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Nov 15 2024

Title Subject Paper
कोचिंग सेंटरों द्वारा भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए नए नियम Polity and governance ​, GS Paper 2,
संक्षेप में समाचार
जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, नियम Environment and Ecology, GS Paper 3,
DRDO ने लंबी दूरी की क्रूज मिसाइल का परीक्षण किया Defense and Security, GS Paper 3,
‘सी रैंचिंग’ और कृत्रिम रीफ परियोजना कृषि, GS Paper 3,
भारत का नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र economy, GS Paper 3,
वर्ष 2024 का बुकर पुरस्कार art and culture, GS Paper 1,
प्रथम भारत-अमेरिका, हिंद महासागर वार्ता international Relation, GS Paper 2,
विश्व मधुमेह दिवस Health, GS Paper 2,
जवाहरलाल नेहरू art and culture,History, GS Paper 1,
प्रदूषण मुक्त वातावरण और पटाखों पर प्रतिबंध पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला Polity and governance ​, GS Paper 2,
उर्वरकों के लिए बायोडिग्रेडेबल नैनोकोटिंग Environment and Ecology, GS Paper 3,
बुलडोजर न्याय पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय Polity and governance ​, GS Paper 2,

संदर्भ 

12 नवंबर, 2024 को केंद्र सरकार ने कोचिंग सेंटरों द्वारा भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority- CCPA) के बारे में

  • केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority- CCPA) एक विनियामक निकाय है।
    • यह निकाय जाँच कर सकता है, धन वापसी कर सकता है, वापस मँगा सकता है और जुर्माना लगा सकता है।
  • स्थापना: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा करना और निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को सुनिश्चित करना है।

CCPA दिशा-निर्देशों का अवलोकन

  • जारीकर्ता: केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA)
  • उद्देश्य: राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन पर शिकायतों के बाद कोचिंग सेंटरों द्वारा भ्रामक दावों को रोकना।
  • अब तक जुर्माना: CCPA ने 54 नोटिस जारी किए हैं और कुल 54.60 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।

CCPA दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएँ

  • झूठे दावों पर प्रतिबंध
    • गलत चयन और नौकरी की गारंटी: संस्थानों को निम्नलिखित के बारे में झूठे दावे करने से प्रतिबंधित किया गया है:
      • पाठ्यक्रम की पेशकश और अवधि
      • संकाय प्रमाण-पत्र
      • शुल्क संरचना और वापसी नीतियाँ
      • चयन दरें और परीक्षा रैंकिंग
      • नौकरी की सुरक्षा या वेतन वृद्धि की गारंटी
    • पाठ्यक्रम की जानकारी: पाठ्यक्रम की अवधि, संकाय योग्यता, शुल्क संरचना और धन वापसी नीतियों पर भ्रामक दावे निषिद्ध हैं।
  • कोचिंग की परिभाषा
    • ‘कोचिंग’ में अकादमिक सहायता, शिक्षा, मार्गदर्शन, अध्ययन कार्यक्रम और ट्यूशन शामिल हैं।
    • विज्ञापन मानक
      • शैक्षणिक सहायता, मार्गदर्शन और ट्यूशन के लिए सभी प्रकार के विज्ञापन शामिल हैं।
      • खेल और रचनात्मक गतिविधियों जैसी गैर-शैक्षणिक गतिविधियों को इसमें शामिल नहीं किया गया है।
    • सरकार का रुख
      • उपभोक्ता अधिकार: विज्ञापनों की गुणवत्ता से उपभोक्ता अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए।
  • सफलता प्रशंसा-पत्र का उपयोग
    • सहमति आवश्यक: संस्थानों को सफल उम्मीदवारों के नाम, फोटो या प्रशंसा-पत्र का उपयोग करने से पहले उनसे लिखित सहमति प्राप्त करनी होगी। 
    • पारदर्शिता: अस्वीकरणों को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करना चाहिए और पाठ्यक्रम की पेशकश के बारे में पूरी जानकारी प्रदान करनी चाहिए।
  • सटीक प्रतिनिधित्व
    • कोचिंग सेंटरों को अपने संसाधनों, सुविधाओं और पाठ्यक्रम मान्यता को सटीक रूप से प्रस्तुत करना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि पाठ्यक्रम अनुमोदन मानकों (जैसे- AICTE, UGC) को पूरा करते हैं।
    • अनुपालन आवश्यकताएँ
      • पाठ्यक्रम मान्यता: पाठ्यक्रमों को AICTE, UGC आदि जैसे सक्षम प्राधिकारी द्वारा विधिवत मान्यता प्राप्त और अनुमोदित होना चाहिए।
      • दंड: उल्लंघन करने पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत दंड लगाया जाएगा।

भ्रामक विज्ञापन क्या हैं?

  • भ्रामक विज्ञापन उपभोक्ताओं को धोखा देने के लिए गलत या अस्पष्ट जानकारी का उपयोग करते हैं।
  • वे लोगों को झूठे या अतिरंजित दावों के आधार पर उत्पाद या सेवाएँ खरीदने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
  • इन विज्ञापनों को अनैतिक और अक्सर अवैध माना जाता है क्योंकि वे उपभोक्ता के विश्वास का उल्लंघन करते हैं।
  • भ्रामक विज्ञापनों की मुख्य विशेषताएँ
    • झूठे दावे: ऐसे कथन जो पूरी तरह से असत्य हैं, जैसे “100% सफलता की गारंटी” या “दुनिया का सबसे अच्छा उत्पाद।”
    • अतिशयोक्तिपूर्ण लाभ: सकारात्मक प्रभावों को बढ़ा-चढ़ाकर बताना, जैसे कि स्वास्थ्य उत्पाद बीमारियों को ठीक कर सकता है।
    • महत्त्वपूर्ण जानकारी का अभाव: ऐसे आवश्यक विवरण छोड़ना, जो खरीदार के निर्णय को बदल सकते हैं, जैसे कि छिपी हुई लागत या “मुफ्त” ऑफर पर सीमाएँ।
    • परिवर्तित किए गए प्रशंसा-पत्र: नकली या चुनिंदा रूप से संपादित समीक्षाओं का उपयोग करना, जो वास्तविक ग्राहक अनुभवों को नहीं दर्शाते हैं।
    • नकली प्रमाणन: मान्यता प्राप्त अधिकारियों से अनुमोदन प्रदर्शित करना, जो या तो गलत अथवा भ्रामक है।
    • छिपी हुई शर्तें: ऐसी शर्तों को छिपाना, जो उपभोक्ता की समझ को प्रभावित कर सकती हैं, जैसे पात्रता मानदंड या विशेष ऑफर के लिए समय सीमा।

WIPO इंडिकेटर्स 2024 रिपोर्ट

‘WIPO इंडिकेटर्स 2024 रिपोर्ट’ के अनुसार, भारत ने पेटेंट, डिजाइन एवं ट्रेडमार्क फाइलिंग में उल्लेखनीय वृद्धि प्रदर्शित की है।

मुख्य विशेषताएँ

  • पेटेंट: कुल 64,480 फाइलिंग के साथ भारत अब पेटेंट फाइलिंग में विश्व स्तर पर छठे स्थान पर है। 
    • यह पिछले स्तर से 15.7% की वृद्धि दर्शाता है, जो वैश्विक नवाचार में देश की मजबूत भूमिका को दर्शाता है।
    • पिछले दशक में देश का पेटेंट-से-GDP  अनुपात 144 से बढ़कर 381 हो गया है।
  • ट्रेडमार्क: वर्ष 2023 में 3.2 मिलियन पंजीकरण के साथ भारत का IP (बौद्धिक संपदा) कार्यालय ट्रेडमार्क के मामले में विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा है।
    • भारत ट्रेडमार्क फाइलिंग में विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है, वर्ष 2023 में 6.1% की वृद्धि के साथ लगभग 90% निवासी हैं।
    • स्वास्थ्य, कृषि एवं वस्त्र शीर्ष क्षेत्र हैं।
  • औद्योगिक डिजाइन: इसी तरह, भारत वर्ष 2023 में 36.4% की वृद्धि के साथ औद्योगिक डिजाइन फाइलिंग के लिए विश्व स्तर पर 10वें स्थान पर पहुँच गया, जो रचनात्मक डिजाइन में महत्त्वपूर्ण वृद्धि दर्शाता है। 
    • कपड़ा एवं सहायक उपकरण, उपकरण तथा मशीनें, एवं स्वास्थ्य तथा फॉर्मा, कुल मिलाकर सभी डिजाइनों का लगभग आधा हिस्सा बनाते हैं।

विश्व बौद्धिक संपदा रिपोर्ट के बारे में

  • प्रकाशित: वार्षिक
  • प्रकाशितकर्ता: विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO)
  • उद्देश्य
    • यह बाजार अर्थव्यवस्थाओं में नवाचार की भूमिका में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करता है एवं ऐसा करने में, साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण को बढ़ावा देता है।  
    • प्रत्येक संस्करण बौद्धिक संपदा (Intellectual Property- IP) के क्षेत्र में विशिष्ट रुझानों पर केंद्रित है।

‘राज्यों में हरित परिवर्तन’ एवं ASSET मंच पर संगोष्ठी

हाल ही में विज्ञान भवन, नई दिल्ली में ‘राज्यों में हरित परिवर्तन’ पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई एवं नीति आयोग द्वारा ASSET प्लेटफॉर्म लॉन्च किया गया। 

संबंधित तथ्य

  • आयोजक: नीति आयोग, भारत सरकार, ISEG फाउंडेशन (नॉलेज पार्टनर) के सहयोग से

ASSET प्लेटफॉर्म के बारे में

  • ASSET प्लेटफॉर्म ऊर्जा संक्रमण के लिए सतत् समाधानों में तेजी लाने को संदर्भित करता है।
  • उद्देश्य: यह मंच राज्यों को उनके हरित परिवर्तन प्रयासों को तेजी से ट्रैक करने में मदद करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • लॉन्च किया गया: इसे नीति आयोग द्वारा विद्युत मंत्रालय एवं नवीन तथा नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के सहयोग से लॉन्च किया गया था।  
  • कार्य
    • राज्य-स्तरीय ऊर्जा परिवर्तन योजनाएँ बनाने एवं कार्यान्वित करने में सहायता करता है।
    • वित्तपोषण के लिए बैंकयोग्य परियोजनाएँ विकसित करता है।
    • बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (Battery Energy Storage System- BESS), ग्रीन हाइड्रोजन, ऊर्जा दक्षता, ई-मोबिलिटी एवं अपतटीय पवन जैसे क्षेत्रों में सर्वोत्तम प्रथाओं एवं नवाचारों को प्रदर्शित करता है।

राज्य की भूमिका का महत्त्व

  • राष्ट्रीय लक्ष्य: वर्ष 2047 तक भारत के विकसित राष्ट्र (विकसित भारत) बनने एवं वर्ष 2070 तक नेट जीरो GHG उत्सर्जन तक पहुँचने के लक्ष्य को प्राप्त करने में राज्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • ऊर्जा परिवर्तन योजनाएँ: राज्यों को चाहिए-
    • व्यापक ऊर्जा परिवर्तन ब्लूप्रिंट तैयार करें।
    • निवेश योग्य परियोजनाएँ विकसित करें एवं प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करें।
    • उभरती प्रौद्योगिकियों में नवाचार को बढ़ावा दे।

मानक गुणवत्ता नियंत्रण (SCQ1) एवं मानक गुणवत्ता प्रबंधन में NFRA अनुशंसा संशोधन

राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (National Financial Reporting Authority- NFRA) ने 11-12 नवंबर, 2024 को अपनी 18वीं बैठक आयोजित की एवं गुणवत्ता नियंत्रण पर अपने मानकों को मंजूरी दी।

संबंधित तथ्य

  • भागीदारी: NFRA के 11 सदस्य, जिनमें CAG, RBI, SEBI के प्रतिनिधि, स्वतंत्र विशेषज्ञ एवं ICAI के प्रतिनिधि शामिल हैं।
  • 33 वैश्विक मानकों को मंजूरी: NFRA ने वैश्विक प्रथाओं के साथ संरेखित करने के लिए अन्य 33 ऑडिटिंग मानकों को मंजूरी दी।

प्रमुख सिफारिशें

  • गुणवत्ता नियंत्रण मानक
    • NFRA वैश्विक मानकों (ISQM1 और ISQM2) के अनुरूप मौजूदा गुणवत्ता नियंत्रण मानकों (SQC1) को संशोधित करने की सिफारिश करता है।
      • इस संशोधन का उद्देश्य भारत में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स द्वारा किए गए ऑडिट की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • ऑडिटिंग मानक SA 600 (संशोधित)
    • NFRA SA 600 के संशोधित संस्करण को अपनाने की सिफारिश करता है, जो कुछ सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं को छोड़कर केवल सार्वजनिक हित संस्थाओं (PIEs) पर लागू होगा।
      • यह संशोधित मानक वित्तीय विवरणों के ऑडिट में धोखाधड़ी पर विचार करने के लिए ऑडिटर की जिम्मेदारी पर केंद्रित है।

भारतीय लेखापरीक्षा मानकों का नामकरण

  • NFRA ने यूके, ऑस्ट्रेलिया एवं सिंगापुर जैसे देशों में अभ्यास के समान भारतीय ऑडिटिंग मानकों को “IndAS” नाम देने की सिफारिश की है।
  • इससे इन मानकों को बेहतर ढंग से समझने एवं लागू करने में मदद मिलेगी।

राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (NFRA) के बारे में 

  • यह एक वैधानिक निकाय है।
  • इस निकाय के पास एक लेखापरीक्षा एवं लेखा पर्यवेक्षण प्राधिकरण है।
    • यह लेखांकन एवं लेखापरीक्षा व्यवसायों द्वारा दी जाने वाली सेवाओं की गुणवत्ता की भी निगरानी करता है।
  • गठन: वर्ष 2018 में
  • द्वारा प्रशासित: कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय (भारत सरकार)।

चलो इंडिया अभियान

केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय लंदन में चल रहे वर्ल्ड ट्रैवल मार्ट के अवसर पर अपना ‘चलो इंडिया’ अभियान शुरू करेगा।

  • थीम: इस वर्ष के भारत मंडप का फोकस MICE (बैठकें, प्रोत्साहन, सम्मेलन और प्रदर्शनी पर्यटन), महाकुंभ और विवाह पर्यटन पर है।

‘चलो भारत’ अभियान के बारे में

  • अभियान के अनुसार, भारत का एक प्रवासी नागरिक (Overseas Citizen of India- OCI) कार्डधारक एक विशेष पोर्टल पर पाँच विदेशी नागरिकों को नामांकित कर सकता है, जो मुफ्त ई-वीजा (बिना शुल्क के दिया जाने वाला वीजा) के लिए पात्र होंगे।
    • इस कदम के माध्यम से सरकार प्रवासी सदस्यों के ‘दोस्तों’ को मुफ्त वीजा प्राप्त करने की अनुमति देगी।
  • उक्त पहल के तहत दिए जाने वाले मुफ्त ई-वीजा की कुल संख्या एक लाख है।
  • OCI कार्डधारक अपने नामांकित मित्रों के मुख्य विवरण के साथ विशेष पोर्टल पर पंजीकरण करेंगे।
    • उचित सत्यापन के बाद उन्हें एक अद्वितीय कोड सौंपा जाएगा, जिसके बाद नामित मित्र मुफ्त वीजा प्राप्त करने के लिए विशेष कोड का उपयोग कर सकते हैं।
  • उद्देश्य: अधिक विदेशी पर्यटकों को भारत लाना।

भारत के प्रवासी नागरिक (OCI) के बारे में

  • यह भारतीय मूल के लोगों (People Of Indian Origin- POI) को अनिश्चितकाल तक भारत में रहने एवं काम करने की अनुमति देने वाला दर्जा है।
    • भारत में OCI पंजीकरण के लिए आवेदन करने के लिए पात्र होने के लिए विदेशी को सामान्य रूप से भारत का निवासी होना चाहिए।
  • परिचय: यह योजना अगस्त 2005 में नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करके शुरू की गई थी। 
    • भारत सरकार ने वर्ष 2015 में भारतीय मूल के व्यक्ति (POI) कार्ड योजना को ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (OCI) कार्ड योजना के साथ विलय कर दिया।
  • पात्रता
    • एक विदेशी नागरिक, जो 26 जनवरी, 1950 के समय या उसके बाद किसी भी समय भारत का नागरिक था।
    • एक विदेशी नागरिक, जो नाबालिग है एवं जिसके दोनों माता-पिता भारत के नागरिक हैं या माता-पिता में से एक भारत का नागरिक है।
    • एक विदेशी नागरिक जो उस क्षेत्र से संबंधित था जो 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत का हिस्सा बन गया।
    • पर्यटक वीजा, मिशनरी वीजा एवं पर्वतारोहण वीजा पर रहते हुए विदेशी नागरिक भारत में OCI के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं। 
  • विशेषाधिकार
    • स्थायी निवास: OCI कार्डधारक अनिश्चित काल तक भारत में रह सकते हैं एवं कार्य कर सकते हैं।
    • आजीवन वीजा: OCI कार्डधारक जीवनभर भारत आने के लिए बहु-प्रवेश, बहुउद्देश्यीय वीजा के लिए पात्र हैं। 
  • कोई रिपोर्टिंग नहीं: OCI कार्डधारकों को भारत में किसी भी अवधि तक रहने के लिए पुलिस को रिपोर्ट करने से छूट दी गई है। 
  • NRI के साथ समानता: OCI कार्डधारकों को वित्तीय, आर्थिक और शैक्षिक क्षेत्रों में अनिवासी भारतीयों के समान ही माना जाता है; भारतीय बच्चों को देश में गोद लेना; राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों, राष्ट्रीय स्मारकों, ऐतिहासिक स्थलों और संग्रहालयों में प्रवेश शुल्क।
  • भूमि स्वामित्व: OCI कार्डधारक भारत में भूमि के मालिक हो सकते हैं एवं अन्य निवेश कर सकते हैं।

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संदर्भ

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) (जाँच करने एवं जुर्माना लगाने का तरीका) नियम, 2024 को अधिसूचित किया है, जो तत्काल रूप से प्रभावी हो गया है।

नए नियमों के मुख्य बिंदु

  • अपराधों का गैर-अपराधीकरण और दंड पर ध्यान केंद्रित करना: इसने उल्लंघनों को अपराधमुक्त कर दिया तथा उल्लंघन के लिए आपराधिक आरोपों के स्थान पर दंड का प्रावधान कर दिया।
  • गैर-प्रदूषणकारी उद्योग के लिए छूट: गैर-प्रदूषणकारी समझे जाने वाले ‘व्हाइट’ श्रेणी के उद्योगों को अब स्थापित करने एवं संचालित करने के लिए अधिनियम के तहत पूर्व अनुमति प्राप्त करने से छूट दी गई है।
  • नियुक्त न्यायिक अधिकारियों की भूमिका: संशोधन सरकार को उल्लंघनों पर निर्णय लेने एवं दंड निर्धारित करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को नियुक्त करने के लिए अधिकृत करता है।
    • निर्णायक अधिकारी का पद राज्य सरकार के संयुक्त सचिव या सचिव से नीचे स्तर का नहीं होना चाहिए।
  • शिकायत दर्ज करने का अधिकार: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ( Central Pollution Control Board- CPCB), राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (State Pollution Control Boards- SPCB), प्रदूषण नियंत्रण समितियों एवं पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालयों के अधिकृत अधिकारी उल्लंघन के संबंध में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
  • उल्लंघन के लिए प्रासंगिक धाराएँ: धारा 41, 41A, 42, 43, 44, 45A, एवं 48 जो मुख्य रूप से औद्योगिक प्रदूषकों और अपशिष्टों के उत्सर्जन से संबंधित हैं।

जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के बारे में

  • उद्देश्य: प्रदूषण स्रोतों को विनियमित करके एवं जल गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करके जल प्रदूषण को रोकना तथा नियंत्रित करना।
  • प्रयोज्यता: प्रारंभ में इसे 15 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया गया। अन्य राज्य इसे संविधान के अनुच्छेद-252 के तहत एक प्रस्ताव के माध्यम से अपना सकते हैं।
    • वर्तमान में यह 25 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में लागू है।
  • नियामक निकाय
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB): राष्ट्रीय जल प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों की देखरेख करता है।
    • राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (State Pollution Control Boards- SPCB): राज्य स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करता है।

जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के प्रमुख प्रावधान

  • पूर्व अनुमोदन: उद्योगों को संचालन स्थापित करने से पहले संबंधित राज्य बोर्ड से पूर्व अनुमति प्राप्त करनी होगी।
  • सूचना संग्रह: बोर्ड जल प्रदूषण स्रोतों एवं स्तरों पर डेटा एकत्र करते हैं।
  • दिशानिर्देश एवं निर्देश: बोर्ड प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए दिशा-निर्देश एवं निर्देश जारी करते हैं।
  • गतिविधियों का विनियमन: बोर्ड पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाली गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं।

निषेध एवं दंड

  • जल निकायों में सीवेज या औद्योगिक अपशिष्टों के निर्वहन पर रोक लगाता है।
  • अधिनियम के उल्लंघन के लिए दंड लगाता है।
  • यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए जल संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, प्रदूषण नियंत्रण उपायों की निगरानी, ​​विनियमन एवं लागू करने के लिए नियामक निकायों को सशक्त बनाता है।

संदर्भ 

हाल ही में भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) ने ‘लॉन्ग रेंज लैंड अटैक क्रूज मिसाइल’ (Long Range Land Attack Cruise Missile- LRLACM) का पहला उड़ान परीक्षण सफलतापूर्वक किया।

रक्षा अधिग्रहण परिषद (Defence Acquisition Council- DAC) के बारे में

  • DAC खरीद पर रक्षा मंत्रालय का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है।
  • मुख्य उद्देश्य
    • यह सुनिश्चित करना कि सशस्त्र बलों को समय पर उपकरण प्राप्त हों।
    • आवंटित बजट का सर्वोत्तम उपयोग करना।
    • अनुमोदित आवश्यकताओं को शीघ्रता से प्राप्त करना।
  • गठन: वर्ष 2001 में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली में सुधार [कारगिल युद्ध (वर्ष 1999) के बाद] पर मंत्री समूह की सिफारिशों के बाद इसका गठन किया गया।
  • संरचना: भारत के रक्षा मंत्री इसके अध्यक्ष होते हैं।
  • अन्य सदस्य: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (Chief of Defence Staff- CDS), रक्षा राज्य मंत्री, तीनों सेनाओं के प्रमुख (थल सेना, नौसेना, वायु सेना), एकीकृत स्टाफ समितियों के प्रमुख, रक्षा सचिव, रक्षा अनुसंधान एवं विकास सचिव।
  • DAC के निर्णय कार्यान्वयन के लिए रक्षा खरीद बोर्ड, रक्षा उत्पादन बोर्ड और रक्षा अनुसंधान एवं विकास बोर्ड को भेजे जाते हैं।

संबंधित तथ्य

  • परीक्षण आयोजित: DRDO ने एकीकृत परीक्षण रेंज (ITR), चाँदीपुर, ओडिशा में परीक्षण किया।
  • अनुमोदन: रक्षा अधिग्रहण परिषद ने जुलाई 2020 में LRLACM की खरीद को मंजूरी दी।
  • संस्करण: यह बेहतर सुविधाओं के साथ निर्भय LRLACM का एक नया संस्करण है।
  • विकसितकर्ता: एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (Aeronautical Development Establishment- ADE), बंगलूरू।
    • ADE, DRDO का एक प्रमुख वैमानिकी प्रणाली डिजाइन हाउस है, जो अत्याधुनिक मानवरहित हवाई वाहनों और वैमानिकी प्रणालियों तथा प्रौद्योगिकियों के डिजाइन एवं विकास में शामिल है।
  • प्रदर्शन: इस मिसाइल ने सटीक वेपॉइंट नेविगेशन का प्रदर्शन किया, अलग-अलग ऊँचाइयों और गति पर जटिल युद्धाभ्यासों को अंजाम दिया तथा योजनाबद्ध उद्देश्यों का पालन किया।

निर्भय LRLACM के बारे में

  • ‘लॉन्ग रेंज लैंड अटैक क्रूज मिसाइल’ एक मिशन मोड प्रोजेक्ट है और इसे ‘मोबाइल आर्टिकुलेटेड लॉन्चर’ का उपयोग करके जमीन से और ‘यूनिवर्सल वर्टिकल लॉन्च मॉड्यूल सिस्टम’ का उपयोग करके फ्रंटलाइन जहाजों से भी लॉन्च किया जा सकता है।
  • प्रकार और रेंज: निर्भय एक सब-सोनिक, लंबी दूरी की क्रूज मिसाइल है, जिसकी स्ट्राइक रेंज 1,000 किलोमीटर तक है, जिसे स्टैंड-ऑफ दूरियों से सटीक लक्ष्यीकरण के लिए डिजाइन किया गया है, जिससे ऑपरेटर की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
  • लॉन्च और प्रणोदन: निर्भय प्रारंभिक लॉन्च के लिए एक ठोस-ईंधन बूस्टर का उपयोग करता है, जिसके बाद यह सतत, लंबी दूरी की उड़ान के लिए टर्बोजेट इंजन में परिवर्तित हो जाता है।
  • सटीक प्रहार: इसे गहरी भेदन क्षमता के लिए डिजाइन किया गया है, जिससे यह उच्च मूल्य वाली परिसंपत्तियों को उच्च सटीकता के साथ लक्ष्य कर सकता है।
    • यह बेहतर परिशुद्धता के लिए रडार, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल ट्रैकिंग सिस्टम और टेलीमेट्री उपकरणों से सुसज्जित है।
  • लोइटरिंग और कम ऊँचाई वाली उड़ान: मिसाइल हमला करने से पहले लोइटरिंग (हवा में रहना) कर सकती है और पता लगने से बचने एवं प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए बहुत कम ऊँचाई, लगभग 100 मीटर पर कार्य कर सकती है।
  • वारहेड विकल्प: निर्भय पारंपरिक और परमाणु दोनों तरह के पेलोड ले जाने में सक्षम है, इसकी वारहेड क्षमता 200 से 300 किलोग्राम तक है, जो इसे विभिन्न मिशन आवश्यकताओं के लिए बहुमुखी बनाता है।
  • नौसेना रक्षा क्षमता: इसकी मारक क्षमता 1,000 किलोमीटर से अधिक है तथा इसमें उन्नत नौसैनिक संचालन के लिए समुद्र में उड़ान भरने की क्षमता भी है।
  • वैश्विक तुलना: यह सटीकता और लंबी दूरी की क्षमताओं में अमेरिकी टॉमहॉक (Tomahawk) और रूस के कैलिबर (Kalibr) के समान है।

क्रूज मिसाइल बनाम बैलिस्टिक मिसाइल (Cruise Missiles Vs Ballistic Missiles)

पहलू

क्रूज मिसाइल

बैलिस्टिक मिसाइल

उड़ान पथ नियंत्रित और निर्देशित मार्ग का अनुसरण करती है। परवलयिक प्रक्षेप पथ का अनुसरण करता है; प्रक्षेपण के बाद मुख्यतः बिना दिशा वाला
उड़ान की सीमा आम तौर पर छोटी से मध्यम दूरी तक छोटी, मध्यम, लंबी या अंतरमहाद्वीपीय हो सकती है।
गति आमतौर पर सबसोनिक या सुपरसोनिक सुपरसोनिक या हाइपरसोनिक
मार्गदर्शन प्रणाली सतत् मार्गदर्शन (जैसे, GPS, रडार, भू-भाग मानचित्रण) अधिकांशतः केवल प्रारंभिक चरण में ही निर्देशित (जड़त्वीय या GPS मार्गदर्शन)
उड़ान की ऊँचाई कम ऊँचाई, दुर्गम इलाका उच्च ऊँचाई (कुछ मामलों में वायुमंडल से बाहर)
शुद्धता उच्च परिशुद्धता, उड़ान के मध्य पथ को समायोजित करने में सक्षम। मध्यम से उच्च, मार्गदर्शन प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है।
संचालक शक्ति जेट इंजन या टर्बोफैन रॉकेट इंजन
खोज कम ऊँचाई के कारण पता लगाना कठिन अधिक ऊँचाई के कारण प्रक्षेपण के बाद पता लगाना आसान
लॉन्च प्लेटफॉर्म विमान, जहाज, पनडुब्बी, जमीनी वाहन भूमि आधारित साइलो, पनडुब्बियाँ, मोबाइल लॉन्चर
प्राथमिक उपयोग विशिष्ट लक्ष्यों के विरुद्ध सामरिक हमले सामरिक हमले; अक्सर लंबी दूरी के हमलों के लिए उपयोग किया जाता है
उदाहरण टॉमहॉक (अमेरिका), ब्रह्मोस मिनिटमैन III (अमेरिका), अग्नि V, रूस का R-36M (सबसे लंबी दूरी 16000 किमी)।

संदर्भ

हाल ही में समुद्री संसाधनों को बढ़ाने और मछली पकड़ने की सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देने के एक प्रयास के रूप में, ‘सी रैंचिंग’ और कृत्रिम रीफ परियोजना (Artificial Reef Project) के हिस्से के रूप में केरल के विझिंजम के तट पर 20 हजार पोम्पानो फिंगरलिंग्स [ट्रेचिनोटस ब्लोची (Trachinotus Blochii)] को छोड़ा गया।

‘सी रैंचिंग’ और कृत्रिम रीफ परियोजना

  • उद्देश्य: प्राथमिक लक्ष्य मत्स्य संसाधनों को बहाल करना और जल निकाय में फिंगरलिंग्स को पुनः छोड़कर से टिकाऊ मत्स्यपालन का समर्थन करना है।
    • इस परियोजना में कृत्रिम रीफ परियोजना के अनुवर्ती के रूप में तिरुवनंतपुरम् तटरेखा के साथ दस निर्दिष्ट स्थानों पर दस लाख पोम्पानो और कोबिया फिंगरलिंग्स को छोड़ना शामिल है।
  • कार्यान्वयन: 20,000 पोम्पानो फिंगरलिंग्स का प्रारंभिक बैच विझिंजम से लगभग 1.5 समुद्री मील दूर छोड़ा गया। 
    • इसके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana- PMMSY) के तहत वित्तपोषित कृत्रिम रीफ मॉड्यूल जिले के 33 मछुआरा गाँवों में 42 साइटों पर तैनात किए गए हैं। 
  • वित्तपोषण और सहायता: राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (National Fisheries Development Board- NFDB) द्वारा समर्थित, ₹3 करोड़ की परियोजना को मार्च में मंजूरी मिली और इसका प्रबंधन राज्य मत्स्य विभाग द्वारा किया जाता है, जिसमें अयिरमथेंगु मछली फॉर्म में फिंगरलिंग्स का प्रजनन कराया जाता है।

‘सी रैंचिंग’ के बारे में

  • ‘सी रैंचिंग’ (ओशन रैंचिंग) में नियंत्रित वातावरण में देखभाल के लिए रखे गए फिंगरलिंग्स को समुद्र एवं झील पारिस्थितिकी तंत्र को पुनः यथास्थिति में लाने के लिए छोड़ा जाता है, जिससे मछली पकड़ने वाले समुदायों के लिए दीर्घकालिक संसाधन उपलब्धता का लाभ मिलता है।
  • उद्देश्य: ‘सी रैंचिंग’ एक सरकारी नेतृत्व वाला दृष्टिकोण है, जो मछली की आबादी को बहाल करने और समुद्री स्थिरता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
  • समुद्री खेती की जाने वाली प्रजातियाँ: सीप, मसल्स, कार्प, ट्राउट और तिलापिया सहित विभिन्न प्रजातियों को हैचरी में पाला जाता है और प्राकृतिक जल में छोड़ा जाता है, जिससे उन्हें अपने मूल निवास स्थान में परिपक्व होने की अनुमति मिलती है।
  • प्रयुक्त तकनीक: आधुनिक महासागरीय पशुपालन 1970 के दशक से विकसित परिष्कृत प्रजनन, पालन और छोड़ने की तकनीकों पर निर्भर करता है। ये नवाचार प्रजातियों के अस्तित्व और जंगल में एकीकरण को अनुकूलित करने में मदद करते हैं।
  • लाभ
    • आर्थिक: मछली स्टॉक को फिर से भंडारण करता है, मछली पकड़ने के उद्योग और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं की सहायता करता है।
    • सामाजिक: मछली पकड़ने वाले समुदायों के लिए स्थायी आय स्रोत प्रदान करता है।
    • पारिस्थितिकी: पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र के उत्थान का समर्थन करता है।

कृत्रिम रीफ के बारे में

  • परिभाषा: कृत्रिम रीफ मानव निर्मित संरचनाएँ हैं, जिन्हें जलीय वातावरण में पारिस्थितिकी स्थितियों में सुधार करने, समुद्री प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करने और मत्स्य उत्पादकता बढ़ाने के लिए रखा जाता है।
  • उपयोग
    • पुनर्स्थापन: कोरल रीफ सहित पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करने में मदद करता है।
    • मछली उत्पादन: छोटे पैमाने के मछुआरों के लिए मछली स्टॉक बढ़ाता है।
    • लहर संरक्षण: लहर, ऊर्जा को अवशोषित करके तटीय कटाव को कम करने में मदद करता है।
    • आवास निर्माण: समुद्री प्रजातियों के लिए भोजन, आश्रय और प्रजनन स्थल प्रदान करता है।
    • मनोरंजन लाभ: इको-टूरिज्म, स्नोर्कलिंग और मनोरंजक मत्स्यपालन का समर्थन करता है।
    • बॉटम ट्रॉलिंग प्रतिबंध: तटरेखाओं के पास हानिकारक बॉटम ट्रॉलिंग को रोकता है।
  • सामग्री: रीफ का निर्माण कंक्रीट, स्टील जैसी टिकाऊ सामग्रियों और विभिन्न आकारों, जैसे त्रिकोणीय या पुष्प डिजाइनों में उद्देश्य-निर्मित मॉड्यूल का उपयोग करके किया जाता है।
  • उदाहरण
    • CMFRI परियोजना (भारत): छोटे पैमाने के मछुआरों के लिए लागत कम करते हुए मछली की उपलब्धता में सहायता करती है।
    • दुबई रीफ्स: एक व्यापक कृत्रिम रीफ नेटवर्क बनाने के लिए 3D प्रिंटिंग का उपयोग करता है।
    • पर्ल ऑफ दुबई: दुबई के तट के पास एक कलात्मक, शहरी-थीम वाली रीफ की विशेषता है।

पहल का महत्त्व

  • यह संयुक्त ‘सी रैंचिंग’ और कृत्रिम रीफ पहल न केवल समुद्री जैव विविधता का समर्थन करती है, बल्कि मछली के भंडार को बढ़ाकर और स्थिर समुद्री आवासों की स्थापना करके स्थानीय मत्स्यपालन को भी बढ़ाती है।
  • यह परियोजना सरकार के सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप है, जो समुद्री जीवन की सुरक्षा करती है और सतत् मछली पकड़ने की प्रथाओं के माध्यम से तटीय समुदायों को सशक्त बनाती है।

सिल्वर पोम्पानो (Silver Pompano) के बारे में

  • अवलोकन: सिल्वर पोम्पानो, एक उष्णकटिबंधीय प्रजाति, जिसे ‘स्नबनोज पोम्पानो’ (Snubnose Pompano) के नाम से भी जाना जाता है, अपनी अनुकूलनशीलता एवं बाजार की माँग के कारण समुद्री कृषि के लिए मूल्यवान है।
  • उपस्थिति और आवास स्थान: अपने टारपीडो के आकार के शरीर की विशेषता वाले, सिल्वर पोम्पानो इंडो-पैसिफिक के गर्म जल (25-29 डिग्री सेल्सियस) में पाए जाते हैं, विशेष रूप से प्रवाल और रीफ चट्टानों के आसपास।
  • आर्थिक मूल्य: इस उच्च मूल्य वाली प्रजाति की कीमत भारत में ₹300-₹400 प्रति किलोग्राम होती है, जो स्थानीय मछुआरों एवं मछली बाजारों का समर्थन करती है।
  • हार्वेस्टिंग के तरीके: आमतौर पर ड्रैग नेट से पकड़े जाने वाले पोम्पानो को फ्रेश बनाए रखने के लिए तुरंत ठंडा किया जाता है, जिससे समुद्री भोजन बाजार के लिए गुणवत्ता सुनिश्चित होती है।

संदर्भ 

केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) से जारी नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, एक वर्ष में कुल नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित क्षमता में 24.2 गीगावाट (13.5%) की प्रभावशाली वृद्धि हुई है।

नवीकरणीय ऊर्जा के बारे में

  • यह ऊर्जा का वह स्रोत है, जो प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होता है, जो प्रकृति में नवीकरणीय हैं, क्योंकि इनकी खपत की तुलना में इनकी लगातार उच्च दर पर पूर्ति होती रहती है तथा ये कभी समाप्त नहीं होते हैं।
  • स्रोत
    • सौर ऊर्जा: सौर प्रौद्योगिकियाँ सूर्य के प्रकाश को फोटोवोल्टिक पैनलों के माध्यम से या दर्पणों के माध्यम से विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती हैं, जो सौर विकिरण को केंद्रित करते हैं।
      • राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (National Institute of Solar Energy- NISE) के अनुमान के अनुसार, भारत की सौर ऊर्जा क्षमता 748 GWp है।

    • पवन ऊर्जा: इसमें भूमि (तटीय क्षेत्र) या समुद्र अथवा मीठे जल (अपतटीय क्षेत्र) पर स्थित बड़ी पवन टर्बाइनों का उपयोग करके पवनों की गतिज ऊर्जा का उपयोग किया जाता है।
    • जलविद्युत ऊर्जा: यह उच्च से निम्न ऊँचाई पर जाने वाले जल की ऊर्जा का उपयोग करती है। इसे जलाशयों एवं नदियों से उत्पन्न किया जा सकता है।
    • जैव ऊर्जा: यह विभिन्न प्रकार की जैविक सामग्रियों से उत्पन्न होती है, जिन्हें बायोमास कहा जाता है, जैसे कि ऊष्मा एवं विद्युत उत्पादन के लिए लकड़ी, लकड़ी का कोयला, गोबर और अन्य खाद, तथा तरल जैव ईंधन के लिए कृषि फसलें।

भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के बारे में

  • REN21 नवीकरणीय 2024 वैश्विक स्थिति रिपोर्ट (REN21 Renewables 2024 Global Status Report) के अनुसार, भारत, नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित क्षमता में विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है। (पवन ऊर्जा क्षमता में चौथे तथा सौर ऊर्जा क्षमता में 5वें स्थान पर है।)
    • कुल स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता: अक्टूबर 2024 तक, भारत की कुल अक्षय ऊर्जा स्थापित क्षमता अक्टूबर 2023 में 178.98 गीगावाट से बढ़कर 203.18 गीगावाट हो गई है।
    • कुल गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता: यह वर्ष 2024 में 211.36 गीगावाट है, जबकि वर्ष 2023 में यह 186.46 गीगावाट थी, जिसमें परमाणु ऊर्जा भी शामिल है।
  • योगदान: देश की कुल स्थापित क्षमता में अक्षय ऊर्जा का योगदान 46.3 प्रतिशत है, जो 452.69 गीगावाट तक पहुँच गया है।
  • लक्ष्य: भारत ने पंचामृत लक्ष्यों के तहत एक प्रमुख संकल्प के हिस्से के रूप में COP26 में वर्ष 2030 तक अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता लक्ष्य को 500 गीगावाट तक बढ़ाने की योजना बनाई है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं की स्थिति: अक्टूबर 2024 तक, 143.94 गीगावाट की परियोजनाएँ कार्यान्वयन के अधीन हैं और 89.69 गीगावाट की निविदाएँ पहले ही दी जा चुकी हैं।
    • अक्टूबर 2023 तक इन परियोजनाओं में कार्यान्वयनाधीन क्षमता 99.08 गीगावाट तथा निविदाकृत क्षमता 55.13 गीगावाट से वृद्धि देखी गई।

  • नीतियाँ और योजनाएँ
    • सरकारी प्रतिज्ञाएँ: भारत ने वर्ष 2030 तक देश की अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% से कम करने और वर्ष 2070 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्धता जताई है।
      • निवेश आकर्षित करने के लिए स्वचालित मार्ग के तहत 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति है।
    • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन: भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 5 मिलियन टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करना है, जिससे हरित परिवहन क्षेत्र में क्रांति आएगी। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (National Green Hydrogen Mission) को 19,744 करोड़ रुपये के बजट के साथ मंजूरी दी गई।
    • प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (Pradhan Mantri Kisan Urja Suraksha evam Utthaan Mahabhiyan: PM-KUSUM): इसका उद्देश्य सौर सिंचाई पंप लगाकर किसानों की आय बढ़ाना और कृषि क्षेत्र को सिंचाई और गैर डीजल के स्रोत प्रदान करना है।
    • पीएम-सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना: इसका उद्देश्य सौर छत क्षमता की हिस्सेदारी बढ़ाना और 2 किलोवाट क्षमता तक की प्रणालियों के लिए सौर इकाई लागत का 60% सब्सिडी प्रदान करके आवासीय घरों को अपनी विद्युत उत्पन्न करने के लिए सशक्त बनाना है।
  • महत्त्व
    • जलवायु परिवर्तन को सीमित करना: नवीकरणीय ऊर्जा पर्यावरण क्षरण को रोकने के लिए सबसे स्वच्छ, सबसे व्यवहार्य समाधान है क्योंकि वे ऊर्जा उत्पादन प्रक्रियाओं में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं करते हैं।
    • अक्षय स्रोत: अक्षय ऊर्जा सतत् ऊर्जा प्रणाली के लिए आवश्यक है, जो भविष्य की पीढ़ियों को जोखिम में डाले बिना वर्तमान में विकास की अनुमति देती है।
    • ऊर्जा निर्भरता को कम करना: जीवाश्म ईंधन आयात पर निर्भरता के परिणामस्वरूप आपूर्तिकर्ता देश के आर्थिक और राजनीतिक अल्पकालिक लक्ष्यों के अधीनता होती है, जो ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा से समझौता कर सकती है।
      • उदाहरण: मध्य पूर्व के तेल युद्ध।
    • प्रतिेस्पर्द्धा में वृद्धि: पैमाने की अर्थव्यवस्था और नवाचार के कारण अक्षय ऊर्जा विद्युत की गति से न केवल पर्यावरणीय रूप से बल्कि आर्थिक रूप से भी दुनिया को विद्युत प्रदान करने के लिए सबसे टिकाऊ समाधान बन गई है।
    • रखरखाव: सौर पैनलों जैसी अक्षय ऊर्जा प्रणालियों को पारंपरिक ऊर्जा प्रणालियों की तुलना में कम रखरखाव की आवश्यकता होती है।
    • स्थानीय लचीलापन: नवीकरणीय ऊर्जा, उपयोग किए जाने वाले स्थान के निकट ही विद्युत उपलब्ध करा सकती है, जिससे स्थानीय ऊर्जा लचीलेपन में मदद मिल सकती है।

संदर्भ

ब्रिटिश लेखिका सामंथा हार्वे (Samantha Harvey) को उनके उपन्यास ऑर्बिटल (Orbital) के लिए प्रतिष्ठित वर्ष 2024 के बुकर पुरस्कार (Booker Prize) से सम्मानित किया गया है।

उपन्यास ऑर्बिटल: एक अवलोकन

  • ऑर्बिटल मानवता के पृथ्वी और ब्रह्मांड से संबंध की एक विचारोत्तेजक खोज है।
  • अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर आधारित यह उपन्यास अंतरिक्ष यात्रियों के एक समूह का अनुसरण करता है, जो हमारे पृथ्वी ग्रह की परिक्रमा करते हैं और इसकी सुंदरता एवं संवेदनशीलता पर एक अनूठा दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं।
  • हार्वे के गीतात्मक गद्य और मानवीय स्थिति पर व्यावहारिक टिप्पणी ने उन्हें व्यापक प्रशंसा दिलाई है।

बुकर पुरस्कार (Booker Prize) के बारे में

  • बुकर पुरस्कार, विश्व स्तर पर सबसे प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कारों में से एक है, जिसकी शुरुआत वर्ष 1969 में यूनाइटेड किंगडम में की गई थी।
  • मूल रूप से बुकर-मैककॉनेल पुरस्कार (Booker-McConnell Prize) के रूप में जाना जाता है, इसे अंग्रेजी में लिखे गए उच्चतम गुणवत्ता वाले उपन्यासों का सम्मान करने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था।
  • वैश्विक पहुँच: शुरू में यह पुरस्कार राष्ट्रमंडल लेखकों तक ही सीमित था, किंतु अब यह किसी भी राष्ट्रीयता के लेखकों की प्रविष्टियों का स्वागत करता है।
  • पात्रता
    • उपन्यास अंग्रेजी में लिखी गई एक मौलिक रचना होनी चाहिए (अनुवाद नहीं)।
    • इसे पुरस्कार वर्ष के दौरान यू.के. या आयरलैंड में पंजीकृत छाप द्वारा प्रकाशित किया जाना चाहिए; स्व-प्रकाशित रचनाएँ इसमें शामिल नहीं हैं।
  • वित्तीय पुरस्कार: बुकर पुरस्कार से जुड़ी पुरस्कार राशि £50,000 है।
  • अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार: वर्ष 2016 से, यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष अंग्रेजी में अनुवादित और यूनाइटेड किंगडम या आयरलैंड में प्रकाशित किसी एकल काल्पनिक कृति अथवा लघु कथाओं के संग्रह को दिया जाता है।
    • विजेता पुस्तक के लिए 50,000 पाउंड की पुरस्कार राशि लेखक और अनुवादक के बीच बराबर-बराबर बाँटी जाती है।

भारतीय बुकर पुरस्कार विजेता

वर्ष

विजेता 

पुस्तक का शीर्षक

वर्ष 1981 सलमान रुश्दी  मिडनाइट्स चिल्ड्रन 

(Midnight’s Children)

वर्ष 1997 अरुंधति रॉय  द गॉड ऑफ स्माल थिंग्स (The God of Small Things)
वर्ष 2006 किरण देसाई  द इनहेरिटेंस ऑफ लाॅस (The Inheritance of Loss)
वर्ष 2008 अरविंद अडिगा द व्हाइट टाइगर (The White Tiger)
वर्ष 2019 सलमान रुश्दी (बुकर ऑफ बुकर्स) मिडनाइट्स चिल्ड्रन (बुकर की 50वीं वर्षगाँठ के लिए)
वर्ष 2022 गीतांजलि श्री (अंतरराष्ट्रीय बुकर) टाम्ब ऑफ सैंड (Tomb of Sand) (मूलतः रेत समाधि)

संदर्भ

हिंद महासागर क्षेत्र में जारी सहयोग को और गहरा करते हुए, भारत और अमेरिका पहली अमेरिकी-भारत हिंद महासागर वार्ता (U.S.-India Indian Ocean Dialogue) आयोजित करने के लिए तैयार हैं।

भारत-अमेरिका हिंद महासागर वार्ता के बारे में

  • ऐतिहासिक संदर्भ: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत-अमेरिका सहयोग की शुरुआत वर्ष 2015 में शुरू हुई हैं, जब राष्ट्रपति बराक ओबामा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एशिया-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र के लिए संयुक्त रणनीतिक विजन जारी किया था, जिसने क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक पहलों की नींव रखी थी।
  • उद्देश्य: इस वार्ता का प्राथमिक लक्ष्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि बढ़ाने वाले उपायों पर चर्चा करना और उन्हें बढ़ावा देना है।
    • यह सहयोगात्मक दृष्टिकोण समुद्री सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक विकास जैसी क्षेत्रीय चिंताओं का समाधान करता है।
  • मुख्य प्रतिभागी: इस वार्ता में अमेरिकी उप विदेश मंत्री और प्रधान उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार वर्चुअल रूप से भाग लेंगे।
  • तकनीकी सहयोग: संवाद के समानांतर, महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों (Critical and Emerging Technologies) पर iCET अंतर-सत्रीय बैठक निर्धारित है।
  • हालिया राजनीतिक संदर्भ: यह संवाद अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर हो रहा है, जिसमें पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चुनाव जीत गए हैं। जैसे-जैसे ट्रांजिशन आगे बढ़ रहा है, दोनों देश अपनी साझेदारी को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, विशेषकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में।

हिंद महासागर वार्ता (Indian Ocean Dialogue) के बारे में

  • ‘हिंद महासागर रिम एसोसिएशन’ (Indian Ocean Rim Association- IORA) द्वारा आयोजित हिंद महासागर वार्ता, हिंद महासागर क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा करने के लिए एक प्रमुख मंच के रूप में कार्य करती है।
  • उत्पत्ति: हिंद महासागर वार्ता की शुरुआत वर्ष 2013 में ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में मंत्रिपरिषद की 13वीं बैठक के बाद की गई थी, जिसमें साझा विकास के लिए क्षेत्रीय सहयोग के महत्त्व को रेखांकित किया गया था।
  • उद्घाटन सत्र: हिंद महासागर वार्ता का पहला सत्र वर्ष 2014 में भारत के केरल में आयोजित किया गया था, जिसमें समुद्री सुरक्षा, आपदा राहत और आर्थिक साझेदारी सहित सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
  • चर्चा के क्षेत्र: हिंद महासागर वार्ता में जिन प्रमुख क्षेत्रों पर चर्चा की गई उनमें आर्थिक सहयोग, समुद्री सुरक्षा, ब्लू इकोनॉमी और आपदा प्रतिक्रिया शामिल हैं, जिनका उद्देश्य क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करना और सतत् विकास को बढ़ावा देना है।

हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (Indian Ocean Rim Association-IORA) के बारे में

  • उत्पत्ति: ‘हिंद महासागर रिम एसोसिएशन’ वर्ष 1997 में स्थापित एक अंतर-सरकारी संगठन है।
  • सदस्य: इसमें 23 सदस्य देश और 11 संवाद साझेदार शामिल हैं, जो क्षेत्रीय सहयोग और विकास को बढ़ावा देने के लिए मिलकर कार्य करते हैं।
    • एशिया: भारत, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, ईरान, मलेशिया, मालदीव, ओमान, सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात और यमन।
    • अफ्रीका: केन्या, मेडागास्कर, मोजाम्बिक, सोमालिया, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया, कोमोरोस, मॉरीशस, सेशेल्स।
    • ओशिनिया: ऑस्ट्रेलिया।
    • यूरोप: फ्राँस।
  • संवाद साझेदार: चीन, मिस्र, सऊदी अरब, जर्मनी, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, रूस, तुर्किये, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका।
  • सचिवालय: IORA का सचिवालय एबेने, मॉरीशस में स्थित है, जो संगठन की गतिविधियों और क्षेत्रीय जुड़ावों के लिए प्रशासनिक केंद्र के रूप में कार्य करता है।
  • प्रशासन: IORA का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय, विदेश मंत्रियों की परिषद, प्रगति की समीक्षा करने और क्षेत्रीय सहयोग के लिए भविष्य के लक्ष्य निर्धारित करने के लिए वार्षिक बैठक करता है।

भारत-अमेरिका सहयोग

  • रक्षा सहयोग
    • प्रमुख समझौते: LEMOA, COMCASA और BECA जैसे आधारभूत समझौते भारत और अमेरिका के बीच सैन्य अंतर-संचालन तथा सुरक्षित संचार चैनलों को बढ़ाते हैं।
  • रक्षा व्यापार: प्रमुख रक्षा अधिग्रहणों में MQ-9B  सीगार्डियन ड्रोन और GE F414 जेट इंजन का सह-उत्पादन शामिल है।

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा समझौते

  • सैन्य सूचना का सामान्य सुरक्षा समझौता (General Security of Military Information Agreement- GSOMIA): वर्ष 2002 में हस्ताक्षरित यह समझौता गारंटी देता है कि दोनों देश अपने बीच साझा की जाने वाली किसी भी वर्गीकृत सूचना या प्रौद्योगिकी की सुरक्षा करेंगे।
    • इसका उद्देश्य अंतर-संचालनीयता को बढ़ावा देना था तथा देश को भविष्य में अमेरिकी हथियारों की बिक्री की नींव रखना था।
  • लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज समझौता ज्ञापन (Logistics Exchange Memorandum of Agreement- LEMOA): इस पर वर्ष 2016 में हस्ताक्षर किए गए थे और यह सैन्य रसद साझा करने के लिए रूपरेखा प्रदान करता है।
  • संचार, संगतता और सुरक्षा समझौता (Communications, Compatibility and Security Agreement- COMCASA): वर्ष 2018 में हस्ताक्षरित, यह समझौता अमेरिका को भारत को अपने स्वामित्व वाले एन्क्रिप्टेड संचार उपकरण और प्रणालियों की आपूर्ति करने में सक्षम बनाता है, जिससे दोनों पक्षों के उच्च-स्तरीय सैन्य नेताओं के बीच सुरक्षित शांति और युद्धकालीन संचार संभव हो पाता है।
  • बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौता (Basic Exchange and Cooperation Agreement- BECA): वर्ष 2020 में हस्ताक्षरित यह समझौता भारत को अमेरिकी भू-स्थानिक खुफिया जानकारी तक वास्तविक समय तक पहुँच प्राप्त करने में मदद करता है, जिससे मिसाइलों और सशस्त्र ड्रोन जैसी स्वचालित प्रणालियों और हथियारों की सटीकता में वृद्धि होगी।

  • आर्थिक जुड़ाव
    • व्यापार: संयुक्त राज्य अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022 में 191 बिलियन डॉलर से अधिक होगा।
    • FDI: अमेरिका ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत में 6.04 बिलियन डॉलर का निवेश किया, जिससे आर्थिक संबंध मजबूत हुए।
  • रणनीतिक साझेदारियाँ
    • बहुपक्षीय संबंध: भारत और अमेरिका क्वाड और I2U2 जैसे ढाँचों के अंतर्गत सहयोग करते हैं। अमेरिका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता के लिए भारत के पक्ष का भी समर्थन करता है।
    • स्वच्छ ऊर्जा: रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी (Strategic Clean Energy Partnership- SCEP) और जलवायु एजेंडा 2030 जैसी पहल अक्षय ऊर्जा और महत्त्वपूर्ण खनिज संसाधनों में सहयोग को प्रोत्साहित करती हैं।
  • शिक्षा आदान-प्रदान: ‘फुलब्राइट-नेहरू कार्यक्रम’ और GIAN जैसे कार्यक्रम शैक्षिक आदान-प्रदान तथा अनुसंधान साझेदारी को बढ़ावा देते हैं।
  • सांस्कृतिक संपत्ति समझौता (वर्ष 2024): सांस्कृतिक संपत्ति पर वर्ष 2024 का समझौता भारतीय पुरावशेषों को अवैध तस्करी से बचाता है।
  • प्रवासी संबंध: 4.4 मिलियन से अधिक की आबादी वाला भारतीय-अमेरिकी समुदाय दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और शैक्षणिक संबंधों को गहरा करने में योगदान देता है, जिससे लोगों के बीच आपसी संपर्क मजबूत होता है।

महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल (Initiative on Critical and Emerging Technologies- iCET) के बारे में

  • उद्देश्य: iCET उच्च तकनीक और उभरते क्षेत्रों में भारत-अमेरिका सहयोग के लिए आधारशिला के रूप में कार्य करता है।
    • iCET का प्राथमिक उद्देश्य महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में रणनीतिक सहयोग का निर्माण करना, सह-विकास, आपूर्ति शृंखला लचीलापन और दोनों देशों के बीच मजबूत तकनीकी साझेदारी को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना है।

iCET के अंतर्गत प्रमुख फोकस क्षेत्र

  • सामान्य AI मानक स्थापित करना: iCET का उद्देश्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) मानकों को विकसित करना और उन्हें संरेखित करना है, जिससे अंतर-संचालन और नैतिक AI प्रथाओं को सक्षम बनाया जा सके।
    • इस संरेखण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि AI सिस्टम साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और विश्वसनीय सुरक्षा मानकों के अनुरूप विकसित किए जाएँ।
  • रक्षा तकनीक को बढ़ाना और स्टार्टअप को जोड़ना: रक्षा क्षेत्र में, iCET संयुक्त विकास को आगे बढ़ाने और रक्षा प्रौद्योगिकी साझेदारी को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • यह भारतीय और अमेरिकी रक्षा स्टार्टअप को जोड़ने का भी प्रयास करता है, जिससे रक्षा क्षेत्रों में नवाचार तथा सहयोग को सक्षम बनाया जा सके।
  • सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम का निर्माण: सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी के रणनीतिक महत्त्व को पहचानते हुए, iCET एक लचीला सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम स्थापित करने की पहल का समर्थन करता है।
    • इस सहयोग में चिप निर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देना, आपूर्ति शृंखला विविधीकरण और महत्त्वपूर्ण सेमीकंडक्टर घटकों को सुरक्षित करना शामिल है।
  • मानव अंतरिक्ष उड़ान सहयोग को मजबूत करना: iCET मानव अंतरिक्ष उड़ान सहयोग के विस्तार पर जोर देता है।
    • इसमें उपग्रह प्रौद्योगिकी, अन्य ग्रहों की खोज में सहयोग और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का समर्थन करना शामिल है क्योंकि यह मानव अंतरिक्ष उड़ान पहल को आगे बढ़ाता है।
  • 5G/6G विकास और ‘ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क’ (OpenRAN) प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाना: iCET दूरसंचार अवसंरचना को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें 5G और 6G प्रौद्योगिकी सहित अगली पीढ़ी के दूरसंचार पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
    • ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क (OpenRAN) प्रौद्योगिकी पर सहयोगात्मक कार्य का उद्देश्य सुरक्षित, लचीला और लागत प्रभावी नेटवर्क समाधान बनाना है।
  • iCET का विस्तार: हालाँकि iCET की शुरुआत QUAD ढाँचे के भीतर एक द्विपक्षीय पहल के रूप में हुई थी, इस तकनीकी साझेदारी को NATO और यूरोपीय सहयोगियों के साथ-साथ अन्य वैश्विक भागीदारों तक विस्तारित करने की रणनीतिक योजनाएँ हैं, जिससे साझा सिद्धांतों और मानकों के आधार पर तकनीकी सहयोग का एक व्यापक नेटवर्क बनाया जा सके।

संदर्भ

लैंसेट अध्ययन में बताया गया है कि वैश्विक मधुमेह के मामलों में से एक-चौथाई से अधिक भारत में हैं, और लगभग 21.2 करोड़ लोग इससे प्रभावित हैं।

मधुमेह (Diabetes)

  • मधुमेह एक गैर-संचारी दीर्घकालिक रोग है, जिसमें अग्न्याशय या तो पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता अथवा शरीर अपने द्वारा उत्पादित इंसुलिन का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पाता है।
    • इंसुलिन वह हार्मोन है, जो रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार है।

मधुमेह के प्रकार

  • टाइप 1 मधुमेह: स्वप्रतिरक्षा/एंटीबॉडीज अग्न्याशय को प्रभावित करता है, जिससे इंसुलिन उत्पादक बीटा कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं।
    • इससे इंसुलिन का अपर्याप्त उत्पादन होता है।
    • प्रतिदिन इंसुलिन संतुलन की आवश्यकता होती है।
    • इसका सटीक कारण अज्ञात है और कोई ज्ञात निवारक उपाय नहीं हैं।
  • टाइप 2 मधुमेह: इंसुलिन के प्रति प्रतिरोध और इंसुलिन की कमी के संयोजन के कारण होता है।
    • शरीर इंसुलिन का सही तरीके से उपयोग करने में असमर्थ हो जाता है, जिससे अगर इलाज न कराया जाए तो उच्च रक्त शर्करा हो जाती है।
    • इसे अक्सर रोका जा सकता है।
    • योगदान देने वाले कारकों में अधिक वजन होना, व्यायाम की कमी और आनुवंशिकता शामिल हैं।
  • गर्भावधि मधुमेह: यह उच्च रक्त शर्करा का एक रूप है, जो उन गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है, जिन्हें पहले मधुमेह नहीं था।
    • यह आमतौर पर दूसरी तिमाही में दिखाई देता है और टाइप 2 मधुमेह में इसकी प्रगति से बचने के लिए सावधानीपूर्वक निगरानी और प्रबंधन की आवश्यकता होती है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • वैश्विक मधुमेह प्रसार: अनुमान है कि वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर 82.8 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित होंगे, जो वर्ष 1990 के बाद से चार गुना से अधिक की वृद्धि दर्शाता है।
    • उच्च मधुमेह दर वाले अन्य देशों में चीन (14.8 करोड़), अमेरिका (4.2 करोड़), पाकिस्तान (3.6 करोड़) और ब्राजील (2.2 करोड़) शामिल हैं।
    • सबसे अधिक वृद्धि निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में हुई है।
  • अनुपचारित मधुमेह का बोझ: निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में मधुमेह उपचार दरों में स्थिरता के कारण वैश्विक स्तर पर 44.5 करोड़ वयस्क मधुमेह का उपचार नहीं करा पा रहे हैं।
  • भारत की विशेष स्थिति
    • विश्व भर में अनुपचारित मधुमेह के लगभग एक-तिहाई मामले (13.3 करोड़ वयस्क) भारत में हैं।
  • अनुपचारित मधुमेह से जुड़ी चुनौतियाँ: मधुमेह का निदान न होने पर डायबिटिक रेटिनोपैथी जैसी गंभीर जटिलताएँ हो सकती हैं, जो रेटिना क्षति के कारण दृष्टि हानि का कारण बनती है।

भारत में मधुमेह पर अध्ययन

  • ‘स्मार्ट इंडिया’ (SMART India) अध्ययन एक सांख्यिकीय और इकॉनोमिक मॉडलिंग अध्ययन है, जो समुदाय आधारित स्क्रीनिंग से क्रॉस-सेक्शनल तथा संभावित रूप से भर्ती किए गए प्रतिभागियों पर आधारित है, ताकि भारत में मधुमेह, प्री-डायबिटीज और मधुमेह की जटिलताओं के जोखिम वाले लोगों की सटीक पहचान की जा सके।
  • नमूना: शोधकर्ताओं द्वारा 10 भारतीय राज्यों एवं एक केंद्रशासित प्रदेश में आयोजित किया गया।
    • इसमें 40 वर्ष और उससे अधिक आयु के 6,000 से अधिक मधुमेह रोगी शामिल थे।
  • मुख्य निष्कर्ष: पता चला कि भारत में 12.5% ​​मधुमेह रोगियों (लगभग 30 लाख लोग) को डायबिटिक रेटिनोपैथी थी, जिनमें से 4% को दृष्टि-खतरनाक स्थितियों का तत्काल जोखिम था। 
  • बेहतर स्क्रीनिंग (Better Screening): अध्ययन में नियमित रूप से डायबिटिक रेटिनोपैथी स्क्रीनिंग की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

भारत में मधुमेह के उच्च प्रसार में योगदान देने वाले कारक

  • आनुवंशिक पूर्वाग्रह: भारतीयों सहित कुछ नृजातीय समूहों में टाइप 2 मधुमेह विकसित होने की आनुवंशिक प्रवृत्ति अधिक होती है।
  • इंसुलिन प्रतिरोध: भारतीयों में इंसुलिन प्रतिरोध का स्तर अधिक होता है, जिससे वे इस बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
  • शहरीकरण और गतिहीन जीवनशैली: तेजी से शहरीकरण और गतिहीन जीवनशैली अपनाने से शारीरिक गतिविधियों में कमी आई है और मोटापे का खतरा बढ़ गया है, जो मधुमेह के लिए दोनों प्रमुख जोखिम कारक हैं।
  • आहार परिवर्तन: अधिक पश्चिमी आहार की ओर बदलाव, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों, शर्करा युक्त पेय और अस्वास्थ्यकर वसा की अधिकता ने मधुमेह में वृद्धि में योगदान दिया है।
  • जागरूकता की कमी: भारत में बहुत से लोग मधुमेह के अपने जोखिम कारकों और प्रारंभिक पहचान एवं रोकथाम के महत्त्व से अनजान हैं।
  • स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच: ग्रामीण क्षेत्रों में, मधुमेह की जाँच एवं प्रबंधन सहित गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच सीमित हो सकती है।
  • सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: गरीबी और सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ स्वस्थ भोजन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तक पहुँच को सीमित करके मधुमेह के जोखिम को बढ़ा सकती हैं।

निवारक और नीतिगत सिफारिशें 

  • स्वस्थ जीवनशैली: मधुमेह के प्रबंधन के लिए आहार और व्यायाम के माध्यम से रोकथाम महत्त्वपूर्ण है।
  • नीतिगत पहल: अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों को प्रतिबंधित करना, स्वास्थ्यप्रद विकल्पों को अधिक किफायती बनाना, पौष्टिक खाद्य पदार्थों के लिए सब्सिडी प्रदान करना और स्कूलों में मुफ्त स्वस्थ भोजन की शुरुआत करना।
  • व्यायाम एवं योग को बढ़ावा देना: शारीरिक गतिविधियों और योग के लिए सुरक्षित सार्वजनिक स्थानों को बढ़ावा देना, जैसे कि पार्क और फिटनेस सेंटर जहाँ निःशुल्क पहुँच हो।
  • मधुमेह के निदान के लिए नवीन दृष्टिकोण
    • कार्यस्थल और समुदाय आधारित स्क्रीनिंग कार्यक्रम।
    • पहुँच बढ़ाने के लिए लचीले स्वास्थ्य सेवा घंटे।
    • मधुमेह स्क्रीनिंग को अन्य स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रमों (जैसे, एचआईवी/एड्स, टीबी) के साथ एकीकृत करना।
    • कम सेवा वाले क्षेत्रों में निदान दरों में सुधार के लिए विश्वसनीय सामुदायिक स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का उपयोग करना।

भारत में मधुमेह के बोझ को कम करने के लिए उठाए गए कदम

  • राष्ट्रीय मधुमेह नीति (National Diabetes Policy): वर्ष 2017 में शुरू की गई इस नीति का उद्देश्य वर्ष 2025 तक भारत में मधुमेह के प्रसार को 20% तक कम करना है।
  • गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Prevention & Control of Non-Communicable Diseases: NP-NCD):  NP-NCD के तहत, राज्यों से प्राप्त प्रस्तावों के अनुसार, मधुमेह के लिए ग्लूकोमीटर और दवाएँ प्रदान की जाती हैं।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत जनसंख्या आधारित जाँच (Population based screening under National Health Mission): इसका उद्देश्य मधुमेह, उच्च रक्तचाप और कैंसर सहित आम गैर-संचारी रोगों (NCDs) की रोकथाम, नियंत्रण और जाँच करना है।
    • इस पहल में विशेष रूप से 30 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों की जाँच की जाती है।
  • ‘ईट राइट इंडिया’ (Eat Right India): केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तत्त्वावधान में FSSAI द्वारा चीनी, नमक और वसा की खपत को कम करने के लिए ‘ईट राइट इंडिया’ अभियान शुरू किया गया।
  • ‘फिटनेस पहल’: युवा मामले और खेल मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा ‘फिट इंडिया’ और ‘खेलो इंडिया’ अभियान चलाए जा रहे हैं तथा आयुष मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा योग से संबंधित विभिन्न गतिविधियाँ संचालित की जा रही हैं।
  • दवा की उपलब्धता: राज्य सरकारों के सहयोग से ‘प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना’ (Pradhan Mantri Bhartiya Janaushadhi Pariyojana- PMBJP) के तहत सभी को सस्ती कीमतों पर इंसुलिन सहित गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं।

विश्व मधुमेह दिवस 2024

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अंतरराष्ट्रीय मधुमेह महासंघ (IDF) इस कार्यक्रम का आयोजन करते हैं, जो मधुमेह की रोकथाम, स्वास्थ्य जोखिमों और बीमारी के साथ प्रबंधन तथा अच्छी तरह से जीवनयापन पर केंद्रित है।
  • IDF और WHO ने वर्ष 1991 में मधुमेह के बारे में बढ़ती वैश्विक चिंताओं के जवाब में विश्व मधुमेह दिवस की शुरुआत की गई, जो एक प्रमुख स्वास्थ्य चिंता है। वर्ष 2006 में, संयुक्त राष्ट्र ने औपचारिक रूप से WDD को मान्यता दी और मधुमेह को वैश्विक स्वास्थ्य चिंता के रूप में पहचाना।
  • वर्ष 2024 का थीम: ‘बाधाओं को तोड़ना, अंतरालों को पाटना’ (Breaking Barriers, Bridging Gaps), जो मधुमेह के जोखिम को कम करने और मधुमेह से पीड़ित सभी व्यक्तियों के लिए समान, संपूर्ण, सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
  • विश्व मधुमेह दिवस का उद्देश्य
    • वैश्विक स्वास्थ्य चिंता के रूप में मधुमेह के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
    • प्रभावी मधुमेह देखभाल, शिक्षा और सहायता प्रणालियों तक पहुँच को बढ़ावा देना।
    • निवारक उपायों और स्वस्थ जीवनशैली में बदलाव को प्रोत्साहित करना।

संदर्भ

जवाहरलाल नेहरू के प्रकाशित तथा अप्रकाशित कार्यों को प्रदर्शित करने वाला एक मल्टीमीडिया डिजिटल संग्रह, जवाहरलाल नेहरू स्मारक निधि (Jawaharlal Nehru Memorial Fund- JNMF) 14 नवंबर, 2025 को उनकी जयंती पर जारी किया गया।

  • भारत पंडित जवाहरलाल नेहरू की 135वीं जयंती के उपलक्ष्य में 14 नवंबर, 2024 को बाल दिवस भी मना रहा है।

जवाहरलाल नेहरू पुरालेख (Nehru Archive) के बारे में

  • उद्देश्य: नेहरू के योगदान को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाना, आधुनिक भारत और विश्व को आकार देने में उनकी भूमिका को प्रदर्शित करना है।
  • पुरालेख की मुख्य विशेषताएँ
    • जवाहरलाल नेहरू की चयनित कृतियों के सभी 100 खंड।
    • जवाहरलाल नेहरू द्वारा मुख्यमंत्रियों को लिखे गए पत्र (वर्ष 1947- वर्ष 1964)।
    • एक पिता से अपनी बेटी को पत्र, विश्व इतिहास की झलकियाँ, एक आत्मकथा तथा भारत की खोज जैसी पुस्तकें प्रकाशित।
    • वर्ष 1917 से वर्ष 1964 तक के मूल भाषण।
    • समकालीन लोगों द्वारा नेहरू पर लिखे गए लेख तथा वैश्विक अभिलेखागार से सामग्री।
    • यह संग्रह व्यापक, गतिशील तथा खुला होगा, जिसे लगातार नए स्रोतों से अपडेट किया जाएगा।
  • प्रेरणा: अमेरिका स्थित विल्सन सेंटर से प्रेरित होकर, यह संग्रह नेहरू पर शोध के लिए प्राथमिक स्रोत बनना चाहता है।
  • स्थापना: JNMF की स्थापना वर्ष 1964 में हुई थी।

जवाहरलाल नेहरू के बारे में

  • जन्म : 14 नवंबर, 1889, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।
  • वर्ष 1912: वकील के रूप में कॅरियर की शुरुआत की।
  • वर्ष 1916: वकालत में कम रुचि के कारण एनी बेसेंट की होम रूल लीग में शामिल हो गए।
  • वर्ष 1920: महात्मा गांधी से मुलाकात हुई तथा असहयोग आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए।
  • वर्ष 1929- 1931 तक
    • वर्ष 1929 के लाहौर अधिवेशन में भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की वकालत की।
    • मौलिक अधिकारों तथा आर्थिक नीति पर एक प्रस्ताव का मसौदा तैयार किया, जिसे सरदार पटेल की अध्यक्षता में वर्ष 1931 के कराची अधिवेशन में अनुमोदित किया गया।
  • वर्ष 1936: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता की।
  • वर्ष 1940: गांधी के नेतृत्व में सीमित सविनय अवज्ञा अभियान (व्यक्तिगत सत्याग्रह) में भाग लिया, चार वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई।
  • वर्ष 1942: गांधी द्वारा अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया गया।
  • वर्ष 1947: स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने तथा लगातार दो कार्यकालों के लिए फिर से चुने गए। वर्ष 1964 में अपनी मृत्यु तक वे 16 वर्ष से अधिक समय तक प्रधानमंत्री रहे।
  • वर्ष 1955: भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

जवाहरलाल नेहरू का योगदान

  • साहित्यिक कार्य: भारत की खोज, विश्व इतिहास की झलकियाँ तथा अपनी आत्मकथा टुवर्ड्स फ्रीडम, साथ ही ‘एक पिता से उसकी बेटी को पत्र’ ।
  • शिक्षा: आईआईटी, एम्स, तथा आईआईएम जैसे संस्थानों की स्थापना की; अपनी पंचवर्षीय योजना में सभी बच्चों के लिए निःशुल्क तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा को शामिल किया।
  • औद्योगिक विकास: दुर्गापुर तथा राउरकेला में लौह तथा इस्पात संयंत्रों सहित भारी उद्योग स्थापित किए।
  • संस्थाएँ: राष्ट्रीय रक्षा अकादमी तथा परमाणु ऊर्जा आयोग की नींव रखी।
  • विदेश नीति: गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत की; वर्ष 1954 में चीन के साथ पंचशील पर हस्ताक्षर किए, जिसमें शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों को चिह्नित किया गया; भारत की विदेश नीति के निर्माता के रूप में जाने जाते हैं।
  • शासन व्यवस्था: भाषायी आधार पर राज्य बनाने के लिए वर्ष 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग की नियुक्ति की गई।

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने दिवाली के दौरान पटाखों के इस्तेमाल को उल्लेखित करते हुए कहा कि कोई भी धर्म प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों का समर्थन नहीं करता है। 

संबंधित तथ्य 

  • कार्यान्वयन में विफलता: न्यायालय ने दिल्ली सरकार द्वारा 14 अक्टूबर को लगाए गए पटाखों पर प्रतिबंध को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल रहने के लिए दिल्ली पुलिस की आलोचना की।
  • वर्ष भर प्रतिबंध की माँग: दिल्ली सरकार पूरे वर्ष पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के बारे में निर्णय लेने के लिए हितधारकों से परामर्श करेगी तथा 25 नवंबर तक इस पर निर्णय होने की उम्मीद है।
  • विशेष प्रवर्तन उपायों के लिए आदेश: दिल्ली पुलिस आयुक्त को पटाखों पर प्रतिबंध लागू करने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ गठित करने का निर्देश दिया गया है।
  • NCR राज्यों की जवाबदेही: सभी NCR राज्यों से प्रदूषण को कम करने के लिए उठाए गए कदमों, विशेषकर दिवाली के दौरान, के बारे में रिपोर्ट देने को कहा गया है।

अर्जुन गोपाल बनाम भारत संघ (वर्ष 2017) 

  • दिवाली के दौरान पटाखे जलाने से होने वाले गंभीर वायु प्रदूषण को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली-NCR क्षेत्र में पटाखों की बिक्री पर अस्थायी प्रतिबंध लगा दिया है।
  • न्यायालय ने कहा कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य को आवेदक या किसी भी स्थायी लाइसेंसधारी के किसी भी वाणिज्यिक या अन्य हित से अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए, इसलिए एक क्रमबद्ध विनियमन आवश्यक है, जिसके परिणामस्वरूप अंततः निषेध होगा।
  • न्यायालय ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को वायु गुणवत्ता पर पटाखों के प्रभाव का अध्ययन करने और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया।

  • पराली जलाने के मुद्दे: न्यायालय ने पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने में शामिल किसानों के विरुद्ध कार्रवाई की कमी पर गौर किया, जिससे NCR में प्रदूषण बढ़ रहा है।
    • राज्यों को निर्देश दिया गया कि वे किसानों पर मुकदमा न चलाने के कारणों की व्याख्या करें तथा पराली जलाने के विरुद्ध मौजूदा नियमों को लागू करना चाहिए।
  • वित्तपोषण पर केंद्र की स्थिति: केंद्र ने बताया कि उसने पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए किसानों को ट्रैक्टर और उपकरण उपलब्ध कराने के लिए पंजाब के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया है।
  • स्वच्छ वायु मौलिक अधिकार: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का प्रत्येक नागरिक का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत संरक्षित है।

प्रदूषण मुक्त पर्यावरण का अधिकार 

  • जीवन के अधिकार की विस्तारित परिभाषा: अनुच्छेद-21 में न केवल अस्तित्व बल्कि सार्थक और सम्मानजनक जीवन के लिए आवश्यक सभी अधिकार भी शामिल हैं।
    • 1980 के दशक में सर्वोच्च न्यायालय ने स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार को अनुच्छेद-21 के भाग के रूप में मान्यता दी।
  • ऐतिहासिक मामले
    • एम. सी. मेहता बनाम भारत संघ (1987): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का अधिकार अनुच्छेद-21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।
    • एम. के. रंजीतसिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य (2024): न्यायालय ने जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने के अधिकार को मान्यता देने के लिए अनुच्छेद-21 की विस्तार से व्याख्या की तथा इस बात की पुष्टि की कि अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) भी प्रासंगिक है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन विभिन्न समूहों पर असमान रूप से प्रभाव डालता है।
  • 42वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1976: भारत का संविधान दो अनुच्छेदों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण को संवैधानिक दर्जा देने वाला विश्व का पहला संविधान बन गया-
    • अनुच्छेद-48-A (राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत): राज्य को पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा वनों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा करने का अधिकार दिया गया है।
    • अनुच्छेद-51A (g) (मौलिक कर्तव्य): पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता: भारत, मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 का हस्ताक्षरकर्ता होने के नाते, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्याप्त जीवन स्तर के अधिकार को मान्यता देता है, जिसमें भोजन, कपड़े, आवास, चिकित्सा देखभाल और आवश्यक सामाजिक सेवाओं तक पहुँच शामिल है।

संदर्भ

नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Nano Science and Technology- INST), मोहाली के शोधकर्ताओं ने उर्वरकों के लिए एक ‘नोवेल बायोडिग्रेडेबल नैनोकोटिंग’ विकसित की है, जो धीमी गति से उत्सर्जन को सक्षम करके पोषक तत्त्वों के उपयोग की दक्षता को बढ़ा सकती है।

  • यह तकनीक उच्च फसल पैदावार को बनाए रखते हुए, पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ प्रदान करते हुए आवश्यक उर्वरक की मात्रा को कम कर सकती है।

मुख्य विशेषताएँ एवं संरचना

  • नैनो कोटिंग मैटेरियल: यह लेप नैनोक्ले-रेनफोर्स्ड बाइनरी कार्बोहाइड्रेट्स, विशेष रूप से चिटोसन (Chitosan) और लिग्निन (Lignin) से बनाया गया है, जिसे ‘एनिओनिक क्ले’ (Anionic Clay) के साथ मिलाकर स्थिर बंध बनाए जाते हैं।
  • इसमें हाइड्रोफोबिक गुण होते हैं, जिसके कारण उर्वरकों को धीरे-धीरे छोड़ा जाता है, जिससे मृदा और जल में तेजी से घुलने और पोषक तत्त्वों की हानि कम होती है।

नैनोटेक्नोलॉजी (Nanotechnology)

  • नैनोटेक्नोलॉजी, नई संरचनाओं, सामग्रियों और उपकरणों का उत्पादन करने के लिए लगभग परमाणु पैमाने पर पदार्थ का परिवर्तन है।
  • अनुप्रयोग: यह चिकित्सा, उपभोक्ता उत्पाद, ऊर्जा, सामग्री और विनिर्माण जैसे कई क्षेत्रों में वैज्ञानिक उन्नति का वादा करता है।

नैनो उर्वरक (Nano fertilizers) 

  • ये वे पोषक तत्त्व हैं, जिन्हें नैनोमैटेरियल में समाहित या लेपित किया जाता है ताकि नियंत्रित मात्रा में इनका उत्सर्जन हो सके और इसके बाद मिट्टी में इनका धीमा प्रसार हो सकता है।
    • उदाहरण: नैनो यूरिया और नैनो DAP

सामग्री स्थिरता (Material Sustainability) तथा जैव अनुकूलता (Biocompatibility)

  • उपयोग किए जाने वाले नैनोमैटेरियल कम लागत वाले, प्रकृति से प्राप्त पदार्थ जैसे नैनो-क्ले, चिटोसन तथा स्टार्च हैं।
  • बायोडिग्रेडेबल तथा यांत्रिक रूप से स्थिर होने के लिए डिजाइन किया गया, यह कोटिंग अपशिष्ट को कम करके और मृदा की पोषक क्षमता को बढ़ाकर सतत् कृषि प्रथाओं का समर्थन करता है।

आवेदन प्रक्रिया 

  • ‘म्यूरेट ऑफ पोटाश’ जैसे उर्वरकों को समान रूप से लेपित करने के लिए एक रोटरी ड्रम प्रणाली का उपयोग किया जाता है, जो उर्वरकों में आवश्यक लगभग 80% पोटेशियम प्रदान करता है।
  • यह प्रणाली, ‘सैंड एयर गन’ (Sand Air Gun) से सुसज्जित है, जो एक समान कोटिंग प्रदान करती है, जो परिवहन एवं हैंडलिंग के दौरान भी स्थिर रहती है।

लाभ 

  • पोषक तत्त्वों के उपयोग की बेहतर दक्षता: धीमी गति से उत्सर्जित होने वाली प्रणाली पोषक तत्त्वों की उपलब्धता को फसल की जरूरतों के अनुरूप बनाती है, जिससे दक्षता बढ़ती है तथा आवश्यक उर्वरक की कुल मात्रा कम हो जाती है।
    • यह प्रौद्योगिकी चावल तथा गेहूँ जैसी फसलों के लिए अनुशंसित उर्वरक की मात्रा को कम कर देती है, जिससे फसल पैदावार को बनाए रखने या संभावित रूप से बढ़ाने में मदद मिलती है।
  • पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभाव: उर्वरक के बहाव तथा आसपास की मिट्टी और पानी के साथ इसकी अंतःक्रिया को सीमित करके, यह नवाचार पारंपरिक उर्वरकों से जुड़े पर्यावरणीय जोखिमों को कम करता है।
    • इसमें उर्वरक लागत में कमी लाकर तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि करके किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने की भी क्षमता है, जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सकारात्मक योगदान दे सकता है।

व्यापक अनुप्रयोगों के लिए संभावनाएँ 

  • इन पॉलिमर की 3D नैनो संरचना का उपयोग कृषि से परे भी किया जा सकता है, क्योंकि इसमें बायोडिग्रेडेबिलिटी, बायोकंपैटिबिलिटी और थर्मोस-रिस्पॉन्सिव गुण होते हैं।
  • भविष्य के अनुप्रयोगों में अन्य क्षेत्र शामिल हो सकते हैं, जहाँ नियंत्रित उत्सर्जन और पर्यावरणीय स्थिरता की आवश्यकता होती है।

संदर्भ 

सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि किसी व्यक्ति की संपत्ति को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना, केवल अपराध में उनकी कथित संलिप्तता के आधार पर ध्वस्त करना असंवैधानिक है। 

मामले की पृष्ठभूमि

  • इस मामले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड जैसे राज्यों में आपराधिक गतिविधियों के आरोपी व्यक्तियों के घरों को ध्वस्त करने की ‘कानून से इतर’ प्रथा को चुनौती देने वाली कई याचिकाएँ शामिल थीं।
  • हाल ही में यह निर्णय इस वर्ष की शुरुआत में राजस्थान के उदयपुर और मध्य प्रदेश के रतलाम में हुई घटनाओं के बाद आया है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद-142 सर्वोच्च न्यायालय को ऐसा आदेश पारित करने की अनुमति देता है, जो ‘उसके समक्ष लंबित किसी मामले या वाद में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक है।’

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी प्रमुख दिशा-निर्देश 

  • विध्वंस प्रक्रियाओं के लिए दिशा-निर्देश: सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद-142 का हवाला देते हुए राज्यों द्वारा आरोपी व्यक्तियों के घरों एवं निजी संपत्तियों को अवैध एवं प्रतिशोधात्मक तरीके से गिराने से रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
  • कारण बताओ नोटिस के बिना नहीं किया जा सकता विध्वंस
    • अधिकारियों को संपत्ति के मालिक को पंजीकृत डाक के माध्यम से कारण बताओ नोटिस जारी करना चाहिए और इसे इमारत के बाहर चिपकाना चाहिए। 
    • इस नोटिस में जवाब देने के लिए 15 दिन की अवधि या स्थानीय कानूनों में निर्दिष्ट समय-सीमा जो भी बाद में हो, बताई जानी चाहिए।
  • डिजिटल रिकॉर्ड रखना और जवाबदेही
    • बैकडेटिंग को रोकने के लिए डिजिटल अधिसूचना: न्यायालय ने निर्देश दिया कि एक बार कारण बताओ नोटिस जारी होने के बाद, एक डिजिटल अधिसूचना जिला कलेक्टर या मजिस्ट्रेट के कार्यालय को ईमेल के माध्यम से भेजी जानी चाहिए।
    • नोडल अधिकारी की नियुक्ति: न्यायालय ने निर्देश दिया कि एक महीने के भीतर, जिला कलेक्टर या मजिस्ट्रेट को विध्वंस से संबंधित नोटिसों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार एक नोडल अधिकारी नियुक्त करना चाहिए।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे नोटिसों एवं आदेशों का विवरण उपलब्ध कराने के लिए एक निर्दिष्ट डिजिटल पोर्टल स्थापित करने का भी आह्वान किया।
  • विध्वंस की अनिवार्य वीडियोग्राफी: विध्वंस की कार्यवाही की वीडियोग्राफी की जानी चाहिए और रिपोर्ट संबंधित नगर आयुक्त को प्रस्तुत की जानी चाहिए।
  • अंतिम आदेश में विध्वंस का औचित्य: अंतिम आदेश में उल्लेख किया जाना चाहिए कि विध्वंस का ‘चरम कदम’ ही एकमात्र विकल्प क्यों है और संपत्ति के एक हिस्से को कंपाउंडिंग और ध्वस्त करने जैसे अन्य विकल्प संभव नहीं हैं।
  • जवाबदेही और न्यायालय की अवमानना: इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों पर न्यायालय की अवमानना ​​का आरोप लगाया जाता है।
    • वे स्वयं के खर्च पर ध्वस्त संपत्ति की वसूली के लिए उत्तरदायी होंगे तथा मुआवजा भी देंगे।
  • दिशा-निर्देशों के अपवाद: दिशा-निर्देश सार्वजनिक भूमि जैसे सड़क, फुटपाथ या जल निकायों के पास अनधिकृत संरचनाओं पर लागू नहीं होते हैं या जहाँ न्यायालय के आदेश में ध्वस्तीकरण अनिवार्य है।
  • पिछले ध्वस्तीकरण शामिल नहीं: नए निर्देश उन व्यक्तियों को राहत प्रदान नहीं करते हैं, जिनकी संपत्ति पहले ही बिना उचित प्रक्रिया के ध्वस्त कर दी गई थी, चाहे वह ध्वस्तीकरण के पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने के मामले में हो या दोषी अधिकारियों पर जवाबदेही तय करने के मामले में।
  • राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन: पीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) अपने फैसले की एक प्रति सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को प्रसारित करेंगे।
    • सामान्यतः सड़क चौड़ीकरण के प्रयोजन के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के संबंध में जारी निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करना।

  • शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत (Principle of Separation of Powers) ने सरकारी जिम्मेदारियों को तीन अलग-अलग शाखाओं में विभाजित किया:-
    • विधायिका: कानून बनाने के लिए जिम्मेदार।
    • कार्यपालिका: कानूनों को लागू करने और क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार।
    • न्यायिक: कानूनों की व्याख्या करने और न्याय देने के लिए जिम्मेदार।
  • इस विभाजन का उद्देश्य किसी एक शाखा में सत्ता के संकेंद्रण को रोकना तथा सरकार के भीतर जाँच एवं संतुलन सुनिश्चित करना है।

दिशा-निर्देशों के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय का तर्क

  • आश्रय के अधिकार का उल्लंघन: सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि केवल आरोपों के आधार पर संपत्ति को ध्वस्त करना अनुच्छेद-21 के तहत आश्रय के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है।
  • सामूहिक दंड की चिंताएँ: न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि किसी आरोपी के घर को ध्वस्त करना अनुचित तरीके से परिवार के सभी सदस्यों को दंडित करता है, जो ‘सामूहिक दंड’ के बराबर है।
  • आपराधिक न्यायशास्त्र के सिद्धांत (Principles of Criminal Jurisprudence): न्यायालय ने दोहराया कि किसी आरोपी व्यक्ति को ‘दोषी सिद्ध होने तक निर्दोष माना जाता है’।
    • विध्वंस के माध्यम से सामूहिक दंड इस सिद्धांत का खंडन करता है और इसे संविधान के तहत उचित नहीं ठहराया जा सकता हैं।
  • चुनिंदा विध्वंस और दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य की धारणा: न्यायालय ने चुनिंदा विध्वंस की निंदा की, यह देखते हुए कि जब एक संरचना को अलग कर दिया जाता है, जबकि अन्य बनी रहती हैं, तो यह दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य का संकेत देता है।
    • इससे यह धारणा बनती है कि यह कार्रवाई अवैध संरचनाओं के प्रति वैध प्रतिक्रिया न होकर दंडात्मक थी।
  • शक्तियों का पृथक्करण: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कार्यपालिका उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी आरोपी की संपत्ति को ध्वस्त नहीं कर सकती है। न्यायालय ने उचित प्रक्रिया के बिना किसी इमारत को बुलडोजर से ध्वस्त करने के ‘डरावने दृश्य’ को ‘कानूनविहीन राज्य’ की याद दिलाने वाला बताया।
    • इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि जब कार्यपालिका न्यायाधीश और प्रवर्तक दोनों के रूप में कार्य करती है, तो यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन होता है।
  • अभियुक्त के अधिकारों की मान्यता: न्यायालय ने यह पुष्टि करते हुए निष्कर्ष निकाला कि अभियुक्त या दोषी व्यक्ति को भी संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा प्राप्त है और उनके खिलाफ किसी भी कार्रवाई में इन अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए।

बुलडोजर न्याय (Bulldozer Justice) के बारे में

  • ‘बुलडोजर न्याय’ से तात्पर्य एक प्रकार की गैर-कानूनी कार्रवाई से है, जिसमें अधिकारी दंड के रूप में संपत्तियों को ध्वस्त कर देते हैं तथा अक्सर अपराध के आरोपी या सरकार के विरुद्ध असहमति जताने वाले व्यक्तियों को निशाना बनाते हैं।

हाल के समय में बुलडोजर न्याय के उदय के कारण

  • राजनीतिक प्रेरणाएँ: अपराध पर सख्त रुख या ‘आँख के बदले आँख’ वाला दृष्टिकोण कई राज्य सरकारों के लिए राजनीतिक प्रतीक बन गया है।
    • बुलडोजर न्याय एक प्रतीकात्मक कार्य है, जो उन मतदाताओं के वोट हासिल करने में मदद करता है, जो शासन और कानून प्रवर्तन के प्रति सख्त दृष्टिकोण के पक्षधर हैं।
  • कमजोर कानूनी ढाँचा: दंडात्मक उपायों के रूप में विध्वंस के खिलाफ स्पष्ट कानूनों की अनुपस्थिति और शहरी नियमों में खामियाँ अधिकारियों को कानूनी औचित्य के बिना मनमाने ढंग से कार्य करने की अनुमति देती हैं।
  • अतिक्रमणों का त्वरित समाधान: शहरी विकास में तेजी से वृद्धि के कारण अनधिकृत निर्माणों में वृद्धि हुई है और उच्च माँग वाले क्षेत्रों में अतिक्रमणों को हटाने के लिए बुलडोजर विध्वंस का उपयोग त्वरित समाधान के रूप में किया जाता है।
  • लोकलुभावन अपील: बुलडोजर विशेष रूप से अपराध या कथित गलत कार्यों के मामलों में ‘न्याय’ का एक त्वरित, दृश्यमान रूप प्रदान करके जनता की भावनाओं को आकर्षित करते हैं।
    • बुलडोजर एक्शन को निर्णायक कार्रवाई के रूप में पेश किया जाता है।
  • सोशल मीडिया पर प्रचार: विध्वंस के नाटकीय दृश्य सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गए, जिससे यह प्रथा और भी लोकप्रिय हो गई और ‘न्याय’ के साथ इसका जुड़ाव भी मजबूत हो गया।

बुलडोजर न्याय के उदय के कारण उत्पन्न मुद्दे

  • उचित प्रक्रिया का उल्लंघन: न्यायिक विध्वंस कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हैं, कानून के शासन और नागरिकों के निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को कमजोर करते हैं।
  • सामूहिक दंड: निर्दोष परिवार के सदस्य प्रभावित होते हैं, उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
    • इससे बेघर होने और आजीविका खोने की संभावना बढ़ जाती है, विशेष तौर पर कमजोर और हाशिए पर पड़े समूहों के लिए।
  • न्यायपालिका में विश्वास का क्षरण: जब कार्यकारी कार्रवाई कानूनी सुरक्षा उपायों को दरकिनार करती है तो न्यायपालिका में जनता का विश्वास कम होता है।
  • मानवाधिकार उल्लंघन: जिसके परिणामस्वरूप अवैध निष्कासन, संपत्ति का विनाश और आश्रय का नुकसान होता है।
  • असंगत अनुप्रयोग: चुनिंदा विध्वंस पक्षपात और अराजकता की धारणाएँ उत्पन्न करते हैं।
  • शहरी नियोजन पर प्रभाव: खराब तरीके से निष्पादित विध्वंस समुदायों को बाधित करते हैं और निष्पक्ष शहरी विकास में बाधा डालते हैं।

बुलडोजर न्याय पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के नैतिक निहितार्थ

  • कानूनी न्याय को सुदृढ़ बनाना: निर्णय प्रक्रियात्मक न्याय को बनाए रखता है, यह सुनिश्चित करता है कि विध्वंस केवल निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रियाओं के माध्यम से किया जाता है।
  • अधिकारियों की जवाबदेही को बनाए रखता है: अवैध विध्वंस के लिए अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से जवाबदेह ठहराकर, अधिकारियों की जवाबदेही और प्रशासनिक अखंडता को बढ़ावा दिया जाता है।
  • मनमाने कार्यकारी कार्यों की रोकथाम: शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर जोर देकर, निर्णय कार्यकारी अतिक्रमण को कम करता है।
  • कमजोर समूहों की सुरक्षा: निर्णय हाशिए पर पड़े समुदायों को विशेष रूप से सांप्रदायिक या राजनीतिक प्रेरणाओं पर आधारित विध्वंस से बचाता है, जो सामाजिक न्याय में योगदान देता है।
  • पारदर्शिता बढ़ाता है: SC द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देश पारदर्शिता पर जोर देते हैं। उदाहरण: यह सुनिश्चित करके कि विध्वंस का दस्तावेजीकरण और निगरानी की जाती है।
  • नैतिक शासन: निर्णय नैतिक शासन की ओर बदलाव को प्रोत्साहित करता है, जहाँ सार्वजनिक अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे निष्पक्षता और कानून के शासन के सम्मान के सिद्धांतों पर आधारित जनता के सर्वोत्तम हित में कार्य करें।

आगे की राह

  • स्वतंत्र निगरानी: विध्वंस की निगरानी के लिए स्वतंत्र निकाय स्थापित करना, सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करना और सत्ता के दुरुपयोग के मामलों को संबोधित करना।
  • सामुदायिक पहुँच: नागरिकों को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में शिक्षित करना, जिसमें मनमाने ढंग से किए जाने वाले विध्वंस के खिलाफ सुरक्षा, न्याय पाने के लिए कमजोर समुदायों को सशक्त बनाना शामिल है।
  • बदलते दृष्टिकोण: पार्षदों से लेकर पुलिस तक स्थानीय अधिकारियों को न्यायालय के संदेश को आत्मसात् करना चाहिए और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखना चाहिए।
  • दीर्घकालिक समाधान: समावेशी व्यापक शहरी नियोजन में निवेश करना।
    • जहाँ भी संभव हो, अतिक्रमण के लिए वैकल्पिक समाधान प्रस्तुत करना चाहिए।
      • उदाहरण: विशिष्ट क्षेत्रों में संपत्तियों का नियमितीकरण, प्रभावित परिवारों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम।

निष्कर्ष

बुलडोजर न्याय पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला संवैधानिक अधिकारों को कायम रखने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। हालाँकि, मनमाने ढंग से तोड़फोड़ को रोकने और नागरिकों की गरिमा की रक्षा के लिए निरंतर सतर्कता तथा दिशा-निर्देशों के सख्त जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन की आवश्यकता है।

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