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Jan 15 2025

संदर्भ

भारत आधिकारिक सांख्यिकी के लिए ‘बिग डेटा एवं डेटा साइंस पर संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों की समिति’ (UN Committee of Experts on Big Data and Data Science for Official Statistics- UN-CEBD) का सदस्य बन गया है, जो वैश्विक सांख्यिकीय समुदाय में इसके बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है।

UN-CEBD में भारत के शामिल होने की मुख्य विशेषताएँ

  • भारत का योगदान: भारत आधिकारिक आँकड़ों में बिग डेटा एवं डेटा साइंस  का लाभ उठाने के लिए वैश्विक मानकों तथा प्रथाओं को आकार देने में मदद करेगा।
    • सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI) ने डेटा साइंस  में नवीन समाधानों को बढ़ावा देने में भारत की भूमिका पर जोर दिया।
  • फोकस क्षेत्र: यह पहल साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने एवं वैश्विक सांख्यिकीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए डेटा तथा प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की भारत की प्रतिबद्धता को उजागर करती है।

‘बिग डेटा एवं डेटा साइंस पर संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों की समिति’ (UN-CEBD)  के बारे में

  • उत्पत्ति: इस समीति की स्थापना वर्ष 2014 में की गई थी तथा ऑस्ट्रेलिया ने इसकी  सर्वप्रथम अध्यक्षता की।
  • आधिकारिक आँकड़ों के लिए बिग डेटा पर एक वैश्विक कार्यक्रम के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण एवं समन्वय प्रदान करने के लिए बनाया गया।

  • उद्देश्य: बिग डेटा को आधिकारिक सांख्यिकीय प्रणालियों में एकीकृत करने के लिए एक रणनीतिक दिशा प्रदान करना।
    • सतत् विकास के लिए वर्ष 2030 एजेंडा के लिए संकेतकों के विकास का समर्थन करना।
  • सदस्यता: इसमें भारत सहित 31 सदस्य देश एवं 16 अंतरराष्ट्रीय संगठन शामिल हैं।
  • शक्तियाँ एवं कार्य
    • बिग डेटा का एकीकरण: बिग डेटा को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सांख्यिकीय प्रणालियों में शामिल करना।
      • गैर-पारंपरिक डेटा स्रोतों, जैसे IoT डिवाइस, सैटेलाइट इमेजरी एवं निजी क्षेत्र डेटा का उपयोग करना।
    • क्षमता निर्माण: सांख्यिकीविदों को उनके कौशल को बढ़ाने के लिए डेटा साइंस  तकनीकों में प्रशिक्षण प्रदान करना।
    • रूपरेखा विकास: सीमा पार डेटा साझाकरण के लिए रूपरेखा स्थापित करना एवं डेटा उपयोग में नैतिक प्रथाओं को बढ़ावा देना।
  • UN-CEBD  का उद्देश्य
    • आधिकारिक आँकड़ों में बिग डेटा के लाभों एवं चुनौतियों का अन्वेषण करना।
    • सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) पर निगरानी एवं रिपोर्टिंग में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना।
    • वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए डेटा-संचालित नीति निर्माण की सिफारिश करना।

भारत के लिए शामिल होने का महत्त्व

  • सांख्यिकीय क्षमताओं को बढ़ाना: IoT, सैटेलाइट इमेजरी एवं निजी क्षेत्र के डेटा स्रोतों को अपनाकर डेटा प्रक्रियाओं का आधुनिकीकरण करना।
  • वैश्विक सहयोग: डेटा इनोवेशन लैब जैसे भारत के नवाचारों को साझा करना एवं अन्य देशों की सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना।
  • बेहतर निर्णय लेने की क्षमता: साक्ष्य आधारित निर्णयों का समर्थन करने के लिए नीति निर्माताओं के लिए वास्तविक समय की अंतर्दृष्टि सक्षम करना।
    • उन्नत डेटा टूल के साथ प्रमुख सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करना।

बिग डेटा के बारे में

  • परिभाषा: बिग डेटा का तात्पर्य पैटर्न, रुझान एवं कार्रवाई योग्य अंतर्दृष्टि को उजागर करने के लिए बड़ी मात्रा में संरचित, असंरचित तथा मिश्रित डेटा को एकत्रित करना एवं विश्लेषण करना है।
  • डेटा के प्रकार
    • संरचित डेटा: संगठित डेटा, जैसे इन्वेंट्री डेटाबेस या वित्तीय लेन-देन सूची।
    • असंरचित डेटा: अपरिष्कृत डेटा, जिसमें सोशल मीडिया पोस्ट या वीडियो शामिल हैं।
    • मिश्रित डेटा सेट: संरचित एवं असंरचित डेटा का संयोजन, अक्सर लार्ज लैंग्वेज  मॉडल जैसे AI मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए उपयोग किया जाता है।

बिग डेटा एनालिटिक्स के अनुप्रयोग

  • शासन: उपयोगिता प्रबंधन, कानून प्रवर्तन एवं शिक्षा को बढ़ाता है।
    • जोखिम शमन, साइबर हमले की रोकथाम एवं आपदा प्रभाव में कमी के लिए पूर्वानुमानित विश्लेषण का समर्थन करता है।
  • अर्थव्यवस्था: बीमा, बैंकिंग, कराधान एवं मनी-लॉण्ड्रिंग गतिविधियों  लागू।
    • ग्राहक सेवा, जोखिम प्रबंधन, वित्तीय विश्लेषण में सुधार करता है एवं कर चोरी या शैल कंपनियों की पहचान करता है।
  • स्वास्थ्य देखभाल: वैयक्तिकृत उपचार सक्षम बनाता है, रोगी परिणामों में सुधार करता है, एवं बीमारी के फैलने का पूर्वानुमान करता है।
    • नैदानिक ​​​​परीक्षणों को अनुकूलित करता है एवं अस्पताल प्रबंधन तथा रोगी निगरानी को बढ़ाता है।
  • कृषि: फसल की उपज में सुधार एवं पौधों की बीमारियों का पूर्वानुमान करने के लिए डेटा-संचालित खेती की सुविधा प्रदान करता है।
    • आपूर्ति शृंखलाओं को अनुकूलित करता है, पशुधन की निगरानी करता है एवं जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन में सहायता करता है।
  • डिजिटल स्पेस: दूरसंचार को अनुकूलित करता है एवं व्यक्तिगत सामग्री प्रदान करता है।
    • प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए AI-संचालित उपकरणों एवं पहनने योग्य तकनीक को शक्ति प्रदान करता है।
  • रक्षा: साइबर सुरक्षा को मजबूत करता है एवं मिशन योजना में सुधार करता है।
    • विभिन्न प्रकार के खतरों का विश्लेषण करता है, हथियार प्रणाली के विकास का समर्थन करता है एवं वॉर सिमुलेशन के माध्यम से प्रशिक्षण में सहायता करता है।
  • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी: पर्यावरणीय परिवर्तनों पर नजर रखता है एवं मिशन ट्रेजेक्टरी को अनुकूलित करता है।
    • अंतरिक्ष मलबे का प्रबंधन करता है, एक्सोप्लैनेट की खोज करता है, एवं जीवन समर्थन प्रणालियों की दक्षता सुनिश्चित करता है।

संदर्भ

तमिलनाडु के कन्याकुमारी में थेंगापट्टिनम मछली पकड़ने वाले बंदरगाह (Thengapattinam Fishing Harbour) से समुद्र में गए लगभग 15 मछुआरों को कथित तौर पर समुद्री सीमा पार करने के आरोप में डिएगो गार्सिया द्वीप (Diego Garcia island) के पास हिरासत में लिया गया। 

डिएगो गार्सिया द्वीप (Diego Garcia Island) के बारे में 

  • अवस्थिति: डिएगो गार्सिया हिंद महासागर में अवस्थित है, जो चागोस द्वीपसमूह का हिस्सा है, जो ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र (British Indian Ocean Territory-BIOT) का भी भाग है।
    • भारत से लगभग 1,600 किमी. दक्षिण और अफ्रीका से 3,500 किमी. पूर्व में स्थित, यह प्रमुख अंतरराष्ट्रीय शिपिंग मार्गों के बीच रणनीतिक रूप से स्थित है।

  • भूगोल: डिएगो गार्सिया एक एटाॅल है, जिसकी विशेषता एक मुख्य लैगून को घेरे हुए प्रवाल भित्ति है। द्वीप का आकार घोड़े की नाल के समान है तथा लैगून उत्तरी दिशा में समुद्र की ओर खुला है।

एटाॅल (Atolls)

  • एटाॅल एक रिंग के आकार की प्रवाल भित्ति, द्वीप या लैगून के चारों ओर स्थित टापुओं की शृंखला है।
  • एटाॅल जलमग्न ज्वालामुखी द्वीपों के अवशेषों से निर्मित होते हैं, जिसमें प्रवाल वृद्धि से आसपास की प्रवाल संरचना का निर्माण होता है।

    • एटाॅल लगभग 27 वर्ग किलोमीटर में फैला है और प्राचीन प्रवाल भित्तियों और गहरे नीले जल से घिरा हुआ है।
  • सामरिक महत्त्व: डिएगो गार्सिया में एक नौसैनिक एवं सैन्य अड्डा है, जिसे वर्ष 1971 से यूनाइटेड किंगडम ने संयुक्त राज्य अमेरिका को लीज पर दिया है।
    • यह हिंद महासागर क्षेत्र में सैन्य अभियानों और निगरानी के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में कार्य करता है।
  • पारिस्थितिक महत्त्व: यह एटाॅल विभिन्न समुद्री जीवों का आवास है, जिसमें लुप्तप्राय प्रवाल प्रजातियाँ और उष्णकटिबंधीय क्षेत्र की मछलियों की प्रजातियाँ शामिल हैं।
  • यह एक रामसर स्थल है।
    • एटाॅल का वह हिस्सा जो रामसर स्थल में शामिल नहीं है, वह क्षेत्र है, जिसे वर्ष 1976 के यू.के./यू.एस.ए. समझौते के अंतर्गत यू.एस. नौसेना सहायता सुविधा के रूप में सैन्य उपयोग के लिए अलग रखा गया है।
    • इसका पृथक स्थान इस क्षेत्र की अद्वितीय जैव विविधता को संरक्षित करने में मदद करता है।
  • चागोसियन विस्थापन: इस द्वीप पर कभी चागोसियन लोग रहते थे, जो अफ्रीकी दासों और भारतीय मजदूरों के वंशज थे, जिन्हें 1960 और 1970 के दशक में ब्रिटेन द्वारा जबरन विस्थापित कर दिया गया था।

संदर्भ

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) ने राजस्थान के पोखरण फील्ड रेंज में भारत की स्वदेशी एंटी टैंक मिसाइल- नाग मार्क 2 (Nag Mark 2) का सफल परीक्षण किया है। 

नाग MK 2 मिसाइल (Nag Mk 2 Missile) के बारे में

  • स्वदेशी विकास: नाग MK 2 भारत के एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (Integrated Guided Missile Development Programme-IGMDP) के तहत DRDO द्वारा विकसित तीसरी पीढ़ी की एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल है।
  • फायर-एंड-फॉरगेट तकनीक: मिसाइल स्वतंत्र रूप से अपने लक्ष्य को ट्रैक करती है और उसे निष्क्रिय करती है।
  • रेंज में वृद्धि: मिसाइल की ऑपरेशनल रेंज 7 से 10 किलोमीटर है, जो पहले के नाग MK 1 वैरिएंट की 4 किलोमीटर रेंज से बेहतर है।
  • कवच के विरुद्ध बहुमुखी प्रतिभा: यह विस्फोटक प्रतिक्रियाशील कवच (Explosive Reactive Armour- ERA) से लैस आधुनिक बख्तरबंद वाहनों को बेअसर कर सकता है, जिससे उन्नत युद्धक्षेत्र खतरों से निपटने की प्रभावशीलता सुनिश्चित होती है।
  • प्लेटफॉर्म एकीकरण: नाग मिसाइल कैरियर (Nag Missile Carrier- NAMICA) के साथ सफलतापूर्वक एकीकृत, हथियार प्रणाली के लिए बढ़ी हुई गतिशीलता और तैनाती संबंधी लचीलापन प्रदान करता है।

फायर-एंड-फॉरगेट मिसाइलों के बारे में

  • परिभाषा: फायर-एंड-फॉरगेट मिसाइलें उन्नत मार्गदर्शन प्रणालियों का उपयोग करती हैं, जिन्हें लॉन्च के बाद ऑपरेटर से किसी और हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे सुरक्षित और अधिक कुशल युद्ध संचालन संभव हो जाता है।
  • भारत में उदाहरण
    • नाग MK 2: फायर-एंड-फॉरगेट तकनीक वाली अत्याधुनिक एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल।
    • अस्त्र (Astra): भारत की हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल जिसे दृश्य-सीमा से परे के अटैक के लिए डिजाइन किया गया है, जिसमें फायर-एंड-फॉरगेट क्षमता है।
    • ब्रह्मोस (BrahMos): एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, जो सटीक हमले के लिए फायर-एंड-फॉरगेट सिद्धांत का प्रयोग करती है।

नाग MK 2 का महत्त्व

  • स्वदेशी रक्षा क्षमता को बढ़ावा: रक्षा प्रौद्योगिकी में भारत की आत्मनिर्भरता में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि को दर्शाता है।
  • परिचालन तत्परता में वृद्धि: भारतीय सेना में शामिल होने की तत्परता इसकी कवच-रोधी क्षमताओं को मजबूत करती है।
  • विरोधियों के लिए निवारक: पाकिस्तान और चीन के साथ संवेदनशील सीमाओं पर भारत की सैन्य शक्ति को बढ़ाता है, संभावित खतरों के खिलाफ निवारक के रूप में कार्य करता है।
  • आधुनिक युद्ध के लिए समर्थन: मिसाइल की सटीकता, गतिशीलता और NAMICA के साथ संगतता इसे आधुनिक युद्ध के परिदृश्यों के लिए एक महत्त्वपूर्ण संपत्ति बनाती है।

सरफेस एन्हांस्ड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (SERS)

स्पोरोपोलेनिन टेम्पलेट पर कॉपर ऑक्साइड नैनोस्ट्रक्चर के नियंत्रित विकास के माध्यम से “मॉर्निंग स्टार” जैसी नैनोस्ट्रक्चर वाला एक नया कॉपर-आधारित उत्प्रेरक विकसित किया गया है।

  • विकास: नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Nano Science and Technology- INST), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) का एक स्वायत्त संस्थान।
  • प्रकाशक: नवाचार ‘नैनोस्केल 2024’ में प्रकाशित हुआ था। 
  • सामग्री: नए उत्प्रेरक ने उच्च मूल्य वाले उत्प्रेरकों की नींव के रूप में बीजाणु (प्रचुर मात्रा में बायोमास अपशिष्ट) का उपयोग किया है।
  • अनुप्रयोग: नवीन उत्प्रेरक कार्बनिक अभिक्रियाओं में उपयोगी है एवं इसका उपयोग पर्यावरणीय उपचार, नैनोस्केल इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सरफेस एन्हांस्ड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (Surface-Enhanced Raman Spectroscopy- SERS) में किया जा सकता है।

सरफेस एन्हांस्ड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (Surface-Enhanced Raman Spectroscopy- SERS) के बारे में

  • SERS एक अत्यधिक संवेदनशील तकनीक है, जो कुछ नैनोसंरचित सामग्रियों द्वारा समर्थित अणुओं के रमन प्रकीर्णन को बढ़ाती है। 
    • यह विद्युत क्षेत्रों या रासायनिक संवर्द्धन के प्लास्मोन-मध्यस्थता प्रवर्द्धन के माध्यम से कम-एकाग्रता विश्लेषकों की संरचनात्मक फिंगरप्रिंटिंग की अनुमति देता है। 
  • प्रयुक्त सामग्री: SERS अणुओं के रमन प्रकीर्णन को बढ़ाने के लिए नैनोसंरचित सामग्रियों का उपयोग करता है, आमतौर पर सोना या चाँदी। 
  • महत्त्व: यह अणुओं की आणविक संरचना, संरचना एवं पर्यावरण के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।
    • SERS बहुत कम सांद्रता पर अणुओं का भी पता लगा सकता है, अक्सर एकल अणु स्तर तक।
  • अनुप्रयोग: SERS का उपयोग अनुप्रयोगों की एक विस्तृत शृंखला में किया जा सकता है, जैसे,
  • बायोमेडिसिन: SERS का उपयोग DNA, RNA, कैंसर मार्कर, बैक्टीरिया एवं वायरस का विश्लेषण करने के लिए किया गया है।

  • खाद्य विज्ञान: भोजन एवं खाद्य संदूषण पर बैक्टीरिया का विश्लेषण करने के लिए SERS का उपयोग किया गया है। 
  • पर्यावरण विश्लेषण: SERS का उपयोग विषाक्त पदार्थों, रंगों एवं कीटनाशकों का विश्लेषण करने के लिए किया गया है।
  • फोरेंसिक: SERS का उपयोग अपराध स्थल से ट्रेस सुबूतों का विश्लेषण करने के लिए किया गया है।
  • सामग्री विज्ञान: SERS का उपयोग सतह के गुणों एवं आणविक रचनाओं के विश्लेषण के लिए किया जाता है।

हज समझौता

भारत ने सऊदी अरब के साथ एक नए हज समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत हज, 2025 के लिए भारत से 175,025 तीर्थयात्रियों का कोटा निर्धारित किया गया है।

  • वर्ष 2025 के लिए कोटा आवंटन: हज कोटा भारतीय हज समिति (HCoI) एवं हज समूह आयोजकों (HGOs) के बीच 70:30 के अनुपात पर आवंटित किया जाएगा।
    • विशेष रूप से, HGO के लिए 52,507 स्थान उपलब्ध होंगे।

भारतीय हज समिति

  • नोडल मंत्रालय: यह अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है।
  • अधिनियम: यह हज समिति अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया है।
  • उद्देश्य: यह मुसलमानों की हज यात्रा की व्यवस्था करने एवं उससे जुड़े मामलों के लिए उत्तरदायी है।

हज के बारे में

  • हज यात्रा एक वार्षिक इस्लामी तीर्थयात्रा है, जो सऊदी अरब के पवित्र शहर मक्का (मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र शहर) में स्थित काबा दर्शन के लिए की जाती है।
  • कर्तव्य: हज मुसलमानों के लिए एक अनिवार्य धार्मिक कर्तव्य है, जिसे उन सभी वयस्क मुसलमानों को अपने जीवनकाल में कम-से-कम एक बार करना चाहिए, जो यात्रा करने के लिए शारीरिक एवं आर्थिक रूप से सक्षम हैं।
  • अवधि: तीर्थयात्रा इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने धू अल-हिज्जा की 8वीं से 12वीं या 13वीं तारीख तक की अवधि के लिए की जाती है।
  • इस्लाम के स्तंभ: हज करना इस्लाम के प्रमुख पाँच स्तंभों में से एक माना जाता है
    • अन्य स्तंभ: शाहदाह (शपथ कि कोई मानता है कि अल्लाह (भगवान) के अलावा कोई भगवान नहीं है), सलात (प्रार्थना), जकात (भिक्षा) एवं सवाम (रमजान का उपवास)।

रिंग ऑफ फायर के लिए सुनामी के संबंध में जापान की एडवाइजरी

13 जनवरी, 2025 को दक्षिण-पश्चिमी जापान के क्यूशू क्षेत्र में 6.9 तीव्रता का एक शक्तिशाली भूकंप आया।

रिंग ऑफ फायर क्या है?

  • रिंग ऑफ फायर प्रशांत महासागर के आसपास का एक वृहद क्षेत्र है, जहाँ कई ज्वालामुखी एवं भूकंप आते हैं।
  • आकृति एवं आकार: इसका आकार घोड़े की नाल जैसा है एवं यह 40,250 किलोमीटर तक विस्तृत है।
  • संबद्ध  देश: यह जापान, अमेरिका, इंडोनेशिया, मैक्सिको, कनाडा, रूस, चिली, पेरू एवं फिलीपींस जैसे देशों से होकर गुजरता है।
  • विवर्तनिक प्लेटें: इसमें प्रशांत, यूरेशियन, फिलीपीन जैसी प्लेटें शामिल हैं, जो अक्सर गतिमान एवं टकराती रहती हैं।
  • ज्वालामुखीय गतिविधियाँ: रिंग ऑफ फायर में अधिकांश ज्वालामुखी स्ट्रैटोवोलकैनो (लावा एवं राख की परतों द्वारा निर्मित ज्वालामुखी) उपस्थित हैं।
    • रिंग ऑफ फायर में उपस्थित प्रमुख ज्वालामुखी: संयुक्त राज्य अमेरिका में माउंट सेंट हेलेंस, जापान में माउंट फूजी, फिलीपींस में माउंट पिनातुबो एवं इंडोनेशिया में माउंट मेरापी। 
  • प्राकृतिक संसाधन: इस क्षेत्र में खनिज, तेल एवं गैस के समृद्ध भंडार हैं, जो इसके तट पर स्थित देशों की अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं।
  • रिंग ऑफ फायर में भूकंप क्यों आते हैं?
    • प्लेट संचलन
      • टेक्टॉनिक प्लेटें संचलन करती हैं, सरकती हैं या एक दूसरे से टकराती हैं।
      • संचलन के कारण प्लेटों के किनारे अवरुद्ध हो जाते हैं और अंततः जब वे गति करती हैं तो भूकंप आते हैं।
  • जापान में भूकंप: जापान को भूकंप का सामना करना पड़ता है क्योंकि चार प्लेटें – प्रशांत, फिलीपीन सागर, ओखोटस्क एवं यूरेशियन प्लेट  इसके पास मिलती हैं।

रिंग ऑफ फायर में कई ज्वालामुखी क्यों हैं?

  • अधोगमन (सबडक्शन) प्रक्रिया
    • अधोगमन तब होता है, जब एक अधिक घनत्त्व वाली विवर्तनिक प्लेट का एक कम घनत्व वाली प्लेट के नीचे अधोगमन होता है, जिससे एक गर्त का निर्माण होता है।
    • अधिक घनत्व वाली प्लेट पिघलकर मैग्मा में बदल जाती है, जो ऊपर उठकर ज्वालामुखी का निर्माण करती है।
  • ज्वालामुखियों की सघनता: अधिकांश सबडक्शन क्षेत्र रिंग ऑफ फायर में हैं, यही कारण है कि इस क्षेत्र में इतने सारे ज्वालामुखी हैं।

Z-मोड़ सुरंग

हाल ही में प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में 6.5 किलोमीटर लंबी Z-मोड़ सुरंग का उद्घाटन किया।

Z-मोड़ सुरंग के बारे में

  • अवस्थिति: Z-मोड़ सुरंग गगनगीर गाँव के पास स्थित 6.5 किमी लंबी सुरंग है, जो सोनमर्ग स्वास्थ्य रिसॉर्ट को मध्य कश्मीर के गांदरबल जिले के कंगन शहर से जोड़ती है।
    • यह श्रीनगर-सोनमर्ग-लेह राजमार्ग पर 8,500 फीट से अधिक की ऊँचाई पर स्थित है।
  • इसका नाम इसके निर्माण स्थल पर Z-आकार की सड़क के नाम पर रखा गया है।

Z-मोड़ सुरंग का महत्त्व

  • वर्षभर कनेक्टिविटी: सोनमर्ग तक निर्बाध पहुँच प्रदान करती है एवं सर्दियों के दौरान भारी बर्फबारी की चुनौतियों का सामना करते हुए श्रीनगर एवं लद्दाख के बीच वर्ष भर कनेक्टिविटी सुनिश्चित करती है।
  • पर्यटन एवं लॉजिस्टिक्स को बढ़ावा: लद्दाख में पर्यटन को सुविधाजनक बनाती है एवं द्रास, कारगिल तथा लेह तक सड़क पहुँच में सुधार करके सैन्य लॉजिस्टिक्स को मजबूत करती है।
  • सामरिक महत्त्व: भारतीय सेना के लिए सैन्य गतिशीलता एवं आपूर्ति शृंखला में वृद्धि सुनिश्चित करती है, जिससे आगे की स्थिति के लिए महंगे हवाई परिवहन पर निर्भरता कम हो जाती है।
  • सीमा सुरक्षा में वृद्धि: क्षेत्रीय तनाव को दूर करते हुए, सियाचिन में पाकिस्तान एवं पूर्वी लद्दाख में चीन के विरुद्ध सैन्य तैयारी को मजबूत किया गया है।

संदर्भ

भारत सरकार ने रिपोर्ट किए गए आँकड़ों में महत्त्वपूर्ण विसंगतियों के बाद, सटीक स्वर्ण आयात डेटा प्रकाशित करने के लिए एक विश्वसनीय प्रणाली स्थापित करने हेतु एक समिति का गठन किया है।

  • ये विसंगतियाँ विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) प्लेटफॉर्म से डेटा ट्रांसमिशन प्रणाली को भारतीय सीमा शुल्क इलेक्ट्रॉनिक गेटवे (Indian Customs Electronic Gateway- ICEGATE) पर स्थानांतरित करने के कारण उत्पन्न हुईं। 

स्वर्ण के आयात के आँकड़ों से संबंधित समस्या

  • आयात में असामान्य वृद्धि: नवंबर 2024 में स्वर्ण के आयात में वर्ष-दर-वर्ष 331% की वृद्धि हुई, जिससे आर्थिक चिंताएँ बढ़ीं जैसे:
    • घरेलू मुद्रा का कमजोर होना।
    • व्यापार और राजकोषीय नीतियों पर नकारात्मक प्रभाव।

  • संशोधित आँकड़े: नवंबर 2024 में रिपोर्ट किए गए स्वर्ण के आयात के आँकड़ों में सुधार के बाद 5 बिलियन डॉलर की कमी की गई।
    • कुल मिलाकर, अप्रैल से नवंबर 2024 तक स्वर्ण के आयात के आँकड़ों को 12 बिलियन डॉलर घटाकर 49 बिलियन डॉलर के शुरुआती अनुमान से घटाकर 37 बिलियन डॉलर कर दिया गया।

विसंगति के कारण

  • डेटा माइग्रेशन संबंधी समस्याएँ: SEZ प्लेटफॉर्म से ICEGATE सिस्टम में संक्रमण के कारण स्वर्ण के आयात की दोहरी गणना जैसी त्रुटियाँ हुईं।
    • जुलाई 2024 में शुरू की गई एकीकरण प्रक्रिया निर्बाध और सटीक डेटा ट्रांसमिशन सुनिश्चित करने में विफल रही।
  • तकनीकी गड़बड़ियाँ: SEZ और ICEGATE के बीच डेटा संचारित करने में लगातार तकनीकी समस्याओं के कारण अशुद्धियाँ हुईं।
    • इन गड़बड़ियों के कारण व्यापार सांख्यिकी का गलत दोहराव हुआ।

नीति और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • स्वर्ण के आयात के आँकड़ों में विसंगतियाँ ऐसे महत्त्वपूर्ण समय पर आई हैं, जब केंद्रीय बजट पेश होने में बस कुछ ही सप्ताह बाकी हैं।
  • स्वर्ण के आयात में उल्लेखनीय वृद्धि, आंशिक रूप से आयात शुल्क में 15% से 6% की कटौती के कारण हुई है, जिसके कारण आगामी बजट में शुल्क दरों को कड़ा करने की माँग की गई है:
    • बढ़ते व्यापार घाटे को कम करना।
    • कमजोर होते रुपये को स्थिर करना।

भारतीय सीमा शुल्क इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स/इलेक्ट्रॉनिक डेटा इंटरचेंज गेटवे (ICEGATE) के बारे में

  • परिचय: ICEGATE  की स्थापना वर्ष 2007 में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Indirect Taxes and Customs- CBIC) द्वारा भारतीय सीमा शुल्क के राष्ट्रीय पोर्टल के रूप में की गई थी। 
  • कार्य और विशेषताएँ
    • यह व्यापार संस्थाओं, मालवाहकों और अन्य भागीदारों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से ई-फाइलिंग सेवाएँ प्रदान करता है।
    • बंदरगाहों, हवाई अड्डों और कंटेनर डिपो से व्यापार डेटा को कैप्चर करने और संसाधित करने के लिए एक एकीकृत प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करता है।
    • भारत भर में 500 से अधिक स्थानों से निर्यात-आयात (EXIM) डेटा एकत्र करता है।
    • वाणिज्यिक खुफिया और सांख्यिकी महानिदेशालय (DGCIS) को व्यापार डेटा का वास्तविक समय संचरण सुनिश्चित करता है।
  • व्यापार सांख्यिकी में भूमिका
    • SEZ और गैर-SEZ से व्यापार डेटा एकत्र करता है।
    • कई स्रोतों में डेटा को एकीकृत करके दोहराव को रोकता है।
    • सटीक व्यापार सांख्यिकी के लिए DGCIS को समन्वित और सटीक व्यापार डेटा प्रेषित करता है।

स्वर्ण के आयात के आँकड़ों को सही करने की आवश्यकता

  • नीति निर्माण: प्रभावी व्यापार और राजकोषीय नीतियों को डिजाइन करने के लिए सटीक डेटा महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर केंद्रीय बजट से पहले।
    • विसंगतियों के कारण व्यापार घाटे और आयात शुल्क पर गलत निर्णय लिए जा सकते हैं।
  • आर्थिक स्थिरता: सही डेटा व्यापार घाटे के बेहतर प्रबंधन को सुनिश्चित करता है, जो रुपये की स्थिरता को प्रभावित करता है।
    • आयात के बढ़े हुए या गलत आँकड़ों के कारण होने वाली बाजार विकृतियों को रोकता है।
  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार संबंध: वैश्विक व्यापार में विश्वसनीयता बनाए रखने और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टिंग मानकों को पूरा करने के लिए सटीक व्यापार आँकड़े आवश्यक हैं।
  • राजस्व संग्रह और आवंटन: आयात की सटीक रिपोर्टिंग सीधे सीमा शुल्क राजस्व और विभिन्न क्षेत्रों में इसके आवंटन को प्रभावित करती है।
  • कुशल संसाधन उपयोग: डेटा त्रुटियों को समाप्त करने से संसाधनों का बेहतर आवंटन सुनिश्चित होता है और एजेंसियों में प्रयासों के दोहराव को रोकता है।

संदर्भ

भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) में विदेश नीति तंत्र पर व्यापक सुधार की आवश्यकता पर चर्चा चल रही है, क्योंकि भारत, वैश्विक शासन में बड़ी भूमिका निभा रहा है।

संबंधित तथ्य

  • विदेश मंत्रालय भारत की विदेश नीति के मुख्य कार्यवाहक के रूप में कार्य करता है, राजनयिक संबंधों का प्रबंधन करता है और वैश्विक स्तर पर भारत के रणनीतिक हितों को प्रस्तुत करता है।
  • हालाँकि दुनिया भू-राजनीतिक उतार-चढ़ाव, आर्थिक अंतरनिर्भरता एवं जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट जैसी उभरती वैश्विक चुनौतियों के दौर से गुजर रही है, इस संदर्भ में भारत के विदेश मंत्रालय की नीतिगत प्रक्रियाओं पर नए तरीके से बदलाव का दबाव बढ़ रहा है।

भारतीय विदेश मंत्रालय के बारे में

  • भारत का विदेश मंत्रालय (MEA) विदेशी मामलों एवं अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार सरकारी विभाग है।
  • यह भारत की विदेश नीति को आकार देने एवं लागू करने, वैश्विक स्तर पर देश के हितों का प्रतिनिधित्व करने तथा द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • प्रमुख नेतृत्व
    • विदेश मंत्री: वर्तमान में डॉ. एस. जयशंकर (वर्ष 2025 से)
    • राज्य मंत्रियों और भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारियों के एक कैडर द्वारा समर्थित।
  • विदेश मंत्रालय के कार्य
    • राजनयिक संबंध: विश्व के विभिन्न देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करना और उन्हें बनाए रखना।
    • नीति निर्माण: राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों के साथ संरेखित विदेश नीति रणनीतियों को तैयार करना।
    • अंतरराष्ट्रीय समझौते: संधियों, व्यापार समझौतों एवं द्विपक्षीय समझौतों पर बातचीत करना और उन्हें अंतिम रूप देना।
    • कांसुलर सेवाएँ: पासपोर्ट सेवाओं, वीजा मुद्दों और कानूनी सहायता के साथ विदेश में भारतीय नागरिकों की सहायता करना।
    • बहुपक्षीय जुड़ाव: संयुक्त राष्ट्र (UN), विश्व व्यापार संगठन (WTO), G20 और BRICS जैसे वैश्विक मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करना।
    • सॉफ्ट पॉवर को बढ़ावा देना: सांस्कृतिक कूटनीति, शिक्षा और आउटरीच कार्यक्रमों जैसे- अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के माध्यम से भारत की वैश्विक छवि को मजबूत करना।

वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • चीन की बहुस्तरीय कूटनीति: चीन 276 से अधिक दूतावासों एवं वाणिज्य दूतावासों के साथ एक विशाल राजनयिक नेटवर्क बनाता है, जो आर्थिक साझेदारी एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • अमेरिकी सार्वजनिक कूटनीति: अमेरिका फुलब्राइट स्कॉलरशिप एवं अंतरराष्ट्रीय आगंतुक नेतृत्व कार्यक्रम जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सक्रिय रूप से जुड़ता है, जिससे द्विपक्षीय संबंध मजबूत होते हैं।
  • यूरोपीय संघ जलवायु कूटनीति: यूरोपीय संघ के राष्ट्र जलवायु उद्देश्यों को विदेश नीति में एकीकृत करते हैं, हरित ऊर्जा संक्रमण और कार्बन तटस्थता पर वैश्विक वार्ता का नेतृत्व करते हैं।
  • सिंगापुर का रणनीतिक प्रशिक्षण: सिविल सर्विस कॉलेज जैसे विशेष संस्थानों के माध्यम से राजनयिकों को बातचीत और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त बनाए रखने के लिए विश्व स्तरीय प्रशिक्षण प्रदान करता है।

विदेश मंत्रालय के लिए चिंता के विषय

  • संरचनात्मक पुनर्गठन: विदेश मंत्रालय की आंतरिक संरचना में नीतिगत एवं निर्णयन बाधाओं को कम करने एवं समन्वय में सुधार करने के लिए पुनर्गठन की आवश्यकता है। इसमें कई छोटे-छोटे विभाग हैं, विशेषकर क्षेत्रीय विभाग, जो अक्सर अक्षमताओं का कारण बनते हैं।
  • भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका: वर्ष 2023 में G20 की भारत की अध्यक्षता एवं BRICS, QUAD और SCO जैसे मंचों में सक्रिय भागीदारी ने इसके कूटनीतिक ढाँचे पर बढ़ती माँगों को उजागर किया है।
  • भू-राजनीतिक चुनौतियाँ: रूस-यूक्रेन संघर्ष और अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता जैसे हालिया वैश्विक घटनाक्रम, जटिल कूटनीतिक परिदृश्यों को प्रभावी ढंग से नेविगेट करने के लिए भारत की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
  • क्षेत्रीय संबंध: भारत-चीन सीमा तनाव, ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के माध्यम से पड़ोसियों तक पहुँच और हिंद महासागर क्षेत्र में रणनीतिक चुनौतियों जैसे मुद्दे विदेश मंत्रालय के भीतर बढ़ी हुई क्षमताओं की माँग करते हैं।
  • तकनीकी कूटनीति: डिजिटल कूटनीति और साइबर सुरक्षा चिंताओं का उदय, भारत की तकनीकी नेतृत्व आकांक्षाओं के साथ मिलकर उभरती चुनौतियों का समाधान करने के लिए सुधारों की आवश्यकता है।
  • आंतरिक चिंताएँ: विदेश मंत्रालय के सीमित स्टाफ, बजट की कमी तथा जलवायु वार्ता और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे नए मुद्दों में विशेषज्ञता की कमी के संबंध में आलोचना ने प्रणालीगत सुधारों की माँग को पुनः उजागर किया है।

भारतीय विदेश सेवा (IFS) के बारे में

  • स्थापना: भारतीय विदेश सेवा (IFS) की स्थापना वर्ष 1946 में भारत के विदेशी मामलों के प्रबधन के लिए की गई थी, जिसमें कूटनीति, व्यापार और सांस्कृतिक संबंध शामिल हैं।
  • भूमिका: IFS अधिकारी विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, समझौतों पर वार्ता करते हैं, विदेशों में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा करते हैं और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
  • भर्ती: उम्मीदवारों का चयन UPSC सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से किया जाता है, जिसके बाद उन्हें दिल्ली में विदेश सेवा संस्थान (FSI) में विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है।
  • कैरियर: ये अधिकारी दुनिया भर में भारतीय दूतावासों, उच्चायोगों और वाणिज्य दूतावासों में और विदेश मंत्रालय (MEA) में प्रमुख भूमिकाओं में कार्य करते हैं।
  • वैश्विक पहुँच: भारत में 190 से अधिक राजनयिक मिशन हैं, जो IFS को भारत की विदेश नीति को लागू करने और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बनाए रखने के लिए अभिन्न अंग बनाते हैं।

विदेश मंत्रालय के लिए सुझाए गए सुधारों में आगे की राह

  • मानव संसाधन का विस्तार करना: भारत में लगभग 850 भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारी हैं, जो रूस (4,500), यू.के. (4,600) या अमेरिका (14,500) से काफी कम है।
    • व्यापार विशेषज्ञों की लैटरल इंट्री WTO या मुक्त व्यापार समझौतों जैसे मंचों में बातचीत का समर्थन कर सकती है।
  • बजट आवंटन में वृद्धि: MEA को केंद्रीय बजट (2023-24) का 0.4% आवंटित किया गया था।
    • दूतावासों के आधुनिकीकरण, सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ाने और विदेशी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति जैसी सॉफ्ट पॉवर पहलों का समर्थन करने के लिए धन में वृद्धि करना।
  • विशेषज्ञता एवं प्रशिक्षण: जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य कूटनीति और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में राजनयिकों के लिए मध्य-कॅरियर विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना।
    • उदाहरण: सिंगापुर के ‘ली कुआन यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी’ के समान प्रशिक्षण मॉड्यूल बातचीत एवं रणनीतिक दृष्टिकोण में कौशल बढ़ा सकते हैं।
  • मिशन का विकेंद्रीकरण: तीव्र निर्णयन प्रक्रिया और स्थानीय जुड़ाव के लिए दूतावासों एवं क्षेत्रीय कार्यालयों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना।
    • उदाहरण: यू.के. का विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय (FCDO) दूतावासों को क्षेत्रीय नीति-निर्माण संबंधी अधिकार प्रदान करता है।
  • सांस्कृतिक कूटनीति और सॉफ्ट पॉवर को मजबूत करना: विदेशों में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने के लिए भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के तहत कार्यक्रमों के आयोजन में वृद्धि।
    • योग दिवस जैसी पहलों का विस्तार करना, जिसमें वर्ष 2023 में 190 देशों की भागीदारी देखी गई थी।
  • डिजिटल और तकनीकी कूटनीति: डिजिटल संप्रभुता और साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक समर्पित साइबर कूटनीति प्रभाग की स्थापना करना।
    • उदाहरण: कूटनीति में एस्टोनिया का डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे तकनीकी एकीकरण वैश्विक पहुँच को बढ़ाता है।

निष्कर्ष

बदलती वैश्विक शासन व्यवस्था में भारत का विदेश मंत्रालय एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। जिनमें दूरदर्शी सुधारों को अपनाकर और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से प्रेरणा लेकर, विदेश मंत्रालय समकालीन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करना शामिल है। विदेश नीति संबंधी क्षमताओं में वृद्धि, विशेष प्रशिक्षण एवं अभिनव कूटनीति यह सुनिश्चित करेगी कि भारत परस्पर अंतर्संबंधित और बहुध्रुवीय विश्व की जटिलताओं का प्रभावी तरीके से निर्णयन कर सके।

संदर्भ

तेलंगाना लोक सेवा आयोग (Telangana Public Service Commission-TGPSC) को भारत में लोक सेवा आयोगों (Public Service Commissions-PSCs) से संबंधित सभी कानूनी मुद्दों के लिए समन्वयक के रूप में नामित किया गया है। 

  • TGPSC देश भर के PSCs की सहायता के लिए विभिन्न विषयों पर विषय विशेषज्ञ भी उपलब्ध कराएगा।

संबंधित तथ्य

  • यह निर्णय बंगलूरू में आयोजित PSCs के अध्यक्षों के 25वें राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान लिया गया।
  • इस सम्मेलन का उद्घाटन कर्नाटक के मुख्यमंत्री, कर्नाटक के राज्यपाल थावर चंद गहलोत और UPSC की अध्यक्ष प्रीति सूदन की उपस्थिति में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किया।

राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) के बारे में 

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: वर्ष 1926 में ली आयोग (1924) की सिफारिश पर संघीय लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई थी।
    • भारत सरकार अधिनियम, 1935 में संघीय लोक सेवा आयोग, प्रांतीय लोक सेवा आयोग और संयुक्त लोक सेवा आयोग का प्रावधान किया गया।
  • संवैधानिक निकाय: SPSCs की स्थापना भारतीय संविधान (भाग-XIV) के अनुच्छेद-315-323 के अंतर्गत की गई है।
    • ये अनुच्छेद संघ और राज्य स्तर पर लोक सेवा आयोगों की संरचना, शक्तियों और कार्यों को परिभाषित करते हैं।
    • अनुच्छेद-315: संघ और भारत के राज्यों के लिए लोक सेवा आयोगों (PSC) का गठन।
  • भूमिका और कार्य
    • राज्य सेवाओं में भर्ती के लिए परीक्षा आयोजित करता है।
    • राज्य लोक सेवाओं में भर्ती, पदोन्नति, स्थानांतरण और अनुशासनात्मक कार्रवाइयों से संबंधित मामलों पर सलाह देता है।
  • नियुक्तियाँ और कार्यकाल
    • राज्यपाल अनुच्छेद-316 के तहत SPSC के सदस्यों की नियुक्ति करते हैं।
    • पुनर्नियुक्ति: जो व्यक्ति पहले SPSC के सदस्य के रूप में कार्य कर चुके हैं, उन्हें उसी पद पर पुनः नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
  • सेवा की शर्तें: SPSC के लिए अनुच्छेद-318 के तहत राज्यपाल निम्नलिखित को विनियमित कर सकते हैं:
    • आयोग के सदस्यों की संख्या और सेवा शर्तें।
    • आयोग के कर्मचारियों की संख्या और सेवा शर्तें।
    • लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवा शर्तों को नियुक्ति के बाद उनके नुकसान के लिए नहीं बदला जा सकता है।
  • अवधि: सदस्य 6 वर्ष की अवधि या 62 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, सेवा करते हैं।
  • त्याग-पत्र और निष्कासन
    • त्याग-पत्र: सदस्य राज्यपाल को लिखित त्याग-पत्र देकर पद त्याग कर सकते हैं।
    • निष्कासन: सदस्यों को केवल राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित कारणों से हटाया जा सकता है:
      • दिवालियापन।
      • अपने पद के बाहर वेतनभोगी रोजगार में संलग्न होना।
      • दुर्व्यवहार या अक्षमता (सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जाँच के बाद)।
  • व्यय: SPSC का व्यय राज्य की समेकित निधि से लिया जाता है, जिससे वित्तीय स्वतंत्रता और स्वायत्तता सुनिश्चित होती है।

संयुक्त लोक सेवा आयोग (Joint Public Service Commission-JPSC)

  • संविधान में दो या दो से अधिक राज्यों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए JPSC का प्रावधान किया गया है।
  • JPSC का गठन संसद के एक अधिनियम द्वारा किया जाता है। इस प्रकार, JPSC एक संवैधानिक निकाय नहीं बल्कि एक वैधानिक निकाय है।
  • यह संबंधित राज्य के राज्यपालों को रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
  • उदाहरण: वर्ष 1966 में पंजाब से हरियाणा के गठन के बाद, पंजाब और हरियाणा के दो राज्यों में थोड़े समय के लिए JPSC था।

  • SPSC की वार्षिक रिपोर्ट: अनुच्छेद-323 के तहत, राज्य आयोग का यह कर्तव्य है कि वह राज्य के राज्यपाल को आयोग द्वारा किए गए कार्यों के बारे में प्रतिवर्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करे।
    • संयुक्त आयोग का यह कर्तव्य है कि वह संयुक्त लोक सेवा आयोग (JPSC) के तहत प्रत्येक राज्य के राज्यपाल को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करे।

लोक सेवा आयोगों का राष्ट्रीय सम्मेलन

  • अवलोकन: संघ और राज्य लोक सेवा आयोगों के बीच विचारों और सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए एक मंच प्रदान करने के लिए संविधान के अनुच्छेद-315 के तहत स्थापित।
    • सम्मेलन समय-समय पर आयोजित किया जाता है, जिसकी कोई निश्चित अवधि नहीं होती।
  • सम्मेलन में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के साथ-साथ सभी 29 राज्य लोक सेवा आयोग भाग लेते हैं।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
    • पहला राष्ट्रीय सम्मेलन वर्ष 1949 में आयोजित किया गया था।
    • वर्ष 1999 में, UPSC के अध्यक्ष सम्मेलन के पदेन अध्यक्ष बने।
  • महत्त्व
    • भर्ती के तरीकों, कार्मिक नीतियों और परीक्षा संचालन पर चर्चा करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है।
    • सामाजिक-आर्थिक वातावरण में परिवर्तन और लोक सेवा आयोगों के कामकाज पर उनके प्रभाव को संबोधित करता है।
    • संवैधानिक दायित्वों और सार्वजनिक अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए सहयोग की सुविधा प्रदान करता है।

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय में एक विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि न्याय तक पहुँच का अधिकार निरपेक्ष नहीं है और इसका प्रयोग जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए।

  • मामला: यह निर्णय पांडुरंग विट्ठल केवने बनाम भारत संचार निगम लिमिटेड एवं अन्य के मामले में दिया गया।
  • पृष्ठभूमि: याचिकाकर्ता ने विशेष अनुमति याचिका दायर करके बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा अपनी दूसरी समीक्षा याचिका को खारिज किए जाने को चुनौती दी है।
  • निर्णय: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर 11 वर्षों से अधिक समय तक बार-बार और बिना पात्रता वाली याचिकाएँ दायर करके न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने और फोरम शॉपिंग में संलग्न होने के लिए ₹1 लाख का जुर्माना लगाया है।

न्याय तक पहुँच का अधिकार

  • न्याय का अधिकार: न्याय तक पहुँच कानून के शासन का एक बुनियादी सिद्धांत है और यह सुनिश्चित करता है कि कानूनी प्रणाली पारदर्शी, निष्पक्ष हो और नागरिकों के संवैधानिक एवं मानवाधिकारों की रक्षा करे।
  • सिद्धांत: न्याय के अधिकार में निम्नलिखित सिद्धांत शामिल हैं:-
    • न्यायिक कार्यवाही तक पहुँच: आपराधिक मुकदमों सहित कानूनी प्रणाली तक पहुँच का अधिकार।
    • निष्पक्ष सुनवाई: निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, जहाँ सभी पक्ष न्याय प्रक्रिया में योगदान करते हैं।
    • कानूनी प्रतिनिधित्व: न्यायालय में कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार।
    • संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा: कानूनी प्रणाली के भीतर संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा का अधिकार।
  • मौलिक अधिकार: अनीता कुशवाहा बनाम पुष्प सुदान मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने माना है कि न्याय तक पहुँच एक मौलिक अधिकार है, जिसकी गारंटी भारत के संविधान के अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद 21 द्वारा नागरिकों को दी गई है।
  • संवैधानिक प्रावधान 
    • प्रस्तावना: इसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय शामिल है।
    • मौलिक अधिकार: न्याय के अधिकार का संविधान में स्पष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन इसका अंतर्निहित उल्लेख है।
      • अनुच्छेद-13: किसी भी कानून को असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है, जो भाग III के तहत सूचीबद्ध मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
      • अनुच्छेद-32: संवैधानिक उपचारों के विरुद्ध अधिकार नागरिकों को राज्य या अन्य संस्थाओं द्वारा उनके अधिकारों के उल्लंघन से बचाकर न्याय के अधिकार की ओर मार्ग प्रशस्त करता है।
    • राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत: अनुच्छेद-39A, निशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार प्रदान करता है, जिसे राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) का गठन करके संस्थागत बनाया गया है।
  • अन्य प्रावधान
    • जनहित याचिका: यह एक कानूनी प्रक्रिया है, जो जनहित के प्रति समर्पित नागरिकों और संगठनों को लोगों के हितों की रक्षा के लिए न्यायालयों में सार्वजनिक महत्त्व के मामले दायर करने की अनुमति देती है।
      • भारत में जनहित याचिका की शुरुआत 1980 के दशक की शुरुआत में न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्णा अय्यर और न्यायमूर्ति पी. एन. भगवती ने की थी।
    • वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र (Alternative Dispute Redressal Mechanisms-ADR): ऐसे तंत्र कम औपचारिकता और कम लागत के साथ शिकायत निवारण प्रदान करते हैं।
  • न्याय तक पहुँच और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून: वर्ष 1948 में तैयार किए गए मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा ने ‘न्याय तक पहुँच’ के अधिकार को निम्नलिखित तरीके से सार्वभौमिक मान्यता दी।
    • अनुच्छेद-6: कानून के समक्ष सभी व्यक्तियों को समान माना जाएगा।
    • अनुच्छेद-8: प्रत्येक व्यक्ति को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले कृत्यों के लिए सक्षम राष्ट्रीय न्यायाधिकरणों द्वारा प्रभावी उपचार पाने का अधिकार है।

विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition)

  • अनुच्छेद-136: सर्वोच्च न्यायालय अपने विवेकानुसार भारत के क्षेत्र में किसी न्यायालय या न्यायाधिकरण द्वारा पारित अथवा बनाए गए किसी मामले या मामले में किसी निर्णय, डिक्री, निर्धारण, सजा या आदेश के विरुद्ध अपील करने के लिए विशेष अनुमति दे सकता है।
  • विवेकाधिकार: सर्वोच्च न्यायालय अनुमति के लिए अपील स्वीकार कर सकता है या नहीं भी कर सकता है। अगर स्वीकृति मिल जाती है, तो विशेष अनुमति अपील विशेष अनुमति याचिका बन जाती है।
  • आधार: SLP तब दायर की जा सकती है, जब-
    • कोई महत्त्वपूर्ण कानूनी मुद्दा शामिल हो।
    • कोई अन्याय माना जाता हो।
    • जब कोई उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय में अपील के लिए उपयुक्तता प्रमाण-पत्र देने से इनकार कर देता है।
  • SLP दायर करना
    • उच्च न्यायालय के निर्णय के 90 दिनों के भीतर दायर करना।
    • उच्च न्यायालय द्वारा अपील के लिए उपयुक्तता प्रमाण-पत्र देने से इनकार करने के 60 दिनों के भीतर दायर करना।

संदर्भ 

BRICSEEIIU, जिसे पहले BRICS कहा जाता था, का विस्तार नए देशों की पूर्ण सदस्यता के साथ हुआ है।

ब्रिक्स (BRICS) क्या है?

  • ब्रिक्स (BRICS) एक अंतर-सरकारी संगठन है।
    • मूल सदस्य देश: ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका।
    • नए सदस्य: मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात।
  • मुख्य सिद्धांत: अहस्तक्षेप, समानता और पारस्परिक लाभ पर कार्य करता है।
  • शब्द ‘ब्रिक्स’ (BRICS) की उत्पत्ति
    • यह शब्द वर्ष 2001 में गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्री जिम ओ’नील द्वारा ब्राजील, रूस, भारत और चीन में निवेश के अवसरों पर प्रकाश डालने के लिए गढ़ा गया था।
    • प्रारंभ में इसका ध्यान आर्थिक संभावनाओं पर केंद्रित था, जो बाद में एक भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक गुट के रूप में विकसित हो गया।
  • वर्ष 2010 में दक्षिण अफ्रीका के प्रवेश के बाद, समूह का नाम बदलकर ब्रिक्स (BRICS) कर दिया गया।
  • हालिया विस्तार तथा नई सदस्यता
    • वर्ष 2024 तथा वर्ष 2025 में नए सदस्य
      • रूस में वर्ष 2024 के शिखर सम्मेलन के दौरान ईरान, मिस्र, इथियोपिया तथा UAE इसमें शामिल हुए।
      • इंडोनेशिया वर्ष 2025 में पहला दक्षिण-पूर्व एशियाई सदस्य बन गया।
    • BRICS+: नए सदस्यों के समावेश को दर्शाने के लिए प्रयुक्त अनौपचारिक शब्द।

ब्रिक्स का विस्तार: कारण

  • रणनीतिक वैश्विक प्रभाव: इसका मुख्य कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वाली संस्थाओं में पश्चिमी प्रभुत्व के लिए प्रतिसंतुलन बनाना है।
    • यह कई हितधारकों के बीच वैश्विक शक्ति के वितरण से संबंधित है।
  • आर्थिक ताकत: ब्रिक्स के विस्तार के पीछे मुख्य कारण इसकी आर्थिक क्षमता को मजबूत करना है। इसके लिए, इसमें उच्च आर्थिक क्षमता वाले देश शामिल हैं।
    • यह संस्था अपने सदस्य देशों के बीच व्यापार और निवेश के अवसरों को बढ़ावा देती है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: व्यापार और निवेश के अलावा, सऊदी अरब और ईरान जैसे देशों को शामिल करने का इसका निर्णय ऊर्जा भंडार तक पहुँच द्वारा समर्थित है।
    • यह ब्रिक्स को पारंपरिक ऊर्जा बाजारों पर अपनी निर्भरता कम करने में मदद करेगा, जिससे समूह के भीतर सुरक्षा बढ़ेगी।
  • भू-राजनीतिक महत्त्व: मिस्र और इथियोपिया जैसे देशों को शामिल करने से समुद्री व्यापार मार्गों तक पहुँचने में मदद मिलती है।
    • यह सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं में सहयोग और स्थिरता को बढ़ावा देता है।

इंडोनेशिया की सदस्यता का महत्त्व

  • ब्रिक्स पर प्रभाव
    • इंडोनेशिया दक्षिण-पूर्व एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ब्रिक्स के प्रभाव को मजबूत करता है।
    • यह वैश्विक संस्थाओं में सुधार और पश्चिमी-प्रभुत्व वाली प्रणालियों पर निर्भरता कम करने के ब्रिक्स के लक्ष्यों को अतिरिक्त समर्थन देता है।
  • भारत के लिए महत्त्व
    • इंडोनेशिया के शामिल होने से दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की भागीदारी और मजबूत होगी, जो वैश्विक व्यापार और भू-राजनीति के लिए एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है।
    • यह दक्षिण-दक्षिण सहयोग में भारत के नेतृत्व और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के हितों को बढ़ावा देने के उसके प्रयासों को मजबूत करता है।
  • पश्चिमी प्रभुत्व के प्रतिकार के रूप में
    • ब्रिक्स पश्चिमी देशों, विशेष रूप से G-7 के लिए एक प्रतिकार के रूप में कार्य करता है। 
    • इस समूह का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देना और गैर-डॉलर लेन-देन को बढ़ावा देना है।

ब्रिक्स का बढ़ता वैश्विक प्रभाव

  • प्रमुख सांख्यिकी
    • ब्रिक्स वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 35% और दुनिया की आबादी का 46% हिस्सा है।
    • नए सदस्यों के जुड़ने से, ब्रिक्स वैश्विक निर्णय लेने में अधिक प्रभावशाली होता जा रहा है।
  • उद्देश्य और उपलब्धियाँ
    • ब्रिक्स व्यापार और वित्त में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने को प्राथमिकता देता है।
    • हाल ही में चर्चा स्थानीय मुद्राओं को मजबूत करने और वित्तीय सुधारों को बढ़ावा देने पर केंद्रित थी।

ब्रिक्स वित्तीय संस्थाएँ कितनी प्रभावी रही हैं?

  • ब्रिक्स की प्राथमिक संस्था न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) थी।
    • इसकी स्थापना वर्ष 2014 में हुई थी और इसका मुख्यालय शंघाई में है।
    • यह IMF और विश्व बैंक जैसी पारंपरिक पश्चिमी संस्थाओं की तुलना में अधिक लचीले और समावेशी वित्तीय विकल्प प्रदान करता है।
      • इसने मजबूत क्रेडिट रेटिंग, समान शेयरधारक भागीदारी और फंड तक बेहतर पहुँच बनाए रखने में भी सफलता प्राप्त की है।
    • वर्ष 2016 से, इसने 96 परियोजनाओं के लिए $32 बिलियन से अधिक की मंजूरी दी है।
  • एक अन्य संस्था आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था (CRA) है।
    • दोनों संस्थाओं को ब्रेटन वुड्स प्रणाली के विकल्प के रूप में बनाया गया था, जिसमें IMF और विश्व बैंक जैसी संस्थाएँ शामिल हैं।
    • आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था (CRA) भुगतान संतुलन संकट के दौरान वित्तीय सहायता प्रदान करती है, लेकिन यह ब्रिक्स सदस्यों तक ही सीमित है।
    • इसका गठन ब्रिक्स आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था की स्थापना के लिए संधि के अनुसार किया गया है।
    • यह IMF के विकल्प के रूप में कार्य करता है और अल्पावधि तरलता के लिए बेहतर स्रोत है।

भारत और ब्रिक्स (BRICS)

भारत ब्रिक्स का एक प्रमुख सदस्य है, और समूह में इसकी भागीदारी से कई लाभ हुए हैं।

रणनीतिक सहयोग

  • वैश्विक मंच: ब्रिक्स भारत को सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी, जलवायु परिवर्तन और व्यापार जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत करने का अवसर प्रदान करता है।
  • आर्थिक लाभ
    • बाजारों तक पहुंच: भारत 3 अरब से अधिक लोगों के बड़े बाजार से लाभान्वित होता है, जिससे महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक अवसर उत्पन्न होते हैं।
  • बहुपक्षीय सुधारों को बढ़ावा देना
    • वैश्विक व्यवस्था में सुधार: भारत ब्रिक्स सदस्यों के साथ मिलकर अधिक समावेशी और न्यायसंगत वैश्विक शासन संरचना की वकालत करता है।
  • दक्षिण-सहयोग को मजबूत करना
    • विकासशील देशों के साथ सहयोग: ब्रिक्स भारत को विकासशील देशों के बीच व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देने में सक्षम बनाता है।
  • नई विश्व व्यवस्था का समर्थन करना
    • ब्रिक्स विजन: 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान, समूह को उभरती नई विश्व व्यवस्था का एक प्रमुख स्तंभ बताया गया, जिसमें इसके बढ़ते प्रभाव पर जोर दिया गया।

भारत के लिए चुनौतियाँ

  • वैश्विक शक्तियों को संतुलित करना: भारत के सामने चीन-केंद्रित और पश्चिम-केंद्रित विश्व व्यवस्था के बीच संतुलन बनाए रखते हुए आगे बढ़ने की चुनौती है।

संदर्भ

जैसे-जैसे दुनिया भर के देश अपनी सैन्य क्षमताओं में कृत्रिम बुद्धिमत्ता को तेजी से शामिल कर रहे हैं, भारत इस तकनीकी परिवर्तन में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में उभरा है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) कंप्यूटर विज्ञान का एक व्यापक क्षेत्र है, जो ऐसे कार्यों को करने में सक्षम मशीनों के निर्माण पर केंद्रित है, जिनके लिए आमतौर पर मानव बुद्धि की आवश्यकता होती है।

रक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का महत्त्व

  • उन्नत निर्णयन-प्रक्रिया: AI पूर्वानुमानित विश्लेषण और डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि के माध्यम से तीव्र और अधिक सटीक निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।
    • USA के F-35 फाइटर जेट में AI-सक्षम सिस्टम वास्तविक समय में मिशन-महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने में पायलटों की सहायता करते हैं।
  • मजबूत निगरानी और सुरक्षा: स्वायत्त ड्रोन और निगरानी उपकरण जैसी AI-संचालित प्रणालियाँ सीमा सुरक्षा और टोही संचालन को बढ़ाती हैं।
    • IBM Watson जैसी AI प्रणालियों का उपयोग सैन्य निर्णय-निर्माण में संचालन में जोखिमों का पूर्वानुमान करने के लिए किया जाता है।
  • साइबर सुरक्षा संवर्द्धन: AI पैटर्न का विश्लेषण करके, उल्लंघनों का पूर्वानुमान करके और प्रतिक्रियाओं को स्वचालित करके साइबर खतरों का पता लगाने और उन्हें रोकने में मदद करता है।
  • लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन: AI उपकरण रखरखाव आवश्यकताओं की भविष्यवाणी करके और इन्वेंट्री का प्रबंधन करके आपूर्ति शृंखलाओं को अनुकूलित करता है।
    • अमेरिकी वायु सेना समय और संसाधनों को बचाने के लिए विभिन्न विमानों में अपने AI-संचालित पूर्वानुमानित रखरखाव का उपयोग कर रही है।
  • खुफिया, निगरानी और टोही (ISR): AI उपग्रहों, ड्रोन और सेंसर जैसे कई स्रोतों से डेटा प्रोसेसिंग को गति देता है। यह पैटर्न की पहचान कर सकता है, खतरों का पता लगा सकता है और कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी प्रदान कर सकता है।
    • भारत में इंद्रजाल स्वायत्त ड्रोन सुरक्षा प्रणाली (Indrajaal Autonomous Drone Security System) UAV खतरों के विरुद्ध एक बहु-स्तरीय ड्रोन-आधारित परिधि रक्षा प्रदान करती है।

रक्षा क्षेत्र में AI के उपयोग में भारत की प्रगति

  • भारत का रक्षा बजट और AI आधुनिकीकरण पर ध्यान देना: भारत ने पिछले वर्ष अपने रक्षा बजट में 6.21 लाख करोड़ रुपये ($75 बिलियन) आवंटित किए, जिसमें अपनी सैन्य क्षमताओं के आधुनिकीकरण पर महत्त्वपूर्ण जोर दिया गया।
  • सैन्य अभियानों में AI की भूमिका पर सरकार का जोर: केंद्रीय रक्षा मंत्री ने सैन्य अभियानों में AI की परिवर्तनकारी क्षमता पर प्रकाश डाला है।
  • भारत के रक्षा क्षेत्र में AI नवाचार: भारत ने इंद्रजाल स्वायत्त ड्रोन सुरक्षा प्रणाली (Indrajaal Autonomous Drone Security System) जैसे AI-सक्षम सिस्टम विकसित करने और तैनात करने में उल्लेखनीय प्रगति की है।
    • इंद्रजाल प्रणाली हैदराबाद स्थित कंपनी ग्रीन रोबोटिक्स द्वारा विकसित एक AI-संचालित, स्वायत्त ड्रोन रक्षा प्रणाली है।
    • भारतीय सेना: भारतीय सेना ने पाकिस्तान और चीन के साथ अपनी सीमाओं पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) निगरानी प्रणाली तैनात की है।
    • वायु सेना: वायु सेना मिशन नियोजन एवं निष्पादन में सुधार के लिए AI को अपना रही है, जिसमें मानव रहित हवाई वाहनों (UAVs) और स्वायत्त प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
      • इसके अलावा, वायु सेना ने डिजिटाइजेशन, ऑटोमेशन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एप्लीकेशन नेटवर्किंग के लिए इकाई (Unit for Digitisation, Automation, Artificial Intelligence and Application Networking- UDAAN) पहल के तहत नई दिल्ली के राजोकरी वायु सेना स्टेशन पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिए उत्कृष्टता केंद्र (Center of Excellence for Artificial Intelligence-CoEAI) की भी स्थापना की है।
    • भारतीय नौसेना: नौसेना समुद्री निगरानी एवं खतरे का पता लगाने के लिए मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग करके विभिन्न सेंसर एवं प्लेटफॉर्म से बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण करने के लिए AI पर अनुसंधान कर रही है।
  • AI में विदेशी निवेश आकर्षित करना: भारत के AI पारिस्थितिकी तंत्र ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है, जिससे महत्त्वपूर्ण विदेशी निवेश हुआ है:
    • माइक्रोसॉफ्ट की प्रतिबद्धता: कंपनी ने तेलंगाना में डेटा सेंटर बनाने के लिए लगभग 3 बिलियन डॉलर का निवेश किया है, जिससे भारत के AI बुनियादी ढाँचे को मजबूती मिली है।
  • AI विकास में अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत AI प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय साझेदारी में सक्रिय रूप से भाग लेता है, विशेष रूप से सैन्य अनुप्रयोगों के लिए।
    • ये सहयोग सैन्य AI में वैश्विक विकास के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

रक्षा क्षेत्र में AI को अपनाने में सरकार की पहल

  • AI के कार्यान्वयन के लिए टास्क फोर्स (2018): राष्ट्रीय सुरक्षा में AI के निहितार्थों का अध्ययन करने के लिए वर्ष 2018 में एन चंद्रशेखरन टास्क फोर्स की स्थापना की गई थी।
    • चंद्रशेखरन टास्क फोर्स की अनुशंसाओं के आधार पर, रक्षा AI परिषद (Defence AI Council- DAIC) और रक्षा AI परियोजना एजेंसी (Defence AI Project Agency- DAIPA) का गठन किया गया। 
  • रक्षा AI परिषद (Defence AI Council- DAIC): इसका प्राथमिक लक्ष्य भारतीय रक्षा बलों के भीतर AI-संचालित परिवर्तन के लिए रणनीतिक दिशा और मार्गदर्शन प्रदान करना है।
  • रक्षा AI परियोजना एजेंसी (Defence AI Project Agency- DAIPA):  रक्षा संगठनों में AI अपनाने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन और कार्यान्वयन ढाँचा प्रदान करने के लिए DAIPA की स्थापना की गई थी।
    • यह भारतीय सेना में AI परियोजनाओं और पहलों के लिए केंद्रीय निष्पादन निकाय के रूप में कार्य करता है।
  • रक्षा संगोष्ठी में AI: जुलाई 2022 में, भारत ने स्वचालन, स्वायत्त प्रणालियों, साइबर सुरक्षा और परिचालन विश्लेषण पर केंद्रित 75 AI-सक्षम उत्पाद लॉन्च किए।
  • डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज: डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज, इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (iDEX) कार्यक्रम का हिस्सा है, जो भारतीय रक्षा बलों के लिए उन्नत तकनीक विकसित करने वाले स्टार्टअप को फंडिंग प्रदान करता है।
  • DRDO में AI अनुसंधान एवं विकास
    • सेंटर फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड रोबोटिक्स (CAIR), बंगलूरू: रक्षा प्रणालियों के लिए AI में DRDO वैज्ञानिकों को प्रशिक्षित करने के लिए कार्यशालाएँ आयोजित करता है और नवाचार और सहयोग को बढ़ावा देकर स्टार्ट-अप का समर्थन करता है। 
    • DRDO युवा वैज्ञानिक प्रयोगशालाएँ (DYSL)
      • DYSL-AI: AI से संबंधित अनुसंधान और अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
      • DYSL-CT (संज्ञानात्मक प्रौद्योगिकी): रक्षा के लिए संज्ञानात्मक प्रौद्योगिकी उन्नति पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • रक्षा उन्नत प्रौद्योगिकी संस्थान (Defence Institute of Advanced Technology-DIAT): AI और मशीन लर्निंग में प्रमाणित पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
  • रक्षा उत्पादन विभाग (Department of Defence ProductionDDP) ने सशस्त्र बलों के लिए AI परियोजनाओं के लिए प्रति वर्ष 100 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं।

रक्षा क्षेत्र में AI के उपयोग में भारत के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ

इस प्रगति के बावजूद, कई चुनौतियाँ भारत के रक्षा क्षेत्र में AI के पूर्ण उपयोग में बाधा डालती हैं:

  • डेटा और फंडिंग: AI सिस्टम को प्रशिक्षित करने के लिए सीमित डिजिटाइज्ड डेटा और डेटा सेंटर की उच्च लागत महत्त्वपूर्ण बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।
  • नीतिगत अंतराल: हालाँकि भारत ने जिम्मेदार AI के लिए राष्ट्रीय AI रणनीतियों और सिद्धांतों की रूपरेखा तैयार की है, सैन्य AI परिनियोजन और विनियमन के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव है।
  • अंतर-सेवा अंतर-संचालन संबंधी मुद्दे: भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना के अलग-अलग सिद्धांत, प्रणालियाँ और संचार अभ्यास अंतर-संचालन संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं और संयुक्त अभियानों के लिए प्रणालियों की खरीद को जटिल बनाते हैं।
  • सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (PSU) पर अत्यधिक निर्भरता: हालाँकि PSU एक भूमिका निभाते हैं, रक्षा खरीद को मुख्य रूप से उन तक सीमित रखने से निजी कंपनियों और स्टार्टअप द्वारा विकसित उन्नत प्रणालियों तक नवाचार और पहुँच में बाधा आती है।
    • निजी क्षेत्र के स्टार्टअप और उद्यम, जो अत्याधुनिक AI समाधान विकसित करने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित हैं, कम उपयोग किए जाते हैं।
  • साइबर सुरक्षा संबंधी कमजोरियाँ एवं हैकिंग जोखिम: AI सिस्टम साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील होते हैं, जैसे डेटा उल्लंघन, प्रतिकूल इनपुट और हैकिंग प्रयास।
  • नैतिक और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: विशेष रूप से घातक परिणामों वाले निर्णयों के संदर्भ में, स्वायत्त AI सिस्टम जवाबदेही के मुद्दे चिह्नित करते हैं।
    • AI सिस्टम में पूर्वाग्रह और मानवाधिकारों पर उनके प्रभाव के बारे में नैतिक प्रश्नों का अभी पूरी तरह से समाधान किया जाना शेष है।
  • आतंकवादी समूहों द्वारा जनरेटिव AI का दुरुपयोग: आतंकवादी समूहिक भावनाओं में परिवर्तन करने और व्यवहार को प्रभावित करने के लिए नकली चित्र/वीडियो संदेश प्रसारित करने के लिए AI का उपयोग कर सकते हैं।
    • हाल ही में हमास से जुड़े समूहों ने गाजा संघर्ष में गलत सूचना फैलाने के लिए AI-जनरेटेड छवियों का उपयोग किया है।

सेना में AI के उपयोग में नैतिक चुनौतियाँ

  • जीवन और मृत्यु संबंधी निर्णय: मशीनों को स्वायत्त रूप से लक्ष्य चुनने एवं हमला करने की शक्ति प्रदान करना मानवीय गरिमा एवं अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के बारे में नैतिक मुद्दे को इंगित करता है।
  • निर्णय और सहानुभूति का अभाव: मशीनों/कंप्यूटरों में आवश्यक मानवीय गुणों का अभाव है, जिससे नागरिक क्षति एवं संघर्ष बढ़ने का जोखिम है।
  • उत्तरदायित्व एवं जिम्मेदारी: यदि कोई स्वायत्त हथियार युद्ध अपराध करता है, तो यह स्पष्ट नहीं है कि किसे जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। जवाबदेही की यह कमी न्याय एवं निवारण के सिद्धांतों को कमजोर करती है।
  • प्रशिक्षण डेटा में पूर्वाग्रह: AI भेदभाव को कायम रख सकता है, जिससे लोगों के कुछ समूहों को अनुचित या हानिकारक रूप से लक्षित किया जा सकता है।
  • पारदर्शिता और व्याख्या की कमी: कई AI प्रणाली ‘ब्लैक बॉक्स’ (Black Boxes) हैं, जिसका अर्थ है कि यह समझना मुश्किल है कि वे अपने निर्णय कैसे लेते हैं। पारदर्शिता की यह कमी पूर्वाग्रहों को पहचानना और उन्हें ठीक करना मुश्किल बनाती है।
  • प्रसार एवं हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा: AI उन्नत हथियार प्रौद्योगिकी को गैर-राज्य समूहों और आतंकवादियों सहित व्यापक श्रेणी के लोगों के लिए अधिक सुलभ बना सकता है।

सैन्य एवं रक्षा में AI का वैश्विक उपयोग

  • संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रोजेक्ट मावेन (Project Maven): इस पहल का उद्देश्य सैन्य अभियानों में बड़े डेटा और मशीन लर्निंग के एकीकरण को गति देना है, विशेष रूप से आतंकवाद विरोधी अभियानों में पूर्ण गति वीडियो विश्लेषण के लिए।
  • चीन: चीन ने भविष्य के युद्ध में AI के महत्त्व पर जोर दिया है, जिसका लक्ष्य ऐसी प्रणालियाँ विकसित करना है, जो न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप के साथ कार्य कर सकें।
  • इजरायल: इजरायल सीमा निगरानी के लिए AI का उपयोग करता है, अपनी सीमाओं पर संभावित खतरों का पता लगाने और उनका जवाब देने के लिए सेंसर, कैमरे और मशीन लर्निंग का उपयोग करता है।

रक्षा क्षेत्र में AI को विनियमित करने के लिए प्रमुख अंतरराष्ट्रीय कदम

  • घातक स्वायत्त हथियार प्रणाली (Lethal Autonomous Weapons Systems-LAWS) पर कुछ पारंपरिक हथियारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (CCW)-सरकारी विशेषज्ञों का समूह (GGE) पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन:
    • वर्ष 2016 में स्थापित।
    • अधिकार: घातक स्वायत्त हथियार प्रणालियों से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करना, जिसमें AI शामिल है।
  • संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण अनुसंधान संस्थान (UNIDIR) दिशा-निर्देश (अक्टूबर 2024): सुरक्षा एवं रक्षा में AI पर राष्ट्रीय रणनीतियों के लिए दिशा-निर्देश विकसित किए गए।
    • उद्देश्य: सैन्य AI के संबंध में राष्ट्रों को अपनी स्वयं की नीतियाँ एवं नियम विकसित करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करना।
  • रेड क्रॉस की अंतरराष्ट्रीय समिति (International Committee of the Red Cross-ICRC): AI से जड़ी स्वायत्त हथियार प्रणालियों के विकास और उपयोग के लिए मानदंडों एवं नियमों के एक व्यापक तथा कानूनी रूप से बाध्यकारी सेट की सक्रिय रूप से सिफारिश करती है।

आगे की राह 

  • AI उपयोग संबंधी मजबूत फ्रेमवर्क विकसित करना: सैन्य AI परिनियोजन एवं नैतिक उपयोग के लिए विशेष रूप से स्पष्ट नीतियाँ एवं विनियम स्थापित करना।
  • अंतर-सेवा सहयोग को बढ़ावा देना: अंतर-संचालन और प्रभावी संयुक्त संचालन सुनिश्चित करने के लिए सशस्त्र बलों के बीच अलगाव को समाप्त करना।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करना: नवाचार को बढ़ावा देने और अत्याधुनिक तकनीकों तक पहुँच बनाने के लिए निजी कंपनियों और स्टार्टअप के साथ सहयोग को बढ़ावा देना।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना
    • अंतरराष्ट्रीय संवादों में भाग लेना: सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने और आम चुनौतियों का समाधान करने के लिए रक्षा में AI पर अंतरराष्ट्रीय चर्चाओं एवं सहयोगों में भाग लेना।
  • अनुसंधान एवं विकास (R&D) को बढ़ावा देना
    • अनुसंधान एवं विकास निधि में वृद्धि: रक्षा क्षेत्र में AI अनुसंधान एवं विकास के लिए अधिक संसाधन आवंटित करना।
    • शिक्षा जगत, उद्योग और सरकार के बीच सहयोग को बढ़ावा देना: अनुसंधान संस्थानों, निजी कंपनियों और रक्षा संगठनों के बीच सहयोग और ज्ञान साझा करने के लिए मंच बनाना।
    • स्वदेशी AI विकास को बढ़ावा देना: विदेशी स्रोतों पर निर्भरता कम करने और रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए स्वदेशी AI प्रौद्योगिकियों के विकास को प्रोत्साहित करना।
  • नैतिक विचारों पर जोर देना
    • सैन्य AI के लिए नैतिक दिशा-निर्देश विकसित करना: घातक स्वायत्त हथियारों के उपयोग सहित सैन्य अनुप्रयोगों में AI के विकास एवं तैनाती के लिए स्पष्ट नैतिक सिद्धांत और दिशा-निर्देश स्थापित करना।
    • मानवीय निगरानी सुनिश्चित करना: विशेष रूप से सैन्य बल के उपयोग से जुड़े निर्णयों पर मानवीय नियंत्रण बनाए रखना ।
    • पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना: AI प्रणालियों के विकास एवं तैनाती में पारदर्शिता सुनिश्चित करना और जवाबदेही के लिए तंत्र स्थापित करना।

निष्कर्ष

भारत रक्षा में AI की क्षमता को अपना रहा है, इसलिए नैतिक एवं परिचालन चुनौतियों का समाधान करते हुए नवाचार को प्रोत्साहित करने वाले वातावरण को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। सशस्त्र बलों में AI प्रौद्योगिकियों का एकीकरण न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाने का वादा करता है, बल्कि भारत को वैश्विक रक्षा परिदृश्य में एक हितधारक के रूप में भी स्थापित करता है।

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