100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

Nov 14 2024

संदर्भ 

भारतीय रक्षा मंत्री ने आज की तेजी से बदलती दुनिया में उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए ‘एडॉप्टिव डिफेंस’ (Adaptive Defence) या ‘अनुकूली रक्षा’ के निर्माण की घोषणा की है।

संबंधित तथ्य

  • महत्त्व: इसे न केवल एक रणनीतिक विकल्प, बल्कि एक आवश्यकता के रूप में वर्णित किया गया है।

‘एडॉप्टिव डिफेंस’ की अवधारणा

  • एक रणनीतिक दृष्टिकोण जिसमें सैन्य एवं रक्षा तंत्र लगातार उभरते खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए विकसित होते हैं।
  • सक्रिय तैयारी: इसमें संभावित खतरों का पूर्वानुमान लगाना और उनके लिए सक्रिय रूप से तैयारी करना शामिल है।
  • मुख्य घटक: परिस्थितिजन्य जागरूकता, रणनीतिक एवं सामरिक लचीलापन, चपलता और भविष्य की प्रौद्योगिकियों के साथ एकीकरण।

रक्षा निर्यात की स्थिति

  • भारत का रक्षा निर्यात बढ़ रहा है:
    • वर्ष 2023-24 में, भारत ने 100 से अधिक देशों को रक्षा वस्तुओं का निर्यात किया।
    • शीर्ष तीन निर्यात गंतव्य: संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्राँस और आर्मेनिया।
  • निर्यात लक्ष्य: वर्ष 2029 तक ₹50,000 करोड़ मूल्य का रक्षा निर्यात।

उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ (Emerging Technologies) क्या हैं?

  • उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ वे नई प्रौद्योगिकियाँ हैं, जिनका विकास और व्यावहारिक अनुप्रयोग अभी तक प्रमाणिक नहीं हुआ है।
    • यह नई तकनीक या मौजूदा तकनीक की उन्नति दोनों हो सकती है।
  • रक्षा क्षेत्र में उभरती प्रौद्योगिकियों के उदाहरण
    • ‘ड्रोन एंड स्वार्म’ तकनीकें: इन तकनीकों ने युद्ध के तरीकों में बदलाव लाए हैं।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI) और मशीन लर्निंग (Machine Learning- ML): ये तकनीकें खतरे का पता लगाने में मदद करती हैं।
    • साइबर युद्ध तकनीकें: रक्षात्मक तकनीकें महत्त्वपूर्ण डेटा और कमांड सिस्टम को साइबर हमलों से बचाने में मदद करती हैं।

उभरती प्रौद्योगिकियों का प्रभाव

  • ‘ड्रोन एंड स्वार्म’ तकनीकें: ये तकनीकें युद्ध की रणनीति और रणनीतियों में बदलाव ला रही हैं।
  • साइबर युद्ध: डिजिटल डोमेन एक नया युद्धक्षेत्र बन रहा है क्योंकि साइबर हमले महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रमुख खतरे उत्पन्न कर रहे हैं।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI): AI निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ा सकता है, कार्यों को स्वचालित कर सकता है और स्वायत्त हथियार प्रणाली विकसित कर सकता है।
  • क्वांटम तकनीकें: क्वांटम कंप्यूटिंग और क्रिप्टोग्राफी में पारंपरिक एन्क्रिप्शन विधियों और साइबर सुरक्षा को बाधित करने की क्षमता है।
  • नैनो प्रौद्योगिकी: नैनो प्रौद्योगिकी का उपयोग सैन्य अनुप्रयोगों के साथ उन्नत सामग्री और उपकरणों को विकसित करने के लिए किया जा सकता है।
  • भारत का रुख
    • ड्रोन हब: भारत का लक्ष्य घरेलू विनिर्माण और नवाचार को बढ़ावा देते हुए वैश्विक ड्रोन हब बनना है।
    • मेक इन इंडिया: सरकार घरेलू रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
    • रक्षा निर्यात: भारत, अमेरिका, फ्राँस और आर्मेनिया सहित विभिन्न देशों को अपने रक्षा निर्यात को बढ़ा रहा है।
    • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत उभरती सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने और ज्ञान तथा विशेषज्ञता साझा करने के लिए अन्य देशों के साथ सहयोग करना चाहता है।

वर्तमान भू-राजनीतिक गतिशीलता में सहयोगात्मक दृष्टिकोण क्यों आवश्यक है?

  • भू-राजनीतिक गतिशीलता और सीमा पार मुद्दों के कारण रक्षा के लिए सहयोगात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • साइबरस्पेस, AI और क्वांटम और नैनोटेक्नोलॉजी की संभावनाओं में अस्पष्टता के कारण सहयोग आवश्यक है।
  • ज्ञान, दृष्टिकोण, सूचना और रणनीतियों को साझा करना महत्त्वपूर्ण है।

संदर्भ

वार्षिक जलवायु सम्मेलन, COP29 के लिए बाकू में एकत्रित हुए राष्ट्राध्यक्षों ने वैश्विक कार्बन बाजार को अंतिम रूप देने के लिए एक बहुत ही विलंबित समझौते को मंजूरी देने के लिए मतदान किया।

कार्बन क्रेडिट

  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के अनुसार, कार्बन क्रेडिट कार्बन डाइऑक्साइड की एक इकाई या किसी अन्य ग्रीनहाउस गैस की समतुल्य मात्रा को दर्शाता है, जिसे कम किया गया है, संगृहीत किया गया है या टाला गया है।
  • कार्बन क्रेडिट आमतौर पर उन परियोजनाओं के माध्यम से उत्पन्न होते हैं, जो उत्सर्जन को कम करते हैं, जैसे कि नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ, पुनर्वनीकरण या ऊर्जा दक्षता पहल।

वैश्विक कार्बन बाजार (Global Carbon Market) के बारे में

  • वैश्विक कार्बन बाजार देशों को कार्बन उत्सर्जन में प्रमाणित कटौती के लिए आपस में कार्बन क्रेडिट का व्यापार करने की अनुमति देगा। इन उपकरणों की कीमतें देशों द्वारा लगाए गए उत्सर्जन कैप के परिणामस्वरूप निर्धारित की जाती हैं।
  • उद्देश्य: जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए देशों के बीच कार्बन क्रेडिट में व्यापार की सुविधा प्रदान करने वाले वैश्विक कार्बन बाजार को अंतिम रूप देना।
  • पृष्ठभूमि: पेरिस समझौते का अनुच्छेद-6 देशों और कंपनियों को कार्बन उत्सर्जन को कम करने तथा अपने जलवायु कार्रवाई लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सहयोग करने के लिए तंत्र प्रदान करता है, जिन्हें औपचारिक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) के रूप में जाना जाता है।
  • कार्बन बाजार: पेरिस समझौते के अनुच्छेद-6 से व्युत्पन्न जो अंतरराष्ट्रीय कार्बन क्रेडिट व्यापार के लिए तंत्र की रूपरेखा तैयार करता है।
  • द्विपक्षीय कार्बन व्यापार: अनुच्छेद-6.2 देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार की अनुमति देता है। 
  • कार्बन व्यापार की रूपरेखा: अनुच्छेद-6.4 संयुक्त राष्ट्र निकाय द्वारा पर्यवेक्षित वैश्विक बाजार के लिए रूपरेखा निर्धारित करता है।
  • कार्बन क्रेडिट अखंडता: संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षी निकाय ने वास्तविक कार्बन क्रेडिट का आकलन करने और सुनिश्चित करने के लिए मसौदा मानक विकसित किए हैं।
  • बाजार का संचालन: संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकृत पहला कार्बन क्रेडिट वर्ष 2025 तक उपलब्ध होगा। 

वैश्विक कार्बन बाजार का महत्त्व

  • आर्थिक प्रभाव: अनुच्छेद-6 वार्ता को अंतिम रूप देने से राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं को लागू करने की लागत में प्रति वर्ष $250 बिलियन की कमी आ सकती है।
  • सख्त मानक: परियोजना आधार रेखाओं में नीचे की ओर समायोजन की शुरुआत का उद्देश्य बढ़े हुए दावों को रोकना है।
  • वास्तविक प्रभाव: केवल वे परियोजनाएँ जो उत्सर्जन में वास्तविक और अतिरिक्त कमी हासिल करती हैं, उन्हें कार्बन क्रेडिट मिलेगा।
  • हानि और क्षति निधि: जलवायु परिवर्तन से प्रभावित संवेदनशील देशों का समर्थन करने के लिए हानि और क्षति निधि को सक्रिय करना। वर्ष 2025 में निधियों का वितरण शुरू होने की उम्मीद है।

भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) 

  • वर्ष 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करना (वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में) तथा वन क्षेत्र को बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 2.5 से 3 बिलियन टन का कार्बन सिंक बनाना।

अनुपालन आधारित और स्वैच्छिक कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग के बीच अंतर

विशेषता

अनुपालन के आधार पर

स्वैच्छिक

नियामक ढाँचा विनियमों और अधिदेशों द्वारा शासित। स्व-विनियमित, कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी से प्रेरित।
उत्सर्जन सीमाएँ उत्सर्जन पर सख्त सीमाएँ लगाई गईं। कोई अनिवार्य सीमा नहीं, स्वैच्छिक भागीदारी।
बाजार के सहभागी मुख्य रूप से विनियमित उद्योग और सरकारें निगमों, व्यक्तियों और गैर-सरकारी संगठनों सहित प्रतिभागियों की व्यापक श्रेणी।
प्रेरणा विनियामक अनुपालन और दंड से बचना पर्यावरणीय जिम्मेदारी, ब्रांड प्रतिष्ठा और जोखिम प्रबंधन
क्रेडिट सत्यापन कठोर सत्यापन और प्रमाणन प्रक्रियाएँ सत्यापन के विभिन्न स्तर, प्रायः अंतरराष्ट्रीय मानकों पर आधारित

भारत में कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (Carbon Credit Trading Scheme- CCTS) के बारे में

  • कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS) भारत में ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 के तहत स्थापित एक वैधानिक ढाँचा है।
    • यह अधिनियम ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency- BEE) को योजना के कार्यान्वयन और अनुपालन की देखरेख के लिए नोडल प्राधिकरण के रूप में नामित करता है।
  • इसे पेरिस समझौते के तहत भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं के साथ संरेखित करते हुए घरेलू कार्बन बाजार के निर्माण की सुविधा के लिए डिजाइन किया गया है।
  • CCTS का उद्देश्य उद्योगों में कार्बन क्रेडिट के व्यापार को सक्षम करके ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने के लिए एक आर्थिक तंत्र प्रदान करना है।

भारत में कार्बन ट्रेडिंग के लिए संस्थागत ढाँचा

  • भारतीय कार्बन बाजार के लिए राष्ट्रीय संचालन समिति (National Steering Committee for Indian Carbon Market- NSCICM): कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS) के तहत केंद्र सरकार द्वारा स्थापित।
    • इसमें विभिन्न मंत्रालयों और संबंधित संगठनों के सदस्य शामिल हैं, जिसकी अध्यक्षता विद्युत मंत्रालय के सचिव करते हैं तथा सह-अध्यक्षता पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव करते हैं।
    • यह भारतीय कार्बन बाजार को संस्थागत बनाने और संचालित करने के लिए प्रक्रियाओं, नियमों तथा विनियमों की सिफारिश करता है।
    • उत्सर्जन लक्ष्य निर्धारित करता है, व्यापार संबंधी दिशा-निर्देश विकसित करता है तथा बाजार के संचालन की देखरेख करता है।
    • कार्बन क्रेडिट प्रमाण-पत्र जारी करने, नवीनीकरण या समाप्ति पर सलाह देता है।
  • ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE): CCTS के प्रशासक के रूप में कार्य करता है और GHG उत्सर्जन में कमी के लिए क्षेत्रों की पहचान करता है, लक्ष्य निर्धारित करता है और कार्बन क्रेडिट जारी करता है। यह कार्बन क्रेडिट प्रमाणन और बाजार स्थिरता तंत्र का प्रबंधन भी करता है।
    • सत्यापन एजेंसियों को मान्यता प्रदान करना तथा कार्यान्वयन लागत के लिए शुल्क और प्रभार निर्धारित करना।
    • IT अवसंरचना, डेटा सुरक्षा और हितधारक क्षमता निर्माण गतिविधियों को बनाए रखना।
  • ‘ग्रिड कंट्रोलर ऑफ इंडिया’ (Grid Controller of India- GCI): यह संस्थाओं का पंजीकरण करता है और उनके कार्बन क्रेडिट खातों का प्रबंधन करता है।
    • यह भारतीय कार्बन बाजार के लिए मेटा-रजिस्ट्री के रूप में कार्य करते हुए, व्यापार को सुगम बनाता है तथा एक सुरक्षित डाटाबेस का रखरखाव करता है।
  • केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (Central Electricity Regulatory Commission- CERC): यह भारतीय कार्बन बाजार के अंतर्गत व्यापारिक गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
    • यह व्यापार के लिए पॉवर एक्सचेंज व्यवसाय विनियमों को भी मंजूरी देता है।
    • बाजार की निगरानी करता है और धोखाधड़ी को रोकने के लिए सुधारात्मक कार्रवाई लागू करता है।
  • मान्यता प्राप्त कार्बन सत्यापन एजेंसी (Accredited Carbon Verification Agency- ACVA): GHG कमी गतिविधियों का सत्यापन करती है।
    • विस्तृत पात्रता मानदंड और प्रक्रिया का पालन करते हुए, BEE द्वारा मान्यता प्राप्त।

भारत की कार्बन ट्रेडिंग प्रणाली की सीमाएँ

  • सीमित कवरेज: विद्युत और कृषि जैसे प्रमुख प्रदूषणकारी क्षेत्रों को बाहर रखा गया है, जिससे इसका समग्र प्रभाव कम हो गया है।
  • विलंबित कार्यान्वयन: विलंबित रोलआउट के कारण संभावित आर्थिक लागत, विशेष रूप से CBAM जैसे वैश्विक कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र के कारण।
  • प्रभावशीलता और समय: उत्सर्जन को महत्त्वपूर्ण रूप से कम करने में कई वर्ष लग सकते हैं, और प्रभावशीलता प्रणाली के डिजाइन तथा कवरेज पर निर्भर करती है।
  • संदिग्ध बहिष्करण: प्रमुख प्रदूषणकारी क्षेत्रों को बाहर रखने से प्रणाली की पर्याप्त उत्सर्जन कटौती करने की क्षमता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • ग्रीनवाशिंग: पर्यावरणीय लाभों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करने वाली परियोजनाएँ, विशेष रूप से वानिकी में।
  • कठोर सत्यापन का अभाव: कार्बन पृथक्करण दावों पर अपर्याप्त जाँच।
  • अतिरिक्त चिंताएँ: ऐसी परियोजनाओं द्वारा उन गतिविधियों का श्रेय लेने का दावा करना, जो वैसे भी घटित होनी थीं।

कार्बन ट्रेडिंग में सुधार के उपाय

  • मजबूत सत्यापन प्रोटोकॉल: कठोर सत्यापन प्रक्रियाएँ और ओवरलैपिंग को रोकने के लिए एक केंद्रीय रजिस्ट्री के रूप में कार्य कर सकती हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखना: गोल्ड स्टैंडर्ड जैसे संगठनों से मानकों को अपनाना।
  • वैश्विक मानकों के साथ संरेखण: पेरिस समझौते के अनुच्छेद-6 के साथ एकीकरण और ओवरलैपिंग को रोकना।
  • पारदर्शिता और प्रकटीकरण: विस्तृत परियोजना जानकारी, तीसरे पक्ष का सत्यापन और क्रेडिट लेन-देन की वास्तविक समय ट्रैकिंग।

संदर्भ

खाद्य कीमतों में 10.9% की वृद्धि के कारण खुदरा मुद्रास्फीति अक्टूबर में 14 महीने के उच्चतम स्तर 6.2% पर पहुँच गई, जो सितंबर में 5.5% थी।

  • यह स्तर RBI की मुद्रास्फीति के लिए ऊपरी वहनीय सीमा का उल्लंघन है, जिसमें ग्रामीण मुद्रास्फीति 6.7% है, जबकि शहरी मुद्रास्फीति 5.6% है।

मुद्रास्फीति की मुख्य विशेषताएँ

  • खाद्य मूल्य में परिवर्तन: अक्टूबर में खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि सब्जियों (42.2%), खाद्य तेलों (9.5%) और फलों (8.4%) जैसी प्रमुख वस्तुओं में महत्त्वपूर्ण थी।
    • दक्षिण-पूर्व एशिया में वैश्विक आपूर्ति में व्यवधान के कारण खाद्य तेल की कीमतों में 27% की वृद्धि हुई, जिससे घरेलू मुद्रास्फीति में तीव्र वृद्धि हुई।
    • दालों के मामले में मुद्रास्फीति घटकर 7.4% रह गई, जिससे 17 महीने से जारी दोहरे अंकों की वृद्धि समाप्त हो गई।
    • मसालों की कीमतों में 7% की गिरावट देखी गई।
  • कोर मुद्रास्फीति मध्यम स्थिति में बनी हुई है: कोर मुद्रास्फीति (खाद्य एवं ऊर्जा को छोड़कर) लगातार 11वें महीने 4% से नीचे स्थिर रही, जो कि सितंबर के बाद 9 महीने के उच्चतम स्तर 3.8% से मामूली वृद्धि है। 
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) में परिवर्तन: सितंबर 2024 से समग्र CPI में 1.3% की वृद्धि हुई, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 1.42% की थोड़ी अधिक वृद्धि देखी गई।
  • उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (Consumer Food Price Index- CFPI) में परिवर्तन: खाद्य मुद्रास्फीति को ट्रैक करने वाला CFPI ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समान प्रभाव के साथ 2.6% बढ़ा।
  • RBI के मुद्रास्फीति अनुमान: RBI ने वित्त वर्ष 2024-25 की तीसरी तिमाही के लिए औसत मुद्रास्फीति 4.8% रहने का अनुमान लगाया था, जो चौथी तिमाही में घटकर 4.2% रह गई।
    • हालाँकि, इन अनुमानों को पूरा करने के लिए, नवंबर 2024 और दिसंबर 2024 में मुद्रास्फीति को काफी कम करके लगभग 4.1% तक लाना होगा।
  • मौद्रिक नीति पर प्रभाव: अर्थशास्त्रियों का सुझाव है कि मुद्रास्फीति में तीव्र वृद्धि के कारण RBI की दिसंबर मौद्रिक नीति समीक्षा में ब्याज दर में कटौती की कोई संभावना नहीं है।

मुद्रास्फीति के बारे में

  • मुद्रास्फीति से तात्पर्य दैनिक या आम उपयोग की अधिकांश वस्तुओं एवं सेवाओं, जैसे कि भोजन, कपड़े, आवास, मनोरंजन, परिवहन, उपभोक्ता स्टेपल आदि की कीमतों में वृद्धि से है।
  • यह समय के साथ वस्तुओं एवं सेवाओं की एक टोकरी में औसत मूल्य परिवर्तन को मापता है।
  • मुद्रास्फीति किसी देश की मुद्रा की एक इकाई की क्रय शक्ति में कमी का संकेत है। इसे प्रतिशत में मापा जाता है।
  • महत्त्व: अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के एक निश्चित स्तर की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि व्यय को बढ़ावा दिया जाए और बचत के माध्यम से धन संचय करने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया जाए।

मुद्रास्फीति के प्रकार

  • हेडलाइन मुद्रास्फीति (Headline Inflation): हेडलाइन मुद्रास्फीति किसी अर्थव्यवस्था के भीतर कुल मुद्रास्फीति का माप है, जिसमें खाद्य और ऊर्जा की कीमतें (जैसे- तेल एवं गैस) जैसी वस्तुएँ शामिल हैं, जो बहुत अधिक अस्थिर होती हैं और मुद्रास्फीति के बढ़ने की संभावना होती है।
    • भारत में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) को हेडलाइन मुद्रास्फीति के रूप में जाना जाता है।
  • कोर मुद्रास्फीति (Core Inflation): कोर मुद्रास्फीति वस्तुओं एवं सेवाओं की लागत में परिवर्तन है, लेकिन इसमें खाद्य और ऊर्जा क्षेत्रों से आने वाली मुद्रास्फीति शामिल नहीं है। 
    • मुद्रास्फीति के इस माप में इन वस्तुओं को शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि उनकी कीमतें बहुत अधिक अस्थिर होती हैं। 
  • अवस्फीति (Disinflation): अवस्फीति मुद्रास्फीति की दर में कमी को संदर्भित करता है, जिसका अर्थ है कि कीमतें अभी भी बढ़ रही हैं लेकिन धीमी गति से। 
  • स्टैगफ्लेशन (Stagflation): स्टैगफ्लेशन उच्च मुद्रास्फीति और स्थिर आर्थिक विकास का एक अनूठा संयोजन है, जिसके साथ उच्च बेरोजगारी भी होती है।

मुद्रास्फीति कैसे मापी जाती है?

भारत में, मुद्रास्फीति को मुख्य रूप से दो मुख्य सूचकांकों WPI (थोक मूल्य सूचकांक) और CPI (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) द्वारा मापा जाता है, जो क्रमशः थोक और खुदरा स्तर के मूल्य परिवर्तनों को मापते हैं।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)- खुदरा मुद्रास्फीति के बारे में

  • CPI किसी आधार वर्ष के संदर्भ में वस्तुओं और सेवाओं की खुदरा कीमतों में परिवर्तन को मापता है।
  • संकलित: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistics Office- NSO), केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI)।
  • CPI के प्रकार
    • औद्योगिक श्रमिकों के लिए CPI (CPI-IW)
      • श्रम ब्यूरो द्वारा संकलित।
      • आधार वर्ष: 2016
    • ग्रामीण मजदूरों और कृषि मजदूरों के लिए सीपीआई (CPI-AL और CPI-RL)
      • श्रम ब्यूरो द्वारा संकलित।
      • आधार वर्ष: 1986-87
    • नया CPI (ग्रामीण, शहरी और संयुक्त)
      • आधार वर्ष: 2012
      • अखिल भारतीय स्तर के लिए केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation- CSO) द्वारा संकलित एवं प्रकाशित।

उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (Consumer Food Price Index- CFPI)

  • CFPI: यह CPI का एक उप-घटक है, जो आबादी द्वारा उपभोग किए जाने वाले खाद्य पदार्थों की खुदरा कीमतों में परिवर्तन को मापता है।
  • फोकस: अनाज, सब्जियाँ, फल, डेयरी, मांस आदि जैसे खाद्य पदार्थों के मूल्य परिवर्तनों को ट्रैक करता है।
  • संकलित: केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO), केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) (मई 2014 से), अब NSO (वर्ष 2019 में गठित) के अंतर्गत संकलित किया जाता है।
  • आधार वर्ष: 2012
  • पद्धति: CPI के समान पद्धति का उपयोग करके मासिक गणना की जाती है।

थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI)

  • WPI: यह खुदरा स्तर से पहले थोक मूल्यों में औसत परिवर्तन को मापता है।
  • कवरेज: इसमें केवल सामान शामिल हैं, सेवाएँ शामिल नहीं हैं।
  • द्वारा संकलित: केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार कार्यालय (मासिक आधार पर)।
  • आधार वर्ष: 2011-12
  • भारांक: वस्तुओं को दिए गए भारांक शुद्ध आयात के लिए समायोजित उत्पादन मूल्य पर आधारित हैं।

खाद्य मुद्रास्फीति का प्रभाव

  • मनोवैज्ञानिक तनाव: बढ़ती कीमतें, विशेषकर सब्जियों और फलों जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिए, उपभोक्ताओं के बीच महत्त्वपूर्ण तनाव और चिंता उत्पन्न कर सकती हैं।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें खाद्य उपभोग को कम कर सकती हैं, विशेषकर संवेदनशील आबादी के बीच, जिससे पोषण सेवन और समग्र स्वास्थ्य प्रभावित होता है
  • अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: खाद्य मुद्रास्फीति RBI के समग्र मुद्रास्फीति लक्ष्य को विकृत करती है, जिससे मौद्रिक उपायों का उपयोग करने की उसकी क्षमता सीमित हो जाती है।

खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए सरकारी उपाय 

  • सब्सिडी आधारित बिक्री: कीमतों को नियंत्रित करने के लिए प्याज, टमाटर, गेहूँ और चीनी जैसी आवश्यक वस्तुओं की बिक्री पर सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाती है।
  • आयात शुल्क में कमी: घरेलू आपूर्ति बढ़ाने के लिए दालों पर आयात शुल्क कम करना।
  • निर्यात प्रतिबंध: घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गेहूँ और टूटे चावल के निर्यात पर अस्थायी प्रतिबंध।
  • भंडारण प्रतिबंध: जमाखोरी को रोकने के लिए व्यापारियों द्वारा भंडारण पर सीमाएँ।
  • ऑपरेशन ग्रीन्स (Operation Greens): टमाटर, प्याज और आलू की आपूर्ति और कीमतों को स्थिर करने के लिए एक सरकारी पहल।
  • न्यूनतम निर्यात मूल्य: निर्यात को रोकने और घरेलू आपूर्ति को बनाए रखने के लिए खाद्य वस्तुओं पर न्यूनतम निर्यात मूल्य लगाना।

मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति उपाय

  • ब्याज दरों में वृद्धि: इससे उधारी और खर्च में कमी आती है, जिससे माँग कम होती है।
  • नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में वृद्धि: बैंकों को केंद्रीय बैंक के पास अधिक धनराशि रखने की आवश्यकता होती है, जिससे उधार देने की क्षमता कम हो जाती है।
  • खुले बाजार परिचालन (Open Market Operations- OMO): अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करने के लिए सरकारी प्रतिभूतियों को बेचना।

मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए राजकोषीय नीति उपाय

  • सरकारी खर्च में कमी: कुल माँग को कम करने के लिए सार्वजनिक व्यय में कटौती करना।
  • करों में वृद्धि: प्रयोज्य आय और खपत को कम करने के लिए करों में वृद्धि करना।
  • आपूर्ति-पक्ष उपाय: घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना, बुनियादी ढाँचे में सुधार करना और आपूर्ति को बढ़ावा देने तथा मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने के लिए विनियमों को सुव्यवस्थित करना।

आगे की राह

  • कृषि में निवेश: खाद्य उत्पादन में सुधार और मूल्य अस्थिरता को कम करने के लिए बुनियादी ढाँचे, बाजारों और आपूर्ति शृंखलाओं में निवेश करना।
  • जोखिम प्रबंधन उपकरण: किसानों, व्यापारियों और उपभोक्ताओं को मूल्य में उतार-चढ़ाव और जलवायु संबंधी जोखिमों से बचाने के लिए प्रभावी जोखिम प्रबंधन रणनीतियों को लागू करना।
  • जलवायु-स्मार्ट कृषि: खाद्य उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाना।
  • संस्थागत पूर्वानुमान: किसानों और नीति-निर्माताओं को सटीक जानकारी प्रदान करने के लिए एक मजबूत पूर्वानुमान तंत्र की स्थापना करना।
  • आपूर्ति-पक्ष में सुधार करना: उत्पादकता और दक्षता में सुधार के लिए कृषि क्षेत्र में संरचनात्मक मुद्दों को संबोधित करना।

संदर्भ

केंद्रीय गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs- MHA) ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (Central Industrial Security Force- CISF) के लिए पहली महिला बटालियन के गठन को मंजूरी दे दी है।

  • मार्च 2023 में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के 53वें स्थापना दिवस के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री के निर्देश के बाद केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में सभी महिला बटालियनों के निर्माण का प्रस्ताव शुरू किया गया था।

अखिल महिला CISF बटालियन के बारे में

  • संरचना: नई बटालियन में 1,000 से अधिक कर्मी होंगे और इसका नेतृत्व एक वरिष्ठ कमांडेंट रैंक के अधिकारी करेंगे।
    • यह बटालियन CISF की मौजूदा 12 रिजर्व बटालियनों में शामिल होगी, जिनमें वर्तमान में पुरुष और महिला दोनों कर्मी शामिल हैं।
  • अखिल महिला बटालियन का उद्देश्य एवं कर्तव्य: इस विशेष इकाई का उद्देश्य VIP, हवाई अड्डों, दिल्ली मेट्रो और अन्य महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की सुरक्षा में CISF की बढ़ती जिम्मेदारियों को पूरा करना है।
    • सभी महिला बटालियन को VIP सुरक्षा और विभिन्न उच्च जोखिम वाली सुविधाओं की सुरक्षा सहित विविध भूमिकाएँ निभाने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
  • बटालियन का गठन और संरचना: इस इकाई की स्थापना CISF की पहले से स्थापित जनशक्ति के भीतर से की जाएगी, जिसमें कुल लगभग दो लाख कार्मिक हैं।
  • प्रशिक्षण और भर्ती: बटालियन को सुरक्षा कार्यों की एक विस्तृत शृंखला के लिए उत्कृष्ट कौशल से संबद्ध करने हेतु विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किए जा रहे हैं।
  • नई बटालियन के लिए भर्ती, प्रशिक्षण और तैनाती स्थान निर्धारित करने की तैयारियाँ चल रही हैं।

भारतीय सेना में उल्लेखनीय महिलाएँ

  • ऐतिहासिक कमान भूमिकाएँ (Historic Command Roles): कमांडर प्रेरणा देवस्थली भारतीय नौसेना के युद्धपोत की कमान सँभालने वाली पहली महिला बनीं, जो नौसेना में महिलाओं के लिए नेतृत्व की स्थिति में एक बड़ी उपलब्धि है।
  • युद्ध में भागीदारी (Combat Participation): लेफ्टिनेंट महक सैनी और लेफ्टिनेंट अदिति यादव सहित पाँच महिला अधिकारी सेना की तोपखाना इकाइयों में शामिल हुईं, जिससे महिलाओं के लिए विस्तारित लड़ाकू भूमिकाओं पर प्रकाश डाला गया।
  • वैश्विक सैन्य अभ्यास (Global Military Exercises): स्क्वाड्रन लीडर अवनी चतुर्वेदी जापान में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई युद्ध अभ्यास में भाग लेने वाली भारत की पहली महिला लड़ाकू पायलट थीं, जिन्होंने भारत के वैश्विक रक्षा प्रतिनिधित्व को बढ़ावा दिया।
  • फ्रंटलाइन नेतृत्व (Frontline Leadership): ग्रुप कैप्टन शालिजा धामी फ्रंटलाइन IAF लड़ाकू इकाई का नेतृत्व करने वाली पहली महिला बनीं, जिन्होंने रणनीतिक कमांड भूमिकाओं में महिलाओं के लिए एक मिसाल कायम की।
  • वीरता सम्मान (Gallantry Recognition): विंग कमांडर दीपिका मिश्रा को वायु सेना पदक (वीरता) मिला, जो बाढ़ राहत मिशनों में उनकी वीरता को मान्यता देते हुए किसी महिला IAF अधिकारी को दिया जाने वाला पहला पदक है।

महिला उम्मीदवारों के लिए प्रोत्साहन

  • महिला बटालियन की स्थापना से देशभर में अधिक युवा महिलाओं को CISF में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने की उम्मीद है।
  • यह बल में महिलाओं के लिए एक नई पहचान बनाएगा, जिससे महिलाओं के लिए कॅरियर विकल्प के रूप में CISF की अपील बढ़ेगी।
  • CISF कर्मियों में 7% से अधिक महिलाएँ हैं और उन्हें पहले से ही 68 नागरिक हवाई अड्डों, दिल्ली मेट्रो और ताजमहल तथा लाल किले जैसे विरासत स्थलों सहित हाई-प्रोफाइल स्थलों पर तैनात किया गया है।

केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (Central Industrial Security Force- CISF) के बारे में

  • केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल अधिनियम, 1968 के तहत स्थापित संघ का एक सशस्त्र बल है। 
    • वर्ष 1969 में 3,129 कर्मियों की मदद से स्थापित बल की क्षमता वर्ष 2024 में बढ़कर 1,77,713 हो गई।
  • मुख्यालय और शासन: मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
  • संगठनात्मक संरचना: एक महानिदेशक (IPS अधिकारी) के नेतृत्व में और एक अतिरिक्त महानिदेशक (IPS अधिकारी) द्वारा सहायता प्राप्त।
  • सात क्षेत्रों में विभाजित: हवाई अड्डा, उत्तर, उत्तर-पूर्व, पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और प्रशिक्षण।
    • इसमें एक विशेष अग्निशमन सेवा विंग शामिल है, जिससे यह एकमात्र केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) है, जिसके पास समर्पित अग्निशमन विंग है।

CISF के कार्य और जिम्मेदारियाँ

  • महत्त्वपूर्ण अवसंरचना सुरक्षा: CISF परमाणु और एयरोस्पेस सुविधाओं सहित महत्त्वपूर्ण अवसंरचना के लिए आतंकवाद-रोधी सुरक्षा प्रदान करता है।
  • हवाई अड्डे की सुरक्षा: IC-814 अपहरण की घटना के बाद से वर्ष 2000 से हवाई अड्डे की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है।
  • विरासत और सार्वजनिक स्थान: प्रतिष्ठित स्मारकों, दिल्ली मेट्रो, संसद भवन परिसर और जम्मू और कश्मीर में केंद्रीय जेलों की सुरक्षा करता है।
  • वीआईपी सुरक्षा: हाई-प्रोफाइल व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करता है।
  • विस्तारित अधिदेश (वर्ष 2008 के बाद): मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद, अधिदेश को निजी कॉरपोरेट सुरक्षा और परामर्श सेवाओं को शामिल करने के लिए व्यापक बनाया गया।
  • परामर्श सेवाएँ: इंफोसिस ऑफिस और रिलायंस रिफाइनरी जैसी निजी क्षेत्र की संस्थाओं को सुरक्षा परामर्श प्रदान करता है।

युद्ध क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका की संभावित लाभ एवं हानि

लाभ

हानि

दृष्टिकोण की विविधता में वृद्धि संभावित शारीरिक नुकसान
उन्नत इकाई सामंजस्य यूनिट के मनोबल और गतिशीलता पर संभावित प्रभाव
प्रतिभा का बड़ा पूल तार्किक चुनौतियाँ
बेहतर सार्वजनिक धारणा यौन उत्पीड़न और उत्पीड़न के बारे में चिंताएँ
लैंगिक समानता में वृद्धि मानकों में गिरावट की संभावना

संदर्भ

उज्बेकिस्तान ने कहा है कि वह जल्द ही मध्य एशियाई देश में प्रकाशित फिल्मों एवं गानों सहित ‘मीडिया कंटेंट’ के लिए एक ‘नैतिक परीक्षण’ शुरू करेगा, ताकि सरकार द्वारा ‘नेशनल मेंटलिटी’ की रक्षा की जा सके।

उज्बेकिस्तान के बारे में

  • स्थान: उज्बेकिस्तान मध्य एशिया में एक भू-आबद्ध देश है, जो मुख्य रूप से दो प्रमुख नदियों [उत्तर पूर्व में सिर दरिया (Syr Darya) एवं दक्षिण पश्चिम में आमु दरिया (Amu Darya)] के बीच स्थित है।
  • दोहरा भू-आबद्ध राष्ट्र (Double Landlocked Nation): यह दुनिया के केवल दो ‘डबल लैंडलॉक्ड’ देशों में से एक है, जिसमें लिकटेंस्टीन (Liechtenstein) दूसरा है।

  • इसके निर्देशांक इसे पृथ्वी के उत्तरी एवं पूर्वी गोलार्द्ध में स्थापित करते हैं।
  • पड़ोसी देश: उज्बेकिस्तान की सीमाएँ पाँच देशों के साथ लगती हैं:
    • उत्तर एवं उत्तर पश्चिम में कजाखस्तान।
    • उत्तर-पूर्व में किर्गिस्तान।
    • दक्षिण-पूर्व में ताजिकिस्तान।
    • दक्षिण में अफगानिस्तान।
    • दक्षिण-पश्चिम में तुर्कमेनिस्तान।
  • भौगोलिक विशेषताएँ: देश की स्थलाकृति में लगभग 80% रेतीले रेगिस्तान का प्रभुत्व है, मुख्य रूप से काइजिल कुम रेगिस्तान (Kyzyl Kum Desert), साथ ही पश्चिम में विशाल तराई क्षेत्र। 
  • दक्षिण-पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में तियान शान पर्वतमाला (Tian Shan Range) की तलहटी और निचले पहाड़ हैं, जो हिमालय का विस्तार है। 
  • उच्चतम बिंदु: सबसे ऊँची चोटी, एडेलुंगा तोघी (Adelunga Toghi), उत्तर-पूर्व में अवस्थित है। जिसकी ऊँचाई 4,301 मीटर है। 
  • पर्वत शृंखलाओं के बीच स्थित फरगना घाटी (Fergana Valley) को मध्य एशिया में सर्वोत्तम कृषि भूमि और जलवायु वाला माना जाता है।
  • नदियाँ एवं झीलें
    • आमु दरिया एवं सिर दरिया उज्बेकिस्तान की प्रमुख नदियाँ हैं।
    • उज्बेकिस्तान और कजाखस्तान के साथ सीमा साझा करने वाला अराल सागर जल कुप्रबंधन के कारण पारिस्थितिकी रूप से समाप्त होने के कगार पर है, जो विश्व के सबसे बड़े पर्यावरणीय संकटों में से एक है।
    • प्रमुख झीलों में आयडारकुल झील (Aydarkul Lake) एवं सर्यकामिश झील (Sarykamish Lake) शामिल हैं।
  • वनस्पति: शुष्क परिदृश्य के कारण प्रमुख वनस्पतियाँ रेगिस्तानी झाड़ी हैं। हालाँकि, फरगना घाटी जैसे उपजाऊ क्षेत्र गहन कृषि का समर्थन करते हैं।
  • प्राकृतिक संसाधन: उज्बेकिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों में प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम, कोयला एवं सोना, यूरेनियम तथा ताँबे जैसे खनिज के पर्याप्त भंडार शामिल हैं।
    • इसके पास दुनिया का चौथा सबसे बड़ा स्वर्ण भंडार है।

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs- MHA) की वेबसाइट पर अपलोड किए गए एक नोटिस में गैर-सरकारी संगठनों को विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम [Foreign Contribution (Regulation) Act- FCRA], 2010 के तहत पंजीकरण या नवीनीकरण से इनकार करने के 17 कारण सूचीबद्ध किए हैं।

गैर-सरकारी संगठन (NGO)

  • NGO वे निकाय हैं, जो सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किसी भी सरकार के अंतर्गत न रहकर स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।
  • NGO आम तौर पर गैर-लाभकारी नागरिक समाज संगठन होते हैं, जो मानवीय कारण या पर्यावरण की सुरक्षा जैसे सामाजिक अथवा राजनीतिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए सामुदायिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित होते हैं।
  • क्षेत्र: NGO महिलाओं के अधिकारों, पर्यावरण, स्वास्थ्य देखभाल, राजनीतिक सिफारिशें, श्रमिक संघ, धार्मिक आस्था, वृद्ध वयस्कों की देखभाल तथा युवा सशक्तीकरण सहित कई मुद्दों एवं क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • प्रकार
    • ऑपरेशनल NGO : यह विकास परियोजनाओं के डिजाइन एवं कार्यान्वयन पर केंद्रित है।
    • एडवोकेसी NGO: यह एक विशिष्ट कारण का बचाव या प्रचार करता है एवं सार्वजनिक नीति को प्रभावित करने का प्रयास करता है।

पंजीकरण रद्द करने या नवीनीकरण के लिए बताए गए कारण

  • कल्याण अभिविन्यास (Welfare Orientation): यदि क्षेत्रीय जाँच में यह पाया गया कि पिछले 2-3 वर्षों के दौरान एसोसिएशन द्वारा समाज के कल्याण के लिए कोई उचित गतिविधि नहीं की गई है या एसोसिएशन स्वयं निष्क्रिय हो गई है।
  • सदस्य का अभियोजन: यदि किसी पदाधिकारी, सदस्य या प्रमुख कार्यकर्ता को किसी कानून के तहत दोषी ठहराया गया हो या उनके विरुद्ध किसी अपराध के लिए अभियोजन लंबित हो।
  • गैर-उत्तरदायी: एसोसिएशन ने माँगे गए आधिकारिक स्पष्टीकरण का जवाब नहीं दिया है, न ही अपेक्षित जानकारी/दस्तावेज उपलब्ध कराए हैं।
  • अनुचित आवेदन-पत्र: एसोसिएशन द्वारा अपने आवेदन-पत्र में तथ्यों/सूचनाओं को छिपाया जाना अथवा आवेदन-पत्र अपूर्ण होना।
  • बेनामी संगठन: यदि क्षेत्रीय जाँच में पाया जाता है कि पदाधिकारी/सदस्य काल्पनिक/बेनामी हैं और केवल नाममात्र के हैं, क्योंकि एसोसिएशन द्वारा अपने प्रपत्र FC-3C/FC-3A में दिए गए पते पर कोई भी नहीं मिलता है।
  • गलत पता: एसोसिएशन द्वारा अपने फॉर्म  FC-3C/FC-3A में दिए गए पते पर एसोसिएशन मौजूद नहीं है।
  • पहले भी खारिज हो चुका है आवेदन: एसोसिएशन का पंजीकरण प्रमाण-पत्र पहले ही रद्द किया जा चुका है। इसलिए एसोसिएशन रद्दीकरण की तारीख से तीन वर्ष तक FC स्वीकार करने के लिए पात्र नहीं है।
  • निधियों का विचलन: विदेशी अंशदान का उपयोग विकास विरोधी गतिविधियों या दुर्भावनापूर्ण विरोध प्रदर्शनों को भड़काने के लिए किया जा रहा है।
  • व्यक्तिगत लाभ के लिए फंड का उपयोग: क्षेत्रीय जाँच से पता चला है कि एसोसिएशन या पदाधिकारियों द्वारा FC फंड का उपयोग अवांछनीय गतिविधियों अथवा व्यक्तिगत लाभ के लिए किया गया है।
  • राष्ट्र-विरोधी संगठन के साथ संबंध: यदि एसोसिएशन प्रतिकूल गतिविधियों में शामिल है, जैसे विकास विरोधी गतिविधियों में शामिल होना, दुर्भावनापूर्ण इरादे से विरोध प्रदर्शन भड़काना, आतंकवादी संगठन / राष्ट्र विरोधी संगठनों से संबंध आदि।
  • प्रतिकूल संगति: यदि एसोसिएशन या उसके किसी सदस्य का कट्टरपंथी/आतंकवादी संस्थाओं से संबंध है।
  • धर्म परिवर्तन में शामिल: यदि FC फंड की स्वीकृति से सामाजिक/धार्मिक सद्भाव प्रभावित होने की संभावना है या एसोसिएशन बलपूर्वक धार्मिक रूपांतरण/धर्मांतरण में शामिल है।
    • यदि एसोसिएशन ने पिछले 05 वर्षों के दौरान एसोसिएशन के लक्ष्य एवं उद्देश्यों के अनुसार परियोजनाओं के लिए किसी भी FC का उपयोग नहीं किया है।
  • FCRA 2010 की धारा 18 का उल्लंघन: एसोसिएशन ने पिछले 6 वित्तीय वर्षों में से किसी का भी वार्षिक रिटर्न अपलोड नहीं किया है।
  • एसोसिएशन ने अधिनियम या नियमों के किसी एक या अधिक प्रावधानों का उल्लंघन किया है जैसे:-
    • प्रशासनिक व्यय 2O प्रतिशत से अधिक।
    • वार्षिक रिटर्न में विसंगति।
    • वार्षिक रिटर्न के साथ बैंक स्टेटमेंट, आय एवं व्यय खाता, रसीद तथा भुगतान खाता एवं बैलेंस शीट अपलोड नहीं की गई है।
    • FC को एक ऐसे बैंक खाते में स्थानांतरित किया गया, जो एक गैर-FCRA खाता है।
  • कल्याण मानदंड: एसोसिएशन ने पिछले O3 वित्तीय वर्षों के दौरान समाज के लाभ के लिए अपनी मुख्य गतिविधियों के लिए न्यूनतम 15 लाख रुपये की राशि खर्च करने के मानदंड को पूरा नहीं किया है।
  • निष्क्रिय: एसोसिएशन 03 वर्षों से अस्तित्व में नहीं है।

विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के बारे में

  • यह राष्ट्रीय हित के लिए हानिकारक किसी भी गतिविधि के लिए कुछ संघों द्वारा विदेशी योगदान की स्वीकृति एवं उपयोग को नियंत्रित तथा प्रतिबंधित करता है।
  • अधिनियमन: FCRA को वर्ष 1976 में आपातकाल के दौरान लागू किया गया था, जब ऐसी चिंता थी कि विदेशी शक्तियाँ स्वतंत्र संगठनों के माध्यम से देश में धन भेजकर भारत के मामलों में हस्तक्षेप कर रही हैं।
  • प्रमुख संशोधन
    • FCRA संशोधन 2020: कानून में पुनः संशोधन किया गया, जिससे सरकार को गैर-सरकारी संगठनों की विदेशी धनराशि की प्राप्ति और उपयोग पर अधिक कड़ा नियंत्रण और जाँच का अधिकार मिल गया।
    • विदेशी अंशदान (विनियमन) (संशोधन) नियम, 2022: इसने अधिनियम के अंतर्गत समझौता योग्य अपराधों की संख्या 7 से बढ़ाकर 12 कर दी।
      • 10 लाख रुपये से कम के योगदान पर सरकार को सूचना देने से छूट, पहले सीमा 1 लाख रुपये थी। 
      • बैंक खाते खोलने की सूचना की समय सीमा बढ़ाई गई।
  • विदेशी योगदान स्वीकार करने पर प्रतिबंध: यह अधिनियम चुनावी उम्मीदवारों, पत्रकारों या समाचार-पत्र एवं मीडिया प्रसारण कंपनियों, न्यायाधीशों तथा सरकारी कर्मचारियों, विधायिका एवं राजनीतिक दलों के सदस्यों या उनके पदाधिकारियों, सार्वजनिक सेवकों तथा राजनीतिक प्रकृति के संगठनों को विदेशी निधि योगदान स्वीकार करने से रोकता है। 
  • अवधि: FCRA पंजीकरण पाँच वर्ष के लिए वैध है। 
    • गैर-सरकारी संगठनों से अपेक्षा की जाती है कि वे पंजीकरण समाप्ति तिथि के छह महीने के भीतर नवीनीकरण के लिए आवेदन करें। नवीनीकरण के लिए आवेदन न करने की स्थिति में पंजीकरण समाप्त माना जाएगा।

संदर्भ

हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में अंतर-राज्यीय परिषद (Inter-State Council- ISC) का पुनर्गठन किया गया है।

  • अंतर-राज्यीय परिषद (ISC) की स्थायी समिति का भी पुनर्गठन किया गया एवं केंद्रीय गृह मंत्री को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

पुनर्गठित परिषद की संरचना 

  • अध्यक्ष: प्रधानमंत्री
  • सदस्य: विधानसभा वाले सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री तथा विधानसभा नहीं रखने वाले केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासक।
    • 9 केंद्रीय मंत्री भी परिषद के सदस्य के रूप में कार्य करेंगे।
  • स्थायी आमंत्रित सदस्य: 13 केंद्रीय मंत्री स्थायी आमंत्रित सदस्य हैं।

अंतर-राज्यीय परिषद (Inter-State Council- ISC) की स्थायी समिति के बारे में

  • सदस्य: इसमें 12 अन्य सदस्य शामिल होंगे, जिनमें वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री एवं महाराष्ट्र, ओडिशा तथा आंध्र प्रदेश सहित सात राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हैं।
  • कार्य
    • व्यापक अंतर-राज्यीय परिषद द्वारा विचार किए गए मुद्दों पर निरंतर परामर्श की सुविधा प्रदान करना। 
    • यह ISC के समक्ष प्रस्तुत किए जाने से पहले केंद्र-राज्य संबंधों से संबंधित मुद्दों की समीक्षा एवं प्रसंस्करण के लिए जिम्मेदार है।
    • समिति ISC सिफारिशों के कार्यान्वयन की निगरानी भी करती है।

अंतर-राज्यीय परिषद (ISC) के बारे में

  • अंतर-राज्यीय परिषद भारत के संविधान के अनुच्छेद-263 के तहत स्थापित एक गैर-स्थायी संवैधानिक निकाय है।
  • स्थापना: ISC की स्थापना पहली बार 28 मई, 1990 को सरकारिया आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रपति के आदेश द्वारा की गई थी।
  • उद्देश्य: इस निकाय का गठन संवाद को प्रोत्साहित करने, विवादों को सुलझाने तथा संघीय शासन एवं अंतर-राज्यीय सहयोग से संबंधित चिंताओं का समाधान करने के लिए किया गया है।
  • जिम्मेदारियाँ
    • केंद्र-राज्यों के बीच विवाद समाधान: ISC चर्चा की सुविधा प्रदान करके राज्यों के बीच विवादों को सुलझाने में मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है एवं सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए सिफारिशें प्रदान करता है।
    • सहयोगात्मक नीति निर्धारण: परिषद कई राज्यों या संघ या एक अथवा अधिक राज्यों के सामान्य हित के विषयों पर चर्चा एवं जाँच करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करती है, जिससे समन्वित नीतिगत निर्णय लिए जाते हैं।
    • नीति समन्वय एवं सिफारिशें: ISC विभिन्न विषयों एवं मुद्दों पर सिफारिशें करता है, जो देश भर में नीतियों के सुसंगत तथा प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देता है।
  • सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने में भूमिका 
    • नीति समन्वय को सुविधाजनक बनाना: ISC राज्यों एवं केंद्र सरकार के बीच संवाद, नीतियों पर चर्चा तथा विवादों को सुलझाने के लिए एक प्रभावी मंच प्रदान करता है।
      • उदाहरण: ISC राज्यों में वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) के कार्यान्वयन के समन्वय में शामिल था।
    • विधान में एकरूपता: ISC राज्यों में कानूनों में एकरूपता सुनिश्चित करता है क्योंकि यह विभिन्न सरकारों को एक साथ आने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
      • उदाहरण: ISC चर्चाओं से राज्य कानूनों को केंद्र सरकार की कृषि उपज बाजार समिति (Agricultural Produce Market Committee- APMC) अधिनियम सुधारों के साथ संरेखित किया गया।
    • संघर्ष समाधान: ISC अंतर-राज्य विवादों को संबोधित करता है एवं सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए उपायों की सिफारिश करता है।
      • उदाहरण: कर्नाटक एवं तमिलनाडु के बीच कावेरी जल विवाद की मध्यस्थता में ISC की भूमिका।
    • संघीय ढाँचे को मजबूत बनाना: मंच कुछ क्षेत्रों में अधिक राज्य स्वायत्तता की सिफारिश करके विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देता है।
      • उदाहरण: पुंछी आयोग द्वारा सुझाई गई सिफारिशों के अनुसार, राज्यों को समवर्ती सूची के तहत विषयों को विकेंद्रीकृत करने की सिफारिशें।
    • सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना: ISC एक ऐसा मंच भी है, जहाँ राज्य अन्य राज्यों में सर्वोत्तम प्रथाओं के कार्यान्वयन पर विचार-विमर्श कर सकते हैं।
    • कार्यान्वयन की निगरानी: ISC अपनी सिफारिशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए एक प्रणाली विकसित करता है।
  • चुनौतियाँ 
    • स्थायी निकाय नहीं है: ISC एक स्थायी निकाय नहीं होने के कारण नियमित समय अंतराल पर बैठक करने के लिए बाध्य नहीं है, जिससे इसकी प्रभावशीलता कम हो जाती है।
      • उदाहरण: वर्ष 1990 में अपनी स्थापना के बावजूद, ISC की केवल कुछ ही बैठकें हुई हैं, जिससे चल रहे मुद्दों को संबोधित करने की इसकी क्षमता प्रभावित हुई है।
    • सलाहकार की भूमिका: ISC के पास सीमित अधिकार हैं क्योंकि इसका केवल एक सलाहकार कार्य है एवं इसकी सिफारिशें बाध्यकारी नहीं हैं, जिससे इसका प्रभाव सीमित हो जाता है।
      • उदाहरण: पुलिस सुधारों एवं सार्वजनिक व्यवस्था पर कई सिफारिशें उनकी गैर-बाध्यकारी प्रकृति के कारण लागू नहीं की गई हैं।
    • संसाधन की कमी: ISC के पास विस्तृत अध्ययन एवं अनुवर्ती कार्रवाई तथा प्रशासनिक सहायता करने के लिए आवश्यक कर्मचारी एवं वित्तीय संसाधन जैसे पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, जो इसके प्रभावी कामकाज में बाधा डालते हैं।
    • राजनीतिक इच्छाशक्ति: राजनीतिक मतभेद एवं राज्यों तथा केंद्र से प्रतिबद्धता की कमी ISC की क्षमता में बाधा डालती है।
      • उदाहरण: राजनीतिक असहमति अक्सर राजकोषीय संघवाद एवं शक्तियों के हस्तांतरण जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर आम सहमति में देरी करती है।
  • कार्यात्मक दोहराव: ISC की भूमिका कभी-कभी अन्य अंतर-सरकारी निकायों के साथ ओवरलैप हो जाती है, जिससे कार्यात्मक दोहराव होता है।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय विकास परिषद (National Development Council- NDC) एवं वित्त आयोग के साथ ओवरलैप होने से ISC की विशिष्ट उपयोगिता कम हो जाती है।

संदर्भ

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने कुछ सीमाओं का उल्लंघन होने पर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) द्वारा किए गए निवेश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में पुनर्वर्गीकृत करने के लिए एक परिचालन रूपरेखा जारी की है।

भारत में विदेशी निवेश के लिए FDI रूट

  • स्वचालित रूट: स्वचालित रूट के तहत, किसी अनिवासी निवेशक या भारतीय कंपनी को निवेश करने के लिए भारत सरकार से अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है।
  • सरकारी रूट: सरकारी रूट के अंतर्गत निवेश के लिए भारत सरकार से पूर्व अनुमोदन आवश्यक है।
    • इस रूट से FDI के प्रस्तावों की समीक्षा और अनुमोदन संबंधित प्रशासनिक मंत्रालय या विभाग द्वारा किया जाता है।
    • विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल (FIFP): FIFP सरकारी अनुमोदन की आवश्यकता वाले अनुप्रयोगों के लिए एकल-खिड़की निकासी पोर्टल के रूप में कार्य करता है।
    • इसे वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत उद्योग तथा आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) द्वारा प्रशासित किया जाता है।
  • FPI का FDI में पुनर्वर्गीकरण: जिन क्षेत्रों में FDI  प्रतिबंधित है, वहाँ FPI निवेश को FDI  में पुनर्वर्गीकृत करने की सुविधा की अनुमति नहीं है।
  • भारत में FDI-निषिद्ध क्षेत्र
    • जुआ और सट्टा।
    • चिट फंड।
    • निधि कंपनी।
    • हस्तांतरणीय विकास अधिकारों (Transferable Development Rights- TDR) में व्यापार।
    • रियल एस्टेट व्यवसाय।
    • तंबाकू उत्पादों का विनिर्माण।
    • लॉटरी व्यवसाय, जिसमें सरकारी और निजी लॉटरी और ऑनलाइन लॉटरी शामिल हैं।
    • निजी क्षेत्र में प्रतिबंधित निवेश।
  • परमाणु ऊर्जा और रेलवे परिचालन जैसे कुछ क्षेत्र, समेकित FDI नीति के तहत अनुमत गतिविधियों को छोड़कर, निजी क्षेत्र के निवेश के लिए खुले नहीं हैं।

फ्रेमवर्क की मुख्य विशेषताएँ 

  • FPI निवेश सीमा: विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के तहत, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) को किसी कंपनी की कुल चुकता इक्विटी पूँजी का 10% तक रखने की अनुमति है।
    • यदि कोई FPI या उसका निवेशक समूह इस सीमा का उल्लंघन करता है, तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में पुनर्वर्गीकरण अनिवार्य हो जाता है।
  • 10% की सीमा का उल्लंघन करने वाले FPI के लिए विकल्प: 10% की सीमा पार करने वाले FPI को या तो अपनी अतिरिक्त हिस्सेदारी बेचनी होगी अथवा अपने निवेश को FDI के रूप में पुनर्वर्गीकृत करना होगा।
    • RBI के दिशा-निर्देशों के अनुसार, इस आवश्यकता का अनुपालन करने के लिए उनके पास व्यापार निपटान की तारीख से पाँच दिन का समय होता है।
  • पुनर्वर्गीकरण के लिए शर्तें: एक बार पुनर्वर्गीकृत हो जाने पर, FPI द्वारा किया गया संपूर्ण निवेश FDI माना जाएगा तथा उसे इसी श्रेणी में रखा जाएगा, भले ही बाद में उसकी हिस्सेदारी 10% की सीमा से नीचे चली जाए।
    • पुनर्वर्गीकरण प्रयोजनों के लिए, FPI तथा उसके निवेशक समूह को एक ही इकाई माना जाएगा।
  • आवश्यक सरकारी अनुमोदन: पुनर्वर्गीकरण चाहने वाले FPI को भारत सरकार से आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करना होगा, विशेष रूप से उन देशों से होने वाले निवेश के लिए जो भारत के साथ स्थलीय सीमा साझा करते हैं।
    • यदि निवेश का लाभकारी स्वामी इन सीमावर्ती देशों का नागरिक या निवासी है तो अतिरिक्त अनुमोदन की आवश्यकता होगी, क्योंकि उन्हें किसी भी प्रकार के FDI के लिए सरकारी मार्ग की आवश्यकता होती है।
  • गैर-सीमावर्ती देश के निवेशकों के लिए छूट: इस नीति के अधीन न आने वाले देशों के निवेशकों को लेन-देन के बाद केवल आरबीआई को सूचित करना होगा, इसके लिए सरकार की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
  • SEBI के साथ समन्वय: RBI के साथ-साथ SEBI ने भी FPI से FDI पुनर्वर्गीकरण की प्रक्रिया का विवरण देते हुए अपना स्वयं का परिपत्र जारी किया है, जिससे विनियामक संरेखण और प्रक्रियात्मक स्पष्टता सुनिश्चित हुई है।

विदेशी निवेश के प्रकार

आधार

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI)

विदेशी संस्थागत निवेशक (FII)

अर्थ 
  • दीर्घकालिक निवेश जहाँ कोई विदेशी संस्था किसी घरेलू कंपनी में नियंत्रण हिस्सेदारी प्राप्त करती है या परिचालन स्थापित करती है।
  • यह ऋण सृजन नहीं है।
  • स्टॉक और बॉण्ड जैसी वित्तीय परिसंपत्तियों में बिना किसी नियंत्रणकारी हिस्सेदारी के निवेश।
  • यह एक अल्पकालिक निवेश है।

संस्थागत निवेशक (जैसे, पेंशन फंड, म्यूचुअल फंड) जो किसी देश के वित्तीय बाजारों में निवेश करते हैं।

स्वामित्व नियंत्रण 

इसमें घरेलू कंपनी के प्रबंधन पर महत्त्वपूर्ण स्वामित्व और नियंत्रण शामिल है, जिससे निवेश स्थिर तथा दीर्घकालिक बनता है।

इसमें कंपनी पर नियंत्रण शामिल नहीं होता; इसमें आमतौर पर अल्पसंख्यक शेयरधारिता शामिल होती है।

FPI के समान
क्षेत्र प्रतिबंध 

क्षेत्र-विशिष्ट सीमा और कुछ क्षेत्रों में सरकारी अनुमोदन के अधीन।

इसमें प्रतिबंध कम हैं, क्योंकि इसमें सूचीबद्ध प्रतिभूतियों में निष्क्रिय निवेश शामिल है।

प्रतिबंध कम होंगे, लेकिन सेबी के दिशा-निर्देशों और विनियमों का पालन करना होगा।

बाजार  प्राथमिक बाजार में। द्वितीयक बाजार में। द्वितीयक बाजार में।
निवेश की प्रकृति  भौतिक संपत्तियाँ शामिल हैं। वित्तीय परिसंपत्तियों में निवेश। मुख्यतः वित्तीय परिसंपत्तियों में।
भारत में नियामक निकाय 

उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग ( DPIIT)

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड  (SEBI)

वित्त वर्ष 2023-24 के लिए भारत में FDI रुझान

पहलू (Aspect)

विवरण (Details)

कुल FDI अंतर्वाह 70.95 बिलियन डॉलर
FDI इक्विटी अंतर्वाह 44.42 बिलियन डॉलर
सर्वाधिक योगदान देने वाले देश मॉरीशस (25%)>सिंगापुर (23%)>अमेरिका (9%)>नीदरलैंड (7%)>जापान (6%)
FDI प्राप्त करने वाले शीर्ष क्षेत्र सेवा क्षेत्र (16%) (वित्त, बैंकिंग, बीमा, व्यवसाय आउटसोर्सिंग, अनुसंधान एवं विकास, आदि शामिल हैं) >कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर (15%)> ट्रेडिंग (6%)> दूरसंचार (6%)> ऑटोमोबाइल उद्योग (5%)
शीर्ष प्राप्तकर्ता राज्य महाराष्ट्र (30%)> कर्नाटक (22%)> गुजरात (17%)> दिल्ली (13%)> तमिलनाडु (5%)

संदर्भ

भारत सरकार के कार्मिक प्रशिक्षण विभाग (DoPT) की वर्ष 2023-24 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा निहितार्थ वाले जटिल साइबर अपराधों की जाँच की गई।

संबंधित तथ्य 

  • वर्ष 2023 की CERT-In रिपोर्ट: भारतीय ‘कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम’ (CERT-In) के अनुसार, साइबर सुरक्षा की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2017 में 53,117 की तुलना में वर्ष 2023 में 15,92,917 मामलों तक पहुँच गई।

‘डिस्ट्रिब्यूटेड डिनायल-ऑफ-सर्विस’ (Distributed Denial of Service- DDOS)

  • DDOS हमले सर्वरों पर ‘डेटा रिक्वेस्ट’ की संख्या को बढ़ाकर इंटरनेट ट्रैफिक को बाधित कर देते हैं, जिससे सेवाएँ बाधित हो जाती हैं।

कार्मिक प्रशिक्षण विभाग (DoPT) रिपोर्ट, वर्ष 2023 की मुख्य विशेषताएँ

  • वर्ष 2023 में होने वाले साइबर हमले 
    • रक्षा इकाई पर रैनसमवेयर हमला: एक महत्त्वपूर्ण भारतीय रक्षा इकाई को रैनसमवेयर हमले का निशाना बनाया गया।
    • ‘डेटा ब्रीच’ (Data Breach): एक महत्त्वपूर्ण डेटा ब्रीच ने लाखों भारतीय नागरिकों की संवेदनशील जानकारी को उजागर कर दिया।
    • एक सरकारी मंत्रालय में मैलवेयर हमला: एक सरकारी मंत्रालय पर मैलवेयर हमला हुआ, जिससे संभावित रूप से संवेदनशील सूचनाओं के लीक होने की संभावना जताई गई।
    • महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे और हवाई अड्डों पर DDOS हमला: एक बड़े पैमाने पर ‘डिस्ट्रिब्यूटेड डिनायल-ऑफ-सर्विस’ (Distributed Denial-of-Service- DDOS) हमले ने हवाई अड्डों सहित महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को निशाना बनाया।
  •  सीमा-पार साइबर अपराध जाँच: CBI ने धोखाधड़ी वाले नेटवर्क को समाप्त करने के लिए ‘फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन’ (FBI), रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस’ (RCPM) तथा सिंगापुर पुलिस सहित अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग किया। उदाहरण के रूप में
    • नकली तकनीकी सहायता से जुड़े $2 मिलियन के क्रिप्टोकरेंसी घोटाले का खुलासा।
    • कनाडाई नागरिकों से धोखाधड़ी करने वाले दिल्ली स्थित एक कॉल सेंटर की पहचान की जा रही है।
    • ऑस्ट्रेलियाई नागरिक द्वारा भारत में कर चोरी से जुड़े क्रिप्टोकरेंसी धोखाधड़ी का पता लगाना।
  • निवेश तथा ऋण ऐप्स में साइबर धोखाधड़ी: CBI ने भारतीय नागरिकों को निशाना बनाकर धोखाधड़ी वाले ऋण और निवेश ऐप्स की जाँच की, जो अक्सर पड़ोसी देशों से संचालित होते थे।
    • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आग्रह पर, CBI ने  UCO बैंक में तत्काल भुगतान सेवा (Immediate Payment Service-IMPS) धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया, जिसमें कई बैंकों में रिवर्स लेनदेन शामिल था, जिसकी राशि 820 करोड़ रुपये थी।

साइबर अटैक के बारे में 

  • परिभाषा: साइबर अटैक किसी नेटवर्क, कंप्यूटर प्रणाली या डिजिटल डिवाइस तक अनधिकृत पहुँच के माध्यम से डेटा, एप्लिकेशन या अन्य परिसंपत्तियों को चुराने, उजागर करने, बदलने, अक्षम करने या नष्ट करने का जानबूझकर किया गया प्रयास है।
    • वे व्यक्तियों, संगठनों या यहाँ तक ​​कि पूरे राष्ट्र को निशाना बना सकते हैं, जिनका उद्देश्य वित्तीय लाभ से लेकर जासूसी, हैकटिविज्म (Hacktivism) या केवल व्यवधान उत्पन्न करना हो सकता है।

हाल के वर्षों में प्रमुख साइबर हमले

  • वर्ष 2017 में वॉनाक्राई रैनसमवेयर (WannaCry ransomware) अटैक: वानाक्राई रैनसमवेयर हमले ने डेटा को एन्क्रिप्ट करके और बिटकॉइन में फिरौती की माँग करके विंडोज कंप्यूटरों को निशाना बनाया गया था।
  • वर्ष 2021 में कोलोनियल पाइपलाइन हमला (Colonial Pipeline Attack): अमेरिका में सबसे बड़ी ईंधन पाइपलाइन पर रैनसमवेयर हमला हुआ, जिससे ईंधन की कमी हो गई और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हो गईं।
  • अकीरा रैनसमवेयर (Akira Ransomware) अटैक: दुर्भावनापूर्ण सॉफ्टवेयर, जो विंडोज और लाइनेक्स दोनों डिवाइसों को टारगेट करता है, डेटा को एन्क्रिप्ट करता है और डिक्रिप्शन के लिए फिरौती की माँग करता है।
    • भारत सरकार की ‘कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम’ (CERT-In) ने अकीरा रैनसमवेयर के बारे में चेतावनी जारी की है।
  • लॉकबिट रैनसमवेयर (LockBit Ransomware): जनवरी 2023 में, लॉकबिट ने यूनाइटेड किंगडम डाक सेवाओं को निशाना बनाया, जिससे अंतरराष्ट्रीय शिपिंग संचालन अवरुद्ध हो गया।
  • वर्ष 2023 में AIIMS की कंप्यूटर प्रणाली पर रैनसमवेयर अटैक: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), दिल्ली पर रैनसमवेयर हमला हुआ, जिससे अस्पताल की डिजिटल रोगी प्रबंधन प्रणाली बाधित हो गई।

साइबर हमलों के प्रकार 

  • मैलवेयर (Malware): वायरस, वर्म्स तथा रैनसमवेयर जैसे दुर्भावनापूर्ण सॉफ्टवेयर, जो डेटा चुराने, फाइलों को करप्ट करने या डेटा को नियंत्रित करने के लिए सिस्टम में अवैध तरीके से खोजबीन करते हैं।
    • रैनसमवेयर (Ransomware): रैनसमवेयर एक परिष्कृत मैलवेयर है, जो डेटा या सिस्टम को हॉस्टेज  बनाने के लिए मजबूत एन्क्रिप्शन का उपयोग करता है।
      • यह तब तक मैलवेयर के माध्यम से सिस्टम तक पहुँच को अवरुद्ध करता है, जब तक कि फिरौती का भुगतान नहीं किया जाता है।
  • फिशिंग (Phishing): फिशिंग संदेशों को अक्सर इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि ऐसा लगे कि वे किसी वैध स्रोत से आ रहे हैं।
    • उदाहरण: आयुष्मान भारत फिशिंग हमला, सरकारी योजना के तहत मुफ्त स्वास्थ्य बीमा का झूठा दावा करके उपयोगकर्ताओं को धोखा देता है तथा उन्हें एक धोखाधड़ी वाले लिंक के माध्यम से व्यक्तिगत जानकारी साझा करने के लिए प्रेरित करता है।
  • ‘मैन-इन-द-मिडिल’ (Man-in-the-Middle- MitM): दो पक्षों के बीच संचार को बाधित करना और उसमें परिवर्तन करना, अक्सर डेटा चुराने या मैलवेयर इंस्टाल करने के लिए किया जाता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2017 में, क्रेडिट रिपोर्टिंग एजेंसी ‘इक्विफैक्स’ (Equifax) अपने वेब एप्लिकेशन फ्रेमवर्क में एक अप्रकाशित भेद्यता के कारण ‘मैन-इन-द-मिडिल’ हमले का शिकार हुई थी।
      • इस हमले से लगभग 150 मिलियन लोगों की वित्तीय जानकारी लीक हो गई।
  • SQL इंजेक्शन: डाटाबेस में मौजूद कमजोरियों का लाभ उठाकर डाटा में हेरफेर या चोरी करना।
    • उदाहरण: वर्ष 2008 में, प्रमुख अमेरिकी भुगतान प्रसंस्करण कंपनी ‘हार्टलैंड पेमेंट सिस्टम्स’ पर SQL इंजेक्शन हमला हुआ था।

साइबर सुरक्षा के बारे में

  • परिभाषा: साइबर सुरक्षा या सूचना प्रौद्योगिकी सुरक्षा, कंप्यूटर, नेटवर्क, प्रोग्राम और डेटा को अनधिकृत पहुँच या शोषण के उद्देश्य से किए जाने वाले हमलों से बचाने की तकनीकें हैं।
  • साइबर सुरक्षा के घटक
    • एप्लिकेशन सुरक्षा: डिजाइन, विकास, परिनियोजन और रखरखाव के दौरान सुरक्षा खतरों से एप्लिकेशन की सुरक्षा करता है।
    • सूचना सुरक्षा: अनधिकृत पहुँच से संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा करता है, गोपनीयता सुनिश्चित करता है और पहचान की चोरी को रोकता है।
    • नेटवर्क सुरक्षा: साइबर खतरों के विरुद्ध नेटवर्क सिस्टम की सुरक्षा, अखंडता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करता है।
    • आपदा पुनर्प्राप्ति योजना (Disaster Recovery Planning): साइबर हमलों से उबरने और व्यवसाय निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए जोखिम मूल्यांकन और रणनीति विकास शामिल है।

भारत और साइबर हमलों के प्रति इसकी संवेदनशीलता

  • भारत का तीव्र डिजिटलीकरण: भारत विश्व की 17 अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में दूसरी सबसे तेजी से डिजिटलीकरण करने वाली अर्थव्यवस्था है और इसमें वर्ष 2025 तक डिजिटल अर्थव्यवस्था से 1 ट्रिलियन डॉलर तक का आर्थिक मूल्य सृजित करने की क्षमता है।
    • वर्ष 2024 की शुरुआत में भारत में 751.5 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता थे, जबकि इंटरनेट की पहुँच 52.4 प्रतिशत थी।
    • डिजिटलीकरण के व्यापक पैमाने और डिजिटल फुटप्रिंट के विस्तार से साइबर हमलों की भेद्यता काफी बढ़ गई है।
  • भारतीय डेटा सुरक्षा परिषद (DSCI) और ‘क्विक हील’ द्वारा जारी ‘इंडिया साइबर थ्रेट रिपोर्ट- 2023’ के अनुसार-
    • पता लगाया गया: लगभग 8.5 मिलियन एंडपॉइंट पर 400 मिलियन से अधिक का पता लगाया गया।
    • जाँच दर: प्रति मिनट औसतन 761 जाँच।
    • रैनसमवेयर घटना अनुपात: प्रति 650 जाँच पर 1 रैनसमवेयर घटना। 
    • मैलवेयर घटना अनुपात: प्रति 38,000 जाँच में 1 मैलवेयर घटना।
  • साइबर सुरक्षा फर्म ‘जेडस्केलर’ (Zscaler) के अनुसार, भारत में वर्ष 2023 में 79 मिलियन साइबर हमले दर्ज किए गए और यह अमेरिका एवं ब्रिटेन के बाद फिशिंग हमलों के लिए वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा देश है।
    • प्रौद्योगिकी क्षेत्र में हमलों की सबसे अधिक मात्रा देखी गई, जो देश में देखे गए लगभग 33 प्रतिशत फिशिंग हमलों के लिए जिम्मेदार है।

भारतीय डेटा सुरक्षा परिषद (Data Security Council of India- DSCI)

  • यह भारत में डेटा संरक्षण और साइबर सुरक्षा पर एक प्रमुख उद्योग निकाय है, जिसे नैसकॉम द्वारा स्थापित किया गया है।

भारत के लिए साइबर हमलों के परिणाम

  • ‘डेटा ब्रीच’ (Data Breaches): व्यक्तिगत, वित्तीय या ‘प्रोप्राइटरी डेटा’ की हानि या प्रकटीकरण से पहचान की चोरी, धोखाधड़ी और वित्तीय हानि हो सकती है।
    • ICMR डेटा ब्रीच: अक्टूबर 2023 में अमेरिकी साइबर सुरक्षा और खुफिया एजेंसी ‘रीसिक्योरिटी’ ने भारतीयों के आधार और पासपोर्ट की जानकारी के साथ-साथ उनके नाम, फोन नंबर और पते के डेटा लीक का अलर्ट जारी किया था।
  • वित्तीय लागत: चोरी, फिरौती भुगतान और परिचालन व्यवधानों से प्रत्यक्ष लागत, साथ ही विश्वास में कमी और कानूनी दंड जैसे दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं।
    • उदाहरण: भारत के अग्रणी क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंजों में से एक, WazirX को हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा उल्लंघन का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 230 मिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे: विद्युत ग्रिड, जल आपूर्ति प्रणालियों और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं जैसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे पर हमलों से सार्वजनिक सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2019 में, उत्तर कोरिया के लाजरस (Lazarus) समूह से जुड़े मैलवेयर ने भारत में कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र के प्रशासनिक नेटवर्क पर एक सिस्टम को प्रभावित कर दिया था।
  • साइबर जासूसी (Cyber Espionage): साइबर जासूसी से तात्पर्य डिजिटल उपकरणों के उपयोग से है, जो अक्सर राजनीतिक, सैन्य या आर्थिक लाभ के लिए सरकारों, संगठनों या व्यक्तियों से संवेदनशील जानकारी की जासूसी अथवा चोरी करते हैं।
    • उदाहरण: ऑपरेशन साइडकॉपी (पाकिस्तान से जुड़े हैकर्स) ने भारतीय सैन्य और भारत में महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) को निशाना बनाया।
  • प्रौद्योगिकी के प्रति नकारात्मक धारणा: उच्च स्तरीय साइबर घटना से प्रौद्योगिकी के प्रति व्यापक अविश्वास उत्पन्न हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं:-
    • 5G, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे नए उपकरणों को अपनाने में अनिच्छा।
    • तकनीकी प्रदाताओं में विश्वास की कमी।
    • तकनीकी क्षेत्र में विदेशी निवेश में मंदी।
    • नियामक जाँच में वृद्धि।
  • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: पीड़ितों को अवसाद, शर्मिंदगी, शर्म या भ्रम का अनुभव हो सकता है।

साइबर सुरक्षा के लिए प्रौद्योगिकी

  • क्रिप्टोग्राफिक सिस्टम (Cryptographic systems): व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली साइबर सुरक्षा प्रणाली में जानकारी को अस्पष्ट डेटा में बदलने के लिए कोड और साइफर का उपयोग शामिल है।
  • फायरवॉल (Firewall): बाहर से ट्रैफिक को ब्लॉक करने के लिए उपयोग किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग अंदर से ट्रैफिक को ब्लॉक करने के लिए भी किया जा सकता है।
  • एक अनुचित हस्तक्षेप का पता लगाने वाली प्रणाली (Intrusion Detection System- IDS): IDS एक अतिरिक्त सुरक्षा उपाय है, जिसका उपयोग हमले का पता लगाने के लिए किया जाता है।
  • एंटीवायरस स्कैनर्स: एंटीवायरस स्कैन यह निर्धारित करने में सहायता करेगा कि क्या आपकी डिवाइस या नेटवर्क मैलवेयर से संक्रमित है।
  • ‘सिक्योर सॉकेट लेयर’ (Secure Socket Layer- SSL): यह प्रोटोकॉल का एक सूट है, जो वेब ब्राउजर और वेबसाइटों के बीच सुरक्षा के अच्छे स्तर को प्राप्त करने का एक मानक तरीका है।

भारत के लिए साइबर सुरक्षा की चुनौतियाँ 

  • बढ़ते साइबर खतरे: रैनसमवेयर और DDoS सहित साइबर हमलों की मात्रा एवं परिष्करण में वृद्धि हुई है, जिससे रक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं।
  • कुशल कार्यबल की कमी: साइबर सुरक्षा पेशेवरों की भारी कमी है, जिससे प्रतिक्रिया और रोकथाम क्षमताएँ प्रभावित हो रही हैं।
    • विश्व आर्थिक मंच के साइबर सुरक्षा प्रमुख के अनुसार, भारत में वर्ष 2024 में 8 लाख साइबर सुरक्षा पेशेवरों की कमी होगी।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अभी भी उचित साइबर सुरक्षा उपायों का अभाव है, जिससे वे हमलों के प्रति संवेदनशील हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2023 में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) पर हुए साइबर हमले ने स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में कमजोरियों को उजागर किया।
  • जागरूकता में कमी: नागरिकों और संगठनों के बीच साइबर सुरक्षा जोखिमों की सीमित समझ खतरों के प्रति भेद्यता को बढ़ाती है।
    • शहरी-ग्रामीण डिजिटल विभाजन भी समस्या की गंभीरता को बढ़ाता है।
      • उदाहरण: सरकारी आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021-22 में UPI धोखाधड़ी के 84,000 मामले थे, और वर्ष 2020-21 में ऐसे 77,000 मामले दर्ज किए गए।
  • डार्कनेट की चिंताएँ: डार्कनेट इंटरनेट का एक हिस्सा है, जिसे जानबूझकर छिपाया गया है और मानक वेब ब्राउज़रों के माध्यम से उस तक पहुँच नहीं है।
    • ‘सरफेस वेब’ के विपरीत, जिसे सर्च इंजन द्वारा अनुक्रमित किया जाता है, डार्कनेट एन्क्रिप्टेड नेटवर्क पर कार्य करता है और इसे एक्सेस करने के लिए विशिष्ट सॉफ्टवेयर, जैसे कि ‘द ऑनियन राउटर’ (The Onion Router-Tor) या ‘इनविजिबल इंटरनेट प्रोजेक्ट’ (Invisible Internet Project-I2P) की आवश्यकता होती है।
    • ये उपकरण ट्रैफिक को कई सर्वरों के माध्यम से रूट करके उपयोगकर्ता गतिविधि को प्रभावित कर देते हैं, जिससे इसका पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
      • उदाहरण: डार्कनेट, शुल्क लेकर लीक हुए डेटा, हैकिंग टूल, फिशिंग किट और पेशेवर हैकिंग सेवाओं के लिए एक गुमनाम बाजार उपलब्ध कराकर साइबर अपराध को बढ़ावा देता है।

साइबर सुरक्षा बढ़ाने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम

  • राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (National Security Council Secretariat- NSCS): हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS), जो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) को रिपोर्ट करती है, को साइबर सुरक्षा के लिए समग्र समन्वय और रणनीतिक दिशा के लिए जिम्मेदार एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।
    • केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) को दूरसंचार नेटवर्क सुरक्षा के लिए नोडल निकाय नियुक्त किया गया है।
    • केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) को साइबर अपराधों से संबंधित मामलों के लिए नोडल निकाय नियुक्त किया गया है।
  • भारत ने वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक 2024 में टियर 1 का दर्जा हासिल किया: भारत ने अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) द्वारा जारी वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक (Global Cybersecurity Index- GCI) वर्ष 2024 में 100 में से 98.49 अंक प्राप्त कर टियर 1 का दर्जा हासिल किया है।
    • इससे भारत साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में वैश्विक नेताओं में शामिल हो गया है, जिसे उच्च मानकों और प्रथाओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए मान्यता प्राप्त है।
  • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (Indian Cyber Crime Coordination Centre- I4C): यह कानून प्रवर्तन एजेंसियों (LEA) को साइबर अपराधों से व्यापक और समन्वित तरीके से निपटने के लिए एक ढाँचा तथा पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल: जनता को सभी प्रकार के साइबर अपराधों से संबंधित घटनाओं की रिपोर्ट करने में सक्षम बनाना, जिसमें महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
  • रक्षा साइबर एजेंसी (DCyA): यह भारतीय सशस्त्र बलों की एक एकीकृत त्रि-सेवा एजेंसी है। नई दिल्ली में मुख्यालय वाली इस एजेंसी को साइबर सुरक्षा खतरों से निपटने का कार्य सौंपा गया है।
  • ‘कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम’ (CERT-In): यह साइबर सुरक्षा घटनाओं का जवाब देने और उन्हें कम करने के लिए जिम्मेदार राष्ट्रीय एजेंसी है। यह साइबर सुरक्षा जागरूकता बढ़ाने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों को अलर्ट एवं सलाह जारी करती है।

  • ‘नेशनल क्रिटिकल इनफार्मेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर’ (National Critical Information Infrastructure Protection Centre- NCIPC) भारत सरकार का एक संगठन है, जो देश की महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचनाओं की सुरक्षा के लिए स्थापित किया गया है, जो देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं।
  • राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र (NCCC) भारत में एक परिचालन साइबर सुरक्षा और ई-निगरानी एजेंसी है।

आगे की राह 

  • मजबूत साइबर सुरक्षा अवसंरचना का निर्माण करना: प्रभावी साइबर प्रतिक्रिया के लिए राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (NCIPC) और राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र (NCCC) को उन्नत करना है।
  • कौशल विकास को बढ़ावा देना तथा कार्यबल की कमी को दूर करना: भारतीय डेटा सुरक्षा परिषद ने पूर्वानुमान लगाया है कि साइबर सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार इस सीमा तक हो जाएगा कि वर्ष 2025 तक लगभग दस लाख पेशेवरों की आवश्यकता होगी।
    • उदाहरण: स्किल इंडिया के तहत साइबर खतरा प्रबंधन पाठ्यक्रमों का प्रभावी नामांकन और समापन सुनिश्चित करना है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत को बेहतर समन्वय और सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान के लिए अन्य देशों तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों, जैसे संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ, इंटरपोल आदि के साथ अधिक-से-अधिक जुड़ने की आवश्यकता है।
    • पहली अमेरिकी-भारत साइबर सुरक्षा पहल फरवरी 2024 में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर शीर्ष साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों को एकजुट कर नौकरियाँ उत्पन्न करना और अत्याधुनिक समाधान विकसित करना है।
  • साइबर सुरक्षा नीतियों को अपडेट करना: वर्तमान साइबर सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने के लिए राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति को अपडेट करना और प्रभावी ढंग से लागू करना है।
  • साइबर स्वच्छता प्रथाओं को अपनाना: साइबर स्वच्छता या साइबर सुरक्षा स्वच्छता, प्रथाओं का एक समूह है, जिसे संगठन और व्यक्ति उपयोगकर्ताओं, उपकरणों, नेटवर्क तथा डेटा के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा को बनाए रखने के लिए नियमित रूप से करते हैं।
    • उदाहरण: नियमित सॉफ्टवेयर अपडेट, मजबूत पासवर्ड प्रबंधन और सुरक्षित ऑनलाइन व्यवहार।
  • साइबर बीमा को अपनाने को प्रोत्साहित करना: साइबर घटनाओं तथा हादसों के परिणामस्वरूप होने वाली वित्तीय हानि को कवर करना होगा।

निष्कर्ष

भारत में साइबर अपराध से निपटने के लिए उन्नत साइबर सुरक्षा, जन जागरूकता, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और व्यक्तियों, व्यवसायों एवं डिजिटल बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के लिए एक मजबूत कानूनी ढाँचे की आवश्यकता है।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.


Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.