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Nov 11 2024

Title Subject Paper
संक्षेप में समाचार
राज्य स्तर पर NIA क्षमता निर्माण internal security, GS Paper 3,
‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड इसाक-मुइवा’ (NSCN-IM) internal security, GS Paper 3,
बीदर की बहमनी वास्तुकला indian history, GS Paper 1,
अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट 2024 Environment and Ecology, GS Paper 3,
अमेरिकी फेड ब्याज दर में कटौती और इसका वैश्विक प्रभाव economy, GS Paper 3,
NCBC ने कुछ जातियों को OBC की केंद्रीय सूची में शामिल करने की सलाह दी Polity and governance ​, GS Paper 2,
सार्वजनिक नियुक्तियों में पात्रता नियमों को बीच में नहीं बदला जा सकता: सर्वोच्च न्यायालय Polity and governance ​, GS Paper 2,
बौद्ध धर्म सांप्रदायिकता का मुकाबला करना सिखा सकता है: राष्ट्रपति ethics, GS Paper 4,
सर्वोच्च न्यायालय ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के ‘अल्पसंख्यक दर्जे’ पर वर्ष 1967 के निर्णय को खारिज किया Polity and governance ​, GS Paper 2,

यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन की 150वीं वर्षगाँठ

विश्व डाक दिवस (9 अक्टूबर, 2025) पर, भारत सरकार के डाक विभाग ने स्मारक डाक टिकट जारी किया।

संबंधित तथ्य

  • ये टिकट यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (Universal Postal Union- UPU) की 150वीं वर्षगाँठ का सम्मान में जारी किए गए हैं।
  • इस वर्ष का विश्व डाक दिवस भारतीय डाक की सेवा के 170 वर्ष पूरे होने का प्रतीक है।

यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (UPU) के बारे में

  • स्थापना: 9 अक्टूबर, 1874 को बर्न, स्विट्जरलैंड में बर्न की संधि (Treaty of Bern) द्वारा।
  • यह दुनिया भर में दूसरा सबसे पुराना अंतरराष्ट्रीय संगठन है।
  • यह संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष एजेंसी है, जो विश्वव्यापी डाक प्रणाली के अलावा सदस्य देशों के बीच डाक नीतियों का समन्वय करती है।
  • अपने 192 सदस्य देशों के साथ, यह अंतरराष्ट्रीय डाक सहयोग एवं डाक नियमों के मानकीकरण के लिए एक प्रमुख संगठन के रूप में कार्य करता है।
  • सदस्यता: संयुक्त राष्ट्र का कोई भी सदस्य देश UPU का सदस्य बन सकता है।

भारत की भूमिका

  • भारत वर्ष 1876 में UPU में शामिल हुआ।
  • भारत UPU के सबसे पुराने एवं सबसे सक्रिय सदस्यों में से एक है, जो दुनिया भर में डाक सेवाओं को सुलभ बनाने के संघ के लक्ष्य में योगदान दे रहा है।

समुद्री अभ्यास IBSAMAR का आठवाँ संस्करण

INS तलवार, भारतीय नौसेना का एक फ्रंटलाइन स्टील्थ फ्रिगेट, 6 अक्टूबर 2024 को साइमन टाउन, दक्षिण अफ्रीका पहुँचा।

IBSAMAR VIII समुद्री अभ्यास के बारे में

  • यह एक संयुक्त समुद्री अभ्यास है, जिसमें भारतीय, ब्राजीलियाई एवं दक्षिण अफ्रीकी नौसेनाएँ शामिल हैं। 
  • IBSAMAR VIII का उद्देश्य
    • लक्ष्य: भाग लेने वाली नौसेनाओं के बीच अंतरसंचालनीयता को बढ़ाना एवं संबंधों को मजबूत करना।
    • फोकस: ‘ब्लू वॉटर नेवल वारफेयर’ पर आधारित, सतह एवं ‘एंटी-एयर वारफेयर’ आयामों को कवर करता है। 

बहुपक्षीय अभ्यास का महत्त्व

  • आपसी विश्वास एवं अंतरसंचालनीयता: यह अभ्यास समान विचारधारा वाले देशों की नौसेनाओं के बीच आपसी विश्वास एवं अंतरसंचालनीयता को बढ़ावा देती है।
    • वे शांतिपूर्ण समुद्री क्षेत्र एवं सकारात्मक समुद्री वातावरण में योगदान देते हैं।
  • भारत-दक्षिण अफ्रीका रक्षा संबंधों को मजबूत करना
    • ‘ऑपरेशनल सी ट्रेनिंग’ एवं ‘सबमरीन रेस्क्यू सपोर्ट’ जैसी पहलों के साथ भारत तथा दक्षिण अफ्रीका के बीच रक्षा सहयोग बढ़ रहा है।
    • ये पहल अगस्त 2024 में नई दिल्ली में आयोजित 12वीं नौसेना-से-नौसेना वार्ता के बाद की गई।

INS तलवार के बारे में 

  • कमीशनिंग: INS तलवार को 18 जून, 2003 को कमीशन किया गया था।
  • बेड़ा: यह मुंबई स्थित भारतीय नौसेना के पश्चिमी बेड़े का हिस्सा है।

राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC), लोथल, गुजरात

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लोथल, गुजरात में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) के विकास को मंजूरी दी।

संबंधित तथ्य

  • परियोजना के चरण: चरण 1 एवं चरण 2 के लिए सैद्धांतिक मंजूरी के साथ, परियोजना दो चरणों में पूरी की जाएगी।

राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (National Maritime Heritage Complex- NMHC) के बारे में

  • NMHC एक आगामी पर्यटन परिसर है, जिसे भारत की समृद्ध समुद्री विरासत को प्रदर्शित करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • नोडल मंत्रालय: बंदरगाह, जहाजरानी एवं जलमार्ग मंत्रालय (MoPSW), भारत सरकार।
  • मुख्य विशेषताएँ एवं आकर्षण
    • पुनर्निर्मित ऐतिहासिक स्थल: परिसर में लोथल एवं धोलावीरा जैसे प्राचीन हड़प्पा शहरों की प्रतिकृतियाँ शामिल होंगी ताकि आगंतुकों को इन पुरातात्त्विक खजाने की एक झलक मिल सके।
    • सुविधाएँ: नियोजित सुविधाओं में संग्रहालय, मनोरंजन पार्क, शैक्षणिक संस्थान, होटल एवं रिसॉर्ट शामिल हैं, जो इसे एक व्यापक सांस्कृतिक तथा मनोरंजक गंतव्य बनाते हैं।
  • महत्त्व
    • सांस्कृतिक एवं शैक्षिक केंद्र: NMHC भारत के समुद्री इतिहास के बारे में जानने, पर्यटकों, शोधकर्ताओं एवं इतिहास के प्रति उत्साही लोगों को समान रूप से आकर्षित करने के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में कार्य करेगा।

लोथल: गुजरात में एक प्राचीन हड़प्पा स्थल

  • सबसे दक्षिणी हड़प्पा स्थल: गुजरात के भाल (Bhal) क्षेत्र में स्थित, लोथल हड़प्पा सभ्यता के सबसे दक्षिणी शहरों में से एक है।
    • ऐतिहासिक निर्माण: माना जाता है कि इसकी स्थापना 2200 ईसा पूर्व के आसपास हुई थी।
  • उन्नत समुद्री अवसंरचना: लोथल में दुनिया के सबसे पुराने बंदरगाहों में से एक था, जो शहर को साबरमती नदी के एक प्राचीन मार्ग से जोड़कर व्यापार की सुविधा प्रदान करता था।
  • नामांकन तिथि: लोथल को अप्रैल 2014 में यूनेस्को (UNESCO) विश्व धरोहर स्थल के रूप में प्रस्तावित किया गया था।
    • वैश्विक मान्यता: यह नामांकन लोथल के ऐतिहासिक महत्त्व एवं उन्नत शहरी नियोजन पर प्रकाश डालता है।
  • पुरातात्त्विक खोज: वर्ष 1954 में पुरातत्त्वविद् एस. आर. राव द्वारा खोजा गया। जिन्होंने साइट के महत्त्व को उजागर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • अन्य महत्त्वपूर्ण स्थल: सुरकोटदा एवं धोलावीरा भी गुजरात में उल्लेखनीय हड़प्पा स्थल हैं, जो इस क्षेत्र के समृद्ध प्राचीन इतिहास को दर्शाते हैं।

प्रोजेक्ट शौर्य गाथा

(Project Shaurya Gatha)

प्रोजेक्ट शौर्य गाथा (Project Shaurya Gatha) को भारतीय सैन्य विरासत महोत्सव (Indian Military Heritage Festival- IMHF) के दौरान ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल’ अनिल चौहान द्वारा लॉन्च किया गया था।

प्रोजेक्ट शौर्य गाथा (Project Shaurya Gatha) 

  • शुरू किया गया: सैन्य मामलों का विभाग एवं यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टिट्यूशन ऑफ इंडिया (United Services Institution of India- USI) द्वारा शुरू किया गया।
  • उद्देश्य: शिक्षा एवं पर्यटन के माध्यम से भारत की समृद्ध सैन्य विरासत को संरक्षित तथा बढ़ावा देना।
  • प्रमुख विशेषताएँ
    • भारत के सैन्य इतिहास का दस्तावेजीकरण करना।
    • महत्त्वपूर्ण सैन्य स्थलों पर पर्यटन को बढ़ावा देना।
    • युवाओं एवं आम जनता को शामिल करने के लिए शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित करना।

भारतीय सैन्य विरासत महोत्सव (Indian Military Heritage Festival- IMHF)

  • उद्घाटन: दूसरे संस्करण का उद्घाटन 8 नवंबर, 2024 को नई दिल्ली में ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल’ अनिल चौहान द्वारा किया गया।
  • उद्देश्य: भारत की सैन्य विरासत, इतिहास एवं रणनीतिक प्राथमिकताओं के बारे में सार्वजनिक समझ को बढ़ाना।
  • आयोजक: ‘यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टिट्यूशन ऑफ इंडिया’ अपने सैन्य इतिहास एवं संघर्ष अध्ययन केंद्र (Center for Military History and Conflict Studies- CMHCS) के माध्यम से।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • विशेषज्ञों के साथ पैनल चर्चा।
    • DRDO एवं सशस्त्र बलों द्वारा रक्षा प्रदर्शनियाँ।
    • NCC कैडेट्स एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों की सहभागिता।
    • सैन्य इतिहास एवं सुरक्षा से संबंधित प्रकाशनों का शुभारंभ।

आतंकवाद विरोधी सम्मेलन 2024

केंद्रीय गृह मंत्री ने नई दिल्ली में दूसरे आतंकवाद विरोधी सम्मेलन 2024 (Anti-Terror Conference 2024) का उद्घाटन किया, जिसमें जीरो टाॅलरेंस दृष्टिकोण के साथ आतंकवाद को समाप्त करने की भारत सरकार की प्रतिबद्धता पर जोर दिया गया।

आतंकवाद विरोधी सम्मेलन 2024 के मुख्य विषय

  • आतंकवादी समूह की रोकथाम एवं आपराधिक संबंध: केंद्रीय गृह मंत्री की सलाह के अनुसार, ‘क्रूर’ दृष्टिकोण के साथ नए आतंकवादी समूहों के गठन को रोकने पर ध्यान देना।
    • इस बात पर चर्चा कि कैसे संगठित अपराध, विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत में, आतंकी फंडिंग में योगदान देता है।
    • दक्षिणी राज्यों में हिज्ब-उत-तहरीर (Hizb-ut-Tahrir-HuT) की बढ़ती उपस्थिति एवं अंतरराष्ट्रीय अपराध सिंडिकेट के आतंकवाद से संबंध पर चिंता व्यक्त की गई।
  • केस स्टडी तथा उभरते खतरे: रामेश्वरम् कैफे विस्फोट मामले का विश्लेषण, पश्चिम बंगाल पुलिस एवं NIA के बीच सहयोग से हुई गिरफ्तारी पर प्रकाश डाला गया।
    • सीमाओं के पार हथियारों एवं नशीली दवाओं के परिवहन के लिए ड्रोन का उपयोग करके तस्करी के नए तरीकों की खोज।
  • आतंकवाद विरोधी रणनीति एवं समन्वय: आतंकवाद विरोधी टीमों एवं स्थानीय पुलिस के बीच बेहतर समन्वय के साथ एक एकीकृत आतंकवाद विरोधी संरचना बनाने पर जोर दिया गया।
    • वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में आतंक के वित्तपोषण से निपटने एवं समर्थन नेटवर्क को नष्ट करने की रणनीतियाँ।
  • आतंकवाद में तकनीकी चुनौतियाँ: यह जाँचना कि आतंकवादी समूह संचार के लिए सोशल मीडिया, एन्क्रिप्टेड ऐप्स, VPN एवं वर्चुअल नंबरों का उपयोग कैसे करते हैं।
    • नशीले पदार्थों की तस्करी से राष्ट्रीय सुरक्षा को होने वाले खतरे को संबोधित करना।
  • सहयोग एवं एकीकृत दृष्टिकोण: प्रतिभागियों ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए केंद्रीय एवं राज्य एजेंसियों के बीच सहयोग को आवश्यक बताते हुए सभी स्तरों पर एक मानकीकृत आतंकवाद विरोधी ढाँचे की आवश्यकता पर जोर दिया।
  • आतंकवाद विरोधी प्रयासों के लिए राष्ट्रीय डेटाबेस: जाँच को मजबूत करने के लिए NIA के राष्ट्रीय आतंकी डेटाबेस का उपयोग करना, जिसमें उँगलियों के निशान, आतंकवादी घटनाओं, नशीले पदार्थों के अपराधियों एवं मानव तस्करी पर डेटा शामिल है।
  • कुशल अधिकारियों की माँग: केंद्रीय गृह सचिव ने राज्यों से NIA में सक्षम अधिकारियों को भेजने का आग्रह किया, जिससे न केवल एजेंसी की क्षमताओं में वृद्धि होगी बल्कि इन अधिकारियों के राज्य सेवा में लौटने पर जाँच प्रथाओं में भी वृद्धि होगी।
  • UAPA का उपयोग: चर्चाओं में UAPA के सावधानीपूर्वक आवेदन पर जोर दिया गया, दुरुपयोग से बचने के लिए इसके प्रभावी एवं विवेकपूर्ण उपयोग पर जोर दिया गया।
  • क्षमता-निर्माण पहल: राज्य-स्तरीय आतंकवाद विरोधी प्रयासों का समर्थन करने के लिए अधिक राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (National Forensic Science University- NFSU) परिसरों एवं केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (Central Forensic Science Laboratory- CFSL) के साथ-साथ NIA द्वारा अतिरिक्त प्रशिक्षण सत्रों की योजना की घोषणा की गई।
  • वित्तीय एवं साइबर आतंकवाद पर ध्यान: वित्तीय एवं साइबर अपराधों के प्रबंधन के लिए वित्तीय खुफिया इकाई (Financial Intelligence Unit- FIU) तथा भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (Cyber Crime Coordination Centre- I4C) की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।

ब्राजील के अमेजन वर्षावनों की कटाई में गिरावट

ब्राजील के अमेजन वर्षावन में पिछले वर्ष की तुलना में वनों की कटाई में 30.6% की उल्लेखनीय कमी देखी गई।

मुख्य निष्कर्ष

  • वनों की कटाई में कमी
    • 9 वर्षों में सबसे निचला स्तर: यह अमेजन वनों की कटाई का 9 वर्षों में सबसे निचला स्तर है।
    • सेराडो (Cerrado) वनों की कटाई में गिरावट: ब्राजील के विशाल सवाना, सेराडो में वनों की कटाई में भी 25.7% की कमी आई, जो पाँच वर्षों में पहली गिरावट है।

अमेजन वर्षावन के बारे में

  • वैश्विक महत्त्व: अमेजन वर्षावन दुनिया का सबसे बड़ा उष्णकटिबंधीय वर्षावन है, जो वैश्विक जलवायु विनियमन एवं जैव विविधता के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • भौगोलिक विस्तार: यह 2 मिलियन वर्ग मील से अधिक क्षेत्र में फैला है एवं 9 देशों में फैला है: ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, वेनेजुएला, इक्वाडोर, बोलीविया, गुयाना, सूरीनाम तथा फ्रेंच गुयाना।
  • कार्बन सिंक: यह भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलती है।
  • वाटर टॉवर: अमेजन दक्षिण अमेरिका के लिए मीठे जल का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है, जो वैश्विक मौसम पैटर्न को प्रभावित करता है।
  • जैव विविधता हॉटस्पॉट: यह लाखों पौधों एवं जानवरों की प्रजातियों का आवास है, जिनमें से कई इस क्षेत्र के लिए अद्वितीय हैं।
  • देशज समुदाय: कई स्वदेशी समुदाय अपनी आजीविका एवं सांस्कृतिक विरासत के लिए अमेजन पर निर्भर हैं।
  • निरंतर चुनौतियाँ: हालाँकि वनों की कटाई में हालिया गिरावट उत्साहजनक है, जलवायु परिवर्तन, अवैध कटाई एवं कृषि विस्तार जैसी चल रही चुनौतियाँ अमेजन वर्षावन के लिए खतरा बनी हुई हैं।
    • भावी पीढ़ियों के लिए इस महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।

संदर्भ

हाल ही में आतंकवाद विरोधी सम्मेलन 2024 (Anti-Terror Conference 2024) ने भारत के आतंकवाद विरोधी प्रयासों में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency- NAI) की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला।

  • केंद्रीय गृह सचिव ने राज्य स्तर पर क्षमता निर्माण के महत्त्व पर जोर दिया एवं राज्यों से प्रशिक्षण तथा अनुभव के लिए सक्षम अधिकारियों को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NAI) में भेजने का आग्रह किया। 
  • इस कदम का उद्देश्य जाँच क्षमताओं को बढ़ाना एवं देश भर में एक मजबूत आतंकवाद विरोधी संस्कृति को बढ़ावा देना है।

राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency- NAI) के बारे में

  • वर्ष 2008 में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) अधिनियम, 2008 के तहत आतंकवाद विरोधी एजेंसी के रूप में स्थापित की गई।
  • इसका कार्य उन अपराधों की जाँच करना है, जो आतंकवाद, उग्रवाद एवं संगठित अपराध सहित भारत की संप्रभुता, सुरक्षा तथा अखंडता को खतरे में डालते हैं।

NIA की मुख्य भूमिकाएँ एवं उद्देश्य

  • आतंकवादी गतिविधियों की जाँच: यह आतंकवादी हमलों, साजिशों एवं साजिशों की जाँच करता है।
  • राज्य एवं केंद्रीय एजेंसियों के साथ समन्वय: एजेंसी खुफिया जानकारी साझा करने एवं जाँच में समन्वय करने के लिए राज्य पुलिस बलों तथा अन्य केंद्रीय एजेंसियों के साथ समन्वय करती है।
  • क्षमता निर्माण: NIA राज्य पुलिस अधिकारियों के लिए आतंकवाद विरोधी जाँच में उनके कौशल को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: NIA आतंकवादियों का पता लगाने एवं उनके नेटवर्क को नष्ट करने के लिए विदेशी खुफिया एजेंसियों के साथ सहयोग करती है।

NIA की संरचना

  • महानिदेशक: महानिदेशक NIA का प्रमुख होता है।
  • विशेष निदेशक: विशेष निदेशक एजेंसी के भीतर विभिन्न विभागों की देखरेख करते हैं।
  • महानिरीक्षक: महानिरीक्षक के प्रमुख क्षेत्रीय कार्यालय एवं क्षेत्रीय इकाइयाँ।
  • पुलिस अधीक्षक: पुलिस अधीक्षक जाँच टीमों का नेतृत्व करते हैं।
  • खुफिया अधिकारी: खुफिया अधिकारी, खुफिया जानकारी इकट्ठा करते हैं एवं उसका विश्लेषण करते हैं।

NIA के क्षेत्राधिकार

  • अखिल भारतीय कवरेज: NIA भारत के पूरे क्षेत्र में कार्य करती है, इसकी शक्तियाँ सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों तक फैली हुई हैं।
  • भारतीय नागरिकों के लिए वैश्विक पहुँच: NIA के अधिकार क्षेत्र में भारत के बाहर के भारतीय नागरिक शामिल हैं, जो एजेंसी को भारतीय नागरिकों द्वारा या उनके खिलाफ विदेश में किए गए अपराधों की जाँच करने की अनुमति देता है।
  • दुनिया भर में सरकारी कर्मचारी: भारत सरकार के कर्मचारी NIA के अधिकार क्षेत्र के अधीन हैं, भले ही उनका विश्व स्तर पर कोई भी स्थान हो।
  • भारतीय जहाज एवं विमान: NIA का अधिकार भारतीय-पंजीकृत जहाजों या विमानों पर किए गए किसी भी अपराध पर लागू होता है, भले ही ये जहाज अथवा विमान कहीं भी स्थित हों।
  • अलौकिक अपराध: एजेंसी के पास भारतीय सीमाओं से परे किए गए अपराधों की जाँच करने का अधिकार है, यदि उनमें:-
    • एक भारतीय नागरिक को संलिप्त पाया गया है। 
    • भारतीय हितों को प्रभावित करता है।
    • NIA की अनुसूची के तहत निर्दिष्ट अपराध शामिल हैं, जिसमें आतंकवाद एवं राष्ट्र के खिलाफ अन्य गंभीर अपराध शामिल हैं।

संदर्भ

‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड इसाक-मुइवा’ ( National Socialist Council of Nagaland Isak-Muivah- NSCN-IM) के महासचिव थुइंगलेंग मुइवा (Thuingaleng Muivah) ने भारत सरकार को एक कठोर चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि यदि वर्ष 2015 फ्रेमवर्क समझौतों का ‘अक्षरशः’ सम्मान नहीं किया गया तो सशस्त्र प्रतिरोध फिर से शुरू हो सकता है।

प्रमुख मुद्दे

  • मुइवा का दावा है कि समझौते ने परोक्ष रूप से एक संप्रभु नागा ध्वज एवं संविधान को मान्यता दी है, ये दोनों माँगें ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड इसाक-मुइवा’ (NSCN-IM) के लिए महत्त्वपूर्ण माँगें बनी हुई हैं तथा उन्होंने भारत पर इन शर्तों से पीछे हटने का आरोप लगाया गया है।
  • तीसरे पक्ष की मध्यस्थता का प्रस्ताव: मुइवा ने गतिरोध को तोड़ने के अंतिम प्रयास के रूप में एक तीसरे पक्ष के मध्यस्थ, संभावित रूप से एक विदेशी इकाई को शामिल करने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि इस विकल्प पर विचार करने में विफलता ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड इसाक-मुइवा’ (NSCN-IM) को नागा संप्रभुता का दावा करने के लिए सशस्त्र प्रतिरोध फिर से शुरू करने के लिए प्रेरित करेगी।
  • ‘नागा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप्स’ (NNPGs) के साथ समानांतर वार्ता: भारत सरकार वर्ष  2017 से  ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड इसाक-मुइवा’ (NSCN-IM) को छोड़कर सात नागा संगठनों के गठबंधन, ‘नागा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप्स’ (Naga National Political Groups- NNPGs) के साथ अलग-अलग वार्ता में लगी हुई है। 
    • यह समूह एक अलग व्यवस्था पर सहमत हुआ, जिसे ‘सहमत स्थिति’ (Agreed Position) कहा गया एवं हाल ही में भारत सरकार पर वर्ष 2024 के भीतर इस समझ के आधार पर एक समझौते को अंतिम रूप देने के लिए दबाव डाला है।

 ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड’ (NSCN) के बारे में

  • ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड’ (NSCN) भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में सबसे प्रमुख विद्रोही समूहों में से एक है। 
  • गठन: इसका गठन वर्ष 1980 में दो गुटों, NSCN (इसाक-मुइवा) एवं NSCN (खापलांग) के विलय से हुआ था, हालाँकि ये दोनों गुट बाद में वर्ष 1988 में फिर से अलग हो गए।
  • प्रमुख माँगें: ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड इसाक-मुइवा’ (NSCN-IM) असम, मणिपुर एवं अरुणाचल प्रदेश में नागा-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों को एकीकृत करते हुए एकजुट ‘नागालिम’ की माँग करता है, जो पड़ोसी राज्यों के साथ एक विवादास्पद मुद्दा रहा है।

वर्ष 2015 के फ्रेमवर्क समझौते के बारे में

  • फ्रेमवर्क समझौता (वर्ष 2015) लंबे समय से चले आ रहे नागा संघर्ष को हल करने की दिशा में भारत सरकार एवं  ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड इसाक-मुइवा’ (NSCN-IM) के बीच एक महत्त्वपूर्ण समझौता है।
  • उद्देश्य: नागा लोगों के अद्वितीय इतिहास एवं आकांक्षाओं को स्वीकार करते हुए नागा राजनीतिक मुद्दे का स्थायी समाधान खोजना।
  • नागा पहचान की मान्यता: यह समझौता नागा लोगों के अद्वितीय इतिहास एवं पहचान को मान्यता देता है।
  • नए संबंध: यह पारंपरिक राज्य-विषय संबंधों से परे जाकर, भारत एवं नागाओं के बीच एक नए संबंध स्थापित करता है।
  • संप्रभु शक्तियाँ: हालाँकि इन शक्तियों की सटीक प्रकृति को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन यह भारतीय संघ के भीतर नागा लोगों के लिए कुछ हद तक स्वायत्तता का सुझाव देती है।
  • अंतिम समाधान के लिए रूपरेखा: समझौता नागा मुद्दे के अंतिम समाधान के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है, जिस पर बाद की वार्ता के माध्यम से विस्तार से बातचीत की जाएगी।

संदर्भ 

कर्नाटक वक्फ बोर्ड ने ऐतिहासिक बीदर किले के अंदर 17 स्मारकों (जिनमें 16-खंबा मस्जिद, विभिन्न बहमनी शासकों की 14 कब्रें आदि शामिल हैं) को अपनी संपत्ति बताते हुए दावा प्रस्तुत किया है।

बीदर शहर की ऐतिहासिक प्रासंगिकता

  • 1422 ईसवी से 1538 ईसवी के बीच बीदर बहमनी साम्राज्य की राजधानी थी।
    • इसे बहमनियों के नौवें शासक अहमद शाह प्रथम द्वारा गुलबर्गा/कलबुर्गी से बीदर (पहले मुहम्मदाबाद के नाम से जाना जाता था) में स्थानांतरित किया गया था।
  • विकास: बीदर शहर इतिहास के मध्यकालीन काल में विभिन्न राजवंशों के नियंत्रण के साथ विकसित हुआ है, जिसमें पूर्व काकतीय, तुगलक, बहमनी, बरीद शाही, आदिल शाही, मुगल और निजाम शामिल हैं।
  • स्थापत्य शैली: बीदर का स्थापत्य परिदृश्य हिंदू, तुर्की और फारसी कारीगरी का एक अंतर मिश्रण है।
    • बीदर शहर के किले की योजना पंचकोणीय है और पठार के किनारे पर निर्मित की गई है।

बीदर किला (Bidar Fort)

  • इसका निर्माण सर्वप्रथम 10वीं शताब्दी में काकतीय शासक माधव वर्मा द्वितीय द्वारा कराया गया था।
    • विकास: यह किला कई राजवंशों के लिए उल्लेखनीय रहा है, जिनमें बहमनी सल्तनत (1347-1518 ईसवी), बरीद शाही राजवंश (1527-1619 ईसवी), मुगल साम्राज्य (1619-1724 ईसवी) और हैदराबाद के निजाम (1724-1948) शामिल हैं।

  • किले में तीन परत वाली किलेबंदी है, जो 67 एकड़ में फैली है और इसकी परिधि 5.5 किलोमीटर है।
  • आकार: यह एक समचतुर्भुज के आकार का है, जिसमें महल, मस्जिद और आँगन हैं।
  • प्रवेशद्वार: किले में सात भव्य मेहराबदार द्वार हैं, जिनमें से गुंबद दरवाजा और शराजा दरवाजा सबसे महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार हैं।
    • अन्य द्वार: दिशाओं के आधार पर नामित ये द्वार हैं:- कर्नाटक दरवाजा, मांडू दरवाजा, कल्याणी दरवाजा, कलमदगी दरवाजा, दिल्ली दरवाजा

  • महल: तख्त महल (Takht Mahal) और रंगीन महल (Rangeen Mahal) दोनों ही आयताकार प्रांगणों के चारों ओर बने हैं। किला परिसर में गगन महल (Gagan Mahal) और तरकश महल (Tarkash Mahal) भी हैं, जो खंडहर में तब्दील हो चुके हैं।
    • तख्त महल (सिंहासन स्थल): यह अहमद शाह द्वारा निर्मित शाही महल है और यह शाही निवास था, जिसमें बहमनी लोगों का शानदार सिंहासन रखा गया था, जहाँ कई बहमनी और बरीद शाही सुल्तानों का राज्याभिषेक हुआ था।
    • रंगीन महल: यह गुंबद दरवाजा के पास स्थित है, यह किले में संरक्षित महलों में से एक है, जिसकी दीवारें गहरे काले पत्थर में जड़े गए बेहतरीन गुणवत्ता वाले मोती से सुसज्जित हैं। इस स्मारक के डिजाइन मुस्लिम और हिंदू वास्तुकला दोनों के मिश्रण का प्रतिनिधित्व करते हैं।

  • सोलह खंभा मस्जिद (16 खंभा मस्जिद): ऐसा कहा जाता है कि इसका निर्माण 1423-24 ई. में कुबली सुल्तानी (Qubli Sultani) द्वारा किया गया था।
    • मस्जिद मूल रूप से एक औपचारिक दर्शक हॉल थी, जिसे बाद में प्रार्थना स्थल में बदल दिया गया। संरचना की छत में एक बड़ा गुंबद है, जो छोटे गुंबदों से घिरा हुआ है।
  • हजार कोठरी (Hazar Kothari): इसे दुश्मनों के हमले के दौरान शासक परिवार के सुरक्षित बाहर निकलने के लिए बनाया गया था। यहाँ एक भूमिगत हॉल है, जो किले की बाहरी दीवार की ओर जाता है।
  • करेज प्रणाली (कनात प्रणाली) [Karez system (Qanat system)]: यह 15वीं शताब्दी में बहमनी सुल्तानों द्वारा शुरू की गई जल आपूर्ति के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक प्राचीन फारसी तकनीक है, जिसने बीदर की कृषि समृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • महमूद गवन मदरसा: इसे 1472 ईसवी में गवन (प्रधानमंत्री/वजीर) द्वारा बनवाया गया था, इसे भारत के सबसे पुराने और सबसे प्रभावशाली इस्लामी शैक्षणिक संस्थानों में से एक माना जाता है। यह संरचना भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archeological Survey of India- ASI) द्वारा संरक्षित है।
    • आवासीय विश्वविद्यालय: इसमें एक मस्जिद, एक पुस्तकालय, व्याख्यान कक्ष और एक खुले प्रांगण के सामने क्वार्टर थे। छात्रों को अरबी, फारसी भाषाएँ, धर्मशास्त्र, दर्शन, खगोल विज्ञान, गणित आदि पढ़ाया जाता था। 

    • मदरसा को ‘शाहीन ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूशंस’ ने एडॉप्ट-ए-हेरिटेज योजना के तहत गोद लिया था और अगस्त 2024 में ASI द्वारा एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे।
  • अष्टुर कब्रें: दस बहमनी शासकों का शाही कब्रिस्तान बीदर शहर के पास अष्टुर गाँव में स्थित है। मकबरे के अंदरूनी हिस्से को दक्कनी एवं एशियाई कला शैली को दर्शाती शानदार पेंटिंग्स से सजाया गया है।
    • पहला मकबरा अहमद शाह का है, इसके बाद अलाउद्दीन अहमद शाह द्वितीय, अलाउद्दीन हुमायूँ शाह, निजामुद्दीन अहमद शाह तृतीय, शम्सुद्दीन मुहम्मद शाह तृतीय और शिहाबुद्दीन महमूद शाह द्वितीय की कब्रें एक पंक्ति में स्थित हैं।
    • चौखंडी मकबरा: यह अहमद शाह के आध्यात्मिक सलाहकार हजरत खलील उल्लाह के सम्मान में बनाया गया एक भव्य मकबरा है।

बहमनी राजवंश

  • यह भारत के दक्कन के पठार में पहली स्वतंत्र मुस्लिम सल्तनत थी, जिसने 1347-1527 ईसवी तक लगभग 200 वर्षों तक शासन किया।
  • संस्थापक: राजवंश की स्थापना 1347 ईसवी में एक अफगान शासक अलाउद्दीन हसन गंगू बहमन शाह ने की थी।
  • राजधानी: गुलबर्गा पहले 75 वर्षों तक राजधानी रही, उसके बाद एक शताब्दी से अधिक समय तक बीदर राजधानी रही।
  • भाषा: आधिकारिक भाषा फारसी थी, और आम भाषाएँ मराठी, दक्कनी, तेलुगु और कन्नड़ थीं।
  • उल्लेखनीय शासक: इस राजवंश में कुल 18 शासक हुए।
    • मुहम्मद शाह प्रथम: अलाउद्दीन बहमन शाह का पुत्र, उसने विजयनगर और वारंगल की हिंदू रियासतों को हराया।
    • फिरोज शाह बहमनी: उसने दौलताबाद के पास एक वेधशाला बनवाई।
    • अहमद शाह प्रथम: जिसे वली (संत) के नाम से भी जाना जाता है, उसने ज्ञान का ऐसा वातावरण बनाया, जिसने दुनिया भर के विद्वानों को आकर्षित किया।

संदर्भ 

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) की अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट 2024 (Adaptation Gap Report 2024), जिसका शीर्षक है ‘कम हेल एंड हाई वाटर’ (Come Hell and High Water), ने जलवायु अनुकूलन प्रयासों में भारी वृद्धि की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया है, विशेष रूप से COP29 में प्रतिबद्ध वित्तीय सहायता के माध्यम से।

अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट (Adaptation Gap Report) के बारे में

  • यह वर्ष 2014 से संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme-UNEP) द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित किया जाता है।
  • इस रिपोर्ट का उद्देश्य अनुकूलन को आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को सूचित करना है।
  • यह तीन कारकों [नियोजन (Planning), वित्तपोषण (Financing) एवं कार्यान्वयन (Implementation)] में अनुकूलन प्रक्रिया की वैश्विक स्थिति और प्रगति पर एक अद्यतन प्रदान करता है।
  • यह उत्सर्जन अंतर रिपोर्ट शृंखला का पूरक है और उत्सर्जन अंतर को बंद करने में विफल होने के निहितार्थों की पड़ताल करता है।
  • यह UNEP कोपेनहेगन जलवायु केंद्र (UNEP Copenhagen Climate Centre- UNEP-CCC) और विश्व अनुकूलन विज्ञान कार्यक्रम (World Adaptation Science Programme- WASP) द्वारा सह-निर्मित है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • अनुकूलन वित्त की थोक माँग: अनुमान है कि वर्ष 2030 तक औसत 387 डॉलर की आवश्यकता होगी। वर्ष 2022 में, इन देशों में अनुकूलन वित्त का प्रवाह 28 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया था, जो वर्ष 2021 में 22 बिलियन डॉलर से अधिक है, हालाँकि वास्तविक उपभोग से अभी भी बहुत कम है। 
    • ग्लासगो जलवायु समझौते का लक्ष्य, अनुकूलन वित्त को वर्ष 2019 में 19 बिलियन डॉलर से दोगुना करके वर्ष 2025 तक 38 बिलियन डॉलर करना है, जो कि अनुमानित 187-359 बिलियन डॉलर के अनुकूलन वित्त अंतर को पाटने के लिए अपर्याप्त है।
  • बढ़ते जलवायु खतरे और प्रभाव: रिपोर्ट में हालिया चरम मौसमी आपदाओं का विवरण दिया गया है, जैसे कि नेपाल में सितंबर 2024 में आई बाढ़ और अफ्रीका महाद्वीप में ग्रीष्मकालीन के दौरान उत्पन्न हुई भीषण बाढ़ जैसी स्थिति, जिससे बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु तथा विस्थापन हुआ।
    • ये घटनाएँ वित्तीय और रणनीतिक अनुकूलन सहायता की तत्काल आवश्यकता पर जोर देती हैं।
    • ग्लोबल वार्मिंग, जो मुख्य रूप से विकसित देशों से उत्सर्जन के कारण होती है, ने इन घटनाओं को और तीव्र कर दिया है, जिससे विकासशील देशों पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सबसे कम योगदान दिया है।
  • राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं पर धीमी प्रगति: हालाँकि 171 देशों के पास कम-से-कम एक राष्ट्रीय अनुकूलन योजना दस्तावेज (National Adaptation Planning Document) है, फिर भी कार्यान्वयन धीमा बना हुआ है।
    • उल्लेखनीय रूप से, 10 देशों के पास कोई औपचारिक अनुकूलन योजना नहीं है और इनमें से सात संघर्ष-प्रभावित या संवेदनशील देश हैं, जिन्हें महत्त्वपूर्ण रूप से अनुकूलित समर्थन की आवश्यकता है।
    • रिपोर्ट में बताया गया है कि परियोजना-आधारित वित्तपोषण अस्थिर साबित हुआ है, जिसमें से आधी परियोजनाएँ निरंतर वित्तपोषण के बिना टिकने की संभावना नहीं रखती हैं।
  • वैश्विक जलवायु लचीलेपन के लिए UAE का नया फ्रेमवर्क: COP28 में स्थापित यह फ्रेमवर्क अनुकूलन प्रयासों का मार्गदर्शन करने के लिए आयामी लक्ष्य (जैसे, योजना, कार्यान्वयन, निगरानी) और विषयगत लक्ष्य (जैसे, कृषि, जल, स्वास्थ्य) निर्धारित करता है, लेकिन इसमें प्रगति को प्रभावी ढंग से ट्रैक करने के लिए आवश्यक मापदंडों का अभाव है।

अनुकूलन वित्त अंतर को पाटना 

  • UNEP की रिपोर्ट में उच्च ब्याज वाले ऋणों से परे नवीन वित्तपोषण मॉडल की आवश्यकता पर बल दिया गया है, जो विकासशील देशों के ऋण को ही बढ़ाते हैं।
  • सुझाए गए तंत्रों में शामिल हैं:
  • जोखिम वित्त और बीमा संबंधी साधन: ये वित्तीय साधन देशों को जलवायु संबंधी जोखिमों का प्रबंधन करने और निवेशकों को हस्तांतरित करने में मदद करते हैं, जिससे उन्हें प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध वित्तीय सुरक्षा मिलती है।
    • प्रदर्शन आधारित अनुदान और लचीलापन क्रेडिट: ये देशों को विशिष्ट जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पुरस्कृत करते हैं, जिससे महत्त्वाकांक्षी कार्रवाई को प्रोत्साहन मिलता है।
    • ऋण के लिए अनुकूलन स्वैप: ये वित्तीय साधन देशों को जलवायु अनुकूलन परियोजनाओं में निवेश के बदले में अपने ऋण बोझ को कम करने की अनुमति देते हैं, जिससे जलवायु कार्रवाई के लिए संसाधन मुक्त होते हैं।
    • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान: ये भुगतान व्यक्तियों और संगठनों को पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और पुनर्स्थापन के लिए मुआवजा देते हैं, जो जलवायु विनियमन और जैव विविधता संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और बहुपक्षीय विकास बैंकों के भीतर सुधार इस अनुकूलन वित्तपोषण को और अधिक समर्थन दे सकते हैं। 

परिवर्तनात्मक अनुकूलन की विशेषताएँ

  • प्रणालीगत परिवर्तन: भेद्यता के अंतर्निहित कारणों को संबोधित करना और न केवल व्यक्तिगत घटकों को बल्कि संपूर्ण प्रणालियों को बदलना।
  • दीर्घकालिक दृष्टि: भविष्य के जलवायु जोखिमों पर विचार करना और दीर्घकालिक लचीलेपन की योजना बनाना।
  • समानता और न्याय: यह सुनिश्चित करना कि अनुकूलन प्रयास निष्पक्ष और समावेशी हों, कमजोर आबादी की जरूरतों को संबोधित करते हुए।
  • नवाचार और प्रयोग: अभिनव समाधान विकसित करने के लिए नए विचारों और प्रौद्योगिकियों को अपनाना।
  • सहयोग और साझेदारी: साझा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए विविध हितधारकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।

परिवर्तनकारी अनुकूलन की ओर बढ़ना

  • दीर्घकालिक जलवायु जोखिमों को संबोधित करने के लिए, रिपोर्ट प्रतिक्रियात्मक, अल्पकालिक उपायों से “परिवर्तनकारी अनुकूलन” की ओर बढ़ने की वकालत करती है, जो चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में रणनीतिक, पूर्वानुमानित प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करती है।
  • परिवर्तनकारी अनुकूलन स्पष्ट परिभाषा की कमी के कारण COP28 में विवादास्पद था, लेकिन अंततः इसे अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य (Global Goal on Adaptation- GGA) में मान्यता दी गई।
    • विकासशील देश क्षमता के कारण कार्यान्वयन को लेकर चिंतित हैं।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) का COP29

  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन का 29वाँ कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP29) 11 से 22 नवंबर, 2024 तक बाकू, अजरबैजान में शुरू हो गया है।
  • यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और एक स्थायी भविष्य के निर्माण के लिए समाधानों और रणनीतियों पर चर्चा करने के लिए विश्व के नेताओं, नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों और कार्यकर्ताओं को एक साथ लाएगा।

इस कार्यक्रम का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक कार्रवाई में तेजी लाना है, जिसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित शामिल हैं:

  • वित्तपोषण: उत्सर्जन में कमी और जलवायु अनुकूलन के लिए वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करना।
  • राष्ट्रीय जलवायु योजनाएँ: देशों को अपनी राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाओं को अद्यतन और सुदृढ़ करने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • वैश्विक तापमान लक्ष्य: वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर सीमित करने की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करना।

संदर्भ

हाल ही में अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 25 आधार अंकों की कटौती की है, जो वर्ष 2024 में इसकी दूसरी कटौती है।

कटौती की मुख्य विशेषताएँ

  • ब्याज दर में कटौती: 25 आधार अंकों की कटौती, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के प्रयासों का संकेत देती है।
  • भविष्य का दृष्टिकोण: अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक आर्थिक प्रदर्शन के आधार पर आगे भी दरों में कटौती के लिए तैयार है, जिसका निर्णय दिसंबर 2024 में लिए जाने की संभावना है।
  • राजनीतिक प्रभाव: अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक ने जोर देकर कहा कि फेडरल बैंक के निर्णय राजनीतिक परिवर्तनों या बाहरी दबावों से अप्रभावित हैं।

ब्याज दर और मुद्रास्फीति के बीच संबंध

  • व्युत्क्रम संबंध: मुद्रास्फीति और ब्याज दरों के बीच संबंध मूलतः व्युत्क्रम है, अर्थात् जब एक बढ़ता है, तो दूसरा घटता है।
    • यह संबंध मुद्रा के परिमाण सिद्धांत में निहित है, जो दर्शाता है कि मुद्रा आपूर्ति में परिवर्तन मुद्रास्फीति को प्रभावित करते हैं।
    • यह व्युत्क्रम संबंध केंद्रीय बैंकों को आर्थिक स्थिरता का प्रबंधन करने में मदद करता है।
    • ब्याज दरों को समायोजित करके, केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति और क्रय शक्ति को प्रभावित कर सकते हैं, जिसका उद्देश्य मूल्य स्थिरता बनाए रखना और एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था का समर्थन करना है।

  • उच्च ब्याज दरें: जब केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ाता है, तो उधार लेना अधिक महंगा हो जाता है।
    • इससे मुद्रा आपूर्ति कम हो जाती है, क्योंकि लोग और व्यवसाय ऋण लेने के लिए कम इच्छुक होते हैं। परिणामस्वरूप, खर्च में कमी आती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की माँग कम हो जाती है, जिससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और कम करने में मदद मिलती है।
  • कम ब्याज दरें: जब ब्याज दरें कम होती हैं, तो उधार लेना सस्ता होता है, जिससे मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि होती है।
    • लोगों और व्यवसायों द्वारा खर्च और निवेश करने की संभावना अधिक होती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की माँग बढ़ती है। माँग आपूर्ति से अधिक होने पर, कीमतें बढ़ती हैं, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ती है।

बाजार की प्रतिक्रियाएँ और वैश्विक निहितार्थ

  • अमेरिकी ऋण और मुद्रास्फीति की चिंताएँ: ब्याज दरों में कटौती के बाद, अमेरिकी ऋण ब्याज दरों में उछाल आया, विश्लेषकों ने ट्रंप की प्रस्तावित कर कटौती और टैरिफ योजनाओं से मुद्रास्फीति के दबाव के संबंध में सतर्क किया है।
  • वैश्विक मुद्राओं पर प्रभाव: कम अमेरिकी ब्याज दर अन्य मुद्राओं में निवेश को और अधिक आकर्षक बना सकती है, विशेषकर भारत जैसे उभरते बाजारों में।
    • इससे करेंसी कैरी ट्रेडों में अधिक रिटर्न प्राप्त हो सकता है तथा उच्च दर वाले देशों में विदेशी निवेश आकर्षित हो सकता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव

  • कैरी ट्रेड के अवसर (Carry Trade Opportunities): जैसे-जैसे अमेरिकी ब्याज दर में गिरावट आएगी, अमेरिकी और भारतीय ब्याज दरों के बीच अंतर बढ़ सकता है।
    • इससे भारत में करेंसी कैरी ट्रेड के लिए आकर्षक अवसर उत्पन्न होंगे, जिससे भारतीय बॉण्ड और इक्विटी में विदेशी निवेश में वृद्धि हो सकती है।
  • वैश्विक विकास की संभावनाओं को बढ़ावा: अमेरिका में कम ब्याज दरें उसकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकती हैं, जिसका वैश्विक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • अन्य उभरते बाजारों के साथ-साथ भारत को भी इस संभावित आर्थिक उत्थान से लाभ हो सकता है, विशेषकर तब जब चीन रियल एस्टेट संकट से जूझ रहा है।
  • उभरते बाजारों में निवेशकों की रुचि: अमेरिकी ऋण पर कम रिटर्न के कारण, निवेशक अधिक रिटर्न की तलाश में भारत जैसे उभरते बाजारों की ओर आकर्षित हो सकते हैं।
    • इस प्रवृत्ति से भारतीय इक्विटी बाजारों को मजबूती मिल सकती है तथा विदेशी पूँजी में वृद्धि हो सकती है।

भारत में घरेलू मौद्रिक नीति पर विचार

  • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए वर्ष 2020 से अब तक दरों में 250 आधार अंकों की वृद्धि की है, जो 6.5% तक पहुँच गई है।
  • हालाँकि, अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक के सामान्य रुख को देखते हुए, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) 4-6 दिसंबर, 2024 को अपनी आगामी मौद्रिक नीति समिति की बैठक में सतर्क रुख अपना सकता है।
  • फेडरल रिजर्व बैंक द्वारा आगे की कटौती में कोई भी देरी RBI के अपने दर समायोजन पर निर्णय को प्रभावित कर सकती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले वैश्विक कारक

  • चीन का आर्थिक प्रोत्साहन: चीन द्वारा एक महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन पैकेज शुरू करने की उम्मीद है, जिससे विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) भारत से दूर हो सकता है।
    • चीनी वस्तुओं पर ट्रंप के प्रस्तावित टैरिफ से बढ़े तनाव के कारण चीन को कठोर राजकोषीय समाधान अपनाने के लिए प्रोत्साहन मिल सकता है, जिससे FPI के लिए भारत का आकर्षण कम हो सकता है।
  • बैंक ऑफ जापान (BoJ) द्वारा अपेक्षित दर वृद्धि: बैंक ऑफ जापान (BoJ) द्वारा दिसंबर में दरें बढ़ाने की संभावना है, जिससे येन कैरी ट्रेड प्रभावित हो सकता है और बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है।
    • ब्याज दरों में वृद्धि से वैश्विक निवेश पैटर्न में बदलाव आ सकता है, जिसका असर भारत के इक्विटी और मुद्रा बाजारों पर पड़ सकता है।

संदर्भ 

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Backward Classes-NCBC) ने केंद्र सरकार से महाराष्ट्र की कम-से-कम सात जातियों और उनके समानार्थी शब्दों को अन्य पिछड़ा वर्ग की केंद्रीय सूची में शामिल करने की सिफारिश की है।

केंद्रीय OBC सूची में जातियों को शामिल करने की प्रक्रिया

  • अनुरोध: संबंधित राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारें कुछ जातियों को केंद्रीय OBC सूची में शामिल करने का प्रस्ताव देती हैं।
    • प्रस्ताव को उक्त समुदायों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के आँकड़ों के साथ समर्थित किया जाना चाहिए तथा इसे राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Backward Classes-NCBC) को भेजा जाना चाहिए।
  • समीक्षा: राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) मंडल आयोग (वर्ष 1979) द्वारा सुझाए गए सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक संकेतकों के आधार पर प्रस्ताव की जाँच करने के लिए एक पीठ का गठन करता है।
  • सलाह: राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) इसके बाद केंद्रीय OBC सूची में जाति या समुदाय को शामिल करने/बहिष्कृत करने के बारे में केंद्र सरकार को सलाह देता है।
    • आयोग समुदाय द्वारा दिए गए पिछड़ेपन के कारणों और औचित्य की जाँच करता है और सामाजिक एवं शैक्षिक पिछड़ेपन के विस्तृत अध्ययन के लिए सार्वजनिक सुनवाई आयोजित करता है।
    • सलाह पर आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सभी सदस्यों द्वारा विधिवत हस्ताक्षर और प्रमाणीकरण किया जाना चाहिए।
  • समावेशन: NCBC इसके बाद अपना निर्णय केंद्र सरकार को भेजती है। कैबिनेट सलाह को मंजूरी देने के लिए कानून बनाती है। यदि विधेयक संसद द्वारा पारित किया जाता है और राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया जाता है, तो संबंधित जाति केंद्रीय सूची में शामिल हो जाती है।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Backward Classes-NCBC)

  • राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) एक संवैधानिक निकाय है, जो 102वें संशोधन अधिनियम, 2018 के माध्यम से प्रभावी हुआ और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-338-B के तहत स्थापित किया गया था।
  • गठन: राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) की सिफारिश वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में की गई थी।
    • संसद ने वर्ष 1993 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम पारित किया और एक वैधानिक निकाय के रूप में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) का गठन किया।
  • क्षेत्राधिकार: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (भारत सरकार)।
  • कार्य
    • NCBC सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए शिकायतों और कल्याणकारी उपायों की जाँच कर सकता है।
    • सिविल कोर्ट की शक्तियाँ: राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को सिविल कोर्ट की सभी शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • नियुक्ति: भारत के राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद-340 के अंतर्गत अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित वारंट द्वारा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) के सदस्यों की नियुक्ति करते हैं।
    • अनुच्छेद-342A: राष्ट्रपति विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को निर्दिष्ट कर सकता है।
  • संरचना: आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होंगे।
  • कार्यकाल: सभी सदस्यों की सेवा की शर्तें और कार्यकाल राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किया जाता है। आमतौर पर, अध्यक्ष का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है।
  • हटाना: आयोग के सदस्य राष्ट्रपति की इच्छा पर्यंत तक सेवा करते हैं।

संदर्भ

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने कहा कि सार्वजनिक सेवाओं में उम्मीदवारों के चयन के लिए पात्रता मानदंड या ‘रूल ऑफ द गेम’ को भर्ती शुरू होने के बाद बीच में नहीं बदला जा सकता है।

संवैधानिक पीठ

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में संवैधानिक पीठ कम-से-कम पाँच न्यायाधीशों वाली एक विशेष पीठ होती है। इसका गठन संविधान की व्याख्या से संबंधित कानून के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों से जुड़े मामलों की सुनवाई एवं निर्णय के लिए किया जाता है।

शक्तियाँ

  • आधिकारिक निर्णय: बड़ी पीठ द्वारा लिए गए निर्णय अधिक आधिकारिक और बाध्यकारी माने जाते हैं।
  • विविध दृष्टिकोण: बड़ी पीठ कानूनी राय और दृष्टिकोण की व्यापक शृंखला की अनुमति देती है।
  • निष्पक्षता: न्यायाधीशों की बड़ी संख्या पक्षपात या प्रभाव की संभावना को कम करती है।

आकार

  • न्यूनतम: 5 न्यायाधीश
  • अधिकतम: कोई निश्चित अधिकतम सीमा नहीं है, लेकिन महत्त्वपूर्ण संवैधानिक मामलों के लिए अतीत में 7, 9, 11 और 17 न्यायाधीशों की पीठें गठित की गई हैं।

निर्णय के मुख्य बिंदु

  • समानता तथा गैर-भेदभाव के सिद्धांत: सभी भर्ती प्रक्रियाओं को मौलिक अधिकारों, विशेषकर अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद-16 (सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर) के अनुरूप होना चाहिए, ताकि मनमानी न हो और निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित हो।
  • नियुक्ति का कोई गारंटीकृत अधिकार नहीं: चयनित सूची में शामिल अभ्यर्थियों को नियुक्ति का पूर्ण अधिकार नहीं है, भले ही रिक्तियाँ मौजूद हों।
  • राज्य पर साक्ष्य का बोझ: राज्य मनमाने ढंग से नियुक्तियों से इनकार नहीं कर सकता है और यदि वह किसी चयनित उम्मीदवार को नियुक्त करने से इनकार करता है तो उसे इसका औचित्य बताना होगा।
  • नियमों की बाध्यकारी प्रकृति: भर्ती नियमों में प्रक्रियागत और पात्रता संबंधी दोनों आवश्यकताएँ भर्ती निकाय के लिए बाध्यकारी हैं, जिन्हें प्रक्रिया के दौरान इन नियमों का कठोरता से पालन करना होगा।

कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद-14 में कहा गया है कि सरकार भारत में किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से इनकार नहीं कर सकती है।
  • इसका अर्थ यह है कि कानून की नजर में सभी लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाता है, चाहे उनकी स्थिति, जाति, नस्ल, धर्म, जन्म स्थान या लिंग कुछ भी हो।
  • इसे ‘कानून का शासन’ भी कहा जाता है।
  • अनुच्छेद-14 के दो भाग हैं:
    • कानून के समक्ष समानता: एक नकारात्मक अवधारणा जो किसी भी व्यक्ति के पक्ष में किसी भी विशेषाधिकार की अनुपस्थिति को दर्शाती है।
    • कानूनों का समान संरक्षण: एक सकारात्मक अवधारणा जो राज्य से सकारात्मक कार्रवाई की अपेक्षा करती है।

सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर एवं भेदभाव का निषेध

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-16 सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर की गारंटी देता है और कुछ कारकों के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
  • समान अवसर: सभी नागरिकों को सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने और उन्हें हासिल करने का समान अवसर मिलता है।
  • कोई भेदभाव नहीं: नागरिकों के साथ धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान या निवास के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
  • आरक्षण: सरकार किसी भी पिछड़े वर्ग के नागरिकों, जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के नागरिकों के लिए आरक्षण कर सकती है।
  • निवास संबंधी आवश्यकताएँ: संसद ऐसे कानून बना सकती है, जिसके तहत किसी सरकारी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति के लिए किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में एक निश्चित निवास की आवश्यकता होती है।
  • अपवाद: कुछ पदों को केवल निवासियों के लिए आरक्षित करने के लिए बाध्यकारी कारण हो सकते हैं।

‘रूल ऑफ द गेम’ के बारे में

  • ‘रूल ऑफ द गेम’ की परिभाषा: यह शब्द चयन और नियुक्ति प्रक्रिया को संदर्भित करता है, जिसमें स्पष्ट सिद्धांत है कि भर्ती के बीच में नियमों को नहीं बदला जाना चाहिए।
    • यह भर्ती शुरू होने के बाद ‘रूल ऑफ द गेम’ को बदलने के खिलाफ दीर्घकालिक कानूनी मानक पर आधारित है।
  • इन नियमों की दो श्रेणियाँ हैं:-
    • पात्रता मानदंड: आवेदन करने के लिए आवश्यक योग्यताएँ।
    • चयन प्रक्रिया: पात्र पूल से उम्मीदवारों का चयन करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधि एवं तरीका।

भर्ती प्रक्रिया दिशा-निर्देश

  • भर्ती रिक्त पदों को भरने की पूरी प्रक्रिया है, जो विज्ञापन से लेकर रिक्त पद पर चयनित व्यक्तियों की नियुक्ति तक होती है।
  • प्रक्रिया जनादेश: मौजूदा नियमों के अनुरूप होना चाहिए, तर्कसंगत, पारदर्शी और गैर-भेदभावपूर्ण होना चाहिए।
  • नियमों के भीतर लचीलापन: भर्ती निकाय प्रक्रियाएँ तैयार कर सकते हैं बशर्ते कि वे:-
    • वैधानिक नियमों के अनुरूप हो।
    • पारदर्शी, गैर-भेदभावपूर्ण और गैर-मनमाना हो।
    • भर्ती उद्देश्यों के साथ तर्कसंगत संबंध बनाए रखे।

भारत में सिविल सेवा भर्ती

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-309 केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को उचित विधानमंडल के अधिनियम के माध्यम से सार्वजनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती तथा सेवा की शर्तों को विनियमित करने का अधिकार देता है।
  • संसद ने वर्ष 1951 में ‘अखिल भारतीय स्टाफिंग पैटर्न सेवा अधिनियम’ बनाया, जो अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों की सेवा की शर्तों को नियंत्रित करता है।
  • लोक सेवकों की भर्ती और रोजगार संविधान के प्रावधानों के तहत संबंधित सरकारों द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विनियमित होते है।

निर्णय का निहितार्थ

  • उम्मीदवारों के लिए: उम्मीदवारों को आश्वस्त करता है कि भर्ती शुरू होने के बाद पात्रता एवं चयन पद्धतियाँ स्थिर रहेंगी।
  • भर्ती निकायों के लिए: प्रक्रियात्मक निष्पक्षता और संवैधानिक रूप से आधारित गैर-मनमानी के पालन को सुदृढ़ करता है।
  • नियमों की बाध्यकारी प्रकृति: वैधानिक नियम भर्ती निकायों पर बाध्यकारी होते हैं।
  • प्रशासनिक निर्देश: ये निर्देश भर्ती का मार्गदर्शन कर सकते हैं, जहाँ औपचारिक नियम अनुपस्थित हैं।
  • नियुक्ति का कोई गारंटीकृत अधिकार नही: चयन सूची में स्थान मिलना नियुक्ति की गारंटी नहीं देता है।

संदर्भ

हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने नई दिल्ली में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय तथा अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (International Buddhist Confederation) द्वारा आयोजित प्रथम एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन का उद्घाटन किया।

प्रथम एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन वर्ष 2024 के बारे में

  • यह एक महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय आयोजन है, जिसका उद्देश्य एशिया भर में बौद्ध समुदाय के बीच संवाद को बढ़ावा देना, समझ को बढ़ावा देना और समकालीन चुनौतियों का समाधान करना है।
  • इस आयोजन का विषय है:- ‘एशिया को मजबूत बनाने में बुद्ध धम्म की भूमिका’ (Role of Buddha Dhamma in Strengthening Asia) इस विषय के माध्यम से पूरे महाद्वीप में सामूहिक, समावेशी एवं आध्यात्मिक विकास पर जोर दिया गया।
  • शिखर सम्मेलन के मुख्य विषय
    • बौद्ध कला, वास्तुकला तथा विरासत: साँची स्तूप और अजंता गुफाओं जैसे स्थलों की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रदर्शन करना।
    • बुद्ध चारिका और शिक्षाओं का प्रसार: बुद्ध की यात्राओं और भारत भर में धम्म के प्रसार के उनके प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • बौद्ध अवशेषों की भूमिका और सामाजिक प्रभाव: चर्चा की गई कि कैसे अवशेष विश्वास को प्रेरित करते हैं, तीर्थ पर्यटन के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं का समर्थन करते हैं और शांति तथा करुणा को बढ़ावा देते हैं।
    • बौद्ध साहित्य एवं आधुनिक दर्शन: समकालीन दार्शनिक संवाद में बौद्ध ग्रंथों की प्रासंगिकता को प्रदर्शित किया गया।
    • बुद्ध धम्म और वैज्ञानिक अनुसंधान: इस बात की जाँच की गई कि कैसे बौद्ध सिद्धांतों को मानव कल्याण को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान में एकीकृत किया जाता है।
  • प्रदर्शनी: इसमें बौद्ध धर्म के प्रसार में भारत की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, ‘भारत एशिया को जोड़ने वाला धम्म सेतु है [India as the Dhamma Setu (Bridge) Connecting Asia]’ शीर्षक से लेख प्रस्तुत किया गया।
  • भारत के लिए महत्त्व: एशिया में साझा विकास और आध्यात्मिकता पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीतियों को सुदृढ़ करता है।

त्रिपिटक (Tripitaka)

  • त्रिपिटक बौद्ध धर्मग्रंथों, नियमों, टिप्पणियों और इतिहास का संग्रह है और इसे बौद्ध धर्म के पवित्र ग्रंथों के मुख्य संस्करणों में से एक माना जाता है।
  • नाम: त्रिपिटक का नाम ‘ट्रिपल बास्केट’ के रूप में अनुवादित होता है।
  • खंड: त्रिपिटक को तीन खंडों में विभाजित किया गया है, जिन्हें विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक के रूप में जाना जाता है।
    • विनय पिटक: इसमें भिक्षुओं और बौद्ध मंडली या संघ के लिए नियम शामिल हैं।
    • सुत्त पिटक: इसमें बुद्ध की शिक्षाएँ शामिल हैं, जिसमें धम्मपद भी शामिल है, जो बुद्ध द्वारा कानून या नियमों की व्याख्या है।
    • अभिधम्म पिटक: इसमें धर्म पर टिप्पणी है और इसे कभी-कभी दर्शन की टोकरी भी कहा जाता है।
  • संस्करण
    • त्रिपिटक के कई संस्करण हैं, जिनमें पाली कैनन, चीनी बौद्ध कैनन और तिब्बती बौद्ध कैनन शामिल हैं।
    • पाली कैनन मूल संस्करण है, जिसे पहली बार पहली शताब्दी ईसा पूर्व में संकलित किया गया था।

राष्ट्रपति के भाषण के मुख्य अंश

  • अनेकता में एकता (Unity in Diversity): राष्ट्रपति ने शिखर सम्मेलन में उपस्थित विभिन्न लोगों के बीच एकता पर जोर दिया, जो विभिन्न देशों से आते हैं, विभिन्न भाषाएँ बोलते हैं तथा विभिन्न रंगों के वस्त्र पहनते हैं, लेकिन सभी धम्म के लिए अपने प्रयास में एकजुट हैं।
  • एशिया को मजबूत बनाने में बुद्ध धम्म की भूमिका: शिखर सम्मेलन का विषय एशिया को मजबूत बनाने में बुद्ध धम्म की भूमिका पर केंद्रित था, जिसे संघर्ष और पर्यावरणीय संकट जैसी समकालीन चुनौतियों से निपटने में समयानुकूल तथा महत्त्वपूर्ण बताया गया।
  • बुद्ध की शिक्षाओं की विरासत:राष्ट्रपति ने बुद्ध के ज्ञानोदय की प्रशंसा करते हुए इसे इतिहास की एक अद्वितीय घटना बताया तथा बुद्ध के शांति, अहिंसा और करुणा के संदेश पर जोर दिया, जो दुनिया भर में अरबों लोगों को प्रेरित करता है।
  • बुद्ध धर्म का वैश्विक प्रसार तथा संरक्षण: विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों (दक्षिण-पूर्व एशिया, तिब्बत, चीन और पश्चिमी देशों) में बुद्ध की शिक्षाओं के प्रसार को स्वीकार किया गया, साथ ही उनकी शिक्षाओं को संरक्षित करने के सामूहिक प्रयास को भी स्वीकार किया गया, जिसमें त्रिपिटक की रचना तथा श्रीलंका, तिब्बत और चीन के भिक्षुओं द्वारा अनुवाद शामिल हैं।
  • संरक्षण के लिए भारत की प्रतिबद्धता: राष्ट्रपति ने बौद्ध विरासत को संरक्षित करने के लिए भारत द्वारा क्रियान्वित किए जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डाला, जैसे कि हाल ही में पाली और प्राकृत को शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता देना, उनके संरक्षण तथा पुनरोद्धार के लिए वित्तीय सहायता सुनिश्चित करना है।
  • आगे की खोज के लिए निमंत्रण: राष्ट्रपति ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों को भारत की समृद्ध बौद्ध विरासत का पता लगाने और बुद्ध की शिक्षाओं के बारे में अपनी समझ को गहरा करने के लिए राष्ट्रीय संग्रहालय एवं बौद्ध सर्किट का दौरा करने का निमंत्रण दिया।

बौद्ध दर्शन (Buddhist Philosophy)

  • बौद्ध धर्म के दार्शनिक आधार
    • संसार क्षणभंगुर या अनित्य है।
    • यह निष्प्राण (अनत्ता) भी है, इसमें कुछ भी स्थायी नहीं है।
    • दुःख  मानव अस्तित्व का अभिन्न अंग है।
  • इस प्रकार कठिन तपस्या और आत्म-भोग के बीच संयम का मार्ग अपनाकर मनुष्य इन सांसारिक कष्टों से ऊपर उठ सकता है।
  • अन्य मान्यताएँ
    • उन्होंने न तो ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया और न ही नकारा।
    • उन्होंने सांसारिक मुद्दों पर बात की और आत्मा (आत्मन) और ब्रह्म के बारे में बहस से उनका कोई सरोकार नहीं था।
    • उन्होंने वेदों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाया।
    • वर्ण व्यवस्था की निंदा की और समानता की वकालत की।
  • बुद्ध के चार आर्य सत्य: बौद्ध दर्शन के सार को समझने के लिए चार आर्य सत्यों को जानना आवश्यक है। 
    • दुख का आर्य सत्य: जन्म, आयु, मृत्यु, वियोग, अधूरी इच्छा।
    • दुख के कारणों का आर्य सत्य: सुख, शक्ति और दीर्घायु की इच्छाओं (तृष्णा) से उत्पन्न होता है।
    • दुख निवारण का आर्य सत्य: दुख से मुक्ति प्राप्त करना।
    • दुख निवारण के मार्ग का आर्य सत्य, जिसे आर्य अष्टांगिक मार्ग या मध्यम मार्ग के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

सांप्रदायिकता समाज के लिए चुनौती क्यों है?

  • राष्ट्रीय एकता को खतरा: संप्रदायवाद और सांप्रदायिकता देश को विभाजित करती है, सामाजिक एकीकरण को कमजोर करती है तथा सामाजिक विखंडन को बढ़ावा देती है।
    • मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच नृजातीय संघर्ष के कारण वर्ष 2023 में व्यापक हिंसा, विस्थापन और जानमाल की हानि हुई।
  • सामाजिक असामंजस्य: घृणा, अविश्वास तथा हिंसा को बढ़ावा मिलता है, जिससे सामाजिक शांति भंग होती है।
    • वर्ष 2002 के गुजरात दंगों ने सांप्रदायिक अंतराल को गहरा कर दिया तथा हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दीर्घकालिक अविश्वास को बढ़ावा दिया।
  • राजनीतिक बदलाव: राजनेता अक्सर चुनावी लाभ के लिए सांप्रदायिक विभाजन का लाभ उठाते हैं, जिससे सामाजिक मतभेद और गहराते हैं।
    • राजनेता अक्सर स्थानीय या स्वदेशी लोगों के बीच समर्थन प्राप्त करने के लिए ‘भूमिपुत्रों’ (Sons of the Soil) की भावनाओं का सहारा लेते हैं तथा नौकरियों, संसाधनों या भूमि पर उनके अधिकार पर जोर देते हैं।
      • जैसे- बिहार तथा उत्तर प्रदेश प्रवासियों के विरुद्ध महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का आंदोलन।
  • आर्थिक व्यवधान: सांप्रदायिक हिंसा व्यापार और निवेश को बाधित करती है, जिससे आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
    • ‘इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस’ (Institute for Economics and Peace- IEP) ग्लोबल पीस इंडेक्स- 2023 के अनुसार, भारत में हिंसा का आर्थिक प्रभाव वर्ष 2022 में 1.2 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 6% है।
  • मानव अधिकार उल्लंघन: इन मुद्दों ने अल्पसंख्यक समूहों को हाशिए पर डाल दिया तथा उन्हें समान अधिकारों और अवसरों से वंचित कर दिया।
    • म्याँमार में रोहिंग्या मुसलमानों के उत्पीड़न में हिंसा और बुनियादी मानवाधिकारों का हनन शामिल था।
  • धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करता है: सांप्रदायिकता धार्मिक असहिष्णुता और भेदभाव को बढ़ावा देकर धर्मनिरपेक्षता को चुनौती देती है।
    • भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के विरुद्ध धार्मिक असहिष्णुता और भेदभाव की हालिया घटनाएँ, जैसे कि कुछ राज्यों में धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना, धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को चुनौती देती हैं तथा सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देती हैं।

सांप्रदायिकता से निपटने के लिए बौद्ध सिद्धांतों का प्रयोग

  • करुणा पर जोर (Emphasis on Compassion): बौद्ध शिक्षाओं के केंद्र में, करुणा विभिन्न समूहों के बीच सहानुभूति और समझ को बढ़ावा देती है, विभाजनकारी प्रवृत्तियों को कम करती है और सद्भाव को बढ़ावा देती है।
  • अहिंसा का सिद्धांत (Principle of NonViolence): बौद्ध धर्म की अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता, सांप्रदायिक आक्रामकता के आधार का मुकाबला करते हुए, संघर्ष पर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व एवं संवाद को प्रोत्साहित करती है।
  • मध्यम मार्ग दर्शन (Middle Path Philosophy): बुद्ध का मध्यमक (मध्य मार्ग) चरम विचारों और प्रथाओं को हतोत्साहित करता है, संतुलित तथा समावेशी दृष्टिकोणों को बढ़ावा देता है, जो विभिन्न विश्वासों के बीच के अंतर को पाटते हैं।
  • विविधता में एकता: थेरवाद, महायान और वज्रयान जैसे विभिन्न स्कूलों के विकास के बावजूद, बौद्ध धर्म विभिन्न व्याख्याओं के प्रति सम्मान को बनाए रखता है, यह सिखाता है कि विभिन्न मार्ग एक साझा आध्यात्मिक ढाँचे के भीतर शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रह सकते हैं।
  • अस्थायित्व और अनासक्ति पर शिक्षाएँ: यह समझकर कि सभी चीजें, जिसमें कठोर पहचान और विश्वास भी शामिल हैं, अस्थायित्वपूर्ण हैं, व्यक्तियों के संप्रदायवाद को बढ़ावा देने वाली संस्थाओं के स्थायित्त्व संभावना कम होती है।
  • सम्यक वाक् को बढ़ावा देना: अष्टांगिक मार्ग सही भाषण पर जोर देता है, जिसमें सत्य बोलना और विनम्रता से बोलना शामिल है। यह सिद्धांत रचनात्मक संवाद को बढ़ावा देता है।

बौद्ध धम्म तथा समकालीन विश्व में प्रासंगिकता

  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण नैतिकता: धम्म की अवधारणा प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहने को बढ़ावा देती है।
    • अहिंसा का सिद्धांत पर्यावरण संरक्षण तक फैला हुआ है, जो सभी प्रकार के जीवन के प्रति सम्मान की वकालत करता है।
    • भूटान जैसे देशों ने बौद्ध सिद्धांतों को राष्ट्रीय नीति में एकीकृत किया है, जिसके परिणामस्वरूप वे जीरो कार्बन उत्सर्जन होने और आर्थिक वृद्धि पर सकल राष्ट्रीय खुशहाली को प्राथमिकता देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
  • शांति और संघर्ष समाधान: अहिंसा और करुणा की शिक्षाएँ संघर्षों को हल करने के लिए शांतिपूर्ण संवाद और समझ पर जोर देती हैं।
    • अष्टांगिक मार्ग का सम्यक् वाणी घटक सत्यपूर्ण तथा हानिकारक न होने वाले संचार को प्रोत्साहित करता है।
    • तिब्बत मुद्दे पर अहिंसक दृष्टिकोण के लिए दलाई लामा की वकालत इस बात का उदाहरण है कि किस तरह बौद्ध सिद्धांत शांतिपूर्ण प्रतिरोध तथा संघर्ष समाधान का मार्गदर्शन कर सकते हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण: ध्यान (स्मृति) और ध्यान अभ्यास बौद्ध धर्म के लिए केंद्रीय हैं और मानसिक कल्याण तथा भावनात्मक लचीलापन बढ़ाने के लिए विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त हैं। धम्म दुख को कम करने के लिए इच्छाओं एवं आसक्तियों को प्रबंधित करने पर जोर देता है।
    • पश्चिमी देशों में माइंडफुलनेस प्रथाओं को अपनाने का चलन बढ़ रहा है, जिसमें चिकित्सा में ‘माइंडफुलनेस-आधारित तनाव न्यूनीकरण’ (Mindfulness- Based Stress Reduction- MBSR) का उपयोग भी शामिल है, यह दर्शाता है कि चिंता, अवसाद और तनाव को दूर करने के लिए बौद्ध तकनीकों को कैसे लागू किया जाता है।
  • आर्थिक असमानता तथा नैतिक नेतृत्व: बौद्ध धर्म सही आजीविका और उदारता (दान) के महत्त्व को सिखाता है। आर्थिक प्रणालियों का लक्ष्य समान वितरण होना चाहिए और लालच (लोभ) को हतोत्साहित करना चाहिए।
    • बौद्ध सिद्धांतों से प्रेरित सामाजिक उद्यम साझा समृद्धि पर ध्यान केंद्रित करते हैं। उदाहरण के लिए, विकासशील देशों में माइक्रोफाइनेंस मॉडल समावेशी विकास को प्रोत्साहित करते हैं और हाशिए पर पड़े समुदायों को सशक्त बनाते हैं।
  • शरणार्थी संकट और करुणामयी नीतियाँ: करुणा का मूल्य जरूरतमंद लोगों, जैसे कि शरणार्थियों और विस्थापित व्यक्तियों के प्रति करुणामयी व्यवहार की माँग करता है। यह सिद्धांत सभी में मानवता को देखने और सहानुभूति के साथ कार्य करने पर जोर देता है।
    • एशिया में बौद्ध धर्मार्थ संस्थाओं और संगठनों द्वारा की गई पहल, जो शरणार्थियों को सहायता और आश्रय प्रदान करती हैं, जैसे कि म्याँमार में संघर्षों के कारण विस्थापित हुए लोग, मानवीय प्रयासों पर धम्म के प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं।
  • अतिवाद और सामाजिक सामंजस्य: बुद्ध की शिक्षाएँ संयम और अतिवादी विचारों से बचने की वकालत करती हैं। मेत्ता (प्रेम-दया) और समभाव (उपेक्षा) सामंजस्यपूर्ण जीवन तथा घृणा (दोष) को कम करने को प्रोत्साहित करते हैं।
    • बहु-धार्मिक समाजों में अंतर-धार्मिक संवाद और शांति-निर्माण के प्रयास, जैसे कि श्रीलंका के गृहयुद्ध के बाद के सुलह कार्यक्रम, सांप्रदायिक तनाव को कम करने के बौद्ध दृष्टिकोण को मूर्त रूप देते हैं।
  • उपभोक्तावाद तथा स्थिरता: धम्म अत्यधिक आसक्ति तथा इच्छा के विरुद्ध चेतावनी देता है, जो असंतुलित उपभोक्ता आदतों को बढ़ावा देते हैं। संतोष (संतुष्टि) का अभ्यास करने से पर्यावरण क्षरण को कम करने में मदद मिलती है।
    • बौद्ध शिक्षाओं से प्रभावित न्यूनतम जीवन शैली, कम उपभोग को प्रोत्साहित करती है तथा सतत् जीवन शैली को बढ़ावा देती है तथा अति उपभोग और वस्तुओं की बर्बादी की आधुनिक समस्याओं का मुकाबला करती है।
  • राजनीतिक और सामाजिक नैतिकता: नेताओं को धर्म की तरह कार्य करना चाहिए अर्थात् ऐसे धार्मिक शासक जो अपने लोगों के कल्याण को प्राथमिकता देते हैं। नीतियाँ नैतिक विचारों से प्रेरित होनी चाहिए, न्याय और निष्पक्षता को बढ़ावा देना चाहिए।
    • कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध सिद्धांतों को अपनाने से शासन के प्रति उनका दृष्टिकोण बदल गया तथा उन्होंने अहिंसा, कल्याणकारी कार्यक्रमों और नैतिक आचरण पर ध्यान केंद्रित किया, जो आधुनिक नेतृत्व के लिए एक ऐतिहासिक मॉडल के रूप में कार्य करता है।
  • शिक्षा और नैतिक विकास: धम्म शिक्षा के महत्त्व पर जोर देता है, जो बौद्धिक विकास और नैतिक विकास दोनों को पोषित करती है। ज्ञान की खोज नैतिक मूल्यों और सहानुभूति के साथ संरेखित होनी चाहिए।
    • थाईलैंड तथा म्याँमार जैसे देशों में बौद्ध स्कूल और मठवासी संस्थाएँ ऐसी शिक्षाएँ प्रदान करती हैं, जो न केवल अकादमिक शिक्षा को बढ़ावा देती हैं, बल्कि चरित्र निर्माण और नैतिक आचरण को भी बढ़ावा देती हैं।

बुद्ध धम्म के संरक्षण और संवर्द्धन में भारत की भूमिका

  • बौद्ध विरासत का ऐतिहासिक संरक्षक: भारत बौद्ध धर्म का मूल स्थान है, यहाँ बोधगया (बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति का स्थल), सारनाथ (उनका पहला उपदेश) और कुशीनगर (उनका महापरिनिर्वाण) जैसे पवित्र स्थल हैं। इन स्थलों को वैश्विक तीर्थयात्रा के लिए संरक्षित और प्रचारित किया जाता है, जिससे बुद्ध की शिक्षाओं के साथ गहरा संबंध विकसित होता है।
  • सांस्कृतिक तथा कूटनीतिक पहुँच: एक्ट ईस्ट पॉलिसी सहित भारत की विदेश नीति, श्रीलंका, थाईलैंड और जापान जैसे एशियाई देशों के साथ साझा बौद्ध विरासत को बढ़ावा देकर, क्षेत्रीय संबंधों और सॉफ्ट पॉवर को मजबूत करके सांस्कृतिक कूटनीति पर जोर देती है।
  • बौद्ध सम्मेलनों और शिखर सम्मेलनों के लिए समर्थन: भारत ने वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन जैसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलनों की मेजबानी और समर्थन किया है, जो समकालीन वैश्विक मुद्दों पर बुद्ध धम्म को लागू करने, शांति और सहयोग को बढ़ावा देने पर संवाद के लिए एक मंच प्रदान करता है।
  • बौद्ध साहित्य का संरक्षण: त्रिपिटक तथा अन्य धर्मग्रंथों के लिए डिजिटलीकरण और जीर्णोद्धार प्रयासों सहित प्राचीन ग्रंथों को संरक्षित करने की पहल, इस साझा विरासत को बनाए रखने में मदद करती है। पाली और प्राकृत जैसी शास्त्रीय भाषाओं की मान्यता विद्वानों के काम तथा बौद्ध शिक्षाओं के प्रसार का समर्थन करती है।
  • अनुसंधान एवं अध्ययन केंद्रों की स्थापना: नालंदा विश्वविद्यालय (पुनर्स्थापित) और ‘सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ हायर तिब्बतन स्टडीज’ (Central Institute of Higher Tibetan Studies) जैसे संस्थान बौद्ध अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करते हैं और धम्म के अकादमिक अन्वेषण को बढ़ावा देते हैं, जिससे विश्व भर के विद्वान आकर्षित होते हैं।
  • पुनरुद्धार तथा पर्यटन में स्मारकीय प्रयास: भारत सक्रिय रूप से बौद्ध पर्यटन सर्किटों को बढ़ावा देता है, जो महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों को जोड़ते हैं, बुद्ध के जीवन एवं शिक्षाओं की वैश्विक समझ में योगदान करते हैं तथा सांस्कृतिक संरक्षण और आर्थिक विकास में सहायता करते है।

निष्कर्ष

भारत सांस्कृतिक विरासत, शैक्षणिक पहल और कूटनीतिक प्रयासों को मिलाकर बुद्ध धम्म को संरक्षित करने तथा बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह प्रतिबद्धता न केवल इसकी ऐतिहासिक विरासत का सम्मान करती है बल्कि बुद्ध की कालातीत शिक्षाओं के माध्यम से वैश्विक शांति एवं एकता को भी बढ़ावा देती है।

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों की पीठ ने 4-3 के बहुमत से एक शैक्षणिक संस्थान के ‘अल्पसंख्यक चरित्र’ (Minority Character) को निर्धारित करने के लिए एक ‘समग्र और यथार्थवादी’ (Holistic and Realistic) परीक्षण निर्धारित किया, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत विशेष सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।

  • यह ऐतिहासिक निर्णय AMU की स्थापना, उद्देश्य तथा शैक्षणिक संस्थानों के प्रशासन में अल्पसंख्यकों के अधिकार के बारे में लंबे समय से चली आ रही बहस को संबोधित करता है।

संबंधित तथ्य 

  • याचिकाकर्ताओं द्वारा दी गई चुनौती: याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 1967 के एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में पाँच न्यायाधीशों की पीठ के निर्णय को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि AMU एक केंद्रीय विश्वविद्यालय था और इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1967 के अजीज बाशा फैसले को खारिज कर दिया है तथा कहा है कि कानून द्वारा किसी संस्था की स्थापना उसके अल्पसंख्यक दर्जे को समाप्त नहीं करती है।
  • AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का अंतिम निर्धारण स्थगित: AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का अंतिम निर्धारण एक अलग पीठ के समक्ष स्थगित कर दिया गया है।
    • AMU एक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान है या नहीं, इस प्रश्न का निर्णय इस निर्णय में निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर किया जाना चाहिए।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) मामले की समयरेखा एवं पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1877: सैयद अहमद खान ने मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए मुहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल (Muhammadan Anglo-Oriental- MAO) कॉलेज की स्थापना की थी।
  • वर्ष 1920: AMU अधिनियम लागू होने के बाद MAO कॉलेज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के रूप में स्थापित किया गया।
  • वर्ष 1950: संसद ने MAO को ‘राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान’ घोषित किया।
    • भारतीय संविधान संघ सूची की प्रविष्टि 63 के तहत ‘राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान’ (Institution of National Importance- INI) को मान्यता देता है।
    • केंद्र सरकार संसद के एक अधिनियम के माध्यम से भारत में प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थानों को INI का दर्जा देती है।
  • वर्ष 1967: एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले मे सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है, क्योंकि इसकी स्थापना या प्रशासन मुस्लिम अल्पसंख्यकों द्वारा नहीं किया गया था।
    • यह केंद्रीय विधानमंडल के एक अधिनियम के माध्यम से अस्तित्व में आया तथा इसलिए संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान की श्रेणी में नहीं आता था।
  • वर्ष 1981: सरकार ने AMU अधिनियम, 1920 में संशोधन करते हुए कहा कि यह संस्था मुस्लिम समुदाय द्वारा भारत में मुसलमानों की सांस्कृतिक तथा शैक्षिक उन्नति को बढ़ावा देने के लिए स्थापित की गई थी।
  • वर्ष 2005: AMU ने स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों में मुस्लिम छात्रों के लिए 50% आरक्षण लागू किया।
  • वर्ष 2006: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष 1981 के संशोधन तथा AMU के मुस्लिम छात्रों के लिए 50% आरक्षण को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि AMU अजीज बाशा मामले के तहत अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।
    • इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।
  • वर्ष 2019: तीन न्यायाधीशों वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने इस मुद्दे को सात न्यायाधीशों वाली पीठ को भेज दिया।

अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान (Minority Educational Institutions- MEI) के बारे में 

  • परिभाषा: ‘अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान’ का तात्पर्य अल्पसंख्यक या अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित तथा प्रशासित कॉलेज या शैक्षणिक संस्थान से है।

  • भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
  • हालाँकि, संविधान धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को मान्यता देता है।
  • केंद्र सरकार ने छह धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों को अधिसूचित किया है, अर्थात् मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन।


  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-30(1): सभी भाषायी तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने तथा उनका प्रशासन करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
  • NCMEI अधिनियम का अधिनियमन: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (National Commission for Minority Educational Institutions- NCMEI) अधिनियम संविधान के अनुच्छेद-30(1) में निहित अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकारों की रक्षा के लिए अधिनियमित किया गया है।
    • आयोग एक अर्द्ध न्यायिक निकाय है, जिसके पास सिविल न्यायालय की शक्तियाँ हैं।
    • इसकी तीन मुख्य भूमिकाएँ हैं, अर्थात् न्यायिक, सलाहकार तथा संस्तुतिकारी
    • इसके पास मूल तथा अपीलीय दोनों तरह के अधिकार क्षेत्र हैं।
    • आयोग के पास अधिनियम में निर्धारित आधारों पर किसी प्राधिकरण या आयोग द्वारा दिया गया शैक्षणिक संस्था के अल्पसंख्यक का दर्जा को रद्द करने की शक्ति है।
  • अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों (MEI) के लिए सुरक्षा
    • अनुच्छेद-15(5) के तहत छूट: अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों (MEIs) को अनुसूचित जाति (SC) तथा अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण प्रदान करने से छूट दी गई है।
    • प्रशासनिक अधिकार: अल्पसंख्यक दर्जा शैक्षणिक संस्थानों को छात्र प्रवेश (वे अल्पसंख्यक छात्रों के लिए 50% तक सीटें आरक्षित कर सकते हैं) से लेकर शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति तक अपने दैनिक प्रशासन पर अधिक नियंत्रण रखने की अनुमति देता है।

अनुच्छेद-30(1) के तहत अल्पसंख्यक चरित्र के मूल तत्त्व

  • सर्वोच्च न्यायालय के बहुमत के निर्णय में अनुच्छेद-30(1) के तहत अल्पसंख्यक चरित्र के ‘मूलभूत अनिवार्य तत्त्वों’ को सूचीबद्ध किया गया।
  • स्थापना का उद्देश्य: किसी अल्पसंख्यक संस्था का प्राथमिक लक्ष्य अल्पसंख्यक समूह की भाषा तथा संस्कृति को संरक्षित करना होना चाहिए।
    • हालाँकि, यह संस्था का एकमात्र उद्देश्य नहीं है।
  • गैर-अल्पसंख्यक छात्रों का प्रवेश: अल्पसंख्यक संस्थान अपना अल्पसंख्यक चरित्र बनाए रखता है, भले ही वह गैर-अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को प्रवेश देता हो।
  • धर्मनिरपेक्ष शिक्षा: अल्पसंख्यक संस्थान में धर्मनिरपेक्ष शिक्षा उसके अल्पसंख्यक चरित्र को प्रभावित किए बिना दी जा सकती है।
  • सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों में धार्मिक शिक्षा: यदि किसी अल्पसंख्यक संस्थान को सरकार से सहायता प्राप्त हुई है, तो किसी भी छात्र को धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
    • यदि संस्था का पूर्णतः रखरखाव राज्य निधि से किया जाता है, तो वह धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं कर सकती है।
    • हालाँकि, इन संस्थाओं को अभी भी अल्पसंख्यक संस्थाएँ ही माना जाना चाहिए।
  • राष्ट्रीय महत्त्व बनाम अल्पसंख्यक दर्जा (National Importance vs. Minority Status)
    • निर्णय में स्पष्ट किया गया कि संघ सूची की प्रविष्टि 63 के तहत राष्ट्रीय महत्त्व के रूप में मान्यता प्राप्त संस्थाएँ एक साथ अल्पसंख्यक का दर्जा भी रख सकती हैं।
    • मुख्य न्यायाधीश ने तर्क दिया कि राष्ट्रीय महत्त्व तथा अल्पसंख्यक अधिकार परस्पर अनन्य नहीं हैं।
  • असहमतिपूर्ण राय
    • असहमति जताने वाले न्यायाधीशों ने तर्क दिया कि AMU को राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान के रूप में मान्यता देने से उसका अल्पसंख्यक चरित्र कमजोर हुआ है।
    • उन्होंने दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा वर्ष 1981 में दिए गए रेफरल की प्रक्रियागत वैधता पर भी सवाल उठाया तथा रेफरल प्रक्रिया में प्रक्रियागत अतिक्रमण के बारे में चिंता व्यक्त की।

किसी संस्था के ‘अल्पसंख्यक चरित्र’ का निर्धारण करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित मानदंड

  • सर्वोच्च न्यायालय ने दो प्राथमिक मानदंडों (स्थापना और प्रशासन) के आधार पर एक ‘समग्र और यथार्थवादी’  परीक्षण स्थापित किया।
  • ‘स्थापना’ (Established) की व्यापक व्याख्या: निर्णय में स्पष्ट किया गया कि ‘स्थापित’ शब्द की व्यापक व्याख्या की जानी चाहिए, जिसका अर्थ है कि कोई संस्था अपनी अल्पसंख्यक स्थिति को बरकरार रख सकती है, भले ही वह किसी वैधानिक निकाय द्वारा शासित हो या समय के साथ उसकी कानूनी स्थिति में बदलाव आया हो।
  • स्थापना मानदंड
    • संस्था की उत्पत्ति: न्यायालय को संस्था की स्थापना के विचार की उत्पत्ति, उद्देश्य और कार्यान्वयन की जाँच करनी चाहिए।
    • संस्थापकों की पहचान के लिए मानदंड: यह स्थापित करने के लिए कि किसी संस्था की स्थापना किसने की, न्यायालयों को चाहिए:-
      • संस्था की वैचारिक उत्पत्ति का पता लगाना।
      • पत्रों, संचार और सरकारी पत्राचार के आधार पर इसकी स्थापना के पीछे ‘उद्देश्य’ की पहचान करना है।
      • सुबूत में अल्पसंख्यक व्यक्ति या समूह की भागीदारी का संकेत होना चाहिए।
    • प्रमुख उद्देश्य: संस्था का मुख्य उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय को लाभ पहुँचाना होना चाहिए, भले ही यह एकमात्र उद्देश्य न हो।
      • यह आवश्यक नहीं है कि शिक्षा अल्पसंख्यकों द्वारा बोली जाने वाली भाषा या उनके धर्म में ही प्रदान की जाए।
    • अल्पसंख्यक स्थापना के साक्ष्य: निजी संचार, भाषण और दस्तावेज जो अल्पसंख्यक समुदाय के लिए एक संस्था की आवश्यकता को प्रदर्शित करते हैं और संबंधित समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली ‘शैक्षणिक कठिनाइयों’ की मान्यता देते हैं।
    • कार्यान्वयन विवरण: वित्तपोषण स्रोत, भूमि अधिग्रहण तथा आधारभूत निर्णयों जैसे कारकों में अल्पसंख्यक समुदाय के योगदान को प्रतिबिंबित करना चाहिए।
  • प्रशासन मानदंड
    • अल्पसंख्यक द्वारा प्रशासन अनिवार्य नहीं: न्यायालय ने माना कि किसी शैक्षणिक संस्थान का प्रशासन अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा प्रबंधित किए जाने की आवश्यकता नहीं है।
      • ऐसी संस्था के लिए यह ‘पसंद’ (Choice) का मामला था तथा इसे दिन-प्रतिदिन के प्रशासन के लिए अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नियुक्त करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
      • न्यायालय संस्था के प्रशासनिक ढाँचे का मूल्यांकन कर सकते हैं।
      • यदि प्रशासन ‘अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा तथा संवर्द्धन’ करता हुआ प्रतीत नहीं होता है, तो यह ‘उचित रूप से अनुमान लगाया जा सकता है कि इसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय के लाभ के लिए शैक्षणिक संस्थान स्थापित करना नहीं था’।
    • ऐतिहासिक प्रशासनिक प्रथाएँ: संविधान लागू होने से पहले स्थापित संस्थानों (जैसे- AMU) के लिए, न्यायाधीशों के बहुमत ने माना कि न्यायालयों को यह देखना चाहिए कि प्रशासन ने ‘संविधान के लागू होने की तिथि’ (26 जनवरी, 1950) तक कैसे कार्य किया और क्या संस्थापकों से नियंत्रण ‘समाप्त करने के’ के लिए किसी भी ‘नियामक उपायों’ का इस्तेमाल किया गया था।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे के विरुद्ध केंद्र का तर्क

  • मुहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल (MAO) कॉलेज की उत्पत्ति और उद्देश्य: MAO के निर्माण के पीछे ‘मुख्य’ उद्देश्य ‘केवल धार्मिक अध्ययन नहीं बल्कि पश्चिमी कला तथा विज्ञान को बढ़ावा देना’ था।
  • कार्यान्वयन: सभी क्षेत्रों के लोगों ने MAO की स्थापना में योगदान दिया।
    • यहाँ तक ​​कि जब वर्ष 1911 में अलीगढ़ में विश्वविद्यालय की स्थापना का विचार सामने आया, तो शाही सरकार इस बात पर स्पष्ट थी कि इस पर नियंत्रण उनका ही रहेगा।
  • AMU अधिनियम के तहत नियंत्रण: केंद्र ने AMU अधिनियम की धारा 13 और 14 पर प्रकाश डालते हुए तर्क दिया कि ये प्रावधान मुस्लिम समुदाय से बाहर के प्राधिकारियों को व्यापक नियंत्रण प्रदान करते हैं।
    • उन्होंने वर्ष 1951 में अधिनियम में किए गए संशोधनों का हवाला दिया, जिसके तहत अनिवार्य धार्मिक शिक्षा तथा विश्वविद्यालय के शासी निकाय में सभी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व हटा दिया गया, ताकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम, 1920 को संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप बनाया जा सके।
  • AMU को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता देने का प्रभाव: AMU को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता देने से इसके प्रशासन एवं प्रवेश प्रक्रिया में बदलाव आ सकता है, जिससे यह अन्य राष्ट्रीय संस्थानों से अलग हो सकता है।
    • केंद्र ने इस बात पर जोर दिया कि AMU को अपनी धर्मनिरपेक्ष स्थिति को बनाए रखना चाहिए और राष्ट्रीय हित में कार्य करना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के निहितार्थ

  • अल्पसंख्यक अधिकारों का सुदृढ़ीकरण: यह निर्णय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए अनुच्छेद-30 के तहत संवैधानिक सुरक्षा को मजबूत करता है।
  • अल्पसंख्यक स्थिति के आकलन के लिए नई रूपरेखा: न्यायालय ने किसी संस्था के अल्पसंख्यक चरित्र को निर्धारित करने के लिए एक ‘समग्र तथा यथार्थवादी’ (Holistic and Realistic) परीक्षण स्थापित किया।
    • इसमें संस्था की उत्पत्ति, इसके गठन के उद्देश्य और इसके प्रशासन के तरीके, विशेष रूप से 26 जनवरी, 1950 को, जिस दिन संविधान लागू हुआ, पर प्रकाश डाला गया है।
  • AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर प्रभाव: इस निर्णय से AMU को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता मिलने का रास्ता साफ हो गया है तथा यह पुष्टि हो गई है कि इसकी स्थापना मूल रूप से मुस्लिम समुदाय की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए की गई थी।
    • इस अल्पसंख्यक दर्जे के साथ, विश्वविद्यालय मुस्लिम छात्रों के लिए 50% तक आरक्षण प्रदान कर सकता है।
    • इसे संविधान के अनुच्छेद-15(5) के तहत अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (Economically Weaker Sections- EWS) पर लागू सामान्य आरक्षण नीतियों का पालन करने की आवश्यकता नहीं है।
    • AMU को प्रवेश तथा स्टाफ नियुक्तियों सहित अपने मामलों के प्रबंधन में अधिक स्वायत्तता प्राप्त होगी।
  • अन्य संस्थाओं पर प्रभाव: यह संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे के समान दावे वाले संस्थानों के लिए एक मानकीकृत ढाँचा प्रदान करता है।
    • न्यायालय ने सुझाव दिया है कि संविधान के लागू होने (वर्ष 1950 में) के बाद किए गए किसी भी विनियामक परिवर्तन, जो संस्था के मूल अल्पसंख्यक चरित्र को बदलते हैं, की जाँच की जा सकती है।
      • जिन संस्थाओं में ऐसे परिवर्तन हुए हैं, उन्हें अपना अल्पसंख्यक दर्जा बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • सरकारी नियंत्रण और वित्तपोषण: निर्णय में स्पष्ट किया गया है कि सरकारी वित्तपोषण या नियंत्रण से किसी संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा स्वतः समाप्त नहीं हो जाता, जब तक कि वह अल्पसंख्यक समुदाय की शैक्षिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता रहे।
    • इससे यह प्रभावित हो सकता है कि सरकार ऐसे संस्थानों के साथ किस प्रकार संवाद करती है तथा उन्हें किस प्रकार समर्थन देती है।

आगे की राह

  • अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश: सरकार भारत भर में अल्पसंख्यक संस्थानों को मान्यता देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के मानदंडों के आधार पर एक स्पष्ट विधायी ढाँचा बना सकती है।
  • संस्थागत स्वायत्तता के लिए समर्थन: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि AMU जैसे संस्थानों को जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए अपने शैक्षिक और प्रशासनिक कार्यक्रम चलाने की स्वायत्तता का लाभ मिलता रहे।
  • सरकारी वित्तपोषण और भागीदारी पर कानूनी स्पष्टता: एक कानूनी ढाँचा स्थापित किया जाना चाहिए, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि संस्थान की अल्पसंख्यक स्थिति या स्वायत्तता से समझौता किए बिना किस सीमा तक राज्य वित्तपोषण या अन्य प्रकार का समर्थन प्रदान किया जा सकता है।

निष्कर्ष

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद-30 की व्याख्या को नया रूप देता है और भारत में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के अधिकारों पर चल रही बहस में एक निर्णायक क्षण को चिह्नित करता है।

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