ऊतक से फेफड़ों तक) परिवहन क्षमता को कम कर देती है।
  • सीमाएँ: वर्तमान WHO दिशा-निर्देशों के अनुसार,
    • बच्चे (6-59 महीने की आयु वाले) और गर्भवती महिलाएँ (15-49 वर्ष की आयु वाले): <11 ग्राम/डेसीलिटर (g/dl) की Hb सांद्रता को एनीमिया माना जाता है।
    • सामान्य महिलाएँ: Hb <12 g/dl
    • पुरुष (15-49 वर्ष की आयु): Hb <13 g/dl
  • भार: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (वर्ष 2019-21) के निष्कर्षों के अनुसार, 15-49 आयु वर्ग की 57% महिलाएँ और छह महीने से 59 महीने के बीच के 67% बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं। 
  • मूल्यांकन: भारत अब आहार, पोषण और स्वास्थ्य की स्थिति का पता लगाने के लिए नए आहार और बायोमार्कर सर्वेक्षण (व्यापक राष्ट्रीय स्तर के आहार सर्वेक्षण) के माध्यम से एनीमिया का आकलन करेगा।
  • कारण: एनीमिया मुख्य रूप से आयरन की कमी के कारण होता है, हालाँकि फोलेट, विटामिन B12 और A की कमी भी इसके महत्त्वपूर्ण कारण हैं।
  • लक्षण: इसके परिणामस्वरूप थकान, कमजोरी, चक्कर आना और साँस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण हो सकते हैं।

एनीमिया मुक्त भारत

  • छह हस्तक्षेपों के कार्यान्वयन द्वारा जीवन चक्र दृष्टिकोण के माध्यम से लाभार्थियों के छह आयु समूहों में एनीमिया को कम करने के लिए इसे लागू किया जा रहा है।
  • लाभार्थी: बच्चे (6-59 माह तथा 5-9 वर्ष आयु वर्ग), किशोर (10-19 वर्ष), गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाएँ तथा प्रजनन आयु समूह की महिलाएँ (15-49 वर्ष)।
  • हस्तक्षेप: 
    • प्रोफिलैक्टिक आयरन फोलिक एसिड सप्लीमेंटेशन।
    • समय-समय पर कृमि मुक्ति।
    • सरकारी वित्तपोषित स्वास्थ्य कार्यक्रमों में आयरन और फोलिक एसिड युक्त खाद्य पदार्थों का प्रावधान।
    • आयरन युक्त, प्रोटीन युक्त और विटामिन सी युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ाना; आहार विविधीकरण; खाद्य सुदृढ़ीकरण।
    • मलेरिया, हीमोग्लोबिनोपैथी और फ्लोरोसिस पर विशेष ध्यान देते हुए स्थानिक क्षेत्रों में एनीमिया के गैर-पोषण संबंधी कारणों का उपचार।
    • डिजिटल तरीकों का उपयोग करके एनीमिया का परीक्षण और उपचार।

संदर्भ

अंतरराष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन (इंटरपोल) ने अपना पहला सिल्वर नोटिस लॉन्च किया है, जो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार लूटी गई संपत्तियों का पता लगाने और उन्हें वापस लाने के लिए एक पायलट पहल है।

  • इस पायलट परियोजना में भारत सहित 52 देश शामिल हैं और यह नवंबर 2025 तक चलेगी।

सिल्वर नोटिस के बारे में

  • अलर्ट सिस्टम में नया जोड़: सिल्वर नोटिस इंटरपोल के कलर-कोडेड अलर्ट सिस्टम में नवीनतम जोड़ है, जिसका उद्देश्य वित्तीय अपराधों से निपटने में वैश्विक सहयोग को बढ़ाना है।
  • उद्देश्य: यह नोटिस सदस्य देशों को आपराधिक रूप से प्राप्त संपत्तियों की पहचान करने, उनका पता लगाने और उन्हें वापस पाने में सहायता करता है। इन संपत्तियों में शामिल हो सकते हैं:
    • संपत्ति
    • वाहन
    • वित्तीय खाते
    • व्यवसाय
  • आपराधिक गतिविधियों का दायरा: सिल्वर नोटिस विशेष रूप से निम्नलिखित मामलों में उपयोगी होते हैं:
    • धोखाधड़ी
    • भ्रष्टाचार
    • मादक पदार्थों की तस्करी
    • पर्यावरण अपराध
  • पायलट चरण: सिल्वर नोटिस के लिए पायलट कार्यक्रम नवंबर 2025 तक संचालित होगा, जिसके दौरान इसकी प्रभावशीलता और परिचालन व्यवहार्यता का मूल्यांकन किया जाएगा।

यह कैसे कार्य करता है?

  • सूचना का अनुरोध: सदस्य देश आपराधिक गतिविधियों से जुड़ी संदिग्ध संपत्तियों के बारे में विवरण का अनुरोध कर सकते हैं।
    • ये अनुरोध सीमा पार लेन-देन और अपराधों से जुड़ी संपत्तियों का पता लगाने में मदद करते हैं।
  • पहचान और कार्रवाई: सिल्वर नोटिस ऐसी संपत्तियों का पता लगाने में मदद करता है, जिससे सदस्य देश कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं जैसे:
    • जब्ती (Seizure)
    • अधिहरण (Confiscation)
  • कार्रवाई प्रत्येक देश के राष्ट्रीय कानूनों के अनुपालन में की जाती है।
  • सामान्य सचिवालय समीक्षा: जारी करने से पहले, इंटरपोल सामान्य सचिवालय प्रत्येक नोटिस की गहन समीक्षा करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि:
    • इंटरपोल के संगठनात्मक नियमों का अनुपालन करता है।
    • राजनीतिक या गैर-कानूनी उद्देश्यों के लिए दुरुपयोग को रोकता है।

महत्त्व

  • वैश्विक वित्तीय अपराध नियंत्रण: सिल्वर नोटिस मनी लॉण्ड्रिंग और अन्य वित्तीय अपराधों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को मजबूत करता है।
  • सहयोग में वृद्धि: 52 देशों को शामिल करके, यह पहल आपराधिक संपत्तियों की वसूली में सदस्य देशों के बीच मजबूत सहयोग को बढ़ावा देती है।

अंतरराष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन (इंटरपोल) के बारे में

  • उद्देश्य: आतंकवाद, तस्करी और संगठित अपराध जैसे सीमा पार अपराधों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय पुलिस सहयोग को सुविधाजनक बनाना।
  • स्थापना वर्ष: वर्ष 1923 में 
  • सदस्य: 195 सदस्य देश
    • भारत की सदस्यता: भारत वर्ष 1956 से इसका सदस्य है।
  • स्थिति: स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय संगठन, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का हिस्सा नहीं।
  • मुख्यालय: फ्राँस के ल्योन में स्थित है।
  • आधिकारिक भाषाएँ: अरबी, अंग्रेजी, फ्रेंच और स्पेनिश।
  • जाँच में भूमिका: अंतरराष्ट्रीय जाँच के लिए संपर्क के प्रारंभिक बिंदु के रूप में कार्य करता है, लेकिन अपराधों की सक्रिय रूप से जाँच नहीं करता है।
  • संचार प्रणाली: सदस्य देश इंटरपोल की संचार प्रणाली, I-24/7 के माध्यम से जुड़े हुए हैं, जिससे वास्तविक समय में संपर्क और इंटरपोल के डेटाबेस तक पहुँच की सुविधा मिलती है।
  • डेटाबेस: इंटरपोल अपराधों और अपराधियों के बारे में जानकारी रखने वाले 19 डेटाबेस का प्रबंधन करता है, जो सदस्य देशों के लिए सुलभ हैं।

नोटिस के प्रकार

  • 9 प्रकार के नोटिस (जिनमें से 8 रंग-कोडित हैं): सदस्य देशों में पुलिस को महत्त्वपूर्ण अपराध-संबंधी जानकारी साझा करने की अनुमति देने वाले अलर्ट/अनुरोध के रूप में।
  • ये नोटिस किसी सदस्य देश के इंटरपोल नेशनल सेंट्रल ब्यूरो के अनुरोध पर इंटरपोल के जनरल सचिवालय द्वारा जारी किए जाते हैं और सभी सदस्य देशों के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं।

इंटरपोल की संगठनात्मक संरचना

  • आम सभा
    • प्रत्येक सदस्य देश से एक प्रतिनिधि के साथ सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था।
    • वार्षिक बैठकों के दौरान निर्णय लिए जाते हैं।
  • महासचिवालय
    • महासचिव के अधीन कार्य करता है, जो दिन-प्रतिदिन के कार्यों का प्रबंधन करता है।
    • महासचिव का कार्यकाल: पाँच वर्ष, महासभा द्वारा नियुक्त।
  • कार्यकारी समिति
    • इसमें 13 सदस्य हैं, जिनमें से प्रत्येक एक अलग क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
    • यह महासभा के निर्णयों के कार्यान्वयन की देखरेख करता है और महासचिव के कार्य की निगरानी करता है।
  • राष्ट्रीय केंद्रीय ब्यूरो (NCB)
    • प्रत्येक सदस्य देश में एक NCB होता है, जो इंटरपोल और वैश्विक स्तर पर अन्य NCB के साथ संपर्क के केंद्रीय बिंदु के रूप में कार्य करता है।
    • NCB का प्रबंधन पुलिस अधिकारियों द्वारा किया जाता है और आमतौर पर पुलिसिंग के लिए जिम्मेदार केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत होता है।
    • भारत में, केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI), NCB के रूप में कार्य करता है।

संदर्भ

हाल ही में वैश्विक पोषण लक्ष्यों (Global Nutrition Targets- GNTs) की प्राप्ति (या असफलता) की दिशा में वैश्विक प्रगति का मूल्यांकन द लैंसेट (The Lancet) में प्रकाशित हुआ था। 

संबंधित तथ्य

  • विश्लेषण में वर्ष 2012 से वर्ष 2021 तक 204 देशों में क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर प्रगति के रुझान दिए गए हैं, जिसमें वर्ष 2050 तक के अनुमान भी शामिल हैं।
  • सामान्य तौर पर, सभी देशों में धीमी और अपर्याप्त प्रगति दिखाई दी।
  • यह अनुमान लगाया गया था कि वर्ष 2030 तक, कुछ ही देश (भारत नहीं) स्टंटिंग के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम होंगे, और कोई भी देश जन्म के समय कम वजन, एनीमिया और बचपन के समय के मोटापे को पूरा नहीं कर पाएगा।
  • कुपोषण में थोड़ी प्रगति हुई है, लेकिन अधिक वजन जैसी समस्याओं में वृद्धि हुई है।

पोषण से संबंधित बुनियादी अवधारणाएँ

  • स्टंटिंग (Stunting)
    • स्टंटिंग का तात्पर्य खराब पोषण, बार-बार संक्रमण और अपर्याप्त मनोसामाजिक उत्तेजना के कारण बच्चों के  वृद्धि एवं विकास में बाधा से है।
    • ‘ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट’ के अनुसार, भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के 34.7% बच्चे स्टंटिंग से पीड़ित हैं, जो एशिया के क्षेत्रीय औसत से अधिक है।
  • एनीमिया (Anaemia)
    • एनीमिया की पहचान लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में कमी से होती है, जिससे शरीर में ऑक्सीजन का परिवहन कम हो जाता है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) से पता चलता है कि एनीमिया का अधिक भार है, जो भारत में प्रजनन आयु की 57% महिलाओं को प्रभावित करता है।
  • वेस्टिंग (Wasting)
    • वेस्टिंग कुपोषण का एक रूप है, जिसमें व्यक्ति, विशेष रूप से बच्चे का वजन-ऊँचाई के अनुपात में कम होता है, जो तीव्र कुपोषण का संकेत देता है।
    • यह गंभीर रूप से वजन घटने को दर्शाता है, जो अक्सर पर्याप्त आहार न मिलने या डायरिया जैसी संक्रामक बीमारियों के कारण होता है, जो पोषक तत्त्वों के अवशोषण को बाधित करते हैं।

सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण के बारे में

  • परिभाषा: सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण अध्ययन का वह क्षेत्र है, जो आबादी में पोषण संबंधी बीमारियों की रोकथाम सुनिश्चित कर अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और इन समस्याओं को हल करने के उद्देश्य से सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों से संबंधित है।
  • इसे समाज के संगठित प्रयासों/कार्रवाई के माध्यम से स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और बीमारियों को रोकने, जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है।
  • यह आहार की कमियों, अधिकता और संबंधित स्वास्थ्य स्थितियों को संबोधित करने के लिए विज्ञान, नीति और कार्यक्रमों को एकीकृत करता है, जिससे समग्र कल्याण सुनिश्चित होता है।

पोषण सुरक्षा का महत्त्व

  • फाउंडेशन फॉर ह्यूमन कैपिटल: भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे कुपोषण के कारण बौनेपन से पीड़ित हैं (NFHS-5)।
    • विश्व बैंक के अनुसार, कुपोषण के कारण भारत को उत्पादकता में सालाना 10 बिलियन डॉलर की हानि होती है।

वैश्विक पोषण लक्ष्यों के बारे में

  • वैश्विक पोषण लक्ष्य विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA) द्वारा वर्ष 2012 में स्थापित मापनीय लक्ष्यों का एक समूह है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2025 तक सभी प्रकार के कुपोषण से निपटना है।
  • ये लक्ष्य मातृ, शिशु और छोटे बच्चों के पोषण में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं ताकि खराब पोषण से जुड़ी मृत्यु दर, रुग्णता और विकास संबंधी चुनौतियों को कम किया जा सके।

छह वैश्विक पोषण लक्ष्य 2025

  • 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में बौनेपन की समस्या से निपटना: अविकसित बच्चों की संख्या में 40% की कमी करना।
  • 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में कमजोरी को दूर करना: कमजोरी को 5% से कम पर बनाए रखना।
  • बचपन में अधिक वजन को रोकना: 5 वर्ष से कम आयु के अधिक वजन वाले बच्चों की संख्या को नियंत्रित करना।
  • प्रजनन आयु की महिलाओं को एनीमिया मुक्त होने सहायता प्रदान करना: 15-49 वर्ष की आयु की महिलाओं में एनीमिया के प्रसार में 50% की कमी लाना।
  • केवल स्तनपान बढ़ाना: पहले 6 महीनों के लिए केवल स्तनपान की दर को बढ़ाकर कम-से-कम 50% करना।
  • जन्म के समय कम वजन (LBW) की समस्या को कम करना: जन्म के समय कम वजन की समस्या को 30% तक कम करना।

  • स्वास्थ्य परिणामों में सुधार: पर्याप्त पोषण एनीमिया जैसी बीमारियों के जोखिम को कम करता है, जो प्रजनन आयु की 57% महिलाओं को प्रभावित करता है (NFHS-5)।
    • उदाहरण: भारत के PDS में आयरन के साथ चावल को फोर्टीफाइड करने का उद्देश्य आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया को दूर करना है।
  • आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है: WHO के अनुसार, एक अच्छी तरह से पोषित आबादी कार्यबल की उत्पादकता को 20-30% तक बढ़ाती है।
    • उदाहरण: वियतनाम ने एक दशक में कुपोषण को 20% तक कम किया, जिससे 7% वार्षिक जीडीपी वृद्धि में योगदान मिला।
  • खाद्य प्रणालियों को मजबूत करता है: पोषण सुरक्षा कृषि में पोषक तत्त्वों से भरपूर फसलों जैसे बाजरा को शामिल करने के लिए विविधता लाती है।
  • उदाहरण: भारत ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (International Year of Millets) घोषित किया, जिससे उनकी खेती और खपत को बढ़ावा मिला।
  • सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) का समर्थन करता है: SDG 2 (भुखमरी को समाप्त करना) और SDG 3 (अच्छा स्वास्थ्य एवं कल्याण) को प्राप्त करने का लक्ष्य बनाता है।

भारत में वर्तमान पोषण संबंधी चुनौतियाँ

  • कुपोषण का दोहरा बोझ: NFHS-5 (वर्ष 2019-21) से पता चलता है कि 5 वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे बौने हैं और 22% वयस्क अधिक वजन वाले या मोटे हैं।
    • बिहार (42.9%) और उत्तर प्रदेश (39.7%) जैसे राज्यों में बौनेपन की उच्च दर प्रचलित है।
  • सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी (छिपी हुई भुखमरी): 57% महिलाएँ (15-49 वर्ष) और 67% बच्चे (6-59 महीने) एनीमिया से पीड़ित हैं (NFHS-5)।
    • नमक आयोडीनीकरण कार्यक्रमों के बावजूद पहाड़ी क्षेत्रों में आयोडीन की कमी से होने वाले विकारों में वृद्धि देखी गई है।
  • खराब आहार विविधता: 6-23 महीने की आयु के केवल 11% बच्चों को पर्याप्त रूप से विविध आहार मिलता है (NFHS-5)।
    • राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में फलों, सब्जियों और प्रोटीन के अपर्याप्त आहार के संबंध में बताया गया है।
  • खाद्य मुद्रास्फीति का प्रभाव: खाद्य मुद्रास्फीति वर्ष 2024 में 11.5% तक पहुँच गई, जिससे कई लोगों के लिए पौष्टिक भोजन अप्राप्य हो गया।
    • दालों और खाद्य तेलों की बढ़ती लागत कम आय वाले परिवारों में उनकी खपत को सीमित करती है।

वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • फ्रंट-ऑफ-पैकेज पोषण लेबलिंग (FOPNL): फ्राँस जैसे देशों ने न्यूट्री-स्कोर प्रणाली को अपनाया है, जो उपभोक्ताओं को स्वस्थ भोजन विकल्प चुनने के लिए स्पष्ट पोषण संबंधी जानकारी प्रदान करता है।
  • राजकोषीय नीतियाँ: मैक्सिको और यू.के. जैसे देशों ने शर्करा युक्त पेय पदार्थों पर कर लागू किया है, जिसके परिणामस्वरूप खपत कम हुई है और निर्माताओं द्वारा सुधार को प्रोत्साहित किया गया है।
  • अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का विनियमन: चिली ने बच्चों को अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के विपणन पर सख्त नियम लागू किए हैं, जिसमें विज्ञापन प्रतिबंध और अनिवार्य चेतावनी लेबल शामिल हैं।

  • पोषण में लैंगिक असमानता: सांस्कृतिक मानदंडों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं और लड़कियों को अक्सर पुरुषों की तुलना में भोजन में कम कैलोरी और प्रोटीन मिल पाती है।

भारत की राष्ट्रीय पोषण नीति (NNP)

  • वर्ष 1993 में अपनाया गया: स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और शिक्षा को मिलाकर एक बहु-क्षेत्रीय रणनीति पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • प्रत्यक्ष हस्तक्षेप: पूरक आहार, सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का संवर्द्धन और पोषण शिक्षा।
    • अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप: खाद्य उत्पादन, स्वच्छता और मातृ देखभाल में सुधार।
  • हालिया अपडेट
    • पोषण (POSHAN) अभियान (2018): इसका उद्देश्य स्टंटिंग, कुपोषण और एनीमिया को प्रतिवर्ष 2-3% तक कम करना है।
    • मिड-डे मील योजना: स्कूलों में फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ और दूध को शामिल करने के लिए इसका विस्तार किया गया।
  • परिणाम: NFHS-4 से NFHS-5 तक बौनेपन में 3.4% की कमी देखी गई है।

आगे की राह

  • डेटा-संचालित लक्ष्यीकरण: कुपोषण के हॉटस्पॉट की पहचान करने के लिए एआई और भू-स्थानिक मानचित्रण का उपयोग करना।
    • उदाहरण: आंध्र प्रदेश की वास्तविक समय पोषण निगरानी प्रणाली ने डेटा संग्रह और नीति प्रतिक्रिया में सुधार किया।
  • फोर्टिफिकेशन और बायोफोर्टिफिकेशन: सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के साथ चावल, गेहूँ और नमक जैसे ‘फोर्टिफाइड स्टेपल’ को बढ़ावा देना।
    • उदाहरण: छत्तीसगढ़ के फोर्टिफाइड चावल कार्यक्रम ने पायलट जिलों में एनीमिया को 6% तक कम कर दिया।

सार्वजनिक पोषण समस्याओं से निपटने की रणनीतियों में शामिल हैं:

  • आहार या भोजन-आधारित रणनीतियाँ: विविध, पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक पहुँच में सुधार, खाद्य पदार्थों को सुदृढ़ बनाना और आहार विविधता को प्रोत्साहित करना।
  • पोषक तत्त्व-आधारित या औषधीय दृष्टिकोण: आयरन, विटामिन A और आयोडीन जैसे पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने के लिए पूरक आहार प्रदान करना।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप: शैक्षणिक अभियान, बेहतर स्वास्थ्य सेवा पहुँच, स्वच्छता और समुदाय-आधारित पहल।
  • आर्थिक रणनीतियाँ: पोषक भोजन की सामर्थ्य और उपलब्धता सुनिश्चित करना, और निम्न-आय समूहों का समर्थन करने के लिए सरकारी हस्तक्षेप।

  • व्यवहार परिवर्तन अभियान: आहार विविधता और स्वच्छता में सुधार के लिए जागरूकता अभियान चलाना।
    • उदाहरण: गुजरात की पोषण सखी पहल महिलाओं को संतुलित आहार के बारे में घर घर जाकर प्रशिक्षण प्रदान करने में सहायक है।
  • स्थानीय पोषण कार्यक्रमों को मजबूत करना: सांस्कृतिक प्रथाओं और आहार संबंधी प्राथमिकताओं के साथ तालमेल बिठाने के लिए हस्तक्षेप करना।
    • उदाहरण: ओडिशा की ममता योजना माताओं को प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल के लिए प्रोत्साहित करती है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देना: सस्ते, पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य उत्पाद विकसित करने के लिए निजी क्षेत्रों के साथ सहयोग करना।
    • उदाहरण: कर्नाटक में भागीदारी स्कूली बच्चों के लिए फोर्टिफाइड स्नैक्स उपलब्ध कराती है।

निष्कर्ष

भारत की पोषण संबंधी चुनौतियाँ बहुआयामी हैं, जिनमें कुपोषण, अतिपोषण और कार्यान्वयन की अक्षमताएँ शामिल हैं। इनसे निपटने के लिए समग्र रणनीतियों की आवश्यकता है, जिसमें स्थानीय हस्तक्षेप, सामुदायिक सहभागिता और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना शामिल है। वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को स्थानीय समाधानों के साथ जोड़कर, भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण में सुधार और सतत् विकास को बढ़ावा देने के अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।

संदर्भ

भारत में प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद (जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में) की शिक्षाओं एवं आदर्शों का सम्मान करने के लिए राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।

  • 12 जनवरी, 2025 को स्वामी विवेकानंद की 162वीं जयंती है। 

राष्ट्रीय युवा दिवस 2025 के बारे में

  • राष्ट्रीय युवा महोत्सव (NYF) प्रत्येक वर्ष 12 से 16 जनवरी तक आयोजित किया जाता है।
  • NYF 2025 भारत मंडपम, नई दिल्ली में आयोजित किया जाएगा।
  • इसकी मेजबानी केंद्रीय युवा मामले एवं खेल मंत्रालय द्वारा किसी एक राज्य या केंद्रशासित प्रदेश (UTs) के साथ साझेदारी में की जाती है।
  • NYF 2025 का विषय ‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में नवाचार’ है।

स्वामी विवेकानंद 

  • प्रारंभ में उनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त था, जिनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में हुआ था। 
  • स्वामी विवेकानंद 19वीं सदी के रहस्यवादी एवं योगी रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे।

  • उन्होंने वर्ष 1897 में रामकृष्ण मठ की स्थापना की, जो कोलकाता में उनके गुरु की शिक्षाओं पर आधारित एक मठ था एवं एक विश्वव्यापी आध्यात्मिक आंदोलन था, जिसे वेदांत के प्राचीन हिंदू दर्शन पर आधारित रामकृष्ण मिशन के रूप में जाना जाता था।
  • स्वामी विवेकानंद को उन महान भारतीय व्यक्तित्वों में से एक माना जाता है, जिन्होंने पश्चिमी दुनिया को हिंदू धर्म से अवगत कराया। 
  • रामकृष्ण परमहंस के शिष्य के रूप में, उन्होंने औपनिवेशिक भारत में राष्ट्रीय एकीकरण पर जोर दिया एवं उन्हें देश में हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया जाता है।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन एवं आध्यात्मिक जागृति

  • उनकी पश्चिमी दर्शन, इतिहास, धर्म एवं आध्यात्मिकता में प्रारंभिक रुचि थी। स्वामी विवेकानंद विभिन्न विषयों के अच्छे जानकार थे।
  • उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस थे।
  • खेतड़ी राज्य के महाराजा अजीत सिंह के अनुरोध पर वर्ष 1893 में अपना नाम बदलकर ‘विवेकानंद’ रख लिया।
  • साहित्यिक कृतियाँ: राजयोग, ज्ञानयोग एवं कर्मयोग जैसी पुस्तकें लिखीं।
  • मृत्यु: 4 जुलाई, 1902 को निधन हो गया।

स्वामी विवेकानंद का योगदान 

  • स्वामी विवेकानंद की उपलब्धियों ने समाज पर अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने मानवता को बेहतर बनाने, आध्यात्मिक ज्ञान को बढ़ावा देने और सद्भाव, सामाजिक न्याय तथा अंतर-धार्मिक समझ को विकसित करने के लिए अथक प्रयास किया।
  • भारतीय दर्शन का परिचय: स्वामी विवेकानंद ने दुनिया को भारतीय दर्शन, विशेष रूप से वेदांत और योग से परिचित कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • उन्होंने “नव-वेदांत” नामक दर्शन का प्रचार किया, जिसने पश्चिमी दृष्टिकोण से हिंदू धर्म की व्याख्या की।
    • विवेकानंद आध्यात्मिकता और भौतिक प्रगति के बीच सामंजस्य में विश्वास करते थे।
  • शिक्षा पर जोर: स्वामी विवेकानंद ने भारत के पुनरुद्धार के साधन के रूप में शिक्षा पर अत्यधिक बल दिया।
    • उन्होंने एक समग्र और चरित्र-निर्माण शिक्षा प्रणाली की वकालत की, जिसका उद्देश्य व्यक्तियों को आत्मनिर्भर और नैतिक रूप से ईमानदार बनाना था।
  • विश्व धर्म संसद: स्वामी विवेकानंद को वर्ष 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में उनके उल्लेखनीय भाषण के लिए वैश्विक मान्यता मिली।
    • उन्होंने अमेरिका में हिंदू धर्म की शुरुआत की और संसद में धार्मिक सहिष्णुता और कट्टरता को समाप्त करने का आह्वान किया।
    • उनके संबोधन में धर्मों की सार्वभौमिकता पर प्रकाश डाला गया, धार्मिक सहिष्णुता, सद्भाव और मानवता की एकता की आवश्यकता पर बल दिया गया।
  • मुक्ति के मार्ग: स्वामी विवेकानंद ने अपनी पुस्तकों में सांसारिक आसक्तियों एवं सुखों से मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करने के चार मार्गों की व्याख्या की है: राज योग, कर्म योग, ज्ञान योग एवं भक्ति योग। 
    • उन्होंने लोगों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर मार्गदर्शन करने के लिए इन मार्गों पर व्यावहारिक अंतर्दृष्टि प्रदान की।
  • आधुनिक भारत पर प्रभाव: स्वामी विवेकानंद के विचारों और शिक्षाओं ने आधुनिक भारत को गहराई से प्रभावित किया।
    • नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें “आधुनिक भारत का निर्माता” कहा है।
    • आत्मविश्वास, राष्ट्रीय गौरव और आध्यात्मिकता जैसे मुद्दों पर विवेकानंद के प्रयासों ने राष्ट्र में पुनर्जागरण की चेतना उत्पन्न की।

स्वामी विवेकानंद के सहयोगी संगठन

  • रामकृष्ण मिशन: रामकृष्ण परमहंस के मुख्य शिष्य के रूप में, स्वामी विवेकानंद ने वर्ष 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
    • यह संगठन मूल्य-आधारित शिक्षा, सांस्कृतिक संरक्षण, स्वास्थ्य सेवा, महिला सशक्तीकरण, युवा और आदिवासी कल्याण, तथा राहत एवं पुनर्वास प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • बेलूर मठ: वर्ष 1899 में, स्वामी विवेकानंद ने बेलूर मठ को अपने स्थायी निवास के रूप में स्थापित किया।
    • बेलूर मठ रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के मुख्यालय के रूप में कार्य करता है, जो विवेकानंद की शिक्षाओं के प्रसार के लिए एक आध्यात्मिक अभयारण्य और केंद्र के रूप में स्थापित है।
  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद ने अद्वैत वेदांत दर्शन के अध्ययन और अभ्यास को प्रोत्साहित करने के लिए उत्तराखंड के मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना की।
    • आश्रम पुस्तक मुद्रण और वितरण, आध्यात्मिक वापसी और शैक्षिक तथा स्वास्थ्य सेवा पहलों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • वेदांत सोसायटी: स्वामी विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया के अन्य क्षेत्रों में वेदांत सोसायटी की स्थापना को प्रेरित किया।
    • ये संगठन वेदांत दर्शन की अपनी समझ को बेहतर बनाने और आध्यात्मिक साधकों को इसकी शिक्षाओं की जाँच करने के लिए एक मंच प्रदान करने का प्रयास करते हैं।
  • भारत सेवाश्रम संघ: स्वामी विवेकानंद ने भारत सेवाश्रम संघ के गठन को प्रोत्साहित किया, इस तथ्य के बावजूद कि यह उनके द्वारा नहीं बनाया गया था।
    • यह समूह मानवता के लिए परोपकारी सेवा पर जोर देता है, शैक्षिक, चिकित्सा और राहत प्रयासों के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को संबोधित करता है।

युवाओं के लिए सरकारी पहल एवं योजनाएँ

योजना/पहल

उद्देश्य

मुख्य लक्ष्य/विवरण

नेहरू युवा केंद्र संगठन (NYKS) युवा व्यक्तित्व का विकास करना एवं राष्ट्र निर्माण गतिविधियों में संलग्न होने को बढ़ावा देना।
  • NYKS के बजट द्वारा वित्त पोषित मुख्य कार्यक्रम।
  • युवा मामले योजनाएँ: NPYAD एवं NYLP 
  • अन्य मंत्रालयों द्वारा वित्तपोषित सहयोगात्मक परियोजनाएँ।
  • युवा मुद्दों के लिए विशेष कार्यक्रम।
नेशनल यंग लीडर्स प्रोग्राम (NYLP) सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए युवा नेतृत्व एवं नवाचार को बढ़ावा देना।
  • समुदाय एवं सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने के लिए युवाओं के लिए संस्थागत मंच प्रदान करना।
  • समसामयिक मुद्दों पर जागरूकता एवं सहभागिता को बढ़ावा देना।
युवा एवं किशोर विकास के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPYAD) युवाओं एवं किशोरों के विकास के लिए वित्तीय सहायता। 5 प्रमुख घटक

  • नेतृत्व प्रशिक्षण।
  • राष्ट्रीय एकीकरण कार्यक्रम।
  • साहसिक गतिविधियाँ।
  • किशोर विकास।
  • तकनीकी एवं संसाधन विकास।
राष्ट्रीय युवा नीति (NYP) 2024 SDGs के अनुरूप युवा विकास के लिए 10-वर्षीय दृष्टिकोण निर्धारित करना।
  • शिक्षा, रोजगार, नेतृत्व, स्वास्थ्य एवं सामाजिक न्याय पर ध्यान देना।
  • NEP वर्ष 2020 के अनुरूप।
  • समावेशन, मानसिक स्वास्थ्य एवं फिटनेस को बढ़ावा देना।
राष्ट्रीय युवा कोर (NYC) समावेशी विकास को सुविधाजनक बनाने एवं सामुदायिक रोल मॉडल के रूप में कार्य करने के लिए अनुशासित युवाओं को तैयार करना।
  • सूचना एवं ज्ञान का प्रसार करना।
  • सार्वजनिक नैतिकता एवं श्रम की गरिमा बढ़ाना।
राष्ट्रीय युवा पुरस्कार युवाओं एवं गैर-सरकारी संगठनों के अनुकरणीय योगदान को मान्यता देना।
  • व्यक्तिगत पुरस्कार: ₹1,00,000, एक पदक एवं एक प्रमाण-पत्र।
  • संगठन पुरस्कार: ₹3,00,000, एक पदक एवं एक प्रमाण-पत्र।
राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) “मैं नहीं, बल्कि आप” के आदर्श वाक्य के साथ सामुदायिक सेवा को बढ़ावा देना।
  • नेतृत्व, सामाजिक जिम्मेदारी एवं राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना।
  • संस्थानों एवं समुदायों के बीच संबंधों को प्रोत्साहित करना।
युवा छात्रावास यात्रा, अन्वेषण एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
  • युवाओं के लिए किफायती आवास।
  • केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त वार्डन द्वारा प्रबंधित।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग युवाओं के बीच अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण विकसित करना एवं युवाओं से संबंधित मुद्दों पर सहयोग करना।
  • संयुक्त राष्ट्र स्वयंसेवकों (UNVs)/संयुक्त राष्ट्रीय विकास कार्यक्रम (UNDP) एवं राष्ट्रमंडल युवा कार्यक्रम (CYP) के साथ सहयोग करना।
  • वर्ष 2020 से कौशल प्रशिक्षण एवं रोजगार पहल के लिए UNICEF के साथ सहयोग।

संदर्भ 

हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (National Programme for Organic Production-NPOP) और अन्य पोर्टलों के 8वें संस्करण का शुभारंभ किया।

राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम 

  • राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम, निम्नलिखित के कार्यान्वयन के लिए एक संस्थागत तंत्र प्रदान करता है:
    • राष्ट्रीय जैविक उत्पादन मानक (National Standards for Organic Production- NSOP), प्रमाणन प्रणाली, प्रमाणन निकायों की मान्यता के लिए मानदंड एवं प्रक्रिया, प्रमाणन निकायों के संचालन के लिए मानदंड, राष्ट्रीय (भारत जैविक) लोगो और इसके उपयोग को नियंत्रित करने वाले नियम।
  • सचिवालय: कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority- APEDA), NPOP के कार्यान्वयन के लिए सचिवालय है।
  • नोडल मंत्रालय: वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (भारत सरकार)।
  • शुभारंभ: जैविक उत्पादों के लिए तीसरे पक्ष की प्रमाणन प्रणाली की निर्यात आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए कार्यक्रम वर्ष 2001 में शुरू किया गया था।
  • कानूनी अधिनियम: यह योजना विदेशी व्यापार विकास विनियमन अधिनियम (FTDR), 1992 के प्रावधानों के तहत अधिसूचित जैविक उत्पादों में व्यापार के लिए नियामक आवश्यकताओं को निर्धारित करती है।
  • मान्यताएँ: उत्पादन और मान्यता प्रणाली के लिए NPOP मानकों को यूरोपीय आयोग और स्विट्जरलैंड द्वारा अप्रसंस्कृत संयंत्र उत्पादों के लिए उनके देश के मानकों के बराबर माना गया है।
  • विशेषताएँ
    • मान्यता: इस कार्यक्रम के तहत मान्यता प्राप्त करने के इच्छुक प्रमाणन निकायों के प्रमाणन कार्यक्रमों का मूल्यांकन और मान्यता प्रदान करना।
    • इस कार्यक्रम के तहत प्रमाणन निकायों के प्रमाणन कार्यक्रम के मूल्यांकन की प्रक्रिया प्रदान करना।

    • विभिन्न उत्पाद श्रेणियों के लिए जैविक उत्पादन, प्रसंस्करण, हैंडलिंग और लेबलिंग के लिए राष्ट्रीय मानक विकसित करना।
    • पारस्परिक मान्यता समझौते के अनुसार, आयातक देशों के जैविक मानकों के अनुरूप जैविक उत्पादों के प्रमाणन की सुविधा प्रदान करना।
    • सुनिश्चित करना कि प्रमाणन प्रणाली पारदर्शी, पालन करने में आसान और अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप हो।
  • 8वें संस्करण की विशेषताएँ
    • अनुपालन को सरल बनाना: जैविक उत्पादक समूहों के लिए प्रमाणन आवश्यकताओं को सरल बनाया गया है और आंतरिक नियंत्रण प्रणाली (ICS) के स्थान पर उन्हें विधिक दर्जा दिया गया है।
    • बाजार संबंध: जैविक उत्पादक समूहों की आंतरिक नियंत्रण प्रणाली (ICS) को संपूर्ण जैविक उत्पाद की खरीद सुनिश्चित करनी चाहिए या किसानों को सहायता देने के लिए बाजार संबंध स्थापित करने चाहिए।
    • भूमि रूपांतरण अवधि में कमी: संशोधित छूट प्रावधानों में शर्तों और सुरक्षा उपायों के अधीन, जैविक में भूमि रूपांतरण अवधि में तीन वर्ष तक की संभावित कमी की अनुमति है।
    • पारदर्शिता: अब जैविक किसानों और अन्य प्रासंगिक विवरणों के बारे में सार्वजनिक डोमेन में जानकारी के प्रकटीकरण की आवश्यकता है, जिससे प्रणाली की विश्वसनीयता बढ़ेगी।
    • निगरानी तंत्र: निगरानी, ​​मानीटरिंग और डेटा विश्लेषण के लिए आईटी उपकरणों और वेब-आधारित ट्रेसिबिलिटी सिस्टम, ट्रेसनेट (TraceNet) के एकीकरण के साथ निगरानी तंत्र को मजबूत करना।

कार्यक्रम के दौरान अनावरण किए गए पोर्टल्स 

  • NPOP पोर्टल: यह राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (National Programme for Organic Production-NPOP) के लिए एक समर्पित पोर्टल होगा और जैविक हितधारकों के लिए अधिक दृश्यता तथा संचालन में आसानी प्रदान करेगा।
  • जैविक संवर्द्धन पोर्टल: इसमें जैविक उत्पादन पर ऑपरेटरों के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण सत्र और जैविक व्यापार कार्यक्रमों की जानकारी भी शामिल होगी।
    • किसान, FPO और निर्यातक अपने प्रमाणित जैविक उत्पादों का प्रदर्शन कर सकते हैं, व्यापार लीड उत्पन्न कर सकते हैं और वैश्विक खरीदारों से जुड़ सकते हैं।
  • ट्रेसनेट (TraceNet) 2.0: ट्रेसनेट हितधारकों को खेत से बाजार तक जैविक कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के लिए पारदर्शिता, पता लगाने की क्षमता और अनुपालन सुनिश्चित करके संचालन को सुव्यवस्थित करने और वैश्विक जैविक प्रमाणन मानकों को पूरा करने का अधिकार देता है।
    • उन्नत ऑनलाइन जैविक ट्रेसबिलिटी सिस्टम कृषि के साथ प्रौद्योगिकी को एकीकृत करते हुए निर्बाध संचालन और विनियामक निरीक्षण के लिए उन्नत उपकरण प्रदान करेगा।
  • रीडिजाइन एंड रीवैम्प्ड एग्रीएक्सचेंज पोर्टल (Redesigned and Revamped AgriXchange Portal): यह कृषि निर्यात की रिपोर्ट और डेटा के अधिक उपयोगकर्ता-अनुकूल डेटा विश्लेषण और उत्पादन को सक्षम बनाता है, जिससे यह आम जनता के लिए सुलभ हो जाता है।
    • निर्यातक अंतरराष्ट्रीय खरीदारों एवं विक्रेताओं के साथ सहजता से जुड़ सकते हैं और साथ ही व्यापक व्यापार की जानकारी का पता लगा सकते हैं।
  • APEDA पोर्टल: कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के हितधारकों के लाभ के लिए उन्नत उपयोगकर्ता अनुभव और जानकारी के साथ APEDA पोर्टल को पुनः डिजाइन एवं नया बनाया गया है।
  • नेशनल कोऑपरेटिव ऑर्गेनिक्स लिमिटेड: इसे विशेष रूप से मूल्य संवर्द्धन, पैकेजिंग और विपणन के लिए प्रशिक्षण सहित किसानों के साथ कार्य करके जैविक उत्पादों के मूल्य संवर्द्धन में मदद करने के लिए स्थापित किया गया है।

जैविक खेती के बारे में

  • परिभाषा: यह उत्पादन की एक प्रणाली है, जो उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे कृत्रिम रूप से उत्पादित कृषि-इनपुट के उपयोग को प्रतिबंधित करती है और मृदा की उत्पादकता, उर्वरता तथा कीटों के प्रबंधन को बनाए रखने के लिए जैविक सामग्री (जैसे फसल अवशेष, पशु अवशेष, फलियाँ, जैव-कीटनाशक) का उपयोग करती है।
    • समग्र दृष्टिकोण: जैविक खेती एक स्थायी और स्व-विनियमन पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए व्यक्तिगत घटकों (मिट्टी के खनिज, कार्बनिक पदार्थ, सूक्ष्म जीव, कीड़े, पौधे, जानवर और मनुष्य) सहित एक संपूर्ण-प्रणाली दृष्टिकोण पर जोर देती है।
  • आँकड़े
    • ‘रिसर्च इंस्टिट्यूट ऑफ ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर’ (FiBL) और ‘इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर मूवमेंट्स’ (IFOAM) के अंतरराष्ट्रीय संसाधन डेटा द्वारा जैविक कृषि करने वाले 187 देशों में वर्ष 2024 में किए गए सर्वेक्षण में-
      • विश्व की जैविक कृषि भूमि के मामले में भारत का स्थान दूसरा है।
    • उत्पादक: आर्थिक सर्वेक्षण 2022-2023 में उल्लेख किया गया है कि भारत में 4.43 मिलियन जैविक किसान हैं, जो विश्व में सर्वाधिक हैं।
    • उत्पादन: भारत ने लगभग 2.9 मिलियन मीट्रिक टन (वर्ष 2022-23) प्रमाणित जैविक उत्पादों का उत्पादन किया, जिसमें फाइबर फसलें सबसे बड़ी श्रेणी रही हैं।
      • इसके बाद तिलहन, चीनी संबंधी फसलें, अनाज और बाजरा, औषधीय/हर्बल और सुगंधित पौधे, मसाले, ताजे फल सब्जियाँ, दालें, चाय और कॉफी का स्थान आता है।
    • राज्यवार: मध्य प्रदेश सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा, उसके बाद महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक और ओडिशा का स्थान रहा है।
      • सिक्किम ने औपचारिक रूप से वर्ष 2016 में 100 प्रतिशत जैविक राज्य घोषित किया था।
  • जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकारी योजनाएँ
    • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY): वर्ष 2015 में शुरू की गई यह योजना न्यूनतम 20 हेक्टेयर क्षेत्र वाले क्लस्टर दृष्टिकोण के माध्यम से जैविक गाँव को अपनाकर जैविक खेती को बढ़ावा देती है।
      • वर्ष 2020-21 से बड़े क्षेत्र प्रमाणन (Large Area Certification-LAC) कार्यक्रम की शुरुआत की गई है, ताकि पारंपरिक जैविक क्षेत्रों जैसे पहाड़ियों, द्वीपों, आदिवासी या रेगिस्तानी क्षेत्रों की पहचान की जा सके, जिनका GMO और कृषि रसायन के उपयोग का कोई इतिहास नहीं है, ताकि उन्हें प्रमाणित जैविक उत्पादन केंद्रों में बदला जा सके।
    • पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन (Mission Organic Value Chain Development for North East Region- MOVCDNER): यह राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन के तहत एक उप-मिशन है, जिसका उद्देश्य फसल वस्तु-विशिष्ट जैविक मूल्य शृंखला विकसित करना और जैविक फसल उत्पादन, फसल कटाई, जैविक पशुधन प्रबंधन तथा प्रसंस्करण आदि में अंतराल को दूर करना है।
    • जैविक खेती जैविक ई-कॉमर्स पोर्टल (Jaivik Kheti organic e-commerce portal): यह जैविक खेती के सर्व-समावेशी विकास और संवर्द्धन के लिए किसानों को खुदरा और थोक खरीदारों, और विभिन्न हितधारकों (क्षेत्रीय परिषदों, स्थानीय समूहों, व्यक्तिगत किसानों, खरीदारों, सरकारी एजेंसियों और इनपुट आपूर्तिकर्ताओं) से सीधे जोड़ता है।
    • जैविक और जैव-इनपुट को समर्थन: भारतीय प्राकृतिक खेती जैव-इनपुट संसाधन केंद्र, मातृ-भूमि के पुनरुद्धार, जागरूकता, पोषण और सुधार के लिए प्रधानमंत्री कार्यक्रम (PM Programme for Restoration, Awareness, Nourishment and Amelioration of Mother Earth- PM-PRANAAM), गैल्वनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज धन (गोबरधन) योजना आदि योजनाएँ किसानों को जैविक उर्वरकों के उपयोग के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं।

संदर्भ

कापरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा (Copernicus Climate Change Service-C3S) के अनुसार, वर्ष 2024 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के निशान को पार करने वाला पहला वर्ष बन गया है।

संबंधित तथ्य

  • वर्ष 2024 में औसत वार्षिक वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक समय (वर्ष 1850-1900 की अवधि का औसत) की तुलना में 1.55 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
  • WMO ने कहा कि उसके द्वारा उपयोग किए गए छह डेटासेटों में से प्रत्येक ने वर्ष 2024 को अब तक का सबसे गर्म वर्ष बताया है, लेकिन उनमें से सभी ने तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि दर्ज नहीं की है।

कापरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा (C3S) के बारे में

  • उद्देश्य: यूरोपीय संघ का एक प्रमुख कार्यक्रम, C3S जलवायु परिवर्तन की निगरानी एवं अनुकूलन के लिए व्यापक जलवायु डेटा, उपकरण और सेवाएँ प्रदान करता है।
  • डेटा कवरेज: उपग्रह और इन-सीटू डेटा के आधार पर तापमान प्रवृत्तियों, समुद्र तल में परिवर्तन और ग्रीनहाउस गैस सांद्रता सहित वैश्विक तथा क्षेत्रीय जलवायु जानकारी प्रदान करता है।
  • अनुप्रयोग: कृषि, ऊर्जा, जल प्रबंधन और शहरी नियोजन जैसे क्षेत्रों में नीति-निर्माण, जोखिम आकलन और जलवायु लचीलापन योजना का समर्थन करता है।
  • ओपन एक्सेस: क्लाइमेट डेटा स्टोर (Climate Data Store- CDS) के माध्यम से निशुल्क, खुला और उपयोगकर्ता के अनुकूल डेटा प्रदान करता है, पारदर्शिता एवं वैज्ञानिक सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • वैश्विक सहयोग: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करता है, वैश्विक जलवायु निगरानी और प्रतिक्रिया प्रयासों को बढ़ाता है।

वर्ष 2024 के तापमान वृद्धि के आँकड़ों के बारे में विवरण

  • 15.1 डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान के साथ, वर्ष 2024 वैश्विक तापमान रिकॉर्ड में सबसे गर्म वर्ष था, जिसने वर्ष 1850 को पीछे छोड़ दिया।
  • यह वर्ष 1991-2020 के औसत से 0.72 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
  • यह वर्ष 1850-1900 के तापमान के अनुमान से 1.60 डिग्री सेल्सियस अधिक था, जिसे ‘पूर्व-औद्योगिक’ स्तर माना जाता है।
  • विशेषज्ञों ने कहा है कि वर्तमान में कार्बन उत्सर्जन की उच्च दर को देखते हुए, वर्ष 2024 का तापमान एक ऐसा बिंदु है, जहाँ से वापसी संभव नहीं है।
  • योगदान देने वाले कारक
    • अल नीनो प्रभाव: यह जून 2023 में शुरू हुआ, वर्ष 2024 तक चला, जिससे गर्मी की प्रवृत्ति और बढ़ गई।
      • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के साथ मिलकर यह तापमान वृद्धि के रिकॉर्ड को पार कर गया। 
    • समुद्र की सतह का तापमान (SST): अतिरिक्त ध्रुवीय SST 20.87°C के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया, जो वर्ष 1991-2020 के औसत से 0.51°C अधिक है।
      • जुलाई से दिसंबर 2024 तक रिकॉर्ड पर दूसरा सबसे गर्म समय रहा है।
  • निहितार्थ
    • तापमान के कम होने का कोई रास्ता नहीं: वैज्ञानिकों का सुझाव है कि यह मील का पत्थर दर्शाता है कि पृथ्वी वर्ष 2050 तक 2°C से अधिक तापमान वृद्धि की राह पर है।
      • कार्बन उत्सर्जन को कम करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
    • वैश्विक जलवायु नीति संबंधी चिंताएँ: बाकू में COP29 वार्ता जलवायु जोखिमों को कम करने के लिए वित्तीय सहायता पर सहमत होने में विफल रही है।
      • विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ पर्याप्त समर्थन के बिना असंगत प्रभावों का सामना करती हैं।
  • तापमान की 1.5°C सीमा का महत्त्व 
    • पेरिस समझौता संदर्भ: वर्ष 2015 में अपनाए गए पेरिस समझौते का उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2°C से नीचे सीमित करना है, जबकि 1.5°C के भीतर रहने का प्रयास करना है।
      • 1.5°C लक्ष्य को प्राप्त करने से जलवायु परिवर्तन के जोखिम एवं प्रभाव काफी कम हो जाएँगे।
    • दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य: 1.5°C या 2°C लक्ष्य अल्पकालिक या वर्ष-दर-वर्ष भिन्नताओं के बजाय दीर्घकालिक औसत पर आधारित हैं।
  • हाल के वर्षों में कई बार तापमान में 1.5°C का मासिक एवं दैनिक विचलन हुआ है, लेकिन यह पेरिस समझौते की विफलता का संकेत नहीं है।

पेरिस जलवायु समझौते के बारे में

  • अनुकूलन: पेरिस समझौते को 12 दिसंबर, 2015 को UNFCCC के COP21 के दौरान अपनाया गया था तथा यह 4 नवंबर, 2016 को लागू हुआ।
  • वैश्विक तापमान लक्ष्य: इसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे, अधिमानतः 1.5°C, पूर्व-औद्योगिक स्तरों से ऊपर सीमित करना है।

  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC): देश वैश्विक तापमान लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक पाँच वर्ष में अपडेट की जाने वाली अपनी जलवायु कार्रवाई योजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए NDC प्रस्तुत करते हैं।
  • विभेदित जिम्मेदारियाँ: सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं (CBDR-RC) को मान्यता देता है, जो विकसित देशों को जलवायु वित्त, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण प्रदान करने के लिए उत्तरदायी बनाता है।
  • दीर्घकालिक लक्ष्य
    • 21वीं सदी के उत्तरार्द्ध में वैश्विक नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करना।
    • जलवायु प्रभावों के लिए अनुकूली क्षमताओं एवं लचीलेपन को बढ़ाना।
  • वित्त एवं समर्थन: विकसित देशों ने विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए वर्ष 2020 तक सालाना 100 बिलियन डॉलर जुटाने का संकल्प लिया, जिसे वर्ष 2025 तक बढ़ा दिया गया है।
  • वैश्विक भागीदारी: अब तक, 195 दलों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें से 194 ने इसकी पुष्टि की है, जिससे यह लगभग सार्वभौमिक प्रतिबद्धता बन गई है।
  • निगरानी एवं पारदर्शिता: प्रगति का आकलन करने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक पाँच वर्ष में वैश्विक स्टॉकटेक लागू किया जाता है।

पेरिस समझौते के तहत भारत के लक्ष्य

  • उत्सर्जन तीव्रता में कमी: वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी लाना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता: वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा स्रोतों से 50% संचयी स्थापित क्षमता प्राप्त करना।

  • कार्बन सिंक: वर्ष 2030 तक वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से अतिरिक्त 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य बनाना।
  • नेट जीरो प्रतिबद्धता: ग्लासगो में COP26 में किए गए वादे के अनुसार, वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करना।
  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC): ऊर्जा दक्षता, स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु लचीलापन पर ध्यान केंद्रित करते हुए जलवायु क्रियाओं को सतत् विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित करना।

संदर्भ 

हाल ही में भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के अंतर्गत आने वाले नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Nano Science and Technology-INST) के वैज्ञानिकों ने एक नया ताँबा-आधारित उत्प्रेरक (Copper-Based Catalyst) विकसित किया है।

संबंधित तथ्य

  • उत्प्रेरक में अद्वितीय तारा-जैसी नैनो संरचना है और इसे औद्योगिक रासायनिक अभिक्रियाओं को अधिक सतत् बनाने के लिए डिजाइन किया गया है।

स्पोरोपोलेनिन (Sporopollenin) 

  • यह एक जैविक बहुलक है।
  • यह पराग कणों और बीजाणुओं की बाहरी परतों में पाया जाता है।
  • इसकी बाहरी संरचना कटोरे जैसी होती है।
    • यह संरचना कॉपर ऑक्साइड नैनोस्ट्रक्चर के नियंत्रित निर्माण में सहायक है।

ताँबा-आधारित उत्प्रेरक 

  • यह उत्प्रेरक स्पोरोपोलेनिन टेंपलेट (Sporopollenin Template) पर कॉपर ऑक्साइड नैनोस्ट्रक्चर को विकसित करके बनाया गया है।
  • इन उत्प्रेरकों को प्रचुर मात्रा में, कम विषाक्तता, दक्षता और इसकी पुन: प्रयोज्यता के कारण हरित उत्प्रेरक माना जा सकता है।
    • यह बिना किसी मिलावट के जल में प्रभावी है और इसका कई बार पुनः उपयोग किया जा सकता है।
    • अनुप्रयोग: कार्बनिक अभिक्रियाओं, पर्यावरण सुधार, नैनोस्केल इलेक्ट्रॉनिक्स और सतह-संवर्द्धित रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (Surface Enhanced Raman Spectroscopy- SERS) में उपयोगी।
  • ताँबा-आधारित उत्प्रेरक के लाभ
    • ताँबे पर आधारित उत्प्रेरक अपने अद्वितीय गुणों एवं लाभों के कारण व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं:
  • प्रचुरता और लागत-प्रभावशीलता
    • आसानी से उपलब्ध: ताँबा स्वाभाविक रूप से प्रचुर मात्रा में और आसानी से सुलभ है।
    • कम लागत: यह एक सस्ती धातु है, जो इसे उत्प्रेरक अनुप्रयोगों के लिए एक लागत प्रभावी विकल्प बनाती है।
  • अनेक ऑक्सीकरण अवस्थाएँ
    • प्रतिक्रियाओं में लचीला: ताँबा विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाओं (Cu⁰, Cu⁺, Cu²⁺, Cu³⁺) में पाया जाता है, जो इसे विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाओं में भाग लेने में सक्षम बनाता है।
  • बहुमुखी अनुप्रयोग 
    • रेडॉक्स अभिक्रियाएँ (Redox Reactions): ऑक्सीकरण-अपचयन प्रक्रियाओं में व्यापक रूप से उपयोग की जाती हैं।
    • कार्बन मोनोऑक्साइड का ऑक्सीकरण: कार्बन मोनोऑक्साइड को कार्बन डाइऑक्साइड में बदलने में प्रभावी है।
    • चयनात्मक ऑक्सीकरण: कार्बनिक यौगिकों के चयनात्मक ऑक्सीकरण को सुगम बनाता है।
    • विद्युत रासायनिक अभिक्रियाएँ: हाइड्रोजन विकास अभिक्रियाओं (Hydrogen Evolution Reactions-HER) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

हरित उत्प्रेरक (Green catalysts)

  • हरित उत्प्रेरक ऐसे पदार्थ हैं, जो पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए रासायनिक अभिक्रियाओं को तीव्र करते हैं।
  • इन्हें औद्योगिक प्रक्रियाओं में स्थिरता को बढ़ावा देने और खतरनाक सामग्रियों के उपयोग को कम करने के लिए डिजाइन किया गया है।

नैनो उत्प्रेरक (Nano Catalyst) 

  • नैनो उत्प्रेरक नैनोकणों से बना एक पदार्थ है, जो बिना खपत के रासायनिक अभिक्रियाओं को गति देता है।
  • आकार: नैनोस्केल पर संचालित होता है, जिसमें कण आकार 1 से 100 नैनोमीटर तक होता है।
  • नैनो उत्प्रेरक की मुख्य विशेषताएँ
    • उच्च सतह क्षेत्र: नैनो कण एक बड़ा सतह क्षेत्र प्रदान करते हैं, जिससे रासायनिक अभिक्रियाओं के लिए सक्रिय साइटों की संख्या बढ़ जाती है।
    • चयनात्मकता: नैनो उत्प्रेरकों को विशिष्ट प्रतिक्रियाओं को लक्षित करने के लिए तैयार किया जा सकता है, जिससे अवांछित अभिक्रियाएँ कम हो जाती हैं।
    • पर्यावरण के अनुकूल: कई को हरित रसायन विज्ञान के सिद्धांतों का पालन करने के लिए डिजाइन किया गया है, कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है और कठोर रसायनों से बचा जाता है।
    • नैनो उत्प्रेरकों के अनुप्रयोग
      • औद्योगिक रासायनिक अभिक्रियाएँ: पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए प्रक्रिया दक्षता में सुधार करना।
      • पर्यावरण उपचार: वायु और जल से प्रदूषकों को हटाने में मदद करना।
      • फार्मास्यूटिकल उद्योग: स्वच्छ और अधिक टिकाऊ दवा संश्लेषण को सक्षम करना।
      • ऊर्जा उत्पादन: हाइड्रोजन जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के उत्पादन का समर्थन करना।
    • नैनो उत्प्रेरक की सीमाएँ 
      • अभिक्रिया में अधिक समय: नैनो उत्प्रेरकों का अभिक्रिया समय अधिक हो सकता है।
        • यह प्रक्रिया अधिक महंगी होती है।
      • विषाक्तता जोखिम: इसका उपयोग एवं निपटान मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए जोखिम भरा है।
      • उच्च संवेदनशीलता: यह अत्यधिक तापमान और pH स्तर जैसी कुछ स्थितियों में अपनी प्रभावशीलता खो सकता है।

संदर्भ

हाल ही में भारतीय विदेश सचिव ने दुबई में तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की। यह बैठक अगस्त 2021 में सत्ता में वापसी के बाद से तालिबान के साथ भारत की सर्वोच्च स्तरीय भागीदारी का प्रतिनिधित्व करती है।

तालिबान के साथ भारत के संबंधों में हालिया बदलाव

  • व्यावहारिक दृष्टिकोण: भारत ने तालिबान के शासन को औपचारिक मान्यता न दिए जाने के बावजूद, तालिबान के साथ व्यावहारिक जुड़ाव की दिशा में कदम बढ़ाया है। अब ध्यान अलगाव से हटकर सुरक्षा चिंताओं, व्यापार और मानवीय सहायता पर केंद्रित हो गया है।
    • बैठक में भारत से विकास परियोजनाओं को पुनः आरंभ करने तथा स्वास्थ्य सेवा और शरणार्थी पुनर्वास जैसे क्षेत्रों में भौतिक सहायता प्रदान करने के तालिबान के अनुरोध पर चर्चा की गई।
  • मानवीय सहायता: भारत ने मानवीय प्रयासों में अपनी भागीदारी बढ़ाने पर सहमति जताई, जिसमें अफगानिस्तान के स्वास्थ्य क्षेत्र को और अधिक सहायता देना तथा शरणार्थियों के पुनर्वास के प्रयास शामिल हैं।
    • भारत ने पहले ही 50,000 मीट्रिक टन गेहूँ, 300 टन दवाइयाँ एवं टीके जैसी महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान की है।

  • व्यापार और संपर्क: चर्चा का मुख्य केंद्रीय विषय पाकिस्तान के बंदरगाहों को दरकिनार करते हुए व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए एक प्रमुख प्रवेश द्वार के रूप में चाबहार बंदरगाह के उपयोग को बढ़ावा देना था।
    • अफगानिस्तान के व्यापार के लिए भारत का समर्थन तथा चाबहार बंदरगाह के माध्यम से संपर्क का विस्तार भारत और क्षेत्र के साथ अफगानिस्तान के आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के लिए आवश्यक है।
  • सुरक्षा चिंताएँ: भारत की मुख्य सुरक्षा चिंता यह सुनिश्चित करना है कि अफगानिस्तान का उपयोग लश्कर, जैश और ISKP जैसे आतंकवादी समूहों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों के लिए न किया जाए।
    • अफगानिस्तान में भारतीय हितों एवं सुविधाओं के लिए सुरक्षा गारंटी पर तालिबान द्वारा भारत को दिए गए आश्वासनों पर चर्चा की गई, जिसमें भारत की कुछ प्राथमिक सुरक्षा आशंकाओं का समाधान किया गया।
  • पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंध: पाकिस्तान-तालिबान संबंध लगातार तनावपूर्ण होते जा रहे हैं, विशेषतः अफगानिस्तान की धरती पर पाकिस्तान के हवाई हमलों के कारण, जिसकी भारत ने जनवरी 2025 में निंदा की थी।
    • पाकिस्तान के साथ तालिबान की बढ़ती असहजता भारत को तालिबान के साथ जुड़कर अफगानिस्तान में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर प्रदान करती है।
  • तालिबान के लिए रणनीतिक स्वायत्तता: तालिबान ने रणनीतिक स्वायत्तता प्रदर्शित करने और पाकिस्तान पर अपनी निर्भरता कम करने की इच्छा व्यक्त की है, जो उसकी विदेश नीति में बदलाव का संकेत है।
    • तालिबान ने अपनी संतुलित तथा अर्थव्यवस्था-केंद्रित विदेश नीति के हिस्से के रूप में  भारत को एक प्रमुख क्षेत्रीय भागीदार के रूप में देखते हुए, संबंधों को मजबूत करने में रुचि दिखाई है।
  • मानवाधिकारों की चिंताओं के बावजूद निरंतर जुड़ाव: तालिबान की दमनकारी नीतियों के बावजूद, खासकर महिलाओं के अधिकारों के संबंध में, भारत ने विकास सहयोग और मानवीय सहायता पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी भागीदारी जारी रखी है।
    • भारत ने दोहराया है कि वह तालिबान शासन को औपचारिक रूप से मान्यता प्रदान नहीं करेगा, लेकिन अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों और मानवीय प्रतिबद्धताओं के आधार पर जुड़ेगा।

भारत-अफगानिस्तान संबंध: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

प्राचीन काल

  • सिंधु घाटी सभ्यता: ऐतिहासिक संबंध सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े हैं, जहाँ व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान प्रमुख थे।
  • गांधार क्षेत्र: आधुनिक अफगानिस्तान का हिस्सा गांधार, वैदिक युग में 16 महाजनपदों में से एक था। यह मौर्य साम्राज्य द्वारा शुरू किए गए बौद्ध धर्म का केंद्र था।
    • बामियान बुद्ध: इन भव्य मूर्तियों ने इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म के प्रभाव को प्रदर्शित किया।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: अफगानिस्तान सांस्कृतिक आदान-प्रदान और भारत में इस्लाम के प्रसार के लिए प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता था।
  • राजनीतिक एकीकरण: मुगलों सहित भारतीय उपमहाद्वीप के कई शासकों की पृष्ठभूमि अफगानिस्तान  से संबंधित थीं, जिससे दोनों क्षेत्र आपस में जुड़ गए।

औपनिवेशिक युग

  • आंग्ल-अफगान संबंध: अफगानिस्तान की रणनीतिक स्थिति के कारण ब्रिटिश भारत तथा अफगानिस्तान के बीच कई संघर्ष हुए, जिनमें आंग्ल-अफगान युद्ध (वर्ष 1839-1842, वर्ष 1878-1880) भी शामिल हैं।
  • डूरंड रेखा: ब्रिटिशों द्वारा वर्ष 1893 में स्थापित इस सीमा रेखा के कारण क्षेत्र में दीर्घकालिक विवाद और अस्थिरता बनी रही।
    • अफगानिस्तान ने कभी भी आधिकारिक तौर पर डूरंड रेखा को अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के बीच की सीमा के रूप में मान्यता नहीं दी है।

स्वतंत्रता के पश्चात्

  • मैत्री संधि (वर्ष 1950): भारत और अफगानिस्तान ने औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए, जिसमें आपसी सम्मान और संप्रभुता पर जोर दिया गया।
  • अफगानिस्तान की तटस्थता: एशियाई संबंध सम्मेलन (वर्ष 1947) में भागीदारी ने भारत के साथ तटस्थता और मैत्रीपूर्ण संबंधों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया।
  • सोवियत-अफगान संबंध (वर्ष 1979-1989): भारत ने शीतयुद्ध के दौरान सोवियत समर्थित अफगान सरकार का समर्थन किया, ऐसा करने वाला वह एकमात्र दक्षिण एशियाई देश था।

आधुनिक युग

  • तालिबान युग (वर्ष 1996-2001): तालिबान शासन के दौरान संबंधों में कमी आई, जिसकी वजह कंधार अपहरण (वर्ष 1999) जैसी घटनाएँ मानी जाती हैं।
  • तालिबान के बाद (वर्ष 2001): भारत ने तालिबान के पतन के बाद अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, बुनियादी ढाँचे और क्षमता निर्माण परियोजनाओं के लिए 3 बिलियन डॉलर से अधिक की प्रतिबद्धता जताई।
    • विकासात्मक गतिविधियाँ 
      • सलमा बाँध (अफगान-भारत मैत्री बाँध): वर्ष 2016 में पूरा हुआ।
      • जरंज-डेलाराम राजमार्ग: चाबहार बंदरगाह के माध्यम से ईरान के साथ व्यापार को सुगम बनाया।

अफगानिस्तान के साथ वार्ता करने के भारत के निर्णय के पीछे कारण

  • पाकिस्तान-तालिबान के बीच तनावपूर्ण संबंध: पाकिस्तान तथा तालिबान के बीच कभी घनिष्ठ रहे गठबंधन में बढ़ते तनाव के कारण कमी आ गई है।
    • तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को तालिबान का समर्थन और अफगान क्षेत्र पर पाकिस्तान के हवाई हमलों ने तनाव उत्पन्न किया है।
    • इससे भारत को अफगानिस्तान में कदम रखने तथा पाकिस्तान के प्रभाव का मुकाबला करने का अवसर मिलता है।
  • चीन का बढ़ता प्रभाव: चीन ने तालिबान के साथ अपने संबंधों को और गहरा किया है, जिसमें राजदूतों का आदान-प्रदान और शहरी विकास परियोजनाओं को शुरू करना शामिल है।
    • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत अफगानिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों में चीन के निवेश से भारत के क्षेत्रीय हितों को खतरा है, जिसके कारण दिल्ली को अपने प्रभाव की रक्षा के लिए कदम उठाने पड़ रहे हैं।
  • अमेरिकी नीति में बदलाव और ट्रंप की वापसी: डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में पुनः वापसी से अमेरिका-तालिबान के बीच नए सिरे से जुड़ाव देखने को मिल सकता है।
    • भारत का लक्ष्य तालिबान के साथ संभावित अमेरिकी पुनः संपर्क से पहले अफगानिस्तान में अपने हितों को सुरक्षित करना है।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा और आतंकवाद निरोध: एक स्थिर अफगानिस्तान यह सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है कि लश्कर-ए-तैयबा (LeT) तथा जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे आतंकवादी समूहों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों के लिए अपने क्षेत्र का उपयोग न करना।
  • आर्थिक अवसर: ताँबा, लोहा, लीथियम तथा दुर्लभ मृदा तत्त्वों सहित अफगानिस्तान की अप्रयुक्त खनिज संपदा भारत के लिए आर्थिक अवसर प्रस्तुत करती है।
    • भारत पहले ही सलमा बाँध तथा अफगान संसद जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में 3 बिलियन डॉलर का निवेश कर चुका है, जिससे अफगानिस्तान की आर्थिक वृद्धि और भारत के प्रति सद्भावना बढ़ेगी।
  • ईरान का कमजोर होना: ईरान समर्थित समूहों जैसे- हिज्बुल्लाह, हमास पर हमलों तथा मिसाइल हमलों के बाद घरेलू स्थिरता और इजरायल के साथ तनाव बढ़ा है।
    • अफगानिस्तान पर ईरान का कम ध्यान भारत के लिए इस क्षेत्र में अपनी भूमिका बढ़ाने के लिए स्थान देता है।
  • रूस का रणनीतिक बदलाव: यूक्रेन युद्ध में उलझा रूस मध्य एशिया में इस्लामी चरमपंथी समूहों से खतरों का मुकाबला करने के लिए तालिबान जैसे समूहों के साथ गठबंधन करना चाहता है।
    • तालिबान के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की रूस की इच्छा भू-राजनीतिक समीकरणों में बदलाव को प्रदर्शित करती है, जिससे भारत को सक्रिय रूप से जुड़ने के लिए प्रेरित किया जाता है।
  • रणनीतिक स्थान: अफगानिस्तान मध्य एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है, जो भारत को ऊर्जा-समृद्ध बाजारों तक पहुँच प्रदान करता है और ईरान में चाबहार बंदरगाह के माध्यम से पाकिस्तान को बायपास करता है।
    • भारत द्वारा निर्मित जारंज-डेलाराम राजमार्ग जैसी परियोजनाएँ भारत, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के बीच व्यापार तथा संपर्क को सुविधाजनक बनाती हैं।
  • सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध: अफगानिस्तान तथा भारत के बीच सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म के प्रसार तक गहरे सभ्यतागत संबंध हैं
    • भारत द्वारा छात्रवृत्ति और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के प्रावधान से लोगों के बीच संबंध मजबूत होते हैं, प्रत्येक वर्ष हजारों अफगान छात्र भारत में अध्ययन करते हैं।

तालिबान के साथ भारत के जुड़ाव के निहितार्थ

सकारात्मक प्रभाव

  • क्षेत्रीय स्थिरता: तालिबान के साथ जुड़ाव भारत को आतंकवाद का मुकाबला करके और अफगानिस्तान को भारत विरोधी गतिविधियों का केंद्र बनने से रोककर क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित करने का अवसर प्रदान करता है।
    • यह अफगानिस्तान में भारत की उपस्थिति को मजबूत करता है, चीन के बढ़ते प्रभाव और पाकिस्तान के रणनीतिक लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाता है।
  • पश्चिम की ओर देखो नीति: अफगानिस्तान भारत की पश्चिम की ओर भू-राजनीतिक रणनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • निवेश का संरक्षण: तालिबान के साथ जुड़कर भारत अफगानिस्तान में अपने 3 बिलियन डॉलर के निवेश की सुरक्षा करता है, जिसमें सलमा बाँध, जरांज-डेलाराम राजमार्ग तथा अफगान संसद जैसी महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ शामिल हैं।
    • रुकी हुई विकास परियोजनाओं को पुनः शुरू करने से अफगान जनता के बीच भारत के प्रति सद्भावना बनी रहेगी।
  • बेहतर व्यापार और संपर्क: चाबहार बंदरगाह का लाभ उठाने से पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया के लिए निर्बाध व्यापार मार्ग सुनिश्चित होता है।
    • व्यापार संबंधों को मजबूत करने से क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ेगी तथा भारतीय निर्यात के लिए नए बाजार खुलेंगे।
  • आतंकवाद विरोधी सहयोग: तालिबान के साथ बातचीत से यह सुनिश्चित करने में सहायता मिलती है कि लश्कर-ए-तैयबा (LeT) तथा जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे समूह अफगानिस्तान की धरती का प्रयोग भारत के विरुद्ध न कर सकें।
    • इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत (ISKP) के विरुद्ध तालिबान का आश्वासन भारत की सुरक्षा चिंताओं के अनुरूप है।
  • मानवीय सहायता संबंधी कूटनीति: गेहूँ, टीके और दवाइयों जैसी मानवीय सहायता प्रदान करने से भारत की छवि में एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में वृद्धि होती है।
    • अफगान नागरिक समाज के साथ संबंधों को मजबूत करने से लोगों के बीच आपसी संबंधों को बढ़ावा मिलता है।

नकारात्मक प्रभाव

  • तालिबान शासन को वैध बनाना: औपचारिक मान्यता के बिना तालिबान के साथ जुड़ना, विशेषकर महिलाओं और अल्पसंख्यकों के प्रति अप्रत्यक्ष रूप से एक ऐसे शासन को वैध बनाने का जोखिम है, जो अपनी दमनकारी नीतियों के लिए जाना जाता है।
    • इससे घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हो सकती है, जो भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को चुनौती दे सकती है।
  • सुरक्षा जोखिम: तालिबान के आश्वासनों के बावजूद, आतंकवादी समूहों द्वारा भारत को निशाना बनाकर सीमा पार आतंकवाद के लिए अफगानिस्तान को आधार के रूप में इस्तेमाल करने का जोखिम बना हुआ है।
    • अफगानिस्तान में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति दक्षिण एशिया में फैल सकती है, जिससे क्षेत्रीय शांति प्रभावित हो सकती है।

  • पश्चिमी सहयोगियों के साथ तनावपूर्ण संबंध: तालिबान के साथ घनिष्ठ संबंध पश्चिमी देशों की नीतियों के साथ संरेखित नहीं हो सकते हैं, विशेषकर तालिबान के मानवाधिकार उल्लंघन की आलोचना करने वाले देशों की नीतियों के साथ।
    • यह अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक शासन को प्राथमिकता देने वाले देशों के साथ भारत की साझेदारी को प्रभावित कर सकता है।
  • पाकिस्तान के साथ जटिल संबंध: हालाँकि पाकिस्तान-तालिबान संबंध तनावपूर्ण हैं, भारत की भागीदारी इस्लामाबाद से प्रतिक्रिया को भड़का सकती है, जिससे तनाव बढ़ सकता है।
    • पाकिस्तान इसका प्रयोग अफगानिस्तान में भारतीय हितों के विरुद्ध छद्म गतिविधियों को बढ़ाने के लिए कर सकता है।
  • तालिबान की अप्रत्याशित नीतियाँ: तालिबान के आंतरिक विभाजन और एक सुसंगत शासन संरचना की कमी उन्हें एक अविश्वसनीय भागीदार बनाती है।
    • परिवर्तित हित और नीतियाँ भारत के निवेश और दीर्घकालिक रणनीतिक हितों को खतरे में डाल सकती हैं।

अफगानिस्तान में भारत की पहल और परियोजनाएँ

बुनियादी ढाँचे का विकास

  • सलमा बाँध (अफगान-भारत मैत्री बांध): इसका निर्माण वर्ष 2016 में पूरा हुआ, हेरात प्रांत में यह जलविद्युत तथा सिंचाई परियोजना अफगानिस्तान के ऊर्जा तथा कृषि क्षेत्रों के लिए भारत के समर्थन को प्रदर्शित करती है।
  • जरंज-डेलाराम राजमार्ग: वर्ष 2009 में निर्मित, 218 किलोमीटर लंबी सड़क अफगानिस्तान को ईरान के चाबहार बंदरगाह से जोड़ती है, जिससे व्यापार में सुविधा होती है।
    • भारत के सीमा सड़क संगठन द्वारा निर्मित।
  • अफगान संसद भवन: वर्ष 2015 में उद्घाटन की गई इस ऐतिहासिक परियोजना की लागत ₹970 करोड़ है तथा यह अफगान लोकतंत्र के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
  • शहतूत बाँध परियोजना: वर्ष 2021 में घोषित इस बाँध की योजना काबुल को पेयजल उपलब्ध कराने तथा आस-पास के क्षेत्रों में सिंचाई का समर्थन करने के लिए बनाई गई है।

सामुदायिक विकास परियोजनाएँ

  • उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाएँ (HICDP): वर्ष 2005 से भारत ने सभी 34 प्रांतों में शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, कृषि तथा जल प्रबंधन पर केंद्रित 400 से अधिक परियोजनाएँ क्रियान्वित की हैं।
    • उदाहरण: स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों और जल आपूर्ति प्रणालियों का निर्माण।

व्यापार एवं संपर्क

  • चाबहार बंदरगाह: वर्ष 2017 में शुरू हुआ यह बंदरगाह अफगानिस्तान को अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुँचने और भारत को पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए मध्य एशिया के साथ व्यापार करने में मदद करता है।
  • एयर फ्रेट कॉरिडोर: वर्ष 2017 में शुरू किया गया यह कॉरिडोर अफगानिस्तान से सूखे मेवे, कालीन तथा औषधीय पौधों जैसे सामानों को भारत में निर्यात करने में सक्षम बनाता है।

शैक्षिक तथा क्षमता निर्माण कार्यक्रम

  • अफगान छात्रों के लिए छात्रवृत्ति: वर्ष 2005 से भारत अफगान छात्रों को प्रतिवर्ष 1,000 ICCR छात्रवृत्तियाँ प्रदान करता रहा है।
    • वर्ष 2023 तक हजारों अफगान छात्र भारतीय विश्वविद्यालयों से स्नातक की डिग्री प्राप्त कर चुके हैं।
  • तकनीकी प्रशिक्षण: भारत अफगान पेशेवरों के लिए भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) प्रशिक्षण स्लॉट प्रदान करता है, जो शासन एवं प्रशासन पर केंद्रित है।
    • वर्ष 2014 में अफगान राष्ट्रीय कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (ANASTU) की स्थापना का समर्थन किया।

स्वास्थ्य एवं मानवीय सहायता

  • चिकित्सा सहायता: भारत ने वर्ष 2015 में काबुल में एक चिकित्सा निदान केंद्र की स्थापना की।
    • वर्ष 2020-2021 में महामारी के दौरान खाद्य सुरक्षा के लिए 50,000 मीट्रिक टन गेहूँ के साथ-साथ कोविड-19 टीके, पोलियो टीके तथा दवाएँ प्रदान की गईं।
  • खाद्य सुरक्षा और पोषण: वर्ष 2002 से भारत ने संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम का समर्थन किया है तथा अफगानी विद्यालयी बच्चों को उच्च प्रोटीन वाले बिस्कुट वितरित किए हैं।

रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग

  • सैन्य उपकरण: भारत ने वर्ष 2015-2016 में अफगान वायु सेना को उनकी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए Mi-25 अटैक हेलीकॉप्टर उपहार में दिए।
  • अफगान सुरक्षा बलों को प्रशिक्षण: वर्ष 2011 से, भारत ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) और भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) जैसे संस्थानों में अफगान राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा बलों (ANDSF) के कर्मियों को प्रशिक्षित किया है।

भारत-अफगानिस्तान संबंधों में चुनौतियाँ

  • सुरक्षा चिंताएँ: अफगानिस्तान के अस्थिर राजनीतिक माहौल ने लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM) तथा इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत (ISKP) जैसे आतंकवादी समूहों को सक्रिय होने का अवसर प्रदान किया है, जिससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो रहा है।
    • कंधार विमान अपहरण (वर्ष 1999) तथा अफगानिस्तान में भारतीय संपत्तियों पर हमले चरमपंथी समूहों द्वारा उत्पन्न सुरक्षा जोखिमों को रेखांकित करते हैं।
  • पाकिस्तान का प्रभाव: पाकिस्तान, अफगानिस्तान का रणनीतिक संदर्भ के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग करता है तथा भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण समूहों, जैसे हक्कानी नेटवर्क का समर्थन करता है, जिससे भारत की भागीदारी जटिल हो जाती है।
    • तालिबान के साथ पाकिस्तान के संबंधों और आतंकवाद को समर्थन देने में उसकी कथित भूमिका ने क्षेत्र में भारत के रणनीतिक लक्ष्यों के लिए प्रतिकूल माहौल उत्पन्न कर दिया है।
  • तालिबान की आंतरिक नीतियाँ: समावेशी सरकार के प्रति तालिबान की प्रतिबद्धता की कमी और मानवाधिकारों का उल्लंघन, विशेष रूप से महिलाओं तथा अल्पसंख्यकों के विरुद्ध, भारत के लिए कूटनीतिक जुड़ाव को उचित ठहराना चुनौतीपूर्ण बना देता है।
    • भारत ने लगातार अफगान-नेतृत्व, स्वामित्व वाली शांति प्रक्रिया का समर्थन किया है, जो तालिबान के बहिष्कारपूर्ण शासन के विपरीत है।
  • क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता तथा बाह्य प्रभाव: चीन, रूस और ईरान जैसे देशों ने अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ा दिया है, जिससे भारत के सामरिक तथा आर्थिक हित संभावित रूप से दरकिनार हो गए हैं।
    • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत अफगानिस्तान की प्राकृतिक संसाधन परियोजनाओं में चीन की भागीदारी से क्षेत्र में भारत की आर्थिक भागीदारी कमजोर होने का खतरा है।
  • कनेक्टिविटी तथा व्यापार बाधाएँ: भौगोलिक बाधाओं और पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान को पारगमन व्यापार की अनुमति देने से इनकार करने के कारण भारत की अफगान बाजारों तक पहुँच में बाधा उत्पन्न हुई है।
    • व्यापार के लिए चाबहार बंदरगाह तथा जरांज-डेलाराम राजमार्ग पर निर्भरता, विश्वसनीय और लागत प्रभावी संपर्क स्थापित करने में भारत के सामने आने वाली कठिनाइयों को रेखांकित करती है।

भारत-अफगानिस्तान संबंधों के लिए आगे की राह

  • तालिबान के साथ व्यावहारिक संपर्क बनाए रखना: भारत के रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए कूटनीतिक तथा कार्यात्मक स्तर पर तालिबान के साथ संपर्क बनाए रखना तथा शासन को औपचारिक मान्यता देने से बचना।
    • यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए कि अफगान धरती का उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों, जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और ISKP जैसे आतंकवादी समूहों को शरण देने के लिए न किया जाए।
  • मानवीय सहायता को बढ़ावा देना: लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करने तथा सद्भावना को बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और खाद्य सुरक्षा में सहायता प्रयासों का विस्तार करना।
    • विद्यालय, अस्पताल और स्वच्छ जल प्रणालियों जैसी उच्च प्रभाव वाली, समुदाय-उन्मुख परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
  • क्षेत्रीय साझेदारी को मजबूत करना: अफगानिस्तान को स्थिर करने तथा क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए ईरान, रूस तथा मध्य एशियाई देशों जैसे देशों के साथ सहयोग करना।
    • व्यापार और सुरक्षा पर समन्वित कार्रवाई के लिए सार्क (SAARC) तथा SCO जैसे मंचों का लाभ उठाना।
  • निवेश और कनेक्टिविटी को सुरक्षित करना: सलमा बाँध, जरंज-डेलाराम राजमार्ग तथा अन्य परियोजनाओं सहित अफगानिस्तान के बुनियादी ढाँचे में भारत के 3 बिलियन डॉलर के निवेश को सुरक्षित रखना।
    • अफगानिस्तान की व्यापारिक पहुँच और मध्य एशिया के साथ भारत की कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए चाबहार बंदरगाह के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • समावेशी शासन तथा मानवाधिकारों का समर्थन करना: एक समावेशी सरकार के गठन का समर्थन करना, जो महिलाओं के अधिकारों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का सम्मान करने पर केंद्रित हो, साथ ही इन मुद्दों पर तालिबान के साथ सावधानीपूर्वक बातचीत करना।
    • दीर्घकालिक संस्थागत तथा सामाजिक ढाँचे के निर्माण के लिए अफगान नागरिक समाज के साथ सहयोग करना।
  • आतंकवाद विरोधी सहयोग पर ध्यान केंद्रित करना: अफगानिस्तान में आतंकवाद के फिर से उभरने को रोकने के लिए क्षेत्रीय शक्तियों के साथ मिलकर कार्य करना।
    • चरमपंथी समूहों का मुकाबला करने और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए खुफिया जानकारी साझा करना और अफगान सुरक्षा तंत्र को मजबूत करना।

निष्कर्ष

अफगानिस्तान के शासन में तालिबान के स्थायित्व’ के लिए व्यावहारिक भागीदारी की आवश्यकता है। भारत को अपनी ‘एक्ट वेस्ट’ नीति के तहत अपनी मानवीय, आर्थिक और कूटनीतिक पहुँच का विस्तार करना चाहिए, साथ ही क्षेत्रीय और वैश्विक चुनौतियों का सावधानीपूर्वक सामना करना चाहिए।

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