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Jan 17 2025

भारतीय परमाणु इकाइयों से अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाया गया

संयुक्त राज्य प्रशासन ने हाल ही में नागरिक परमाणु ऊर्जा में गहन सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए तीन प्रमुख भारतीय परमाणु संस्थाओं पर प्रतिबंध हटा दिया है।

मुख्य तथ्य

  • तीन संस्थान जिनसे प्रतिबंध हटाया गया हैं 
    • भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC)
    • इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (IGCAR)
    • इंडियन रेअर अर्थ  (IRE)।

अमेरिकी इकाई सूची क्या है?

  • यह सूची विदेशी व्यक्तियों, व्यवसायों और संगठनों की सूची है, जो निर्दिष्ट वस्तुओं के निर्यात, पुनः निर्यात /या हस्तांतरण के लिए विशिष्ट लाइसेंसिंग आवश्यकताओं के अधीन हैं। 
  • प्रकाशन: उद्योग एवं सुरक्षा ब्यूरो (BIS)।
  • उद्देश्य: यह सूची उन वस्तुओं के अनधिकृत व्यापार को रोकती है। 
  • साथ ही ये अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है एवं संवेदनशील प्रौद्योगिकियों तथा सामग्रियों के हस्तांतरण को नियंत्रित करती है।
  • उदाहरण: सामूहिक विनाश के हथियार (WMD) कार्यक्रम, या अन्य गतिविधियाँ। 
  • इकाई सूची में होने का अर्थ पूर्ण प्रतिबंध या निषेध नहीं है।
    • यह सिर्फ एक नियामक बाधा के रूप में कार्य करता है।

नए कदम के उद्देश्य

  • भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करना, असैनिक परमाणु समझौता एवं असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी साझा करने का मार्ग प्रशस्त करना।
  • परमाणु ऊर्जा से संबंधित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में संयुक्त अनुसंधान, विकास तथा सहयोग को बढ़ावा देना।
  • लचीले महत्त्वपूर्ण खनिजों एवं स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ावा देना।

भार्गवास्त्र माइक्रो मिसाइलें

भारत ने अपनी पहली स्वदेशी माइक्रो-मिसाइल प्रणाली, भार्गवस्त्र का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है, जिसे स्वार्म (SWARM) ड्रोन के खतरे का मुकाबला करने के लिए डिजाइन किया गया है।

भार्गवास्त्र माइक्रो मिसाइलों के बारे में

  • विवरण: भारत की पहली स्वदेशी सूक्ष्म-मिसाइल प्रणाली स्वार्म ड्रोन खतरों को बेअसर करने के लिए विकसित की गई।
  • विकास: इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड।

भार्गवास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ

  • पहचान और निर्देशित युद्ध सामग्री: 6 किमी. की रेंज में आने वाले छोटे ड्रोन का पता लगाती है एवं खतरों को निष्क्रिय करने के लिए निर्देशित सूक्ष्म युद्धक प्रणाली को सक्रिय करती है।
  • तीव्र परिनियोजन: मोबाइल प्लेटफॉर्म  पर त्वरित परिनियोजन के लिए डिजाइन किया गया।
  • मल्टी-टार्गेट एंगेजमेंट: एक साथ 64 लक्ष्यों को ट्रैक एवं संलग्न करता है।
  • परिचालन क्षमता: सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूर्ण करते हुए, ऊँचाई वाले क्षेत्रों सहित सभी इलाकों में प्रभावी ढंग से कार्य करती है।

स्वार्म (SWARM) ड्रोन क्या हैं?

  • परिभाषा: स्वार्म (Smart War-Fighting Array of Reconfigured Modules) का अर्थ है ‘स्मार्ट वॉर-फाइटिंग एरे ऑफ रीकॉन्फिगर मॉड्यूल्स’, जिसमें समन्वय में कार्य करने वाले कई ड्रोन शामिल हैं।
  • क्षमताएँ: सामूहिक निर्णय लेना, अनुकूल उड़ान एवं मानवीय हस्तक्षेप के बिना पुनः सक्रिय हो जाना।
  • अनुप्रयोग: अग्निशमन, क्षति आकलन, तथा अग्निशमन तरल पदार्थों का उपयोग करके दमन जैसे कार्यों में सहायता कर सकता है।

काशी तमिल संगमम 3.0

काशी तमिल संगमम् का तीसरा संस्करण 15 फरवरी को प्रारंभ होगा एवं 24 फरवरी को समाप्त होगा।

संगमम के बारे में

  • यह सरकार के ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत युवा संगम’ कार्यक्रम का हिस्सा है।
  • मेजबान शहर: संगमम् कुंभ मेले की पृष्ठभूमि में वाराणसी के नमो घाट पर आयोजित किया जाएगा।
  • थीम: तीसरा संस्करण महर्षि अगस्त्य की विरासत एवं दर्शन पर आधारित होगा।
  • आयोजक: केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय इस कार्यक्रम का मुख्य आयोजक होगा। 
  • कार्यान्वयन एजेंसियाँ: IIT मद्रास एवं BHU।
  • उद्देश्य: तमिलनाडु एवं काशी के बीच सदियों पुराने संबंधों पुनर्स्थापना एवं पुनः पुष्टि करना।

भागीदारी

  • छात्र, शिक्षक एवं लेखक, किसान तथा कारीगर, पेशेवर एवं छोटे उद्यमी, महिलाएँ तथा स्टार्ट-अप, नवाचार, शिक्षा-तकनीक एवं अनुसंधान संस्थान।
  • आयोजन के दौरान तमिलनाडु में अगस्त्य मंदिरों पर एक दस्तावेज एवं सिद्ध चिकित्सा पर एक तथा दस्तावेज जारी किया जाएगा।

महर्षि अगस्त्य

  • अगथियार मुनिवर 18 सिद्धों में से एक हैं, जो योग एवं आध्यात्मिक ज्ञान के स्वामी थे।
  • महर्षि अगस्त्य भारतीय इतिहास एवं पौराणिक कथाओं में प्रचलित व्यक्ति हैं, जिन्हें अगस्त्य, अगथियार सिद्ध तथा अगस्त्य मुनिवर जैसे कई नामों से भी जाना जाता है।
  • योगदान
    • उन्हें तमिल व्याकरण का जनक माना जाता है एवं उन्होंने पहली तमिल व्याकरण पुस्तक “अगट्टियम” लिखी थी।
      • उन्होंने ऋग्वेद में कई भजनों का भी योगदान दिया।
    • सिद्ध चिकित्सा: अगथियार मुनिवर ने हर्बल चिकित्सा एवं उपचार पद्धतियों में योगदान दिया, जो सिद्ध चिकित्सा परंपरा का हिस्सा हैं, जो अभी भी दक्षिण भारत में प्रचलित हैं।
    • लेखक: अगस्त्य गीता का उल्लेख वराह पुराण में किया गया है, अगस्त्य संहिता स्कंद पुराण में एवं द्वैध-निर्णय तंत्र पाठ में सन्निहित है।

स्वच्छ शौचालय तक पहुँच एक बुनियादी अधिकार: सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हालिया आदेश में कहा है कि सभी के लिए स्वच्छ सार्वजनिक शौचालयों तक आसान पहुँच एक बुनियादी अधिकार एवं मानवीय गरिमा का एक अनिवार्य हिस्सा है।

निर्णय की मुख्य विशेषताएँ

  • रिट याचिका: देश भर की न्यायालयों एवं न्यायाधिकरणों के परिसरों में स्वच्छ तथा लैंगिक-संवेदनशील शौचालयों की कमी को उजागर करने वाली एक रिट याचिका पर यह निर्णय आया।
  • राज्य का कर्तव्य: यह राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों का कर्तव्य है कि वे पूरे वर्ष सभी को स्वच्छ शौचालय तथा पेयजल तक आसान पहुँच एवं रखरखाव प्रदान करें।
    • कोई राज्य/केंद्रशासित प्रदेश कल्याणकारी राज्य होने का दावा नहीं कर सकता, यदि वह तीनों लिंगों को स्वच्छ शौचालय सुविधाएँ प्रदान नहीं कर सकता है।
  • आदेश: सर्वोच्च न्यायालय ने लैंगिक-संवेदनशील शौचालयों के लिए अलग शौचालय सुविधाओं के निर्माण एवं उपलब्धता को सुनिश्चित करने तथा चार माह  में एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को कई निर्देश जारी किए।
  • मौलिक अधिकार: उचित स्वच्छता तक पहुँच को संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है: 
    • अधिकार में सभी व्यक्तियों के लिए एक सुरक्षित एवं स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित करना शामिल है।

संदर्भ

इजरायल एवं हमास 15 माह के युद्ध के बाद गाजा युद्धविराम तथा बंधकों की रिहाई के समझौते पर सहमत हुए हैं।

समझौते की मुख्य विशेषताएँ

  • यह समझौता कतर की राजधानी दोहा में हुआ है।
  • सौदे को प्रभावी होने के लिए इजरायल के मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया जाना है।
  • मध्यस्थ: सौदे के लिए बातचीत में कतर, मिस्र एवं संयुक्त राज्य अमेरिका ने मध्यस्थता की तथा समझौते के कार्यान्वयन की गारंटी दी।

  • चरण: युद्धविराम एवं बंधक समझौते को 3 चरणों में लागू किया जाएगा,
    • प्रथम चरण: यह चरण पहले छह सप्ताह (42 दिन) में आयोजित किया जाएगा।
      • हमास द्वारा 33 बंधकों (महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों सहित) की रिहाई के बदले इजरायली जेलों में बंद फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा किया गया।
      • निकासी: इजरायली सेनाएँ धीरे-धीरे मध्य गाजा से हट जाएँगी एवं अपनी सीमाओं पर तैनात हो जाएँगी।
      • वापसी: विस्थापित फिलिस्तीनियों को उत्तरी गाजा में उनके निवास स्थान पर जाने की अनुमति दी जाएगी।
      • मानवीय सहायता: 600 मानवीय सहायता ट्रकों को दैनिक आधार पर गाजा पट्टी में जाने की अनुमति दी जाएगी।
    • दूसरा चरण: 16वें दिन बातचीत प्रारंभ होगी एवं शेष बंधकों की रिहाई तथा पूर्ण इजरायली सेना की वापसी की निगरानी की जाएगी।
    • तीसरा चरण: इसमें मिस्र, कतर एवं संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में गाजा का पुनर्निर्माण शामिल होगा।
      • गाजा के अंदर और बाहर आवागमन के लिए बॉर्डर क्रॉसिंग को फिर से खोलना।
      • शेष बंधकों के शवों की वापसी।
  • इजराइल-हमास युद्ध
  • प्रारंभ: फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास ने ‘ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड’ के तहत 7 अक्टूबर, 2023 को स्थल, वायु एवं जल के माध्यम से इजरायल पर हमला किया, जिससे कई लोग हताहत हुए।
    • इजरायली प्रधानमंत्री ने हमास की घुसपैठ के जवाब में ‘ऑपरेशन आयरन स्वॉर्ड’ प्रारंभ करते हुए ‘युद्ध की स्थिति’ की घोषणा कर दी।
  • हताहत: हमास का हमला इजरायल के इतिहास में सबसे घातक हमला था, जिसके परिणामस्वरूप 1,210 लोगों की मौत हो गई एवं इजरायल ने अपने जवाबी अभियान में हजारों लोग हताहत हुए, जिनमें से हमास द्वारा संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार अधिकांश आम नागरिक थे।

गाजा पट्टी के बारे में

  • अवस्थिति: यह भूमध्य सागर के तट पर एक फिलिस्तीनी एन्क्लेव है। 
    • इसकी सीमा इजरायल एवं मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप के साथ लगती है।
  • गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक मिलकर फिलिस्तीन राज्य बनाते हैं। इन दोनों क्षेत्रों को इजरायल अलग करता है।
  • प्रशासन: वर्ष 2006 में बहुमत हासिल करने के बाद से, गाजा पट्टी पर हमास का शासन है, जिसे एक राजनीतिक-सैन्य संगठन माना जाता है।
  • आधिपत्य: इजरायल, गाजा एवं इसकी तटरेखा पर हवाई क्षेत्र को नियंत्रित करता है। इसने गाजा पट्टी में माल के आवागमन  पर प्रतिबंध लगा दिया है।
    • मिस्र भी गाजा की एक सीमा को नियंत्रित करता है एवं कभी-कभी आवागमन पर प्रतिबंध लगाता है।
  • संघर्ष: इजरायल द्वारा अपने लगभग 2 मिलियन निवासियों पर लगाए गए सख्त आंदोलन प्रतिबंधों के कारण गाजा पट्टी को ‘विश्व की सबसे बड़ी ओपन एयर जेल’ के रूप में वर्णित किया गया है।

संदर्भ 

लैंसेट बढ़ती मोटापे की दर को संबोधित करने के लिए सटीक आकलन की आवश्यकता पर बल देते हुए बॉडी मास इंडेक्स (BMI) से उन्नत मोटापा मेट्रिक्स (Better Obesity Metrics) की ओर परिवर्तन का समर्थन करता है।

मोटापे के निदान हेतु  प्रस्तावित प्रमुख सुधार

  • पुरानी वर्गीकरण प्रणाली
    • पारंपरिक दृष्टिकोण पूर्ण रूप से बॉडी मास इंडेक्स (BMI) पर निर्भर था।
    • 30 से अधिक BMI को मोटापा माना जाता था।
    • यह विधि सरल किंतु समस्यामूलक माप प्रणाली थी।
  • नई वर्गीकरण प्रणाली
    • दोहरी प्रणाली: नई प्रणाली में दो श्रेणियाँ शामिल हैं: क्लिनिकल मोटापा एवं प्री-क्लिनिकल मोटापा।
      • क्लिनिकल मोटापा: इसमें न केवल शारीरिक मापों पर विचार किया जाता है, बल्कि हृदय रोग, मधुमेह और जोड़ों की समस्याओं जैसे स्वास्थ्य प्रभावों पर भी विचार किया जाता है।
        • इसमें यह देखा गया है कि अतिरिक्त वजन दैनिक गतिविधियों को किस प्रकार प्रभावित करता है।
      • प्री-क्लिनिकल मोटापा: गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ विकसित होने से पहले जोखिम वाले व्यक्तियों की पहचान करना।
        • यह शीघ्र हस्तक्षेप की अनुमति देता है एवं स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देता है।

नैदानिक ​​उपकरण एवं कार्यान्वयन

  • BMI से परे: नया ढाँचा अधिक उन्नत उपकरणों का उपयोग करता है:
    • कमर की परिधि: पेट की खतरनाक चर्बी का पता लगाने के लिए महत्त्वपूर्ण। 
      • महिलाओं के लिए महत्त्वपूर्ण सीमा: > 35 इंच
      • पुरुषों के लिए महत्त्वपूर्ण सीमा: > 40 इंच
    • DEXA स्कैन: शरीर में वसा की  सटीक माप प्रदान करता है।
    • व्यापक स्वास्थ्य मूल्यांकन: हृदय स्वास्थ्य, चयापचय संकेत एवं संयुक्त कार्यक्षमता की जाँच करना।
    • जीवनशैली कारक: इसमें शारीरिक गतिविधियाँ, आहार एवं नींद की गुणवत्ता शामिल है।

मोटापा 

  • यह एक ऐसा रोग है, जिसमें शरीर में अतिरिक्त वसा जमा हो जाती है। 
  • यह शारीरिक कार्य द्वारा उपयोग की गई कैलोरी से अधिक कैलोरी के सेवन के कारण होता है। 
  • सामान्यत: 30 या उससे अधिक BMI वाले व्यक्ति को मोटा माना जाता है।

मोटापे की भारत में स्थिति 

  • महिलाओं में मोटापा: लैंसेट अध्ययन के अनुसार,  भारत में 20 वर्ष से ऊपर की 44 मिलियन महिलाएँ मोटापे से ग्रस्त थी। 
    • महिलाओं में मोटापे की व्यापकता में तीव्र वृद्धि देखी गई है तथा अब 9.8 प्रतिशत महिलाएँ मोटापे से ग्रस्त हैं।
      • वर्ष 1990 के बाद से इसमें 8.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • पुरुषों में मोटापा: भारत में 20 वर्ष से अधिक आयु के 26 मिलियन पुरुष मोटापे से ग्रस्त पाए गए। 
    • पुरुषों में मोटापे की दर बढ़कर 5.4 प्रतिशत हो गई है, जो इसी अवधि में 4.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है।
  • भारत की वैश्विक स्थिति
    • महिलाओं में मोटापे की व्यापकता के संबंध में, भारत वर्ष 2022 तक विश्व भर के 197 देशों में से 182वें स्थान पर है।
    • पुरुषों के मामले में भारत का विश्व स्तर पर 180वाँ स्थान है।

    • वैश्विक स्तर पर लड़कियों एवं लड़कों में भारत 174वें स्थान पर है।
    • कम वजन के लिए वैश्विक रैंकिंग: भारत कम वजन वाली लड़कियों के लिए सर्वोच्च वैश्विक रैंकिंग एवं लड़कों के लिए दूसरे स्थान पर है।

BMI 

  • BMI एक चिकित्सा उपकरण है, जो किसी व्यक्ति के वजन एवं ऊँचाई की तुलना करके शरीर में वसा को मापता है।
  • इसकी गणना सूत्र का उपयोग करके की जाती है:

BMI = वजन (किलो) ÷ ऊँचाई² (एम²)

  • जबकि BMI शरीर में वसा का अनुमान देता है, यह हमेशा सटीक नहीं होता है।
  • स्वास्थ्य सेवा प्रदाता समग्र स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए BMI को अन्य परीक्षणों के साथ जोड़ते हैं।
  • शारीरिक वसा का महत्त्व
    • बहुत अधिक शारीरिक वसा: हृदय रोग, स्ट्रोक एवं टाइप 2 मधुमेह जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है।
    • बहुत कम शारीरिक वसा: कुपोषण, कमजोर प्रतिरक्षा, एनीमिया, ऑस्टियोपोरोसिस एवं बांझपन का कारण बन सकता है।
    • आदर्श शारीरिक वसा: विटामिन को अवशोषित करने में मदद करता है, ऊर्जा प्रदान करता है, शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है एवं अंगों की रक्षा करता है।

  • BMI वर्गीकरण (किलो/वर्ग मीटर में)
    • कम वजन: 18.5 से कम।
    • सामान्य सीमा: 18.5 से 24.9।
    • अधिक वजन: 25 से 29.9।
    • श्रेणी I मोटापा: 30 से 34.9।
    • श्रेणी II मोटापा: 35 से 39.9।
    • तृतीय श्रेणी का मोटापा: 40 से अधिक।

BMI की सीमाएँ

  • निम्नलिखित के मध्य अंतर नहीं किया जा सकता
    • मांसपेशी द्रव्यमान एवं वसा द्रव्यमान।
    • विभिन्न शरीरिक  प्रकार और रचनाएँ।
      • एथलेटिक बनाम गतिहीन व्यक्ति।
    • वसा वितरण का हिसाब नहीं रखता।
    • व्यक्तिगत स्वास्थ्य स्थितियों पर विचार करने में विफल।
    • BMI सीमाओं के उदाहरण
      • स्वस्थ होने के बावजूद एथलीटों को अक्सर मोटापे की श्रेणी में रखा जाता है।
      • खतरनाक वसा स्तर वाले कुछ लोगों का BMI सामान्य हो सकता है।
      • इसमें उम्र या लैंगिक अंतर शामिल नहीं है।

संदर्भ 

भारत में बैंकों ने पिछले वर्ष ऋण की तुलना में अधिक जमा राशि जोड़ी, जिससे ऋण-जमा अनुपात में कमी आई।

ऋण जमा अनुपात पर मुख्य बिंदु

  • वर्ष 2024 में ऋण-जमा अनुपात में कमी आई और यह 89.5% हो गया, जबकि वर्ष 2023 में यह 94% होगा।
  • जमा वृद्धि अग्रिमों से पीछे रहने के बावजूद, नए जमा और गैर-खाद्य ऋण के बीच का अंतर वर्ष 2023 के ₹1.3 ट्रिलियन से बढ़कर वर्ष 2024 में ₹2 ट्रिलियन हो गया।

 ऋण-जमा अनुपात 

  • परिभाषा: एक वित्तीय मीट्रिक, जिसका उपयोग किसी बैंक की तरलता का आकलन करने के लिए किया जाता है, जिसमें उसी अवधि के लिए उसके कुल ऋणों की तुलना कुल जमाओं से की जाती है।
  • प्रतिनिधित्व: ऋण जारी करने के लिए उपयोग की गई जमाराशियों का प्रतिशत दर्शाता है।
  • गणना: बैंक द्वारा जारी किए गए कुल ऋणों को उसकी कुल जमाराशियों से विभाजित किया जाता है।
  • दिशा-निर्देश: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा कोई विशिष्ट बेंचमार्क निर्धारित नहीं किया गया है; बैंक तरलता और लाभप्रदता के आधार पर अनुपात का प्रबंधन करते हैं।

ऋण-जमा अनुपात (CD अनुपात) को प्रभावित करने वाले कारक

  • ऋण की बढ़ती माँग: ऋण की बढ़ती माँग से CD अनुपात बढ़ सकता है।
  • जमा जुटाना: अगर उधार देने की मात्रा आनुपातिक रूप से नहीं बढ़ती है तो जमा राशि बढ़ने से CD अनुपात कम हो सकता है।
  • आर्थिक स्थितियाँ: उछाल या मंदी से ऋण की माँग और जमा वृद्धि दोनों पर प्रभाव पड़ता है, जिससे CD अनुपात प्रभावित होता है।

बैंकों पर उच्च ऋण-जमा अनुपात के प्रभाव

  • लाभप्रदता: सक्रिय उधार को दर्शाता है, जो समय पर ऋण चुकाने पर लाभप्रदता को बढ़ा सकता है।
  • जोखिम जोखिम: यदि पुनर्भुगतान पूरा नहीं किया जाता है तो उच्च ऋण जोखिम गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) की ओर ले जा सकता है।
  • शुद्ध ब्याज मार्जिन (Net Interest Margins-NIM) पर दबाव: उधार पर बढ़ती निर्भरता NIM को कम कर सकती है, जिससे ऋण और निवेश जैसी कमाई करने वाली परिसंपत्तियों पर रिटर्न प्रभावित हो सकता है।
  • तरलता जोखिम: कम तरलता भंडार के कारण बैंकों को अचानक भुगतान दायित्वों या निकासी को पूरा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

बैंकों पर कम ऋण-जमा अनुपात के प्रभाव

  • लाभप्रदता प्रभाव: अपर्याप्त उधार को दर्शाता है, जो संभावित रूप से बैंक की राजस्व दरों को प्रभावित करता है।
  • सतर्क उधार: आर्थिक अनिश्चितता या उपयुक्त उधार अवसरों की कमी का संकेत हो सकता है।

ऋण-जमा अनुपात में कमी का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

लाभ

हानि

बैंकिंग प्रणाली में बेहतर तरलता: अधिक जमा राशि बैंकों को भविष्य में ऋण देने के लिए अधिक तरलता प्रदान करती है। धीमी ऋण वृद्धि: कम CD अनुपात व्यवसायों के लिए कम ऋण प्रवाह का संकेत दे सकता है, जिससे आर्थिक गतिविधियाँ धीमी हो सकती हैं।
स्थिर वित्तीय प्रणाली: उधार पर निर्भरता कम होने से गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) का जोखिम कम हो जाता है। बैंकों की लाभप्रदता में कमी: ऋण से ब्याज आय कम होने के कारण बैंकों की आय कम हो सकती है।
राजकोषीय स्थिरता के लिए समर्थन: बढ़ी हुई जमाराशियाँ बाह्य आर्थिक प्रभावों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करती हैं। आर्थिक मंदी: कम ऋण स्वीकृति के कारण निवेश तथा खपत में कमी आ सकती है।
मुद्रास्फीति संबंधी दबाव में कमी: कम ऋण वृद्धि अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करके मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है। प्रमुख क्षेत्रों में ऋण संकट: महत्त्वपूर्ण उद्योगों को विकास के लिए आवश्यक वित्तपोषण प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है।
बढ़ी हुई बचत संस्कृति: बढ़ती जमाराशियाँ बढ़ी हुई सार्वजनिक बचत को दर्शाती हैं, जो दीर्घकालिक वित्तीय स्वास्थ्य में योगदान देती हैं। सीमित निजी क्षेत्र का विस्तार: कम ऋण निजी क्षेत्र के पूँजी विस्तार और रोजगार सृजन को प्रतिबंधित करते हैं।

संदर्भ

कर्नाटक के नागरहोल टाइगर रिजर्व में आने वाले पर्यटकों को चित्तीदार हिरण देखने की संभावना बढ़ी है, जिनकी आबादी लगातार बढ़कर 28/वर्ग किलोमीटर हो गई है।

नागरहोल टाइगर रिजर्व 

  • स्थान: पश्चिमी घाट में स्थित, नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व का हिस्सा।
  • जल निकाय: नागरहोल नदी रिजर्व से होकर बहती है और कबिनी नदी से मिलती है, जो बाँदीपुर टाइगर रिजर्व के साथ सीमा बनाती है।

  • समीपता: वायनाड वन्यजीव अभयारण्य (केरल) और बाँदीपुर टाइगर रिजर्व (कर्नाटक) से जुड़ा हुआ है।
  • मान्यता: एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र (IBA), एक प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व और एक प्रोजेक्ट एलीफैंट रिजर्व के रूप में पहचाना जाता है।

  • वनस्पतियाँ: नम पर्णपाती वनों का प्रभुत्व, जिसमें सागौन और शीशम के पेड़ शामिल हैं।
  • जीव: बाघ, तेंदुए, भारतीय गौर, हाथी, चित्तीदार हिरण और अन्य वन्यजीवों का आवास।
  • जनजातीय उपस्थिति: जेनु कुरुबा (Jenu Kurubas) (शहद एकत्रित करने वाली जनजाति) रिजर्व में निवास करती है।

चित्तीदार हिरण (चीतल) 

  • चित्तीदार हिरण, जिसे चीतल (एक्सिस एक्सिस) के नाम से भी जाना जाता है, भारत में सबसे सामान्य  हिरण प्रजातियों में से एक है और वन पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • वितरण
    • मूल निवास स्थान: भारत, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और बांग्लादेश (मुख्य रूप से सुंदरबन में)।
    • प्रवर्तित निवास स्थान: अंडमान द्वीपसमूह (भारत), अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, टेक्सास (अमेरिका) और अन्य स्थान।
  • निवास स्थान: पर्णपाती वनों, घास के मैदानों और झाड़ियों में पाया जाता है।
  • आहार: मुख्य रूप से घास, पत्ते, फल और जड़ी-बूटियों का उपभोग करता है, जो इसे वन पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्त्वपूर्ण शाकाहारी बनाता है।
  • अद्वितीय आदत: प्लेसेंटोफैगी (प्लेसेंटा खाना) प्रदर्शित करता है, जो शाकाहारियों के बीच एक दुर्लभ व्यवहार है, जो गंध के निशान को समाप्त करके शिकारियों से बचने में सहायता करता है।
  • गतिविधि अवधि: सांध्यकालीन व्यवहार प्रदर्शित करता है, जो सुबह और शाम के समय सबसे अधिक सक्रिय होता है, हालाँकि यह कभी-कभी दिन के दौरान भी भोजन की तलाश करता है।
  • पारिस्थितिकी भूमिका
    • बाघों और तेंदुओं जैसी बड़ी शिकारी प्रजातियों के लिए प्राथमिक शिकार प्रजाति के रूप में कार्य करता है।
    • बीज फैलाव में सहायता करता है और चरागाह पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखता है।
  • संरक्षण की स्थिति
    • IUCN रेड लिस्ट: इसके व्यापक वितरण और स्थिर जनसंख्या के कारण इसे “सबसे कम चिंताग्रस्त” के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972): अनुसूची II में शामिल, शिकार से सुरक्षा प्रदान करता है।

संदर्भ

हाल ही में त्रिपुरा विधानसभा के प्रवेश द्वार पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए ‘त्विप्रा छात्र संघ’ (TSF) के सदस्यों को हिरासत में लिया गया था, जिसमें पाठ्यपुस्तकों, आधिकारिक उपयोग और आगामी सीबीएसई बोर्ड परीक्षाओं में कोकबोरोक के लिए रोमन लिपि को शामिल करने की माँग की गई थी।

  • TSF जैसे जनजातीय मंचों द्वारा दशकों से यह माँग उठाई जा रही है तथा त्रिपुरा के स्थानीय समुदायों की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है।

त्विप्रा छात्र संघ (Twipra Students’ Federation-TSF)

  • त्विप्रा छात्र संघ (TSF) भारत के त्रिपुरा में एक प्रमुख छात्र संगठन है। 25 अक्टूबर, 1968 को स्थापित, इसे शुरू में आदिवासी छात्र संघ के रूप में जाना जाता था। 
  • इसका प्राथमिक उद्देश्य त्रिपुरा के स्वदेशी लोगों के अधिकारों की रक्षा करना और उनके लिए संघर्ष करना है। 
  • TSF आदिवासी समुदाय से संबंधित विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों में सक्रिय रूप से शामिल रहा है, जिसमें शिक्षा, सांस्कृतिक संरक्षण और भूमि अधिकार शामिल हैं।

कोकबोरोक 

  • भाषा: त्रिपुरा राज्य में बोरोक लोगों द्वारा बोली जाती है।
  • व्युत्पत्ति
    • कोक का अर्थ है ‘मौखिक’
    • बोरोक का अर्थ है ‘लोग’ या ‘मानव’।
  • भाषायी मूल
    • चीनी-तिब्बती भाषा।
    • तिब्बती-बर्मी भाषा समूह का हिस्सा, जिसकी उत्पत्ति चीनी-तिब्बती भाषा परिवार में हुई है।
  • मान्यता: वर्ष 1979 से कोकबोरोक को बंगाली के साथ त्रिपुरा की दूसरी राज्य भाषा के रूप में मान्यता दी गई है।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
    • त्रिपुरा के राजाओं के ऐतिहासिक स्वरूप का ‘राज रत्नाकर’ में कम-से-कम पहली शताब्दी ई. में दस्तावेजीकरण किया गया है।
    • मूल रूप से इसकी अपनी लिपि, कोलोमा में लिखा गया था, जो 14वीं शताब्दी के बाद अप्रचलित हो गई।
    • 19वीं शताब्दी तक, त्विप्रा साम्राज्य में कोकबोरोक के लिए बंगाली लिपि को अपना लिया गया था।

रोमन लिपि के उपयोग के लिए मुख्य तर्क

  • पहचान और सांस्कृतिक संरक्षण: अधिवक्ताओं का तर्क है कि रोमन लिपि कोकबोरोक की ध्वन्यात्मकता को बेहतर ढंग से दर्शाती है और वैश्विक भाषायी प्रथाओं के साथ संरेखित होती है।
  • समान प्रतिनिधित्व: बंगाली लिपि पर वर्तमान निर्भरता स्वदेशी समुदाय की भाषायी विरासत को हाशिए पर डालती है।
  • पहुँच: रोमन लिपि को युवा पीढ़ियों के लिए अधिक सुलभ माना जाता है और यह तकनीकी प्रगति के साथ संरेखित होती है।

रोमन लिपि के उपयोग के विरुद्ध मुख्य तर्क

  • ऐतिहासिक संबंध: आलोचकों का तर्क है कि बंगाली लिपि का प्रयोग सदियों से किया जाता रहा है और इस क्षेत्र के लिए इसका ऐतिहासिक महत्त्व है।
  • कार्यान्वयन की चुनौतियाँ: रोमन लिपि में परिवर्तन के लिए पाठ्यपुस्तकों, प्रशासनिक प्रक्रियाओं और शिक्षक प्रशिक्षण में व्यापक बदलाव की आवश्यकता होगी।
  • विखंडन का जोखिम: एक नई लिपि शुरू करने से राज्य के भीतर विभिन्न समूहों के बीच विभाजन पैदा हो सकता है, जिससे आगे चलकर भाषायी और सांस्कृतिक संघर्ष हो सकते हैं।

रोमन लिपि के पूर्ण अनुकूलन के लिए जारी प्रयास

  • रोमन लिपि का समर्थन करने वाले आंदोलन वर्ष 2004 में शुरू हुए, लेकिन सरकार ने बार-बार ज्ञापन और विरोध के बावजूद माँगों पर ध्यान नहीं दिया।
  • वर्तमान में आदिवासी छात्रों के एक वर्ग को माध्यमिक और उच्च माध्यमिक परीक्षाओं में रोमन लिपि में उत्तर पुस्तिकाएँ लिखने की अनुमति है।
    • TSF लंबे समय से संशोधित बंगाली लिपि के आंशिक उपयोग के बजाय केवल रोमन लिपि के उपयोग की माँग कर रहा है।
  • TSF सांस्कृतिक गौरव और पहचान के मामले के रूप में इस बदलाव के लिए जोर दे रहा है, भविष्य की पीढ़ियों के लिए कोकबोरोक को संरक्षित करने में इसके महत्त्व पर जोर दे रहा है।

संदर्भ

हाल ही में मदुरै में तीन दिवसीय जल्लीकट्टू कार्यक्रम के दौरान एक बैल प्रशिक्षक की मौत हो गई और 75 प्रतिभागी घायल हो गए।

  • पोंगल फसल उत्सव के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में 1,100 बैलों और 900 पशुपालकों ने भाग लिया।

जल्लीकट्टू 

  • परिभाषा: एरुथाझुवुथल के नाम से प्रसिद्ध जल्लीकट्टू तमिलनाडु में पोंगल उत्सव के दौरान आयोजित होने वाला एक पारंपरिक बैलों के नियंत्रण का खेल है।

  • विविधताएँ: वादी मंजुविरत्तु, वेली विरत्तु, वटम मंजुविरत्तु इस खेल के विभिन्न रूप हैं।
  • उद्देश्य: प्रतियोगी पुरस्कार जीतने के लिए बैल को वश में करने का प्रयास करते हैं। 
  • सांस्कृतिक महत्त्व: प्रकृति का जश्न मनाता है, भरपूर फसल के लिए आभार व्यक्त करता है और इसमें मवेशियों की पूजा शामिल है।
  • क्षेत्र: मदुरै, तिरुचिरापल्ली, थेनी, पुदुक्कोट्टई और डिंडीगुल जैसे जिलों में लोकप्रिय।
  • प्रयुक्त नस्ल: शिवगंगई जिले के मूल निवासी पुलिकुलम का उपयोग आमतौर पर जल्लीकट्टू में किया जाता है।

  • प्राचीन उत्पत्ति: मोहनजोदड़ो (2,500-1,800 ईसा पूर्व) की एक मुहर में बैल को नियंत्रित करने का संदर्भ मिलता है। 
  • तमिल साहित्य: जल्लीकट्टू का उल्लेख संगम युग के तमिल महाकाव्य इलांगो द्वारा रचित शिलप्पादिकारम् में मिलता है।

भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम ए. नागराज मामला (2014)

  • संदर्भ: इस मामले में तमिलनाडु में जल्लीकट्टू (बैल को नियंत्रित करने का खेल) की वैधता को चुनौती दी गई थी, जिसमें पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत पशु क्रूरता का हवाला दिया गया था।
  • न्यायालय का निर्णय
    • सर्वोच्च न्यायालय ने पशु अधिकारों के उल्लंघन और बैलों के प्रति क्रूरता का हवाला देते हुए जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया।
    • अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार) के तहत पशुओं के सम्मान के साथ जीने और अनावश्यक दर्द से मुक्ति के अधिकार को मान्यता दी।
    • पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के सख्त क्रियान्वयन का निर्देश दिया।
    • पशु कल्याण को बढ़ाने के लिए संशोधनों को प्रोत्साहित किया और जीवित प्राणियों की रक्षा के लिए अनुच्छेद-51A(G) के तहत संवैधानिक कर्तव्य को बरकरार रखा।

पशु और संस्कृति से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-48A: राज्यों को पशु कल्याण में सुधार करना चाहिए, वन्यजीवों की सुरक्षा करनी चाहिए और पशु जनसंख्या वृद्धि सुनिश्चित करनी चाहिए।
  • अनुच्छेद-51A(G): पशुओं के प्रति दया का भाव और वन्यजीवों की रक्षा करना नागरिकों का मौलिक कर्तव्य है।
  • अनुच्छेद-21: जीवन के अधिकार में पशु जीवन शामिल है, जिसमें सम्मान और निष्पक्ष व्यवहार पर जोर दिया गया है।
  • अनुच्छेद-29(1): जल्लीकट्टू जैसी पारंपरिक प्रथाओं सहित नागरिकों के सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करता है।
  • प्रविष्टि 17, सूची III: केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को पशुओं के प्रति क्रूरता को रोकने के लिए कानून बनाने की अनुमति देता है।

नवीन गतिविधियाँ

  • कानूनी ढाँचा: जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया गया था (2014-2016) लेकिन तमिलनाडु सरकार ने वर्ष 2017 में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में संशोधन के माध्यम से इसे फिर से लागू कर दिया।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (2023): जल्लीकट्टू की सांस्कृतिक महत्ता का हवाला देते हुए तमिलनाडु के कानून को बरकरार रखा।

जल्लीकट्टू के पक्ष और विपक्ष में तर्क

जल्लीकट्टू के पक्ष में तर्क

जल्लीकट्टू के विपक्ष में तर्क

सांस्कृतिक महत्त्व: यह तमिलनाडु की विरासत का अभिन्न अंग है और पोंगल फसल उत्सव के दौरान मनाया जाता है। पशु क्रूरता: बैलों को अनावश्यक दर्द, पीड़ा और तनाव पहुँचाना, पशु कल्याण कानूनों का उल्लंघन करना।
सामुदायिक भागीदारी: सामुदायिक भावना को बढ़ावा देता है, ग्रामीण भागीदारी को बढ़ाता है और परंपराओं को मजबूत करता है। सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: आयोजन के दौरान मानव जीवन को खतरा तथा प्रशिक्षकों एवं दर्शकों दोनों को चोट लगने का खतरा।
आर्थिक भूमिका: पुलिकुलम जैसी देशी मवेशी नस्लों को बनाए रखकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समर्थन प्रदान करना। अधिकारों का उल्लंघन: अनुच्छेद-21 के अनुसार पशुओं के सम्मान और क्रूरता से मुक्ति के अधिकारों का उल्लंघन।
नस्ल संरक्षण: स्वदेशी नस्लों की रक्षा करना, उनके अस्तित्व और कृषि उपयोगिता को सुनिश्चित करना। वैश्विक आलोचना: अमानवीय प्रथाओं का हवाला देते हुए पशु कल्याण समूहों से विरोध का सामना करना पड़ा।
कानूनी समर्थन: तमिलनाडु ने संवैधानिक प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कानूनों में संशोधन किया। नैतिक चिंताएँ: मनोरंजन और खेल के लिए पशु शोषण के औचित्य पर सवाल उठाती हैं।

पशुओं से संबंधित समान खेल और त्योहार

खेल संबंधी त्योहार

राज्य

विवरण

अवसर

कंबाला कर्नाटक जल से भरे धान के खेतों में आयोजित पारंपरिक भैंसा दौड़। फसल उत्सव
बैलगाड़ी दौड़ महाराष्ट्र, पंजाब ग्रामीण मेलों और त्योहारों में बैलगाड़ियाँ एक दूसरे से दौड़ती हैं। ग्रामीण मेले और त्योहार
मुर्गों की लड़ाई आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु त्यौहारों के दौरान आयोजित पारंपरिक मुर्गों की लड़ाई। संक्रांति
ऊँट दौड़ राजस्थान प्रायः सांस्कृतिक मेलों के दौरान ऊँट दौड़ में गति और सहनशक्ति का प्रदर्शन किया जाता है। पुष्कर मेला एवं अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम
धीरियो (Dhirio) गोवा ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजित पारंपरिक बैल की लड़ाई का खेल। स्थानीय ग्रामीण संस्कृति।   

संदर्भ

भारतीय नौसेना के इतिहास में पहली बार एक फ्रिगेट, एक विध्वंसक और एक पनडुब्बी को एक ही दिन कमीशन किया गया, जो “आत्मनिर्भर भारत” पहल के तहत आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।

कमीशन किए गए प्लेटफॉर्म थे:

  • फ्रिगेट: INS नीलगिरि
  • विध्वंसक: INS सूरत
  • पनडुब्बी: INS वाग्शीर।

INS नीलगिरि 

  • यह एक फ्रिगेट है।
  • क्लास: नीलगिरि-क्लास स्टील्थ फ्रिगेट (Nilgiri-class stealth frigate)
  • निर्माण: प्रोजेक्ट 17A, जो वर्तमान में सेवा में मौजूद शिवालिक-क्लास फ्रिगेट का अनुवर्ती प्रोजेक्ट है।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • प्रोजेक्ट 17A के सात फ्रिगेट में से पहला।
    • मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (Mazagon Dock Shipbuilders Limited-MDL), मुंबई और गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (Garden Reach Shipbuilders and Engineers- GRSE), कोलकाता द्वारा निर्मित।
  • शामिल तकनीक
    • सुपरसोनिक सतह-से-सतह पर मार करने वाली मिसाइलें।
    • मध्यम दूरी की सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलें (MRSAM)।
  • भूमिका: सतह रोधी, वायु रोधी और पनडुब्बी रोधी युद्ध मिशनों के लिए महत्त्वपूर्ण।

INS सूरत

  • प्रकार: निर्देशित मिसाइल विध्वंसक
  • वर्ग: प्रोजेक्ट 15B के तहत चौथा और अंतिम स्टील्थ निर्देशित मिसाइल विध्वंसक, INS विशाखापत्तनम, INS मोरमुगाओ और INS इंफाल के बाद।

प्रमुख विशेषताएँ

  • परिचालन दक्षता बढ़ाने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को एकीकृत करने वाला पहला भारतीय नौसेना युद्धपोत।
  • मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) द्वारा निर्मित।
  • अत्याधुनिक हथियारों से युक्त, जिनमें शामिल हैं:
    • सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलें।
    • जहाज रोधी मिसाइलें।
    • टॉरपीडो।

INS वाग्शीर (INS Vaghsheer)

  • यह एक पनडुब्बी है।
  • श्रेणी: प्रोजेक्ट 75 के तहत निर्मित कलवरी-क्लास की छठी और अंतिम पनडुब्बी।
  • डिजाइन और विकास: फ्राँसीसी रक्षा प्रमुख नेवल ग्रुप और स्पेनिश राज्य के स्वामित्व वाली इकाई द्वारा।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • डीजल-इलेक्ट्रिक प्रणोदन प्रणाली।
    • जल के अंदर लंबे समय तक टिके रहने के लिए उन्नत एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (Air Independent Propulsion-AIP) प्रणाली (वर्ष 2026 से स्थापित किया जाएगा) से युक्त।
  • सतह रोधी और पनडुब्बी रोधी युद्ध, खुफिया जानकारी जुटाने, क्षेत्र की निगरानी तथा विशेष अभियानों के लिए डिजाइन किया गया।
  • नामकरण: इसका नाम हिंद महासागर में पाई जाने वाली एक प्रकार की सैंडफिश, वाग्शीर के नाम पर रखा गया है।

फ्रिगेट, विध्वंसक और पनडुब्बी की तुलना

पहलू

फ्रिगेट

विध्वंसक 

पनडुब्बी

अवलोकन मध्यम आकार का, बहुमुखी युद्धपोत। उच्च गति वाला, भारी हथियारों से युक्त युद्धपोत। गोपनीय मिशन में सक्षम, जल के नीचे संचालित होने वाला जहाज।
प्राथमिक भूमिका रक्षात्मक, पनडुब्बी रोधी युद्ध (Anti-Submarine Warfare- ASW), अनुरक्षण मिशन। आक्रामक, अग्रिम पंक्ति का मुकाबला, बहु-खतरा मुठभेड़। गुप्त अभियान, खुफिया जानकारी जुटाना, आक्रामक हमले।
पर्यावरण तटीय और ‘ब्लू वाटर’ वाले क्षेत्रों में कार्य करता है। मुख्यतः ‘ब्लू वाटर’ में संचालन। तटीय और गहरे समुद्री क्षेत्रों में जल के अंदर संचालित होती है।
क्षमताओं बहु-भूमिका: ASW, एंटी-एयर, एस्कॉर्ट। जहाज-रोधी, वायु-रोधी, पनडुब्बी-रोधी युद्ध। जहाज रोधी, पनडुब्बी रोधी युद्ध, भूमि पर हमला करने वाली मिसाइल क्षमता।
आकार और शक्ति विध्वंसक जहाजों से छोटे और कम शक्तिशाली। फ्रिगेट्स से अधिक बड़े और अधिक शक्तिशाली। कॉम्पैक्ट लेकिन शक्तिशाली, जल के नीचे की क्षमताओं के साथ।
उदाहरण (भारतीय नौसेना) INS तलवार, INS शिवालिक INS कोलकाता, INS दिल्ली INS कलवरी (स्कॉर्पीन श्रेणी), INS चक्र (परमाणु ऊर्जा चालित)।
हथियार और प्रणालियाँ मध्यम दूरी के हथियार, टारपीडो, सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलें (SAM)। लंबी दूरी की मिसाइलें, भारी तोपें, उन्नत रडार। टॉरपीडो, क्रूज मिसाइल, स्टील्थ प्रौद्योगिकी।
चालक दल का आकार छोटा दल (150-200 कार्मिक) बड़ा दल (300-400 कार्मिक) कॉम्पैक्ट डिजाइन के कारण छोटा चालक दल (30-100 कार्मिक)।

कमीशनिंग का महत्त्व

  • स्वदेशी क्षमता का प्रदर्शन: INS सूरत, INS नीलगिरि और INS वाग्शीर की त्रि-कमीशनिंग स्वदेशी रक्षा विनिर्माण में भारत की प्रगति को रेखांकित करती है, जो रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत की सफलता को उजागर करती है।
    • तीनों प्लेटफॉर्मों पर स्वदेशीकरण का स्तर 70% से अधिक है।
  • सामरिक प्रतिरोध को बढ़ावा देना: क्षेत्रीय खतरों और संभावित विरोधियों के विरुद्ध भारत की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है।
    • विवादित जल में व्यापार मार्गों और राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की नौसेना की क्षमता को मजबूत करता है।
  • ब्लू-वॉटर क्षमताओं को बढ़ाना: ये प्लेटफॉर्म नौसेना की तट से दूर खुले समुद्री वातावरण में संचालन करने की क्षमता का विस्तार करते हैं।
    • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र और उससे आगे विस्तारित तैनाती तथा शक्ति प्रक्षेपण का समर्थन करता है।
    • ‘ब्लू वॉटर नेवी’ वह होती है, जो अपनी समुद्री सीमाओं से कहीं अधिक बड़े समुद्री क्षेत्र में स्वयं को प्रोजेक्ट करने की क्षमता रखती है। सीधे शब्दों में कहें तो यह एक ऐसी नौसेना है, जो दुनिया के विशाल, गहरे महासागरों में जा सकती है।
  • नेटवर्क केंद्रित युद्ध को मजबूत करना: इन जहाजों में उन्नत सेंसर, AI और नेटवर्क-केंद्रित प्रणालियों को शामिल करने से परिचालन दक्षता तथा युद्ध की तत्परता बढ़ती है।
  • बहु-आयामी युद्ध का समर्थन: नौसेना को सतह रोधी, वायु रोधी और पनडुब्बी रोधी युद्ध के साथ-साथ खुफिया जानकारी जुटाने और विशेष अभियानों के लिए क्षमताएँ प्रदान करता है।
    • पारंपरिक और अपरंपरागत दोनों तरह के खतरों से निपटने की नौसेना की क्षमता को मजबूत करता है।
  • भू-राजनीतिक महत्त्व: यह भारत के एक प्रमुख समुद्री शक्ति के रूप में उभरने और हिंद महासागर क्षेत्र में शांति तथा स्थिरता सुनिश्चित करने में एक जिम्मेदार क्षेत्रीय अभिकर्ता के रूप में चिह्नित करता है।
    • संकट के समय क्षेत्र में “प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता” के रूप में भारत की क्षमता पर वैश्विक विश्वास में वृद्धि करता है।

संदर्भ 

हाल ही में पशुपालन और डेयरी विभाग ने उद्यमियों को सशक्त बनाने तथा पशुधन क्षेत्र में विकास को गति देने के लिए पुणे में उद्यमिता विकास सम्मेलन का आयोजन किया।

संबंधित तथ्य

  • उद्देश्य: नीति निर्माताओं, महासंघों, सहकारी समितियों और उद्यमियों को एकजुट करना ताकि चुनौतियों का समाधान किया जा सके और पशुधन क्षेत्र में स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा दिया जा सके।
  • यह हितधारकों को चुनौतियों पर चर्चा करने, समाधान साझा करने, उद्यमशीलता को बढ़ावा देने, मूल्य संवर्द्धन और क्षेत्र के विकास को उत्प्रेरित करने के लिए स्थायी प्रथाओं को प्रदान करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
  • उद्घाटन
    • परियोजना पारदर्शिता के लिए राष्ट्रीय पशुधन मिशन – उद्यमिता विकास कार्यक्रम (NLM-EDP) डैशबोर्ड का शुभारंभ। 
      • डैशबोर्ड जनता को संपूर्ण परियोजना की प्रमुख जानकारी का एक व्यवस्थित सारांश उपलब्ध कराएगा।
    • AHIDF और NLM-EDP राष्ट्रीय पशुधन मिशन- उद्यमिता विकास कार्यक्रम (NLM – EDP) के तहत सहायता प्राप्त ₹545.04 करोड़ की 40 परियोजनाओं का शुभारंभ। 
    • राष्ट्रीय पशुधन मिशन परिचालन दिशा-निर्देश 2.0 और सफलता की कहानी वाली पुस्तिकाओं का विमोचन।
  • पैनल चर्चा: विषयों में ‘पशुधन क्षेत्र में विकास को गति देना’ और ‘पशुधन क्षेत्र और ऋण सुविधा में बैंकों तथा MSMEs की भूमिका’ शामिल हैं, जिसमें उद्योग जगत के नेतृत्वकर्ता और वित्तीय संस्थान शामिल होंगे।

NLM 2.0 के प्रमुख घटक

  • उद्यमिता विकास
    • स्टार्टअप और किसानों के लिए वित्तीय सहायता।
    • पशुपालन और संबंधित क्षेत्रों में कौशल बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम।
  • नस्ल सुधार
    • पशुधन नस्लों के आनुवंशिक संवर्द्धन पर ध्यान केंद्रित करना।
    • देश भर में पशुधन प्रजनन अवसंरचना को सुदृढ़ बनाना।
  • फूडर और चारा विकास
    • पौष्टिक चारा फसल की खेती को बढ़ावा देना।
    • साइलेज और चारा निर्माण इकाइयों की स्थापना के लिए सहायता।
  • स्थायित्व पहल
    • एकीकृत कृषि पद्धतियों को अपनाना।
    • प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन समाधानों के माध्यम से पर्यावरणीय स्थिरता।
  • क्षमता निर्माण
    • कार्यशालाओं, संगोष्ठियों और प्रशिक्षण सत्रों का आयोजन।
    • उत्पादकता में सुधार के लिए उन्नत पशुपालन पद्धतियों पर जागरूकता अभियान।

पशुधन 

  • पशुधन क्षेत्र में मांस, डेयरी, ऊन और अन्य उत्पादों के लिए मवेशी, भेड़, बकरी तथा मुर्गी जैसे पशुओं का प्रजनन और पालन-पोषण शामिल है।
  • स्वदेशी पशुधन प्रजातियाँ: ICAR-NBAGR ने देश में स्वदेशी पशुधन प्रजातियों की दस नई नस्लों को पँजीकृत किया।
    • ये नस्लें हैं:-
      • कथानी मवेशी (महाराष्ट्र), सांचोरी मवेशी (राजस्थान) और मैसिलम मवेशी (मेघालय); पूर्णथडी भैंस (महाराष्ट्र); सोजत बकरी (राजस्थान), करौली बकरी (राजस्थान) और गुजरी बकरी (राजस्थान); बाँदा सूअर (झारखंड), मणिपुरी काला सूअर (मणिपुर) और वाक चाम्बिल सूअर (मेघालय)।

संक्षिप्त अवलोकन: भारत का पशुधन क्षेत्र

  • पशुधन क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का एक महत्त्वपूर्ण उपक्षेत्र है।
  • यह वर्ष 2014-15 से वर्ष 2020-21 (स्थिर मूल्यों पर) के दौरान 7.93 प्रतिशत की CAGR से बढ़ा है।
  • कुल कृषि और संबद्ध क्षेत्र GVA (स्थिर मूल्यों पर) में पशुधन का योगदान 24.32 प्रतिशत (वर्ष 2014-15) से बढ़कर 30.13 प्रतिशत (वर्ष 2020-21) हो गया है।
  • पशुधन क्षेत्र ने वर्ष 2020-21 में कुल GVA में 4.90 प्रतिशत का योगदान दिया।
  • पशुधन आबादी
    • 20वीं पशुधन गणना के अनुसार, देश में लगभग 303.76 मिलियन गोजातीय (गाय, भैंस, मिथुन और याक), 74.26 मिलियन भेड़, 148.88 मिलियन बकरियाँ, 9.06 मिलियन सूअर और लगभग 851.81 मिलियन मुर्गियाँ हैं।

किसानों की अर्थव्यवस्था में पशुधन की भूमिका

  • आय: भारत में कई परिवारों के लिए पशुधन सहायक आय का स्रोत है, विशेषतः उन गरीब परिवारों के लिए जो कुछ ही पशु रखते हैं। भेड़ और बकरी जैसे पशु विवाह, बीमार व्यक्तियों के उपचार, बच्चों की शिक्षा, घरों की मरम्मत आदि जैसी आपातकालीन स्थितियों में आय के स्रोत के रूप में काम आते हैं।
  • रोजगार: भारत में बहुत से लोग कम साक्षर और अकुशल होने के कारण अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं। लेकिन कृषि मौसमी प्रकृति की होने के कारण वर्ष में अधिकतम 180 दिन रोजगार प्रदान कर सकती है। भूमिहीन और कम भूमि वाले लोग कम कृषि मौसम के दौरान अपने श्रम का उपयोग करने के लिए पशुधन पर निर्भर हैं।
  • भोजन: पशुधन उत्पाद जैसे दूध, मांस और अंडे पशुपालकों के सदस्यों के लिए पशु प्रोटीन का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। वर्ष 2022-23 के दौरान दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता लगभग 459 ग्राम दिन है; अंडे की उपलब्धता 101/वर्ष है।
  • मसौदा: बैल भारतीय कृषि की रीढ़ हैं। भारतीय कृषि कार्यों में यांत्रिक शक्ति के उपयोग में बहुत अधिक प्रगति के बावजूद, भारतीय किसान, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, विभिन्न कृषि कार्यों के लिए अभी भी बैलों पर निर्भर हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा: पशु समाज में उनकी स्थिति के संदर्भ में मालिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। जिन परिवारों, विशेष रूप से भूमिहीनों के पास पशु हैं, वे उन परिवारों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं, जिनके पास पशु नहीं हैं। देश के विभिन्न भागों में विवाह के दौरान पशुओं को उपहार में देना एक बहुत ही सामान्य घटना है।

पशुधन क्षेत्र में सरकारी पहल

  • पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (Animal Husbandry Infrastructure Development Fund-AHIDF)
    • इसका उद्देश्य पशुपालन क्षेत्र में प्रसंस्करण, कोल्ड चेन और मूल्य संवर्द्धन के लिए बुनियादी ढाँचे के निर्माण में निजी क्षेत्र के निवेश को समर्थन देना है।
  • राष्ट्रीय पशुधन मिशन (National Livestock Mission-NLM)
    • इस योजना का फोकस रोजगार सृजन, उद्यमिता विकास, प्रति पशु उत्पादकता में वृद्धि और इस प्रकार मांस, बकरी के दूध, अंडे तथा ऊन के उत्पादन में वृद्धि पर है।
  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन
    • सरकार द्वारा इसकी शुरुआत देशी नस्लों के विकास एवं संरक्षण तथा गोजातीय पशुओं के आनुवंशिक उन्नयन पर ध्यान केंद्रित करने के साथ की गई है।
  • पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम (Livestock Health and Disease Control Programme-LHDCP)
    • इसका कार्यान्वयन पशुधन रोगों के समाधान और पशु चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने के लिए किया गया है।
  • भारत पशुधन लाइवस्टोक डेटा स्टैक (Bharat Pashudhan Livestock Data Stack)
    • पशुधन क्षेत्र में उत्पादकता और पता लगाने की क्षमता बढ़ाने के लिए वास्तविक समय पशुधन डेटा संग्रह और प्रबंधन के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म।
  • दुग्ध सहकारी समितियों और दुग्ध उत्पादक कंपनियों के डेयरी किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड (KCC)
    • 15.11.2024 तक, AHD किसानों के लिए 41.66 लाख से अधिक नए KCC स्वीकृत किए गए।
  • राष्ट्रीय गोजातीय उत्पादकता मिशन (National Mission on Bovine Productivity) 
    • आनुवंशिक सुधार, पोषण और स्वास्थ्य पहल के माध्यम से देशी मवेशियों और भैंसों की उत्पादकता में सुधार करने की एक योजना।
  • राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम (National Artificial Insemination Programme)
    • गोजातीय पशुओं के लिए कृत्रिम गर्भाधान कवरेज को बढ़ावा देने, आनुवंशिक वृद्धि और बेहतर दूध उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी पहल।

पशुधन क्षेत्र में चुनौतियाँ

  • कम उत्पादकता: अपर्याप्त चारा, पोषण और नस्ल सुधार के कारण भारतीय पशुधन उत्पादकता वैश्विक मानकों की तुलना में कम है।
    • उदाहरण: भारतीय मवेशियों की औसत वार्षिक दूध उपज 1,172 किलोग्राम है, जो वैश्विक औसत का केवल 50 प्रतिशत है।
  • अपर्याप्त प्रसंस्करण अवसंरचना: आधुनिक बूचड़खानों, कोल्ड चेन और मूल्य-संवर्द्धन सुविधाओं की कमी लाभप्रदता को प्रभावित करती है।
  • रोग नियंत्रण: फुट-एंड-माउथ डिजीज (FMD) और ब्रुसेलोसिस (Brucellosis) जैसी बीमारियों के प्रकोप से पशुधन की उत्पादकता में कमी आ रही है।
  • बाजार तक पहुँच संबंधी मुद्दे: छोटे किसानों को बाजार तक पहुँचने और अपनी उपज के लिए उचित मूल्य पाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • पादप-स्वच्छता (Phyto-Sanitary) शर्तों का पालन न करना: पादप-स्वच्छता शर्तों और गुणवत्ता मानकों का पालन न करने के कारण, पशुधन उत्पादों के निर्यात की वास्तविक क्षमता का एहसास नहीं हो पाता है।
  • ऋण तक पहुँच
    • केवल 30% पशुपालकों के पास संस्थागत ऋण तक पहुँच है, जिससे बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी में निवेश सीमित हो जाता है।
    • एम. के. जैन समिति की रिपोर्ट के अनुसार, पशुपालकों को पारंपरिक कृषि किसानों की तुलना में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, खासकर ऋण और पशुधन बीमा प्राप्त करने में।
  • चारे की कमी: विश्व के मात्र 2.29 प्रतिशत भूमि क्षेत्र के साथ भारत में लगभग 10.70 प्रतिशत पशुधन है तथा इसकी कृषि योग्य भूमि का मात्र 5 प्रतिशत ही चारा उत्पादन के अंतर्गत आता है।
  • संस्थागत सहायता
    • पशुपालन उत्पादों के लिए कोई MSP समर्थन नहीं है और फसल आधारित वस्तुओं की तरह उनके विपणन का अभाव है।
    • उदाहरण: कृषि और संबद्ध क्षेत्रों पर कुल सार्वजनिक व्यय का लगभग 12% अपर्याप्त वित्तपोषण, जो कृषि सकल घरेलू उत्पाद में इसके योगदान से अनुपातहीन रूप से कम है।
  • बीमा: वर्तमान में, केवल 6% पशुपालकों (मुर्गी को छोड़कर) को बीमा कवर प्रदान किया जाता है।
  • अपर्याप्त प्रसंस्करण और मूल्य संवर्द्धन: आवश्यक बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण भैंस के मांस की प्रसंस्करण दर लगभग 21 प्रतिशत और मुर्गीपालन के लिए 6 प्रतिशत है।

वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • ब्राजील का कृषि ऋण मॉडल
    • ब्राजील अपने प्रोनाफ कार्यक्रम (Pronaf Program) के अंतर्गत पशुधन किसानों को सब्सिडीयुक्त ऋण प्रदान करता है, जिसका ध्यान उत्पादकता वृद्धि एवं निर्यात वृद्धि पर केंद्रित है।
  • न्यूजीलैंड की डेयरी सहकारी समितियाँ
    • वित्तीय सहायता के साथ डेयरी सहकारी समितियों के एक मजबूत नेटवर्क ने पशुधन क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा दिया है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका का पशुधन बीमा
    • पशुधन जोखिम संरक्षण (Livestock Risk Protection-LRP) जैसी बीमा योजनाएँ बाजार में उतार-चढ़ाव के कारण किसानों की आय में होने वाली हानि को कम करने में मदद करती हैं।
  • यूरोपीय संघ की हरित खेती पहल
    • यूरोपीय संघ पर्यावरण अनुकूल तकनीकों और नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करके सतत् पशुपालन प्रथाओं को बढ़ावा देता है।
  • ऑस्ट्रेलिया के डिजिटल पशुधन उपकरण
    • RFID टैगिंग और पशुधन निगरानी प्रणाली जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियाँ उत्पादकता एवं बाजार तत्परता को बढ़ाती हैं।

आगे की राह

  • ऋण विस्तार: पशुपालन के लिए किसान क्रेडिट कार्ड जैसी पहल को मजबूत करना और पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (Animal Husbandry Infrastructure Development Fund- AHIDF) के तहत सब्सिडी वाले ऋणों का विस्तार करना।
  • उद्यमिता समर्थन: ग्रामीण युवाओं को नवीन पशुधन प्रथाओं में प्रशिक्षित करने के लिए नाबार्ड जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर इनक्यूबेशन सेंटर विकसित करना।
  • रोग मुक्त क्षेत्र: पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम (Livestock Health and Disease Control Programme-LHDC) के तहत प्रभावी टीकाकरण अभियान के माध्यम से रोग मुक्त क्षेत्र स्थापित करना।
  • प्रसंस्करण और निर्यात: APEDA योजनाओं के तहत प्रसंस्करण संयंत्रों में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना और पशुधन उत्पाद निर्यात का समर्थन करना।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: पशु स्वास्थ्य, पोषण और प्रजनन सेवाओं के लिए ई-गोपाला ऐप जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म के उपयोग को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

उद्यमिता विकास सम्मेलन भारत के पशुधन क्षेत्र की पूरी क्षमता को साकार करने की दिशा में एक कदम है। संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करके, उद्यमिता को बढ़ावा देकर और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखकर, भारत अपनी पशुधन अर्थव्यवस्था को बदल सकता है। यह सतत्, समावेशी और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्र बन जाएगा।

संदर्भ

16 जनवरी, 2025 को भारत स्टार्टअप इंडिया कार्यक्रम के नौ वर्ष पूरे होने का जश्न मनाएगा, जो एक परिवर्तनकारी यात्रा है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2016 में हुई थी। 16 जनवरी को राष्ट्रीय स्टार्टअप दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्टार्टअप 

  • भारत में, स्टार्टअप को ऐसी इकाई के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसका मुख्यालय भारत में हो, जिसे 10 वर्ष से कम समय पहले खोला गया हो साथ ही जिसका वार्षिक कारोबार ₹100 करोड़ से कम हो।

  • अपवर्जन: मौजूदा व्यवसायों के विभाजन/पुनर्निर्माण द्वारा गठित संस्थाओं को स्टार्टअप नहीं माना जाता है।

स्टार्टअप वैल्यूएशन से संबंधित शर्तें

  • यूनिकॉर्न: यूनिकॉर्न एक स्टार्टअप है, जिसका मूल्यांकन $1 बिलियन से अधिक है। इस शब्द को वर्ष 2013 में ऐलीन ली ने गढ़ा था।
  • डेकाकॉर्न: डेकाकॉर्न एक स्टार्टअप को संदर्भित करता है, जिसका मूल्यांकन $10 बिलियन से अधिक है। ये कंपनियाँ यूनिकॉर्न की तुलना में कम सामान्य हैं और ऐसे स्टार्टअप का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिन्होंने महत्त्वपूर्ण विकास और बाजार प्रभुत्व हासिल किया है।
  • हेक्टोकॉर्न: हेक्टोकॉर्न एक अत्यंत दुर्लभ और प्रतिष्ठित शब्द है, जिसका उपयोग $100 बिलियन से अधिक के मूल्यांकन वाले स्टार्टअप का वर्णन करने के लिए किया जाता है।
  • मिनकॉर्न: मिनकॉर्न एक कम प्रयोग किया जाने वाला शब्द है, जो $1 बिलियन से कम मूल्य वाले स्टार्टअप को संदर्भित करता है।
  • सूनीकॉर्न: सूनीकॉर्न एक स्टार्टअप को संदर्भित करता है, जो तीव्रता से बढ़ रहा है तथा निकट भविष्य में $1 बिलियन के मूल्यांकन तक पहुँचने की क्षमता रखता है।

भारत में स्टार्टअप्स की वर्तमान स्थिति

  • भारत अब दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप केंद्र बन गया है, जहाँ 100 से अधिक यूनिकॉर्न हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा चीन के बाद दूसरे स्थान पर है तथा उसके बाद यू.के. और जर्मनी का स्थान है।
  • कुल स्टार्टअप: DPIIT-मान्यता प्राप्त स्टार्टअप की संख्या वर्ष 2016 में 500 से बढ़कर 15 जनवरी, 2025 तक 1,59,157 हो गई।

  • महिला नेतृत्व वाले स्टार्टअप: 73,151 स्टार्टअप में कम-से-कम एक महिला निदेशक शामिल हैं (31 अक्टूबर, 2024 तक)।
    • दिसंबर, 2023 तक 48% स्टार्टअप्स (1,17,254 में से 55,816) में कम-से-कम एक महिला निदेशक होंगी।

  • रोजगार सृजन: स्टार्टअप्स ने वर्ष 2016 से 31 अक्टूबर, 2024 के बीच 16.6 लाख प्रत्यक्ष रोजगार सृजित किए। 
  • टियर 2 तथा टियर 3 शहरों में उद्भव: दिसंबर, 2023 तक 50% से अधिक स्टार्टअप टियर 2 और 3 शहरों में शुरू किए गए हैं।

स्टार्टअप महाकुंभ 

  • स्टार्टअप महाकुंभ एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसमें स्टार्टअप, यूनिकॉर्न, सूनीकॉर्न, निवेशक, उद्योग के नेता और पारिस्थितिकी तंत्र के हितधारकों को एक साथ लाया जाता है।
  • पहला संस्करण (वर्ष 2019): 500 से अधिक स्टार्टअप, निवेशक तथा उद्योग के नेतृत्वकर्ताओं ने भाग लिया।
  • आगामी संस्करण: पाँचवाँ संस्करण 7-8 मार्च, 2025 को नई दिल्ली में आयोजित किया जाएगा।

भारत के स्टार्टअप सेक्टर में वृद्धि

  • सहायक सरकारी नीतियाँ: स्टार्टअप इंडिया पहल ने कर लाभ प्रदान करके, अनुपालन को आसान बनाकर तथा ₹10,000 करोड़ के कोष के साथ स्टार्टअप्स के लिए फंड ऑफ फंड्स (FFS) जैसी वित्तीय सहायता प्रदान करके एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • DPIIT द्वारा 1.52 लाख से अधिक स्टार्टअप्स को मान्यता दी गई है, जो रोजगार सृजन और नवाचार में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
  • डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर का विस्तार: डिजिटल इंडिया जैसी पहल तथा यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) को अपनाने से, जिसके कारण वर्ष 2024 में 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक का लेन-देन हुआ, एक निर्बाध डिजिटल आधार प्रदान किया गया है।
    • भारत वर्ष 2023 में दुनिया में सबसे कम डेटा लागत 6.7 रुपये प्रति जीबी होने का दावा करता है, जिससे स्टार्टअप्स को व्यापक दर्शकों तक पहुँचने में मदद मिलेगी।
  • बड़ा उपभोक्ता बाजार: भारत की 65% आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है, जो स्टार्टअप्स के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपभोक्ता आधार प्रदान करती है।
    • अकेले ई-कॉमर्स क्षेत्र का मूल्य वर्ष 2025 तक 188 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है।
  • संपन्न प्रतिभा पूल: प्रतिवर्ष 1.5 मिलियन से अधिक इंजीनियरिंग स्नातकों और उद्यमिता पर जोर देने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जैसी नीतियों के साथ, भारत कुशल पेशेवरों की एक मजबूत शृंखला प्रदान करता है।
  • उद्यम पूँजी और वित्तपोषण लचीलापन: वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बावजूद, भारत के तकनीकी स्टार्टअप ने H1 वर्ष 2024 में $4.1 बिलियन जुटाए, जिससे यह वैश्विक स्तर पर चौथा सबसे अधिक वित्तपोषित पारिस्थितिकी तंत्र बन गया।
    • माइक्रोसॉफ्ट वेंचर्स एक्सेलेरेटर और समृद्ध जैसे घरेलू उद्यम, पूँजी तथा एक्सेलेरेटर कार्यक्रम स्टार्टअप्स को मार्गदर्शन एवं वित्तपोषण प्रदान करते हैं।
  • टियर-2 तथा टियर-3 शहरों का उदय: देश के लगभग 50 प्रतिशत स्टार्टअप टियर-2 और टियर-3 शहरों से आते हैं, जिनमें इंदौर, जयपुर और अहमदाबाद जैसे उभरते हुए शहर भी शामिल हैं।
    • क्षेत्रीय नीतियाँ और प्रोत्साहन मेट्रो हब से परे नवाचार को प्रोत्साहित कर रहे हैं तथा विकेंद्रीकृत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर रहे हैं।

भारत में स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल

  • स्टार्टअप इंडिया कार्यक्रम के बारे में
    • 16 जनवरी, 2016 को उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) द्वारा लॉन्च किया गया।
    • इसने उद्यमियों को समर्थन देने, एक मजबूत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने और भारत को नौकरी चाहने वालों के बजाय नौकरी सृजकों के देश में बदलने के उद्देश्य से कई कार्यक्रम शुरू किए हैं।
    • स्टार्टअप इंडिया के तहत कार्यान्वित प्रमुख योजनाएँ
      • स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम (SISFS), 2021: भारत में शुरुआती चरण के स्टार्टअप को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
      • स्टार्टअप के लिए क्रेडिट गारंटी योजना (CGSS), 2022: अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, NBFC और SEBI-पँजीकृत AIF द्वारा दिए गए ऋणों के लिए क्रेडिट गारंटी के माध्यम से स्टार्टअप को संपार्श्विक-मुक्त फंडिंग प्रदान करें।
      • स्टार्टअप के लिए फंड ऑफ फंड्स (FFS) योजना, 2016: उद्यम पूँजीपतियों के माध्यम से स्टार्टअप को फंडिंग सहायता प्रदान करने के लिए 10,000 करोड़ रुपये के कोष के साथ स्थापित किया गया।
        • वर्ष 2024 तक, 99 वैकल्पिक निवेश कोषों (Alternative Investment Funds- AIF) के लिए ₹7,980 करोड़ की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।
      • भारत स्टार्टअप नॉलेज एक्सेस रजिस्ट्री (Bharat Startup Knowledge Access Registry-BHASKAR) 2024:  भारत के उद्यमशील पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर अंतःक्रियाओं को केंद्रीकृत तथा सुव्यवस्थित करना।
        • स्टार्टअप के लिए नवाचार, सहयोग और विकास को बढ़ावा देना।
  • प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (Prime Minister’s Employment Generation Programme- PMEGP) 
    • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME)
    • सब्सिडी: ग्रामीण क्षेत्रों में 25%, शहरी क्षेत्रों में 15%; एससी/एसटी/ओबीसी/महिलाएँ (35% ग्रामीण, 25% शहरी)।
    • वर्ष 2008-09 से 9.69 लाख सूक्ष्म उद्यमों को सहायता प्रदान की गई, जिससे ~79 लाख नौकरियाँ पैदा हुईं।
    • विस्तार के लिए दूसरी ऋण योजना: विनिर्माण में ₹1 करोड़, सेवाओं में ₹25 लाख।
  • स्टार्टअप विलेज उद्यमिता कार्यक्रम (Startup Village Entrepreneurship Program – SVEP)
    • ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) द्वारा DAY-NRLM (दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन) का उप-घटक
      • 3,02,825 उद्यमों को सहायता प्रदान की गई, 6,26,848 नौकरियाँ सृजित की गईं।
  • प्रौद्योगिकी इनक्यूबेशन और उद्यमियों का विकास (Technology Incubation and Development of Entrepreneurs- TIDE 2.0) (MeitY)
    • उभरती हुई तकनीक पर ध्यान केंद्रित करना: AI, IoT, ब्लॉकचेन।
    • 51 इनक्यूबेटर स्थापित किए गए; 1,235 स्टार्टअप को समर्थन दिया गया।
  • नवोन्मेषी स्टार्टअप्स के लिए अगली पीढ़ी का समर्थन (Gen-Next Support for Innovative Startups- GENESIS) (MeitY)
    • 5 वर्षों के लिए ₹490 करोड़ का परिव्यय; टियर-II तथा टियर-III शहरों में 1,500 से अधिक स्टार्टअप को समर्थन।
  • अटल नवाचार मिशन (Atal Innovation Mission- AIM): नीति आयोग के तहत, AIM स्टार्टअप्स को भौतिक अवसंरचना और सहायता प्रदान करने के लिए अटल इन्क्यूबेशन सेंटर (Atal Incubation Centers-AIC) की स्थापना करता है।

भारत में स्टार्टअप्स के विकास की चुनौतियाँ

  • विनियामक बाधाएँ: जटिल अनुपालन आवश्यकताएँ और विनियामक अस्पष्टताएँ बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।
    • उदाहरण के लिए, मोटर वाहन अधिनियम के तहत ऐप-आधारित कैब सेवाओं (जैसे ओला और उबर) के वर्गीकरण पर बहस ने परिचालन अनिश्चितताओं को जन्म दिया है।
    • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2024, हालाँकि यह आवश्यक नहीं है, उपयोगकर्ता डेटा को सँभालने वाले स्टार्टअप के लिए अनुपालन बोझ को शामिल करता है।
  • फंडिंग तक पहुँच: फंडिंग चुनिंदा क्षेत्रों और सेक्टरों तक ही सीमित है, जिससे टियर-2 और टियर-3 शहरों में स्टार्टअप्स को कम फंडिंग मिल रही है।
    • केवल 149 महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप को AIF जैसी सरकारी योजनाओं के तहत फंडिंग मिली है, जो असमानता को उजागर करता है।
    • वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं, जैसे कि वर्ष 2023 में फंडिंग में मंदी, ने भी पूँजी उपलब्धता को प्रभावित किया है।
  • प्रतिभा प्रतिधारण: स्टार्टअप को स्थापित निगमों और अंतरराष्ट्रीय अवसरों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है, जिससे प्रतिभा पलायन होता है।
    • वर्ष 2023 के एक अध्ययन से पता चला है कि 60% भारतीय तकनीकी पेशेवर विदेश में स्थानांतरित होने के लिए तैयार थे।
    • प्रतिस्पर्द्धी वेतन और विकास के अवसर प्रदान करने में चुनौतियाँ इस मुद्दे को और बढ़ा देती हैं।
  • बाजार संतृप्ति और अति-प्रतिस्पर्द्धा: एडटेक और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्र अत्यधिक भीड़भाड़ वाले हैं, जिससे लाभ मार्जिन कम हो रहा है और नकदी की बर्बादी की स्थिति पैदा हो रही है।
    • BYJU’s और Unacademy जैसी कंपनियों को अति-संतृप्ति के कारण अपने आकार में काफी कमी करनी पड़ी है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुँच केवल 37% है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 69% है, जिससे डिजिटल स्टार्टअप की बाजार पहुँच सीमित हो जाती है। 
    • कृषि प्रौद्योगिकी या ग्रामीण सेवाओं पर केंद्रित स्टार्टअप, जैसे कि डीहाट, सीमित बुनियादी ढाँचे और कनेक्टिविटी के कारण विस्तार करने में संघर्ष करते हैं।
  • सीमित भौगोलिक विस्तार: भारत में तीन मुख्य स्टार्टअप क्लस्टर हैं- बंगलूरू, दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और मुंबई।
    • बंगलूरू, जिसे भारत की सिलिकॉन वैली के रूप में भी जाना जाता है, उच्च विकास वाले स्टार्टअप के लिए भारत का शीर्ष शहर है, जहाँ देश के 40% से अधिक यूनिकॉर्न हैं।
  • अनुसंधान एवं विकास पर कम खर्च और डीप टेक इनोवेशन: भारत का अनुसंधान एवं विकास खर्च GDP का केवल 0.7% है, जबकि अमेरिका में यह 3.5% है। यह सेमीकंडक्टर और बायोटेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में डीप-टेक स्टार्टअप के विकास को रोकता है।
    • कमजोर उद्योग-अकादमिक सहयोग नवाचार को और बाधित करता है, क्योंकि 1% से भी कम उच्च शिक्षा संस्थान सक्रिय रूप से अनुसंधान में शामिल हैं।
  • मापनीयता संबंधी चुनौतियाँ: लगभग 90% स्टार्टअप परिचालन अक्षमताओं और स्केल करने में असमर्थता के कारण पहले पाँच वर्षों में विफल हो जाते हैं।
    • विकास के चरणों में नेविगेट करने में अनुभव की कमी, सीमित मार्गदर्शन और बाजार तक पहुँच के साथ, इन मुद्दों को और बढ़ा देते हैं।

भारत में स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ावा देने की दिशा में आगे की राह

  • सुव्यवस्थित विनियमन और अनुपालन: विभिन्न क्षेत्रों में स्टार्टअप के लिए कर और श्रम अनुपालन को सरल बनाना।
    • एडटेक, हेल्थटेक और क्लीनटेक जैसे क्षेत्रों में विनियामक सैंडबॉक्स का विस्तार करना, ताकि नियंत्रित वातावरण में नवाचार को प्रोत्साहित किया जा सकता।
  • वित्तपोषण तक बेहतर पहुँच: घरेलू उद्यम पूँजी कोष को मजबूत करना और स्टार्टअप में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना।
    • टियर-2 तथा टियर-3 शहर के स्टार्टअप और महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों के लिए लक्षित वित्तपोषण सहायता प्रदान करना।
  • उद्योग-अकादमिक सहयोग को बढ़ावा देना: स्टार्टअप तथा शैक्षणिक संस्थानों के बीच संयुक्त अनुसंधान और विकास परियोजनाओं को बढ़ावा देना।
    • डीप-टेक स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्र-विशिष्ट अनुसंधान तथा नवाचार केंद्र स्थापित करना।
  • डिजिटल और भौतिक अवसंरचना विकास: एग्रीटेक तथा ग्रामीण क्षेत्रों में स्टार्टअप को सक्षम करने के लिए शहरी-ग्रामीण डिजिटल विभाजन को पाटना।
    • उभरते शहरों में इनक्यूबेटर, सहकार्य स्थान और मार्गदर्शन सहायता के साथ समर्पित स्टार्टअप केंद्र विकसित करना।
  • कौशल विकास और उद्यमिता शिक्षा: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) के माध्यम से उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में उद्यमिता प्रशिक्षण को एकीकृत करना।
    • AI, IoT, ब्लॉकचेन और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए लक्षित कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित करना।
  • सरकारी खरीद और बाजार पहुँच: MSME नीतियों के समान, स्टार्टअप्स के लिए सरकारी खरीद का एक प्रतिशत अनिवार्य किया जाना चाहिए।
    • वैश्विक बाजार तक पहुँच और वित्तपोषण के लिए अंतरराष्ट्रीय स्टार्टअप सेतुओं तथा सहयोगों का विस्तार करना।

निष्कर्ष

भारत अनुकूल नीतियों, नवाचार की संस्कृति तथा क्रॉस-सेक्टर सहयोग से प्रेरित होकर स्टार्टअप इकोसिस्टम में वैश्विक नेतृत्वकर्ताओं के रूप में उभरने के लिए तैयार है। जैसा कि राष्ट्र वर्ष 2047 तक विकसित भारत की कल्पना करता है, स्टार्टअप आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, रोजगार पैदा करने और भारत को एक नवाचार केंद्र के रूप में स्थापित करने में सहायक होंगे।

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