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Nov 12 2024

मानस राष्ट्रीय उद्यान (Manas National Park)

भारत के असम में मानस राष्ट्रीय उद्यान (Manas National Park) में वर्ष 2011 से 2019 तक बाघों की आबादी तीन गुना देखी गई।

  • वर्ष 2021 में 44 वयस्क बाघ दर्ज किए गए।
  • आबादी घनत्व: वर्ष 2011-12 में 1.06 बाघ प्रति 100 वर्ग किमी. से वर्ष 2018-19 में 3.64 बाघ प्रति 100 वर्ग किमी.। 
  • संभावित: प्रति 100 वर्ग किमी. में 8 बाघ।

मानस राष्ट्रीय उद्यान के बारे में

  • स्थान: असम में हिमालय की तलहटी पर अवस्थित। 
  • प्रमुख विशेषताएँ: एक प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थल, एक टाइगर रिजर्व, एक हाथी रिजर्व, एक बायोस्फीयर रिजर्व एवं एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र होने का अनूठा गौरव प्राप्त है।
    • यह वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत बाघ रिजर्व नेटवर्क में शामिल पहले रिजर्व में से एक है।
    • यह एक बड़े बाघ संरक्षण परिदृश्य का हिस्सा है, जिसमें बुक्सा-नामेरी-पक्के-नामदाफा बाघ अभयारण्य (Buxa-Nameri-Pakke-Namdapha Tiger Reserves) एवं भूटान तथा म्याँमार के संरक्षित क्षेत्र शामिल हैं।
  • पर्यावास: अर्द्ध-सदाबहार एवं मिश्रित पर्णपाती वन, झाड़ीदार वन, पुराने वृक्षारोपण (बफर क्षेत्रों में), घास के मैदानों तथा तटवर्ती वनस्पतियों से युक्त (कोर क्षेत्र में)।
  • वनस्पति: साल [शोरिया रोबस्टा (Shorea Robusta)]।
  • जीव-जंतु: हिस्पिड खरगोश (Hispid Hare), पिग्मी हॉग (Pigmy Hog), गोल्डन लंगूर, भारतीय गैंडा, एशियाई भैंस आदि।
  • नदी: पार्क का नाम मानस नदी से लिया गया है, जिसका नाम नाग देवी मनसा के नाम पर रखा गया है।
    • मानस नदी ब्रह्मपुत्र नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है, जो मानस राष्ट्रीय उद्यान से होकर गुजरती है।

अभ्यास ऑस्ट्रहिंद  (Exercise AUSTRAHIND)

भारत एवं ऑस्ट्रेलिया के बीच एक संयुक्त सैन्य अभ्यास, अभ्यास ऑस्ट्रहिंद  (Exercise AUSTRAHIND) का तीसरा संस्करण 8 नवंबर, 2024 को पुणे, महाराष्ट्र में विदेशी प्रशिक्षण नोड में शुरू हुआ।

  • यह वार्षिक अभ्यास भारत एवं ऑस्ट्रेलिया के बीच बारी-बारी से होता है, पिछला संस्करण दिसंबर 2023 में ऑस्ट्रेलिया में आयोजित किया गया था।
  • उद्देश्य
    • संयुक्त राष्ट्र जनादेश के अध्याय VII के अनुरूप, अर्द्ध-शहरी एवं अर्द्ध-रेगिस्तानी वातावरण में संयुक्त उप-पारंपरिक संचालन के लिए अंतरसंचालनीयता को बढ़ाकर सैन्य सहयोग को मजबूत करना।
    • फोकस क्षेत्रों में संयुक्त योजना, उच्च शारीरिक फिटनेस मानक एवं प्रभावी संयुक्त संचालन के लिए सामरिक अभ्यास शामिल हैं।
  • महत्त्व
    • यह अभ्यास भारतीय एवं ऑस्ट्रेलियाई सेनाओं के बीच सामरिक ज्ञान तथा परिचालन सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है।
    • यह सौहार्द्र एवं पेशेवर समझ को भी बढ़ावा देता है, जो भारत तथा ऑस्ट्रेलिया के बीच मजबूत रक्षा संबंधों में योगदान देता है।

एग्रीवोल्टिक खेती (Agrivoltaic Farming)

नई दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) के सातवें सत्र में, एग्रीवोल्टिक मॉडल के क्रियान्वयन का प्रदर्शन करने के लिए नजफगढ़ में एक फार्म स्थल का दौरा आयोजित किया गया।

  • प्रतिनिधियों ने देखा कि कैसे भारत पारंपरिक कृषि पद्धतियों के साथ सौर पैनलों को एकीकृत करता है, जो एक स्थायी दृष्टिकोण को दर्शाता है, जो भूमि उत्पादकता को अधिकतम करता है।

एग्रीवोल्टिक खेती के बारे में

  • परिभाषा: एग्रीवोल्टिक खेती कृषि गतिविधियों एवं सौर ऊर्जा उत्पादन दोनों के लिए भूमि का एक साथ उपयोग है।
  • अवधारणा: यह प्रणाली सौर पैनलों को फसलों के ऊपर या निकट स्थापित करने की अनुमति देती है, जिससे उसी भूमि पर फसल की खेती जारी रखते हुए नवीकरणीय ऊर्जा उत्पन्न करके कुशल भूमि उपयोग को सक्षम किया जा सकता है।

एग्रीवोल्टिक प्रणालियों के लाभ

  • उन्नत भूमि उपयोग दक्षता: कृषि के साथ सौर ऊर्जा उत्पादन को जोड़कर, एग्रीवोल्टिक प्रणालियाँ उपलब्ध भूमि का अधिक प्रभावी उपयोग करती हैं।
  • ऊर्जा सुरक्षा एवं स्थिरता: एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत प्रदान करना, जो कृषि उत्पादकता का समर्थन करता है, पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता को कम करता है।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं के लिए समर्थन: फसल की खेती जारी रखते हुए सौर ऊर्जा उत्पादन के माध्यम से अतिरिक्त आय उत्पन्न करने में मदद करना।
  • वैश्विक अनुप्रयोग की संभावना: उन देशों के लिए एक मॉडल, जिनका लक्ष्य खाद्य सुरक्षा एवं ऊर्जा पहुँच दोनों को स्थायी रूप से सुधारना है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ कृषि योग्य भूमि सीमित है।

एल्युलोज (Allulose)

दक्षिण कोरिया स्वीटनर एल्युलोज (Allulose) के लिए एक शीर्ष परीक्षण स्थल बन गया है, जो स्टीविया (Stevia) जैसे चीनी विकल्प का संभावित प्रतिस्पर्द्धी है।

  • दक्षिण कोरिया में बड़े खाद्य निगम एवं प्रभावशाली लोग दोनों ही एल्युलोज का समर्थन करते हैं, जिससे इसकी माँग बढ़ रही है।

एल्युलोज (Allulose): यह अंजीर एवं कीवी जैसे फलों में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला कम कैलोरी वाला स्वीटनर है; यह रासायनिक रूप से चीनी के समान होता है लेकिन 70% मिठास तथा लगभग शून्य कैलोरी पाई जाती है।

स्वास्थ्य लाभ एवं जोखिम

  • संभावित स्वास्थ्य लाभ: सुक्रोज जैसे शर्करा के साथ संयुक्त होने पर रक्त ग्लूकोज प्रतिक्रिया को कम करने की क्षमता के कारण वजन नियंत्रण में सहायता एवं मधुमेह वाले व्यक्तियों के लिए लाभकारी होता है।
  • स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: विशेषज्ञ दीर्घकालिक सुरक्षा की पुष्टि के लिए और अधिक शोध की सलाह देते हैं। बड़ी मात्रा में सेवन करने पर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल असुविधा जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
  • WHO की स्थिति: विश्व स्वास्थ्य संगठन संभावित दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिमों के कारण वजन नियंत्रण के लिए चीनी के स्थान पर उपयोग की सलाह देता है, हालाँकि इसने एल्युलोज पर कोई विशिष्ट निर्देश जारी नहीं किया है।

स्टीविया (Stevia) के बारे में

  • स्रोत: दक्षिण अमेरिका के मूल प्रजाति स्टीविया रेबाउडियाना (Stevia Rebaudiana) पौधे की पत्तियों से प्राप्त होता है।
  • सक्रिय यौगिक: स्टीविया की मिठास पत्तियों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रसायनों से आती है, जिन्हें स्टीविओल ग्लाइकोसाइड्स (Steviol Glycosides) कहा जाता है, जो इसे अत्यधिक संकेंद्रित मिठास देते हैं।

मिठास प्रोफाइल एवं पोषण मूल्य

  • मिठास की तीव्रता: टेबल चीनी की तुलना में लगभग 200 से 400 गुना अधिक मीठा, वांछित मिठास स्तर प्राप्त करने के लिए बहुत कम मात्रा की अनुमति देता है।
  • कैलोरी एवं पोषण संबंधी सामग्री: इसे गैर-पोषक स्वीटनर के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका अर्थ है कि इसमें कोई कैलोरी, कार्बोहाइड्रेट या कृत्रिम योजक नहीं हैं, जो इसे कम कैलोरी वाले आहार के लिए उपयुक्त बनाता है।

लोकप्रियता एवं उपयोग

  • वैश्विक उपयोग: स्टीविया ने कृत्रिम मिठास के प्राकृतिक विकल्प के रूप में दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल की है, विशेषकर कम कैलोरी, पौधे-आधारित विकल्प चाहने वाले उपभोक्ताओं के बीच।
  • सामान्य अनुप्रयोग: इसकी तीव्र मिठास एवं कैलोरी की कमी के कारण पेय पदार्थों तथा बेक किए गए सामान से लेकर स्नैक्स तक विभिन्न प्रकार के उत्पादों में उपयोग किया जाता है।

न्यायालय के निर्णय के बाद फर्जी खबरों पर अंकुश लगाने के तंत्र की समीक्षा

संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय पैनल फर्जी खबरों पर अंकुश लगाने के लिए तंत्र की समीक्षा का आह्वान कर रहा है।

संबंधित तथ्य

  • 21 नवंबर को, पैनल चर्चा के लिए न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया एवं सूचना तथा प्रसारण मंत्रालय के साथ बैठक करेगा।

IT नियम संशोधन, 2021 पर पृष्ठभूमि

  • संशोधित IT नियम: अप्रैल 2022 में, केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने IT (मध्यवर्ती दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023 के माध्यम से IT नियम, 2021 में संशोधन पेश किया।
  • दायरा विस्तार: IT नियम 2021 के नियम 3(1)(b)(v) में विशेष रूप से “सरकारी व्यवसाय” से संबंधित “फर्जी समाचार” को शामिल करने के लिए संशोधन किया गया था।

फर्जी खबर, गलत सूचना एवं दुष्प्रचार क्या है?

  • ये मनगढ़ंत जानकारियाँ हैं, जिनका उद्देश्य कथा या तथ्यों को गुमराह करना है।
  • दुर्भावनापूर्ण सामग्री के उद्देश्य के बिना गलत सूचना तैयार की जाती है।
  • दुष्प्रचार धोखा देने जैसे दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से तैयार किया जाता है।

फैक्ट चेक यूनिट (Fact Check Unit)  के बारे में

  • उद्देश्य एवं भूमिका
    • सत्यापन: FCU सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों एवं घोषणाओं से संबंधित जानकारी की सटीकता की जाँच करता है।
    • गलत सूचना का प्रतिकार: यह सरकारी गतिविधियों के बारे में गलत या भ्रामक जानकारी की निगरानी करता है एवं उसका मुकाबला करता है।
  • सार्वजनिक सहभागिता
    • विश्वसनीय जानकारी प्रदान करना: FCU सोशल मीडिया एवं अन्य संचार चैनलों के माध्यम से जनता के साथ सत्यापित तथा भरोसेमंद जानकारी साझा करता है।
  • शिकायत समाधान
    • शिकायतों का निवारण करना: यह व्हाट्सऐप, ईमेल एवं एक समर्पित वेब पोर्टल के माध्यम से फर्जी खबरों की रिपोर्ट स्वीकार करता है एवं उनका समाधान करता है।

कानूनी चुनौतियाँ एवं न्यायालय के फैसले 

  • एडिटर्स गिल्ड एवं कुणाल कामरा द्वारा चुनौती: स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा के साथ एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भाषण एवं प्रेस की स्वतंत्रता पर चिंता जताते हुए संशोधन की संवैधानिकता को चुनौती दी।
  • सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप: 20 मार्च को FCU की सरकार की अधिसूचना के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने अगले दिन बॉम्बे हाईकोर्ट की समीक्षा तक इसके कार्यान्वयन पर रोक लगा दी।
  • बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला: 21 सितंबर, 2023 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने संशोधित नियम को “असंवैधानिक” मानते हुए रद्द कर दिया।

संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय पैनल की भूमिका

  • विनियमन एवं निरीक्षण: पैनल संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित नियमों की निगरानी तथा मार्गदर्शन करता है, यह सुनिश्चित करता है कि उनका प्रभावी ढंग से प्रबंधन किया जाता है।
  • नीति समीक्षा: यह ऑनलाइन सामग्री एवं फर्जी खबरों से संबंधित नीतियों तथा संशोधनों की जाँच एवं समीक्षा करती है, यह सुनिश्चित करती है कि वे उपयुक्त एवं प्रभावी हैं।
  • हितधारकों को शामिल करना: पैनल डिजिटल सामग्री विनियमों से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने एवं इनपुट प्रदान करने के लिए मीडिया समूहों तथा सरकारी प्रतिनिधियों को आमंत्रित करता है।
  • परिवर्तनों की अनुशंसा: पैनल डिजिटल सामग्री पर बेहतर नियंत्रण एवं फर्जी खबरों को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए कानूनों में बदलाव का सुझाव देता है।
  • सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना: यह जनता को जिम्मेदार ऑनलाइन व्यवहार एवं समाज पर फर्जी खबरों के प्रभावों के बारे में शिक्षित करने का कार्य करता है।

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संदर्भ

‘स्मिथसोनियन नेशनल जू एंड कंजर्वेशन बायोलॉजी इंस्टिट्यूट’ (Smithsonian National Zoo and Conservation Biology Institute- SNZCBI), वाशिंगटन ने एंटोनिया नामक क्लोन मादा फैरेट से काले पैर वाले दो फैरेट्स (Ferrets) का सफलतापूर्वक प्रजनन कराया।

  • एंटोनिया (Antonia), काले पैरों वाली मादा फैरेट, जिसका क्लोन विला (Willa) नामक फैरेट की आनुवंशिक सामग्री का उपयोग करके बनाया गया था।

काले पैर वाले फैरेट्स (Black-footed Ferrets) के बारे में

  • विशेषताएँ: काले पैरों वाला फैरेट उत्तरी अमेरिका के सबसे संकटग्रस्त स्तनधारियों में से एक हैं और यह इस महाद्वीप की एकमात्र मूल निवासी फैरेट प्रजाति है।

  • काले पैरों वाले फैरेट्स मुख्य रूप से रात्रिचर होते हैं।
  • आवास: घास के मैदान
  • IUCN की रेड लिस्ट में स्थिति: संकटग्रस्त (Endangered)
  • आबादी: जंगल में लगभग 370 की संख्या।
  • मुख्य खतरे: आवास की हानि तथा रोगों का प्रसार।
  • संरक्षण के प्रयास: कैपटिव ब्रीडिंग, पुनः प्रवेश, आवास संरक्षण और क्लोनिंग से जंगल में 300 से अधिक फैरेट्स को पुनः स्थापित करने में मदद मिली है।
    • काले पैरों वाला फैरेट्स उत्तरी अमेरिकी प्रेयरी (घास के मैदान) की प्रमुख प्रजाति माना जाता है।

काले पैर वाले फैरेट संरक्षण के संदर्भ में क्लोनिंग

  • क्लोनिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें दाता से प्राप्त DNA का उपयोग करके किसी जैविक इकाई की आनुवंशिक रूप से समान प्रतिलिपि बनाई जाती है।
    • लुप्तप्राय या संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए, क्लोनिंग का उपयोग मूल्यवान आनुवंशिक सामग्री को पुनः प्रस्तुत करने, जीन पूल को विस्तृत करने तथा प्रजातियों के अस्तित्व के लिए आवश्यक आनुवंशिक विविधता को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।
  • प्रयुक्त प्रक्रिया: इस मामले में, स्मिथसोनियन वैज्ञानिकों ने एंटोनिया को क्लोन करने के लिए वर्ष 1988 के एक काले पैर वाले फैरेट विला के संरक्षित DNA का इस्तेमाल किया। इसमें ‘सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर’ शामिल था, जहाँ विला की कोशिका से एक न्यूक्लियस को दूसरे फैरेट की अंडज कोशिका में स्थानांतरित किया गया था, जिससे एक भ्रूण बना, जो एंटोनिया में विकसित हुआ।
  • संरक्षण में क्लोनिंग का उद्देश्य
    • आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity): क्लोनिंग से उन आबादियों में आनुवंशिक विविधता आती है, जो कम संख्या में जीवित रहने के कारण अंतःप्रजनन की शिकार हो गई हैं। इससे बीमारी और पर्यावरण परिवर्तनों के प्रति लचीलापन बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
    • लुप्तप्राय प्रजातियों को पुनर्जीवित करना (Reviving Endangered Species): जिन प्रजातियों की आबादी बहुत कम है, उनके लिए क्लोनिंग से संख्या बढ़ाने तथा विलुप्त होने के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • भविष्य में उपयोग के लिए आनुवंशिक बैंकिंग (Genetic Banking for Future Use): स्वस्थ या विविध व्यक्तियों से प्राप्त आनुवंशिक सामग्री का भंडारण (जेनेटिक बैंकिंग) क्लोनिंग प्रयासों के लिए संसाधन उपलब्ध कराता है, जिसका उपयोग दशकों बाद भी किया जा सकता है।
  • काले पैरों वाले फैरेट्स के लिए क्लोनिंग क्यों महत्त्वपूर्ण थी?
    • आबादी संकट: 1980 के दशक तक, काले पैरों वाले फैरेट्स को विलुप्त माना जाता था, जब तक कि व्योमिंग में उनकी एक छोटी आबादी नहीं पाई गई। वर्तमान में लगभग 370 फैरेट ही बचे हैं।
    • आनुवंशिक बाधाएँ: सीमित जीन पूल के कारण काले पैर वाले फैरेट्स बीमारियों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं और बदलते वातावरण के अनुकूल ढलने की उनकी क्षमता कम हो जाती है। वर्तमान आबादी में सभी फैरेट्स केवल सात नर और मादा फैरेट्स से ही उत्पन्न हुए हैं, जिससे उच्च स्तर की अंतःप्रजनन की संभावना बढ़ जाती है।
    • फैरेट विला के अद्वितीय जीन (Willa’s Unique Genes): स्मिथसोनियन ने विला के DNA का उपयोग करके एंटोनिया का क्लोन बनाया, जिसमें मौजूदा फैरेट आबादी की तुलना में तीन गुना आनुवंशिक विविधता थी। इस नई आनुवंशिक सामग्री में भविष्य की पीढ़ियों के स्वास्थ्य और अनुकूलन क्षमता को बेहतर बनाने की क्षमता है।
  • संरक्षण में क्लोनिंग के लाभ
    • बेहतर उत्तरजीविता संभावनाएँ: क्लोनिंग से आबादी के आनुवंशिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद मिल सकती है, जो जीवित रहने के लिए जरूरी है।
    • प्रजाति के विलुप्ति होने के जोखिम में कमी: दुर्लभ प्रजातियों की क्लोनिंग से आबादी में वृद्धि हो सकती है और कुल प्रजातियों के नुकसान को रोका जा सकता है।
    • शोध में प्रगति: एंटोनिया के जन्म जैसी सफलताएँ मूल्यवान ज्ञान प्रदान करती हैं, क्लोनिंग तकनीकों को आगे बढ़ाती हैं, जिन्हें अन्य प्रजातियों पर भी लागू किया जा सकता है।
  • संरक्षण में क्लोनिंग की चुनौतियाँ 
    • तकनीकी एवं नैतिक जटिलताएँ: क्लोनिंग तकनीकी रूप से जटिल है और प्राकृतिक प्रजनन में हस्तक्षेप के बारे में नैतिक प्रश्न उठाती है।
    • सीमित सफलता दर: सभी क्लोन किए गए जानवर जीवित नहीं रहते या स्वस्थ नहीं होते हैं।
    • पर्यावरण पर निर्भरता: क्लोनिंग अकेले निवास स्थान के नुकसान या लुप्तप्राय प्रजातियों का सामना करने वाले अन्य पर्यावरणीय खतरों को संबोधित नहीं कर सकती है।

निष्कर्ष

एंटोनिया और उसके बच्चों की क्लोनिंग लुप्तप्राय प्रजातियों के आनुवंशिक प्रबंधन में प्रगति को दर्शाती है, यह दर्शाती है कि कैसे संगृहीत आनुवंशिक सामग्री दशकों बाद भी जैव विविधता प्रयासों को आगे बढ़ा सकती है। निरंतर अनुसंधान और क्लोनिंग के सतर्क अनुप्रयोग से संरक्षण रणनीतियों को बढ़ाया जा सकता है और विलुप्त होने के कगार पर खड़ी आबादी में लचीलापन बढ़ाया जा सकता है।

संदर्भ

हाल ही में नीति आयोग के CEO ने कहा कि भारत को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) का हिस्सा बनने पर पुनर्विचार करना चाहिए।

ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप के लिए व्यापक और प्रगतिशील समझौता (CPTPP)

  • CPTPP ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई दारुस्सलाम, कनाडा, चिली, जापान, मलेशिया, मेक्सिको, पेरू, न्यूजीलैंड, सिंगापुर और वियतनाम के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement- FTA) है।

संबंधित तथ्य 

  • ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप के लिए व्यापक और प्रगतिशील समझौता (Comprehensive and Progressive Agreement for Trans-Pacific Partnership- CPTPP): उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि भारत को CPTPP का सदस्य बनना चाहिए।
  • विश्व बैंक ने भारत से RCEP पर रुख का पुनर्मूल्यांकन करने का आग्रह किया: विश्व बैंक की हालिया ‘भारत विकास अद्यतन’ (India Development Update) में भारत से क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) पर अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करने का आह्वान किया गया है।
  • भारत तथा RCEP: भारत RCEP का संस्थापक सदस्य था।
    • हालाँकि, वर्ष 2019 में भारत ने घोषणा की कि वह क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में शामिल नहीं होगा।
    • ‘फास्ट-ट्रैक जॉइनिंग आप्शन’ (Fast-Track Joining Option): भारत को इस समझौते में शामिल होने का लाभ यह है कि उसे RCEP की शर्तों के तहत नए सदस्यों के लिए आवश्यक 18 महीने की प्रतीक्षा अवधि का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।

  • RCEP हस्ताक्षरकर्ताओं का रुख: RCEP पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने कहा कि वे भारत के साथ वार्ता शुरू करने की योजना बना रहे हैं, जब वह समझौते में शामिल होने के अपने उद्देश्य के बारे में ‘लिखित रूप’ में अनुरोध प्रस्तुत करेगा और वह इसमें शामिल होने से पहले पर्यवेक्षक के रूप में बैठकों में भाग ले सकता है।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के बारे में

  • समूहीकरण: यह आसियान (ASEAN) तथा उनके FTA भागीदारों के बीच एक मेगा-क्षेत्रीय आर्थिक समझौता है, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना है।
  • सदस्य: RCEP एक 15 सदस्यीय समूह है।
    • आसियान राष्ट्र: ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड एवं वियतनाम।
    • पाँच FTA भागीदार: ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, न्यूजीलैंड तथा दक्षिण कोरिया।
  • समयरेखा: RCEP वार्ता वर्ष 2012 में शुरू हुई, जिसके बाद नवंबर 2020 में इस पर आधिकारिक हस्ताक्षर हुए।
    • यह समझौता 1 जनवरी, 2022 से लागू होगा।
  • कवरेज क्षेत्र: वस्तुओं और सेवाओं में व्यापार, निवेश, आर्थिक और तकनीकी सहयोग, बौद्धिक संपदा, प्रतिस्पर्द्धा, विवाद निपटान, ई-कॉमर्स, लघु और मध्यम उद्यम (Small and Medium Enterprises- SME) तथा अन्य मुद्दे।
  • महत्व: यह सदस्यों के सकल घरेलू उत्पाद के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौता है।
    • यह अनुमान लगाया गया है कि अपने व्यापार उदारीकरण प्रावधानों के माध्यम से RCEP वर्ष 2030 तक 200 बिलियन डॉलर से अधिक की आय वृद्धि कर सकता है तथा विश्व व्यापार में 500 बिलियन डॉलर की वृद्धि कर सकता है।

नॉन-टैरिफ बैरियर्स (Non-Tariff Barriers- NTBs)

  • नॉन-टैरिफ बैरियर्स उन व्यापार प्रतिबंधों को संदर्भित करती हैं, जिनमें आयात और निर्यात पर टैरिफ या कर शामिल नहीं होते हैं लेकिन फिर भी वे व्यापार में बाधा के रूप में कार्य करते हैं। 
  • उदाहरण: प्रतिबंध, आयात लाइसेंसिंग, सब्सिडी, कोटा, मात्रा प्रतिबंध आदि।

भारत के RCEP से हटने के कारण

  • नॉन-टैरिफ बैरियर्स (Non-Tariff Barriers- NTBs): भारतीय कंपनियों को नॉन-टैरिफ बैरियर्स का सामना करना पड़ा, जिससे RCEP सदस्य बाजारों में प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन हो गया।
  • उच्च टैरिफ कटौती: RCEP के तहत भारत को चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से आयातित 70% से अधिक वस्तुओं तथा जापान, दक्षिण कोरिया एवं आसियान (ASEAN) से आयातित लगभग 90% वस्तुओं पर टैरिफ कम करना था, जिससे आयात सस्ता हो सकता था व स्थानीय व्यवसायों को नुकसान हो सकता था।
  • विकृत होता व्यापार घाटा
    • RCEP देशों के साथ व्यापार घाटा: वित्त वर्ष 2019 में भारत का 16 RCEP देशों में से 11 के साथ व्यापार घाटा था।
    • चीन एक प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में: भारत का अकेले चीन के साथ व्यापार घाटा 52 बिलियन डॉलर था, जबकि RCEP देशों के साथ उसका कुल व्यापार घाटा 105 बिलियन डॉलर था।
    • प्रतिकूल FTA अनुभव: भारत के पास पहले से ही RCEP के 15 सदस्यों में से 13 के साथ FTA है, जिनमें आसियान (ASEAN), दक्षिण कोरिया और जापान शामिल हैं।
      • वर्ष 2007- 2009 और वर्ष 2020- 2022 के बीच, आसियान (ASEAN) के साथ व्यापार घाटा 302.9%, दक्षिण कोरिया के साथ 164.1% तथा जापान के साथ 138.2% बढ़ गया।
  • चीन एक कारक के रूप में 
    • चीन का आर्थिक मॉडल (China’s Economic Model): इसकी विशेषता यह है कि व्यापार को विकृत करने वाली सब्सिडी तथा उत्पादन एवं श्रम पर राज्य का व्यापक नियंत्रण है, जिससे प्रतिस्पर्द्धात्मक असंतुलन उत्पन्न होता है।
      • हालाँकि RCEP स्वतंत्र तथा निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा की वकालत करता है, चीन की औद्योगिक नीतियों और सब्सिडी प्रथाओं के कारण भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं के लिए समकक्ष समर्थन संरचनाओं के बिना प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो जाता है।
    • बाजार तक पहुँच: भारत को कुछ RCEP  देशों, विशेषकर चीन में पारस्परिक बाजार पहुँच का आश्वासन नहीं दिया गया था।
  • ऑटो ट्रिगर तंत्र का अभाव (Lack of Auto Trigger Mechanism): भारत चाहता है कि समझौते में एक ऑटो-ट्रिगर तंत्र को संस्थागत रूप दिया जाए।
    • यह एक तरह की सुरक्षात्मक प्रणाली के रूप में कार्य करेगा, जिसका उपयोग सदस्य देश RCEP के लागू होने के बाद आयात के अप्रत्याशित प्रवाह की स्थिति में सुरक्षा के लिए कर सकते हैं।
    • लेकिन इसे RCEP की शर्तों में शामिल नहीं किया गया।
  • रैचेट दायित्व (Ratchet Obligations): भारत चाहता है कि समझौते के हिस्से के रूप में रैचेट दायित्वों में छूट शामिल की जाए।
    • रैचेट दायित्व का तात्पर्य यह है कि संधि के प्रभावी होने के बाद कोई भी सदस्य देश टैरिफ नहीं बढ़ा सकता है
    • छूट का अर्थ यह होगा कि कोई देश बाद में राष्ट्रीय हित की रक्षा के आधार पर प्रतिबंधात्मक उपाय लागू करने में सक्षम होगा।
  • डेटा स्थानीयकरण का मुद्दा: भारत चाहता है कि सभी देशों को डेटा सुरक्षा का अधिकार मिले है।
    • इसका अर्थ यह होगा कि देश केवल वहीं डेटा साझा कर सकते हैं, जहाँ यह ‘वैध सार्वजनिक नीति उद्देश्य प्राप्त करने के लिए आवश्यक है’ या ‘देश की राय में, उसके आवश्यक सुरक्षा हितों या राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है’।
  • लचीले द्विपक्षीय व्यापार समझौते: भारत के पास पहले से ही जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई RCEP सदस्यों के साथ कार्यात्मक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) हैं, जो RCEP की तुलना में इसकी व्यापार प्राथमिकताओं को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित करते हैं।
  • सेवाओं और डिजिटल व्यापार में सीमित लाभ: RCEP मुख्य रूप से वस्तुओं पर केंद्रित है, जिसमें सेवाओं के लिए सीमित प्रावधान हैं, IT, कुशल श्रम गतिशीलता और डिजिटल व्यापार जैसे प्रमुख क्षेत्र इसमें शामिल नहीं हैं, जो भारत के निर्यात के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • भारत ने अपने बाजार को खोलने के बदले में अधिक श्रम एवं सेवाओं की आवाजाही की वकालत की ।
  • उत्पत्ति के नियम (Rules of origin- RoO): भारत को डर था कि मूल उत्पत्ति के नियमों में ढील के कारण उत्पादों को अन्य देशों के माध्यम से भेजा जा सकेगा, जिससे भारत में माल की डंपिंग होगी और घरेलू उद्योगों को नुकसान पहुँचेगा।
    • उत्पत्ति के नियम किसी उत्पाद के राष्ट्रीय स्रोत को निर्धारित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले मानदंड हैं।
  • घरेलू क्षेत्रों के लिए खतरा
    • बागान और रबर उत्पाद: वियतनाम तथा इंडोनेशिया जैसे देश सस्ते निर्यात के जरिए घरेलू रबर की कीमतों को कम कर सकते हैं।
    • डेयरी क्षेत्र की चिंताएँ: भारत के छोटे पैमाने के डेयरी क्षेत्र को न्यूजीलैंड तथा ऑस्ट्रेलिया के कुशल उत्पादकों के खिलाफ संघर्ष करना पड़ेगा, जो भारत में अप्रतिबंधित पहुँच चाहते हैं।

RCEP से बाहर निकलने से भारत को संभावित लाभ

  • आयात पर नियंत्रण और घरेलू उद्योग संरक्षण: RCEP से बाहर निकलने से भारत को सस्ते चीनी सामानों के प्रवाह को सीमित करने के लिए विनियामक नियंत्रण बनाए रखने की अनुमति मिलती है, जो अन्यथा घरेलू उद्योगों को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • चीन पर अत्यधिक निर्भरता कम करना: RCEP से बाहर रहकर भारत ने अपने व्यापार साझेदारों में विविधता लाने तथा चीन पर अत्यधिक निर्भरता के जोखिम को कम करने की स्थिति बना ली है।
    • उदाहरण: भारत का RCEP में शामिल न होने का निर्णय तब मान्य हुआ जब कोविड-19 महामारी ने चीन-केंद्रित आपूर्ति शृंखलाओं पर अत्यधिक निर्भरता से जुड़ी कमजोरियों को उजागर किया।
  • व्यापार घाटे पर नियंत्रण: भारत अपने व्यापार संतुलन पर अधिक नियंत्रण रख सकता है।
    • भारत का चीन के साथ पहले से ही काफी व्यापार घाटा है, जो वित्त वर्ष 2024 में 85 बिलियन डॉलर से अधिक हो जाएगा।
    • व्यापार नीति थिंक टैंक ‘जॉर्जिया टेक रिसर्च इंस्टिट्यूट’ (GTRI) के अनुसार, RCEP के सदस्य देशों, जैसे कि जापान, दक्षिण कोरिया और आसियान के सदस्यों ने ब्लॉक में शामिल होने के बाद से चीन के साथ अपने व्यापार घाटे में वृद्धि देखी है।
  • डंपिंग प्रथाओं के विरुद्ध संरक्षण: RCEP में गैर-भागीदारी से भारत को डंपिंग (बाजार मूल्य से कम पर माल बेचना) प्रथाओं के विरुद्ध सुरक्षात्मक उपायों को लागू करने की अनुमति मिलती है, विशेष रूप से चीन द्वारा, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि भारतीय उद्योगों को अनुचित व्यापार प्रथाओं से नुकसान न पहुँचे

भारत के RCEP का सदस्य बनने के लाभ

  • व्यापार के बेहतर अवसर: RCEP में शामिल होने से भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र के बड़े बाजारों तक पहुँच मिलेगी, जिससे निर्यात को बढ़ावा मिलेगा, विशेषकर MSME से, जो भारत के निर्यात का 40% हिस्सा है।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकरण: RCEP में भागीदारी से भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकृत करने में मदद मिलेगी।
    • उदाहरण: ऐसा अनुमान है कि यदि भारत RCEP में शामिल हो जाता है तो उसे वर्ष 2030 तक 60 बिलियन डॉलर तक की आय प्राप्त हो सकती है।
  • उन्नत प्रतिस्पर्द्धात्मकता: RCEP में शामिल होने से सुधारों को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे विशेष रूप से कृषि प्रौद्योगिकी और सेवाओं जैसे क्षेत्रों में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ेगी।
  • विनियामक संरेखण: RCEP का हिस्सा बनने के लिए भारत के नियामक ढाँचे को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना होगा, कारोबारी माहौल में सुधार करना होगा और अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) आकर्षित करना होगा।
  • पड़ोसियों के साथ रणनीतिक संरेखण: RCEP की सदस्यता से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों में सुधार होगा, इसकी एक्ट ईस्ट नीति को समर्थन मिलेगा तथा क्षेत्र में आर्थिक और कूटनीतिक संबंध प्रगाढ़ होंगे।
  • दीर्घकालिक आर्थिक लाभ: व्यापार उदारीकरण के प्रति RCEP का व्यापक दृष्टिकोण सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है, गरीबी को कम कर सकता है तथा वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में अधिक भागीदारी के माध्यम से आय के स्तर को बढ़ा सकता है।

  • SCRI: आपूर्ति शृंखला लचीलापन पहल (Supply Chain Resilience Initiative- SCRI) भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच वर्ष 2021 में शुरू किया गया एक औपचारिक समझौता है।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य कई देशों तथा क्षेत्रों में आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाकर सोर्सिंग के लिए किसी एक देश पर निर्भरता को कम करना है।
    • इससे अर्थव्यवस्था को अचानक मानव निर्मित और प्राकृतिक आपूर्ति शृंखला व्यवधानों से संभावित रूप से बचाया जा सकता है।

भारत के RCEP में शामिल न होने की संभावित लागत

  • चीन के लिए आर्थिक लाभ में वृद्धि: भारत के बिना, RCEP एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के आर्थिक प्रभाव को मजबूत करता है, जिससे उसे इस क्षेत्र में अधिक शक्ति प्राप्त करने में मदद मिलती है।
    • चीन के आर्थिक प्रभाव से भारत के पड़ोसी प्रभावित हो सकते हैं तथा बढ़ती आर्थिक निर्भरता के कारण क्षेत्रीय हित संभवतः चीन की ओर स्थानांतरित हो सकती है।
  • RCEP सदस्यों के साथ द्विपक्षीय व्यापार पर प्रभाव: RCEP में भारत की अनुपस्थिति के कारण सदस्य देश अंतर-समूह व्यापार को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे 2 अरब से अधिक लोगों वाले इस विशाल बाजार तक भारत की पहुँच कम हो सकती है।
  • इंडो-पैसिफिक सहयोग के लिए चुनौतियाँ: भारत के इस निर्णय से इंडो-पैसिफिक में ऑस्ट्रेलिया-भारत-जापान साझेदारी कमजोर हो सकती है तथा ‘सप्लाई चेन रेजिलिएंस इनिशिएटिव’ (Supply Chain Resilience Initiative- SCRI) जैसी पहलों की प्रगति बाधित हो सकती है।
  • भारत की विनिर्माण महत्त्वाकांक्षाओं पर प्रभाव: भारत का विनिर्माण केंद्र बनने का सपना RCEP से बाहर होने के कारण बाधित है, जिससे एक प्रमुख व्यापार ब्लॉक तक सीधी पहुँच सीमित हो गई है।
  • ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को झटका: RCEP की अनुपस्थिति भारत की एक्ट ईस्ट नीति को प्रभावित करती है, जिससे क्षेत्र में भारत की आर्थिक उपस्थिति कम हो जाती है तथा कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करना कठिन हो जाता है।

आगे की राह 

  • कर युक्तीकरण (Tax Rationalisation): संसद समिति ने भारतीय उद्योगों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार लाने के लिए वैश्विक मानकों के अनुरूप प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों को युक्तिसंगत बनाने की सिफारिश की है।
    • इससे भारतीय उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेहतर प्रदर्शन करने में मदद मिलेगी।
  • घरेलू उद्योगों को मजबूत बनाना: भारत को अपने घरेलू उद्योगों, विशेषकर MSME को अधिक प्रतिस्पर्द्धी और मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि वे किसी भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्द्धा कर सकें।
  • यूरोपीय संघ (European Union- EU) के साथ वार्ता: यूरोपीय संघ के साथ व्यापार वार्ता में तेजी लाना प्राथमिकता है, क्योंकि यूरोपीय संघ भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है।
    • श्रम एवं पर्यावरण तथा निवेशक संरक्षण मानकों पर व्यापक चर्चा किए जाने की आवश्यकता है।
  • भारत को ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति का लाभ उठाना चाहिए: चाइना प्लस वन, जिसे केवल ‘प्लस वन’ या (C+1) के नाम से भी जाना जाता है, वह व्यापारिक रणनीति है, जिसके तहत केवल चीन में निवेश करने से बचकर व्यापार को अन्य विकासशील देशों जैसे भारत, थाईलैंड, तुर्की या वियतनाम में फैलाया जाता है।
  • आत्मनिर्भर भारत: भारत की आत्मनिर्भर भारत पहल का उद्देश्य सौर ऊर्जा, घरेलू विनिर्माण, फार्मास्यूटिकल्स, डिजिटल व्यापार, हरित प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि जैसे क्षेत्रों को मजबूत करना है।
    • इससे विनिर्माण को बढ़ावा मिल सकता है तथा भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ सकती है, जिससे संभवतः भारत RCEP में शामिल होने पर पुनर्विचार कर सकता है।

निष्कर्ष

RCEP में चुनौतियाँ तो हैं ही, लेकिन यह वैश्विक बाजारों और आर्थिक वृद्धि का प्रवेश द्वार भी है। भारत की अनुपस्थिति क्षेत्रीय व्यापार नीति में उसके प्रभाव को कम कर सकती है और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में उसके एकीकरण में बाधा उत्पन्न कर सकती है, जिससे दीर्घकालिक लाभों के लिए RCEP सदस्यता पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता पर बल मिलता है।

संदर्भ

इजरायल ने PyPIM सॉफ्टवेयर विकसित किया है, जो कंप्यूटर को केंद्रीय प्रसंस्करण इकाई (Central Processing Unit- CPU) की आवश्यकता को दरकिनार करते हुए सीधे मेमोरी में डेटा को संसाधित करने में सक्षम बनाता है।

पारंपरिक कंप्यूटर प्रोग्राम

  • अलग हार्डवेयर घटक: पारंपरिक प्रोग्राम मेमोरी और प्रोसेसिंग के लिए अलग हार्डवेयर पर निर्भर करते हैं, जिसमें CPU गणनाओं के लिए जिम्मेदार होता है।
  • डेटा ट्रांसफर की आवश्यकता: प्रोसेसिंग के लिए डेटा को मेमोरी से CPU में ट्रांसफर किया जाना चाहिए, जो समय लेने वाला और ऊर्जा-गहन हो सकता है।

PyPIM प्लेटफॉर्म के बारे में

  • पायथन और प्रोसेसिंग-इन-मेमोरी (PIM) एकीकरण: PyPIM पायथन प्रोग्रामिंग भाषा को डिजिटल PIM तकनीक के साथ जोड़ता है, जिससे मेमोरी हार्डवेयर के भीतर सीधे गणना की जा सकती है, जिससे CPU प्रोसेसिंग पर निर्भरता कम हो जाती है।
  • इन-मेमोरी कंप्यूटेशन: PIM के साथ, गणनाएँ सीधे मेमोरी में निष्पादित की जाती हैं, जिससे CPU और मेमोरी के बीच डेटा को आगे-पीछे करने की आवश्यकता कम हो जाती है।

PyPIM के लाभ

  • बढ़ी हुई गति और दक्षता: मेमोरी में प्रोसेसिंग ‘मेमोरी वॉल’ समस्या को संबोधित करती है, जहाँ प्रोसेसर की गति मेमोरी ट्रांसफर दरों को पार कर जाती है, जिससे डेटा ट्रांसफर की जरूरतें और CPU पर निर्भरता कम हो जाती है।

  • ऊर्जा और समय की बचत: मेमोरी में गणनाओं को निष्पादित करने का PyPIM का तरीका समग्र ऊर्जा खपत को कम करता है और कंप्यूटेशनल दक्षता में सुधार करता है।

संदर्भ

केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए केरल के अनुमानित सकल राज्य घरेलू उत्पाद (Gross State Domestic Product- GSDP) के 3% की शुद्ध उधार सीमा (Net Borrowing Ceiling- NBC) लगाई है।

सकल राज्य घरेलू उत्पाद (Gross State Domestic Product-GSDP)

  • यह एक मौद्रिक माप है, जो किसी निश्चित समयावधि में उत्पादित सभी तैयार वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को दर्शाता है।
    • इसमें आमतौर पर किसी राज्य या देश की भौगोलिक सीमाओं को ध्यान में रखा जाता है।
  • इसकी गणना प्रत्येक गतिविधि को केवल एक बार गिनकर बिना दोहराव के की जाती है।

संबंधित तथ्य

  • विस्तारित कवरेज: राज्यों को राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों के माध्यम से इस सीमा को पार करने से रोकने के लिए, अब इस सीमा में इन संस्थाओं द्वारा लिए गए कुछ उधार भी शामिल हैं।

शुद्ध उधार सीमा (Net Borrowing Ceiling-NBC) के बारे में

  • यह शुद्ध उधार सीमा (NBC) केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की गई सीमा है कि प्रत्येक राज्य विभिन्न स्रोतों, जैसे खुले बाजार और वित्तीय संस्थानों से कितना उधार ले सकता है।
    • इसमें खुले बाजार ऋण, वित्तीय संस्थाओं से ऋण तथा राज्य के सार्वजनिक खाते के अंतर्गत देयताएँ जैसे सभी उधार चैनल शामिल हैं।
  • NBC का निर्धारण राज्य की मौजूदा देनदारियों को, जिसमें सार्वजनिक खातों की देनदारियाँ भी शामिल हैं, राज्य को दी गई समग्र उधार सीमा से घटाकर किया जाता है।
  • NBC का उद्देश्य
    • राजकोषीय अनुशासन सुनिश्चित करना: NBC का उद्देश्य राज्य उधारी को विनियमित करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऋण का स्तर प्रबंधनीय बना रहे।
    • अत्यधिक ऋण को रोकना: उधारी को सीमित करके, NBC राज्यों को अस्थिर ऋण स्तरों को जमा करने से रोकने में मदद करता है, जिससे वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा मिलता है।

केरल पर प्रभाव 

  • वित्तीय संकट: उधार सीमा ने केरल की वित्तीय स्थिति को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिससे व्यय को पूरा करना तथा विकासात्मक और कल्याणकारी गतिविधियों में निवेश करना कठिन हो गया है।
    • केरल का मामला राजकोषीय विकेंद्रीकरण, राज्य की राजकोषीय स्वायत्तता तथा भारतीय रिजर्व बैंक के राजकोषीय नियंत्रण पर केंद्रीय विनियमनों के प्रभाव के बारे में प्रश्न उठाता है।
  • राजनीतिक और कानूनी विवाद: राज्य ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और आरोप लगाया है कि NBC संविधान के अनुच्छेद-293 के तहत उसकी वित्तीय स्वायत्तता में कटौती कर रहा है।
    • यह पहला मामला है, जब इस अनुच्छेद की व्याख्या न्यायालय द्वारा की गई है।

उधार लेने की शक्तियों पर संवैधानिक ढाँचा

  • केंद्र और राज्य की उधार लेने की शक्तियाँ
    • अनुच्छेद-292: केंद्र सरकार को भारत की संचित निधि से उधार लेने की अनुमति देता है।
    • अनुच्छेद-293: राज्यों को भारत के भीतर उधार लेने का अधिकार देता है, जो राज्य की संचित निधि के विरुद्ध सुरक्षित है, यदि बकाया ऋण या गारंटी मौजूद है तो केंद्र सरकार द्वारा लगाई गई शर्तों के अधीन।
    •  प्रतिबंध और शर्तें
      • यदि केंद्र द्वारा पिछले ऋण/गारंटियाँ चुकता नहीं की जाती हैं तो केंद्र सरकार राज्य की उधारी पर शर्तें लगा सकती है। [अनुच्छेद-293(3)]
      • ये शर्तें केंद्र को राज्य के उधारों को विनियमित करने में व्यापक विवेकाधिकार प्रदान करती हैं।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 
    • अनुच्छेद-293 भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 163 पर आधारित है।
    • केंद्र द्वारा अनुचित इनकार या देरी को रोकने वाला एक खंड स्वतंत्रता के बाद हटा दिया गया था, क्योंकि राज्यों से वित्तीय स्वायत्तता की अपेक्षा की गई थी।

राज्यों द्वारा राजकोषीय स्वास्थ्य को सुदृढ़ करने के लिए उठाए जाने वाले कदम

दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए, राज्य विभिन्न रणनीतियों को अपना सकते हैं। ये उपाय घाटे को कम करने, राजस्व बढ़ाने, ऋण प्रबंधन और विकास को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं।

  • राजकोषीय घाटा कम करना 
    • व्यय नियंत्रण: अनावश्यक व्यय को सीमित करना और संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करना।
    • कुशल बजट बनाना: आवश्यक व्यय को प्राथमिकता देना और गैर-आवश्यक व्यय को कम करना।
  • सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना
    • लक्षित सब्सिडी: समाज के सबसे कमजोर वर्गों पर सब्सिडी पर ध्यान केंद्रित करना। 
    • सब्सिडी का बोझ कम करना: धीरे-धीरे उन सब्सिडी को समाप्त करना, जो प्रभावी रूप से इच्छित प्राप्तकर्ताओं तक नहीं पहुँचती हैं।
  • ऋण प्रबंधन को मजबूत करना 
    • ऋण पुनर्गठन: ब्याज भुगतान को कम करने और स्थिरता में सुधार करने के लिए मौजूदा ऋण को पुनर्गठित करना।
    • ऋण में कमी: वित्तीय तनाव को कम करने के लिए कुल ऋण के स्तर में धीरे-धीरे कमी लाने का लक्ष्य रखना।
  • आर्थिक विकास को बढ़ावा देना
    • बुनियादी ढाँचे में निवेश: आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए बुनियादी ढाँचे के विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
    • MSME का समर्थन करना: अर्थव्यवस्था में अपनी भूमिका को मजबूत करने के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को सहायता प्रदान करना।
  • संघीय समन्वय को बढ़ावा देना 
    • संघ-राज्य समन्वय: बेहतर वित्तीय प्रबंधन के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय में सुधार करना।
    • साझा संसाधन: संघ और राज्य के बीच संसाधनों और जिम्मेदारियों का उचित वितरण सुनिश्चित करना।

राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम के बारे में

  • FRBM भारतीय संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है, जिसका उद्देश्य राजकोषीय अनुशासन स्थापित करना तथा देश के वित्त को अधिक जिम्मेदारी से प्रबंधित करने में सहायता करना है।
  • FRBMA के मुख्य उद्देश्य
    • पारदर्शी राजकोषीय प्रबंधन: भारत में पारदर्शी और जवाबदेह राजकोषीय प्रबंधन प्रणाली स्थापित करना।
    • समान ऋण प्रबंधन: समय के साथ देश के ऋण का उचित और प्रबंधनीय वितरण सुनिश्चित करना।
    • दीर्घकालिक राजकोषीय स्थिरता: भारत में स्थायी वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देना।
  • मुद्रास्फीति प्रबंधन के लिए लचीलापन
    • RBI के लिए समर्थन: इस अधिनियम ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को मुद्रास्फीति को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए अधिक लचीलापन प्रदान किया।
  • संशोधन: FRBM संशोधन अधिनियम, 2018 के तहत केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 3% से अधिक न हो और सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 60% से अधिक न हो, साथ ही वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को 4.5% से नीचे लाने का लक्ष्य रखा गया है।

संदर्भ 

फ्राँस अपनी रक्षा आवश्यकताओं के लिए भारत की पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्च (MBRL) प्रणाली खरीदने पर विचार कर रहा है।

  • भारत ने इस वर्ष के प्रारंभ में फ्राँसीसी सेना के ‘चीफ ऑफ स्टाफ’ को पिनाका भेंट किया था, जिससे इसमें काफी रुचि उत्पन्न हुई थी।

संबंधित तथ्य

  • फ्राँसीसी सेना द्वारा मूल्यांकन योजना: फ्राँसीसी सेना पिनाका प्रणाली का गहन मूल्यांकन कर रही है, साथ ही तीन से चार अन्य विकल्पों का भी मूल्यांकन कर रही है।
    • लॉन्चर और गोला-बारूद क्षमताओं की विस्तृत जाँच के लिए एक सदस्य दल जल्द ही भारत आने वाला है।
  • M270 LRU प्रणालियों का प्रतिस्थापन: फ्राँस अपने पुराने M270 लांस-रोक्वेट्स यूनिटेयर (Lance Roquettes Unitaire-LRU) प्रणालियों को प्रतिस्थापित करना चाहता है, जिनमें से छह इकाइयाँ हाल ही में यूक्रेन भेजी गई थीं।
    • शेष 13 उन्नत इकाइयों के साथ, फ्राँसीसी सेना सक्रिय रूप से एक आधुनिक, विश्वसनीय विकल्प की तलाश कर रही है, जो पिनाका मूल्यांकन के महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • आर्मेनिया की खरीद: आर्मेनिया पिनाका प्रणाली का पहला अंतरराष्ट्रीय खरीदार बन गया, जो भारत की बढ़ती रक्षा निर्यात क्षमताओं और घरेलू रूप से विकसित सैन्य प्रणालियों की बढ़ती माँग को रेखांकित करता है।
  • भारतीय सेना की विस्तारित पिनाका रेजिमेंट: भारतीय सेना के पास सेवा में चार पिनाका रेजिमेंट हैं और उसने छह अतिरिक्त इकाइयों का ऑर्डर दिया है, जो स्वदेशी समाधानों के साथ अपनी तोपखाने की मारक क्षमता को मजबूत करने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • पिनाका प्रणाली की रेंज और बहुमुखी प्रतिभा: पिनाका MK1 वर्तमान में 38 किमी. की रेंज प्रदान करता है, साथ ही 300 किमी. तक की विस्तारित-रेंज गोला-बारूद लक्ष्यीकरण रेंज का विकास जारी है।
    • यह अनुकूलनशीलता फ्राँस सहित संभावित अंतरराष्ट्रीय खरीदारों के लिए इसके आकर्षण को बढ़ाती है, जो बहुमुखी, लंबी दूरी की प्रणालियों की तलाश में हैं।

अन्य भारत-फ्राँस रक्षा सहयोग

  • फ्राँस और भारत भारतीय नौसेना के लिए 26 राफेल-M लड़ाकू विमानों और तीन अतिरिक्त स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों के लिए बातचीत के अग्रिम चरण में हैं।
  • भारत की उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान परियोजना के लिए जेट इंजन के सह-डिजाइन और सह-विकास पर भी बातचीत चल रही है।

पिनाका मिसाइल प्रणाली के बारे में

  • विकास और उत्पत्ति: पिनाका एक मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर (MBRL) प्रणाली है, जिसे भारत में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के आयुध अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (Armament Research and Development Establishment- ARDE) द्वारा विकसित किया गया है।

  • यह भारत में DRDO और ‘टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड’ (Tata Advanced Systems Ltd.- TASL) के बीच रक्षा प्रणालियों में पहली सार्वजनिक-निजी भागीदारी का परिणाम है।
  • क्षमताएँ और लक्ष्य निर्धारण: पिनाका प्रणाली को एक व्यापक क्षेत्र में तेजी से लक्ष्य भेदने के लिए डिजाइन किया गया है, जो बख्तरबंद और बिना बख्तरबंद वाहनों, संचार केंद्रों, एयर टर्मिनल साइटों और आपूर्ति डिपो को लक्षित करता है।
    • पिनाका रॉकेट सिस्टम में ‘शूट एंड स्कूट’ क्षमता है, जो इसे काउंटर-बैटरी फायर से बचने में सक्षम बनाती है।
    • यह 48 सेकंड के भीतर 700 x 500 वर्ग मीटर क्षेत्र के किसी भी लक्ष्य को बेअसर कर सकता है, जिससे यह उच्च तीव्रता वाली मारक क्षमता के लिए एक अत्यधिक प्रभावी समाधान बन जाता है।
    • इसमें अधिकतम 20 सेकंड में लॉन्च किए गए सभी 12 रॉकेटों को प्रोग्राम करने की क्षमता है।
  • प्रणाली में घटक: प्रणाली में कई घटक शामिल हैं:
    • मल्टी-ट्यूब लॉन्चर वाहन (Multi-Tube Launcher Vehicle): दो पॉड से लैस, जिनमें से प्रत्येक में छह रॉकेट होते हैं, जो तेजी से फायर करने की क्षमता प्रदान करते हैं।
    • ‘रिप्लेनिशमेंट और लोडर वाहन’ (Replenishment and Loader Vehicles): ये वाहन अतिरिक्त रॉकेट ले जाते हैं और लॉन्चर को फिर से लोड करते हैं, जिससे निरंतर फायरपॉवर सुनिश्चित होती है।
    • ‘कमांड पोस्ट वाहन’ (Command Post Vehicle): संचालन का समन्वय करता है और लॉन्चर को दूर से नियंत्रित करता है। फायरिंग के दौरान, लॉन्चर सिस्टम चार हाइड्रॉलिक रूप से सक्रिय आउटरिगर पर स्थिर हो जाता है।
    • इसमें सटीक और तेजी से बिछाने के लिए एक ऑनबोर्ड इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम है।
  • रेंज: पिनाका MK1, 38 किमी. की रेंज में लक्ष्य भेदने में सक्षम है, यह विभिन्न प्रकार के गोला-बारूद तैनात कर सकता है तथा इसकी रेंज बढ़ाने के लिए कार्य चल रहा है।
    • निर्देशित, विस्तारित दूरी वाले पिनाका रॉकेटों का परीक्षण लगभग पूरा होने वाला है, जिसका लक्ष्य इसकी सीमा को 75 किलोमीटर से अधिक तक बढ़ाना है तथा भविष्य में इसे 120 किलोमीटर एवं अंततः 300 किलोमीटर तक बढ़ाने की योजना है।
  • गतिशीलता: यह प्रणाली टाट्रा ट्रक (Tatra Truck) पर लगाई गई है, जो इसे विभिन्न इलाकों में उत्कृष्ट गतिशीलता प्रदान करती है और तेजी से तैनाती की सुविधा प्रदान करती है।
  • परिचालन महत्त्व: भारत की तोपखाने क्षमताओं के एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में, पिनाका MBRL सेना की आक्रामक और रक्षात्मक दोनों भूमिकाओं में त्वरित, बड़े पैमाने पर गोलाबारी करने की क्षमता को बढ़ाता है।

संदर्भ

‘नेशनल थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (NTPC) ने फ्लू गैस (Flue Gas) से प्राप्त CO2 को प्रोटॉन एक्सचेंज मेम्ब्रेन (Proton Exchange Membrane- PEM) इलेक्ट्रोलाइजर से उत्पादित हाइड्रोजन के साथ सफलतापूर्वक संश्लेषित करने की घोषणा की, जिसे बाद में मेथेनॉल में परिवर्तित कर दिया गया।

  • ‘नेशनल थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (NTPC) ने अपना पहला स्वदेशी मेथनॉल संश्लेषण उत्प्रेरक भी विकसित किया है।

फ्लू गैस (Flue Gas) क्या है?

  • यह विद्युत संयंत्रों में दहन के उपोत्पाद के रूप में बनने वाली गैसों का मिश्रण है।
  • मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), जल वाष्प (H2O), नाइट्रोजन (N2) और ऑक्सीजन (O2) से बना होता है।
  • इसमें सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और पार्टिकुलेट मैटर (PM) जैसे प्रदूषक भी हो सकते हैं।

पर्यावरणीय प्रभाव 

  • यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (CO2), अम्लीय वर्षा (SO2, NOx) और वायु प्रदूषण (PM, NOx) में योगदान देता है।

मेथेनॉल के बारे में

  • मेथनॉल (CH₃OH), जिसे अक्सर मिथाइल अल्कोहल या वुड अल्कोहल कहा जाता है, सबसे सामान्य अल्कोहल है।
  • यह एक स्पष्ट, रंगहीन और ज्वलनशील तरल है, जिसकी गंध अलग होती है।
  • अपनी सामान्य संरचना के बावजूद, मेथनॉल विभिन्न उद्योगों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • प्रमुख गुण
    • जल के साथ मिश्रणीयता (Miscibility): मेथेनॉल जल में पूरी तरह से घुलनशील है, जो इसे एक बहुमुखी विलायक बनाता है।
    • ज्वलनशीलता: यह अत्यधिक ज्वलनशील है, इसलिए इसे सावधानीपूर्वक सँभालना और संगृहीत करना आवश्यक है।
    • विषाक्तता: मेथेनॉल मनुष्यों और जानवरों के लिए विषाक्त है, विशेषकर जब इसका सेवन किया जाता है। इसकी विषाक्तता के कारण इसे सावधानीपूर्वक प्रबंधित करना और संगृहीत करना आवश्यक है।

मेथनॉल के अनुप्रयोग

  • ईंधन मिश्रण: ऑक्टेन रेटिंग में सुधार और उत्सर्जन को कम करने के लिए मेथेनॉल को गैसोलीन के साथ मिश्रित किया जा सकता है।
  • प्रत्यक्ष ईंधन: इसका उपयोग आंतरिक दहन इंजन में ईंधन के रूप में किया जा सकता है, विशेष रूप से रेसिंग अनुप्रयोगों में।
  • ईंधन सेल प्रौद्योगिकी: मेथेनॉल का उपयोग प्रत्यक्ष मेथेनॉल ईंधन कोशिकाओं में ईंधन स्रोत के रूप में किया जाता है।
  • औद्योगिक विलायक: इसका उपयोग विभिन्न उद्योगों में विलायक के रूप में व्यापक रूप से किया जाता है, जिसमें पेंट, कोटिंग्स और सफाई उत्पाद शामिल हैं।
  • प्रयोगशाला अभिकर्मक: मेथेनॉल रासायनिक प्रयोगशालाओं में प्रतिक्रियाओं, निष्कर्षण और क्रोमैटोग्राफी के लिए एक सामान्य विलायक है।
  • ऑटोमोटिव एंटीफ्रीज: ठंड के मौसम में जमने से बचाने के लिए विंडशील्ड वॉशर तरल पदार्थों में मेथेनॉल का उपयोग एंटीफ्रीज घटक के रूप में किया जाता है।
  • फॉर्मेल्डिहाइड उत्पादन (Formaldehyde Production): मेथेनॉल फॉर्मेल्डिहाइड के उत्पादन के लिए एक प्राथमिक फीडस्टॉक है, जो कई औद्योगिक उत्पादों में एक प्रमुख घटक है।
  • अन्य रसायन: इसका उपयोग कई अन्य रसायनों के उत्पादन में किया जाता है, जिनमें एसिटिक एसिड, मिथाइल टर्ट-ब्यूटाइल ईथर (Methyl Tert Butyl Ether- MTBE) और डाइमिथाइल ईथर (Dimethyl Ether- DME) शामिल हैं।

CO2 से मेथेनॉल रूपांतरण के बारे में

  • CO₂ कैप्चर: CO₂ को फ्लू गैस से बाहर निकाला जाता है, जो विद्युत संयंत्रों से निकलने वाली अपशिष्ट गैस है।
  • हाइड्रोजन उत्पादन: हाइड्रोजन गैस (H₂) को प्रोटॉन एक्सचेंज मेम्ब्रेन (PEM) इलेक्ट्रोलाइजर का उपयोग करके बनाया जाता है।
    • PEM विद्युत का उपयोग करके जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करता है।

  • मेथेनॉल संश्लेषण: एकत्रित CO₂ को हाइड्रोजन गैस के साथ मिलाकर मेथेनॉल बनाया जाता है, जो एक स्वच्छ ईंधन है और इसका उपयोग विभिन्न उद्योगों में किया जा सकता है।

CO₂ से मेथेनॉल रूपांतरण के लाभ

  • कार्बन कैप्चर और उपयोग (Carbon Capture and Utilisation- CCU): यह प्रक्रिया CO₂ को एक उपयोगी उत्पाद में बदलने का एक तरीका प्रदान करती है, जिससे जलवायु परिवर्तन पर ग्रीनहाउस गैस के प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है। CO₂ को कैप्चर और उपयोग करके, हम वायुमंडल में जारी CO₂ की मात्रा को कम कर सकते हैं।
  • सतत् ईंधन उत्पादन: CO2 से उत्पादित मेथेनॉल एक बहुमुखी, नवीकरणीय ईंधन के रूप में कार्य करता है।
    • इसका उपयोग परिवहन, विद्युत उत्पादन जैसे क्षेत्रों में तथा विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं में फीडस्टॉक के रूप में किया जा सकता है, जिससे ऊर्जा स्वतंत्रता को बढ़ावा मिलेगा तथा जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी।
  • कम ऊर्जा माँग और लागत (Lower Energy Demand and Cost): CO₂ से मेथेनॉल के उत्पादन के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है और यह आम तौर पर पारंपरिक तरीकों की तुलना में अधिक लागत प्रभावी होता है, जिससे इसकी आर्थिक व्यवहार्यता बढ़ जाती है।
  • कुशल ऊर्जा भंडारण और परिवहन (Efficient Energy Storage and Transport): हाइड्रोजन की तुलना में मेथेनॉल का भंडारण करना और परिवहन करना आसान है, क्योंकि यह कम ज्वलनशील और अधिक प्रबंधनीय है। यह मेथेनॉल को बड़े पैमाने पर भंडारण और लंबी दूरी के परिवहन के लिए एक सुरक्षित विकल्प बनाता है।
  • उद्योग के लिए बहुमुखी फीडस्टॉक (Versatile Feedstock for Industry): मेथेनॉल रसायनों, विलायक और प्लास्टिक की एक विस्तृत शृंखला के निर्माण में एक प्रमुख घटक के रूप में कार्य करता है, जो औद्योगिक क्षेत्र में विविध अनुप्रयोगों का समर्थन करता है और आर्थिक लचीलेपन में योगदान देता है।

नीति आयोग का मेथेनॉल अर्थव्यवस्था कार्यक्रम

  • तेल आयात बिल में कमी (Reduction in Oil Import Bill): नीति आयोग के कार्यक्रम में गैसोलीन में 15% मेथेनॉल मिलाने का प्रस्ताव है, जिससे गैसोलीन या कच्चे तेल के आयात में कम-से-कम 15% की कमी आ सकती है, जिससे अर्थव्यवस्था को लाभ होगा और ऊर्जा निर्भरता कम होगी।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी (Reduction in Greenhouse Gas Emissions): पारंपरिक ईंधन की तुलना में मेथेनॉल मिश्रण से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम होता है। यह पार्टिकुलेट मैटर, NOx और SOx के उत्सर्जन को लगभग 20% तक कम कर सकता है, जिससे शहरी वायु गुणवत्ता को प्रत्यक्ष लाभ मिलता है। 
  • शहरी वायु गुणवत्ता में सुधार (Improved Urban Air Quality): शहरी परिवहन शहरी वायु प्रदूषण के लगभग 40% के लिए जिम्मेदार है। मेथेनॉल मिश्रण को अपनाने से शहरी वायु गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है, जिससे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों में कमी आएगी।

संदर्भ

हरियाणा के हिसार में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (Indian Council of Agricultural Research- National Research Centre on Equines: ICAR- NRC Equine) को ‘इक्वाइन पिरोप्लाज्मोसिस’ (Equine Piroplasmosis) के लिए विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (World Organisation for Animal Health- WOAH)रिफरेंस लैबोरेटरी स्टेटस’ दिया गया है।

संबंधित तथ्य

  • पशुपालन और डेयरी विभाग (DAHD) से सहायता: केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग (Department of Animal Husbandry & Dairying-DAHD) ने इस मान्यता को सुगम बनाया।
  • पशु स्वास्थ्य में भूमिका: ICAR-NRC इक्विन उन्नत निदान प्रदान करके, अंतरराष्ट्रीय सहयोग में संलग्न होकर और इस टिकजनित रोग पर अनुसंधान करके इक्विन पिरोप्लाज्मोसिस से निपटने में वैश्विक प्रयासों को बढ़ाएगा।

  • भारत में अश्व की आबादी: 20वीं पशुगणना के अनुसार, भारत में लगभग 0.55 मिलियन अश्व (घोड़े, टट्टू, गधे, खच्चर) हैं, जिनमें सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और हरियाणा में है।

टिक जनित रोगों (Tick Borne Diseases) के बारे में

  • टिक जनित रोग संक्रमित टिक के काटने से मनुष्यों एवं जानवरों में फैलने वाले संक्रमण हैं। ये रोग बैक्टीरिया, वायरस और परजीवियों सहित विभिन्न रोगजनकों के कारण होते हैं।

इक्वाइन पिरोप्लाज्मोसिस’ (Equine Piroplasmosis) के बारे में

  • कारण: प्रोटोजोआ परजीवी बेबेसिया कैबली (Babesia Caballi) और थेलेरिया इक्वी (Theileria Equi) के कारण होने वाली एक टिकजनित बीमारी है।
  • प्रभावित प्रजातियाँ: घोड़ों, गधों, खच्चरों और जेबरा सहित घोड़ों के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न करती हैं।
  • लक्षण: इक्वाइन पिरोप्लाज्मोसिस अक्सर गैर-विशिष्ट लक्षणों के साथ प्रस्तुत होता है, जिससे निदान चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
    • गंभीर मामले सामान्य हैं, जिनमें बुखार, भूख कम लगना, हृदय और श्वसन दर में वृद्धि, तथा श्लेष्म झिल्ली के रंग और मल की स्थिरता में परिवर्तन शामिल हैं।
    • उप-गंभीर मामलों में वजन में कमी, रुक-रुक कर बुखार आना और हल्का पेट दर्द हो सकता है।
    • जीर्ण मामलों में अक्सर हल्की भूख न लगना, खराब प्रदर्शन, वजन में कमी और स्प्लेनोमेगाली (Splenomegaly) दिखाई देती है।
    • एक दुर्लभ गंभीर रूप अचानक मृत्यु या निकट मृत्यु का कारण बन सकता है।
  • संचरण: संक्रमित जानवर दीर्घकालिक वाहक के रूप में कार्य कर सकते हैं तथा परजीवियों को टिक वाहकों तक संचारित कर सकते हैं।
    • रक्त-दूषित उपकरण भी रोग फैला सकते हैं, जिससे शल्यक्रिया द्वारा संक्रमण हो सकता है।
  • भौगोलिक प्रसार: दुनिया भर में उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में स्थानिक।
  • उपचार: वर्तमान में, इक्वाइन पिरोप्लाज्मोसिस के लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है।

विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (World Organisation for Animal Health-WOAH) के बारे में

  • स्थापना: वर्ष 1924 में ‘अंतरराष्ट्रीय महामारी विज्ञान कार्यालय’ (Office International des Epizooties- OIE) के रूप में स्थापित; वर्ष 2003 में ‘विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन’ (World Organisation for Animal Health) नाम अपनाया गया।
  • उद्देश्य: एक अंतर-सरकारी संगठन, जो निम्नलिखित पर केंद्रित है:
    • पशु रोग संबंधी जानकारी का पारदर्शी प्रसार।
    • दुनिया भर में पशु स्वास्थ्य एवं कल्याण को बढ़ावा देना।
    • एक सुरक्षित, स्वस्थ और अधिक सतत् दुनिया को बढ़ावा देना।
  • भारत की भूमिका: भारत WOAH के सदस्य देशों में से एक है।
  • मानक और कोड: WOAH स्थलीय पशु स्वास्थ्य कोड सहित मानक दस्तावेज बनाता है, जो सदस्य देशों को बीमारी के प्रवेश से बचाने में मदद करता है।
  • वैश्विक मान्यता: WOAH मानकों को विश्व व्यापार संगठन द्वारा प्रमुख अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता दिशा-निर्देशों के रूप में मान्यता दी गई है।
  • मुख्यालय: पेरिस, फ्राँस में स्थित है।

संदर्भ

जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएँ (Lightning Strikes) आम और घातक होती जा रही हैं।

संबंधित तथ्य

  • प्रत्येक वर्ष दुनिया भर में लगभग 24,000 लोग ऐसे घटनाओं के कारण मारे जाते हैं।
    • भारत में वर्ष 2022 में आकाशीय बिजली गिरने से 2,887 लोगों की मौत हुई थीं।
  • भारत में भौगोलिक वितरण: पूर्वोत्तर राज्यों और पश्चिम बंगाल, सिक्किम, झारखंड, ओडिशा और बिहार में आकाशीय बिजली गिरने की आवृत्ति सबसे अधिक है।
  • भारत में इस घटना को प्राकृतिक आपदा घोषित करने के लिए याचिकाएँ दायर की गई हैं ताकि इससे बचे लोग सुरक्षा के लिए संस्थागत तंत्र का उपयोग कर सकें।
  • आकाशीय बिजली की छड़ें (Lightning Rods), आकाशीय बिजली को मनुष्यों से दूर रखने की अपनी क्षमता के कारण महत्त्वपूर्ण हैं।

आकाशीय बिजली (Lightning) के बारे में

  • यह दो विद्युत आवेशित क्षेत्रों के बीच वायुमंडल में स्थिरवैद्युत विसर्जन द्वारा निर्मित प्राकृतिक घटना है। अर्थात् आकाशीय बिजली एक शक्तिशाली और दृश्यमान विद्युत घटना है, जो तब घटित होती है, जब बादलों के अंदर एवं बादलों तथा जमीन के बीच विद्युत आवेश का निर्माण होता है। 
  • इस विद्युत ऊर्जा के निर्वहन के परिणामस्वरूप प्रकाश की एक अत्यधिक तेज चमक और हवा का तेजी से विस्तार होता है, जिससे बिजली के साथ होने वाली विशिष्ट गड़गड़ाहट की ध्वनि उत्पन्न होती है।
  • वे स्थान जहाँ आकाशीय बिजली गिरने की अधिक संभावना होती है: पृथ्वी की सतह पर ऊँचे स्थानों पर जैसे ऊँची इमारतें या संरचनाएँ, पेड़, धातु की वस्तुएँ, विद्युत के तार, जानवर और मनुष्य, जल निकाय आदि।
    • क्योंकि ये वस्तुएँ निर्वहन प्रक्रिया के लिए एक आसान चालन पथ प्रदान करती हैं और इसलिए आकाशीय बिजली गिरती है।

आकाशीय बिजली के प्रकार

  • इंट्रा क्लाउड (Intra Cloud): यह आकाशीय बिजली का सबसे आम प्रकार है। यह पूरी तरह से बादल के अंदर होता है, बादल में विभिन्न आवेश क्षेत्रों के बीच स्थानांतरित होता है। इंट्रा क्लाउड आकाशीय बिजली को कभी-कभी ‘शीट लाइटनिंग’ कहा जाता है क्योंकि यह आकाश को प्रकाश से रोशन करती है।
  • बादल से बादल (Cloud to Cloud): दो या अधिक अलग-अलग बादलों के बीच उत्पन्न होने वाली आकाशीय बिजली। 
  • बादल से जमीन (Cloud to Ground): बादल और जमीन के बीच उत्पन्न होने वाली आकाशीय बिजली। 
  • बादल से हवा (Cloud to Air): आकाशीय बिजली तब उत्पन्न होती है, जब धनात्मक रूप से आवेशित बादल के शीर्ष के आसपास की हवा उसके चारों ओर ऋणात्मक रूप से आवेशित हवा तक पहुँचती है। 
  • ‘बोल्ट फ्रॉम द ब्लू’ (Bolt from the Blue): एक धनात्मक आकाशीय बिजली का बोल्ट, जो तूफान के ऊपर की ओर बहने वाली हवा के भीतर उत्पन्न होता है, आमतौर पर ऊपर की ओर 2/3 भाग तक, कई मील तक क्षैतिज रूप से यात्रा करता है, फिर स्थल पर गिरता है।
  • एनविल लाइटिंग (Anvil Lightning): एक धनात्मक आकाशीय बिजली का बोल्ट, जो एनविल, या गरज वाले बादल के शीर्ष में विकसित होता है और आम तौर पर स्थल से टकराने के लिए सीधे नीचे की ओर जाता है। 
  • हीट लाइटनिंग (Heat Lightning): एक गरज वाले तूफान से आकाशीय बिजली जो बहुत दूर होती है और सुनाई नहीं देती है।

आकाशीय बिजली के गिरने की प्रक्रिया

  • आवेश पृथक्करण (Charge Separation): बादल के अंदर, वायु राशियाँ जल की बूँदों और बर्फ के कणों के बीच टकराव का कारण बनती हैं, जिसके परिणामस्वरूप धनात्मक और ऋणात्मक आवेशों का निर्माण होता है।
    • इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, जिसमें बादल की ऊपरी परत धनात्मक आवेशित हो जाती है, जबकि मध्य परत ऋणात्मक आवेशित हो जाती है।

  • विद्युत प्रवाह (Electric Discharge): विद्युत आवेश बादल में वायु की क्षमता से परे जाकर एकत्रित हो सकते हैं, जिससे उनका प्रतिरोध करना कठिन हो जाता है, जब वायु अब इन्सुलेटर के रूप में कार्य नहीं कर सकती और विद्युत अचानक विसर्जन के रूप में प्रवाहित होती है, जिससे आकाशीय बिजली चमकती है।
  • गड़गड़ाहट: आकाशीय बिजली की तीव्र गर्मी (30,000 डिग्री सेल्सियस तक) तेजी से आसपास की हवा को गर्म कर देती है, जिससे हवा फैलती है और गड़गड़ाहट जैसी ध्वनि उत्पन्न होती है, जिसे हम सुनते हैं।

आकाशीय बिजली की दर को प्रभावित करने वाले कारक

  • वैश्विक तापमान में वृद्धि: उच्च तापमान के कारण वाष्पीकरण अधिक होता है, जिससे वायुमंडल में अधिक जल वाष्प बनता है, इससे तूफानी बादलों का निर्माण बढ़ता है, जिससे आकाशीय बिजली गिरने की स्थिति में वृद्धि होती है।
  • वायुमंडलीय अस्थिरता में वृद्धि: गर्म हवा में अधिक नमी होती है, जो गरज के साथ वर्षा और आकाशीय बिजली गिरने की गतिविधियों को बढ़ावा देती है।
  • शहरीकरण: शहरी ऊष्मा द्वीपों के कारण शहरों में अक्सर आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक तापमान होता है, जिससे संवहन और गरज के साथ वर्षा की गतिविधियाँ बढ़ जाती हैं।
  • प्रदूषण: प्रदूषण के कारण एरोसोल और पार्टिकुलेट मैटर जल की बूँदों के लिए नाभिक के रूप में कार्य कर सकते हैं, जिससे बादल निर्माण और विद्युत गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।
  • वनों की कटाई: जंगलों के शीतलन प्रभाव को कम करता है, जिससे स्थानीय तापमान एवं वायुमंडलीय अस्थिरता बढ़ती है।

आकाशीय बिजली की छड़ें या लाइटनिंग रॉड (Lightning Rods) के बारे में

  • आकाशीय बिजली की छड़ एक धातु की छड़ या सुचालक है, जिसे किसी इमारत या संरचना के सबसे ऊँचे बिंदु पर रखा जाता है। यह एक तार या एक प्रवाहकीय पथ के माध्यम से जमीन से जुड़ा होता है। 
  • आकाशीय बिजली की छड़ें आकाशीय बिजली के गिरने से होने वाले नुकसान को रोकती हैं क्योंकि वे आकाशीय बिजली की ऊर्जा को सुरक्षित रूप से जमीन में भेजती हैं।

संरक्षण तंत्र

  • आवेश का पुनर्वितरण: आकाशीय बिजली की छड़ें, छड़ के आस-पास के क्षेत्र में विद्युत आवेशों को पुनर्वितरित करके प्रत्यक्ष नुकसान की संभावना को कम करती हैं। यह आकाशीय बिजली को ट्रिगर करने वाले संभावित अंतर को कम कर सकता है।
  • विद्युत धारा के लिए प्रत्यक्ष रास्ता: यदि आकाशीय बिजली गिरती है, तो छड़ विद्युत ऊर्जा को सुरक्षित रूप से जमीन में जाने के लिए कम प्रतिरोध वाला रास्ता प्रदान करती है।
  • छड़ के प्रति आकर्षण: आकाशीय बिजली जमीन तक पहुँचने के लिए सबसे छोटा और सबसे अधिक प्रवाहकीय रास्ता खोजती है। छड़, एक नुकीली और प्रवाहकीय संरचना होने के कारण, कम प्रवाहकीय सामग्रियों (जैसे इमारत) से बिजली को दूर खींचती है।
    • नुकीली और नुकीली चीजें अपने पास अधिक मजबूत विद्युत क्षेत्र बनाती हैं, इसलिए अधिक सुचालक होती हैं।

आकाशीय बिजली के प्रभाव को कम करने के उपाय

  • 30-30 नियम: यदि आकाशीय बिजली और गड़गड़ाहट एक दूसरे से 30 सेकंड के भीतर आ रही हो, तो आश्रय ले लें।
    • तूफान के गुजर जाने के 30 मिनट बाद तक इस आश्रय स्थल को न छोड़ें।
    • सबसे अच्छा आश्रय किसी इमारत या धातु से बने वाहन में है।
  • बिजली के कंडक्टरों से बचें: तार वाले फोन, कंप्यूटर, प्लंबिंग और खिड़कियों से दूर रहें।
  • कम-से-कम जोखिम उठाएं: अगर आप बाहर फँस गए हैं, तो तुरंत निचले इलाके में शरण लें।
  • ऊँची वस्तुओं से बचें: पेड़ों, खंभों और पहाड़ियों जैसी ऊँची वस्तुओं से दूर रहें।
  • सूखे रहें: जल निकायों से बचें क्योंकि जल बिजली का संचालन करता है।

भारत में बिजली गिरने की समस्या से निपटने के लिए सरकारी पहल

  • पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के साथ मिलकर डॉपलर मौसम रडार, आकाशीय बिजली का पता लगाने वाले नेटवर्क और उपग्रह आधारित निगरानी का उपयोग करते हुए उन्नत बिजली पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ विकसित की हैं।
    • दामिनी ऐप (Damini app) जनता को चेतावनी देने के लिए कई भाषाओं में समय पर आकाशीय बिजली गिरने की सूचना देता है।
  • समर्पित एजेंसियाँ ​​एवं प्रोटोकॉल: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) आकाशीय बिजली जोखिम प्रबंधन का समन्वय करता है, जबकि इसरो के अंतर्गत राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र पता लगाने वाली सेवाओं में योगदान देता है।
    • वर्ष 2019 से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के दिशा-निर्देश और कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल (Common Alert Protocol- CAP) राज्यों में सुव्यवस्थित अलर्ट सुनिश्चित करते हैं।
  • सामुदायिक जागरूकता: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के नेतृत्व में तथा ‘क्लाइमेट रेसिलिएंट ऑब्जर्विंग सिस्टम्स प्रमोशन काउंसिल’ (Climate Resilient Observing Systems Promotion Council- CROPC) और IMD द्वारा समर्थित ‘लाइटनिंग रेसिलिएंट इंडिया’ अभियान, किसानों और मवेशी चराने वालों जैसे संवेदनशील समूहों को लक्षित करते हुए ग्रामीण आबादी को सुरक्षा प्रथाओं के बारे में शिक्षित करता है।
    • ग्राम पंचायतों और विभिन्न मीडिया के माध्यम से जागरूकता बढ़ाई जाती है।
  • अनुसंधान एवं विकास: चल रहे अनुसंधान एवं विकास में आकाशीय बिजली के प्रति लचीलापन ढाँचे, सुरक्षा मानकों के लिए उच्च वोल्टेज (High Voltage- HV) परीक्षण प्रयोगशालाएँ तथा आकाशीय बिजली पर जलवायु के प्रभाव पर अध्ययन शामिल हैं, जो भारत के सक्रिय अनुसंधान एवं सुरक्षा उपायों को प्रदर्शित करते हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण में प्रस्तुतियों तथा सार्क और G-20 देशों के साथ चर्चाओं के माध्यम से वैश्विक स्तर पर अपनी बिजली जोखिम प्रबंधन रणनीतियों को साझा करता है, जो इसे व्यापक आकाशीय बिजली प्रबंधन के लिए एक मॉडल के रूप में स्थापित करता है।

संदर्भ

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes) ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और ओडिशा की सरकारों से गोट्टी कोया जनजातियों (Gotti Koya Tribals) की स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।

  • गौरतलब है कि यह जनजाति माओवादी हिंसा के कारण छत्तीसगढ़ से विस्थापित हो गई थी और अब कथित तौर पर पड़ोसी राज्यों में कठिन परिस्थितियों में रह रही है तथा सामाजिक सुरक्षा लाभों से वंचित हैं।

गोट्टी कोया जनजाति के बारे में (Gotti Koya Tribes)

  • उत्पत्ति: गोट्टी कोया, जिन्हें गोट्टी या गोट्टे कोया के नाम से भी जाना जाता है, छत्तीसगढ़ की एक देशज जनजाति है।
  • विस्थापन: माओवादी विद्रोहियों और सलवा जुडूम (Salwa Judum) जो एक सरकार समर्थित मिलिशिया था, जिसे बाद में प्रतिबंधित कर दिया गया था, के बीच हिंसक संघर्ष के कारण 2000 के दशक के मध्य में कई लोग आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) चले गए।

सलवा जुडूम (Salwa Judum)

  • सलवा जुडूम आदिवासी लोगों का एक समूह है, जो सशस्त्र नक्सलियों के विरुद्ध प्रतिरोध के लिए संगठित होता था।
  • इस समूह को कथित तौर पर छत्तीसगढ़ में सरकारी मशीनरी का समर्थन प्राप्त था।
  • वर्ष 2011 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस तरह से नागरिकों को हथियार देने के विरुद्ध निर्णय दिया तथा सलवा जुडूम पर प्रतिबंध लगा दिया एवं छत्तीसगढ़ सरकार को माओवादी गुरिल्लाओं से लड़ने के लिए स्थापित किसी भी मिलिशिया बल को भंग करने का निर्देश दिया।


  • प्रवासन पैमाना (Migration Scale): शुरुआत में आंध्र प्रदेश में बसे लगभग 30,000 गोट्टी कोया सदस्य मुख्य रूप से तेलंगाना के जंगलों में रहते हैं, विशेषकर भद्राद्रि कोठागुडेम (Bhadradri Kothagudem), मुलुगु (Mulugu) और जयशंकर भूपालपल्ली (Jayashankar Bhupalpally) जिलों में।
  • भाषा: कोया, द्रविड़ भाषा।
  • आजीविका: मुख्य रूप से स्थानांतरित खेती, पशुपालन और लघु वनोपज का ‘पोडु’ रूप।
  • अनुष्ठान: कोया जनजाति द्वारा आयोजित किया जाने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण मेला सम्मक्का सरलम्मा जात्रा (Sammakka Saralamma Jatara) है।

गोट्टी कोया जनजातियों के समक्ष समस्याएँ 

  • सामाजिक सुरक्षा लाभों का अभाव: कई गोटी कोया प्रवासियों को कथित तौर पर उनकी गैर-मूल निवासी स्थिति के कारण राज्य के कल्याणकारी कार्यक्रमों और अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से बाहर रखा गया है।
  • भूमि एवं आजीविका की भेद्यता (Land and Livelihood Vulnerability): तेलंगाना में, राज्य ने कथित तौर पर कम-से-कम 75 गोटी कोया बस्तियों में भूमि का पुनर्ग्रहण किया, जिससे इन विस्थापित व्यक्तियों की आजीविका को खतरा उत्पन्न हो गया। अतिरिक्त रिपोर्टों में आरोप लगाया गया है कि वन विभाग के अधिकारियों ने इन बस्तियों में घरों को ध्वस्त कर दिया एवं फसलों को नष्ट कर दिया।

  • वन अधिकार एवं मान्यता (Forest Rights and Recognition): तेलंगाना सरकार का कहना है कि चूँकि गोट्टी कोया जनजाति छत्तीसगढ़ से आई थी, इसलिए उस जनजाति के व्यक्तियों को तेलंगाना में अनुसूचित जनजाति के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है, जिससे वे राज्य के कानूनों के तहत वन भूमि अधिकारों के लिए अपात्र हो जाते हैं।
    • प्राधिकारियों के साथ संघर्ष (Conflicts with Authorities): इससे स्थानीय प्राधिकारियों के साथ तनाव बढ़ गया है, जिनका तर्क है कि गोट्टी कोया जनजाति के लोग वन भूमि पर अतिक्रमण कर रहे हैं और पारिस्थितिकी संतुलन को बिगाड़ रहे हैं।

सरकार तथा आयोग की कार्रवाइयाँ (Government and Commission Actions)

  • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की भागीदारी (National Commission for Scheduled Tribes Involvement): आयोग ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और संबंधित राज्यों (छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और ओडिशा) से गोट्टी कोया स्थिति पर एक व्यापक रिपोर्ट माँगी है।
    • संभावित नीतिगत हस्तक्षेपों पर चर्चा के लिए 9 दिसंबर को एक बैठक निर्धारित है।
  • पिछली रिपोर्टें और कार्रवाइयाँ: वर्ष 2022 की एक याचिका के जवाब में, आयोग ने पहले तेलंगाना के भद्राद्री कोठागुडेम के जिला मजिस्ट्रेट से कार्रवाई का अनुरोध किया था।
    • मजिस्ट्रेट की वर्ष 2023 की रिपोर्ट ने वन अधिकारियों के विरुद्ध आरोपों को खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि गुट्टी कोया की गतिविधियों से पारिस्थितिकी जोखिम उत्पन्न हुआ है।
  • चल रहे सर्वेक्षण और संसदीय अपडेट (Ongoing Surveys and Parliamentary Updates): भारत सरकार ने संसद को बताया कि पुनर्वास प्रयासों के बावजूद विस्थापित आदिवासी परिवार आम तौर पर छत्तीसगढ़ लौटने को तैयार नहीं हैं। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में विस्थापित परिवारों की पहचान के लिए सर्वेक्षण जारी है, जिसमें छत्तीसगढ़ के सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा जिलों से 10,489 लोगों को वामपंथी उग्रवाद के कारण विस्थापित के रूप में पहचाना गया है।

आगे की राह और नीतिगत सिफारिशें

  • अनुसूचित जनजाति की मान्यता: अधिवक्ताओं का तर्क है कि गुट्टी कोया को तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलना चाहिए, जिससे उनके अधिकारों की रक्षा होगी।
  • पुनर्वास योजना: छत्तीसगढ़ और तेलंगाना सरकार के बीच एक सहयोगात्मक पुनर्वास और पुनर्वास कार्यक्रम एक स्थिर समाधान प्रदान कर सकता है। वन विभाग के दबाव में तेलंगाना सरकार ने अभी तक एक ठोस पुनर्वास योजना की पुष्टि नहीं की है।
  • संघीय हस्तक्षेप: कुछ लोग तेलंगाना में गुट्टी कोया को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए केंद्र सरकार के निर्देश की वकालत करते हैं या नृजातीय संघर्ष से विस्थापित ब्रू-रियांग (Bru-Reang) जनजातियों के लिए त्रिपुरा के वर्ष 2020 पैकेज के समान एक औपचारिक पुनर्वास पैकेज विकसित करने की वकालत करते हैं।

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