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Feb 06 2025

संदर्भ

केंद्रीय बजट 2025 में कई उपायों की घोषणा की गई है, जिनका उद्देश्य भारत के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) को मजबूत करना है।

निवेश (रु. करोड़ में) कारोबार (रु. करोड़ में)
मौजूदा संशोधित मौजूदा संशोधित
अति लघु उद्योग 1 2.5 5 10
लघु उद्यम 10 25 50 100
मध्यम उद्यम 50 125 250 500

सुधारों के बारे में मुख्य बिंदु

  • MSMEs के लिए वर्गीकरण मानदंड को संशोधित किया गया है:-
    • सभी MSMEs के वर्गीकरण के लिए निवेश एवं टर्नओवर सीमा को क्रमशः 2.5 तथा 2 गुना तक बढ़ाया जाएगा, ताकि MSMEs को पैमाने की उच्च दक्षता, तकनीकी उन्नयन एवं पूँजी तक बेहतर पहुँच हासिल करने में मदद मिल सके।
  • गारंटी कवर के साथ ऋण उपलब्धता में वृद्धि
    • ऋण तक पहुँच में सुधार के लिए क्रेडिट गारंटी कवर बढ़ाया जाएगा। 
      • MSME: यह 5 करोड़ से बढ़कर 10 करोड़ हो जाएगा, जिससे अगले 5 वर्षों में 1.5 लाख करोड़ का अतिरिक्त ऋण मिलेगा।
      • स्टार्टअप: 10 करोड़ से बढ़कर 20 करोड़ हो जाएगा।
        • आत्मनिर्भर भारत के लिए महत्त्वपूर्ण 27 फोकस क्षेत्रों में ऋण के लिए गारंटी शुल्क को घटाकर 1 प्रतिशत किया जा रहा है।
      • निर्यातक MSMEs: 20 करोड़ तक के टर्म लोन के लिए इसमें बढोतरी होगी।
  • सूक्ष्म उद्यमों के लिए क्रेडिट कार्ड
    • उद्यम पोर्टल पर पंजीकृत सूक्ष्म उद्यमों के लिए 5 लाख की सीमा वाले अनुकूलित क्रेडिट कार्ड पेश किए जाएँगे। 
      • पहले वर्ष में ऐसे 10 लाख कार्ड जारी किए जाएँगे।
  • स्टार्टअप्स के लिए निधि का कोष
    • विस्तारित दायरे एवं अन्य 10,000 करोड़ के नए योगदान के साथ एक नया फंड ऑफ फंड्स स्थापित किया जाएगा।
      • उदाहरण: 10,000 करोड़ के सरकारी योगदान के साथ स्थापित फंड ऑफ फंड्स द्वारा समर्थित स्टार्टअप्स के लिए वैकल्पिक निवेश फंड (AIFs) को 91,000 करोड़ से अधिक की प्रतिबद्धताएँ प्राप्त हुई हैं। 
    • ‘डीप टेक फंड ऑफ फंड्स’: इस पहल के एक हिस्से के रूप में अगली पीढ़ी के स्टार्टअप को उत्प्रेरित करने के लिए ‘डीप टेक फंड ऑफ फंड्स’ की भी खोज की जाएगी।
  • उद्यमियों को सशक्त बनाना 
    • अगले 5 वर्षों के दौरान 5 लाख महिलाओं, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के पहली बार उद्यमियों को 2 करोड़ तक का सावधि ऋण प्रदान करने के लिए एक नई योजना शुरू की जाएगी।
  • निर्यात प्रोत्साहन मिशन 
    • वाणिज्य, MSME एवं वित्त मंत्रालयों द्वारा संयुक्त रूप से संचालित क्षेत्रीय तथा मंत्रिस्तरीय लक्ष्यों के साथ एक निर्यात संवर्द्धन मिशन स्थापित किया जाएगा।
    • मिशन निर्यात ऋण तक आसान पहुँच, सीमा पार फैक्टरिंग समर्थन एवं विदेशी बाजारों में गैर-टैरिफ उपायों से निपटने के लिए MSMEs को समर्थन की सुविधा प्रदान करेगा।
  • फोकस क्षेत्र: रोजगार एवं उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए दो फोकस उद्योगों में लक्षित नीतिगत उपाय लागू किए जाएँगे।
    • जूते एवं चमड़ा क्षेत्रों के लिए फोकस उत्पाद योजना: यह योजना चमड़े एवं सामान्य जूते दोनों के लिए डिजाइन क्षमता, घटक निर्माण तथा उत्पादन मशीनरी का समर्थन करके उत्पादकता, गुणवत्ता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाएगी।
      • उद्देश्य: 2.2 मिलियन लोगों के लिए रोजगार उत्पन्न करना, 4 लाख करोड़ रुपये का कारोबार एवं 1.1 लाख करोड़ रुपये का निर्यात करना।
    • खिलौना क्षेत्र का विकास: सरकार खिलौनों के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना पर आधारित, ‘मेड इन इंडिया’ ब्रांड के तहत क्लस्टर विकसित करने, कौशल को मजबूत करने एवं सतत्, अभिनव तथा उच्च गुणवत्ता वाले खिलौना विनिर्माण के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिए एक समर्पित योजना की योजना बना रही है।

भारत में MSME क्षेत्र

  • वर्ष 2022-23 में भारत की GDP में MSME सेक्टर की हिस्सेदारी 30.1% थी।
  • भारत में 10 मिलियन से अधिक पंजीकृत MSME हैं, जो लगभग 75 मिलियन लोगों को रोजगार देते हैं।
  • MSME क्षेत्र देश के विनिर्माण उत्पादन में 36 प्रतिशत का योगदान देता है एवं भारत के निर्यात में इसका योगदान 45 प्रतिशत है।
  • बजट 2025-2026 
    • MSME सेक्टर को विकास का दूसरा इंजन माना गया है।
    • केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय को 23,168 करोड़ रुपये (वर्ष 2024-25 की तुलना में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि) आवंटित किया गया है।
    • प्रमुख योजना के लिए आवंटन 
      • खादी, ग्राम एवं कॉयर उद्योग: आवंटन 9 प्रतिशत बढ़ाकर 1,532 करोड़ रुपये किया गया।
      • प्रौद्योगिकी उन्नयन एवं गुणवत्ता प्रमाणन: फंडिंग 74.42 करोड़ रुपये पर अपरिवर्तित है।
      • प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) एवं अन्य ऋण सहायता योजनाएँ: आवंटन 1.5 प्रतिशत घटाकर 11,954.42 करोड़ रुपये किया गया।
  • भारत के विकास पथ में MSMEs क्षेत्र का महत्त्व 
    • निर्यात पॉवरहाउस: वर्ष 2024-25 में MSMEs से निर्यात बढ़कर ₹12.39 लाख करोड़ हो गया, जो 45.73% का योगदान देता है, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है एवं वैश्विक व्यापार मजबूत होता है। 
      • निर्यात करने वाले MSMEs की कुल संख्या भी वर्ष 2020-21 में 52,849 से बढ़कर वर्ष 2024-25 में 1,73,350 हो गई है।
    • GDP वृद्धि: भारत की GDP में MSMEs द्वारा सकल मूल्य वर्द्धित (GVA) वर्ष 2017-18 में 29.7% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 30.1% हो गया।
    • रोजगार सृजन: भारत में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs ) ने जुलाई 2024 तक 20 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार दिया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 66% की वृद्धि है।
    • महिला सशक्तीकरण: उद्यम पंजीकरण पोर्टल पर पंजीकृत 20.5% MSMEs का नेतृत्व महिलाओं द्वारा किया जाता है, जो उद्यम-पंजीकृत MSMEs द्वारा उत्पन्न कुल रोजगार का 18.73% है।
      • MSMEs में कार्यरत 4.54 करोड़ महिलाएँ हैं। 
    • उद्यमिता: MSMEs ने नवाचार एवं लागत प्रभावी व्यवसाय को अपना मुख्य मॉडल बनाकर देश में उद्यमशीलता संस्कृति को बढ़ावा दिया है।

संदर्भ

केंद्रीय बजट 2025- 2026 में कुल केंद्रीय बजट में जेंडर बजट आवंटन में काफी बढोतरी देखी गई है।

जेंडर बजट संबंधी आँकड़े

  • आवंटन में वृद्धि: कुल केंद्रीय बजट के प्रतिशत के रूप में जेंडर बजट आवंटन वित्त वर्ष 2025-26 में 8.86% तक बढ़ गया, जबकि वित्त वर्ष 2024-25 में यह 6.8% था।
  • कुल आवंटन: वित्त वर्ष 2025-26 में महिलाओं तथा लड़कियों के कल्याण के लिए 4.49 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो पिछले वित्त वर्ष 2024-25 में 3.27 लाख करोड़ रुपये से 37.25% अधिक है।

जेंडर बजट विवरण (GBS) घटक 

  • भाग A (100% महिला-विशिष्ट योजनाएँ): 17 मंत्रालयों/विभागों और 5 केंद्रशासित प्रदेशों के लिए ₹1,05,535.40 करोड़ (कुल GBS आवंटन का 23.50%) का आवंटन किया गया।
  • भाग B (महिलाओं के लिए 30-99% आवंटन): 37 मंत्रालयों/विभागों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों के लिए ₹3,26,672 करोड़ (कुल GBS आवंटन का 72.75%)।
  • भाग C (महिलाओं के लिए 30% से कम आवंटन): 22 मंत्रालयों/विभागों के लिए ₹16,821.28 करोड़ (कुल GBS आवंटन का 3.75%)।

जेंडर बजट के बारे में

  • जेंडर बजट, महिलाओं को मुख्यधारा में लाने का एक साधन है, जो बजट को संपूर्ण नीति प्रक्रिया में लैंगिक दृष्टिकोण लागू करने के लिए प्रवेश बिंदु के रूप में प्रयोग करता है।
  • जेंडर बजट कोई पृथक बजट नहीं है और न ही यह महिलाओं तथा पुरुषों पर समान खर्च से संबंधित है।
    • जेंडर बजट में सरकार की विभिन्न आर्थिक नीतियों का लैंगिक परिप्रेक्ष्य से विश्लेषण किया जाता है।

  • कार्य: यह केंद्रीय बजट का एक अलग विवरण (अलग बजट नहीं) प्रस्तुत करता है, यह महिलाओं और लड़कियों के लिए लक्षित बजटीय आवंटन और व्यय का अनुमान प्रदान करता है।
    • इसमें लैंगिक परिप्रेक्ष्य से सरकार की विभिन्न आर्थिक नीतियों का विश्लेषण किया गया है।

  • जेंडर बजटिंग (GB) के पीछे तर्क
    • समानता और दक्षता: नागरिकों के बीच समानता को बढ़ावा देने के मूल सिद्धांत के अलावा, जेंडर बजटिंग दक्षता लाभ के माध्यम से अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचा सकता है।
    • लैंगिक  आधार पर प्रणालीगत अंतर को ध्यान में रखना: पुरुषों और महिलाओं की बजटीय नीतियों के लिए प्रायः अलग-अलग प्राथमिकताएँ होती हैं और लैंगिक आधार पर संवेदनशील बजट, महिलाओं की चिंताओं को लैंगिक नजरिए से संबोधित करने में काफी सहायक सिद्ध हो सकता है।
  • अपेक्षाएँ: प्रभावी ढंग से लागू किए जाने पर, जेंडर बजट यह उजागर करने में मदद करता है कि कैसे अनजाने में लैंगिक असमानताएँ सार्वजनिक नीतियों में अंतर्निहित हो गई हैं, ताकि संसाधनों को अधिक समान रूप से आवंटित किया जा सके।
    • इससे बजट उपायों को प्राथमिकता देने में भी मदद मिलती है, जो प्रमुख लैंगिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होंगे।

महिला-नेतृत्व वाले विकास तथा महिला-केंद्रित विकास के बीच अंतर

महिला-नेतृत्व विकास और महिला-केंद्रित विकास दोनों ही विकास के दृष्टिकोण हैं, जो महिलाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन वे अपने फोकस और दृष्टिकोण में भिन्न हैं:

  • महिला-नेतृत्व विकास: यह महिलाओं को अग्रणी भूमिका निभाने और समुदाय या समाज की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक प्रगति को आकार देने में सक्रिय रूप से भाग लेने पर केंद्रित है।
    • इसके कुछ लक्ष्यों में शिक्षा, कौशल विकास और उद्यमिता को बढ़ावा देना तथा लैंगिक डिजिटल विभाजन को कम करना शामिल है।
  • महिला-केंद्रित विकास: यह महिलाओं को समाज में एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में स्वीकार करने और उन्हें विकास कार्यक्रमों में एकीकृत करने पर केंद्रित है।
    • इसके कुछ लक्ष्यों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार, कठिनाई को कम करना और क्षमता निर्माण शामिल हैं।

जेंडर बजट का विकास

  • इसे पहली बार वर्ष 1984 में ऑस्ट्रेलिया में महिलाओं पर राष्ट्रीय बजट के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए प्रस्तुत किया गया था और इस दृष्टिकोण को कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और फिलीपींस सहित अन्य देशों द्वारा अपनाया गया था।
  • संयुक्त राष्ट्र बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन: वर्ष 1995 में, इसने सरकारी बजट प्रक्रियाओं में लैंगिक दृष्टिकोण को एकीकृत करने का आह्वान किया।

  • संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य (SDG): वर्ष 2015 में, इसने लैंगिक समानता (SDG5) के लिए बजट आवंटन को ट्रैक करने के लिए पर्याप्त संसाधनों और उपकरणों का आह्वान किया।
  • अदीस अबाबा एक्शन एजेंडा फॉर डेवलपमेंट: वर्ष 2015 में, इसने लैंगिक समानता के लिए संसाधन आवंटन को ट्रैक करने और जेंडर बजट के लिए क्षमता को मजबूत करने के महत्त्व को मान्यता दी।
  • वूमेन-20 (W20) (G20 के लिए एक आधिकारिक जुड़ाव समूह): वर्ष 2014 में ऑस्ट्रेलिया में स्थापित, और इसने आधिकारिक तौर पर वर्ष 2015 में तुर्की में परिचालन शुरू किया।
    • वर्ष 2020 में, इसने जेंडर बजट में अधिक निवेश का आह्वान किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोविड-19 महामारी से उबरने में राजकोषीय नीतियाँ लैंगिक समानता को बढ़ावा दे।
  • सहस्राब्दि विकास लक्ष्य (MDG): भारत सरकार जिन आठ MDG की हस्ताक्षरकर्ता है, उनमें ‘लक्ष्य 3: लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और महिलाओं को सशक्त बनाना’ शामिल है।

भारत में जेंडर बजट

  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD) ने वर्ष 2004 में जेंडर बजट को महिला सशक्तीकरण के एक साधन के रूप में मान्यता दी थी। 
  • वित्त मंत्रालय ने जनवरी 2005 तक सभी मंत्रालयों में जेंडर बजटिंग सेल की स्थापना का आदेश दिया था।
    • जेंडर बजटिंग प्रकोष्ठों पर चार्टर वर्ष 2007 में जारी किया गया था।
  • CEDAW अनुसमर्थन: भारत ने वर्ष 1993 में महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW) की पुष्टि की है।
  • पहला जेंडर बजट स्टेटमेंट (GBS) वर्ष 2005-06 के केंद्रीय बजट में प्रकाशित किया गया था।
  • विभिन्न हितधारक: जेंडर बजटिंग में कई अलग-अलग हितधारक शामिल हो सकते हैं।
    • केंद्रीय स्तर: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD)।
    • राज्य स्तर: महिला एवं बाल विकास, समाज कल्याण, वित्त और योजना विभाग।
    • जिला स्तर: महिला सशक्तिकरण केंद्र (HEW) कम-से-कम एक लैंगिक आधारित विशेषज्ञ के साथ जेंडर बजट का समन्वय करता है।
  • भूमिका: जेंडर बजट ढाँचे ने लैंगिक-तटस्थ मंत्रालयों को महिलाओं के लिए नए कार्यक्रम डिजाइन करने में मदद की है।
    • पिछले दो दशकों में, भारत का जेंडर बजट स्टेटमेंट (GBS) एक व्यापक दस्तावेज के रूप में विकसित हो गया है जो स्पष्ट, पूर्वानुमानित प्रारूप में मद-वार आवंटन और व्यय का विवरण प्रदान करता है।

जेंडर बजट का महत्त्व 

  • लैंगिक समानता को बढ़ावा: जेंडर बजट यह सुनिश्चित करता है, कि वित्तीय आवंटन लैंगिक असमानताओं को संबोधित करते हैं, लैंगिक समानता पर सतत् विकास लक्ष्य (SDG)-5 का समर्थन करते हैं।
  • सूचित नीति विकल्प: जेंडर बजट नीति निर्माताओं को नीतियों के लैंगिक प्रभाव पर विचार करने में मदद करता है, यह सुनिश्चित करता है कि महिलाओं की चिंताओं को वित्तीय नियोजन में एकीकृत किया जाए।
  • संसाधनों का बेहतर उपयोग: एक अच्छी तरह से डिजाइन किया गया जेंडर बजट ढाँचा शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा में लैंगिक अंतर को कम करने के लिए संसाधनों के इष्टतम उपयोग को सक्षम बनाता है।
  • कानूनी ढाँचों को मजबूत करना: यह कार्यान्वयन के लिए वित्तीय सहायता सुनिश्चित करके आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 और कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 जैसे महिला-विशिष्ट कानूनों के साथ संरेखित करता है।
  • व्यापक सामाजिक प्रभाव: G-20 देशों पर IMF वर्किंग पेपर सहित अध्ययनों से पता चला है कि जेंडर बजट, लैंगिक-संवेदनशील प्रोग्रामिंग की ओर ले जाता है, जो आर्थिक विकास तथा सामाजिक विकास को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
  • लैंगिक-तटस्थ बजटिंग की हानियों को संबोधित करना: पारंपरिक बजटिंग में अक्सर लैंगिक आधारित प्रभावों की अनदेखी की जाती है। जेंडर बजट यह सुनिश्चित करता है कि सभी प्रमुख बजटीय आवंटन महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं और अर्थव्यवस्था में उनकी भूमिकाओं पर विचार करें।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: जेंडर बजट महिला-केंद्रित योजनाओं के लिए निधि आवंटन में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है, कार्यान्वयन और प्रभाव आकलन में जवाबदेही सुनिश्चित करता है।

भारत में जेंडर बजटिंग की चुनौतियाँ

  • आवंटन में अस्पष्टताएँ: निधि वर्गीकरण में विसंगतियाँ मौजूद हैं। उदाहरण के लिए, जेंडर बजट के भाग-B में मनरेगा के लिए कम आवंटन किया गया है, जबकि कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी 59.3% से अधिक है।
  • PMAY-G विसंगति: हालाँकि भाग-A (महिलाओं के लिए 100% आवंटन) के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है, लेकिन केवल 23% आवास महिलाओं को आवंटित किए गए हैं।
  • चुनिंदा मंत्रालयों में निधियों का संकेंद्रण: जेंडर बजट का लगभग 90% कुछ मंत्रालयों में केंद्रित है, जिससे प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढाँचा और उद्यमिता जैसे विविध क्षेत्रों में इसकी पहुँच सीमित हो जाती है।
  • दीर्घकालिक योजनाएँ: आयुष्मान भारत और आवास योजना जैसे कार्यक्रम, हालाँकि लाभकारी हैं, लेकिन मिशन शक्ति और महिला शिक्षा पहल जैसे तत्काल प्रभाव वाले कार्यक्रमों से निधियों को हटा देते हैं।
  • कमजोर निगरानी और मूल्यांकन तंत्र: लैंगिक-पृथक डेटा की कमी नीति प्रभावशीलता के सटीक माप को बाधित करती है।
  • संयुक्त राष्ट्र की संस्तुति: क्षेत्रीय निगरानी को मजबूत करने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD) और वित्त मंत्रालय के बीच सहयोग बढ़ाने का आह्वान।
  • तकनीकी और डेटा-संबंधी चुनौतियाँ: बिना विस्तृत डेटा के, जेंडर बजट की प्रभावशीलता को ट्रैक करना मुश्किल है।
  • नीति आयोग की वर्ष 2022 की रिपोर्ट: केंद्र द्वारा प्रायोजित 119 योजनाओं में से केवल 62 में ही जेंडर बजट का उपयोग किया जाता है, जो असंगत कार्यान्वयन को उजागर करता है।
  • अंडर-रिपोर्टिंग और ओवर-रिपोर्टिंग मुद्दे
    • ओवर-रिपोर्टिंग उदाहरण: PM रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) ने स्पष्ट औचित्य के बिना जेंडर बजट के तहत अपने फंड का 40% आवंटित किया।
  • कम रिपोर्टिंग का उदाहरण: मनरेगा में अनिवार्य है कि इसके आवंटन का कम-से-कम एक-तिहाई (33%) हिस्सा महिलाओं के लिए आरक्षित होना चाहिए, हालाँकि महिलाओं की भागीदारी इस सीमा से अधिक हो गई है, जिसमें लगभग 50% श्रमिक महिलाएँ हैं।
    • जेंडर बजट स्टेटमेंट ने वित्त वर्ष 2026 में महिलाओं के लिए कुल मनरेगा बजट का 47% हिस्सा रिपोर्ट किया है।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति और जवाबदेही की कमी: जेंडर बजट के लिए कोई अनिवार्य न्यूनतम आवंटन मौजूद नहीं है, जिसके कारण असंगत समर्थन और अपर्याप्त निगरानी होती है।

आगे की राह

  • संस्थागत तंत्र को मजबूत करना: केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सभी मंत्रालयों और विभागों में जेंडर बजट स्टेटमेंट के निर्माण को अनिवार्य बनाना।
    • नीति आयोग को मंत्रालयों और राज्यों में जेंडर बजटिंग के कार्यान्वयन की निगरानी और मूल्यांकन में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
  • डेटा संग्रह और विश्लेषण में सुधार करना: महिलाओं और लड़कियों की आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से समझने के लिए जेंडर-विभाजित डेटा एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने में निवेश करना।
    • सभी नीतियों और कार्यक्रमों के लिए जेंडर प्रभाव आकलन करना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे जेंडर असमानताओं को प्रभावी ढंग से संबोधित करते हैं।
  • आवंटन बढ़ाना और उचित उपयोग सुनिश्चित करना: लगातार जेंडर गैप को दूर करने के लिए कुल केंद्रीय बजट में जेंडर बजटिंग का हिस्सा बढ़ाकर कम-से-कम 10-12% करना।
    • यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसका उपयोग प्रभावी तरीके से हो रहा है और लक्षित लाभार्थियों तक पहुँच रहे हैं, निधियों के उपयोग की निगरानी करना।
  • जेंडर बजट के दायरे का विस्तार करना: प्रत्येक सरकारी पहल में लैंगिक-संवेदनशील आवंटन सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी ढाँचे, कृषि और ग्रामीण विकास सहित सभी क्षेत्रों में जेंडर बजटिंग को एकीकृत करना।
    • यह सुनिश्चित करना कि आदिवासी महिलाओं, ग्रामीण महिलाओं और दिव्यांग महिलाओं जैसी वंचित वर्ग की महिलाओं को विकास कार्यक्रमों में शामिल किया जाए।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना: धन आवंटित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पद्धतियों का सार्वजनिक रूप से खुलासा करके आवंटन और रिपोर्टिंग प्रक्रियाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
    • आवंटित निधियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने और आवश्यक समायोजन करने के लिए मंत्रालयों में लैंगिक  ऑडिट करना।
  • कानूनी और नीतिगत ढाँचे को मजबूत करना: सभी मंत्रालयों और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में लैंगिक-आधारित बजटिंग को मुख्यधारा में लाने के लिए जेंडर बजटिंग अधिनियम लागू करना।
    • यह सुनिश्चित करना कि जेंडर बजटिंग सतत् विकास लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता) और अन्य संबंधित लक्ष्यों के साथ संरेखित हो।
  • महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देना: महिलाओं की उद्यमिता और कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए स्टैंड-अप इंडिया और मिशन शक्ति जैसे कार्यक्रमों का विस्तार करना।
    • महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसायों के लिए ऋण और बाजार संपर्क तक पहुँच प्रदान करना।

निष्कर्ष 

एक मजबूत जेंडर बजटिंग ढाँचा भारत को लैंगिक समानता और महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास को प्राप्त करने के करीब ले जा सकता है। पारदर्शिता, जवाबदेही, कार्यान्वयन और निगरानी में सुधार करके, जेंडर बजटिंग महिला सशक्तीकरण और समावेशी आर्थिक विकास के लिए एक शक्तिशाली उपकरण बन सकता है।

संदर्भ

असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के साथ-साथ गिग श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा, हाल ही में आयोजित केंद्रीय और राज्य श्रम मंत्रियों और सचिवों के चिंतन शिविर (सम्मेलन) का फोकस क्षेत्र था।

बैठक के प्रमुख परिणाम

  • श्रम संहिता: चर्चा चार श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन पर केंद्रित थी।
    • वेतन संहिता, 2019,
    • औद्योगिक संबंध संहिता, 2020, 
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 तथा व्यावसायिक सुरक्षा, 
    • स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020।
  • असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा: सम्मेलन में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा पर व्यापक चर्चा की गई।
  • समितियों का गठन: बैठक के परिणामस्वरूप श्रमिकों के लिए व्यापक सामाजिक सुरक्षा कवरेज के लिए एक स्थायी मॉडल विकसित करने के लिए तीन समितियों का गठन किया गया।
    • इन समितियों द्वारा मार्च 2025 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने की उम्मीद है।

सामाजिक सुरक्षा क्या है?

  • परिभाषा: सामाजिक सुरक्षा से तात्पर्य संरक्षण की एक प्रणाली से है, जो व्यक्तियों तथा परिवारों को आर्थिक जोखिमों और कमजोरियों से बचाने के लिए बनाई गई है।
    • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization – ILO) के अनुसार, सामाजिक सुरक्षा, “व्यक्तियों और परिवारों को स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच सुनिश्चित करने और आय सुरक्षा की गारंटी देने के लिए प्रदान की गई सुरक्षा है, विशेष रूप से वृद्धावस्था, बेरोजगारी, बीमारी, अशक्तता, कार्य-चोट, मातृत्व या कमाने वाले सदस्य की मृत्यु के मामलों में।”
  • सामाजिक सुरक्षा के प्रमुख घटक
    1. स्वास्थ्य देखभाल सुरक्षा: सस्ती चिकित्सा उपचार और सहायता सुनिश्चित करता है।
    2. वृद्धावस्था सुरक्षा: पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ।
    3. बेरोजगारी लाभ: नौकरी छूटने के दौरान वित्तीय सहायता।
    4. दिव्यांगता और कार्यस्थल पर चोट लगने संबंधी लाभ: कार्य से संबंधित दुर्घटनाओं या स्थायी दिव्यांगता के लिए मुआवजा।
    5. मातृत्व और पारिवारिक लाभ: माताओं और परिवारों के लिए वित्तीय और चिकित्सा सहायता।
    6. उत्तरजीवी लाभ: कमाई करने वाले सदस्य की मृत्यु के बाद आश्रितों के लिए सहायता।

भारत में सामाजिक सुरक्षा की स्थिति

  • अनौपचारिक कार्यबल: भारत का लगभग 91% कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में काम करता है। इसमें सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच का अभाव है।
  • सामाजिक सुरक्षा में वर्तमान कवरेज और अंतर
    • उच्चतम आय वर्ग के 28.8% श्रमिकों को किसी-न-किसी रूप में सामाजिक सुरक्षा प्राप्त है।
    • सबसे गरीब 20% में से केवल 1.9% श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा सुरक्षा प्राप्त है।
    • कुल कार्यबल का 10% से भी कम हिस्सा नियोक्ता के योगदान के साथ किसी भी सामाजिक सुरक्षा के अंतर्गत आता है।
    • नाममात्र वृद्धावस्था पेंशन: राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) के तहत, पेंशन वर्ष 1995 से 200 रुपये प्रति माह पर स्थिर बनी हुई है, जो एक दिन के न्यूनतम वेतन से भी कम है।
  • वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए सामाजिक सुरक्षा लाभों की कमी: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार, भारत में लगभग 53% वेतनभोगी कर्मचारियों को कोई सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं मिलता है।
    • ऐसे कर्मचारी भविष्य निधि, पेंशन, स्वास्थ्य देखभाल और दिव्यांगता बीमा का लाभ नहीं उठा सकते हैं।
  • खराब रैंकिंग: 15वें वार्षिक मर्सर CFA इंस्टिट्यूट ग्लोबल पेंशन इंडेक्स (MCGPI) के अनुसार, भारत की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली वर्ष 2023 में 47 देशों में से 45वें स्थान पर है।
    • वर्तमान में लगभग 30 करोड़ कर्मचारी ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत हैं।
  • असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008: यह अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया एक प्रमुख कानून है।

सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता

  • गरीबी उन्मूलन: सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम कमजोर आबादी को वित्तीय सहायता प्रदान करके गरीबी को कम करने में मदद करते हैं।
    • मनरेगा ने अपनी शुरुआत से ही 110 मिलियन से अधिक ग्रामीण परिवारों को रोज़गार दिया है, जिससे कई लोग गरीबी से बाहर निकल पाए हैं।
  • खराब कामकाजी परिस्थितियाँ और शोषण: असंगठित क्षेत्र के कामगारों को लंबे समय तक काम करना पड़ता है, उन्हें कोई छुट्टी नहीं मिलती और कार्यस्थल असुरक्षित होते हैं।
    • निर्माण क्षेत्र में कार्यस्थल पर दुर्घटना की दर सबसे ज़्यादा है, जहाँ असुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों के कारण प्रत्येक वर्ष हज़ारों मौतें होती हैं।
  • आर्थिक स्थिरता: मंदी के दौरान सामाजिक सुरक्षा अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में मदद करती है।
    • उदाहरण के लिए, बेरोज़गारी लाभ लोगों को खर्च करना जारी रखने की अनुमति देता है, जो व्यवसायों का समर्थन करता है और गहरी मंदी को रोकता है।
  • जीवन जोखिमों से सुरक्षा: सामाजिक सुरक्षा व्यक्तियों को नौकरी छूटने, विकलांगता या बीमारी जैसी अप्रत्याशित घटनाओं से बचाती है, जिससे वित्तीय कठिनाई हो सकती है।
    • आयुष्मान भारत कार्यक्रम के कारण स्वास्थ्य सेवा पर होने वाले खर्च में 21% की कमी आई है और स्वास्थ्य संबंधी खर्चों के लिए आपातकालीन ऋण लेने की घटनाओं में 8% की कमी आई है।
  • बुजुर्गों के लिए सहायता: पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ उन वृद्धों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करते हैं जो अब काम करने में सक्षम नहीं हैं।

सामाजिक सुरक्षा में सुधार के लिए पहल

  • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020: यह संहिता असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों और श्रमिकों सहित सभी को कवरेज प्रदान करने के लिए मौजूदा सामाजिक सुरक्षा कानूनों को समेकित और संशोधित करती है।
    • इसमें जीवन और दिव्यांगता बीमा, स्वास्थ्य और मातृत्व लाभ, भविष्य निधि और पेंशन के प्रावधान शामिल हैं।
  • प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY): आयुष्मान भारत पहल के तहत शुरू की गई, पीएम-जेएवाई का उद्देश्य द्वितीयक और तृतीयक देखभाल अस्पताल में भर्ती होने के लिए प्रति वर्ष प्रति परिवार 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान करना है।
  • ईश्रम पोर्टल: सरकार ने गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों सहित असंगठित श्रमिकों का राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने के लिए ईश्रम पोर्टल पेश किया।
  • गिग श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा पहल: केंद्रीय बजट वर्ष 2025 में गिग श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करने के उद्देश्य से उपाय पेश किए गए।
  • मनरेगा: इसका उद्देश्य अकुशल शारीरिक श्रम के लिए एक वित्तीय वर्ष में कम-से-कम 100 दिन का वेतन रोजगार प्रदान करके ‘काम करने के अधिकार’ की गारंटी देना है।
    • इसे विश्व के सबसे बड़े सार्वजनिक कार्य कार्यक्रमों में से एक माना जाता है।
  • प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन (PMSYM): यह योजना असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को पेंशन सुरक्षा प्रदान करती है।
    • 18-40 वर्ष की आयु के वे श्रमिक जो 15,000 रुपये प्रति माह से कम कमाते हैं, वे नामांकन कर सकते हैं। उन्हें 60 वर्ष की आयु के बाद 3,000 रुपये मासिक पेंशन मिलती है।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ
    • भारत ने सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के अनुबंध की पुष्टि की है, जो सामाजिक सुरक्षा के अधिकार को मान्यता देता है।
    • भारत ने ILO अनुशंसा 202 को भी स्वीकार किया है, जो राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप सामाजिक सुरक्षा स्तर के आवश्यक घटकों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।

चार श्रम संहिताएँ और सामाजिक सुरक्षा पर उनका प्रभाव

  • वेतन संहिता, 2019: वेतन की एक समान परिभाषा स्थापित करता है, जो भविष्य निधि (PF), कर्मचारी राज्य बीमा (ESI) तथा ग्रेच्युटी जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभों को प्रभावित करता है।
  • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020: गिग वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्कर्स और असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार करता है।
    • यह सरकार को श्रमिकों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ बनाने में सक्षम बनाता है, जिनमें शामिल हैं:
      • ESIC (कर्मचारी राज्य बीमा निगम) के तहत स्वास्थ्य बीमा।
      • EPF (कर्मचारी भविष्य निधि) के माध्यम से सेवानिवृत्ति लाभ।
      • महिला श्रमिकों के लिए मातृत्व लाभ।
  • औद्योगिक संबंध संहिता, 2020: नियुक्ति और बर्खास्तगी की नीतियों को आसान बनाता है, जिससे नौकरी की सुरक्षा कम हो सकती है, लेकिन संभावित रूप से रोजगार सृजन अधिक हो सकता है।
    • हड़तालों और विरोध प्रदर्शनों को प्रतिबंधित करता है, जिससे सी प्रभावित होता है।
  • व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियाँ (OSH) कोड, 2020
    • अंतर-राज्यीय प्रवासियों सहित सभी श्रमिकों के लिए स्वास्थ्य तथा सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करता है।
    • शोषण को रोकने के लिए काम के घंटे के विनियमन को अनिवार्य बनाता है।
    • निर्माण और बागान श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा लाभों के कवरेज का विस्तार करता है।

असंगठित क्षेत्र के लिए सामाजिक सुरक्षा में चुनौतियाँ

  • चार श्रम संहिताओं का विलंबित कार्यान्वयन: चार नए श्रम संहिताओं को वर्ष 2019 तथा वर्ष 2020 के बीच पारित किया गया था, जिसका उद्देश्य 29 मौजूदा श्रम कानूनों को एक सरल और आधुनिक ढाँचे में समेकित करना था।
    • हालाँकि, राज्य-स्तरीय चुनौतियों, अनुपालन मुद्दों और विभिन्न हितधारकों के विरोध के कारण उनके कार्यान्वयन में काफी देरी हुई है।
  • औपचारिक रोजगार रिकॉर्ड का अभाव: अधिकांश असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के पास औपचारिक रोजगार अनुबंध नहीं होते हैं, जिससे उन्हें पहचानना और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में नामांकित करना जटिल हो जाता है।
    • निर्माण श्रमिक, घरेलू कामगार और रेहड़ी-पटरी वाले अक्सर बिना किसी औपचारिक दस्तावेज के काम करते हैं।
  • कम जागरूकता और साक्षरता: असंगठित क्षेत्र के कई कामगारों को उनके लिए उपलब्ध सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं है।
  • वित्तीय बाधाएँ: कम और अनियमित आय के कारण कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में योगदान करना जटिल हो जाता है।
    • कई कामगार न्यूनतम मजदूरी से भी कम कमाते हैं और दीर्घकालिक बचत की तुलना में तत्काल आवश्यकताओं को प्राथमिकता देते हैं।
  • नौकरशाही बाधाएँ: जटिल नामांकन प्रक्रियाएँ और अत्यधिक दस्तावेजीकरण आवश्यकताएँ कामगारों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए पंजीकरण करने से रोकती हैं।
    • कामगारों को अक्सर आधार कार्ड, बैंक खाते और आय के प्रमाण जैसे आवश्यक दस्तावेज प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

आगे की राह

  • सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार: सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के तहत सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा, पेंशन, मातृत्व लाभ और बीमा तक पहुँच सुनिश्चित करना।
    • वर्ष 2024 तक, ई-श्रम पोर्टल पर 30 करोड़ से अधिक असंगठित श्रमिक पंजीकृत हैं, लेकिन केवल 10% के पास पेंशन और स्वास्थ्य सेवा जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुँच है।
  • न्यूनतम मजदूरी और आय सुरक्षा सुनिश्चित करना: मजदूरी संहिता, 2019 का प्रभावी कार्यान्वयन, न्यूनतम मजदूरी और समय पर भुगतान सुनिश्चित करना।
    • ILO की वर्ष 2021 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि 266 मिलियन वेतनभोगियों को न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान किया जाता है।
  • कार्य स्थितियों और सुरक्षा मानकों में सुधार: सुरक्षित कार्यस्थल और विनियमित कार्य घंटों को सुनिश्चित करने के लिए व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थितियाँ संहिता, 2020 का प्रवर्तन।
    • वर्ष 2024 में, निर्माण-संबंधी दुर्घटनाओं में 400 से अधिक श्रमिकों की मृत्यु हो गई, जो सुरक्षा प्रवर्तन में अंतराल को उजागर करता है।
  • घरेलू और गिग श्रमिकों के लिए कानूनी सुरक्षा और नौकरी की सुरक्षा: घरेलू श्रमिकों के लिए एक केंद्रीय कानून की शुरुआत, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने सिफारिश की है।
    • गिग इकोनॉमी कार्य का विनियमन, उचित मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा लाभ और दुर्घटना बीमा अनिवार्य करना।
    • इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (IFAT) द्वारा वर्ष 2023 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 76% गिग श्रमिक प्रति माह 15,000 रुपये से कम कमाते हैं।
  • जागरूकता और यूनियन प्रतिनिधित्व को मजबूत करना: नई श्रम संहिताओं और कल्याणकारी योजनाओं के तहत श्रमिकों को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने के लिए अभियान।

सामाजिक सुरक्षा में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • नॉर्डिक मॉडल (स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क): सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा, निःशुल्क शिक्षा और उदार बेरोजगारी लाभ।
    • यह उच्च करों द्वारा वित्तपोषित है, लेकिन मजबूत सामाजिक सुरक्षा जाल सुनिश्चित करता है।
  • जर्मनी का बिस्मार्कियन मॉडल: स्वास्थ्य, पेंशन, बेरोजगारी और दिव्यांगता लाभों को कवर करने वाली अनिवार्य बीमा-आधारित सामाजिक सुरक्षा।
  • सामाजिक सुरक्षा अधिनियम (USA): वर्ष 1935 में स्थापित, सेवानिवृत्ति, दिव्यांगता और उत्तरजीवी लाभ प्रदान करता है।
  • बोल्सा फमिलिया (ब्राजील): यह गरीबी उन्मूलन के उद्देश्य से एक सशर्त नकद हस्तांतरण कार्यक्रम है।
    • यदि बच्चे स्कूल जाते हैं और टीका लगवाते हैं तो परिवारों को वित्तीय सहायता प्राप्त होती है।

‘वेरी शॉर्ट-रेंज एयर डिफेंस सिस्टम’ (VSHORADS)

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने ओडिशा के तट से दूर चाँदीपुर से वेरी शॉर्ट-रेंज एयर डिफेंस सिस्टम (VSHORADS) के तीन सफल उड़ान परीक्षण किए है।

वेरी शॉर्ट-रेंज एयर डिफेंस सिस्टम (VSHORADS) 

  • VSHORADS कम दूरी की, हल्की और सतह-से-हवा में मार करने वाली ‘पोर्टेबल मिसाइल’ है।
    • इसे स्पेसक्राफ्ट  या हेलीकॉप्टरों को नष्ट करने के लिए दागा जा सकता है।
  • विकास: DRDO प्रयोगशालाओं के सहयोग से रिसर्च सेंटर इमारत (Research Centre Imarat- RCI), हैदराबाद द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है।
  • रेंज एवं क्षमताएँ: यह एक ड्यूल थ्रस्ट सॉलिड मोटर द्वारा संचालित है और कम दूरी पर एवं ऊँचाई वाले हवाई खतरों को निष्क्रिय करने के लिए उत्तरदायी है।
    • अधिकतम सीमा 8 किलोमीटर।
    • 4.5 किमी तक की ऊँचाई पर स्थित लक्ष्य पर हमला कर सकती है।
  • सामरिक महत्त्व: पोर्टेबिलिटी एवं तीव्र तैनाती क्षमताएँ इसे भारत की वायु रक्षा को मजबूत करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण हथियार प्रणाली का निर्माण करती हैं।
    • इसका उपयोग भारतीय सशस्त्र बलों की तीनों शाखाओं यानी थल सेना, नौसेना एवं वायु सेना द्वारा किया जा सकता है।
  • प्रमुख प्रौद्योगिकी एकीकरण
    • रिएक्शन कंट्रोल सिस्टम (RCS): उड़ान के दौरान मिसाइलों, अंतरिक्ष यान एवं उच्च गति वाली वस्तुओं के संचलन एवं स्थिरीकरण करने के लिए उपयोग की जाने वाली एक छोटी लेकिन शक्तिशाली तकनीक है।
      • इसमें छोटे थ्रस्टर्स या जेट नोजल होते हैं, जो वायु में ही मिसाइल की गति को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
    • एकीकृत एवियोनिक्स: सटीक लक्ष्यीकरण एवं बेहतर प्रदर्शन के लिए उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स को शामिल किया गया है।

भारतीय भाषा पुस्तक योजना

हाल ही में वित्त मंत्री द्वारा केंद्रीय बजट वर्ष 2025-26 में भारतीय भाषा पुस्तक योजना शुरू की गई थी।

भारतीय भाषा पुस्तक योजना के बारे में

  • यह भाषायी विविधता को बढ़ावा देते हुए शिक्षा में प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने के सरकार के व्यापक प्रयास का हिस्सा है।
  • नोडल मंत्रालय: शिक्षा मंत्रालय (भारत सरकार)।
  • उद्देश्य: कई भारतीय भाषाओं में डिजिटल पाठ्यपुस्तकें एवं अध्ययन सामग्री प्रदान करके सीखने को और अधिक सुलभ बनाना।
  • यह योजना अस्मिता (ASMITA) पहल की पूरक है, जो अगले पाँच वर्षों में 22 भारतीय भाषाओं में 22,000 किताबें विकसित करने पर केंद्रित है।
    • इसे शिक्षा मंत्रालय एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा जुलाई 2024 में लॉन्च किया गया।
    • UGC एवं भारतीय भाषा समिति (शिक्षा मंत्रालय के तहत) भारतीय भाषाओं में अनुवाद एवं अकादमिक लेखन पर मिलकर कार्य कर रहे हैं।
  • भारतीय भाषा पुस्तक योजना की मुख्य विशेषताएँ
    • डिजिटल पाठ्यपुस्तकों तक पहुँच: स्कूलों एवं विश्वविद्यालयों में छात्र डिजिटल प्रारूप में पाठ्यपुस्तकों तथा अन्य शिक्षण सामग्री का लाभ उठा सकते हैं।
    • क्षेत्रीय भाषाओं पर ध्यान: यह पहल सुनिश्चित करती है कि विविध भाषायी पृष्ठभूमि वाले छात्रों को उनकी मातृभाषा में शैक्षिक संसाधन प्राप्त हों।
    • शैक्षिक अंतराल को कम करना: इसका उद्देश्य विभिन्न भाषायी समुदायों के छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक संसाधनों तक पहुँच में असमानताओं को कम करना है।

डीप ओशन मिशन

वर्ष 2025 के केंद्रीय बजट में डीप ओशन मिशन के आवंटन में 600 करोड़ रुपये की बढोतरी की गई है।

  • गहरे महासागर मिशन को केंद्रीय बजट में 3649.81 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जबकि वर्ष 2024 में यह 3064.80 करोड़ रुपये था।

डीप ओशन मिशन

  • डीप ओशन मिशन भारत सरकार की ब्लू इकोनॉमी पहल का समर्थन करने के लिए गहरे महासागरीय क्षेत्रों का पता लगाने एवं अपने संसाधनों का उपयोग करने के लिए प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए एक बहु-विषयक कार्यक्रम है।
  • नोडल मंत्रालय: पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES)। 
  • घटक 
    • समुद्रयान: यह एक मानव चालित पनडुब्बी है, जिसे वैज्ञानिक सेंसर एवं उपकरणों के साथ समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई तक 3 लोगों को ले जाने के लिए विकसित किया जाएगा। 
      • विकास: समुद्रयान वाहन को राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) द्वारा विकसित किया जाएगा।
    • एक एकीकृत खनन प्रणाली: इसे मध्य हिंद महासागर में 6,000 मीटर की गहराई से पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स के खनन के लिए विकसित किया जाएगा, जिससे इसके व्यावसायिक दोहन का मार्ग प्रशस्त होगा। 
      • यह गहरे समुद्र में खनिजों एवं ऊर्जा की खोज एवं दोहन के ब्लू इकोनॉमी प्राथमिकता वाले क्षेत्र में मदद करेगा।
    • महासागर जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवा मॉडल: यह तटीय पर्यटन के ब्लू इकोनॉमी प्राथमिकता क्षेत्र का समर्थन करते हुए महत्त्वपूर्ण जलवायु परिवर्तन के पूर्वानुमान प्रदान करेगा।
    • संरक्षण: सूक्ष्म जीवों सहित गहरे महासागर की वनस्पतियों एवं जैव-संसाधनों के सतत् उपयोग के  अध्ययन पर मुख्य फोकस होगा।
      • यह घटक समुद्री मत्स्यपालन एवं संबद्ध सेवाओं के ब्लू इकोनॉमी प्राथमिकता वाले क्षेत्र का समर्थन करेगा।
    • डीप ओशन सर्वेक्षण एवं अन्वेषण: हिंद महासागर के मध्य-महासागरीय कटकों के साथ बहु-धातु हाइड्रोथर्मल सल्फाइड खनिज के संभावित स्थलों का पता लगाने एवं पहचान करने के लिए।
    • महासागरीय ऊर्जा का दोहन: अपतटीय महासागर थर्मल ऊर्जा रूपांतरण (OTEC) संचालित अलवणीकरण संयंत्रों के लिए अध्ययन एवं विस्तृत इंजीनियरिंग डिजाइन की परिकल्पना की गई है।
      • यह अपतटीय ऊर्जा विकास के ब्लू इकोनॉमी प्राथमिकता वाले क्षेत्र का समर्थन करेगा।
    • महासागर जीव विज्ञान के लिए उन्नत समुद्री स्टेशन: ऑन-साइट बिजनेस इनक्यूबेटर सुविधाओं के माध्यम से अनुसंधान क्षमता को औद्योगिक अनुप्रयोग एवं उत्पाद संबंधी अवधारणा में परिवर्तित करना।

संदर्भ

केंद्रीय वित्त मंत्री ने वर्ष 2025-26 के बजट भाषण में पूरी तरह से कृषि क्षेत्र पर केंद्रित 9 नए मिशनों की घोषणा की है।

नए मिशनों के बारे में

  • प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना
    • यह कार्यक्रम आकांक्षी जिला कार्यक्रम से प्रेरित है, जिसे राज्यों के साथ साझेदारी में लागू किया जाएगा।
    • कवरेज: यह योजना कम उत्पादकता, फसलों की मध्यम तीव्रता एवं औसत से कम क्रेडिट मापदंडों वाले 100 जिलों को कवर करेगी। 

    • वित्तपोषण: कार्यक्रम को मौजूदा योजनाओं एवं विशेष उपायों के अभिसरण के माध्यम से वित्तपोषित किया जाएगा, जिससे लगभग 1.7 करोड़ किसानों को लाभ होगा।
    • उद्देश्य: कृषि उत्पादकता बढ़ाना, फसल विविधीकरण अपनाना, पंचायत एवं ब्लॉक स्तर पर फसल कटाई के बाद भंडारण में सुधार करना, सिंचाई सुविधाओं को उन्नत बनाना तथा अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक ऋण प्रदान करना।
  • दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन
    • बजट: वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए 1,000 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ छह वर्षीय मिशन है।
    • फोकस: यह योजना तुअर (अरहर), उड़द (काला चना), एवं मसूर (लाल मसूर) में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने पर केंद्रित है।
    • कार्यान्वयन एजेंसियाँ: राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (NAFED) एवं राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ जैसी केंद्रीय सहकारी एजेंसियाँ ​​अगले चार वर्षों में उन किसानों से इन दलहन  की खरीद करेंगी, जो इन एजेंसियों के साथ पंजीकरण करते हैं।
  • बिहार में मखाना बोर्ड की स्थापना
    • किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के माध्यम से किसानों का समर्थन करते हुए मखाना के उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्द्धन एवं विपणन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बिहार में एक मखाना (फॉक्सनट) बोर्ड की स्थापना की जाएगी।
    • इस बोर्ड को वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 100 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
    • कार्य: बोर्ड मखाना किसानों को प्रशिक्षण एवं सहायता प्रदान करेगा, जिन्हें किसान उत्पादक संगठनों (FPO) में संगठित किया जाएगा एवं यह सुनिश्चित करेगा कि किसानों को प्रासंगिक सरकारी योजनाओं तक पहुँच प्राप्त हो सके।
  • संशोधित ब्याज सहायता योजना (MISS)
    • संशोधित ब्याज सहायता योजना (MISS) के तहत ऋण सीमा 3 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दी गई है। 
      • MISS योजना: कृषि एवं अन्य संबद्ध गतिविधियों में लगे किसान 9 प्रतिशत की बेंचमार्क दर पर 3 लाख रुपये तक किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) ऋण प्राप्त कर सकते हैं (बेंचमार्क दर पर 2 प्रतिशत ब्याज छूट प्रदान की जाती है)।
      • शीघ्र एवं समय पर पुनर्भुगतान करने पर अतिरिक्त 3 प्रतिशत की रियायत दी जाएगी।
  • ग्रामीण समृद्धि एवं लचीलापन कार्यक्रम
    • यह पहल राज्यों के साथ साझेदारी में शुरू की जाएगी एवं इसका उद्देश्य कौशल तथा प्रौद्योगिकी में निवेश के माध्यम से कृषि में अल्परोजगार को संबोधित करना है।
      • चरण-I: 100 विकासशील कृषि-जिलों को कवर किया जाएगा।
    • फोकस: इसका फोकस ग्रामीण महिलाओं, युवा किसानों, ग्रामीण युवाओं, सीमांत एवं छोटे किसानों तथा भूमिहीन परिवारों पर होगा।
    • फंडिंग: वैश्विक एवं सर्वोत्तम घरेलू प्रथाओं को शामिल किया जाएगा तथा बहुपक्षीय विकास बैंकों से उचित तकनीकी एवं वित्तीय सहायता माँगी जाएगी।
    • उद्देश्य: लक्ष्य प्रवासन को रोकने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त अवसर उत्पन्न करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनः मजबूत करना है।
  • सब्जियों एवं फलों के लिए व्यापक कार्यक्रम
    • इसे किसानों के लिए उत्पादन, कुशल आपूर्ति, प्रसंस्करण एवं लाभकारी कीमतों को बढ़ावा देने के लिए राज्यों के साथ साझेदारी में लॉन्च किया जाएगा। 
    • इस मिशन को वर्ष 2025-26 के लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
  • कपास उत्पादकता के लिए मिशन
    • वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 500 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ मिशन की अवधि पाँच वर्ष है।
    • फोकस: यह योजना अतिरिक्त-लंबे रेशेदार कपास की किस्मों को बढ़ावा देते हुए कपास की कृषि की उत्पादकता एवं स्थिरता में सुधार लाने पर केंद्रित है।
      • यह योजना भारत के पारंपरिक टेक्सटाइल क्षेत्र को फिर से जीवंत करने के लिए टेक्सटाइल क्षेत्र के लिए एकीकृत 5F विजन के साथ संरेखित है।
  • अधिक उपज देने वाले बीजों पर राष्ट्रीय मिशन
    • यह मिशन जुलाई 2024 से जारी 100 से अधिक उच्च उपज देने वाली, कीट प्रतिरोधी एवं जलवायु-लचीली बीज किस्मों की व्यावसायिक उपलब्धता, विकास तथा प्रसार को लक्षित करेगा।
    • इसे वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 100 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। 
  • मत्स्यपालन 
    • प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) को वर्ष 2025-26 के लिए 64 प्रतिशत की पर्याप्त बजटीय वृद्धि प्राप्त हुई। 
    • PMMSY के तहत, सरकार अंडमान एवं निकोबार तथा लक्षद्वीप द्वीपसमूह पर विशेष ध्यान देने के साथ, भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र एवं उच्च समुद्री क्षेत्र से मत्स्यपालन के सतत दोहन के लिए एक सक्षम ढाँचा प्रस्तुत करने की योजना बना रही है।
  • असम में यूरिया संयंत्र: यूरिया की आपूर्ति को और बढ़ाने एवं आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए नामरूप, असम में 1.27 मिलियन टन की वार्षिक क्षमता वाला एक संयंत्र स्थापित किया जाएगा।
  • जीन बैंक
    • भविष्य की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के लिए आनुवंशिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए, सरकार एक दूसरा जीन बैंक स्थापित करेगी, जिसमें 10 लाख जर्मप्लाज्म लाइनें होंगी।

बजट वर्ष 2025-2026 में कृषि क्षेत्र

  • बजट में कृषि क्षेत्र को भारत के विकास का पहला इंजन की संज्ञा दी गई  है।

  • सकल घरेलू उत्पाद में योगदान: भारत में कृषि क्षेत्र 5% (वर्ष 2017 से वर्ष 2023) की वार्षिक वृद्धि के साथ देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 18.2% का योगदान देता है।
  • बजट 2025-2026: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को वित्तीय वर्ष 2025-2026 के लिए 1.37 लाख करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है।
    • कृषि एवं किसान कल्याण विभाग को 1.27 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
    • कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग को 10,466 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
  • प्रतिशत में कमी: कृषि बजट में कुल आवंटन में 2.75 प्रतिशत की कमी देखी गई, वर्ष 2024-25 के संशोधित अनुमान (RE) में 1.41 लाख करोड़ रुपये से 1.37 लाख करोड़ रुपये हो गई।
  • संबद्ध क्षेत्र: संबद्ध क्षेत्रों यानी मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी में आवंटन में 37 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 7,544 करोड़ रुपये की वृद्धि देखी गई।
    • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को 56 प्रतिशत की वृद्धि मिली एवं यह 4,364 करोड़ रुपये हो गया।
  • कृषि योजनाएँ 
    • PM-किसान योजना के लिए 63,500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो पिछले वित्तीय वर्ष के 60,000 करोड़ रुपये के बजट अनुमान से अधिक है।
    • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को वर्ष 2025-26 में 12,242.27 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो वित्तीय वर्ष वर्ष 2024-25 के संशोधित अनुमान में 15,864 करोड़ रुपये से कम है।

संदर्भ

म्याँमार में गृहयुद्ध के कारण भारत में विशेष रूप से मणिपुर में मोरेह सीमा पर शरणार्थियों की संख्या बढ़ गई है। 

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन  (United Nations Refugee Convention), 1951

  • बहुपक्षीय संधि: इसमें शरणार्थी के रूप में कौन पात्र है और शरण देने वाले देशों के शरण देने संबंधी अधिकार एवं जिम्मेदारियाँ निर्धारित की गई हैं।
  • बहिष्करण: युद्ध अपराधी और कुछ अन्य शरणार्थी के रूप में योग्य नहीं हैं।
  • संरक्षण: नृजाति, धर्म, राष्ट्रीयता, सामाजिक समूह या राजनीतिक राय के कारण उत्पीड़न से भागने वाले व्यक्तियों को अधिकार प्रदान करता है।
  • मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR), 1948 पर आधारित: यह अनुच्छेद-14 पर आधारित है, जो शरण लेने के अधिकार को मान्यता देता है।
  • 1967 प्रोटोकॉल: शरणार्थी की परिभाषा का विस्तार करके इसमें केवल यूरोप ही नहीं, बल्कि सभी देशों के व्यक्तियों को शामिल किया गया है।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugees-UNHCR)

  • उद्देश्य: शरणार्थियों, विस्थापित समुदायों और राज्यविहीन व्यक्तियों की सुरक्षा करना।
  • वर्ष 1950 में स्थापित: मूल रूप से द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विस्थापित यूरोपीय लोगों की सहायता के लिए।
  • मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड।
  • मिशन: जीवन बचाना, सुरक्षा प्रदान करना और शरणार्थियों के लिए बेहतर भविष्य की दिशा में कार्य करना।

मणिपुर में शरणार्थियों का आगमन

  • 27 जनवरी, 2025 से अब तक लगभग 260 म्याँमार से आए शरणार्थियों ने भारत में शरण ली है।
  • म्याँमार की सेना द्वारा किए गए हवाई हमलों के कारण 9 जनवरी, 2025 से शरणार्थियों का भीड़ के रूप में आगमन प्रारंभ हो गया था।
  • प्रारंभ में, लगभग 100 लोगों ने अस्थायी शरण ली, लेकिन बमबारी कम होने के बाद वे वापस लौट आए।
  • 27 जनवरी से 29 जनवरी के बीच, म्याँमार में तीव्र संघर्ष के परिणामस्वरूप 261 अतिरिक्त शरणार्थी मणिपुर पहुँचे, जो अभी तक वापस नहीं लौटे हैं।

शरणार्थी की कानूनी परिभाषा

  • वर्ष 1951 के जिनेवा कन्वेंशन के अनुसार, शरणार्थी वह व्यक्ति है जो नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता या राजनीतिक राय के आधार पर उत्पीड़न के भय के कारण अपने राष्ट्रीयता वाले देश से बाहर है और ऐसे भय के कारण वापस लौटने में असमर्थ अथवा अनिच्छुक है।

भारत में शरणार्थियों के लिए कानूनी प्रावधानों का अभाव

  • राष्ट्रीय, क्षेत्रीय या अंतरराष्ट्रीय ढाँचे का अभाव: भारत और अधिकांश दक्षिण एशियाई देशों में औपचारिक शरणार्थी नीति का अभाव है और सरकार ने कभी भी आधिकारिक तौर पर इस अनुपस्थिति को स्पष्ट नहीं किया है।
    • शरणार्थियों के प्रबंधन को संरचित कानूनी ढाँचों के बजाय तदर्थ उपायों के माध्यम से प्रबंधित किया जाता है।

कानूनी प्रावधान के अभाव का कारण

  • वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन के प्रति संदेह: भारत ने अपने आतंरिक मामलों में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप के संदेह से वर्ष 1951 के सम्मेलन या वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं करने का निर्णय किया।
  • शरणार्थी संकट का ऐतिहासिक अनुभव: वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के कारण लाखों शरणार्थी भारत आए, जिससे संसाधनों पर दबाव पड़ा। भारत को अंतरराष्ट्रीय सहायता की उम्मीद थी, लेकिन उसे बहुत कम सहायता मिली, जिससे वैश्विक शरणार्थी तंत्र पर निर्भर रहने की उसकी अनिच्छा को बल मिला।
  • भू-राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: छिद्रित सीमाएँ, जनसांख्यिकीय बदलाव, राजनीतिक अस्थिरता एवं आंतरिक सुरक्षा खतरे भारत को कानूनी रूप से बाध्यकारी शरणार्थी प्रतिबद्धताओं के प्रति सतर्क करते हैं।

  • चयनात्मक शरणार्थी नीति और राजनीतिक प्रभाव: भारत सार्वभौमिक कानूनी सिद्धांतों के बजाय कूटनीतिक और राजनीतिक विचारों के आधार पर शरण देता है। सरकार चुनिंदा रूप से सुरक्षा प्रदान करती है, जो अक्सर धर्म, राष्ट्रीयता और भू-राजनीतिक हितों से प्रभावित होती है।

भारत-म्याँमार सीमा अवलोकन

  • कुल लंबाई: 1,643 किमी.।
  • निम्नलिखित भारतीय राज्यों के साथ सीमा साझा करता है:
    •  अरुणाचल प्रदेश: म्याँमार के साथ 520 किमी. सीमा।
    • नागालैंड: म्याँमार के साथ 215 किमी. सीमा।
    • मणिपुर: म्याँमार के साथ 398 किमी. सीमा।
    • मिजोरम: म्याँमार के साथ 510 किमी. सीमा।

मणिपुर की सीमाएँ

  • भारतीय राज्य
    • नागालैंड: मणिपुर के उत्तर में।
    • असम: मणिपुर के पश्चिम में।
    • मिजोरम: मणिपुर के दक्षिण-पश्चिम में।
  • अंतरराष्ट्रीय सीमाएँ
    • म्याँमार: मणिपुर के दक्षिण और पूर्व में।

भारत-म्याँमार सीमा पर शरणार्थी संकट के लिए जिम्मेदार कारक

  • म्याँमार में गृहयुद्ध और सैन्य अभियान: म्याँमार के सैन्य जुंटा और प्रतिरोधक समूहों के बीच चल रहे संघर्ष, जिसमें लगातार हवाई हमले शामिल हैं, नागरिकों को विस्थापित होने के लिए मजबूर करते हैं।
  • नृजातीय उत्पीड़न एवं हिंसा: कुकी- जैसे नृजातीय अल्पसंख्यकों को लक्षित हमलों का सामना करना पड़ता है, जिससे विस्थापन की दर बढ़ रही है।
  • राजनीतिक अस्थिरता और विद्रोह: राजनीतिक तख्तापलट के बाद की उथल-पुथल ने विद्रोह को बढ़ावा दिया है, जिससे सीमा पर तनाव और बढ़ गया है।
  • भारत में अस्पष्ट शरणार्थी नीति: औपचारिक ढाँचे की अनुपस्थिति शरणार्थियों को प्रबंधित करना और एकीकृत करना जटिल बनाती है।
  • सीमा संघर्ष और मानवीय संकट: मणिपुर के पास सशस्त्र संघर्ष और भोजन, आश्रय तथा स्वास्थ्य सेवा तक अपर्याप्त पहुँच संकट को और बढ़ा देती है।

आगे की राह 

  • मानवीय और सुरक्षा उपाय: अस्थायी आश्रय स्थल स्थापित करना, चिकित्सा सहायता प्रदान करना और मानवीय सीमा सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • राजनयिक एवं नीतिगत ढाँचा: म्याँमार, आसियान और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के साथ कूटनीतिक प्रयासों को मजबूत करना; एक स्पष्ट शरणार्थी नीति स्थापित करना।
  • अंतरराष्ट्रीय एवं सामुदायिक सहयोग: शरणार्थियों की संख्या को प्रबंधित करने और नृजातीय तनाव को रोकने के लिए UNHCR और स्थानीय समुदायों के साथ कार्य करना।
  • दीर्घकालिक समाधान: जब परिस्थितियाँ सुधरें तो आर्थिक एकीकरण या सुरक्षित प्रत्यावर्तन के लिए पुनर्वास योजनाओं को बढ़ावा देना।
  • म्याँमार में संघर्ष समाधान: भारत को क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए शांति वार्ता को सुगम बनाना चाहिए और लोकतांत्रिक पुनर्स्थापन का समर्थन करना चाहिए।

संदर्भ

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने मच्छर नियंत्रण के लिए दो अत्यधिक आक्रामक विदेशी प्रजातियों की मछलियों के उपयोग के संबंध में केंद्र सरकार से जवाब माँगा है।

  • अधिकरण विभिन्न राज्यों के जल निकायों में गंबूसिया एफिनिस (Gambusia Affinis) और पोसिलिया रेटिकुलता (Poecilia Reticulata) या गप्पी (Guppy) को छोड़े जाने के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था।

गंबूसिया एफिनिस (वेस्टर्न मॉस्किटोफिश) के बारे में

  • सामान्य नाम: मॉस्किटोफिश (Mosquitofish)।
  • उद्देश्य: मच्छरों के लार्वा को नियंत्रित करने के लिए जैविक एजेंट के रूप में उपयोग किया जाता है।
    • मूल क्षेत्र: मध्य इंडियाना और इलिनोइस (Illinois) से लेकर मैक्सिको की खाड़ी तक मिसिसिपी नदी बेसिन।

  • मच्छर नियंत्रण: एक वयस्क मछली प्रतिदिन 100 से 300 मच्छरों के लार्वा खाती है।
  • विशेषताएँ
    • आवास स्थान: मीठे जल में पाया जाता है; खारे जल और उच्च लवणता के प्रति सहिष्णु है।
    • अनुकूलनशीलता: कम ऑक्सीजन स्तर में जीवित रह सकती है।
    • प्रजनन: गर्मियों में प्रजनन करती हैं और विविपेरस (Viviparous) होती हैं, यानी वे अंडे देने के बजाय जीवित बच्चों को जन्म देती हैं।
    • आक्रामकता: IUCN द्वारा 100 सबसे खराब आक्रामक विदेशी प्रजातियों में सूचीबद्ध।
    • भारत में ऐतिहासिक उपयोग: मच्छर नियंत्रण के लिए ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1928 में पेश किया गया।
    • IUCN स्थिति: कम चिंताजनक।

पोसिलिया रेटिकुलता (Poecilia Reticulata) के बारे में 

  • सामान्य नाम: गप्पी, मिलियनफिश या रेनबो फिश (Rainbow Fish)।

  • रेंज: उत्तरी दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन द्वीपों की मूल प्रजाति।
  • आवास स्थान: तालाबों और नदियों के उथले किनारों में पाई जाती है।
  • उपयोग: मच्छरों के लार्वा नियंत्रण के लिए भी उपयोग किया जाता है।
  • IUCN स्थिति: कम चिंताजनक।

जल निकायों में मछली का प्रयोग करने वाले राज्य

  • मॉस्किटोफिश को असम, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पंजाब और आंध्र प्रदेश के जल निकायों में छोड़ा गया है।
  • गप्पी को महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब और ओडिशा के जल निकायों में छोड़ा गया है।
  • चिंता: इनका व्यापक वितरण स्थानीय जैव विविधता के लिए जोखिम उत्पन्न करता है।

आक्रामक प्रजातियों के बारे में

  • ये आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ हैं, जो तेजी से अपना प्रसार करती हैं और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाती हैं।
  • ये अक्सर देशी प्रजातियों को समाप्त कर देती हैं, पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करती हैं और आर्थिक या पर्यावरणीय क्षति का कारण बनती हैं।

भारत में आक्रामक प्रजातियों के उदाहरण

  • वनस्पति: लैंटाना कैमरा, पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस (Parthenium Hysterophorus) (कांग्रेस ग्रास), प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा (Prosopis Juliflora) (विलायती कीकर)।
  • जीव-जंतु: अफ़्रीकी कैटफिश [क्लैरियास गैरीपिनस (Clarias Gariepinus)], तिलापिया [ओरियोक्रोमिस मोसाम्बिकस (Oreochromis Mossambicus)] और विशाल अफ्रीकी घोंघा।

पारिस्थितिक प्रभाव

  • देशज मछलियों के लिए खतरा: खाद्य एवं आवास के लिए प्रतिस्पर्द्धा के चलते , देशज मछलियों के लिए खाद्य की कमी का सामना करना पड़ता है।
  • जैव विविधता का ह्रास: देशज प्रजातियों की गिरावट या विलुप्ति का कारण बन सकता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: खाद्य शृंखलाओं में परिवर्तन पूरे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते हैं।

संदर्भ 

हाल ही में केंद्रीय बजट 2025-26 में ज्ञान भारतम मिशन (Gyan Bharatam Mission) की शुरुआत की गई।

ज्ञान भारतम मिशन के बारे में

  • उद्देश्य: भारत की विशाल पांडुलिपि विरासत का सर्वेक्षण, दस्तावेजीकरण और संरक्षण करना।
  • फोकस क्षेत्र: यह मिशन मुख्य रूप से शैक्षणिक संस्थानों, संग्रहालयों, पुस्तकालयों और निजी संग्रहकर्ताओं द्वारा रखी गई पांडुलिपियों को लक्षित करता है ताकि उनका व्यवस्थित संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।
  • उद्देश्य: एक करोड़ से अधिक पांडुलिपियों को कवर करना, ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनके दीर्घकालिक संरक्षण और पहुँच सुनिश्चित की जा सके।
    • इसके अतिरिक्त, इसका उद्देश्य वैश्विक मंच पर भारत की समृद्ध साहित्यिक और बौद्धिक परंपराओं को बढ़ावा देना है।
  • NMM का पुनरुद्धार: इस पहल के माध्यम से, सरकार राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (National Manuscripts Mission-NMM) को पुनर्सक्रिय करने का महत्त्वपूर्ण प्रयास कर रही है, जिसे वर्ष 2003 में लॉन्च किया गया था, लेकिन यह काफी सीमा तक निष्क्रिय रहा था।
  • बजट आवंटन: ज्ञान भारतम मिशन को समायोजित करने के लिए केंद्रीय बजट 2025-26 में राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (NMM) के लिए वित्तीय आवंटन में ₹3.5 करोड़ से ₹60 करोड़ तक की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
  • कार्यान्वयन मंत्रालय: केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय इस पहल के कार्यान्वयन और निष्पादन की देखरेख के लिए जिम्मेदार है।

पांडुलिपि क्या नहीं है?

  • लिथोग्राफ, जिसमें पत्थर पर चित्र उत्कीर्ण करना और फिर छवि को कागज पर स्थानांतरित करना शामिल है, साथ ही मुद्रित संस्करण भी पांडुलिपियों के रूप में योग्य नहीं हैं।

पांडुलिपियाँ क्या हैं?

  • परिभाषा: पांडुलिपियाँ हस्तलिखित रचनाओं को संदर्भित करती हैं, जिन्हें कागज, छाल और ताड़ के पत्तों जैसी सामग्रियों पर अंकित किया जा सकता है।
  • वर्गीकरण मानदंड: पांडुलिपि के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए, एक दस्तावेज़ कम-से-कम 75 वर्ष प्राचीन होना चाहिए और उसमें वैज्ञानिक, ऐतिहासिक या सौंदर्य संबंधी मूल्य होना चाहिए।
  • उदाहरण: सबसे प्रसिद्ध भारतीय पांडुलिपियों में से एक बख्शाली पांडुलिपि (Bakhshali Manuscript) है, जो तीसरी या चौथी शताब्दी की है। बर्च की छाल पर लिखा गया यह प्राचीन गणितीय पाठ शून्य के उपयोग का सबसे पहला दर्ज उदाहरण माना जाता है।
  • विषय: पांडुलिपियों में इतिहास, धर्म, साहित्य, ज्योतिष और कृषि पद्धतियों सहित कई तरह के विषय शामिल हो सकते हैं।
  • भारत में अनुमानित संख्या: भारत में 80 से अधिक प्राचीन लिपियों में लिखी गई अनुमानित 10 मिलियन पांडुलिपियाँ हैं।
  • प्रयुक्त लिपियाँ: कुछ प्रमुख प्राचीन लिपियों में ब्राह्मी, कुषाण, गौड़ी, लेप्चा, मैथिली, ग्रंथ और शारदा शामिल हैं।
  • भाषा वितरण: इनमें से लगभग 75% पांडुलिपियाँ संस्कृत में लिखी गई हैं, जबकि 25% विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में हैं।

भारत में पांडुलिपि संरक्षण हेतु अन्य पहल

  • एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल (1784): 15 जनवरी, 1784 को सर विलियम जोन्स द्वारा स्थापित यह संस्था पांडुलिपि संरक्षण में अग्रणी है। यह प्राचीन पांडुलिपियों को उनके संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से डिजिटल बनाती है।
  • भारत का राष्ट्रीय पुस्तकालय, कोलकाता: भारत के सबसे बड़े पुस्तकालय के रूप में, इसमें लगभग 3,600 दुर्लभ और ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण पांडुलिपियाँ हैं, जो पांडुलिपि संरक्षण में प्रमुख योगदान देती हैं।
  • राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (NMM) (2003): पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय द्वारा शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य भारत की विशाल पांडुलिपि विरासत की पहचान करना, उसका दस्तावेजीकरण करना और उसका संरक्षण करना है। यह डिजिटलीकरण और संरक्षण प्रयासों के लिए विभिन्न संस्थानों के साथ सहयोग करता है।

संदर्भ

केंद्रीय वित्त मंत्री ने जल जीवन मिशन (Jal Jeevan Mission-JJM) को वर्ष 2028 तक बढ़ाने की घोषणा की।

जल जीवन मिशन के लिए बजट में प्रावधान

  • केंद्रीय बजट 2025-26 में इस योजना के लिए 67,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। 
  • वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान संशोधित अनुमान (RE) चरण में आवंटन में उल्लेखनीय कमी आई है।

जल जीवन मिशन के बारे में

  • इस मिशन को वर्ष 2019 में सभी ग्रामीण परिवारों को कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (Functional Household Tap Connections- FHTC) प्रदान करने के लिए लॉन्च किया गया था।
  • इसका लक्ष्य वर्ष 2024 तक प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित करना है, जिसकी समय सीमा अब वर्ष 2028 तक बढ़ा दी गई है।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम का पुनर्गठन किया गया और इसे जल जीवन मिशन (JJM) में मिला दिया गया।
  • नोडल मंत्रालय: इस मिशन का क्रियान्वयन पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
  • प्रकार: जल जीवन मिशन एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
    • केंद्र एवं राज्य वित्तपोषण अनुपात निम्नानुसार भिन्न होता है:
      • हिमालयी राज्यों (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश) और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 90:10।
      • केंद्रशासित प्रदेशों (UT) के लिए 100% वित्त पोषण।
      • अन्य सभी राज्यों के लिए 50:50।
  • उद्देश्य एवं कार्यान्वयन रणनीति
    • पाइप से जल की सार्वभौमिक पहुँच: मिशन का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि वर्ष 2028 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नल का जल प्राप्त हो।
    • समुदाय की भागीदारी: ग्राम जल एवं स्वच्छता समितियाँ (VWSC) या जल समितियाँ कार्यान्वयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
      • इन समितियों में महिलाओं की 50% अनिवार्य भागीदारी आवश्यक है।
    • राज्य की भागीदारी: राज्य और केंद्रशासित प्रदेश जल सेवाओं की स्थिरता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर करते हैं।

JJM के अंतर्गत प्रमुख उपलब्धियाँ

  • अब तक कवरेज: भारत की 80 प्रतिशत ग्रामीण आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले 15 करोड़ परिवारों को पीने योग्य नल के जल के कनेक्शन उपलब्ध कराए गए हैं।
  • 100% कवरेज हासिल करने वाले राज्य: अरुणाचल प्रदेश, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, पंजाब, तेलंगाना और मिजोरम ने पूर्ण कवरेज हासिल किया है।
  • 100% कवरेज हासिल करने वाले केंद्रशासित प्रदेश: अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, दादरा और नागर हवेली और दमन और दीव, और पुडुचेरी ने सभी ग्रामीण घरों को सफलतापूर्वक नल का जल उपलब्ध कराया है।

जल जीवन मिशन के अंतर्गत चुनौतियाँ

  • बजट की कमी: वर्ष 2024-25 के बजट में कटौती ने मिशन के कार्यान्वयन को काफी प्रभावित किया है।
  • बुनियादी ढाँचे का रखरखाव: स्थापित नल और पाइपलाइनों का दीर्घकालिक संचालन तथा मरम्मत सुनिश्चित करना एक चिंता का विषय बना हुआ है।
  • निरंतर जल आपूर्ति: हालाँकि नल कनेक्शन प्रदान किए जा रहे हैं, निरंतर जल प्रवाह सुनिश्चित करना अगली बड़ी चुनौती है।
  • घटते भूजल भंडार: भूजल स्रोतों पर अत्यधिक निर्भरता से कमी और संदूषण हो सकता है, जिससे दीर्घकालिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।

जल जीवन मिशन के अंतर्गत नए फोकस क्षेत्र

  • भूजल प्रबंधन: बहुउपयोगी उद्देश्यों के लिए भूजल तक समान और पारदर्शी पहुँच को लागू करना।
  • बुनियादी ढाँचा गुणवत्ता: ग्रामीण पाइप जलापूर्ति प्रणालियों की गुणवत्ता में सुधार पर जोर देना।
  • संचालन और रखरखाव: दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए जल आपूर्ति योजनाओं के संचलन एवं रखरखाव को मजबूत करना।
  • सार्वजनिक भागीदारी (‘जन भागीदारी’): जल संसाधनों की योजना बनाने और प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • राज्य भागीदारी: स्थिरता बढ़ाने और अभी तक कवर नहीं किए गए राज्यों में नागरिक-केंद्रित सेवा वितरण के लिए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर करना।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: सेवा दक्षता में सुधार के लिए एक सामान्य मानक ढाँचे के तहत निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

जल जीवन मिशन का वर्ष 2028 तक विस्तार 100% ग्रामीण जल कवरेज प्राप्त करने की सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हालाँकि अब विशेष फोकस बुनियादी ढाँचे के निर्माण से हटकर स्थायी जल आपूर्ति प्रबंधन पर होना चाहिए। भूजल की कमी को दूर करना, सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाना और उचित रखरखाव सुनिश्चित करना जल जीवन मिशन को दीर्घकालिक सफलता में महत्त्वपूर्ण होगा।

संदर्भ

एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि अरुणाचल प्रदेश में पूर्वी हिमालय में पिछले 32 वर्षों (1988-2020) की अवधि में 110 ग्लेशियर विलुप्त हो गए हैं।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • नागालैंड विश्वविद्यालय और कॉटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में ग्लेशियर की सीमाओं को ट्रैक करने के लिए रिमोट सेंसिंग और GIS तकनीक का उपयोग किया गया।
  • इस अवधि के दौरान अरुणाचल प्रदेश में ग्लेशियरों की संख्या 756 से घटकर 646 हो गई।
  • कुल ग्लेशियल आवरण 585.23 वर्ग किलोमीटर से घटकर 309.85 वर्ग किलोमीटर रह गया, जो 47% से अधिक की कमी को दर्शाता है।
  • अधिकांश ग्लेशियर 4,500-4,800 मीटर की ऊँचाई पर उत्तर की ओर हैं और 15°-35° की ढलान पर स्थित हैं।
  • इस तीव्र ग्लेशियर क्षति ने आधार संस्तर को उजागर कर दिया है और हिमनद झीलों का निर्माण किया है, जिससे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (Glacial Lake Outburst Floods-GLOF) का खतरा बढ़ गया है।

पूर्वी हिमालय

  • पूर्वी हिमालय पश्चिम में तीस्ता नदी और पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के बीच लगभग 720 किलोमीटर तक फैला हुआ है।
  • इस क्षेत्र को असम हिमालय के नाम से भी जाना जाता है और इसमें मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश और भूटान के क्षेत्र शामिल हैं।

ग्लेशियल रिट्रीट क्या है?

  • ग्लेशियल रिट्रीट से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है, जिसमें ग्लेशियर सिकुड़ते हैं क्योंकि उनकी बर्फ नई बर्फ के जमा होने की तुलना में तेजी से पिघलती है।
  • यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख संकेतक है और यह दुनिया भर में, विशेष रूप से हिमालय जैसे उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में, खतरनाक दर से हो रहा है।

हिमनदों के सिकुड़ने के कारण

  • जलवायु परिवर्तन: वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण बर्फ पिघलने की दर बढ़ रही है, जो बर्फ के संचय से भी अधिक है।
  • वर्षा पैटर्न में परिवर्तन: अनियमित बर्फबारी और सर्दियों में कम वर्षा के कारण ग्लेशियरों की वृद्धि धीमी हो जाती है।
  • ब्लैक कार्बन जमाव: मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न प्रदूषक ग्लेशियरों पर जम जाते हैं, अधिक गर्मी को अवशोषित करते हैं और पिघलने की गति को बढ़ा देते हैं।
  • भू-वैज्ञानिक कारक: ढलान, तुंगता और चट्टान का प्रकार ग्लेशियर के सिकुड़ने तथा विस्तार करने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।

ग्लेशियर क्या हैं?

  • ग्लेशियर बर्फ के बड़े, मंद गति से गतिशील पिंड हैं, जो उन क्षेत्रों में बनते हैं, जहाँ तापमान कम एवं बर्फबारी लंबे समय तक होती है।
  • वे प्राकृतिक मीठे जल के भंडार के रूप में कार्य करते हैं और पृथ्वी की जलवायु एवं जल चक्र को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

ग्लेशियरों का निर्माण

  • ग्लेशियर का गठन तब होता है जब समय के साथ बर्फ के क्रिस्टल एक हिम आवरण में बदल जाते है, तथा अपने वजन के दबाव में बाहर एवं नीचे की ओर संचलित होने लगती है।
    • संचयन: बर्फबारी उच्च-ऊँचाई वाले या ध्रुवीय क्षेत्रों में होती है।
    • संघनन: समय के साथ, बर्फ की परतें अपने वजन के कारण संकुचित हो जाती हैं, जिससे घनी बर्फ का निर्माण होता है।
    • ग्लेशियरों की गति (हिमनदीय गति): गुरुत्वाकर्षण के कारण हिमनद ढलान से नीचे की ओर बढ़ता है, और आगे बढ़ने पर भूदृश्य को आकार देता है।
    • अपक्षय: तापमान में परिवर्तन के कारण बर्फ पिघलती है, जिससे हिमनद पीछे हटते हैं।

भारत के प्रमुख ग्लेशियर

हिमालय क्षेत्र में भारत के अधिकांश ग्लेशियर स्थित हैं, जो गंगा एवं यमुना जैसी प्रमुख नदियों का स्रोत हैं।

  • सियाचिन ग्लेशियर (लद्दाख): भारत का सबसे लंबा ग्लेशियर (76 किमी.)।
  • गंगोत्री ग्लेशियर (उत्तराखंड): गंगा नदी का स्रोत।
  • यमुनोत्री ग्लेशियर (उत्तराखंड): यमुना नदी का उद्गम।
  • जेमू ग्लेशियर (सिक्किम): पूर्वी हिमालय का सबसे बड़ा ग्लेशियर।
  • राथोंग ग्लेशियर (सिक्किम): तीस्ता नदी को जल की आपूर्ति करता है।
  • मिलाम ग्लेशियर (उत्तराखंड): गोरीगंगा नदी का एक प्रमुख स्रोत।
  • पिंडारी ग्लेशियर (उत्तराखंड): एक लोकप्रिय ट्रैकिंग गंतव्य।

हिमालय खतरे में

  • हिमालय, जिसे अक्सर ‘तीसरा ध्रुव’ कहा जाता है, ध्रुवीय क्षेत्रों के अतिरिक्त यहाँ पर ग्लेशियरों का सबसे बड़ी मात्रा उपस्थित है। 
    • ये ग्लेशियर निचले क्षेत्रों में रहने वाले 1.3 बिलियन से अधिक आबादी के लिए मीठे जल का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। 
  • जलवायु अध्ययनों से पता चलता है कि हिमालय में पिछली सदी में तापमान में 1.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई है। 
  • पूर्वी हिमालय, विशेष रूप से, वैश्विक औसत से अधिक दर पर गर्म हो रहा है, जहाँ तापमान में प्रत्येक दशक में 0.1 डिग्री से 0.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो रही है। 
  • सदी के अंत तक, इस क्षेत्र में तापमान में 5-6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि और 20-30% अधिक वर्षा हो सकती है।

ग्लासियर्स  के सिकुड़ने का प्रभाव

  • मीठे जल का संकट: सिकुड़ते ग्लेशियर जल की उपलब्धता और वितरण को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं, जिससे कृषि और पेयजल की आपूर्ति प्रभावित होगी।
  • GLOF जोखिम में वृद्धि: ग्लेशियल झीलों के निर्माण से विनाशकारी बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है, जैसा कि वर्ष 2023 में सिक्किम में आई आपदा में देखा गया था, जिसमें कम-से-कम 55 लोग मारे गए थे और 1,200 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना नष्ट हो गई थी।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: तापमान और वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर कर सकते हैं और जैव विविधता को प्रभावित कर सकते हैं।

ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF)

  • ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) से तात्पर्य ग्लेशियल झीलों से जल और तलछट के अचानक निकलने से है, जो प्राकृतिक रूप से हिमोढ़ (बर्फ, रेत और कंकड़ का मलबा) या ग्लेशियर बर्फ जैसी बाधाओं से अवरुद्ध हो जाती हैं।

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