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Feb 01 2025

Title Subject Paper
संक्षेप में समाचार
चरम जलवायु घटनाओं के कारण दक्षिण-पश्चिम तट पर होने वाले प्रभाव Environment and Ecology, GS Paper 3,
भुगतान एवं निपटान प्रणाली अधिनियम (PSS अधिनियम) के तहत दंड हेतु कड़े मानदंड economy, GS Paper 3,
ग्रीनलैंड की क्रिस्टल ब्लू झीलों के रंग में परिवर्तन Environment and Ecology, GS Paper 3,
PG मेडिकल पाठ्यक्रमों में अधिवास के आधार पर कोटा संभव नहीं Polity and governance ​, GS Paper 2,
घग्गर नदी का जल स्नान हेतु असुरक्षित: NGT पैनल Polity, GS Paper 2,
आर्कटिक सुरक्षा हेतु डेनमार्क द्वारा 2 बिलियन यूरो का निवेश international Relation, GS Paper 2,
शैवाल प्रस्फुटन हॉटस्पॉट Environment and Ecology, GS Paper 3,
MSME के लिए पारस्परिक ऋण गारंटी योजना economy, GS Paper 3,
राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन economy, GS Paper 3,

कुष्ठ रोग संचरण

केंद्र सरकार ने वर्ष 2027 तक कुष्ठ रोग संचरण को रोकने के लिए पॉसी-बैसिलरी (PB) मामलों के संबंध में छह महीने के लिए ‘टू-ड्रग रिजीम’ के  स्थान पर थ्री-ड्रग रिजीम की शुरुआत की है।

कुष्ठ रोग

  • कुष्ठ रोग माइकोबैक्टीरियम लेप्री के कारण होता है एवं मुख्य रूप से त्वचा तथा परिधीय तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है।
  • निदान के लिए लक्षण
    • त्वचा पर पीले या लाल धब्बे, जिनमें संवेदना समाप्त हो जाती है।
    • नसें मोटी या बड़ी हो गईं, जिससे मांसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं।
    • त्वचा के धब्बों में बैक्टीरिया का सूक्ष्मदर्शी द्वारा पता लगाना।

कुष्ठ रोग के प्रकार

  • पॉसी-बैसिलरी (Paucibacillary-PB): कम बैक्टीरिया, सामान्य रूप।
  • मल्टीबैसिलरी (Multibacillary-MB): अधिक बैक्टीरिया, गंभीर रूप।
  • संचरण एवं उपचार
    • अनुपचारित रोगियों के निकट संपर्क के दौरान नाक एवं मुँह से निकलने वाली बूँदों के माध्यम से फैलता है।
    • मल्टीड्रग थेरेपी (MDT) से उपचार संभव है।
  • कुष्ठ रोग के उच्च प्रसार वाले राज्य: बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र एवं ओडिशा। 
  • भारत का वैश्विक कुष्ठ रोग बोझ: विश्व के नए कुष्ठ रोग मामलों में से 52% भारत में हैं।

कुष्ठ रोग उन्मूलन में भारत की प्रगति

  • भारत ने वर्ष 2005 में सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में कुष्ठ रोग का उन्मूलन लक्ष्य प्राप्त कर लिया।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) राष्ट्रीय स्तर पर प्रति 10,000 लोगों पर 1 से कम मामले होने को उन्मूलन के रूप में परिभाषित करता है।
  • प्रमुख पहल 
    • राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (NSP) एवं रोडमैप (2023-27)
      • वर्ष 2027 तक (सतत् विकास लक्ष्य पूर्ण होने से तीन वर्ष पूर्व) इसके प्रसार को समाप्त करने के लिए 30 जनवरी, 2023 को लॉन्च किया गया।
      • मुख्य फोकस क्षेत्र
        • उपेक्षा एवं भेदभाव को समाप्त करने के लिए जागरूकता बढ़ाना।
        • मामलों का शीघ्र पता लगाने को बढ़ावा देना।
        • पोस्ट-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस के माध्यम से संचरण को रोकना।
        • कुष्ठ रोग मामले की रिपोर्टिंग के लिए एक वेब-आधारित पोर्टल निकुष्ठ 2.0  (Nikusth 2.0) को लागू करना।
    • राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम (NLEP) पहल
      • दिव्यांगता (ग्रेड 2 दिव्यांगता) को रोकने के लिए शीघ्र पता लगाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
      • कुष्ठ रोगियों का निशुल्क उपचार किया जाता है।

INSV-तारिणी ने ‘पॉइंट निमो’ को पार किया

हाल ही में INSV-तारिणी ने पृथ्वी के सबसे दूरस्थ स्थान पॉइंट निमो को सफलतापूर्वक पार किया।

INSV तारिणी 

  • INSV तारिणी एक्वेरियस शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा निर्मित 56 फुट का नौकायन जहाज है।
    • इसका नाम तारा तारिणी मंदिर के नाम पर रखा गया है।
  • इसे 18 फरवरी, 2017 को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था।
  • विशेषताएँ
    • INSV तारिणी में उन्नत विशेषताएँ शामिल हैं जैसे:
      • उपग्रह संचार प्रणाली।
      • रेमरीन नेविगेशन सुइट।
      • आपातकालीन स्टीयरिंग के लिए विंडवेन की निगरानी करना।

INSV तारिणी की अब तक की यात्रा

  • INSV-तारिणी अपने तीसरे चरण के लिए जनवरी 2025 की शुरुआत में न्यूजीलैंड के लिटलटन पोर्ट से रवाना हुई।
    • यह अभियान, इसका सबसे लंबा चरण है, जो 5,600 समुद्री मील (10,400 किमी.) को कवर करता है।
      • इस अभियान को 2 अक्टूबर, 2024 को गोवा से प्रारंभ किया गया था। 

पॉइंट निमो के बारे में

  • पॉइंट निमो दक्षिण प्रशांत महासागर में एक पृथक क्षेत्र है, जो फ्राँस से 34 गुना बड़े क्षेत्र को कवर करता है।
    • इसे दुर्गमता का महासागरीय ध्रुव भी कहा जाता है।
  • इसकी सुदूरता एवं कमजोर समुद्री धाराओं के कारण, इसमें बहुत कम पोषक तत्त्व उपस्थित हैं, जिससे समुद्री जीवन का विकसित होना संभव नही  है।
    • इस क्षेत्र में बड़ी एवं अधिक विकसित समुद्री प्रजातियाँ लगभग अनुपस्थित हैं।
  • पॉइंट निमो समुद्र में सबसे दुर्गम स्थल है, जो किसी भी स्थलीय भू-भाग से सबसे दूरस्थ स्थित है।
    • अंतरिक्ष एजेंसियाँ ​​पॉइंट निमो को  ‘स्पेसक्राफ्ट सिमेट्री’ (Spacecraft Cemetery) के रूप में उपयोग करती हैं, जहाँ निष्क्रिय उपग्रहों एवं अंतरिक्ष स्टेशनों को सुरक्षित रूप से दुर्घटनाग्रस्त होने के लिए निर्देशित किया जाता है।

संदर्भ 

‘कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ (Cusat), ‘यूरोपियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर द एक्सप्लॉइटेशन’ (EUMETSAT) और ‘यू.के. मेट ऑफिस’ के शोधकर्ताओं की एक टीम के एक अध्ययन के अनुसार, भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट पर अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही हैं।

संबंधित तथ्य

  • शोध में भारत के पश्चिमी तट पर वर्ष 1990 से 2023 तक मानसूनी वर्षा के आँकड़ों का विश्लेषण किया गया। जिससे पता चला है कि वर्षा में वृद्धि दर प्रति सीजन 0.23 मिमी. है।
  • इसने अवलोकन संबंधी रिकॉर्ड, पुनर्विश्लेषण डेटा एवं समुद्री सतही तापमान (SST) संबंधी आँकड़ों का विश्लेषण किया है।
  • अध्ययन इस तथ्य पर केंद्रित है कि आर्द्रता प्रवाह (वायुमंडल में नमी की गति) वर्षा के पैटर्न को कैसे प्रभावित करता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • अत्यधिक वर्षा का कारण
    • यह प्रवृत्ति दक्षिण-पूर्व अरब सागर में बढ़ते समुद्री सतही तापमान (SSTs) से संबंधित है, जो क्षेत्र में आर्द्रता के प्रवाह एवं मात्रा को बढ़ा रही है।
    • वर्ष 2014 के बाद से, इस क्षेत्र में SSTs 28 डिग्री सेल्सियस से अधिक बना हुआ है, जिससे वायु में आर्द्रता की मात्रा अधिक हुई है, जिससे अत्यधिक वर्षा जैसी चरम स्थिति उत्पन्न हो रही है।
    • दक्षिण-पश्चिम तट (विशेषकर केरल) इन परिवर्तनों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
  • उत्तर-पश्चिमी तट से भिन्नता: उत्तर-पश्चिमी तट पर समान रूप से अत्यधिक वर्षा की स्थिति नहीं देखी गई है, लेकिन तीव्र वायु के मद्देनजर आने वाली नमी के प्रवाह के कारण औसत मानसूनी वर्षा में वृद्धि दर्ज की गई है।
  • अरब सागर, बंगाल की खाड़ी से भी अधिक तेजी से गर्म हो रहा है।
    • अध्ययन में पाया गया कि अरब सागर बंगाल की खाड़ी की तुलना में तेजी से गर्म हो रहा है।
      • वर्ष 2006 से, SST एवं नमी परिवहन के बीच एक मजबूत संबंध रहा है।
    • वर्ष 2006 से पूर्व, SST एवं नमी प्रवाह के बीच संबंध नकारात्मक था, लेकिन वर्ष 2007 एवं वर्ष 2023 के बीच यह 0.71 तक मजबूत हो गया।

समुद्री सतही तापमान (SST) क्या है?

  • SST समुद्र की सतह के तापमान को संदर्भित करता है, इसे महासागरों, समुद्रों एवं बड़ी झीलों में मापा जाता है।
  • यह मौसम, जलवायु परिवर्तन एवं समुद्री जीवन का अध्ययन करने में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
  • SST का महत्त्व 
    • मौसम एवं जलवायु पर प्रभाव
      • झंझावत एवं चक्रवात: SST में वृद्धि तूफान, हरिकेन तथा मानसून के प्रभावी होने लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं।
      • मानसून पैटर्न: SST वर्षा वितरण को प्रभावित करते हैं, विशेषकर भारत जैसे क्षेत्रों में।
  • जलवायु परिवर्तन संकेतक
    • SST में वृद्धि ग्लोबल वार्मिंग का संकेत देती है, क्योंकि महासागर पृथ्वी की अधिकांश अतिरिक्त ऊष्मा को अवशोषित करते हैं।
  • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र
    • प्रवाल विरंजन: SST में तीव्र वृद्धि प्रवाल भित्तियों पर दवाब डालती है, जिससे इनमें विरंजन शुरू हो जाता है, जिसे प्रवाल विरंजन के रूप में जाना जाता है।
    • मत्यस्य संसाधनों की प्रकृति में बदलाव: SST में परिवर्तन से मत्स्य संसाधनों के प्रवासन, प्रजनन एवं अस्तित्व पर प्रभाव पड़ता है।
  • SST कैसे मापा जाता है?
    • उपग्रह प्रौद्योगिकी 
      • प्राथमिक विधि: उपग्रह समुद्र के तापमान पर वैश्विक, रियल टाइम डेटा प्रदान करते हैं।
      • प्रत्यक्ष उपकरण
        • बोय एवं जहाज: स्थानीयकृत, सटीक माप संगृहीत करना।
        • ड्रोन एवं सेंसर: आधुनिक उपकरण डेटा सटीकता को बढ़ाते हैं।
  • SST डेटा का उपयोग कैसे किया जाता है?
    • मौसम का पूर्वानुमान
      • समुद्री तूफान, चक्रवात एवं वर्षा पैटर्न का पूर्वानुमान करता है।
      • चरम मौसम की घटनाओं के लिए पूर्व चेतावनी जारी करने में मदद करता है।
    • जलवायु अनुसंधान
      • दीर्घकालिक वार्मिंग प्रवृत्तियों एवं महासागरीय पारिस्थितिकी स्थिति की निगरानी करता है।
      • SST वृद्धि एवं जलवायु परिवर्तन प्रभावों के बीच अध्ययन लिंक प्रदान करता है।
    • मत्स्यन एवं समुद्री उद्योग
      • तापमान परिवर्तन के आधार पर मछुआरों को मत्स्य संसाधन समृद्ध क्षेत्रों में मार्गदर्शन करना।
      • जलीय कृषि उद्योगों को मत्स्यपालन का प्रबंधन करने में मदद करता है।

भारत का दक्षिण-पश्चिम तट 

  • इसे ‘मालाबार तट’ कहा जाता है।
  • यह आमतौर पर कोंकण क्षेत्र से कन्याकुमारी तक विस्तृत पश्चिमी तटरेखा को संदर्भित करता है, जिसमें गोवा, कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु राज्यों के कुछ हिस्से शामिल हैं। 
  • मालाबार तट के बारे में मुख्य तथ्य
    • भौगोलिक स्थिति: यह तटीय क्षेत्र अरब सागर पर स्थित है। 
    • सर्वाधिक आर्द्र क्षेत्र: भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वाधिक आर्द्र क्षेत्रों में से एक माना जाता है।

संदर्भ

भारतीय रिजर्व बैंक ने एक संशोधित ढाँचे में भुगतान एवं निपटान प्रणाली अधिनियम [Payment and Settlement Systems Act-PSS Act] के तहत मौद्रिक दंड लगाने तथा अपराधों को कम करने के नियमों को कड़ा कर दिया है।

संशोधित रूपरेखा के बारे में

  • उद्देश्य: प्रवर्तन कार्यों को सुव्यवस्थित करना, भुगतान प्रणाली ऑपरेटरों एवं बैंकों के बीच अनुपालन तथा जवाबदेही सुनिश्चित करना।
  • केवल भौतिक उल्लंघनों पर ही मौद्रिक दंड लगाने या अपराधों के शमन के रूप में प्रवर्तन कार्रवाई की जाएगी।
  • मौद्रिक दंड: ढाँचा मौद्रिक दंड लगाने एवं दंड की राशि निर्धारित करने की प्रक्रिया प्रदान करता है।
    • उल्लंघन/चूक के मामले में RBI अधिकतम 10 लाख रुपये या इसमें शामिल राशि का दोगुना, जो भी अधिक हो, जुर्माना लगा सकता है। 
      • 22 जनवरी, 2024 को लागू होने वाले जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम, 2023 के लागू होने के बाद जुर्माना राशि अधिकतम 5 लाख रुपये से बढ़ा दी गई थी।
    • जुर्माने की मात्रा आनुपातिकता, वित्तीय प्रभाव एवं उल्लंघन के पीछे के उद्देश्य के आधार पर निर्धारित की जाती है।
  • बार-बार अपराध करने पर जुर्माना: ऐसे मामलों में, जहाँ ऐसा उल्लंघन या डिफॉल्ट जारी रहता है, पहले के बाद 25,000 रुपये प्रतिदिन तक का अतिरिक्त जुर्माना लगाया जाएगा।
  • अपराध का शमन: धारा 31 के तहत PSS अधिनियम, कारावास से दंडनीय अपराधों को छोड़कर, उल्लंघनों का शमन करने के लिए विधिवत अधिकृत RBI अधिकारी को अधिकार देता है।
    • अपराध: अनधिकृत प्रकटीकरण, दस्तावेज जमा करने में विफलता एवं नियामक निर्देशों का अनुपालन न करने जैसे अपराधों पर कंपाउंडिंग कार्यवाही होती है।
    • कंपाउंडिंग उल्लंघनकर्ताओं को लंबी कानूनी कार्यवाही के बिना नियामक उल्लंघनों का निपटान करने की अनुमति देता है।

PSS अधिनियम, 2007 के तहत अपराध

  • भुगतान एवं निपटान प्रणाली (PSS) अधिनियम, 2007 की धारा 26 उन दंडों से संबंधित है, जो भारत के वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र की अखंडता तथा सुरक्षा को प्रभावित करने वाले अधिनियम के उल्लंघन के लिए आवश्यक हैं।
    • अनधिकृत संचालन: प्राधिकरण के बिना भुगतान प्रणाली का संचालन करना या प्राधिकरण शर्तों का पालन करने में विफल होना।
    • गलत जानकारी: आवेदन या रिटर्न में गलत विवरण देना या महत्त्वपूर्ण जानकारी छोड़ देना।
    • गैर-प्रकटीकरण: RBI को आवश्यक विवरण, सूचना या दस्तावेज जमा करने में विफल होना।
    • सूचना सुरक्षा से समझौता: निषिद्ध जानकारी का अनधिकृत खुलासा।
    • अवज्ञा: RBI के निर्देशों का अनुपालन न करना, जिसमें लगाए गए जुर्माने का भुगतान करने में विफलता भी शामिल है।
    • डेटा भंडारण, KYC/AML मानदंडों एवं एस्क्रो खाता रखरखाव से संबंधित उल्लंघन।

भुगतान एवं निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007

  • PSS अधिनियम भारत में भुगतान प्रणालियों के विनियमन एवं पर्यवेक्षण का प्रावधान करता है।
  • प्राधिकरण: भुगतान एवं निपटान प्रणाली (Board for Regulation and Supervision of Payment and Settlement Systems-BPSS) के विनियमन एवं पर्यवेक्षण बोर्ड का गठन RBI द्वारा कानून के तहत अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए किया जाता है।
  • दायरा: PSS अधिनियम द्वारा कवर की गई भुगतान प्रणालियाँ हैं:-
    • रियल टाइम ग्रास सेटेलमेंट (RTGS), इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग सर्विस (ECS Credit), इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग सर्विस (ECS Debit), क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) प्रणाली, तत्काल भुगतान सेवा, एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI)।
  • विशेषताएँ
    • भुगतान प्रणाली को परिभाषित करता है: एक भुगतान प्रणाली भुगतानकर्ता एवं लाभार्थी के बीच भुगतान को सक्षम बनाती है, जिसमें समाशोधन, भुगतान या निपटान सेवा अथवा ये सभी शामिल होते हैं, लेकिन इसमें स्टॉक एक्सचेंज शामिल नहीं होता है।
      • इसमें क्रेडिट कार्ड संचालन, डेबिट कार्ड संचालन, स्मार्ट कार्ड संचालन, धन हस्तांतरण संचालन या इसी तरह के संचालन को सक्षम करने वाली प्रणालियाँ शामिल हैं।
    • ‘नेटिंग’ एवं ‘सेटलमेंट फाइनलिटी’ के लिए कानूनी आधार: यह बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) प्रणाली के अलावा अन्य सभी भुगतान प्रणालियाँ नेट सेटलमेंट के आधार पर कार्य करती हैं।

संदर्भ

‘वायुमंडलीय नदियों से जुड़ी मिश्रित जलवायु चरम सीमाओं के बाद पश्चिमी ग्रीनलैंड की झीलों में अचानक परिवर्तन’ (Abrupt Transformation of West Greenland Lakes Following Compound Climate Extremes Associated with Atmospheric Rivers) नामक अध्ययन से पता चला है कि पश्चिमी ग्रीनलैंड में 7,500 से अधिक झीलें भूरे रंग की हो गई हैं।

झीलों में परिवर्तन

  • वर्ष 2022 में, चरम मौसमी घटनाओं के कारण ये झीलें भूरे रंग की हो गईं, इनसे कार्बन उत्सर्जित होने लगा एवं जल की गुणवत्ता में गिरावट आई है।
  • ऐसे परिवर्तन आमतौर पर सदियों में होते हैं, लेकिन इस मामले में, वे महीनों के भीतर हुए हैं।

परिवर्तन के कारण

  • तापमान में वृद्धि: ग्रीनलैंड में आमतौर पर पतझड़ के मौसम (अगस्त के अंत से सितंबर के अंत तक) के दौरान बर्फबारी होती है।
    • वर्ष 2022 में, गर्म तापमान के कारण बर्फ वर्षा में बदल गई।
  • पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना: गर्मी के कारण पर्माफ्रॉस्ट (कार्बनिक कार्बन युक्त जमी हुई जमीन) का पिघलना।
    • इससे पर्यावरण में कार्बन, लोहा, मैग्नीशियम एवं अन्य तत्त्व उत्सर्जित हुए हैं।
  • अत्यधिक वर्षा: भारी वर्षा ने इन तत्त्वों को झीलों में प्रवाहित कर दिया, जिससे उनके भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुण बदल गए हैं।
  • वायुमंडलीय नदियों की भूमिका: वायुमंडलीय नदियाँ वायुमंडल में संकीर्ण क्षेत्र हैं, जो जलवाष्प का एक स्थान से दूसरे स्थान तक परिवहन करती हैं।
    • इन्होने वर्ष 2022 में ग्रीनलैंड में अभूतपूर्व ऊष्मा एवं वर्षण में अहम भूमिका निभाई।

परिवर्तन के प्रभाव

  • कार्बन उत्सर्जन: झीलें कार्बन सिंक से कार्बन डाइऑक्साइड के महत्त्वपूर्ण स्रोतों में बदल गई हैं, उत्सर्जन में 350% की वृद्धि हुई है।
  • जल की गुणवत्ता: जल की गुणवत्ता खराब हो गई, जिससे उसका रंग, गंध एवं स्वाद प्रभावित हुआ।
    • जल उपचार के दौरान संवर्द्धित घुलनशील कार्बनिक सामग्री कार्सिनोजेनिक उपोत्पाद उत्पन्न कर सकती है।
  • जैव विविधता की हानि: कम प्रकाश प्रवेश ने फाइटोप्लैंकटन प्रकाश संश्लेषण में बाधा उत्पन्न की, जिससे CO₂ को अवशोषित करने की उनकी क्षमता कम हो गई।
    • इसका क्षेत्र के कार्बन चक्र एवं समग्र पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।

ग्रीनलैंड के बारे में

  • ग्रीनलैंड: यह दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप है, जो उत्तरी अटलांटिक महासागर में स्थित है। 
    • ग्रीनलैंड के लोग अपनी मातृभूमि को कलालिट नुनाट (‘ग्रीनलैंडर्स का देश’) कहते हैं।
  • राजधानी: नुउक (Nuuk)।
  • उच्चतम बिंदु: गुन्बजॉर्न का फजेल्ड (Gunnbjorn’s Fjeld)। 
  • स्थान: यह कनाडा के उत्तर-पूर्वी तट पर उत्तरी अटलांटिक महासागर में स्थित है, जो उत्तर में आर्कटिक महासागर से घिरा है; पश्चिम में स्मिथ साउंड, बाफिन खाड़ी एवं डेविस स्ट्रेट द्वारा; तथा पूर्व में आर्कटिक एवं उत्तरी अटलांटिक महासागरों द्वारा।
    • यह विश्व का सबसे बड़ा (गैर-महाद्वीप) द्वीप है।
    • इसकी समुद्री सीमाएँ कनाडा, आइसलैंड एवं नॉर्वे के साथ लगती हैं।
    • यह पृथ्वी के उत्तरी एवं पश्चिमी दोनों गोलार्द्धों में स्थित है।
  • भौतिक विशेषता: यह अपने विशाल टुंड्रा एवं विशाल ग्लेशियरों के लिए प्रसिद्ध है। 
    • सबसे बड़े ग्लेशियरों में से एक पीटरमैन है।
  • ग्रीनलैंड की प्रमुख भौतिक विशेषता इसकी विशाल बर्फ की चादर है, जो आकार में अंटार्कटिका के बाद दूसरे स्थान पर है एवं ग्रीनलैंड के कुल भूमि क्षेत्र के चार-पाँचवें हिस्से को शामिल करती है। 
    • ग्रीनलैंड में 25 मई से 25 जुलाई तक सूर्य अस्त नहीं होता है एवं जुलाई ही एकमात्र ऐसा महीना है, जब तापमान शून्य से ऊपर पहुँच जाता है।
  • ग्रीनलैंड सागर: यह आर्कटिक महासागर का एक बाहरी भाग है, जो आर्कटिक बेसिन के दक्षिण में स्थित है एवं ग्रीनलैंड (पश्चिम), स्वालबार्ड (पूर्व), मुख्य आर्कटिक महासागर (उत्तर), तथा नॉर्वेजियन सागर एवं आइसलैंड (दक्षिण) से घिरा है।
  • राष्ट्रीय उद्यान: पूर्वोत्तर ग्रीनलैंड राष्ट्रीय उद्यान दुनिया का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है।

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य कोटा के अंतर्गत स्नातकोत्तर (Postgraduate-PG) मेडिकल पाठ्यक्रमों के लिए अधिवास-आधारित आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया, साथ ही न्यायालय ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

संबंधित तथ्य 

  • यह निर्णय तन्वी बहल बनाम श्रेय गोयल एवं अन्य (2025) मामले में पंजाब तथा हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील के जवाब में आया, जिसने PG मेडिकल प्रवेश में ऐसे अधिवास-आधारित आरक्षण को समाप्त कर दिया था।

PG मेडिकल प्रवेश में अधिवास कोटा: वर्तमान प्रणाली

  • PG मेडिकल सीटों के लिए, केंद्र कुल प्रवेश के 50% के लिए काउंसलिंग आयोजित करता है।
  • शेष 50% (राज्य कोटा) राज्य परामर्श निकायों द्वारा अपने नियमों के अनुसार भरा जाता है, जिसमें प्रायः अधिवास-आधारित आरक्षण भी शामिल होता है।

निर्णय के मुख्य बिंदु

  • समानता के अधिकार का उल्लंघन (अनुच्छेद-14): न्यायालय ने माना कि PG मेडिकल पाठ्यक्रमों में अधिवास-आधारित आरक्षण संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन है, जो समानता के अधिकार की गारंटी देता है।
    • इस तरह के आरक्षण अन्य राज्यों के छात्रों के साथ असमान व्यवहार करते हैं, उन्हें समान अवसरों से वंचित करते हैं।
  • MBBS बनाम PG पाठ्यक्रमों में अनुमति: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि MBBS पाठ्यक्रमों में एक निश्चित डिग्री के लिए अधिवास-आधारित आरक्षण की अनुमति हो सकती है, लेकिन PG मेडिकल पाठ्यक्रमों में यह अनुमति योग्य नहीं है।
    • PG पाठ्यक्रमों के लिए अत्यधिक विशिष्ट डॉक्टरों की आवश्यकता होती है एवं अधिवास के आधार पर आरक्षण योग्यता तथा गुणवत्ता से समझौता करेगा।
  • भारत का सामान्य अधिवास: न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि सभी भारतीयों का केवल एक ही अधिवास है, अर्थात, भारत का अधिवास (अनुच्छेद-5 के अनुसार)
    • भारत में राज्य या प्रांतीय अधिवास की अवधारणा एक गलत धारणा है।
  • योग्यता-आधारित प्रवेश: न्यायालय ने निर्णय दिया कि राज्य कोटा के अंतर्गत सीटें (कुल PG सीटों का 50%) अखिल भारतीय परीक्षा में योग्यता के आधार पर सख्ती से भरी जानी चाहिए।
    • केवल उचित संख्या में संस्था-आधारित आरक्षण की अनुमति दी जा सकती है।
  • पिछले प्रवेशों पर कोई प्रभाव नहीं: निर्णय अधिवास-आधारित आरक्षण के आधार पर पहले से दिए गए प्रवेशों को प्रभावित नहीं करेगा।

संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-5: नागरिकता प्रावधान
    • भारत के क्षेत्र में अधिवास को संदर्भित करता है, एकल भारतीय अधिवास की स्थापना करता है।
    • राज्यवार अधिवास का कोई प्रावधान नहीं।
  • अनुच्छेद-14: समानता का अधिकार
    • कानून के समक्ष समानता एवं कानूनों की समान सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
    • अधिवास-आधारित आरक्षण को समाप्त करने का आधार।
  • अनुच्छेद-15: भेदभाव का निषेध
    • धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है।
    • यह स्पष्ट रूप से निवास का उल्लेख नहीं करता है, लेकिन पिछड़े वर्गों एवं EWS के लिए आरक्षण की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद-16: सार्वजनिक रोजगार में समानता
    • अनुच्छेद-16 (2): कोई भी नागरिक, केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर, किसी भी रोजगार या पद के लिए अयोग्य नहीं होगा या उसके साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। 
    • अनुच्छेद-16(3): संसद को राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकार या स्थानीय प्राधिकरण के तहत रोजगार के एक वर्ग या वर्गों के संबंध में राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के भीतर अधिवास निर्धारित करने वाला कोई भी कानून बनाने की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद-19(1)(e): प्रत्येक नागरिक को भारत के किसी भी हिस्से में अधिवास करने एवं बसने का अधिकार है, जिसका अनिवार्य रूप से तात्पर्य है कि वे अपने मूल स्थान या अन्य कारकों के आधार पर भेदभाव के बिना देश में कहीं भी रह सकते हैं तथा अध्ययन कर सकते हैं।

निर्णय के कारण 

  • PG पाठ्यक्रमों की विशिष्ट प्रकृति: PG मेडिकल पाठ्यक्रमों के लिए अत्यधिक कुशल पेशेवरों की आवश्यकता होती है एवं अधिवास के आधार पर आरक्षण, योग्यता तथा गुणवत्ता से समझौता करेगा।
  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: अधिवास-आधारित आरक्षण अन्य राज्यों के छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, उन्हें शैक्षिक अवसरों में समानता से वंचित करता है।
  • डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत संघ (1984) का उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय ने पहले माना था कि PG मेडिकल पाठ्यक्रमों में निवास-आधारित आरक्षण अनुच्छेद-14 का उल्लंघन है।
    • हालाँकि, MBBS पाठ्यक्रमों में कुछ आरक्षण निम्नलिखित कारणों से स्वीकार्य है:-
      • बुनियादी ढाँचे एवं मेडिकल कॉलेजों पर राज्य का खर्च।
      • स्थानीय आवश्यकताओं एवं क्षेत्र के पिछड़ेपन पर विचार।

संदर्भ 

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा गठित एक संयुक्त समिति ने पाया है कि घग्गर नदी के जल में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) की निर्धारित सीमा दो से तीन गुना अधिक है, जो इसके जल को स्नान हेतु अनुपयुक्त बनाता है।

घग्गर नदी में जल गुणवत्ता के मुद्दे

बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) स्तर

  • वर्तमान स्थिति: घग्गर नदी में pH स्तर स्नान मानकों के अनुरूप है, लेकिन BOD स्तर स्नान जल मानकों का पालन करने में विफल रहता है।
  • निहितार्थ: उच्च BOD स्तर अत्यधिक कार्बनिक प्रदूषकों की उपस्थिति का संकेत देते हैं, जैसे– अनुपचारित सीवेज, कृषि अपवाह या औद्योगिक अपशिष्ट।
  • इससे घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen-DO) की कमी हो जाती है, जिससे जल जलीय जीवन एवं स्नान जैसी गतिविधियों के लिए अनुपयुक्त हो जाता है।

टोटल सस्पेंडेड सॉलिड (Total Suspended Solids- TSS)

  • परिभाषा: TSS जल में सस्पेंडेड सॉलिड पार्टिकल (जैसे- गाद, कार्बनिक पदार्थ, शैवाल एवं औद्योगिक अपशिष्ट) की मात्रा को संदर्भित करता है।
  • वर्तमान स्थिति: घग्गर नदी में TSS का स्तर पर्यावरणीय निर्वहन सीमा से अधिक है।
  • प्रभाव: उच्च TSS सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध करता है, प्रकाश संश्लेषण को कम करता है एवं जलीय जीवन को नुकसान पहुँचाता है।
  • स्रोत: TSS के स्रोतों में मिट्टी का कटाव, अनुपचारित औद्योगिक निर्वहन एवं शहरी अपवाह शामिल हैं।

घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen- DO)

  • परिभाषा: DO नदी प्रणालियों में उपलब्ध मुक्त ऑक्सीजन की मात्रा को मापता है।
  • घग्गर नदी में DO को प्रभावित करने वाले कारक
    • सतही विक्षोभ (Surface Turbulence): धीमे प्रवाह या ठहराव के कारण सीमित।
    • प्रकाश संश्लेषक गतिविधियाँ: उच्च TSS द्वारा सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध करने के कारण कम हो गई।
    • O2 की खपत: जैविक अपशिष्ट को विघटित करने वाले बैक्टीरिया द्वारा वृद्धि।
    • कार्बनिक पदार्थ का अपघटन: उच्च BOD महत्त्वपूर्ण कार्बनिक अपशिष्ट को इंगित करता है, जो DO को और कम करता है।
  • निम्न DO का प्रभाव: निम्न DO स्तर नदी को मछली एवं अन्य जलीय जीवों के लिए निर्जन बना देता है, जिससे पारिस्थितिकी असंतुलन उत्पन्न होता है।
    • कार्बनिक एवं अकार्बनिक अपशिष्ट की उपस्थिति से DO का स्तर कम हो जाता है, जिससे जल की गुणवत्ता खराब हो जाती है तथा जलीय जीवन खतरे में पड़ जाता है।

बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) के बारे में

  • परिभाषा: BOD जल में कार्बनिक अपशिष्टों को विघटित करने के लिए बैक्टीरिया द्वारा आवश्यक घुलित ऑक्सीजन की मात्रा को मापता है। इसे प्रति लीटर जल में मिलीग्राम ऑक्सीजन में व्यक्त किया जाता है।

  • BOD का महत्त्व
    • जल प्रदूषण का संकेत: उच्च BOD अधिक कार्बनिक प्रदूषकों का संकेत देता है, जिससे जल की गुणवत्ता खराब होती है।
    • ऑक्सीजन की कमी के उपाय: बैक्टीरिया द्वारा अत्यधिक ऑक्सीजन की खपत DO को कम करती है, जिससे जलीय जीवन को नुकसान पहुँचता है।
    • अपशिष्ट जल उपचार: BOD का उपयोग सीवेज उपचार संयंत्रों (STPs) एवं अपशिष्ट उपचार संयंत्रों (ETPs) की दक्षता का आकलन करने के लिए किया जाता है।

  • जल निकायों में उच्च BOD के कारण
    • अनुपचारित सीवेज (घरेलू अपशिष्ट जल) का निर्वहन।
    • जैविक अपशिष्ट युक्त औद्योगिक अपशिष्ट।
    • कृषि अपवाह (कीटनाशक, उर्वरक, पशु अपशिष्ट)।
    • क्षयकारी पादप सामग्री एवं मृत जलीय जीव।
    • स्लम बस्तियों का कचरा प्रत्यक्ष तौर पर जल में डाला जाता है।
  • उच्च BOD के परिणाम
    • जल में ऑक्सीजन की कमी, जिससे मछली एवं जलीय जीवों की मृत्यु हो रही है।
    • दुर्गंध एवं जल का विरंजन होना।
    • अतिरिक्त पोषक तत्त्वों के कारण शैवाल प्रस्फुटन होता है।
    • जलजनित रोगों का प्रसार।

घग्गर नदी के बारे में

  • प्रकृति: यह अस्थायी रूप से प्रवाहित होने वाली नदी है, जो केवल मानसून के मौसम में प्रवाहित होती है।
  • जलमार्ग: इसका उद्गम हिमाचल प्रदेश की शिवालिक पहाड़ियों से होता है एवं थार रेगिस्तान में सूखने से पहले हरियाणा एवं राजस्थान से होकर प्रवाहित होती है।
  • सिंचाई: राजस्थान में विस्तृत दो सिंचाई नहरों को जल प्रदान करती है।
  • हाकरा नदी से संबंध: पाकिस्तान में हाकरा नदी को भारत में घग्गर नदी की निरंतरता माना जाता है। 
    • इन्हें संयुक्त रूप से घग्गर-हाकरा नदी कहा जाता है।

  • मुख्य सहायक नदियाँ: कौशल्या नदी, मारकंडा, सरसुती, टांगरी एवं चौतांग।
  • ऐतिहासिक महत्त्व: इसके किनारे सिंधु घाटी सभ्यता की कई बस्तियों की खुदाई की गई है। संबंधित प्रमुख पुरातात्त्विक स्थल हैं:-
    • कालीबंगन: राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घग्गर नदी के तट पर अवस्थित है।
    • राखीगढ़ी: हरियाणा के हिसार जिले में घग्गर-हाकरा नदी के मैदान में अवस्थित है।
    • बनावली: हरियाणा के फतेहाबाद जिले में सरस्वती नदी के काल्पनिक तल पर स्थित है।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: घग्गर नदी को ऋग्वेद में वर्णित लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी माना जाता है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal-NGT)

  • स्थापना: पर्यावरण संरक्षण एवं संरक्षण मामलों के प्रभावी एवं शीघ्र निपटान के लिए NGT अधिनियम 2010 के तहत वर्ष 2010 में स्थापित किया गया।
  • मुख्यालय: भोपाल, पुणे, कोलकाता, चेन्नई में क्षेत्रीय पीठों के साथ दिल्ली में मुख्यालय।

संघटन 

  • इसमें एक अध्यक्ष, न्यायिक सदस्य एवं विशेषज्ञ सदस्य शामिल हैं।
  • अध्यक्ष: सर्वोच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश।
    • पाँच वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक सेवा करता है।
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • 5 वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त सदस्य, पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं हैं।
  • चयन समिति द्वारा नियुक्त न्यायिक एवं विशेषज्ञ सदस्य।
  • क्षमता: न्यूनतम 10 सदस्य तथा अधिकतम 20 सदस्य।

शक्तियाँ एवं कार्य

  • पर्यावरणीय मामलों के शीघ्र निस्तारण हेतु गठित।
  • विधिक न्यायालय की तरह अपीलीय क्षेत्राधिकार रखता है।
  • सिविल प्रक्रिया संहिता से संबद्ध नहीं, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करता है।
  • किसी भी मामले के संज्ञान में आने के 6 महीने के भीतर मामलों का निपटारा करने का आदेश दिया जाता है।

संदर्भ

डेनमार्क ने आर्कटिक और उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति को मजबूत करने के लिए 2 बिलियन यूरो के निवेश की घोषणा की है।

डेनमार्क पहल की मुख्य विशेषताएँ

  • यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ग्रीनलैंड को अधिग्रहित करने के बारे में बार-बार दिए गए बयानों के मद्देनजर लिया गया है, हालाँकि डेनमार्क ने इसका खंडन किया है।
  • सैन्य विस्तार: डेनमार्क आर्कटिक सुरक्षा को बढ़ाने की योजना बना रहा है:
    • तीन नए आर्कटिक नौसैनिक जहाज।
    • दो अतिरिक्त लंबी दूरी के निगरानी ड्रोन।
    • उपग्रह क्षमता में सुधार।
  • राजनयिक जुड़ाव
    • डेनमार्क के प्रधानमंत्री फ्रेडरिक्सन द्वारा ग्रीनलैंड की संप्रभुता को बनाए रखने के लिए नाटो सहयोगियों से वार्ता।
    • डेनमार्क ने सुरक्षा और संप्रभुता के मुद्दों पर यूरोपीय एकता की आवश्यकता पर बल दिया है।
    • जर्मनी ने अप्रत्यक्ष रूप से ट्रंप के रुख की आलोचना करते हुए कहा है कि सीमाओं को बलपूर्वक नहीं बदला जाना चाहिए।

आर्कटिक सर्कल 

  • आर्कटिक क्षेत्र वाले देश: आठ देशों के पास आर्कटिक के कुछ हिस्सों पर संप्रभुता है: कनाडा, डेनमार्क (ग्रीनलैंड), फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका (अलास्का)।

  • वनस्पतियाँ: इस क्षेत्र की विशेषता टुंड्रा वनस्पतियाँ हैं, जिसमें अत्यधिक ठंड और पर्माफ्रॉस्ट के कारण कम झाड़ियाँ, काई एवं लाइकेन उपस्थित हैं।
  • महत्त्व
    • तेल, गैस और खनिजों जैसे प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर।
    • बर्फ पिघलने के कारण वैश्विक शिपिंग मार्गों के लिए महत्त्वपूर्ण, उत्तरी समुद्री मार्ग का खुलना।
    • जलवायु अध्ययनों के लिए महत्त्वपूर्ण, क्योंकि आर्कटिक हिम वैश्विक मौसम पैटर्न को प्रभावित करती है।

आर्कटिक में जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियाँ

  • तापमान में वृद्धि: आर्कटिक वैश्विक औसत से लगभग चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है, जिससे बर्फ पिघल रही है और आवास नष्ट हो रहे हैं।
  • समुद्र स्तर में वृद्धि: पिघलते ग्लेशियर वैश्विक समुद्र-स्तर में वृद्धि में योगदान करते हैं, जिससे दुनिया भर के तटीय समुदायों को खतरा है।
  • जैव विविधता में कमी: ध्रुवीय भालू और आर्कटिक लोमड़ियों जैसे वन्यजीवों को आवास नष्ट होने के कारण अस्तित्व के लिए खतरा है।
  • भू-राजनीतिक तनाव: आर्कटिक संसाधनों तक बढ़ती पहुँच के कारण क्षेत्रीय विवाद और सैन्य गतिविधियाँ बढ़ी हैं।

आर्कटिक के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन

  • आर्कटिक परिषद: आर्कटिक राज्यों, स्वदेशी समूहों और पर्यवेक्षकों से मिलकर बना एक प्रमुख अंतर-सरकारी मंच, जो सतत् विकास और पर्यावरण संरक्षण पर केंद्रित है।
  • समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS): आर्कटिक महासागर में समुद्री अधिकारों और क्षेत्रीय दावों को नियंत्रित करता है।
  • नाटो की आर्कटिक रणनीति: आर्कटिक सदस्य राज्यों के बीच सुरक्षा चिंताओं एवं सैन्य समन्वय को संबोधित करती है।
  • अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO): ध्रुवीय संहिता के माध्यम से आर्कटिक शिपिंग को नियंत्रित करता है, पर्यावरण और सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करता है।

निष्कर्ष 

डेनमार्क की आर्कटिक रक्षा पहल बढ़ती भू-राजनीतिक चुनौतियों का प्रत्युत्तर देते हुए क्षेत्रीय सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का संकेत देती है।

संदर्भ

भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (Indian National Centre for Ocean Information Services-INCOIS) द्वारा किए गए एक महत्त्वपूर्ण अध्ययन ने भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर 9 प्रमुख शैवाल प्रस्फुटन हॉटस्पॉट की पहचान की है।

निष्कर्षों के मुख्य बिंदु

  • प्रमुख शैवाल प्रस्फुटन हॉटस्पॉट: भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर नौ शैवाल प्रस्फुटन हॉटस्पॉट की पहचान की गई है:
    • पश्चिमी तट: गोवा, मंगलुरु, कोझिकोड, कोच्चि और विझिनजाम खाड़ी।
    • पूर्वी तट: गोपालपुर, कलपक्कम, पाक खाड़ी और मन्नार की खाड़ी।

भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS)

  • INCOIS की स्थापना वर्ष 1999 में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के तहत एक स्वायत्त निकाय के रूप में की गई थी।
  • संबद्धता: यह पृथ्वी प्रणाली विज्ञान संगठन (Earth System Science Organisation-ESSO) की एक इकाई के रूप में कार्य करता है।

INCOIS की प्रमुख भूमिकाएँ

  • प्राथमिक भूमिका: यह समाज, उद्योगों, सरकारी एजेंसियों और वैज्ञानिक समुदाय को महासागर संबंधी जानकारी और परामर्श सेवाएँ प्रदान करता है।
  • सुनामी चेतावनी: भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र (Indian Tsunami Early Warning Centre- ITEWC) का संचालन करता है, जिसे यूनेस्को द्वारा क्षेत्रीय सुनामी सेवा प्रदाता (RTSP) के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • मत्स्यन संबंधी सलाह: मछुआरों को उनके प्रयासों को अनुकूलित करने में मदद करने के लिए कई भाषाओं में संभावित मत्स्यन क्षेत्र संबंधी सलाह जारी करता है।
  • महासागर पूर्वानुमान: विभिन्न समुद्री क्षेत्रों के लिए अल्पकालिक (1-7 दिन) महासागर की स्थिति का पूर्वानुमान प्रदान करता है।
  • डेटा संग्रह और अनुसंधान: महासागर अवलोकन प्रणाली के माध्यम से समुद्री डेटा संगृहीत करता है और मानसून की भविष्यवाणी का समर्थन करता है।
  • आपातकालीन संचार: सुनामी अलर्ट के लिए VSAT-सहायता प्राप्त आपातकालीन संचार प्रणाली (VECS) की स्थापना की।

  • शैवाल प्रस्फुटन के भौगोलिक पैटर्न
    • भारत के दक्षिणी तट पर उत्तरी तट की तुलना में शैवालों के प्रस्फुटन की संख्या अधिक है, क्योंकि दक्षिणी भारत के गर्म समुद्री तापमान और उच्च आर्द्रता फाइटोप्लैंकटन प्रसार के लिए एक आदर्श वातावरण का निर्माण करते हैं।
      • कोच्चि, कोझिकोड और मंगलुरु जैसे तटीय शहरों से औद्योगिक और कृषि अपवाह तटीय जल में पोषक तत्त्वों की सांद्रता को बढ़ाता है, जिससे शैवालों के प्रस्फुटन को बढ़ावा मिलता है।
    • पूर्वी तट पर, शैवाल मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिमी मानसून से पहले और उत्तर-पूर्वी मानसून की शुरुआत में प्रस्फुटित होते हैं।
    • पश्चिमी तट पर, शैवाल दक्षिण-पश्चिमी मानसून के दौरान और उसके बाद प्रस्फुटित होते हैं।
  • फाइटोप्लैंकटन बायोमास थ्रेसहोल्ड (Phytoplankton Biomass Thresholds): शोधकर्ताओं ने ब्लूम चरणों की पहचान और वर्गीकरण के लिए क्षेत्र-विशिष्ट फाइटोप्लैंकटन बायोमास थ्रेसहोल्ड स्थापित किए हैं।
  • इस वर्गीकरण में चार श्रेणियाँ शामिल हैं: ‘प्रस्फुटित होने की संभावना’, ‘प्रस्फुटन’, ‘तीव्र प्रस्फुटन’ और ‘अत्यधिक प्रस्फुटन’।
  • भारत के तटीय क्षेत्र में शैवाल प्रस्फुटन की बढ़ती घटना के कारण
    • शैवालों का प्रस्फुटन फाइटोप्लैंकटन में अचानक वृद्धि के परिणामस्वरूप होता है, जिसमें डायटम और साइनोबैक्टीरिया शामिल हैं।
    • पर्यावरणीय और मानवजनित कारकों के कारण प्रस्फुटन की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है।

शैवाल प्रस्फुटन के बारे में

  • शैवाल प्रस्फुटन जल निकायों में फाइटोप्लैंकटन की घातीय वृद्धि को संदर्भित करता है।
  • ये प्रस्फुटन तब होते हैं, जब सूर्य का प्रकाश और पोषक तत्त्व प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं, जिससे तेजी से जनन होता है।
  • फाइटोप्लैंकटन की सघन उपस्थिति जल के रंग को परिवर्तित कर देती है।
  • लाल ज्वार: लाल ज्वार एक हानिकारक शैवाल प्रस्फुटन घटना है, जो विष पैदा करने वाले समुद्री सूक्ष्मजीवों, अक्सर डाइनोफ्लैजिलेट्स के कारण होती है, जो जल को विरंजक रूप प्रदान करते हैं और खाद्य शृंखला में ऑक्सीजन की कमी और विषाक्तता के माध्यम से समुद्री जीवन को नुकसान पहुँचाते हैं।

शैवाल प्रस्फुटन के कारण

  • पोषक तत्त्व प्रवाह: मानसून और तटीय अपवेलिंग (ठंडे, पोषक तत्त्वों से समृद्ध जल का सतह पर ऊपर उठना) के कारण पोषक तत्त्वों की उपलब्धता में वृद्धि।
  • यूट्रोफिकेशन: पोषक तत्त्वों की अत्यधिक उपस्थिति शैवाल और साइनोबैक्टीरिया के तीव्र विकास का समर्थन करती है।
  • तापमान: शैवालों का प्रस्फुटन गर्मियों या पतझड़ में होने की अधिक संभावना है, लेकिन यह वर्ष के किसी भी समय हो सकता है।
  • मैलापन: जल में निलंबित कणों और कार्बनिक पदार्थों के कारण होने वाली अशुद्धियाँ, शैवालों के विकास को प्रभावित करती है।
    • जब अशुद्धियाँ कम होती हैं, तो अधिक प्रकाश ‘जल स्तंभ’ में प्रवेश कर सकता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण और शैवालों का विकास आसान हो जाता है।

शैवाल प्रस्फुटन का पारिस्थितिक प्रभाव

  • ऑक्सीजन की कमी (हाइपोक्सिया) [Oxygen Depletion (Hypoxia)]: शैवाल के अशुद्धियाँ से अपघटन के दौरान अत्यधिक ऑक्सीजन की खपत होती है, जिससे मृत क्षेत्र का निर्माण होता है, जहाँ समुद्री जीव जीवित नहीं रह सकते।
  • विषाक्तता: कुछ हानिकारक शैवाल प्रजातियाँ न्यूरोटॉक्सिन और हेपेटोटॉक्सिन उत्पन्न करती हैं, जो मछलियों, शंख और यहाँ तक कि मनुष्यों को भी विषाक्त भोजन प्रदान कर सकती हैं।
  • खाद्य शृंखलाओं में व्यवधान: शैवाल की अशुद्धियाँ से लाभकारी फाइटोप्लैंकटन समाप्त हो सकते हैं, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा होता है और उच्च जीवों को खाद्य की कमी होती है।
  • आर्थिक नुकसान: मछलियों के मरने से मत्स्यपालन को नुकसान होता है, जबकि दुर्गंधयुक्त, रंगहीन जल और समुद्र तट बंद होने के कारण पर्यटन में गिरावट आती है।
  • प्रवाल भित्तियों को नुकसान: कुछ शैवाल के अशुद्धियाँ से सूर्य के प्रकाश के प्रवेश में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे प्रवाल विरंजन होता है, जिससे विविध समुद्री जीवन का समर्थन करने वाले प्रवाल भित्ति पारिस्थितिकी तंत्र कमजोर हो जाते हैं।

भारतीय तटीय जल में शैवाल प्रस्फुटन को कम करने के उपाय

  • महासागरीय जल परिसंचरण को बढ़ाना: स्थिर जल स्थितियों को रोकने के लिए वातन तकनीक या कृत्रिम अपवेलिंग का उपयोग करना, जो शैवाल के प्रस्फुटन के लिए अनुकूल हैं।
  • तटीय अपवाह को नियंत्रित करना: शहरी और कृषि क्षेत्रों से पोषक तत्त्वों से भरपूर अपवाह को कम करने के लिए वर्षा जल संचयन और ‘स्टॉर्म वाटर मैनेजमेंट’ को लागू करना।
  • औद्योगिक और कृषि निर्वहन को नियंत्रित करना: तटीय जल में प्रवेश करने वाले अतिरिक्त नाइट्रोजन और फास्फोरस को सीमित करने के लिए कठोर अपशिष्ट जल उपचार नीतियों को लागू करना।
  • स्थायी मत्स्यपालन और जलीय कृषि को बढ़ावा देना: जलीय कृषि आधारित खेतों में अधिक खाद्य उत्पादन से बचना और जैविक प्रदूषण को कम करने के लिए जिम्मेदार अपशिष्ट निपटान सुनिश्चित करना।
  • मैंग्रोव और सीग्रास बेड को पुनर्स्थापित करना: ये पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक फिल्टर के रूप में कार्य करते हैं, अतिरिक्त पोषक तत्त्वों को अवशोषित करते हैं और प्रस्फुटन को रोकते हैं।
  • ब्लूम की निगरानी और भविष्यवाणी करना: वास्तविक समय में ब्लूम घटनाओं को ट्रैक करने और कम करने के लिए उपग्रह-आधारित रिमोट सेंसिंग तथा बायो-ऑप्टिकल एल्गोरिदम का उपयोग करना।
  • सार्वजनिक जागरूकता और नीति कार्रवाई: पोषक तत्त्व प्रदूषण को सीमित करने और HABs को रोकने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं पर तटीय समुदायों तथा उद्योगों को शिक्षित करना।

शैवाल प्रस्फुटन की निगरानी के लिए राष्ट्रीय एवं वैश्विक पहल

  • वैश्विक पहल: यूनेस्को आईओसी एचएबी कार्यक्रम (UNESCO IOC HAB Programme)
    • सदस्य देशों को हानिकारक शैवाल प्रस्फुटन (Harmful Algal Blooms-HAB) पर शोध करने, पूर्वानुमान लगाने और उसे कम करने में मदद करता है।
    • प्रजातियों की पहचान, विषाक्तता परीक्षण और निगरानी रणनीतियों में प्रशिक्षण प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय पहल: INCOIS शैवाल प्रस्फुटन सूचना सेवा (AIS)।
    • भारतीय समुद्र में शैवालों के प्रस्फुटन का पता लगाने और निगरानी करने के लिए विकसित किया गया, जिससे मछुआरों, शोधकर्ताओं और समुद्री संसाधन प्रबंधकों को लाभ होगा।
    • यह उपग्रह डेटा का उपयोग करके अरब सागर, केरल तट, मन्नार की खाड़ी और गोपालपुर जल जैसे प्रमुख क्षेत्रों में प्रस्फुटित हॉटस्पॉट, समुद्र की सतह के तापमान की विसंगतियों तथा क्लोरोफिल सांद्रता के बारे में लगभग वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करता है।

फाइटोप्लैंकटन (Phytoplankton) 

  • फाइटोप्लैंकटन जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में पाए जाने वाले सूक्ष्म ‘फ्लोटिंग’ पौधे हैं।
  • फाइटोप्लैंकटन के बायोमास का विश्लेषण क्लोरोफिल-A सामग्री को मापकर किया जाता है।

क्लोरोफिल और उसके प्रकार

  • क्लोरोफिल पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण के लिए उपयोग किया जाने वाला प्रमुख वर्णक है, एक ऐसी प्रक्रिया, जिसमें प्रकाश ऊर्जा को कार्बनिक यौगिक संश्लेषण के माध्यम से रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
  • क्लोरोफिल चार प्रकार के होते हैं:
    1. क्लोरोफिल-A: सभी पौधों, शैवाल और साइनोबैक्टीरिया में पाया जाता है।
    2. क्लोरोफिल-B: पौधों और हरित शैवाल में पाया जाता है।
    3. क्लोरोफिल-C: डायटम, डाइनोफ्लैजिलेट्स और भूरे शैवाल में मौजूद होता है।
    4. क्लोरोफिल-D: विशेष रूप से लाल शैवाल में पाया जाता है।

फाइटोप्लैंकटन का महत्त्व

  • फाइटोप्लैंकटन वायुमंडलीय ऑक्सीजन के आधे से अधिक का योगदान करते हैं।
  • वे मानव-प्रेरित कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • वे समुद्री खाद्य शृंखला की नींव के रूप में कार्य करते हैं।
  • उनकी प्रचुरता महासागर के स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता का आकलन करने के लिए एक जैव संकेतक के रूप में कार्य करती है।

संदर्भ

भारत सरकार ने विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करने के लिए MSME के लिए म्यूचुअल क्रेडिट गारंटी योजना (MCGS-MSME) को मंजूरी दे दी है।

MSME के लिए पारस्परिक ऋण गारंटी योजना (MCGS-MSME) 

  • यह योजना वर्ष 2024-25 के बजट की घोषणा को पूर्ण करती है और इसका उद्देश्य प्लांट एवं मशीनरी/उपकरण खरीदने के लिए MSME ऋण पहुँच को बढ़ावा देना है।
  • ऋण पात्रता: वैध उद्यम पंजीकरण संख्या वाले MSME पात्र हैं।
  • अधिकतम ऋण राशि: इस योजना के तहत ₹100 करोड़ तक के ऋण को कवर किया जा सकता है।
  • परियोजना लागत: कुल परियोजना लागत ₹100 करोड़ से अधिक हो सकती है, लेकिन उपकरण/मशीनरी की न्यूनतम लागत परियोजना लागत का 75% होनी चाहिए।
  • ऋण अवधि
    • 50 करोड़ रुपये तक के ऋणों की पुनर्भुगतान अवधि 8 वर्ष तक होती है, जिसमें मूल किस्तों पर 2 वर्ष की स्थगन अवधि शामिल होती है। 
    • 50 करोड़ रुपये से अधिक के ऋणों के लिए, लंबी पुनर्भुगतान और स्थगन अवधि पर विचार किया जा सकता है।
  • गारंटी कवरेज: नेशनल क्रेडिट गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड (NCGTC) ‘मेंबर लेंडिंग इंस्टिट्यूशन’ (MLI) को 60% गारंटी कवरेज प्रदान करेगी।
  • अग्रिम योगदान: उधारकर्ताओं को गारंटी कवर के लिए आवेदन करते समय ऋण राशि का 5% जमा करना होगा।
  • वार्षिक गारंटी शुल्क
    • स्वीकृति के वर्ष के दौरान शून्य।
    • अगले तीन वर्षों के लिए बकाया ऋण राशि पर 1.5% प्रति वर्ष।
    • उसके बाद 1% प्रति वर्ष।
  • योजना की अवधि: परिचालन दिशा-निर्देश जारी होने से चार वर्ष तक या संचयी गारंटी ₹7 लाख करोड़ तक पहुँचने तक, जो भी पहले हो, लागू रहेगी।
  • पात्र ‘मेंबर लेंडिंग इंस्टिट्यूशन’ (MLI)
    • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (SCB)
    • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC)
    • इस योजना के तहत NCGTC के साथ पंजीकृत अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान (AIFI)।

योजना का प्रभाव

  • विनिर्माण क्षेत्र वर्तमान में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 17% का योगदान और 27.3 मिलियन से अधिक श्रमिकों को रोजगार देता है।
  • विनिर्माण क्षेत्र की सकल घरेलू उत्पाद हिस्सेदारी को 25% तक बढ़ाने के लिए “मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड” पहल के साथ संरेखित करता है।
  • MSME को उपकरण/मशीनरी खरीदने के लिए ऋण तक आसान पहुँच की सुविधा प्रदान करता है, जिससे औद्योगिक विस्तार में तेजी आती है।
  • बैंकों और वित्तीय संस्थानों के माध्यम से MSME के लिए संपार्श्विक-मुक्त ऋण को प्रोत्साहित करता है।

योजना के पक्ष में तर्क

  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ बदल रही हैं, जिससे भारत अपने कच्चे माल, कम श्रम लागत और विनिर्माण विशेषज्ञता के कारण एक प्रमुख वैकल्पिक आपूर्ति स्रोत के रूप में उभर रहा है।
  • विनिर्माण में सबसे बड़ी लागतों में से एक संयंत्र और मशीनरी (Plant & Machinery- P&M) / उपकरण है। यह योजना सुनिश्चित करती है कि MSME किफायती ऋण प्राप्त करके अपनी स्थापित क्षमता का विस्तार कर सकें।
  • उद्योग संघों ने विनिर्माण इकाइयों, विशेष रूप से मध्यम उद्यमों के लिए लगातार ऋण गारंटी योजना की माँग की है।
  • MCGS-MSME की शुरुआत से ऋण उपलब्धता में सुविधा होगी, MSME विकास को बढ़ावा मिलेगा और वैश्विक विनिर्माण में भारत की स्थिति मजबूत होगी।

संदर्भ 

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 16,300 करोड़ रुपये के व्यय और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों आदि द्वारा 18,000 करोड़ रुपये के अपेक्षित निवेश के साथ राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन (National Critical Mineral Mission-NCMM) के शुभारंभ को मंजूरी दे दी है।

राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन के बारे में

  • केंद्रीय बजट वर्ष 2024-25 में घोषित
  • उद्देश्य: घरेलू और विदेशी स्रोतों से खनिज उपलब्धता सुनिश्चित करके भारत की महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित करना।
    • खनिज अन्वेषण, खनन, प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण में नवाचार, कौशल विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी, विनियामक और वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाकर मूल्य शृंखलाओं को मजबूत करना।
  • अवधि: वित्त वर्ष 2024-25 से वित्त वर्ष 2030-31 तक।

NCMM की मुख्य विशेषताएँ

  • क्षेत्र: संपूर्ण मूल्य शृंखला को शामिल करता है- अन्वेषण, खनन, प्रसंस्करण, तथा अंतिम उत्पादों से प्राप्तियाँ।
  • अन्वेषण: भारत और अपतटीय क्षेत्रों में गहन अन्वेषण।
  • नियामक प्रक्रिया: महत्त्वपूर्ण खनिज खनन परियोजनाओं के लिए त्वरित स्वीकृति।
  • वित्तीय प्रोत्साहन: अन्वेषण और ओवरबर्डन तथा टेलिंग से वसूली के लिए प्रदान किया गया।

मिशन घटक

  1. घरेलू उत्पादन में वृद्धि : अन्वेषण और खनन का विस्तार (1200 परियोजनाएँ, 100+ ब्लॉकों की नीलामी), अपतटीय क्षेत्रों में खनन (पॉलिमेटेलिक नोड्यूल), विनियामक अनुमोदन में तीव्रता लाना तथा ओवरबर्डन, टेलिंग और अपशिष्ट पदार्थों से महत्त्वपूर्ण खनिजों की प्रतिपूर्ति करना।
  2. विदेश में परिसंपत्तियों का अधिग्रहण: संसाधन संपन्न देशों में मानचित्रण, अन्वेषण और अवसंरचना विकास के लिए सरकारी सहायता के साथ सार्वजनिक उपक्रमों तथा निजी कंपनियों को विदेशों में महत्त्वपूर्ण खनिज परिसंपत्तियों का अधिग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित करना।
  3. महत्त्वपूर्ण खनिजों का पुनर्चक्रण: पुनर्चक्रण के लिए दिशा-निर्देश और प्रोत्साहन योजनाएँ विकसित करना तथा घरेलू एवं आयातित उत्पादों की प्राप्तियों को अनुकूलित करने के लिए पुनर्चक्रण सलाहकार समूह की स्थापना करना।
  4. व्यापार और बाजार: संसाधन संपन्न देशों के साथ व्यापार बढ़ाना, महत्त्वपूर्ण खनिजों पर आयात शुल्क समाप्त करना तथा आपूर्ति व्यवधानों से बचाव के लिए राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज भंडार विकसित करना।
  5. वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी उन्नति: अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना, उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना तथा महत्त्वपूर्ण खनिज प्रौद्योगिकियों में नवाचार एवं वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए विनियमों को सरल बनाना।
  6. मानव संसाधन विकास: संसाधन संपन्न देशों के लिए लक्षित डिग्री कार्यक्रमों, छात्रवृत्तियों और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के माध्यम से कुशल कार्यबल विकसित करना।
  7. वित्तपोषण और राजकोषीय प्रोत्साहन: अन्वेषण और खनन को प्रोत्साहित करने, अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण का लाभ उठाने तथा मिशन गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए मौजूदा योजनाओं के साथ एकीकरण करने के लिए राजकोषीय उपाय विकसित करना।

प्रशासनिक ढाँचा

  • मिशन सचिवालय का निर्माण किया जाएगा।
    • संयुक्त सचिव के नेतृत्व में, इसमें भू-वैज्ञानिक, खनिज अर्थशास्त्री और उद्योग पेशेवर शामिल होंगे।
  • अधिकार प्राप्त समिति: कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में, मिशन की गतिविधियों की निगरानी और समीक्षा करने के लिए संबंधित मंत्रालयों के सदस्य इसमें शामिल होंगे।
    • खान मंत्रालय प्रशासनिक मंत्रालय होगा।

महत्त्वपूर्ण खनिजों के बारे में

  • परिभाषा: ये वे खनिज हैं, जो आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं, लेकिन इनकी भौगोलिक उपलब्धता की कमी और सीमा के कारण आपूर्ति शृंखला में भेद्यता तथा व्यवधान के कारण इनकी महत्ता बनी हुई है।

  • प्रमुख महत्त्वपूर्ण खनिज: खान मंत्रालय द्वारा गठित महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान संबंधी समिति की रिपोर्ट में 30 महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान की गई है,
    • एंटीमनी, बेरिलियम, बिस्मथ, कोबाल्ट, ताँबा, गैलियम, जर्मेनियम, ग्रेफाइट, हैफनियम, इंडियम, लीथियम, मोलिब्डेनम, नियोबियम, निकेल, पीजीई, फॉस्फोरस, पोटाश, आरईई, रेनियम, सिलिकॉन, स्ट्रोंटियम, टैंटालम, टेल्यूरियम, टिन, टाइटेनियम, टंगस्टन, वैनेडियम, जिरकोनियम, सेलेनियम और कैडमियम।
  • शीर्ष उत्पादक: अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, महत्त्वपूर्ण खनिजों के प्रमुख उत्पादक चीन, कांगो, चिली, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया हैं। 
    • प्रसंस्करण के मामले में चीन का वैश्विक प्रभुत्व है।
  • उपयोग
    • उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स: ये अर्द्धचालक निर्माण और उच्च-स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी: ये खनिज कई स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में एक आवश्यक घटक हैं, जैसे- पवन टरबाइन और सौर पैनलों से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों तक।
    • परिवहन और संचार: इनका उपयोग लड़ाकू जेट विमानों, ड्रोन और रेडियो सेट, विमान बनाने में भी किया जाता है और ये मुख्य रूप से इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण उद्योग को गति प्रदान करते हैं।
    • विविध क्षेत्र: मोबाइल फोन, टैबलेट, इलेक्ट्रिक वाहन, सौर पैनल, पवन टरबाइन, फाइबर ऑप्टिक केबल और रक्षा तथा चिकित्सा अनुप्रयोगों जैसे विविध क्षेत्रों में उन्नत प्रौद्योगिकियों का निर्माण करना।
    • बैटरी और भंडारण प्रौद्योगिकी: लीथियम-आयन जैसी बैटरी प्रौद्योगिकी में प्रगति के संदर्भ में भंडारण प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए ये खनिज महत्त्वपूर्ण हैं।

महत्त्वपूर्ण खनिजों का महत्त्व

  • हरित ऊर्जा संक्रमण में महत्त्वपूर्ण भूमिका: बैटरी (लीथियम, कोबाल्ट), सौर पैनल (सिलिकॉन, सिल्वर) और पवन टरबाइन (दुर्लभ मृदा तत्त्व) जैसी प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक।
    • अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency-IEA) के अनुसार, वर्ष 2023 में लीथियम की माँग में 30% की वृद्धि हुई, जबकि निकेल, कोबाल्ट और ग्रेफाइट की माँग में 8-15% की बढोतरी हुई।
  • वैश्विक जलवायु लक्ष्य: शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने और वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए महत्त्वपूर्ण।
    • आईईए द्वारा अनुमान: वर्ष 2040 तक, माँग में वृद्धि होने की उम्मीद है:
      • लीथियम (8x), ग्रेफाइट (4x), कोबाल्ट, निकेल और दुर्लभ मृदा तत्त्व (2x)।
  • आर्थिक और सामरिक महत्त्व: महत्त्वपूर्ण खनिजों का कुल वैश्विक मूल्य वर्ष 2023 में 325 बिलियन डॉलर आँका गया था।
    • रक्षा उपकरण, ईवी और सेमीकंडक्टर के निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण।

भारत में महत्त्वपूर्ण खनिजों के भंडार

  • ग्रेफाइट: भारत में 9 मिलियन टन का भंडार है, जिसमें 12 खदानों में उत्पादन लिया जाता है।
    • वर्ष 2021-22 में तमिलनाडु भारत में ग्रेफाइट का अग्रणी उत्पादक था, जो कुल उत्पादन का 63% था। ओडिशा दूसरा प्रमुख उत्पादक था।
    • अरुणाचल प्रदेश में भारत के सर्वाधिक ग्रेफाइट भंडार है, जिसमें देश के कुल संसाधनों का 43% हिस्सा है।
  • लीथियम: भारत का पहला लीथियम भंडार वर्ष 1999 में जम्मू और कश्मीर में खोजा गया था।
    • भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India-GSI) ने राजस्थान के डेगाना में भी लीथियम भंडार की खोज की है, जो जम्मू और कश्मीर के भंडार से बड़ा माना जाता है।
  • इल्मेनाइट (टाइटेनियम): भारत के पास वैश्विक भंडार का 11% हिस्सा है, फिर भी वह प्रतिवर्ष 1 बिलियन डॉलर मूल्य का टाइटेनियम डाइऑक्साइड आयात करता है।
    • ओडिशा भारत में इल्मेनाइट का अग्रणी उत्पादक है, जो वर्ष 2021-22 में देश के कुल उत्पादन में 60% का योगदान देता है। 
    • केरल और तमिलनाडु क्रमशः दूसरे और तीसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं।
  • फॉस्फोरस: राजस्थान और मध्य प्रदेश भारत के दो राज्य हैं, जहाँ सर्वाधिक फॉस्फेट भंडार हैं:
    • राजस्थान: भारत के कुल रॉक फॉस्फेट भंडार और संसाधनों का 31% है।
    • मध्य प्रदेश: भारत के कुल रॉक फॉस्फेट भंडार और संसाधनों का 19% है।
  • पोटाश: राजस्थान भारत में पोटाश का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो देश के कुल पोटाश संसाधनों का 91% योगदान देता है।
    • राज्य में अनुमानित 2.4 बिलियन टन पोटाश भंडार है, जो भारत के कुल अनुमानित भंडार का लगभग 90% है।
    • अन्य प्रमुख भंडार मध्य प्रदेश (पन्ना जिला) और उत्तर प्रदेश (सोनभद्र और चित्रकूट जिले) में स्थित हैं।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्व (Rare Earth Elements-REE): भारत में समुद्र तट की रेत से 11.93 मिलियन टन मोनाजाइट का अनुमान है, जिसमें 55-65% दुर्लभ मृदा ऑक्साइड होते हैं।
    • आंध्र प्रदेश भारत का ऐसा राज्य है, जहाँ दुर्लभ मृदा तत्त्वों (REE) को प्राप्त करने के सबसे अधिक संसाधन हैं, जिनकी क्षमता 3.69 मिलियन टन है।
    • REE संसाधनों वाले अन्य राज्यों में शामिल हैं: केरल, तमिलनाडु, ओडिशा।
  • प्लेटिनम समूह तत्त्व (Platinum Group Elements-PGE): लगभग 15.7 टन PGE ओडिशा (नीलगिरि, बौला-नुआसाही, सुकिंदा) और कर्नाटक (हनुमालपुरा) में स्थित हैं।

महत्त्वपूर्ण खनिजों की आयात निर्भरता

  • लीथियम: लीथियम के लिए भारत 100% आयात पर निर्भर है, जिसे मुख्य रूप से चिली, रूस और चीन से प्राप्त किया जाता है।
  • कोबाल्ट: पूरी तरह से आयातित, जिसके मुख्य स्रोत चीन, बेल्जियम और जापान हैं।
  • निकेल: स्वीडन, चीन और इंडोनेशिया जैसे देशों से 100% आयातित।
  • वैनेडियम: पूरी तरह से आयातित, मुख्य रूप से कुवैत, जर्मनी और दक्षिण अफ्रीका से।
  • जर्मेनियम: पूरी तरह से चीन, दक्षिण अफ्रीका और फ्राँस से आयातित।
  • रेनियम: भारत रूस, यूके और चीन से आयात पर निर्भर है।
  • बेरिलियम और टैंटलम: पूरी तरह से आयातित, कोई घरेलू भंडार नहीं बताया गया।
  • सिलिकॉन: भारत सीमित मात्रा में उत्पादन करता है और चीन, मलेशिया और नॉर्वे से आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है।

महत्त्वपूर्ण खनिजों के उत्पादन के लिए सरकारी पहल

  • खान एवं खनिज अधिनियम (2023) में संशोधन: सरकार ने महत्त्वपूर्ण खनिज ब्लॉकों की नीलामी की अनुमति देने के लिए खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन किया है। पहली नीलामी नवंबर 2023 में 20 ब्लॉकों के लिए आयोजित की गई थी।
    • इन संशोधनों का उद्देश्य अन्वेषण और खनन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना है।
    • सुव्यवस्थित नीलामी प्रक्रिया और अन्वेषण लाइसेंस की शुरुआत का उद्देश्य गहरे तथा अप्रयुक्त खनिज भंडारों का दोहन करना है।
  • रिफाइनिंग और प्रसंस्करण क्षमताओं को मजबूत करना: भारत ने डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाओं के लिए आयात पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए घरेलू रिफाइनिंग और प्रसंस्करण बुनियादी ढाँचे के निर्माण के प्रयास शुरू किए हैं।
    • वर्ष 2024 के दौरान, खान मंत्रालय के विज्ञान और प्रौद्योगिकी कार्यक्रम के अनुसंधान एवं विकास घटक के तहत, महत्त्वपूर्ण खनिजों के निष्कर्षण, पुनर्प्राप्ति एवं पुनर्चक्रण से संबंधित 10 अनुसंधान व विकास परियोजनाओं को विभिन्न भारतीय संस्थानों और अनुसंधान प्रयोगशालाओं के माध्यम से शुरू करने के लिए मंजूरी दी गई है।

खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL)

  • यह एक संयुक्त उद्यम कंपनी है, जिसका गठन भारत को महत्त्वपूर्ण खनिजों की विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए किया गया था।
  • KABIL को वर्ष 2019 में कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत शामिल किया गया था।
  • यह तीन सरकारी उद्यमों के बीच एक संयुक्त उद्यम है:

नेशनल एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (National Aluminium Company Ltd.-NALCO), हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (Hindustan Copper Limited-HCL), और मिनरल एक्सप्लोरेशन एंड कंसल्टेंसी लिमिटेड (Mineral Exploration & Consultancy Limited-MECL)।

महत्त्वपूर्ण खनिजों पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग

  • द्विपक्षीय साझेदारियाँ
    • ऑस्ट्रेलिया: मार्च 2022 में, KABIL ने महत्त्वपूर्ण खनिज निवेश साझेदारी के लिए ऑस्ट्रेलिया के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए और ऑस्ट्रेलिया-भारत महत्त्वपूर्ण खनिज अनुसंधान केंद्र की स्थापना की।
      • ये पहल लीथियम तथा कोबाल्ट परियोजनाओं एवं सतत् खनन पर अनुसंधान पर केंद्रित हैं।
    • लैटिन अमेरिका (अर्जेंटीना, चिली, बोलीविया): भारत ने जनवरी 2024 में अर्जेंटीना में एक सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी के साथ पाँच लीथियम ब्राइन ब्लॉक के लिए 24 मिलियन डॉलर का लीथियम अन्वेषण समझौता किया।
      • KABIL ने लीथियम अन्वेषण के लिए अर्जेंटीना में 15,703 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया।
      • KABIL बोलीविया और चिली में परिसंपत्तियों के अधिग्रहण को सुगम बनाकर खनिज आपूर्ति सुनिश्चित करने पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका: भारत, अमेरिका के नेतृत्व वाली खनिज सुरक्षा भागीदारी (MSP) के तहत कोबाल्ट, लीथियम, निकेल और दुर्लभ मृदा तत्त्वों की आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ाने के लिए एक समझौते पर बातचीत कर रहा है।
    • कनाडा और ब्राजील: भारत द्विपक्षीय जुड़ाव के माध्यम से खनन और महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं में सहयोग की संभावना तलाश रहा है।
    • मध्य एशिया के साथ सहयोग: नवंबर 2024 में, भारत और कजाखस्तान ने भारत में टाइटेनियम स्लैग का उत्पादन करने के लिए IREUK टाइटेनियम लिमिटेड नामक एक संयुक्त उद्यम का गठन किया।
      • भारत ने क्षेत्र के समृद्ध संसाधन आधार का लाभ उठाने के लिए ‘भारत-मध्य एशिया दुर्लभ मृदा मंच’ की स्थापना का प्रस्ताव रखा है।

बहुपक्षीय साझेदारियाँ

  • खनिज सुरक्षा भागीदारी (Mineral Security Partnership-MSP): भारत जून 2023 में वैश्विक स्तर पर अनुकूलित और जिम्मेदार महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ावा देने के लिए 14वें सदस्य के रूप में शामिल हुआ।
  • क्वाड और इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (Indo Pacific Economic Framework-IPEF): भारत स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों और महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखला लचीलेपन को मजबूत करने के लिए इस फ्रेमवर्क में भाग लेता है। 
  • G20 और G7: भारत ने इन प्लेटफॉर्मों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए न्यायसंगत और लचीली आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित करने वाले सिद्धांतों की सक्रिय रूप से वकालत की है।
  • अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency): भारत के खान मंत्रालय ने वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप महत्त्वपूर्ण खनिज क्षेत्र के लिए नीतियों, विनियमों और निवेश रणनीतियों को सुव्यवस्थित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल (Initiative on Critical & Emerging Technologies-iCET): वार्षिक समीक्षा बैठकों के साथ मई 2022 में घोषित की गई।
    • iCET के अंतर्गत अमेरिकी संस्थानों के सहयोग से GSI, IBM और IREL की भागीदारी से 12 परियोजनाएँ तैयार की गईं।
  • चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (क्वाड): भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान को शामिल करने वाला रणनीतिक मंच।
    • क्वाड इन्वेस्टर्स नेटवर्क (Quad Investors Network-QIN) की स्थापना के साथ स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं और महत्त्वपूर्ण खनिजों पर ध्यान केंद्रित करना।
  • वैश्विक दक्षिण के साथ जुड़ाव: भारत ने ताँबा और कोबाल्ट जैसे खनिजों के स्रोत के लिए जांबिया, कांगो और नामीबिया सहित अफ्रीकी देशों के साथ साझेदारी शुरू की है।
  • ये सहयोग नैतिक स्रोत, निष्पक्ष प्रथाओं और खनिज आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने पर जोर देते हैं।

भारत के महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन में चुनौतियाँ

  • भारी आयात निर्भरता: लीथियम, कोबाल्ट और निकेल जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए भारत लगभग पूरी तरह से आयात पर निर्भर है। 
    • वित्त वर्ष 2023-24 में, भारत ने लीथियम, कोबाल्ट, निकेल और ताँबे के आयात पर ₹34,000 करोड़ से अधिक खर्च किए, जिसमें 70-80% लीथियम का आयात चीन से किया गया था। 
    • भारत ने वर्ष 2017 से 2023 के बीच चीन से 50,000 टन ग्रेफाइट और 5,300 टन निकेल ऑक्साइड खरीदा।

  • आपूर्ति शृंखलाओं में चीन का प्रभुत्व: चीन वैश्विक उत्पादन का लगभग 60% और महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए 85% प्रसंस्करण क्षमता को नियंत्रित करता है, जिसमें दुर्लभ मृदा तत्त्व, लीथियम और कोबाल्ट शामिल हैं।
    • चीन वैश्विक स्तर पर 59% लीथियम और 73% कोबाल्ट का प्रसंस्करण करता है, जो मिडस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम मूल्य शृंखलाओं पर हावी है।
    • वर्ष 2023 में, चीन ने ग्रेफाइट और अन्य खनिजों पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिए, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखला बाधित हो गई।
  • घरेलू प्रसंस्करण क्षमताओं का अभाव: भारत में महत्त्वपूर्ण खनिजों के शोधन और प्रसंस्करण के लिए बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जो डाउनस्ट्रीम उद्योगों के लिए आवश्यक हैं।
    • भारत में नीलाम किए गए अधिकांश खनिज ब्लॉक अपर्याप्त घरेलू प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों के कारण बिना बिके रह जाते हैं।
  • तकनीकी और अनुसंधान एवं विकास घाटा: निष्कर्षण और शोधन प्रौद्योगिकियों के लिए अनुसंधान और विकास में सीमित निवेश है।
    • उन्नत खनन तकनीकों के अभाव के कारण कोबाल्ट और निकेल जैसे दुर्लभ खनिज भारत में अभी तक खोजे नहीं जा सके हैं।
  • भू-राजनीतिक कमजोरियाँ: महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए कुछ देशों पर निर्भरता के कारण भारत को भू-राजनीतिक तनावों के कारण आपूर्ति में व्यवधान का सामना करना पड़ रहा है।
    • वर्ष 2010 के चीन-जापान विवाद के दौरान, चीन ने दुर्लभ मृदा तत्वों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे जापान के तकनीकी उद्योग पर गंभीर प्रभाव पड़ा।
    • अमेरिका-चीन के बीच चल रही प्रतिद्वंद्विता के कारण महत्त्वपूर्ण खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, जिससे संकेंद्रित आपूर्ति शृंखलाओं के जोखिम उजागर हुए हैं।
  • निजी क्षेत्र की अपर्याप्त भागीदारी: अस्पष्ट नीतियों और उच्च जोखिमों के कारण अन्वेषण और प्रसंस्करण में निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित है।
    • वर्ष 2023 में खान और खनिज अधिनियम में संशोधन के बावजूद, महत्त्वपूर्ण खनिज ब्लॉकों की नीलामी में निजी क्षेत्र की पर्याप्त रुचि नहीं रही है।
  • सोर्सिंग में पर्यावरण और नैतिक चिंताएँ (Environmental and Ethical Concerns in Sourcing): वैश्विक खनन प्रथाओं को अक्सर मानवाधिकारों के उल्लंघन और पर्यावरण क्षरण के लिए जाँच का सामना करना पड़ता है।
    • कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में चीनी फर्मों के विरुद्ध आरोपों में बाल श्रम और कोबाल्ट खनन कार्यों में जबरन बेदखली शामिल है।

आगे की राह

  • नीतिगत सुधार और प्रोत्साहन: भारत को व्यवहार्यता अंतर निधि और अनुसंधान एवं विकास निवेश में वृद्धि के माध्यम से घरेलू खनन और प्रसंस्करण क्षमताओं में तेजी लाने की आवश्यकता है।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी क्षेत्रों को विदेशों में खनिज परिसंपत्तियों को प्राप्त करने और/या वित्तीय निवेश करने में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • आपूर्ति स्रोतों का विविधीकरण: भारत को लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के देशों के साथ साझेदारी को मजबूत करके चीन पर अपनी निर्भरता कम करनी चाहिए।
    • देश को मोजांबिक, मेडागास्कर और ब्राजील सहित सिंथेटिक ग्रेफाइट के लिए वैकल्पिक स्रोतों का पता लगाना चाहिए।
  • बहुपक्षीय जुड़ाव को मजबूत करना: भारत को एमएसपी और क्वाड जैसे ढाँचे के माध्यम से महत्त्वपूर्ण खनिजों तक समान पहुँच के लिए वैश्विक संवादों में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
    • बहुपक्षीय जुड़ाव को इन महत्त्वपूर्ण संसाधनों के लिए लचीली और टिकाऊ आपूर्ति शृंखला बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • तकनीकी और अनुसंधान एवं विकास सहयोग: भारत को अत्याधुनिक शोधन और पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों को प्राप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ साझेदारी करनी चाहिए।
    • पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों में निवेश कच्चे माल के आयात पर निर्भरता को कम करने और महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए एक परिपत्र अर्थव्यवस्था बनाने में मदद कर सकता है।
  • ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) अनुपालन: भारत को अपनी सोर्सिंग प्रथाओं में ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए, विशेष रूप से कांगो और दक्षिण अमेरिकी देशों जैसे देशों के साथ साझेदारी में।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन (National Critical Mineral Mission-NCMM) का उद्देश्य भारत की महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित करना, आत्मनिर्भरता बढ़ाना और घरेलू अन्वेषण, पुनर्चक्रण और अंतरराष्ट्रीय अधिग्रहण के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देना है। तकनीकी प्रगति, वैश्विक सहयोग और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देकर, NCMM वैश्विक महत्त्वपूर्ण खनिज पारिस्थितिकी तंत्र में भारत की स्थिति को मजबूत करता है, आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा का समर्थन करता है।

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