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Jan 31 2025

संदर्भ

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME) ने विश्व बैंक द्वारा समर्थित राइजिंग एंड एसीलेरेटिंग MSME परफॉरमेंस (RAMP) कार्यक्रम के तहत MSME ‘’व्यापार सक्षमता तथा विपणन” (TEAM) पहल प्रारंभ की है।

TEAM पहल 

  • उद्देश्य: ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) के माध्यम से डिजिटल कॉमर्स तक पहुँच में सुधार करके MSME को सशक्त बनाना, उनकी बाजार पहुँच का विस्तार करना एवं व्यावसायिक लागत को कम करना।
  • कार्यान्वयन अवधि: वित्तीय वर्ष 2024-2025 से वित्तीय वर्ष 2026-2027 (तीन वर्ष)।
  • बजट आवंटन: ₹277.35 करोड़।
  • लक्षित लाभार्थी: 5 लाख MSME, जिसमें 50% भागीदारी महिला-स्वामित्व वाले MSEs की है।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (NSIC)।
  • पात्रता: विनिर्माण या सेवा क्षेत्र में वैध उद्यम पंजीकरण के साथ सूक्ष्म एवं लघु उद्यम (MSEs)।

TEAM पहल की मुख्य विशेषताएँ

  • सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को समर्थन देने के लिए ONDC के माध्यम से ‘डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर’ का लाभ उठाया जाता है।
  • ऑनलाइन व्यापार की सुविधा के लिए MSMEs को डिजिटल स्टोरफ्रंट, भुगतान समाधान एवं लॉजिस्टिक्स सहायता प्रदान करता है।
  • यह टियर 2 एवं टियर 3 शहरों में 150 से अधिक कार्यशालाएँ आयोजित करेगा, जिसमें MSME समूहों, विशेष रूप से महिलाओं के नेतृत्व वाले तथा SC/ST के नेतृत्व वाले व्यवसायों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • व्यवसायों को कार्यशालाओं के लिए पंजीकरण करने, वित्तीय सहायता प्राप्त करने एवं डिजिटल कैटलॉग निर्माण के लिए टूल का उपयोग करने हेतु एक समर्पित पोर्टल प्रदान करता है।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर अंतरसंचालनीयता सुनिश्चित करता है, जिससे MSME के लिए ई-कॉमर्स में भाग लेना आसान हो जाता है।

TEAM पहल का महत्त्व

  • डिजिटल समावेशन को बढ़ावा देता है: छोटे व्यवसायों, विशेषकर महिलाओं एवं वंचित  समूहों को डिजिटल कामर्स अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • बाजार पहुँच का विस्तार: MSMEs को लॉजिस्टिक एवं परिचालन संबंधी बाधाओं को दूर करने में मदद करता है, जिससे उनकी ऑनलाइन उपस्थिति तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ती है।
  • लागत कम करता है: MSMEs को एकीकृत डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में समावेशित करके लेन-देन एवं विपणन लागत कम करता है।
  • MSME विकास को बढ़ावा: PM विश्वकर्मा एवं डिजिटल MSME योजना जैसी मौजूदा सरकारी योजनाओं का पूरक है, जो भारत के MSME क्षेत्र के समग्र डिजिटल परिवर्तन में योगदान देता है।
  • एक समान अवसर प्रदान करना: छोटे व्यवसायों को डिजिटल बाजार में बड़े उद्यमों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में सहायता करता है।

RAMP के बारे में

  • परिचय: राइजिंग एंड एसीलेरेटिंग MSME परफॉरमेंस (RAMP) योजना एक विश्व बैंक-सहायता प्राप्त केंद्रीय क्षेत्रक योजना है, जिसका उद्देश्य MSME मंत्रालय (MoMSME) के तहत कोविड-19 के प्रति लचीलापन एवं पुनर्प्राप्ति हस्तक्षेप के माध्यम से MSME को मजबूत करना है।
  • उद्देश्य: यह MSME क्षेत्र में हरित पहल को बढ़ावा देते हुए बाजार पहुँच, ऋण उपलब्धता, संस्थागत प्रशासन, केंद्र-राज्य सहयोग में सुधार एवं विलंबित भुगतान को संबोधित करने पर केंद्रित है।
  • प्रमुख घटक: सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिए रणनीतिक निवेश योजनाएँ (SIPs) विकसित की जाएँगी, MSME बाधाओं की पहचान की जाएगी एवं नवीकरणीय ऊर्जा, ग्रामीण व्यवसाय, खुदरा व्यापार तथा महिला उद्यमों जैसे क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • फंडिंग: इस योजना का कुल परिव्यय ₹6,062.45 करोड़ है, जिसमें विश्व बैंक के ऋण से ₹3,750 करोड़ एवं भारत से ₹2,312.45 करोड़ शामिल हैं।
  • कार्यान्वयन: MSME सुधार, प्रौद्योगिकी उन्नयन, क्रेडिट वृद्धि एवं विलंबित भुगतान में कमी सहित संवितरण लिंक्ड संकेतक (DLIs) के आधार पर धन आवंटित किया जाता है।
  • लाभार्थी: MSME को क्षमता निर्माण, कौशल विकास, डिजिटलीकरण, गुणवत्ता में सुधार एवं बाजार तक पहुँच बढ़ाने से लाभ होगा, जिससे वे अधिक प्रतिस्पर्द्धी तथा लचीले बन जाएँगे।

ओपन नेटवर्क डिजिटल कॉमर्स (ONDC) 

  • ओपन नेटवर्क डिजिटल कॉमर्स (ONDC) BeckN प्रोटोकॉल पर आधारित एक इंटरऑपरेबल नेटवर्क है, जिसे कोई भी उपयोग कर सकता है। 
  • ONDC इकाई, कंपनी अधिनियम 2013 की धारा-8 के तहत निगमित एक गैर-लाभकारी कंपनी है, जो ONDC नेटवर्क का प्रबंधन एवं संचालन करती है।
  • भूमिका
    • अंतर्निहित बुनियादी ढाँचे का निर्माण एवं रखरखाव (सामान्य रजिस्ट्रियाँ तथा प्रोटोकॉल)।
    • ONDC नेटवर्क नीति एवं ONDC नेटवर्क प्रतिभागी समझौते के माध्यम से नेटवर्क प्रतिभागियों के लिए जुड़ाव के नियमों तथा आचार संहिता को परिभाषित करना।

ONDC की विशेषताएँ

  • निर्बाध संचालन: यह अलग-अलग कॉन्फिगरेशन (बड़े या छोटे) के प्लेटफॉर्मों को कनेक्ट करने एवं उस पर निर्बाध रूप से संचालित करने में सक्षम बनाकर डिजिटल कॉमर्स में निर्मित ‘साइलो’ को तोड़ने का प्रयास करता है।
  • नेटवर्क प्रतिभागी: इसमें अलग-अलग संस्थाएँ शामिल हैं, जिन्हें नेटवर्क प्रतिभागी कहा जाता है, जिसमें क्रेता एप्लिकेशन, विक्रेता एप्लिकेशन एवं गेटवे शामिल हैं, जो खोज तथा अन्वेषण कार्य करते हैं।
  • ओपन नेटवर्क मॉडल: सरकार ई-कॉमर्स बाजार की मूलभूत संरचना को मौजूदा प्लेटफॉर्म-केंद्रित मॉडल से ओपन नेटवर्क मॉडल में बदलना चाहती है।

क्षुद्रग्रह बेन्नु से एकत्रित  किए गए नमूने

(Samples from Asteroid Bennu)

हाल ही में NASA द्वारा क्षुद्रग्रह बेन्नु से प्राप्त चट्टान एवं धूल के नमूनों के विश्लेषण दो अलग-अलग पत्रिकाओं में प्रकाशित किए गए थे।

विश्लेषण से प्राप्त मुख्य निष्कर्ष

  • पहला विश्लेषण: यह नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में प्रकाशित हुआ था,
    • अध्ययन में पाया गया कि नमूनों में कार्बनिक यौगिकों का विविध मिश्रण था। 
  • दूसरा विश्लेषण: यह नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ था,
    • अध्ययन में यह पाया गया कि नमूनों में खनिज शामिल थे, जो बेन्नू क्षुद्रग्रह के मूल भाग पर लवणीय जल के वाष्पित होने पर निर्मित हुए थे।
      • यह उस प्रकार का आर्द्र वातावरण है, जहाँ प्रीबायोटिक कार्बनिक रसायन का निर्माण हुआ होगा।
  • अमीनो एसिड की उपस्थिति: नमूनों में अमीनो एसिड (प्रोटीन बनाने के लिए प्रयुक्त) नामक 20 कार्बनिक यौगिकों में से 14 पाए गए।
    • प्रोटीन जटिल अणु होते हैं, जो जीवित जीवों की संरचना, कार्य एवं नियमन में अपरिहार्य भूमिका निभाते हैं। 
  • आनुवंशिक घटकों की उपस्थिति: नमूनों में सभी पाँच न्यूक्लियोबेस (पृथ्वी पर सभी जीवों के DNA एवं RNA के आनुवंशिक घटक) भी पाए गए।
  • महत्त्व
    • यह जीवन के उद्भव के सिद्धांत का समर्थन करता है: बेन्नू नमूनों का विश्लेषण इस सिद्धांत का समर्थन करता है कि क्षुद्रग्रहों और उनके टुकड़ों ने पृथ्वी के प्रारंभिक जीवन के उद्भव के लिए आवश्यक अवयवों को उत्पन्न किया।
    • बाह्यग्रहीय जीवन: चूँकि जीवन के रासायनिक निर्माण खंड अंतरिक्ष में निर्मित हो सकते हैं तथा पूरे सौरमंडल में विस्तृत हैं, इसलिए बाह्यग्रहीय जीवन की संभावना वास्तविक है।

क्षुद्रग्रह बेन्नू 

  • बेन्नू एक छोटा कार्बन समृद्ध क्षुद्रग्रह है, जो लगभग प्रत्येक छह वर्ष में पृथ्वी के करीब से गुजरता है। 
    • उत्पत्ति: क्षुद्रग्रह बेन्नू अपने बड़े बर्फीले मूल पिंड का एक भाग है, जो बाह्य सौरमंडल में निर्मित हुआ होगा एवं बाद में संभवतः 1-2 अरब वर्ष पहले नष्ट हो गया था।
  • NASA मिशन OSIRIS-REx: क्षुद्रग्रह बेन्नू नासा के पहले क्षुद्रग्रह आधारित मिशन से संबंधित था, OSIRIS-REx को वर्ष 2020 में लॉन्च किया गया था।
  • नमूने वर्ष 2023 में OSIRIS-REx द्वारा छोड़े गए एक कैप्सूल के अंदर पैराशूट द्वारा पृथ्वी पर पहुँचाए गए थे।

नियमित नमक के स्थान पर कम सोडियम युक्त नमक: WHO

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसमें नियमित नमक के स्थान पर कम सोडियम युक्त नमक के विकल्प का उपयोग करने की सिफारिश की गई है, जिसमें पोटेशियम होता है। 

WHO की प्रमुख सिफारिशें

  • प्राथमिक सलाह: नियमित टेबल साल्ट को कम-सोडियम नमक के विकल्प (पोटेशियम क्लोराइड, KCl युक्त) से बदलना।
  • लक्ष्य: गैर-संचारी रोगों (NCDs) से निपटने के लिए वैश्विक सोडियम सेवन को प्रतिदिन 2 ग्राम से कम करना।

नमक कम करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • नमक मानव शरीर क्रिया विज्ञान को प्रभावित करता है क्योंकि सोडियम एवं जल शरीर में एक साथ संचालित होते हैं।
  • अधिक नमक के सेवन से जल प्रतिधारण होता है, रक्त की मात्रा बढ़ती है एवं रक्तचाप बढ़ता है।
  • नमक कम करने से रक्तचाप कम होता है, हृदय स्वास्थ्य में सुधार होता है एवं स्ट्रोक से बचा जा सकता है।

अधिक नमक के सेवन के खतरे 

  • नमक के अधिक सेवन से प्रत्येक वर्ष विश्व भर में 1.9 मिलियन मौतें होती हैं।
  • अतिरिक्त सोडियम हृदय रोग, गुर्दे की बीमारी एवं यहाँ तक ​​कि गैस्ट्रिक कैंसर का कारण बन सकता है।
  • सोडियम कम करने से रक्तचाप कम करने में मदद मिलती है, जिससे प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम कम हो जाता है।

पॉलिसाइक्ल की रासायनिक पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकी

हाल ही में प्लास्टिक कचरे की समस्या के समाधान के लिए एक स्वदेशी पेटेंट रासायनिक रीसाइक्लिंग तकनीक लॉन्च की गई है।

  • यह तकनीक चंडीगढ़ स्थित स्टार्टअप पॉलिसाइक्ल द्वारा लॉन्च की गई है। 

प्रौद्योगिकी के बारे में

  • यह एक स्वदेशी पेटेंट नवाचार है, जो एकल-उपयोग एवं ‘हार्ड-टू-रीसाइक्लिंग प्लास्टिक’ को खाद्य-ग्रेड पॉलिमर, नवीकरणीय रसायनों तथा सतत् ईंधन में परिवर्तित करने में सक्षम बनाता है।
  • पॉलिसाइक्ल की तकनीक: यह तकनीक ‘कॉन्टिफ्लो क्रैकर’ (एक थर्मो-केमिकल पायरोलिसिस प्रक्रिया) को PyOilClean रिफाइनिंग तकनीक के साथ मिलाकर एक ‘क्लोज्ड-लूप रीसाइक्लिंग’ समाधान प्रदान करती है।
  • प्रक्रिया
    • अपशिष्ट प्लास्टिक को तरलीकृत हाइड्रोकार्बन तेल में विघटित कर दिया जाता है, जिसे दूषित पदार्थों को हटाने के लिए और अधिक शुद्ध किया जाता है।
    • पुनर्चक्रण: परिणामी रासायनिक फीडस्टॉक्स का उपयोग पेट्रोकेमिकल और हाइड्रोकार्बन उद्योगों द्वारा वृत्ताकार पॉलिमर सहित नई निम्न-कार्बन सामग्री के उत्पादन के लिए किया जा सकता है।
  • महत्त्व: प्रौद्योगिकी गुणवत्ता में किसी भी नुकसान के बिना लगातार रीसाइक्लिंग द्वारा पुनर्चक्रीकरण की अनुमति देती है एवं आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक, जैसे पॉलिओलेफिन पैकेजिंग, को लैंडफिल या भस्मक में समाप्त होने से रोकती है।
    • भारत में वार्षिक रूप से 10.2 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें 40 प्रतिशत से अधिक एकल-उपयोग प्लास्टिक जैसे किराना बैग एवं लचीली पैकेजिंग होता है।
  • विशेषताएँ
    • स्केलेबिलिटी: मॉड्यूलर प्रसंस्करण लाइनें प्रतिदिन 15 से 100 टन प्लास्टिक अपशिष्ट का प्रबंधन करने में सक्षम हैं।
    • व्यावसायिक रूप से आकर्षक: प्रौद्योगिकी 50 प्रतिशत से अधिक EBITDA (परिचालन लाभ) प्रदान करती है।
    • भारत के EPR लक्ष्यों का समर्थन: यह उच्च गुणवत्ता वाले पुनर्नवीनीकृत पॉलिमर का उत्पादन करता है, जो खाद्य-संपर्क और दवा पैकेजिंग के लिए आवश्यक उच्च मानकों को पूरा करते हैं।
      • विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility) लक्ष्य: इसमें वर्ष 2025-26 तक 10 प्रतिशत लचीली पैकेजिंग एवं 30 प्रतिशत कठोर प्लास्टिक पैकेजिंग में पुनर्नवीनीकरण सामग्री शामिल होनी चाहिए।
    • रूपांतरण दर: प्रौद्योगिकी में कई वैश्विक पेट्रोकेमिकल कंपनियों द्वारा मान्य 65-75 प्रतिशत प्लास्टिक अपशिष्ट रूपांतरण दर है।

आकाशीय विद्युत, वनाग्नि एवं सूखे जैसी आपदाओं से निपटने के लिए परियोजनाओं को मंजूरी

केंद्रीय गृह मंत्री की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने आकाशीय विद्युत् एवं सूखे जैसी आपदाओं को कम करने के लिए ₹3,027.86 करोड़ की परियोजनाओं को मंजूरी दी है। 

स्वीकृत परियोजनाएँ

  • सूखे के लिए उत्प्रेरक सहायता के लिए परियोजनाएँ: समिति ने 12 सर्वाधिक सूखाग्रस्त राज्यों के 49 जिलों को ₹2,022.16 करोड़ के कुल परिव्यय पर उत्प्रेरक सहायता को मंजूरी दी है।
    • आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना एवं उत्तर प्रदेश।
  • आकाशीय बिजली सुरक्षा पर शमन परियोजना: ₹186.78 करोड़ के कुल परिव्यय पर 10 राज्यों में बिजली की घटनाओ को कम करने एवं सुरक्षा के लिए परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।
    • आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, ओडिशा, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल।
  • वनाग्नि जोखिम प्रबंधन योजना: इसे 19 राज्यों के 144 उच्च प्राथमिकता वाले जिलों में ₹818.92 करोड़ के कुल परिव्यय पर कार्यान्वयन के लिए अनुमोदित किया गया था।
    • आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मणिपुर, महाराष्ट्र, मिजोरम, मध्य प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना एवं उत्तराखंड। 
    • उद्देश्य: वनाग्नि प्रबंधन दृष्टिकोण को बदलने के लिए एक शमन परियोजना को लागू करना एवं महत्त्वपूर्ण वनाग्नि की रोकथाम एवं शमन गतिविधियों का समर्थन करना।
  • सभी परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण (केंद्र सरकार का हिस्सा) राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण कोष (NDMF) से प्रदान किया जाएगा।

बहुभाषी शासन के लिए भाषिणी के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर

त्रिपुरा सरकार ने भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के डिजिटल इंडिया भाषिणी डिवीजन (DIBD) के साथ एक समझौता ज्ञापन समझौते (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं।

नए MoU के बारे में

  • MoU पर हस्ताक्षर समारोह राज्य स्तरीय कार्यशाला- ‘भाषिणी राज्यम’ के दौरान अगरतला के प्रज्ञा भवन में आयोजित किया गया था। 
  • MoU का उद्देश्य
    • क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देना: शासन एवं डिजिटल प्लेटफॉर्मों में त्रिपुरा की मूल भाषाओं (जैसे, कोकबोरोक) के प्रयोग को बढ़ावा देना।
    • डिजिटल विभाजन को कम करना: नागरिकों, विशेषकर ग्रामीण/आदिवासी आबादी को उनकी स्थानीय भाषाओं में डिजिटल सेवाओं तक पहुँचने में सक्षम बनाना।

भाषिणी पहल 

  • यह भारत का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित भाषा अनुवाद प्लेटफॉर्म है।
  • लॉन्च: अगस्त 2022 गांधीनगर, गुजरात में।
  • नाम का अर्थ: “भाषिणी” का अर्थ “भारत के लिए भाषा इंटरफेस” है, जो भारत की भाषायी विविधता पर इसके फोकस को दर्शाता है।
  • प्रबंधन: डिजिटल इंडिया भाषिणी डिवीजन (DIBD), डिजिटल इंडिया कॉरपोरेशन (DIC) के तहत एक स्वतंत्र बिजनेस डिवीजन।
  • विकास: इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY), भारत सरकार।
  • प्राथमिक लक्ष्य: भाषा संबंधी बाधाओं को कम करने एवं समावेशी संचार को बढ़ावा देने के लिए 22 भारतीय भाषाओं में डिजिटल सामग्री का निर्बाध अनुवाद सक्षम करना।
  • प्रमुख विशेषताएँ
    • भारतीय भाषाओं एवं अंग्रेजी के बीच रियल टाइम में अनुवाद।
    • AI एवं NLP उपकरण: स्पीच-टू-टेक्स्ट, टेक्स्ट-टू-स्पीच, वॉयस-टू-वॉइस अनुवाद।
    • साक्षरता चुनौतियों से निपटने के लिए ध्वनि आधारित समाधानों पर ध्यान केंद्रित करना।

संदर्भ

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विश्व भर में 2.2 अरब से अधिक लोग किसी-न-किसी प्रकार की दृष्टि हानि का अनुभव करते हैं। 

संबंधित तथ्य  

  • अनुमानतः संपूर्ण विश्व में 5.5 मिलियन लोग वंशानुगत रेटिनाल रोग से पीड़ित हैं, जिसकी व्यापकता दर 3,450 में से एक है।
  • अध्ययन के अनुसार,  भारत में ऐसे मामलों की व्यापकता काफी अधिक है-
    • ग्रामीण दक्षिण भारत में 372 व्यक्तियों में से एक,
    • शहरी दक्षिण भारत में 930 में से एक, 
    •  ग्रामीण मध्य भारत में 750 में से एक इन स्थितियों से प्रभावित है।

वंशानुगत रेटिनाल रोग (Inherited Retinal Diseases- IRDs) क्या हैं?

  • IRDs आनुवंशिक विकार हैं, जो दृष्टि हानि का कारण बनते हैं, जिससे प्रायः अंधापन होता है।
  • यह रेटिना संबंधी कार्य के लिए जिम्मेदार 300 से अधिक जीनों में उत्परिवर्तन के कारण होता है।

  • कुछ व्यक्तियों की दृष्टि क्षमता जल्दी समाप्त हो जाती है, जबकि अन्य की दृष्टि धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है।
  • प्रारंभिक हस्तक्षेप कुछ मामलों में अंधापन को धीमा या रोक सकता है।

जीन दृष्टि को कैसे प्रभावित करते हैं?

  • शरीर कोशिकाओं द्वारा निर्मित होता है, प्रत्येक में DNA से बने गुणसूत्रों वाला एक केंद्रक होता है।
  • DNA में जीन होते हैं, जो शरीर के कार्यों के लिए आवश्यक प्रोटीन बनाने के निर्देश प्रदान करते हैं।
  • जीन में परिवर्तन (उत्परिवर्तन) के कारण प्रोटीन गलत तरीके से कार्य कर सकता है या समाप्त हो सकता है।
  • रेटिना में दोषपूर्ण प्रोटीन से IRDs एवं दृष्टि हानि की समस्या हो सकती है।

IRDs के लिए जोखिम कारक

IRDs विभिन्न वंशानुक्रम पैटर्न का पालन करते हैं:

  • ऑटोसोमल डोमिनेंट: दोषपूर्ण जीन एक ऑटोसोम (अलैंगिक गुणसूत्र) पर स्थित होता है।
    • एक व्यक्ति को माता-पिता से एक दोषपूर्ण जीन एवं दूसरे से एक सामान्य जीन आनुवंशिक रूप से प्राप्त होता है।
    • दोषपूर्ण मुख्य जीन विकार का कारण बनता है।
  • ऑटोसोमल रिसेसिव: जीन की दोनों प्रतियाँ (प्रत्येक माता-पिता में से एक) दोषपूर्ण होनी चाहिए। 
    • माता-पिता आमतौर पर लक्षण रहित वाहक होते हैं।
      • यदि माता-पिता दोनों इसके वाहक हैं तो इस बीमारी के आनुवंशिक होने की 25% संभावना है।
  • X-लिंक्ड विकार: दोषपूर्ण जीन X गुणसूत्र पर स्थित होता है। 
    • पुरुष (XY) अधिक गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं, क्योंकि उनके पास केवल एक X गुणसूत्र होता है। 
    • महिलाएँ (XX) वाहक हो सकती हैं या हल्के लक्षण दिखा सकती हैं।
  • माइटोकॉन्ड्रियल वंशानुक्रम: उत्परिवर्तन माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (mtDNA) में होता है, जो विशेष रूप से माँ से आनुवंशिक रूप से मिला होता है (शुक्राणु माइटोकॉन्ड्रिया में योगदान नहीं करते हैं)।
    • आँखों सहित कई अंगों को प्रभावित कर सकता है।

RNA -आधारित थेरेपी क्या है?

  • RNA-आधारित थेरेपी, जीन थेरेपी के लिए एक सुरक्षित विकल्प प्रदान करती है क्योंकि वे DNA में स्थायी रूप से परिवर्तन नहीं करती हैं।
  • ये उपचार अस्थायी रूप से जीन अभिव्यक्ति को संशोधित करते हैं, जिससे दीर्घकालिक जोखिम कम हो जाते हैं।

RNA-आधारित थेरेपी के प्रकार

  • एंटीसेंस ऑलिगोन्यूक्लियोटाइड्स (ASOs)
    • स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी एवं डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लिए सफलतापूर्वक उपयोग किया गया।
    • स्टारगार्ड रोग, लेबर कांगेनिटल अमोरोसिस एवं रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा के लिए परीक्षण किया जा रहा है।
  • ADAR एंजाइमों के साथ RNA-संपादन
    • RNA स्तर पर विशिष्ट उत्परिवर्तन को ठीक करता है।
    • DNA में परिवर्तन किए बिना रेटिना कोशिकाओं में प्रोटीन उत्पादन संभव हो  सकता है।
  • सप्रेसर tRNA थेरेपी
    • ‘स्टॉप-कोडन’ उत्परिवर्तन न करके प्रोटीन संश्लेषण को बाधित करता है।
    • रेटिना के कार्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रोटीन का उत्पादन करने में मदद करता है।
  • स्माल मॉलिक्यूल RNA थेरेपी (PTC124/अटालुरेन)
    • सिस्टिक फाइब्रोसिस एवं डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लिए उपयोग किया जाता है।
    • एनिरिडिया (एक दुर्लभ नेत्र रोग) के इलाज के लिए नैदानिक ​​परीक्षण किए जा  रहे हैं।

प्रिसिजन मेडिसिन  (Precision Medicine) में भारत की भूमिका

  • प्रिसिजन मेडिसिन क्या है?
    • यह किसी व्यक्ति की आनुवंशिकी, जीवनशैली एवं पर्यावरण के आधार पर उपचार सुनिश्चित करता है।
    • इसका उद्देश्य सभी के लिए एक ही दृष्टिकोण अपनाने के बजाय व्यक्तिगत देखभाल करना है।
  • भारत में आनुवंशिक अनुसंधान की आवश्यकता
    • 300 से अधिक जीन IRDs से जुड़े हुए हैं, लेकिन भारत में जनसंख्या में आनुवंशिक उत्परिवर्तन पर बड़े पैमाने पर अध्ययन का अभाव है।
    • किसी भी बड़े अध्ययन (500+ मरीज) ने भारतीय IRD रोगियों में आनुवंशिक विविधताओं का पता नहीं लगाया है।
    • प्रभावी उपचार विकसित करने के लिए सामान्य आनुवंशिक उत्परिवर्तन की पहचान करना महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत में चुनौतियाँ
    • भारत में विभिन्न समुदायों में आनुवंशिक विविधताएँ भिन्न-भिन्न हैं, जो अनुसंधान को जटिल बनाती हैं।
    • चुनौतियों  में शामिल हैं:
      • डॉक्टरों एवं मरीजों में कम जागरूकता।
      • आनुवंशिक परामर्श तक सीमित पहुँच।
      • अपर्याप्त अनुसंधान निधि।
      • विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में नैदानिक ​​बुनियादी ढाँचे की कमी।

संदर्भ

हाल ही में कर्नाटक के राज्य वन्यजीव बोर्ड ने शरावती लायन टेल्ड मकाक अभयारण्य में शरावती पंप भंडारण परियोजना के लिए सशर्त मंजूरी दे दी है।

 लायन टेल्ड मकाक अभयारण्य 

  • अवस्थिति: कर्नाटक के शिवमोग्गा जिले में सागर तालुका की शरावती नदी घाटी में अवस्थित है।

  • भौगोलिक क्षेत्र: पश्चिमी घाट क्षेत्र में  स्थित है।
  • वनस्पतियाँ: मुख्य रूप से अभयारण्य सदाबहार एवं अर्द्ध-सदाबहार वनों से आच्छादित है।
  • गठन: इसका गठन शरावती घाटी वन्यजीव अभयारण्य, अघनाशिनी लायन टेल्ड मकाक संरक्षण रिजर्व एवं आसपास के आरक्षित वन ब्लॉकों को मिलाकर बनाया गया।
  • सीमाएँ: इसकी दक्षिण-पश्चिमी सीमा मूकांबिका वन्यजीव अभयारण्य के साथ साझा करती है।
  • प्रमुख वन्यजीव प्रजातियाँ: लुप्तप्राय लायन टेल्ड मकाक (मकाका सिलेनस) के लिए एक महत्त्वपूर्ण आवास स्थल के रूप में कार्य करता है, जो पश्चिमी घाट की एक स्थानिक प्रजाति है।
  • अन्य स्तनधारी जंतु: इसमें बाघ, तेंदुए, स्लॉथ भालू, हिरण, बार्किंग डियर, माउस डियर, बोनट मकाक एवं मालाबार जायंट गिलहरी शामिल हैं।

शरावती नदी

  • अवस्थिति: पश्चिमी कर्नाटक, दक्षिणी भारत।
  • स्रोत: पश्चिमी घाट से उद्गम होता है।
  • जलमार्ग: उत्तर-पश्चिमी दिशा में लगभग 100 किमी. (60 मील) तक प्रवाहित होती है।
  • मुहाना: शरावती नदी होनावर में अरब सागर में मुहाने का निर्माण करती है।
  • जोग फॉल्स: नदी अचानक 250 मीटर (830 फुट) नीचे गिरती है, जो चार सुंदर झरनों में विभाजित हो जाती है, जिन्हें जोग फॉल्स के नाम से जाना जाता है।

  • शरावती नदी पर परियोजनाएँ
    • महात्मा गांधी हाइड्रोइलेक्ट्रिक पॉवर स्टेशन: जोग फॉल्स के डाउनस्ट्रीम (पूर्व) में स्थित, यह विद्युत उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • शरावती घाटी परियोजना: कर्नाटक की विद्युत आपूर्ति में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाली एक प्रमुख जलविद्युत परियोजना है।

लायन टेल्ड मकाक (Lion-Tailed Macaque) 

  • लायन टेल्ड मकाक का आवास स्थल: लायन टेल्ड मकाक  भारत की स्थानिक प्रजाति  हैं।
    • भारत के पश्चिमी घाट में कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु के वर्षावनों की स्थानिक प्रजाति है।
    • यह उष्णकटिबंधीय सदाबहार वर्षावन में पाया जाता है।

लायन टेल्ड मकाक की संरक्षण स्थिति

  • IUCN: लुप्तप्राय (Endangered)
  • CITES : परिशिष्ट-I (Appendix I)
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची-I (Schedule I)
  • व्यवहार
    • एक-दूसरे के साथ संवाद करने के लिए लगभग सत्रह अलग-अलग ‘वोकल कॉल्स’ का उपयोग करते है।
    • चेहरे के भाव, मुद्रा एवं पूँछ के माध्यम से बहुत कुछ संवाद करते हैं।
    • स्थानिक प्रवृत्ति
  • संरक्षित क्षेत्र 
    • कुद्रेमुख राष्ट्रीय उद्यान (कर्नाटक), शरावती लायन टेल्ड मकाक अभयारण्य (कर्नाटक), पेरियार राष्ट्रीय उद्यान (केरल) एवं साइलेंट वैली राष्ट्रीय उद्यान (केरल)।

संदर्भ

इन्फोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन और भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science-IISc) के सदस्यों के विरुद्ध अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।

संबंधित तथ्य

  • शिकायतकर्ता बोवी समुदाय (अनुसूचित जाति) से संबंधित है। 
  • वह भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) में सतत् प्रौद्योगिकी केंद्र में संकाय सदस्य था। 
  • शिकायत के अनुसार, आरोपी ने वर्ष 2014 में उसे सेवा से बर्खास्त करने के लिए एक फर्जी हनी ट्रैप मामले का प्रयोग किया। 
  • एक संसदीय पैनल ने अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध अत्याचारों के मामलों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए आवश्यक तंत्र स्थापित करने में कई राज्यों की विफलता पर भी चिंता जताई है।

अनुसूचित जातियाँ 

  • अनुसूचित जातियाँ सामाजिक रूप से वंचित समूहों को संदर्भित करती हैं, जिन्हें ऐतिहासिक भेदभाव, विशेष रूप से अस्पृश्यता का सामना करना पड़ा है।
  • अनुच्छेद-366(24) के तहत “अनुसूचित जातियाँ” से अभिप्राय ऐसी जातियों, नस्लों या जनजातियों से है, जिन्हें अनुच्छेद-341 के तहत अनुसूचित जातियाँ माना जाता है।
    • अनुच्छेद-341 के अनुसार, भारत के राष्ट्रपति सार्वजनिक अधिसूचना के माध्यम से कुछ जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित कर सकते हैं।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में अनुसूचित जातियों की आबादी 16.6 करोड़ है। यह देश की आबादी का 16% है।

अनुसूचित जनजातियाँ

  • अनुसूचित जनजातियाँ स्वदेशी समुदाय हैं, जिनकी अलग सांस्कृतिक पहचान, भौगोलिक अलगाव और सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन है।
  • अनुच्छेद-366 (25) के तहत अनुसूचित जनजातियों से अभिप्राय ऐसी जनजातियों या आदिवासी समुदाय से है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद-342 के तहत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।
    • अनुच्छेद-342 के अनुसार, राष्ट्रपति राज्यपाल के परामर्श के बाद किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित कर सकते हैं।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, ST की आबादी 10.43 करोड़ के करीब है। यह देश की कुल आबादी का 8% से भी अधिक है।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989

  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का उद्देश्य अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के विरुद्ध उन व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों को रोकना है, जो इन समुदायों से संबंधित नहीं हैं।

अधिनियम के प्रमुख प्रावधान

  • अत्याचार निवारण: यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को भेदभाव, हिंसा तथा शोषण से बचाया जाए।
  • अपराधियों के लिए सजा: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विरुद्ध अत्याचार करने वालों को कठोर कानूनी परिणाम भुगतने होंगे।
  • कार्यान्वयन
    • इस अधिनियम को राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा लागू किया जाता है।
    • केंद्र सरकार इसके कार्यान्वयन के लिए केंद्र प्रायोजित योजना के तहत वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • नियम बनाने की शक्ति: केंद्र सरकार इस अधिनियम के प्रभावी अनुप्रयोग को सुनिश्चित करने के लिए नियम बना सकती है।
  • अग्रिम जमानत: अधिनियम के तहत, अपराधियों को अग्रिम जमानत का प्रावधान उपलब्ध नहीं है।
  • SC/ST के अलावा अन्य पर लागू: यह अधिनियम SC और ST के बीच या इन समुदायों के भीतर व्यक्तियों के बीच अपराधों को शामिल नहीं करता है।
  • जाँच प्रक्रिया
    • इस अधिनियम के तहत सभी अपराध संज्ञेय हैं (पुलिस बिना पूर्व अनुमति के गिरफ्तार कर सकती है)।
    • जाँच अधिकारी: केवल पुलिस उपाधीक्षक (Deputy Superintendent of Police-DSP) या उससे ऊपर की रैंक का अधिकारी ही इस अधिनियम के तहत मामलों की जाँच कर सकता है।
    • जाँच के लिए समय-सीमा: जाँच 30 दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए और रिपोर्ट राज्य पुलिस निदेशक को प्रस्तुत की जानी चाहिए।

SC/ST अधिनियम के अंतर्गत अत्याचार या दुर्व्यवहार

  • गलत तरीके से रोकना और जबरन श्रम: किसी व्यक्ति को गैर-कानूनी तरीके से प्रतिबंधित करना या गिरफ्तार करना या उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके श्रम का शोषण करना।
  • हमला और आपराधिक बल: किसी व्यक्ति को अपमानित करने, डराने या अपमानित करने के इरादे से आपराधिक बल या धमकियों का उपयोग करना अथवा शारीरिक चोट के लिए भय, चिंता अथवा उकसावे का कारण बनना।
  • आय और संपत्ति से वंचित करना: किसी व्यक्ति को उसकी आय या संपत्ति से गलत तरीके से वंचित करना, यह जानते हुए कि ऐसे कृत्यों से भय, चिंता, उत्तेजना या अपमान हो सकता है।
  • भूमि और संपत्ति का अवैध रूप से अधिकार: किसी SC/ST व्यक्ति की भूमि, चल या अचल संपत्ति को अवैध रूप से छीनना।
  • जबरन वसूली और धोखाधड़ी से प्रेरित करना: किसी व्यक्ति को पैसे या मूल्यवान संपत्ति देने के लिए मजबूर करना या धोखा देना तथा पैसे, संपत्ति अथवा लाभ देने का लालच देना।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2015

  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 को निम्नलिखित प्रावधानों के साथ अधिनियम को और अधिक कठोर बनाने के लिए प्रस्तुत किया गया:
    • अत्याचारों की पहचान: इसने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अपराध के रूप में “अत्याचार” के अधिक मामलों को मान्यता दी।
    • न्यायालयों की स्थापना: इसने POA अधिनियम के तहत अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों और सरकारी अभियोजकों की स्थापना का प्रावधान किया।
    • जानबूझकर लापरवाही: अधिनियम ने शिकायत के पंजीकरण से लेकर इस अधिनियम के तहत कर्तव्य की उपेक्षा तक सभी स्तरों पर लोक सेवकों के संदर्भ में ‘जानबूझकर लापरवाही’ शब्द को परिभाषित किया।

SC/ST (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2018

  • यह अधिनियम सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को निरस्त करने तथा अधिनियम के मूल प्रावधानों को बहाल करने के लिए पारित किया गया था।
  • FIR के लिए कोई पूर्व स्वीकृति नहीं: SC और ST के विरुद्ध अत्याचार के मामलों में FIR दर्ज करने के लिए किसी भी प्राधिकरण से पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है।
  • कोई प्रारंभिक जाँच नहीं: संशोधन FIR दर्ज करने या गिरफ्तारी करने से पहले प्रारंभिक जाँच की आवश्यकता को हटा देता है।
  • कोई अग्रिम जमानत नहीं: अधिनियम के तहत आरोपी व्यक्तियों को अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती, सिवाय उन मामलों को छोड़कर जहाँ न्यायालय को कोई प्रथम दृष्टया साक्ष्य प्राप्त नहीं होता है।
  • निवारक उपायों को मजबूत करना: संशोधन में मुकदमों में तेजी लाने और समय पर न्याय सुनिश्चित करने के लिए विशेष अदालतों तथा अनन्य विशेष अदालतों की स्थापना को अनिवार्य बनाया गया है।
    • यह पीड़ितों के लिए राहत और पुनर्वास उपायों की आवश्यकता पर भी जोर देता है।

SC/ST  अधिनियम के दुरुपयोग पर न्यायिक टिप्पणियाँ

  • सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2018) में, सर्वोच्च न्यायालय ने देखा कि इस अधिनियम का दुरुपयोग निर्दोष नागरिकों और लोक सेवकों को ब्लैकमेल करने के लिए किया जा रहा है।
  • न्यायालय ने निम्नलिखित सुरक्षा उपाय प्रस्तुत किए
    • लोक सेवकों को केवल उनके नियुक्ति प्राधिकारी की लिखित अनुमति से ही गिरफ्तार किया जा सकता है।
    • FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जाँच यह परीक्षण करने के लिए की जाती है कि मामला वास्तविक है या नहीं।
    • ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत की अनुमति दी जाती है, जहाँ शिकायत दुर्भावनापूर्ण (झूठी या प्रेरित) पाई जाती है।

प्रतिक्रिया के बाद संशोधन (2018-2019)

  • दलित संगठनों के विरोध के बाद सरकार ने संशोधन के जरिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलट दिया।

SC/ST अधिनियम का दुरुपयोग

  • व्यक्तिगत बदला लेने के लिए झूठी शिकायतें: कुछ व्यक्ति व्यक्तिगत विवादों को निपटाने, बदला लेने या दूसरों को परेशान करने के लिए झूठे मामले दर्ज करते हैं।
    • अधिनियम के तहत आरोप लगने पर अक्सर तत्काल गिरफ्तारी और कानूनी कार्रवाई होती है, भले ही दावे असत्यापित हों।
  • वित्तीय लाभ के लिए शोषण: कभी-कभी आरोपी व्यक्तियों या संस्थाओं से पैसे ऐंठने के लिए झूठे आरोप लगाए जाते हैं।
  • राजनीतिक और सामाजिक प्रतिशोध: राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और सामाजिक संघर्षों में विरोधियों को झूठे तरीके से फँसाने के लिए इस अधिनियम का दुरुपयोग किया गया है।
    • भूमि विवाद, व्यक्तिगत दुश्मनी और संपत्ति के मुद्दों को कभी-कभी जाति-संबंधी अत्याचारों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

SC और ST अधिनियम की न्यायिक व्याख्या

  • कनुभाई एम. परमार बनाम गुजरात राज्य (2000): गुजरात उच्च न्यायालय ने माना कि उन मामलों में SC/ST अधिनियम लागू नहीं किया जा सकता है, जहाँ आरोपी और पीड़ित दोनों SC/ST समुदायों से संबंधित हैं।
    • यह अधिनियम SC/ST को उनके समुदायों के बाहर के व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों से बचाने के लिए है।
  • राजमल बनाम रतन सिंह (1988): पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने माना कि SC/ST अधिनियम के तहत स्थापित विशेष न्यायालय विशेष रूप से इस अधिनियम से संबंधित मामलों के लिए नामित हैं।
    • इन विशेष न्यायालयों को नियमित मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायालयों के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए।
  • अरुमुगम सर्वई बनाम तमिलनाडु राज्य (2011): भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि SC/ST समुदाय के किसी सदस्य का अपमान करना SC/ST अधिनियम के तहत अपराध है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने SC/ST व्यक्तियों की गरिमा की रक्षा के महत्त्व की पुष्टि की।
  • सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2018): इस व्यापक रूप से आलोचना किए गए निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत का बहिष्कार पूर्ण नहीं है।
    • यदि आरोप झूठे या मनगढ़ंत प्रतीत होते हैं तो न्यायालय अग्रिम जमानत दे सकता है।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट

  • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता संबंधी स्थायी समिति की हालिया रिपोर्ट में अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध अत्याचारों से निपटने के लिए कई राज्य सरकारों के प्रयासों में बड़ी कमियों को उजागर किया गया है।

संसदीय पैनल द्वारा उठाई गई प्रमुख चिंताएँ

  • केंद्रीय सहायता के बावजूद वित्तीय उपयोग में कमी: केंद्रीय स्तर पर कोई वित्तीय बाधा न होने के बावजूद, कई राज्य उपलब्ध निधियों का उपयोग करने या अनुसूचित जातियों के विरुद्ध अत्याचारों को दूर करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने में विफल रहते हैं। 
    • इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए केंद्रीय संसाधनों के समर्थन के साथ राज्य सरकारों द्वारा “ईमानदार और समन्वित” प्रयासों की आवश्यकता होती है। 
    • मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों को विशेष रूप से निधि उपयोग में पिछड़ने और कार्यान्वयन लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रहने के लिए उल्लेख किया गया था।
  • कल्याणकारी योजनाओं का खराब कार्यान्वयन: अनुसूचित जातियों के लिए ‘पोस्ट-मैट्रिक’ छात्रवृत्ति योजना और मशीनीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan for Mechanised Sanitation Ecosystem-NAMASTE) का अपर्याप्त उपयोग किया गया है।
    • बाधाओं में शामिल हैं:
      • अधूरे दस्तावेज
      • आधार सीडिंग में त्रुटियाँ
      • राज्य अंशदान जारी करने में देरी
    • समिति ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा नियमित समीक्षा और राज्य स्तरीय कार्यशालाओं सहित कड़ी निगरानी का आग्रह किया।
  • हाशिए पर स्थित समुदायों से संबंधित कार्यक्रमों का असमान कार्यान्वयन: पैनल ने अन्य हाशिए पर पड़े समूहों से संबंधित कार्यक्रमों के असमान कार्यान्वयन पर भी चिंता जताई, जिनमें शामिल हैं:
    • SMILE पहल (ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और भिखारियों के लिए)
    • SHREYAS योजना (उच्च शिक्षा में अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए)।
  • निम्नलिखित योजनाओं में मापनीय लक्ष्यों का अभाव
    • प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना
    • अनुसूचित जातियों और पिछड़ी जातियों के लिए उद्यम पूँजी कोष
  • कल्याणकारी कार्यक्रमों के अपर्याप्त प्रचार के कारण पात्र लाभार्थियों में जागरूकता कम है।

आगे की राह

  • कड़ी निगरानी: केंद्र सरकार को गैर-निष्पादनकारी राज्यों पर सख्त शर्तें लागू करनी चाहिए।
    • विश्व बैंक का प्रोग्राम-फॉर-रिजल्ट्स (PforR) वित्तपोषण मॉडल सीधे परिणाम प्राप्त करने के लिए संवितरण को जोड़ता है। भारत CSS के लिए एक समान मॉडल अपना सकता है।
  • समय पर निधि प्रस्ताव: राज्यों को केंद्रीय निधि प्राप्त करने के लिए उचित और आवधिक प्रस्ताव प्रस्तुत करना चाहिए।
    • सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (PFMS) ने पहले ही निधि ट्रैकिंग में सुधार किया है। प्रस्ताव प्रस्तुत करने को शामिल करने के लिए इसके दायरे का विस्तार करने से प्रक्रिया सुव्यवस्थित हो सकती है।
  • सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना: राज्यों को केंद्र प्रायोजित योजनाओं के सुचारू क्रियान्वयन के लिए सक्रिय रूप से अपना योगदान देना चाहिए।
  • सफाई कर्मचारियों के लिए सहायता में सुधार: पैनल ने नमस्ते कार्यक्रम के तहत सफाई कर्मचारियों के लिए सहायता बढ़ाने का आग्रह किया, जिसमें शामिल हैं:
    • बेहतर प्रशिक्षण
    • स्वास्थ्य बीमा कवरेज में वृद्धि।
  • कल्याणकारी योजनाओं की पहुँच का विस्तार: प्रक्रियागत देरी को संबोधित करते हुए सरकारी योजनाओं की पहुँच का विस्तार करना, जैसे कि मुफ्त कोचिंग और फेलोशिप कार्यक्रमों को प्रभावित करने वाली देरी।
    • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) प्रणाली ने पहले ही PM-किसान जैसी योजनाओं में लीकेज को कम कर दिया है।
  • आउटरीच कार्यक्रमों के माध्यम से जागरूकता बढ़ाना: रिपोर्ट ने आउटरीच को बेहतर बनाने के लिए सूचना, शिक्षा और संचार (Information, Education, and Communication-IEC) अभियानों को बढ़ाने का सुझाव दिया।
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान ने लैंगिक समानता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का सफलतापूर्वक उपयोग किया। अन्य योजनाओं के लिए भी इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा के लिए विधायी उपाय

  • संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-17 और 23 अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की रक्षा का प्रावधान करते हैं।
  • सीटों का आरक्षण: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-330 और 332 क्रमशः लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित करते हैं।
  • शिक्षा और आर्थिक हितों के लिए विशेष प्रावधान: भारत के संविधान के अनुच्छेद-46 के अनुसार, राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना होगा।
  • नियुक्तियों के लिए विशेष प्रावधान: भारत के संविधान के अनुच्छेद-335 के अनुसार राज्य को सेवाओं और पदों पर नियुक्तियाँ करते समय अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों पर विचार करना होगा।
  • संसद के अधिनियम: नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की रक्षा करते हैं।
    • वन अधिकार अधिनियम, 2006: वन में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों को मान्यता देता है।

संदर्भ 

हाल ही में चीन में प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक (Experimental Advanced Superconducting Tokamak-EAST) रिएक्टर ने 1,000 सेकंड (लगभग 17 मिनट) से अधिक समय तक अपनी परिचालन स्थिति बनाए रखकर एक नया रिकॉर्ड बनाया है।

चीन के ईस्ट रिएक्टर में सफलता 

  • यह हालिया उपलब्धि वर्ष 2023 में स्थापित 400 सेकंड के पिछले रिकॉर्ड को पार कर गई है।
  • वास्तविक जीवन में विद्युत उत्पादन करने वाले रिएक्टरों को इस स्थिति को लगातार कई घंटों, यहाँ तक कि कई दिनों तक बनाए रखने की आवश्यकता होगी।

नाभिकीय संलयन क्या है?

  • नाभिकीय संलयन वह प्रक्रिया है, जिसमें दो हल्के परमाणविक नाभिक मिलकर एक भारी नाभिक बनाते हैं, जिससे भारी मात्रा में ऊर्जा निष्काषित होती है।
  • यह वही प्रक्रिया है, जो सूर्य और अन्य तारों को शक्ति प्रदान करती है, जिससे यह भविष्य के लिए एक संभावित स्वच्छ और असीमित ऊर्जा स्रोत बन जाता है।

नाभिकीय संलयन कैसे कार्य करता है?

  • संलयन में, हाइड्रोजन के दो समस्थानिक (ड्यूटेरियम और ट्रिटियम) अत्यंत उच्च तापमान पर टकराते हैं।

  • इससे भारी हीलियम नाभिक बनता है, साथ ही न्यूट्रॉन और ऊर्जा निकलती है।
  • उत्सर्जित ऊर्जा नाभिकीय विखंडन (वर्तमान में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में उपयोग की जाने वाली) की तुलना में बहुत अधिक होती है।

संलयन के लिए आवश्यक शर्तें

  • तापमान: करोड़ों डिग्री सेल्सियस, जो सूर्य के केंद्र से भी अधिक है।
  • पदार्थ की अवस्था: ऐसे तापमान पर, पदार्थ प्लाज्मा (आवेशित कणों का मिश्रण) के रूप में मौजूद होता है।
  • नियंत्रण: प्लाज्मा को शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग करके सीमित किया जाना चाहिए क्योंकि कोई भी भौतिक पदार्थ इतना तापमान सहन नहीं कर सकता है।

प्लाज्मा की स्थिरता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। चुंबकीय क्षेत्र में थोड़ी-सी भी गड़बड़ी अभिक्रिया को बाधित कर सकती है, यही वजह है कि हाल ही में मिली सफलता महत्त्वपूर्ण है।

नाभिकीय संलयन के लाभ

विशेषता

लाभ

असीमित ईंधन आपूर्ति हाइड्रोजन समस्थानिकों (समुद्री जल से ड्यूटेरियम और लीथियम से ट्रिटियम) का उपयोग करता है।
शून्य कार्बन उत्सर्जन इसमें कोई ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित नहीं होती है, जिससे यह पर्यावरण के अनुकूल है।
कोई दीर्घकालिक परमाणु अपशिष्ट नहीं विखंडन के विपरीत, संलयन से खतरनाक रेडियोधर्मी अपशिष्ट उत्पन्न नहीं होता।
उच्च ऊर्जा उत्पादन 1 ग्राम संलयन ईंधन से 10 टन कोयले के बराबर ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है।
पिघलने का कोई खतरा नहीं विखंडन रिएक्टरों के विपरीत, संलयन में विनाशकारी विफलता का खतरा नहीं होता है।

संलयन ऊर्जा प्राप्त करने में चुनौतियाँ

  • अत्यधिक तापमान की आवश्यकताएँ: प्लाज्मा को अत्यधिक तापमान पर गर्म बनाए रखना चाहिए।
  • निरंतर प्रतिक्रिया की कठिनाई: लंबे समय तक प्लाज्मा को सीमित रखना अस्थिर है।
  • उच्च प्रारंभिक लागत: अनुसंधान और रिएक्टर निर्माण के लिए अरबों डॉलर की आवश्यकता होती है।
  • अभी तक कोई वाणिज्यिक संलयन नहीं: वर्तमान संलयन प्रयोग अभी तक बिजली उत्पन्न नहीं करते हैं।

वैश्विक संलयन अनुसंधान में प्रगति

  1. इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (International Thermonuclear Experimental Reactor-ITER), कैडारैचे, फ्राँस: यह दुनिया की सबसे बड़ी नाभिकीय संलयन अनुसंधान परियोजना है।
  2. जेट प्रयोगशाला [JET Laboratory], यूके (2021): 5 सेकंड के लिए 12 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया, जो 10,000 घरों को बिजली देने के लिए पर्याप्त है।
  3. लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी [Lawrence Livermore National Laboratory], USA (2022): पहली बार शुद्ध ऊर्जा लाभ प्राप्त किया, जिसका अर्थ है कि ऊर्जा उत्पादन इनपुट से अधिक था।
  4. MIT अनुसंधान (2023): नई सामग्री विकसित की, जो संलयन रिएक्टरों के अंदर चरम स्थितियों का सामना कर सकती है।
  5. चीन की नई लेजर-इग्नाइटेड फ्यूजन परियोजना [China’s New Laser-Ignited Fusion Project] (2024): संलयन ऊर्जा का पता लगाने और संभावित रूप से थर्मोन्यूक्लियर हथियारों के अनुसंधान में सहायता करने के लिए विकसित की जा रही है।
  6. हेलियन (USA): वर्ष 2028 तक 50 मेगावाट बिजली उत्पन्न करने और इसे माइक्रोसॉफ्ट को आपूर्ति करने की योजना है।
  7. कॉमनवेल्थ फ्यूजन सिस्टम (USA): 2030 के दशक की शुरुआत तक 400 मेगावाट ग्रिड-स्केल फ्यूजन प्लांट बनाने के लिए MIT के साथ काम कर रहा है।

अंतरराष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर (International Thermonuclear Experimental Reactor-ITER)

  • ITER दुनिया की सबसे बड़ी नाभिकीय संलयन अनुसंधान परियोजना है, जिसका उद्देश्य स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा स्रोत के रूप में संलयन की व्यवहार्यता को प्रदर्शित करना है।
  • यह भारत सहित 30 से अधिक देशों को शामिल करने वाला एक अंतरराष्ट्रीय सहयोग है।
  • यह परियोजना फ्राँस के कैडारैचे में बनाई जा रही है और आशा है कि यह वाणिज्यिक नाभिकीय संलयन रिएक्टरों के विकास में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध होगी।

ITER के उद्देश्य

  1. व्यवहार्यता का प्रदर्शन करें: यह सिद्ध करना कि नाभिकीय संलयन एक व्यावहारिक ऊर्जा स्रोत हो सकता है।
  2. उच्च शक्ति उत्पन्न करना: 50 मेगावाट के इनपुट से 500 मेगावाट संलयन शक्ति का उत्पादन करना।
  3. लंबी अवधि के लिए प्लाज्मा को बनाए रखना: विस्तारित अवधि के लिए प्लाज्मा को सीमित रखना।
  4. मुख्य प्रौद्योगिकियों का परीक्षण करना: भविष्य के संलयन रिएक्टरों के लिए सामग्री और तंत्र विकसित करना।
  5. वैज्ञानिक ज्ञान को आगे बढ़ाना: प्लाज्मा व्यवहार और संलयन भौतिकी में अंतर्दृष्टि प्रदान करना।

संलयन ऊर्जा का भविष्य

  • हालाँकि वर्ष 2050 से पहले वाणिज्यिक संलयन रिएक्टर की संभावना नहीं है, लेकिन हाल ही में प्राप्त हुई सफलताओं ने आशावाद को बढ़ाया है।
  • सौर और पवन ऊर्जा के विपरीत, संलयन मौसम की स्थिति पर निर्भरता के बिना असीमित, निरंतर और स्वच्छ ऊर्जा प्रदान कर सकता है।
  • जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी आगे बढ़ती है और निवेश बढ़ता है, नाभिकीय संलयन ऊर्जा क्षेत्र में क्रांति ला सकता है, जिससे जीवाश्म ईंधन और यहाँ तक कि अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कम प्रासंगिक हो जाएँगे।

नाभिकीय विखंडन

  • नाभिकीय विखंडन एक भारी परमाणु (जैसे यूरेनियम या प्लूटोनियम) को छोटे भागों में विभाजित करने की प्रक्रिया है।

  • जब एक भारी परमाणु विभाजित होता है, तो यह बहुत अधिक ऊर्जा और कुछ न्यूट्रॉन उत्सर्जित करता है, जो अधिक परमाणुओं को विभाजित कर सकता है, जिससे एक शृंखला अभिक्रिया प्रारंभ होती है।
  • इसका उपयोग परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में विद्युत उत्पादन के लिए और परमाणु बमों में विस्फोटक ऊर्जा हेतु किया जाता है।
  • इससे बहुत अधिक ऊर्जा पैदा होती है, लेकिन रेडियोधर्मी अपशिष्ट भी बनता है, जिसे सावधानीपूर्वक नियंत्रित करना पड़ता है।

नाभिकीय संलयन एवं नाभिकीय विखंडन के मध्य अंतर

पहलू

नाभिकीय संलयन

नाभिकीय विखंडन

परिभाषा दो हल्के परमाणु नाभिक मिलकर एक भारी नाभिक बनाते हैं, इसके परिणामस्वरूप  ऊर्जा उत्सर्जित होती है। एक भारी परमाणु नाभिक दो या अधिक छोटे नाभिकों में विभाजित हो जाता है, जिससे ऊर्जा मुक्त होती है।
प्रक्रिया सूर्य जैसे तारों में स्वाभाविक रूप से घटित होता है। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और परमाणु बमों में उपयोग किया जाता है।
ऊर्जा उत्पादन विखंडन की तुलना में काफी अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। संलयन की तुलना में कम ऊर्जा उत्पन्न होती है।
प्रयुक्त ईंधन इसमें हाइड्रोजन (ड्यूटेरियम और ट्रिटियम) के समस्थानिकों का उपयोग किया जाता है। इसमें यूरेनियम-235 और प्लूटोनियम-239 जैसे भारी तत्त्वों का उपयोग किया जाता है।
अपशिष्ट उत्पादन इससे न्यूनतम रेडियोधर्मी अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिससे यह अधिक स्वच्छ हो जाता है। खतरनाक रेडियोधर्मी अपशिष्ट उत्पन्न करता है।
अभिक्रिया की स्थितियाँ अत्यंत उच्च तापमान (लाखों डिग्री सेल्सियस) की आवश्यकता होती है। कम तापमान और नियंत्रित परिस्थितियों में हो सकता है।
पर्यावरणीय प्रभाव कोई ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन नहीं; सुरक्षित और स्वच्छ। इससे रेडियोधर्मी अपशिष्ट उत्पन्न होता है तथा पर्यावरणीय जोखिम उत्पन्न होता है।
व्यावहारिक प्रयोज्यता अभी भी अनुसंधान जारी है; अभी तक कोई वाणिज्यिक रिएक्टर नहीं बना है। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में बिजली उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है।
जोखिम कारक शृंखला अभिक्रिया या पिघलने का कोई खतरा नहीं। परमाणु दुर्घटनाओं और विकिरण रिसाव का खतरा।

संदर्भ

सिक्किम में ग्लेशियर झील के फटने से आई विनाशकारी बाढ़ के चौदह महीने बाद, जिसमें तीस्ता-3 बाँध बह गया और कई लोग मारे गए, पर्यावरण मंत्रालय की एक विशेषज्ञ समिति ने सिफारिश की है कि बाँध का पुनर्निर्माण किया जाए।

तीस्ता-III जलविद्युत परियोजना (सिक्किम)

  • प्रकार: रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजना (Run-Of-The-River Hydropower Project)
  • स्थान: चुंगथांग, सिक्किम
  • क्षमता: 1,200 मेगावाट (सिक्किम में सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना)
  • बाँध की ऊँचाई: 60 मीटर
  • कमीशन: वर्ष 2017
  • डेवलपर: तीस्ता ऊर्जा लिमिटेड (TUL), सिक्किम सरकार और निजी फर्मों से निवेश के साथ

विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) की प्रमुख सिफारिशें

  • तीस्ता-III बाँध के पुनर्निर्माण के लिए स्वीकृति: तीस्ता-III बाँध को नए डिजाइन के साथ पुनर्निर्माण करने का प्रस्ताव, पिछले 60 मीटर ऊँचे कंक्रीट फेस रॉकफिल बाँध के स्थान पर 118.64 मीटर ऊँचे कंक्रीट ग्रेविटी बाँध के निर्माण से संबंधित है।
  • तीव्र प्रवाह की क्षमता: बाँध की तीव्र प्रवाह क्षमता को 7,000 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड [क्यूमेक्स (Cumecs)] से बढ़ाकर 19,946 क्यूमेक्स करना।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली (EWS): ऊपरी जलग्रहण क्षेत्रों में ग्लेशियल झीलों और बाढ़ के जोखिमों की निगरानी के लिए एक मजबूत पूर्व चेतावनी प्रणाली (EWS) की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
  • बाँध नियंत्रण कक्ष का स्थानांतरण: कर्मियों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए, बाँध नियंत्रण कक्ष को अधिक ऊँचाई पर स्थानांतरित करना।
  • ग्लेशियल झीलों का व्यापक अध्ययन: संभावित GLOF जोखिमों का आकलन करने के लिए बाँध के जलग्रहण क्षेत्र में ग्लेशियल झीलों का विस्तृत अध्ययन।
    • पहचानी गई 119 हिमनद झीलों में से 13 को उनके आकार, आयतन तथा बाँध से निकटता के कारण संभावित रूप से खतरनाक माना गया है।
  • भूस्खलन मानचित्रण और शमन: लाचेन और लाचुंग जलग्रहण क्षेत्रों के 5 किलोमीटर के दायरे में भूस्खलन का मानचित्रण।
  • संरचनात्मक लचीलापन और सुरक्षा: नए बाँध की संरचनात्मक लचीलापन के बारे में चिंता जताई गई और प्रस्तावित संशोधनों की गहन समीक्षा की सिफारिश की गई।
    • बाँध के डिजाइन पहलुओं, जिसमें GLOF घटनाओं और बाढ़ के जल को धारण करने की इसकी क्षमता शामिल है, को CWC, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India-GSI) और केंद्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधान स्टेशन (Central Soil and Materials Research Station-CSMRS) द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
  • राष्ट्रीय GLOF जोखिम शमन कार्यक्रम: राष्ट्रीय GLOF जोखिम शमन कार्यक्रम का समर्थन किया, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में उच्च जोखिम वाली ग्लेशियल झीलों से उत्पन्न जोखिमों को कम करना है।
    • इस कार्यक्रम ने 189 उच्च जोखिम वाली ग्लेशियल झीलों की पहचान की है और शमन उपायों के लिए ₹150 करोड़ आवंटित किए हैं।

अन्य देशों में बाँध सुरक्षा: अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और चीन

  • USA: राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा कार्यक्रम (National Dam Safety Program-NDSP) संघीय एजेंसियों, राज्यों और निजी संस्थाओं के बीच बाँध सुरक्षा प्रयासों का समन्वय करता है।
    • संघीय आपातकालीन प्रबंधन एजेंसी (Federal Emergency Management Agency-FEMA) बाँध विफलता विश्लेषण, जलप्लावन मानचित्रण और जोखिम प्रबंधन के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश प्रदान करती है, जिसमें पारदर्शिता और अनुसंधान के लिए डेटा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है।
  • ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलिया बड़े बाँधों पर ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय समिति (Australian National Committee on Large Dams-ANCOLD) द्वारा विकसित जोखिम-आधारित निर्णय लेने के ढाँचे का उपयोग करता है।
    • यह ढाँचा बाँध के डिजाइन, स्थान और विघटन निर्णयों को सूचित करता है, यह सुनिश्चित करता है कि बाँधों का निर्माण और प्रबंधन उनके जोखिम प्रोफाइल के आधार पर किया जाए।
  • चीन: 1970 के दशक में कई बाँध विफलताओं के बाद, चीन ने बाँध विफलता विश्लेषण और परिणाम आकलन करने के लिए बाँध सुरक्षा प्रबंधन केंद्र तथा बड़े बाँध सुरक्षा पर्यवेक्षण केंद्र की स्थापना की।
    • ये विश्लेषण भूमि-उपयोग विनियमों, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों और आपातकालीन प्रबंधन योजनाओं को सूचित करते हैं।

तीस्ता-III जलविद्युत परियोजना और इसके पुनर्निर्माण के संबंध में प्रमुख पारिस्थितिकी और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ

  • ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) का जोखिम बढ़ रहा है: जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की दर तीव्र हो रही है, जिससे तेजी से GLOF घटनाओं का जोखिम बढ़ रहा है, जो फिर से बाँध को नष्ट कर सकती हैं और नीचे की ओर बाढ़ का कारण बन सकती हैं।
    • अक्टूबर 2023 में दक्षिण ल्होनक ग्लेशियल झील फट गई, जिससे भयावह बाढ़ आई जिसने तीस्ता-III बाँध को क्षतिग्रस्त कर दिया और सिक्किम के चार जिलों में 40 से अधिक लोगों की जान चली गई।
  • भूकंपीय भेद्यता और भूस्खलन का जोखिम: नए बाँध को केंद्रीय जल आयोग, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण और केंद्रीय मृदा तथा सामग्री अनुसंधान स्टेशन की अनुमति के बिना मंजूरी दी जा रही है, जिससे भूकंप और भूस्खलन का सामना करने की इसकी क्षमता के बारे में गंभीर सुरक्षा चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं।
    • वर्ष 2024 में, भूस्खलन ने तीस्ता नदी पर एक अन्य जलविद्युत परियोजना को ₹300 करोड़ का नुकसान पहुँचाया, हालाँकि इससे जानमाल की हानि नहीं हुई।
  • सार्वजनिक परामर्श और स्थानीय विरोध का अभाव: स्थानीय समुदाय, जिनमें स्वदेशी समूह भी शामिल हैं, इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं क्योंकि इससे उनके पर्यावरण और आजीविका को नुकसान पहुँचने की आशंका है।
    • स्थानीय समुदायों पर भारी प्रभाव के बावजूद, नए बाँध को नई जन सुनवाई किए बिना ही मंजूरी दे दी गई।
  • पर्यावरण क्षरण और जैव विविधता का नुकसान: बाँध निर्माण जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करेगा, मछलियों की आबादी को कम करेगा और नदी के प्रवाह पैटर्न को बदल देगा, जिससे संभावित रूप से कृषि और आजीविका को नुकसान पहुँचेगा।
    • जलविद्युत परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई से सिक्किम में मिट्टी का कटाव और जैव विविधता का नुकसान पहले ही बढ़ चुका है।
  • लागत में वृद्धि और वित्तीय व्यवहार्यता: भविष्य में बाढ़ और संरचनात्मक विफलताओं के उच्च जोखिम को देखते हुए, एक विफल परियोजना के पुनर्निर्माण में अधिक निवेश करना वित्तीय रूप से विवेकपूर्ण नहीं हो सकता है।
    • मूल तीस्ता-III परियोजना को पूरा होने में 12 वर्ष लगे, जो इसके बजट से 2.5 गुना अधिक था।
  • कमजोर नियामक निरीक्षण और मंजूरी प्रक्रिया: स्वतंत्र, पारदर्शी मूल्यांकन की कमी भारत में नियामक निरीक्षण और पर्यावरण शासन के बारे में गंभीर सवाल उठाती है।
    • तीस्ता-III परियोजना को संशोधित संभावित अधिकतम बाढ़ (Probable Maximum Flood-PMF) अध्ययन की कमी के बावजूद मंजूरी दे दी गई, जो भविष्य में बाढ़ के जोखिमों का आकलन करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • विस्थापन और स्थानीय समुदायों पर प्रभाव: जलविद्युत परियोजनाओं के कारण अक्सर स्थानीय समुदायों का विस्थापन होता है और उनकी आजीविका नष्ट हो जाती है, खासकर पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में।
    • तीस्ता-III परियोजना के कारण सिक्किम में कई समुदाय विस्थापित हो गए, जिससे कई लोगों की कृषि भूमि और मत्स्यन संसाधनों तक पहुँच समाप्त हो गई।

भारत में प्रमुख बाँध विफलताएँ

  • तीस्ता-III बाँध, सिक्किम (2023): सिक्किम में दक्षिण लहोनक झील से एक ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ (GLOF)।
    • बाढ़ ने 60 मीटर ऊँचे तीस्ता-III बाँध को बहा दिया, जिससे भारी तबाही हुई और 40 से अधिक लोगों की मौत हो गई।
  • मच्छू-II बाँध, गुजरात (1979): भारी बारिश के कारण बाँध का जल ओवरफ्लो हो गया और बाँध ढह गया।
    • इस आपदा के कारण गुजरात के मोरबी में भीषण बाढ़ आई, जिसमें 2,000 से अधिक लोग मारे गए।
  • धौलीगंगा बाँध, उत्तराखंड (2021): नंदा देवी ग्लेशियर से हिमस्खलन के कारण उत्पन्न GLOF के कारण भीषण बाढ़ आई।
    • बाँध और जलविद्युत परियोजना को भारी नुकसान पहुँचा, जिससे 200 से अधिक लोग मारे गए।
  • इडुक्की बाँध, केरल (2018): केरल में भारी मानसूनी बारिश और भूस्खलन के कारण जल स्तर अनियंत्रित रूप से बढ़ गया।
    • पहली बार एक साथ सभी पाँच स्पिलवे गेट खोले गए, जिससे भयावह बाढ़ आई।
  • उकाई बाँध, गुजरात (2006): अत्यधिक मानसूनी बाढ़ के कारण अनियंत्रित जल रिसाव।
    • सूरत की बाढ़ ने शहर के बड़े हिस्से को जलमग्न कर दिया, जिससे भारी आर्थिक नुकसान हुआ।
  • हीराकुंड बाँध, ओडिशा (2011): अत्यधिक वर्षा के कारण आपातकालीन परिस्थितियों में जल छोड़ना पड़ा, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ आ गई।
    • हजारों घर नष्ट हो गए और खेत जलमग्न हो गए।
  • कोयना बाँध, महाराष्ट्र (1967): इस क्षेत्र में 6.5 तीव्रता का भूकंप आया।
    • बाँध को संरचनात्मक क्षति तो हुई, लेकिन वह पूरी तरह से नहीं टूटा।

भारत में बाँध सुरक्षा विनियम

बाँध सुरक्षा अधिनियम, 2021

  • बाँध सुरक्षा अधिनियम, 2021 बड़े बाँधों की विफलताओं को रोकने और सुरक्षित कार्यप्रणाली सुनिश्चित करने के लिए निगरानी, ​​निरीक्षण, संचालन और रखरखाव के लिए एक व्यापक ढाँचा प्रदान करता है।
  • अधिनियम के मुख्य प्रावधान
    • संस्थागत तंत्र
      • राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा समिति (National Committee on Dam Safety-NCDS): बाँध सुरक्षा नीतियाँ और मानक विकसित करती है।
      • राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा प्राधिकरण (National Dam Safety Authority-NDSA): NDSA द्वारा निर्धारित नीतियों को लागू करता है।
        • बाँध सुरक्षा पर अंतरराज्यीय विवादों का समाधान करता है।
      • राज्य बाँध सुरक्षा संगठन (State Dam Safety Organizations- SDSO): बाँधों का नियमित निरीक्षण और सुरक्षा निगरानी करता है।
      • राज्य बाँध सुरक्षा समिति (State Committee on Dam Safety-SCDS): राज्य स्तर पर सुरक्षा उपायों का अनुपालन सुनिश्चित करता है।
    • गैर-अनुपालन के लिए दंड: बाँध सुरक्षा उल्लंघन के लिए 2 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना।

बाँध सुरक्षा के लिए अन्य प्रमुख पहल

  • बाँध पुनर्वास और सुधार परियोजना (Dam Rehabilitation and Improvement Project-DRIP)
    • उद्देश्य: 19 राज्यों में 736 बाँधों की संरचनात्मक सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • वित्तपोषण: विश्व बैंक और एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (Asian Infrastructure Investment Bank-AIIB) द्वारा समर्थित।
    • संबंधित संस्थाएँ
      • केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission-CWC)
      • दामोदर घाटी निगम (Damodar Valley Corporation-DVC)
      • भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (Bhakra Beas Management Board-BBMB)।
  • बड़े बाँधों का राष्ट्रीय रजिस्टर (National Register of Large Dams-NRLD): CWC द्वारा बनाए रखा जाता है।
    • संरचनात्मक और परिचालन विवरण सहित सभी बड़े बाँधों का डेटाबेस।
  • बाँध स्वास्थ्य और पुनर्वास निगरानी अनुप्रयोग (धर्म): CWC और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre- NIC) द्वारा विकसित।
    • बाँधों की वास्तविक समय की निगरानी के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करता है।
  • भूकंपीय जोखिम विश्लेषण सूचना प्रणाली (Seismic Hazard Analysis Information System-SHAISYS): भूकंपीय जोखिमों और बाँध संरचनाओं पर उनके प्रभाव का आकलन करती है।
  • बाँधों की भूकंप सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय केंद्र (National Centre for Earthquake Safety of Dams-NCESD)
    • स्थान: MNIT जयपुर, राजस्थान।
    • उद्देश्य: बाँधों की भूकंप प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करना।
  • भारत जल संसाधन सूचना प्रणाली (Water Resource Information System-WRIS): बाँध की स्थिति सहित GIS आधारित जल संसाधन डेटा प्रदान करती है।

भारत की संवैधानिक व्यवस्था और बाँध सुरक्षा

  • सूची I की प्रविष्टि 56: यह अंतरराज्यीय नदियों और नदी घाटियों के विनियमन और विकास से संबंधित संघ की विधायी शक्ति से संबंधित है।
  • सूची II की प्रविष्टि 17: जल पर राज्य की विधायी शक्ति को सुरक्षित करती है। हालाँकि, यह सूची I की प्रविष्टि 56 के अधीन है:

भारत में जल संसाधन और बाँधों का विकास

  • राज्य सरकारों की भूमिका: भारत के संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत जल और जल भंडारण राज्य का विषय है।
    • इसलिए, बाँध सुरक्षा के लिए कानून बनाना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।
  • केंद्र सरकार की भूमिका: केंद्र सरकार तीन परिदृश्यों में बाँधों को नियंत्रित करने वाला कानून बना सकती है:
    • यदि परियोजना कई राज्यों या अंतरराष्ट्रीय संधियों को प्रभावित करती है: यह उन बाँधों को विनियमित करने वाला कानून पारित कर सकता है, जिनके जलग्रहण क्षेत्र या बहाव क्षेत्र कई राज्यों या अंतरराष्ट्रीय सीमाओं में फैले हुए हैं।
    • यदि दो या अधिक राज्य ऐसे कानून की आवश्यकता वाले प्रस्ताव पारित करते हैं: वर्ष 2010 में, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने बाँध सुरक्षा पर कानून की आवश्यकता वाले प्रस्ताव पारित किए।
    • पर्यावरण संरक्षण: पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण की सुरक्षा से संबंधित मामले।

वैश्विक मानक और भारत का अनुपालन

  • बड़े बाँधों पर अंतरराष्ट्रीय आयोग (ICOLD): वर्ष 1928 में स्थापित, बाँध के डिजाइन, निर्माण और निगरानी के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
    • बड़े बाँधों पर भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCOLD) ICOLD के साथ समन्वय करती है।
  • बाँधों पर विश्व आयोग (WCD): बाँध प्रभावशीलता समीक्षा के लिए विश्व बैंक और IUCN (1998) द्वारा स्थापित।

ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) के बारे में

  • ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) ग्लेशियल झील से जल का अचानक और विनाशकारी रिसाव है।
  • ग्लेशियल झीलें तब निर्मित होती हैं, जब ग्लेशियरों से पिघला हुआ जल ग्लेशियल गतिविधियों द्वारा बनाए गए अवसादों में जमा हो जाता है, जो अक्सर मोरेन या बर्फ जैसी प्राकृतिक बाधाओं से अवरुद्ध हो जाते हैं।
  • GLOF कैसे होते हैं
    • ग्लेशियर पीछे हटना: ग्लेशियर पीछे हटने के साथ ही घाटी के तल को नष्ट कर देते हैं और अवसाद निर्मित करते हैं।
    • झील निर्माण: ग्लेशियर से पिघला हुआ जल अवसादों में जमा हो जाता है, जिससे झीलें बन जाती हैं।
    • मोराइन बाँध: झीलों को मोराइन द्वारा बाँधा जा सकता है, जो चट्टानों, बर्फ और ग्लेशियर द्वारा आगे धकेले गए अन्य मलबे से बना होता है।
    • बाँध की विफलता: मोराइन बाँध विफल हो सकता है, जिससे झील से अचानक बड़ी मात्रा में जल निकल सकता है।
  • ट्रिगरिंग कारक
    • जलवायु परिवर्तन: बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे बर्फ और हिमोढ़ बाँधों पर दबाव पड़ रहा है, जिससे उनके टूटने का खतरा बढ़ रहा है।
    • हिमस्खलन: गिरने वाली बर्फ या चट्टान का मलबा बाँध को अस्थिर कर सकता है, जिससे अचानक जल का ओवरफ्लो हो सकता है।
    • भूकंप: भूकंपीय गतिविधियाँ बाँध में दरारें पैदा कर सकती है, जिससे GLOF की घटनाएँ हो सकती हैं।
    • भारी वर्षा: अत्यधिक वर्षा से ग्लेशियल झील में जल का स्तर तेजी से बढ़ सकता है, जिससे बाँध पर और दबाव बढ़ सकता है।
  • GLOF के प्रभाव
    • भारी बाढ़: जल की एक बड़ी मात्रा तेजी से छोड़ी जाती है, जिससे नीचे की ओर विनाशकारी बाढ़ आती है, जिससे बुनियादी ढाँचे और बस्तियाँ नष्ट हो जाती हैं।
    • भूस्खलन: बाढ़ का जल भूस्खलन को बढ़ावा दे सकता है, जिससे नुकसान और भी बढ़ सकता है।
    • कटाव: जल का अचानक बढ़ना नदी के तल और किनारों को बुरी तरह से नष्ट कर सकता है।

भारत में बाँध सुरक्षा से जुड़े मुद्दे

  • प्राचीन बुनियादी ढाँचा और खराब रखरखाव: कई भारतीय बाँध अपने डिजाइन की अवधि को पूर्ण कर चुके हैं, जिससे वे संरचनात्मक विफलताओं के प्रति संवेदनशील हो गए हैं।
    • बड़े बाँधों के राष्ट्रीय रजिस्टर के अनुसार, भारत में कुल 5,745 बाँध हैं, जिनमें से 227 100 वर्ष से अधिक प्राचीन हैं।
  • भूकंपीय भेद्यता: कई भारतीय बाँध भूकंप-प्रवण क्षेत्रों में स्थित हैं, जिससे वे उच्च जोखिम वाली संरचनाएँ बन जाती हैं।
    • कोयना बाँध (महाराष्ट्र, 1967) को 6.5 तीव्रता के भूकंप के कारण संरचनात्मक क्षति हुई है।
  • बाढ़ और ओवरटॉपिंग जोखिम: कई बाँधों में अपर्याप्त स्पिलवे क्षमता है, जिससे अत्यधिक वर्षा के दौरान ओवरटॉपिंग हो जाती है।
    • अक्टूबर 2023 में, तीस्ता-III बाँध (सिक्किम) ग्लेशियल झील के फटने से आई बाढ़ (GLOF) में बह गया।
  • अवसादन और कम भंडारण क्षमता: बाँधों में गाद और तलछट जमा हो जाता है, जिससे उनकी जल भंडारण और बाढ़ नियंत्रण क्षमता कम हो जाती है।
    • संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लगभग 3,700 बाँधों में तलछट के जमा होने के कारण वर्ष 2050 तक उनकी कुल भंडारण क्षमता का लगभग 26% कम होने का अनुमान है।
  • नियामक कमजोरियाँ और खराब निगरानी: कई राज्य बाँध सुरक्षा नियमों का पालन करने में विफल रहते हैं, जिससे जोखिमों की अनदेखी होती है।
    • गांधी सागर बाँध (MP) पर एक CAG रिपोर्ट में पाया गया कि राज्य बाँध सुरक्षा संगठन (State Dam Safety Organization-SDSO) ने CWC की सिफारिशों की अनदेखी की।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली और सार्वजनिक परामर्श का अभाव: कई बाँधों में वास्तविक समय की निगरानी और सुरक्षा निर्णयों में सार्वजनिक भागीदारी का अभाव है।
    • बिहार कोसी बाढ़ (2008) के दौरान, खराब संचार और आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाओं की कमी के कारण स्थितियाँ और भी बदतर हो गई थीं।

बाँध सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आगे की राह

  • विनियामक अनुपालन और प्रवर्तन को मजबूत करना: सभी बड़े बाँधों के लिए अनिवार्य तृतीय-पक्ष सुरक्षा ऑडिट सुनिश्चित करना।
    • राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा प्राधिकरण (NDSA) को गैर-अनुपालन संबंधी मामलों के लिए कठोर दंड लगाने का अधिकार देना।
  • पुराने बाँधों और बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण: बाँध पुनर्वास और सुधार परियोजना (DRIP) के तहत राष्ट्रीय बाँध पुनर्वास योजना लागू करना।
    • भूकंप संभावित क्षेत्रों में बाँधों के लिए भूकंपीय रेट्रोफिटिंग को मजबूत करना।
  • जलवायु लचीलापन और बाढ़ प्रबंधन में सुधार करना: उपग्रह डेटा और AI आधारित निगरानी को एकीकृत करके उन्नत बाढ़ पूर्वानुमान मॉडल विकसित करना।
    • गाद और मिट्टी के कटाव को कम करने के लिए जलग्रहण क्षेत्र उपचार और वनरोपण को लागू करना।
  • AI आधारित प्रारंभिक चेतावनी और आपातकालीन तैयारी स्थापित करना: स्वचालित संरचनात्मक स्वास्थ्य जाँच के लिए बाँध स्वास्थ्य और पुनर्वास निगरानी अनुप्रयोग (DHARMA) का विस्तार करना।
    • उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों के लिए भूकंपीय खतरा विश्लेषण सूचना प्रणाली (SHAISYS) तैनात करना।
  • सार्वजनिक भागीदारी और पारदर्शिता बढ़ाना: भारत जल संसाधन सूचना प्रणाली (WRIS) के माध्यम से बाँध सुरक्षा डेटा को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना।
    • स्थानीय जागरूकता और आपदा तैयारियों के लिए नियमित हितधारक बैठकें आयोजित करना।
  • वित्तीय और संस्थागत क्षमता को मजबूत करना: बाँध रखरखाव और पुनर्वास के लिए बजट आवंटन में वृद्धि करना।
    • DRIP विस्तार के लिए अंतरराष्ट्रीय निधि (विश्व बैंक, AIIB) सुरक्षित करना।
  • बाँध विखंडन नीति: इस नीति को उन बाँधों को नष्ट करने या पुनर्निर्माण के लिए लागू किया जाना चाहिए, जिनकी मरम्मत या उन्नयन नहीं किया जा सकता। 
    • इसमें जल विद्युत उत्पादन सुविधाओं को हटाना और जलग्रहण क्षेत्रों में पारिस्थितिकी रूप से व्यवहार्य हस्तक्षेपों के माध्यम से नदी चैनलों का पुनर्निर्माण करना शामिल है।

निष्कर्ष 

भारत में बाँध सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मजबूत नियमन, आधुनिक बुनियादी ढाँचे, जलवायु अनुकूलन, AI-आधारित निगरानी, ​​सार्वजनिक भागीदारी और वित्तीय प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। इन रणनीतिक उपायों को लागू करके, भारत भविष्य में बाँध विफलताओं को रोक सकता है और जीवन, जल सुरक्षा तथा बुनियादी ढाँचे की रक्षा सुनिश्चित कर सकता है।

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