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Feb 07 2025

संदर्भ

जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए अपनी पहली फेरेट अनुसंधान सुविधा, गर्भ-इनि-दृष्टि (GARBH-INi-DRISHTI) डेटा रिपॉजिटरी प्रारंभ की है।

  • इसने एक महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते पर भी हस्ताक्षर किए हैं।

गर्भ-इनि-दृष्टि (GARBH-INi-DRISHTI) डेटा रिपॉजिटरी के बारे में

  • विकासकर्ता: ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट (Translational Health Science and Technology Institute-THSTI)।
    • THSTI, फरीदाबाद (हरियाणा) में स्थित जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) का एक स्वायत्त संस्थान है।

प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते के बारे में

  • सुंद्योटा नुमान्डिस प्रोबायोस्यूटिकल्स प्राइवेट लिमिटेड (Sundyota Numandis Probioceuticals Pvt. Ltd.) के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
  • उद्देश्य: महिलाओं के स्वास्थ्य अनुप्रयोग के लिए THSTI के अभिनव माइक्रोबियल संघ, लैक्टोबैसिलस क्रिस्पैटस का व्यावसायीकरण करना।
  • संभावित अनुप्रयोग
    • प्रजनन स्वास्थ्य के लिए न्यूट्रास्युटिकल्स और प्रोबायोटिक्स।
    • योनि संक्रमण और मूत्र मार्ग संक्रमण (Urinary Tract Infections-UTI) के उपचार के लिए।

  • उद्देश्य: यह दक्षिण एशिया के गर्भवती महिलाओं के सबसे बड़े समूह संबंधी डेटासेट में से एक तक पहुँच प्रदान करेगा।
  • महत्त्व
    • इसमें 12,000 से अधिक गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशुओं और प्रसवोत्तर माताओं से प्राप्त नैदानिक ​​डेटा, चित्र और बायोस्पेसिमेन शामिल हैं।
    • वैश्विक शोधकर्ताओं को मातृ और नवजात स्वास्थ्य पर अध्ययन करने के लिए सशक्त बनाता है।
  • यह GARBH-INi कार्यक्रम का हिस्सा है, जो मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए एक राष्ट्रीय पहल है।

GARBH-INi कार्यक्रम के बारे में

  • उद्देश्य: मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य अनुसंधान को बढ़ाना तथा समय से पहले जन्म के लिए पूर्वानुमान उपकरण विकसित करना।
  • पहल: जैव प्रौद्योगिकी विभाग, केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय।
  • यह अटल जय अनुसंधान बायोटेक मिशन का हिस्सा है, जो राष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक प्रौद्योगिकी नवाचार (Undertaking Nationally Relevant Technology Innovation-UNaTI) का उपक्रम है।

भारत की पहली फेरेट अनुसंधान सुविधा के बारे में

  • यह फेरेट्स को केंद्र में रखते हुए उन्नत जैव चिकित्सा अनुसंधान के लिए डिजाइन की गई अत्याधुनिक जैव सुरक्षा प्रयोगशाला है।
  • वैक्सीन विकास, संक्रामक रोग अनुसंधान और महामारी की तैयारी के लिए भारत की क्षमता को मजबूत करता है।
  • सुविधा स्थल: THSTI, फरीदाबाद, हरियाणा।

फेरेट्स (Ferrets) क्यों?

  • फेरेट्स [मुस्टेला पुटोरियस फ्यूरो (Mustela Putorius Furo)]
    • नेवला परिवार के छोटे, मांसाहारी स्तनधारी।
    • 2,500 से अधिक वर्षों से पालतू बनाए गए और आमतौर पर बायोमेडिकल अनुसंधान में उपयोग किए जाते हैं।
  • फेरेट्स का उपयोग जैव-चिकित्सा अनुसंधान में व्यापक रूप से किया जाता है, विशेष रूप से:
    • इन्फ्लूएंजा, कोविड-19 और तपेदिक जैसी श्वसन संबंधी बीमारियाँ में।

    • उभरते संक्रामक रोगों के लिए वैक्सीन और दवा परीक्षण में।
    • न्यूरोलॉजिकल और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल अध्ययन में।
    • प्रजनन स्वास्थ्य और आनुवंशिक अनुसंधान में।
  • प्राथमिकता का कारण: उनकी श्वसन प्रणाली मनुष्यों से काफी मिलती-जुलती है, जो उन्हें वायुजनित रोगों के अध्ययन के लिए आदर्श बनाती है।

लैक्टोबैसिलस क्रिस्पैटस (Lactobacillus Crispatus) के बारे में 

  • लैक्टोबैसिलस क्रिस्पैटस (एल. क्रिस्पैटस) [Lactobacillus Crispatus (L. Crispatus)]: एक लाभदायक प्रोबायोटिक जीवाणु है, जो प्राकृतिक रूप से महिला के प्रजनन एवं मूत्र मार्ग में उपस्थित होता है।
  • लैक्टिक एसिड, हाइड्रोजन परॉक्साइड (H₂O₂) और रोगाणुरोधी यौगिकों का उत्पादन करके एक स्वस्थ वजाइनल माइक्रोबायोम को बनाए रखने में मदद करता है।
  • लैक्टोबैसिलस क्रिस्पैटस और THSTI अनुसंधान: THSTI ने GARBH-INi समूह में नामांकित भारतीय महिलाओं से एल. क्रिस्पैटस (L. Crispatus) के आनुवंशिक रूप से परिभाषित स्ट्रेन को अलग किया। 
  • गर्भवती महिलाओं के लिए यह आवश्यक है क्योंकि:
    • समय से पहले जन्म के जोखिम को कम करता है।
    • बाँझपन और गर्भावस्था की जटिलताओं से जुड़े संक्रमणों को रोकता है।

संदर्भ

केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2026-27 से प्राथमिक राजकोषीय आधार के रूप में राजकोषीय घाटे से ऋण-से-GDP अनुपात में परिवर्तन की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2031 तक ऋण-से-GDP  अनुपात को 50±1% तक कम करना है।

ऋण-से-GDP अनुपात के बारे में

  • परिभाषा: किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के सापेक्ष पिछले और वर्तमान उधारों सहित कुल संचित ऋण को मापता है।
  • संख्यात्मक शब्दों में, ऋण-से-GDP अनुपात को प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है, यह दर्शाने के लिए कि यदि GDP केवल ऋण सेवा के लिए संबद्ध है, तो ऋण चुकाने के लिए कितने वर्षों की आवश्यकता होगी।
  • यह इंगित करता है:-
    • अर्थव्यवस्था के आकार की तुलना में ऋण का स्तर।

    • आर्थिक प्रदर्शन के आधार पर किसी देश की ऋण चुकाने की क्षमता।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में ऋण-GDP अनुपात के रुझान
    • वर्ष 2023 में वैश्विक ऋण-से-GDP अनुपात ने विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में विभिन्न आँकड़े दर्शाए हैं।
    • अमेरिका को छोड़कर उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में निजी एवं सार्वजनिक ऋण में कमी के कारण GDP में 9 प्रतिशत की गिरावट आई।
      • अमेरिका ने वैश्विक कमी में योगदान दिया, जहाँ निजी ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 150% तक गिर गया, हालाँकि सार्वजनिक ऋण बढ़कर 123% हो गया।
    • चीन को छोड़कर उभरते बाजारों में सार्वजनिक ऋण में वृद्धि के कारण सकल घरेलू उत्पाद का 126% तक 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
      • चीन का कुल ऋण सकल घरेलू उत्पाद का 289% हो गया, जिसमें सार्वजनिक और निजी ऋण दोनों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
    • कम आय वाले विकासशील देशों (LIDC) में भी ऋण में वृद्धि हुई और यह सकल घरेलू उत्पाद का 88% हो गया, जिसका मुख्य कारण निजी ऋण में गिरावट के बावजूद अधिक सार्वजनिक ऋण था।
  • व्याख्या
    • उच्च ऋण-से-GDP अनुपात: इससे उच्च उधारी का संकेत मिलता है, जिससे पुनर्भुगतान क्षमता के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।

    • निम्न ऋण-से-GDP अनुपात: प्रबंधनीय ऋण स्तरों के साथ बेहतर राजकोषीय स्थिति का सुझाव देता है।

ऋण-GDP कटौती लक्ष्य

  • ऋण-GDP  कटौती लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार ने विभिन्न नाममात्र GDP वृद्धि दरों के आधार पर तीन परिदृश्यों की रूपरेखा तैयार की है:

  • यह दृष्टिकोण हल्के, मध्यम या प्रभावी राजकोषीय समेकन को चुनने में लचीलापन प्रदान करता है तथा ऋण स्थिरता के साथ विकास आवश्यकताओं को संतुलित करता है।

ऋण-GDP अनुपात को कम बनाए रखने का महत्त्व

  • निवेशकों का विश्वास बनाए रखने और आर्थिक लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए एक विवेकपूर्ण ऋण-से-GDP अनुपात आवश्यक है।
  • आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने हेतु व्यय के लिए कम ऋण-से-GDP अनुपात आवश्यक है, जो समष्टि अर्थव्यवस्था में वृद्धि संबंधी महत्त्वाकांक्षाओं को प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

ऋण-GDP अनुपात में बदलाव का औचित्य

  • दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता: समय के साथ ऋण प्रबंधन करने की राष्ट्र की क्षमता का आकलन करता है।
  • अधिक विश्वसनीय राजकोषीय उपाय: वार्षिक राजकोषीय घाटे के विपरीत, जो केवल अल्पकालिक प्रदर्शन को मापता है, अतीत और वर्तमान राजकोषीय नीतियों के संचयी प्रभाव को दर्शाता है।
  • वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यास: अंतरराष्ट्रीय राजकोषीय मानकों के साथ संरेखित करता है, आर्थिक प्रबंधन में अधिक लचीलेपन को बढ़ावा देता है।
  • पारदर्शिता में वृद्धि: यह कठोर वार्षिक राजकोषीय लक्ष्यों से अधिक पारदर्शी और परिचालन रूप से लचीले राजकोषीय मानकों की ओर बदलाव को प्रोत्साहित करता है।

ऋण-से-GDP अनुपात की सीमाएँ

  • ऋण संरचना को नजरअंदाज करना: आंतरिक (घरेलू) ऋण और बाहरी (विदेशी) ऋण के बीच अंतर को नहीं दर्शाता है।
  • राजकोषीय नीति दक्षता को प्रतिबिंबित नहीं करता है: यह इस तथ्य की व्याख्या करने में असफल है कि सरकारी खर्च उत्पादक है या निरर्थक है।

राजकोषीय घाटे के बारे में

  • परिभाषा: एक वित्तीय वर्ष के भीतर कुल सरकारी व्यय और कुल राजस्व (उधार को छोड़कर) के बीच का अंतर है।
  • यह सरकारी खर्च की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक उधार की राशि दर्शाता है।

सूत्र 

राजकोषीय घाटा = कुल सरकारी व्यय−कुल राजस्व (उधार को छोड़कर)।

  • व्याख्या
    • उच्च राजकोषीय घाटा: यह दर्शाता है कि सरकार अपनी आय से अधिक खर्च कर रही है, जिससे उधारी में वृद्धि हो रही है।
    • निम्न राजकोषीय घाटा: बेहतर वित्तीय प्रबंधन को दर्शाता है, जिससे ऋण पर निर्भरता कम होती है।
  • राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने की आवश्यकता
    • मुद्रास्फीति पर प्रभाव: लगातार उच्च राजकोषीय घाटा मुद्रास्फीति को जन्म दे सकता है।
    • क्रेडिट रेटिंग में सुधार: कम राजकोषीय घाटा राजकोषीय अनुशासन को दर्शाता है, जिससे भारत की क्रेडिट रेटिंग में सुधार होता है और उधार लेने की लागत कम होती है।
    • बेहतर सार्वजनिक ऋण प्रबंधन: कम राजकोषीय घाटा सरकार को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सस्ता ऋण सुरक्षित करने और निवेशकों को आकर्षित करने में मदद करता है।

निष्कर्ष

राजकोषीय घाटे से ऋण-GDP अनुपात को प्राथमिक राजकोषीय आधार के रूप में अपनाने से भारत की राजकोषीय स्थिरता और पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्धता का पता चलता है। संरचित ऋण-कटौती रणनीति को अपनाकर, सरकार का लक्ष्य वित्तीय स्थिरता को बढ़ाना, ऋण-योग्यता में सुधार करना और विकासोन्मुख निवेशों के लिए राजकोषीय स्थान बनाना है, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक लचीलापन और जिम्मेदार ऋण प्रबंधन सुनिश्चित हो सके।

संदर्भ

केंद्र सरकार ने वर्ष 2025-26 के बजट भाषण में छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMRs) के अनुसंधान और विकास के लिए विकसित भारत हेतु परमाणु ऊर्जा मिशन की स्थापना की घोषणा की है।

विकसित भारत के लिए परमाणु ऊर्जा मिशन के बारे में

  • उद्देश्य: घरेलू परमाणु क्षमताओं को बढ़ाना, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना और उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकियों को तैनात करना।
  • वित्तपोषण: केंद्रीय बजट 2025-26 में छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों में अनुसंधान एवं विकास के लिए ₹20,000 करोड़ आवंटित किए गए हैं, जिसका लक्ष्य वर्ष 2033 तक कम-से-कम पाँच स्वदेशी रूप से डिजाइन किए गए SMR बनाना है।
    • लक्ष्य: भारत ने वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
  • निजी क्षेत्र का प्रवेश: सरकार परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 तथा परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम में संशोधन करने की योजना बना रही है, ताकि परमाणु ऊर्जा में निजी क्षेत्र के प्रवेश को सुगम बनाया जा सके।
    • भारत लघु रिएक्टरों की स्थापना।
    • भारत लघु मॉड्यूलर रिएक्टर का अनुसंधान एवं विकास।
    • परमाणु ऊर्जा के लिए नई प्रौद्योगिकियों का अनुसंधान एवं विकास।

छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों के बारे में

  • SMR उन्नत परमाणु रिएक्टर हैं, जिनकी अधिकतम विद्युत उत्पादन क्षमता 300 मेगावाट प्रति यूनिट तक है।
    • यह पारंपरिक परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों (500 मेगावाट या उससे अधिक बिजली उत्पादन क्षमता) की उत्पादन क्षमता का लगभग एक-तिहाई है।

  • अनुप्रयोग क्षेत्र: SMR विभिन्न आउटपुट और विभिन्न अनुप्रयोगों को लक्षित करता है, जैसे कि विद्युत, हाइब्रिड ऊर्जा प्रणाली, हीटिंग, जल का अलवणीयकरण आदि।
  • परिचालन स्थिति: SMR अभी भी ज्यादातर विकास के चरण में हैं और अभी केवल कुछ प्रयोगात्मक SMR चालू हैं।
    • उदाहरण: रूस का अकादमिक लोमोनोसोव (विश्व का पहला तैरता हुआ परमाणु ऊर्जा संयंत्र)।
  • विकास की स्थिति: विश्व में SMR के लिए 80 से अधिक विभिन्न डिजाइनों पर काम चल रहा है, जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, रूस और दक्षिण कोरिया जैसे देश ऐसे रिएक्टरों का निर्माण कर रहे हैं।
    • भारत अपनी ऊर्जा संक्रमण रणनीति के एक भाग के रूप में भारत लघु मॉड्यूलर रिएक्टर (BSMR) विकसित कर रहा है।
  • लाभ
    • डिजाइन: SMR छोटे और मॉड्यूलर डिजाइन के होते हैं, जिससे उन्हें किसी भी स्थान पर बनाना और स्थापित करना अधिक किफायती हो जाता है। SMR लागत तथा निर्माण समय में बचत प्रदान करते हैं और उन्हें बढ़ती ऊर्जा माँग को पूर्ण करने के लिए क्रमिक रूप से तैनात किए जा सकते हैं।
    • अंतर्निहित सुरक्षा प्रावधान: SMR निष्क्रिय प्रणालियाँ हैं, जो भौतिक घटनाओं (जैसे, प्राकृतिक परिसंचरण, संवहन, गुरुत्वाकर्षण और स्व-दबाव) पर निर्भर करती हैं, जो दुर्घटना की स्थिति में पर्यावरण में रेडियोधर्मी कचरे के असुरक्षित रिलीज की संभावना को काफी कम करती हैं।
    • ईंधन की आवश्यकताएँ: SMR को पारंपरिक संयंत्रों के लिए 1 से 2 वर्ष की तुलना में कम आवृत्ति में ईंधन की आवश्यकता हो सकती है (प्रत्येक 3 से 7 वर्ष में)। कुछ SMR को ईंधन भरे बिना 30 वर्ष तक काम करने के लिए डिजाइन किया गया है।
    • ऊर्जा समावेशिता: SMR उन क्षेत्रों के लिए बेहतर हैं, जहाँ स्वच्छ, विश्वसनीय तथा  किफायती ऊर्जा उपलब्ध नहीं है, जो उद्योग और आबादी के लिए न्यूनतम कार्बन वाली विद्युत प्रदान करते हैं।
      • इसकी कम विद्युत उत्पादन क्षमता के कारण इसे किसी मौजूदा ग्रिड में या दूर से ऑफ-ग्रिड स्थापित किया जा सकता है।

भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता के बारे में

  • परमाणु ऊर्जा भारत में विद्युत का पाँचवाँ सबसे बड़ा स्रोत है।
  • वर्तमान स्थिति: भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता वर्ष 2014 में 4,780 मेगावाट से लगभग दोगुनी होकर वर्ष 2025 तक 8,180 मेगावाट हो गई है, जो देश के कुल बिजली उत्पादन में लगभग 3.11% (वर्ष 2020-21 तक) का योगदान देती है।

  • अनुमानित: परमाणु क्षमता वर्ष 2031-32 तक तीन गुनी होकर 22,800 मेगावाट हो जाने का अनुमान है, जिसमें वर्ष 2047 तक भारत की विद्युत उत्पादन का लगभग 9% हिस्सा परमाणु ऊर्जा से आएगा।
  • संचालित रिएक्टर: भारत में 7 परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में 23 संचालित रिएक्टर हैं, जिनमें मुख्य रूप से दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (Pressurized Heavy-Water Reactors – PHWR) और कुछ हल्के जल रिएक्टर (Light-Water Reactors -LWR) शामिल हैं।
  • विकास: परमाणु ऊर्जा का उपयोग करके विद्युत उत्पादन की शुरुआत अक्टूबर 1969 में महाराष्ट्र के तारापुर में दो रिएक्टरों के संचालित होने के साथ शुरू हुई।
  • स्वामित्व: भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का स्वामित्व और संचालन भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) और इसकी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम (BHAVINI) द्वारा किया जाता है।
    • NTPC या NHPC जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को हाल ही में परमाणु संयंत्रों के स्वामित्व और संचालन के लिए NPCIL के साथ संयुक्त उद्यम में प्रवेश करने की अनुमति दी गई है।
  • भारत की परमाणु क्षमता बढ़ाने के लिए सरकारी पहल
    • विस्तार: भारत ने वर्ष 2031-2032 तक परमाणु ऊर्जा विस्तार को 22,480 मेगावाट तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, जिसमें शामिल हैं,
      • गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, हरियाणा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में कुल 8,000 मेगावाट क्षमता के दस रिएक्टरों का निर्माण और कमीशनिंग।
      • आंध्र प्रदेश राज्य के श्रीकाकुलम जिले के कोव्वाडा में अमेरिका के सहयोग से 6 x 1208 मेगावाट क्षमता के परमाणु ऊर्जा संयंत्र की स्थापना को सैद्धांतिक मंजूरी दी गई।
    • नियंत्रित विखंडन शृंखला अभिक्रिया: राजस्थान परमाणु ऊर्जा परियोजना की इकाई-7 (भारत का तीसरा स्वदेशी परमाणु रिएक्टर) हाल ही में महत्त्वपूर्ण स्थिति में पहुँच गई, जिससे नियंत्रित विखंडन शृंखला अभिक्रिया की शुरुआत हुई।
    • भारत लघु रिएक्टर: सरकार निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में भारत लघु रिएक्टर (BSR) विकसित करके अपने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र का सक्रिय रूप से विस्तार कर रही है।
    • नई पीढ़ी के रिएक्टर: परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) हाइड्रोजन सह-उत्पादन के लिए उच्च तापमान वाले गैस-कूल्ड रिएक्टर और पिघलित साल्ट रिएक्टरों सहित नए परमाणु रिएक्टर शुरू करने जा रहा है, जिसका उद्देश्य भारत के प्रचुर थोरियम संसाधनों का उपयोग सुनिश्चित करना है।

भारत स्मॉल रिएक्टर्स

  • BSR 220 मेगावाट के प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर (PHWR) हैं।
  • उद्देश्य: भूमि की आवश्यकता को कम करने के लिए इन रिएक्टरों को अपग्रेड किया जा रहा है, ताकि उन्हें स्टील, एल्युमीनियम धातु जैसे उद्योगों के पास लगाने के लिए उपयुक्त बनाया जा सके, जो डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों में सहायता के लिए कैप्टिव पॉवर प्लांट के रूप में काम करेंगे।
  • भागीदारी: निजी संस्थाएँ भूमि, शीतलन जल और पूँजी उपलब्ध कराएँगी, जबकि न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) मौजूदा कानूनी ढाँचे के भीतर डिजाइन, गुणवत्ता आश्वासन और संचालन और रखरखाव का काम सँभालेगी।

भारत लघु मॉड्यूलर रिएक्टर (Bharat Small Modular Reactors- SMRs)

  • भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को फिर से प्रयोग में लाने और दूरदराज के इलाकों में बिजली की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए SMR विकसित कर रहा है।
    • टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स परमाणु ऊर्जा विभाग के साथ मिलकर सात या आठ वर्ष के भीतर 40-50 BSMR बनाने पर काम कर रहा है।
  • क्षमता: SMR, उन्नत परमाणु रिएक्टर हैं, जिनकी बिजली उत्पादन क्षमता 30 MWe से लेकर 300+ MWe तक होती है।
  • उद्देश्य: इसे अपनी ऊर्जा संक्रमण रणनीति के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिसका लक्ष्य ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करना है।

भारत का राज्य प्रतीक

 

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों को भारत के राज्य प्रतीक के अनुचित चित्रण को रोकने एवं देवनागरी लिपि में ‘सत्यमेव जयते’ को अनिवार्य रूप से शामिल करने को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।

भारत के राज्य प्रतीक के बारे में

  • यह भारत सरकार की आधिकारिक मुहर है।
  • अपनाया गया: 26 जनवरी, 1950 को अशोक के सारनाथ से अपनाया गया था। 

राज्य प्रतीक का उपयोग

  • केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं अन्य सरकारी एजेंसियों के लेटरहेड पर।
  • भारत की मुद्रा पर
  • भारत के पासपोर्ट पर
  • राष्ट्रीय ध्वज में अशोक चक्र राष्ट्रीय प्रतीक से लिया गया है।

राज्य प्रतीक की डिजाइन विशेषताएँ

  • सारनाथ के सिंह स्तंभ से लिया गया है:-
    • तीन शेर दिखाई देते हैं, चौथा शेर छिपा हुआ है।
    • अबेकस के केंद्र में धर्म चक्र को स्थापित किया गया है।
    • अबेकस पर जानवरों का चित्रण
      • बैल (दाएँ): वृषभ का प्रतिनिधित्व करता है, जो भगवान बुद्ध के जन्म का प्रतीक है।
      • घोड़ा (बाएँ): त्याग के दौरान बुद्ध के घोड़े कंथक का प्रतिनिधित्व करता है।
      • हाथी (पूर्व): रानी माया के सफेद हाथी के सपने का प्रतीक है।
      • सिंह (उत्तर): बुद्ध के ज्ञानोदय एवं धर्म प्रचार का प्रतिनिधित्व करता है।
  • अबेकस के सबसे दाईं एवं बाईं ओर धर्म चक्रों की रूपरेखा बनी हुई है।
  • धर्म चक्र बुद्ध के प्रथम उपदेश (धर्मचक्र प्रवर्तन) का प्रतीक है।
  • आदर्श वाक्य: प्रतीक के नीचे देवनागरी लिपि में ‘सत्यमेव जयते’ अंकित है।
    • यह आदर्श वाक्य मुंडकोपनिषद से लिया गया है।

कानूनी प्रावधान एवं जुर्माना

  • भारत का राज्य प्रतीक (अनुचित उपयोग का निषेध) अधिनियम, 2005 तथा भारत का राज्य प्रतीक (उपयोग का विनियमन) नियम, 2007 इसके अधिकृत उपयोग को विनियमित करते हैं।
  • अनधिकृत उपयोग के परिणाम हो सकते हैं:
    • 2 वर्ष तक की कैद।
    • ₹5,000 तक का जुर्माना।

‘बैगर-थाई-नेबर पालिसी’ (Beggar-Thy-Neighbour Policies)

हाल ही में ‘बैगर-थाई-नेबर पालिसी’ (Beggar-Thy-Neighbour Policies), चर्चा में रही जो अल्पकालिक घरेलू लाभों का वादा करते हुए, अक्सर वैश्विक आर्थिक अस्थिरता की ओर ले जाती हैं। 

‘बैगर-थाई-नेबर पालिसी’ (Beggar-Thy-Neighbour Policies) क्या हैं?

  • ये संरक्षणवादी आर्थिक नीतियाँ हैं, जो दूसरों की कीमत पर एक देश की अर्थव्यवस्था की सहायता करती हैं।
  • उदाहरण
    • व्यापार युद्ध: विदेशी आयात पर उच्च कर (टैरिफ) या सख्त सीमा (कोटा)।
    • करेंसी वाॅर: केंद्रीय बैंक जानबूझकर निर्यात को सस्ता एवं आयात को महंगा बनाने के लिए अपनी मुद्रा को कमजोर करते हैं।
  • अवधारणा की उत्पत्ति: यह शब्द स्कॉटिश अर्थशास्त्री एडम स्मिथ द्वारा अपनी वर्ष 1776 में प्रकाशित पुस्तक द वेल्थ ऑफ नेशंस में प्रस्तुत किया गया था।

ELS कपास 

केंद्रीय वित्त मंत्री ने केंद्रीय बजट पेश करते हुए, कपास की खेती में उत्पादकता एवं स्थिरता में सुधार तथा एक्स्ट्रा-लॉन्ग स्टेपल (Extra-Long Staple- ELS) कपास किस्मों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पाँच वर्ष के मिशन की घोषणा की।

ELS कपास क्या है?

  • ELS कपास में फाइबर की लंबाई 30 मिमी. या उससे अधिक होती है, जो इसे गुणवत्ता में बेहतर बनाती है।
  • यह मुख्य रूप से गॉसिपियम बार्बडेंस प्रजाति से संबंधित है, जिसे इजिप्टियन या पिमा कपास भी कहा जाता है।
    • गॉसिपियम हिर्सुटम: भारत में लगभग 96% कपास इस प्रजाति की है, जिसके फाइबर की लंबाई 25-28.6 मिमी (मध्यम स्टेपल) होती है।
  • ELS कपास की मुख्य विशेषताएँ
    • बेहतर गुणवत्ता: प्रीमियम वस्त्रों में उपयोग किए जाने वाले महीन, मजबूत एवं चिकने धागों का उत्पादन करती है।
    • अत्यधिक टिकाऊ: टूट-फूट के प्रति प्रतिरोधी, जो इसे लक्जरी कपड़ों एवं घरेलू वस्त्रों के लिए उपयुक्त बनाता है।
  • ELS कपास कहाँ उगाई जाती है?
    • वैश्विक स्तर पर: प्रमुख उत्पादकों में मिस्र, चीन, ऑस्ट्रेलिया एवं पेरू शामिल हैं।
    • भारत में: अटपाडी तालुका (महाराष्ट्र), कोयंबटूर (तमिलनाडु), एवं कर्नाटक तथा मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में इसकी खेती की जाती है।
  • वर्गीकरण: रेशे की लंबाई के आधार पर कपास को छोटे, मध्यम एवं लंबे रेशे में विभाजित किया जाता है।
    • रेशे की लंबाई के आधार पर कपास के प्रकार:
      • शोर्ट स्टेपल: सबसे कम फाइबर लंबाई।
      • मीडियम स्टेपल: भारत में उगाई जाने वाली अधिकतर कपास (करीब 96%) होती है। आमतौर पर, रेशे 25 से 28.6 मिमी तक होते हैं (जैसे, गॉसिपियम हिर्सुटम)।
      • लॉन्ग स्टेपल: लंबे रेशे।
      • एक्स्ट्रा-लॉन्ग स्टेपल (ELS): फाइबर 30 मिमी. या उससे अधिक लंबे होते हैं। अधिकतर गॉसिपियम बार्बडेंस प्रजाति से संबंधित, जिसे इजिप्टियन या पिमा कपास के नाम से भी जाना जाता है।
  • ELS कपास भारत में क्यों नहीं उगाया जाता?
    • कपास किसान विभिन्न कारणों से ELS कपास नहीं उगाते हैं
    • कम उपज
      • मीडियम स्टेपल कपास की पैदावार प्रति एकड़ 10-12 क्विंटल होती है।
      • ELS कपास की पैदावार प्रति एकड़ केवल 7-8 क्विंटल होती है।
    • बाजार संबंधी चुनौतियाँ
      • मजबूत बाजार संपर्क की कमी के कारण ELS कपास को प्रीमियम कीमतों पर बेचने में कठिनाई होती है।

फोर्ट विलियम अब कहलाएगा विजय दुर्ग 

सशस्त्र बलों के भीतर औपनिवेशिक प्रभाव को समाप्त करने के लिए, कोलकाता में फोर्ट विलियम का नाम बदलकर विजय दुर्ग कर दिया गया है।

  • किचनर हाउस का नाम बदलकर मानेकशॉ हाउस कर दिया गया है एवं सेंट जॉर्ज गेट अब शिवाजी गेट है।

फोर्ट विलियम के बारे में

  • निर्मित: वर्ष 1781 में अंग्रेजों द्वारा एवं इसका नाम इंग्लैंड के राजा विलियम तृतीय के नाम पर रखा गया।
  • नया नाम: विजय दुर्ग, महाराष्ट्र के ऐतिहासिक मराठा किले से प्रेरित है, जो छत्रपति शिवाजी के अधीन नौसैनिक अड्डे के रूप में कार्य करता था।
  • यह पूर्वी सेना कमान के मुख्यालय के रूप में कार्य करता है।
  • नाम बदलने का महत्त्व: यह भारत की सैन्य विरासत एवं राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक है एवं रक्षा सिद्धांतों, प्रक्रियाओं तथा रीति-रिवाजों में स्वदेशीकरण के सरकार के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

अर्जेंटीना का WHO से हटना

अर्जेंटीना के राष्ट्रपति ने एजेंसी की नीतियों से गहरी असहमतियों के कारण अर्जेंटीना को विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) से बाहर निकालने का निर्णय किया है।

WHO से हटने का कारण

  • अमेरिका की वापसी का डोमिनोज प्रभाव: यह निर्णय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इसी तरह के कदम का अनुसरण करता है।
  • प्राथमिक कारण: स्वास्थ्य प्रबंधन नीतियों पर मतभेद, विशेष रूप से COVID-19 के दौरान।
    • अर्जेंटीना ने WHO के $6.9 बिलियन के वित्त वर्ष 2024-2025 के बजट में $8 मिलियन का योगदान दिया, जिससे इसका वित्तीय प्रभाव न्यूनतम हो गया।
  • संप्रभुता संबंधी चिंताएँ: अर्जेंटीना अपने राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल निर्णयों पर अंतरराष्ट्रीय प्रभाव का विरोध करता है।

स्ट्राइकर इन्फैंट्री व्हीकल

भारत एवं अमेरिका के बीच स्ट्राइकर इन्फैंट्री व्हीकल लड़ाकू वाहनों के सह-उत्पादन के सौदे पर वार्ता चल रही है।

  • वाहन परीक्षण: स्ट्राइकर के प्रदर्शन को 13,000 से 18,000 फीट के बीच लद्दाख की उच्च ऊँचाई वाली स्थितियों में प्रदर्शित किया गया, जिसमें जेवलिन एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (Anti-Tank Guided Missile- ATGM) का परीक्षण भी किया गया।

स्ट्राइकर इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल के बारे में

  • स्ट्राइकर आठ पहियों वाले बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों का एक समूह है, जो कनाडाई LAV III से लिया गया है।
  • निर्मित: इस लड़ाकू वाहन का निर्माण जनरल डायनेमिक्स लैंड सिस्टम्स-कनाडा (General Dynamics Land Systems-Canada- GDLS-C) द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना के लिए लंदन, ओंटारियो स्थित एक संयंत्र में किया जा रहा है।

FGM-148 जेवलिन, या उन्नत एंटी-टैंक हथियार प्रणाली-मध्यम (AAWS-M)

  • यह एक अमेरिकी निर्मित मानव-पोर्टेबल एंटी-टैंक प्रणाली है, जो वर्ष 1996 से सेवा में है एवं लगातार उन्नत होती रहती है।
  • जेवलिन एक दागो एवं भूल जाओ सिद्धांत पर आधारित मिसाइल है, जिसमें लॉन्च से पहले लॉक-ऑन तथा स्वचालित स्व-निर्देशन होता है।
  • निर्माता: रेथियॉन एवं लॉकहीड मार्टिन।

संदर्भ

नए खोजे गए क्षुद्रग्रह 2024 YR4 के लगभग आठ वर्षों में पृथ्वी से टकराने की संभावना जताई जा रही है।

क्षुद्रग्रह 2024 YR4 के बारे में 

  • पृथ्वी के निकट स्थित क्षुद्रग्रह 2024 YR4 की खोज दिसंबर 2024 में चिली के रियो हर्टाडो में ऐसटेराइड टेरेस्टेरियल-इम्पैक्ट लास्ट अलर्ट सिस्टम (Asteroid Terrestrial-impact Last Alert System-ATLAS) दूरबीन द्वारा की गई थी।

  • आकार एवं प्रभाव क्षमता: इसका आकार फुटबॉल के  मैदान के समान है, जिसका माप 40 से 100 मीटर है।
    • इस आकार का एक क्षुद्रग्रह औसतन प्रत्येक कुछ हजार वर्ष में पृथ्वी से टकराता है और स्थानीय क्षेत्र को गंभीर नुकसान पहुँचा सकता है।
  • जोखिम मूल्यांकन: क्षुद्रग्रह 2024 YR4 को अब ‘टोरिनो इम्पैक्ट हजार्ड स्केल’ (Torino Impact Hazard Scale) पर लेवल 3 पर चिह्नित किया गया है, जो एक नजदीकी टकराव की संभावना है।

क्षुद्रग्रह

  • क्षुद्रग्रह सौरमंडल के निर्माण के बाद बची हुई प्राचीन अंतरिक्ष चट्टानें हैं। 
  • अधिकांश क्षुद्रग्रह, मंगल एवं बृहस्पति की कक्षाओं के बीच पाए जाते हैं, हालाँकि कुछ पृथ्वी के करीब भी आते हैं।

धूमकेतु (Comet)

  • धूमकेतु छोटे बर्फीली संरचना जैसे कण होते हैं, जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं। उल्लेखनीय है कि धूमकेतु बर्फीली संरचना और धूल से निर्मित होते हैं, जबकि क्षुद्रग्रह चट्टानों से बने होते हैं।

उल्का (Meteor) 

  • उल्का एक अंतरिक्ष चट्टान या उल्का पिंड है, जो पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है, और यह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही घर्षण के कारण जलने लगता है इसलिए इसे अक्सर ‘शूटिंग स्टार’ भी कहा जाता है। 
    • जब पृथ्वी के समक्ष कई उल्का पिंडों का आगमन होता है, तो हम इसे उल्का बौछार कहते हैं।

उल्का पिंड (Meteorite)

  • यदि कोई उल्का पिंड पृथ्वी के वायुमंडल से गुजरते हुए पृथ्वी की सतह पर  गिरता है, तो उसे उल्का पिंड कहा जाता है।

क्षुद्रग्रह और धूमकेतु के बीच अंतर

  • क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं के बीच मुख्य अंतर उनकी संरचना है, अर्थात् वे किस पदार्थ से निर्मित हुए हैं।
  • क्षुद्रग्रह धातुओं एवं चट्टानी पदार्थों से निर्मित होते हैं, हालाँकि धूमकेतु बर्फीली संरचना, धूल और चट्टानी पदार्थों से निर्मित होते हैं।
  • क्षुद्रग्रह और धूमकेतु दोनों का निर्माण सौर मंडल के इतिहास में लगभग 4.5 अरब वर्ष पूर्व हुआ था।

क्षुद्रग्रह क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?

  • सौरमंडल के निर्माण के साक्ष्य: इन्हें टाइम कैप्सूल माना जाता है, जो प्रारंभिक सौरमंडल से सामग्री को संरक्षित करते हैं।
  • संभावित संसाधन: कुछ क्षुद्रग्रहों में धातु एवं जल जैसे मूल्यवान संसाधन होने का अनुमान है, जिनका भविष्य में खनन किया जा सकता है।
  • पृथ्वी के लिए खतरा: कुछ क्षुद्रग्रहों की कक्षाएँ ऐसी होती हैं, जो उन्हें पृथ्वी के निकट लाती हैं और जबकि प्रभाव दुर्लभ होते हैं, वे पृथ्वी से टकराने पर महत्त्वपूर्ण क्षति पहुँचा सकते हैं।

क्षुद्रग्रह कितनी बार पृथ्वी से टकराते हैं?

  • प्रत्येक दिन हजारों क्षुद्रग्रह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं, लेकिन उनमें से अधिकतर छोटे होते हैं और वायुमंडलीय घर्षण के कारण जल जाते हैं।
  • विशाल क्षुद्रग्रह (1 किमी. से अधिक व्यास वाले) दुर्लभ हैं, लेकिन ये वैश्विक आपदाओं का कारण बन सकते हैं।
    • उदाहरण: चिक्सुलब क्षुद्रग्रह (66 मिलियन वर्ष पूर्व) ने डायनासोर और पृथ्वी पर 75% जीवन को समाप्त कर दिया था।
  • यहाँ तक ​​कि कुछ छोटे क्षुद्रग्रह (लगभग 40 मीटर चौड़े) भी महत्त्वपूर्ण विनाश का कारण बन सकते हैं।
    • उदाहरण: चेल्याबिंस्क क्षुद्रग्रह (2013), रूस के क्षेत्र में पृथ्वी से टकराया था, जिससे 1,500 लोग घायल हो गए और हजारों इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई थीं।
  • 40 मीटर के क्षुद्रग्रह का प्रभाव गति और प्रवेश कोण के आधार पर एक विशाल क्षेत्र को नष्ट कर सकता है।

अंतरिक्ष एजेंसियाँ ​​क्षुद्रग्रह दुर्घटनाओं को रोकने की योजना कैसे बनाती हैं?

  • नासा जैसी अंतरिक्ष एजेंसियाँ ​​क्षुद्रग्रहों को पृथ्वी से टकराने और संभावित आपदाओं को रोकने के लिए सक्रिय रूप से ग्रह रक्षा तंत्र विकसित कर रही हैं।
  • डबल एस्टेरॉयड रीडायरेक्शन टेस्ट (Double Asteroid Redirection Test-DART)
    • सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रह रक्षा मिशनों में से एक DART था, जो NASA और जॉन्स हॉपकिन्स एप्लाइड फिजिक्स लेबोरेटरी (Johns Hopkins Applied Physics Laboratory) की एक संयुक्त परियोजना थी।
    • यह NASA द्वारा किया गया पहला ग्रह रक्षा परीक्षण था।
    • वर्ष 2022 में, DART अंतरिक्ष यान जानबूझकर डिमोर्फोस (Dimorphos) नामक एक क्षुद्रग्रह से टकराया था।
      • इस प्रभाव ने सफलतापूर्वक इसके आकार और प्रक्षेप पथ को परिवर्तित कर दिया, जिससे यह सिद्ध हो गया कि अंतरिक्ष एजेंसियाँ ​​किसी क्षुद्रग्रह के पथ को पुनर्निर्देशित कर सकती हैं।
  • अन्य प्रस्तावित समाधान
    • लेजर आधारित विक्षेपण द्वारा क्षुद्रग्रह के भाग को वाष्पीकृत करना।
    • ग्रैविटी ट्रैक्टर, एक अंतरिक्ष यान, जो गुरुत्वाकर्षण का उपयोग करके क्षुद्रग्रह को धीरे-धीरे अपने मार्ग से हटाता है।

‘टोरिनो इम्पैक्ट हजार्ड स्केल’ (Torino Impact Hazard Scale)

  • वर्ष 1999 में अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ IAU द्वारा अपनाया गया टोरिनो स्केल, पृथ्वी से टकराव की संभावित घटनाओं को वर्गीकृत करने के लिए एक उपकरण है।
  • 0 से 10 तक का एक पूर्णांक पैमाना, जिसमें संबंधित रंग की कोडिंग है, इसका मुख्य उद्देश्य क्षुद्रग्रह संघट्ट खतरे की निगरानी करके सार्वजनिक संचार को सुविधाजनक बनाना है।
  • यह पैमाना संभावित घटना की संभावना एवं परिणामों को दर्शाता है, लेकिन संभावित प्रभाव तक शेष समय पर विचार नहीं करता है।
  • अधिक असाधारण घटनाओं को उच्च टोरिनो स्केल मान द्वारा इंगित किया जाता है।

ऐसटेराइड टेरेस्टेरियल-इम्पैक्ट लास्ट अलर्ट सिस्टम (Asteroid Terrestrial-impact Last Alert System-ATLAS)

  • एटलस हवाई विश्वविद्यालय द्वारा विकसित और नासा द्वारा वित्तपोषित एक क्षुद्रग्रह प्रभाव प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है। 
  • इसमें चार दूरबीनें (हवाई ×2, चिली, दक्षिण अफ्रीका) शामिल हैं, जो प्रत्येक रात्रि कई बार पूरे आकाश को स्वचालित रूप से स्कैन करती हैं और गतिशील वस्तुओं की तलाश करती हैं। 
  • एटलस, क्षुद्रग्रह के आकार के आधार पर चेतावनी समय प्रदान कर सकता है, पृथ्वी से दूर बड़े क्षुद्रग्रहों का पता लगाया जा सकता है।

अंतरराष्ट्रीय क्षुद्रग्रह चेतावनी नेटवर्क (International Asteroid Warning Network-IAWN)

  • NASA की अध्यक्षता में IAWN, क्षुद्रग्रह ट्रैकिंग और विशेषता संबंधी वर्णन में शामिल संगठनों के अंतरराष्ट्रीय समूह के समन्वय के लिए जिम्मेदार है।
  • यदि उपयुक्त हो, तो IAWN क्षुद्रग्रह प्रभाव परिणामों के विश्लेषण और किसी भी आवश्यक शमन प्रतिक्रियाओं की योजना बनाने में विश्व सरकारों की सहायता करने के लिए एक रणनीति विकसित करेगा।

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने 29 जनवरी, 2025 को केंद्र सरकार को घरेलू कामगारों के लिए एक अलग कानून बनाने का निर्देश दिया।

घरेलू कामगारों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश एवं टिप्पणी

  • एक अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन: सर्वोच्च न्यायालय ने घरेलू कामगारों की सुरक्षा के लिए कानूनी ढाँचे की आवश्यकता की जाँच करने के लिए केंद्र सरकार को एक अंतर-मंत्रालयी समिति बनाने का निर्देश दिया।
    • इस समिति में निम्नलिखित मंत्रालयों के विशेषज्ञ शामिल होंगे:
      • श्रम एवं रोजगार मंत्रालय
      • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय
      • कानून एवं न्याय मंत्रालय
      • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय।
  • समिति का उद्देश्य: इस समिति को घरेलू कामगारों के लाभ, सुरक्षा एवं विनियमन के लिए एक कानूनी ढाँचे की सिफारिश करने की वांछनीयता पर विचार करने का कार्य सौंपा गया है।
    • यह निम्नलिखित मुद्दों को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित करेगी
      • शोषण एवं दुर्व्यवहार
      • कम वेतन
      • असुरक्षित कार्य परिस्थितियाँ
      • सामाजिक सुरक्षा का अभाव।
  • प्रस्तुत करने की समयसीमा: छह महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपना आवश्यक है।
    • रिपोर्ट के आधार पर, केंद्र सरकार घरेलू कामगारों के लिए एक राष्ट्रीय कानून बनाने की आवश्यकता पर निर्णय लेगी।
  • कानूनी रिक्तता की मान्यता: न्यायालय ने घरेलू कामगारों की सुरक्षा के लिए केंद्रीय कानून की अनुपस्थिति को स्वीकार किया, जिसके कारण बड़े पैमाने पर शोषण एवं दुर्व्यवहार हुआ है।
    • इसने घरेलू कामगारों, विशेषकर हाशिए पर रहने वाले समुदायों की महिलाओं की बाधाओं को दूर करने के लिए एक समान कानूनी ढाँचे की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।
  • राज्य-स्तरीय पहल का संदर्भ: न्यायालय ने कहा कि तमिलनाडु, महाराष्ट्र एवं केरल जैसे कुछ राज्यों ने पहले ही घरेलू कामगारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए हैं।
  • हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर ध्यान केंद्रित करना: न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि घरेलू कामगार अक्सर हाशिए पर रहने वाले समुदायों (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, OBC एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) से होते हैं।
    • वित्तीय कठिनाई या विस्थापन के कारण उन्हें अक्सर घरेलू कार्य करने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे वे विशेष रूप से शोषण के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।

भारत में घरेलू कामगारों को नियंत्रित करने वाले कानून: घरेलू कामगारों के लिए कोई समर्पित केंद्रीय कानून नहीं है।

  • प्रमुख श्रम कानून एवं नीतियाँ
    • असंगठित क्षेत्र सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008: सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन प्रवर्तन का अभाव है।
    • न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948: केवल 10 राज्यों में घरेलू कार्य को अनुसूचित रोजगार के रूप में मान्यता देता है।
    • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013: इसमें घरेलू कामगार भी शामिल हैं, लेकिन प्रवर्तन कमजोर है।
    • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2000: नाबालिगों की सुरक्षा करता है, लेकिन बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 की खामियों के कारण यह सीमित है।
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020: घरेलू कामगारों को मान्यता देता है लेकिन अभी तक इसे पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है।
    • बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976: जबरन या बंधुआ मजदूरी को अपराध घोषित करता है, जिसका कई घरेलू कामगारों, विशेषकर प्रवासियों को सामना करना पड़ता है।
    • बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986: 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए घरेलू कार्य पर प्रतिबंध लगाता है, लेकिन कुछ शर्तों के तहत 14-18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए इसकी अनुमति देता है।
  • संवैधानिक संरक्षण
    • अनुच्छेद-23 मानव तस्करी, जबरन श्रम एवं भीख माँगने पर प्रतिबंध लगाता है।
    • अनुच्छेद-39(e) राज्य को व्यक्तियों के स्वास्थ्य और श्रमिकों की शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए प्रोत्साहित करता है, चाहे उनकी आयु या लिंग कुछ भी हो।

केंद्रीय विधान के लिए पूर्व में किए गए प्रयास

  • न्यायालय ने कहा कि घरेलू कामगारों के लिए एक केंद्रीय कानून लाने हेतु अतीत में कई प्रयास किए गए हैं, जिनमें शामिल हैं:
    • घरेलू कामगार (रोजगार की शर्तें) विधेयक, 1959
    • घरेलू कामगार (कार्य एवं सामाजिक सुरक्षा का विनियमन) विधेयक, 2017।
  • इनमें से कोई भी विधेयक पारित नहीं किया गया, जिससे घरेलू कामगारों को राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी संरक्षण से वंचित होना पड़ा है।
  • घरेलू कामगारों पर मसौदा राष्ट्रीय नीति (2019) (कार्यान्वित नहीं)
    • न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, दुर्व्यवहार से सुरक्षा का अधिकार।
    • प्लेसमेंट एजेंसियों का विनियमन।
    • शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना।

राज्यों के कानून

  • तमिलनाडु: घरेलू कामगारों को वर्ष 1999 में तमिलनाडु मैनुअल श्रम अधिनियम, 1982 की अनुसूची में शामिल किया गया।
    • भारत में घरेलू कामगारों को श्रमिक के रूप में कानूनी मान्यता मिलने का पहला उदाहरण है।
  • महाराष्ट्र: महाराष्ट्र घरेलू कामगार कल्याण बोर्ड अधिनियम, 2008 अधिनियमित किया गया।
    • वर्ष 2011 में महाराष्ट्र राज्य के लिए घरेलू कामगार कल्याण बोर्ड का गठन किया गया।
  • केरल: केरल घरेलू कामगार (विनियमन और कल्याण) अधिनियम’ पारित किया, जिसका उद्देश्य वर्ष 2021 में घरेलू कामगारों के अधिकारों की रक्षा करना है।

घरेलू कामगार कौन हैं?

  • घरेलू कामगार वे कामगार हैं, जो किसी के घरों में कार्य करते हैं।
    • वे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष देखभाल सेवाएँ प्रदान करते हैं तथा इस तरह देखभाल अर्थव्यवस्था के प्रमुख सदस्य हैं। 
  • उनके कार्य में निम्न कार्य शामिल हो सकते हैं:- घर की सफाई करना, खाना पकाना, कपड़े धोना एवं इस्त्री करना, बच्चों या परिवार के बुजुर्गों अथवा बीमार सदस्यों की देखभाल करना, बागवानी करना, घर की रखवाली करना, परिवार के लिए गाड़ी चलाना तथा पालतू जानवरों की देखभाल करना।
  • रोजगार के प्रकार
    • पूर्णकालिक या अंशकालिक: घरेलू कामगारों को पूर्णकालिक या अंशकालिक रूप से नियोजित किया जा सकता है।
    • लिव-इन या लिव-आउट: श्रमिक या तो नियोक्ता के घर में रह (लिव-इन) सकते हैं या अपने स्वयं के निवास में (लिव-आउट) रह सकते हैं।
    • सेवा प्रदाता: श्रमिकों को सीधे परिवार द्वारा या सेवा प्रदाता (जैसे- प्लेसमेंट एजेंसियों) के माध्यम से नियोजित किया जा सकता है।
    • प्रवासी घरेलू कामगार: कई घरेलू कामगार उन देशों में कार्य करते हैं, जहाँ वे नागरिक नहीं हैं एवं उन्हें प्रवासी घरेलू कामगार कहा जाता है।

वैश्विक सांख्यिकी एवं लैंगिक असमानता

  • दुनिया भर में कुल घरेलू कामगार: दुनिया भर में लगभग 75.6 मिलियन घरेलू कामगार हैं।
    • लैंगिक असमानता: 76.2% घरेलू कामगार महिलाएँ हैं, जिनमें पुरुषों की संख्या लगभग एक-चौथाई है।
  • भारत में घरेलू कामगार: आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, भारत में 4.75 मिलियन घरेलू कामगार हैं, जिनमें से तीन मिलियन महिलाएँ हैं।
  • भारत में केवल 10 राज्यों ने घरेलू कामगारों को न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के तहत शामिल किया है।
  • तस्करी एवं बाल श्रम: भारत में 12.6 मिलियन बाल घरेलू कामगार हैं, जिनमें से 86% लड़कियाँ हैं (ILO रिपोर्ट)।

भारत में घरेलू कामगारों की असुरक्षा

आर्थिक सुभेद्यताएँ

  • कम वेतन एवं आय असमानताएँ: घरेलू श्रमिक अन्य अनौपचारिक श्रमिकों की तुलना में काफी कम कमाते हैं। कई श्रमिकों को कार्य के घंटों के बजाय कार्यों के आधार पर मनमाने ढंग से भुगतान किया जाता है।
    • ILO का अनुमान है कि दुनिया भर में घरेलू कामगार अन्य कर्मचारियों के औसत वेतन का 56% कमाते हैं।
  • कोई न्यूनतम वेतन प्रवर्तन नहीं: भारत में केवल 10 राज्यों ने घरेलू कामगारों को न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के तहत शामिल किया है।
    • कर्नाटक में घरेलू कामगार न्यूनतम मजदूरी (कार्य के आधार पर 13,413 रुपये से 15,086 रुपये प्रति माह) के हकदार हैं, लेकिन अधिकांश श्रमिकों को यह मजदूरी कभी नहीं मिलती है।
  • कोई सामाजिक सुरक्षा या नौकरी सुरक्षा नहीं: 81% घरेलू कामगार अनौपचारिक रोजगार में लिप्त हैं (ILO रिपोर्ट), जिसका अर्थ है कि उन्हें कोई भविष्य निधि (PF), स्वास्थ्य बीमा या मातृत्व लाभ नहीं मिलता है।
    • कोविड महामारी प्रभाव: कोच्चि, दिल्ली और मुंबई (2020) में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान 57% घरेलू कामगारों को बिना मुआवजा दिए निकाल दिया गया।

कानूनी सुभेद्यताएँ

  • श्रम कानूनों से बहिष्कार: घरेलू कामगारों को प्रमुख श्रम कानूनों के तहत कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है:-
    • औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (अनुचित बर्खास्तगी से कोई सुरक्षा नहीं)।
    • वेतन संहिता, 2019 (घरेलू कार्य को कवर करता है, लेकिन कार्यान्वयन का अभाव है)।
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 (घरेलू कामगारों को मान्यता देता है, लेकिन लागू नहीं है)।
  • कोई लिखित अनुबंध या रोजगार लाभ नहीं: बंगलूरू में वर्ष 2016 में हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि केवल 2% घरेलू कामगारों के पास लिखित अनुबंध थे, जिससे उन्हें मनमाने ढंग से वेतन में कटौती, अवैतनिक ओवरटाइम और अचानक बर्खास्तगी का सामना करना पड़ता था।
  • यौन उत्पीड़न कानूनों का कमजोर प्रवर्तन: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 में घरेलू कामगार भी शामिल हैं, लेकिन इसका प्रवर्तन लगभग न के बराबर है।
    • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि जबरन मजदूरी, मानव तस्करी और हिंसा, विशेष रूप से घर पर रहने वाले श्रमिकों के लिए बड़े खतरे हैं।

सामाजिक एवं कार्यस्थल संबंधी सुभेद्यताएँ

  • जाति एवं लैंगिक भेदभाव: घरेलू कार्य को “निम्न दर्जे” और जाति-आधारित माना जाता है, जिसके कारण भेदभाव होता है।
    • जातिगत पूर्वाग्रहों के कारण कई श्रमिकों को घरेलू बर्तन, शौचालय एवं पीने के पानी तक पहुँच से वंचित कर दिया जाता है।
  • नियोक्ताओं द्वारा उत्पीड़न एवं दुर्व्यवहार: घरेलू कामगार विशेष रूप से हिंसा, उत्पीड़न एवं आवाजाही की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के प्रति संवेदनशील हैं। यह विशेष रूप से अनौपचारिक श्रमिकों के बीच प्रचलित है।
    • वर्ष 2024 में, कर्नाटक में घरेलू कामगारों ने मनमानी बर्खास्तगी, यौन शोषण एवं जाति-आधारित भेदभाव के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किया।
  • स्वास्थ्य जोखिम एवं शोषण: अन्य श्रमिकों की तुलना में घरेलू श्रमिकों के कार्य के घंटे लंबे या अनियमित होने की संभावना अधिक होती है। 
    • मुंबई में, वर्ष 2020 में सर्वेक्षण में शामिल 40% घरेलू कामगारों ने बताया कि उन्हें COVID-19 महामारी के दौरान सुरक्षा उपायों तक पहुँच प्राप्त नहीं थी।

तस्करी एवं जबरन श्रम के प्रति संवेदनशीलता

  • तस्करी एवं बाल श्रम: भारत में 12.6 मिलियन बाल घरेलू कामगार हैं, जिनमें से 86% लड़कियाँ हैं (ILO रिपोर्ट)।
  • जबरन श्रम एवं ऋण बंधन: ILO कन्वेंशन नंबर 29 जबरन श्रम को धमकी या दबाव के तहत लिया गया कार्य के रूप को परिभाषित करता है।
    • केरल और झारखंड में, लिव-इन घरेलू कामगार अक्सर जबरन मजदूरी में फँस जाते हैं, क्योंकि नियोक्ता उनकी मजदूरी और यात्रा दस्तावेज जब्त कर लेते हैं।
    • मध्य पूर्व प्रवास मार्ग में, भर्ती एजेंटों के धोखे के कारण कई भारतीय घरेलू कामगार जबरन मजदूरी जैसे दुर्व्यवहारों का सामना करते हैं।
  • ILO कन्वेंशन का अनुसमर्थन नहीं करना: भारत ने ILO कन्वेंशन 189 (घरेलू कामगारों के लिए सभ्य कार्य) या कन्वेंशन 182 (बाल श्रम के सबसे बुरा रूप) की पुष्टि नहीं की है।
    • ILO घरेलू कार्य को ‘आधुनिक गुलामी’ के रूप में मान्यता देता है, फिर भी भारत में घरेलू कामगारों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय कानून का अभाव है।

कानूनी एवं नीति कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • व्यापक कानून का अभाव: घरेलू कामगार (पंजीकरण, सामाजिक सुरक्षा और कल्याण) विधेयक, 2008 और 2017 में पेश किया गया, लेकिन कभी पारित नहीं हुआ।
    • घरेलू कामगारों पर राष्ट्रीय नीति (2019) – अभी भी मसौदा चरण में है, अनुमोदन की प्रतीक्षा की जा रही है।
  • कमजोर प्रवर्तन तंत्र: यहाँ तक ​​कि उन राज्यों में भी जहाँ घरेलू कामगार न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के अंतर्गत आते हैं, प्रवर्तन तंत्र की कमी के कारण कार्यान्वयन कमजोर है।
    • कई श्रमिकों को उनकी अनौपचारिक स्थिति और नियोक्ता के प्रभाव के कारण कानूनी रूप से अनिवार्य वेतन नहीं मिलता है।
    • केवल 10 राज्य घरेलू श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन लागू करते हैं, और जहाँ लागू किया जाता है, वहाँ भी उल्लंघन बड़े पैमाने पर होते हैं।
  • कानूनी अस्पष्टता: घरेलू कामगारों को “औपचारिक कर्मचारी” के रूप में कई प्रमुख श्रम कानूनों से बाहर रखा गया है।
    • प्रमुख श्रम कानून (जैसे कि औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947) उन्हें “कामगार” की परिभाषा के अंतर्गत शामिल नहीं करते हैं, जिससे उनके लिए कानूनी अधिकारों का दावा करना मुश्किल हो जाता है।
  • निगरानी की कमी: कारखानों या दफ्तरों के विपरीत, निजी घरों को विनियमित करना जटिल है, जिससे सरकारी एजेंसियों के लिए घरेलू कामगारों की कार्य स्थितियों, मजदूरी और दुर्व्यवहार के मामलों की निगरानी करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
    • ILO की वर्ष 2023 जबरन श्रम रिपोर्ट के अनुसार, निजी घरों में अपने कार्य की छिपी प्रकृति के कारण प्रवासी घरेलू कामगार जबरन श्रम के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं, जिससे पता लगाना तथा हस्तक्षेप करना मुश्किल हो जाता है।
  • प्लेसमेंट एजेंसियों द्वारा शोषण: कई अनियमित प्लेसमेंट एजेंसियाँ ​​उच्च भर्ती शुल्क वसूल कर, वेतन रोककर और नौकरी की शर्तों को गलत तरीके से पेश करके घरेलू कामगारों का शोषण करती हैं।
    • “केरल प्रवास सर्वेक्षण 2023” के अनुसार, प्लेसमेंट एजेंसियों के माध्यम से खाड़ी देशों में प्रवास करने वाले केरल के घरेलू कामगारों की एक बड़ी संख्या को पासपोर्ट जब्त होने की समस्या का सामना करना पड़ा, जिससे उन्हें अनिवार्य रूप से जबरन श्रम की स्थितियों का सामना करना पड़ा।
  • अपर्याप्त डेटा: घरेलू कामगारों की संख्या के बारे में विश्वसनीय आँकड़ों का अभाव है। अनुमानों में बहुत भिन्नता है, कामगारों की संख्या 4 मिलियन से 50 मिलियन तक है।

सर्वोत्तम प्रथाओं का वैश्विक उदाहरण

  • दक्षिण अफ्रीका का घरेलू कामगार अधिनियम घरेलू कामगारों के इलाज के लिए न्यूनतम मानक स्थापित करके उनकी सुरक्षा करता है। 
  • यह अधिनियम अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के घरेलू श्रमिक सम्मेलन पर आधारित है, जिसे दक्षिण अफ्रीका ने वर्ष 2013 में अनुमोदित किया था।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) कन्वेंशन 189

  • इसे घरेलू कामगार कन्वेंशन, 2011 के रूप में भी जाना जाता है। 
  • घरेलू कामगारों के लिए श्रम मानक निर्धारित करता है। 
  • वर्ष 2011 में अपनाया गया एवं वर्ष 2013 में लागू हुआ।
  • कन्वेंशन को 185 देशों के व्यापक समर्थन से अपनाया गया था।
  • भारत ने अभी तक कन्वेंशन का अनुमोदन नहीं किया है।

आगे की राह 

  • एक व्यापक केंद्रीय कानून बनाना: राष्ट्रीय श्रम कानूनों के तहत घरेलू कार्य को औपचारिक रोजगार के रूप में मान्यता देना।
    • सभी घरेलू कामगारों के लिए न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा एवं लिखित अनुबंध सुनिश्चित करना।
  • प्लेसमेंट एजेंसियों को विनियमित एवं मॉनिटर करना: राज्य श्रम विभागों के साथ सभी प्लेसमेंट एजेंसियों का पंजीकरण अनिवार्य करना।
    • यह सुनिश्चित करना कि एजेंसियाँ ​​स्पष्ट शर्तों के साथ रोजगार अनुबंध प्रदान करें।
  • न्यूनतम वेतन एवं सामाजिक सुरक्षा प्रावधान लागू करना: सभी राज्यों में घरेलू कामगारों को कवर करने के लिए न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 का विस्तार करना।
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के तहत भविष्य निधि (PF), स्वास्थ्य बीमा एवं मातृत्व लाभ तक पहुँच सुनिश्चित करना।
  • श्रम निरीक्षण एवं शिकायत निवारण को मजबूत करना: कार्यस्थल के रूप में निजी घरों की निगरानी के लिए श्रम निरीक्षकों को सशक्त बनाना।
    • घरेलू कामगारों के लिए दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने के लिए हेल्पलाइन एवं शिकायत पोर्टल स्थापित करना।
  • घरेलू कामगारों के लिए सभ्य काम पर ILO कन्वेंशन 189 की पुष्टि करना: घरेलू कार्य के लिए वैश्विक मानकों के साथ भारतीय कानूनों को संरेखित करना।
    • साप्ताहिक अवकाश के दिन, उचित वेतन एवं दुर्व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करना।
  • जागरूकता बढ़ाएँ एवं घरेलू कामगारों को संगठित करना: घरेलू कामगारों के कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूकता अभियान चलाना।
    • सामूहिक सौदेबाजी एवं वकालत के लिए घरेलू कामगार यूनियनों का समर्थन करना।
  • तस्करी एवं जबरन श्रम के विरुद्ध सुरक्षा को मजबूत करना: बाल श्रम एवं तस्करी के लिए कठोर दंड लागू करना।
    • तस्करी नेटवर्क पर नजर रखने के लिए अंतर-राज्यीय समन्वय बढ़ाना।
    • बचाए गए घरेलू कामगारों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम प्रदान करना।

निष्कर्ष 

घरेलू कामगारों के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय कानून उचित वेतन, सामाजिक सुरक्षा एवं शोषण से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि प्रवर्तन चुनौतियाँ बनी हुई हैं, सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश अधिकारों को औपचारिक रूप देने, शक्ति की गतिशीलता को पुनः परिभाषित करने तथा इस आवश्यक लेकिन कम मूल्य वाले कार्यबल में लाखों लोगों की गरिमा को बनाए रखने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है।

संदर्भ

हाल ही में मथिकेट्टन शोला नेशनल पार्क, इडुक्की में गोल्डन-हेडेड सिस्टिकोला की उपस्थिति दर्ज की ह, आमतौर पर यह पक्षी प्रजाति घास के मैदानों में पाई जाती है।

  • जैसा कि पक्षी पर्यवेक्षकों द्वारा बताया गया है कि लंबे अंतराल के बाद दक्षिणी-पश्चिमी घाट में इस पक्षी को पहली बार देखा गया है।

गोल्डन-हेडेड सिस्टिकोला [सिस्टिकोला एक्सिलिस (Cisticola Exilis)] के बारे में

  • इन्हें ब्राइट-कैप्ड सिस्टिकोला (Bright-Capped Cisticola) के नाम से भी जाना जाता है।
  • वैज्ञानिक परिवार: यह वारब्लर्स के सिस्टिकोलिडे परिवार से संबंधित है।
  • आहार: यह प्रजाति सर्वाहारी है, मुख्य रूप से कीड़े एवं छोटे स्लग जैसे अकशेरुकी जीवों का भक्षण करते हैं, लेकिन घास के बीज का भी उपभोग करती है।
  • पर्यावास: आमतौर पर पर्वत शृंखलाओं के घास के मैदानों में पाए जाते हैं।
  • वैश्विक वितरण: ऑस्ट्रेलिया एवं विभिन्न एशियाई देशों में पाया जाता है।
  • भारत में वितरण: पहले कर्नाटक, तमिलनाडु एवं उत्तरी केरल के कुछ हिस्सों में दर्ज किया गया था।
  • भौतिक विशेषताएँ 
    • प्रजनन करने वाले नर: उनके सिर, गर्दन एवं छाती पर अलग-अलग सुनहरे-नारंगी पंख होते हैं।
    • चोंच एवं निशान: इनकी गुलाबी चोंच एवं पीठ पर काली धारियाँ होती हैं।
    • पहचान: उनकी विशिष्ट कॉल से आसानी से पहचाना जा सकता है।
  • पिछली बार देखा गया: इस पक्षी को पहले केरल के वायनाड में बाणासुर पहाड़ियों के घास के मैदानों में देखा गया था।
  • IUCN स्थिति: कम चिंताग्रस्त (Least Concern)।

मथिकेट्टन शोला नेशनल पार्क के बारे में

  • स्थान: केरल के पश्चिमी घाट के भीतर पलक्कड़ गैप (दर्रे) के दक्षिणी भाग में स्थित है।
  • नाम रखा गया: मथिकेट्टन शोला, केरल का सबसे बड़ा शोला वन है।

  • पारिस्थितिक विशेषताएँ
    • शोला वन: पश्चिमी घाट के लिए अद्वितीय, जिनकी विशेषता कम ऊँचाई वाले सदाबहार वृक्ष, घनी झाड़ियाँ एवं उच्च वर्षा की स्थिति है।
    • वनस्पतियाँ: इसमें सदाबहार वन, नम पर्णपाती वन, शोला घास के मैदान एवं अर्द्ध-सदाबहार वन शामिल हैं।
  • जल स्रोत: मथिकेट्टन पर्वत शृंखला से तीन प्रमुख धाराएँ निकलती हैं:
    • उचिलकुथी पूझा।
    • मथिकेट्टन पूझा।
    • नजंदर (पन्नियार नदी की सहायक नदियाँ)।

मथिकेट्टन शोला राष्ट्रीय उद्यान का महत्त्व 

  • कार्डमम हिल रिजर्व: इडुक्की के दक्षिणी एवं उत्तरी-पश्चिमी घाट में दो बागानों के बीच एक अद्वितीय क्षेत्र है।
  • इंटरकनेक्टेड रिजर्व: एराविकुलम नेशनल पार्क एवं पंपदम शोला नेशनल पार्क के बीच स्थित है।
  • अंतरराज्यीय सीमा: केरल एवं तमिलनाडु के साथ सीमा साझा करती है।
  • देशज जनजातियाँ: मुथावन जनजाति मथिकेट्टन शोला की उत्तर-पूर्वी सीमाओं के निकट निवास करती है।

संदर्भ 

हाल ही में केंद्रीय सड़क एवं राजमार्ग मंत्री ने घोषणा की कि भारत अगले दो महीनों के भीतर (वर्ष 2025 की शुरुआत में) पेट्रोल के साथ 20% इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य हासिल कर लेगा।

संबंधित तथ्य

  • इस उपलब्धि के लिए सालाना लगभग 1,100 करोड़ लीटर ईंधन एथेनॉल के उत्पादन की आवश्यकता है।

एथेनॉल क्या है?

  • एथेनॉल एक नवीकरणीय ईंधन है, जो पादप-आधारित सामग्रियों से प्राप्त होता है, जिसे सामूहिक रूप से बायोमास के रूप में जाना जाता है।
  • इसका उत्पादन मुख्य रूप से होता है:-
    • खमीर द्वारा शर्करा का किण्वन।
    • एथिलीन जलयोजन जैसी पेट्रोकेमिकल अभिक्रियाएँ।

  • एथेनॉल का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, जैसे- 98% से अधिक अमेरिकी गैसोलीन में कुछ मात्रा में एथेनॉल मौजूद होता है।
  • सामान्य एथेनॉल मिश्रण
    • E10: इसमें 10% एथेनॉल एवं 90% गैसोलीन होता है।
    • E85: एक उच्च एथेनॉल मिश्रण, जिसका उपयोग फ्लेक्स-ईंधन वाहनों में किया जाता है।

एथेनॉल का उपयोग

  • चिकित्सा अनुप्रयोग: एक एंटीसेप्टिक एवं कीटाणुनाशक के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • औद्योगिक उपयोग: रासायनिक विलायक के रूप में कार्य करता है।
    • कार्बनिक यौगिकों के संश्लेषण में भूमिका निभाता है।
  • ईंधन विकल्प: जैव ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो जाती है।

एथेनॉल उत्पादन के स्रोत

  • प्राथमिक फीडस्टॉक्स
    • एथेनॉल का उत्पादन होगा
      • चीनी एवं उच्च श्रेणी का गुड़
      • FCI चावल
      • टूटा चावल
      • मक्का
    • सरकारी प्रोत्साहन एवं बाजार स्थिरता द्वारा समर्थित, भारत की एथेनॉल डिस्टिलरी क्षमता बढ़कर 1,600 करोड़ लीटर हो गई है।
  • चीनी आधारित एथेनॉल योगदान
    • वर्ष 2024-25 में चीनी से 400 करोड़ लीटर एथेनॉल की उम्मीद है।
    • गैर-ईंधन एथेनॉल C हेवी मोलासेस से प्राप्त किया जाएगा, जो चीनी प्रसंस्करण का निम्न-श्रेणी का उपोत्पाद है।
  • चावल आधारित एथेनॉल योगदान
    • सरकार ने डिस्टिलरीज के लिए FCI चावल की कीमतें ₹28/किलो से घटाकर ₹22.5/किग्रा कर दी हैं।
    • वर्ष 2024-25 में FCI चावल से 110 करोड़ लीटर एथेनॉल का उत्पादन किया जाएगा।
  • मक्का आधारित एथेनॉल योगदान
    • मक्के से 400 करोड़ लीटर ईंधन एथेनॉल प्राप्त होने की उम्मीद है।
    • एथेनॉल उत्पादन के लिए चीनी एवं मक्का दोनों का उपयोग करने के लिए डबल-फीड भट्टियाँ स्थापित की गई हैं।

एथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल

  • जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति (2018): इसका उद्देश्य जैव ईंधन की उपलब्धता बढ़ाना है।
    • पारंपरिक ईंधन के साथ सम्मिश्रण प्रतिशत बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • एथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (Ethanol Blending Program- EBP): वर्ष 2025-26 तक पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिश्रण प्राप्त करने का लक्ष्य।
  • PM JI-VAN  योजना: दूसरी पीढ़ी की एथेनॉल परियोजनाओं के विकास के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है।

संदर्भ

केंद्रीय बजट वर्ष 2025- 2026 जनजातीय कल्याण के लिए ऐतिहासिक वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है, जिसमें पूरे भारत में 10.45 करोड़ जनजातीय लोगों के विकास के लिए वित्तपोषण में 45.79% की वृद्धि की गई है।

जनजातीय कल्याण के लिए बजटीय सहायता

  • जनजातीय विकास के लिए कुल आवंटन: ₹14,925.81 करोड़ (2025-26) → ₹10,237.33 करोड़ (2024-25) से 45.79% की वृद्धि।
  • वर्ष 2014-15 से 231.83% की वृद्धि (₹4,497.96 करोड़): जनजातीय कल्याण पर सरकार का निरंतर ध्यान दिया जा रहा है।

प्रमुख योजनाएँ एवं आवंटन

  • एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय (EMRS)
    • वर्ष 2025-2026 आवंटन: ₹7,088.60 करोड़ (2024- 2025 में ₹4,748 करोड़ से लगभग दोगुना)।
    • उद्देश्य: दूरदराज के क्षेत्रों में आदिवासी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना।
  • प्रधानमंत्री जनजातीय विकास मिशन
    • वर्ष 2025-26 आवंटन: ₹380.40 करोड़ (₹152.32 करोड़ से ऊपर)।
    • उद्देश्य: आदिवासी समुदायों के लिए वर्ष भर आय-सृजन के अवसर पैदा करना।
  • प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना (PMAAGY)
    • वर्ष 2025-26 आवंटन: ₹335.97 करोड़ (163% वृद्धि)।
    • उद्देश्य: शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार में बुनियादी ढाँचे की कमी को पूरा करना।
  • PM-JANMAN के तहत बहुउद्देश्यीय केंद्र (MPC)
    • वर्ष 2025-2026 आवंटनः ₹300 करोड़ (₹150 करोड़ से दोगुना)।
    • उद्देश्य: विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) बाहुल्य बस्तियों में सामाजिक-आर्थिक सहायता बढ़ाना।
  • धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान (DAJGUA)
    • उद्देश्य: 63,843 गाँवों में बुनियादी ढाँचे की कमी को पूर्ण करना।
    • बजटीय परिव्यय: पाँच वर्षों में ₹79,156 करोड़ (केंद्रीय हिस्सा: ₹56,333 करोड़, राज्य हिस्सा: ₹22,823 करोड़)।
    • वर्ष 2025-26 आवंटन: ₹2,000 करोड़ (₹500 करोड़ से चौगुना)।

एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) के बारे में

  • स्थापना एवं उद्देश्य: EMRS की शुरुआत वर्ष 1997-98 में दूरदराज के क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए की गई थी, ताकि उन्हें उच्च एवं व्यावसायिक शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में अवसर प्राप्त करने तथा विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सके।
    • स्कूल छात्रों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • कवरेज: प्रत्येक स्कूल में 480 छात्रों की क्षमता है, जो कक्षा VI से XII तक के छात्रों को शिक्षा प्रदान करता है।
  • वित्तपोषण: संविधान के अनुच्छेद-275 (1) के तहत अनुदान के तहत राज्य सरकारों को स्कूलों के निर्माण और आवर्ती व्यय के लिए अनुदान दिया गया।
  • एकलव्य मॉडल डे बोर्डिंग स्कूल (EMDBS): जहाँ भी पहचाने गए उप-जिलों में एसटी आबादी का घनत्व अधिक है (90% या अधिक), वहाँ आवासीय सुविधा के बिना स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक एसटी छात्रों के लिए अतिरिक्त गुंजाइश प्रदान करने के लिए प्रायोगिक आधार पर एकलव्य मॉडल डे बोर्डिंग स्कूल (EMDBS) स्थापित करने का प्रस्ताव है।

प्रधानमंत्री जनजातीय विकास मिशन (PMJVM)

  • लॉन्च: वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 की अवधि के लिए।
  • नोडल एजेंसी: ट्राइफेड (भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ)।
  • उद्देश्य: प्राकृतिक संसाधनों के सतत् उपयोग के माध्यम से जनजातीय उद्यमिता को मजबूत करना और आजीविका के अवसरों को बढ़ाना।
  • मौजूदा योजनाओं का विलय
    • “लघु ​​वन उपज (MFP) के विपणन के लिए तंत्र” – MFP के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और मूल्य शृंखला विकास सुनिश्चित करना।
    • ‘आदिवासी उत्पादों के विकास और विपणन के लिए संस्थागत समर्थन’ – आदिवासी उद्यमों और मूल्य संवर्द्धन को बढ़ावा देना।
  • प्रमुख फोकस क्षेत्र
    • लघु वनोपज, कृषि एवं गैर-कृषि गतिविधियों के माध्यम से सतत् आजीविका सृजन।
    • आदिवासी उद्यमों, सहकारी समितियों एवं स्व-प्रबंधित उत्पादक समूहों को बढ़ावा देना।
    • बाजार संबंधों एवं मूल्य शृंखला विकास को सुदृढ़ बनाना।

प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना (PMAAGY)

  • यह महत्त्वपूर्ण जनजातीय आबादी वाले गाँवों को आदर्श गाँवों में बदलने की योजना है।
  • यह जनजातीय उप-योजना (SCA  से TSS) के लिए विशेष केंद्रीय सहायता का एक नया संस्करण है।
  • अवधि: वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 के दौरान कार्यान्वित किया जाएगा।
  • उद्देश्य
    • स्वास्थ्य, शिक्षा, कनेक्टिविटी और आजीविका जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे में सुधार करना।
    • आवश्यकताओं, संभावनाओं और आकांक्षाओं के आधार पर ग्राम विकास योजनाएँ तैयार करना।
    • अनुसूचित आबादी को केंद्र और राज्यों की योजनाओं का अधिकतम लाभ पहुँचाना।

धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान पैकेज

  • वर्ष 2024 में केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में लॉन्च किया जाएगा।
  • कुल परिव्यय: पाँच वर्षों में कार्यान्वयन के लिए ₹79,156 करोड़ आवंटित किए गए।
  • उद्देश्य: आदिवासी बहुल गाँवों और आकांक्षी जिलों में आदिवासी परिवारों के लिए संतृप्ति कवरेज को अपनाकर आदिवासी समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करना।
  • कवरेज: यह 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के सभी आदिवासी बहुल गाँवों में फैले 549 जिलों और 2,740 ब्लॉकों को कवर करेगा।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • 25 लक्षित हस्तक्षेपों के माध्यम से 17 मंत्रालयों का एकीकरण। 
    • स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना।

भारत में अनुसूचित जनजातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • भारत का संविधान ‘जनजाति‘ को परिभाषित नहीं करता है।
  • अनुसूचित जनजाति (ST) शब्द को अनुच्छेद-342(1) में शामिल किया गया।
  • अनुच्छेद-342(1): राष्ट्रपति सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा, संवैधानिक उद्देश्यों के लिए अनुसूचित जनजाति मानी जाने वाली जनजातियों या जनजातीय समुदायों को निर्दिष्ट कर सकते हैं।
  • भारत में आदिवासियों के शैक्षिक और सांस्कृतिक अधिकार
    • अनुच्छेद-15(4): अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान।
    • अनुच्छेद-29: अल्पसंख्यकों के अधिकारों के तहत आदिवासी पहचान, संस्कृति और भाषा का संरक्षण।
    • अनुच्छेद-46: राज्य को अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना चाहिए और उन्हें सामाजिक अन्याय तथा शोषण से बचाना चाहिए।
    • अनुच्छेद-350: एक अलग भाषा, लिपि या संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार।
  • राजनीतिक अधिकार
    • अनुच्छेद-330: लोकसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण।
    • अनुच्छेद-332: राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण।
    • अनुच्छेद-243D: जमीनी स्तर पर राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए पंचायतों में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण।
  • प्रशासनिक एवं आर्थिक अधिकार
    • अनुच्छेद-275(1): अनुसूचित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और प्रशासन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को अनुदान सहायता।
    • अनुच्छेद-244(1)
      • पाँचवीं अनुसूची: असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के अलावा अन्य राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू होती है।
      • छठी अनुसूची: असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा में आदिवासी क्षेत्रों को नियंत्रित करती है, स्वायत्त जिला परिषदों (ADC) को अनुमति देती है।
    • अनुच्छेद-16(4): अनुसूचित जनजातियों सहित पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान करता है।
    • अनुच्छेद-16(4A): सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति देता है।

भारत में जनजातियों के समक्ष प्रमुख मुद्दे

  • भूमि एवं संसाधन अधिकार: बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं, खनन और वनों की कटाई के कारण आदिवासी समुदायों को जबरन विस्थापित किया गया है।
    • वर्ष 2022 तक, FRA के तहत 42.76 लाख दावों में से केवल 50% को ही मंजूरी दी गई (जनजातीय मामलों का मंत्रालय)।
  • सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिए पर मौजूद हैं: भारत में अनुसूचित जनजातियों की गरीबी दर सबसे अधिक है।
    • दूरस्थ आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता का अभाव।
  • शैक्षणिक अंतर: गरीबी, स्कूलों की कमी और सांस्कृतिक अंतर के कारण अनुसूचित जनजातियों में स्कूल छोड़ने की दर अधिक है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जनजातियों (एसटी) में साक्षरता दर 59% थी, जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।
  • शोषण और बंधुआ मजदूरी: आदिवासी बहुल क्षेत्रों में मानव तस्करी और बाल श्रम प्रमुख मुद्दे हैं।
    • आर्थिक अवसरों की कमी के कारण कई एसटी को कम वेतन वाली और जोखिम भरी नौकरियों के लिए मजबूर होना पड़ता है।
  • सांस्कृतिक क्षरण: शहरीकरण और आधुनिकीकरण के कारण आदिवासी भाषाएँ, परंपराएँ और रीति-रिवाज संकट का सामना कर रहे हैं।
    • राष्ट्रीय सांस्कृतिक नीतियों और मीडिया में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व का अभाव: संवैधानिक सुरक्षा उपायों के बावजूद, एसटी समुदायों की अक्सर राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर नीति निर्धारण में बहुत कम भूमिका होती है।

जनजातीय कल्याण के लिए आगे की राह

  • भूमि एवं संसाधन अधिकार: वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 का कठोरता से क्रियान्वयन, ताकि अनुसूचित जनजातियों को कानूनी भूमि अधिकार प्रदान किए जा सकें।
    • विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापन से सुरक्षा।
  • शिक्षा एवं कौशल विकास: आदिवासी छात्रों को उनकी मातृभाषा में सीखने में मदद करने के लिए द्विभाषी शिक्षा कार्यक्रम।
    • आदिवासी बच्चों में स्कूल छोड़ने की दर को कम करने के लिए छात्रवृत्ति एवं प्रोत्साहन।
    • शिक्षा तक पहुँच में सुधार के लिए EMRS (एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय) का विस्तार।
  • स्वास्थ्य सेवा एवं स्वच्छता: आदिवासी बहुल क्षेत्रों में स्वास्थ्य अवसंरचना को मजबूत करना।
    • सिकल सेल रोग, कुपोषण और मातृ स्वास्थ्य के लिए विशेष स्वास्थ्य सेवा पहल।
  • महिला सशक्तीकरण: आदिवासी महिला सशक्तीकरण योजना (AMSY) जैसी योजनाओं के तहत आदिवासी महिलाओं के लिए कौशल विकास कार्यक्रम।
    • वित्तीय स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए स्वयं सहायता समूह (SHG) और माइक्रो-क्रेडिट योजनाएँ।
  • सांस्कृतिक संरक्षण: ट्राइफेड, आदि महोत्सव और सांस्कृतिक उत्सवों के माध्यम से आदिवासी कला और विरासत को प्रोत्साहित करना।
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म और समुदाय द्वारा संचालित स्कूलों के माध्यम से स्वदेशी भाषाओं को समर्थन देना।
  • समावेशी शासन और प्रतिनिधित्व: स्थानीय शासन में बेहतर भागीदारी के लिए आदिवासी क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को मजबूत बनाना।
    • नीति निर्धारण निकायों में ST का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष

केंद्रीय बजट 2025-26 में शिक्षा, आर्थिक अवसरों, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक संरक्षण को बढ़ावा देकर आदिवासी सशक्तीकरण को बढ़ावा दिया गया है। इस व्यापक दृष्टिकोण का उद्देश्य आत्मनिर्भर, सशक्त आदिवासी समुदायों का निर्माण करना है, जो विकसित भारत के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाता है।

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