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Jan 20 2025

Title Subject Paper
RBI ने वर्ष 2024-25 के लिए NBFC अपर लेयर सूची जारी की economy, GS Paper 3,
संचार साथी मोबाइल ऐप Science and Technology, GS Paper 3,
लोकपाल की सीमित उत्पादकता Polity and governance ​, GS Paper 2,
प्रधानमंत्री वाई-फाई एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (पीएम-वाणी) योजना Polity and governance ​, GS Paper 2,
भारत में एनीमिया Science and Technology, GS Paper 3,
संक्षेप में समाचार
वित्तीय खुफिया इकाई (FIU-IND) एवं राष्ट्रीय आवास बैंक (NHB) के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर Polity and governance ​, GS Paper 2,
बायोचार DDT-दूषित मिट्टी के जोखिम को कम करता है Environment and Ecology, GS Paper 3,
ब्याज समतुल्यीकरण योजना economy, GS Paper 3,
हाइड्रोक्लाइमेट व्हिपलैश Geography, GS Paper 1,
भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र Science and Technology, GS Paper 3,
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) Polity and governance ​, GS Paper 2,

संदर्भ

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वर्ष 2024-25 के लिए स्केल आधारित विनियमन (Scale Based Regulation-SBR) के तहत अपर लेयर (UL) में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) की सूची की घोषणा की है।

RBI की हालिया विज्ञप्ति से संबंधित मुख्य बिंदु

  • वर्ष 2024-25 के लिए NBFC अपर लेयर (UL) सूची में टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड, बजाज फाइनेंस लिमिटेड, LIC हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड और आदित्य बिड़ला फाइनेंस लिमिटेड शामिल हैं।

NBFC विनियमन के बारे में

  • विनियामक शक्तियाँ: RBI, RBI अधिनियम, 1934 के तहत NBFC को विनियमित करता है, जिसमें 50-50 प्रमुख व्यवसाय मानदंडों को पूरा करने वाले NBFC को पंजीकृत करने, निरीक्षण करने और पर्यवेक्षण करने की शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • 50-50 प्रमुख व्यवसाय मानदंड: वित्तीय गतिविधियाँ कुल परिसंपत्तियों और सकल आय का 50% से अधिक हिस्सा रखती हैं।
  • NBFC पंजीकरण के लिए आवश्यकताएँ
    • कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत पंजीकृत कंपनी होनी चाहिए।
    • न्यूनतम शुद्ध स्वामित्व निधि (Net Owned Fund-NOF) में ₹200 लाख की राशि होनी चाहिए।

स्केल-आधारित विनियमन (SBR) फ्रेमवर्क 

  • भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वर्ष 2021 में प्रस्तुत किया गया स्केल-आधारित विनियमन (SBR) ढाँचा, एक विनियामक ढाँचा है, जिसे गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) को उनकी परिसंपत्ति के आकार एवं स्कोरिंग मानदंडों के आधार पर वर्गीकृत करने के लिए डिजाइन किया गया है।

  • इसका उद्देश्य जोखिम प्रबंधन को मजबूत करना, आनुपातिक विनियमन लागू करना और NBFC क्षेत्र में प्रणालीगत जोखिमों को संबोधित करना है।
  • SBR फ्रेमवर्क के उद्देश्य
    • प्रणालीगत जोखिमों का शमन: वित्तीय संक्रमण के प्रभाव को कम करना और समग्र वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा करना।
    • आनुपातिक विनियमन: यह सुनिश्चित करना कि विनियामक तीव्रता NBFC संचालन के पैमाने और जटिलता के अनुरूप हो।
    • उन्नत जोखिम प्रबंधन: NBFC के परिचालन लचीलेपन और शासन मानकों में सुधार करना।
  • NBFC का वर्गीकरण
    • बेस लेयर (NBFC-BL): इसमें प्रणाली के लिए सीमित जोखिम वाली छोटी NBFC शामिल हैं।
    • मिडिल लेयर (NBFC-ML): इसमें मध्यम प्रणालीगत महत्त्व वाली बड़ी इकाइयाँ शामिल हैं।
    • अपर लेयर (NBFC-UL): स्कोरिंग पद्धति और प्रणालीगत महत्त्व के आधार पर उच्च जोखिम वाली NBFC।
    • टॉप लेयर (NBFC-TL): असाधारण जोखिम वाली इकाइयों के लिए, शायद ही कभी नियंत्रण किया जाता है।
  • उन्नत विनियमन की विशेषताएँ
    • NBFC-UL कम-से-कम पाँच वर्ष के लिए कठोर विनियामक आवश्यकताओं के अधीन होती है। 
    • इसमें अनुपालन, निगरानी और शासन मानदंडों में वृद्धि शामिल है।

बैंकों और NBFC के बीच अंतर

मापक

बैंक

NBFCs

डिमांड डिपॉजिट्स (Demand Deposits) माँग जमा स्वीकार कर सकते हैं। माँग जमा स्वीकार नहीं की जा सकती है। 
भुगतान और निपटान प्रणाली (Payment and Settlement System-PSS) PSS का हिस्सा; चेक जारी कर सकता है। PSS का हिस्सा नहीं; चेक जारी नहीं कर सकते हैं। 
जमा बीमा (Deposit Insurance) डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन द्वारा बीमाकृत जमाराशियाँ। कोई जमा बीमा सुविधा उपलब्ध नहीं।
आरक्षित अनुपात (CRR, SLR) RBI द्वारा निर्धारित आरक्षित अनुपात बनाए रखना होगा। आरक्षित अनुपात बनाए रखना आवश्यक नहीं।
विनियमन अधिनियम बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत विनियमित। कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत विनियमित।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए 74% तक FDI की अनुमति (स्वचालित मार्ग के तहत 49%)। 100% FDI की अनुमति।

संदर्भ

दूरसंचार विभाग (DoT) ने संदिग्ध धोखाधड़ी वाले संचार की रिपोर्टिंग को कारगर बनाने के लिए संचार साथी मोबाइल ऐप का अनावरण किया है।

संचार साथी मोबाइल ऐप 

  • संचार साथी मोबाइल ऐप एक उपयोगकर्ता-अनुकूल प्लेटफॉर्म है, जिसे दूरसंचार सुरक्षा को मजबूत करने और नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • इसे संचार मंत्रालय के तहत दूरसंचार विभाग द्वारा लॉन्च किया गया है।
  • यह एंड्रॉइड और iOS दोनों प्लेटफॉर्म के लिए उपलब्ध है।
  • यह उपयोगकर्ताओं को अपने दूरसंचार संसाधनों को सुरक्षित रखने और दूरसंचार धोखाधड़ी से निपटने के लिए महत्त्वपूर्ण उपकरण प्रदान करता है।

प्रमुख विशेषताएँ

  • चक्षु-संदिग्ध धोखाधड़ी संचार की रिपोर्टिंग (Suspected Fraud Communications-SFC): उपयोगकर्ता ऐप का उपयोग करके और सीधे मोबाइल फोन लॉग से संदिग्ध कॉल और SMS की रिपोर्ट कर सकते हैं।
  • अपने नाम पर मोबाइल कनेक्शन जानें (Know Mobile Connections in Your Name): नागरिक अपने नाम पर जारी किए गए सभी मोबाइल कनेक्शनों की पहचान और प्रबंधन कर सकते हैं, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि कोई अनधिकृत उपयोग न हो।
  • अपने खोए/चोरी हुए मोबाइल हैंडसेट को ब्लॉक करना (Blocking Your Lost/ Stolen Mobile Handset): खोए या चोरी हुए मोबाइल डिवाइस को तुरंत ब्लॉक, ट्रेस और रिकवर किया जा सकता है।
  • मोबाइल हैंडसेट की प्रामाणिकता जानें (Know Mobile Handset Genuineness): ऐप मोबाइल हैंडसेट की प्रामाणिकता को सत्यापित करने का एक आसान तरीका प्रदान करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उपयोगकर्ता असली डिवाइस खरीदें।

संदर्भ

हाल ही में भारत के पहले भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल ने अपनी स्थापना के बाद से अपनी सीमित उत्पादकता को दर्शाने वाले आँकड़े उजागर किए।

लोकपाल 

  • लोकपाल एक राष्ट्रीय स्तर की भ्रष्टाचार विरोधी संस्था है, जिसकी स्थापना सरकारी अधिकारियों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच और उन पर मुकदमा चलाने के लिए की गई है।
  • यह मंत्रियों और सरकारी कर्मचारियों के बीच जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करता है।
  • स्थापना: वर्ष 2013 में पारित लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम वर्ष 2014 में लागू हुआ।
  • हालाँकि, पहले लोकपाल, न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष को लगभग पाँच वर्षों की देरी के बाद वर्ष 2019 में ही नियुक्त किया गया था।
    • अधिनियम राज्य स्तर पर लोकायुक्तों की स्थापना को अनिवार्य बनाता है।

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: इसकी स्थापना विभिन्न समितियों और आयोगों, जैसे कि प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (1966) और द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2005) की सिफारिशों के बाद हुई है।

लोकपाल की संरचना

  • लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य होते हैं, जिनमें से कम-से-कम 50% न्यायिक सदस्य होते हैं।
  • सदस्यों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिलाओं के प्रतिनिधि शामिल होने चाहिए।
  • चयन समिति में प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), लोकसभा अध्यक्ष, विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश या नामित न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होते हैं।

लोकपाल की कम उत्पादकता

  • सीमित मामलों को सँभाला गया
    • इसकी स्थापना के बाद से केवल 24 जाँचों का आदेश दिया गया और छह अभियोजन प्रतिबंध दिए गए।
    • 90% से अधिक शिकायतें गलत प्रारूप या प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं के अनुपालन की कमी के कारण खारिज कर दी गईं।
  • प्राप्त शिकायतें
    • अप्रैल से दिसंबर 2024 तक 226 शिकायतें दर्ज की गईं।
    • 3% शिकायतें प्रधानमंत्री या केंद्रीय मंत्रियों के विरुद्ध, 21% शिकायतें ग्रुप A-D केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ और 41% शिकायतें राज्य के अधिकारियों सहित “अन्य” के विरुद्ध थीं।

लोकपाल की कम उत्पादकता के कारक

  • विलंबित नियुक्ति: पहला लोकपाल अधिनियम के क्रियान्वयन के पाँच वर्ष बाद नियुक्त किया गया था।
  • अन्य एजेंसियों पर निर्भरता: आंतरिक जाँच तंत्र की अनुपस्थिति के कारण यह जाँच, केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission-CVC) और केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) पर निर्भर करती है।
  • संरचनात्मक सीमाएँ: वित्तीय और प्रशासनिक स्वतंत्रता की अनुपस्थिति इसकी कार्यात्मक प्रभावकारिता को कम करती है।
    • शिकायतों की विषय-वस्तु की अपेक्षा उनके प्रारूप पर अधिक जोर देने से अस्वीकृति दर अधिक हो जाती है।
  • विधायी चुनौतियाँ: लोक सेवकों के विरुद्ध स्वतंत्र रूप से जाँच शुरू करने की शक्ति का अभाव।
    • शिकायत दर्ज करने के लिए 7 वर्ष की अवधि और झूठी शिकायतों के लिए कठोर दंड जैसी सीमाएँ रिपोर्टिंग को रोकती हैं।
  • अपर्याप्त समन्वय: राज्य लोकायुक्तों और अन्य विकेंद्रीकृत भ्रष्टाचार विरोधी निकायों के साथ कमजोर सहयोग।

आगे की राह

  • कार्यात्मक स्वायत्तता को बढ़ावा देना: अन्य एजेंसियों पर निर्भरता कम करने के लिए लोकपाल की वित्तीय, प्रशासनिक और परिचालन स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
  • शिकायत प्रक्रियाओं को सरल बनाना: शिकायत प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को सरल बनाना ताकि प्रारूप के बजाय विषय-वस्तु पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।
  • रिक्तियों को भरना: जाँच निदेशक और अभियोजन निदेशक जैसे प्रमुख कर्मियों की नियुक्ति में तेजी लाना।
  • राज्य समन्वय को मजबूत बनाना: देश भर में भ्रष्टाचार विरोधी तंत्र को सुसंगत बनाने के लिए राज्य लोकायुक्त अधिनियमों को लोकपाल अधिनियम के साथ संरेखित करना।
  • सार्वजनिक जागरूकता: भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए लोकपाल की भूमिका और प्रक्रियाओं के बारे में नागरिकों को शिक्षित करने के लिए अभियान संचालित करना।
  • तकनीकी एकीकरण: बेहतर शिकायत ट्रैकिंग, जाँच निगरानी और परिचालन पारदर्शिता के लिए डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाना।

संदर्भ

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India-TRAI) ने प्रधानमंत्री वाई-फाई एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (PM-WANI) योजना  के तहत वाई-फाई सेवा प्रदाताओं के लिए इंटरनेट शुल्क को खुदरा ब्रॉडबैंड दर से दोगुना करने की सिफारिश की है।

PM-WANI योजना 

  • लॉन्च वर्ष: दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा वर्ष 2020 में लॉन्च किया गया।
  • उद्देश्य: सार्वजनिक वाई-फाई हॉटस्पॉट के प्रसार को बढ़ाना और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत डिजिटल संचार बुनियादी ढाँचे का निर्माण सम्मिलित है।
  • स्थानीय व्यवसायों को बिना लाइसेंस या शुल्क के वाई-फाई प्रदाता बनने की अनुमति देकर व्यापार करने में सुगमता को बढ़ावा देता है।

PM-WANI पारिस्थितिकी तंत्र घटक

  • पब्लिक डेटा ऑफिस (PDO): PDO आमतौर पर गृहिणियाँ, चाय बेचने वाले, फोटोकॉपी की दुकान के मालिक और सड़क किनारे खाने-पीने की दुकानें लगाने वाले होते हैं, जो 5 से 100 रुपये के सस्ते मूल्य वर्ग की सेवाएँ प्रदान करते हैं।
    • एक औसत PDO 700-1000 रुपये प्रति माह कमाता है और नई अधिकतम कीमत पर व्यवसाय को बनाए रखने में सक्षम होगा।
      • वे इंटरनेट एक्सेस प्रदान करने के लिए वाई-फाई हॉटस्पॉट स्थापित करते हैं।
      • ऑपरेशन के लिए DoT से कोई लाइसेंस शुल्क की आवश्यकता नहीं है।
  • पब्लिक डेटा ऑफिस एग्रीगेटर (Public Data Office Aggregator- PDOA): डेटा प्लान खरीदने और उपयोग की निगरानी के लिए प्राधिकरण, लेखा सेवाएँ और उपयोगकर्ता इंटरफेस प्रदान करता है।
  • ऐप प्रदाता: उपयोगकर्ताओं को निर्बाध इंटरनेट एक्सेस के लिए आस-पास के PM-WANI हॉटस्पॉट का पता लगाने और उनसे जुड़ने में मदद करने के लिए एप्लिकेशन विकसित करता है।
  • केंद्रीय रजिस्ट्री
    • टेलीमैटिक्स विकास केंद्र (C-DoT) द्वारा प्रबंधित।
    • ऐप प्रदाताओं, PDOs और PDOAs का रिकॉर्ड रखता है।

PM-WANI इंटरनेट तक पहुँच

  • उपलब्ध नेटवर्क देखने के लिए कोई प्रासंगिक ऐप डाउनलोड करना।
  • सूची से कोई कनेक्शन चुनना और इंटरनेट एक्सेस करने के लिए भुगतान करना।
  • उपयोगकर्ता तब तक नेटवर्क एक्सेस कर सकता है, जब तक उसका बैलेंस समाप्त न हो जाए।

PM-WANI योजना के लिए इंटरनेट शुल्क सीमा तय करने के लाभ

  • किफायती कनेक्टिविटी: ब्रॉडबैंड की लागत को खुदरा ब्रॉडबैंड दर से दोगुनी रखने से पब्लिक डेटा ऑफिस (PDO) कम दरों (₹500-₹600/माह) पर कनेक्टिविटी प्राप्त कर सकते हैं।
  • PDO व्यवहार्यता को बढ़ावा देता है: महंगे लीज्ड लाइन कनेक्शन (40-80 गुना महंगे) पर निर्भरता कम करता है, जिससे छोटे पैमाने के PDO ऑपरेटरों के लिए लाभप्रदता में सुधार होता है।
  • सार्वजनिक भागीदारी को प्रोत्साहित करता है: किफायती परिचालन लागत की पेशकश करके अधिक गृहिणियों, चाय विक्रेताओं और छोटे व्यवसायों को PDO बनने के लिए आकर्षित करता है।
  • ग्रामीण कनेक्टिविटी विस्तार: कम सेवा वाले ग्रामीण क्षेत्रों में किफायती सार्वजनिक वाई-फाई की स्थापना को बढ़ावा देकर डिजिटल विभाजन को पाटने में मदद करता है।
  • सामाजिक और आर्थिक प्रभाव: निम्न आय वर्ग की आबादी के लिए न्यूनतम लागत पर शिक्षा, काम और संचार के लिए डिजिटल पहुँच को बढ़ाता है।

संदर्भ

हालिया शोध ने इस पारंपरिक समझ को चुनौती दी है कि भारत में एनीमिया का प्राथमिक कारण आयरन की कमी है तथा इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए विविध नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता का सुझाव दिया है।

एनीमिया

  • एनीमिया एक ऐसी चिकित्सीय स्थिति है, जिसमें रक्त में लाल रुधिर कोशिकाओं (Red Blood Cells-RBC) या हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य से कम होता है, जिससे शरीर के ऊतकों को ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है।
  • एनीमिया के मुख्य लक्षण: थकान, कमजोरी, पीली त्वचा और साँस लेने में समस्या।
  • एनीमिया के प्रकार
    • लौह-अल्पताजन्य एनीमिया (Iron-Deficiency Anaemia): हीमोग्लोबिन के उत्पादन के लिए आवश्यक आयरन के अपर्याप्त स्तर के कारण होता है।
      • आमतौर पर यह खराब आहार, रक्त की कमी या अवशोषण संबंधी समस्याओं के कारण होता है।
    • विटामिन-12 की कमी से होने वाला एनीमिया: विटामिन B12 या फोलेट की कमी के कारण होता है, जो RBC उत्पादन के लिए आवश्यक है।
    • अप्लास्टिक एनीमिया (Aplastic Anaemia): तब होता है, जब अस्थि मज्जा पर्याप्त RBC का उत्पादन करने में विफल हो जाती है।
    • सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anaemia): एक आनुवंशिक स्थिति, जिसमें RBC असामान्य रूप से आकार की होती हैं, जिससे अवरोध एवं ऑक्सीजन का प्रवाह कम हो जाता है।
    • हेमोलिटिक एनीमिया (Hemolytic Anaemia): RBC के समय से पहले नष्ट होने के परिणामस्वरूप होता है।
    • थैलेसीमिया (Thalassemia): एक आनुवंशिक विकार, जो असामान्य हीमोग्लोबिन उत्पादन का कारण बनता है।
    • क्रोनिक डिजीज का एनीमिया (Anaemia of Chronic Disease): कैंसर या किडनी रोग जैसी दीर्घकालिक बीमारियों से जुड़ा हुआ है।

भारत में एनीमिया की स्थिति

  • प्रचलित रुझान 
    • प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं में एनीमिया का प्रसार 53.2% (NFHS-4) से बढ़कर 57.2% (NFHS-5) हो गया।
    • बच्चों में, इसी अवधि के दौरान प्रसार 58.6% से बढ़कर 67.1% हो गया।
    • हाल के अध्ययन के निष्कर्ष NFHS डेटा की तुलना में एनीमिया के प्रसार को कम दर्शाते हैं:
      • महिलाएँ (15-49 वर्ष): 41.1% (अध्ययन) बनाम 60.8% (NFHS-5)।
      • किशोर लड़कियाँ (15-19 वर्ष): 44.3% बनाम 62.6%।
      • किशोर लड़के: 24.3% बनाम 31.8%।
  • आयरन की कमी: एनीमिया के केवल 9% मामले आयरन की कमी के कारण थे, जबकि 22% अज्ञात कारणों से थे। 
  • भौगोलिक भिन्नता: असम जैसे राज्यों में एनीमिया का प्रचलन अधिक (50%-60%) है, लेकिन आयरन की कमी कम (18%) है।

एनीमिया वृद्धि में योगदान देने वाले कारक

  • पोषण संबंधी कमियाँ: विटामिन B12, फोलेट और अन्य एरिथ्रोपोएटिक पोषक तत्त्वों की कमी।
    • एरिथ्रोपोएटिक पोषक तत्त्व आवश्यक पोषक तत्त्व हैं, जो हीमोग्लोबिन संश्लेषण और एरिथ्रोपोएसिस में सहायता करके लाल रुधिर कोशिका उत्पादन का समर्थन करते हैं।
  • पर्यावरणीय कारक: वायु प्रदूषण और अस्वच्छ वातावरण एनीमिया के प्रसार को बढ़ाते हैं।
  • रक्त संग्रह विधियाँ: केशिका रक्त के नमूने (NFHS में उपयोग किए जाते हैं) शरीर के तरल पदार्थों के साथ संदूषण के कारण एनीमिया के प्रसार को बढ़ा-चढ़ाकर बता सकते हैं।
  • आहार पैटर्न: अपर्याप्त आहार विविधता पोषक तत्त्वों के अवशोषण को सीमित करती है।

6x6x6 रणनीति AMB के अंतर्गत

  • छह लाभार्थी समूह:
    • बच्चे (6-59 महीने)
    • बच्चे (5-10 वर्ष)
    • किशोरावस्था (10-19 वर्ष)
    • गर्भवती महिलाएँ
    • स्तनपान कराने वाली माताएँ
    • प्रजनन आयु वर्ग की महिलाएँ (20-49 वर्ष)।
  • हस्तक्षेप वाले छह कारक 
    • रोगनिरोधी आयरन और फोलिक एसिड अनुपूरण
    • अर्द्ध-वार्षिक कृमि मुक्ति
    • व्यवहार परिवर्तन संचार अभियान
    • एनीमिया के लिए परीक्षण और उपचार
    • आयरन-रिच खाद्य पदार्थों का प्रावधान
    • एनीमिया के गैर-पोषण संबंधी कारणों का समाधान।
  • छह संस्थागत तंत्र
    • विभागों का अभिसरण
    • आपूर्ति शृंखला प्रबंधन
    • स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का प्रशिक्षण
    • निगरानी और मूल्यांकन रूपरेखाएँ
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियान
    • समुदाय की सहभागिता और अपनाना।

एनीमिया से निपटने के लिए सरकारी पहल

  • एनीमिया मुक्त भारत (Anaemia Mukt Bharat-AMB) रणनीति (2018): 6x6x6 रणनीति के माध्यम से छह आयु समूहों में एनीमिया की व्यापकता को कम करना, जिसमें छह हस्तक्षेप, छह लाभार्थी समूह और छह संस्थागत तंत्र शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (National Deworming Day-NDD) (2015): बच्चों और किशोरों (1-19 वर्ष) के लिए द्विवार्षिक सामूहिक कृमि मुक्ति अभियान, जिससे कृमि संक्रमण को कम किया जा सके, जो एनीमिया में योगदान देता है।
  • राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन (2023): जनजातीय क्षेत्रों में स्क्रीनिंग, निदान और प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए वर्ष 2047 तक सिकल सेल रोग को सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में समाप्त करना।
  • IFA सप्लीमेंट्स के लिए आपूर्ति शृंखलाओं को मजबूत करना: स्वास्थ्य केंद्रों में आयरन और फोलिक एसिड सप्लीमेंट्स की निर्बाध उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  • राष्ट्रीय उत्कृष्टता और एनीमिया नियंत्रण पर उन्नत अनुसंधान केंद्र (National Centre of Excellence and Advanced Research on Anaemia Control- NCEAR-A) (2018): स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए क्षमता निर्माण को बढ़ाना और प्रशिक्षण टूलकिट विकसित करना।

एनीमिया से निपटने में चुनौतियाँ

  • एकल-केंद्रित हस्तक्षेप: मुख्य रूप से लौह पूरकता पर केंद्रित नीतियाँ बहुक्रियात्मक एनीमिया को संबोधित करने के लिए अपर्याप्त हैं।
  • आहार की सुलभता: उच्च गुणवत्ता वाले, पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ, आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से के लिए अप्राप्य बने हुए हैं।
  • नीति कार्यान्वयन: पोषण-केंद्रित हस्तक्षेपों और व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों के बीच एकीकरण का अभाव।
  • डेटा संग्रह: कम सटीक रक्त संग्रह विधियों (केशिका नमूने) पर निर्भरता व्यापकता अनुमानों को प्रभावित करती है।

आगे की राह

  • विविध पोषण हस्तक्षेप: पोषक तत्त्वों के अवशोषण में सुधार के लिए फलों, दूध और सब्जियों के साथ संतुलित आहार को बढ़ावा देना।
  • बेहतर डेटा संग्रह: सटीक एनीमिया अनुमान के लिए WHO द्वारा अनुशंसित शिरापरक रक्त के नमूने में संक्रमण।
  • उन्नत सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल: आहार विविधता और व्यवहार परिवर्तन संचार पर ध्यान केंद्रित करते हुए एनीमिया मुक्त भारत का विस्तार करना।
  • आर्थिक पहुँच: व्यापक जनसंख्या पहुँच सुनिश्चित करने के लिए पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों पर सब्सिडी देना।
  • समग्र हस्तक्षेप: आयरन सप्लीमेंटेशन को अन्य उपायों जैसेकि- डीवर्मिंग, स्टेपल फोर्टिफिकेशन और ‘पॉइंट-ऑफ-केयर’ उपचार के साथ मिश्रित करना।

ब्लू ओरिजिन का नया ग्लेन रॉकेट

ब्लू ओरिजिन ने अपनी पहली परीक्षण उड़ान में अपना न्यू ग्लेन रॉकेट लॉन्च किया है, जो पृथ्वी से हजारों मील ऊपर कक्षा में एक प्रोटोटाइप उपग्रह ले जाएगा।

न्यू ग्लेन रॉकेट 

  • न्यू ग्लेन रॉकेट ब्लू ओरिजिन द्वारा विकसित एक हेवी-लिफ्ट लॉन्च व्हीकल है।
  • रॉकेट का नाम जॉन ग्लेन के नाम पर रखा गया है, जो लगभग 60 वर्ष पहले पृथ्वी की कक्षा में जाने वाले पहले अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री थे।
  • विशिष्टताएँ: यह लगभग 320 फीट ऊँचा, दो स्टेज इंजन वाला रॉकेट है।
    • पहला चरण:  पुन: प्रयोज्य इंजन है एवं सात BE-4 इंजनों द्वारा संचालित है, जो तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) ईंधन, ऑक्सीजन युक्त चरणबद्ध दहन इंजन हैं। 
    • न्यू ग्लेन का दूसरा चरण दो BE-3U इंजनों द्वारा संचालित है, जो तरल हाइड्रोजन एवं तरल ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।
  • पुन: प्रयोज्यता: कम-से-कम 25 उड़ानों के लिए पुन: उपयोग करने के लिए डिजाइन किया गया, जिससे लॉन्च लागत काफी कम हो जाती है।
  • न्यू ग्लेन से फाल्कन-9 को चुनौती देने की संभावना है, जो स्पेस-X का आंशिक रूप से पुन: प्रयोज्य लॉन्च व्हीकल भी है।

ब्लू ओरिजिन

  • ब्लू ओरिजिन एक निजी एयरोस्पेस एवं अंतरिक्ष अन्वेषण कंपनी है, जिसकी स्थापना वर्ष 2000 में अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस ने की थी।

QS वर्ल्ड फ्यूचर स्किल्स इंडेक्स-2025

हाल ही में QS वर्ल्ड फ्यूचर स्किल्स इंडेक्स- 2025 जारी किया गया है।

QS वर्ल्ड फ्यूचर स्किल्स इंडेक्स 

  • सूचकांक भविष्य की नौकरियों में आवश्यक कौशल के लिए भर्ती करने के लिए देश की तैयारी का मूल्यांकन करता है। 
  • जारीकर्ता: इसे लंदन स्थित क्वाक्वेरेली साइमंड्स (Quacquarelli Symonds- QS) द्वारा विकसित किया गया है।
  • मूल्यांकन: ‘कार्य के भविष्य’ सूचक का मूल्यांकन मुख्यतः माँग पक्ष, अर्थात् रोजगार पोस्टिंग के आधार पर किया गया है।
  • मापन: कार्य स्कोर का भविष्य यह मापन करता है कि पारंपरिक कौशल समूह की तुलना में भविष्य-केंद्रित कौशल (जैसे डिजिटल, AI एवं हरित दक्षताएँ) ने वैश्विक नौकरी विज्ञापनों में किस स्तर तक प्रवेश किया है।
    • यह स्कोर विश्व के  280 मिलियन से अधिक रोजगार पोस्टिंग के विश्लेषण से लिया गया है।
  • मापदंड: रिपोर्ट 4 मुख्य मापदंडों का मापन करती  है जैसे,
    • कौशल योग्यता, शैक्षणिक तत्परता, कार्य का भविष्य, आर्थिक परिवर्तन।

रिपोर्ट की मुख्य बिंदु

  • भारत की समग्र रैंकिंग इसे ‘भविष्य के कौशल दावेदार’ के रूप में सभी संकेतकों में 25वें स्थान पर रखती है।
    • शीर्ष दस में शामिल अन्य देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया एवं कनाडा जैसे देशों को “भविष्य के कौशल मार्गदर्शक” के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • भारत का प्रदर्शन
    • भविष्य की नौकरियाँ: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) एवं हरित कौशल सहित भविष्य की नौकरियों के लिए तैयारियों के मामले में भारत संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है।
    • कौशल योग्यता: भारत ने 100 में से 59.1 अंक हासिल किए एवं शीर्ष 30 देशों में इसका प्रदर्शन सबसे खराब है। 
      • खराब प्रदर्शन का कारण यह है कि भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली नियोक्ताओं की बढ़ती आवश्यकताओं के साथ तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष कर रही है।
    • आर्थिक परिवर्तन: भारत को इस पैरामीटर पर 58.3 अंक प्राप्त हुए है:
      • यह विकास, कार्यबल दक्षता एवं उच्च शिक्षा की विकसित होती भूमिका की परस्पर क्रिया से प्रेरित है। 
      • चुनौतियाँ: निवेश और नवाचार क्षमता में अंतराल हैं, जो चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं, जो दीर्घकालिक विकास को धीमा कर सकते हैं।

संदर्भ

वित्तीय खुफिया इकाई (FIU-IND) एवं राष्ट्रीय आवास बैंक (NHB) ने धनशोधन निवारण अधिनियम तथा नियमों की आवश्यकताओं के प्रभावी कार्यान्वयन के प्रयासों के तहत एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।

धनशोधन निवारण अधिनियम (PMLA) 

  • मनी लॉण्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) भारत में एक कानून है, जिसे अनुच्छेद-253 के तहत मनी लॉण्ड्रिंग को रोकने के लिए वर्ष 2002 में अधिनियमित किया गया था।
    • इसमें मनी लॉण्ड्रिंग से प्राप्त संपत्ति को जब्त करने का भी प्रावधान है। 
  • उद्देश्य: PMLA अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के कार्यान्वयन एवं मनी लॉण्ड्रिंग की समस्या के समाधान पर वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) की सिफारिशों को प्रभावी बनाने का अधिकार देता है। 
  • प्राधिकरण: FIU-IND के निदेशक एवं निदेशक (प्रवर्तन) के पास PMLA को लागू करने की शक्ति है।
  • निर्धारित दायित्व: अधिनियम बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों एवं मध्यस्थों को अपने सभी ग्राहकों तथा समस्त लेन-देन की पहचान के रिकॉर्ड को सत्यापित करने एवं बनाए रखने के लिए बाध्य करता है।
  • विशेष न्यायालय: PMLA के तहत, विशेष न्यायालयों का उपयोग PMLA के तहत दंडनीय अपराधों की सुनवाई के लिए किया जाता है एवं जिन अपराधों के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 के तहत आरोपियों पर मुकदमे में आरोप लगाए जा सकते हैं।
  • जमानत प्रावधान: PMLA की धारा 45 के तहत, धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत जमानत की शर्तें निर्दिष्ट की गई हैं।
    • आरोपियों को यह सिद्ध करना होगा कि उनके विरुद्ध प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं है।
    • अभियुक्तों को यह सिद्ध करना होगा कि जमानत पर रहने के दौरान उनके द्वारा कोई अन्य अपराध करने की संभावना नहीं है। 
    • सरकारी अधिवक्ता को जमानत अर्जी का विरोध करने का अवसर दिया जाना चाहिए। 
    • न्यायालय को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि अभियुक्त दोषी नहीं है।

वित्तीय खुफिया इकाई – भारत (FIU-IND) 

  • इसे वर्ष 2004 में केंद्रीय राष्ट्रीय एजेंसी के रूप में स्थापित किया गया था, जो संदिग्ध वित्तीय लेन-देन से संबंधित जानकारी प्राप्त करने, प्रसंस्करण, विश्लेषण एवं प्रसार के लिए उत्तरदायी थी।
  • रिपोर्टिंग प्राधिकरण: FIU-IND एक स्वतंत्र निकाय है, जो सीधे वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली आर्थिक खुफिया परिषद (EIC) को रिपोर्ट करता है।
  • कार्य 
    • सूचना का संग्रह: FIU नकद लेन-देन रिपोर्ट (CTRs), गैर-लाभकारी संगठन लेनदेन रिपोर्ट (NTR), क्रॉस बॉर्डर वायर ट्रांसफर रिपोर्ट (CBWTRs), अचल संपत्ति की खरीद या बिक्री पर रिपोर्ट (IPRs) तथा विभिन्न रिपोर्टिंग संस्थाओं से संदिग्ध लेन-देन रिपोर्ट (STRs)प्राप्त करने के लिए केंद्रीय बिंदु है। 
    • सूचना साझाकरण: राष्ट्रीय खुफिया/कानून प्रवर्तन एजेंसियों, राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरणों एवं विदेशी वित्तीय खुफिया इकाइयों के साथ जानकारी साझा करना।
    • केंद्रीय भंडार के रूप में कार्य करना: रिपोर्टिंग संस्थाओं से प्राप्त रिपोर्टों के आधार पर राष्ट्रीय डेटा बेस स्थापित करना।
    • समन्वय: मनी लॉण्ड्रिंग एवं संबंधित अपराधों से निपटने के लिए एक प्रभावी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा वैश्विक नेटवर्क के माध्यम से वित्तीय खुफिया जानकारी के संग्रह एवं साझाकरण को समन्वयित तथा मजबूत करना।
    • अनुसंधान एवं विश्लेषण: मनी लॉण्ड्रिंग प्रवृत्तियों, टाइपोलॉजी एवं विकास पर रणनीतिक प्रमुख क्षेत्रों की निगरानी तथा पहचान करना।

राष्ट्रीय आवास बैंक (NHB)

  • NHB भारत में आवास वित्त कंपनियों के समग्र विनियमन एवं लाइसेंसिंग के लिए एक नियामक निकाय है। 
  • NHB आवास के लिए एक शीर्ष वित्तीय संस्थान है एवं इसकी स्थापना वर्ष 1987 में संसद के एक अधिनियम द्वारा की गई थी। 
  • नोडल मंत्रालय: NHB वित्त मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में है।
  • उद्देश्य: NHB का लक्ष्य एक मजबूत, स्वस्थ, लागत प्रभावी एवं व्यवहार्य आवास वित्त प्रणाली का निर्माण करना है।
  • पर्यवेक्षण: हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (HFCs) को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विनियमित किया जाता है, जबकि NHB के पास हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (HFCs) के पंजीकरण एवं पर्यवेक्षण की शक्ति है।
  • कार्य
    • हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (HFCs) के संबंध में पर्यवेक्षण एवं शिकायत निवारण। 
    • ऑन-साइट एवं ऑफ-साइट तंत्र के माध्यम से HFC की निगरानी तथा नियामकों के साथ समन्वय।
    • HFCs का वित्तपोषण एवं संवर्द्धन तथा विकास।

संदर्भ

स्वीडन के चाल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं द्वारा DDT को बायोचार के साथ जोड़कर पारिस्थितिकी जोखिमों का प्रबंधन करने की एक नई विधि विकसित की गई है।

अनुसंधान के बारे में

  • यह दक्षिणी स्वीडन में 23 हेक्टेयर DDT-दूषित पूर्व वृक्ष नर्सरी पर बायोचार को दूषित मिट्टी में मिलाकर किया गया तीन वर्ष का अध्ययन है।
  • अनुसंधान
    • मृदा में केंचुओं द्वारा DDT का अवशोषण आधा रह गया। 
    • बायोचार में DDT को कुशलतापूर्वक बाँधने की क्षमता पाई गई है, ताकि मृदा के जीव इसे ग्रहण न कर सकें।
  • महत्त्व
    • पर्यावरणीय जोखिमों के कारण निम्नीकृत एवं अनुपयोगी भूमि पर कुछ फसलों की कृषि को सक्षम बनाना।
    • बेहतर मृदा स्वास्थ्य: बायोचार एक पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद है एवं प्रदूषकों को बाँधता है तथा मृदा में मिलाए जाने पर मृदा के स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है।
    • लागत प्रभावी समाधान: बायोचार का उत्पादन वहनीय है, इसलिए विकृत मृदा के पुनर्वास के लिए यह एक लागत प्रभावी समाधान है।
    • जलवायु परिवर्तन शमन: जलवायु परिवर्तन शमन के लिए बायोचार का मिश्रण भी उपयोगी है क्योंकि यह मृदा में कार्बन के दीर्घकालिक भंडारण में योगदान कर सकता है।

डाइक्लोरोडाइफेनिलट्राइक्लोरोइथेन (DDT)

  • DDT एक जहरीला, मानव निर्मित, खतरनाक रसायन है, जो एक स्थायी कार्बनिक प्रदूषक (POPs) भी है, जिसे पहली बार वर्ष 1874 में संश्लेषित किया गया था।
  • कीटनाशक गुण: DDT के कीटनाशक गुणों की खोज वर्ष 1939 में वेक्टर जनित बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए की गई थी एवं इसका उपयोग फसलों तथा पशुधन उत्पादन, संस्थानों, घरों एवं बगीचों में कीटों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता था।
  • प्रभाव
    • जैव संचय: DDT विकासात्मक एवं प्रजनन संबंधी असामान्यताओं से जुड़े सेवन के साथ मनुष्यों तथा जानवरों के वसायुक्त ऊतकों में जैव संचय करता है।
    • कार्सिनोजेनिक: DDT को मनुष्यों के लिए ‘संभवतः कैंसरकारी’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है एवं यह प्रतिरक्षा प्रणाली को नष्ट कर सकता है तथा ‘सेक्स लिंक्ड हार्मोन’ को बाधित कर सकता है।
    • सर्वव्यापी: DDT एक POP है एवं इसका व्यापक उपयोग पर्यावरण में स्थिर एवं निरंतर है, इसके अवशेष आर्कटिक, अंटार्कटिक, खुले महासागरों तथा उच्च पर्वतीय क्षेत्रों जैसे प्रत्येक स्थान पाए जाते हैं।
    • पशु स्वास्थ्य: DDT मछली तथा समुद्री अकशेरुकी जीवों के लिए अत्यधिक विषैला होता है।
    • अंतःस्रावी अवरोधक: DDT अत्यधिक स्थिर है एवं वसा ऊतक में जमा हो सकता है, इसलिए यह सभी जीवित जीवों के ऊतकों में पाया जा सकता है। 
    • मृदा स्वास्थ्य: DDT का व्यापक रूप से कृषि में कीटनाशक के रूप में उपयोग किया जाता था एवं इसके परिणामस्वरूप मृदा के स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता था, जिससे यह अनुर्वर हो जाती थी।
      • वर्ष 1962 में, राचेल कार्सन ने DDT पर ध्यान केंद्रित करते हुए, प्राकृतिक दुनिया पर कीटनाशकों के विनाशकारी प्रभाव का दस्तावेजीकरण करते हुए “द साइलेंट स्प्रिंग” प्रकाशित किया।
  • भारत में DDT
    • भारत ने वर्ष 1972 तक DDT के कृषि उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया।
    • उपयोग: केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय DDT का एकमात्र उपभोक्ता है। 
      • इसका उपयोग ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में मलेरिया संक्रमित घरों तथा इमारतों में दीवारों पर DDT का छिड़काव करके वेक्टर जनित रोगों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
    • नोडल मंत्रालय: रसायन, पेट्रोकेमिकल एवं उर्वरक विभाग (DCP) DDT के उत्पादन एवं आपूर्ति की देखरेख करने वाली नोडल समिति है।
      • भारत वर्ष 2008 से वैश्विक स्तर पर DDT का एकमात्र उत्पादक है।

  • चरणबद्ध समाप्ति: वर्ष 2014 में, भारत को स्टॉकहोम कन्वेंशन के तहत वर्ष 2024 तक DDT को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए 10 वर्षों के लिए पहला विस्तार मिला। 
    • कन्वेंशन ने DDT एवं अन्य जहरीले रसायनों के उत्पादन तथा उपयोग को गैर-कानूनी घोषित कर दिया था एवं इसे मच्छर के नियंत्रण तक सीमित कर दिया था।
  • निर्यात: भारत बोत्सवाना, दक्षिण अफ्रीका, जांबिया, मोजांबिक, नामीबिया एवं जिम्बाब्वे को रसायन निर्यात करता है।

बायोचार

  • बायोचार एक कोयला जैसा पदार्थ है, जो नियंत्रित प्रक्रिया में कृषि एवं वानिकी अपशिष्ट (जिसे बायोमास भी कहा जाता है) से कार्बनिक पदार्थ को जलाकर बनाया जाता है। 
    • बायोचार कार्बन को स्थिर रूप में परिवर्तित करता है एवं चारकोल के अन्य रूपों की तुलना में स्वच्छ होता है।
  • कच्चा माल: यह बायोमास स्रोतों जैसे लकड़ी के पतले टुकड़े, पौधों के अवशेष, खाद या अन्य कृषि अपशिष्ट उत्पादों से बनाया जाता है।

  • प्रक्रिया: पायरोलिसिस के दौरान बायोचार का उत्पादन होता है, ऑक्सीजन-सीमित वातावरण में बायोमास का थर्मल अपघटन पायरोलिसिस कहा जाता है। 
  • भौतिक गुण: बायोचार काला, अत्यधिक छिद्रपूर्ण, हल्का, महीन दाने वाला एवं 70 प्रतिशत कार्बन से बना है।
  • लाभ
    • बायोचार कंक्रीट या डामर जैसी निर्माण सामग्री की गुणवत्ता में सुधार करने में सिद्ध हुआ है।
    • इसका व्यापक रूप से पशुओं के स्वास्थ्य के लिए चारे के रूप में उपयोग किया जाता है।
    • यह आर्द्रता को नियंत्रित करने में मदद करता है, विषाक्त पदार्थों को अवशोषित करता है, लाभकारी सूक्ष्मजीवों को बढ़ावा देता है।

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय से निर्यात में शामिल MSME को प्राथमिकता देते हुए 3,000 करोड़ रुपये की ब्याज समतुल्यीकरण योजना (Interest Equalisation Scheme-IES) का विस्तार करने का अनुरोध किया है।

ब्याज समतुल्यीकरण योजना 

  • परिचय: सब्सिडी वाले निर्यात ऋण के माध्यम से निर्यातकों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए वर्ष 2015 में शुरू की गई।
    • निर्यातकों को भारतीय रुपये में शिपमेंट से पहले और बाद में निर्यात ऋण प्रदान करता है।
    • शुरू में पाँच वर्ष के लिए वैध इस योजना को कई बार बढ़ाया गया है।
  • क्रियान्वयन एजेंसी
    • सार्वजनिक और गैर-सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के माध्यम से भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा कार्यान्वित किया जाता है, जो निर्यातकों को शिपमेंट से पहले और बाद में ऋण प्रदान करते हैं।
    • विदेश व्यापार महानिदेशालय (Directorate General of Foreign Trade-DGFT) और RBI द्वारा परामर्श तंत्र के माध्यम से संयुक्त रूप से निगरानी की जाती है।

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय

  • गठन: लघु उद्योग मंत्रालय और कृषि एवं ग्रामीण उद्योग मंत्रालय के विलय के माध्यम से वर्ष 2007 में स्थापित।
  • शासन: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 के तहत संचालित होता है, जो MSME विकास के लिए एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • अधिकार: MSME को प्रभावित करने वाले मुद्दों को संबोधित करता है, “उद्यम” की अवधारणा को परिभाषित करता है और केंद्र सरकार को उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करने के लिए सशक्त बनाता है।
  • कार्य: सभी क्षेत्रों में MSME विकास को बढ़ावा देने और समर्थन देने के लिए नीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं को लागू करता है।
  • मुख्य पहल: भारत के सकल घरेलू उत्पाद और निर्यात में उनके योगदान को बढ़ाने के लिए MSME हेतु वित्तीय सहायता, प्रौद्योगिकी सहायता और कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान करता है।

  • क्षेत्राधिकार
    • प्रारंभ में गैर-MSME  निर्यातकों को 410 चिह्नित टैरिफ लाइनों में शामिल किया गया।
    • MSME क्षेत्र के सभी निर्यातकों तक विस्तारित किया गया।
  • सब्सिडी दर
    • 410 चिह्नित टैरिफ लाइनों के व्यापारी और निर्माता निर्यातकों के लिए 2% ब्याज समतुल्यता।
    • सभी MSME निर्माता निर्यातकों के लिए 3% ब्याज समतुल्यता।
  • तंत्र
    • निर्यात ऋण बैंकों द्वारा रियायती ब्याज दर पर प्रदान किया जाता है।
    • सरकार लाभार्थियों से लिए गए कम ब्याज के लिए बैंकों को मुआवजा देती है।
    • रेपो + 4% से अधिक औसत दर वसूलने वाले बैंकों को इस योजना से बाहर रखा गया है।

MSME क्या है?

  • परिभाषा: MSME का अर्थ है सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, जो वस्तुओं के उत्पादन, प्रसंस्करण और संरक्षण में शामिल व्यवसाय हैं।
  • वर्गीकरण: संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में निवेश और वार्षिक कारोबार के आधार पर वर्गीकृत।

भारत सरकार के अनुसार MSME का वर्गीकरण

उद्यम का प्रकार

संयंत्र और मशीनरी/उपकरण में निवेश

वार्षिक कारोबार

माइक्रो ₹1 करोड़ तक ₹5 करोड़ तक
लघु ₹10 करोड़ तक ₹50 करोड़ तक
मध्यम ₹50 करोड़ तक ₹250 करोड़ तक

MSME के लिए ब्याज समतुल्यीकरण योजना (IES) की आवश्यकता

  • निर्यात वृद्धि का समर्थन: MSME को किफायती ऋण तक पहुँचने में मदद करता है, जिससे वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित होती है।
  • निर्यात में उच्च योगदान: MSME भारत के कुल निर्यात में लगभग 45% का योगदान देता है, जो इस क्षेत्र के महत्त्व को दर्शाता है।
  • मुद्रास्फीति और रसद संबंधी चुनौतियाँ: बढ़ती मुद्रास्फीति और रसद संबंधी मुद्दों, जैसे कि लाल सागर संकट, ने निर्यात लागत में वृद्धि की है।
  • ऋण की दीर्घ अवधि: खरीदार विस्तारित ऋण अवधि (120-150 दिन) की माँग कर रहे हैं, जिससे वित्तपोषण की लागत बढ़ रही है।
  • तरलता संबंधी चुनौतियाँ: उच्च मुद्रास्फीति और धीमी इन्वेंट्री ऑफ-टेक MSME के लिए वित्तीय तनाव पैदा करती है।
  • बहुत कम मार्जिन: 3% की ब्याज छूट MSME को मूल्य-संवेदनशील बाजारों में प्रतिस्पर्द्धी बने रहने में सक्षम बनाती है।
  • उच्च ऋण लागतों का समाधान: IES वैश्विक प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में भारत की अपेक्षाकृत उच्च ऋण लागतों के प्रभाव को कम करता है।

संदर्भ

लॉस एंजिल्स में विनाशकारी वनाग्नि का कारण दुर्लभ मौसम संबंधी परिस्थितियाँ थी, जिन्हें ‘हाइड्रोक्लाइमेट व्हिपलैश’ (Hydroclimate Whiplash) के रूप में जाना जाता है तथा जलवायु परिवर्तन एवं मानवीय गतिविधियों के कारण यह और भी गंभीर हो गई थी।

हाइड्रोक्लाइमेट व्हिपलैश

  • परिभाषा: किसी क्षेत्र में अत्यधिक नम और खतरनाक रूप से शुष्क मौसम की स्थितियों के बीच तीव्रता से होने वाले परिवर्तन को संदर्भित करता है।
  • योगदानकर्ता तंत्र
    • जैसे-जैसे वायुमंडल गर्म होता है, इसमें जलवाष्प की मात्रा बढ़ जाती है और वायुमंडल में जलवाष्प की कमी भी तेजी से बढ़ती है।
    • परिणामतः, एक गर्म वायुमंडल वर्षा के रूप में इसे छोड़ने से पहले लंबे समय तक अत्यधिक जल को बनाए रख सकता है।
    • ग्लोबल वार्मिंग और वायुमंडल के बीच इस संबंध के परिणामस्वरूप लंबे समय तक सूखा रहता है और अंत में जब वर्षा होती है तो अत्यधिक वर्षा होती है।

हाइड्रोक्लाइमेट व्हिपलैश के प्रभाव

  • सूखे और बाढ़ में वृद्धि: लंबे समय तक चरम स्थितियों के बने रहने से पारिस्थितिकी तंत्र और जल की उपलब्धता पर दबाव पड़ता है।
  • वनाग्नि के लिए ईंधन: वर्षा के मौसम में वनस्पतियों की वृद्धि होती है, जो बाद के सूखे के दौरान सूख जाती है, जिससे वनाग्नि के लिए ईंधन का निर्माण होता है।
  • मानव स्वास्थ्य जोखिम
    • वनाग्नि का धुआँ श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों को बढ़ाता है।
    • बाढ़ से हैजा और लेप्टोस्पायरोसिस जैसी जलजनित बीमारियाँ फैलती हैं।
  • वैश्विक रुझान: 20वीं सदी के मध्य से हाइड्रोक्लाइमेट व्हिपलैश घटनाओं में तीन महीने की अवधि (उप-मौसमी) में 31-66% और 12 महीने की अवधि (अंतर-वार्षिक) में 8-31% की वृद्धि हुई है।

कैलिफोर्निया में वनाग्नि के अन्य कारण

  • सांता आना पवनें: ग्रेट बेसिन से आने वाली उच्च दाबयुक्त पवनें नीचे की ओर अवरोहण के समय दबाव डालती हैं और गर्म होती हैं, जिससे नमी कम होती है और वनस्पतियाँ सूख जाती हैं।
  • मानवजनित गतिविधियाँ: अवैध कैंपफायर, आतिशबाजी और वन क्षेत्रों में शहरी अतिक्रमण से आग लगने का जोखिम बढ़ जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन: वैश्विक तापमान में वृद्धि से वसंत और ग्रीष्म ऋतु गर्म हो रही है, जिससे शुष्क मौसम और वनस्पति तनाव बढ़ता है।

संदर्भ

इसरो ने कक्षा में डॉकिंग तकनीक का प्रदर्शन करने के लिए अंतरिक्ष डॉकिंग प्रयोग (Space Docking Experiment- SPADEX) का सफलतापूर्वक प्रयोग किया, जो ईंधन भरने, उपग्रह सेवा और भविष्य के अंतरिक्ष स्टेशन मिशनों के लिए एक महत्त्वपूर्ण क्षमता है।

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र 

  • वर्तमान मूल्य: भारत के अंतरिक्ष उद्योग का मूल्य $8 बिलियन है, जो वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 2% का योगदान देता है।
  • सरकारी खर्च: अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर वार्षिक खर्च लगभग $2 बिलियन है।
  • उपग्रह प्रक्षेपण और राजस्व: वर्ष 1999 से, भारत ने 34 देशों के लिए 381 उपग्रह लॉन्च किए हैं, जिससे $279 मिलियन का राजस्व प्राप्त हुआ है।
  • वैश्विक स्थिति: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) विश्व की छठी सबसे बड़ी राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी है।
  • भविष्य की संभावना: IN-SPACe के अनुसार, भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्ष 2033 तक ₹35,200 करोड़ ($44 बिलियन) तक बढ़ सकती है, जो वैश्विक हिस्सेदारी का 8% हिस्सा होगी।

ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) की हालिया उपलब्धियाँ

  • चंद्रयान-3 मिशन: इसरो ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास विक्रम लैंडर को सफलतापूर्वक उतारा, जिससे भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला पहला देश बन गया।
    • इस मिशन में प्रज्ञान रोवर को भी तैनात किया गया, जिसने साइट पर सल्फर तथा अन्य तत्त्वों का पता लगाने सहित कई प्रयोग किए।
  • ISRO का अंतरिक्ष खेती परीक्षण: ISRO ने अपने जैव-पुनर्जननकारी जीवन समर्थन प्रणाली प्रयोगों के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष में लोबिया (काउपिया) के बीजों की वृद्धि का परीक्षण किया, जिससे अंतरिक्ष मिशनों में स्थायी खाद्य उत्पादन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
  • आदित्य-L1 मिशन: सूर्य के वायुमंडल, जिसमें कोरोना, सौर पवन तथा चुंबकीय तूफान शामिल हैं, का अध्ययन करने के लिए भारत की पहली सौर वेधशाला, आदित्य-L1 को लॉन्च किया गया। इसने अंतरिक्ष-आधारित सौर अनुसंधान की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया।
  • एक्सपोसैट: यह वर्ष 2021 में लॉन्च किए गए नासा के इमेजिंग एक्स-रे पोलारिमेट्री एक्सप्लोरर (IPEX) के बाद दूसरी ऐसी अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला है। एक्सपोसैट पर संलग्न दो उपकरण, जिन्हें ‘एक्सस्पेक्ट’ और ‘पोलिक्स’ कहा जाता है, ने लॉन्च के बाद कार्य करना शुरू कर दिया।
  • सिंगापुर के DS-SAR उपग्रह का PSLV-C57/कक्षीय प्रक्षेपण: PSLV-C57 मिशन ने सिंगापुर के लिए DS-SAR उपग्रह और छह सह-यात्री उपग्रहों को प्रक्षेपित किया, जिससे लागत-प्रभावी वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपणों के लिए ISRO की प्रतिष्ठा की पुष्टि हुई।
  • गगनयान की तैयारियाँ: ISRO ने गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के लिए महत्त्वपूर्ण परीक्षण पूर्ण कर लिए हैं, जिसमें ‘क्रू एस्केप सिस्टम’ परीक्षण भी शामिल है। यह मिशन वर्ष 2025 के लिए निर्धारित है, जिसका लक्ष्य भारत को अंतरिक्ष में मानव भेजने वाला चौथा देश बनाना है।
  • LVM3-M3 वनवेब इंडिया-2 मिशन: ISRO ने वनवेब के 36 उपग्रहों को पृथ्वी की निम्न कक्षा में प्रक्षेपित किया, जिससे वनवेब का पहली पीढ़ी का वैश्विक उपग्रह समूह चक्र पूर्ण हो गया। इसने वैश्विक उपग्रह प्रक्षेपण बाजार में ISRO की स्थिति को और मजबूत किया।

अंतरिक्ष में निजी क्षेत्र की भूमिका

  • उपग्रह निर्माण और प्रक्षेपण: स्काईरूट का विक्रम-एस नवंबर, 2022 में भारत में लॉन्च होने वाला पहला निजी तौर पर निर्मित रॉकेट बन गया।
  • अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोग: ‘पिक्सेल’ जैसे स्टार्टअप पृथ्वी इमेजिंग तथा डेटा एनालिटिक्स के लिए उपग्रहों का उपयोग कर रहे हैं, जिससे कृषि, आपदा प्रबंधन तथा शहरी नियोजन में सेवाएँ सक्षम हो रही हैं।
  • ISRO के साथ सहयोग: L&T तथा HAL ने गगनयान मिशन के लिए ISRO के साथ भागीदारी की।
  • नवाचार को बढ़ावा देना: अग्निकुल कॉसमॉस लॉन्च सिस्टम में क्रांति लाने के लिए 3D-प्रिंटेड रॉकेट इंजन पर कार्य कर रहा है।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र की संभावनाएँ

  • बाजार के आकार में वृद्धि: अनुमान है कि वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्ष 2040 तक 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगी और भारत की हिस्सेदारी, जो वर्तमान में केवल 2% है, में महत्त्वपूर्ण वृद्धि की संभावना है।
  • उपग्रह प्रक्षेपण सेवाएँ: PSLV ने 36 देशों के 400 से अधिक विदेशी उपग्रहों को प्रक्षेपित किया है, जिससे ISRO को पर्याप्त राजस्व प्राप्त हुआ है।
    • पिछले 10 वर्षों में ISRO ने 34 प्रक्षेपण किए हैं, जिनमें 121 उपग्रह सफलतापूर्वक भेजे गए हैं, जिनमें से 75 विदेशी थे: 18 (24%) अमेरिका के, 11 (15%) कनाडा के, 8 (11%) सिंगापुर और जर्मनी के, तथा 6 (8%) ब्रिटेन के थे।
  • वाणिज्यिक अंतरिक्ष उद्यम: स्काईरूट एयरोस्पेस और पिक्सल जैसे निजी अभिकर्ताओं के आगमन के साथ, भारत छोटे उपग्रह प्रक्षेपण, अंतरिक्ष-आधारित इमेजिंग और डेटा एनालिटिक्स में विविधता ला रहा है।
  • अंतरिक्ष अन्वेषण पर ध्यान केंद्रित: चंद्रयान-3 की सफलता, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट-लैंड करने वाले पहले मिशन के रूप में।
  • वैश्विक भागीदारी: ISRO-नासा का निसार उपग्रह जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं का अध्ययन करेगा।

ISRO का स्पेस फार्मिंग परीक्षण (वर्ष 2023)

  • ISRO ने अंतरिक्ष में लोबिया (काउपिया) के बीजों की वृद्धि का परीक्षण करके एक अभूतपूर्व प्रयोग किया।
  • यह परीक्षण बायो-रीजेनरेटिव लाइफ सपोर्ट सिस्टम (BLSS) विकसित करने के प्रयासों का हिस्सा था।
  • यह लंबी अवधि के अंतरिक्ष मिशनों के लिए टिकाऊ खाद्य उत्पादन पर केंद्रित है।
  • यह प्रयोग भविष्य के अंतरग्रहीय मिशनों के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों को ताजा भोजन उपलब्ध कराने, पहले से पैक किए गए भोजन पर निर्भरता कम करने तथा मिशन आत्मनिर्भरता बढ़ाने का वादा करता है।
  • यह पहल अंतरिक्ष कृषि को आगे बढ़ाने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है।
    • उदाहरण: नासा का वेजी कार्यक्रम और चीन के अंतरिक्ष खेती प्रयोग।

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ

  • बजट की कमी: वैश्विक मान्यता के बावजूद, ISRO नासा जैसी एजेंसियों की तुलना में अपेक्षाकृत छोटे बजट पर काम करता है।
  • उदाहरण: नासा का वर्ष 2023 का बजट $25 बिलियन था, जबकि ISRO का लगभग $1.6 बिलियन था।
  • तकनीकी अंतर: भारी-भरकम रॉकेट और उन्नत पुन: प्रयोज्य प्रौद्योगिकियों में सीमित विशेषज्ञता महत्त्वाकांक्षी मिशनों में देरी करती है।
  • अंतरिक्ष अपशिष्ट का प्रबंधन: बढ़ते उपग्रह प्रक्षेपण अंतरिक्ष अपशिष्ट में वृद्धि करते हैं, जिससे कक्षीय स्थिरता के लिए दीर्घकालिक चुनौतियाँ पैदा होती हैं।
  • प्रतिभा पलायन: भारत में सीमित फंडिंग और प्रोत्साहन के कारण कई शीर्ष वैज्ञानिक विदेशों में बेहतर अवसरों की तलाश करते हैं।
  • भू-राजनीतिक बाधाएँ: अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और MTCR (मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था) जैसी प्रौद्योगिकी प्रतिबंध व्यवस्थाओं के कारण वैश्विक सहयोग चुनौतियों का सामना करते हैं।

अंतरिक्ष तथा ISRO के लिए सरकारी पहल

  • IN-SPACe का गठन: भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुगम बनाता है, नीति और विनियामक समर्थन सुनिश्चित करता है।
  • भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023: नीति में ISRO, IN-SPACe और निजी खिलाड़ियों के लिए भूमिकाएँ परिभाषित की गई हैं, जो व्यावसायीकरण और अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जबकि ISRO रणनीतिक मिशनों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • बजट आवंटन: भारत ने बजट वर्ष 2023-24 में अंतरिक्ष विभाग को लगभग 12000 करोड़ रुपये आवंटित किए।
  • न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) का शुभारंभ: NSIL ISRO की तकनीकों और उपग्रह प्रक्षेपणों का व्यावसायीकरण करता है, जिससे वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की उपस्थिति का विस्तार होता है।
  • शिक्षा और नवाचार पर ध्यान: युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम (YUVIKA) जैसे कार्यक्रम तथा IIT और IISc के साथ सहयोग भारत में अंतरिक्ष शिक्षा तथा अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देते हैं।

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए आगे की राह

  • बजट आवंटन में वृद्धि: अंतरिक्ष अनुसंधान निधि को प्राथमिकता दी जाए ताकि अंतरिक्ष कार्यक्रम निवेश के वैश्विक औसत से समानता स्थापित हो सके।
  • सहयोगात्मक नवाचार: तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) के तहत निजी अभिकर्ताओं के साथ साझेदारी करना।
  • स्वदेशी नवाचार: GSLV Mk-III और उन्नत प्रणोदन प्रणालियों जैसी भारी-भरकम रॉकेट प्रौद्योगिकियों में निवेश करना।
  • मानव संसाधनों पर ध्यान देना: शीर्ष प्रतिभाओं को बनाए रखने के लिए आकर्षक प्रोत्साहन, वैश्विक प्रदर्शन तथा कौशल-निर्माण कार्यक्रम शुरू करना।
    • उदाहरण: कौशल भारत मिशन (अंतरिक्ष गतिविधियों के लिए)
  • अंतरिक्ष मलबे का शमन: उपग्रह डी-ऑर्बिटिंग सिस्टम जैसी अंतरिक्ष मलबे शमन प्रौद्योगिकियों का विकास करें और कक्षीय स्थिरता के लिए वैश्विक प्रयासों में भाग लेना।

निष्कर्ष

चंद्रयान-3, आदित्य-L1, स्पैडेक्स तथा स्पेस फार्मिंग ट्रायल सहित ISRO की हालिया उपलब्धियाँ अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की बढ़ती क्षमता को दर्शाती हैं। बढ़ी हुई फंडिंग, तकनीकी नवाचार और वैश्विक सहयोग के जरिए चुनौतियों का समाधान करके, ISRO वैज्ञानिक खोज, आर्थिक विकास और वैश्विक स्थिरता में अपने योगदान को और बढ़ा सकता है।

संदर्भ

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की 14 रिपोर्टें विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत न करने पर राज्य सरकार की आलोचना की है।

संबंधित तथ्य

  • सरकार का यह दायित्व है कि वह इन रिपोर्टों को चर्चा के लिए विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत करे। इससे यह सुनिश्चित होता है कि सार्वजनिक धन का उपयोग प्रभावी एवं पारदर्शी तरीके से किया जाए।

CAG कार्यालय 

  • यह एक संवैधानिक प्राधिकरण है, जो संघ एवं राज्य स्तर पर सरकार के वित्तीय संचालन पर लेखा परीक्षा एवं रिपोर्टिंग के लिए उत्तरदायी है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-148 के तहत स्थापित, CAG शासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

CAG संस्था की उत्पत्ति

  • औपनिवेशिक उत्पत्ति: भारत में CAG की संस्था की शुरुआत ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी, जो वर्ष 1858 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के तहत औपनिवेशिक वित्त का ऑडिट करने के लिए स्थापित महालेखाकार के कार्यालय से विकसित हुई थी।
  • स्वतंत्रता-पूर्व घटनाक्रम: भारत के महालेखा परीक्षक के पद को भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत औपचारिक रूप दिया गया था और बाद में ब्रिटिश भारत में वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत इसका विस्तार किया गया।
  • स्वतंत्रता के पश्चात् की स्थापना: भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, वर्ष 1950 में संविधान के अनुच्छेद-148 के तहत भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक को एक संवैधानिक प्राधिकरण के रूप में स्थापित किया गया था। नरहरि राव स्वतंत्र भारत के पहले CAG बने।
  • संविधान में महत्त्व: CAG की स्थापना संघ और राज्यों के खातों का ऑडिट करने, वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने और भारत के संसदीय लोकतंत्र में ‘लोक वित्त के संरक्षक’ के रूप में कार्य करने के लिए एक स्वतंत्र इकाई के रूप में की गई थी।

CAG के प्रमुख कार्य

  • सरकारी खातों की लेखापरीक्षा: सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) सहित संघ और राज्य सरकारों की प्राप्तियों और व्यय की लेखापरीक्षा करता है।
  • विधानसभा को रिपोर्ट करना: राष्ट्रपति (संघीय खातों के लिए) या राज्यपाल (राज्य खातों के लिए) को लेखापरीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत करता है, जिन्हें पुनः संसद या राज्य विधानसभाओं में प्रस्तुत किया जाता है।
  • सार्वजनिक उद्यमों की लेखापरीक्षा: सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों के वित्तीय प्रदर्शन की जाँच करता है।
  • संचित निधि का अभिरक्षक: यह सुनिश्चित करता है कि भारत या राज्यों की संचित निधि से निकासी केवल उचित विधायी प्राधिकरण के साथ की जाए।
  • विशेष लेखापरीक्षा: अनियमितताओं के मामलों में राष्ट्रपति या राज्यपाल के अनुरोध पर विशेष लेखापरीक्षा आयोजित करता है।

भारत का CAG ब्रिटेन के CAG से किस प्रकार भिन्न है?

पहलू

भारत का CAG

ब्रिटेन का CAG

स्थिति अनुच्छेद-148 के तहत संवैधानिक प्राधिकार। कार्यकारी शाखा के भाग के रूप में नियुक्त किया गया।
भूमिका सार्वजनिक लेखा एवं व्यय का स्वतंत्र लेखा परीक्षक। सार्वजनिक व्यय पर संसद के लेखा परीक्षक और सलाहकार।
रिपोर्टिंग यह सीधे राष्ट्रपति या राज्यपाल को रिपोर्ट करता है, जो इसे संसद या राज्य विधानमंडल में प्रस्तुत करते हैं। लोक लेखा समिति के माध्यम से ब्रिटेन की संसद को रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
लेखापरीक्षा की सीमाएँ संघ, राज्यों और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की सभी प्राप्तियों, व्यय और खातों का लेखा-परीक्षण करता है। मुख्य रूप से केंद्रीय सरकार के खातों, सार्वजनिक निगमों और स्थानीय निकायों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
कार्यकाल निश्चित अवधि 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो। कार्यकाल संवैधानिक रूप से निश्चित नहीं है, यह संविदा की शर्तों पर निर्भर करता है।

CAG से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-148: CAG की स्थापना करता है और इसकी स्वतंत्रता को परिभाषित करता है।
  • अनुच्छेद-149: CAG के कर्तव्यों और शक्तियों को निर्दिष्ट करता है।
  • अनुच्छेद-150: CAG को यह निर्धारित करने का अधिकार देता है कि संघ और राज्यों के खाते कैसे रखे जाएँगे।
  • अनुच्छेद-151: CAG रिपोर्ट को राष्ट्रपति या राज्यपाल को प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है, जो उन्हें विधायिका के समक्ष रखेंगे।
  • संविधान की तीसरी अनुसूची: इसमें शपथ का प्रारूप शामिल है, जिसे CAG को पद ग्रहण करने से पहले लेना चाहिए। शपथ संविधान के प्रति निष्ठा, कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन और भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने पर जोर देती है।

CAG की स्वतंत्रता

  • भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त।
  • 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह ही महाभियोग के माध्यम से ही पदच्युति संभव है।

CAG का महत्त्वपूर्ण योगदान

  • 2G स्पेक्ट्रम घोटाला: दूरसंचार लाइसेंसों के आवंटन में अनियमितताओं को उजागर किया, जिसके कारण सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा।
  • कोयला ब्लॉक आवंटन: विवेकाधीन कोयला ब्लॉक आवंटन के कारण होने वाले घाटे को उजागर किया।
  • भारतमाला परियोजना (2023): बुनियादी ढाँचे के विकास में देरी और लागत में वृद्धि को चिह्नित किया।
  • आयुष्मान भारत (2023) का निष्पादन लेखापरीक्षा: भारत की प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत स्वास्थ्य सेवा वितरण में समस्याओं को उजागर किया, जिसमें लाभार्थी सत्यापन में अनियमितताएँ और अस्पतालों को भुगतान में देरी शामिल है।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) लेखापरीक्षा: PDS के तहत खाद्यान्नों के वितरण में बड़े पैमाने पर अक्षमताओं की पहचान की गई, जिसमें डायवर्जन और लीकेज शामिल है।
    • इन सिफारिशों के कारण राशन कार्डों का डिजिटलीकरण और बेहतर निगरानी तंत्र विकसित हुआ।

भारत के पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) विनोद राय ने संस्था को मजबूत बनाने तथा पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए कई सुधारों का सुझाव दिया।

प्रमुख सुधारों में शामिल हैं

  • वित्तीय स्वायत्तता को मजबूत करना: वित्तीय मामलों में अधिक स्वतंत्रता का समर्थन किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि CAG बाहरी दबावों के बिना काम करे और निष्पक्ष लेखा परीक्षक के रूप में अपनी भूमिका को सुरक्षित रखे।
  • निष्पादन लेखापरीक्षा: केवल वित्तीय अनुपालन के बजाय निष्पादन-आधारित लेखापरीक्षा की आवश्यकता पर बल दिया, जिसमें सरकारी योजनाओं और नीतियों के परिणामों और प्रभावशीलता पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • क्षमता निर्माण: IT, दूरसंचार और पर्यावरण नीतियों जैसे जटिल और आधुनिक क्षेत्रों के लेखापरीक्षा को सँभालने के लिए CAG कर्मचारियों के निरंतर प्रशिक्षण और कौशल विकास का सुझाव दिया।
  • समय पर रिपोर्टिंग: नीति-निर्माण और संसदीय चर्चाओं के दौरान उनकी प्रासंगिकता और प्रभाव सुनिश्चित करते हुए लेखापरीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत करने में तेजी लाने के लिए प्रस्तावित तंत्र।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: तेजी से डिजिटल होती अर्थव्यवस्था में लेखापरीक्षा की सटीकता और दायरे को बेहतर बनाने के लिए उन्नत डेटा एनालिटिक्स, एआई और आईटी उपकरणों को अपनाने के महत्त्व पर प्रकाश डाला।

इन सुधारों का उद्देश्य CAG को अधिक गतिशील, सक्रिय तथा आधुनिक शासन की चुनौतियों के अनुरूप बनाना है।

चुनौतियों का सामना

  • संसद का समय घटता जा रहा है: पिछले कई दशकों में संसद की बैठकों की संख्या कम होती जा रही है, जिससे CAG जैसी महत्त्वपूर्ण रिपोर्टों पर बहस करने के लिए कम समय मिल रहा है।
    • उदाहरण: वर्ष 2023 के मानसून सत्र में, संसद सिर्फ 17 दिनों तक ही काम कर पाई, जिससे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा सीमित हो गई।
  • रिपोर्ट का राजनीतीकरण: CAG के निष्कर्षों को अक्सर राजनीति से प्रेरित बताकर खारिज कर दिया जाता है, खासकर तब जब वे प्रमुख सरकारी योजनाओं में अनियमितताओं को उजागर करते हैं।
    • उदाहरण: कोयला ब्लॉक आवंटन (वर्ष 2012) पर CAG के निष्कर्षों पर बहस पक्षपातपूर्ण हो गई, जिससे महत्त्वपूर्ण चर्चाएँ प्रभावित हुईं।
  • सार्वजनिक उदासीनता और सीमित जागरूकता: नागरिक अक्सर CAG रिपोर्टों के महत्त्व से अनजान रहते हैं, जिससे सांसदों पर उनके निष्कर्षों पर कार्रवाई करने का दबाव कम हो जाता है।
  • संसाधनों की कमी: CAG के सीमित संसाधन और पुरानी पद्धतियों पर निर्भरता साइबर सुरक्षा और पर्यावरण शासन जैसे उभरते क्षेत्रों में व्यापक ऑडिट में बाधा डालती है।
  • कर्मचारियों की घटती उपलब्धता
    • वर्ष 2021-22 तक, IA&AD में कर्मचारियों की संख्या 41,675 थी, जो वर्ष 2013-14 में 48,253 से लगातार गिरावट है।
    • वर्ष 2014-15 में 789 से वर्ष 2021-22 में IA&AS अधिकारियों की संख्या घटकर 553 रह गई।
    • लेखापरीक्षा और लेखा कर्मचारियों की संख्या वर्ष 2013-14 में 26,000 से अधिक से घटकर वर्ष 2021-22 में 20,320 हो गई।
  • अनुवर्ती तंत्रों का अभाव: लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee- PAC) तथा CAG रिपोर्ट की कई सिफारिशें कमजोर प्रवर्तन तंत्रों के कारण लागू नहीं हो पाई हैं।
    • डेटा: CAG की 60% सिफारिशों (वर्ष 2017-2021) पर अभी तक प्रभावी अनुवर्ती कार्रवाई नहीं हुई है।
  • कोई पूर्व-लेखा परीक्षा शक्तियाँ नहीं
    • जापान, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और फ्राँस जैसे कई अन्य देशों के विपरीत, भारत में CAG मुख्य रूप से पूर्व-परीक्षा लेखापरीक्षा का कार्य करता है।

आगे की राह

  • अनिवार्य संसदीय बहस: संसद तथा राज्य विधानसभाओं में प्रमुख CAG रिपोर्टों पर अनिवार्य चर्चा के लिए प्रोटोकॉल स्थापित करना।
    • उदाहरण: यूनाइटेड किंगडम की लोक लेखा समिति (PAC) प्रत्येक प्रमुख लेखापरीक्षा निष्कर्ष के लिए संसदीय चर्चा सुनिश्चित करती है।

  • CAG का आधुनिकीकरण: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जलवायु वित्त और डेटा शासन जैसे उभरते क्षेत्रों की लेखा परीक्षा के लिए CAG को उपकरणों से सुसज्जित करना।
    • उदाहरण: कनाडा के महालेखा परीक्षक सरकारी डिजिटल प्रणालियों की लेखा परीक्षा के लिए AI-आधारित उपकरणों का उपयोग करते हैं।
  • जनता की भागीदारी बढ़ाना: सरलीकृत सारांशों और सोशल मीडिया तथा सार्वजनिक मंचों के माध्यम से लोगों तक पहुँच के माध्यम से CAG रिपोर्ट को अधिक सुलभ बनाना।
    • उदाहरण: ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय लेखा परीक्षा कार्यालय (ANAO) नागरिकों को जोड़ने के लिए आसानी से समझने योग्य सारांश प्रकाशित करता है।
  • नागरिक समाज तथा मीडिया के साथ सहयोग: अधिक जन जागरूकता और जवाबदेही के लिए CAG निष्कर्षों का विश्लेषण और प्रसार करने के लिए थिंक टैंक, गैर-सरकारी संगठनों और मीडिया के साथ सहयोग करना।
    • उदाहरण: नीति आयोग
  • लोक लेखा समिति (PAC) को मजबूत बनाना: लेखा परीक्षा अनुशंसाओं पर कार्रवाई के लिए सख्त समय सीमा निर्धारित करके जवाबदेही लागू करने के लिए PAC को सशक्त बनाना।
    • डेटा: PAC ने वर्ष 2022 में 103 रिपोर्ट प्रस्तुत कीं, लेकिन अनुवर्ती कार्यान्वयन में देरी का सामना करना पड़ा।

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) और लोक लेखा समिति (PAC) के बीच संबंध

  • लेखा परीक्षा में CAG की भूमिका: CAG सरकारी प्राप्तियों, व्ययों और सार्वजनिक उपक्रमों का लेखा परीक्षण करता है और संसद को रिपोर्ट प्रस्तुत करता है, जो लोक लेखा समिति (PAC) की चर्चाओं का आधार बनती है।
  • जाँच में PAC की भूमिका: PAC सार्वजनिक निधियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए CAG रिपोर्टों की जाँच करता है, सरकारी व्यय में वित्तीय अनियमितताओं और अक्षमताओं को उजागर करता है।
  • पारस्परिक निर्भरता: जबकि CAG स्वतंत्र लेखा परीक्षा निष्कर्ष प्रदान करता है, PAC उनकी संसदीय जाँच सुनिश्चित करता है, जिससे राजकोषीय निगरानी मजबूत होती है।
    • केस उदाहरण
      • 2G स्पेक्ट्रम मामले (वर्ष 2010) में CAG की जाँच कैग रिपोर्ट पर आधारित थी, जिसमें सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया गया था।
  • डेटा सटीकता और सहजीवी संबंध: PAC पारदर्शी शासन सुनिश्चित करने के लिए CAG की विस्तृत टिप्पणियों के डेटा पर बहुत अधिक निर्भर करता है, जिसका उदाहरण रक्षा व्यय पर CAG ऑडिट की PAC की समीक्षा है, जो यह सुनिश्चित करता है कि धन का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए।

निष्कर्ष

पारदर्शिता, जवाबदेही और कुशल शासन को बढ़ावा देने के लिए CAG रिपोर्ट आवश्यक उपकरण हैं। हालाँकि, अपर्याप्त बहस, अनुवर्ती तंत्र की कमी और सार्वजनिक उदासीनता जैसी चुनौतियाँ उनके प्रभाव को बाधित करती हैं। वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं का लाभ उठाकर और भारत के लेखापरीक्षा को आधुनिक बनाकर सरकार लोकतांत्रिक जवाबदेही को मजबूत कर सकती है और सार्वजनिक संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित कर सकती है।

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