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Jan 29 2025

फेंटेनाइल (Fentanyl)

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ने चीनी आयात पर 10% टैरिफ लगाने की चेतावनी दी क्योंकि चीन से मैक्सिको एवं कनाडा के माध्यम से फेंटेनाइल अमेरिका भेजा जा रहा है।

फेंटेनाइल

  • फेंटेनाइल एक सिंथेटिक ओपिओइड (Synthetic Opioid) है, जिसका उपयोग एनाल्जेसिक [दर्द से राहत के लिए] और एनेस्थेटिक के रूप में किया जाता है। 
  • यह मॉर्फिन से 100 गुना एवं हेरोइन से 50 गुना अधिक शक्तिशाली है।
  • फेंटेनाइल के जोखिम
    • यह एक चिकित्सकीय रूप से अनुमोदित दवा है, परंतु फेंटेनाइल की अधिक खुराक के कारण निम्नलिखित समस्याएँ हो सकती  हैं:
      • पुतली के आकार में परिवर्तन।
      • चिपचिपी त्वचा।
      • त्वचा का नीलापन (सायनोसिस)।
      • कोमा एवं श्वसन विफलता, जिससे मृत्यु हो सकती है।
  • ओपिओइड
    • ‘ओपिओइड’ ऐसे पदार्थ होते हैं, जो अफीम के पौधे में पाए जाने वाले प्राकृतिक यौगिकों से प्राप्त होते हैं।
    • इनका उपयोग दर्द निवारण एवं उत्साह की भावना उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, लेकिन ये अत्यधिक नशे की लत वाले होते हैं।
    • ओपिओइड के कुछ अन्य उदाहरणों में शामिल हैं:
      • मॉर्फिन
      • ऑक्सीकोडोन
      • कोडीन
      • हेरोइन

लेजिम (LEZIM)- महाराष्ट्रीयन लोक नृत्य

छावा फिल्म, जो मराठा योद्धा राजा छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित है, से राजनेताओं एवं इतिहास प्रेमियों की आपत्तियों के बाद लेजिम नृत्य के दृश्य को हटाया जाएगा।

लेजिम नृत्य (लेजियम) 

  • महाराष्ट्र का एक पारंपरिक लोक नृत्य, जो वैवाहिक उत्सवों एवं गणेश चतुर्थी जैसे सांस्कृतिक त्योहारों के दौरान किया जाता है।
  • उत्पत्ति: ऐसा कहा जाता है कि लेजिम मूल रूप से छत्रपति शिवाजी के शासन के दौरान पुरुषों द्वारा खेला जाने वाला एक खेल था।
  • विशेषताएँ
    • लेजिम पतली लकड़ी से बना एक छोटा-सा हथौड़ा है, जिसमें धातु के टुकड़े एक साथ बँधे होते हैं, जो टकराने पर लयबद्ध ध्वनि उत्पन्न करते हैं।
    • नृत्य एक कठोर शारीरिक व्यायाम एवं प्रदर्शन कला दोनों है।
    • यह नृत्य दो, चार के समूहों या वृत्त के आकार में प्रदर्शित किया जाता हैं एवं इसमें कदम संचलन, बैठने तथा कूदने जैसी ‘कैलिस्थेनिक’ शारीरिक गतिविधियाँ शामिल हैं।
    • आमतौर पर ढोल की धुन बजाई जाती है, जिसमें नर्तकों की चाल के अनुरूप ढोल की थाप धीमी होती है और धीरे-धीरे तेज होती जाती है।
      • गायन और सूक्ष्म या तारयुक्त वाद्ययंत्र इस प्रदर्शन का हिस्सा नहीं हैं।
  • आधुनिक उपयोग: इसके भौतिक लाभों के कारण अब इसका उपयोग स्कूलों एवं कॉलेजों में शारीरिक शिक्षा अभ्यास में किया जाता है।

एटिकोप्पका खिलौने (Etikoppaka Toys)

आंध्र प्रदेश ने 26 जनवरी को नई दिल्ली में 76वें गणतंत्र दिवस समारोह की परेड में आकर्षक एटिकोप्पका खिलौनों के प्रदर्शन के साथ विशेष ध्यान आकर्षित किया। 

एटिकोप्पका खिलौना

  • एटिकोप्पका बोम्मालु के नाम से भी प्रसिद्ध, यह 400 वर्ष पुरानी परंपरा लकड़ी के खिलौनों से संबंधित शिल्प कौशल पर आधारित है।
  • इसका उद्गम आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जिले में वराह नदी (वैगई नदी की सहायक नदी) के तट पर स्थित एटिकोप्पका गाँव से हुआ है।
  • प्रमुख विशेषताएँ
    • अंकुडु पेड़ (राइटिया टिनक्टोरिया) की लकड़ी द्वारा निर्मित होते हैं, जो हल्की, मुलायम एवं जटिल नक्काशी के लिए उपयुक्त है।
    • बिना किसी नुकीले किनारों के गोल डिजाइन, बच्चों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
    • बीज, जड़, पत्तियाँ, छाल एवं लाख से प्राप्त प्राकृतिक रंगों से रंगे जाते हैं।
    • ये खिलौने ‘लैकर-टर्निंग’ ( Lacquer-Turning) तकनीक का उपयोग करके तैयार किए जाते हैं, जिससे एक चिकनी, चमकदार सतह का निर्माण होता है।
  • सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व
    • ये डिजाइन मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी प्राचीन सभ्यताओं की याद दिलाते हैं।
    • इसमें भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हुए पौराणिक पात्र, संगीत वाद्ययंत्र, घरेलू सजावट और जानवर शामिल हैं।
  • मान्यता: वर्ष 2017 में भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्रदान किया गया।
मुख्य चुनाव आयुक्त के लिए नामों के चयन के लिए सर्च कमेटी गठित हाल ही में केंद्रीय कानून मंत्रालय ने मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए नामों के चयन हेतु कानून मंत्री की अध्यक्षता में एक सर्च कमेटी का गठन किया है।

  • सदस्य: सर्च कमेटी में कानून मंत्री एवं दो सचिव (वित्त तथा कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के) शामिल होंगे।
    • पात्रता: पदों के लिए पात्रता में केंद्र सरकार के सचिव के समकक्ष पद धारण करना (या धारण करना) शामिल है।
  • कानूनी प्रावधान: सर्च कमेटी का गठन मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें तथा कार्यालय की अवधि) अधिनियम, 2023 के तहत किया जाता है।
  • सर्च कमेटी पाँच सचिव स्तर के अधिकारियों को शॉर्टलिस्ट करेगी, जिन पर चयन समिति विचार करेगी।

मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया

  • कानूनी अधिनियम: मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें तथा कार्यालय की अवधि) अधिनियम, 2023
  • नियुक्ति प्रक्रिया: CECs एवं ECs की नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी, जिसमें शामिल हैं:
    • प्रधानमंत्री, एक कैबिनेट मंत्री एवं लोकसभा में विपक्ष के नेता।
  • चयन समिति को छूट
    • इस समिति में कोई पद रिक्त होने पर भी चयन समिति की सिफारिशें मान्य होंगी।   
    • चयन समिति के पास सर्च कमेटी द्वारा निर्धारित पैनल के बाहर से एक नाम चुनने का विकल्प है।
  • सेवा-शर्तें: मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त का वेतन तथा सेवा शर्तें कैबिनेट सचिव के समकक्ष होंगी। 
    • पहले यह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन के बराबर थी।

संदर्भ

भारत की बैंकिंग प्रणाली तरलता की कमी से जूझ रही है, जो 27 जनवरी, 2025 तक ₹3.13 लाख करोड़ तक पहुँच गई है। इस चुनौती से निपटने के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने स्थिरता एवं विकास सुनिश्चित करने के लिए मौद्रिक नीति समायोजन के साथ-साथ कई तरलता उपाय प्रारंभ किए हैं। 

परिवर्तनीय दर रेपो नीलामी 

  • इसे ‘टर्म रेपो रेट’ भी कहा जाता है, यह अर्थव्यवस्था में तरलता प्रबंधन के लिए RBI का एक ‘लिक्विडिटी इंजेक्शन टूल’ है।
  • VRR नीलामी: ये नीलामी RBI द्वारा तब आयोजित की जाती हैं, जब अंतर-बैंकिंग मुद्रा बाजार में भारित औसत कॉल मनी दर, रेपो दर से अधिक हो जाती है, जो RBI को ’सिस्टम लिक्विडिटी डेफिसिट’ के संकेत के रूप में कार्य करती है।
  • कार्यकाल: यह संपार्श्विक के विरुद्ध एक अल्पकालिक ‘लिक्विडिटी इंजेक्शन’ है, जिसकी अवधि आमतौर पर ओवरनाइट से 13 दिन तक होती है।
  • ब्याज दर: यह आमतौर पर बाजार द्वारा तय की गई दर पर उधार लिया जाता है, जो आमतौर पर रेपो दर से कम होती है (हालाँकि रिवर्स रेपो दर से कम नहीं)।

RBI के प्रमुख उपाय

  • बॉण्ड खरीद: RBI, 30 जनवरी, 13 फरवरी एवं 20 फरवरी, 2025 को तीन किस्तों में ₹60,000 करोड़ के सरकारी ‘बॉण्ड बायबैक’ का संचालन करेगा।
    • इसमें बैंकों से सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदना, बैंकिंग प्रणाली में सीधे नकदी हस्तांतरण करना शामिल है।
    • प्रभाव
      • बॉण्ड खरीद, बैंकों को तत्काल तरलता प्रदान करती है, उन्हें अल्पकालिक दायित्वों को पूरा करने एवं ऋण देने की क्षमता बढ़ाने में सहायता करता है।
      • बढ़ती माँग के कारण बॉण्ड बाजार में प्रतिफल को कम करके उधार लेने की लागत को कम करता है।
      • प्रणाली में पर्याप्त नकदी भंडार सुनिश्चित करके बाजार का विश्वास बढ़ाता है।
  • रेपो नीलामी: 7 फरवरी, 2025 को ₹50,000 करोड़ मूल्य की 56-दिवसीय परिवर्तनीय दर रेपो नीलामी आयोजित की जाएगी।
    • यह बैंकों को लंबी अवधि के लिए पात्र प्रतिभूतियों को संपार्श्विक के रूप में गिरवी रखकर धन उधार लेने की अनुमति देता है।
    • प्रभाव
      • पूर्वानुमानित एवं निरंतर तरलता प्रदान करके अल्पकालिक उधार के दबाव को कम करता है।
      • ओवरनाइट एवं अल्पकालिक उधार दरों को स्थिर करता है, तरलता की कमी के कारण बढ़ी हुई लागत को कम करता है।
      • विशेष रूप से नकदी प्रवाह चुनौतियों का सामना करने वाले क्षेत्रों में अविरत ऋण आवश्यकताओं (Ongoing credit requirements) का समर्थन करता है।
  • करेंसी स्वैप
    • $5 बिलियन मूल्य की USD/INR खरीद/बिक्री स्वैप नीलामी 31 जनवरी, 2025 के लिए निर्धारित की गई है।
    • तंत्र
      • RBI बैंकों से डॉलर खरीदेगा, जिससे इस प्रणाली में रुपये की बराबर मात्रा में तरलता आएगी।
      • छह महीने के बाद ‘स्वैप रिवर्स’ हो जाएगा, जिसमें बैंक, डॉलर की पुनर्खरीद करेंगे एवं RBI को रुपये लौटा देंगे।
    • प्रभाव
      • तरलता के दबाव को कम करते हुए, बैंकिंग प्रणाली में लगभग ₹43,000 करोड़ का निवेश किया गया।
      • विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर करता है एवं USD/INR दरों में अत्यधिक अस्थिरता को कम करता है।

तरलता की कमी 

  • बैंकिंग प्रणाली में तरलता की कमी तब होती है, जब बैंकों के पास ग्राहकों की ऋण की माँग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नकदी नहीं होती है। 
  • ऐसा तब हो सकता है, जब बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से उधार देने की तुलना में अधिक पैसा उधार लेते हैं। 

तरलता की कमी के कारण

  • उच्च ऋण माँग: व्यवसायों एवं व्यक्तियों द्वारा उधार में वृद्धि।
  • RBI का विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप: रुपये को स्थिर करने के लिए डॉलर बेचने से रुपये की तरलता कम हो जाती है।
  • कर बहिर्प्रवाह: RBI के पास सरकारी नकदी शेष बढ़ने के कारण तिमाही कर भुगतान में वृद्धि से तरलता समाप्त हो जाती है।
  • सरकारी उधार: उधार बड़े पैमाने पर अत्यधिक तरलता को अवशोषित करता है, जिससे बैंकों के लिए उपलब्ध धनराशि सीमित हो जाती है।
  • धीमी जमा वृद्धि: जमा वृद्धि क्रेडिट माँग, तरलता में कमी के कारण पिछड़ गई है।
  • बाह्य आर्थिक कारक: वैश्विक ब्याज दरों में बढोतरी एवं पूँजी बहिर्प्रवाह से घरेलू तरलता पर दबाव पड़ता है।

तरलता की कमी के प्रभाव

  • उच्च ब्याज दरें: जब प्रणाली में कम पैसा उपलब्ध होता है, तो बैंक कमी की भरपाई के लिए ऋण पर ब्याज दरें बढ़ाते हैं, जिससे व्यवसायों एवं व्यक्तियों के लिए उधार लेने की लागत प्रभावित होती है। 
  • ऋण उपलब्धता में कमी: बैंक ऋण देने में सख्ती कर सकते हैं, जिससे ऋण प्राप्त करना कठिन हो जाएगा, निवेश एवं खर्च धीमा हो जाएगा।
  • उधार लेने की लागत में वृद्धि: जैसे ही धन की माँग आपूर्ति से अधिक हो जाती है, मुद्रा बाजार में पैसे उधार लेने की लागत बढ़ जाती है, जिससे ट्रेजरी बिल एवं अन्य अल्पकालिक उपकरणों पर दरें प्रभावित होती हैं। 
  • आर्थिक विकास में मंदी: कम ऋण उपलब्धता निवेश एवं आर्थिक विकास में बाधा बन सकती है, क्योंकि व्यवसायों को विस्तार के लिए आवश्यक धन तक प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। 
  • बाजार में अस्थिरता: तरलता की कमी से वित्तीय बाजारों में अस्थिरता बढ़ सकती है क्योंकि निवेशक धन सुरक्षित करने के लिए संघर्ष करते हैं, जिससे स्टॉक की कीमतें एवं अन्य परिसंपत्ति वर्ग प्रभावित होते हैं। 
  • विकासात्मक परियोजनाओं पर प्रभाव: सरकारी पहल एवं बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को सीमित ऋण उपलब्धता के कारण देरी या धन संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।

RBI के उपायों का महत्त्व

  • अल्पकालिक राहत: बैंकिंग प्रणाली में तरलता की तत्काल कमी को दूर करता है।
  • स्थिरता: अल्पकालिक ब्याज दरों में बढोतरी को रोकता है एवं आर्थिक गतिविधियों का समर्थन करता है।
  • बाजार का विश्वास: यह सुनिश्चित करता है, कि बैंकों के पास ऋण माँगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त धनराशि है।
  • मुद्रा स्थिरता: ‘करेंसी स्वैप’ विदेशी मुद्रा भंडार को प्रबंधित करने एवं रुपये को स्थिर करने में मदद करता है।

संदर्भ 

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने एकीकृत पेंशन योजना (UPS) को अधिसूचित किया है, जो एक सुनिश्चित पेंशन प्रदान करने का प्रावधान करती है।

  • मुद्रास्फीति सूचकांक: मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए वित्तीय मूल्यों का समायोजन एवं  यह सुनिश्चित करना कि पैसे की क्रय शक्ति स्थिर बनी रहे।
  • महँगाई राहत (DA): पेंशन पर मुद्रास्फीति के प्रभाव को संतुलित करने के लिए भत्ता, जो AICPI-IW से जुड़ा है।

संबंधित तथ्य

  • यह उन कर्मचारियों के लिए लागू है, जो NPS के तहत इस योजना को चुनते हैं।
  • 1 अप्रैल, 2025 से लागू होगी।
  • पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण (PFRDA) इसके कार्यान्वयन के लिए नियम जारी करेगा।

UPS की मुख्य विशेषताएँ: सुनिश्चित पेंशन

  • सेवानिवृत्ति से पहले पिछले 12 महीनों में प्राप्त औसत मूल वेतन का 50%।
  • न्यूनतम अर्हक सेवा: 25 वर्ष।
  • 25 वर्ष से कम की सेवा अवधि के लिए, पेंशन आनुपातिक होगी (न्यूनतम 10 वर्ष की सेवा आवश्यक)।
  • सुनिश्चित पारिवारिक पेंशन: कर्मचारी की मृत्यु से ठीक पहले उसकी पेंशन का 60%।
  • न्यूनतम पेंशन: न्यूनतम 10 वर्षों की सेवा के बाद सेवानिवृत्ति पर ₹10,000 प्रति माह।
  • मुद्रास्फीति सूचकांक: सुनिश्चित पेंशन, पारिवारिक पेंशन एवं न्यूनतम पेंशन पर लागू होता है।
    • महँगाई राहत, मौजूदा सेवा कर्मचारियों के समान, औद्योगिक श्रमिकों के लिए अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (AICPI-IW) पर आधारित होगी।
  • एकमुश्त भुगतान: सेवानिवृत्ति पर, कर्मचारियों को ग्रेच्युटी के अतिरिक्त एकमुश्त भुगतान प्राप्त होगा।
    • ग्रेच्युटी: प्रत्येक छह महीने की सेवा के लिए मासिक परिलब्धियों का 1/10वाँ हिस्सा (मूल वेतन + DA)।
  • स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति: 25 वर्ष की अर्हक सेवा के बाद UPS विकल्प उपलब्ध है।
    • सुनिश्चित भुगतान उस तिथि से शुरू होता है, जिस तिथि को कर्मचारी सेवा में बने रहते हुए सेवानिवृत्त होता है।
  • बहिष्करण: निष्कासन, बर्खास्तगी, या इस्तीफे के मामलों में कोई सुनिश्चित भुगतान की व्यवस्था नहीं है।
  • योगदान संरचना
    • कर्मचारी अंशदान: 10% (मूल वेतन + DA)।
    • सरकारी योगदान
      • मिलान योगदान (Matching contribution): व्यक्तिगत कोष का 10% (मूल वेतन + DA)।
      • अतिरिक्त योगदान (Additional contribution): पूल कॉर्पस का 8.5% (मूल वेतन + DA)।
  • कुल सरकारी योगदान: 18.5% (NPS  के तहत 14% से अधिक)।

  • व्यक्तिगत कोष: इसमें कर्मचारी एवं समान सरकारी अंशदान शामिल हैं।
    • कर्मचारी PFRDA द्वारा विनियमित निवेश विकल्प चुन सकते हैं।
    • एक ‘डिफाल्ट’ निवेश पैटर्न PFRDA द्वारा परिभाषित किया जाएगा।
  • पूल कॉर्पस: इसमें अतिरिक्त सरकारी योगदान शामिल है।
    • निवेश संबंधी निर्णय केवल केंद्र सरकार द्वारा लिए जाते हैं।

महत्त्व

  • सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है।
  • मुद्रास्फीति-समायोजित पेंशन सुनिश्चित करता है, जो सेवानिवृत्त लोगों को बढ़ती लागत से बचाता है।
  • पेंशन लाभ को सेवा वर्षों से जोड़कर दीर्घकालिक सेवा को प्रोत्साहित करता है।
  • एक सुनिश्चित पेंशन विकल्प को प्रस्तुत कर राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) को पूर्ण करता है।

UPS से जुड़ी चिंताएँ

  • बाजार जोखिम: UPS बाजार-आधारित रिटर्न को शामिल करता है, जिसका अर्थ है कि UPS  के तहत पेंशन अभी भी NPS के समान बाजार की अस्थिरता से प्रभावित हो सकती है।
  • कम गारंटी वाली पेंशन: UPS, NPS की तुलना में अधिक सुरक्षा प्रदान करता है, परंतु यह OPS के पूर्ण गारंटीकृत लाभों के अनुकूल नहीं है।
  • सीमित लचीलापन: UPS की हाइब्रिड प्रकृति OPS की तुलना में लचीलेपन को सीमित कर सकती है। इस नई प्रणाली को अपनाने के लिए परिभाषित लाभ और अंशदान-आधारित पेंशन दोनों की बेहतर समझ की आवश्यकता हो सकती है।
  • राजनीतिक विरोध: UPS को लागू करने में राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, खासकर उन लोगों से जो मौजूदा पेंशन योजनाओं में परिवर्तन का विरोध करते हैं।
  • लॉजिस्टिक चुनौतियाँ: बड़ी संख्या में लोगों एवं संगठनों को शामिल करने के कारण UPS को लागू करने में महत्त्वपूर्ण लॉजिस्टिक चुनौतियाँ सामने आएँगी।
  • VRS लेने पर नुकसान: यदि कोई कर्मचारी 25 वर्ष की सेवा पूरी करने से पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (VRS) लेता है, तो उसे VRS की तारीख से पेंशन लाभ नहीं मिलेगा, लेकिन 60 वर्ष की आयु तक पहुँचने के बाद उसे पेंशन लाभ मिलेगा।

UPS, NPS एवं OPS (पुरानी पेंशन योजना) के बीच अंतर

OPS NPS UPS
प्रयोज्यता सरकारी कर्मचारी

(केंद्र एवं राज्य)

वर्ष 2004 के बाद केंद्र सरकार के कर्मचारियों (सशस्त्र बलों को छोड़कर) के लिए अनिवार्य। NPS के अंतर्गत सभी केंद्रीय सरकारी कर्मचारी
पेंशन

मात्रा

अंतिम  वेतन का 50% कोई निश्चित पेंशन नहीं यह बाजार के रिटर्न पर निर्भर करती है। सेवा के अंतिम 12 महीनों के औसत मूल वेतन का 50%।
कर्मचारी

योगदान

कोई योगदान नहीं वेतन का 10% वेतन का 10%
एकमुश्त राशि का भुगतान पेंशन का 40% एकमुश्त राशि के रूप में गणना NPS कोष का 60% एकमुश्त निकाला जा सकता है। सेवानिवृत्ति पर प्रदान किया जाता है।
मुद्रास्फीति संरक्षण DA के माध्यम से गारंटी नहीं मुद्रास्फीति सूचकांक।

संदर्भ 

खगोलविदों ने WASP-127b पर 33,000 किमी./घंटा की आश्चर्यजनक गति से प्रवाहित पवनों की खोज की है, जो किसी भी ज्ञात ग्रह पर अब तक देखी गई सबसे तीव्र जेट-स्ट्रीम पवनें हैं।

संबंधित तथ्य

  • यह विशाल गैसीय ग्रह हमारी आकाशगंगा में लगभग 520 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है तथा अपने तारे के बहुत निकट से परिक्रमा करता है।

जेट स्ट्रीम क्या हैं?

  • जेट स्ट्रीम तीव्र गति से चलने वाली पवनों की संकीर्ण पट्टियाँ होती हैं, जो वायुमंडल में पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती हैं।
  • यह स्ट्रीम 442 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की गति से प्रवाहित होती है, लेकिन वे हमारे सौर मंडल में सबसे तीव्र नहीं हैं।
  • पृथ्वी पर चार मुख्य जेट स्ट्रीम हैं:
    • उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के पास दो ध्रुवीय जेट स्ट्रीम।
    • भूमध्य रेखा के पास दो उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम।

जेट स्ट्रीम भारत की जलवायु को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?

  • जेट स्ट्रीम भारत की जलवायु को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करती हैं।
  • उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम (STJ) भारतीय मानसून के आगमन एवं निवर्तन को प्रभावित करती है। 
    • गर्मियों में, STJ उत्तर की ओर खिसक जाता है, जिसके कारण मानसूनी पवनें भारी वर्षा लाती हैं।
    • सर्दियों में, STJ दक्षिण की ओर खिसक जाता है, जिससे शुष्क परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • पश्चिमी जेट धाराएँ पश्चिमी विक्षोभ उत्पन्न करती हैं, जो भारत के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी भाग में सर्दियों की वर्षा का कारण बनती हैं।
    • ये विक्षोभ, सर्दियों के महीनों में आर्द्रता प्रदान करके कृषि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • चक्रवाती गतिविधियाँ: जेट स्ट्रीम द्वारा निर्मित गर्त और कटक चक्रवाती गतिविधियों का कारण बन सकते हैं, जिससे तूफान एवं भारी वर्षा हो सकती है।
    • गर्त (Troughs) निम्न दाब के विस्तृत क्षेत्र होते हैं।
    • कटक (Ridges) उच्च दाब के विस्तृत क्षेत्र होते हैं।

जेट स्ट्रीम का निर्माण कैसे होता हैं?

  • जेट स्ट्रीम तब बनती हैं, जब वायुमंडल में गर्म वायु ठंडी वायु से मिलती है।
  • सूर्य पृथ्वी के तापमान में असमान रूप से वृद्धि करता है:
    • भूमध्य रेखा अधिक गर्म होती है क्योंकि इसे अधिक सूर्य का प्रकाश प्राप्त होता है।
    • सूर्य का प्रकाश कम होने के कारण ध्रुव ठंडे हैं।
  • जब गर्म वायु का आरोहण एवं ठंडी वायु का अवरोहण होता है, तो वायुमंडल में  वायु की गति से भी तीव्र पवनें प्रवाहित होती हैं, जिससे जेट स्ट्रीम का निर्माण होता है।

WASP-127b क्या है?

  • WASP-127b एक प्रकार का एक्सोप्लैनेट है, जिसे हॉट ज्यूपिटर कहा जाता है, जो अपने तारे के बहुत निकट परिक्रमा करने वाला एक गैसीय महाकाय ग्रह है।
    • यह G-प्रकार के तारे की परिक्रमा करता है।
  • खोज: इसकी खोज वर्ष 2016 में की गई थी। 
  • संरचना: यह मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम द्वारा निर्मित है। यह बृहस्पति ग्रह से लगभग 30% बड़ा है लेकिन इसका द्रव्यमान बृहस्पति के द्रव्यमान का केवल 16% है।
  • यह ग्रह प्रत्येक चार दिन में एक बार अपने तारे की परिक्रमा करता है, जो कि पृथ्वी-सूर्य की दूरी का केवल 5% है। 
    • इससे यह अत्यधिक गर्म हो जाता है, तापमान लगभग 1,127°C (2,060°F) होता है।

एक्सोप्लैनेट 

  • एक्सोप्लैनेट हमारे सौरमंडल के बाहर स्थित एक ग्रह है। 
  • हालाँकि अधिकांश बाह्यग्रह अन्य तारों की परिक्रमा करते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो किसी तारे की परिक्रमा किए बिना अंतरिक्ष में घूमते रहते हैं, जिन्हें अवांक्षित ग्रह (Rogue Planet) के नाम से जाना जाता है।

WASP-127b की अनूठी विशेषताएँ

  • ज्वारीय ‘लॉक रोटेशन’ (Tidally Locked Rotation)
    • जिस तरह चंद्रमा हमेशा पृथ्वी की ओर एक ही तरफ दिखता है, उसी तरह WASP-127b भी ज्वारीय रूप से घिरा हुआ है।
    • इस ग्रह का एक भाग हमेशा अपने तारे की ओर रहता है, जिसे दिन वाला भाग कहते हैं, जबकि दूसरा भाग हमेशा अँधेरे में रहता है, जिसे रात वाला भाग कहते हैं।
  • वायुमंडलीय संरचना
    • ग्रह का वायुमंडल मुख्य रूप से हाइड्रोजन एवं हीलियम द्वारा निर्मित है, जो सबसे हल्की गैसें हैं।
    • इसमें जल एवं कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे अधिक जटिल अणुओं के निशान भी मौजूद हैं, जिन्हें उन्नत शोध के माध्यम से पता लगाया गया है।
  • तापमान भिन्नता
    • WASP-127b के ध्रुवीय क्षेत्र इसके भूमध्यरेखीय क्षेत्रों की तुलना में अधिक ठंडे हैं, जो तारे के विकिरण के निरंतर संपर्क के कारण तीव्र गर्मी का अनुभव करते हैं।

WASP-127b की तुलना अन्य ग्रहों से कैसे की जाती है?

  • अन्य एक्सोप्लैनेट: दो अन्य ग्रहों पर वायु की गति अधिक देखी गई है, लेकिन ये पवनें आमतौर पर दिन से रात की ओर प्रवाहित होती हैं।
  • अद्वितीय पवन पैटर्न: WASP-127b की पवनें अद्वितीय हैं क्योंकि वे भूमध्य रेखा पर पूरे ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाती हैं।

WASP-127b पर पवनों की गति इतनी तीव्र क्यों हैं?

WASP-127b पर पवनों की तीव्र गति के कई कारण  हैं:

  • ‘होस्ट’ तारे से तीव्र विकिरण प्राप्त होना
    • यह ग्रह अपने तारे के बहुत करीब है, जिससे उसे बहुत तीव्र विकिरण प्राप्त होता है, जो उसके वायुमंडल को गर्म करता है।
    • यह ऊर्जा तापांतर उत्पन्न करती है, जिससे तीव्र पवनें प्रवाहित होती हैं।
  • ज्वारीय अवरोधन (Tidal Locking)
    • यह ग्रह दिन के समय लगातार गर्म, जबकि रात के समय  ठंडा रहता है।
    • इससे तापीय असंतुलन उत्पन्न होता है, जिस कारण वायु तेजी से प्रवाहित होती है।
  • कम द्रव्यमान एवं उच्च आकार
    • WASP-127b का आकार बहुत बड़ा है, लेकिन यह बहुत सघन नहीं है, जिससे इसका वायुमंडल ‘उभरा हुआ’ (Fluffy) है।
    • यह वायु को स्वतंत्र रूप से और उच्च गति से प्रवाहित करने की अनुमति देता है।
  • अन्य गतिशील कारक
    • वायु प्रतिरूप का निर्माण गर्मी, दाब और ग्रह के घूर्णन के बीच जटिल अंतःक्रियाओं से होता है।

यह खोज महत्त्वपूर्ण क्यों है?

WASP-127b पर वायु प्रतिरूप को समझने से खगोलविदों को निम्नलिखित के बारे में अधिक जानने में मदद मिलती है:

  • वायुमंडलीय गतिशीलता: विभिन्न परिस्थितियों में वायुमंडल किस तरह व्यवहार करता है।
  • ग्रह का निर्माण एवं विकास: इस बात की जानकारी कि ऐसे उभरे हुए ग्रह कैसे अस्तित्व में आते हैं।

संदर्भ

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने न्यूयॉर्क में साइबर अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन को संकल्प 79/243 द्वारा अपनाया है।

संबंधित तथ्य

  • हस्ताक्षर समारोह: हनोई, वियतनाम संयुक्त राष्ट्र आपराधिक न्याय संधियों के विरुद्ध पिछले उदाहरणों के अनुरूप संधि के लिए एक औपचारिक हस्ताक्षर समारोह की मेजबानी करेगा।
  • राज्यों द्वारा अनुसमर्थन और प्रवेश: हस्ताक्षर प्रक्रिया के बाद हस्ताक्षरकर्ता राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की प्रक्रिया होगी, इस प्रकार वे औपचारिक रूप से राष्ट्र पक्षकार बन जाएँगे।
  • संधि का लागू होना: चालीस राष्ट्रों के पक्षकार बनने (हस्ताक्षरित एवं अनुसमर्थित) के बाद संधि लागू होगी।
  • राष्ट्रों के पक्षकारों का सम्मेलन: एक बार संधि लागू हो जाने के बाद, राष्ट्रों के पक्षों के बीच सहयोग सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रों के पक्षों का एक सम्मेलन समय-समय पर आयोजित किया जाएगा ताकि इसके कार्यान्वयन को बढ़ावा दिया जा सके और इसकी समीक्षा की जा सके।

साइबर अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन

  • यह साइबर अपराध पर पहली वैश्विक कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्याय संधि है।
  • उद्देश्य: इस संधि का उद्देश्य साइबर अपराध की रोकथाम और प्रभावी मुकाबला करना, अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना और तकनीकी सहायता एवं क्षमता निर्माण का समर्थन करना है।
  • सचिवालय: ‘ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय’ राज्यों के सम्मेलन के सचिवालय के रूप में कार्य करेगा।
  • सदस्य: संधि को सभी 193 सदस्य देशों द्वारा सर्वसम्मति से अपनाया गया था।
  • संधि का मुख्य प्रावधान
    • वैश्विक रूपरेखा: यह संधि परीक्षण, अभियोजन और न्यायिक कार्यवाही में सहायता के लिए एक वैश्विक रूपरेखा प्रदान करती है, जिसमें प्रत्यर्पण, संयुक्त जाँच और संपत्ति की वसूली शामिल है।
    • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: यह डेटा संरक्षण, पहुँच और अवरोधन जैसे उपायों के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य तक सीमा पार पहुँच की सुविधा प्रदान करता है, जिसे त्वरित प्रतिक्रिया के लिए 24/7 संपर्क बिंदु नेटवर्क द्वारा समर्थित किया जाता है।
    • आपराधिक अपराध: यह संधि साइबर-आधारित अपराधों के साथ-साथ अनधिकृत हैकिंग और डेटा हस्तक्षेप, ऑनलाइन धोखाधड़ी तथा अंतरंग छवियों के गैर-सहमति प्रसार जैसे साइबर-सक्षम अपराधों के अपराधीकरण को संबोधित करती है।
    • बाल दुर्व्यवहार की रोकथाम: ऑनलाइन बाल यौन शोषण, शोषण सामग्री का वितरण और यौन अपराध करने के उद्देश्य से किसी बच्चे को बहकाना या तैयार करना जैसे अपराध एक केंद्र बिंदु हैं।
    • स्थापित क्षेत्राधिकार नियम: राष्ट्रों को अपने क्षेत्र में किए गए या अपने नागरिकों को प्रभावित करने वाले अपराधों पर क्षेत्राधिकार का दावा करना चाहिए, साथ ही यदि प्रत्यर्पण संभव नहीं है तो अपनी सीमाओं के अंतर्गत अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए।
      • जब अधिकार क्षेत्र एक-दूसरे का अतिक्रमण करते हैं, तो राज्यों को एक-दूसरे से परामर्श करना आवश्यक होता है।
    • राष्ट्रों के बीच सहयोग: सदस्य राष्ट्रों को इलेक्ट्रॉनिक डेटा के लिए प्रत्यर्पण, साक्ष्य साझाकरण और पारस्परिक कानूनी सहायता सहित जाँच में सहयोग करने का अधिकार दिया गया है।
    • प्रक्रियात्मक उपकरण: संधि राष्ट्रों को इलेक्ट्रॉनिक डेटा को संरक्षित करने, खोजने, जब्त करने और प्रस्तुत करने के साथ-साथ पारगमन में डेटा को रोकने का अधिकार देती है, ताकि मानव अधिकारों की रक्षा करते हुए साइबर अपराधों से निपटा जा सके।
    • प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय: राष्ट्रों को न्यायिक निगरानी, ​​स्पष्ट औचित्य, सीमित दायरा और उपायों तक पहुँच, साक्ष्य अखंडता सुनिश्चित करने तथा अधिकारों की रक्षा जैसे सुरक्षा उपायों द्वारा शासित होने की आवश्यकता है।

साइबर अपराध 

  • साइबर अपराध पर यूरोपीय परिषद के कन्वेंशन, में साइबर अपराध को इस प्रकार परिभाषित किया गया है:-
    • दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला, जिसमें डेटा का अवैध अवरोधन, सिस्टम में हस्तक्षेप जो नेटवर्क अखंडता से समझौता करता है एवं इसमें उपलब्धता एवं कॉपीराइट उल्लंघन शामिल हैं।
  • श्रेणियाँ: साइबर अपराध को दो व्यापक श्रेणियों के साथ ऑनलाइन गतिविधियों की एक शृंखला के लिए एक व्यापक शब्द के रूप में उपयोग किया जाता है।
    • साइबर सक्षम: ये ऑनलाइन की जाने वाली आपराधिक गतिविधियाँ हैं, लेकिन इसके लिए कंप्यूटर के उपयोग की आवश्यकता नहीं होती है।
      • उदाहरण: इसमें ड्रग और हथियारों की तस्करी, पहचान की चोरी, धोखाधड़ी और हिंसा को बढ़ावा देना शामिल है।
    • साइबर आधारित अपराध: ये ऐसे अपराध हैं, जो केवल सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) उपकरणों के उपयोग के माध्यम से किए जा सकते हैं। 
      • उदाहरण: हैकिंग; रैनसमवेयर; डिजिटल गिरफ्तारी; फिशिंग आदि।
  • भारत के संदर्भ में
    • वर्ष 2024 में भारत वैश्विक स्तर पर साइबर हमलों के लिए दूसरा सबसे अधिक लक्षित देश होगा, जहाँ प्रति लाख जनसंख्या पर 129 साइबर अपराध दर्ज किए गए।
      • दिल्ली में सर्वाधिक 755 मामले दर्ज किए गए, उसके बाद हरियाणा (381) और तेलंगाना (261) का स्थान रहा।
    • वित्तीय धोखाधड़ी: वर्ष 2023 में खातों में सेंधमारी की संख्या के मामले में भारत वैश्विक स्तर पर पाँचवें स्थान पर रहा, जहाँ 5.3 मिलियन खातों के लीक होने और नागरिकों द्वारा प्रत्येक मिनट साइबर अपराधियों के हाथों लगभग ₹1.3 – ₹1.5 लाख का नुकसान होने की सूचना है।

  • साइबर अपराध के प्रति भारत की संवेदनशीलता के कारण
    • कम डिजिटल साक्षरता: वर्ष 2023 तक केवल 37% आबादी डिजिटल साक्षर थी और इनमें से एक महत्त्वपूर्ण हिस्से में ऑनलाइन सुरक्षा और सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में बुनियादी ज्ञान का अभाव है, जिससे वे साइबर हमलों के प्रति अतिसंवेदनशील हो जाते हैं।
      • उदाहरण: कई लोग अभी भी पुराने उपकरणों का उपयोग करते हैं, जो अद्यतन सुरक्षा सुविधाओं की कमी के कारण साइबर खतरों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
    • तेजी से डिजिटलीकरण: सस्ती इंटरनेट सेवाओं के कारण भारत में डिजिटल तकनीकों और ऑनलाइन सेवाओं को तेजी से अपनाया जा रहा है, जिसने मजबूत साइबर सुरक्षा उपायों के विकास को पीछे छोड़ दिया है।
    • इंटरनेट उपयोगकर्ता का बड़ा आधार: भारत का इंटरनेट उपयोगकर्ता आधार दुनिया में सबसे बड़ा है, जो साइबर अपराधियों के लिए कार्य करने की बहुत बड़ी संभावना प्रदान करता है।
    • अपर्याप्त साइबर सुरक्षा अवसंरचना: भारत अभी भी साइबर खतरों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए आवश्यक अवसंरचना और विशेषज्ञता विकसित कर रहा है।
    • कमजोर कानूनी ढाँचा: भारत में अभी भी डेटा सुरक्षा कानून नहीं है और मौजूदा कानूनों को लागू करना चुनौतीपूर्ण है क्योंकि कानूनी ढाँचा उभरते साइबर खतरों से निपटने के लिए पूरी तरह से सुसज्जित नहीं हो सकता है।
    • आपूर्ति शृंखला की कमजोरियाँ: आपूर्ति शृंखला में कमजोर साइबर सुरक्षा प्रथाएँ व्यवसायों को तीसरे पक्ष के विक्रेताओं के माध्यम से साइबर खतरों के लिए उजागर कर सकती हैं।
    • जागरूकता की कमी: नागरिकों को ऑनलाइन व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा के महत्त्व के बारे में अच्छी तरह से शिक्षित नहीं किया जाता है, जिससे वे फिशिंग, घोटाले और अन्य धोखाधड़ी गतिविधियों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
      • उदाहरण: प्रसिद्ध हस्तियों या किसी परिचित की नकल करके उन्हें भावनात्मक रूप से प्रभावित करके उनके व्यक्तिगत विवरण जानकारी प्राप्त करने और धोखाधड़ी के मामले सामने आए हैं।
    • दूरसंचार अवसंरचना में कमजोरियाँ: भारत में दूरसंचार अवसंरचना, प्रायः साइबर फ्राड कॉल एवं संदेश संबंधी डेटा का प्रबंधन के लिए तैयार नहीं है, जिससे साइबर अपराधियों के लिए लाभ उठाने के लिए अनुकूल स्थिति विकसित हो जाती है।
  • साइबर अपराध से निपटने में चुनौतियाँ
    • सामंजस्यपूर्ण कानूनी ढाँचे का अभाव: साइबर अपराध एक अंतरराष्ट्रीय अपराध है, जिसकी जाँच करना और उसका पता लगाना कठिन है, क्योंकि कानूनी प्रणालियों, साइबर सुरक्षा कानूनों और प्रवर्तन क्षमताओं में महत्त्वपूर्ण अंतराल के कारण इसे संबोधित करने के लिए कोई एकीकृत दृष्टिकोण नहीं है।
      • उदाहरण: एक देश में साइबर अपराध माना जाने वाला कार्य दूसरे देश में ऐसा नहीं माना जा सकता है, जिससे संघर्ष और प्रवर्तन अंतराल उत्पन्न होते हैं।
    • क्षमता अंतराल: विकासशील देशों में प्रभावी साइबर सुरक्षा उपायों को लागू करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे, विशेषज्ञता और संसाधनों की कमी है, जिसके कारण प्रतिक्रिया खंडित होती है।
    • असंगत: साइबर अपराध की कोई व्यापक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है, इसलिए साइबर अपराध की परिभाषा पर असहमति और संप्रभुता के बारे में चिंताएँ जाँच एवं प्रवर्तन में सहयोग में बाधा डाल सकती हैं।
    • गैर-रिपोर्टिंग: साइबर अपराध की अधिकांश घटनाएँ शर्म, अपराधबोध, भावनात्मक हेर-फेर, अशिक्षा, ब्लैकमेल आदि जैसे विभिन्न कारणों से रिपोर्ट नहीं की जाती हैं।
    • प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण: भारत में साइबर सुरक्षा के लिए एक खंडित और प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण है क्योंकि अभी भी साइबर अपराधों से निपटने के लिए कोई व्यापक कानून या सर्वोच्च संस्था नहीं बनाई गई है।
  • साइबर अपराधों से बचाव
    • साइबर स्वच्छता अभ्यास: व्यक्तियों एवं संगठनों को नियमित सॉफ्टवेयर अपडेट, मजबूत पासवर्ड प्रबंधन और सुरक्षित ऑनलाइन व्यवहार जैसे अच्छे साइबर स्वच्छता अभ्यास अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
    • साइबर बीमा: साइबर बीमा पॉलिसियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि यह साइबर-जोखिम को शामिल करता है और कानूनी सहायता, जाँचकर्ताओं तथा ग्राहक क्रेडिट या रिफंड के भुगतान सहित उपचार से जुड़ी लागतों में मदद करता है।
    • उन्नत साइबर सुरक्षा ढाँचे को लागू करना: साइबर सुरक्षा ढाँचे किसी संगठन के व्यावसायिक संचालन को सुरक्षित करने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं, नीति प्रक्रियाओं, सुरक्षा प्रोटोकॉल और अन्य आवश्यक उपकरणों की एक शृंखला प्रदान करते हैं।
    • एंटीवायरस: उन्नत साइबर सुरक्षा तकनीकों में निवेश करना, जो महत्त्वपूर्ण सूचना प्रणालियों और नेटवर्क की सुरक्षा में मदद करेंगे।
    • सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा: सामान्य साइबर खतरों, सुरक्षित ऑनलाइन प्रथाओं और साइबर सुरक्षा के महत्त्व के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान संचालित करना।

आगे की राह

  • कानूनी ढाँचे को मजबूत करना: भारत को एक व्यापक कानूनी ढाँचे की आवश्यकता है, जो केवल साइबर अपराध से निपटता हो क्योंकि यह अभी भी एक उभरता हुआ परिदृश्य है और IT अधिनियम (2000) पर्याप्त नहीं है।
  • साइबर सुरक्षा अवसंरचना: खतरों का पता लगाने और उन्हें बेअसर करने के लिए सभी स्तरों यानी राष्ट्रीय, राज्य, स्थानीय और व्यक्तिगत स्तर पर मजबूत साइबर सुरक्षा प्रणाली विकसित करना।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत को जुड़े रहने और जागरूक रहने के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय तंत्रों के माध्यम से वैश्विक स्तर पर सक्रिय रूप से भाग लेने की आवश्यकता है।
    • भारत ने साइबर अपराध पर बुडापेस्ट कन्वेंशन तथा हाल ही में साइबर अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के गठन में सक्रिय रूप से भाग लिया है।
  • प्रशिक्षण और कौशल विकास: कानून प्रवर्तन अधिकारियों को साइबर अपराधों का पता लगाने में पुलिस को प्रशिक्षित करने की महाराष्ट्र की पहल जैसे उभरते साइबर खतरों से निपटने के लिए नियमित रूप से कुशल और उन्नत होना चाहिए।
  • जन जागरूकता: स्कूलों, कार्यस्थलों आदि में साइबर जागरूकता अभ्यास संबंधी नियमित अभियान संचालित किए जाने चाहिए। साथ ही साइबर धोखाधड़ी पर लक्षित संदेश के लिए सोशल मीडिया अभियान और टेलीविजन विज्ञापन की भी आवश्यकता है।

भारत में साइबर कानून

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT अधिनियम): यह अधिनियम साइबर कानून की नींव के रूप में कार्य करता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के साइबर अपराधों को शामिल किया गया है और दंड आरोपित किया गया है।
    • इसमें शामिल अपराध हैं- कंप्यूटर सिस्टम में अनधिकृत रूप से प्रवेश करना, डेटा चोरी करना, हैकिंग, साइबर आतंकवाद और इंटरनेट पर अनुचित या आपत्तिजनक सामग्री प्रसारित करना।
  • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023: यह डेटा संग्रह, प्रसंस्करण, भंडारण और उपयोग को विनियमित करने पर ध्यान केंद्रित करता है, हालाँकि अभिभावक की अनुमति के माध्यम से नाबालिगों की सहमति प्राप्त करने पर जोर देते हुए गोपनीयता सुरक्षा उपायों को मजबूत करता है।

साइबर अपराध रोकने के लिए सरकारी पहल

  • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C): केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) के तहत कार्यरत, I4C भारत में साइबर अपराध से निपटने के प्रयासों के समन्वय के लिए नोडल बिंदु के रूप में कार्य करता है।
  • राष्ट्रीय साइबर फोरेंसिक प्रयोगशाला: यह सभी राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस के जाँच अधिकारियों (IO) को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से प्रारंभिक चरण की साइबर फोरेंसिक सहायता प्रदान करने के लिए स्थापित की गई है।
  • कॉलिंग नेम प्रेजेंटेशन (CNAP): इस पहल का उद्देश्य प्राप्तकर्ता के डिवाइस पर कॉल करने वाले का नाम प्रदर्शित करके स्पैम और धोखाधड़ी वाली कॉल को कम करना है।
    • TRAI ने सिफारिश की है कि सभी एक्सेस सेवा प्रदाता अपने ग्राहकों को CNAP प्रदान करें और CNAP विकसित करने के लिए दूरसंचार विभाग के साथ कार्य कर रहा है।
  • ‘साइट्रेन’ पोर्टल: यह साइबर अपराध जाँच, फोरेंसिक, अभियोजन आदि के महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के माध्यम से सभी हितधारकों, पुलिस अधिकारियों, न्यायिक अधिकारियों और अभियोजकों की क्षमता निर्माण के लिए एक विशाल ओपन ऑनलाइन पाठ्यक्रम (Massive Open Online Courses-MOOC) मंच है, साथ ही प्रमाणन भी प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल: पोर्टल (https://cybercrime.gov.) को जनता को सभी प्रकार के साइबर अपराधों के बारे में घटनाओं की रिपोर्ट करने में सक्षम बनाने हेतु लॉन्च किया गया है, जिसमें महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध साइबर अपराधों पर विशेष ध्यान दिया गया है।
  • राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (NCIIPC): यह केंद्र महत्त्वपूर्ण अवसंरचना क्षेत्रों की पहचान करता है, उनकी सुरक्षा करता है और महत्त्वपूर्ण अवसंरचना सुरक्षा को बढ़ाने के लिए हितधारकों के साथ समन्वय करता है।
  • भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (CERT-In): CERT-In कंप्यूटर सुरक्षा घटनाओं के होने पर प्रतिक्रिया देने के लिए राष्ट्रीय नोडल एजेंसी है।
  • मानकीकरण: सभी बैंकों को अपने ग्राहक सेवा नंबरों की शुरुआत में ‘160’ रखने के लिए कहा गया है ताकि उन्हें वास्तविक के रूप में पहचाना जा सके।
    • तीन अंकों वाला नंबर 10 अंकों वाले मोबाइल नंबर का हिस्सा होगा और बिना नंबर के किसी भी कॉल को नागरिकों द्वारा नहीं उठाया जाना चाहिए।
  • URL फिशिंग धोखाधड़ी: भारत में सभी बैंकों के URL में .bnk.in होगा और वित्तीय संस्थानों के URL में .fin.in होगा।
  • व्हाइट लिस्टिंग: सभी टेलीकॉम ऑपरेटर नागरिकों को मैसेज (SMS सहित) के जरिए भेजे गए लिंक को ‘व्हाइट लिस्ट’ करेंगे। जो लिंक व्हाइट लिस्ट नहीं किए गए हैं, उन्हें ऑपरेटर स्तर पर निपटाया जाएगा और वे ग्राहकों तक नहीं पहुँच पाएँगे।

संदर्भ 

इंदौर और उदयपुर, आर्द्रभूमि पर रामसर कन्वेंशन के तहत मान्यता प्राप्त आर्द्रभूमि शहरों की वैश्विक सूची में जगह बनाने वाले पहले दो भारतीय शहर बन गए हैं।

इंदौर और उदयपुर आर्द्रभूमि के बारे में

  • इंदौर
    • सिरपुर झील: जल पक्षियों के विचरण के लिए अनुकूल रामसर स्थल।
    • इसे पक्षी अभयारण्य के रूप में विकसित किया जा रहा है।
  • उदयपुर
    • पाँच प्रमुख आर्द्रभूमियों से विस्तृत है:
      • पिछोला (Pichola)
      • फतेहसागर (Fateh Sagar)
      • रंग सागर (Rang Sagar)
      • स्वरूप सागर (Swaroop Sagar)
      • दूध तलाई (Doodh Talai)

वेटलैंड सिटी मान्यता कार्यक्रम के बारे में

  • एक स्वैच्छिक मान्यता प्रणाली, जो शहरों को आर्द्रभूमि के संरक्षण में उनके प्रयासों के लिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्रदान करती है।
  • इस कार्यक्रम को उरुग्वे में रामसर कन्वेंशन के COP-12 (2015) में स्वीकृत किया गया था।
  • उद्देश्य: शहरी और अर्द्ध-शहरी आर्द्रभूमि के संरक्षण एवं विवेकपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना।
    • शहरों को आर्द्रभूमि संरक्षण एवं पुनरुद्धार के उपाय अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • मान्यता मानदंड: मान्यता प्राप्त करने के लिए, किसी शहर को छह अंतरराष्ट्रीय मानदंडों को पूरा करना होगा:
    • इसमें एक या एक से अधिक रामसर स्थल अथवा महत्त्वपूर्ण आर्द्रभूमियाँ हैं, जो शहर को पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करती हैं।
    • इसने आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए उपाय अपनाए हैं।
    • इसने आर्द्रभूमि पुनर्स्थापन उपायों को लागू किया है।
    • यह अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आर्द्रभूमि के लिए एकीकृत स्थानिक/भूमि-उपयोग योजना पर विचार करता है।
    • इसने आर्द्रभूमि मूल्यों के बारे में जन जागरूकता को बढ़ावा दिया है और निर्णय लेने में सार्वजनिक भागीदारी को सक्षम बनाया है।
    • इसने उपायों की तैयारी और कार्यान्वयन में सहायता के लिए एक स्थानीय समिति की स्थापना की है।
  • वैधता: मान्यता 6 वर्ष के लिए वैध है और अगर शहर मानदंडों को पूरा करना जारी रखता है तो इसे नवीनीकृत किया जा सकता है।
  • वैश्विक सूची: अब तक, दुनिया भर में 74 मान्यता प्राप्त आर्द्रभूमि शहर हैं।
    • मान्यता प्राप्त शहरों की सबसे अधिक संख्या चीन (22) में है, उसके बाद फ्राँस (9) का स्थान है।

रामसर कन्वेंशन और मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड (Montreux Record)

  • रामसर कन्वेंशन (Ramsar Convention)
    • वर्ष 1971 में ईरान के रामसर में स्थापित एक अंतर-सरकारी संधि।
    • वर्ष 1975 में लागू हुई।
    • वर्तमान में, भारत सहित 172 सदस्य देश शामिल हैं।
    • भारत में अभी 85 रामसर स्थल हैं।
    • कन्वेंशन के तीन स्तंभ
      • सभी आर्द्रभूमियों के विवेकपूर्ण उपयोग की दिशा में कार्य करना।
      • अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों की सूची (रामसर सूची) के लिए उपयुक्त आर्द्रभूमियों को नामित करना और उनका प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करना।
      • सीमा पार आर्द्रभूमियों, साझा आर्द्रभूमि प्रणालियों और साझा प्रजातियों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करना।
    • रामसर स्थल: भारत में अभी 85 रामसर स्थल हैं।
      • जनवरी 2025 तक, यूनाइटेड किंगडम में दुनिया में सर्वाधिक 175 रामसर स्थल हैं, उसके बाद मैक्सिको (142) का स्थान है।
      • तमिलनाडु में वर्तमान में भारत में सर्वाधिक 18 रामसर स्थल हैं, उसके बाद 10 स्थलों के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर है।
  • मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड (Montreux Record)
    • यह अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि के रूप में नामित आर्द्रभूमि स्थलों का संकलन है, जहाँ तकनीकी विकास, प्रदूषण या अन्य मानवीय गतिविधियों के कारण पारिस्थितिकी चरित्र में परिवर्तन हुए हैं, हो रहे हैं या होने की आशंका है।
    • यह रिकॉर्ड रामसर सूची के हिस्से के रूप में बनाए रखा जाता है।
    • मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड के तहत भारत में रामसर स्थल: केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और लोकटक झील।

संदर्भ

हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह लाउडस्पीकर, पब्लिक एड्रेस सिस्टम (PAS) या किसी भी अन्य ध्वनि-उत्सर्जक गैजेट में डेसिबल के स्तर को नियंत्रित करने के लिए एक अंतर्निहित तंत्र का निर्माण करे, जिसका उपयोग पूजा स्थलों या संस्थानों में किया जाता है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों।

बॉम्बे उच्च न्यायालय का निर्णय

  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
  • महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस को ध्वनि प्रदूषण नियमों को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया।
  • लाउडस्पीकर और पब्लिक एड्रेस सिस्टम (PAS) के लिए डेसिबल सीमाओं का अंशांकन और स्वतः निर्धारण का सुझाव दिया गया।

धार्मिक आयोजनों हेतु अनिवार्यता परीक्षण

  • सिद्धांत की उत्पत्ति: शिरूर मठ मामले (1954) में सर्वोच्च न्यायालय की 7 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा प्रस्तुत किया गया।
    • न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद-25 (धर्म की स्वतंत्रता) के तहत ‘धर्म’ शब्द से जुड़े सभी अनुष्ठान एवं प्रथाएँ शामिल हैं।
    • न्यायपालिका ने किसी धर्म की आवश्यक और अनावश्यक प्रथाओं को निर्धारित करने की जिम्मेदारी ली।
  • अनिवार्यता परीक्षण की मुख्य विशेषताएँ
    • उद्देश्य: केवल उन धार्मिक प्रथाओं की रक्षा करना, जो किसी धर्म के लिए आवश्यक एवं अभिन्न हैं।
    • न्यायिक भूमिका: न्यायालय यह जाँच करते हैं कि क्या कोई प्रथा है:
      • धार्मिक ग्रंथों में निहित है।
      • ऐतिहासिक रूप से धर्म का अभिन्न अंग है।
      • अधिकांश अनुयायियों द्वारा इसका पालन किया जाता है।
  • उदाहरण: सबरीमाला मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने जाँच की कि क्या मासिक धर्म की आयु वाली महिलाओं को प्रवेश से बाहर रखना हिंदू धर्म की एक अनिवार्य प्रथा है।
    • अयोध्या मामले (1994) में, न्यायालय ने निर्णय दिया कि मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, क्योंकि नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है।

न्यायिक टिप्पणियाँ

  • स्वास्थ्य संबंधी खतरे: ध्वनि प्रदूषण एक बड़ा स्वास्थ्य खतरा है, जो मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
  • मौलिक अधिकार बनाम सार्वजनिक हित: न्यायालयों ने धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद-25) को सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं व्यवस्था के साथ संतुलित किया है।
    • लाउडस्पीकर का उपयोग एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है।
  • प्रवर्तन संबंधी चुनौतियाँ पुलिस एवं अधिकारी प्रायः राजनीतिक या सांप्रदायिक दबाव के कारण ध्वनि प्रदूषण नियमों को लागू करने में विफल रहते हैं।
    • न्यायालयों ने सख्त कार्यान्वयन और जवाबदेही की आवश्यकता पर बल दिया है।

मुख्य निर्देश

  • पूजा स्थलों और संस्थानों में डेसिबल स्तर को नियंत्रित करने के लिए अंतर्निहित तंत्र विकसित करना।
    • इन स्पीकरों में डेसिबल सीमाओं का अंशांकन या स्वतः निर्धारण (Calibration or Auto-Fixation) करना।
  • पुलिस डेसिबल मापने वाले ऐप का उपयोग करेगी और ध्वनि सीमा (Noise Limit) का उल्लंघन करने वाले उपकरणों को जब्त करेगी।
  • शिकायतकर्ताओं के लिए सुरक्षा: प्रतिशोध से बचने के लिए पहचान का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए।
  • चार-चरणीय श्रेणीबद्ध दंड प्रणाली
    • पहला उल्लंघन: पुलिस, अपराधी को चेतावनी जारी करेगी।
    • दोहरा उल्लंघन: संबंधित ट्रस्ट या संगठनों पर जुर्माना आरोपित करेगी।
      • आगे उल्लंघन करने पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी जारी करेगी।
    • लगातार उल्लंघन: पुलिस लाउडस्पीकर या ध्वनि-उत्सर्जक उपकरण जब्त करेगी।
    • लगातार गैर-अनुपालन: लाउडस्पीकर के उपयोग के लिए लाइसेंस रद्द करेगी।
      • संबंधित कानूनों के तहत अपराधियों के विरुद्ध शिकायत दर्ज करेगी।

वर्ष 2016 बॉम्बे उच्च न्यायालय का निर्णय 

  • संविधान के अनुच्छेद-25 (धर्म की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद-19(1)(A) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के तहत लाउडस्पीकर के उपयोग को मौलिक अधिकार के रूप में नहीं माना जा सकता है।
  • ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 के सख्त कार्यान्वयन के लिए निर्देश।
  • शांत क्षेत्रों में लाउडस्पीकर का उपयोग प्रतिबंधित।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

  • जुलाई 2005: सार्वजनिक स्थानों पर रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच लाउडस्पीकर और संगीत प्रणालियों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया (आपात स्थिति को छोड़कर)।
    • ध्वनि प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों का हवाला दिया गया।
  • अक्टूबर 2005: त्योहारों के दौरान वर्ष में 15 दिन के लिए ध्वनि मानदंडों में छूट दी गई, तथा मध्य रात्रि तक लाउडस्पीकर बजाने की अनुमति दी गई।
    • राज्य ध्वनि मानदंडों में ढील देने का अधिकार अन्य प्राधिकारियों को नहीं सौंप सकते है।

ध्वनि प्रदूषण के बारे में

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, ध्वनि प्रदूषण को ‘अवांछित ध्वनि’ के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • इसे वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत वायु प्रदूषक माना जाता है।
  • इसे पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत ‘ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) नियम, 2000’ द्वारा विनियमित किया जाता है।
  • ध्वनि प्रदूषण मानदंड
    • आवासीय क्षेत्र
      • दिन के समय (सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक): अधिकतम 55 डेसिबल।
      • रात के समय (रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक): अधिकतम 45 डेसिबल।
    • शांत क्षेत्र: अस्पतालों, स्कूलों और न्यायालयों के पास के क्षेत्र जहाँ लाउडस्पीकरों का उपयोग प्रतिबंधित है।

संदर्भ

इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो भारत के 76वें गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए।

यात्रा के दौरान प्रमुख समझौते और सहयोग

  • दक्षिण चीन सागर पर संयुक्त वक्तव्य
    • शांति, स्थिरता और नौवहन की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए वर्ष 1982 के UNCLOS के अनुरूप एक ‘पूर्ण एवं प्रभावी’ संहिता पर जोर दिया गया। 
    • विवादों के शांतिपूर्ण समाधान और बिना किसी बाधा के वैध समुद्री वाणिज्य का आह्वान किया गया। 
    • चीन के सैन्य दावों के बीच अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन करने पर जोर दिया गया।
  • समुद्री सहयोग
    • गुरुग्राम में वर्ष 2018 में स्थापित भारत के सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (Information Fusion Centre-Indian Ocean Region/IFC-IOR) में एक इंडोनेशियाई संपर्क अधिकारी को तैनात करने के लिए समझौता।
    • द्विपक्षीय समुद्री और साइबर सुरक्षा वार्ता की शीघ्र स्थापना।
    • हाइड्रोग्राफी,  पनडुब्बी खोज और बचाव में द्विपक्षीय सहयोग।
  • रक्षा और सामरिक संबंध
    • गहन रक्षा संबंधों के लिए रक्षा सहयोग समझौते (DCA) का अनुसमर्थन।
    • इंडोनेशिया को 3,800 करोड़ रुपये की ब्रह्मोस मिसाइलों के निर्यात के लिए समझौता किया गया।
    • विमान वाहक और जहाज निर्माण में सहयोग पर चर्चा की गई।
  • आर्थिक सहयोग
    • व्यापार और वित्तीय एकीकरण को बढ़ाने के लिए द्विपक्षीय लेन-देन में स्थानीय मुद्रा के उपयोग आधारित समझौता ज्ञापन (MoU) को लागू करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। वर्ष 2025 तक आसियान-भारत व्यापार समझौते (AITIGA) की संचालित समीक्षा के शीघ्र समापन पर सहमति व्यक्त की गई।
    • इंडोनेशिया ने वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन में शामिल होने के लिए भारत के निमंत्रण का स्वागत किया।
    • ऊर्जा, महत्त्वपूर्ण खनिजों और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में साझेदारी की गई है।
      • उदाहरण के लिए: भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (BPCL) इंडोनेशिया में नुनुकान तेल और गैस ब्लॉक को विकसित करने के लिए 121 मिलियन डॉलर का निवेश करने की योजना बना रही है।
  • सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संबंध
    • इंडोनेशियाई भाषा, संस्कृति और आनुवंशिकी पर भारत का प्रभाव देखा जा सकता है।
    • स्वास्थ्य, पारंपरिक चिकित्सा, डिजिटल विकास और सांस्कृतिक आदान-प्रदान से संबंधित समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
  • आतंकवाद विरोधी सहयोग पर समझौता ज्ञापन का नवीनीकरण: सभी प्रकार के आतंकवाद की निंदा, संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों और उनके सहयोगियों के विरुद्ध वैश्विक ठोस कार्रवाई का आह्वान।
    • भारत-इंडोनेशिया आतंकवाद विरोधी सहयोग को बढ़ाना।

सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR)

  • स्थापना: वर्ष 2018 में गुरुग्राम के सूचना प्रबंधन और विश्लेषण केंद्र (IMAC) में; भारतीय नौसेना द्वारा स्थापित किया गया।
  • उत्पत्ति: 26/11 के बाद, IMAC की स्थापना वर्ष 2014 में समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने के लिए की गई थी; नौसेना और तटरक्षक बल द्वारा संयुक्त रूप से प्रबंधित किया जाता है।
  • उद्देश्य: ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास’ (SAGAR) के भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप हिंद महासागर क्षेत्र में सहयोगात्मक समुद्री सुरक्षा को बढ़ाना।
  • सीमा: हिंद महासागर क्षेत्र और आसपास के समुद्री क्षेत्र
    • चार क्षेत्र: गिनी की खाड़ी, अदन की खाड़ी, अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और दक्षिण पूर्व एशिया।

आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौता (AITIGA)

  • यह एक व्यापार समझौता है, जिसका उद्देश्य भारत और आसियान सदस्य देशों के बीच वस्तुओं के आवागमन को सुगम बनाना है।
  • इस पर अगस्त, 2009 में बैंकॉक में हस्ताक्षर किए गए थे और यह वर्ष 2010 से लागू हुआ।

भारत-इंडोनेशिया संबंध

प्रारंभिक संबंध और उपनिवेशवाद के विरुद्ध एकजुटता (1940-1950)

  • ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध: 2,000 से अधिक वर्षों से साझा सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संबंध।
    • हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और इस्लाम भारत से इंडोनेशिया आए।
    • रामायण और महाभारत जैसे भारतीय महाकाव्य इंडोनेशियाई लोककथाओं और कलाओं को प्रभावित करते हैं।
  • उपनिवेश-विरोधी साझा संघर्ष: भारत ने डच औपनिवेशिक काल (1945-49) के दौरान इंडोनेशिया की स्वतंत्रता का समर्थन किया।
    • नेहरू ने भारतीय हवाई क्षेत्र में डच एयरलाइनों पर प्रतिबंध लगा दिया और इंडोनेशियाई राष्ट्रवादियों को मानवीय सहायता प्रदान की।
    • भारतीय पायलट बीजू पटनायक ने वर्ष 1947 में इंडोनेशियाई क्रांति के दौरान प्रमुख इंडोनेशियाई नेताओं, सुतन सजाहिर और मोहम्मद हट्टा के संरक्षण में प्रमुख भूमिका निभाई थी।
  • राजनयिक संबंधों को मजबूत करना: राष्ट्रपति सुकर्णो भारत के पहले गणतंत्र दिवस (1950) के मुख्य अतिथि थे।
    • वर्ष 1951 में हस्ताक्षरित मैत्री संधि का उद्देश्य “स्थायी शांति और अपरिवर्तनीय मित्रता” था।
  • गुटनिरपेक्षता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग: उपनिवेशवाद-विरोधी, रंगभेद और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व जैसे वैश्विक मुद्दों पर घनिष्ठ समन्वय।
    • बांडुंग सम्मेलन (1955) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने वर्ष 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की नींव रखी।

संबंधों में गिरावट (1960-1970)

  • चीन के मामले में मतभेद: वर्ष 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद भारत के चीन के साथ संबंध खराब हो गए, जबकि इंडोनेशिया ने चीन के साथ मजबूत संबंध बनाए रखे।
  • शीतयुद्ध संबंधी तनाव: वर्ष 1962 के चीन-भारत युद्ध के दौरान, इंडोनेशिया ने भारत के साथ बहुत कम एकजुटता दिखाई।
    • इंडोनेशिया ने वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान के साथ गठबंधन किया, यहाँ तक कि पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति भी की।
  • इंडोनेशिया में आंतरिक बदलाव: वर्ष 1965 के तख्तापलट के बाद सुकर्णो को सत्ता से हटा दिया गया और जनरल सुहार्तो ने सत्ता सँभाली, जिससे इंडोनेशिया की विदेश नीति में बदलाव आया।
    • जकार्ता ने भारत के साथ संबंधों को सुधारना शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1967 में व्यापार समझौते हुए।
  • संबंधों में ठहराव: हालाँकि वर्ष 1977 के समुद्री सीमा समझौते जैसे प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे, शीतयुद्ध के कारण व्यापक संबंध सीमित रहे।

पुनरुद्धार और ‘लुक ईस्ट’ नीति

  • शीतयुद्ध के बाद का पुनर्संतुलन: पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार ने 1990 के दशक में ‘लुक ईस्ट’ (Look East) नीति शुरू की, जिसका लक्ष्य इंडोनेशिया सहित दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ मजबूत संबंध बनाना था।
  • आर्थिक उदारीकरण: भारत के सुधारों ने आर्थिक और व्यापारिक साझेदारी के अवसर उत्पन्न किए।
    • इंडोनेशिया आसियान (ASEAN) में, विशेषकर व्यापार और निवेश में भारत के लिए एक प्रमुख भागीदार बन गया।
  • व्यापक रणनीतिक साझेदारी (2018): भारत और इंडोनेशिया ने रक्षा, व्यापार और समुद्री सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाया।
    • प्रधानमंत्री मोदी की जकार्ता यात्रा के दौरान इंडो-पैसिफिक समुद्री सहयोग के लिए साझा दृष्टिकोण अपनाया गया।
  • उच्च स्तरीय सहभागिता: संबंधों को मजबूत करने के लिए नेताओं द्वारा नियमित यात्राएँ।
    • गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के रूप में सुकर्णो (1950) से लेकर प्रबोवो सुबियांतो (2025) तक।
    • वर्ष 2018 में पीएम मोदी की इंडोनेशिया यात्राएँ एवं आसियान और G20 शिखर सम्मेलनों के दौरान कई द्विपक्षीय वार्ताएँ।

भू-रणनीतिक संबंध

  • समुद्री पड़ोसी: हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में साझा समुद्री सीमाएँ।
    • मलक्का जलडमरूमध्य का सामरिक महत्त्व, एक महत्त्वपूर्ण व्यापार मार्ग।
  • भारत-प्रशांत सहयोग: भारत-प्रशांत में समुद्री सहयोग पर साझा दृष्टिकोण को अपनाना (2018)।
    • इंडोनेशिया के वैश्विक समुद्री आधार दृष्टिकोण के साथ भारत की एक्ट ईस्ट नीति का संरेखण।
  • नौवहन की स्वतंत्रता: भारत-प्रशांत में नियम-आधारित व्यवस्था के लिए UNCLOS (1982) के प्रति संयुक्त प्रतिबद्धता।
    • समुद्री सुरक्षा, नौवहन की स्वतंत्रता और ‘ओवरफ्लाइट’ अधिकारों पर बल।
  • क्षेत्रीय संपर्क
    • मलक्का जलडमरूमध्य तक बेहतर पहुँच के लिए इंडोनेशिया के सबंग बंदरगाह का विकास।
    • अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह तथा इंडोनेशिया के आचेह के बीच संबंधों को मजबूत किया गया।

मलक्का जलडमरूमध्य 

  • मलक्का जलडमरूमध्य 800 किलोमीटर लंबा और 65 से 250 किलोमीटर चौड़ा एक सँकरा जलक्षेत्र है, जो उत्तर-पूर्व में मलय प्रायद्वीप और दक्षिण-पश्चिम में इंडोनेशियाई द्वीप सुमात्रा के बीच स्थित है तथा अंडमान सागर एवं दक्षिण चीन सागर को जोड़ता है।

रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग

  • सैन्य सहयोग: गरुड़ शक्ति (सेना) और समुद्र शक्ति (नौसेना) अभ्यास अंतर-संचालन क्षमता को बढ़ाते हैं।
    • इंड-इंडो कॉर्पेट (IND-INDO CORPAT) (समन्वित गश्त) समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने और समुद्री खतरों से निपटने के लिए।
  • रक्षा आधुनिकीकरण: ब्रह्मोस मिसाइलों और हल्के लड़ाकू विमानों जैसे भारतीय रक्षा उत्पादों में इंडोनेशिया ने अपनी इच्छा जताई।
    • इस निर्णय का कारण इंडोनेशिया के रक्षा विनिर्माण और आधुनिकीकरण प्रयासों के लिए समर्थन करना था।
  • समुद्री सुरक्षा: गुरुग्राम में भारत के सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) में संपर्क अधिकारी नियुक्त किया गया।
    • हाइड्रोग्राफी और पनडुब्बी खोज और बचाव कार्यों पर सहयोग पर ध्यान देने के लिए।

आर्थिक संबंध

  • व्यापार संबंध: सिंगापुर के बाद इंडोनेशिया आसियान में भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
    • द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2005-06 में 4.3 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 38.84 बिलियन डॉलर और वर्ष 2023-24 में 29.40 बिलियन डॉलर हो गया।
      • भारतीय आयात: कोयला, कच्चा पाम तेल, रबर, खनिज।
      • भारतीय निर्यात: परिष्कृत पेट्रोलियम, दूरसंचार उपकरण, कृषि उत्पाद।
  • निवेश सहयोग: वर्ष 2000-2024 के दौरान इंडोनेशिया में भारतीय निवेश 1.56 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया, जिसमें कपड़ा, बुनियादी ढाँचे और खनन पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • स्थानीय मुद्रा निपटान (Local Currency Settlement-LCS): मार्च 2024 में, विदेशी मुद्राओं पर निर्भरता कम करने और वित्तीय एकीकरण को गहरा करने के लिए रुपये में व्यापार हेतु भारतीय रिजर्व बैंक और बैंक इंडोनेशिया के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।

बहुपक्षीय जुड़ाव

  • वैश्विक और क्षेत्रीय मंच: ASEAN, G20, IORA और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में सक्रिय भागीदारी।
    • ASEAN केंद्रीयता और इंडोनेशिया की ब्रिक्स सदस्यता के लिए भारत का समर्थन।
  • भारत-प्रशांत समन्वय: भारत की भारत-प्रशांत महासागर पहल (Indo-Pacific Oceans Initiative-IPOI) के साथ भारत-प्रशांत पर आसियान दृष्टिकोण को समन्वित करना।
    • ब्लू इकोनॉमी, समुद्री संसाधनों और आपदा संबंधी लचीलेपन  पर सहयोग।
  • दक्षिण-दक्षिण सहयोग: विकासशील देशों की प्राथमिकताओं को बढ़ाने के लिए ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ’ जैसे मंचों के तहत सहयोग।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा: दक्षिण चीन सागर में शांति और स्थिरता के लिए संयुक्त रूप से समर्थन करना।
    • IOR में समुद्री डकैती, मादक पदार्थों की तस्करी और अवैध मत्स्यन से निपटने पर निरंतर ध्यान केंद्रित करना।

इंडो-पैसिफिक महासागर पहल (Indo Pacific Oceans Initiative-IPOI) 

  • यह एक गैर-संधि आधारित, स्वैच्छिक व्यवस्था है, जिसे भारत ने वर्ष 2019 में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में शुरू किया था।
    • यह भारत की वर्ष 2015 की ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास’ (SAGAR) पहल पर आधारित है।
  • इसका उद्देश्य: सुरक्षा, पारिस्थितिकी, संसाधन प्रबंधन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण जैसे विभिन्न समुद्री क्षेत्रों में व्यावहारिक सहयोग के माध्यम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देना है।
  • यह ‘स्वतंत्र एवं खुले हिंद-प्रशांत’ के सिद्धांत और अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानूनों का सम्मान करने पर आधारित है।

सांस्कृतिक और शैक्षिक सहयोग

  • सांस्कृतिक बंधन: इंडोनेशियाई लोककथाओं में रामायण और महाभारत का प्रभाव।
    • प्रंबानन मंदिर का जीर्णोद्धार और संरक्षण।
    • जकार्ता और बाली में भारतीय सांस्कृतिक केंद्रों के माध्यम से सांस्कृतिक आदान-प्रदान।
    • जकार्ता में वर्ष 1989 में जवाहरलाल नेहरू भारतीय सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की गई थी।
  • शैक्षिक सहयोग: इंडोनेशियाई छात्रों के लिए ITEC और ICCR कार्यक्रमों के तहत छात्रवृत्तियाँ प्रदान की गई।
    • विश्वविद्यालयों के बीच सहयोग, जिसमें आसियान-भारत नेटवर्क के तहत समझौता ज्ञापन शामिल हैं।
  • नागरिक संबंध: इंडोनेशिया में लगभग 14,000 भारतीय नागरिक (NRI) रहते हैं, जिनमें उद्यमी, इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, IT पेशेवर, सलाहकार, बैंकर और अन्य पेशे से जुड़े लोग शामिल हैं।
    • सीधी उड़ानों और बाली यात्रा जैसी पर्यटन को बढ़ावा देने वाली पहलों के साथ बेहतर संपर्क।
    • अंतरराष्ट्रीय योग दिवस जैसे कार्यक्रमों का संयुक्त उत्सव।
  • कौशल विकास: भारतीय क्षमता निर्माण पहल के तहत इंडोनेशियाई स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और नीति निर्माताओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम।

भारतीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग (Indian Technical & Economic Cooperation-ITEC) कार्यक्रम।

  • विदेश मंत्रालय का एक प्रमुख क्षमता निर्माण कार्यक्रम, ITEC, 1964 से अस्तित्व में है।
  • ITEC विकासशील दुनिया के बाकी हिस्सों के साथ ज्ञान और विशेषज्ञता साझा करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम रहा है।
  • यह विकासशील देशों के छात्रों को भारत में उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।

भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (Indian Council for Cultural Relations-ICCR) छात्रवृत्ति

  • भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) विदेशी छात्रों को भारत में अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करती है।
  • छात्रवृत्ति में स्नातक, स्नातकोत्तर और  Ph.D. कार्यक्रमों सहित विभिन्न पाठ्यक्रम शामिल हैं।

द्विपक्षीय संबंधों में हालिया तनाव

  • नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC): CAA और NRC के खिलाफ भारत में विरोध प्रदर्शनों ने इंडोनेशिया के साथ संबंधों को प्रभावित किया।
    • इंडोनेशिया, जो कि मुख्य रूप से एक मुस्लिम देश है, ने भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ किए जा रहे व्यवहार पर चिंता व्यक्त की।
  • जम्मू और कश्मीर मुद्दा: अगस्त 2019 में भारत द्वारा अनुच्छेद-370 (जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा) को निरस्त करने की इंडोनेशिया द्वारा आलोचना की गई, जिससे तनाव बढ़ गया।
  • आर्थिक प्रतिशोध: कश्मीर और CAA पर इंडोनेशिया की आलोचना के जवाब में, भारत ने इंडोनेशिया के पाम ऑयल पर टैरिफ बढ़ा दिया, जो इंडोनेशिया के लिए एक प्रमुख निर्यात है।

भारत और इंडोनेशिया के बीच प्रमुख द्विपक्षीय यात्राएँ

  • राष्ट्रपति सुकर्णो की भारत यात्रा (1950): भारत के गणतंत्र दिवस पर प्रथम मुख्य अतिथि; ‘स्थायी शांति और अपरिवर्तनीय मित्रता’ सुनिश्चित करने के लिए मैत्री संधि (1951) पर हस्ताक्षर किए।
  • प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की इंडोनेशिया यात्रा (1950): गुटनिरपेक्षता और उपनिवेशवाद विरोधी संबंधों को मजबूत किया; बांडुंग सम्मेलन (1955) के लिए आधार तैयार किया।
  • राष्ट्रपति सुकर्णोपुत्री की भारत यात्रा (2002): रक्षा सहयोग समझौते (DCA) पर हस्ताक्षर किए, संयुक्त सैन्य अभ्यास और रक्षा उत्पादन वार्ता की शुरुआत की।
  • प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इंडोनेशिया यात्रा (2013): आतंकवाद से निपटने, सुरक्षा और न्यायिक सहयोग को मजबूत करने पर प्रत्यर्पण संधि तथा समझौता ज्ञापन को अंतिम रूप दिया।
  • राष्ट्रपति जोको विडोडो की भारत यात्रा (2016): संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी में उन्नत किया; समुद्री सुरक्षा और ऊर्जा सहयोग पर समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इंडोनेशिया यात्रा (2018): भारत-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सहयोग पर साझा दृष्टिकोण को अपनाया गया, भारत-प्रशांत क्षेत्र पर रणनीतियों को संरेखित किया गया।

भारत-इंडोनेशिया संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ

  • व्यापार असंतुलन: कच्चे पाम ऑयल और कोयले के आयात के कारण भारत को इंडोनेशिया के साथ महत्त्वपूर्ण व्यापार घाटे का सामना करना पड़ रहा है।
    • वर्ष 2022-23 में, इंडोनेशिया से भारत का आयात 20 बिलियन डॉलर था, जबकि निर्यात केवल 9 बिलियन डॉलर था और अकेले पाम ऑयल का आयात व्यापार असंतुलन का 50% से अधिक हिस्सा है।
  • सीमित संपर्क: अपनी निकटता के बावजूद, भारत और इंडोनेशिया के बीच सीधा हवाई संपर्क सीमित है, जिससे पर्यटन, व्यापार और लोगों के बीच आपसी संबंध प्रभावित हो रहे हैं।
    • उड़ानें मुख्य रूप से दिल्ली, जकार्ता और बाली जैसे प्रमुख केंद्रों को जोड़ती हैं, लेकिन द्वितीयक शहरों तक बहुत कम पहुँच है।
  • चीन का प्रभुत्व: इंडोनेशिया ने चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) के तहत जकार्ता-बांडुंग हाई-स्पीड रेल परियोजना सहित पर्याप्त निवेश स्वीकार किया है।
    • इंडोनेशिया में चीन का निवेश $20 बिलियन से अधिक है, जो लगभग $1.56 बिलियन के भारतीय निवेश से कहीं अधिक है।
  • नियामक और प्रक्रियात्मक चुनौतियाँ: रक्षा खरीद प्रक्रियाओं में अंतर ने गहन सैन्य सहयोग में बाधा उत्पन्न की है।
    • रक्षा विनिर्माण जैसे संयुक्त उत्पादन पहलों को नौकरशाही बाधाओं और अधिग्रहण में देरी का सामना करना पड़ता है।
  • भू-राजनीतिक मतभेद: दक्षिण चीन सागर और कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर इंडोनेशिया का रुख कभी-कभी अस्पष्ट रहा है।
    • दक्षिण चीन सागर में परस्पर विरोधी दावों वाले क्षेत्रों में चीन के साथ इंडोनेशिया के संयुक्त विकास समझौते भारत की इंडो-पैसिफिक रणनीति के लिए चिंताएँ बढ़ाते हैं।
  • अप्राप्य आर्थिक क्षमता: 38.84 बिलियन डॉलर (2022-23) के व्यापार मूल्य के बावजूद, द्विपक्षीय व्यापार अपनी क्षमता से कम है।
    • दोनों देशों ने वर्ष 2025 तक 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार का लक्ष्य रखा है, जिसमें अक्षय ऊर्जा, आईटी और स्वास्थ्य सेवा में अप्रयुक्त अवसर सम्मिलित हैं।
  • समुद्री सुरक्षा और गैर-पारंपरिक खतरे: दोनों देशों को हिंद महासागर में अवैध मत्स्यन, समुद्री डकैती और तस्करी से चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • मलक्का जलडमरूमध्य, एक महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग, गैर-पारंपरिक खतरों के प्रति संवेदनशील है, जिसके लिए मजबूत सहयोग की आवश्यकता है।

भारत-इंडोनेशिया संबंधों के लिए आगे की राह

  • व्यापार को मजबूत करना: अक्षय ऊर्जा, IT और फार्मास्यूटिकल्स में व्यापार की संभावना तलाश कर कच्चे पाम ऑयल और कोयले के आयात पर निर्भरता कम करना।
    • स्थानीय मुद्रा व्यापार को बढ़ावा देना: अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने और द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने के लिए स्थानीय मुद्रा निपटान (LCS) प्रणाली के कार्यान्वयन में तेजी लाना।
  • निवेश को प्रोत्साहित करना: नियामक बाधाओं को दूर करें और इंडोनेशिया के बुनियादी ढाँचे तथा ऊर्जा क्षेत्रों में भारतीय निवेशकों के लिए एक समर्पित सुविधा तंत्र स्थापित करना।
  • कनेक्टिविटी बढ़ाना: पर्यटन और व्यापार संबंधों को बढ़ावा देने के लिए भारत तथा इंडोनेशिया के अधिकतर शहरों के बीच सीधी उड़ानों का विस्तार करना।
    • अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के साथ समुद्री संपर्क बढ़ाने के लिए इंडोनेशिया के सबंग बंदरगाह को विकसित करने में सहयोग करना।
  • रक्षा और सुरक्षा सहयोग को गहरा करना: मलक्का जलडमरूमध्य में समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने और समुद्री डकैती और अवैध मत्स्यन से निपटने के लिए IND-INDO ​​CORPAT जैसे ढाँचों के तहत सहयोग को मजबूत करना।
    • ब्रह्मोस मिसाइल सौदे में तेजी लाना और रक्षा उपकरणों के संयुक्त उत्पादन की संभावनाएँ तलाशना।
  • सांस्कृतिक संबंधों का लाभ उठाना: प्रंबानन मंदिर को पुनर्स्थापित करने और बाली यात्रा जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों को आयोजित करने जैसी पहलों के माध्यम से साझा विरासत को बढ़ावा देना।
    • ITEC और ICCR कार्यक्रमों के तहत छात्रवृत्ति में वृद्धि करना और विश्वविद्यालयों के आसियान-भारत नेटवर्क के माध्यम से अकादमिक साझेदारी को सुविधाजनक बनाना।
  • क्षेत्रीय और बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देना: इंडो-पैसिफिक में शांति और स्थिरता बनाए रखने में ASEAN की केंद्रीय भूमिका को बनाए रखने के लिए इंडोनेशिया के साथ मिलकर कार्य करना।
    • नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए इंडोनेशिया के वैश्विक समुद्री आधार को भारत की इंडो-पैसिफिक महासागर पहल (IPOI) के साथ जोड़ना।
  • रणनीतिक चुनौतियों का समाधान
    • चीन का प्रतिकार करना: इंडोनेशिया में विशेष रूप से बुनियादी ढाँचे जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में चीनी निवेश के प्रति संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए सहयोग करना।
    • गैर-पारंपरिक खतरों का मुकाबला करना: हिंद महासागर में तस्करी, मानव तस्करी और मादक पदार्थों की तस्करी जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए तंत्र को मजबूत करना।
    • दक्षिण चीन सागर आचार संहिता: UNCLOS (1982) के तहत नियमों पर आधारित व्यवस्था और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करने में इंडोनेशिया का समर्थन करना।

निष्कर्ष 

भारत-इंडोनेशिया संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक आयामों के माध्यम से विकसित हुए हैं, दोनों देश रक्षा, व्यापार और समुद्री सुरक्षा में सहयोग बढ़ाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। हालाँकि व्यापार असंतुलन और भू-राजनीतिक मतभेद जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, निरंतर सहयोग और प्रमुख मुद्दों को संबोधित करने से क्षेत्रीय स्थिरता तथा विकास के लिए उनकी साझेदारी की पूरी क्षमता का दोहन किया जा सकता है।

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