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Nov 13 2024

बाकू, अजरबैजान में COP 29

COP29 जलवायु वार्ता 11 नवंबर, 2024 को अजरबैजान के बाकू में शुरू हो गई है।

संबंधित तथ्य

  • डोनाल्ड ट्रंप के पुनः निर्वाचित होने से, जो अमेरिका की कार्बन कटौती प्रतिबद्धताओं को पलटने की योजना बना रहे हैं, जलवायु वार्ता पर प्रश्न चिह्न लग गया है।
  • जलवायु लक्ष्य एवं चेतावनियाँ
    • पेरिस समझौते के लक्ष्य: जलवायु समझौते का उद्देश्य पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में तापमान को 2°C से कम, अधिमानतः 1.5°C रखना है।
    • वर्तमान प्रक्षेपवक्र: वर्तमान कार्यों के आधार पर दुनिया इस शताब्दी में विनाशकारी 3.1°C तापमान वृद्धि की राह पर है।
  • उपस्थिति एवं भागीदारी
    • अनुपस्थिति: निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन एवं कई पारंपरिक नेता भाग नहीं ले रहे हैं।
    • G20 प्रतिनिधित्व: G20 देशों के केवल कुछ नेता, जो लगभग 80% वैश्विक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं, उपस्थित हैं।
    • अफगानिस्तान का प्रतिनिधिमंडल: तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान पहली बार एक प्रतिनिधिमंडल भेज रहा है, जिसे पर्यवेक्षक का दर्जा मिलने की उम्मीद है।

COP29 के बारे में 

  • COP29 जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) के तहत पार्टियों के सम्मेलन (Conference of the Parties- COP) का 29वाँ सत्र है।
  • उद्देश्य
    • यह एक प्रमुख वैश्विक कार्यक्रम है, जहाँ लगभग सभी देशों के प्रतिनिधि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए रणनीतियों पर चर्चा एवं वार्ता करने के लिए मिलते हैं।
  • थीम: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, जलवायु प्रभावों को अपनाने एवं नुकसान तथा क्षति को संबोधित करने पर ध्यान देने के साथ महत्त्वाकांक्षा को बढ़ाना एवं कार्रवाई को सक्षम करना।

COP29 के बारे में मुख्य बिंदु 

  • जलवायु वित्तपोषण बहस
    • फंडिंग लक्ष्य: वार्ताकारों का लक्ष्य विकासशील देशों की मदद के लिए सालाना 100 अरब डॉलर के लक्ष्य को बढ़ाना है।
    • विवाद के बिंदु: विवाद के प्रमुख बिंदुओं में फंडिंग की मात्रा, योगदानकर्ता एवं फंड तक पहुँच शामिल हैं।
  • विकासशील देशों का परिप्रेक्ष्य
    • वित्तीय आवश्यकताएँ: विकासशील देश अधिकतर अनुदान के रूप में खरबों डॉलर की माँग करते हैं, ऋण के रूप में नहीं।
    • दाता पूल का विस्तार: विकसित देश अन्य समृद्ध देशों एवं चीन तथा खाड़ी राज्यों जैसे शीर्ष उत्सर्जकों को शामिल करने के लिए दाता पूल का विस्तार करना चाहते हैं।
      • चीन की स्थिति: चीन मौजूदा समझौतों पर दोबारा वार्ता करने के खिलाफ चेतावनी देता है एवं जलवायु संकट पर सामूहिक, रचनात्मक कार्रवाई का आह्वान करता है।

अजरबैजान के बारे में

  • यह एक अंतरमहाद्वीपीय देश है।
  • राजधानी एवं सबसे बड़ा शहर बाकू है।
  • सीमावर्ती क्षेत्र
    • पूर्व: कैस्पियन सागर।
    • उत्तर: रूस का दागेस्तान गणराज्य।
    • पश्चिम: आर्मेनिया एवं तुर्किये।
    • दक्षिण: ईरान।

अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • सबसे ऊँची चोटी: माउंट बजरदुजु (Mount Bazarduzu)।
  • प्रमुख नदी: कुरा नदी (Kura River) (यह अजरबैजान की सबसे लंबी नदी है)। 
  • अर्थव्यवस्था: यह देश तेल एवं प्राकृतिक गैस भंडार से समृद्ध है।
    • इसकी GDP में इसका प्रमुख योगदान है।
    • प्रमुख कृषि उत्पाद: कपास, तंबाकू एवं खट्टे फल।

अंतरिक्ष अभ्यास – 2024

रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा आयोजित पहला अंतरिक्ष अभ्यास ‘अंतरिक्ष अभ्यास – 2024’ नई दिल्ली में शुरू हुआ।

  • अंतरिक्ष आधारित संपत्तियों एवं सेवाओं से बढ़ते खतरों से निपटने के लिए यह तीन दिवसीय अभ्यास है।
  • CDS जनरल अनिल चौहान के अनुसार, “अंतरिक्ष, जिसे कभी अंतिम सीमा माना जाता था, अब भारत की रक्षा और सुरक्षा व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण प्रवर्तक है तथा भारत अंतरिक्ष आधारित क्षमताओं के समक्ष आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए अच्छी स्थिति में है।”

अंतरिक्ष अभ्यास- 2024 के बारे में

  • उद्देश्य: अंतरिक्ष में भारत के रणनीतिक हितों की रक्षा करना।
  • मुख्य उद्देश्य 
    • अंतरिक्ष आधारित सेवाओं के प्रति संभावित कमजोरियों की पहचान करना।
    • सेवा अस्वीकरण या व्यवधान के परिदृश्यों के लिए तैयारी करना।
  • प्रतिभागी एवं सहयोग
    • भारतीय सेना (थल सेना, नौसेना एवं वायु सेना)
    • विशिष्ट रक्षा एजेंसियाँ ​​जैसे-रक्षा साइबर एजेंसी, रक्षा खुफिया एजेंसी एवं सामरिक बल कमान।
    • ISRO एवं DRDO के प्रतिनिधि भी भाग ले रहे हैं, जो सैन्य तथा नागरिक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी विकास के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण पर जोर दे रहे हैं।
  • महत्त्व
    • अंतर-एजेंसी समन्वय एवं सहयोग बढ़ेगा।
    • अंतरिक्ष आधारित परिसंपत्तियों की सुरक्षा एवं अंतरिक्ष आधारित खतरों से जुड़े परिदृश्यों से निपटने में कार्रवाई योग्य अंतर्दृष्टि विकसित करना।
    • अंतरिक्ष में सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में भारत की स्थिति एवं तैयारियों को मजबूत करना।
    • एक मजबूत राष्ट्रीय रक्षा रणनीति में योगदान करना, जिसमें अंतरिक्ष को एक महत्त्वपूर्ण डोमेन के रूप में शामिल किया गया है।

यूरेशियन ओटर (Eurasian Otter)

महाराष्ट्र के पुणे में दुर्लभ यूरेशियन ओटर (Eurasian Otter) या यूरेशियाई ऊदबिलाव को बचाया गया, जो इस क्षेत्र में पहली बार देखा गया है।

 यूरेशियन ओटर (Eurasian Otter) या यूरेशियाई ऊदबिलाव

  • यूरेशियन ओटर (Lutra lutra) ‘स्मूथ-कोटेड ओटर’ (Lutrogale Perspicillata) एवं छोटे पंजे वाले ओटर (Aonyx Cinereus) के साथ भारत में पाई जाने वाली तीन ओटर प्रजातियों में से एक है।
  • पर्यावास: यह प्रजाति आम तौर पर नदियों, झीलों एवं दलदलों सहित प्रचुर मात्रा में मछलियों के साथ स्वच्छ मीठे जल के वातावरण में पाई जाती है। 
  • विशेषताएँ: यह एकांतवासी एवं रात्रिचर है।
  • वितरण: मुख्य रूप से यूरोप एवं एशिया के कुछ हिस्सों में पाया जाता है, भारत में इसकी उपस्थिति दुर्लभ है, मुख्य रूप से हिमालय की तलहटी, पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों तथा पश्चिमी घाट में वितरित परिदृश्यों तक सीमित है।
  • खतरे: प्रदूषण, अवैध शिकार, आवास हानि, दुर्घटनावश फंसना एवं सड़क पर मृत्यु आदि।

सुरक्षा स्थिति

  • यूरेशियन ओटर: CITES  की परिशिष्ट I में और WPA की अनुसूची II में एवं IUCN की रेड लिस्ट में ‘निकट संकटग्रस्त’ (Near Threatened)।
  • ‘स्मूथ-कोटेड ओटर’: CITES की परिशिष्ट II में और WPA की अनुसूची II में
  • पंजे रहित ओटर: CITES की परिशिष्ट II; WPA की अनुसूची I में।

पारिस्थितिकी भूमिका 

  • निवास स्थान की गड़बड़ी के प्रति संवेदनशील, मछली की आबादी को विनियमित करके पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में आवश्यक भूमिका निभाना।

महत्त्व 

  • उनकी उपस्थिति पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का संकेतक है एवं प्रदूषण तथा गड़बड़ी से मुक्त स्वच्छ जल निकायों की सुरक्षा की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

भारत एवं कैरीकॉम (CARICOM) ने संबंधों को मजबूत किया

भारत एवं कैरीकॉम (CARICOM) ने 6 नवंबर, 2024 को अपनी दूसरी संयुक्त आयोग की बैठक वस्तुतः आयोजित की।

  • फोकस के प्रमुख क्षेत्र
    • आर्थिक सहयोग: दोनों पक्षों ने व्यापार एवं निवेश सहित आर्थिक संबंधों को बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा की।
    • नवीकरणीय ऊर्जा: भारत ने कैरीकॉम (CARICOM) के जलवायु लचीलेपन प्रयासों का समर्थन करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा में अपनी विशेषज्ञता साझा करने का संकल्प दिया।
    • शिक्षा एवं मानव संसाधन विकास: दोनों पक्ष शैक्षिक साझेदारी एवं कार्यक्रमों को मजबूत करने पर सहमत हुए।
    • बुनियादी ढाँचा विकास: भारत ने कैरीकॉम (CARICOM) की बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की।
  • उच्च स्तरीय संलग्नताएँ
    • भारत- कैरीकॉम (CARICOM) विदेश मंत्रिस्तरीय बैठक: वैश्विक चुनौतियों पर सहयोग पर चर्चा के लिए 27 सितंबर, 2024 को न्यूयॉर्क में आयोजित की गई।

कैरीकॉम (CARICOM) के बारे में

  • कैरीकॉम (CARICOM), जो कैरेबियन समुदाय के लिए कार्य करने वाला संगठन है, कैरेबियाई देशों एवं आश्रितों का एक संगठन है, जिसे मूल रूप से वर्ष 1973 में चगुआरामस की संधि ( Treaty of Chaguaramas) द्वारा कैरेबियन समुदाय तथा कॉमन्स मार्केट के रूप में स्थापित किया गया था।
  • कैरीकॉम एक आधिकारिक संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षक लाभार्थी भी है।
  • कैरीकॉम के उद्देश्य: अपने सदस्यों के बीच आर्थिक एकीकरण एवं सहयोग को बढ़ावा देना तथा यह सुनिश्चित करना कि क्षेत्र की विदेश नीति का समन्वय करते हुए एकीकरण के लाभ समान रूप से साझा किए जाएँ।
  • सदस्य: इसमें 15 सदस्य हैं:- एंटीगुआ एवं बारबुडा, बाहमास, बारबाडोस, बेलीज, डोमिनिका, ग्रेनेडा, गुयाना, हैती, जमैका, मोंटसेराट, सेंट किट्स तथा नेविस, सेंट लूसिया, सेंट विंसेंट एवं ग्रेनेडाइंस, सूरीनाम तथा त्रिनिदाद एवं टोबैगो।
    • समुदाय की अध्यक्षता प्रत्येक छह महीने में सदस्य देशों के प्रमुखों के बीच बदलती रहती है।
    • वर्तमान अध्यक्षता एंटीगुआ एवं बारबुडा के पास है।
  • पर्यवेक्षक: एंगुइला, बरमूडा, ब्रिटिश वर्जिन द्वीपसमूह, केमैन द्वीपसमूह और तुर्क और कैकोस द्वीपसमूह को सहयोगी सदस्य का दर्जा प्राप्त है। जबकि इनके अलावा अन्य हैं:- अरूबा, कोलंबिया, डोमिनिकन गणराज्य, मेक्सिको, प्यूर्टो रिको और वेनेजुएला।
  • सचिवालय: जॉर्जटाउन, गुयाना।

कैरीकॉम (CARICOM) भारत के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • सामरिक स्थिति: कैरेबियाई क्षेत्र भारत के लिए रणनीतिक महत्त्व रखता है।
  • साझा मूल्य: भारत एवं कैरीकॉम (CARICOM) दोनों लोकतंत्र तथा विकास के समान मूल्यों को साझा करते हैं।
  • आर्थिक अवसर: यह क्षेत्र व्यापार, निवेश एवं प्रौद्योगिकी सहयोग के अवसर प्रदान करता है।
  • पारस्परिक हित: कैरीकॉम (CARICOM) के साथ संबंधों को मजबूत करके, भारत का लक्ष्य पारस्परिक रूप से लाभप्रद साझेदारी को बढ़ावा देना है, जो वैश्विक स्थिरता एवं विकास में योगदान देता है।

होकरसर आर्द्रभूमि (Hokersar Wetland)

कश्मीर घाटी में वर्षा की कमी होकरसर आर्द्रभूमि (Hokersar wetland) पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है, जिससे प्रवासी पक्षियों की आबादी प्रभावित होती है।

संबंधित तथ्य

  • भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) के अनुसार, कश्मीर में 81 फीसदी वर्षा की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
  • श्रीनगर में कमी: अक्टूबर की शुरुआत एवं मध्य के बीच, श्रीनगर को 36% से 96% वर्षा की कमी का सामना करना पड़ा।

होकरसर आर्द्रभूमि (Hokersar wetland) के बारे में

  • स्थान: होकरसर आर्द्रभूमि कश्मीर घाटी में अवस्थित है।
  • जाना जाता है: ‘क्वीन वेटलैंड ऑफ कश्मीर’ (Queen Wetland of Kashmir)
  • रामसर स्थल: रामसर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो अपने पारिस्थितिक महत्त्व के लिए जाना जाता है।
  • अनूठी विशेषताएँ: इसमें कश्मीर के अंतिम रीडबेड्स (Reedbeds) शामिल हैं, जो विभिन्न पक्षी प्रजातियों के लिए महत्त्वपूर्ण आवास के रूप में कार्य करते हैं।

होकरसर आर्द्र्भूमि का महत्व

  • पक्षी प्रवासन मार्ग: यह आर्द्रभूमि जलपक्षियों की 68 प्रजातियों का आवास स्थल है, जिनमें छोटे जलकाग, सामान्य शेल्डक, बड़े बगुला एवं ग्रेट क्रेस्टेड ग्रीब्स शामिल हैं।
  • प्रवासन स्रोत क्षेत्र: पक्षी साइबेरिया, चीन, मध्य एशिया एवं यूरोप से आर्द्रभूमि में प्रवास करते हैं।
  • प्रजनन एवं आहार भूमि: मछली के लिए भोजन, प्रजनन आवास एवं नर्सरी के महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करता है।

मट्टुपेट्टी बाँध में सीप्लेन उतरा

केरल राज्य सरकार सफल परीक्षण के बाद मट्टुपेट्टी जलाशय में एक सीप्लेन परियोजना को बढ़ावा दे रही है।

संबंधित तथ्य

  • इस परियोजना का उद्देश्य पर्यटन को बढ़ावा देना है, लेकिन स्थानीय वन्य जीवन पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएँ जताई गई हैं।

मट्टुपेट्टी जलाशय के बारे में 

  • स्थान: भारत के केरल के इडुक्की जिले में मुन्नार के पास अवस्थित है।
  • नदी: मुथिरापुझा नदी (Muthirapuzha River)।
  • प्रकार: भंडारण कंक्रीट गुरुत्वाकर्षण बाँध।
    • यह मुथिरापुझा नदी, चंदुवराई एवं कुंडले नदियों का जल संगृहीत करता है। 
  • उद्देश्य: मुख्य रूप से पनबिजली उत्पादन के लिए जल का संरक्षण करने के लिए बनाया गया।

मट्टुपेट्टी का पारिस्थितिक महत्त्व

  • मट्टुपेट्टी जलाशय संवेदनशील वन क्षेत्रों से घिरा हुआ है, जिनमें शामिल हैं:
    • अनामुडी शोला राष्ट्रीय उद्यान (Anamudi Shola National Park) (उत्तर में 3.5 किमी.)।
    • पूर्व में पम्पादुम शोला राष्ट्रीय उद्यान एवं कुरिन्जिमाला अभयारण्य (Pampadum Shola National Park and Kurinjimala Sanctuary), दोनों में पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र हैं।
  • पास का कानन देवन हिल्स रिजर्व फॉरेस्ट (Kanan Devan Hills Reserve Forest) वन्यजीवों के लिए महत्त्वपूर्ण आवास प्रदान करता है, जिसमें जंगली हाथियों जैसी लुप्तप्राय प्रजातियाँ भी शामिल हैं।

वन विभाग द्वारा वन्यजीव संबंधी चिंताओं पर प्रकाश डाला गया

  • जंगली हाथियों की गतिविधियाँ: हाथी अक्सर राष्ट्रीय उद्यानों के बीच जलाशय के जलमग्न क्षेत्रों में घूमते रहते हैं।
  • संभावित व्यवधान: सीप्लेन संचालन से होने वाला ध्वनि प्रदूषण एवं गतिविधियाँ इन जानवरों को परेशान कर सकती है, जिससे संभावित रूप से मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ सकता है।

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संदर्भ 

11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (National Education Day) के रूप में मनाया जाता है।

संबंधित तथ्य

  • उद्देश्य: इस दिवस का उद्देश्य भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती को चिह्नित करना।
  • भारत में यह दिन वर्ष 2008 से प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
  • वर्ष 2024 की थीम: राष्ट्रीय शिक्षा दिवस 2024 की थीम ‘समावेशी, उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा का विषय’ (Topic of Inclusive, High-quality Education) है।
    • यह थीम उत्कृष्ट शिक्षा को बढ़ावा देती है एवं इसका उद्देश्य छात्रों को प्रासंगिक कौशल तथा ज्ञान प्रदान करना है।

मौलाना आजाद के बारे में

  • भूमिकाएँ: आजाद एक प्रमुख पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे।

  • एकता की वकालत: देश के विभाजन से पहले बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के बावजूद, आजाद हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए प्रतिबद्ध रहे।
  • विभाजन का विरोध: आजाद का मानना ​​था कि मुस्लिम लीग की विभाजनकारी बयानबाजी का विरोध करते हुए भारतीय मुसलमान अपनी भारतीय एवं मुस्लिम दोनों पहचानों को अपना सकते हैं।
  • जिन्ना के साथ संघर्ष: आजाद के इस रुख के कारण मुहम्मद अली जिन्ना के साथ उनका टकराव हुआ, जिन्होंने उन्हें कांग्रेस का ‘मुस्लिम शोबॉय’ (Muslim Showboy) करार दिया तथा मुसलमानों के उनके प्रतिनिधित्व पर सवाल उठाया।

भारत की शिक्षा प्रणाली में योगदान

  • संस्थान निर्माण: स्वतंत्रता के बाद वे पहले शिक्षा मंत्री बने। उन्होंने प्रमुख संस्थानों की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जैसे:-
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs): पहला IIT वर्ष 1951 में खड़गपुर में स्थापित किया गया था। 
    • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC): उच्च शिक्षा की देखरेख एवं विनियमन के लिए वर्ष 1953 में स्थापित किया गया। 
    • जामिया मिलिया इस्लामिया: जामिया मिलिया इस्लामिया की सह-स्थापना की एवं इसे नई दिल्ली में स्थानांतरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science- IISc), बंगलूरू।
  • शिक्षा बजट पर फोकस: आजाद ने अपने कार्यकाल के दौरान शैक्षिक व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि (₹1 करोड़ से ₹30 करोड़) की।
  • वयस्क साक्षरता पर जोर: उन्होंने शैक्षिक सुधार के लिए वयस्क साक्षरता को एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में पहचाना।

सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक संगठन: आजाद को कई प्रमुख संस्थानों की स्थापना का श्रेय भी दिया जाता है। 

  • भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (Indian Council for Cultural Relations- ICCR): भारत एवं अन्य देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देती है।
  • साहित्य अकादमी: भारत की विभिन्न भाषाओं में साहित्य को बढ़ावा देती है।
  • ललित कला अकादमी: भारत में ललित कला को बढ़ावा देती है।
  • संगीत नाटक अकादमी: भारत में प्रदर्शन कला को बढ़ावा देती है।
  • वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR): वैज्ञानिक अनुसंधान एवं औद्योगिक विकास को बढ़ावा देता है।

स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारी गतिविधियाँ एवं भूमिका

  • भारतीय क्रांतिकारियों के साथ भागीदारी: भारत लौटने के बाद, वह अरबिंदो घोष एवं श्याम सुंदर चक्रवर्ती जैसे बंगाल के क्रांतिकारियों के साथ जुड़े, जिससे उत्तर भारत तथा बॉम्बे में क्रांतिकारी केंद्र स्थापित करने में मदद मिली।
  • हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रयास: कुछ क्रांतिकारियों के बीच मुस्लिम विरोधी भावनाओं के बावजूद, आजाद ने स्वतंत्रता आंदोलन के भीतर हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया।
  • अल-हिलाल (Al-Hilal) एवं अल-बालाघ (Al-Balagh) जर्नल: वर्ष 1912 में, उन्होंने मुसलमानों के बीच क्रांतिकारी विचारों को फैलाने, हिंदुओं एवं मुसलमानों के बीच एकता को बढ़ावा देने के लिए उर्दू साप्ताहिक अल-हिलाल की शुरुआत की। 
  • अल-हिलाल पर प्रतिबंध लगने के बाद, उन्होंने समान उद्देश्यों के साथ अल-बालाघ की शुरुआत की, जिस पर भी वर्ष 1916 में प्रतिबंध लगा दिया गया था। 
    • बाद में उन्हें राँची निर्वासित कर दिया गया एवं वर्ष 1920 में रिहा कर दिया गया।

खिलाफत एवं असहयोग आंदोलनों में भूमिका

  • खिलाफत आंदोलन: आजाद ने खिलाफत आंदोलन के माध्यम से मुस्लिम समुदाय को एकजुट किया, जिसने तुर्की में खलीफा को बहाल करने की माँग की।
  • असहयोग आंदोलन: उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का भी समर्थन किया एवं वर्ष 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए।
  • कांग्रेस नेतृत्व: वर्ष 1923 में, उन्हें दिल्ली में एक विशेष कांग्रेस सत्र का अध्यक्ष चुना गया एवं वर्ष 1940 में, उन्होंने फिर से नेतृत्व सँभाला तथा वर्ष 1946 तक कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।

भाषा नीति एवं अंग्रेजी की भूमिका

  • प्रारंभिक दौर: आजाद ने शुरू में स्वतंत्रता के बाद के भारत में अंग्रेजी भाषा के प्रभाव को कम करने का समर्थन किया था।
  • संशोधित परिप्रेक्ष्य: संविधान सभा में अपने भाषण (14 सितंबर, 1949) में उन्होंने तर्क दिया कि भारत निम्नलिखित कारणों से तु्रंत अंग्रेजी भाषा को हटा नहीं सकता है:
    • एक राष्ट्रीय भाषा का अभाव: किसी भी एक भाषा को पूरे देश में व्यापक स्वीकृति या उपयोग नहीं मिला।
    • शैक्षिक मानक: अंग्रेजी को न अपनाने से शैक्षिक गुणवत्ता और छात्र क्षमता से समझौता होने का खतरा था।
  • संतुलित दृष्टिकोण: आजाद ने शिक्षा में भाषा नीति के लिए क्रमिक, विचारशील दृष्टिकोण की वकालत करते हुए भावनाओं से अधिक व्यावहारिकता की आवश्यकता पर बल दिया।

मान्यता एवं विरासत

  • मृत्यु एवं मरणोपरांत सम्मान: राष्ट्र के प्रति उनके अमूल्य योगदान को देखते हुए वर्ष 1992 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

संदर्भ

यूरोपीय सेंट्रल बैंक (European Central Bank- ECB) डिजिटल यूरो (Digital Euro) विकसित करने की प्रक्रिया में है। इस परियोजना का ‘तैयारी चरण’ (Preparation Phase) नवंबर 2024 में शुरू हुआ।

संबंधित तथ्य

  • डिजिटल यूरो लोगों को स्मार्टफोन या कंप्यूटर पर डिजिटल वॉलेट से सीधे भुगतान करने की सुविधा देगा, जिससे बैंक या पेमेंट गेटवे की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।
  • भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) डिजिटल रुपये के विकास के लिए अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ सहयोग की संभावना तलाश रहा है।
  • भारत ‘सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी’ (Central Bank Digital Currency- CBDC) के क्रॉस-बॉर्डर पायलट के लिए UAE के साथ अपनी साझेदारी बढ़ाने की भी योजना बना रहा है।

प्रमुख विशेषताएँ और वर्तमान डिजिटल भुगतान विकल्पों से अंतर

  • ECB द्वारा प्रत्यक्ष जारीकरण: बैंक-प्रबंधित प्रणालियों पर निर्भर अन्य डिजिटल भुगतान विधियों के विपरीत, डिजिटल यूरो को सीधे ECB द्वारा जारी और प्रबंधित किया जाएगा, जो नकदी के डिजिटल समकक्ष के रूप में कार्य करेगा।
  • माइक्रोट्रांजैक्शन और लागत-प्रभावशीलता: ECB डिजिटल यूरो को माइक्रोट्रांजैक्शन को संसाधित करने के लिए लागत-तटस्थ विकल्प के रूप में देखता है, जो वर्तमान में पारंपरिक बैंकिंग शुल्क के साथ महंगा है।
    • इससे नए डिजिटल बिजनेस मॉडल संभव हो सकेंगे और बिचौलियों पर निर्भरता कम हो सकेगी।
  • ऑफलाइन और गुमनाम लेनदेन: डिजिटल यूरो को ऑफलाइन भुगतान का समर्थन करने के लिए डिजाइन किया गया है, जो संभवतः भौतिक नकदी के समान गुमनामी का स्तर प्रदान करता है।
    • अंतिम डिवाइस के आधार पर, धनराशि ब्लूटूथ, ब्राउजर एक्सटेंशन या स्मार्टफोन संपर्क के माध्यम से स्थानांतरित की जा सकती है।

डिजिटल मुद्रा जारी करने के मॉडल (Models Of Issuance of Digital Currency)

सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC  या e-Rupee) के बारे में

  • यह डिजिटल रूप में जारी एक वैध मुद्रा है और इसे RBI ने वर्ष 2022 में लॉन्च किया था।
  • मुद्रा का प्रकार: यह फिएट मुद्रा के बराबर है और इसके साथ एक-से-एक विनिमय किया जा सकता है।
    • फिएट करेंसी एक राष्ट्रीय मुद्रा है, जो सोने या चाँदी जैसी वस्तुओं से संबंधित नहीं होती है। 
    • धारकों को वाणिज्यिक बैंकों के माध्यम से डिजिटल रुपये को भौतिक नकदी में बदलने की स्वतंत्रता होती है। 
    • इसका निर्गमन केंद्रीय बैंक की वित्तीय नीतियों के अनुसार होता है।
  • ब्लॉक चेन आधारित: CBDC का लेन-देन ब्लॉकचेन-समर्थित वॉलेट का उपयोग करके किया जाता है।
  • केंद्रीय बैंक द्वारा समर्थित: निजी क्रिप्टोकरेंसी के विपरीत, CBDC स्थिर और भरोसेमंद हैं क्योंकि वे केंद्रीय बैंक द्वारा समर्थित हैं।
  • प्रोग्रामेबल मनी: CBDC में प्रोग्राम योग्य विशेषताएँ हो सकती हैं, जैसे स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट, जो स्वचालित, स्व-निष्पादित वित्तीय समझौतों को सक्षम करते हैं। इसे समाप्त होने के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है, जिससे उपभोक्ताओं को एक विशिष्ट तिथि तक इसका उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
  • श्रेणियाँ: RBI ने डिजिटल रुपये को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया है:-
    • सामान्य प्रयोजन (खुदरा): नियमित उपयोग के लिए जनता के लिए सुलभ।
    • थोक: विशिष्ट कार्यों के लिए और वित्तीय संस्थानों के लिए सुलभ।

सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी का महत्त्व (Significance of Central Bank Digital Currency)

  • प्रत्यक्ष द्विपक्षीय विनिमय: देश SWIFT या अन्य निपटान प्रणालियों की आवश्यकता के बिना द्विपक्षीय रूप से डिजिटल मुद्राओं का सीधे आदान-प्रदान कर सकते हैं।
  • लागत में कमी: CBDC अंतर-बैंक निपटान के बिना वास्तविक समय भुगतान को सक्षम करके मुद्रा प्रबंधन लागत को कम कर सकता है।
  • भारत में नकदी प्रतिस्थापन: भारत के उच्च मुद्रा-से-GDP अनुपात को देखते हुए, CBDC नकदी पर निर्भरता को कम कर सकता है, जिससे कागजी मुद्रा की छपाई, परिवहन और भंडारण से जुड़ी लागत कम हो सकती है।
  • अतिरिक्त लाभ
    • नकदी पर निर्भरता कम हुई।
    • लेन-देन की कम लागत के कारण उच्च प्रभुत्व।
    • लेन-देन के लिए निपटान जोखिम कम हुआ।

सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) बनाम UPI

CBDC

UPI

यह डिजिटल मुद्रा है। यह भुगतान प्रणाली है।
एक स्वीकृत कानूनी निविदा भुगतान का एक तरीका
निजी संस्थाओं, व्यक्तियों या व्यवसायों के बीच प्रत्यक्ष धन का आवागमन, नकदी के समान यह गतिविधि केवल दो बैंक खातों के बीच होती है।
आप अपने मोबाइल वॉलेट में डिजिटल मुद्रा रख सकते हैं। UPI लेनदेन के लिए आपके पास बैंक खाता और बैंक बैलेंस होना आवश्यक है।

CBCD पहलों की तुलना (Comparison of CBDC Initiatives)

देश

उपकरण का प्रकार

लाइव/पायलट

तकनीकी

डिजाइन

CBDC के लिए क्षेत्रीय प्रेरणा

भारत (डिजिटल रुपया) टोकन पायलट

केंद्रीय खाता बही, हाइपरलेजर फैब्रिक पर कार्य करता है और API-आधारित इंटरफेस का उपयोग करता है।

दो-स्तरीय मॉडल: DLT पर जारी करना और खनन, API-आधारित अनुप्रयोग पर उपयोगकर्ता इंटरफेस।

वित्तीय समावेशन और ऑफलाइन भुगतान की सक्षमता
चीन (e-CNY) खाता और टोकन लाइव

हाइब्रिड इकोसिस्टम: विभिन्न DLT फ्रेमवर्क के साथ संगत केंद्रीय लेजर

दो-स्तरीय संरचना: जारी करने और मोचन के लिए केंद्रीय बैंक, संचलन के लिए मध्यस्थ

वित्तीय समावेशन और डिजिटल नकदी की आवश्यकता का समर्थन, अन्य भुगतान प्लेटफॉर्मों के बीच घर्षण में कमी।

नाइजीरिया [ई-नाइरा (e-Naira)] खाता लाइव

कुछ क्रिप्टोकरेंसी के समान DLT तकनीक

केंद्रीय बैंक के साथ मुद्रा मुद्रण और निर्गम, मध्यस्थ वितरण सुनिश्चित करते हैं।

विश्वसनीय, लचीले और नवीन तरीकों से भुगतान में तेजी लाने के लिए परिवारों तथा  व्यवसायों को सक्षम बनाना।

संदर्भ

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization- WMO) ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP29) में जारी अपनी ‘स्टेट ऑफ क्लाइमेट 2024’ रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि अल नीनो (El Nino) के कारण वर्ष 2024 रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म वर्ष होने वाला है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • रिकॉर्ड वैश्विक तापमान (Record Global Temperatures): जनवरी-सितंबर 2024 में वैश्विक औसत सतही वायु तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.54°C अधिक था, जो कि आंशिक रूप से मजबूत अल नीनो घटना के कारण था।
    • 2015-2024 का दशक अब तक का सबसे गर्म दशक बनने की संभावना है।
    • इन उच्च अल्पकालिक तापमानों के बावजूद, दीर्घकालिक औसत पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस सीमा से थोड़ा नीचे रहता है।
  • लगातार अल नीनो प्रभाव: एक मजबूत अल नीनो घटना ने जून 2023 से सितंबर 2024 तक लगातार 16 महीनों तक वैश्विक तापमान को औसत से ऊपर बनाए रखा।
    • विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि इस तरह के तापमान वृद्धि पैटर्न महत्त्वपूर्ण तापमान सीमा को पार करने की संभावना में प्रमुख योगदान देते हैं।
  • महासागरीय तापमान में वृद्धि: महासागरीय तापमान में वृद्धि के रुझान, जो वर्ष 2023 में देखे जाने वाले रुझानों के अनुरूप हैं, यह संकेत देते हैं कि महासागरीय तापमान में वृद्धि से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और भी अधिक गंभीर हो सकते हैं, जिसमें समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन तथा अधिक तीव्र मौसम पैटर्न शामिल हैं।

  • समुद्री बर्फ की हानि
    • अंटार्कटिक समुद्री बर्फ (Antarctic Sea Ice): वार्षिक न्यूनतम समुद्री बर्फ सीमा घटकर 2 मिलियन वर्ग किमी. रह गई, जो वर्ष 1979 में उपग्रह निगरानी शुरू होने के बाद से दूसरी सबसे कम सीमा है। अधिकतम समुद्री बर्फ सीमा भी 17.2 मिलियन वर्ग किमी. पर दूसरी सबसे कम सीमा थी।
    • आर्कटिक समुद्री बर्फ (Arctic Sea Ice): हालाँकि वर्ष 2024 में स्थितियाँ अपेक्षाकृत बेहतर थीं, लेकिन वार्षिक न्यूनतम सीमा 4.3 मिलियन वर्ग किमी. थी और अधिकतम सीमा 15.2 मिलियन वर्ग किमी. थी, जो दीर्घकालिक गिरावट का संकेत है।

अल-नीनो के बारे में

  • अल नीनो, अल नीनो-दक्षिणी दोलन (El Niño Southern Oscillation- ENSO) के सामान्य से अधिक गर्म चरण का प्रतिनिधित्व करता है, जिसके कारण दुनिया भर में तापमान और वर्षा में बदलाव होता है।
  • दक्षिणी दोलन: उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर पर वायुदाब में परिवर्तन को संदर्भित करता है, जो वायु के पैटर्न और महासागर के तापमान को प्रभावित करता है।
  • समुद्र सतह का तापमान (Sea Surface Temperatures- SST): अल नीनो घटना के दौरान, दक्षिण अमेरिका के पास भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में SST दीर्घकालिक औसत से अधिक गर्म हो जाता है।
  • अनियमित घटना (Irregular Occurrence): अल नीनो घटनाएँ एक नियमित चक्र का हिस्सा नहीं हैं, प्रत्येक दो से सात वर्ष में अनियमित रूप से होती हैं और भविष्यवाणी करना चुनौतीपूर्ण होता है।

अल नीनो के वैश्विक और क्षेत्रीय प्रभाव (Global and Regional Impacts of El Niño)

वैश्विक प्रभाव

  • वैश्विक तापमान में वृद्धि: अल नीनो वैश्विक तापमान में वृद्धि में योगदान दे सकता है, जिसके परिणामस्वरूप हीट वेव और अन्य चरम मौसम की घटनाएँ हो सकती हैं।
    • व्यापारिक हवाओं के कमजोर होने या परिवर्तित हो जाने से ठंडे जल का ऊपर उठना कम हो जाता है, जिससे गर्म जल प्रशांत महासागर में पूर्व की ओर बढ़ जाता है।
    • गर्म जल की सतह का यह बढ़ा हुआ क्षेत्र वैश्विक औसत तापमान को और बढ़ा देता है, जिससे प्रशांत महासागर और दुनिया भर में हवा गर्म हो जाती है।
  • मौसम के पैटर्न में व्यवधान: यह वैश्विक मौसम के पैटर्न को बदल सकता है, जिससे कुछ क्षेत्रों में सूखा पड़ सकता है और अन्य में भारी वर्षा और बाढ़ आ सकती है।
  • महासागर का गर्म होना: अल नीनो समुद्र के जल को गर्म कर सकता है, जिससे प्रवाल विरंजन और ‘ओशन हीट वेव’ हो सकती हैं, जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचा सकती हैं।

क्षेत्रीय प्रभाव

  • भारत: कमजोर मानसून की वजह से, गर्मी और सूखे का खतरा बढ़ जाता है, जिससे मानसून के मौसम में वर्षा कम हो जाती है परिणामस्वरूप कृषि और जल की उपलब्धता प्रभावित होती है।
  • दक्षिण अमेरिका (पेरू तट): समुद्री धाराओं और पोषक तत्त्वों के ऊपर उठने के कारण मछलियों की आबादी में कमी आती है। तटीय क्षेत्रों में भारी वर्षा और बाढ़ भी आती है।
  • दक्षिण-पूर्व एशिया: वर्षा कम होती है और कुछ क्षेत्रों, विशेषकर इंडोनेशिया और मलेशिया में बाढ़ के साथ सूखे और वनाग्नि का खतरा बढ़ जाता है।
  • ऑस्ट्रेलिया: सूखे का खतरा बढ़ जाता है, विशेषकर पूर्वी और दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया में, जिससे जंगल में आग लगने की घटनाएँ और भी बढ़ जाती हैं।
  • उत्तरी अमेरिका: कैलिफोर्निया और अन्य पश्चिमी राज्यों में भारी वर्षा और बाढ़ आती है तथा  दक्षिण-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका में हीट वेव बढ़ जाती हैं।

अल नीनो (El Nino) और ला नीना (La Nina) के बीच अंतर

एल नीनो (El Nino)

ला नीना (La Nina)

प्रशांत महासागर में व्यापारिक हवाएँ कमजोर हो जाती हैं। व्यापारिक हवाएँ सामान्य से अधिक तेज हो जाती हैं।
प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में गर्म जल जमा हो जाता है। प्रशांत महासागर के पश्चिमी भाग में ठंडा जल जमा हो जाता है।
पोषक तत्त्वों से भरपूर जल के कम ऊपर उठने से मछलियों की संख्या में कमीहो जाती हैं। पोषक तत्त्वों से भरपूर जल के ऊपर उठने से मछलियों की संख्या में वृद्धि  हो जाती हैं। 
भारतीय मानसून कमजोर होता है और उत्तरी अमेरिका में वर्षा में वृद्धि होती है। भारत में सामान्य से बेहतर मानसून की स्थिति उत्पन्न होती है।
अल-नीनो अधिक बार आता है। ला-नीनो की आवृत्ति कम होती है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization- WMO) के बारे में

  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसके 192 सदस्य देश शामिल हैं।
  • यह मौसम विज्ञान (मौसम एवं जलवायु), परिचालन जल विज्ञान और संबंधित भू-भौतिकीय विज्ञान के लिए संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
  • उत्पत्ति और स्थापना: WMO की उत्पत्ति अंतरराष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से हुई, जिसकी स्थापना वर्ष 1873 में हुई थी। 
    • WMO की स्थापना 23 मार्च, 1950 को WMO कन्वेंशन के अनुसमर्थन के साथ हुई थी।
  • WMO का मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड।

WMO की शासन संरचना

  • विश्व मौसम विज्ञान कांग्रेस: ​​WMO का सर्वोच्च निकाय, जिसमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। यह सामान्य नीति निर्धारित करने और विनियमन अपनाने के लिए कम-से-कम प्रत्येक चार वर्ष में बैठक करता है।
  • कार्यकारी परिषद: 36 सदस्यों वाला निकाय, जो कांग्रेस द्वारा निर्धारित नीतियों को लागू करने के लिए सालाना बैठक करता है।
  • सचिवालय: कांग्रेस द्वारा चार वर्ष के कार्यकाल के लिए नियुक्त महासचिव की अध्यक्षता में। यह संगठन के प्रशासनिक केंद्र के रूप में कार्य करता है।

WMO द्वारा प्रकाशित रिपोर्टें

  • ‘स्टेट ऑफ क्लाइमेट’ रिपोर्ट: ये वार्षिक रिपोर्ट वैश्विक जलवायु का व्यापक अवलोकन प्रदान करती हैं, जिसमें तापमान, वर्षा और चरम मौसम की घटनाएँ शामिल हैं।
  • वैश्विक जलवायु रिपोर्ट: ये रिपोर्ट वैश्विक जलवायु की स्थिति और इसके दीर्घकालिक रुझानों का आकलन प्रदान करती हैं।
  • मौसम, जलवायु और जल चरम से मृत्यु दर और आर्थिक नुकसान का एटलस: यह एटलस मानव जीवन और आर्थिक गतिविधियों पर चरम मौसम की घटनाओं के प्रभाव के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
  • यूनाइटेड इन साइंस रिपोर्ट: ये रिपोर्ट नवीनतम जलवायु विज्ञान और भविष्य के लिए इसके निहितार्थों का वैज्ञानिक मूल्यांकन प्रदान करती हैं।
  • वैश्विक जलवायु अवलोकन प्रणाली (Global Climate Observing System- GCOS) रिपोर्ट: ये रिपोर्ट वैश्विक जलवायु अवलोकन प्रणाली और इसके डेटा उत्पादों की स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं।

संदर्भ

‘साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट’ में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि पटना, भारत और कराची एवं पेशावर, पाकिस्तान से लिए गए हल्दी के नमूनों में सीसा (लेड) का स्तर 1,000 μg/g से अधिक था, जो कि भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा निर्धारित 10 μg/g नियामक सीमा से कहीं अधिक था।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • अध्ययन का विस्तार: दिसंबर 2020 और मार्च 2021 के बीच भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल के 23 शहरों से हल्दी के नमूने एकत्र किए गए।
    • गुवाहाटी और चेन्नई में भी लेड का स्तर सुरक्षित सीमा से अधिक पाया गया।
  • संदूषण का स्रोत: लेड क्रोमेट (Lead Chromate) को संभावित स्रोत के रूप में पहचाना गया है, जो पेंट एवं अन्य औद्योगिक उत्पादों में उपयोग किया जाने वाला एक पीला रंगद्रव्य है, जिसे अक्सर हल्दी का रंग निखारने के लिए मिलाया जाता है।
  • मिलावट का पैटर्न: पॉलिश की गई हल्दी की जड़ों में सबसे अधिक मिलावट देखी गई, उसके बाद खुले पाउडर का स्थान रहा है। पैकेज्ड पाउडर और बिना पॉलिश की गई जड़ों में मिलावट का स्तर कम था।
    • ब्रांडेड, पैकेज्ड मसालों की तुलना में अनियमित, खुले मसालों में मिलावट अधिक होती थी।
  • FSSAI के नियम: FSSAI के अनुसार, हल्दी में लेड क्रोमेट और कोई भी अन्य रंग नहीं होना चाहिए।
  • पिछले निष्कर्ष और आपूर्ति शृंखला के मुद्दे: शोधकर्ताओं ने पहले पाया था कि हल्दी की बनावट को बेहतर बनाने के लिए बांग्लादेश में लेड क्रोमेट का व्यापक उपयोग किया जाता है, जो 1980 के दशक से चल रहा है।
    • संदूषण के स्रोतों की पहचान करने और मिलावट के लिए प्रोत्साहन को समझने के लिए हल्दी आपूर्ति शृंखला में आगे की जाँच की सिफारिश की जाती है।

सीसा (लेड) और सीसा प्रदूषण (Lead and Lead Pollution) के बारे में

  • सीसा एक नीली-सफेद चमकदार मुलायम धातु है, जो प्राकृतिक रूप से पृथ्वी की पपड़ी में पाया जाता है। यह आमतौर पर जस्ता, चाँदी और ताँबे के साथ अयस्क में पाया जाता है।
  • बैटरी (ऑटोमोबाइल और इनवर्टर), गोला-बारूद, धातु उत्पादों (पाइप) आदि के उत्पादन में उपयोग किया जाता है।
  • वर्तमान लेड उपयोग: खनन या पुनर्चक्रित लेड का 85% से अधिक उपयोग लेड-एसिड बैटरी में किया जाता है।
    • वर्ष 2000 तक गैसोलीन, पेंट और प्लंबिंग में सीसे के उपयोग को समाप्त करने के बावजूद, लेड-एसिड बैटरी की सामर्थ्य के कारण सीसे की माँग में वृद्धि हुई है।

लेड प्रदूषण के स्रोत

प्राथमिक स्रोत

  • लेड आधारित पेंट: सीसे के संपर्क का एक प्रमुख स्रोत, विशेष रूप से पुराने घरों में।
  • औद्योगिक उत्सर्जन: लेड अयस्कों को गलाने, बैटरी निर्माण और अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं से हवा और जल में लेड निकलता है।
  • लेड युक्त गैसोलीन: हालाँकि बड़े पैमाने पर चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया गया है, पुराने गैसोलीन से अवशिष्ट लेड अभी भी मिट्टी और पानी को दूषित कर सकता है।
  • व्यावसायिक जोखिम: खनन, गलाने और बैटरी निर्माण जैसे उद्योगों में कार्य करने वाले कर्मचारी जोखिम में हैं।

द्वितीयक स्रोत

  • मृदा संदूषण: विभिन्न स्रोतों से लेड मिट्टी में जमा हो जाता है, विशेषकर शहरी क्षेत्रों और औद्योगिक स्थलों के पास।
  • पीने का पानी: लेड पाइप, फिक्स्चर (Fixtures) और सोल्डर से रिस सकता है, जिससे पीने का पानी दूषित हो सकता है।
  • उपभोक्ता उत्पाद: कुछ पारंपरिक उपचार, सौंदर्य प्रसाधन और आयातित उत्पादों में लेड हो सकता है।
  • खाद्य संदूषण: लेड मिट्टी, पानी या मिलावट के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले योजकों के माध्यम से भोजन को दूषित कर सकता है।
  • धूल और मिट्टी का अंतर्ग्रहण: बच्चे अक्सर सीसा-दूषित धूल और मिट्टी को निगल लेते हैं, विशेषकर पुराने घरों या प्रदूषित क्षेत्रों में।

एक्सपोजर पाथवे

  • साँस लेना: लेड से दूषित हवा या धूल में साँस लेना।
  • निगलना: लेड से दूषित भोजन या पानी का सेवन करना या लेड से दूषित धूल या मिट्टी को निगलना।
  • त्वचीय अवशोषण: लेड युक्त पदार्थों के साथ त्वचा का सीधा संपर्क।

लेड प्रदूषण का प्रभाव

  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: लेड से हृदय रोग, गुर्दे की विफलता और असमय मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
    • ‘लैंसेट पब्लिक हेल्थ’ के अनुसार, लेड के संपर्क में आने से प्रतिवर्ष हृदय संबंधी बीमारियों से 5.5 मिलियन वयस्कों की असामयिक मृत्यु होती है।
  • प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव: एक बार लेड रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाता है, तो यह सीधे मस्तिष्क में चला जाता है, विशेषकर बच्चों में। 
  • जोखिम में बच्चे: अनुमान है कि दुनिया भर में 815 मिलियन बच्चों के रक्त में लेड का स्तर 50 µg/L से अधिक है, जबकि 413 मिलियन बच्चों के रक्त में लेड का स्तर 100 µg/L से अधिक है।
    • WHO के अनुसार, रक्त में लेड का स्तर 3.5 µg/dL जितना कम होने पर भी बुद्धि में कमी, व्यवहार संबंधी समस्याएँ और सीखने संबंधी अक्षमता हो सकती है।
    • अनुमान है कि इसके कारण हर वर्ष दुनिया भर में बच्चों में 765 मिलियन IQ पॉइंट की कमी होती है।
  • शरीर में संचय: लेड, हड्डियों में जमा हो जाता है, चयापचय प्रक्रियाओं को बाधित करता है, बुद्धि को कम करता है, और हृदय रोग, गुर्दे की विफलता और समय से पहले मृत्यु के जोखिम को बढ़ाता है।
  • आर्थिक लागत बनाम लाभ: लेड से संबंधित समय से पहले मृत्यु और संज्ञानात्मक हानि की आर्थिक लागत $6 ट्रिलियन आँकी गई है।
    • वैश्विक अर्थव्यवस्था में लेड का योगदान $100 बिलियन से भी कम है, मुख्य रूप से $50 बिलियन के लेड-एसिड बैटरी उद्योग के माध्यम से।
    • वर्ष 2020 में लेड खनन से सकल वार्षिक राजस्व लगभग $7.3 बिलियन था।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: लेड संदूषण मृदा सूक्ष्मजीवों को प्रभावित करता है और कीटों, पक्षियों और जानवरों के लिए विषाक्त होता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होता है।
    • पौधों के लिए विषैला: मिट्टी में लेड की मात्रा 0 ppm (पार्ट्स पर मिलियन) से बढ़कर 1000 ppm हो जाने से गेहूँ के बीजों की अंकुरण दर 98% से घटकर 50% हो गई और बायोमास में 44% की कमी आई। 
    • पक्षियों पर प्रभाव: उनमें एनीमिया और मस्तिष्क क्षति विकसित हो जाती है और उन्हें उड़ने, उतरने और चलने में कठिनाई हो सकती है, तथा मृत्यु दर में वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है।

लेड जोखिम को कम करने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई

  • अंतरराष्ट्रीय संधि: शोधकर्ता लेड खनन और लेड युक्त उत्पादों को खत्म करने के लिए एक वैश्विक संधि की वकालत करते हैं, हालाँकि ऐसे समझौतों में वर्षों लग सकते हैं।
  • तत्काल उपाय: लेड उत्पादों पर प्रगतिशील कर लागू करें और सुरक्षित विकल्पों के लिए सब्सिडी प्रदान करना।
    • विकल्पों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 2035 तक चरणबद्ध समाप्ति की तिथि निर्धारित करना।
  • विरासत में मिले लेड से संबंधित चिंताएँ: पिछले उपयोगों से लेड का संदूषण बना रहेगा, लेकिन नए लेड के उपयोग में कमी आने से जोखिम धीरे-धीरे कम हो जाएगा।
    • उदाहरण: अमेरिका में 40 वर्षों से अधिक समय तक गैसोलीन में लेड की मात्रा को समाप्त करने के बाद पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों के रक्त में सीसे के स्तर में 94% की गिरावट देखी गई।

सीसा विषाक्तता को नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार के कदम

  • लेड बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016: लेड-एसिड बैटरियों के पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन को अनिवार्य बनाता है।
    • निर्माताओं, आयातकों और डीलरों को प्रयुक्त बैटरियों को एकत्र करने तथा उनका पुनर्चक्रण करने की आवश्यकता होती है। लेड उत्सर्जन और अपशिष्ट को कम करने के लिए पुनर्चक्रण सुविधाओं के लिए मानक निर्धारित करता है।
  • गैर-अनुपालन वाली लेड एसिड बैटरियों पर आयात प्रतिबंध: ऐसी लेड-एसिड बैटरियों के आयात पर प्रतिबंध लगाता है, जो विशिष्ट गुणवत्ता और पर्यावरण मानकों को पूरा नहीं करती हैं।
    • इसका उद्देश्य कम गुणवत्ता वाली बैटरियों के प्रवाह को कम करना है, जो लेड प्रदूषण में योगदान दे सकती हैं।
  • लेड पेंट को खत्म करने के लिए वैश्विक गठबंधन: लेड पेंट के उत्पादन और उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय पहल।
    • भारत इस गठबंधन का एक हस्ताक्षरकर्ता है और पेंट से लेड के जोखिम को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है।

संदर्भ 

नवंबर 2024 के पहले सप्ताह में तेलिनेलापुरम पक्षी अभयारण्य (Telineelapuram Bird Sanctuary) में साइबेरिया से पेलिकन (Pelicans) का आना शुरू हो गया और ये पक्षी अगले वर्ष मार्च 2025 के अंत तक यहाँ रहेंगे।

पेलिकन (Pelicans) के बारे में 

  • आवास स्थान: मुख्य रूप से तटीय क्षेत्रों, झीलों और आर्द्रभूमि को आवास के रूप में उपयोग करते हैं।
  • भारत में पेलिकन की आबादी आवास स्थान के नुकसान, प्रदूषण और मानवीय व्यवधान के कारण कम हो गई है।

स्पॉट-बिल्ड पेलिकन (ग्रे पेलिकन) [Spot-billed Pelican (Grey Pelican)]

  • आवास: झीलों, जलाशयों और नदियों जैसे उथले निचले मीठे जल के निकाय।
  • आहार: मुख्य रूप से मछली, क्रस्टेशियन और उभयचर।
  • व्यवहार: ये सामाजिक पक्षी के रूप में व्यवहार करते हैं और अक्सर बड़े झुंड में देखे जाते हैं।
  • जीवन चक्र: मानसून के मौसम में प्रजनन करते हैं, बड़े सामुदायिक घोंसलों में अंडे देते हैं।
  • संरक्षण स्थिति
    • IUCN की रेड लिस्ट में: निकट संकटग्रस्त (Near Threatened)
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची IV (Schedule IV)

प्रवास करके भारत आने वाले पेलिकन के प्रकार 

  • स्पॉट-बिल्ड पेलिकन (Spot-billed Pelican): यह प्रजाति भारत में आम तौर पर देखी जाती है, इन्हें अक्सर तेलिनेलापुरम पक्षी अभयारण्य, आंध्र प्रदेश और कोलेरू झील, आंध्र प्रदेश में देखा जाता है।
  • ग्रेट व्हाइट पेलिकन (Great White Pelican): ये प्रजाति राजस्थान के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (Keoladeo National Park) में देखी जाती है; यह एक बड़ा सफेद पेलिकन है, जो कभी-कभी प्रवास करता है।
  • डेलमेटियन पेलिकन (Dalmatian Pelican): कभी-कभी ओडिशा के चिल्का झील में देखा जाता है; यह एक बड़ा पेलिकन है, जिसके पंखों पर काले रंग के विशिष्ट धब्बे होते हैं।

फ्लाईवे (Flyway) के बारे में

  • फ्लाईवे एक भौगोलिक क्षेत्र है, जिसके भीतर एक या एक से अधिक प्रवासी प्रजातियाँ अपना वार्षिक चक्र पूरा करती हैं, यानी प्रजनन, मोल्टिंग, स्टेजिंग और गैर-प्रजनन।
  • 3 फ्लाईवे [मध्य एशियाई फ्लाईवे (Central Asian Flyway- CAF), पूर्वी एशियाई ऑस्ट्रेलियन फ्लाईवे (East Asian Australasian Flyway- EAAF) और एशियाई पूर्वी अफ्रीकी फ्लाईवे (Asian East African Flyway- AEAF)] से प्रवासी पक्षी भारत आते हैं।
    • मध्य एशियाई फ्लाईवे (Central Asian Flyway- CAF): यह मार्ग रूसी संघ (साइबेरिया) के सबसे उत्तरी प्रजनन क्षेत्र से लेकर पश्चिम एवं दक्षिण एशिया, मालदीव और ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र के सबसे दक्षिणी गैर-प्रजनन (शीतकालीन) क्षेत्रों तक फैला हुआ है।

प्रवासी प्रजातियों पर कन्वेंशन (CMS) या बॉन कन्वेंशन (Bonn Convention)

  • उद्देश्य: प्रवासी प्रजातियों और उनके आवासों के संरक्षण के उद्देश्य से वर्ष 1979 में हस्ताक्षरित एक अंतरराष्ट्रीय संधि जो वर्ष 1983 से लागू है।
  • सदस्य देश: वर्ष 2024 तक, 131 देश कन्वेंशन के पक्षकार हैं।
    • भारत भी वर्ष 1983 से CMS का एक पक्षकार रहा है।
  • भारत ने वर्ष 2020 में 13वें पक्षकारों के सम्मेलन (COP13) सहित कई CMS बैठकों की मेजबानी की है।
  • भारत ने साइबेरियन क्रेन, समुद्री कछुए, डुगोंग और रैप्टर जैसी विशिष्ट प्रजातियों के संरक्षण के लिए CMS के साथ कई समझौता ज्ञापनों (MoU) पर भी हस्ताक्षर किए हैं।

बर्डलाइफ इंटरनेशनल (BirdLife International) के बारे में

  • संरक्षण संगठनों (NGOs) की वैश्विक साझेदारी जो पक्षियों, उनके आवासों और वैश्विक जैव विविधता को संरक्षित करने का प्रयास करती है, प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में स्थिरता की दिशा में लोगों के साथ कार्य करती है।
  • इसे वर्ष 1922 में अंतरराष्ट्रीय पक्षी संरक्षण परिषद (International Council for Bird Protection) के रूप में स्थापित किया गया था।
  • प्रकाशन
    • ‘वर्ल्ड बर्डवॉच’ (World Birdwatch)।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के लिए पक्षियों के लिए आधिकारिक रेड लिस्ट प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है।
  • महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्रों (Important Bird Areas- IBA) की सूची भी प्रकाशित करता है।

IBA के पदनाम के लिए मानकीकृत मानदंड

  • वैश्विक रूप से संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों की महत्त्वपूर्ण संख्या: IBA में वैश्विक रूप से संकटग्रस्त के रूप में वर्गीकृत एक या अधिक पक्षी प्रजातियों की पर्याप्त आबादी होनी चाहिए।
  • प्रतिबंधित-सीमा या बायोम-प्रतिबंधित प्रजातियों की उपस्थिति: पदनाम उन साइटों पर विचार करता है, जो प्रतिबंधित-सीमा या बायोम-प्रतिबंधित प्रजातियों की एक शृंखला का सामूहिक रूप से समर्थन करने वाले स्थानों के संग्रह का हिस्सा हैं।
  • प्रवासी या समूह पक्षियों की असाधारण रूप से बड़ी संख्या होना।

तेलिनेलापुरम पक्षी अभयारण्य (Telineelapuram Bird Sanctuary)

  • तेलिनेलापुरम एक नामित महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र (IBA) है और सर्दियों में प्रजनन के लिए स्पॉट-बिल्ड पेलिकन के लिए यह प्रमुख स्थान है।
  • स्थान: श्रीकाकुलम (Srikakulam) जिला, आंध्र प्रदेश, भारत।
  • वन्यजीव: मुख्य रूप से प्रवासी पक्षियों, विशेष रूप से स्पॉट-बिल्ड पेलिकन के लिए जाना जाता है, जो सर्दियों में प्रजनन के लिए यहाँ आते हैं। अन्य पक्षी प्रजातियों में पेंटेड स्टॉर्क, ओपन-बिल्ड स्टॉर्क और विभिन्न जल पक्षी शामिल हैं।
  • जल निकाय: यह अभयारण्य तट के पास अवस्थित है, जहाँ खारे जल निकायों और बंगाल की खाड़ी तक पहुँच है।
  • वनस्पति: इस अभयारण्य में मैंग्रोव वन, तटीय आर्द्रभूमि और कृषि भूमि का मिश्रण है।

संदर्भ 

खाद्य एवं कृषि स्थिति 2024 (State of Food and Agriculture 2024) रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में कृषि-खाद्य प्रणालियों की छिपी लागत काफी अधिक है, जो मुख्य रूप से अस्वास्थ्यकर आहार पैटर्न के कारण है।

कृषि खाद्य प्रणालियाँ (Agrifood Systems) क्या हैं?

  • इस प्रणाली में वे सभी गतिविधियाँ और अभिकर्ता शामिल हैं, जो खेतों से उपभोक्ताओं तक भोजन पहुँचाने में भाग लेते हैं।
  • इसमें कृषि उत्पादन, प्रसंस्करण, वितरण, उपभोग और अपशिष्ट प्रबंधन जैसी विभिन्न प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
  • महत्त्व: यह इस बात पर जोर देता है कि भोजन उपभोक्ताओं तक कैसे पहुँचता है, यह निर्धारित करने में आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कारक का क्या प्रभाव पड़ता है।

संबंधित तथ्य

  • कुल लागत: भारत में कृषि खाद्य प्रणालियों की छिपी हुई लागत सालाना लगभग 1.3 ट्रिलियन डॉलर है।
  • मुख्य कारक: अस्वास्थ्यकर आहार पैटर्न और गैर-संचारी रोगों (Non-Communicable Diseases- NCDs) से जुड़े जोखिम इसके मुख्य कारक हैं।

खाद्य एवं कृषि स्थिति 2024 रिपोर्ट [State of Food and Agriculture (SOFA) 2024 Report] के बारे में

  • प्रकाशितकर्ता: खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO)
  • SOFA रिपोर्ट का उद्देश्य
    • व्यापक विश्लेषण: कृषि और खाद्य क्षेत्रों में प्रमुख प्रवृत्तियों, चुनौतियों और अवसरों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
    • नीति मार्गदर्शन: सरकारों और हितधारकों को सतत् विकास के लिए नीतियाँ बनाने में मदद करने हेतु साक्ष्य-आधारित अनुशंसाएँ प्रदान करता है।
    • खाद्य सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित: वैश्विक खाद्य सुरक्षा, पोषण और कृषि उत्पादकता को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण मुद्दों की जाँच करता है।
  • मुख्य विषय
    • पर्यावरणीय प्रभाव: खाद्य उत्पादन की पर्यावरणीय लागतों, जैसे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, भूमि उपयोग और जैव विविधता हानि पर नजर रखता है।
    • आर्थिक और सामाजिक लागत: स्वास्थ्य प्रभावों, कृषि खाद्य श्रमिकों के बीच गरीबी और खाद्य प्रणालियों के भीतर असमानता सहित छिपी हुई आर्थिक तथा सामाजिक लागतों का मूल्यांकन करता है।
    • स्वास्थ्य और पोषण: आहार संबंधी जोखिमों और स्वास्थ्य चुनौतियों पर प्रकाश डालता है, विशेष रूप से खराब आहार पैटर्न के कारण गैर-संचारी रोगों के बढ़ते प्रचलन पर।

कृषि खाद्य प्रणाली में छिपी लागतें (Hidden Costs in Agrifood System) क्या हैं?

  • कृषि खाद्य प्रणालियों में छिपी लागतें उन खर्चों को संदर्भित करती हैं, जो तुरंत स्पष्ट नहीं होते हैं लेकिन खाद्य उत्पादन और कृषि के विभिन्न पहलुओं से उत्पन्न होते हैं। 
  • ये लागतें पर्यावरण, स्वास्थ्य और समाज को प्रभावित करती हैं। 
  • पर्यावरणीय प्रभाव: खाद्य उत्पादन से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, प्रदूषण और जैव विविधता की हानि हो सकती है, जिनमें से सभी की पर्यावरणीय लागत छिपी हुई है।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: कुछ खाद्य उत्पादन प्रथाओं से उत्पन्न अस्वास्थ्यकर आहार पैटर्न, खराब पोषण से संबंधित बीमारियों के कारण स्वास्थ्य देखभाल व्यय को बढ़ा देते हैं।
  • सामाजिक और आर्थिक लागत: कृषि खाद्य श्रमिकों के लिए कम वेतन और सीमित अवसर गरीबी में योगदान करते हैं, जो बदले में समग्र उत्पादकता और आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करता है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • छिपी लागतों में मुख्य योगदानकर्ता
    • अस्वास्थ्यकर आहार: प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों और योजकों के अधिक सेवन के साथ-साथ सम्पूर्ण वनस्पति खाद्य पदार्थों और स्वास्थ्यवर्धक वसा अम्लों के कम सेवन के कारण भारत की कृषि-खाद्य संबंधी छिपी लागतों में 73% का योगदान है।
    • गैर-संचारी रोग (NCDs): ये आहार पैटर्न हृदय रोग, स्ट्रोक और मधुमेह से जुड़े हैं, जो पर्याप्त छिपी लागतों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों और कम पौधे आधारित आहार का प्रभाव
    • प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ: रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के अत्यधिक सेवन से छुपी लागत $128 बिलियन है।
    • कम पौधे और पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ: साबुत अनाज, फलों और स्वस्थ वसा का अपर्याप्त सेवन छुपी लागत में $846 बिलियन जोड़ता है।
  • अतिरिक्त सामाजिक और पर्यावरणीय लागत
    • सामाजिक लागत: कृषि खाद्य श्रमिकों के बीच कम उत्पादकता और मजदूरी, प्रणालीगत वितरण चुनौतियों से प्रेरित, छिपी हुई लागतों में योगदान करती है।
    • पर्यावरणीय प्रभाव: खाद्य आपूर्ति शृंखला से उत्सर्जन, जिसमें GHG उत्सर्जन, नाइट्रोजन लीचिंग और अपवाह (Nitrogen Leaching and Runoff) शामिल हैं, पर्यावरणीय छिपी हुई लागतों को बढ़ाते हैं।
  • छिपी हुई लागतों का वैश्विक संदर्भ
    • चीन ($1.8 ट्रिलियन) और संयुक्त राज्य अमेरिका ($1.4 ट्रिलियन) के बाद भारत दुनिया भर में तीसरी सबसे बड़ी छिपी हुई कृषि खाद्य लागत वाला देश है।
    • वैश्विक स्तर पर, कृषि खाद्य प्रणालियों की छिपी हुई लागत सालाना $12 ट्रिलियन आँकी गई है, जिसमें अकेले अस्वास्थ्यकर आहार पैटर्न $8.1 ट्रिलियन के बराबर है।

सतत् कृषि खाद्य प्रणालियों के लिए सिफारिशें

  • स्वस्थ आहार को बढ़ावा देना: ऐसी नीतियों की वकालत करना, जो स्वास्थ्य संबंधी लागतों को कम करने के लिए पौष्टिक भोजन को अधिक सुलभ और किफायती बनाती हैं।
  • पर्यावरण संरक्षण: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, नाइट्रोजन प्रदूषण को कम करने और जैव विविधता को बढ़ावा देने वाली प्रथाओं को प्रोत्साहित करना।
  • उपभोक्ताओं को सशक्त बनाना: खाद्य विकल्पों के सामाजिक, पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में जानकारी के साथ उपभोक्ताओं को सशक्त बनाने की सिफारिश करना।

संदर्भ

अगस्त 2024 में, तमिलनाडु सरकार ने पुरानी हो रही पवन टर्बाइनों की समस्या से निपटने के लिए ‘पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए तमिलनाडु पुनर्शक्तीकरण, नवीनीकरण और जीवन विस्तार नीति – 2024’  (Tamil Nadu Repowering, Refurbishment and Life Extension Policy for Wind Power Projects – 2024) पेश की।

संबंधित तथ्य

  • इस नीति को पवन ऊर्जा उत्पादकों की ओर से विरोध का सामना करना पड़ा है, उनका तर्क है कि यह पवन ऊर्जा उत्पादन को पर्याप्त रूप से बढ़ावा नहीं देती है।
  • पवन ऊर्जा उत्पादकों ने इस मामले को मद्रास उच्च न्यायालय में ले जाया, जिसने नीति पर रोक लगा दी है।
  • उत्पादक ऐसी नीति संशोधन की माँग कर रहे हैं, जो पवन ऊर्जा के विकास और व्यवहार्यता का बेहतर समर्थन करें।
  • इस वर्ष की शुरुआत में, गुजरात ने स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता में तमिलनाडु को पीछे छोड़ दिया, जिससे तमिलनाडु कई वर्षों तक शीर्ष स्थान पर रहने के बाद दूसरे स्थान पर आ गया।

पवन ऊर्जा (Wind Energy) के बारे में 

  • पवन ऊर्जा एक अक्षय ऊर्जा स्रोत है, जो विद्युत उत्पन्न करने के लिए पवन ऊर्जा का उपयोग करता है।
  • यह हमारी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने का एक स्वच्छ और सतत् तरीका है।

पवन ऊर्जा संयंत्रों के प्रकार

  • ‘हॉरिजॉन्टल एक्सिस विंड टर्बाइन’ (Horizontal Axis Wind Turbines- HAWTs): ये सबसे आम प्रकार हैं, जिनमें ब्लेड क्षैतिज अक्ष के चारों ओर घूमते हैं। वे अत्यधिक कुशल हैं और बड़ी मात्रा में विद्युत उत्पन्न कर सकते हैं।
  • ‘वर्टिकल एक्सिस विंड टर्बाइन’ (Vertical Axis Wind Turbines- VAWTs): इन टर्बाइनों में ब्लेड होते हैं, जो एक ऊर्ध्वाधर अक्ष के चारों ओर घूमते हैं। वे किसी भी दिशा से हवा को पकड़ सकते हैं और अक्सर शहरी क्षेत्रों में उपयोग किए जाते हैं।

  • अपतटीय पवन फार्म (Offshore Wind Farms): ये पवन फार्म जल निकायों, जैसे महासागरों और बड़ी झीलों में स्थित हैं। वे मजबूत और अधिक सुसंगत हवाओं के कारण तटवर्ती पवन फार्मों की तुलना में अधिक विद्युत उत्पन्न कर सकते हैं।
  • तटवर्ती पवन फार्म (Onshore Wind Farms): ये पवन फार्म भूमि पर स्थित हैं, अक्सर उच्च हवा की गति वाले ग्रामीण क्षेत्रों में। यह तकनीक दुनिया भर में व्यापक रूप से उपयोग की जाती हैं।

भारत की पवन ऊर्जा क्षमता

  • वैश्विक रैंकिंग: भारत स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता के मामले में चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी के बाद चौथे स्थान पर है।
    • भारत की कुल स्थापित उपयोगिता विद्युत उत्पादन क्षमता में पवन ऊर्जा का योगदान लगभग 10% है और वित्तीय वर्ष 2022-23 में इसने 71.814 TWh का उत्पादन किया, जो कुल विद्युत उत्पादन का लगभग 4.43% है।
  • पवन ऊर्जा क्षमता: भारत में जमीन से 150 मीटर की ऊँचाई पर 1,163.86 GW की पवन ऊर्जा क्षमता है।
  • पवन ऊर्जा क्षमता के आधार पर शीर्ष राज्य (150 मीटर पर)
    • राजस्थान: 284.25 गीगावाट
    • गुजरात: 180.79 गीगावाट
    • महाराष्ट्र: 173.86 गीगावाट
    • कर्नाटक: 169.25 गीगावाट
    • आंध्र प्रदेश: 123.33 गीगावाट
  • उच्चतम स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता (मई 2024 तक)
    • गुजरात: 11,823 मेगावाट
    • तमिलनाडु (दूसरा सबसे अधिक)
    • कर्नाटक: 6,312 मेगावाट

ग्लोबल ऑफशोर विंड अलायंस (GOWA)

  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य अपतटीय पवन उद्योग के विकास में तेजी लाना।
    • अपतटीय पवन उद्योग के लिए एक केंद्रीकृत मंच प्रदान करना, जो वैश्विक घटनाओं एवं विकास का व्यापक अवलोकन प्रदान करता हो।
  • लक्ष्य: वर्ष 2030 तक कम-से-कम 380 गीगावाट अपतटीय पवन क्षमता की स्थापना में योगदान देना।
  • दीर्घकालिक लक्ष्य: अपतटीय पवन उद्योग को वर्ष 2050 तक 2000 गीगावाट से अधिक की क्षमता तक पहुँचने में मदद करके वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण का समर्थन करना।

राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति- 2015 (National Offshore Wind Energy Policy- 2015)

  • उद्देश्य: भारत में अपतटीय पवन क्षेत्र के विकास के लिए एक कानूनी ढाँचा प्रदान करना।
  • विकास का दायरा: नीति भारत के आधार रेखा से 200 समुद्री मील तक अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं की अनुमति देती है, जो देश के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) को कवर करती है।
  • नोडल मंत्रालय और एजेंसी: केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) प्राथमिक मंत्रालय के रूप में कार्य करता है, जबकि राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (National Institute of Wind Energy- NIWE) को अपतटीय पवन ऊर्जा विकास के लिए प्रमुख एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।
  • दीर्घकालिक क्षमता लक्ष्य: नीति वर्ष 2030 तक 30 गीगावाट अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता तक पहुँचने का लक्ष्य निर्धारित करती है, जो भारत की नवीकरणीय ऊर्जा महत्त्वाकांक्षाओं का समर्थन करती है।
  • नवीकरणीय खरीद दायित्व (Renewable Purchase Obligation-RPO) के लिए रोड मैप: पवन नवीकरणीय खरीद दायित्व (RPO) के लिए एक रोडमैप घोषित किया गया है, जिसमें अपतटीय पवन ऊर्जा अपनाने को बढ़ाने के लिए वर्ष 2030 तक लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं।

वैश्विक पवन ऊर्जा परिषद (Global Wind Energy Council- GWEC) 

  • GWEC पवन ऊर्जा उद्योग के लिए एक वैश्विक मंच है, जो अनुसंधान, बाजार संबंधी जानकारी और नीतिगत सिफारिशें प्रदान करता है, जिसका मुख्यालय ब्रुसेल्स, बेल्जियम में है।
  • मिशन: पवन ऊर्जा के विकास और उपयोग को एक स्थायी तथा लागत प्रभावी ऊर्जा स्रोत के रूप में बढ़ावा देना।
  • सदस्यता: 80 से अधिक देशों की 1,500 से अधिक कंपनियों और संगठनों का प्रतिनिधित्व करता है।
    • इसमें निर्माता, डेवलपर्स, आपूर्तिकर्ता, अनुसंधान संस्थान और वित्तीय संस्थान शामिल हैं।
  • GWEC की प्रमुख गतिविधियाँ
    • अनुसंधान और विश्लेषण: वैश्विक पवन रिपोर्ट और अन्य उद्योग अंतर्दृष्टि प्रकाशित करता है।
    • नीति वकालत: पवन ऊर्जा के विकास का समर्थन करने वाली नीतियों की वकालत करता है।
    • उद्योग नेटवर्किंग: उद्योग हितधारकों को जोड़ने के लिए कार्यक्रम और सम्मेलन आयोजित करता है।

पवन टर्बाइनों का पुनरुद्धार

  • पुनःशक्तिकरण (Repowering): पुरानी टर्बाइनों (विशेष रूप से 2 मेगावाट से कम) को नई, अधिक कुशल टर्बाइनों से बदलना। इससे उच्च शक्ति उत्पादन वाली बड़ी टर्बाइनों का उपयोग करके क्षमता बढ़ाई जा सकती है।
    • छोटी टर्बाइनों को पुनः शक्ति प्रदान करने से तमिलनाडु के पवन ऊर्जा उत्पादन में अधिकतम पवन मौसम के दौरान 25% तक की वृद्धि हो सकती है।
  • नवीनीकरण: इसमें प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए मौजूदा टर्बाइनों की ऊँचाई, ब्लेड या गियरबॉक्स को संशोधित करना शामिल है।
  • अवधि विस्तार: इसमें परिचालन अवधि को बढ़ाने के लिए पुरानी टर्बाइनों का रखरखाव और उन्नयन करना शामिल है।

भारत में पवन ऊर्जा पुनःशक्तीकरण की चुनौतियाँ

  • पुराना बुनियादी ढाँचा और कम क्षमता वाली टर्बाइनें: भारत में कई पवन टर्बाइन, जैसे कि तमिलनाडु में, वर्ष 2000 से पहले स्थापित की गई थीं और उनकी क्षमता 1 मेगावाट से कम है।
    • ये पुरानी टर्बाइन अकुशल हैं और इन्हें आधुनिक, उच्च क्षमता वाले मॉडल के साथ संरेखित करने के लिए अपग्रेड की आवश्यकता है।
  • भूमि संबंधी बाधाएँ: नई, बड़ी टर्बाइन (2 मेगावाट से अधिक) के साथ पुनः विद्युतीकरण के लिए अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता होती है। सीमित भूमि उपलब्धता उन्नत टर्बाइनों की स्थापना को प्रतिबंधित करती है, जिससे क्षमता विस्तार सीमित होता है।
  • बैंकिंग प्रतिबंध: पवन टर्बाइनों के लिए वित्तीय सहायता की कमी भी पवन टर्बाइनों को पुनः शक्ति प्रदान करने में एक सीमित कारक है।
    • तमिलनाडु में वर्ष 2018 के बाद की स्थापनाओं में बैंकिंग सुविधाओं का अभाव है, जिससे पुनर्शक्तीकरण की वित्तीय व्यवहार्यता प्रभावित हो रही है, क्योंकि पुनर्शक्तिकृत टर्बाइन बैंकिंग लाभों के लिए अयोग्य हैं।
  • ट्रांसमिशन सीमाएँ: पुरानी ट्रांसमिशन प्रणालियाँ आधुनिक टर्बाइनों से बढ़े हुए आउटपुट को प्रबंधित नहीं कर पातीं हैं, जिससे संभावित व्यवधान उत्पन्न होते हैं।
  • प्रोत्साहनों का अभाव: अपर्याप्त नीतिगत प्रोत्साहनों के कारण डेवलपरों की पुनर्शक्तीकरण में रुचि कम हो जाती है, क्योंकि लागत और जटिलताएँ मौजूदा पवन फार्मों में निवेश को रोकती हैं।

आगे की राह

  • नीतिगत प्रोत्साहन: पुनःशक्तीकरण परियोजनाओं के लिए वित्तीय प्रोत्साहन, जैसे कर लाभ, अनुदान या सब्सिडी, परियोजना व्यवहार्यता में सुधार के लिए लागू करना।
  • बैंकिंग सुविधा विस्तार: पवन ऊर्जा जनरेटर के लिए वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए पुनःशक्तीकरण टर्बाइनों के लिए ऊर्जा बैंकिंग की अनुमति देना।
  • भूमि उपयोग लचीलापन: भूमि आवंटन को सुव्यवस्थित करना और जहाँ संभव हो, उच्च क्षमता वाली टर्बाइन स्थापनाओं के लिए साझा या अतिरिक्त भूमि पर विचार करना।
  • बुनियादी ढाँचे का उन्नयन: नई टर्बाइनों से बढ़ी हुई ऊर्जा उत्पादन को सँभालने के लिए ट्रांसमिशन और निकासी बुनियादी ढाँचे में निवेश करना।
  • सुव्यवस्थित अनुमोदन: परियोजना समयसीमा में तेजी लाने और प्रशासनिक बाधाओं को कम करने के लिए पुनःशक्तीकरण तथा नवीनीकरण के लिए अनुमोदन प्रक्रियाओं को सरल बनाएँ।

संदर्भ 

राजीव रतूड़ी बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि पर्यावरण, सेवाओं एवं अवसरों तक पहुँच का अधिकार दिव्यांग व्यक्तियों (PWDs) के लिए एक मौलिक मानव अधिकार है। 

संबंधित तथ्य

  • निर्णय का आधार: यह निर्णय नालसर (NALSAR) यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के दिव्यांगता अध्ययन केंद्र (Centre for Disability Studies- CDS) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर आधारित है।
  • NALSAR के विकलांगता अध्ययन केंद्र के अनुसार, दिव्यांगजनों के समक्ष आने वाली समस्याएँ:
    • सुगम्यता संबंधी बाधाएँ: न्यायालयों, जेलों, स्कूलों, सार्वजनिक परिवहन और अन्य सार्वजनिक स्थानों में सुगम्यता उपायों में अंतराल हैं।
    • बढ़ता भेदभाव: रिपोर्ट में बताया गया है कि दुर्गमता अक्सर बढ़ते भेदभाव की ओर ले जाती है, जिससे दिव्यांग व्यक्तियों के लिए अतिरिक्त असुविधाएँ उत्पन्न होती हैं, विशेषकर तब जब ये व्यक्ति अन्य प्रकार के हाशिए पर भी होते हैं।
    • मौजूदा कानूनी ढाँचे में असंगतियाँ: रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि दिव्यांग व्यक्तियों के लिए अनिवार्य सुगम्यता नियम निर्धारित किए गए हैं, जबकि दिव्यांग व्यक्तियों के लिए नियम (वर्ष 2017) केवल स्व-नियामक दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं।
      • RPWD नियमों का नियम 15, जिसमें सुगम्यता संबंधी मानक शामिल हैं, RPWD अधिनियम के विरुद्ध है।

भारत में दिव्यांगजनों की सहायता के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-21: किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा।
  • राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत: अनुच्छेद-41 में कहा गया है कि राज्य को कार्य, शिक्षा और बेरोजगारी, बुढ़ापे, बीमारी और दिव्यांगता के मामले में सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए प्रभावी प्रावधान करना चाहिए।
  • सातवीं अनुसूची: इसके तहत, विकलांगों की सहायता राज्य का विषय है। (सूची II में प्रविष्टि 9)
  • 11वीं और 12वीं अनुसूची: दिव्यांगों और मानसिक मंदित लोगों का कल्याण 11वीं अनुसूची में 26 मद और 12वीं अनुसूची में 09 मद के रूप में सूचीबद्ध है।

सर्वोच्च न्यायालय की मुख्य टिप्पणियाँ

  • दिव्यांगता एक सामाजिक जिम्मेदारी है, व्यक्तिगत त्रासदी नहीं: मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने इस बात पर जोर दिया कि दिव्यांगता तभी त्रासदी बन जाती है, जब समाज दिव्यांगों को जीवन जीने के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने में विफल हो जाता है।
  • समानता, स्वतंत्रता और गरिमा के लिए सुलभता आवश्यक: सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि समानता, स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा के लिए सुलभता एक शर्त है, जो दिव्यांगों को अन्य अधिकारों का सार्थक उपयोग करने में सक्षम बनाती है।
  • क्षेत्रों में सुलभता के बुनियादी ढाँचे में असमानता: न्यायालय ने सुलभता मानकों में क्षेत्रीय असमानताओं पर ध्यान दिया।
    • उदाहरण के लिए, दिल्ली में व्हीलचेयर-सुलभ 3,775 बसें हैं, जबकि तमिलनाडु में केवल 1,917 हैं।
    • बॉम्बे आर्ट गैलरी जैसी कई पुरानी इमारतों में दिव्यांगों के लिए शौचालय सहित बुनियादी सुलभ सुविधाओं का अभाव है।
  • संबंधों और भावनात्मक कल्याण के अधिकारों की अनदेखी
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि समाज अक्सर दिव्यांग व्यक्तियों के लिए ‘संबंधों के अधिकार’ की अनदेखी करता है, जिसमें गोपनीयता, अंतरंगता और आत्म-अभिव्यक्ति की उनकी भावनात्मक आवश्यकताएँ शामिल हैं।
    • परिवार के साथ रहने वाले दिव्यांग व्यक्तियों को अक्सर आत्म-देखभाल और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के लिए निजी स्थानों से वंचित रखा जाता है।
  • अनिवार्य सुलभता मानकों की आवश्यकता
    • न्यायालय ने पाया कि मौजूदा सुगम्यता नियम अनिवार्य नहीं थे, जिसके कारण उनका अनुपालन कम हुआ।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार (RPwD) अधिनियम, 2016 की धारा 40 के तहत अनिवार्य नियम बनाने का निर्देश दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सार्वजनिक स्थान और सेवाएँ दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुलभ हों।
  • दिव्यांगता के सामाजिक मॉडल पर जोर: निर्णय में सरकार से कहा गया कि वह व्यक्तियों को ‘ठीक’ करने की कोशिश करने के बजाय, शारीरिक, संगठनात्मक और मनोवृत्ति संबंधी बाधाओं जैसे सामाजिक अवरोधों को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करे।
  • सार्वजनिक और निजी स्थानों में सार्वभौमिक डिजाइन का आह्वान
    • न्यायालय ने ‘सार्वभौमिक डिजाइन’ सिद्धांतों की सिफारिश की, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सार्वजनिक और निजी स्थान, सेवाएँ और उत्पाद शुरू से ही सभी के लिए सुलभ हों।
    • मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा कि सुलभता को शुरू से ही नई सेवाओं और उत्पादों के डिजाइन में एकीकृत किया जाना चाहिए, क्योंकि यह बाद में समायोजन करने की तुलना में अधिक कुशल है।

दिव्यांगता अधिकारों के मॉडल

  • चिकित्सा मॉडल: यह मॉडल दिव्यांगता को व्यक्ति के भीतर एक स्वास्थ्य स्थिति या दुर्बलता के रूप में देखता है। यह चिकित्सा हस्तक्षेप के माध्यम से दिव्यांगता को ‘ठीक’ करने या उसका इलाज करने पर जोर देता है।
  • दान मॉडल (Charity Model): यह दिव्यांग व्यक्तियों को पीड़ित के रूप में देखता है। उन्हें सेवाओं के प्राप्तकर्ता और लाभार्थी के रूप में देखा जाता है।
  • सामाजिक मॉडल: इसे दान और चिकित्सा मॉडल के व्यक्तिवादी दृष्टिकोण के खिलाफ प्रतिक्रिया के रूप में विकसित किया गया था। यह मानता है कि दिव्यांगता शारीरिक, संगठनात्मक और मनोवृत्ति संबंधी बाधाओं के कारण होती है, न कि दिव्यांगता के कारण।
  • मानव अधिकार मॉडल: समानता, गरिमा और गैर-भेदभाव पर ध्यान केंद्रित करते हुए दिव्यांगता को मानवाधिकारों के मामले के रूप में प्रस्तुत करता है।
    • समान अवसरों, पहुँच और समाज के सभी पहलुओं में भाग लेने के अधिकार को बढ़ावा देता है।
  • आर्थिक मॉडल: अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव के संदर्भ में दिव्यांगता पर विचार करता है, संभावित लागत और खोई हुई उत्पादकता दोनों के संदर्भ में।

दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) के बारे में

  • दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार (RPwD) अधिनियम, 2016 के तहत, ‘दिव्यांग व्यक्तियों’ को ऐसे व्यक्तियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनमें दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी दिव्यांगता है, जो कई प्रकार की बाधाओं के साथ मिलकर, दूसरों के साथ समान आधार पर समाज में उनकी पूर्ण और प्रभावी भागीदारी में बाधा डाल सकती है। 
    • RPwD अधिनियम, 2016 के अनुसार, 21 प्रकार की दिव्यांगताएँ हैं जिनमें लोकोमोटर दिव्यांगता, दृश्य हानि, श्रवण हानि, भाषण और भाषा दिव्यांगता, बौद्धिक दिव्यांगता, एकाधिक दिव्यांगता, मस्तिष्क पक्षाघात, बौनापन आदि शामिल हैं। 
  • जनगणना दिव्यांगता श्रेणियाँ: जनगणना प्रश्नावली में वर्ष 2011 की जनगणना तक सात प्रकार की दिव्यांगताओं पर प्रश्न शामिल थे।
  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistics Office) की वर्ष 2019 की रिपोर्ट में दिव्यांग लोगों के अधिकारों को वर्ष 2016 में लागू किए जाने पर दिव्यांगताओं की सूची को बढ़ाकर 21 कर दिया गया। 
  • दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) की स्थिति 
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 2.68 करोड़ दिव्यांग व्यक्ति हैं, जो देश की कुल जनसंख्या का 2.21% है।

सहायक प्रौद्योगिकियों का उदाहरण

  • स्पीच रिकग्निशन सॉफ्टवेयर (Speech Recognition Software): मोटर दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के लिए वॉयस-कंट्रोल सॉफ्टवेयर।
  • ब्रेल डिस्प्ले: ऐसे उपकरण, जो नेत्रहीन उपयोगकर्ताओं के लिए टेक्स्ट को ब्रेल में बदलते हैं।
  • आई-ट्रैकिंग डिवाइस: ऐसी तकनीक जो आँखों के निर्देशों का उपयोग करके नियंत्रण को सक्षम बनाती है।
  • एडेप्टिव कीबोर्ड: मोटर दिव्यांगता वाले उपयोगकर्ताओं के लिए कस्टमाइज करने योग्य कीबोर्ड।
  • टेक्स्ट-टू-स्पीच सॉफ्टवेयर: लिखित टेक्स्ट को बोले गए शब्दों में बदलता है।

दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) के लिए सुगम्यता में बाधाएँ

  • वास्तविक बाधाएँ: रैंप, लिफ्ट या चौड़े दरवाजों की कमी के कारण दुर्गम इमारतें, परिवहन प्रणालियाँ और सार्वजनिक स्थान।
    • पुरानी संरचनाओं में प्रायः इन विशेषताओं का अभाव होता है, जबकि नवीन संरचनाओं में कभी-कभी सार्वभौमिक डिजाइन सिद्धांतों की अनदेखी की जाती है, जिससे दिव्यांगजनों के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
    • दिव्यांग लोगों के लिए रोजगार संवर्द्धन हेतु राष्ट्रीय केंद्र के आँकड़ों से पता चलता है कि:
      • 1% से भी कम शैक्षणिक संस्थान दिव्यांगों के अनुकूल हैं।
      • 40% से भी कम स्कूल भवनों में रैंप हैं।
      • लगभग 17% में सुलभ शौचालय हैं।
  • तकनीकी बाधाएँ: दिव्यांगजनों, विशेष रूप से दृश्य, श्रवण या संज्ञानात्मक दिव्यांगता वाले लोगों के लिए सुलभ डिजिटल प्लेटफॉर्म, वेबसाइट और सहायक तकनीकों की कमी।
  • सहायक तकनीकों में अंतर: WHO और यूनिसेफ (UNICEF) की सहायक तकनीक पर वैश्विक रिपोर्ट (वर्ष 2022) में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि कम आय वाले देशों में केवल 3% लोगों के पास आवश्यक सहायक उत्पादों तक पहुँच है, जबकि उच्च आय वाले देशों में यह 90% है।
  • मनोवृत्ति संबंधी बाधाएँ: दिव्यांगों की क्षमताओं के बारे में सामाजिक भेदभाव, कलंक और गलत धारणाएँ, जो समावेशन और समान भागीदारी में बाधा डालती हैं।
  • आर्थिक बाधाएँ
    • संसाधनों की उच्च लागत: दिव्यांगों को सहायक उपकरणों, परिवहन और विशेष चिकित्सा देखभाल के लिए उच्च व्यय का सामना करना पड़ता है, जिससे आवश्यक संसाधनों तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
    • रोजगार संबंधी चुनौतियाँ: भेदभाव, दुर्गम कार्यस्थल और आवास की कमी दिव्यांगों के लिए रोजगार के अवसरों को सीमित करती है।
    • कम श्रम बल भागीदारी: दिव्यांगों की श्रम बल भागीदारी दर कम होती है, जिससे गरीबी का स्तर बढ़ता है।
      • दिव्यांग व्यक्तियों (PWD) पर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की वर्ष 2011 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 73.6% दिव्यांग लोग अभी भी श्रम बल से बाहर हैं।
  • कानूनी और नीतिगत बाधाएँ: पहुँच संबंधी कानूनों और नीतियों का अपर्याप्त प्रवर्तन या कुछ क्षेत्रों में ऐसे कानूनों का अभाव, दिव्यांगों के अधिकारों और सेवाओं तक पहुँच को सीमित करता है।
  • संचार बाधाएँ: ब्रेल, सांकेतिक भाषा या ऑडियो जैसे सुलभ प्रारूपों में सूचना तक सीमित पहुँच, दिव्यांगों को शिक्षा, कार्य और सामाजिक गतिविधियों में शामिल होने से रोकती है।
  • सांस्कृतिक और सामाजिक बाधाएँ: सांस्कृतिक मानदंड जो गहरी जड़ें जमाए हुए पूर्वाग्रह या जागरूकता की कमी के कारण दिव्यांगों को सामाजिक, शैक्षिक और व्यावसायिक अवसरों से अलग या बहिष्कृत करते हैं।
  • स्वास्थ्य सेवा बाधाएँ: दिव्यांग लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच से समझौता किया जा सकता है।
    • दिव्यांग व्यक्तियों में अवसाद, अस्थमा, मधुमेह, स्ट्रोक, मोटापा या खराब मौखिक स्वास्थ्य जैसी बीमारियाँ विकसित होने का जोखिम दोगुना होता है।

  • विशिष्ट विकलांगता पहचान (Unique Disability Identity- UDID) का उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) के लिए एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाना और प्रत्येक दिव्यांग व्यक्ति को एक विशिष्ट दिव्यांगता पहचान-पत्र जारी करना है।
  • UDID ​​पोर्टल दिव्यांगता प्रमाण-पत्र और दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया को सरल बनाता है।

दिव्यांगजनों की सहायता के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016: यह भारतीय संसद द्वारा दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के प्रति अपने दायित्व को पूरा करने के लिए पारित दिव्यांगता कानून है, जिसे भारत ने वर्ष 2007 में अनुमोदित किया था।
  • दिव्यांगजन अधिकार (RPwD) नए नियम, 2024
    • सरलीकृत आवेदन प्रक्रिया: संशोधनों का उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों के लिए दिव्यांगता प्रमाण-पत्र और विशिष्ट दिव्यांगता पहचान (UDID) कार्ड प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल बनाना है।
    • रंग कोडित UDID ​​कार्ड: अद्यतन नियमों में दिव्यांगता के विभिन्न स्तरों को दर्शाने के लिए रंग-कोडित UDID ​​कार्ड पेश किए गए हैं:
      • सफेद: 40% से कम विकलांगता के लिए
      • पीला: 40% से 79% के बीच विकलांगता के लिए
      • नीला: 80% या उससे अधिक विकलांगता के लिए।
  • राष्ट्रीय न्यास अधिनियम (1999): यह अधिनियम दिव्यांग व्यक्तियों को उनकी सुरक्षा के उपायों को बढ़ावा देने, अभिभावकों की नियुक्ति करने और समाज में समान अवसर प्रदान करके स्वतंत्र रूप से जीवन जीने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय ट्रस्ट की स्थापना करता है।
    • राष्ट्रीय न्यास (National Trust) भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का एक सांविधिक निकाय है।
  • भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम (वर्ष 1992): यह दिव्यांगता पुनर्वास के क्षेत्र में कार्य करने वाले पेशेवरों के प्रशिक्षण और पंजीकरण को नियंत्रित करता है।
  • दिव्यांग व्यक्तियों को सहायक उपकरण खरीदने/लगाने के लिए सहायता (ADIP) योजना 
    • यह योजना दिव्यांग व्यक्तियों को आधुनिक सहायक उपकरण प्राप्त करने में सहायता करती है, ताकि उनके शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पुनर्वास को बढ़ावा मिले तथा उनकी आर्थिक क्षमता में वृद्धि हो।
  • सुगम्य भारत अभियान (Accessible India Campaign): सार्वजनिक स्थानों, परिवहन और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) को दिव्यांगजनों के लिए सुलभ बनाना।
  • दिव्यांग सारथी ऐप: यह मोबाइल एप्लिकेशन दिव्यांग व्यक्तियों के लिए उपलब्ध नीतियों, योजनाओं और दिशा-निर्देशों के बारे में जानकारी प्रदान करता है, जिससे जागरूकता बढ़ाने तथा सरकारी संसाधनों तक पहुँच बनाने में मदद मिलती है।
  • अन्य
    • पीएम-दक्ष (दिव्यांग कौशल विकास एवं पुनर्वास योजना)
    • दीन-दयाल विकलांग पुनर्वास योजना।
    • दिव्यांग छात्रों के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप।
    • भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र, आदि।

दिव्यांगजनों की सहायता के लिए वैश्विक कार्यवाहियाँ

  • सतत् विकास लक्ष्य (SDGs): SDGs में दिव्यांगता और दिव्यांग व्यक्तियों को भी 11 बार स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है।
  • दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन: दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (Convention on the Rights of Persons with Disabilities- CRPD) दिसंबर 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाई गई एक अंतरराष्ट्रीय संधि है।
    • इसका उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) के अधिकारों एवं सम्मान की रक्षा करना है, ताकि समाज में उनकी पूरी भागीदारी सुनिश्चित की जा सके, दूसरों के साथ समान आधार पर।
  • विकलांग व्यक्तियों का अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day of Persons with Disabilities- IDPD): एक संयुक्त राष्ट्र दिवस जो प्रत्येक वर्ष 3 दिसंबर को मनाया जाता है।

आगे की राह

  • दिव्यांगताओं की प्रारंभिक पहचान: प्रभावी हस्तक्षेप, पुनर्वास और सहायता के लिए यह महत्त्वपूर्ण है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि दिव्यांग व्यक्तियों को पूर्ण जीवन जीने का अवसर मिले।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission- NMM) के तहत नवजात शिशुओं में दिखाई देने वाले दोषों की जाँच के लिए व्यापक नवजात स्क्रीनिंग (Comprehensive Newborn Screening- CNS) पुस्तिका को सभी प्रसव केंद्रों पर स्टाफ नर्सों और NMM की सहायता के लिए एक उपकरण के रूप में विकसित किया गया है।
  • प्रारंभिक हस्तक्षेप: उदाहरण
    • व्यावसायिक चिकित्सा से सूक्ष्म मोटर कौशल, खेल और ड्रेसिंग तथा शौचालय प्रशिक्षण जैसे स्व-सहायता कौशल में मदद मिल सकती है।
    • फिजियोथेरेपी से संतुलन, बैठना, रेंगना और चलना जैसे मोटर कौशल में मदद मिल सकती है।
    • वाक् चिकित्सा से भाषण, भाषा, खाने और पीने के कौशल में मदद मिल सकती है।
  • सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव: दिव्यांगों को आश्रित व्यक्तियों के बजाय समाज में समान भागीदार के रूप में देखने की दिशा में सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव लाना समावेश को बढ़ावा देने के लिए महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण:
    • ‘विकलांग’ के स्थान पर ‘दिव्यांग’ जैसे सशक्तीकरण शब्दों के उपयोग को बढ़ावा देना।
    • बेहतर संवेदनशीलता और जागरूकता के लिए दिव्यांग व्यक्तियों पर सर्वोच्च न्यायालय की पुस्तिका को सभी के लिए सुलभ बनाया जा सकता है।
  • सहायक प्रौद्योगिकियों में निवेश: जैसे कि दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए वाक् पहचान सॉफ्टवेयर और स्क्रीन रीडर से लेकर श्रवण यंत्र तथा गतिशीलता उपकरण के लिए निवेश किया जाना चाहिए।
    • ये प्रौद्योगिकियाँ दिव्यांग व्यक्तियों को दैनिक गतिविधियों को अधिक स्वतंत्र रूप से करने में सहायता करती हैं।
  • अवसरों और प्रोत्साहनों में वृद्धि: दिव्यांग व्यक्तियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण, कौशल विकास, स्वरोजगार और औपचारिक रोजगार के लिए, तथा श्रम बाजार में गैर-भेदभाव एवं समान वेतन सुनिश्चित करना।
  • डिजिटल रूप से सुलभ शिक्षाशास्त्र (Digitally Accessible Pedagogy-DAP) को अपनाना: विकलांग छात्रों को सशक्त बनाने के लिए DAP को अपनाना, भारत में समावेशी शिक्षा को सुलभता और समान सीखने के अवसरों के लिए एक मॉडल के रूप में स्थापित करना।

निष्कर्ष

दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुगम्यता सुनिश्चित करना न केवल मौलिक अधिकार है, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है, जिसके लिए समाज में उनकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए व्यापक कानूनी, सामाजिक और ढाँचागत सुधारों की आवश्यकता है।

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