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Jan 22 2025

तंजानिया

तंजानिया में खतरनाक मारबर्ग वायरस का पहला मामला सामने आया है। यह एक अत्यधिक संक्रामक रोग है, जिसके उपचार न किए जाने पर मृत्यु दर 88% तक होती है।

तंजानिया 

  • तंजानिया पूर्वी अफ्रीका में अफ्रीकी ग्रेट लेक्स क्षेत्र के अंतर्गत एक देश है।
  • यह दक्षिणी गोलार्द्ध में है।
  • सीमाएँ: यह सीमाबद्ध देश है:- 
    • उत्तर-पश्चिम: युगांडा।
    • पूर्वोत्तर: केन्या।
    • पूर्व: हिंद महासागर।
    • दक्षिण: मोजांबिक एवं मलावी।
    • दक्षिण-पश्चिम: जांबिया।
    • पश्चिम: रवांडा, बुरुंडी एवं कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य।
  • राजधानी
    • डोडोमा, सरकार की आधिकारिक राजधानी है।
    • दार एस सलाम सबसे बड़ा शहर, वाणिज्यिक केंद्र एवं प्रमुख बंदरगाह है।

अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी

  • सर्वोच्च चोटी: किलिमंजारो पर्वत।
    • उत्तर-पूर्व में स्थित, यह विश्व का सबसे ऊँचा स्वतंत्र पर्वत भी है।
  • झीलें
    • विक्टोरिया झील: अफ्रीका की सबसे बड़ी झील।
    • तांगानिका झील: अफ्रीका की सबसे गहरी झील, अद्वितीय मछली प्रजातियों के लिए भी जानी जाती है।
    • मलावी झील: दक्षिणी क्षेत्र में स्थित है।
  • झरने: जांबिया सीमा पर कलम्बो झरना, अफ्रीका का दूसरा सबसे ऊँचा झरना है।
  • अर्थव्यवस्था: तंजानिया में मिश्रित अर्थव्यवस्था है, जो मुख्य रूप से कृषि द्वारा संचालित है।
    • प्रमुख आर्थिक गतिविधियों में शामिल हैं:
      • कृषि: कॉफी, चाय, कपास एवं काजू का उत्पादन होता है।
      • खनन: सोना, हीरे एवं टैनजनाइट से समृद्ध।
      • पर्यटन: विश्व के पर्यटकों को अपने प्राकृतिक आकर्षणों की ओर आकर्षित करता है।
  • प्रमुख नदियाँ
    • रूफिजी नदी: तंजानिया की सबसे बड़ी नदी, सिंचाई एवं जलविद्युत के लिए प्रसिद्ध।
    • पंगानी नदी: जलविद्युत  एवं कृषि को समर्थन देने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • वामी नदी: आर्द्रभूमि एवं तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करती है।

इलेक्टोरल ट्रस्ट (Electoral Trust)

15 फरवरी, 2024 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चुनावी बॉण्ड योजना को असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद, इलेक्टोरल ट्रस्ट राजनीतिक दलों के चंदे के लिए एक प्रमुख माध्यम बन गया है।

इलेक्टोरल ट्रस्ट 

  • इलेक्टोरल ट्रस्ट गैर-लाभकारी संगठन हैं।
  • वे लोगों एवं कंपनियों से चंदा इकट्ठा करते हैं तथा राजनीतिक दलों को पैसा देते हैं।
  • उद्देश्य: मुख्य उद्देश्य राजनीतिक चंदे को अधिक पारदर्शी एवं निष्पक्ष बनाना है।
  • इलेक्टोरल ट्रस्ट के लिए नियम
    • कानून द्वारा शासित: वे केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) द्वारा प्रबंधित इलेक्टोरल ट्रस्ट योजना, 2013 के नियमों का पालन करते हैं।
    • कर लाभ: इलेक्टोरल ट्रस्ट के माध्यम से किए गए दान पर आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कर लाभ मिलता है।
  • कौन दान कर सकता है?
    • केवल भारतीय नागरिक एवं भारत के भीतर की कंपनियाँ ही दान कर सकती हैं।
    • विदेशी व्यक्तियों या कंपनियों से दान की अनुमति नहीं है।
  • योगदान पर प्रतिबंध
    • इलेक्टोरल ट्रस्ट इनसे योगदान स्वीकार नहीं कर सकते:
      • विदेशी व्यक्ति या संस्थाएँ।
      • कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत सरकारी कंपनियाँ।
      • अन्य इलेक्टोरल ट्रस्ट कंपनियों के रूप में पंजीकृत हैं।
      • विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम, 2010 (FCRA) के तहत परिभाषित विदेशी स्रोत।
      • नकद दान।
  • दान में पारदर्शिता
    • इलेक्टोरल ट्रस्ट को जानकारी देनी होगी।
      • दान देने वाले लोगों या कंपनियों के नाम।
      • दान की गई धनराशि।
    • यह प्रणाली चुनावी बॉण्ड की तुलना में प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाती है।

इलेक्टोरल ट्रस्ट क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?

  • वे यह सुनिश्चित करते हैं कि राजनीतिक दलों को स्पष्ट एवं कानूनी तरीके से धन प्राप्त हो।
  • वे यह दिखाकर भ्रष्टाचार कम करने में मदद करते हैं कि कौन किस राजनीतिक दल को धन दे रहा है।

विकास लिक्विड इंजन

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने विकास लिक्विड इंजन को फिर से शुरू करने का सफल प्रदर्शन किया है एवं इसरो के LVM3 लॉन्च व्हीकल के कोर तरल चरण (L110) को हरी झंडी दिखाई है।

प्रदर्शन परीक्षण 

  • स्थान: यह प्रदर्शन तमिलनाडु के महेंद्रगिरि स्थित प्रोपल्शन कॉम्प्लेक्स स्थित परीक्षण सुविधा में किया गया।
  • महत्त्व: रीस्टार्टिंग प्रदर्शन परीक्षण चरणों की पुनर्प्राप्ति के लिए प्रौद्योगिकियों के विकास में महत्त्वपूर्ण  है, जिससे भविष्य के लॉन्च व्हीकल में पुन: प्रयोज्यता प्राप्त होती है। 

कोर लिक्विड स्टेज (L110) 

  • संचालन: LVM3 लॉन्च वाहन का कोर तरल चरण (L110) 110 टन के प्रणोदक लोडिंग के साथ ट्विन विकास इंजन द्वारा संचालित है।
  • डिजाइन: स्टेज को लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर (LPSC) द्वारा डिजाइन और विकसित किया गया था।
  • एकीकरण: न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) एवं AST स्पेसमोबाइल एंड साइंस, LLC के बीच ब्लूबर्ड ब्लॉक 2 उपग्रह लॉन्च करने के लिए एक वाणिज्यिक समझौते के तहत LVM 3 मिशन के लिए L110 कोर तरल चरण निर्धारित किया गया है।

विकास रॉकेट इंजन 

  • विकास रॉकेट इंजन, एक तरल-ईंधन इंजन है, जो ISRO के सभी लॉन्च व्हीकल के तरल चरणों को शक्ति प्रदान करता है।
    • यह अंतरिक्ष प्रक्षेपण में उपयोग के लिए ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV), जियोसिंक्रोनस उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV) एवं LVM3 के तरल चरणों को शक्ति प्रदान करता है।
  • इसका नाम भारतीय वैज्ञानिक एवं भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम अंबालाल साराभाई के नाम पर रखा गया है।
  • विकास: विकास इंजन को 1970 के दशक में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र द्वारा विकसित किया गया था। 
  • प्रयुक्त ईंधन: विकास इंजन ईंधन के रूप में 40 मीट्रिक टन अनसिमेट्रिकल डाइमिथाइलहाइड्रेजिन (UDMH) एवं ऑक्सीडाइजर के रूप में नाइट्रोजन टेट्रोक्साइड (N2O4) का उपयोग करता है।

एंटिटी लॉकर

हाल ही में व्यवसाय/संगठन दस्तावेजों के प्रबंधन एवं सत्यापन को बदलने के लिए डिजाइन किया गया एक डिजिटल प्लेटफॉर्म ‘एंटिटी लॉकर’ लॉन्च किया गया है।

एंटिटी लॉकर के बारे में

  • एंटिटी लॉकर एक सुरक्षित, क्लाउड-आधारित समाधान है, जिसका उद्देश्य विभिन्न प्रकार की संस्थाओं के लिए दस्तावेजो  के भंडारण, साझाकरण एवं सत्यापन को सरल बनाना है, जिनमें शामिल हैं:
    • बड़े संगठन, निगम, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSMEs), ट्रस्ट, स्टार्टअप तथा सोसायटी। 
  • यह प्लेटफॉर्म भारत के डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
  • विकास: इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तहत राष्ट्रीय e-गवर्नेंस डिवीजन (NeGD)
  • उपयोग 
    • खरीद पोर्टल पर विक्रेता सत्यापन।
    • MSMEs के लिए त्वरित ऋण आवेदन।
    • FSSAI अनुपालन दस्तावेज।
    • GSTN, MCA में पंजीकरण एवं निविदा प्रक्रिया के दौरान विक्रेता सत्यापन।
    • सुव्यवस्थित कॉरपोरेट वार्षिक फाइलिंग।
  • विशेषताएँ: एंटिटी लॉकर कई सरकारी एवं नियामक प्रणालियों के साथ एकीकृत है।
    • सत्यापन: सरकारी डेटाबेस के साथ एकीकरण के माध्यम से दस्तावेजों की वास्तविक समय तक पहुँच एवं सत्यापन।
    • साझाकरण: संवेदनशील जानकारी को सुरक्षित रूप से साझा करने के लिए सहमति-आधारित तंत्र।
    • जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए आधार-प्रमाणीकृत भूमिका-आधारित पहुँच प्रबंधन।
    • क्लाउड स्टोरेज: सुरक्षित दस्तावेज प्रबंधन के लिए 10 GB एन्क्रिप्टेड क्लाउड स्टोरेज।
    • प्रमाणीकरण: दस्तावेजों को प्रमाणित करने के लिए कानूनी रूप से मान्य डिजिटल हस्ताक्षर।
  • लाभ
    • सरलीकृत अनुपालन प्रक्रियाएँ: एंटिटी लॉकर कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय, वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (GSTN), विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) आदि जैसी प्रणालियों के साथ सहजता से एकीकृत होगा तथा व्यवसायों को महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों तक त्वरित पहुँच प्रदान करेगा। 
    • परिचालन दक्षता बढ़ाना: इसका उद्देश्य प्रशासनिक अतिरेकता, प्रसंस्करण समय को कम करना एवं व्यवसायों के लिए परिचालन दक्षता को बढ़ाना है।
    • यह प्रशासनिक अतिरेकता को कम करने के लिए भंडारण एवं सुरक्षा को समेकित करता है।
    • दस्तावेज प्रसंस्करण समय तथा परिचालन संबंधी बाधाओं को कम करता है।
    • डिजिटल इंडिया कार्यक्रम: यह डिजिटल रूप से सशक्त एवं कुशल व्यावसायिक वातावरण तैयार करेगा।

डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली

डोनाल्ड ट्रंप ने वर्ष 2020 का चुनाव हारने के बाद सत्ता में वापसी करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण किया है।

संबंधित तथ्य  

  • ट्रंप ने मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स द्वारा प्रशासित पद की शपथ पारिवारिक बाइबिल एवं राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की बाइबिल दोनों का उपयोग करके ली।
  • ट्रंप की वापसी अमेरिकी राजनीति की बदलती गतिशीलता एवं इसके वैश्विक निहितार्थों पर आधारित  है।
  • शपथग्रहण के बाद पक्षपातपूर्ण विभाजन, आर्थिक चुनौतियों और विदेश नीति पर बहस का दौर चला।
  • यह लोकतांत्रिक प्रणालियों के लचीलेपन को रेखांकित करता है, जो नेताओं को राजनीतिक वापसी करने की अनुमति देता है।
  • उनके संबोधन में आर्थिक सुधार, ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीतियों एवं सीमा सुरक्षा के विषयों पर जोर दिया गया, जो उनके पिछले राष्ट्रपति पद के अनुरूप था।
  • इस कार्यक्रम में प्रमुख राजनीतिक हस्तियों ने भाग लिया एवं सत्ता हस्तांतरण के प्रतीकात्मक महत्त्व पर प्रकाश डाला।
  • उनके शपथग्रहण से एक नए कार्यकाल के लिए प्लेटफॉर्म तैयार हो गया है, जो ‘नवीनीकृत महानता’ और ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीतियों के लिए उनके दृष्टिकोण पर केंद्रित होगा।

नैवाशा झील

आक्रामक जलकुंभी से लोकप्रिय केन्याई झील नैवाशा में मछुआरों की आजीविका को संकट उत्पन्न हो गया है।

नैवाशा झील 

  • नैवाशा झील केन्या की दक्षिणी रिफ्ट घाटी में स्थित एक मीठे जल की झील है।
  • यह झील अपेक्षाकृत हालिया भू-गर्भीय उत्पत्ति की है तथा विलुप्त या निष्क्रिय ज्वालामुखियों से घिरी हुई है।
  • इसे रामसर स्थल, जो कि अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि है, के रूप में नामित किया गया है।
  • जल विज्ञान: झील को दो बारहमासी नदियों, मालेवा एवं गिलगिल नदियों द्वारा जल प्राप्त होता है।
    • ये नदियाँ मध्य केन्या में स्थित ‘एबरडेयर’ पर्वत से जल प्राप्त करती हैं।

जलकुंभी (इचोर्निया क्रैसिप्स)

  • उत्पत्ति: दक्षिण अमेरिकी मूल का पौधा, जो सजावटी पौधे के रूप में अन्य क्षेत्रों में लाया गया।
  • आक्रामक प्रकृति: विश्व में सबसे आक्रामक जलीय पौधों की प्रजाति मानी जाती है।
    • तीव्र विकास एवं तीव्र पुनर्जनन दर।
    • जल की सतह पर घनी परतें बन जाती हैं, जिससे सूर्य का प्रकाश एवं वायु का प्रवाह बाधित होता है।
    • देशज प्रजातियों को विस्थापित करता है एवं जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव
    • ऑक्सीजन के स्तर को कम करता है, जिससे मछली एवं जलीय जीवन प्रभावित होता है।
    • जलमार्गों को अवरुद्ध करता है, परिवहन एवं मत्स्यन में बाधा उत्पन्न करता है।
    • जल वाष्पीकरण दर बढ़ जाती है।

संदर्भ

क्लेरियन-क्लिपरटन जोन में “डार्क ऑक्सीजन” उत्पादन की हालिया खोज ने पारंपरिक अध्ययन को चुनौती दी है कि ऑक्सीजन उत्पादन पूरी तरह से प्रकाश संश्लेषण से संबंधित है, जिसके लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है।

डार्क ऑक्सीजन 

  • परिभाषा: सूर्य की रोशनी या प्रकाश संश्लेषण के बिना समुद्र की सतह के नीचे गहराई में उत्पादित होने वाली ऑक्सीजन को डार्क ऑक्सीजन से संदर्भित किया जाता है।
  • खोज: जुलाई 2024 में, वैज्ञानिकों ने प्रशांत महासागर के क्लेरियन-क्लिपरटन जोन में 13,100 फीट की गहराई पर ‘डार्क ऑक्सीजन’ की पहचान की थी।
  • डार्क ऑक्सीजन उत्पादन का तंत्र
    • समुद्र तल पर मैंगनीज एवं लोहे से भरपूर धात्विक पिंड ऑक्सीजन उत्पन्न करने में सहायक पाए गए।
    • प्रकाश की अनुपस्थिति में भी, समुद्री जल (H₂O अणुओं) को हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में विभाजित करके विद्युत रासायनिक गतिविधियों के माध्यम से ऑक्सीजन का उत्पादन होता है।

  • महत्त्व
    • इस धारणा को चुनौती देता है, कि प्रकाश संश्लेषण ऑक्सीजन का एकमात्र स्रोत है।
    • अन्य ग्रहों पर मौजूद ऑक्सीजन युक्त वातावरण की संभावना का सुझाव देता है, जो संभावित रूप से अन्य ग्रहों पर भी जीवन का समर्थन करता है।
    • यह इस बात की ओर भी प्रकाश डालता है कि,  पृथ्वी पर ऑक्सीजन का उत्पादन प्रकाश संश्लेषण के इतर भी हो सकता है, जो जीवन की उत्पत्ति के बारे में सिद्धांतों को नया आकार देता है।

क्लेरियन-क्लिपरटन जोन

  • अवस्थिति: उत्तरी प्रशांत महासागर में हवाई एवं मैक्सिको के मध्य स्थित एक विशाल मैदानी क्षेत्र।
  • संसाधन: इसमें मैंगनीज, निकल, ताँबा एवं कोबाल्ट जैसे खनिजों से भरपूर पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स के वृहद भंडार हैं।
    • ये खनिज इलेक्ट्रिक वाहनों एवं सौर पैनलों सहित हरित प्रौद्योगिकियों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

संदर्भ

केंद्रीय खनन मंत्रालय ने ओडिशा सरकार के सहयोग से ओडिशा के सूर्य मंदिर, कोणार्क में जिला खनिज फाउंडेशन (DMF) प्रदर्शनी का आयोजन किया है।

संबंधित तथ्य

  • सिंगापुर के राष्ट्रपति थर्मन शनमुगरत्नम ने सूर्य मंदिर का दौरा किया एवं इसकी वैश्विक प्रमुखता तथा ओडिशा की समृद्ध शिल्प कौशल पर प्रकाश डाला।

कोणार्क सूर्य मंदिर 

  • अवस्थिति: ओडिशा के पुरी जिले में समुद्र तट पर स्थित है।
  • अन्य नाम: सूर्य देवालय के नाम से जाना जाने वाला यह मंदिर हिंदू भगवान सूर्य को समर्पित है।
  • निर्माण: 1250 ईसवी में पूर्वी गंग राजवंश के नरसिम्हा देव प्रथम (1238-1264) द्वारा निर्मित।
  • सामग्री: खोंडालाइट चट्टानों से निर्मित, इसके गहरे रंग के कारण इसे “ब्लैक पैगोडा” उपनाम दिया गया है।

कोणार्क सूर्य मंदिर की वास्तुकला

  • शैली: कलिंगन मंदिर वास्तुकला का प्रतिनिधित्व करती है।

  • प्रमुख विशेषताएँ
    • विमान: वह मीनार जिसमें कभी एक शानदार शिखर हुआ करता था (जो 19वीं सदी में ढह गया)।
    • जगमोहन: पिरामिडनुमा दर्शक कक्ष।
    • नटमंदिर: ऊँचा एवं छत रहित नृत्य मंच।
  • प्रतीकवाद
    • 24 जटिल नक्काशीदार पहियों एवं 7 घोड़ों के साथ सूर्य के रथ के रूप में डिजाइन किया गया।
    • 7 घोड़े सप्ताह के 7 दिनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • UNESCO स्थिति: मंदिर को वर्ष 1984 में UNESCO विश्व धरोहर स्थल नामित किया गया था।
  • दिशा: पूर्व की ओर मुख है, इसलिए सूर्योदय की पहली किरणें प्रवेश द्वार को प्रकाशित करती हैं।

  • सूर्यघड़ी (Sundials): मंदिर के पहिये एक सूर्य घड़ी के रूप में कार्य करते हैं, जो मिनट तक समय मापने में सक्षम हैं।
  • मूर्तियाँ: आधार की दीवारें जानवरों, पत्ते, योद्धाओं एवं अन्य रूपांकनों की नक्काशी से ससुसज्जित  हैं।
  • पुनर्स्थापन: प्रवेश कक्ष को पुनर्स्थापित करने की एक परियोजना वर्ष 2022 में प्रारंभ की गई थी।

कलिंग वास्तुकला के बारे में

  • कलिंग शैली को नागर श्रेणी के अंतर्गत एक उपवर्ग के रूप में पहचाना जाता है।
  • संरचना: मंदिरों में दो प्राथमिक खंड होते हैं:
    • देउला: टावर।
    • जगमोहन: हाल।
  • सजावट: देउला और जगमोहन दोनों की दीवारों पर प्रचुर मात्रा में आकृतियाँ और डिजाइन उकेरी गई हैं।
  • देउला के प्रकार 
    • रेखा देउला: ऊर्ध्वाधर, घुमावदार मीनारें, जो विष्णु, सूर्य एवं शिव से संबंधित हैं।
    • पिधा देउला: सीढ़ीदार पिरामिड के आकार की संरचनाएँ, बाहरी नृत्य एवं भेंट हॉल।
    • खाखरा देउला: मुख्य रूप से चामुंडा और दुर्गा मंदिरों के लिए लंबी तिजोरी जैसी संरचनाएँ।
  • द्रविड़ एवं नागर शैली का प्रभाव
    • द्रविड़ शैली: कुछ मूर्तिकला रूपांकनों में देखी गई।
    • नागर शैली: इस मंदिर के  ऊर्ध्वाधर शिखरों एवं गर्भगृह डिजाइनों में स्पष्ट है।

संदर्भ

हाल ही में केंद्र सरकार ने चीनी निर्यात प्रतिबंध को आंशिक रूप से हटा दिया, जिससे सितंबर 2025 में समाप्त होने वाले वर्ष 2024-25 सीजन के लिए एक मिलियन मीट्रिक टन चीनी के निर्यात की अनुमति मिल गई।

चीनी निर्यात पर पूर्व प्रतिबंध

  • मुद्रास्फीति और संभावित कमी की चिंताओं के बीच घरेलू चीनी की कीमतों को विनियमित करने के लिए अक्टूबर 2023 में निर्यात प्रतिबंध आरोपित किया गया था।
    • यह प्रतिबंध वर्ष 2022 में चीनी निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों का विस्तार था।
  • यह पिछले सीजन के दौरान निर्यात में अभूतपूर्व वृद्धि के कारण छह वर्षों में चीनी निर्यात पर पहला विनियमन था।

इस कदम का अपेक्षित प्रभाव

  • राजस्व सृजन को बढ़ाकर भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है।
  • समय पर भुगतान सुनिश्चित करके 5 करोड़ गन्ना किसान परिवारों और 5 लाख श्रमिकों को सीधे लाभ पहुँचाता है।
  • यह मिलों को सभी ग्रेड की चीनी निर्यात करने की अनुमति देता है।
  • घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में चीनी की उपलब्धता को संतुलित करता है।

वैश्विक चीनी परिदृश्य

  • उत्पादन
    • शीर्ष उत्पादक (2022): ब्राजील, भारत, यूरोपीय संघ, चीन, अमेरिका, थाईलैंड, रूस, मैक्सिको, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया।
    • वैश्विक चीनी उत्पादन में गन्ने का हिस्सा 80% है; शेष चुकंदर का है।
    • वर्ष 2022 में विश्व उत्पादन रिकॉर्ड 178.93 मिलियन टन तक पहुँच गया।
  • खपत
    • वर्ष 2022 में वैश्विक खपत बढ़कर 176.318 मिलियन टन हो गई।
    • प्रमुख उपभोक्ता: भारत, यूरोपीय संघ, चीन, अमेरिका, ब्राजील, इंडोनेशिया, रूस, पाकिस्तान, मैक्सिको और मिस्र।
    • प्रमुख चालक: जनसंख्या वृद्धि, आय, चीनी की कीमतें और स्वास्थ्य संबंधी बहसें।
  • व्यापार
    • शीर्ष निर्यातक: ब्राजील, भारत और थाईलैंड।
    • वर्ष 2022 में अंतरराष्ट्रीय चीनी व्यापार रिकॉर्ड 69.822 मिलियन टन पर पहुँच गया, जिसमें भारत और थाईलैंड ने वृद्धि को गति दी।

वर्ष 2024 में भारत की स्थिति

  • निर्यात: भारत ने वर्ष 2021-22 सत्र में 82 लाख मीट्रिक टन निर्यात किया, जो ऐतिहासिक रूप से उच्च स्तर पर पहुँच गया। 10 लाख टन का वर्तमान आवंटन निरंतर बाजार उपस्थिति सुनिश्चित करता है।
  • वैश्विक व्यापार हिस्सेदारी: भारत की निर्यात छूट अंतरराष्ट्रीय माँग का समर्थन करती है, विशेष रूप से चीनी की कमी वाले देशों को लाभ पहुँचाती है।

संदर्भ

केरल की पारंपरिक मार्शल आर्ट, कलारीपयट्टु ने उत्तराखंड में 28 जनवरी, 2025 को शुरू होने वाले 38वें राष्ट्रीय खेलों से पूर्व ही विवाद उत्पन्न कर दिया है।

संबंधित तथ्य 

  • भारतीय कलारीपयट्टु महासंघ ने वर्ष 2023 में आयोजित 37वें राष्ट्रीय खेलों में प्रतियोगिता अनुभाग का हिस्सा होने के बाद इसे “प्रदर्शन अनुभाग” में सूचीबद्ध करने पर चिंता व्यक्त की  है।

कलारीपयट्टु के बारे में

  • कलारीपयट्टू विश्व स्तर पर सबसे पुरानी मार्शल आर्ट में से एक है, जो युद्ध तकनीकों, शारीरिक प्रशिक्षण एवं उपचार प्रथाओं को एकीकृत करती है।
  • उत्पत्ति
    • केरल में उत्पन्न, यह शब्द मलयालम भाषा के ‘कलारी’ (युद्ध का स्थान) एवं ‘पयट्टु’ (लड़ाई) को जोड़ता है।
    • कलारी का सर्वप्रथम उल्लेख तमिल संगम साहित्य में मिलता है, जिसमें युद्धक्षेत्र का वर्णन किया गया है।

  • इतिहास: पौराणिक कथाओं में कलारीपयट्टु के प्रारंभ का श्रेय एक योद्धा ऋषि, परशुराम को दिया जाता है।
  • प्रशिक्षण चरण
    • मैप्पयट्टु: शारीरिक स्थिति का चरण।
    • कोलथारी: लकड़ी के हथियारों से प्रशिक्षण, जिसमें हाथी, शेर एवं साँप जैसे जानवरों की गतिविधियों का प्रदर्शन शामिल है।
    • अंगथरी: धारदार धातु के हथियारों का प्रशिक्षण।
    • वेरुमकाई: शरीर रचना विज्ञान पर ध्यान केंद्रित करते हाथों से मुकाबला।
  • शैलियाँ
    • उत्तरी शैली हथियारों और रेखीय गतिविधियों पर जोर देती है।
    • दक्षिणी शैली किसी भी दिशा में गति की अनुमति देती है।
  • वैश्विक प्रभाव: 5वीं शताब्दी में बोधिधर्मा द्वारा चीन में प्रस्तुत किया गया, जिससे कुंग फू का विकास हुआ।

हिमालयन मोनाल

  • प्रजाति: इसे इंपेयन मोनाल के नाम से भी जाना जाता है, यह तीतर परिवार से संबंधित है।
  • महत्त्व: उत्तराखंड का राजकीय पक्षी एवं 38वें राष्ट्रीय खेलों का शुभंकर।
  • संरक्षण की स्थिति
    • IUCN की रेड लिस्ट में: कम चिंताजनक (Least Concern- LC)।
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम: अनुसूची-I (Schedule-I)।
  • प्रतिनिधित्व: दृढ़ संकल्प, ऊर्जा एवं दृढ़ता का प्रतीक है, ये गुण राष्ट्रीय खेलों के एथलीटों में परिलक्षित होते हैं।

राष्ट्रीय खेलों के बारे में

  • यह पूरे भारत के एथलीटों को एक साथ लाने के लिए भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) द्वारा आयोजित एक बहु-खेल कार्यक्रम है।
  • राष्ट्रीय खेलों को प्रारंभ  में एक द्विवार्षिक आयोजन के रूप में देखा गया था। 
    • हालाँकि, लॉजिस्टिक एवं प्रक्रियात्मक मुद्दों का अर्थ है कि उन्हें वर्षों से अलग-अलग अंतराल के साथ आयोजित किया गया है।
    • वर्ष 1920 के ओलंपिक के बाद स्थापित अखिल भारतीय ओलंपिक समिति ने वर्ष 1924 में लाहौर में पहले राष्ट्रीय खेलों का आयोजन किया।
  • 38वाँ संस्करण: उत्तराखंड द्वारा आयोजित, 28 जनवरी, 2025 से प्रारंभ होगा।
    • इसमें शुभंकर “माउली” एवं मशाल “तेजस्विनी” शामिल हैं।
  • प्रतीक
    • लोगो: उत्तराखंड की हिमालय की चोटियाँ, गंगा नदी और इसकी जैव विविधता पर प्रकाश डालता है।
    • शुभंकर: हिमालयी मोनाल, राज्य की प्राकृतिक सुंदरता एवं सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक।

राष्ट्रीय खेलों में कलारीपयट्टू

  • समावेशन इतिहास: 35वें राष्ट्रीय खेलों (2015) में एक प्रदर्शन खेल के रूप में प्रस्तुत किया गया।
    • 37वें संस्करण (2023) में प्रतियोगिता अनुभाग का हिस्सा बना।
  • वर्तमान मुद्दा: 38वें संस्करण के लिए, कलारीपयट्टू को प्रदर्शन अनुभाग में वापस ले जाया गया है, जिससे एथलीटों के पदक के अवसर एवं वित्तीय सहायता प्रभावित होगी।

संदर्भ

भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (AnSI) और जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (Tribal Research Institutes- TRI) ने 268 विमुक्त जनजातियों (Denotified Tribes- DNTs), खानाबदोश जनजातियों (Nomadic Tribes-NTs) और अर्द्ध-खानाबदोश जनजातियों (Semi-Nomadic Tribes- SNTs) को वर्गीकृत करने के लिए एक नृवंशविज्ञान संबंधी अध्ययन किया है।

  • यह रिपोर्ट नीति आयोग पैनल द्वारा जाँच के लिए लंबित है और इसे अभी तक अंतिम मंजूरी नहीं मिली है।

भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (Anthropological Survey of India- AnSI)

  • AnSI मानवशास्त्रीय अध्ययनों के लिए भारत का प्रमुख शोध संगठन है, जो अपनी आबादी की सांस्कृतिक और नृजातीय विविधता पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • स्थापना: वर्ष 1916 में भारतीय संग्रहालय के प्राणीशास्त्रीय और मानवशास्त्रीय अनुभाग से उत्पन्न, यह संगठन वर्ष 1945 में एक स्वतंत्र इकाई बन गया।
  • मुख्यालय: शुरुआत में बनारस में, वर्ष 1948 में कोलकाता स्थानांतरित हो गया।
  • मंत्रालय: भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
  • मिशन: राष्ट्रीय सद्भाव और वंचित समूहों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान को व्यावहारिक अनुप्रयोगों के साथ जोड़ना।
  • वैश्विक मान्यता: नृवंशविज्ञान फिल्मों, प्रकाशनों और भारत की सांस्कृतिक विविधता को समझने में योगदान के लिए प्रसिद्ध।
  • आधुनिक भूमिका: मानव कल्याण के लिए उभरती वैश्विक चुनौतियों और प्रौद्योगिकियों के अनुकूल होना।

रिपोर्ट के मुख्य अंश

  • समावेशन अनुशंसाएँ 
    • 179 समुदायों को अनुसूचित जाति (29), अनुसूचित जनजाति (10) और अन्य पिछड़ा वर्ग (46) श्रेणियों में शामिल करने का सुझाव दिया गया।
    • 85 नए समुदाय जोड़े गए हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक अनुशंसाएँ (19) हैं।
  • वर्गीकरण
    • नौ समुदायों के वर्गीकरण को सही किया गया।
    • 63 समुदायों (20%) को आत्मसात् या प्रवास के कारण ‘पता न लगने योग्य’ के रूप में चिह्नित किया गया।
  • अध्ययन अवलोकन: ओडिशा, गुजरात और अरुणाचल प्रदेश में किए गए अध्ययन में क्षेत्र अध्ययन, संसाधन पहचान और परामर्श के लिए प्रत्येक समुदाय को तीन महीने लगे।
  • लंबित अनुमोदन: राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकार के प्रस्तावों की आवश्यकता होती है, जिसके बाद भारत के महापंजीयक और संबंधित राष्ट्रीय आयोगों से अनुमोदन प्राप्त होता है।

SC, ST और OBC सूचीकरण के लिए प्रावधान

  • केंद्रीय भूमिका: केंद्र सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में समुदायों को शामिल करने या बाहर करने के लिए कानून बनाती है।
  • राज्य की भूमिका: राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारें शामिल करने के लिए समुदायों की पहचान करती हैं और उनकी सिफारिश करती हैं।
    • समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का आकलन करना।
    • राज्य OBC की राज्य सूची भी बनाए रख सकते हैं।

सूचीकरण का महत्त्व

  • सामाजिक न्याय: शिक्षा, रोजगार और कल्याणकारी योजनाओं जैसे लक्षित लाभ प्रदान करता है।
    • हाशिए पर पड़े समुदायों द्वारा सामना किए जाने वाले पूर्व नुकसान को कम करता है।
  • सांस्कृतिक मान्यता: अद्वितीय सांस्कृतिक पहचान को स्वीकार करता है और संरक्षित करता है।
    • निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
  • आर्थिक उत्थान: अवसरों तक पहुँच बढ़ाता है, सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करता है।

चुनौतियाँ

  • वर्गीकरण में अस्पष्टता: कई समुदाय राज्यों और केंद्रीय सूचियों में अवर्गीकृत या आंशिक रूप से वर्गीकृत हैं।
  • ‘अज्ञात’ समुदाय: 63 समुदायों का पता नहीं लगाया जा सका, जो ऐतिहासिक अभिलेखों या प्रवासन पैटर्न में अंतराल को दर्शाता है।
  • प्रशासनिक जटिलता: बहुस्तरीय अनुमोदन प्रक्रियाएँ कार्यान्वयन में देरी करती हैं।
  • अलग कोटे की माँग: DNTs, NTs और SNTs के लिए उनकी अनूठी चुनौतियों का समाधान करने हेतु एक अलग श्रेणी की माँग करना।

आगे की राह

  • वर्गीकरण को सरल बनाना: राज्य और केंद्रीय स्तर पर समुदायों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रियाओं को सरल तथा मानकीकृत करना।
  • ‘पता न लगने वाले’ समूहों को संबोधित करना: लापता समुदायों का पता लगाने और उनकी पहचान करने के लिए अतिरिक्त अध्ययन करना।
  • कोटा अनुकूलन: DNTs, NTs और SNTs के लिए एक अलग कोटा या उप-कोटा पर विचार करना।
  • समय-समय पर अद्यतन: सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के आधार पर SC, ST और OBC सूचियों में नियमित अद्यतन को संस्थागत बनाना।
  • जागरूकता और क्षमता निर्माण: हाशिए पर पड़े समुदायों की बेहतर पहचान और वर्गीकरण के लिए अधिकारियों तथा शोधकर्ताओं को प्रशिक्षित करना।

विमुक्त जनजातियाँ (DNTs), खानाबदोश जनजातियाँ (NTs) और अर्द्ध-खानाबदोश जनजातियाँ (SNTs)

  • विमुक्त जनजातियाँ (DNTs): ऐतिहासिक रूप से ब्रिटिश शासन के तहत ‘आपराधिक जनजातियों’ के रूप में वर्गीकृत, बाद में स्वतंत्रता के बाद ‘विमुक्त’ कर दी गईं।
    • उदाहरण: साँसी, पारधी और बंजारा।
  • खानाबदोश जनजातियाँ (NTs): वे समुदाय जो पारंपरिक रूप से आजीविका के लिए प्रवासी जीवन शैली का पालन करते हैं।
    • उदाहरण: गुज्जर, गड़िया, लोहार।
  • अर्द्ध-खानाबदोश जनजातियाँ (SNTs): वे समूह जो स्थायी और खानाबदोश जीवन शैली के बीच परिवर्तित होते रहते हैं।
    • उदाहरण: धनगर, लंबाडा।
  • वर्तमान संख्या: वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर भारत में DNTs, NTs और SNTs समुदायों में लगभग 10.74 करोड़ व्यक्ति हैं।

संदर्भ

हाल ही में एडवांस्ड हेल्थकेयर मैटेरियल्स में प्रकाशित MIT इंजीनियरों द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि व्यायाम शारीरिक और जैव रासायनिक प्रभावों के माध्यम से न्यूरॉन वृद्धि को उत्तेजित करता है।

  • यह सफलता न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों और तंत्रिका संबंधी चोटों के उपचार के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • न्यूरोनल ग्रोथ एक्सेलेरेशन (Neuronal Growth Acceleration): व्यायाम नियंत्रण न्यूरॉन्स की तुलना में न्यूरॉन विकास को चार गुना तक बढ़ाता है।
  • कार्यप्रणाली: जैव रासायनिक (मायोकाइन) और यांत्रिक उत्तेजना दोनों स्वतंत्र रूप से न्यूरोनल विकास को बढ़ावा देते हैं।
    • जैव रासायनिक सिमुलेशन: व्यायाम के दौरान मांसपेशियों की कोशिकाएँ मायोकाइन (प्रोटीन, RNA, वृद्धि कारक) स्रावित करती हैं, जो न्यूरोनल स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।
      • मायोकाइन-समृद्ध समाधानों ने मोटर न्यूरॉन्स की वृद्धि को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाया।
      • आनुवंशिक विश्लेषण से पता चला कि मायोकाइन ने तंत्रिका विकास और कनेक्टिविटी के लिए महत्त्वपूर्ण जीन को सक्रिय किया।
    • यांत्रिक सिमुलेशन: मांसपेशियाँ गति के दौरान तंत्रिकाओं पर यांत्रिक बल लगाती हैं।
    • अध्ययन में जेल मैट पर संवर्द्धित न्यूरॉन्स पर चुंबकीय उत्प्रेरण लागू करके इन बलों को दोहराया गया।
      • यांत्रिक रूप से उत्तेजित न्यूरॉन्स मायोकाइन्स के संपर्क में आने वाले न्यूरॉन्स जितने ही बढ़े।
  • न्यूरोनल परिपक्वता और कार्यक्षमता (Neuronal Maturity and Functionality): व्यायाम न्यूरोनल परिपक्वता, कनेक्टिविटी और एक्सॉन वृद्धि में शामिल जीन को प्रभावित करता है।
    • न्यूरॉन्स न केवल बढ़ती हैं बल्कि कार्यात्मक क्षमताओं को भी तेजी से विकसित करती हैं।
  • उपचार की संभावना: परिणाम बताते हैं कि व्यायाम तंत्रिका और न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग उपचार का आधार हो सकता है।

‘नर्व-मसल्स क्रॉसटॉक’ 

  • पारंपरिक समझ: तंत्रिकाएँ संकेतों को प्रेषित करके मांसपेशियों को नियंत्रित करती हैं।
  • नया दृष्टिकोण: मांसपेशियाँ तंत्रिका वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए जैव रासायनिक और भौतिक संकेत भी भेज सकती हैं।
    • शोधकर्ताओं का अनुमान है कि मांसपेशियों को उत्प्रेरित करने से तंत्रिका पुनर्जनन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

निष्कर्षों का महत्त्व

  • तंत्रिका संबंधी चोट से उबरना: ‘नर्व-मसल्स क्रॉसटॉक’ को समझना तंत्रिका संबंधी चोटों के लिए लक्षित उपचारों का विकल्प प्रस्तुत कर सकता है।
  • न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग: मांसपेशियों की गतिविधियों का लाभ उठाकर ALS जैसी स्थितियों के उपचार के लिए एक आधार प्रदान करता है।
  • चिकित्सीय नवाचार: व्यायाम-आधारित हस्तक्षेप, तंत्रिका उपचार को बढ़ावा देने के लिए एक सटीक उपकरण बन सकता है।

संदर्भ

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भारतीय रिजर्व बैंक (परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियाँ) निर्देश, 2024 के माध्यम से परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARCs) के लिए दिशा-निर्देशों को संशोधित किया।

संशोधित दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएँ

  • निपटान नीतियाँ: ARC को एकमुश्त निपटान (One Time Settlements- OTS) के लिए पात्रता मानदंड और प्रतिभूतियों के प्राप्ति योग्य मूल्य का निर्धारण करने की पद्धतियों को शामिल करने वाली बोर्ड-स्वीकृत नीति अपनानी चाहिए।
    • निपटान पर तभी विचार किया जाना चाहिए, जब सभी वसूली विकल्प समाप्त हो जाएँ और उसे सबसे अच्छा उपलब्ध विकल्प माना जाए।
  • निपटान राशि: अधिमानतः, निपटान का भुगतान एकमुश्त किया जाना चाहिए।
    • चरणबद्ध भुगतानों के लिए, ARC को उधारकर्ता की व्यावसायिक योजनाओं, अनुमानित आय और नकदी प्रवाह का मूल्यांकन करना चाहिए।
  • स्वतंत्र सलाहकार समिति (IAC): ₹1 करोड़ से अधिक बकाया वाले खातों के लिए, प्रस्ताव की जाँच तकनीकी, वित्तीय और कानूनी पृष्ठभूमि के पेशेवरों से युक्त IAC द्वारा की जानी चाहिए।
  • धोखाधड़ी या जानबूझकर चूक करने वाले खाते: ARC धोखाधड़ी या जानबूझकर चूक करने वालों से संबंधित मामलों में बकाया राशि का निपटान कर सकते हैं, बशर्ते कानूनी कार्यवाही अप्रभावित रहे।
  • संशोधित मूल्यांकन मानदंड: ARC को अधिग्रहित प्रतिभूतियों के मूल मूल्यांकन और निपटान के दौरान उनके प्राप्ति योग्य मूल्य के बीच भिन्नता के कारणों को दर्ज करना होगा।
  • कानूनी निरीक्षण: न्यायिक कार्यवाही के तहत खातों के निपटान के लिए संबंधित अधिकारियों से सहमति प्राप्त करनी होगी।
  • निवल स्वामित्व वाली निधि की आवश्यकता: ARC को वित्त वर्ष 2026 तक ₹300 करोड़ का न्यूनतम शुद्ध स्वामित्व वाला फंड बनाए रखना आवश्यक है।

परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियाँ (ARCs) 

  • ARCs वित्तीय संस्थाएँ हैं, जो गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) या संकटग्रस्त ऋणों को प्राप्त करने एवं उनका समाधान करने में संकल्पित हैं।
  • स्थापना: भारत में ‘सरफेसी अधिनियम’ (Sarfaesi Act) अर्थात् ‘सिक्योरिटाइजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट’ (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act), 2002 के तहत शुरू किया गया।
  • विनियमन: निष्पक्ष प्रथाओं और प्रणालीगत स्थिरता का पालन सुनिश्चित करने के लिए RBI द्वारा शासित।
  • परिचालन क्षेत्र: ARC ऋणों का पुनर्गठन कर सकते हैं, प्रतिभूति हितों को लागू कर सकते हैं या बकाया वसूलने के लिए परिसंपत्तियों को बेच सकते हैं।
  • ARC के उदाहरण
    • ARCIL (2002): भारत की पहली एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी ने एस्सार स्टील जैसी बड़ी कंपनियों के कर्ज सहित कई उच्च-मूल्य वाले NPA का सफलतापूर्वक समाधान किया।
    • एडलवाइस ARC (Edelweiss ARC) (2008): ₹45,000 करोड़ से अधिक मूल्य की संकटग्रस्त संपत्तियों के प्रबंधन के लिए प्रसिद्ध ‘एडलवाइस ARC’ ने कॉरपोरेट ऋण पुनर्गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

ARC का कार्य

ARC की भूमिका

  • NPA समाधान: बैंकों से खराब ऋण प्राप्त करना ताकि उनकी बैलेंस शीट को सही करने में मदद मिल सके।
  • वसूली की रणनीति: अधिकतम मूल्य की वसूली के लिए ऋण पुनर्गठन, परिसंपत्ति बिक्री और कानूनी कार्रवाई का उपयोग करना।
  • आर्थिक स्थिरता: संकटग्रस्त परिसंपत्तियों का प्रबंधन करके बैंकों को मुख्य ऋण गतिविधियों पर फिर से ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनाना।
  • निवेशक विश्वास: बाजार आधारित समाधान की सुविधा प्रदान करना, संकटग्रस्त परिसंपत्तियों में निवेशक भागीदारी को प्रोत्साहित करना।

ऋण के प्रकार, जिन्हें ARC ले सकता है:

  • ARC केवल सुरक्षित ऋणों का अधिग्रहण कर सकता है, जिन्हें गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • यदि डिबेंचर/बॉण्ड का भुगतान नहीं किया जाता है, तो प्रतिभूतियों के लाभार्थी को अधिग्रहण के योग्य होने से पहले 90 दिनों का नोटिस देना आवश्यक है।

ARC का महत्त्व

  • ARC बैंकिंग प्रणाली के लिए बफर के रूप में कार्य करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि NPA लाभप्रदता या पूँजी पर्याप्तता को कम न करना। 
  • RBI द्वारा संशोधित दिशा-निर्देशों का उद्देश्य परिचालन दक्षता को बढ़ाना, शासन को मजबूत करना और यह सुनिश्चित करना है कि ARC वित्तीय स्थिरता में प्रभावी रूप से योगदान देना।

संदर्भ

15 महीने के संघर्ष के बाद हमास और इजरायल संघर्ष विराम की त्रि-स्तरीय प्रक्रिया पर सहमत हो गए हैं।

संघर्ष विराम की पृष्ठभूमि

  • 7 अक्टूबर, 2023 को शुरू हुए 15 महीने लंबे संघर्ष के बाद इजरायल-हमास संघर्षविराम लागू किया गया था।
  • इस युद्ध में भारी जनहानि हुई, गाजा में 46,900 से अधिक लोगों की मौत हुई, जिनमें से अधिकांश नागरिक थे, तथा गाजा में लगभग 2 मिलियन लोग विस्थापित हुए।
  • इजरायल में 1,200 लोग मारे गए तथा 251 व्यक्तियों को हमास ने बंधक बना लिया।
  • संघर्षविराम समझौता मिस्र, कतर तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से किया गया था, जो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा प्रस्तावित रूपरेखा पर आधारित था, जिसे जून 2024 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा अनुमोदित किया गया था।

संघर्ष विराम की मुख्य विशेषताएँ (तीन चरणीय समझौता)

  • प्रथम चरण
    • संघर्ष विराम छह सप्ताह तक जारी रहने की उम्मीद जताई गई है।
    • हमास 33 बंधकों को रिहा करेगा, जबकि इजरायल लगभग 1,900 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करेगा।
    • इजरायली सेना गाजा के आबादी वाले इलाकों से हट जाएगी।
    • मानवीय सहायता, जिसमें प्रतिदिन 600 ट्रक आपूर्ति शामिल है, को गाजा में जाने की अनुमति दी जाएगी।
  • दूसरा चरण
    • हमास शेष पुरुष बंधकों को रिहा कर देगा तथा इजरायल गाजा से अपनी वापसी करेगा।
    • दोनों पक्षों से शत्रुता को स्थायी रूप से समाप्त करने के लिए शर्तों पर बातचीत करने की उम्मीद है।
  • तीसरा चरण
    • गाजा के पुनर्निर्माण के प्रयास शुरू होंगे। 
    • चर्चा गाजा के शासन पर केंद्रित होगी, जिसमें फिलिस्तीनी प्राधिकरण को एकीकृत करने की संभावनाएँ भी शामिल होंगी।

बाल्फोर घोषणा 

  • 2 नवंबर, 1917 को ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बालफोर द्वारा आंग्ल-यहूदी समुदाय के एक प्रमुख सदस्य लियोनेल वाल्टर रोथ्सचाइल्ड को लिखा गया पत्र।
  • इस पत्र में फिलिस्तीन में ‘यहूदी लोगों के लिए राष्ट्रीय घर’ की स्थापना के लिए ब्रिटिश समर्थन व्यक्त किया गया था।

बाल्फोर घोषणा क्यों जारी की गई?

  • जायोनी आंदोलन के लिए समर्थन: थियोडोर हर्जल जैसे लोगों के नेतृत्व में जायोनीवादियों ने यूरोप में उत्पीड़न के कारण यहूदियों के लिए एक मातृभूमि की माँग की।
    • ब्रिटेन में प्रमुख जायोनीवादियों, जैसे चैम वीजमैन, ने ब्रिटिश समर्थन की वकालत की।
  • प्रथम विश्वयुद्ध का संदर्भ: ब्रिटेन ने मित्र देशों के युद्ध प्रयासों को जारी रखने के लिए रूस और अमेरिका में यहूदियों का समर्थन माँगा।
  • फिलिस्तीन का सामरिक महत्त्व: फिलिस्तीन पर नियंत्रण से ब्रिटेन को स्वेज नहर की सुरक्षा करने और अपने औपनिवेशिक हितों, विशेष रूप से भारत में, की रक्षा करने में मदद मिलेगी।

इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के कारण

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और क्षेत्रीय विवाद: यह संघर्ष प्रतिस्पर्द्धी राष्ट्रवादी आंदोलनों में निहित है, जिसमें यहूदी फिलिस्तीन में मातृभूमि की तलाश कर रहे हैं (वर्ष 1917 के बाल्फोर घोषणा के बाद) और फिलिस्तीनी उसी भूमि को अपना मानते हैं।
    • वर्ष 1948 में इजरायल की स्थापना के बाद, फिलिस्तीनी अरबों को विस्थापित कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप लंबे समय तक क्षेत्रीय विवाद चला।
  • इजरायल का निर्माण (वर्ष 1948): संयुक्त राष्ट्र की वर्ष 1947 की विभाजन योजना में फिलिस्तीन को अलग-अलग यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने का प्रस्ताव था।
    • अरब राज्यों और फिलिस्तीनी नेताओं ने इस योजना को अस्वीकार कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1948 में अरब-इजरायल युद्ध हुआ तथा इजरायल ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।
  • क्षेत्रों पर अधिकार: वर्षं 1967 के छह दिवसीय युद्ध के बाद, इजरायल ने पश्चिमी तट, गाजा पट्टी तथा पूर्वी यरूशलम पर कब्जा कर लिया, जिन क्षेत्रों पर फिलिस्तीनियों ने दावा किया था।
    • विभिन्न शांति प्रयासों के बावजूद, इन क्षेत्रों में इजरायली बस्तियों तथा उन पर सैन्य नियंत्रण ने संघर्ष को और तेज कर दिया है, जिसमें फिलिस्तीनी एक स्वतंत्र राज्य की माँग कर रहे हैं।
  • धार्मिक महत्त्व: यरूशलम यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्त्व रखता है।
    • पवित्र स्थलों, विशेष रूप से अल-अक्सा मस्जिद (मुसलमानों के लिए) और पश्चिमी दीवार (यहूदियों के लिए) पर नियंत्रण धार्मिक तनाव को बढ़ाता है।
    • यरूशलम की स्थिति पर विवाद शांति वार्ता में सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक बना हुआ है।
  • अंतरराष्ट्रीय भागीदारी और शांति प्रक्रियाएँ: संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय अभिकर्ताओं ने ओस्लो समझौते (वर्ष 1993) तथा शांति के लिए रोडमैप (वर्ष 2003) जैसे प्रयासों के साथ संघर्ष में मध्यस्थता करने का प्रयास किया है।

ओस्लो समझौता (वर्ष 1993)

  • इजरायल तथा फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (Palestine Liberation Organization- PLO) के बीच अंतरिम स्वशासन व्यवस्था पर सिद्धांतों की घोषणा पर हस्ताक्षर किए गए।
  • यह अरब-इजरायली शांति प्रक्रिया का हिस्सा था, जिसके तहत इजरायल ने फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) को फिलिस्तीनियों के औपचारिक प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी।
  • बदले में PLO ने आतंकवादी गतिविधियों को त्याग दिया।
  • हालाँकि, वर्ष 2000 के अंत तक शांति वार्ता विफल हो गई।

शांति के लिए रोड मैप (वर्ष 2003)

  • शांति के लिए वर्ष 2003 का रोडमैप ‘क्वार्टेट’ अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र, रूस और यूरोपीय संघ द्वारा तैयार किया गया था।
  • उद्देश्य: इजरायल-फिलिस्तीनी शांति प्रक्रिया में प्रगति के लिए स्पष्ट रूप से परिभाषित मानक और लक्ष्य स्थापित करना, जिसका उद्देश्य वर्ष 2005 तक एक व्यापक समझौते तक पहुँचना है।

इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष में प्रमुख घटनाएँ

  • वर्ष 1949: इजरायल ने अरब देशों के साथ युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए तथा गाजा पट्टी मिस्र के नियंत्रण में आ गई।
  • वर्ष 1956: मिस्र द्वारा स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण के जवाब में इजरायल ने सिनाई प्रायद्वीप तथा गाजा पट्टी पर आक्रमण किया।
  • वर्ष 1957: इजरायल ने गाजा पट्टी और अकाबा की खाड़ी के क्षेत्र को छोड़कर मिस्र की भूमि से वापसी की, यह तर्क देते हुए कि गाजा पट्टी कभी मिस्र की नहीं थी।
  • वर्ष 1967: छह दिवसीय युद्ध के दौरान, इजरायल ने गाजा पट्टी तथा सिनाई प्रायद्वीप पर नियंत्रण हासिल कर लिया।
  • वर्ष 1987: फिलिस्तीनियों ने इजरायल के विरुद्ध पहला इंतिफादा शुरू किया।
  • वर्ष 1993: अराफात ने इजरायल के साथ ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें दो-राज्य समाधान पर बातचीत करने की प्रतिबद्धता जताई गई; हमास ने इजरायल में आत्मघाती बम विस्फोट किए।
  • वर्ष 2021: इजरायली पुलिस ने अल-अक्सा मस्जिद पर छापा मारा, जिसके कारण इजरायल तथा हमास के बीच 11 दिनों तक संघर्ष चला
  • वर्ष 2023: हमास द्वारा इजरायल पर किए गए हमले।
  • जनवरी 2025: हमास-इजरायल युद्ध विराम पर सहमत हो गए हैं।

प्रमुख स्थान

  • अल अक्सा मस्जिद: यह इस्लामी आस्था में सबसे पवित्र संरचनाओं में से एक है, जिसे मुसलमान हरम अल-शरीफ के रूप में जानते है।
  • वेस्ट बैंक: वेस्ट बैंक पश्चिम एशिया में एक भू-आबद्ध क्षेत्र है। इसमें पश्चिमी मृत सागर का एक महत्त्वपूर्ण भाग भी शामिल है।
  • गाजा पट्टी: गाजा पट्टी इजरायल और मिस्र के बीच स्थित है। इजरायल ने वर्ष 1967 के बाद इस पट्टी पर कब्जा कर लिया।
  • गोलान हाइट्स: गोलान हाइट्स एक रणनीतिक पठार है। इस पर इजरायल ने वर्ष 1967 के युद्ध में सीरिया से छीन लिया था।

इजरायल-हमास युद्धविराम के निहितार्थ

  • हमास के लिए: युद्ध विराम एक जीत की तरह है।
    • इजरायल की लगातार और तीव्र हवाई एवं जमीनी कार्रवाई के बाद अपने पारंपरिक संगठन और नेतृत्व की गंभीर स्थिति के कारण, इस समूह को अपनी स्थिति सुधारने के लिए समय और संसाधनों की आवश्यकता है।
  • गाजा में मानवीय सहायता: संघर्षविराम से हिंसा पर विराम लगेगा तथा गाजा पट्टी में अत्यंत आवश्यक मानवीय सहायता उपलब्ध होगी, जहाँ 1.9 मिलियन लोग विस्थापित हैं।
    • खाद्य तथा चिकित्सा आपूर्ति सहित 630 से अधिक सहायता ट्रक पहले ही गाजा में प्रवेश कर चुके हैं, जो अकाल और बीमारी से जूझ रही आबादी की तत्काल जीवन-रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करेंगे।

हमास क्या है?

  • यह सबसे बड़ा फिलिस्तीनी उग्रवादी इस्लामी समूह है और इस क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक दल है।
  • यह वर्तमान में गाजा पट्टी में 2.3 मिलियन से अधिक फिलिस्तीनियों पर शासन करता है।
  • हालाँकि, इसकी सशस्त्र गतिविधियों के कारण इसे इजरायल, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ, यूनाइटेड किंगडम और अन्य देशों द्वारा आतंकवादी समूह के रूप में नामित किया गया है।
  • गठन: हमास की स्थापना 1980 के दशक के अंत में इजरायली अधिकार के विरुद्ध पहले फिलिस्तीनी इंतिफादा (विद्रोह) के दौरान हुई थी, जो फिलिस्तीनी मुस्लिम ब्रदरहुड से निकला था।

हिज्बुल्लाह

  • हिज्बुल्लाह, जिसका अर्थ है ‘अल्लाह की पार्टी’, लेबनान का एक शिया इस्लामी आतंकवादी संगठन है।

  • मध्य पूर्व में स्थिरता: युद्धविराम से इजरायल तथा हमास के बीच तत्काल शत्रुता कम होगी , जिससे हिजबुल्लाह और ईरान जैसे क्षेत्रीय अभिकर्ताओं के साथ तनाव कम हो सकता है।
    • यह कूटनीतिक वार्ता के लिए एक अवसर प्रदान करता है, जिससे संघर्ष को व्यापक क्षेत्रीय युद्ध में बदलने से रोका जा सकता है।
  • मध्यस्थों की कूटनीतिक सफलता: संयुक्त राज्य अमेरिका, कतर और मिस्र जैसे देश, जिन्होंने इस समझौते में मध्यस्थता की, मध्य पूर्व में प्रमुख शांति मध्यस्थों के रूप में अपनी स्थिति मजबूत कर रहे हैं।
    • यह सफलता क्षेत्र में स्थिरता लाने में अंतरराष्ट्रीय हितधारकों की तथा अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित कर सकती है।
  • इजरायल में राजनीतिक चुनौतियाँ: युद्धविराम ने इजरायल के भीतर राजनीतिक तनाव पैदा कर दिया है, प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को हमास के साथ बातचीत करने के लिए दूर-दराज गठबंधन के सदस्यों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
    • सैन्य बल के माध्यम से गाजा से हमास को बाहर निकालने का उनका उद्देश्य अभी भी अधूरा है।
  • गाजा का पुनर्निर्माण तथा प्रशासन: इस समझौते से गाजा के पुनर्निर्माण पर चर्चा का द्वार खुल गया है, जिसके लिए अरबों डॉलर की अंतरराष्ट्रीय सहायता की आवश्यकता होगी।
    • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने कहा कि हिंसा के कारण गाजा का विकास 69 वर्ष तक पीछे चला गया है।
  • वैश्विक धारणा पर प्रभाव: युद्ध विराम संघर्ष की मानवीय लागत को उजागर करता है, जिससे दोनों पक्षों पर स्थायी समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ जाता है।
    • युद्ध अपराधों तथा नागरिक हताहतों के आरोपों ने इजरायल को जाँच के दायरे में ला दिया है, जिसका असर उसकी वैश्विक स्थिति तथा सहयोगियों के साथ संबंधों पर पड़ सकता है।

युद्ध विराम के भारत पर प्रभाव

  • ऊर्जा सुरक्षा: भारत अपने कच्चे तेल का 80% से अधिक आयात करता है, जिसमें से अधिकांश मध्य पूर्व से आता है, जिसमें सऊदी अरब तथा इराक जैसे देश शामिल हैं।
    • युद्धविराम क्षेत्र में व्यवधानों के कारण तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव के जोखिम को कम करता है।

  • रणनीतिक साझेदारी: भारत की इजरायल के साथ मजबूत रक्षा और तकनीकी साझेदारी है, जिसका वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2023 में $10 बिलियन से अधिक हो जाएगा।
    • युद्धविराम स्थिरता बनाए रखने में मदद करता है, जिससे कृषि, साइबर सुरक्षा और रक्षा प्रौद्योगिकी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में निर्बाध सहयोग संभव होता है।
  • दो-राज्य समाधान की वकालत: भारत ने ऐतिहासिक रूप से दो-राज्य समाधान का समर्थन किया है, जो इजरायल तथा फिलिस्तीन के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की वकालत करता है।
    • युद्धविराम भारत को अपने कूटनीतिक रुख को मजबूत करने, इजरायल के साथ अपने संबंधों तथा फिलिस्तीनी मुद्दे के लिए अपने पारंपरिक समर्थन को संतुलित करने का अवसर प्रदान करता है, जो संयुक्त राष्ट्र में इसके लगातार मतदान चक्र में परिलक्षित होता है।
  • भू-राजनीतिक स्थिति: भारत का संवाद और गुटनिरपेक्षता पर जोर वैश्विक स्तर पर गूँजता है, जो ऐसे संघर्षों के समाधान में मध्यस्थता या रचनात्मक योगदान करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
  • प्रवासी चिंताएँ: मध्य पूर्व में 9 मिलियन से अधिक की संख्या में रहने वाले बड़े भारतीय प्रवासियों की सुरक्षा सीधे तौर पर क्षेत्रीय स्थिरता से जुड़ी हुई है।
    • युद्ध के दौरान, कई भारतीय श्रमिकों को रोजगार तथा सुरक्षा जोखिमों का सामना करना पड़ा, खासकर इजरायल और पड़ोसी खाड़ी देशों में। युद्ध विराम इन श्रमिकों के लिए तत्काल चिंताओं को कम करता है।
  • व्यापार और निवेश के अवसर: मध्य पूर्व भारत के व्यापार का लगभग 40% हिस्सा है, जिसमें ऊर्जा आयात और खाद्य, फार्मास्यूटिकल्स और प्रौद्योगिकी का निर्यात शामिल है।
    • एक स्थिर क्षेत्र विशेष रूप से इजरायल जैसे देशों के साथ बढ़ी हुई आर्थिक भागीदारी के लिए रास्ते खोलता है, जिसने भारत के नवाचार और रक्षा क्षेत्रों में निवेश करने में रुचि व्यक्त की है।
  • भारत में सार्वजनिक और राजनीतिक भावना: युद्ध विराम भारत के घरेलू व्यवहारों के साथ प्रतिध्वनित होता है, जो शांति और स्थिरता के अपने लोकाचार को दर्शाता है।
    • संघर्ष के दौरान भारत सरकार की ओर से राजनीतिक बयानों में मानवीय चिंताओं पर जोर दिया गया तथा किसी भी पक्ष की उपेक्षा किए बिना कूटनीतिक संतुलन बनाए रखा गया।

युद्धविराम कार्यान्वयन की चुनौतियाँ

  • पक्षों के बीच विश्वास की कमी: दशकों से चले आ रहे संघर्ष के कारण इजरायल तथा हमास के बीच गहरा अविश्वास है।
    • हमास, इजरायल की सैन्य वापसी को संदेह की दृष्टि से देखता है तथा उसे पुनः तनाव बढ़ने का डर है, जबकि इजरायल, हमास की शांति के प्रति प्रतिबद्धता पर संदेह करता है, क्योंकि युद्धविराम के दौरान हमास पुनः हथियारबंद हो जाता है।
  • बाध्यकारी गारंटी का अभाव: युद्ध विराम में प्रारंभिक युद्ध विराम से आगे के चरणों के लिए लिखित आश्वासनों का अभाव है।
    • बाद के चरणों में कैदियों के आदान-प्रदान या सैन्य वापसी पर विवाद नए सिरे से हिंसा को जन्म दे सकता है।
  • आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता: इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू को हमास को रियायतें देने का विरोध करने वाले दूर-दराज गठबंधन के सदस्यों से दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
    • हमास गाजा के शासन में भूमिका की तलाश कर रहा है, जैसा कि वर्ष 1989 में ताइफ समझौते के बाद लेबनान की सरकार में हिज्बुल्लाह के एकीकरण के समान है।
  • गाजा में शासन की जटिलताएँ: युद्ध विराम के बाद गाजा पर कौन शासन करेगा, इस पर मतभेद अभी भी अनसुलझे हैं।
    • बुनियादी ढाँचे का व्यापक विनाश (60% से अधिक क्षतिग्रस्त) पुनर्निर्माण प्रयासों को जटिल बनाता है और तनाव को बढ़ाने का जोखिम उठाता है।
  • गाजा का पुनर्निर्माण: संयुक्त राष्ट्र के क्षति आकलन के अनुसार, इजरायल के हमले के बाद बचे 50 मिलियन टन से अधिक मलबे को हटाने में 21 वर्ष लग सकते हैं और इसकी लागत 1.2 बिलियन डॉलर तक हो सकती है।
  • बाहरी हस्तक्षेप का जोखिम: ईरान और हिज्बुल्लाह जैसे क्षेत्रीय तत्त्व शांति का विरोध करने वाले गुटों का समर्थन करके युद्ध विराम को अस्थिर कर सकते हैं।
    • उनकी भागीदारी से गाजा के अंतर्गत छद्म संघर्ष हो सकता है।
  • छोटी घटनाओं के बढ़ने की संभावना: सीमा पर झड़प या अलग-अलग रॉकेट हमलों जैसी छोटी झड़पें अथवा उल्लंघन भी संवेदनशील युद्ध विराम का समाप्त कर सकते हैं।
    • अनसुलझे विवादों के कारण पिछले युद्ध विरामों में भी इसी तरह का संघर्ष हुआ था।
  • अंतरराष्ट्रीय निगरानी का अभाव: मजबूत निगरानी तंत्र की अनुपस्थिति दोनों पक्षों द्वारा अनुपालन को लागू करना मुश्किल बनाती है।
    • जमीन पर अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों या मध्यस्थों के बिना, उल्लंघनों के लिए जवाबदेही सीमित रहती है।

संघर्ष विराम की सफलता सुनिश्चित करने के लिए आगे की राह

  • निगरानी तंत्र स्थापित करना: अनुपालन की निगरानी तथा उल्लंघनों को संबोधित करने के लिए, अमेरिका, मिस्र और कतर जैसे मध्यस्थों की सहायता से अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को तैनात करना।
    • नियमित रिपोर्टिंग तथा जवाबदेही से इजरायल और हमास के बीच विश्वास कायम करने में मदद मिल सकती है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2334 का उचित अनुपालन सुनिश्चित करना: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव 2334 पूर्वी यरूशलम सहित वर्ष 1967 से कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों में इजरायली बस्तियों से संबंधित है।
  • मानवीय सहायता वितरण को मजबूत करना: भोजन, चिकित्सा सहायता और विस्थापित नागरिकों के लिए आश्रय पर ध्यान केंद्रित करते हुए गाजा को निर्बाध और बड़े पैमाने पर मानवीय सहायता सुनिश्चित करना।
    • प्रभावी समन्वय और पारदर्शी सहायता वितरण के लिए संयुक्त राष्ट्र तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों को शामिल करना।
  • समावेशी शासन चर्चा आरंभ करना: गाजा पर शासन करने के लिए फिलिस्तीनी प्राधिकरण के अंतर्गत एकीकृत फिलिस्तीनी प्रशासन की स्थापना के लिए संवाद को बढ़ावा देना।
    • आंतरिक फिलिस्तीनी विभाजन को कम करने और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए सभी प्रासंगिक हितधारकों को शामिल करना।
  • समझौतों का चरणबद्ध क्रियान्वयन सुनिश्चित करना: संघर्षविराम के अगले चरणों के लिए समयसीमा तथा पारस्परिक जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना, जिसमें बंधकों का आदान-प्रदान और सैनिकों की वापसी शामिल है।
    • अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थों के समर्थन से इन प्रतिबद्धताओं के पालन की गारंटी देना।
  • गाजा का पुनर्निर्माण: घरों, स्कूलों और अस्पतालों सहित गाजा के बुनियादी ढाँचे के पुनर्निर्माण के लिए वैश्विक वित्तीय और तकनीकी संसाधनों को जुटाना।
    • दीर्घकालिक विकास योजनाओं के लिए प्रतिबद्ध होना, जो आर्थिक जरूरतों को पूरा करती हैं और गाजा की आबादी के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न करती हैं।
  • व्यापक क्षेत्रीय संवाद को बढ़ावा देना: संघर्ष के अंतर्निहित कारणों को संबोधित करने के लिए इजरायल, फिलिस्तीन और अन्य क्षेत्रीय अभिकर्ताओं के बीच संवाद को बढ़ावा देने के लिए युद्ध विराम का लाभ उठाना।
    • अंतरराष्ट्रीय प्रयासों और क्षेत्रीय सहयोग द्वारा समर्थित, एक स्थायी समाधान के रूप में दो-राज्य समाधान की दिशा में कार्य करना।

निष्कर्ष

इजरायल-हमास संघर्षविराम मानवीय राहत तथा क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है, लेकिन इसकी सफलता गहरे अविश्वास, राजनीतिक चुनौतियों तथा दीर्घकालिक समाधानों के प्रभावी कार्यान्वयन पर निर्भर करती है। गाजा और व्यापक क्षेत्र में स्थायी शांति प्राप्त करने के लिए चल रहे कूटनीतिक प्रयास, मजबूत निगरानी और पुनर्निर्माण के साथ मिलकर आवश्यक हैं।

संदर्भ

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने संबंधियों को माफ करने के लिए अपनी राष्ट्रपति पद की क्षमादान शक्तियों का प्रयोग किया, जिससे अमेरिका में सत्ता के दुरुपयोग और नैतिक शासन पर बहस छिड़ गई।

संबंधित तथ्य

  • इस अधिनियम ने क्षमादान प्रणाली की निष्पक्षता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न की हैं, विशेषकर जब इसका प्रयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए किया जाता है।
  • यह क्षमादान उनके बेटे हंटर बाइडेन से जुड़े कर चोरी के आरोपों से संबंधित इसी तरह के विवादों के साथ मेल खाता है।
  • यह मुद्दा लोकतंत्र में राष्ट्रपति की शक्तियों की सीमा और दुरुपयोग को उजागर करता है।
  • यह अध्यक्षीय लोकतंत्र में संवैधानिक विशेषाधिकारों का जिम्मेदारी से प्रयोग सुनिश्चित करने के लिए जवाबदेही तंत्र की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
  • आलोचकों का तर्क है कि क्षमादान का समय और लाभार्थी, पक्षपात तथा  हितों के टकराव का संकेत देते हैं।

क्षमादान द्वारा सत्ता के दुरुपयोग के कारण चुनौतियाँ

  • कानून के शासन को कमजोर करता है: रिश्तेदारों या करीबी सहयोगियों को माफ करना कानूनी प्रणाली की विश्वसनीयता को कम करता है और न्यायिक निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।
    • अमेरिका में भी इसी तरह के विवाद हुए हैं, जैसे कि ट्रंप द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान अपने सहयोगियों को माफ करना।
  • सार्वजनिक विश्वास में कमी: इस तरह की कार्रवाइयों से लोकतांत्रिक संस्थाओं और कार्यकारी ईमानदारी में लोगों का विश्वास कम होता है।
  • हितों का टकराव: परिवार के सदस्यों को माफ करना व्यक्तिगत लाभ के लिए सत्ता के स्पष्ट दुरुपयोग को दर्शाता है, जो एक नकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करता है।
  • न्यायिक जवाबदेही का अंतर: न्यायालयों के विपरीत, कार्यकारी क्षमा संबंधी निगरानी में कमी होती है, जिससे बिना किसी उपाय के संभावित दुरुपयोग होता है।
    • राष्ट्रपति द्वारा क्षमादान का उद्देश्य न्यायिक त्रुटियों का निवारण करना है, लेकिन इसका दुरुपयोग न्याय और समानता के बारे में संदेह उत्पन्न करता है।
  • राजनीतिक ध्रुवीकरण: यह प्रथा पक्षपातपूर्ण विभाजन को बढ़ाती है, क्योंकि विरोधी इसका उपयोग सत्तारूढ़ पार्टी को बदनाम करने के लिए करते हैं।

व्यक्तिगत लाभ के लिए पद के दुरुपयोग के नैतिक पहलू

  • शपथ का उल्लंघन: निर्वाचित अधिकारी सार्वजनिक हित की सेवा करने की प्रतिज्ञा करते हैं, और व्यक्तिगत लाभ के लिए शक्ति का उपयोग करना इस विश्वास का उल्लंघन करता है।
  • जवाबदेही का अंतर: कोई भी स्थापित कानूनी या नैतिक ढाँचा क्षमादान में हितों के ऐसे टकराव को रोक नहीं सकता है।
  • अंतरराष्ट्रीय छवि: क्षमादान शक्तियों का दुरुपयोग लोकतांत्रिक मूल्यों एवं शासन मानकों की वैश्विक धारणा को अप्रभावी करता है।
  • नैतिक जोखिम: इस तरह की कार्रवाइयाँ भविष्य के नेताओं के लिए सत्ता का दुरुपयोग करने का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं, जिससे नैतिक शासन प्रणाली कमजोर होती है।
  • लोकतांत्रिक आदर्शों के साथ विरोधाभास: लोकतंत्र का आधार जवाबदेही है; क्षमादान शक्तियों का दुरुपयोग इस सिद्धांत के विपरीत है।

प्रयुक्त नैतिक शब्दों की परिभाषाएँ

  • हितों का टकराव: ऐसी स्थिति, जिसमें किसी व्यक्ति के निजी हित निष्पक्ष पेशेवर निर्णय लेने की उसकी क्षमता में बाधा डाल सकते हैं।
  • नैतिक दुविधा: ऐसी स्थिति, जिसमें किसी व्यक्ति को दो परस्पर विरोधी नैतिक सिद्धांतों के बीच चयन करना होता है, जिसमें कोई स्पष्ट सही या गलत समाधान नहीं होता है।
  • शपथ का उल्लंघन: शपथ के तहत किए गए वादों या प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन, अक्सर सार्वजनिक कार्यालय अथवा व्यक्तिगत ईमानदारी में विश्वास को कम करता है।
  • सार्वजनिक विश्वास का क्षरण: अनुमानित कदाचार, भ्रष्टाचार या अक्षमता के कारण संस्थानों अथवा अधिकारियों में नागरिकों के विश्वास में गिरावट।
  • नैतिक जोखिम: ऐसी स्थिति, जिसमें व्यक्ति जोखिम भरे कदम उठाते हैं क्योंकि वे अपने व्यवहार के पूर्ण परिणामों का सामना नहीं कर पाते हैं, अक्सर सुरक्षा या बीमा के कारण।
  • निष्पक्षतावाद (Objectivity): व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों या भावनाओं को हस्तक्षेप करने की अनुमति दिए बिना, तथ्यों, साक्ष्यों और निष्पक्षता के आधार पर निर्णय या फैसले लेने की प्रथा।

अमेरिका बनाम भारत में राष्ट्रपति की शक्तियों की तुलना

  • अमेरिका
    • राष्ट्रपति द्वारा दी गई क्षमा पूर्ण होती है और किसी भी संस्था द्वारा इसे बदला नहीं जा सकता है।
    • केवल संघीय अपराधों को शामिल करता है; राज्य के गवर्नर राज्य-स्तरीय क्षमादान को सँभालते हैं।
    • न्यायिक या विधायी निगरानी का अभाव।
  • भारत
    • भारत के राष्ट्रपति अनुच्छेद-72 के तहत क्षमादान शक्तियों का प्रयोग करते हैं, लेकिन केवल कैबिनेट की सलाह पर।
    • मृत्युदंड, सैन्य अदालत की सजा और संघ कानून के तहत अपराधों से जुड़े मामलों पर लागू होता है।
    • निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक समीक्षा के अधीन।
  • भारत में अमेरिका की तुलना में अधिक संतुलित प्रणाली है, जिससे दुरुपयोग की संभावना सीमित है।

भारत में क्षमादान के प्रकार

  • क्षमा (Pardon): पूर्ण क्षमा, दोषसिद्धि और दंड दोनों को हटाना।
  • लघुकरण (Commutation): दंड की गंभीरता को कम करना (जैसे, मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलना)।
  • परिहार (Remission): किसी सजा की प्रकृति को बदले बिना उसकी अवधि को कम करना।
  • विराम (Respite): गर्भावस्था या दिव्यांगता जैसी विशेष परिस्थितियों के कारण कम सजा देना।
  • प्रविलंबन (Reprieve): किसी सजा का अस्थायी निलंबन, विशेष रूप से मृत्युदंड।

वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • यूनाइटेड किंगडम: क्षमादान क्राउन द्वारा दिया जाता है, लेकिन निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सलाहकार बोर्डों द्वारा गहन समीक्षा की आवश्यकता होती है।
  • कनाडा: क्षमादान की समीक्षा पैरोल बोर्ड द्वारा की जाती है तथा दुरुपयोग से बचने के लिए कठोर जाँच की जाती है।
  • जर्मनी: क्षमादान मामले-दर-मामले आधार पर दिया जाता है, जिसमें पारदर्शिता और सार्वजनिक औचित्य पर जोर दिया जाता है।
  • दक्षिण अफ्रीका: क्षमादान के लिए कानूनी विशेषज्ञों और पीड़ित समूहों के साथ व्यापक परामर्श की आवश्यकता होती है।
  • ऑस्ट्रेलिया: गवर्नर-जनरल न्यायपालिका की सिफारिश के बाद ही क्षमादान देते हैं।

आगे की राह 

  • न्यायिक निरीक्षण: दुरुपयोग को रोकने के लिए क्षमादान की न्यायिक समीक्षा की अनुमति देने के लिए कानूनी ढाँचे का निर्माण करना।
  • नैतिक समितियाँ: क्षमा अनुरोधों का निष्पक्ष मूल्यांकन करने के लिए स्वतंत्र सलाहकार निकाय स्थापित करना।
  • पारदर्शिता तंत्र: जवाबदेही बढ़ाने के लिए क्षमा के औचित्य का सार्वजनिक प्रकटीकरण अनिवार्य करना।
  • जागरूकता अभियान: दुरुपयोग को रोकने के लिए नेताओं को उनकी शक्तियों के नैतिक आयामों के बारे में शिक्षित करना।
  • दिशा-निर्देशों को संहिताबद्ध करना: न्याय और समानता सुनिश्चित करते हुए योग्य मामलों तक क्षमा को सीमित करने के लिए स्पष्ट वैधानिक नियम बनाना।

निष्कर्ष

बाइडेन के मामले में राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियों का दुरुपयोग, लोकतंत्र में मजबूत उत्तरदायी तंत्र की आवश्यकता को उजागर करता है। हालाँकि संयुक्त राज्य अमेरिका की क्षमादान प्रणाली में पर्याप्त जाँच का अभाव है, भारत जैसे देश कानूनी निगरानी के साथ कार्यकारी शक्ति को संतुलित करने का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। पारदर्शिता, नैतिक शासन और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देकर, राष्ट्र यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि क्षमादान शक्तियाँ व्यक्तिगत हितों की पूर्ति के स्थान पर न्यायिक मानकों एवं सिद्धांतों के दायरे में हों।

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