100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

Feb 08 2025

NO2 उत्सर्जन से संबंधित अध्ययन

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में भारत में फसल के नुकसान पर कोयला बिजली संयंत्र उत्सर्जन के प्रभाव का अध्ययन किया गया है।

NO2 उत्सर्जन 

  • नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) एक गैस है, जो मुख्य रूप से कोयला, तेल जैसे जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन से वायु में संचारित होती है। 
  • NO2 के लक्षण
    • अभिक्रियाशील गैस: यह एक अभिक्रियाशील गैस है, जो वायु में अन्य पदार्थों के साथ आसानी से संपर्क करती है।
    • NOx का भाग: यह नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) नामक गैसों के समूह से संबंधित है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • फसल के नुकसान की रोकथाम: अध्ययन में पाया गया कि भारत में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) उत्सर्जन को समाप्त करने से सालाना लगभग 1 बिलियन डॉलर की फसल के नुकसान को रोका जा सकता है।
    • इन संयंत्रों से NO₂ उत्सर्जन कई क्षेत्रों में गेहूँ एवं चावल की पैदावार को 10% या उससे अधिक कम कर देता है।
    • आर्थिक प्रभाव
      • संभावित लाभ: प्रमुख उत्पादन मौसमों (जनवरी-फरवरी और सितम्बर-अक्टूबर) के दौरान कोयला उत्सर्जन को समाप्त करने से:-
        • चावल उत्पादन मूल्य में प्रति वर्ष लगभग $420 मिलियन की वृद्धि करना।
        • गेहूँ उत्पादन मूल्य में प्रति वर्ष $400 मिलियन की वृद्धि करना।
  • कोयला उत्सर्जन का राज्यवार प्रभाव
    • कोयला विद्युत संयंत्रों से NO₂ प्रदूषण राज्यों में भिन्न-भिन्न है:
      • छत्तीसगढ़: कोयला संयंत्र NO₂ प्रदूषण में 13-19% का योगदान करते हैं।
      • उत्तर प्रदेश: कोयला संयंत्र NO₂ प्रदूषण में केवल 3-5% का योगदान करते हैं।
      • अन्य NO₂ स्रोतों में वाहन एवं उद्योग शामिल हैं।
    • दीर्घकालिक फसल हानि
      • पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, फसल उपज का नुकसान वार्षिक रूप से 10% से अधिक है।
        • यह छह वर्ष की औसत वार्षिक उपज वृद्धि (2011-2020) के बराबर है।

इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस (IBCA)

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने घोषणा की है कि इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस (IBCA) की स्थापना पर फ्रेमवर्क समझौता आधिकारिक तौर पर लागू हो गया है।

इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस ( IBCA)

  • लॉन्च: वर्ष 2023 में भारत में प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में एक कार्यक्रम में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा लॉन्च किया गया।
  • उद्देश्य: सात बिग कैट्स के प्राकृतिक आवासों को कवर करने वाले 97 देशों का संगठन बनाना।
    • सात बिग कैट्स में बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, चीता, जगुआर एवं प्यूमा शामिल हैं
    • सात बिग कैट्स में से पाँच प्यूमा एवं जगुआर को छोड़कर, बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ तथा चीता भारत में पाए जाते हैं।
  • 24 देशों (भारत सहित) ने IBCA का सदस्य बनने के लिए सहमति दे दी है। 
    • संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश IBCA के सदस्य बनने के पात्र हैं।
  • IBCA शासन: सभी सदस्य राष्ट्रों से बनी एक आम सभा, एक निर्वाचित सदस्य राष्ट्र परिषद और एक सचिवालय द्वारा शासित होगी।
  • IBCA की फंडिंग: IBCA ने पाँच वर्षों (2023-24 से 2027-28) के लिए भारत सरकार से 150 करोड़ रुपये की प्रारंभिक सहायता प्राप्त की है।
  • मुख्यालय: भारत

जेवॉन्स पैराडॉक्स

(Jevons Paradox)

हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट के CEO सत्य नडेला ने AI के संबंध में जेवॉन्स पैराडॉक्स को संदर्भित किया, उन्होंने कहा कि AI की दक्षता में वृद्धि एवं पहुँच से माँग में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।

जेवॉन्स पैराडॉक्स

  • जेवॉन्स पैराडॉक्स में कहा गया है कि तकनीकी प्रगति जो दक्षता बढ़ाती है या किसी संसाधन के उपयोग की लागत को कम करती है, अक्सर इसकी समग्र खपत में वृद्धि करती है।
  • यह अवधारणा वर्ष 1865 में अर्थशास्त्री विलियम स्टेनली जेवॉन्स द्वारा प्रस्तुत की गई थी।
  • मुख्य सिद्धांत: जैसे-जैसे तकनीकी प्रगति से संसाधन उपयोग की दक्षता में सुधार होता है, उस संसाधन की कुल खपत घटने के बजाय बढ़ने लगती है।
  • स्पष्टीकरण
    • सामान्य अवधारणा: जब कोई तकनीक दक्षता बढ़ाती है, तो उससे समग्र संसाधन खपत कम होने की संभावना होती है।
    • जेवॉन्स का तर्क: बढ़ी हुई दक्षता संसाधन के उपयोग की प्रभावी लागत को कम कर देती है, जिसके परिणामस्वरूप माँग बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप, कुल खपत में गिरावट के बजाय वृद्धि हो सकती है।

जेवॉन्स पैराडॉक्स के उदाहरण

  • कोयला एवं भाप इंजन: जेवॉन्स ने वर्ष 1865 में अपनी पुस्तक द कोल क्वेश्चन में लिखा कि भाप इंजन की बेहतर कार्यकुशलता के कारण कोयले की खपत में वृद्धि हुई, जबकि इसमें गिरावट की संभावना थी।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI): जैसे-जैसे AI मॉडल अधिक कुशल एवं किफायती होते जाते हैं, उनकी स्वीकार्यता बढ़ती है, जिससे डेटा केंद्रों में ऊर्जा की खपत बढ़ जाती है।
  • परिवहन में ऊर्जा दक्षता: ईंधन कुशल वाहनों के आने से प्रति मील ईंधन लागत कम हो जाती है, जिससे लोग वाहनों के अधिक उपयोग हेतु प्रोत्साहित होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अंततः समग्र ईंधन खपत बढ़ जाती है।

एकुवेरिन अभ्यास

(Exercise Ekuverin)

भारतीय सेना एवं मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास ‘एकुवेरिन’ का 13वाँ संस्करण मालदीव में शुरू हो गया है।

एकुवेरिन अभ्यास 

  • अर्थ: धिवेही (Dhivehi) भाषा में ‘एकुवेरिन’ शब्द का अर्थ ‘मित्र’ है।
    • धिवेही एक इंडो-यूरोपीय भाषा है, जो मालदीव एवं भारतीय केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप में बोली जाती है।
  • लक्ष्य एवं उद्देश्य: उग्रवाद एवं आतंकवाद विरोधी अभियानों में अंतरसंचालनीयता को बढ़ाना।
    • इसमें संयुक्त मानवीय सहायता एवं आपदा राहत अभियान भी शामिल हैं।

भारत एवं मालदीव के बीच अन्य अभ्यास

  • अभ्यास एकथा (Exercise Ekatha): भारत एवं मालदीव की नौसेनाओं के बीच एक वार्षिक अभ्यास।
  • दोस्ती त्रिपक्षीय अभ्यास: भारत, मालदीव एवं श्रीलंका का संयुक्त एक द्विवार्षिक त्रिपक्षीय तट रक्षक अभ्यास।

4.3 गीगावॉट सौर विनिर्माण इकाई का उद्घाटन

हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने तमिलनाडु के तिरुनेलवेली में 4.3 गीगावाट सौर सेल एवं मॉड्यूल विनिर्माण सुविधा का उद्घाटन किया है।

संबंधित तथ्य

  • सौर सेल एवं मॉड्यूल विनिर्माण संयंत्र भारत की सबसे बड़ी एकल-स्थान सौर विनिर्माण सुविधा है।
  • प्रौद्योगिकी: संयंत्र अत्याधुनिक TOPCon एवं Mono Perc प्रौद्योगिकियों से सुसज्जित है एवं मॉड्यूल निर्माण के लिए कुछ कच्चे माल का भी उत्पादन करेगा।
  • परियोजना: यह सुविधा TP सोलर लिमिटेड (टाटा पॉवर की सौर विनिर्माण शाखा एवं टाटा पॉवर नवीकरणीय ऊर्जा लिमिटेड की सहायक कंपनी) द्वारा विकसित की गई है।
  • उद्देश्य: यह सुविधा 4 गीगावाट की वार्षिक क्षमता वाली सौर ऊर्जा उत्पादन इकाइयों के लिए फोटोवोल्टिक सेल एवं मॉड्यूल का उत्पादन करेगी। 
  • महत्त्व
    • भारत के सौर उद्योग का समर्थन: यह सुविधा आवासीय, वाणिज्यिक और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए सौर संयंत्रों और रूफटॉप परियोजनाओं में बेहतर दक्षता और दीर्घकालिक विश्वसनीयता प्रदान करेगी।
    • स्थानीय रोजगार का सृजन: यह सुविधा रोजगार के अवसर उत्पन्न कर सामुदायिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, जिसमें 80% कार्यबल महिलाएँ होंगी।
    • क्षमता निर्माण: यह आपूर्ति शृंखला को मजबूत करके भारत की सौर विनिर्माण क्षमताओं को मजबूत करेगा।
    • नेट जीरो लक्ष्य: यह सुविधा भारत के 500 गीगावाट की सौर ऊर्जा क्षमता एवं वर्ष 2070 तक नेट जीरो के लक्ष्य को प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करेगी।

राष्ट्रीय फेलोशिप योजना

OBC एवं अनुसूचित जाति के अनुसंधान विद्वानों ने राष्ट्रीय फेलोशिप के तहत अपने अनुदान प्राप्त करने में देरी की सूचना दी है। 

अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप योजना के बारे में

  • यह एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है।
  • लॉन्च: वित्तीय वर्ष 2005-06 में।
  • उद्देश्य: विज्ञान, मानविकी और सामाजिक विज्ञान में M.Phil और PHD की डिग्री प्राप्त करने वाले अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा के अवसर प्रदान करना।
  • क्रियान्वयन एजेंसी
    • केंद्रीय नोडल एजेंसी (CNA): 1 अक्टूबर, 2022 से योजना को लागू करने के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम (NSFDC) का दायित्व।
      • पहले, इस योजना का प्रबंधन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा किया जाता था।
  • NSFDC  की भूमिका
    • कार्यान्वयन के लिए दिशा-निर्देश एवं प्रक्रियाएँ स्थापित करना।
    • फेलोशिप के लिए लाभार्थियों का चयन करना।
    • चयनित अभ्यर्थियों को फेलोशिप धनराशि वितरित करना।

मृत्युदंड में नाइट्रोजन गैस का प्रयोग 

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के अलबामा में वर्ष 1991 में हुई हत्या के लिए एक व्यक्ति को नाइट्रोजन गैस का उपयोग करके मौत की सजा दी गई, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में मृत्युदंड के रूप में चौथी सजा थी। 

संबंधित तथ्य

  • अलबामा वर्ष 2024 में नाइट्रोजन गैस द्वारा मृत्युदंड की सजा सुनाने वाला अमेरिका का पहला राज्य बन गया था। 
  • यह विधि अपराधी को बेहोश करने के लिए शुद्ध नाइट्रोजन का उपयोग करती है। 
  • इस प्रक्रिया में अपराधी के मुँह एवं नाक पर नाइट्रोजन से भरे फेस मास्क का उपयोग किया जाता है।
    • इससे ऑक्सीजन का प्रवाह बाधित हो जाता है, जिससे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
    • इससे मनुष्य में मानसिक दौरे जैसी गतिविधियाँ हो सकती हैं। 
  • यह तकनीक कुछ ही मिनटों में किसी व्यक्ति की जान ले सकती है।

विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता बना भारत

भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल विनिर्माण करने वाला देश बनकर उभरा है, जो इसके इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का प्रतीक है।

संबंधित तथ्य

  • वर्ष 2014-15 में भारत में बिकने वाले मोबाइल फोन में से केवल 26% ही भारत में बनते थे, बाकी आयात किए जाते थे। वर्ष 2024 में भारत में बिकने वाले सभी मोबाइल फोन में से 99.2% भारत में बनते थे। 
  • चीन विश्व का सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता देश है।

भारत में मोबाइल विनिर्माण की वर्तमान स्थिति

  • घरेलू उत्पादन में वृद्धि: वर्ष 2014-15 में, भारत में बेचे गए केवल 26% मोबाइल फोन स्थानीय स्तर पर निर्मित किए गए थे, जिनमें से अधिकांश आयात किए गए थे।
  • आत्मनिर्भरता की ओर बदलाव: यह वृद्धि भारत के आयात निर्भर राष्ट्र से मोबाइल विनिर्माण के वैश्विक केंद्र में परिवर्तन को संबोधित करती है।

मोबाइल विनिर्माण में भारत की वृद्धि के प्रमुख कारण

  • सरकारी पहल एवं नीति समर्थन
    • मेक इन इंडिया (2014): घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित किया गया एवं आयात पर निर्भरता कम की गई।
    • प्रोडक्शन लिंक्ड इनिशिएटिव (PLI) योजना (2020): इस योजना के द्वारा वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना। 
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि: स्वचालित मार्ग के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में 100% FDI की अनुमति ने वैश्विक हितधारकों को आकर्षित किया।
  • स्मार्टफोन की बढ़ती घरेलू माँग: इंटरनेट की बढ़ती पहुँच एवं किफायती डेटा ने स्मार्टफोन के प्रयोग को बढ़ावा दिया है।
  • टैरिफ एवं आयात शुल्क नीतियाँ: आयातित मोबाइल फोन एवं घटकों पर सीमा शुल्क में वृद्धि ने स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित किया।
  • भू-राजनीतिक एवं बाजार कारक: अमेरिका-चीन व्यापार तनाव ने वैश्विक निर्माताओं को भारत में उत्पादन में विविधता लाने के लिए प्रेरित किया।
    • आपूर्ति शृंखला में परिवर्तन के कारण एप्पल एवं फॉक्सकॉन जैसी कंपनियों ने परिचालन का विस्तार किया है।

संदर्भ 

हाल ही में कोट्टक्कल, मलप्पुरम (केरल) की एक आठ वर्षीय लड़की की ब्रुसेलोसिस नामक संक्रामक रोग से मृत्यु हो गई।

संबंधित तथ्य

  • यह संक्रमण बिना पाश्चुरीकृत दूध के सेवन से संबंधित है। केरल में हालिया वर्षों में इस रोग के कुछ मामले सामने आए हैं।

ब्रुसेलोसिस रोग 

  • ब्रुसेलोसिस, ब्रुसेला प्रजाति के कारण होने वाला एक जीवाणु जनित रोग है, जो मुख्य रूप से मवेशियों, बकरियों, भेड़, सूअर एवं कुत्तों को प्रभावित करता है।
  • जूनोटिक रोग: ब्रुसेलोसिस जानवरों द्वारा प्रसारित सबसे व्यापक जूनोटिक रोगों में से एक है।
    • पशु उद्योगों एवं शहरीकरण का विस्तार, तथा पशुपालन एवं खाद्य प्रबंधन में स्वच्छ उपायों की कमी, आंशिक रूप से ब्रुसेलोसिस के सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बने रहने का कारण है।
  • संचरण: मनुष्य इस रोग से निम्नलिखित  माध्यम से ग्रसित होता है:
    • संक्रमित जानवरों से प्रत्यक्ष संपर्क।
    • दूषित पशु उत्पादों, विशेष रूप से बिना पाश्चुरीकृत दूध एवं पनीर का सेवन करना।
    • वायुजनित जीवाणुओं के  अंतःश्वसन से।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मानव-से-मानव संचरण अत्यंत दुर्लभ है।
  • ब्रुसेलोसिस के लक्षण: बुखार, कमजोरी एवं थकान, वजन में कमी तथा सामान्य अस्वस्थता।
  • अवधि: यह एक सप्ताह से दो महीने तक होती है, अधिकांश मामलों में लक्षण दो से चार सप्ताह के भीतर दिखाई देते हैं।
  • उपचार: ब्रुसेलोसिस का उपचार डॉक्सीसाइक्लिन एवं स्ट्रेप्टोमाइसिन सहित एंटीबायोटिक दवाओं के संयोजन से किया जाता है।

ब्रुसेला (बी. एबॉर्टस) 

  • संक्रमण एवं प्रसार: ब्रुसेला रेटिकुलोएंडोथेलियल प्रणाली को संक्रमित करता है, जहाँ यह लंबे समय तक जीवित रहता है।
  • प्रजनन एवं स्तनग्रंथि  संक्रमण: मवेशियों की गर्भावस्था के दौरान, यह ट्रोफोब्लास्ट एवं स्तन ग्रंथियों में संक्रमण करता है, जिससे व्यापक प्रतिकृतिकरण (Replication) होता  है।
  • संचरण: गर्भपात, दुग्ध, प्लेसेंटा एवं भ्रूण के माध्यम से प्रसार का कारण बनता है, जो संक्रमण का प्राथमिक स्रोत बन जाता है।
  • पर्यावरणीय अस्तित्व: कार्बनिक पदार्थों में हफ्तों तक जीवित रहता है लेकिन सूर्यप्रकाश  में नष्ट हो जाता है।
  • रोकथाम: पाश्चुरीकरण या किण्वन बैक्टीरिया को समाप्त करता है।
  • महामारी विज्ञान (Epidemiology): जंगली जानवरों से संक्रमण फैलता है, मनुष्य और घोड़े इसके वाहक नहीं हैं।

निवारक उपाय 

  • पशुधन का टीकाकरण: मवेशियों, बकरियों एवं भेड़ों का टीकाकरण संचरण को नियंत्रित करने में सहायता कर सकता है।
  • दूध का पाश्चुरीकरण: यह सुनिश्चित करना कि उपभोग से पहले दूध एवं डेयरी उत्पादों का पाश्चुरीकरण किया जाए, जिससे संक्रमण से बचा जा सके।
  • जन जागरूकता अभियान: लोगों को बिना पाश्चुरीकृत दूध के खतरों के बारे में शिक्षित करना एवं सुरक्षित डेयरी प्रथाओं को बढ़ावा देना।
  • नियामक नीतियाँ: बिना पाश्चुरीकृत दूध एवं डेयरी उत्पादों की बिक्री तथा वितरण पर कठोर नियम लागू करना।

संदर्भ

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने रेपो रेट में 25 आधार अंक (bps) की कटौती की घोषणा की है, जिससे यह घटकर 6.25% हो गई है।

संबंधित तथ्य 

  • वर्ष 2024- वर्ष 2025 के लिए GDP वृद्धि 6.4% रहने का अनुमान है, जो चार वर्षों में सबसे कम है।
  • RBI ने अगले वित्त वर्ष (2025-26) के लिए GDP वृद्धि 6.7% रहने का अनुमान लगाया है।
  • सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में वर्ष 2025- 2026 के लिए 6.3-6.8% के बीच वृद्धि का अनुमान लगाया गया है, जिसे बाह्य खाते, राजकोषीय समेकन और स्थिर निजी खपत का समर्थन प्राप्त है।

रेपो दर में कटौती

  • रेपो दर में यह कटौती पाँच वर्ष में पहली बार की (पिछली कटौती मई 2020 में की गई थी) गई है।
  • इससे पहले रेपो दर 6.5% थी।
  • यह निर्णय छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) द्वारा सर्वसम्मति से लिया गया।
  • दर में कटौती का उद्देश्य उधार को सस्ता करके, खर्च और निवेश को प्रोत्साहित करके आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा देना है।
  • यह केंद्र द्वारा व्यक्तिगत आयकर में कटौती के तुरंत बाद किया गया है, जो आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए समन्वित प्रयासों को दर्शाता है।

निर्णय का संभावित प्रभाव

  • रेपो दर में कमी से बाहरी बेंचमार्क ऋण दरें (External Benchmark Lending Rates-EBLR) कम हो जाएँगी, जिससे उधारकर्ताओं के लिए EMI कम हो जाएगी।
  • फंड आधारित ऋण दर (Marginal Cost of Fund-Based Lending Rate-MCLR) की सीमांत लागत से जुड़े ऋणों पर ब्याज दरें भी कम हो सकती हैं।

मौद्रिक नीति समिति (MPC)

  • MPC भारतीय रिजर्व बैंक की छह सदस्यीय समिति है, जो देश की मौद्रिक नीति, मुख्य रूप से रेपो दर निर्धारित करने के लिए जिम्मेदार है।
  • कानूनी ढाँचा: MPC के लिए एक वैधानिक और संस्थागत ढाँचा प्रदान करने के लिए RBI अधिनियम, 1934 को वित्त अधिनियम, 2016 द्वारा संशोधित किया गया था।
  • मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण: MPC का लक्ष्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति को 4% पर रखना है, जिसमें 2% से 6% की सहनशीलता बैंड है।
  • संरचना: इसमें अध्यक्ष सहित 6 सदस्य हैं।
    • RBI के 3 सदस्य।
    • सरकार द्वारा मनोनीत 3 बाहरी सदस्य।
    • RBI के गवर्नर MPC के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
  • बैठक की आवृत्ति: MPC को वर्ष में कम-से-कम चार बार परिचर्चा करना आवश्यक है।
  • कोरम: एक वैध बैठक के लिए कम-से-कम चार सदस्यों की आवश्यकता होती है।
  • मतदान: प्रत्येक सदस्य के पास एक वोट होता है।
    • बराबरी की स्थिति में, गवर्नर के पास दूसरा या निर्णायक वोट होता है।
  • मौद्रिक नीति रिपोर्ट: RBI प्रत्येक छह महीने में एक मौद्रिक नीति रिपोर्ट जारी करता है, जिसमें मुद्रास्फीति की उत्पत्ति की व्याख्या की जाती है तथा अगले 6-8 महीनों के लिए मुद्रास्फीति अनुमान प्रदान किए जाते हैं।

रेपो दर 

  • रेपो दर (पुनर्खरीद समझौता दर) वह ब्याज दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक सरकारी प्रतिभूतियों को संपार्श्विक के रूप में गिरवी रखकर RBI से धन उधार लेते हैं। 
  • यह अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति तथा तरलता को नियंत्रित करने का एक साधन है।

रेपो दर में परिवर्तन का प्रभाव

  • रेपो दर में वृद्धि से उधार लेने की लागत बढ़ जाती है, जिससे ऋण महंगे हो जाते हैं, मुद्रा आपूर्ति कम हो जाती है और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है।
  • इसके विपरीत, रेपो दर में कमी से उधार लेने की लागत कम हो जाती है, जिससे ऋण सस्ते हो जाते हैं, मुद्रा आपूर्ति बढ़ जाती है और निवेश और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • उदाहरण: यदि RBI रेपो दर को 6.5% से घटाकर 6.25% कर देता है, तो बैंक कम ब्याज दर पर पैसा उधार ले सकते हैं, जिससे व्यवसायों और उपभोक्ताओं के लिए ऋण सस्ते हो जाते हैं।

रिवर्स रेपो दर

  • रिवर्स रेपो दर वह दर है, जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को उनके अधिशेष धन के लिए भुगतान करता है। यह हमेशा रेपो दर से कम होती है। 
  • इसका उपयोग बैंकिंग प्रणाली से अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करने के लिए किया जाता है, जिससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

रिवर्स रेपो दर में परिवर्तन का प्रभाव

  • रिवर्स रेपो दर में वृद्धि बैंकों को RBI के पास अधिक धन जमा करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे उधार देने के लिए उपलब्ध धन कम हो जाता है और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
  • इसके विपरीत, रिवर्स रेपो दर में कमी बैंकों को RBI के पास जमा करने से हतोत्साहित करती है, जिससे उधार देने के लिए उपलब्ध धन बढ़ जाता है और निवेश और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।
  • उदाहरण: यदि RBI रिवर्स रेपो दर बढ़ाता है, तो बैंक उधार देने के बजाय RBI के पास अपना धन जमा करना पसंद करते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में तरलता कम हो जाती है।

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय  ने मटिया ट्रांजिट कैंप में हिरासत में लिए गए 63 व्यक्तियों की स्थिति के बारे में असम सरकार से स्पष्टीकरण माँगा है, जिन्हें विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा अवैध विदेशी के रूप में नामित किया गया था।

संबंधित तथ्य

  • लंबी हिरासत अवधि: कुछ व्यक्ति छह वर्ष से अधिक समय से हिरासत में हैं, दो बंदियों को लगभग एक दशक से हिरासत में रखा गया है।
  • जमानत पाने में असमर्थता: जमानत पर रिहाई की पात्रता के बावजूद तीन बंदी हिरासत में हैं, क्योंकि वे ₹5,000 के आवश्यक बॉण्ड एवं दो जमानतदार प्रस्तुत नहीं कर सके।
  • रिश्तेदारों या सहयोग की कमी: कुछ बंदियों के रिश्तेदारों का पता नहीं चल सका।
    • एक मामले में, एक बंदी की पत्नी ने उससे कोई भी संपर्क करने से इनकार कर दिया।

असम में विदेशी न्यायाधिकरण (Foreigners Tribunals) 

  • स्थापना: ये विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 3 के तहत जारी विदेशी (न्यायाधिकरण) आदेश, 1964 के तहत स्थापित अर्द्ध-न्यायिक निकाय हैं।
  • उद्देश्य: स्थानीय अधिकारियों को नागरिकता निर्धारण के लिए संदिग्ध विदेशियों के मामलों को संदर्भित करने की अनुमति देना।
    • वर्तमान में, विदेशी न्यायाधिकरण विशेष रूप से असम में संचालित होते हैं, जबकि अन्य राज्य विदेशी अधिनियम के तहत अवैध आव्रजन मामलों को प्रबंधित करते हैं।
  • संरचना: प्रत्येक विदेशी न्यायाधिकरण का नेतृत्व एक न्यायिक अधिकारी, अधिवक्ता या कानूनी विशेषज्ञता वाला सिविल सेवक करता है।
    • सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए नियुक्तियाँ विदेशी न्यायाधिकरण अधिनियम, 1941 एवं विदेशी न्यायाधिकरण आदेश, 1964 के तहत की जाती हैं।
  • कानूनी शक्तियाँ: विदेशी न्यायाधिकरण निम्नलिखित क्षेत्रों में सिविल कोर्ट प्राधिकरण के साथ कार्य करती हैं:
    • व्यक्तियों को शमन करना।
    • शपथ के तहत गवाहों की जाँच करना।
    • दस्तावेज प्रस्तुत करने की माँग करना है।
  • निपटान किए गए मामलों के प्रकार: विदेशी न्यायाधिकरण दो प्रकार के मामलों की समीक्षा करता है:
    • सीमा पुलिस संदर्भ: ऐसे मामले जहाँ  व्यक्तियों पर अवैध विदेशी होने का संदेह होता है।
    • संदिग्ध मतदाता: भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा मतदाता सूची में चिह्नित व्यक्ति।
  • विदेशी (न्यायाधिकरण) आदेश, संशोधन 2019: राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के परिणामों के विरुद्ध अपील की प्रक्रिया को परिभाषित करता है।
    • सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में जिला मजिस्ट्रेटों को न्यायाधिकरण स्थापित करने का अधिकार देता है।
    • चूँकि विदेशी न्यायाधिकरण वर्तमान में केवल असम में मौजूद है, इसलिए यह संशोधन मुख्य रूप से राज्य को प्रभावित करता है।

विदेशी न्यायाधिकरण  द्वारा नागरिकता निर्धारित करने की प्रक्रिया

  • नोटिस जारी करना: व्यक्तियों को अधिकारियों से 10 दिनों के भीतर अंग्रेजी या स्थानीय भाषा में एक नोटिस प्राप्त होता है।
  • प्रतिक्रिया अवधि: व्यक्ति के पास नोटिस का जवाब देने के लिए 10 दिन का समय है।
  • दस्तावेज जमा करना: भारतीय नागरिकता सिद्ध करने वाले दस्तावेज जमा करने के लिए अतिरिक्त 10 दिन का समय दिया जाता है।
  • ट्रिब्यूनल का निर्णय: विदेशी न्यायाधिकरण को संदर्भ की तारीख से 60 दिनों के भीतर मामले का निर्णय करना होगा।
  • परिणाम: यदि व्यक्ति सुबूत देने में विफल रहता है, तो उन्हें अंततः निर्वासन के लिए हिरासत केंद्र (जिसे अब ट्रांजिट कैंप कहा जाता है) में भेज दिया जाता है।
  • अभियुक्त पर साक्ष्य का भार: विदेशी अधिनियम, 1946 (Foreigners Act, 1946) की धारा 9, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत साक्ष्य के मानक नियमों को दरकिनार करते हुए, व्यक्ति पर भारतीय नागरिकता सिद्ध करने का बोझ डालती है।

विदेशी न्यायाधिकरण के आदेशों के विरुद्ध अपील

  • समीक्षा आवेदन: न्यायाधिकरण के आदेश के 30 दिनों के भीतर दायर किया जाना चाहिए।
    • FT मामले की गुणवत्ता के आधार पर समीक्षा करता है।
  • उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय में अपील: यदि FT किसी व्यक्ति के विरुद्ध निर्णय सुनाता है, तो वे उच्च न्यायालय में अपील कर सकते हैं।
    • यदि आवश्यक हो, तो बाद में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

निर्वासन में चुनौतियाँ

  • राजनयिक एवं केंद्र सरकार की भागीदारी: निर्वासन विदेश मंत्रालय (MEA) द्वारा प्रबंधित एक राजनयिक मुद्दा है।
    • राज्य सरकार केवल मामलों को विदेश मंत्रालय को भेजती है, जो सत्यापन के लिए संबंधित देश के दूतावास या उच्चायोग के साथ समन्वय करता है।
  • राष्ट्रीयता सत्यापन मुद्दे: निर्वासन के लिए प्राप्तकर्ता देश द्वारा राष्ट्रीयता एवं पते की पुष्टि की आवश्यकता होती है।
    • सत्यापित होने पर, व्यक्ति को सीमा सुरक्षा बल (BSF) को सौंप दिया जाता है, जो प्राप्तकर्ता देश के अर्द्ध-सैनिक बल के साथ समन्वय करता है।
    • सत्यापित पते के बिना, बांग्लादेश नागरिकता की पुष्टि नहीं कर सकता, जिससे निर्वासन असंभव हो जाता है।
  • नागरिकता की पुष्टि का अभाव: विदेशी न्यायाधिकरण केवल यह घोषित करते हैं कि कोई व्यक्ति भारतीय नहीं है, लेकिन उनकी वास्तविक राष्ट्रीयता की पुष्टि नहीं करते हैं।
    • कोई भी वैधानिक संस्था इसकी पुष्टि नहीं करती कि वे किस देश से हैं, जिससे राजनयिक गतिरोध उत्पन्न  होता है।
  • अंतरराष्ट्रीय बाधाएँ
    • बांग्लादेश राष्ट्रीयता प्रमाण के बिना व्यक्तियों को स्वीकार करने से इनकार करता है।
    • म्याँमार रोहिंग्याओं को नागरिक के रूप में मान्यता नहीं देता है, जिससे उनका निर्वासन लगभग असंभव हो गया है।
    • राष्ट्रीयता के सुबूत के बिना, जबरन निर्वासन एक विकल्प नहीं है, जिसके लिए राजनयिक बातचीत की आवश्यकता होती है।

संदर्भ 

हाल ही में हाशिमपुरा नरसंहार के दोषियों ने फरलो (Furloughs) संबंधी दिल्ली जेल नियम के विरुद्ध दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की।

फरलो (Furlough)

  • यह किसी कैदी को एक निश्चित अवधि के लिए दी जाने वाली अस्थायी छुट्टी (अक्सर बिना किसी विशेष कारण के) को संदर्भित करता है।
    • उद्देश्य: लंबी अवधि के कारावास के नकारात्मक प्रभावों, जैसे- एकांतवास और कैदियों को पारिवारिक और सामाजिक संबंध बनाए रखने में मदद करने से रोकना।
  • फरलो एक कैदी का अधिकार है:-
    • फरलो किसी कैदी का पूर्ण अधिकार नहीं है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि फरलो एक विवेकाधीन उपाय है।

फरलो और पैरोल के बीच तुलना

विशेषता फरलो (Furlough) पैरोल 
परिभाषा सजा के निलंबन के बिना जेल से अस्थायी रिहाई। सजा के निलंबन के साथ जेल से अस्थायी रिहाई।
उद्देश्य एकांतवास को रोकने के लिए, सामाजिक और पारिवारिक संबंध बनाए रखना और अच्छे व्यवहार को प्रोत्साहित करना। पारिवारिक आपातस्थिति, चिकित्सा आवश्यकता या कानूनी कार्यवाही जैसे विशिष्ट कारणों के लिए दिया जाता है।
सजा पर प्रभाव रिहाई के दौरान सजा जारी रहती है (इसे सजा में छूट के रूप में माना जाता है)।  रिहाई के दौरान सजा निलंबित कर दी जाती है।
पात्रता यह सजा लंबी अवधि के दोषियों को एक निश्चित अवधि तक जेल में रहने के बाद दी जाती है। आवश्यकता के आधार पर इसे अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोषियों को दिया जा सकता है।
कानूनी आधार कारागार अधिनियम, 1894 के अंतर्गत आता है तथा अलग-अलग राज्य नियमों द्वारा शासित होता है। कारागार अधिनियम, 1894 के अंतर्गत आता है तथा अलग-अलग राज्य नियमों द्वारा शासित होता है।
अनुदान देने वाला प्राधिकारी उप महानिरीक्षक कारागार संभागीय आयुक्त
आवृत्ति सीमित संख्या में। एकाधिक बार प्रदान किया जा सकता है।
अधिकार या विशेषाधिकार इसे अच्छे आचरण वाले पात्र कैदियों का अधिकार माना जाता है। यह कोई अधिकार नहीं है, यदि यह सार्वजनिक हित के विरुद्ध हो तो इसे खारिज किया जा सकता है।
आवश्यक कारण  किसी विशेष कारण की आवश्यकता नहीं; कारावास की एकरसता को तोड़ने के लिए यह सजा दी गई। एक विशिष्ट कारण (बीमारी, विवाह, अंतिम संस्कार, कानूनी अपील, आदि) आवश्यक है।
खारिज होने की संभावना समाज के हित में इनकार किया जा सकता है। यदि वास्तविक आवश्यकता हो तो कम प्रतिबंधात्मक। यदि खारिज कर दिया जाता है तो उच्च न्यायालय में जा सकते हैं।
अच्छे आचरण पर प्रभाव अच्छे व्यवहार के लिए पुरस्कार, जेल में अनुशासन को प्रोत्साहित करता है। वास्तविक कठिनाइयों का सामना कर रहे कैदियों को राहत प्रदान करता है।

संदर्भ

भारत सरकार ने वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट के हिस्से के रूप में उच्च उपज वाले बीजों पर राष्ट्रीय मिशन नामक एक नया कार्यक्रम शुरू किया है।

उच्च उपज वाले बीजों पर राष्ट्रीय मिशन के बारे में

  • उद्देश्य: अनुसंधान में सुधार करना तथा उच्च उपज देने वाले, कीट-प्रतिरोधी और जलवायु-अनुकूल बीज विकसित करना, जिससे खाद्य सुरक्षा तथा सतत् कृषि पद्धतियाँ सुनिश्चित हों।
  • बजट: बजट 2025-26 में हाइब्रिड बीजों पर राष्ट्रीय मिशन के लिए ₹100 करोड़ आवंटित किए गए हैं।
  • फोकस: मिशन उन्नत अनुसंधान, बेहतर बीज उत्पादन नेटवर्क और नई किस्मों को व्यापक रूप से अपनाने के माध्यम से हाइब्रिड फसल विकास को बढ़ाने पर केंद्रित है।
  • लक्ष्य
    • अनुसंधान को बढ़ावा देना: मिशन का उद्देश्य नए उच्च उपज वाले बीज विकसित करना है।
    • प्रतिरोधक क्षमता में सुधार: यह कीटों एवं जलवायु तनाव का प्रतिरोध करने वाले बीजों के विकास पर ध्यान केंद्रित करेगा, यह सुनिश्चित करते हुए कि पर्यावरणीय परिस्थितियों में बदलाव के बावजूद वे उत्पादक बने रहें।
    • वाणिज्यिक उपलब्धता: जुलाई 2024 से जारी 100 से अधिक नई बीज किस्मों की किसानों के लिए उपलब्धता बढ़ाना और उन्हें इन किस्मों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
      • अनाज की 23 किस्में, 11 दालें, सात तिलहन, गन्ना आदि।
    • बीज उद्योग का विकास: इस मिशन से भारत के बीज उद्योग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, जिससे सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा मिलेगा।
  • कार्यान्वयन केंद्र: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) इन बीजों पर शोध करेगी।
    • क्षेत्रीय उत्कृष्टता केंद्र: वे तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करके, क्षेत्र परीक्षण आयोजित करके और ज्ञान हस्तांतरण के साथ किसानों का समर्थन करके महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे बीज प्रौद्योगिकी में नवीनतम प्रगति से लाभान्वित हों।
  • महत्त्व
    • जलवायु के प्रति लचीलापन अपनाना: उच्च उपज देने वाली बीज किस्में जलवायु लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि इससे सिंचाई पर निर्भरता कम होती है, प्रतिकूल मौसम की स्थिति (सूखा, बाढ़, लवणता) के प्रति सहनशीलता बढ़ती है।
    • उच्च उत्पादकता: HYV प्रति इकाई संसाधनों अर्थात् भूमि एवं जल से अधिक फसल उत्पादन की उम्मीद करते हैं। अधिक पोषक तत्त्वों का अवशोषण, कम फसल नुकसान, बढ़ी हुई उत्पादकता अंततः किसानों की आय बढ़ाने में मदद करेगी।
    • भूमि उपयोग परिवर्तन को नियंत्रित करना: उच्च उपज देने वाली बीजों की किस्में कृषि भूमि की प्रति इकाई अधिक फसल उत्पन्न करती हैं, जो भूमि उपयोग परिवर्तन को कम करने में सहायता कर सकती हैं।
    • खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना: HYV कम संसाधनों के उपयोग के साथ अधिक उत्पादकता सुनिश्चित करेंगे, जिसके परिणामस्वरूप खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खाद्य की उपलब्धता बढ़ेगी।

पहल के संबंध में चिंताएँ

  • मोनोकल्चर को बढ़ावा देना: मोनोकल्चर प्लांटेशन देशज बीज किस्मों की जगह पारंपरिक फसल विविधता को नुकसान पहुँचाता है। इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि उच्च उपज वाली किस्म के बीज कृषि जैव विविधता के लिए दीर्घकालिक संकट का कारण बनेंगे।
    • उदाहरण: पंजाब में हरित क्रांति के हिस्से के रूप में शुरू की गई HYV ने पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर नुकसान पहुँचाया है।
  • रोगों के प्रति संवेदनशील: एकल-फसलीय रोपण से फसलें रोगों और कीटों के प्रति संवेदनशील हो सकती हैं, जिससे फसल उत्पादन खराब हो सकता है और पूरा खेत बर्बाद हो सकता है।
  • जैव विविधता की कीमत पर उच्च उपज वाले बीज: भारत में पारंपरिक एवं देशज बीजों का समृद्ध इतिहास है, जो स्थानीय जलवायु और मिट्टी के अनुकूल हो गए हैं और अक्सर कीटों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं और कम रसायनों का उपयोग करते हैं।
    • उच्च उपज वाले बीजों को बढ़ावा देने से देशी बीजों में गिरावट आ सकती है क्योंकि किसान व्यावसायिक रूप से आपूर्ति किए गए बीजों का उपयोग करना शुरू कर देंगे, जिससे पारंपरिक किस्मों की माँग कम हो जाएगी और समय के साथ समाप्त हो जाएँगी।
  • परागण विविधता को कम करना: एक समान बीज किस्मों को अपनाने से परागण विविधता कम हो सकती है, क्योंकि विभिन्न फसलें और उनके पुष्प चक्र मधुमक्खियों और तितलियों की आबादी को पोषण प्रदान करते हैं।
  • बीज संप्रभुता: ऐसी चिंताएँ हैं कि छोटे पैमाने के किसान कॉरपोरेट बीज कंपनियों पर बहुत अधिक निर्भर हो सकते हैं, यदि वे देशज बीजों तक पहुँचने या उनकी खेती करने में असमर्थ हैं।
  • आनुवांशिक विविधता: HYV के लंबे समय तक उपयोग से फसलों में आनुवंशिक विविधता कम हो जाएगी क्योंकि किसान तुलनात्मक रूप से कम उपज वाली फसलों को उगाना बंद कर देंगे, जिसके परिणामस्वरूप जैव विविधता का नुकसान होगा।
  • किसानों के लिए उपलब्धता: बीजों की उच्च उपज वाली किस्मों का उत्पादन करने के लिए व्यापक वैज्ञानिक अनुसंधान की आवश्यकता होती है, जो संभवतः किसानों के लिए स्वतंत्र रूप से उपयोग करने के लिए इसकी उपलब्धता को सीमित कर सकता है।
    • उदाहरण: अमेरिकी कृषि व्यवसाय में संकेंद्रण और प्रतिस्पर्द्धा शीर्षक वाली वर्ष 2023 की रिपोर्ट में पाया गया कि वर्ष 1990 और 2020 के बीच, किसानों द्वारा फसल के बीज के लिए भुगतान की गई कीमतों में औसतन 270% की वृद्धि हुई।

उच्च उपज देने वाली किस्मों के बीज के बारे में

  • उच्च उपज देने वाली किस्में वे हैं, जो प्रति इकाई क्षेत्र में खाद्य उत्पादन को बढ़ाने में सक्षम बनाती हैं और खाद्यान्न उत्पादन प्रणालियों में कृषि योग्य अधिक भूमि को शामिल करने के दबाव को कम करती हैं।
  • विकास: HYVs बीजों की उत्पत्ति 1960 के दशक में नोबेल पुरस्कार विजेता नॉर्मन बोरलॉग द्वारा मैक्सिको में की गई थी, जिन्हें ‘हरित क्रांति के जनक’ के रूप में जाना जाता है।
    • उन्होंने लंबे मैक्सिकन गेहूँ को छोटे जापानी गेहूँ के साथ संकरण करके मैक्सिको में गेहूँ की अर्द्ध-बौनी किस्में विकसित कीं।
  • विशेषताएँ: HYV में कुछ विशेषताएँ होती हैं जैसे-
    • प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक फसल उपज; फसलों की उच्च गुणवत्ता; उर्वरकों के प्रति बेहतर प्रतिक्रिया; जल्दी फसल का पकना; सूखे एवं बाढ़ के प्रति प्रतिरोध; सिंचाई एवं उर्वरकों पर अधिक निर्भरता (गहन खेती); बौनापन (छोटा आकार); कई बीमारियों और कीटों के प्रति प्रतिरोध।
  • लाभ
    • पैदावार में वृद्धि: HYV बीजों को फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए उगाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पारंपरिक बीजों की तुलना में अधिक पैदावार होती है।
    • कीटों और रोगों के प्रति प्रतिरोध: HYV बीजों को आम कीटों और रोगों के प्रति प्रतिरोधी बनाने के लिए विशेष रूप से संकरित किया जाता है, जिससे रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो जाती है।
    • जलवायु लचीलापन: HYV बीजों को विशेष रूप से बाढ़ और सूखे के प्रति प्रतिरोधी और लचीला बनाने के लिए विकसित किया जाता है।
    • जल संरक्षण: HYV बीज पारंपरिक किस्मों की तुलना में कम जल की आवश्यकता वाले पारंपरिक बीजों की तुलना में जल्दी पकते हैं क्योंकि फसलें कम समय में प्राप्त हो जाती हैं।
    • किसानों की आय: HYV बीज किसानों को जमीन के एक छोटे से टुकड़े में अधिक खाद्यान्न उगाने में मदद करते हैं, जिससे उनका लाभ बढ़ता है।
    • उत्पादकता में वृद्धि: HYV बीजों को 20वीं सदी के मध्य में विकासशील देशों में प्रस्तुत किया गया, जिसके परिणामस्वरूप खाद्यान्न उत्पादन में बहुत वृद्धि हुई।

आगे की राह

  • पारंपरिक बीजों की रक्षा करना: सरकार को सामुदायिक बीज बैंकों में निवेश करना चाहिए और किसानों के नेतृत्व में बीज संरक्षण का समर्थन करना चाहिए, ऐसी नीतियाँ बनानी चाहिए, जो जैव विविधता के अनुकूल कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करें, साथ ही साथ उच्च उपज वाली किस्मों को बढ़ावा दें।
  • बीज संप्रभुता सुनिश्चित करना: पारंपरिक कृषि पद्धतियों की रक्षा करने और बीज संप्रभुता तथा जैव विविधता को बनाए रखने के लिए सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए।
    • कृषि नीतियों को आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करने के लिए आधुनिक और पारंपरिक बीजों के मिश्रण का समर्थन करना चाहिए।
  • समान पहुँच: मजबूत विनियामक और नैतिक निगरानी जैसे सक्रिय नीतिगत उपाय उनके सकारात्मक प्रभाव को अधिकतम करने और सभी किसानों के लिए समान पहुँच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं।

संदर्भ

वैज्ञानिक प्लास्टिक प्रदूषण के मुद्दों को स्थायी रूप से संबोधित करने के लिए प्लास्टिक उपभोग करने वाले बैक्टीरिया और एंजाइम जैसे नवीन जैविक समाधानों की खोज कर रहे हैं।

वैश्विक और भारत के संदर्भ में प्लास्टिक प्रदूषण की स्थिति

  • प्लास्टिक प्रदूषण का तात्पर्य पर्यावरण में प्लास्टिक अपशिष्ट का जमा होना है, जो पारिस्थितिकी तंत्र, वन्यजीवों और मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है। 
    • इसमें एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक, माइक्रोप्लास्टिक और गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्री शामिल हैं, जो सदियों तक बनी रहती हैं।
  • प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक पर्यावरणीय संकट बन गया है, जिसमें लाखों टन प्लास्टिक अपशिष्ट लैंडफिल, महासागरों और पारिस्थितिकी तंत्रों में जमा हो रहा है।
  • वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण
    • 1950 के दशक से अब तक 8.3 बिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया जा चुका है, जिसमें से 10% से भी कम का पुनर्चक्रण किया जाता है।
    • प्रत्येक वर्ष लगभग 11 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्र में जाता है, जिससे समुद्री जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा उत्पन्न होता है।
  • भारत के संदर्भ में प्लास्टिक प्रदूषण
    • भारत में प्रत्येक वर्ष 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 30% का ही पुनर्चक्रण किया जाता है।
    • दिल्ली, मुंबई और बंगलूरू जैसे शहर प्लास्टिक अपशिष्ट में सबसे अधिक योगदान देने वाले शहरों में से हैं।

भारत में उच्च प्लास्टिक प्रदूषण का कारण

  • प्लास्टिक की अधिक खपत: तेजी से बढ़ते शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि ने किफायती, डिस्पोजेबल प्लास्टिक उत्पादों, विशेष रूप से बैग, बोतलें एवं पैकेजिंग जैसी एकल-उपयोग वाली वस्तुओं की माँग में वृद्धि की है।
  • खराब अपशिष्ट प्रबंधन: अपर्याप्त अपशिष्ट संग्रह, पृथक्करण और पुनर्चक्रण अवसंरचना के कारण अनुचित निपटान होता है, जिससे बहुत सारा प्लास्टिक लैंडफिल, नदियों और महासागरों में प्रवाहित हो जाती है।
  • जागरूकता की कमी: प्लास्टिक के पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में सीमित सार्वजनिक जागरूकता और इसके उपयोग को कम करने के लिए अपर्याप्त प्रयासों के कारण बड़े पैमाने पर कूड़ा-कचरा फैलता है।
  • औद्योगिक विकास: उद्योग प्लास्टिक पैकेजिंग पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं, क्योंकि इसमें कम लागत और टिकाऊ होता है, जिससे बहुत अधिक प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
  • अनौपचारिक पुनर्चक्रण क्षेत्र: हालाँकि भारत में एक बड़ा अनौपचारिक पुनर्चक्रण नेटवर्क है, यह अक्षम है एवं अक्सर उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक अपशिष्ट की मात्रा को नियंत्रित करने में असमर्थ है।
  • कमजोर प्रवर्तन: कुछ राज्यों में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बावजूद, विनियमों का खराब कार्यान्वयन और प्रवर्तन प्लास्टिक के उपयोग को प्रभावी ढंग से रोकने में विफल रहता है।

प्लास्टिक उपभोग करने वाले बैक्टीरिया के उदाहरण

  • इडियोनेला साकाइनेसिस (Ideonella Sakaiensis): जापान में खोजा गया यह जीवाणु एंजाइम (PETase और MHETase) उत्पन्न करता है, जो पॉलिएथिलीन टेरेफ्थेलेट (PET) को अपघटित करता है। यह कई महीनों से लेकर वर्षों तक PET को विघटित करता है।
  • इंजीनियर्ड एंजाइम (Engineered Enzymes): अप्रैटिमा बायोसॉल्यूशंस (Apratima Biosolutions) (भारत) जैसी कंपनियों ने ऐसे एंजाइम विकसित किए हैं, जो 17 घंटों में 90% PET अपशिष्ट को विघटित कर देते हैं और इसे टेरेफ्थेलिक एसिड और एथिलीन ग्लाइकॉल जैसे पुन: उपयोग योग्य घटकों में बदल देते हैं।
  • बैसिलस सबटिलिस (Bacillus Subtilis): कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन डिएगो के शोधकर्ताओं ने इस जीवाणु के ऊष्मा-प्रतिरोधी बीजाणुओं को प्लास्टिक उपभोग के लिए तैयार किया, जिससे 5 महीने के भीतर जैव-निम्नीकरण संभव हो गया।

प्लास्टिक उपभोग करने वाले बैक्टीरिया के उपयोग के लाभ

  • संधारणीय अपशिष्ट प्रबंधन: बैक्टीरिया प्लास्टिक को कार्बन डाइऑक्साइड, जल और बायोमास जैसे गैर-विषाक्त उप-उत्पादों में अपघटित कर सकते हैं, जिससे लैंडफिल अपशिष्ट और पर्यावरण प्रदूषण कम हो सकता है।
  • व्यापक समाधान: X-32 जैसे कुछ बैक्टीरिया कई तरह के प्लास्टिक को नष्ट कर सकते हैं, जिसमें PET, पॉलिओलेफिन और पॉलिमाइड शामिल हैं, जो प्लास्टिक अपशिष्ट के लिए एक व्यापक समाधान प्रदान करते हैं।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था: बैक्टीरिया से एंजाइम प्लास्टिक अपशिष्ट को पुन: प्रयोज्य कच्चे माल में परिवर्तित कर सकते हैं, जिससे पुनर्चक्रण संभव हो सकता है और नए तरीके से प्लास्टिक उत्पादन पर निर्भरता कम हो सकती है।
  • मापनीयता: प्लास्टिक में समाहित ऊष्मा-प्रतिरोधी बीजाणुओं जैसे जीवाणु समाधान, शुद्ध एंजाइमों की तुलना में अधिक आसानी से विकसित किए जा सकते हैं, जिससे वे औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए व्यवहार्य बन जाते हैं। 

प्लास्टिक विघटन के लिए बैक्टीरिया के उपयोग के विरुद्ध चिंताएँ 

  • निम्नीकरण की धीमी दर: प्राकृतिक बैक्टीरिया और एंजाइम प्लास्टिक को विघटित करने में महीनों से लेकर वर्षों तक का समय लेते हैं, जिससे वे बड़े पैमाने पर अनुप्रयोगों के लिए अक्षम हो जाते हैं।
  • मापनीयता संबंधी चुनौतियाँ: बड़ी मात्रा में एंजाइमों का उत्पादन महंगा एवं तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण कार्य है।
  • सार्वजनिक और विनियामक स्वीकृति: पर्यावरण में जीवित बैक्टीरिया को शामिल करने और संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में चिंताएँ जताई जा रही है।
  • सीमित प्लास्टिक प्रकार: अधिकांश बैक्टीरिया और एंजाइम केवल विशिष्ट प्लास्टिक जैसे PET को ही लक्ष्य बनाते हैं, तथा अन्य प्रकार (जैसे- पॉलिओलेफिन्स) पर ध्यान नहीं देते हैं।

प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने में चुनौतियाँ

  • उच्च लागत: प्लास्टिक को नष्ट करने वाले एंजाइम जैसे जैविक समाधानों को विकसित करने और उनका विस्तार करने के लिए पर्याप्त वित्तीय निवेश की आवश्यकता होती है, जो व्यापक रूप से अपनाने में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  • तकनीकी सीमाएँ: वर्तमान विधियाँ विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक, विशेष रूप से क्रिस्टलीय प्लास्टिक को नष्ट करने में संघर्ष करती हैं, जिससे प्लास्टिक अपशिष्ट के पूरे स्पेक्ट्रम को संबोधित करने में उनकी प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: कई विकासशील देशों में पर्याप्त रीसाइक्लिंग सुविधाएँ और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली का अभाव है, जिससे बड़े पैमाने पर प्लास्टिक अपशिष्ट समाधानों को लागू करना जटिल हो जाता है।
  • व्यवहार संबंधी बाधाएँ: बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक या कम प्लास्टिक खपत जैसे सतत् विकल्पों को अपनाने का प्रतिरोध, अंतर्निहित प्रक्रियाओं और पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में जागरूकता की कमी से उपजा है।

आगे की राह

  • अनुसंधान और नवाचार: प्लास्टिक को नष्ट करने वाले बैक्टीरिया, एंजाइम और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक की दक्षता बढ़ाने के लिए अनुसंधान और विकास में निवेश करना, जिससे मापनीयता एवं पर्यावरण के अनुकूल विकल्प सुनिश्चित हों।
  • सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल: प्लास्टिक अपशिष्ट को नए उत्पादों के लिए कच्चे माल में बदलने और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना, जिसका समर्थन संधारणीय प्रथाओं को अपनाने वाली कंपनियों एवं उद्योगों द्वारा किया जाएगा।
  • नीतिगत हस्तक्षेप: प्लास्टिक अपशिष्ट के लिए निर्माताओं को जवाबदेह बनाने के लिए एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक और विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (EPR) योजनाओं पर प्रतिबंध सहित सख्त नियम लागू करना।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए बड़े पैमाने पर संधारणीय समाधान विकसित करने और लागू करने के लिए सरकारों, उद्योगों और गैर-सरकारी संगठनों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
  • वैश्विक सहयोग: साझा प्रौद्योगिकियों, नीतियों और सर्वोत्तम प्रथाओं के माध्यम से सीमापारीय प्लास्टिक प्रदूषण को संबोधित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को मजबूत करना।

निष्कर्ष

हालाँकि प्लास्टिक उपभोग करने वाले बैक्टीरिया एवं एंजाइम प्लास्टिक प्रदूषण के लिए एक आशाजनक समाधान प्रदान करते हैं, उनकी सफलता तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों पर नियंत्रण पाने पर निर्भर करती है। प्लास्टिक मुक्त भविष्य को प्राप्त करने के लिए जैविक नवाचारों, नीति सुधारों और सार्वजनिक भागीदारी को मिलाकर एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है।

संदर्भ

मध्य प्रदेश के भोपाल में सभी सार्वजनिक स्थानों पर भीख माँगने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है; यह निर्णय इंदौर के इसी तरह के आदेश के बाद लिया गया है।

प्रतिबंध से संबंधित मुख्य बिंदु

  • उद्देश्य: विस्थापित भिखारियों के लिए वैकल्पिक समाधान प्रदान करते हुए भिक्षावृत्ति की समस्या का समाधान करना।
  • निषिद्ध प्रथाएँ: सभी सार्वजनिक स्थानों पर भीख माँगना सख्त वर्जित है। भिखारियों को भीख देना या उनसे सामान खरीदना भी प्रतिबंधित है।
  • प्रवर्तन: सख्त प्रवर्तन उपाय लागू किए गए हैं, जिससे भिखारियों और उन्हें पैसे या सामान प्रदान करने वालों दोनों के विरुद्ध FIR दर्ज की जा सकती है।
    • हाल ही में इंदौर में एक अज्ञात व्यक्ति के विरुद्ध भिखारी को भीख देने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी।

प्रतिबंध का कानूनी आधार

  • यह प्रतिबंध भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita-BNSS), 2023 की धारा 163 के तहत लागू किया गया है।
  • यह कानून जिला मजिस्ट्रेट, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट या किसी अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट जैसे अधिकारियों को ‘उपद्रव या संभावित खतरे’ के तत्काल मामलों में आदेश जारी करने का अधिकार देता है।
  • यह आदेश किसी भी व्यक्ति को किसी विशेष कार्य में शामिल होने से निषिद्ध कर सकता है।
  • क्रियान्वयन: यह कानून किसी विशेष स्थान के निवासियों, किसी विशिष्ट क्षेत्र में जाने वाले लोगों या कुछ स्थानों पर जाने वाले आम लोगों पर लागू होता है।
  • प्रतिबंध के तहत सजा: प्रतिबंध का उल्लंघन करने वालों को भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita-BNS), 2023 की धारा 223 के तहत दंडित किया जाएगा, जिसमें शामिल हैं:
    • छह महीने तक का कारावास या ₹2,500 का जुर्माना या दोनों।
    • अगर यह कृत्य सार्वजनिक स्वास्थ्य या सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न करता है, तो सजा एक वर्ष का कारावास और ₹5,000 के जुर्माने तक बढ़ जाती है।
  • आदेश की अवधि: यह आदेश शुरू में दो महीने के लिए वैध है।
    • इसे राज्य सरकार द्वारा छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है।

भिखारी कौन है?

  • भिखारी की परिभाषा (बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 के अनुसार): भिखारी वह व्यक्ति है जो:
    • किसी भी रूप में भिक्षा माँगता है।
    • प्रदर्शन करता है या बिक्री के लिए वस्तुएँ प्रस्तुत करता है।
    • दरिद्र दिखता है और उसके पास जीविका के प्रत्यक्ष साधन नहीं हैं।
  • औपनिवेशिक कानून: वर्ष 1871 के आपराधिक जनजाति अधिनियम ने खानाबदोश जनजातियों को अपराधी घोषित कर दिया, उन्हें स्‍वेच्‍छाचारिता और भीख माँगने से जोड़ दिया गया था।
  • संवैधानिक संदर्भ: भारत का संविधान संघ और राज्य दोनों सरकारों को समवर्ती सूची (सूची III, प्रविष्टि 15) के तहत स्‍वेच्‍छाचारिता, भीख माँगने और खानाबदोश/प्रवासी जनजातियों से संबंधित कानून बनाने की अनुमति देता है।
  • पूर्वता: भीख माँगने पर कोई राष्ट्रीय कानून नहीं है। इसके बजाय, कई राज्य और केंद्रशासित प्रदेश बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 का पालन करते हैं।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय (2018): बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम के कई प्रावधानों को खारिज कर दिया, उन्हें ‘स्पष्ट रूप से मनमाना’ और अनुच्छेद-21 (सम्मान के साथ जीवन का अधिकार) का उल्लंघन करने वाला बताया।
  • भारत का सर्वोच्च न्यायालय (2021)
    • सार्वजनिक स्थानों से भिखारियों को हटाने की माँग करने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भीख माँगना आपराधिक नहीं बल्कि एक सामाजिक-आर्थिक मुद्दा है।

भारत में भीख माँगने के कारण

  • आर्थिक कारक: गरीबी, बेरोजगारी, अल्परोजगार और ग्रामीण-शहरी प्रवास अवसरों की कमी के कारण व्यक्तियों को भिक्षावृत्ति के लिए मजबूर करते हैं।
  • प्राकृतिक आपदाएँ: बाढ़, सूखे या अकाल के कारण होने वाले विस्थापन के मद्देनजर लोग बेघर हो जाते हैं और जीवित रहने के लिए भीख माँगने पर निर्भर हो जाते हैं।
  • सामाजिक मुद्दे: पारिवारिक विघटन, पैतृक व्यवसाय भीख माँगने के प्रचलन में योगदान करते हैं।
  • शारीरिक और मनोवैज्ञानिक चुनौतियाँ: दिव्यांग व्यक्तियों के लिए पुनर्वास की कमी और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ लोगों को भीख माँगने के लिए मजबूर करती हैं।
  • संगठित भीख माँगने वाले गिरोह: भीख माँगने को अक्सर सिंडिकेट द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो कमजोर व्यक्तियों का शोषण करते हैं, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में।

आजीविका और उद्यम के लिए हाशिए पर पड़े व्यक्तियों के लिए सहायता (Support for Marginalized Individuals for Livelihood and Enterprise-SMILE) योजना

  • इस योजना को केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा वर्ष 2022 में लॉन्च किया गया था।
  • उद्देश्य: चिकित्सा देखभाल, शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण प्रदान करके भिखारियों का पुनर्वास करना।
    • इसका उद्देश्य वर्ष 2026 तक ‘भिखारी मुक्त’ भारत बनाना है।
  • संबंधित आँकड़े (जनगणना 2011 के अनुसार)
    • भारत में लगभग 4,13,670 भिखारी एवं आवारा लोग हैं।
    • पश्चिम बंगाल में भिखारियों की संख्या सबसे अधिक है, उसके बाद उत्तर प्रदेश और बिहार का स्थान है।

भिक्षावृत्ति के निहितार्थ 

  • भेदभाव एवं शोषण: भिखारियों, विशेष रूप से दिव्यांग लोगों को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है और संगठित भिक्षावृत्ति वाले गिरोहों और तस्करों द्वारा दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता जोखिम: भिक्षावृत्ति वाले हॉटस्पॉट में अक्सर स्वच्छता की कमी होती है, जिससे बीमारी फैलती है, कुपोषण होता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
  • अपराध और मानव तस्करी: संगठित नेटवर्क बच्चों एवं कमजोर व्यक्तियों को भिक्षावृत्ति के लिए मजबूर करते हैं, कभी-कभी उन्हें नियंत्रित करने के लिए नशीली दवाओं की लत और शारीरिक शोषण का जैसे निकृष्ट उपायों का प्रयोग करते हैं।
  • शहरी स्थानों और पर्यटन पर प्रभाव: आक्रामक भिक्षावृत्ति से सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, पर्यटन हतोत्साहित होता है और भारत के शहरों के बारे में नकारात्मक धारणाएँ मजबूत होती हैं।

भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध के पक्ष और विपक्ष

पक्ष

विपक्ष

  • भिक्षावृत्ति वाले कार्टेल द्वारा शोषण को कम करता है।
  • पुनर्वास कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करता है।
  • शहरी सौंदर्य और पर्यटन में सुधार करता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी चिंताओं को संबोधित करता है।
  • विश्वसनीय दान को बढ़ावा देता है।
  • गरीबी को अपराध बनाना, कमजोर समूहों को निशाना बनाना।
  • पुनर्वास के लिए पर्याप्त बुनियादी ढाँचे का अभाव।
  • गरिमा और आजीविका के अधिकार का उल्लंघन।
  • भिखारियों को अवैध गतिविधियों में धकेल सकता है।
  • प्रवर्तन चुनौतियाँ और कानूनों का दुरुपयोग।

आगे की राह

  • शोषण के विरुद्ध सख्त प्रवर्तन: पुलिस-NGO सहयोग के माध्यम से तस्करी विरोधी कानूनों को मजबूत करना और भीख माँगने वाले गिरोहों को समाप्त करना, दंड के बजाय पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करना।
  • सार्वजनिक जागरूकता और सामुदायिक समर्थन: संगठित शोषण को रोकने के लिए प्रत्यक्ष भिक्षा देने के बजाय विश्वसनीय धर्मार्थ संस्थाओं को दान को बढ़ावा देना।
  • पुनर्वास और रोजगार: सरकारी आश्रयों का विस्तार करना, कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना, और दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिए भिखारियों को कार्यबल में एकीकृत करना।
  • नीति सुधार और स्थानीय भागीदारी: बेरोजगारी और बेघर होने को संबोधित करने वाली समग्र नीतियों का विकास करना, स्थायी आजीविका बनाने के लिए व्यवसायों को शामिल करना।

संदर्भ

संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने दो सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों (कनाडा एवं मैक्सिको) पर निशाना साधते हुए इन देशों से होने वाले सभी आयातों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है, हालाँकि कनाडा से ऊर्जा आयात पर 10 प्रतिशत कम टैरिफ लगाया है। टैरिफ पहले 4 फरवरी से लागू होने वाले थे, लेकिन अब इन्हें 30 दिनों के लिए टाल दिया गया है। जिससे एक बार फिर व्यापार युद्ध शुरू हो गया है।

ट्रंप का अपने पहले कार्यकाल के दौरान चीन के साथ व्यापार युद्ध

  • वर्ष 2018 में, ट्रंप ने चीनी आयात पर टैरिफ लगाकर चीन के साथ एक बड़ा व्यापार युद्ध शुरू किया।
  • चीन ने जवाबी टैरिफ के साथ जवाब दिया और व्यापार युद्ध ने दोनों अर्थव्यवस्थाओं को काफी प्रभावित किया।
  • इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिए लागत में वृद्धि हुई, आपूर्ति शृंखला में व्यवधान आया और अमेरिकी-चीन समग्र संबंधों में स्थिरता आई।

नए टैरिफ आदेश

  • 1 फरवरी को, USA ने इनका आरोपण किया:
    • मैक्सिको और कनाडा से सभी आयातों पर 25% टैरिफ
    • कनाडाई तेल, प्राकृतिक गैस और बिजली पर 10% टैरिफ
    • चीनी आयातों पर 10% टैरिफ
  • हालाँकि उत्तरी अमेरिकी देशों पर टैरिफ अस्थायी रूप से रोक दिए गए हैं, लेकिन चीन पर 10% टैरिफ अभी भी प्रभावी होने वाला है।

टैरिफ के प्रमुख कारण 

  • अभियान के वादों को पूरा करना: डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान के दौरान चीन, मैक्सिको और कनाडा जैसे प्रमुख व्यापारिक साझेदारों पर आयात शुल्क लगाने का वादा किया था।
  • अमेरिकी विनिर्माण और नौकरियों को बढ़ावा देना: ट्रंप का तर्क है कि टैरिफ घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से बचाएगा।
  • कर राजस्व बढ़ाना: टैरिफ विदेशी वस्तुओं पर आयात शुल्क लगाकर सरकार के लिए राजस्व उत्पन्न करते हैं।
  • फेंटेनल तस्करी का मुकाबला करना: अमेरिकी सरकार का दावा है कि चीन फेंटेनल के निर्माण के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रसायन प्रदान करता है, जबकि मैक्सिकन ड्रग कार्टेल और कनाडाई प्रयोगशालाएँ अमेरिका में दवा का उत्पादन और तस्करी करती हैं।
  • व्यापारिक साझेदारों पर आर्थिक दबाव: कनाडा, मैक्सिको और चीन मिलकर अमेरिका के आयात का 40% से अधिक हिस्सा लेते हैं।
    • ये टैरिफ इन देशों पर अमेरिका के पक्ष में बेहतर व्यापार समझौते करने के लिए दबाव डालने हेतु वार्ता के साधन के रूप में काम करते हैं।

व्यापार युद्ध क्या है?

  • व्यापार युद्ध दो या दो से अधिक देशों के बीच एक आर्थिक संघर्ष है, जिसमें वे अनुचित व्यापार प्रथाओं के जवाब में एक-दूसरे के सामान तथा सेवाओं पर टैरिफ, कोटा और अन्य व्यापार बाधाएँ लगाते हैं।

व्यापार युद्ध की मुख्य विशेषताएँ

  • टैरिफ लगाना: देश विदेशी वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाते हैं।
  • प्रतिशोधी उपाय: प्रभावित देश जवाबी टैरिफ आरोपित करते हैं।
  • गैर-टैरिफ बाधाएँ: इसमें आयात कोटा, सब्सिडी और विनियामक प्रतिबंध शामिल हैं।
  • आर्थिक और राजनीतिक प्रेरणाएँ: अक्सर घरेलू उद्योग संरक्षण, रोजगार सृजन या भू-राजनीतिक रणनीतियों से जुड़ी होती हैं।
  • वैश्विक व्यापार में व्यवधान: आपूर्ति शृंखला में व्यवधान, मुद्रास्फीति और आर्थिक मंदी का कारण बन सकता है।

व्यापार युद्धों के उदाहरण

  • अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध (वर्ष 2018-2020): अमेरिका ने चीनी आयात पर टैरिफ लगाया; चीन ने जवाबी टैरिफ लगाकर जवाबी कार्रवाई की।
  • अमेरिका-यूरोपीय संघ व्यापार विवाद: विमान सब्सिडी, स्टील टैरिफ और डिजिटल करों पर।
  • जापान-दक्षिण कोरिया व्यापार विवाद (वर्ष 2019): सेमीकंडक्टर सामग्री पर।

किसी अर्थव्यवस्था के लिए व्यापार युद्ध के लाभ एवं हानियाँ

लाभ

हानियाँ

  • घरेलू कंपनियों को अनुचित प्रतिस्पर्द्धा से बचाता है।
  • घरेलू वस्तुओं की माँग बढ़ाता है।
  • स्थानीय रोजगार वृद्धि को बढ़ावा देता है।
  • व्यापार घाटे में सुधार करता है।
  • अनैतिक व्यापार नीतियों से राष्ट्र को दंडित करता है।
  • लागत में वृद्धि होती है और मुद्रास्फीति बढ़ती है।
  • बाजार में कमी आती है, विकल्प कम होते हैं।
  • व्यापार हतोत्साहित होता है।
  • आर्थिक विकास धीमा होता है।
  • राजनयिक संबंधों, सांस्कृतिक आदान-प्रदान को नुकसान पहुँचता है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का प्रभाव

  • वैश्विक व्यापार व्यवधान: बढ़े हुए टैरिफ से अमेरिका, चीन और अन्य देशों के बीच व्यापार कम हो जाएगा।
  • धीमी आर्थिक वृद्धि; कम निवेश और व्यापार के कारण वैश्विक GDP वृद्धि कमजोर होगी।
  • बाजार में अस्थिरता: वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता के कारण शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव हो सकता है।
  • विनिर्माण और व्यवसायों पर प्रभाव: कच्चे माल पर टैरिफ के कारण उत्पादन लागत बढ़ जाएगी।
  • उपभोक्ता मूल्य में वृद्धि; टैरिफ आयातित वस्तुओं की लागत बढ़ा सकते हैं, जिससे उपभोक्ताओं पर मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है।
    • पिछले टैरिफ के कारण अमेरिका तथा पूरे विश्व में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं  अन्य उपभोक्ता उत्पादों की लागत बढ़ गई थी।
  • उभरते बाजारों पर प्रभाव; निर्यात पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं (जैसे भारत, दक्षिण पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिका) पर मिश्रित प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।
    • कुछ को आपूर्ति शृंखलाओं में बदलाव से लाभ होगा; जबकि अन्य को घटती माँग का सामना करना पड़ सकता है।
    • भारत तथा वियतनाम जैसे देशों ने पहले के व्यापार तनावों के दौरान निर्यात में वृद्धि देखी।

भारत पर अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का संभावित प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव

  • निर्यात के अवसरों में वृद्धि: कनाडा, मैक्सिकन तथा चीनी उत्पादों पर टैरिफ लगाने से भारतीय उत्पादों को प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त मिलेगी।
    • ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के एक अध्ययन में पाया गया कि ट्रंप के टैरिफ उपायों के बाद, वर्ष 2017 तथा वर्ष 2023 के बीच व्यापार विचलन का चौथा सबसे बड़ा लाभार्थी भारत था।
    • चीन पर उच्च शुल्क से जिन क्षेत्रों को लाभ होने की संभावना है, उनमें मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी, परिधान, चमड़ा और जूते, फर्नीचर, फार्मा और खिलौने शामिल हैं।
  • आपूर्ति शृंखलाओं का विविधीकरण: चीनी विनिर्माण पर निर्भरता कम करने की चाह रखने वाली वैश्विक कंपनियाँ अपनी आपूर्ति शृंखलाओं को भारत में स्थानांतरित कर सकती हैं।
    • इससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि हो सकती है और भारत के विनिर्माण आधार का विस्तार हो सकता है।

नकारात्मक प्रभाव

  • चीन द्वारा डंपिंग का जोखिम: अमेरिकी बाजार में पहुँच कम होने के कारण, चीन अपने अधिशेष माल को भारत में भेज सकता है, जिससे डंपिंग में वृद्धि होगी।
    • यह भारतीय निर्माताओं को नुकसान पहुँचाकर घरेलू उद्योगों को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता: टैरिफ लगाने की अप्रत्याशित प्रकृति भारतीय निर्यातकों के लिए अस्थिरता पैदा कर सकती है।
  • पारस्परिकता सिद्धांत और व्यापार बाधाएँ:` ट्रंप ने पारस्परिकता सिद्धांत को लागू करने का संकेत दिया है, जिसका अर्थ है कि अमेरिका अपनी चिंताओं के जवाब में भारत के टैरिफ ढाँचे को लक्षित कर सकता है।
    • यदि अमेरिका भारतीय निर्यात पर टैरिफ लगाता है, तो आईटी सेवाओं, कपड़ा और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान: व्यापार युद्ध के कारण चीनी आयात पर निर्भर भारतीय निर्माताओं के लिए कच्चे माल की लागत बढ़ सकती है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन जैसे उद्योग प्रभावित हो सकते हैं।

आगे की राह

  • सक्रिय व्यापार नीति: भारत को व्यापार समझौतों पर बातचीत करने तथा निर्यात बाजारों में विविधता लाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
    • वर्ष 2022 में हस्ताक्षरित भारत-UAE व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) का लक्ष्य पाँच वर्षों के भीतर द्विपक्षीय व्यापार को 100 बिलियन तक बढ़ाना है।
  • घरेलू उद्योगों को मजबूत करना: चीनी डंपिंग का मुकाबला करने के लिए, भारत को अपने एंटी-डंपिंग उपायों को बढ़ाना चाहिए तथा मेक इन इंडिया जैसी पहलों के तहत स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देना चाहिए।
    • वर्ष 2021 में, भारत ने स्थानीय निर्माताओं की सुरक्षा के लिए चीनी एल्युमीनियम उत्पादों पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगाया।
  • आपूर्ति शृंखला पुनर्गठन का लाभ उठाना: भारत को व्यापार करने में आसानी और बुनियादी ढाँचे में सुधार करके चीन से स्थानांतरित होने वाली कंपनियों को आकर्षित करना चाहिए।
    • उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI) योजना ने भारत में विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित करने के लिए एप्पल, सैमसंग और फॉक्सकॉन जैसी वैश्विक कंपनियों को सफलतापूर्वक आकर्षित किया है। एप्पल अब अपने लगभग 14% iPhones का निर्माण भारत में करता है, जो वर्ष 2020 में 1% था।
  • अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार वार्ता: भारत को अनुकूल व्यापार शर्तें सुनिश्चित करने और भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ लगाने से रोकने के लिए अमेरिका के संबंधों में घनिष्ठता लानी चाहिए।
    • भारत और अमेरिका टैरिफ और बाजार पहुँच पर विवादों को सुलझाने के लिए एक सीमित व्यापार सौदे पर बातचीत कर रहे हैं।

व्यापार युद्ध से संबंधित प्रमुख शब्दावली

  • टैरिफ: टैरिफ एक ऐसा कर है, जो सरकार द्वारा आयातित वस्तुओं पर लगाया जाता है।
    • टैरिफ विदेशी वस्तुओं को अधिक महंगा बनाते हैं, जिससे आयात की माँग कम हो सकती है और घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से बचाया जा सकता है।
  • कोटा: कोटा किसी विशेष उत्पाद की मात्रा या मूल्य पर एक सीमा है, जिसे किसी निश्चित अवधि के दौरान आयात या निर्यात किया जा सकता है।
  • शुल्क: शुल्क एक व्यापक शब्द है, जो आयातित या निर्यात की गई वस्तुओं पर लगाए गए करों या शुल्कों को संदर्भित करता है।
  • प्रतिकारी शुल्क (Countervailing Duties- CVD): ये आयातित वस्तुओं पर लगाए गए टैरिफ हैं, जिन्हें निर्यात करने वाले देश की सरकार द्वारा सब्सिडी दी गई है।
  • एंटी-डंपिंग शुल्क: एंटी-डंपिंग शुल्क आयातित वस्तुओं पर लगाए गए टैरिफ हैं, जिन्हें माना जाता है कि वे अनुचित रूप से कम कीमतों (उनके बाजार मूल्य या उत्पादन की लागत से कम) पर बेचे जाते हैं, अक्सर प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करने और बाजार पर हावी होने के लिए।
  • प्रतिशोधी शुल्क: ये एक देश द्वारा दूसरे देश द्वारा लगाए गए टैरिफ के जवाब में लगाए गए टैरिफ हैं।
    • उदाहरण: यदि अमेरिका चीनी वस्तुओं पर टैरिफ लगाता है, तो चीन भी कृषि उत्पादों जैसे अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ लगाकर जवाबी कार्रवाई कर सकता है।

निष्कर्ष

वर्तमान में वैश्विक व्यापार वातावरण अस्थिर है तथा अमेरिकी व्यापार नीतियों के बारे में अनिश्चितता बनी हुई है। हालाँकि भारत को व्यापारिक बदलाव से लाभ होगा, अमेरिका और यूरोपीय संघ में मुद्रास्फीति और संरक्षणवादी उपाय अभी भी भारतीय निर्यातकों के लिए चुनौतियाँ खड़ी कर सकते हैं।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.


Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.