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Jan 18 2025

स्वामित्व (SVAMITVA) योजना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 18 जनवरी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से स्वामित्व (SVAMITVA) योजना के तहत 65 लाख से अधिक संपत्ति कार्ड वितरित करेंगे।

स्वामित्व योजना 

  • स्वामित्व (SVAMITVA का अर्थ है:- ‘गाँवों का सर्वेक्षण एवं ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत प्रौद्योगिकी के साथ मानचित्रण’ (Survey of Villages and Mapping with Improvised Technology in Village Areas)।
  • यह केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय के तहत एक  केंद्रीय क्षेत्रक योजना है। 
  • लॉन्च तिथि: 24 अप्रैल, 2020 (राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस)।
  • योजना के उद्देश्य
    • संपत्ति मालिकों को उनके आवासित क्षेत्रों में उनके घरों के लिए ‘अधिकारों का रिकॉर्ड’ प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
      • यह सटीक रूप से भूमि सर्वेक्षण के लिए ड्रोन तकनीक का उपयोग करता है।
    • बैंक ऋण के माध्यम से संस्थागत ऋण के लिए संपत्तियों के मुद्रीकरण की सुविधा प्रदान करना।
    • संपत्ति संबंधी विवादों को कम करना।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर संपत्ति मूल्यांकन एवं संपत्ति कर का संग्रह सक्षम करना।
    • बेहतर रिकॉर्ड के माध्यम से ग्राम-स्तरीय योजना का समर्थन करना।
  • योजना की प्रगति
    • लक्ष्य का 92% कवर करते हुए 3.17 लाख से अधिक गाँवों में ड्रोन सर्वेक्षण पूरा कर लिया गया है।
    • 1.53 लाख से अधिक गाँवों के लिए 2.25 करोड़ संपत्ति कार्ड तैयार किए गए हैं।
      • मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं जैसे प्रमुख राज्यों में सर्वेक्षण कार्य पूर्ण हो चुका है।

तीसरा लॉन्च पैड

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत के एकमात्र अंतरिक्ष बंदरगाह, आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में तीसरे लॉन्च पैड की स्थापना को मंजूरी दे दी है।

लॉन्च पैड क्या है?

  • लॉन्च पैड एक विशेष रूप से डिजाइन किया गया प्लेटफॉर्म है, जिसका उपयोग रॉकेट या अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में भेजने और लॉन्च करने के लिए किया जाता है।
  • तीसरे लॉन्च पैड का महत्त्व
    • नेक्स्ट जनरेशन लाँच व्हीकल्स (NGLVs) का समर्थन करता है:
      • भारी एवं उन्नत रॉकेट लॉन्च करने के लिए आवश्यक।
      • भविष्य के मिशनों को सुविधाजनक बनाएगा जैसे:
        • भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (भारत का अंतरिक्ष स्टेशन)।
        • अगले 15 वर्षों के भीतर इंडियन क्रू लूनर लैंडिंग।
    • भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ाता है
      • महत्त्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशनों की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने की भारत की क्षमता का विस्तार करता है और मौजूदा प्रक्षेपण बुनियादी ढाँचे में वृद्धि करता है:
        • पहला लॉन्च पैड: ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) (रॉकेट जो उपग्रहों को कक्षा में लॉन्च करता है) एवं छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) का समर्थन करता है।
        • द्वितीय लॉन्च पैड: जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) एवं लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM3)  का समर्थन करता है।
    • स्टार्ट-अप इकोसिस्टम को बढ़ावा देता है
      • बढ़ते भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को समर्थन देने के लिए बुनियादी ढाँचा प्रदान करता है।
      • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में नवाचार एवं उद्यमिता को प्रोत्साहित करता है।

श्रीहरिकोटा का सामरिक महत्त्व

  • भूमध्य रेखा से निकटता: भूमध्य रेखा (13°N अक्षांश) के निकट श्रीहरिकोटा की अवस्थिति रॉकेटों को पृथ्वी की घूर्णन गति से अतिरिक्त गति प्राप्त करने में मदद करता है, जिससे ईंधन की आवश्यकता कम हो जाती है।
  • मौजूदा सुविधाएँ: साइट पर पहले से ही दो परिचालन लॉन्च पैड एवं मजबूत बुनियादी ढाँचा उपलब्ध है, जिससे तीसरा लॉन्च पैड जोड़ना लागत प्रभावी हो जाता है।

फास्ट ट्रैक इमिग्रेशन-विश्वसनीय यात्री कार्यक्रम (FTI-TTP)

केंद्रीय गृह मंत्री विकसित भारत@2047 विजन के एक भाग के रूप में फास्ट ट्रैक इमिग्रेशन-विश्वसनीय यात्री कार्यक्रम (Fast Track Immigration—Trusted Traveller Program- FTI-TTP) शुरू कर रहे हैं, जो प्रमुख भारतीय हवाई अड्डों पर आव्रजन सुविधाओं को बढ़ाएगा।

FTI-TTP के बारे में

  • उद्देश्य: अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए सुरक्षित एवं निर्बाध यात्रा सुनिश्चित करते हुए विश्व स्तरीय आप्रवासन सुविधाएँ प्रदान करना।
  • प्रारंभिक लॉन्च: 22 जून, 2024 को इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (IGI), नई दिल्ली में भारतीय नागरिकों एवं OCI कार्डधारकों के लिए निःशुल्क शुरू किया गया।
  • चरण- I कार्यान्वयन
    • वर्ष 2025 में देश भर के 21 प्रमुख हवाई अड्डों पर शुरू किया जाएगा।
    • पहले चरण में शामिल हवाई अड्डे: दिल्ली, अहमदाबाद, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बंगलूरू, हैदराबाद एवं कोचीन।

FTI-TTP का महत्त्व

  • आप्रवासन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करके यात्रा अनुभव को बढ़ावा देता है।
  • विकसित भारत@2047 के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में एक मील का पत्थर।

काबो वर्डे द्वीपसमूह

हाल ही में विश्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट, कंट्री क्लाइमेट एंड डेवलपमेंट रिपोर्ट (CCDR) में अनुमान लगाया है कि काबो वर्डे को अपनी जलवायु एवं विकास चुनौतियों का समाधान करने के लिए वर्ष 2030 तक प्रति वर्ष 140 मिलियन डॉलर का निवेश करने की आवश्यकता होगी। 

काबो वर्डे के संबंध में

  • काबो वर्डे का नाम अफ्रीका के सबसे पश्चिमी अंतरीप के नाम पर रखा गया है, जो सेनेगल के निकट स्थित है और महाद्वीप का सबसे निकटतम बिंदु है।

  • अवस्थिति: काबो वर्डे गणराज्य, मध्य अटलांटिक महासागर में स्थित पश्चिम अफ्रीका का एक द्वीपीय देश एवं द्वीपसमूह राज्य है।
  • द्वीपसमूह: यह दस ज्वालामुखी द्वीपों का एक समूह है, जिसका संयुक्त भूमि क्षेत्र लगभग 4,033 वर्ग किलोमीटर है।
  • राजभाषा: पुर्तगीज।
  • राजधानी शहर: सैंटियागो द्वीप पर स्थित  प्रेया (Praia)।

संदर्भ

हाल ही में कैस्पियन सागर में मृत्तिका ज्वालामुखी विस्फोट (Mud Volcano Eruption) से उत्पन्न हुआ एक अस्थायी ‘घोस्ट आइलैंड’ चर्चा में रहा। यह द्वीप वर्ष 2023 की शुरुआत में उभरा एवं वर्ष 2024 के अंत तक समुद्र में समा गया।

घोस्ट आइलैंड के बारे में

  • ‘घोस्ट आइलैंड’ एक अस्थायी भू-भाग को संदर्भित करता है, जो प्राकृतिक भू-वैज्ञानिक या पर्यावरणीय घटनाओं, जैसे कि मृत्तिका ज्वालामुखी विस्फोट, तलछट संचय, या ज्वारीय एवं क्षरण प्रक्रियाओं के कारण प्रकट होता है तथा गायब हो जाता है।
    • कैस्पियन सागर में, ‘घोस्ट आइलैंड’ का निर्माण कुमानी बैंक मृत्तिका ज्वालामुखी विस्फोट (Kumani Bank Mud Volcano) से हुआ था। 
    • यह द्वीप वर्ष 2023 की शुरुआत में उभरा, एवं वर्ष 2024 के अंत तक तेजी से विलुप्त हो गया।

मृत्तिका ज्वालामुखी (Mud Volcano) के बारे में

  • एक भू-वैज्ञानिक घटना जिसमें गैसें, तरल पदार्थ और तलछट सतह पर फूटते हैं, जिससे अस्थायी भू-आकृतियाँ बनती हैं।
  • ये प्रायः टेक्टॉनिक क्षेत्रों में पाए जाते हैं, तथा इसे मेथेन एवं मृत्तिका का उद्गार हो सकता है, जिससे कभी-कभी भयंकर विस्फोट हो सकते हैं।
  • वे प्रायः उच्च भूमिगत दबाव वाले टेक्टॉनिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में बनते हैं।
  • उदाहरण: अजरबैजान, कुमानी बैंक सहित 300 से अधिक मृत्तिका ज्वालामुखियों का क्षेत्र है।
  • खतरे: ज्वलनशील गैस उत्सर्जन, बड़े पैमाने पर तलछट निष्कासन और यहाँ तक ​​कि खतरनाक उद्गार की संभावना।

कैस्पियन सागर के बारे में

  • कैस्पियन सागर दुनिया का सबसे बड़ा भूमि से घिरा जलाशय है, जिसका क्षेत्रफल 392,600 वर्ग किमी. है।
  • कैस्पियन सागर की सीमा से लगे देश: अजरबैजान, ईरान, कजाखस्तान, रूस, तुर्कमेनिस्तान।

  • प्रमुख नदियाँ: कैस्पियन सागर को मुख्य रूप से तीन प्रमुख नदियों से जल प्राप्त होता है: वोल्गा नदी, यूराल नदी, तेरेक नदी (Terek River)।

संदर्भ

युगांडा के कंपाला में कंप्रिहेंसिव अफ्रीका एग्रीकल्चर डेवलपमेंट प्रोग्राम (CAADP) पर अफ्रीकी संघ शिखर सम्मेलन में अफ्रीकी नेताओं ने वर्ष 2026 से वर्ष 2035 तक अफ्रीका की कृषि-खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन के लिए कंपाला घोषणा को अपनाया है।

अफ्रीकी संघ (African Union- AU) 

  • गठन: अफ्रीकी एकता संगठन (Organization of African Unity- OAU) के बाद वर्ष 2002 में स्थापित।
  • मुख्यालय: अदीस अबाबा, इथियोपिया।
  • सदस्य: अफ्रीकी महाद्वीप के 55 देश।
  • एजेंडा 2063: समावेशी एवं सतत् विकास, राजनीतिक एकता तथा मानवाधिकारों के प्रति सम्मान का लक्ष्य।

कंपाला घोषणा के बारे में

  • स्थान: यह घोषणा मालाबो घोषणा का स्थान लेती है, जिसका कार्यान्वयन वर्ष 2025 में समाप्त होगा।
  • फोकस: यह अफ्रीका की खाद्य सुरक्षा एवं कृषि चुनौतियों का समाधान करने के लिए परिवर्तनकारी कृषि-खाद्य प्रणालियों पर जोर देती है।
  • संरेखण: एजेंडा 2063 (अफ्रीका का विकास ढाँचा) एवं खाद्य प्रणालियों पर अफ्रीका की सामान्य स्थिति के साथ एकीकृत है।
  • विजन: स्वस्थ एवं समृद्ध अफ्रीका के लिए सतत् तथा लचीली कृषि-खाद्य प्रणालियों की सिफारिश करना।
  • दृष्टिकोण: कृषि-आधारित विकास से कृषि-खाद्य प्रणाली दृष्टिकोण में बदलाव का परिचय देता है, जो संपूर्ण खाद्य मूल्य शृंखला पर विचार करता है।
  • रोडमैप: स्पष्ट कार्यान्वयन एवं निगरानी रणनीतियों के साथ एक विस्तृत रूपरेखा प्रदान करता है।

CAADP एवं पिछली घोषणाओं की पृष्ठभूमि

  • ‘कॉम्प्रिहेन्सिव अफ्रीका एग्रीकल्चर डेवलपमेंट प्रोग्राम’ (CAADP)
    • कृषि आधारित विकास के माध्यम से भुखमरी को समाप्त करने एवं गरीबी को कम करने के लिए मापुटो घोषणा के तहत वर्ष 2003 में लॉन्च किया गया था।
    • कृषि के लिए 10% बजट आवंटन एवं 6% वार्षिक कृषि उत्पादकता वृद्धि हासिल करने का लक्ष्य।
  • मालाबो घोषणा (2014)
    • भुखमरी उन्मूलन, अंतर-अफ्रीकी व्यापार को तीन गुना करने एवं लचीलापन बढ़ाने जैसे लक्ष्यों को शामिल करने के लिए विस्तारित CAADP।
    • वर्ष 2024 द्विवार्षिक समीक्षा रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीका वर्ष 2025 तक भुखमरी समाप्त करने जैसी प्रमुख प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करने कई समस्याओं का सामना कर रहा  है।

CAADP प्राथमिकता वाले क्षेत्र

अफ्रीका के कृषि क्षेत्र में लगातार चुनौतियाँ

  • खाद्य सुरक्षा: FAO के अनुसार, अफ्रीका ऐसा क्षेत्र बना हुआ है, जहाँ आबादी का सबसे बड़ा अनुमानित अनुपात 20.4 प्रतिशत है, जो भुखमरी का सामना कर रहा है।
  • कुपोषण: बौनेपन को कम करने में प्रगति के बावजूद, कुपोषण विकास में बाधा बन रहा है एवं मृत्यु दर में वृद्धि कर रहा है।
    • बढ़ता मोटापा एवं संबंधित स्वास्थ्य समस्याएँ आर्थिक तथा स्वास्थ्य बोझ बढ़ाती हैं।
  • अन्य समस्या: COVID-19 महामारी, संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध एवं जलवायु परिवर्तन ने कृषि प्रणालियों को बाधित कर दिया है।

आगे की राह

  • रणनीतिक परिवर्तन: मलाबो के बाद का एजेंडा (2026-2035) संपूर्ण खाद्य मूल्य शृंखला में चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक एकीकृत कृषि-खाद्य प्रणाली दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
    • विविध एवं पौष्टिक आहार के माध्यम से स्थिरता, लचीलापन तथा कुपोषण से निपटने को प्राथमिकता देता है।
  • जलवायु-स्मार्ट नवाचार: कृषि उत्पादकता अंतराल को कम करने के लिए जलवायु-स्मार्ट प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • वर्ष 2050 तक अफ्रीका की अनुमानित 2.5 अरब आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • लचीलापन निर्माण: इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन एवं महामारी जैसे समस्याओं से निपटने की क्षमता को मजबूत करना है।
  • नेतृत्व संबंधी प्रतिबद्धताएँ: केन्या, इथियोपिया, अंगोला, बुरुंडी एवं सोमालिया के नेताओं ने खाद्य सुरक्षा तथा आर्थिक विकास के लिए कृषि के आधुनिकीकरण के महत्त्व पर जोर दिया।

संदर्भ

यमन की एक अदालत द्वारा केरल की नर्स निमिषा प्रिया को सुनाई गई मौत की सजा तथा उसके बाद उसके बरी होने और स्वदेश वापसी को लेकर हुई बहस एवं प्रयासों ने फिर से ‘ब्लड मनी’ व उसके निहितार्थों पर ध्यान केंद्रित किया है।

ब्लड मनी के बारे में

  • ‘ब्लड मनी’ या ‘दीया’ (Diya) इस्लामिक कानून में एक प्रथा है, जिसमें अपराध करने वाले को पीड़ित या उनके परिवार को एक निश्चित राशि का भुगतान करने की आवश्यकता होती है, विशेषकर अनजाने में हत्या या गैर-इरादतन हत्या के मामलों में। 
    • यह मानव जीवन की कीमत नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य पीड़ित के परिवार की पीड़ा को कम करना है।
  • क्रियान्वयन: इसका क्रियान्वयन तब किया जाता है, जब पीड़ित का परिवार प्रतिशोध अर्थात्  किसास (Qisas) न लेने का निर्णय करता है और आमतौर पर इसका इस्तेमाल आकस्मिक मृत्यु या हत्या के मामलों में किया जाता है।

‘ब्लड मनी’ पर शरिया कानून

  • इस्लामी शरिया कानून के तहत, हत्या के मामलों में दीया का भुगतान किया जाता है और यह एक व्यापक कानूनी ढाँचे का हिस्सा है, जहाँ समुदाय एवं राज्य को दंड देने का अधिकार है।
  • ब्लड मनी को प्रभावित करने वाले कारक
    • पीड़ित का लिंग, धर्म और राष्ट्रीयता भुगतान की जाने वाली राशि को प्रभावित कर सकती है।
    • विभिन्न इस्लामिक देशों में अलग-अलग प्रथाएँ हैं, जैसे सऊदी अरब, ईरान एवं पाकिस्तान में।

  • धनराशि: कुरान में दीया के लिए कोई निश्चित धनराशि नहीं बताई गई है; यह आमतौर पर पीड़ित एवं अपराधी के परिवारों के बीच वार्ता से तय होती है।

इस्लामी देशों के उदाहरण

  • सऊदी अरब: शरिया अदालतों और विशेष समितियों द्वारा निर्धारित राशि के साथ सड़क दुर्घटनाओं तथा कार्यस्थल दुर्घटनाओं के लिए भुगतान किया जाता है।
  • ईरान: महिलाओं को मिलने वाला मुआवजा पुरुषों के मुआवजे से आधा है। देश ने दीया को समान बनाने के प्रयासों पर चर्चा की है, लेकिन पूर्ण कार्यान्वयन अभी भी लंबित है।
  • पाकिस्तान: दीया और किसास को आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश, 1991 के तहत मुख्यधारा के आपराधिक कानून में शामिल किया गया है।
  • यमन: निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक निगरानी के साथ पक्षकारों द्वारा मुआवजे का निर्णय लिया जा सकता है।

भारत की कानूनी प्रणाली एवं ब्लड मनी

  • औपचारिक ब्लड मनी का अभाव: भारत अपनी कानूनी प्रणाली में दीया को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं देता है।
  • दलील सौदेबाजी: भारत में बातचीत के जरिए समझौता किया जा सकता है, जहाँ अभियुक्त कम सजा के बदले में दोषी होने की दलील देता है, लेकिन यह सीधे तौर पर ब्लड मनी के बराबर नहीं है।
    • आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2005 ने दलील सौदेबाजी की शुरुआत की, जो पीड़ित को मुआवजा प्राप्त करने की अनुमति दे सकती है। (धारा 265E)
    • सीमाएँ: दलील सौदेबाजी का उपयोग ऐसे अपराध के लिए नहीं किया जा सकता, जो आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक कारावास अथवा मृत्युदंड से संबंधित हो।

वैश्विक ऐतिहासिक उद्धरण

  • आयरलैंड [ब्रेहोन कानून (Brehon Law)]: एरिक (Eraic) (शरीर की कीमत) और लॉग एन एनच (Log n Enech) (सम्मान की कीमत) समान अवधारणाएँ थीं, जो अपराध की गंभीरता तथा पीड़ित की सामाजिक स्थिति के आधार पर भुगतान की अनुमति देती थीं।
  • वेर्गेल्ड (जर्मनी): मध्ययुगीन जर्मनी में ब्लड मनी के समान एक मुआवजा प्रणाली, जिसमें हत्या या अन्य गंभीर अपराधों के मामलों में पीड़ित के परिवार को मुआवजा दिया जाता था।

भारतीयों एवं ब्लड मनी से जुड़े मामले

  • अर्जुनन अथिमुथु (कुवैत, 2019): ₹30 लाख की ब्लड मनी का भुगतान करने के बाद उनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था।
  • अब्दुल रहीम (सऊदी अरब, 2006): ब्लड मनी के रूप में ₹34 करोड़ चुकाने के बाद उनकी मौत की सजा को कम कर दिया गया।
  • UAE का मामला (वर्ष 2017-2019): कई भारतीयों को ब्लड मनी के रूप में बड़ी धनराशि अदा करने के बाद क्षमादान दिया गया, जिसमें एक मामले में 17 भारतीयों को 4 करोड़ रुपए अदा करने के बाद माफी दी गई।

कानूनी एवं नैतिक विचार

  • ‘ब्लड मनी’ की नैतिकता: क्या यह मानव जीवन को वस्तु बनाता है या क्या यह धार्मिक कानून से बँधे समाज में पुनर्स्थापन और सुलह के लिए एक तंत्र के रूप में कार्य करता है।
  • न्यायिक निरीक्षण: हालाँकि यह प्रथा इस्लामी देशों में सामान्य है, इसकी निष्पक्षता एवं शोषण की संभावना (जैसे, मुआवजे में लिंग आधारित असमानता) पर अक्सर चर्चा की जाती है।

संदर्भ 

हाल ही में विश्व बैंक ने अपनी द्विवार्षिक वैश्विक आर्थिक संभावना रिपोर्ट का जनवरी संस्करण जारी किया है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • वैश्विक पूर्वानुमान
    • मुद्रास्फीति: वर्ष 2025 और 2026 में इसकी दर घटकर 2.7 प्रतिशत रहने की उम्मीद है, जो दो वर्ष पहले के 8 प्रतिशत से कई केंद्रीय बैंकों के लक्ष्य के करीब है।
    • स्थिर किंतु धीमी वृद्धि: वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्ष 2025 में 2.7 प्रतिशत तक विस्तारित होगी और वर्ष 2026 में फिर से स्थिर वृद्धि दर्शाएगी।
      • विकास दर वर्ष 2010-2019 के औसत से 0.4 प्रतिशत अंक कम है जो गरीबी से निपटने के लिए अपर्याप्त है।
    • जोखिम: वैश्विक अर्थव्यवस्था को नकारात्मक जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे प्रतिकूल नीतिगत बदलाव और बढ़ती नीति अनिश्चितता, बढ़ता व्यापार विखंडन, मुद्रास्फीति को कम करने में धीमी प्रगति और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में कमजोर गतिविधियाँ।
  • विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का विकास
    • दर: निम्न और मध्यम आय वाले विकासशील देशों के लिए, इस वर्ष वृद्धि दर 4.1 प्रतिशत रहने की उम्मीद है और वर्ष 2026 में यह थोड़ी धीमी होकर 4 प्रतिशत हो जाएगी।
    • विकास में कमी: चीन और भारत को छोड़कर विकासशील देशों में, 2000 के दशक में 5.9 प्रतिशत प्रति वर्ष के मजबूत औसत की तुलना में 2020 के दशक में 3.5 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई है।
    • नकारात्मक बाह्य प्रभाव: विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ सुस्त निवेश, उच्च स्तर के ऋण, जलवायु परिवर्तन की बढ़ती लागत और निर्यात को नुकसान पहुँचाने वाले बढ़ते संरक्षणवाद से ग्रस्त हैं।
  • निम्न आय अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि: बैंक को उम्मीद है कि कुछ स्थानों पर संघर्ष कम होने के कारण निम्न आय वाले देशों की वृद्धि इस वर्ष 5.7 प्रतिशत और वर्ष 2026 में 5.9 प्रतिशत हो जाएगी।
  • तीसरी दुनिया के देश: दुनिया के सबसे गरीब देश, जिनकी प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 1,145 अमेरिकी डॉलर से कम है,  ने वर्ष 2024 में केवल 3.6 प्रतिशत वृद्धि की।
    • कारण: इसका मुख्य कारण इन अर्थव्यवस्थाओं (गाजा और सूडान) में बढ़ता संघर्ष तथा हिंसा एवं कोविड-19 व यूक्रेन पर रूस के आक्रमण जैसे प्रतिकूल झटकों से होने वाली क्षति है।
  • भारत के संबंध में: भारत में वर्ष 2025 और 2026 दोनों में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है और यह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में चीन को पीछे छोड़ देगा।
    • कारण: ग्रामीण क्षेत्रों में माँग में वृद्धि, कृषि उत्पादन में सुधार ने उपभोक्ता खर्च को बढ़ावा दिया है, हालाँकि मुद्रास्फीति और धीमी ऋण वृद्धि ने शहरों में खरीदारों को हतोत्साहित किया है।

विश्व बैंक (World Bank)

  • स्थापना: विश्व बैंक की स्थापना वर्ष 1944 में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोप और जापान के पुनर्निर्माण में मदद के लिए की गई थी।
    • यह वर्ष 1944 में ब्रेटन वुड्स में बनाए गए पाँच संस्थानों में से एक है और संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध है।
  • सदस्यता: इसके 189 सदस्य देश हैं।
    • भारत इसका संस्थापक सदस्य है।
  • संस्था: विश्व बैंक में पाँच संस्थाएँ शामिल हैं:
    • पुनर्निर्माण और विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय बैंक (IBRD): यह केवल संप्रभु राज्यों या उनके द्वारा समर्थित परियोजनाओं को वाणिज्यिक या रियायती ऋण प्रदान करता है।
    • अंतरराष्ट्रीय विकास संघ (IDA): यह दुनिया के सबसे गरीब देशों की सहायता करता है और ब्याज मुक्त ऋण (IDA क्रेडिट कहा जाता है) प्रदान करके गरीबी को कम करने का लक्ष्य रखता है।
    • अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम (IFC): यह निजी क्षेत्र के निवेश को वित्तपोषित करता है, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में पूँजी जुटाता है और व्यवसायों और सरकारों को सलाहकार सेवाएँ प्रदान करता है।
    • बहुपक्षीय निवेश गारंटी (Multilateral Investment Guarantee- MIGA): यह आर्थिक विकास का समर्थन करने, गरीबी को कम करने और लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए विकासशील देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ावा देता है।
    • अंतरराष्ट्रीय निवेश विवाद निपटान केंद्र (International Centre for Settlement of Investment Disputes- ICSID): अंतररष्ट्रीय निवेश विवाद निपटान के लिए समर्पित दुनिया की अग्रणी संस्था।
  • प्रमुख रिपोर्ट
    • वैश्विक वित्तीय विकास रिपोर्ट (Global Financial Development Report)
    • कमोडिटी बाजार आउटलुक (Commodity Markets Outlook)
    • विश्व विकास रिपोर्ट (World Development Reports)।

संदर्भ

स्विस री (Swiss Re) रिपोर्ट के अनुसार, कैलेंडर वर्ष 2023 में भारत में प्राकृतिक आपदाओं के कारण 12 बिलियन डॉलर (1 लाख करोड़ रुपये से अधिक) की भारी हानि हुई।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • वर्ष 2023 में आर्थिक हानि
    • प्राकृतिक आपदाओं के कारण भारत को वर्ष 2023 में कुल 12 बिलियन डॉलर (₹1 लाख करोड़ से अधिक) का आर्थिक नुकसान हुआ।
    • ये नुकसान 10 वर्ष के औसत 8 बिलियन डॉलर (वर्ष 2013-2022) से काफी अधिक थे।
    • इन हानियों का मुख्य कारण उत्तरी भारत और सिक्किम में बाढ़ के साथ-साथ उष्णकटिबंधीय चक्रवात बिपरजॉय (Biparjoy) और मिचौंग (Michaung) थे।
  • आर्थिक हानियों के प्रमुख कारण
    • बाढ़ हानि का एक प्रमुख कारण
      • भारत में होने वाले वार्षिक आर्थिक नुकसान में बाढ़ का योगदान लगभग 63% है।
      • प्रमुख बाढ़ की घटनाओं में शामिल हैं:
        • वर्ष 2005 में आई मुंबई की बाढ़, जिससे 5.3 बिलियन डॉलर (वर्ष 2024 की कीमतों में) का आर्थिक नुकसान हुआ।
        • वर्ष 2013 में उत्तराखंड बाढ़, वर्ष 2014 में जम्मू और कश्मीर बाढ़, वर्ष 2018 में केरल बाढ़ और वर्ष 2023 में उत्तरी भारत बाढ़।
        • वर्ष 2015 की चेन्नई बाढ़, जिससे 6.6 बिलियन डॉलर (वर्ष 2024 की लागत में) का आर्थिक नुकसान हुआ।
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवात और सुनामी
      • उष्णकटिबंधीय चक्रवात
        • चक्रवात बिपरजॉय (2023): गुजरात में आया, बंदरगाहों (जैसे, मुंद्रा, कांडला) को बंद कर दिया और महाराष्ट्र तथा राजस्थान में व्यापक क्षति पहुँचाई।
        • चक्रवात मिचौंग (2023): चेन्नई में अत्यधिक वर्षा और महत्वपूर्ण नुकसान हुआ।
      • सुनामी: तटीय क्षेत्र, विशेष रूप से पूर्वी तट पर, सुनामी आने की आशंका रहती है।
        • वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी ने तमिलनाडु और अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में व्यापक विनाश किया था।
      • भेद्यता: भारत की 5,700 किलोमीटर लंबी तटरेखा चक्रवातों और सुनामी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है, जिसका शहरी केंद्रों, बंदरगाहों और उद्योगों पर प्रभाव पड़ता है।
    • भूकंप की संवेदनशीलता: भारत का 58.6% भू-भाग मध्यम से उच्च तीव्रता वाले भूकंपों के प्रति संवेदनशील है।
      • नई दिल्ली और अहमदाबाद विशेष रूप से भूकंप के जोखिम के प्रति संवेदनशील हैं।
      • संभावित भूकंप केंद्रों में हिमालय शामिल है, जो दिल्ली और मुंबई जैसे शहरी केंद्रों के पास के क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है।
      • वर्ष 2001 के भुज भूकंप जैसा भूकंप आज ​​संपत्ति के बढ़ते संकेंद्रण के कारण अत्यधिक नुकसान पहुँचा सकता है।

प्राकृतिक आपदाएँ

  • प्राकृतिक आपदा एक अप्रत्याशित घटना है, जो प्राकृतिक कारणों से घटित होती है, जैसे भूकंप या बाढ़, जिसमें बहुत अधिक पीड़ा, क्षति अथवा मृत्यु होती है।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव

  • आर्थिक प्रभाव
    • प्रत्यक्ष नुकसान: प्रत्यक्ष नुकसान में बुनियादी ढाँचे, उद्योगों, घरों और कृषि भूमि को होने वाला नुकसान शामिल है। उदाहरण के लिए, बाढ़ और चक्रवातों के कारण वर्ष 2023 में ₹1 लाख करोड़ (USD 12 बिलियन) का आर्थिक नुकसान दर्ज किया गया।
    • अप्रत्यक्ष नुकसान: अप्रत्यक्ष नुकसान औद्योगिक एवं आर्थिक गतिविधियों में व्यवधान के कारण होता है, जैसे कि गुजरात में चक्रवात बिपरजॉय के दौरान बंदरगाहों और आपूर्ति शृंखलाओं का बंद होना और सूखे और बाढ़ के कारण कृषि उत्पादकता में गिरावट।
    • बीमा अंतराल: भारत में प्राकृतिक आपदा से संबंधित 90% से अधिक नुकसान बीमाकृत नहीं होते हैं, जिससे घरों एवं व्यवसायों पर वित्तीय दबाव बढ़ता है।
  • मानवीय प्रभाव
    • जीवन और आजीविका की हानि: प्राकृतिक आपदाओं से जीवन और आजीविका का बहुत नुकसान होता है।
      • उदाहरण के लिए, वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी और उत्तरी भारत में आई बाढ़ (2023) के कारण बहुत अधिक लोग हताहत हुए तथा लोगों को विस्थापित होना पड़ा।
    • स्वास्थ्य और संवेदनशील समूह: ये आपदाएँ जलजनित बीमारियों के जोखिम को भी बढ़ाती हैं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों, महिलाओं, बच्चों और दिव्यांग व्यक्तियों सहित संवेदनशील समूहों को असमान रूप से प्रभावित करती हैं।
    • विस्थापन: जिनेवा स्थित आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2022 में भारत में प्राकृतिक आपदाओं, विशेष रूप से बाढ़ एवं चक्रवातों के कारण 2.5 मिलियन से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव
    • पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण: प्राकृतिक आपदाएँ पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करती हैं, जिससे जैव विविधता की हानि होती है और वनों, आर्द्रभूमि तथा तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है।
    • मृदा एवं तट बंधों का क्षरण: मृदा अपरदन और नदी के किनारों का अस्थिर होना बाढ़ के सामान्य परिणाम हैं।
    • जलवायु परिवर्तन प्रतिक्रिया: जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक आपदाओं को तीव्र करता है, जिससे विनाश और पुनर्प्राप्ति लागत का एक प्रतिक्रिया चक्र बनता है।
  • सामाजिक प्रभाव
    • विस्थापन और पलायन: विस्थापन एवं पलायन सामान्य बात है, क्योंकि आपदा प्रभावित क्षेत्रों में लोग अपने घर एवं आजीविका खो देते हैं।
      • उदाहरण के लिए, पहाड़ी क्षेत्रों के कई निवासी भूस्खलन एवं बाढ़ के कारण पलायन करने को मजबूर हैं।
    • सांस्कृतिक विरासत को नुकसान: भूकंप एवं बाढ़ जैसी आपदाओं का एक और महत्त्वपूर्ण प्रभाव ऐतिहासिक स्मारकों और मंदिरों सहित सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुँचाना है।
  • विकासात्मक प्रभाव
    • प्रगति में बाधा: प्राकृतिक आपदाएँ बुनियादी ढाँचे और संपत्तियों को नष्ट करके विकासात्मक प्रगति में बाधा डालती हैं।
      • उदाहरण के लिए, गुजरात, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे क्षेत्रों को बड़ी आपदाओं के बाद गंभीर आर्थिक तनाव का सामना करना पड़ता है।
    • गरीबी में वृद्धि: आर्थिक नुकसान कम आय वाले परिवारों को असमान रूप से प्रभावित करते हैं, जिससे गरीबी का स्तर और असमानता बढ़ती है।
  • नीति और शासन प्रभाव
    • राजकोषीय तनाव: प्राकृतिक आपदाएँ सरकारों पर राजकोषीय तनाव डालती हैं, क्योंकि वे आपदा राहत और पुनर्प्राप्ति प्रयासों पर व्यय बढ़ा देती हैं।
      • इससे प्रायः विकास कार्यक्रमों से धन की कमी कर दी जाती है।
    • नीति सुधार: ये घटनाएँ आपदा जोखिम न्यूनीकरण नीतियों में सुधार लाती हैं और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) जैसी संस्थाओं की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करती हैं।

प्राकृतिक आपदा के प्रति भारत की संवेदनशीलता

  • भौगोलिक स्थिति
    • हिमालयी क्षेत्र: भूकंप, भूस्खलन और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) की आशंका रहती है।
    • तटीय क्षेत्र: चक्रवात, सुनामी और तूफानी लहरों से प्रभावित 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा, शहरी केंद्रों और उद्योगों को प्रभावित करती है।
    • नदी बेसिन: गंगा, ब्रह्मपुत्र और गोदावरी जैसे क्षेत्रों में बाढ़ आना, खास तौर पर मानसून के दौरान, सामान्य बात है।
  • जलवायु परिस्थितियाँ: भारत की कृषि मानसून पर बहुत अधिक निर्भर करती है, जिससे अनियमित वर्षा खाद्य और जल सुरक्षा के लिए खतरा बन जाती है।
    • कई क्षेत्र, विशेष रूप से पश्चिमी और मध्य भागों में, सूखे के कारण जल की उपलब्धता में कमी और फसल की बर्बादी से पीड़ित हैं।
  • जनसंख्या का उच्च घनत्व: खतरे की आशंका वाले क्षेत्रों में, विशेष रूप से अनौपचारिक बस्तियों में, तेजी से जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण, बाढ़, भूकंप तथा भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाता है।
    • वर्ष 2015 में, जल निकायों पर अनियंत्रित अतिक्रमण के कारण चेन्नई की जल निकासी प्रणाली बाढ़ से अवरुद्ध हो गई थी।
  • सामाजिक-आर्थिक कारक: गरीबी में रहने वाले समुदाय आपदाओं के लिए तैयार होने और उनसे उबरने के लिए कम क्षमतावान हैं, जिससे इसका प्रभाव और भी बढ़ जाता है।
    • वर्ष 2013 की उत्तराखंड बाढ़ के दौरान, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और तैयारियों के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में ग्रामीण तथा गरीब समुदाय असमान रूप से प्रभावित हुए थे।
  • वनों की कटाई और पर्यावरण क्षरण: वनों की कटाई भूस्खलन, बाढ़ और तूफानी लहरों के प्रभाव को कम करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र की क्षमता को कम करती है।
    • अनियंत्रित कृषि पद्धतियाँ और अत्यधिक चराई से मिट्टी का कटाव होता है, विशेषकर शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में।
  • औद्योगीकरण और बुनियादी ढाँचा: आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचे के बिना तेजी से विकास और आबादी वाले क्षेत्रों के लिए खतरनाक उद्योगों की निकटता प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भेद्यता को बढ़ाती है।
  • कमजोर आपदा प्रबंधन प्रणाली: भारत में विभिन्न आपदाओं के लिए कई नोडल प्राधिकरणों की उपस्थिति, जैसे कि भूकंप के लिए राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र और खनन आपदाओं के लिए खान विभाग, जिम्मेदारियों का अतिव्यापन और केंद्रीय निर्णयन केंद्र की कमी के कारण समन्वय में देरी उत्पन्न करते हैं।

भारत में आपदा प्रबंधन के लिए नीति ढाँचा

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम वर्ष 2005 में लागू किया गया, जिसने आपदा प्रबंधन के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव लाया।
    • पूर्व प्रतिक्रिया और राहत केंद्रित दृष्टिकोण से हटकर तैयारी, रोकथाम एवं योजना बनाने की ओर दृष्टिकोण में बदलाव आया।
    • संस्थागत ढाँचा
      • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority-NDMA): प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च संस्था, जो राष्ट्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन प्रयासों का समन्वय करती है।
      • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (State Disaster Management Authorities- SDMAs): मुख्यमंत्रियों की अध्यक्षता में, राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन नीतियों और योजनाओं को लागू करते हैं।
      • जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (District Disaster Management Authorities-DDMAs): जिला कलेक्टरों के नेतृत्व में; स्थानीय आपदा प्रतिक्रियाओं का प्रबंधन करना और जिला स्तर पर राष्ट्रीय एवं राज्य नीतियों को लागू करना।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति (National Policy on Disaster Management- NPDM): भारत में आपदा प्रबंधन के लिए एक व्यापक ढाँचा प्रदान करने के लिए इसे वर्ष 2009 में बनाया गया था।
    • इसका उद्देश्य राहत और प्रतिक्रिया से हटकर रोकथाम, शमन और तैयारी पर जोर देने वाली सक्रिय रणनीति पर ध्यान केंद्रित करना है।
    • विजन: एक समग्र, बहु-आपदा-उन्मुख दृष्टिकोण के माध्यम से एक सुरक्षित और आपदा-प्रतिरोधी भारत का निर्माण करना।
    • NPDM के मुख्य उद्देश्य
      • रोकथाम और तैयारी को बढ़ावा देना: समाज के सभी स्तरों पर रोकथाम, तैयारी और लचीलेपन की संस्कृति को बढ़ावा देना।
      • विकासात्मक नियोजन में एकीकरण: आपदा प्रबंधन रणनीतियों को विकासात्मक नियोजन प्रक्रिया में एकीकृत करना।
      • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: प्रभावी संचार नेटवर्क द्वारा समर्थित अत्याधुनिक पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करना।
      • सामुदायिक भागीदारी: आपदा प्रबंधन में अंतिम छोर तक संपर्क सुनिश्चित करने के लिए सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाना।
      • आपदा-प्रतिरोधी अवसंरचना: आपदा-प्रतिरोधी अवसंरचना का विकास करना और संधारणीय प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (National Disaster Management Plan- NDMP), 2016
    • वर्ष 2016 में स्थापित राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP), आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (Sendai Framework for Disaster Risk Reduction- SFDRR) के साथ संरेखित है, जो केवल प्रतिक्रिया के बजाय सक्रिय आपदा प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करती है।
    • इसे भारत की आपदा प्रबंधन रणनीति के हिस्से के रूप में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा बनाया गया था।
    • NDMP की मुख्य विशेषताएँ
      • जोखिम न्यूनीकरण और तैयारी: आपदा जोखिमों को रोकने और कम करने, सरकारी स्तरों तथा समाज में लचीलापन लाने पर जोर देता है।
      • चार प्राथमिकता वाली कार्रवाइयाँ (SFDRR के साथ संरेखित)
        • आपदा जोखिम को समझना: जोखिम जागरूकता, डेटाबेस और सामुदायिक सहभागिता में सुधार करना।
        • आपदा जोखिम शासन को मजबूत करना: राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर प्रभावी शासन संरचनाएँ बनाना।
        • लचीलेपन में निवेश: बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना और सुभेद्यताओं को कम करना।
        • आपदा की तैयारी को बढ़ाना: पूर्व चेतावनी प्रणाली, निकासी योजनाओं और क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना।
      • प्रमुख हितधारकों की भूमिका: आपदा प्रबंधन में केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों और समुदाय आधारित संगठनों को शामिल किया जाता है।
  • आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI) 
    • यह एक वैश्विक साझेदारी है, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और आपदाओं के प्रति बुनियादी ढाँचे को अधिक लचीला बनाना है।
    • CDRI को भारत द्वारा वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में लॉन्च किया गया था।
    • CDRI में शामिल: विभिन्न राष्ट्रों की सरकारें, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियाँ और कार्यक्रम, बहुपक्षीय विकास बैंक, निजी क्षेत्र और शैक्षणिक संस्थान।
    • लक्ष्य
      • सतत् विकास का समर्थन करना। 
      • बुनियादी सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना। 
      • कुशल और उचित कार्य को सक्षम करना। 
      • आर्थिक नुकसान को कम करना।
    • सचिवालय: नई दिल्ली, भारत।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (Sendai Framework for Disaster Risk Reduction- SFDRR)

  • यह आपदा जोखिमों को कम करने और लचीलापन बनाने के लिए वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाई गई एक वैश्विक रणनीति है।
  • इसे जापान के सेंडाई में आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन के दौरान स्थापित किया गया था।

SFDRR की प्रमुख प्राथमिकताएँ

  • आपदा जोखिम को समझना: बेहतर जोखिम प्रबंधन के लिए आपदा जोखिम और कमजोरियों पर डेटा एकत्र करना तथा उसका विश्लेषण करना।
  • आपदा जोखिम शासन को मजबूत बनाना: सरकार के सभी क्षेत्रों और स्तरों पर समन्वित शासन तथा जवाबदेही सुनिश्चित करना।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण में निवेश करना: आपदा जोखिमों को कम करने के लिए बुनियादी ढाँचे, शहरी नियोजन और पर्यावरण प्रबंधन को मजबूत बनाने पर ध्यान देना।
  • आपदा तैयारी को बढ़ाना: पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करना और प्रतिक्रिया तथा पुनर्प्राप्ति रणनीतियों में सुधार करना।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों को कम करने के लिए सिफारिशें

  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR): प्रशिक्षण के माध्यम से सामुदायिक सहभागिता को मजबूत करना तथा अधिक प्रभावी प्रतिक्रियाओं के लिए राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय अधिकारियों के बीच समन्वय को बढ़ाकर आपदा प्रबंधन प्रणालियों में सुधार करना।
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन: जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देना, संधारणीय जल प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का पुनर्स्थापन करना।
  • लचीला बुनियादी ढाँचा: आपदा लचीले भवनों और सड़कों का निर्माण सुनिश्चित करना तथा तटबंधों एवं जल निकासी प्रणालियों जैसे बाढ़ सुरक्षा बुनियादी ढाँचे को उन्नत करना।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली: सुधारित पूर्वानुमान प्रौद्योगिकियों में निवेश करना तथा समुदायों के भीतर क्षमता का निर्माण करना ताकि पूर्व चेतावनी प्रणाली एवं तैयारी योजनाओं का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सके।
  • बीमा और वित्तीय सुरक्षा: व्यक्तियों और व्यवसायों के लिए आपदा बीमा तक पहुँच का विस्तार करना तथा तेजी से रिकवरी के लिए आपदा बॉण्ड जैसे वित्तीय तंत्र विकसित करना।
  • पारिस्थितिकी तंत्र आधारित लचीलापन: क्षरण को कम करने के लिए वनरोपण और पुनर्वनीकरण कार्यक्रमों को लागू करना तथा आपदाओं के विरुद्ध प्राकृतिक अवरोधों के रूप में आर्द्रभूमि और मैंग्रोव की रक्षा करना।
  • सतत् शहरी विकास: जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन करने और शहरी बाढ़ को कम करने के लिए हरित अवसंरचना में निवेश करना तथा उच्च जोखिम वाले आपदा क्षेत्रों में निर्माण को रोकने के लिए जोनिंग विनियमन लागू करना।
    • बाढ़ प्रबंधन में G-Cans परियोजना टोक्यो में क्रियान्वित की जा रही है, जो बाढ़ से बचने के लिए सुरंगों के माध्यम से अधिशेष जल को बाहर निकालती है।
  • शासन और नीति को सुदृढ़ बनाना: राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय नियोजन में आपदा जोखिम न्यूनीकरण और जलवायु तन्यकता को एकीकृत करना तथा तन्यता निर्माण प्रयासों का नेतृत्व करने में स्थानीय सरकारों को सशक्त बनाने के लिए निर्णय लेने को विकेंद्रीकृत करना।
    • डेनमार्क में, राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद का 36.5% सामाजिक सेवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर खर्च किया जाता है, जिससे स्थानीय निकायों को जमीनी वास्तविकता के अनुसार समाधान तैयार करने और नवीन दृष्टिकोणों के साथ प्रयोग करने का अवसर मिलता है।

निष्कर्ष 

भारत में प्राकृतिक आपदाएँ महत्त्वपूर्ण आर्थिक, सामाजिक और विकासात्मक लागत का वहन करती हैं। इन प्रभावों को कम करने के लिए बुनियादी ढाँचे की लचीलापन, वित्तीय सुरक्षा, सामुदायिक भागीदारी और जलवायु अनुकूलन को शामिल करने वाली एक व्यापक रणनीति महत्त्वपूर्ण है।

संदर्भ

सेना दिवस, 2025 की पूर्व संध्या पर, रिलायंस जियो ने विश्व के सबसे ऊँचे एवं सबसे ठंडे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में हाई-स्पीड 4G एवं 5G सेवाओं के परिचालन की घोषणा की है।

सियाचिन ग्लेशियर 

  • ग्लेशियर का प्रकार: एक पीडमोंट ग्लेशियर।
  • लंबाई: ताजिकिस्तान में फेडचेंको ग्लेशियर के बाद विश्व के गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों में दूसरा सबसे लंबा ग्लेशियर है।
  • अवस्थिति
    • हिमालय की पूर्वी काराकोरम रेंज में स्थित है।
    • पॉइंट NJ9842 के उत्तर-पूर्व में स्थित है, जहाँ भारत एवं पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) समाप्त होती है।
    • यह लेह के उत्तर में एवं अक्साई चिन के पूर्व में स्थित है।
    • केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख का हिस्सा।
  •  जल प्रणाली
    • नुब्रा नदी, श्योक नदी की एक सहायक नदी, ग्लेशियर से निकलती है।
    • श्योक नदी सिंधु नदी प्रणाली का हिस्सा है।
  • ऊँचाई: इंदिरा कोल पश्चिम (6,115 मीटर) से शुरू होकर 3,570 मीटर तक की ऊँचाई तक है।
  • प्रशासन: ऑपरेशन मेघदूत के तहत वर्ष 1984 से भारत द्वारा नियंत्रित।

पीडमोंट ग्लेशियर

  • परिभाषा: पीडमोंट ग्लेशियर तब निर्मित होता है, जब घाटी के ग्लेशियर पहाड़ों के आधार पर अपेक्षाकृत सपाट मैदानों में फैल जाते हैं, जिससे चौड़ी, पंखे के आकार की बर्फ की संरचनाएँ बन जाती हैं।
  • भूमिका
    • मीठे जल के एक महत्त्वपूर्ण भंडार के रूप में कार्य करता है।
    • स्थानीय जलवायु एवं पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है।
    • हिमानी कटाव एवं अवसाद के माध्यम से भूदृश्यों को आकार देने में भूमिका निभाता है।
  • उदाहरण
    • भारत की काराकोरम रेंज में सियाचिन ग्लेशियर
    • अलास्का में मलास्पिना ग्लेशियर, विश्व स्तर पर सबसे बड़े पीडमोंट ग्लेशियरों में से एक है।
    • ताजिकिस्तान में फेडचेंको ग्लेशियर, मध्य एशिया में एक प्रमुख उदाहरण है।

सियाचिन का सामरिक महत्त्व

  • भौगोलिक महत्त्व
    • गिलगित-बाल्टिस्तान (PoK) पर नजर: लेह के मार्गों पर प्रभुत्व रखता है एवं पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का रणनीतिक अवलोकन प्रदान करता है।
    • शक्सगाम घाटी: पाकिस्तान द्वारा चीन को सौंपे गए क्षेत्र की निगरानी करता है।
    • काराकोरम दर्रे से निकटता: गिलगित-बाल्टिस्तान को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ने वाले काराकोरम दर्रे पर नजर रखता है।
  • रणनीतिक बफर: यह पाकिस्तान और चीन के बीच एक अवरोधक के रूप में कार्य करता है।
  • CPEC से निकटता: चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के निकट, एक प्रमुख कनेक्टिविटी पहल, जो भारत के लिए सुरक्षा चुनौतियों को बढ़ाती है।
  • पूर्वी लद्दाख में PLA की उपस्थिति: दौलत बेग ओल्डी (DBO) हवाई क्षेत्र जैसे क्षेत्रों के पास 60,000 PLA बलों की उपस्थिति रणनीतिक चिंताओं को बढ़ाती है।
  • दो-मोर्चे पर युद्ध की चुनौती: चीन एवं पाकिस्तान के बीच सैन्य संबंधों के मजबूत होने से भारत की पश्चिमी एवं उत्तरी सीमाओं पर एक साथ चुनौतियों का खतरा बढ़ जाता है।

संदर्भ 

हाल ही में डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए के मूल्य में तेज गिरावट दर्ज की गई है।

  • सितंबर 2024 से अब तक रुपया 3.2% से अधिक मूल्यहीन हो चुका है और अमेरिकी डॉलर की तुलना में 86.71 के सर्वकालिक निम्नतम स्तर पर पहुँच गया है।

RBI का निर्णय

  • हस्तक्षेप: रुपये के मूल्य में गिरावट को सहारा देने के लिए RBI विदेशी मुद्रा बाजार में कृत्रिम रूप से डॉलर की आपूर्ति बढ़ाकर विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर रहा है।
    • परिणामस्वरूप, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 700 बिलियन डॉलर से गिरकर आठ महीने के निचले स्तर 640 बिलियन डॉलर पर आ गया।
    • RBI का पारंपरिक रुख: रुपये के विनिमय मूल्य को इस तरह से प्रबंधित करना है कि इसके मूल्य में धीरे-धीरे गिरावट आए और अर्थव्यवस्था में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव न हो।

मूल्यह्रास के कारण

  • अमेरिकी डॉलर में मजबूती: अमेरिकी डॉलर अन्य वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हो रहा है, क्योंकि अमेरिका में बेहतर व्यापक आर्थिक परिदृश्य जैसे कारकों के कारण अमेरिकी व्यापार घाटे में कमी की बाजार उम्मीदें और डॉलर परिसंपत्तियों की सुरक्षित खरीद शामिल है।
  • विदेशी निवेशक बाहर निकल रहे हैं: अमेरिका द्वारा फेड दर में कटौती की उम्मीदों के कारण, अमेरिका में बॉण्ड यील्ड में वृद्धि हुई है, जिससे निवेशक आकर्षित हुए हैं, जो भारत जैसे उभरते बाजारों से बाहर निकल रहे हैं।
  • ट्रंप प्रभाव: डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव ने भी रुपये की गिरावट में योगदान देने वाली नई अमेरिकी सरकार की नीतियों के बारे में अनिश्चितता के संबंध में अटकलों को हवा दी है।
  • तेल संकट: वर्तमान भू-राजनीतिक तनावों (रूस-यूक्रेन युद्ध, मध्य पूर्व संकट, लाल सागर शिपिंग मुद्दे) के कारण तेल की कीमत में उतार-चढ़ाव।
  • भारत में उच्च मुद्रास्फीति: भारतीय रिजर्व बैंक की ढीली मौद्रिक नीति के कारण अमेरिका की तुलना में भारत में उच्च मुद्रास्फीति को पारंपरिक रूप से डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्यह्रास की दीर्घकालिक प्रवृत्ति के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।

रुपये के कमजोर होने के प्रभाव

  • आयातित मुद्रास्फीति: कमजोर रुपया महंगे आयात की ओर ले जाता है, जिसके परिणामस्वरूप देश का आयात बिल बढ़ जाता है। कमजोर रुपये का अर्थ है अधिक महंगा आयात, जिससे देश में मुद्रास्फीति बढ़ जाती है।
    • उदाहरण: भारत की आयात निर्भरता कच्चे तेल पर लगभग 88% है और तेल की उच्च कीमतों के कारण परिवहन लागत बढ़ जाती है, जिससे खाद्य पदार्थ महंगे हो जाते हैं।
  • प्रतिस्पर्द्धी निर्यात: कमजोर रुपया निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने में सहायता करेगा और सस्ते आयात विकल्पों से घरेलू निर्माताओं के हितों की रक्षा करेगा।
    • फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल और IT क्षेत्रों जैसे निर्यात केंद्रित क्षेत्रों को रुपये के संदर्भ में निर्यात राजस्व में सुधार से लाभ होगा
  • इनपुट लागत में वृद्धि: रुपये के अवमूल्यन से कच्चे माल, घटकों और अन्य इनपुट की लागत में वृद्धि होती है, जिनका मूल्य डॉलर में होता है।
  • व्यापार घाटा: उच्च आयात बिल व्यापार घाटे को और खराब करता है, जिससे ब्याज दरों पर दबाव बढ़ने से आर्थिक विकास धीमा हो जाता है।
  • महंगा कर्ज: विदेशों से धन जुटाने वाली कंपनियों की ऋण सेवा लागत बढ़ जाएगी।
  • विदेशी शिक्षा: विदेशी शिक्षा अधिक महंगी हो जाएगी। छात्रों को अब विदेशी संस्थानों द्वारा फीस के रूप में लिए गए प्रत्येक डॉलर के लिए अधिक रुपये का भुगतान करना होगा।
  • प्रेषण: अनिवासी भारतीय (NRI) जो घर वापस पैसा भेजते हैं, वे अंततः रुपये के मूल्य में अधिक भेजेंगे।

रुपए को मजबूत करने के लिए कदम

  • डॉलर बेचना: भारतीय रिजर्व बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडार से अमेरिकी डॉलर बेचकर सीधे विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर सकता है, जिससे डॉलर की आपूर्ति बढ़ेगी, इसकी माँग कम होगी और इस तरह रुपये के मुकाबले डॉलर कमजोर होगा।
  • रुपये खरीदना: रुपये खरीदकर भारतीय रिजर्व बैंक भारतीय मुद्रा की माँग बढ़ा सकता है, जिससे यह मजबूत होगी।
  • ब्याज दर समायोजन: भारतीय रिजर्व बैंक रुपये की माँग को प्रभावित करने के लिए ब्याज दरों को समायोजित कर सकता है। उच्च ब्याज दरें विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर सकती हैं, जिससे रुपये की माँग बढ़ सकती है।
  • तरलता प्रबंधन: बाजार में तरलता को नियंत्रित करके भारतीय रिजर्व बैंक विनिमय दर को प्रभावित कर सकता है। तरलता को मजबूत करने से मुद्रास्फीति के दबाव कम हो सकते हैं और रुपया मजबूत हो सकता है।

संदर्भ 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि भरण-पोषण की कार्यवाही वैवाहिक अधिकारों के पुनर्स्थापन से स्वतंत्र है।

वैवाहिक अधिकार 

  • वैवाहिक अधिकार विवाह द्वारा सृजित अधिकार हैं, अर्थात् पति या पत्नी का दूसरे जीवनसाथी के साथ रहने का अधिकार।
  • कानून इन अधिकारों को विवाह, तलाक आदि से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों में और जीवनसाथी को भरण-पोषण तथा गुजारा भत्ता देने की आवश्यकता वाले आपराधिक कानून के संबंध में मान्यता देता है।
  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 वैवाहिक अधिकारों के एक पहलू को मान्यता देती है, जो कि साथ जीवन व्यतीत करने का अधिकार है और यह पति या पत्नी को अधिकार लागू करने के लिए न्यायालय जाने की अनुमति प्रदान करती है।

वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना क्या है?

  • परिभाषा: वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना का तात्पर्य दंपत्ति द्वारा पहले प्राप्त वैवाहिक साहचर्य और दायित्वों को बहाल करना है।
    • इसका उद्देश्य विवाह की पवित्रता को बनाए रखना और आपसी संबंधों को प्रोत्साहित करना है।
  • वैवाहिक अधिकार की उत्पत्ति: वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की अवधारणा अब हिंदू पर्सनल लॉ में संहिताबद्ध है, लेकिन इसकी उत्पत्ति औपनिवेशिक है और इसकी उत्पत्ति चर्च संबंधी कानून में हुई है।
    • मुस्लिम पर्सनल लॉ के साथ-साथ तलाक अधिनियम, 1869 में भी इसी तरह के प्रावधान मौजूद हैं, जो ईसाई पारिवारिक कानून को नियंत्रित करता है।
  • कानूनी प्रावधान
    • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act-HMA) की धारा 9 द्वारा शासित।
    • यदि दूसरा पति या पत्नी बिना किसी उचित कारण के उनके समाज से अलग हो गया है, तो पीड़ित पति या पत्नी न्यायालय में याचिका दायर कर सकते हैं।
  • न्यायालय की भूमिका: न्यायालय दावों की सत्यता का आकलन करता है और क्षतिपूर्ति का आदेश जारी करने से पहले यह सुनिश्चित करता है कि कोई कानूनी बाधा न हो।
  • स्पष्टीकरण: उचित तर्क सिद्ध करने का भार उस पति या पत्नी पर होता है, जो दूसरे के समाज से अलग हो गया है।

भरण-पोषण पर सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय

  • मुख्य निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि भरण-पोषण और वैवाहिक अधिकारों के पुनर्स्थापन स्वतंत्र मुद्दे हैं।
    • पत्नी भरण-पोषण पाने की हकदार है, भले ही वह पुनर्स्थापन डिक्री का पालन न करे।
    • न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि पति को भरण-पोषण देना जारी रखना चाहिए, भले ही पत्नी पुनर्स्थापन डिक्री के तहत अपने वैवाहिक घर में लौटने से इनकार कर दे।
  • उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे मामलों का उल्लेख किया, जहाँ क्षतिपूर्ति आदेशों का पालन न करने के बावजूद भरण-पोषण दिया गया।
  • निहितार्थ: निर्णय में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि भरण-पोषण का उद्देश्य वैवाहिक विवादों के बावजूद पत्नी के लिए वित्तीय सहायता और सम्मान सुनिश्चित करना है।

धारा 9 की संवैधानिकता

  • चुनौतियाँ: वर्ष 1983 में, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने धारा 9 को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह व्यक्तिगत स्वायत्तता और गोपनीयता का उल्लंघन करती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने सरोज रानी बनाम सुदर्शन कुमार चड्ढा (1984) में इसे पलट दिया, यह कहते हुए कि यह एक सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति करती है।
  • वर्तमान बहस: एक लंबित जनहित याचिका (2019) में तर्क दिया गया है कि धारा 9 लैंगिक समानता और गोपनीयता अधिकारों का उल्लंघन करती है।

इसमें शामिल प्रमुख कानूनी प्रावधान

  • वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना: HMA की धारा 9 का उद्देश्य मतभेदों को सुलझाना और वैवाहिक बंधनों की रक्षा करना है।
  • तलाक के प्रावधान: HMA की धारा 13 व्यभिचार, क्रूरता, परित्याग, मानसिक विकार और आपसी सहमति जैसे आधारों पर विवाह विच्छेद की अनुमति देती है।
  • भरण-पोषण: CrPC की धारा 125 में उपेक्षा या खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थता के मामलों में पत्नी, बच्चों और माता-पिता को वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रावधान है।

महत्त्वपूर्ण मामले एवं कानून

  • सरोज रानी बनाम सुदर्शन कुमार चड्ढा (1984): धारा 9 को बरकरार रखा, वैवाहिक संबंधों के टूटने को रोकने में इसकी भूमिका पर जोर दिया।
  • त्रिपुरा उच्च न्यायालय का निर्णय (2017): इसमें कहा गया कि पुनर्स्थापन आदेश का पालन न करने से पत्नी स्वतः ही भरण-पोषण प्राप्त करने से अयोग्य नहीं हो जाती।
  • XYZ और ABC (2023): कर्नाटक उच्च न्यायालय ने XYZ और ABC के मामले में माना कि वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापन आदेश का पालन न करना पत्नी द्वारा तलाक का आधार है।

वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की आलोचना

  • पितृसत्तात्मक पूर्वाग्रह: आलोचकों का तर्क है कि यह पत्नी को संपत्ति मानने की धारणा को कायम रखता है और पुरानी लैंगिक भूमिकाओं को लागू करता है।
  • गोपनीयता का उल्लंघन: इस प्रावधान को व्यक्तिगत स्वायत्तता और अकेले रहने के अधिकार का उल्लंघन करने वाला माना जाता है।

निष्कर्ष

वैवाहिक अधिकारों की बहाली के इर्द-गिर्द कानूनी ढाँचा विवाह को संरक्षित रखने और व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान करने के बीच तनाव को दर्शाता है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसलों में पति-पत्नी के लिए वित्तीय सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है, चल रही बहसें आधुनिक संवैधानिक मूल्यों के साथ सामाजिक मानदंडों को संतुलित करने की आवश्यकता को उजागर करती हैं।

संदर्भ

हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 8वें वेतन आयोग की स्थापना को मंजूरी दी।

8वाँ वेतन आयोग 

  • इस कदम का उद्देश्य केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के वेतन और भत्तों में संशोधन करना है। यह 7वें वेतन आयोग (2016 में लागू) का स्थान लेने के लिए निर्धारित है।
  • नए आयोग का प्रभाव 49 लाख से अधिक कर्मचारियों और 65 लाख पेंशनभोगियों पर पड़ेगा।

वेतन आयोग 

  • परिचय: केंद्र सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों के वेतन ढाँचे की समीक्षा करने और उसमें बदलाव की सिफारिश करने के लिए प्रत्येक दस वर्ष में एक वेतन आयोग का गठन किया जाता है।
  • नोडल एजेंसी: व्यय विभाग (वित्त मंत्रालय)।
  • वेतन आयोग की सिफारिशें निम्नलिखित पर लागू होती हैं:
    • केंद्र सरकार के कर्मचारी: भारत की संचित निधि से वेतन पाने वाले।
    • सिविल और सैन्य कर्मी: सभी केंद्रीय सिविल सेवाओं और रक्षा सेवाओं के कर्मचारी।
    • पेंशनभोगी: सरकार से पेंशन पाने वाले सेवानिवृत्त कर्मचारी।
    • उल्लेखनीय है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (Public Sector Undertakings- PSU) और स्वायत्त निकायों के कर्मचारियों को इससे बाहर रखा गया है। PSU कर्मचारी अपने संगठन के लिए अलग-अलग वेतनमान का पालन करते हैं।

महंगाई भत्ता (Dearness Allowance)

  • महंगाई भत्ता (DA) एक जीवन-यापन लागत समायोजन है, जो भारतीय केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को मुद्रास्फीति की भरपाई करने और क्रय शक्ति बनाए रखने के लिए दिया जाता है।
  • मुद्रास्फीति मापदंड: DA की गणना औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index for Industrial Workers [CPI-IW]) के आधार पर की जाती है, जो मुद्रास्फीति के रुझान को मापता है।
  • DA वृद्धि प्रयोज्यता: DA वृद्धि केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के मूल वेतन पर लागू होती है, जिसमें कोई भी भत्ता या अतिरिक्त सुविधाएँ शामिल नहीं होती हैं।

  • महंगाई भत्ते के लिए फॉर्मूला: आयोग केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए महंगाई भत्ते और महंगाई राहत में संशोधन के लिए भी फॉर्मूला सुझाता है, जिसका उद्देश्य मुद्रास्फीति के प्रभाव को कम करना है।
  • वेतन आयोग में शामिल हैं:
    • अध्यक्ष: वित्त या सार्वजनिक नीति में एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी या विशेषज्ञ।
    • दो सदस्य: वित्त, लोक प्रशासन या कानून जैसे क्षेत्रों के विशेषज्ञ।
    • सहायक कर्मचारी: डेटा संग्रह और विश्लेषण में सहायता करने के लिए प्रशासनिक और अनुसंधान कर्मी।

वेतन आयोग के निर्णयों को प्रभावित करने वाले कारक 

  • आर्थिक स्थितियाँ: देश की राजकोषीय स्थिति, GDP वृद्धि, मुद्रास्फीति दर और राजस्व संग्रह आयोग की सिफारिशों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं।
  • कर्मचारियों की माँगें: यूनियन और एसोसिएशन प्रायः उच्च वेतन, बेहतर भत्ते और बेहतर कार्य स्थितियों का समर्थन करते हैं।
  • जीवनयापन की लागत: आयोग मुद्रास्फीति, आवास लागत और शिक्षा व्यय जैसे कारकों पर विचार करता है, जो सीधे कर्मचारी के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
  • वैश्विक तुलना: समान भूमिकाओं में अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ वेतन समानता को कभी-कभी ध्यान में रखा जाता है, खासकर रक्षा और विशेष पदों के लिए।
  • तकनीकी उन्नति: प्रौद्योगिकी पर बढ़ती निर्भरता और बढ़ती कौशल आवश्यकताएँ वेतन और भत्तों के संशोधन को प्रभावित करती हैं।
  • बजटीय बाधाएँ: कर्मचारी माँगों को संबोधित करते समय, आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सिफारिशें सरकार की राजकोषीय क्षमताओं के साथ संरेखित हों ताकि राजकोष पर अनावश्यक दबाव से बचा जा सके।

वेतन आयोग का प्रभाव

  • आर्थिक विकास: उच्च वेतन उपभोग में सुधार करते हैं, जिससे रियल एस्टेट, ऑटोमोबाइल और उपभोक्ता वस्तुओं जैसे क्षेत्रों में माँग बढ़ती है।
  • सरकारी व्यय: सिफारिशों के कार्यान्वयन से अक्सर राजकोषीय बोझ बढ़ जाता है, जिसके लिए सावधानीपूर्वक बजट योजना की आवश्यकता होती है।
  • कर्मचारी मनोबल: उचित और संशोधित वेतनमान कर्मचारी संतुष्टि और उत्पादकता को बढ़ाते हैं।
  • पेंशनभोगी कल्याण: संशोधित पेंशन सेवानिवृत्त लोगों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे उनकी गरिमा और जीवन की गुणवत्ता सुनिश्चित होती है।

संदर्भ

हाल ही में बंगलूरू स्थित स्टार्टअप पिक्सल ने कैलिफोर्निया के वैंडेनबर्ग स्पेस फोर्स बेस से तीन उच्च-रिजॉल्यूशन युक्त वाणिज्यिक हाइपरस्पेक्ट्रल उपग्रहों को सफलतापूर्वक लॉन्च किया।

फायरफ्लाई तारामंडल 

  • यह एक उपग्रह समूह है।
  • संरचना: इसमें छह उन्नत उपग्रह शामिल हैं, जो वाणिज्यिक हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग में सर्वोच्च रिजॉल्यूशन प्रदान करते हैं।
  • प्रक्षेपण: कैलिफोर्निया के वैंडेनबर्ग स्पेस फोर्स बेस से उपग्रह प्रक्षेपित किए गए।
  • क्षमताएँ
    • विभिन्न तरंगदैर्घ्यों में वस्तुओं के विस्तृत वर्णक्रमीय फिंगरप्रिंट का पता लगाता है।
    • पौधे के स्वास्थ्य, मृदा की गुणवत्ता और प्रदूषण के स्तर जैसी विशिष्ट विशेषताओं की पहचान करता है।
  • महत्त्व: पर्यावरण संरक्षण, आपदा प्रबंधन और परिशुद्धता कृषि में अनुप्रयोगों का समर्थन करता है।
  • वैश्विक प्रभाव: अद्वितीय इमेजिंग सटीकता के साथ डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि में क्रांतिकारी बदलाव लाने का लक्ष्य रखता है।
  • निर्णायक क्षण: ‘फायरफ्लाई’ तारामंडल भी देश के पहले वाणिज्यिक उपग्रह तारामंडल के रूप में भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक निर्णायक क्षण को चिह्नित करता है।

हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग सैटेलाइट (Hyperspectral Imaging Satellite-HSI) 

  • कार्यक्षमता: प्राथमिक रंगों (लाल, हरा, नीला) पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय कई तरंग दैर्ध्य में प्रकाश के व्यापक स्पेक्ट्रम का विश्लेषण करता है।
  • स्पेक्ट्रल फिंगरप्रिंटिंग (Spectral Fingerprinting): वस्तुओं की विस्तृत स्पेक्ट्रल फिंगरप्रिंटिंग को कैप्चर करता है, जिससे पारंपरिक इमेजिंग की तुलना में अधिक गहन विश्लेषण संभव होता है।
  • क्षमताओं में वृद्धि: वस्तुओं की पहचान करने से आगे बढ़कर उनकी विशिष्ट विशेषताओं का विश्लेषण करता है।
    • उदाहरण: जबकि पारंपरिक उपग्रह वन की पहचान करते हैं, HSI उपग्रह:
      • पेड़ों की प्रजातियों में अंतर कर सकते हैं।
      • प्रत्येक पेड़ के स्वास्थ्य का आकलन कर सकते हैं।

उपग्रह तारामंडल 

  • परिभाषा: एक समान कृत्रिम उपग्रहों का एक नेटवर्क, जिसे एकीकृत प्रणाली के रूप में संचालित करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • कार्यक्षमता
    • वैश्विक ग्राउंड स्टेशनों के साथ संचार करता है।
    • सामूहिक प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए उपग्रहों को आपस में जोड़ता है।
  • उपग्रह तारामंडल के उदाहरण
    • वनवेब (OneWeb): लगभग 700 उपग्रहों के साथ वैश्विक ब्रॉडबैंड सेवाएँ प्रदान करता है।
    • GPS नक्षत्र (USA): वैश्विक नेविगेशन और पोजिशनिंग सेवाओं को सक्षम बनाता है।
    • स्टारलिंक (Starlink): यह सबसे बड़ा उपग्रह तारामंडल है, जो 2,146 सक्रिय उपग्रहों का संचालन करता है, जिससे यह वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा उपग्रह तारामंडल बन जाता है।

संदर्भ

इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांटो वर्ष 2025 के गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि होंगे, जिसमें इंडोनेशियाई सेना की सबसे बड़ी टुकड़ी, भारत की सेना के साथ-साथ कर्तव्य पथ पर मार्च करने के लिए आएगी।

इंडोनेशिया की अवस्थिति

  • इंडोनेशिया एक द्वीपसमूह राष्ट्र है, जो मुख्य भूमि दक्षिण-पूर्व एशिया के तट पर स्थित है, जो भारतीय और प्रशांत महासागरों के बीच स्थित है। 
  • भूमध्य रेखा के दोनों ओर स्थित, यह देश उत्तरी और दक्षिणी दोनों गोलार्द्धों में स्थित है।

सीमावर्ती राष्ट्र

  • स्थल सीमाएँ: इंडोनेशिया की सीमाएँ मलेशिया, पापुआ न्यू गिनी और तिमोर-लेस्ते के साथ लगती हैं।
  • समुद्री सीमाएँ: भारत, ऑस्ट्रेलिया, पलाऊ, सिंगापुर, फिलीपींस, वियतनाम और थाईलैंड के साथ समुद्री सीमाएँ साझा करती हैं।

भूगोल

  • भौतिक विशेषताएँ
    • इसमें 17,504 से अधिक द्वीप शामिल हैं, जिनमें पाँच मुख्य द्वीप हैं: सुमात्रा, जावा, कालीमंतन (बोर्नियो), सुलावेसी और पापुआ।
    • इंडोनेशिया ‘रिंग ऑफ फायर’ का भाग है, यहाँ प्रायः भूकंप एवं ज्वालामुखी विस्फोट होते रहते हैं।
    • इसमें माउंट मेरापी और माउंट क्राकाटोआ सहित 100 से ज्यादा सक्रिय ज्वालामुखी हैं।
      • माउंट तंबोरा (8,930 फीट, 2,722 मीटर), इंडोनेशिया का एक सक्रिय स्ट्रैटोज्वालामुखी है।
  • सर्वोच्च बिंदु: पापुआ में पुंचक जया 16,502 फीट (5,030 मीटर) पर, जो विश्व स्तर पर सबसे ऊँची द्वीपीय चोटी भी है।
  • नदियाँ: महत्त्वपूर्ण नदियों में कपुआस, बारिटो, मूसी और डिगुल शामिल हैं, जो विविध पारिस्थितिकी तंत्रों का समर्थन करती हैं।
  • जलवायु: उच्च आर्द्रता और मानसूनी वर्षा के साथ उष्णकटिबंधीय जलवायु का प्रभुत्व।

विशिष्ट विशेषताएँ

  • दुनिया का सबसे बड़ा द्वीपसमूह और द्वीपीय देश, जिसका कुल क्षेत्रफल 1,904,569 वर्ग किलोमीटर है।
  • दुनिया में चौथा सबसे अधिक आबादी वाला देश, जहाँ सबसे अधिक मुस्लिम आबादी निवास करती है।
  • दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला द्वीप जावा, इंडोनेशिया का प्रशासनिक और आर्थिक केंद्र है।

इंडोनेशिया की आपदाओं के प्रति उच्च संवेदनशीलता के कारण

  • भौगोलिक स्थिति: प्रशांत महासागर के रिंग ऑफ फायर के किनारे स्थित इंडोनेशिया में प्रायः ज्वालामुखी विस्फोट, भूकंप और सुनामी आती रहती हैं।
  • विवर्तनिक गतिविधियाँ: चार विवर्तनिक प्लेटों, यूरेशियन, इंडो-ऑस्ट्रेलियाई, प्रशांत और फिलीपीन सागर के अभिसरण पर स्थित होने के कारण यहाँ उच्च भूकंपीय गतिविधियाँ होती है।
  • जलवायु: उष्णकटिबंधीय जलवायु के कारण अक्सर बाढ़, भूस्खलन और तीव्र उष्णकटिबंधीय तूफान आते हैं।
  • तटीय संवेदनशीलता: विस्तृत तटरेखाएँ समुद्र के स्तर में वृद्धि और तूफानी लहरों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाती हैं।
  • जनसंख्या घनत्व: आपदा-प्रवण क्षेत्रों में उच्च जनसंख्या घनत्व प्रभाव को बढ़ाता है।
  • वनों की कटाई: पर्यावरणीय क्षरण भूस्खलन और अचानक बाढ़ की संवेदनशीलता को बढ़ाता है।

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