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Feb 04 2025

गुजरात का पहला जैव विविधता विरासत स्थल: गुनेरी का अंतर्देशीय मैंग्रोव

कच्छ जिले के लखतार तहसील में 32.78 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले गुनेरी गाँव को गुजरात का पहला जैव विविधता विरासत स्थल (BHS) घोषित किया गया है। 

अंतर्देशीय मैंग्रोव 

  • अंतर्देशीय मैंग्रोव विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र हैं, जो सामान्य मैंग्रोव की तुलना में तटीय क्षेत्रों से दूर पाए जाते हैं।
  • वे लवणीय जल से प्रभावित वातावरण जैसे लैगून, नदी डेल्टा एवं मुहाने में पाए जाते हैं।
  • अंतर्देशीय मैंग्रोव बहुत दुर्लभ हैं एवं केवल कुछ ही देशों में पाए जाते हैं:
    • ऑस्ट्रेलिया, एंटीगुआ-बारबुडा, बहामास, ग्वाटेमाला, इंडोनेशिया, मैक्सिको एवं पाकिस्तान।
  • भारत में, अंतर्देशीय मैंग्रोव केवल कच्छ, गुजरात में अवस्थित हैं।
    • श्रवण कावड़िया और गुनेरी भारत में केवल दो अंतर्देशीय मैंग्रोव स्थल थे।
    • लवणीय जल की कमी के कारण ‘श्रवण कावड़िया मैंग्रोव’ अब विलुप्त हो गया है।

गुनेरी के अंतर्देशीय मैंग्रोव के बारे में

  • यह अंतर्देशीय मैंग्रोव स्थल दुर्लभ है एवं अत्यधिक पारिस्थितिक महत्त्व रखता है।
  • कानूनी ढाँचा 
    • यह घोषणा जैव विविधता अधिनियम, 2002 के तहत की गई थी।
      • इस स्थल को जैव विविधता विरासत स्थल (BHS) घोषित किया गया है।
  • सामान्य मैंग्रोव के विपरीत, यह सीधे समुद्री जल पर निर्भर नहीं करता है।
  • अवस्थिति एवं भूगोल
    • गुजरात के कच्छ जिले में स्थित है।
    • अरब सागर से 45 किमी. एवं कोरी क्रीक से 4 किमी. दूर अवस्थित है।
    • तटीय मैंग्रोव के विपरीत, यह स्थल कभी भी समुद्री जल के संपर्क में नहीं आता है।
    • समतल, जंगल जैसी भूमि पर फैला हुआ, जहाँ कोई कीचड़ जमा नहीं है।
  • चूना पत्थर की भूमिका
    • अंतर्देशीय मैंग्रोव चूना पत्थर के भंडार वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
    • चूना पत्थर समुद्र तल से संबंधित होता है, जिससे भू-जल का प्रवाह निरंतर बना रहता है।
    • गुनेरी सहित पश्चिमी कच्छ क्षेत्र में चूना पत्थर के समृद्ध भंडार हैं, जो इस विशिष्ट मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करते हैं।

जैव विविधता विरासत स्थल (BHS)

  • ये विशिष्ट एवं पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र हैं।
  • इसमें समृद्ध जैव विविधता के साथ स्थलीय, तटीय, समुद्री एवं अंतर्देशीय जल शामिल है। 
  • कानूनी ढाँचा- 
    • जैव विविधता अधिनियम, 2002 की धारा 37 के अनुसार, 
      • राज्य स्थानीय निकायों से परामर्श के बाद जैव विविधता समृद्ध क्षेत्रों को BHS घोषित कर सकते हैं। 
      • केंद्र सरकार से परामर्श के बाद BHS के प्रबंधन के लिए नियम बना सकती है। 
      • क्षेत्रों को BHS घोषित करने से प्रभावित लोगों को मुआवजा का प्रावधान है।

‘स्वरेल’ (SwaRail) सुपरऐप

केंद्रीय रेल मंत्रालय द्वारा ‘‘स्वरेल’ (SwaRail) सुपरऐप को गूगल प्ले स्टोर पर परीक्षण के लिए जारी किया गया है। 

  • यह ऐप एक वन-स्टॉप समाधान है, जो कई सार्वजनिक सेवाएँ प्रदान करता है।
  • परीक्षण का उद्देश्य: प्रतिक्रिया एवं फीडबैक का आकलन करने के लिए ऐप पहले केवल 1,000 उपयोगकर्ताओं के लिए डाउनलोड के लिए उपलब्ध है। 
    • वर्तमान में बीटा संस्करण में एंड्रॉइड एवं iOS दोनों प्लेटफॉर्मों के लिए उपलब्ध है।

ऐप के बारे में

  • विकास: केंद्रीय रेल मंत्रालय की ओर से रेलवे सूचना प्रणाली केंद्र (CRIS) द्वारा विकसित।
  • सेवाएँ
    • आरक्षित एवं अनारक्षित टिकट बुकिंग, प्लेटफॉर्म एवं पार्सल बुकिंग, ट्रेन पूछताछ, PNR पूछताछ, ट्रेनों में खाना ऑर्डर करने की सुविधा, रेलमदद के माध्यम से सहायता प्रदान करना।
    • यह उपयोगकर्ताओं को भारतीय रेलवे सेवाओं का संपूर्ण पैकेज प्रदान करने के लिए कई सेवाओं को एकीकृत करता है।
  • उद्देश्य: एक सहज एवं सरल यूजर इंटरफेस के माध्यम से उपयोगकर्ता अनुभव को बढ़ाना।
  • विशेषताएँ
    • सिंगल साइन-ऑन कार्यप्रणाली: यह सिंगल साइन-ऑन कार्यप्रणाली प्रदान करता है, जो उपयोगकर्ताओं को क्रेडेंशियल्स के एक सेट के साथ सभी सेवाओं तक पहुँचने में सक्षम बनाता है।
      • उदाहरण: PNR पूछताछ में ट्रेन के बारे में संबंधित जानकारी भी प्रदर्शित होगी।
    • मल्टीपल लॉगिन आप्शन: उपयोगकर्ता ऐप को ऑनबोर्ड करने के लिए अपने मौजूदा रेलकनेक्ट या UTS ऐप क्रेडेंशियल्स का भी उपयोग कर सकते हैं। यह M-पिन और बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण सहित कई लॉगिन विकल्प प्रदान करता है।

सुजेट्रिजिन (Suzetrigne)

 

‘यूनाइटेड स्टेट्स फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’ (FDA) ने सुजेट्रिजिन नामक एक नई नॉन-ओपिओइड (Non-Opioid) दर्द निवारक दवा को मंजूरी दे दी है।

सुजेट्रिजिन के बारे में

  • यह एक नॉन-ओपिऑइड दर्द निवारक दवा है, जिसका उपयोग वयस्कों में मध्यम से गंभीर दर्द को प्रबंधित करने के लिए किया जाता है।
  • इसे जर्नलवक्स (Journavx) ब्रांड नाम से बेचा जाता है। 
    • इस दवा का उत्पादन अमेरिका स्थित वर्टेक्स फार्मास्यूटिकल्स द्वारा किया जाता है।
  • दुष्प्रभाव: खुजली, दाने, मांसपेशियों में ऐंठन, और क्रिएटिन काइनेज के स्तर में वृद्धि।। 

ओपिओइड क्या हैं?

  • ओपिओइड ऐसी दवाएँ हैं, जो अफीम पोस्त (Opium Poppy) के पौधे में पाए जाने वाले प्राकृतिक पदार्थों से निर्मित होती हैं।
  • सामान्य ओपिओइड में शामिल हैं:
    • ऑक्सीकोडोन, मॉर्फिन, कोडीन, हेरोइन एवं फेंटेनल।
  • इनका उपयोग मुख्यत: दर्द निवारक के रूप में किया जाता है।
  • ओपिओइड कैसे कार्य करते हैं:
    • ओपिओइड मस्तिष्क में ओपिओइड रिसेप्टर्स से संबंधित होते हैं।
    • यह दर्द संकेतों को अवरुद्ध करता है एवं आनंद या उत्साह की भावना उत्पन्न करता है।
  • ओपिओइड से नशे की लत क्यों लगती है?
    • इनसे उत्पन्न होने वाला आनंद उपयोगकर्ताओं को इन्हें लेते रहने के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे मनोवैज्ञानिक निर्भरता और इसके उपयोग की लत उत्पन्न हो सकती है।

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संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने बिहार में ‘मखाना बोर्ड’ की स्थापना की घोषणा की है।

मखाना (Fox Nuts

  • मखाना, जिसे फॉक्स नट (Fox Nuts) के नाम से भी जाना जाता है, यूरीले फेरॉक्स (Euryale Ferox) का सूखा हुआ खाद्य बीज है।
  • यह पूरे दक्षिण एवं पूर्वी एशिया में मीठे जल के निकायों में पाया जाता है।
  • यह पौधा अपने बैंगनी एवं सफेद फूलों तथा बड़े गोल कंटीले पत्तों के लिए पहचाना जाता है, जिनका व्यास सामान्यत: एक मीटर से अधिक होता है।
  • इसकी  बाहरी परत काली होने के कारण मखाने को ‘काला हीरा’ भी कहा जाता है।

पोषण मूल्य और उपयोग

  • मखाना में कम वसा, अधिक कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का अच्छा स्रोत होता है।

  • यह खनिजों से भरपूर होता है एवं इसका उपयोग व्यापक रूप से किया जाता है:
    • पारंपरिक चिकित्सा
    • स्वास्थ्य एवं कल्याण उत्पाद
    • स्नैक्स एवं पाक खाद्य, जैसे कि आमतौर पर ‘पॉप्ड’ मखाना के रूप में सेवन किया जाता है।

प्रमुख उत्पादक क्षेत्र

  • भारत के कुल मखाना उत्पादन का 90% हिस्सा बिहार में उत्पादित होता है।
  • बिहार के प्रमुख उत्पादक जिलों में शामिल हैं:
    • दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, कटिहार, सहरसा, सुपौल, अररिया, किशनगंज, एवं सीतामढी (मिथिलांचल क्षेत्र)।
    • दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, कटिहार जिले बिहार के कुल मखाना उत्पादन में 80% योगदान देते हैं।
    • भौगोलिक संकेत (GI) टैग: मिथिला मखाना को वर्ष 2022 में भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्राप्त हुआ।
  • मखाने की खेती करने वाले अन्य राज्यों में शामिल हैं: असम, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और ओडिशा।
  • मखाना नेपाल, बांग्लादेश, चीन, जापान एवं कोरिया में भी उत्पादित किया जाता है।
  • बिहार सरकार मखाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य ( MSP) की सिफारिश करती रही है।

मखाना की खेती के लिए जलवायु परिस्थितियाँ

  • मखाना एक जलीय फसल है, जो उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पादित होती है।
  • इसकी कृषि स्थिर जल निकायों जैसे तालाबों, झीलों, खाइयों, आर्द्रभूमियों एवं 4-6 फीट की गहराई वाली भूमि में की जाती है।
  • आदर्श जलवायु परिस्थितियाँ
    • तापमान सीमा: 20°C – 35°C
    • सापेक्ष आर्द्रता: 50% – 90%
    • वार्षिक वर्षा: 100 – 250 सेमी.।

मखाना बोर्ड के बारे में

  • मखाना बोर्ड को 100 करोड़ रुपये के बजट से गठित करने की तैयारी है।
  • बोर्ड, मखाना किसानों के लिए प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता एवं सरकारी योजनाओं तक पहुँच प्रदान करेगा।
  • बोर्ड का लक्ष्य मखाना (फॉक्स नट्स) के उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्द्धन एवं विपणन को बढ़ावा देना है।

‘मखाना बोर्ड’ का महत्त्व

  • बिहार की निर्यात चुनौतियाँ
    • बिहार मखाना का सबसे बड़ा उत्पादक है, परंतु पंजाब एवं असम मखाना के सबसे बड़े निर्यातक  राज्य हैं।
    • पंजाब में मखाने की कृषि नहीं होती, फिर भी बेहतर प्रसंस्करण बुनियादी ढाँचे के कारण निर्यात में सबसे आगे है।
    • बिहार में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों, निर्यात बुनियादी ढाँचे एवं हवाई अड्डों पर कार्गो सुविधाओं का अभाव है।
  • कम उत्पादकता एवं उच्च लागत: मखाना की कृषि श्रम-गहन और महंगी प्रक्रिया है।
    • किसानों ने स्वर्ण वैदेही एवं सबौर मखाना-1 जैसी उच्च उपज वाली किस्मों को व्यापक रूप से नहीं अपनाया है।

मखाना बोर्ड की भूमिका

  • उत्पादन तकनीकों में सुधार के लिए किसानों को प्रशिक्षित करना।
  • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देना।
    • वैश्विक बाजार तक पहुँच बढ़ाने के लिए निर्यात बुनियादी ढाँचे का विकास करना।
    • मखाना किसानों के लिए बेहतर वित्तीय प्रोत्साहन और MSP सुनिश्चित करना।

ODOP के अंतर्गत मखाना

  • एक जिला एक उत्पाद (ODOP) योजना के तहत मखाना को ODOP उत्पाद के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • केंद्र सरकार मखाना प्रोसेसिंग यूनिट्स को निम्नलिखित के लिए सब्सिडी प्रदान करती है:
    • ब्रांडिंग एवं मार्केटिंग।
    • बिहार में बुनियादी ढाँचे का विकास।

एक जिला एक उत्पाद (ODOP) योजना

  • जिला स्तरीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा ODOP योजना शुरू की गई थी।
  • इसका उद्देश्य प्रत्येक जिले की क्षमता को अधिकतम करना, स्थानीय व्यवसायों का समर्थन करना एवं विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर उत्पन्न करना है।
  • यह पहल आत्मनिर्भरता एवं क्षेत्रीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाले ‘आत्मनिर्भर भारत’ दृष्टिकोण के अनुरूप है।
  • उत्पत्ति: जिला आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पहली बार 24 जनवरी, 2018 को लॉन्च किया गया।
    • इसकी सफलता के कारण इसे केंद्र सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय पहल के रूप में अपनाया गया।
  • कार्यान्वयन: यह योजना वाणिज्य विभाग के विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) द्वारा प्रबंधित ‘निर्यात हब के रूप में जिलों’ (Districts as Export Hubs’- DEH) पहल के साथ लागू की गई है।
    • उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) कार्यान्वयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

ODOP का महत्त्व: विनिर्माण को बढ़ाकर एवं स्थानीय व्यवसायों को समर्थन देकर हर जिले को निर्यात केंद्र में बदलना है।

  • स्थानीय निर्माताओं को विदेशी बाजारों से जोड़कर घरेलू एवं वैश्विक व्यापार को प्रोत्साहित करता है।

संदर्भ

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश जारी किया है, जिसके तहत बच्चों को अमेरिकी नागरिकता केवल तभी दी जाएगी, जब उनके माता-पिता के पास अमेरिकी नागरिकता या अमेरिकी ग्रीन कार्ड हो।

नागरिकता के बारे में

  • नागरिकता की परिभाषा: किसी व्यक्ति और राज्य के बीच एक कानूनी स्थिति और संबंध, जिसमें विशिष्ट कानूनी अधिकार और कर्तव्य शामिल होते हैं।
    • नागरिकता को आमतौर पर राष्ट्रीयता के पर्याय के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • भारतीय संविधान में ‘नागरिक’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।

नागरिकता के कानूनी सिद्धांत

  • जूस सोलाई (मिट्टी का अधिकार) [Jus Soli (Right of Soil)]: नागरिकता जन्म स्थान के आधार पर दी जाती है, चाहे माता-पिता की राष्ट्रीयता कुछ भी हो।
    • कनाडा, मैक्सिको, ब्राजील और अर्जेंटीना सहित कई उत्तरी अमेरिकी और लैटिन अमेरिकी देशों में इसका पालन किया जाता है।
  • जूस सैंगुइनिस (रक्त का अधिकार) [Jus Sanguinis (Right of Blood)]: नागरिकता जन्म स्थान के बजाय माता-पिता की राष्ट्रीयता से निर्धारित होती है।
    • मिस्र, दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी और भारत जैसे कई अफ्रीकी, यूरोपीय और एशियाई देशों में इसका प्रचलन है।

अमेरिकी कानूनी इतिहास

  • अमेरिका ‘जूस सोलाई’ सिद्धांत का पालन करता है, जो इसकी सीमाओं के अंतर्गत पैदा हुए किसी भी व्यक्ति को नागरिकता प्रदान करता है।
  • 14वाँ संशोधन (1868) कहता है कि अमेरिका में जन्मे या प्राकृतिक रूप से बसे सभी व्यक्ति अमेरिकी नागरिक हैं।
  • अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय (1898) ने फिर से पुष्टि की कि 14वें संशोधन के तहत नागरिकता अमेरिका में पैदा हुए सभी बच्चों को दी जाती है, चाहे उनके माता-पिता की राष्ट्रीयता कुछ भी हो।

भारत में नागरिकता

  • भारत के नागरिकता अधिनियम, 1955 ने शुरू में वर्ष 1987 तक ‘जूस सोलाई’ सिद्धांत का पालन किया।
  • संशोधनों ने ‘जूस सैंगुइनिस’ सिद्धांत की शुरुआत की, जिसमें नागरिकता को माता-पिता की राष्ट्रीयता से जोड़ा गया।
  • नागरिकता नियम (वर्ष 2004 के बाद)
    • नागरिकता केवल तभी दी जाती है, जब दोनों माता-पिता भारतीय नागरिक हों या एक माता-पिता भारतीय हो और दूसरा अवैध अप्रवासी न हो।
    • यह प्रतिबंध मुख्य रूप से बांग्लादेश से अवैध अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने से रोकने के लिए लगाया गया था।

भारत और अमेरिका में नागरिकता की तुलना

पहलू

भारत

संयुक्त राज्य अमेरिका

संवैधानिक ढाँचा एकल नागरिकता (अनुच्छेद-5-11) दोहरी नागरिकता (संघ और राज्य स्तर)
नागरिकता सिद्धांत ‘जूस सैंगुइनिस’
(Jus Sanguinis)
‘जूस सोलाई’ और ‘जूस सैंगुइनिस’ [Jus Soli & Jus Sanguinis]
नागरिकता प्राप्ति माता-पिता की राष्ट्रीयता के आधार पर जन्म स्थान आधारित अधिकार (जूस सोलाई) या  ‘जूस सैंगुइनिस’ के आधार पर
नागरिकों के अधिकार अनुच्छेद-15, 16, 19, 29-30 (स्वतंत्रता, समानता, सांस्कृतिक अधिकार) अधिकार विधेयक (भाषण, सभा आदि की स्वतंत्रता), मताधिकार, सार्वजनिक पद की पात्रता
दोहरी नागरिकता अनुमति नहीं अनुमत (दोहरी राष्ट्रीयता अनुमत)
नागरिकीकरण प्रक्रिया 12 वर्ष का निवास आवश्यक है। 5 वर्ष का स्थायी निवास, अंग्रेजी और नागरिक शास्त्र की परीक्षा आवश्यक है।
नागरिकता का त्याग स्वैच्छिक रूप से किसी अन्य राष्ट्रीयता को ग्रहण करने से इसका त्याग हो जाता है। स्वेच्छा से त्यागा जा सकता है या अपराधों के लिए वापस लिया जा सकता है।
विशेष प्रावधान शीघ्र नागरिकता के लिए CAA, 2019 आव्रजन एवं राष्ट्रीयता अधिनियम (Immigration and Nationality Act-INA) शरणार्थियों के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।
विदेशी बच्चों के लिए नागरिकता माता-पिता और आव्रजन स्थिति के आधार पर जूस सोलाई (जन्म स्थान आधारित नागरिकता) या जूस सैंगुइनिस (माता-पिता की राष्ट्रीयता)।

भारत में नागरिकता संबंधी प्रावधान

संविधान में नागरिकता: नागरिकता संघ सूची के अंतर्गत आती है और अनुच्छेद-5-11 द्वारा शासित होती है।

भारत में नागरिकता संबंधी अनुच्छेद और प्रावधान एवं नागरिकता की समाप्ति (नागरिकता अधिनियम, 1955)

अनुच्छेद

प्रावधान

अनुच्छेद-5 यह विधेयक उन व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करता है, जो भारत में निवास करते हैं और यहीं जन्मे हैं अथवा जिनके माता-पिता भारत में जन्मे थे।
अनुच्छेद-6 यह वर्ष 1949 से पहले भारत में प्रवास करने वाले लोगों को नागरिकता प्रदान करता है, यदि उनके माता-पिता या दादा-दादी भारत में पैदा हुए थे।
अनुच्छेद-7 यह विधेयक उन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है, जो पाकिस्तान चले गए थे, लेकिन बाद में पुनर्वास परमिट के तहत भारत लौट आए।
अनुच्छेद-8 यह विधेयक विदेश में रहने वाले भारतीय मूल के व्यक्तियों (Persons of Indian Origin-PIO) को भारतीय नागरिकता के लिए पंजीकरण कराने की अनुमति देता है, बशर्ते उनके माता-पिता या दादा-दादी भारत में पैदा हुए हों।
अनुच्छेद-9 इसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से विदेशी नागरिकता प्राप्त कर लेता है तो उसकी नागरिकता समाप्त हो जाती है।
अनुच्छेद-10 यह सुनिश्चित करता है कि जब तक बाद के कानूनों द्वारा इसमें संशोधन न किया जाए, तब तक नागरिकता बनी रहे।
अनुच्छेद-11 संसद को विधायी संशोधनों के माध्यम से नागरिकता कानूनों को विनियमित करने का अधिकार देता है।

  • नागरिकता का त्याग: भारतीय नागरिकता का स्वैच्छिक त्याग(नाबालिग बच्चों पर भी लागू होता है)।
  • समाप्ति: जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त करता है तो उसकी नागरिकता स्वतः ही समाप्त हो जाती है।
  • वंचना: धोखाधड़ी, विश्वासघात, आपराधिक कृत्यों या पंजीकरण के बिना भारत से लंबे समय तक अनुपस्थित रहने (7 वर्ष) के कारण नागरिकता रद्द की जा सकती है।

नागरिकता प्राप्ति

  • जन्म से
    • 1 जुलाई, 1987 से पहले: भारत में जन्मा कोई भी बच्चा स्वतः ही नागरिक बन जाता है।
    • 1 जुलाई, 1987 से 2 दिसंबर, 2004 के बीच: माता-पिता में से कम-से-कम एक भारतीय नागरिक होना चाहिए।
    • 3 दिसंबर, 2004 के बाद: दोनों माता-पिता भारतीय नागरिक होने चाहिए या एक माता अथवा पिता भारतीय होना चाहिए और दूसरा अवैध प्रवासी नहीं होना चाहिए।
  • वंश के अनुसार
    • 10 दिसंबर, 1992 से पूर्व: यदि जन्म के समय पिता भारतीय थे, तो नागरिकता प्रदान की जाती है।
    • 10 दिसंबर, 1992 के पश्चात्: यदि माता-पिता में से कोई एक जन्म के समय भारतीय था, तो नागरिकता प्रदान की जाती है।
    • जन्म का पंजीकरण एक वर्ष के भीतर भारतीय वाणिज्य दूतावास में होना चाहिए।
  • पंजीकरण द्वारा: भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO), जो 7 वर्षों से भारत में रह रहे हैं।
    • भारतीय नागरिकों के विदेशी जीवनसाथी, जो 7 वर्षों से भारत में रह रहे हैं।
    • भारतीय माता-पिता के नाबालिग पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकते हैं।
  • प्राकृतिकीकरण द्वारा: प्राकृतिकीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक विदेशी नागरिक विशिष्ट कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद एक नए देश की नागरिकता प्राप्त करता है। भारत में प्राकृतिकीकरण के लिए एक व्यक्ति:
    • आवेदन करने से पहले लगातार 12 महीने भारत में रहना चाहिए।
    • पिछले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में रहना चाहिए (चुनिंदा श्रेणियों के लिए 5 वर्ष तक घटाया गया)।
  • क्षेत्र के समावेशन द्वारा: नागरिकता उन क्षेत्रों के लोगों को प्रदान की जाती है, जो भारत का हिस्सा बन जाते हैं।

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR)

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens-NRC)

  • भारत के सभी वैध नागरिकों के नाम वाला एक रजिस्टर।
  • इसका उद्देश्य अवैध अप्रवासियों की पहचान करना और उन्हें निर्वासित करना है।
    • वर्तमान में, केवल एक संस्करण असम के संदर्भ में प्रकाशित किया गया है, जिससे विवाद पैदा हो गया है।
  • इसमें शामिल होने के लिए नागरिकता प्रमाण की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register-NPR)

  • भारत के सभी सामान्य निवासियों, नागरिकों और गैर-नागरिकों का एक रजिस्टर।
  • जनसांख्यिकीय और बायोमेट्रिक जानकारी एकत्र करता है।
  • एक व्यापक पहचान डेटाबेस बनाने का लक्ष्य।
  • NPR के लिए एकत्र किया गया डेटा, NRC प्रक्रिया का आधार है, हालाँकि सरकार ने दोनों को अलग कर दिया है।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश

  • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने असम में NRC अपडेट को अनिवार्य कर दिया है, लेकिन उसने NRC के राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन या NPR और NRC के बीच संबंध पर सीधे तौर पर कोई निर्णय नहीं सुनाया है।
  • हालाँकि, उसने ऐसी किसी भी प्रक्रिया में विशेषतः नागरिकता सत्यापन के संबंध में उचित प्रक्रिया और निष्पक्षता के महत्त्व पर जोर दिया है।

नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन

  • 1986 संशोधन: 1 जुलाई, 1987 से पहले जन्मे लोगों के लिए नागरिकता के नियम निर्धारित किए गए।
    • 1 जुलाई, 1987 से 4 दिसंबर, 2003 के बीच जन्मे लोगों को नागरिकता प्रदान की गई, यदि माता-पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक था।
  • वर्ष 2003 का संशोधन: “अवैध प्रवासी [Illegal Migrant]” शब्द को शामिल किया गया, जिससे उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने से रोका गया।
    • “कॉमनवेल्थ नागरिकता (Commonwealth Citizenship)” प्रावधान को हटा दिया गया।
  • वर्ष 2015 संशोधन: भारतीय मूल के व्यक्ति (Person of Indian Origin-PIO) और भारत के विदेशी नागरिक (Overseas Citizen of India-OCI) योजनाओं को एक एकल “OCI” योजना में विलय कर दिया गया।
  • नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act-CAA), 2019:
    • 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में प्रवेश करने वाले पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश के हिंदुओं, ईसाइयों, सिखों, जैनियों, बौद्धों और पारसियों को ‘फास्ट-ट्रैक’ नागरिकता प्रदान करता है। 
    • मुसलमानों को इससे बाहर रखा गया है, जिससे संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता पर बहस छिड़ गई है। 
    • भारत का सर्वोच्च न्यायालय इसकी संवैधानिक वैधता की समीक्षा कर रहा है। 
    • सरकार का तर्क है कि यह कानून पीड़ित अल्पसंख्यकों की मदद करता है और भेदभावपूर्ण नहीं है।

संदर्भ

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा सुशासन (सामाजिक कल्याण, नवाचार, ज्ञान) के लिए आधार प्रमाणीकरण संशोधन नियम, 2025 को अधिसूचित किया गया है।

संबंधित तथ्य

  • नियमों में वर्ष 2025 का संशोधन प्रत्यक्ष तौर पर पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2018) में सर्वोच्च न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों के निर्णय के विरुद्ध है।
  • आधार अधिनियम, 2016 की धारा 57 को रद्द कर दिया गया, जिसके तहत निजी संस्थाओं को आधार प्रमाणीकरण सेवाओं का उपयोग करने से रोक दिया गया था।

संशोधन का उद्देश्य

  • ये संशोधन आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 के अंतर्गत आते हैं।
  • इस संशोधन का प्राथमिक उद्देश्य निर्णयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और समावेशिता को बढ़ाना है।
  • वर्ष 2020 नियम में संशोधन: जीवन को आसान बनाने के लिए आधार प्रमाणीकरण का विस्तार करना
    • संशोधन का उद्देश्य बेहतर प्रशासन, कुशल सेवा वितरण और जीवन को और अधिक आसान बनाने के लिए आधार की उपयोगिता को बढ़ाना है।
  • इसका उद्देश्य ई-कॉमर्स, स्वास्थ्य सेवा, यात्रा और अन्य सहित विभिन्न क्षेत्रों में सेवाओं तक बेहतर पहुँच की सुविधा प्रदान करना है।
  • आधार प्रमाणीकरण का उपयोग अब सरकारी और गैर-सरकारी दोनों संस्थाओं द्वारा किया जा सकता है।
  • यह विश्वसनीय लेन-देन को सक्षम बनाता है और निवासियों के लिए सेवाओं तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित करता है।

सुव्यवस्थित अनुमोदन प्रक्रिया

  • आधार प्रमाणीकरण का उपयोग करने की इच्छुक संस्थाओं को संबंधित सरकारी मंत्रालय को प्रासंगिक विवरण के साथ आवेदन करना होगा।
  • भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) आवेदन की समीक्षा करता है, और MeitY स्वीकृति प्रदान करता है।
  • स्वीकृति मिलने के बाद, संबंधित मंत्रालय संस्थाओं को औपचारिक रूप से अधिसूचित करता है।

अपेक्षित परिणाम

  • इस संशोधन से आधार-सक्षम सेवाओं को प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी।
  • इससे विभिन्न क्षेत्रों में डिजिटल समाधानों में अधिक नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।

आधार के बारे में

  • आधार भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) द्वारा जारी की गई 12 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या है।
  • UIDAI एक वैधानिक प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है, जिसे आधार अधिनियम, 2016 के तहत स्थापित किया गया है।
  • जनसांख्यिकीय डेटा: इसमें नाम, लिंग, जन्म तिथि और पता शामिल है।
  • बायोमेट्रिक डेटा: इसमें फिंगरप्रिंट, आईरिस स्कैन और चेहरे की तस्वीरें शामिल हैं।
  • प्रत्येक आधार नंबर व्यक्ति के लिए अद्वितीय होता है, जो सटीकता सुनिश्चित करता है और दोहराव को रोकता है।
  • आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है।

आधार का कानूनी ढाँचा

  • आधार अधिनियम, 2016 की धारा 7: सरकार भारत की समेकित निधि या राज्य सरकारों द्वारा वित्तपोषित सब्सिडी, लाभ और सेवाओं तक पहुँचने के लिए व्यक्तियों के लिए आधार को अनिवार्य कर सकती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (2018): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि आधार संवैधानिक है, लेकिन निजी सेवाओं के लिए अनिवार्य नहीं है, जैसे:
    • बैंक खाते
    • मोबाइल नंबर पंजीकरण
    • स्कूल में प्रवेश
  • आधार मेटाडेटा प्रतिधारण: UIDAI को छह महीने से अधिक समय तक आधार प्रमाणीकरण डेटा संगृहीत करने से प्रतिबंधित किया गया है।
  • गोपनीयता और सुरक्षा: के. एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017) मामले में गोपनीयता के अधिकार के निर्णय के अंतर्गत आधार डेटा को सुरक्षित रखने और इसके दुरुपयोग को रोकने का प्रावधान किया।

संदर्भ

दुनिया की सबसे छोटी और सबसे कम वजनी जंगली बिल्ली, ‘रस्टी-स्पॉटेड कैट’ (Rusty-Spotted Cat) की पहली उपस्थिति बंगाल के वनों में दर्ज की गई है।

रस्टी-स्पॉटेड कैट 

  • वितरण: ‘रस्टी-स्पॉटेड कैट’ मुख्य रूप से उत्तरी और मध्य भारत, पश्चिमी घाट, कच्छ, राजस्थान और प्रायद्वीपीय भारत में पाई जाती है।
    • भारत में इस प्रजाति की कुल आबादी का 80% हिस्सा है।
    • यह नेपाल और श्रीलंका में भी पाई जाती है।

  •  विशेषताएँ
    • यह सबसे छोटी और सबसे हल्की ज्ञात जंगली बिल्ली है, जिसका वजन 1.5 किलोग्राम से कम है।
    • इस बिल्ली का रंग हल्का भूरा होता है और इसकी पीठ और पार्श्व भाग पर विशिष्ट ‘रस्टी-स्पॉट’ होते हैं।
  • गर्भधारण अवधि: रस्टी-स्पॉटेड कैट की गर्भधारण अवधि लगभग 66 से 70 दिनों की होती है।
  • संरक्षण स्थिति
    •  IUCN रेड लिस्ट: इसे आवास का विनाश और विखंडन के कारण निकट संकटग्रस्त के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: इसे अनुसूची-I के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है, जो इसे उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान करता है।
  • प्रादेशिक: यह मूत्र और अन्य ग्रंथियों से गंध चिह्नों का उपयोग करके प्रादेशिक सीमाएँ निर्धारित करती है।
  • रात्रिचर: ‘रस्टी-स्पॉटेड कैट’ मुख्य रूप से रात में सक्रिय होती है, शिकार करने और शिकारियों से बचने के लिए उन्नत रात्रि दृष्टि का उपयोग करती है।

संदर्भ

 हाल ही में भारत ने इराक के कुर्दिस्तान क्षेत्र में चिकित्सा आपूर्ति की एक खेप भेजी है।

  • यह सहायता भारत की विदेश नीति के दृष्टिकोण को प्रदर्शित करती है, जिसमें वैश्विक सहयोग और मानवीय सहायता पर जोर दिया गया है।

कुर्द

  • कुर्द अधिकतम सुन्नी मुसलमान हैं, जिनके पास कोई आधिकारिक मातृभूमि नहीं है और वे मान्यता, राजनीतिक अधिकार, स्वायत्तता या स्वतंत्रता की तलाश में रहते हैं।
  • अनुमानित 25-30 मिलियन कुर्द अधिकतर तुर्किए, सीरिया, इराक और ईरान में रहते हैं।
  • कुर्द स्वतंत्रता आंदोलन कुर्द लोगों के बीच आत्मनिर्णय की एक राष्ट्रवादी आकांक्षा है।
  • कुर्दों को उत्पीड़न और हाशिए पर धकेले जाने का सामना करना पड़ा है, जिससे स्वायत्त या एकीकृत, स्वतंत्र कुर्दिस्तान की उनकी इच्छा को बढ़ावा मिला है।
  • इस आंदोलन का विद्रोह और सशस्त्र संघर्ष का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसे प्रायः उन राज्यों से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है, जहाँ वे रहते हैं।

कुर्दिस्तान क्षेत्र के बारे में

  • भौगोलिक परिभाषा: कुर्दिस्तान क्षेत्र में पारंपरिक रूप से मुख्य रूप से कुर्द रहते हैं। यह कई देशों में विस्तृत है, जिनमें शामिल हैं:
    • पूर्वी तुर्किए
    • उत्तरी इराक
    • पश्चिमी ईरान
    • उत्तरी सीरिया और आर्मेनिया के छोटे हिस्से।

  • गवर्नरेट: कुर्दिस्तान क्षेत्र में चार ‘गवर्नरेट’ शामिल हैं:
    • एरबिल (राजधानी)
    • सुलेमानियाह
    • दोहुक
    • हलाबजा।
  • भौगोलिक विशेषताएँ: इस क्षेत्र की विशेषता महत्त्वपूर्ण पर्वत शृंखलाएँ हैं, जिनमें शामिल हैं:
    • जग्रोस पर्वत प्रणाली
    • टॉरस पर्वत का पूर्वी विस्तार।
  • इस क्षेत्र से होकर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं:
    • टिग्रिस नदी (Tigris River)
    • ‘ग्रेटर जैब’ नदी (Greater Zab River)।
  • भारत और कुर्दिस्तान क्षेत्र
    • वाणिज्य दूतावास और राजनयिक संबंध: भारत ने अगस्त 2016 में एरबिल में वाणिज्य दूतावास की स्थापना की।
    • वाणिज्य दूतावास का उद्देश्य भारत और इराक के बीच आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों को मजबूत करना है।
  • क्षेत्र में भारतीय कार्यबल: बड़ी संख्या में भारतीय कर्मचारी कुर्दिस्तान क्षेत्र के प्रमुख उद्योग क्षेत्रों में योगदान करते हैं, जिनमें शामिल हैं:
    • स्टील मिलें
    • तेल कंपनियाँ
    • निर्माण परियोजनाएँ।

संदर्भ

हाल ही में कैरेबियन और उत्तरी ब्राजील मग्नतट क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण समुद्री चुनौतियों का समाधान करने के लिए यूनेस्को के अंतर-सरकारी समुद्र विज्ञान आयोग द्वारा ‘महासागर समन्वय तंत्र’ (Ocean Coordination Mechanism-OCM) प्रारंभ किया गया था।

10-वर्षीय CLME+ रणनीतिक कार्रवाई कार्यक्रम (Strategic Action Program-SAP)

  • 10 वर्षीय CLME+SAP एक सहयोगात्मक पहल है, जो कैरेबियन और उत्तरी ब्राजील मग्नतट ‘लार्ज मरीन इकोसिस्टम’ (CLME+ क्षेत्र) में साझा जीवित समुद्री संसाधनों के सतत् प्रबंधन पर केंद्रित है।
  • यह आवास क्षरण, प्रदूषण और अस्थिर मत्स्यन प्रथाओं जैसी चुनौतियों का समाधान करने के लिए 20 से अधिक देशों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और क्षेत्रीय संगठनों को एक साथ लाता है।
  • SAP क्षेत्र में बेहतर शासन और संसाधन प्रबंधन के लिए प्राथमिकता रणनीतियों और कार्यों की रूपरेखा तैयार करता है।

महासागर समन्वय तंत्र 

  • अवधारणा और अनुमोदन: OCM को 10 वर्षीय CLME+ रणनीतिक कार्रवाई कार्यक्रम (CLME+ SAP) के भाग के रूप में विकसित किया गया था।
  • उद्देश्य: समुद्री संसाधनों के सतत् प्रबंधन के लिए एक सहयोगी शासन ढाँचा स्थापित करना।
  • प्राथमिक उद्देश्य
    • संधारणीय मत्स्यपालन (Sustainable Fisheries): OCM समुद्री संसाधनों की दीर्घकालिक संधारणीयता सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी मत्स्यन प्रथाओं को बढ़ावा देता है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली (Ecosystem Restoration): यह पहल महत्त्वपूर्ण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों को बनाए रखने और उनकी सुरक्षा पर केंद्रित है।

यूनेस्को का अंतर-सरकारी महासागरीय आयोग (Intergovernmental Oceanographic Commission-IOC) 

  • IOC/UNESCO महासागर, तटीय और समुद्री संसाधन प्रबंधन को बढ़ाने के लिए समुद्री विज्ञान में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • इसके 150 सदस्य देश समन्वित कार्यक्रमों के माध्यम से एक साथ कार्य कर रहे हैं:
    • क्षमता विकास
    • महासागर अवलोकन और सेवाएँ
    • महासागर विज्ञान अनुसंधान
    • सुनामी चेतावनी प्रणाली
    • महासागर साक्षरता पहल
  • IOC आर्थिक, सामाजिक और सतत् विकास के लिए वैज्ञानिक ज्ञान और अनुप्रयोगों को आगे बढ़ाकर UNESCO के मिशन में योगदान देता है।
  • यह महासागर अनुसंधान और शासन के माध्यम से शांति और प्रगति को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • IOC सतत् विकास के लिए महासागर विज्ञान के संयुक्त राष्ट्र दशक (2021-2030) के समन्वय के लिए जिम्मेदार है, जिसे ‘महासागर दशक’ (Ocean Decade) के रूप में भी जाना जाता है।

    • प्रदूषण नियंत्रण: इसका उद्देश्य समुद्री पर्यावरण को प्रभावित करने वाले प्रदूषकों का पता लगाना और उन्हें कम करने का प्रयास करना है। 
    • ‘ब्लू कार्बन’ विकास: OCM जलवायु परिवर्तन शमन में सहायता के लिए तटीय और समुद्री कार्बन सिंक के संरक्षण को प्रोत्साहित करता है।
    • समुद्री स्थानिक योजना: यह पहल महासागरीय स्थान के प्रभावी प्रबंधन और उपयोग के लिए रणनीतिक योजनाएँ विकसित करने का प्रयास करती है।
    • समुद्री संरक्षित क्षेत्र: समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (Marine Protected Areas-MPAs) का विस्तार और उचित प्रबंधन जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण घटक हैं।
  • परिवर्तनकारी प्रयास: OCM को ‘नॉर्थ ब्राजील शेल्फ लार्ज मरीन इकोसिस्टम’ (North Brazil Shelf Large Marine Ecosystem-NBSLME) सहित व्यापक कैरेबियन क्षेत्र में एकीकृत महासागर प्रशासन को बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • सहयोग और हितधारक: इस पहल में व्यापक कैरेबियन क्षेत्र के देश शामिल हैं।
    • समुद्री संरक्षण और संसाधन प्रबंधन में प्रमुख हितधारक इसके कार्यान्वयन में योगदान देते हैं।
  • पहल की मिसाल: OCM पूर्व पहलों, जैसे कि प्रशांत द्वीप क्षेत्रीय महासागर नीति (Pacific Islands Regional Ocean Policy-PIROP) से प्रेरित है, जिसका उद्देश्य प्रशांत क्षेत्र में समुद्री संसाधनों का स्थायी प्रबंधन करना था।
    • उदाहरण के लिए, PIROP को अस्पष्ट लक्ष्यों, वित्तीय बाधाओं और एकीकृत प्रबंधन की कमी से जूझना पड़ा और इससे कमजोर समुदायों को समुद्री संसाधनों तक असमान पहुँच प्राप्त हुई।
  • वित्तपोषण
    • OCM ने अपनी गतिविधियों को समर्थन देने के लिए वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility-GEF) से वित्तपोषण प्राप्त किया है।
    • वर्ष 2024-2028 की अवधि के लिए UNDP/GEF PROCARIBE+ परियोजना के तहत 15 मिलियन डॉलर का समर्पित कोष आवंटित किया गया है।

कैरेबियन महासागर 

  • स्थान: कैरेबियन महासागर उत्तरी अटलांटिक महासागर का हिस्सा है।
    • यह मैक्सिको की खाड़ी के दक्षिण में और सारगेसो सागर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।
  • कैरेबियन सागर से संलग्न राष्ट्र
    • ग्रेटर एंटीलीज (Greater Antilles): कैरेबियन सागर की सीमा क्यूबा, ​​जमैका, हिस्पानियोला (हैती और डोमिनिकन गणराज्य) और प्यूर्टोरिको से लगती है।
    • लेसर एंटीलीज (Lesser Antilles): इस क्षेत्र में वर्जिन द्वीपसमूह से लेकर त्रिनिदाद और टोबैगो तक का क्षेत्र शामिल है।
    • दक्षिण अमेरिका: कैरेबियन सागर वेनेजुएला और कोलंबिया से सीमा साझा करता है।
    • मध्य अमेरिका: पनामा, कोस्टारिका, निकारागुआ, होंडुरास, ग्वाटेमाला और बेलीज जैसे देश कैरेबियन की सीमा पर स्थित हैं।
    • मैक्सिको: मैक्सिको का पूर्वी तट भी कैरेबियन की सीमा पर स्थित है।
  • भौगोलिक सुविधाएँ
    • सबसे गहरा बिंदु: ‘केमैन ट्रफ’ कैरेबियन सागर का सबसे गहरा हिस्सा है, जो समुद्र तल से 7,686 मीटर (25,217 फीट) नीचे है।
    • मेसोअमेरिकन बैरियर रीफ: दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी बैरियर रीफ कैरेबियन में स्थित है।
      • यह मैक्सिको (Mexico), बेलीज (Belize), ग्वाटेमाला (Guatemala) और होंडुरास (Honduras) के तटों के साथ 1,000 किलोमीटर तक विस्तृत है।
    • प्रमुख खाड़ियाँ: कैरेबियन क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण खाड़ियाँ शामिल हैं, जैसे कि- गोनावे की खाड़ी, वेनेजुएला की खाड़ी, डेरेन की खाड़ी, गोल्फो डे लॉस मॉस्किटोस, पारिया की खाड़ी और होंडुरास की खाड़ी।

महाद्वीपीय मग्नतट

  • महाद्वीपीय मग्नतट अपेक्षाकृत उथले जल का एक क्षेत्र है, जो आमतौर पर कुछ सौ फीट से भी कम गहरा होता है, जो भूमि को घेरता है।
  • यह कुछ स्थानों पर संकीर्ण या लगभग न के बराबर है; अन्य स्थानों पर, यह सैकड़ों मील तक विस्तृत है।

उत्तरी ब्राजील मग्नतट

  • स्थान: उत्तरी ब्राजील मग्नतट कैरेबियन सागर और अटलांटिक महासागर दोनों में विस्तृत एक समुद्री क्षेत्र है।
    • यह दक्षिण अमेरिका के उत्तरी तट के साथ विस्तृत है।
    • यह अमेजन और ओरिनोको नदियों के मुहाने के बीच स्थित है।
  • उत्तरी ब्राजील मग्नतट की सीमा से लगे राष्ट्र: ब्राजील का अमापा राज्य उत्तरी ब्राजील शेल्फ की सीमा से लगा हुआ है।
    • अन्य सीमावर्ती देशों में फ्रेंच गुयाना, सूरीनाम और गुयाना शामिल हैं।
  • भौगोलिक विशेषताएँ
    • दलदली तटरेखाएँ: इस क्षेत्र की विशेषता अमेजन और ओरिनोको नदियों के अवसाद के निक्षेपण द्वारा निर्मित दलदली तटरेखाएँ हैं।
    • तटीय दलदल और मैंग्रोव: इस क्षेत्र में समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र हैं, जिनमें विस्तृत मैंग्रोव प्रणालियाँ और तटीय दलदल शामिल हैं।
      • ये पारिस्थितिकी तंत्र जैव विविधता, तूफान से सुरक्षा और कार्बन भंडारण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

संदर्भ 

वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की है कि कठोर संरक्षण उपायों के बिना पृथ्वी पर उपस्थित कुछ अद्वितीय जीव अगले पाँच वर्षों में विलुप्त हो सकते हैं।

  • कारण: आवास की हानि, जलवायु परिवर्तन, अवैध शिकार और प्रदूषण जैसी समस्याओं ने संकट उत्पन्न कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर विलुप्ति जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है।

गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियाँ सर्वाधिक आसन्न खतरों का सामना कर रही हैं।

  • पूर्वी तराई गोरिल्ला [गोरिल्ला बेरिंजेई ग्रेउरी (Gorilla Beringei Graueri)]: ये गोरिल्ला की सबसे बड़ी उप-प्रजाति है।
    • आबादी स्थिति: तेजी से घट रही है और अब इनकी संख्या 7,000 से भी कम रह गई है।
    • स्थान: कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य
    • खतरा: वनोन्मूलन, खनन और मानव अतिक्रमण के कारण आवास की हानि।
      • ‘बुशमीट’ व्यापार के लिए अवैध शिकार।

  • हॉक्सबिल कछुआ (एरेटमोचेलिस इम्ब्रिकेटा) [Hawksbill Turtle (Eretmochelys Imbricata)]
    • आबादी: मानवीय गतिविधियों के कारण तेजी से गिरावट देखी गई। 
    • स्थान: संपूर्ण विश्व के उष्णकटिबंधीय महासागरों में
    • खतरा: इनकी त्वचा के लिए अवैध व्यापार किया जाता है।
      • ये अपने प्रजनन संबंधी तटों को प्रभावित करने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।
      • आनुवंशिक भिन्नता: समुद्र के तापमान में वृद्धि के कारण कम कछुओं का जन्म होता है, जिससे प्रजाति को और अधिक खतरा होता है।
  • जावन गैंडा (गैंडा सोंडाइकस) [Javan Rhinoceros (Rhinoceros sondaicus)]
    • आबादी: 80 से कम
    • स्थान: इंडोनेशिया के उजंग कुलोन राष्ट्रीय उद्यान में सीमित
    • खतरे: आवास की हानि और सींगों के लिए अवैध शिकार। आबादी की कम आनुवंशिक विविधता भी एक खतरा है।

  • अमूर तेंदुआ (पैंथेरा पार्डस ओरिएंटलिस)]: इसे प्रायः दुनिया की सबसे दुर्लभ ‘बिग कैट’ कहा जाता है, जो अत्यधिक शीत अनुकूल है।
    • आबादी: लगभग 100
    • स्थान: रूस और चीन
    • खतरा: अवैध शिकार और मानव विस्तार के कारण आवास की हानि।
  • यांग्त्जी फिनलेस पोरपोइज (नियोफोकैना एशियाओरिएंटलिस) [Yangtze Finless Porpoise (Neophocaena Asiaeorientalis)]: डॉल्फिन के विपरीत, इनके पृष्ठीय पंख नहीं होते हैं, जो उन्हें ‘सीटेशियन’ के बीच अद्वितीय बनाता है।
    • आबादी: 1,000 से कम
    • स्थान: यांग्त्जी नदी, चीन
    • खतरे: औद्योगिक प्रदूषण, अत्यधिक मत्स्यन और आवास के विनाश के कारण यांग्त्जी नदी पारिस्थितिकी तंत्र का पतन।
      • पिछले 40 वर्षों में उनकी संख्या में 50% से अधिक की गिरावट आई है।
  • भारतीय घड़ियाल (गेवियलिस गैंगेटिकस) [Indian Gharial (Gavialis Gangeticus)]: इनकी लंबी, सँकरी थूथन होती है, जो मछली पकड़ने में सहायक होती है और ये मनुष्यों पर हमला नहीं करते हैं।
    • आबादी: 250 से कम।
    • स्थान: भारत, नेपाल
    • खतरा: बाँध निर्माण, प्रदूषण और नदी आवासों की हानि के कारण इनकी आबादी में तीव्र गिरावट आई है।

संदर्भ

केंद्रीय वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि ‘गिग वर्कर्स’ अब आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana-PMJAY) के तहत स्वास्थ्य सेवा लाभ के लिए पात्र होंगे।

गिग वर्कर्स कौन हैं?

  • ‘गिग वर्कर’ वे व्यक्ति होते हैं जो पारंपरिक, दीर्घकालिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों से बाहर अल्पकालिक, अस्थायी कार्यों में संलग्न होते हैं।
    • वे आमतौर पर अनौपचारिक क्षेत्र में कार्य करते हैं, कार्य-दर-कार्य के आधार पर आय अर्जित करते हैं।
  • सामान्य उदाहरणों में प्लेटफॉर्म आधारित कर्मचारी शामिल हैं, जो खाद्य वितरण, जैसे, जोमैटो (Zomato), स्विगी (Swiggy) जैसी सेवाएँ प्रदान करते हैं या अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के लिए कार्य करते हैं।

गिग वर्कर्स के लिए बजट में प्रमुख उपाय

  • प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) में शामिल होना: गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को अब PMJAY स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत शामिल किया जाएगा।
    • यह द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवा व्यय के लिए वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है, जो वार्षिक रूप से 5 लाख रुपये तक शामिल करता है।
  • ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण: गिग वर्कर्स को अनौपचारिक श्रमिकों के लिए एक प्लेटफॉर्म ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत किया जाएगा।
    • इस पहल से गिग वर्कर्स के लिए विभिन्न सरकारी कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँच आसान हो जाएगी।

आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के अंतर्गत लाभ

  • AB-PMJAY प्रतिवर्ष प्रति परिवार 5 लाख रुपये का परिभाषित लाभ प्रदान करती है।
    • यह लगभग सभी माध्यमिक देखभाल और अधिकांश तृतीयक देखभाल प्रक्रियाओं का ध्यान रखेगी।
  • पात्रता मानदंड: AB-PMJAY एक पात्रता-आधारित योजना है, जिसमें SECC डेटाबेस में वंचना मानदंड के आधार पर पात्रता तय की जाती है।
  • शामिल अस्पताल: लाभार्थी सार्वजनिक और सूचीबद्ध निजी सुविधाओं से लाभ उठा सकते हैं।
    • AB-PMJAY को लागू करने वाले राज्यों के सभी सार्वजनिक अस्पतालों को इस योजना के लिए पैनल में शामिल माना जाएगा। 
    • इसमें अस्पताल में भर्ती होने से पहले और बाद के व्यय शामिल हैं।
  • पहले से मौजूद स्थितियाँ: पॉलिसी के पहले दिन से ही कवर की जाएँगी।
  • कैशलेस लाभ: लाभार्थी पूरे देश में कैशलेस लाभ ले सकते हैं।

संदर्भ

केंद्रीय वित्त मंत्री ने हाल ही में घोषणा की कि बीमा क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) की सीमा को 74% से बढ़ाकर 100% कर दिया जाएगा।

बीमा क्षेत्र में FDI वृद्धि

  • उद्देश्य: वर्ष 2047 तक ‘सभी के लिए बीमा’ का लक्ष्य प्राप्त करना।
    • भारत में बीमा क्षेत्र को बढ़ावा देना (वर्तमान में 2023-24 में 3.7% है, जबकि वैश्विक औसत 7% है)।
    • विदेशी निवेश आकर्षित करना, प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि करना और बीमा तक पहुँच में सुधार करना।
  • अपेक्षित लाभ
    • विदेशी निवेश: भारतीय बीमा क्षेत्र में पर्याप्त पूँजी प्रवाह।
    • वैश्विक दिग्गज: वैश्विक बीमा कंपनियों का प्रवेश (दुनिया की शीर्ष 25 बीमा कंपनियों में से 20 भारत में मौजूद नहीं हैं)।
    • स्वायत्तता: विदेशी बीमा कंपनियों को भारत में परिचालन की पूर्ण स्वायत्तता होगी।
    • नवाचार: उन्नत प्रौद्योगिकी, परिष्कृत जोखिम प्रबंधन प्रथाओं और नवीन उत्पादों की शुरुआत।
    • नौकरी सृजन: क्षेत्र में नए रोजगार के अवसर।
    • उपभोक्ताओं को लाभ: उपभोक्ताओं के लिए संभावित रूप से कम प्रीमियम और बेहतर उत्पाद/सेवाएँ।
  • विनियामक परिवर्तन
    • बीमा अधिनियम 1938, जीवन बीमा निगम अधिनियम 1956 तथा बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण अधिनियम 1999 में संशोधन की आवश्यकता है।
    • मसौदा विधेयक जल्द ही संसद में प्रस्तुत किया जाएगा।

भारत में बीमा क्षेत्र का वर्तमान परिदृश्य

  • मार्च 2024 तक, भारत में 73 पंजीकृत बीमाकर्ता तथा पुनर्बीमाकर्ता (26 जीवन बीमाकर्ता, 25 सामान्य बीमाकर्ता और 7 स्टैंडअलोन स्वास्थ्य बीमाकर्ता) हैं।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, अप्रैल-सितंबर 2025 के दौरान सेवा क्षेत्र में $5.7 बिलियन इक्विटी प्रवाह (FDI) में बीमा क्षेत्र का हिस्सा 62% से अधिक था।

भारत का बीमा बाजार

  • प्रीमियम में वृद्धि: वित्त वर्ष 2024 में कुल बीमा प्रीमियम 7.7% बढ़कर ₹11.2 लाख करोड़ पर पहुँच गया।
    • जीवन बीमा प्रीमियम आय: वित्त वर्ष 2024 में ₹8.3 लाख करोड़ (वार्षिक आधार पर 6.1% की वृद्धि)।
    • गैर-जीवन बीमा सकल प्रत्यक्ष प्रीमियम: वित्त वर्ष 2024 में ₹2.9 लाख करोड़ (वार्षिक आधार पर 7.7% की वृद्धि), स्वास्थ्य और मोटर सेगमेंट द्वारा संचालित।
  • बीमा प्रवेश तथा घनत्व
    • प्रवेश: वित्त वर्ष 2023 में 4% से थोड़ा कम होकर वित्त वर्ष 2024 में 3.7% हो (वैश्विक औसत: 7%) गया।
      • जीवन बीमा तक पहुँच: वित्त वर्ष 2024 में 2.8% (वित्त वर्ष 2023 में 3% से कम)।
      • गैर-जीवन बीमा तक पहुँच: 1% पर स्थिर।
    • घनत्व: वित्त वर्ष 2023 में 92 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 95 अमेरिकी डॉलर हो गया।
      • गैर-जीवन बीमा घनत्व: वित्त वर्ष 2024 में 25 अमेरिकी डॉलर (वित्त वर्ष 23 में 22 अमेरिकी डॉलर से ऊपर)।
      • जीवन बीमा घनत्व: 70 अमेरिकी डॉलर पर स्थिर।
      • भारत में बीमा घनत्व वैश्विक मानकों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है।
  • दावे एवं लाभ
    • जीवन बीमा कंपनियों ने वित्त वर्ष 2024 में ₹5.8 लाख करोड़ का लाभ दिया, जिसमें मृत्यु दावों के लिए ₹42,284 करोड़ शामिल हैं।
    • गैर-जीवन बीमा कंपनियों के शुद्ध व्यय दावे: वित्त वर्ष 2024 में ₹1.72 लाख करोड़।

वैश्विक बीमा बाजार की प्रवृत्ति

  • विकास तथा परिवर्तन: स्थिर आर्थिक विस्तार, मजबूत श्रम बाजार तथा बढ़ती वास्तविक आय के कारण वैश्विक बीमा बाजार बढ़ रहा है।
    • वर्ष 2023 में उच्च मुद्रास्फीति और भू-राजनीतिक तनाव जैसी चुनौतियों के बावजूद, इस क्षेत्र में 2.8% की वृद्धि हुई।
  • परिवर्तन के कारक: परिवर्तित व्यापक आर्थिक वातावरण, जलवायु में उतार-चढ़ाव, तकनीकी प्रगति और ग्राहकों की बदलती प्राथमिकताएँ।
    • वैश्विक बीमाकर्ता नवीन तकनीकों को अपना रहे हैं, बाजार की पहुँच का विस्तार कर रहे हैं और ग्राहक-केंद्रित दृष्टिकोणों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

विकास के अवसर

  • अप्रयुक्त बाजार: भारत में बीमा तक पहुँच (3.7%) वैश्विक औसत (7%) से कम है, जो महत्त्वपूर्ण विकास क्षमता को दर्शाता है।
    • टियर-2 और 3 शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना, जहाँ जागरूकता और पहुँच सीमित है।
  • सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना, जैसे:
    • प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY): जीवन बीमा।
    • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): फसल बीमा।
    • प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY): स्वास्थ्य बीमा।
    • नवीन वितरण मॉडल अल्प बीमित ग्राहकों को शामिल करने में मदद कर सकते हैं।

अनुमान एवं रुझान

  • विकास अनुमान: भारत के बीमा क्षेत्र में वार्षिक रूप से 11.1% (वर्ष 2024-2028) की वृद्धि होने का अनुमान है, जिससे यह G20 देशों में सबसे तेजी से बढ़ने वाला बाजार बन जाएगा।
    • मध्यम वर्ग का विस्तार, तकनीकी प्रगति और सहायक विनियामक उपाय विकास को गति देंगे।
  • जीवन बीमा रुझान: सुरक्षा और गारंटीड रिटर्न बचत उत्पादों की ओर परिवर्तन।
    • 40% परिवार अब बीमाकृत हैं, जिसका मुख्य कारण LIC का व्यापक नेटवर्क है।
  • गैर-जीवन बीमा प्रवृत्ति: अगले दो दशकों में इसके प्रीमियम-से-जीडीपी अनुपात के दोगुना होने की उम्मीद है, लेकिन वैश्विक औसत से नीचे रहेगा।

चुनौतियाँ तथा जोखिम

  • उभरते जोखिम: जलवायु परिवर्तन, भू-राजनीतिक अनिश्चितता और बढ़ती जीवन प्रत्याशा।
    • दीर्घायु और पेंशन अंतराल में वृद्धि से संबंधित जोखिम।
  • गैर-वित्तीय जोखिम:, विलंबित दावा निपटान, AI, साइबर सुरक्षा और तृतीय पक्ष का अंतर्संबंध।
    • जोखिम उठाने की क्षमता की स्पष्ट तथा मात्रात्मक समझ की आवश्यकता।
  • नवाचार और दक्षता: बीमाकर्ताओं को तेजी से नवाचार के माध्यम से उभरते जोखिमों से निपटने के लिए मजबूत क्षमताएँ विकसित करनी चाहिए।
    • दक्षता तथा उत्पादकता सुनिश्चित करने के लिए सरलीकरण, मानकीकरण और डिजिटलीकरण पर ध्यान केंद्रित करना।

भारत में बीमा क्षेत्र के लिए आगे की राह

  • ग्रामीण तथा टियर 2/3 शहरों में बीमा की पहुँच बढ़ाना: ग्रामीण तथा अर्द्ध-शहरी आबादी को बीमा के लाभों के बारे में शिक्षित करने के लिए लक्षित जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना।
    • निम्न आय वर्ग की आवश्यकताओं के अनुरूप सरल, वहनीय और समझने में आसान बीमा उत्पाद विकसित करना।
  • व्यापक कवरेज के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना: कवरेज का विस्तार करने और निर्बाध दावा निपटान सुनिश्चित करने के लिए PMJJBY, PMFBY तथा PMJAY जैसी सरकारी योजनाओं के साथ सहयोग करना।
    • सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की पहुँच बढ़ाने के लिए निजी बीमा कंपनियों तथा सरकारी एजेंसियों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करना।
  • दक्षता तथा नवाचार के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाना: जोखिम मूल्यांकन, धोखाधड़ी का पता लगाने और व्यक्तिगत उत्पाद की प्रस्तुति के लिए AI का उपयोग करना।
    • पारदर्शी एवं सुरक्षित दावा निपटान के लिए ब्लॉकचेन को लागू करना।
  • उभरते जोखिमों और चुनौतियों का समाधान करना: जलवायु संबंधी जोखिमों के लिए पैरामीट्रिक बीमा (जैसे- किसानों के लिए फसल बीमा) जैसे अभिनव उत्पाद विकसित करना।
    • संवेदनशील ग्राहक डेटा की सुरक्षा और धोखाधड़ी को रोकने के लिए साइबर सुरक्षा उपायों को मजबूत करना।
  • विनियामक ढाँचे और उपभोक्ता संरक्षण को मजबूत करना: नवाचार तथा प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करने के लिए विनियामक प्रक्रियाओं को सरल और मानकीकृत करना।
    • उपभोक्ता शिकायतों के समय पर समाधान के लिए मजबूत तंत्र स्थापित करना, विशेष रूप से गलत बिक्री और विलंबित दावों से संबंधित।

निष्कर्ष

FDI में 100% की वृद्धि और बीमा क्षेत्र में लक्षित सुधार भारत में पहुँच, नवाचार और वित्तीय समावेशन को अत्यधिक बढ़ावा दे सकते हैं। प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर, ग्रामीण पहुँच का विस्तार करके और उभरते जोखिमों को संबोधित करके, भारत वर्ष 2047 तक “सभी के लिए बीमा” के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।

संदर्भ

वित्त मंत्री ने वर्ष 2025-2026 के केंद्रीय बजट में छह वर्ष की अवधि हेतु ‘दलहन आत्मनिर्भरता मिशन’ की शुरुआत की घोषणा की है।

दलहन आत्मनिर्भरता मिशन 

  • बजट आवंटन: मिशन के लिए ₹1,000 करोड़ आवंटित।

  • उद्देश्य
    • दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
    • MSP आधारित खरीद तथा कटाई के बाद भंडारण समाधान प्रदान करना।
    • आयात पर निर्भरता कम करना।

मिशन की प्रमुख विशेषताएँ

  • MSP आधारित खरीद: भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) तथा भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ (NCCF) उन किसानों से दालें खरीदेंगे, जो पंजीकरण तथा समझौते करते हैं।
    • उद्देश्य: किसानों के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करना तथा बाजार मूल्यों को स्थिर करना।
  • फसल के बाद भंडारण: फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने तथा भंडारण के बुनियादी ढाँचे में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना।
  • लक्षित फसलें
    • तुअर/अरहर: पारंपरिक रूप से लंबी अवधि की फसल (250-270 दिन), अब घटकर 150-180 दिन रह गई है तथा उपज भी कम (20 क्विंटल/हेक्टेयर से घटकर 15-16 क्विंटल/हेक्टेयर) हो गई है।
    • उड़द: काला चना, एक प्रमुख दलहन फसल।
    • मसूर: लाल मसूर, जिसका हाल के वर्षों में रिकॉर्ड आयात हुआ है।

तुअर/अरहर 

  • तुअर/अरहर एक फलीदार पौधा है, जो भारत में मुख्य भोजन है। 
  • इसे ‘पिजन पी’ तथा लाल चना के नाम से भी जाना जाता है।
  • विशेषताएँ
    • जलवायु: उचित जल निकासी वाली मृदा वाले अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सबसे अच्छी तरह से विकसित होती है।
    • तापमान: वर्षा ऋतु (जून से अक्टूबर) में 26 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस तथा वर्षा के बाद (नवंबर से मार्च) मौसम में 17 डिग्री सेल्सियस से 22 डिग्री सेल्सियस के मध्य तापमान अनुकूल होता है।
    • वर्षा: शुरुआती आठ सप्ताह के लिए आर्द्र परिस्थितियों तथा इसके फूल और फली के विकास चरण के दौरान शुष्क परिस्थितियों के साथ 600-650 मिमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
    • नाइट्रोजन स्थिरीकरण: अपनी नाइट्रोजन स्थिरीकरण क्षमताओं के लिए जानी जाती है, जो मृदा की उर्वरता में सुधार करता है।
    • उपयोग: मुख्य रूप से ‘दाल’ के रूप में खाया जाता है।
    • पोषण: आयरन, आयोडीन और आवश्यक अमीनो एसिड से भरपूर।
  • भारत: विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक।

उड़द दाल 

  • उड़द दाल, जिसे काले चने के नाम से भी जाना जाता है, जो भारतीय व्यंजनों का मुख्य हिस्सा है।
  • यह प्रोटीन तथा विटामिन का एक समृद्ध स्रोत है और इसका उपयोग मीठे एवं लवणीय दोनों तरह के व्यंजनों में किया जाता है।
  • विशेषताएँ
    • जलवायु: गर्म तथा आर्द्र परिस्थितियाँ आदर्श हैं, जो इसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्र की फसल बनाती हैं।
    • तापमान: 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान पर इसकी वृद्धि सबसे अच्छी होती है, 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर का तापमान इसके उत्पादन में बाधा उत्पन्न करता है।
    • मृदा का प्रकार: उचित जल निकासी वाली दोमट या चिकनी मिट्टी को प्राथमिकता दी जाती है, जिसमें जलग्रहण बनाए रखने की अच्छी क्षमता होती है।
    • वर्षा: इष्टतम वर्षा सीमा 600-1000 मिमी. प्रतिवर्ष है।
    • मौसम: मुख्य रूप से खरीफ मौसम (मानसून के महीनों) के दौरान कृषि की जाती है।
  • भारत उड़द का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है।

मसूर की दाल 

मसूर, जिसे वैज्ञानिक रूप से ‘लेंस कलिनारिस मेडिकस’ की उपप्रजाति ‘कलिनारिस’ के नाम से जाना जाता है, एक अत्यधिक पौष्टिक दलहन फसल है, जिसका भारत तथा विश्व स्तर पर व्यापक रूप से सेवन किया जाता है।

  • इसे आमतौर पर मसूर या मलका (बोल्ड-सीडेड किस्म) के रूप में जाना जाता है।
  • विशेषताएँ
    • उत्पादन: मसूर की दाल का उत्पादन तुर्किए से लेकर दक्षिण ईरान तक फैले क्षेत्र में होता है।
    • जलवायु: मसूर की दाल का उत्पादन ठंडी जलवायु पर निर्भर कर्ता है तथा यह ठंड और कठोर सर्दियों की स्थितियों को सहन कर सकती है।
    • इष्टतम तापमान: विकास के दौरान 18-30 डिग्री सेल्सियस, परिपक्वता के समय गर्म तापमान की आवश्यकता होती है।
    • मिट्टी: इसके उत्पादन के लिए अच्छी जल निकासी वाली, उदासीन pH वाली दोमट मृदा सबसे अनुकूल है।
      • अम्लीय मृदाओं के लिए अनुपयुक्त।
    • पोषण: दालें प्रोटीन (24-26%), कार्बोहाइड्रेट (57-60%), आयरन, फॉस्फोरस और फाइबर से भरपूर होती हैं, जो उन्हें अत्यधिक पौष्टिक तथा सुपाच्य खाद्य स्रोत बनाती हैं। 
    • उपयोग
      • मानव उपभोग: मुख्य रूप से दाल, स्नैक्स और सूप के रूप में सेवन किया जाता है। यह सुपाच्य होती हैं और प्रायः रोगियों के लिए अनुशंसित हैं।
      • मवेशी चारा: सूखे पत्ते, तने और खाली फली का उपयोग मवेशियों के लिए पौष्टिक चारे के रूप में किया जाता है।
  • सबसे बड़ा उत्पादक: कनाडा।

दालों के आयात का रुझान

  • वर्ष 2017- 2018 से वर्ष 2022-23: आयात में गिरावट आई, जो वर्ष 2022-2023 में 24.96 लाख टन के निचले स्तर पर पहुँच गया।
    • इस अवधि में दालों, विशेषकर मटर (पीले/सफेद मटर) तथा चना (चना) के मामले में सापेक्षिक आत्मनिर्भरता देखी गई।
  • वर्ष 2023-24: सूखे के कारण आयात बढ़कर 47.38 लाख टन (3.75 बिलियन डॉलर) हो गया।
    • मसूर का आयात रिकॉर्ड 16.76 लाख टन पर पहुँच गया तथा मटर का आयात भी बढ़ा।
  • अप्रैल-नवंबर वर्ष 2024: भारत को दालों का आयात 3.28 बिलियन डॉलर रहा, जो वर्ष 2023 की इसी अवधि के 2.09 बिलियन डॉलर से 56.6% अधिक है।
  • वर्ष 2024- 2025 (वर्तमान वित्तीय वर्ष): आयात पहले ही 40 लाख टन तक पहुँच चुका है, जिसमें अरहर का उत्पादन पहली बार 10 लाख टन को पार कर गया है तथा मटर का आयात सात वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया है।

  • वर्ष 2024-25 के लिए अनुमान: इस दर पर, वित्तीय वर्ष के लिए आयात 5.9 बिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है, जो वर्ष 2016- 2017 में 4.24 बिलियन डॉलर के पिछले सर्वकालिक उच्च स्तर को पार कर जाएगा।

बढ़ते आयात के प्रमुख कारण

  • घरेलू कमी: वर्ष 2023-24 में सूखे के कारण घरेलू उत्पादन में गिरावट आई, जिससे आयात पर निर्भरता बढ़ गई।
  • नीतिगत निर्णय
    • शुल्क-मुक्त आयात: सरकार ने अरहर, मसूर तथा उड़द जैसी दालों के शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति दी, जिससे घरेलू उत्पादन हतोत्साहित हुआ।
  • वैश्विक बाजार पर निर्भरता: भारत मोजांबिक, तंजानिया, म्याँमार, कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से दालों का आयात करता है। जैसे-
    • अरहर: मुख्य रूप से मोजांबिक, तंजानिया और म्याँमार से आयात की जाती है।
    • मसूर: कनाडा, रूस और तुर्किए से आयात की जाती है।
    • मटर: कनाडा, रूस और तुर्किए से आयात की जाती है।

आयात वृद्धि का प्रभाव

  • आर्थिक बोझ: बढ़ते आयात से विदेशी मुद्रा का बहिर्वाह होता है तथा व्यापार घाटा बढ़ता है।
  • किसानों का हतोत्साहन: शुल्क मुक्त आयात तथा कम घरेलू कीमतें किसानों को दाल उगाने से हतोत्साहित करती हैं।
  • खाद्य सुरक्षा चिंताएँ: आयात पर अत्यधिक निर्भरता भारत को वैश्विक मूल्य उतार-चढ़ाव और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के प्रति संवेदनशील बनाती है।

सरकार की प्रतिक्रिया

  • दलहन आत्मनिर्भरता मिशन
    • इसका उद्देश्य अरहर, उड़द तथा मसूर के घरेलू उत्पादन को बढ़ाकर आयात को कम करना है।
    • MSP आधारित खरीद तथा कटाई के बाद के बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित करना।
  • नीतिगत सुधार: घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए आयात शुल्क बहाल करने की आवश्यकता है।
  • एमएसपी खरीद: चना तथा मूँग की एमएसपी आधारित खरीद में उल्लेखनीय वृद्धि।
  • अनुसंधान तथा विकास: कम अवधि वाली दाल, अधिक उपज देने वाली और जलवायु अनुकूल किस्मों के विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
    • वर्ष भर खेती के लिए प्रकाश-ताप-असंवेदनशील किस्मों पर जोर दिया जाएगा।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (National Food Security Mission- NFSM): क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से चावल, गेहूं और दालों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए इसे वर्ष 2007-08 में शुरू किया गया था।

आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में चुनौतियाँ

  • कृषि संबंधी सीमाएँ
    • अरहर: अवधि में कमी (150-180 दिन) के बावजूद, उपज कम (15-16 क्विंटल/हेक्टेयर) बनी हुई है।
    • इसकी खेती मराठवाड़ा-विदर्भ (महाराष्ट्र) तथा उत्तरी कर्नाटक जैसे वर्षा आधारित क्षेत्रों तक ही सीमित है, जहाँ किसानों के पास वैकल्पिक फसल के कम विकल्प हैं।
  • नीति अस्पष्टता
    • शुल्क-मुक्त आयात: सरकार ने अरहर और अन्य दालों के शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति दी है, जिससे घरेलू उत्पादन हतोत्साहित होता है।
  • जलवायु भेद्यता
    • दालें प्रायः वर्षा आधारित क्षेत्रों में उगाई जाती हैं, जिससे वे सूखे और जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रति संवेदनशील हो जाती हैं।
  • अन्य फसलों से प्रतिस्पर्द्धा
    • अधिक लाभ के कारण किसान दलहन की अपेक्षा गन्ना और अनाज जैसी अधिक जल खपत वाली फसलों को प्राथमिकता देते हैं।

आगे की राह 

  • सँकर विकास: 140-150 दिनों में पकने वाली अरहर की सँकर किस्मों की आवश्यकता है, जिनकी उपज 18-20 क्विंटल/हेक्टेयर हो।
  • नीति सुधार: घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए आयात शुल्क बहाल करना।
    • वर्षा आधारित क्षेत्रों में दलहन की खेती के लिए सब्सिडी तथा बीमा प्रदान करना।
  • किसान जागरूकता: दलहन को एक सतत् और लाभदायक फसल विकल्प के रूप में बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

दलहन आत्मनिर्भरता मिशन आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। हालाँकि, दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए कृषि संबंधी चुनौतियों, नीतिगत अस्पष्टताओं और जलवायु संबंधी कमजोरियों पर ध्यान देना आवश्यक है। इस मिशन की सफलता प्रभावी कार्यान्वयन, तकनीकी प्रगति और किसान-केंद्रित नीतियों पर निर्भर करेगी।

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