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Nov 20 2024

Title Subject Paper
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार की आवश्यकता Public Distribution System, GS Paper 3,
धुड़मारस को ‘सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गाँव’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया art and culture, GS Paper 1,
संक्षेप में समाचार
भारत में बैड बैंक economy, GS Paper 3,
SpaceX के फाल्कन-9 ने भारतीय उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया Science and Technology, GS Paper 3,
RRVUNL ने छत्तीसगढ़ में पारस कोयला खदान पर रिपोर्ट पर सवाल उठाए energy, GS Paper 3,
चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री कॉरिडोर international Relation, GS Paper 2,
दीपम् (DIPAM) द्वारा केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के लिए संशोधित पूँजी पुनर्गठन मानदंड economy, GS Paper 3,
रियो डी जनेरियो में G20 शिखर सम्मेलन international Relation, GS Paper 2,
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) Polity and governance ​, GS Paper 2,
मधुमक्खियों में होने वाली नई संक्रामक बीमारियाँ विश्व की अर्थव्यवस्थाओं के लिए खतरा Environment and Ecology, GS Paper 3,
वैश्विक ऊर्जा दक्षता गठबंधन Environment and Ecology, GS Paper 3,
एवियन बोटुलिज्म Health, GS Paper 2,
तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व देश का 56वाँ टाइगर रिजर्व अधिसूचित Environment and Ecology, GS Paper 3,
चर्चित स्थान: गुयाना (Guyana) international Relation, GS Paper 2,

संदर्भ

भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) के अध्ययन के अनुसार, मुफ्त राशन योजना के तहत 800 मिलियन से अधिक लाभार्थियों को खाद्यान्न वितरण में रिसाव की वार्षिक राजकोषीय लागत 69,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।

भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (Indian Council for Research on International Economic Relations- ICRIER)

  • स्थापना: वर्ष 1981 में स्थापित, भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) एक स्वतंत्र सार्वजनिक नीति संगठन है।
  • आदर्श वाक्य: इसका मार्गदर्शक आदर्श वाक्य ‘भारत को विश्व से जोड़ना’ है।
  • फोकस क्षेत्र: ICRIER कृषि, जलवायु परिवर्तन, डिजिटल अर्थव्यवस्था, आर्थिक विकास, नौकरी, व्यापार, उद्योग और निवेश जैसे प्रमुख क्षेत्रों में अनुसंधान करता है।
  • भूमिका तथा योगदान: यह भारत के समावेशी विकास को गति देने के लिए व्यावहारिक विचार प्रदान करता है और शिक्षा और नीति-निर्माण के बीच एक सेतु का कार्य करता है।
  • सलाहकार भूमिका: ICRIER सरकारों, कॉरपोरेट्स, बहुपक्षीय संगठनों तथा फाउंडेशनों के लिए एक विश्वसनीय सलाहकार के रूप में कार्य करता है।

ICRIER अध्ययन में चर्चा किए गए प्रमुख मुद्दे

  • अत्यधिक कवरेज तथा आर्थिक बोझ
    • NSFA तथा PMGKAY के तहत वर्तमान कवरेज: यह 57% आबादी (वर्ष 2024 में लगभग 1.43 बिलियन की आबादी में से 813.5 मिलियन लोग) तक फैला हुआ है।
    • आलोचना: आलोचकों का तर्क है कि 800 मिलियन से अधिक लोगों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराना आर्थिक रूप से असंतुलित है।
  • PDS में रिसाव
    • सार्वजनिक वितरण प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा खाद्यान्नों का रिसाव है, जो उन्हें लक्षित लाभार्थियों तक पहुँचने से रोकता है।
    • रिसाव की सीमा: PDS के तहत वितरित चावल तथा गेहूँ का लगभग 28% लाभार्थियों तक नहीं पहुँचता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक वर्ष (2022-23) 19.69 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) अनाज की हानि होती है।
      • इससे प्रति वर्ष ₹69,108 करोड़ का वित्तीय घाटा होता है।

    • राज्य संबंधी भिन्नताएँ: अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड तथा गुजरात जैसे राज्यों ने रिसाव की कुछ उच्चतम दरों की सूचना दी है।
    • सुधार एवं चुनौतियाँ: उचित मूल्य की दुकानों पर पॉइंट-ऑफ-सेल (PoS) मशीनों की शुरुआत ने वर्ष 2011-12 में रिसाव को 46% से घटाकर वर्ष 2022-23 में 28% कर दिया है।
  • पोषण सुरक्षा की कमी
    • वर्तमान अनाज केंद्रित खाद्य सब्सिडी प्रणाली भारत की पोषण संबंधी चुनौतियों का पर्याप्त रूप से समाधान नहीं करती है।
    • कुपोषण संकेतक: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS), 2019-2021 के अनुसार,
      • पाँच वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे अविकसित हैं।
      • 19.3% बच्चे कमजोर हैं।
      • 32.1% बच्चे कम वजन वाले हैं।
    • अनाज केंद्रित सब्सिडी: मौजूदा सब्सिडी में अनाज को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि दालों, सब्जियों और फलों जैसे पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों पर सीमित ध्यान दिया जाता है, जो कुपोषण पर नियंत्रण पाने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • राजकोषीय प्रभाव
    • वित्त वर्ष 2023 में खाद्य सब्सिडी व्यय 2.72 लाख करोड़ रुपये था, जो वित्त वर्ष 2024 (संशोधित अनुमान) में घटकर 2.12 लाख करोड़ रुपये रह गया।
    • कम रिसाव से होने वाली बचत को कृषि निवेश तथा ग्रामीण विकास की ओर पुनर्निर्देशित किया जा सकता है।

भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित अन्य मुद्दे

  • फर्जी लाभार्थी एवं धोखाधड़ी: आधार लिंकेज की शुरुआत के बावजूद, डुप्लिकेट तथा अयोग्य लाभार्थी एक चुनौती बने हुए हैं।
    • वर्ष 2013-2021 के बीच 47 मिलियन फर्जी राशन कार्ड रद्द किए गए है।
  • लक्ष्य निर्धारण में त्रुटियाँ: लाभार्थियों की पहचान करने में त्रुटि के कारण पात्र परिवारों शामिल नहीं हो पाते हैं और संपन्न परिवारों को शामिल कर लिया जाता है।
  • भंडारण हानियाँ: पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण प्रत्येक वर्ष 10% खाद्यान्न खराब हो जाता है।
  • भ्रष्टाचार: उचित मूल्य की दुकानों (FPS) के स्तर पर भ्रष्टाचार के कारण कम तौल तथा अधिक कीमत वसूलने जैसी प्रथाएँ होती हैं, जो PDS की प्रभावशीलता को कम करती हैं।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) 

  • PMGKAY भारत सरकार द्वारा भारत में कोविड-19 महामारी के दौरान घोषित एक खाद्य सुरक्षा कल्याण योजना है।
  • योजना की शुरुआत: इस योजना की घोषणा वर्ष 2020 में मौजूदा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKAY) के हिस्से के रूप में की गई थी। शुरुआत में इसे अप्रैल से जून 2020 के बीच की अवधि के लिए चलाया जाना था।
  • PMGKAY के लिए नोडल मंत्रालय: यह योजना उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अंतर्गत खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा संचालित की जाती है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय इसका नोडल मंत्रालय है।
  • PMGKAY की कार्यप्रणाली: यह योजना सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सबसे गरीब नागरिकों को, सभी प्राथमिकता वाले परिवारों (राशन कार्ड धारकों और अंत्योदय अन्न योजना के तहत चिह्नित लोगों) को खाद्यान्न उपलब्ध कराएगी।
  • इस योजना के तहत, प्रत्येक व्यक्ति को 5 किलो चावल या गेहूँ तथा प्रत्येक राशन कार्ड धारक परिवार को 1 किलो दाल दी जाएगी। यह NFSA के तहत मासिक पात्रता से अलग है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के बारे में

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को प्रारंभ में कम कीमतों पर आवश्यक खाद्यान्न वितरित करके खाद्यान्न की कमी का प्रबंधन करने के लिए डिजाइन किया गया था।
  • समय के साथ, यह भारत की खाद्य सुरक्षा रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक बन गया है, जो खाद्यान्नों की घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति तो करता है, लेकिन संपूर्ण आवश्यकता को पूरा नहीं करता है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली का प्रबंधन

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली केंद्र तथा राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों की संयुक्त जिम्मेदारी के तहत संचालित होती है।
    • केंद्र सरकार: भारतीय खाद्य निगम (FCI) के माध्यम से खाद्यान्नों की खरीद, भंडारण, परिवहन और थोक आवंटन का कार्य सँभालती है।
    • राज्य सरकारें: वितरण, पात्र परिवारों की पहचान, राशन कार्ड जारी करना तथा उचित मूल्य की दुकानों (FPS) की देखरेख करती हैं।
  • इस प्रणाली के तहत मुख्य रूप से गेहूँ, चावल, चीनी तथा केरोसिन वितरित किया जाता है, हालाँकि कुछ राज्य दालें, खाद्य तेल और नमक जैसी अतिरिक्त वस्तुएँ भी इसमें शामिल करते हैं।

सार्वजनिक वितरण की पृष्ठभूमि

  • 1960 के दशक में सार्वजनिक वितरण
    • PDS की शुरुआत युद्ध के बीच की अवधि में हुई, लेकिन 1960 के दशक में खाद्यान्न की कमी के कारण इसे प्रमुखता मिली।
    • शुरू में इसका ध्यान शहरी क्षेत्रों पर था, लेकिन हरित क्रांति के बाद इसका दायरा आदिवासी और गरीबी से त्रस्त क्षेत्रों तक फैल गया।
  • पुनर्गठित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Revamped Public Distribution System- RPDS)
    • वर्ष 1992 में शुरू की गई RPDS का उद्देश्य दूरदराज तथा गरीबी से त्रस्त क्षेत्रों में PDS की पहुँच में सुधार करना था।
    • सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (Drought Prone Area Programme- DPAP), एकीकृत जनजातीय विकास परियोजनाओं (Integrated Tribal Development Projects- ITDP) तथा रेगिस्तान विकास कार्यक्रम (Desert Development Programme- DDP) के तहत क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए 1,775 ब्लॉकों को कवर किया गया।
    • चाय, दालें तथा साबुन जैसी आवश्यक वस्तुओं का वितरण करते हुए अतिरिक्त राशन कार्ड, उचित मूल्य की दुकानें एवं भंडारण सुविधाएँ प्रदान की गईं।
  • लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted Public Distribution System- TPDS)
    • वर्ष 1997 में शुरू की गई TPDS योजना का ध्यान गरीबों पर केंद्रित हो गया। राज्यों ने गरीबी रेखा से नीचे (BPL) रहने वाले परिवारों को लक्षित करते हुए गरीबी अनुमानों के आधार पर लाभार्थियों की पहचान की।
    • शुरुआत में 6 करोड़ गरीब परिवारों के लिए प्रत्येक वर्ष 72 लाख टन खाद्यान्न आवंटित किया गया था।
    • प्रमुख विकास
      • वर्ष 2000 में गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के परिवारों के लिए खाद्यान्न आवंटन आर्थिक लागत के 50% पर 10 किलोग्राम से बढ़ाकर 20 किलोग्राम प्रति माह कर दिया गया।
      • गरीबी रेखा से ऊपर (APL) परिवारों के लिए आवंटन को आर्थिक लागत पर बरकरार रखा गया, लेकिन BPL तथा अंत्योदय अन्न योजना (Antyodaya Anna Yojana- AAY) लाभार्थियों के लिए केंद्रीय निर्गम मूल्य (Central Issue Prices- CIP) को सब्सिडीयुक्त रखा गया है।
      • अद्यतन जनसंख्या अनुमानों के आधार पर, वर्ष 2000 में BPL परिवारों की संख्या बढ़कर 652 लाख हो गई।

अंत्योदय अन्न योजना (AAY)

  • वर्ष 2000 में अत्यधिक गरीब लोगों को लक्षित करने के लिए शुरू की गई इस योजना में शुरुआत में 1 करोड़ परिवारों को शामिल किया गया।
  • अत्यधिक रियायती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया: गेहूँ के लिए 2 रुपये प्रति किलोग्राम तथा चावल के लिए 3 रुपये प्रति किलोग्राम।
  • वर्ष 2002 में आवंटन 25 किलोग्राम से बढ़कर 35 किलोग्राम प्रति परिवार प्रति माह कर दिया गया था।

भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की प्रासंगिकता तथा आवश्यकता

  • खाद्य सुरक्षा एवं गरीबी उन्मूलन
    • PDS भारत की सुभेद्य आबादी के लिए भोजन तक पहुँच सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि 129 मिलियन भारतीय अत्यधिक गरीबी में रहते हैं (विश्व बैंक, 2024)। कोविड-19 महामारी जैसे संकटों के दौरान यह सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करता है, जहाँ प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) जैसी योजनाओं ने 800 मिलियन लोगों को मुफ्त खाद्यान्न प्रदान किया।
  • मूल्य स्थिरीकरण तथा बाजार विनियमन
    • PDS बफर स्टॉक बनाए रखकर तथा बाजार में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करके मूल्य अस्थिरता को कम करता है। 
      • उदाहरण के लिए, वर्ष 2022-23 में FCI ने बाजार मूल्यों को स्थिर करने के लिए 34.82 लाख टन गेहूँ आवंटित किया।
  • कृषि सहायता
    • यह सुनिश्चित बाजार तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रदान करता है, जिससे कृषि आय एवं ग्रामीण आजीविका को समर्थन मिलता है।
  • पोषण सुरक्षा
    • कुछ राज्य अब कुपोषण से निपटने के लिए फोर्टिफाइड चावल, दालें तथा बाजरा वितरित कर रहे हैं।
      • उदाहरण के लिए, तमिलनाडु फोर्टिफाइड चावल प्रदान करता है, जबकि ओडिशा अपने बाजरा मिशन के माध्यम से बाजरा वितरण को बढ़ावा देता है।
  • सामाजिक समानता तथा क्षेत्रीय संतुलन
    • PDS हाशिए पर पड़े समुदायों, विशेषकर दूरदराज और आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की मदद करता है।
    • एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ONORC) जैसी पहल प्रवासी श्रमिकों के लिए पोर्टेबिलिटी को बढ़ाती है।

एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ONORC) योजना

  • एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ONORC) योजना एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है, जो राशन कार्ड धारकों को पूरे भारत में किसी भी उचित मूल्य की दुकान (FPS) से खाद्य सुरक्षा लाभ प्राप्त करने की अनुमति देता है।

  • यह योजना वर्ष 2018 में खाद्य एवं आपूर्ति तथा उपभोक्ता मामले विभाग, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी।
  • पोर्टेबिलिटी: ONORC राशन कार्ड धारकों को राज्य तथा जिला सीमाओं के पार लाभ प्राप्त करने की अनुमति देता है।
  • खाद्य सुरक्षा: यह योजना प्रवासी श्रमिकों तथा उनके परिवारों सहित सभी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करती है।
  • मोबाइल ऐप: सरकार ने लोगों को ONORC योजना का अधिकतम लाभ उठाने में मदद करने के लिए ‘मेरा राशन’ (MERA RATION) नामक एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • प्रौद्योगिकी-संचालित सुधार
    • एंड-टू-एंड कंप्यूटरीकरण: सरकार ने डुप्लिकेट और फर्जी कार्डों को समाप्त करने के लिए राशन कार्ड तथा लाभार्थी डेटाबेस का डिजिटलीकरण किया है।
    • आधार एकीकरण: अदृश्य लाभार्थियों पर नियंत्रण लगाने तथा सिस्टम में रिसाव को रोकने के लिए राशन कार्डों के लिए आधार सीडिंग को अनिवार्य कर दिया गया है।
    • इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट ऑफ सेल (ePoS) डिवाइस: खाद्यान्न वितरण के दौरान लाभार्थियों के बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण के लिए उचित मूल्य की दुकानों (FPS) पर ePoS उपकरण शुरू किए गए हैं।
    • आपूर्ति शृंखला स्वचालन: खरीद केंद्रों से FPS तक खाद्यान्नों की आवाजाही पर नजर रखने के लिए ऑनलाइन सिस्टम लागू किए गए हैं।
  • राशन कार्ड की पोर्टेबिलिटी
    • एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ONORC): वर्ष 2019 में शुरू की गई यह पहल लाभार्थियों, विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों को भारत में कहीं भी अपने PDS अधिकारों का उपयोग करने की अनुमति देती है।
    • ONORC को सभी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया गया है, जिससे पहुँच और पोर्टेबिलिटी में सुधार हुआ है।
  • बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना
    • भंडारण सुविधाओं का आधुनिकीकरण: सरकार ने भंडारण घाटे को कम करने तथा खाद्यान्न की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए आधुनिक साइलो, कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं तथा गोदामों के निर्माण में निवेश किया है।
    • घर-घर डिलीवरी: कई राज्यों ने उचित मूल्य की दुकानों तक खाद्यान्न की घर-घर डिलीवरी लागू की है, जिससे स्टॉक की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित हुई है।
      • दिल्ली सरकार ने वर्ष 2018 में सार्वजनिक वितरण प्रणाली राशन की घर-घर डिलीवरी की योजना की घोषणा की थी।
  • पोषण सुधारों का परिचय
    • खाद्यान्नों का सुदृढ़ीकरण: सरकार ने सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली में फोर्टिफाइड चावल की शुरुआत की है। 
      • भारत सरकार ने एनीमिया तथा कुपोषण की व्यापकता को कम करने के लिए राष्ट्रीय पोषण मिशन-पोषण अभियान (National Nutrition Mission- POSHAN) में खाद्य सुदृढ़ीकरण को शामिल किया है।
      • भारत सरकार ने एनीमिया तथा कुपोषण की व्यापकता को कम करने के लिए राष्ट्रीय पोषण मिशन-पोषण अभियान में खाद्य फोर्टिफिकेशन को शामिल किया है।
  • शिकायत निवारण प्रणाली 
    • टोल-फ्री हेल्पलाइन: राज्यों ने PDS संचालन से संबंधित शिकायतों के समाधान के लिए टोल-फ्री हेल्पलाइन स्थापित की हैं।
    • सामाजिक ऑडिट: सरकार उचित मूल्य की दुकानों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बेहतर बनाने के लिए सामाजिक ऑडिट को प्रोत्साहित करती है।
    • FPS डीलरों के लिए वित्तीय प्रोत्साहन: उचित मूल्य की दुकानों के कामकाज को बेहतर बनाने के लिए, डीलरों को उच्च मार्जिन के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, जो उन्हें परिचालन दक्षता बनाए रखने में मदद करती है।
  • आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र
    • मोबाइल PDS इकाइयाँ: कुछ राज्यों ने दूरदराज तथा आपदा प्रभावित क्षेत्रों में लाभार्थियों की सेवा के लिए मोबाइल इकाइयाँ शुरू की हैं।

ICRIER द्वारा प्रस्तावित सुधार

  • लक्षित निःशुल्क खाद्य कवरेज: निःशुल्क खाद्य लाभ को जनसंख्या के सबसे गरीब 15% लोगों तक सीमित रखा जाना चाहिए।
    • अत्यधिक गरीबी रेखा से ऊपर के लाभार्थियों को अनाज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का कम-से-कम 50% भुगतान करना चाहिए, जिससे सब्सिडी लागत कम हो जाएगी और प्रणाली अधिक टिकाऊ बन जाएगी।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली में रिसाव को रोकना: रिसाव को दूर करने के लिए, सभी उचित मूल्य की दुकानों में PoS मशीनों के उपयोग का विस्तार किया जाना चाहिए।
    • इसके अतिरिक्त, DBT को लागू करने से यह सुनिश्चित होगा कि खाद्य सब्सिडी सीधे लाभार्थियों के खातों में स्थानांतरित की जाए, जिससे भ्रष्टाचार तथा अकुशलता कम होगी।
    • बिहार तथा पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने पिछले एक दशक में PDS रिसाव में महत्त्वपूर्ण कमी हासिल की है।
      • बिहार में, रिसाव वर्ष 2011-12 में 68.7% से घटकर वर्ष 2022-23 में केवल 19.2% रह गया। इन्हीं वर्षो में पश्चिम बंगाल में 69.4% से घटकर 9% रह गया।
  • पोषण-उन्मुख सार्वजनिक वितरण प्रणाली: सुधारों का ध्यान सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक पोषण-उन्मुख बनाने पर होना चाहिए।
    • उचित मूल्य की दुकानों का रूपांतरण: चयनित उचित मूल्य की दुकानों को ‘पोषण केंद्रों’ में परिवर्तित किया जाना चाहिए, जहाँ अनाज के साथ-साथ अंडे, दालें, बाजरा और फल सहित विविध प्रकार के खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराए जाएँ।
    • डिजिटल खाद्य कूपन: लाभार्थियों को डिजिटल खाद्य कूपन प्राप्त होने चाहिए, जिन्हें इन पोषण केंद्रों पर भुनाया जा सकता है, जिससे आहार विविधता को बढ़ावा मिलेगा।

आगे की राह

  • डिजिटल परिवर्तन: वास्तविक समय की निगरानी के लिए ब्लॉकचेन तथा IoT जैसी तकनीकों का उपयोग करके और चोरी का पता लगाने के लिए AI आधारित विश्लेषण के माध्यम से सिस्टम को ‘एंड-टू-एंड डिजिटलीकरण’ के माध्यम से बेहतर बनाया जा सकता है।
  • आधुनिकीकृत बुनियादी ढाँचा: सरकार को भंडारण घाटे को कम करने के लिए तापमान नियंत्रित साइलो तथा स्वचालित गुणवत्ता नियंत्रण प्रणालियों में निवेश करना चाहिए।
  • ONORC को मजबूत बनाना: बेहतर अंतरराज्यीय समन्वय तथा प्रवासी आबादी की वास्तविक समय पर ट्रैकिंग से राशन कार्डों की बेहतर पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित हो सकती है।
  • पोषण सुरक्षा पर ध्यान: PDS में बाजरा, दालें तथा फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों को शामिल करने से भारत की पोषण संबंधी चुनौतियों का समाधान हो सकता है। कमजोर समूहों के लिए पोषण के लिए ई-रुपी वाउचर  (E-Rupee vouchers) भी शुरू किए जा सकते हैं।
  • संकटकाल में तैयारी: प्राकृतिक आपदाओं या महामारी से प्रभावित आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आपातकालीन मोबाइल PDS इकाइयाँ स्थापित की जानी चाहिए।
  • कृषि और पोषण में बचत का निवेश: सब्सिडी युक्तिकरण से होने वाली बचत को निम्नलिखित दिशा में पुनर्निर्देशित किया जाना चाहिए।
    • कृषि अनुसंधान एवं विकास: निवेश का ध्यान उच्च उपज, जलवायु-अनुकूल तथा  पोषक तत्त्वों से भरपूर फसल किस्मों के विकास पर होना चाहिए।
    • जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियाँ: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए सतत् कृषि पद्धतियों पर जोर दिया जाना चाहिए।
    • किसान कौशल संवर्द्धन कार्यक्रम: कृषि दक्षता और आय में सुधार के लिए किसानों के लिए कौशल कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

निष्कर्ष

गरीबी तथा कुपोषण को प्रभावी ढंग से दूर करने के लिए लक्षित मुफ्त भोजन, रिसाव के लिए DBT तथा विविध पोषण विकल्पों के साथ पुनर्गठित PDS महत्त्वपूर्ण है। खाद्य सब्सिडी बचत को ऐसे निवेशों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो दीर्घकालिक रिटर्न प्रदान करते हैं और समग्र खाद्य और पोषण सुरक्षा में सुधार करते हैं।

संदर्भ

छत्तीसगढ़ के धुड़मारस को संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (United Nations World Tourism Organisation-UNWTO) द्वारा सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गाँव उन्नयन कार्यक्रम (Best Tourism Village Upgrade programme) के लिए चुना गया है। 

विश्व पर्यटन दिवस (World Tourism Day)

  • वर्ष 1980 से प्रत्येक वर्ष 27 सितंबर को मनाया जाता है।
  • वर्ष 2024 की मेजबानी तथा थीम
    • मेजबान: जॉर्जिया (Georgia)
    • थीम: पर्यटन और शांति (Tourism and Peace)

धुड़मारस गाँव के बारे में

  • स्थान: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान (Kanger Valley National Park) में अवस्थित है।
    • घने जंगलों में बसे इस पार्क से होकर कांगेर नदी (Kanger River) बहती है, जो इसे एक आदर्श इको-टूरिज्म गंतव्य बनाती है।
  • स्थानीय जनजातीय भागीदारी: धुरवा (Dhurwa) जनजाति के युवा सदस्यों को साहसिक गतिविधियों का नेतृत्व करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
  • सांस्कृतिक समृद्धि: जैव विविधता, प्राकृतिक सुंदरता और पारंपरिक जनजातीय जीवन शैली से समृद्ध, स्थानीय व्यंजनों और जनजातीय हस्तशिल्प के लिए जाना जाता है।

सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गाँव पहल के बारे में

  • यह UNWTO द्वारा वर्ष 2021 में शुरू किए गए ग्रामीण विकास कार्यक्रम के लिए UNWTO पर्यटन का हिस्सा है।
  • पहल के लक्ष्य
    • ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और समावेश को बढ़ावा देना।
    • ग्रामीण समुदायों में जनसंख्या ह्रास का मुकाबला करना।
    • पर्यटन मूल्य श्रृंखलाओं में नवाचार और एकीकरण को बढ़ावा देना।
    • सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए स्थायी पर्यटन प्रथाओं को प्रोत्साहित करना।

संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (UNWTO) के बारे में

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी है जो जिम्मेदार, सतत और सार्वभौमिक रूप से सुलभ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है।
  • स्थापना: वर्ष 1975 में
  • मुख्यालय: मैड्रिड, स्पेन
  • सदस्यता
    • 160 सदस्य देश (भारत सहित)
    • 6 सहयोगी सदस्य और 2 पर्यवेक्षक
    • 500 से अधिक संबद्ध सदस्य (निजी क्षेत्र, गैर सरकारी संगठन, शैक्षणिक संस्थान)

PPP  प्लस PPP’ मॉडल

विश्व मधुमेह दिवस पर, केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय  ने ‘PPP  प्लस PPP’ मॉडल’ प्रस्तुत किया है।

संबंधित तथ्य

  • विश्व मधुमेह दिवस 14 नवंबर को मनाया जाता है। 
  • थीम (2024): ‘बाधाओं को तोड़ना, अंतराल को कम करना’ (Breaking Barriers, Bridging Gaps)।

मधुमेह के बारे में

  • मधुमेह एक चयापचय रोग है।
  • इससे शरीर कुशलतापूर्वक इंसुलिन का उत्पादन बंद कर देता है, जिससे रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। 
  • स्वास्थ्य देखभाल में मधुमेह रोगियों के सामने आने वाली चुनौतियाँ 
    • पहुँच: कई लोगों के पास नियमित उपचार तक पहुँच का अभाव है।
    • जागरूकता: निदान किए गए लगभग आधे मरीज अपनी स्थिति से अनजान हैं।
    • पालन: वित्तीय एवं सूचनात्मक चुनौतियाँ लगातार देखभाल को सीमित करती हैं।

‘PPP  प्लस PPP’ मॉडल’

  • यह मॉडल मधुमेह को संबोधित करने की एक रणनीति है। 
  • इसमें दो-स्तरीय सहयोग शामिल है।
    • इस मॉडल में, भारत के सार्वजनिक और निजी क्षेत्र आंतरिक रूप से स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने के लिए एकजुट होते हैं और साथ ही साथ अंतरराष्ट्रीय समकक्षों के साथ जुड़ते हैं।
  • घरेलू भागीदारी: भारत के भीतर सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने के लिए मिलकर काम करते हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय साझेदारी: भारत नवाचार में तेजी लाने एवं स्वास्थ्य देखभाल पहुँच में सुधार के लिए अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ सहयोग करता है।
  • उद्देश्य: इस स्तरित साझेदारी मॉडल का लक्ष्य है:
    • स्वास्थ्य देखभाल पहुँच में सुधार करना।
    • इनोवेशन को बढ़ावा देना।
    • मधुमेह देखभाल के लिए स्केलेबल समाधान प्रदान करना।

शमन कार्य कार्यक्रम (Mitigation Work Programme)

भारत ने बाकू, अजरबैजान में CoP-29 में जलवायु वित्त एवं शमन कार्य कार्यक्रम (Mitigation Work Programme) में शामिल होने के लिए विकसित देशों की अनिच्छा पर असंतोष व्यक्त किया।

शमन कार्य कार्यक्रम (Mitigation Work Programme- MWP) 

  • शमन कार्य कार्यक्रम (MWP) जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) द्वारा स्थापित एक प्रक्रिया है।
  • उद्देश्य: पेरिस समझौते के 1.5°C लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए देशों को उनकी शमन महत्त्वाकांक्षा एवं कार्यान्वयन को बढ़ाने में मदद करना।

शमन कार्य कार्यक्रम (MWP) पर भारत की स्थिति

  • MWP का विशिष्ट अधिदेश: भारत ने इस बात पर जोर दिया कि MWP को सूचनाओं एवं विचारों के आदान-प्रदान की सुविधा के लिए स्पष्ट अधिदेश के साथ बनाया गया था।
  • गैर-निर्देशात्मक एवं गैर-दंडात्मक: MWP के परिणाम गैर-निर्देशात्मक एवं गैर-दंडात्मक होंगे, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि किसी भी देश को विशिष्ट कार्रवाई करने या नए लक्ष्यों को पूरा करने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।
  • राष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान: भारत ने इस बात पर जोर दिया कि MWP राष्ट्रीय संप्रभुता एवं परिस्थितियों का सम्मान करेगा और प्रत्येक देश के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions- NDCs) का हिसाब देगा।
  • कोई नया लक्ष्य नहीं: भारत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि MWP कोई नए लक्ष्य या उप-लक्ष्य नहीं थोपेगा, बल्कि जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए सहयोग एवं समाधान साझा करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।

COP29 के बारे में

  • स्थान: बाकू, अजरबैजान।
  • आयोजन: 11 नवंबर, 2024 से 22 नवंबर, 2024 तक।
  • COP-29 का फोकस: इसे ‘वित्त COP’ करार दिया गया यह शिखर सम्मेलन जलवायु परिवर्तन से प्रभावित कमजोर देशों का समर्थन करने के लिए एक नया वैश्विक जलवायु वित्त लक्ष्य स्थापित करने पर केंद्रित है।
    • भारत सहित ग्लोबल साउथ के देश जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने एवं अग्रिम पंक्ति के समुदायों की सुरक्षा के लिए वित्तीय तथा तकनीकी संसाधनों तक पहुँच बढ़ाने की वकालत कर रहे हैं।

COP एवं UNFCCC के बारे में

  • कांफ्रेंस ऑफ पार्टी (COP): जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) का प्राथमिक शासी निकाय।
  • UNFCCC: वैश्विक जलवायु वार्ताओं का मार्गदर्शन करने के लिए वर्ष 1992 में रियो डी जनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान बनाई गई एक अंतरराष्ट्रीय संधि, जिसका उद्देश्य गंभीर मानव-प्रेरित जलवायु व्यवधानों से बचने के लिए ग्रीनहाउस गैस सांद्रता को सुरक्षित स्तर पर स्थिर करना है।
  • सदस्यता: UNFCCC में 198 पक्षकार शामिल हैं, जिनमें 197 देश एवं यूरोपीय संघ शामिल हैं, जो जलवायु कार्रवाई के लिए लगभग सार्वभौमिक वैश्विक प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के बारे में

  • अंगीकरण: पेरिस समझौता एक कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक समझौता है, जिसे वर्ष 2015 में UNFCCC के COP-21 में अपनाया गया था।
  • उद्देश्य: इसका लक्ष्य जलवायु परिवर्तन से निपटना एवं ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करना है।
  • प्रतिस्थापन: इसने क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान लिया है।

पेरिस समझौते के तहत ‘ग्लोबल स्टॉकटेक’ के बारे में

  • स्थापना: ग्लोबल स्टॉकटेक वर्ष 2015 में पेरिस समझौते के तहत स्थापित एक समीक्षा तंत्र है।
  • आवृत्ति: यह प्रत्येक पाँच वर्ष में संपन्न होता है।
  • पहला स्टॉकटेक: उद्घाटन ग्लोबल स्टॉकटेक वर्ष 2023 में COP-28 में संपन्न हुआ।

कृषि उत्पादों में वायदा व्यापार

एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि वर्ष 2021 में कृषि वस्तुओं के वायदा डेरिवेटिव व्यापार के निलंबन ने कृषि मूल्य निर्धारण प्रणाली को बाधित कर दिया है एवं मुद्रास्फीति में वृद्धि हो गई है।

अध्ययन के बारे में

  • पृष्ठभूमि: भारत सरकार ने बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए वर्ष 2021 में सात कृषि जिंसों यानी चना, गेहूँ, धान, मूँग, कच्चा पाम तेल, सरसों और सोयाबीन के वायदा डेरिवेटिव कारोबार को निलंबित कर दिया है।

कमोडिटी वायदा अनुबंध के बारे में

  • यह भविष्य में किसी विशिष्ट तिथि पर किसी वस्तु की पूर्व निर्धारित मात्रा को एक विशिष्ट मूल्य पर खरीदने या बेचने का एक समझौता है।
    • विकल्प अनुबंध के विपरीत, अनुबंध, खरीदार को पूर्व निर्धारित भविष्य की कीमत एवं तारीख पर कुछ अंतर्निहित परिसंपत्ति (या विक्रेता को उस संपत्ति को बेचने के लिए) खरीदने के लिए बाध्य करता है।
  • कमोडिटी वायदा का उपयोग किसी निवेश की स्थिति को सुरक्षित रखने या अंतर्निहित परिसंपत्ति की दिशात्मक चाल पर दाँव लगाने के लिए किया जा सकता है।
  • नियामक एजेंसी: भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (SEBI) भारत में कमोडिटी ट्रेडिंग को नियंत्रित कर है। इसने  फ्यूचर एंड ऑप्शन (F&O) खंड के तहत कमोडिटी वायदा कारोबार के लिए एक अलग श्रेणी स्थापित की है।
    • पहले, कमोडिटी व्यापार को फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (Forward Markets Commission- FMC) द्वारा विनियमित किया जाता था, जिसे फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1952 के तहत स्थापित किया गया था।
    • कमोडिटी बाजार के विनियमन को और अधिक मजबूत बनाने के लिए वर्ष 2015 में FMC का SEBI में विलय कर दिया गया था।
  • महत्त्व: भविष्य के बाजारों के हेजिंग एवं मूल्य खोज कार्य कृषि विपणन प्रदर्शन में समग्र सुधार के साथ अधिक कुशल उत्पादन, भंडारण, विपणन तथा कृषि-प्रसंस्करण कार्यों को बढ़ावा देते हैं।

डेरिवेटिव के बारे में

  • प्रकार: डेरिवेटिव वित्तीय उपकरण हैं, जिनका मूल्य अन्य अंतर्निहित परिसंपत्तियों से प्राप्त होता है। 
  • डेरिवेटिव अनुबंध मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं:
    • वायदा: वे मानकीकृत अनुबंध हैं, जिनका भविष्य में निश्चित तिथि पर अंतर्निहित उपकरण खरीदने या बेचने के लिए एक्सचेंज पर कारोबार किया जाता है।
      • इसमें कोई क्रेडिट जोखिम नहीं है क्योंकि क्लियरिंग हाउस अनुबंध में दोनों पक्षों के प्रतिपक्ष के रूप में कार्य करता है।
    • फॉरवर्ड: यह दो पक्षों के बीच एक समझौता है एवं इसका कारोबार ‘ओवर-द-काउंटर’ (OTC) किया जाता है।
    • ऑप्शन: एक ऑप्शन अनुबंध अंतर्निहित परिसंपत्तियों को खरीदने/बेचने का अधिकार देता है लेकिन दायित्व नहीं। इसके लिए विक्रेता को प्रीमियम का भुगतान करना आवश्यक है।
      • ऑप्शंस का कारोबार OTC बाजार एवं एक्सचेंज ट्रेडेड बाजारों दोनों में किया जा सकता है तथा इन्हें दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है – कॉल और पुट।
    • स्वैप: यह भविष्य में नकदी प्रवाह का आदान-प्रदान करने के लिए दो पक्षों के बीच है। ब्याज दर स्वैप एवं मुद्रा स्वैप सबसे लोकप्रिय स्वैप अनुबंध हैं।
      • भारत अपने बाजार में स्वैप विकल्प का प्रयोग नहीं करता है।

हेजिंग (Hedging) के बारे में

  • यह एक जोखिम प्रबंधन तकनीक है, जिसके तहत एक परिसंपत्ति को दूसरी परिसंपत्ति से होने वाले नुकसान के जोखिम को कम करने के उद्देश्य से खरीदा जाता है। 
    • यह निवेश की कीमत में अप्रत्याशित परिवर्तन के परिणामस्वरूप होने वाली अनिश्चितता के जोखिम को कम करने एवं समाप्त करने और होने वाले नुकसान को सीमित करने पर केंद्रित है।
  • प्रकार: हेजिंग 4 प्रकार से की जा सकती है:- अग्रिम अनुबंध, भविष्य अनुबंध, मनी मार्केट एवं हेज फंड।

आयुष्मान वय वंदना (Ayushman Vay Vandana)

हाल ही में प्रधानमंत्री ने आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB PM-JAY) के तहत आयुष्मान वय वंदना स्वास्थ्य कार्ड लॉन्च किए है।

संबंधित तथ्य

  • 70 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के 10 लाख से अधिक वरिष्ठ नागरिकों ने नई लॉन्च की गई आयुष्मान वय वंदना योजना में नामांकन किया है।
  • नामांकन करने वालों में लगभग 4 लाख पंजीकृत महिलाएँ हैं।
  • योजना के कार्यान्वयन के बाद से, ₹9 करोड़ से अधिक के उपचार को अधिकृत किया गया है।
    • इन लाभों से 1,400 से अधिक महिलाओं सहित 4,800 से अधिक वरिष्ठ नागरिकों को मदद मिली है।

आयुष्मान वय वंदना (Ayushman Vay Vandana) के बारे में

  • यह 70 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य देखभाल कवरेज है।
  • योजना का प्रकार: केंद्र प्रायोजित योजना।
  • राज्य का योगदान: लागत का 40%। 
  • लॉन्च तिथि: 29 अक्टूबर, 2024।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय। 
  • यह योजना आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) के तहत मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल लाभ प्रदान करती है।
  • योजना के मुख्य बिंदु
    • 70 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के बुजुर्गों को 5 लाख रुपये प्रतिवर्ष का स्वास्थ्य बीमा दिया जाएगा। 
      • घर में यदि दो लाभार्थी हैं तो बीमा कवर उनके बीच विभाजित किया जाएगा। 
  • बुजुर्ग लाभार्थियों के लिए टॉप-अप कवर
    • पहले से ही आयुष्मान भारत के तहत कवर किए गए परिवारों के बुजुर्ग सदस्यों (70+ आयु वर्ग) को उनके लिए विशेष रूप से अतिरिक्त ₹5 लाख का टॉप-अप कवर मिलेगा।
      • टॉप-अप तक पहुँचने के लिए, इन लाभार्थियों को योजना के तहत फिर से पंजीकरण कराना होगा।
    • आयुष्मान वय वंदना कार्ड के तहत स्वास्थ्य कवरेज 
      • नई योजना विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों के लिए कवरेज प्रदान करती है, जिनमें शामिल हैं:
        • कोरोनरी एंजियोप्लास्टी
        • कूल्हे का फ्रैक्चर एवं प्रतिस्थापन
        • पित्ताशय संबंधी रोग 
        • मोतियाबिंद सर्जरी
        • स्ट्रोक का इलाज

PM JAY  के बारे में 

  • PM JAY का अर्थ प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना है।
  • इसे विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य आश्वासन योजना के रूप में मान्यता प्राप्त है। 
  • यह माध्यमिक एवं तृतीयक देखभाल अस्पताल में भर्ती लाभ प्रदान करता है।
  • प्रमुख विशेषताएँ
    • कवरेज राशि: प्रति परिवार ₹5 लाख वार्षिक तक का स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
    • लक्ष्य जनसंख्या: इसमें लगभग 55 करोड़ व्यक्ति शामिल हैं, जो भारत की कुल 40% आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • लाभार्थियों की पहचान: लाभार्थियों की पहचान सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (Socio-Economic Caste Census- SECC) 2011 के आधार पर की जाती है:-
  • ग्रामीण क्षेत्र: समावेशन अभाव मानदंड पर आधारित है।
  • शहरी क्षेत्र: चयन व्यावसायिक श्रेणियों द्वारा निर्धारित किया जाता है।

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने बैंकिंग क्षेत्र को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित किया और वित्तीय रूप से संकटग्रस्त परिसंपत्तियों के समाधान के लिए बैंकों द्वारा बैड बैंक को सक्रिय रूप से उपयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया।

बैड बैंक (Bad Bank) के बारे में

  • बैड बैंक एक विशेष एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (Asset Reconstruction Company- ARC) है, जो वाणिज्यिक बैंकों से गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Non-Performing Assets- NPA) खरीदती है और उनका पुनर्गठन करती है।
  • यह ऋण देने या जमा लेने में शामिल नहीं है, बल्कि बैंकों की केवल बैलेंस शीट को प्रबंधित करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • आमतौर पर, यह खराब ऋणों को उनके बही मूल्य से कम मूल्य पर खरीदता है तथा बाद में वसूली प्रयासों के उद्देश्य के माध्यम से अधिकतम लाभ प्राप्त करने की कोशिश करता है।

बैड बैंक के लाभ

  • NPA का केंद्रीकृत प्रबंधन: कई बैंकों में संकटग्रस्त परिसंपत्तियों को सँभालने के लिए एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया प्रदान करता है।
  • बैंकों के लिए पूँजी राहत: NPA को स्थानांतरित करके, बैंक खराब ऋणों के विरुद्ध प्रावधान के रूप में रखी गई पूँजी को मुक्त कर सकते हैं।
    • इससे ऋण-योग्य उधारकर्ताओं को अधिक ऋण देने में सुविधा होती है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • वित्तीय प्रणाली का स्थिरीकरण: बैंकों की वित्तीय स्थिति को बहाल करने में मदद करता है, जिससे बैंकिंग प्रणाली में विश्वास बढ़ता है।

नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (National Asset Reconstruction Company Limited- NARCL)

  • स्थापना: आर्थिक सर्वेक्षण-2016 में प्रस्तावित; आधिकारिक तौर पर वर्ष 2021 में भारत के पहले बैड बैंक के रूप में लॉन्च किया गया था।
  • उद्देश्य: वित्तीय प्रणाली को संकटग्रस्त ऋणों से मुक्त करना तथा बैंकों को स्थिर करना, ताकि स्वस्थ आर्थिक वातावरण को बढ़ावा मिल सके।
  • नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (NARCL) की प्रमुख भूमिकाएँ
    • वाणिज्यिक बैंकों से खराब ऋण खरीदना।
    • इन संकटग्रस्त परिसंपत्तियों का प्रबंधन करना और उनसे मूल्य वसूल करना।
  • भुगतान तंत्र: ऋण मूल्य का 15% नकद में भुगतान किया जाता है और शेष 85% सरकार समर्थित सुरक्षा रसीदों के माध्यम से भुगतान किया जाता है। 
  • स्वामित्व संरचना: 51% हिस्सेदारी राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों के पास और 49% हिस्सेदारी निजी बैंकों के पास है।
  • नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (NARCL) ने भारत सरकार के साथ मिलकर बैड बैंकों का उपयोग करके समस्याओं के समाधान हेतु इंडिया डेब्ट रिजॉल्यूशन कंपनी लिमिटेड (IDRCL) का गठन किया।

इंडिया डेब्ट रिजॉल्यूशन कंपनी लिमिटेड (India Debt Resolution Company Ltd.- IDRCL)

  • इंडिया डेब्ट रिजॉल्यूशन कंपनी लिमिटेड (IDRCL) को भारतीय बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली की बड़ी कॉरपोरेट संकटग्रस्त संपत्तियों (NPA) में निहित मूल्य को अनलॉक करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
  • इंडिया डेब्ट रिजॉल्यूशन कंपनी लिमिटेड (IDRCL) का स्वामित्व भारत के 14 सबसे बड़े निजी (51%) और सार्वजनिक अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (49%) के पास है।
  • यह बाजार में संकटग्रस्त संपत्तियों को बेचने के लिए ‘नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड’ (NARCL) के साथ सहयोग करता है। यह मुख्य रूप से खराब ऋणों से समाधान और मूल्य वसूली पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (NARCL): मुख्य रूप से बैंकों से खराब ऋण प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • इंडिया डेब्ट रिजॉल्यूशन कंपनी लिमिटेड (IDRCL): ‘नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड’ (NARCL) द्वारा अधिगृहीत संकटग्रस्त परिसंपत्तियों को हल करने और बेचने पर कार्य करता है।
    • यह दोहरी इकाई दृष्टिकोण तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के कुशल संचालन और समाधान को सुनिश्चित करता है, जिससे बैंक जमा जुटाने और ऋण देने के अपने मुख्य व्यवसाय पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं।

संदर्भ

भारत ने स्पेसएक्स (SpaceX) के फाल्कन-9 (Falcon-9) रॉकेट के जरिए GSAT-20 को लॉन्च करके एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की, जो इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NewSpace India Limited- NSIL) और स्पेसएक्स (SpaceX) के बीच उपग्रह तैनाती के लिए पहली साझेदारी है।

GSAT-20 के बारे में

  • GSAT-20 एक Ka-बैंड उपग्रह (Ka-band satellite) है, जिसे पूरे भारत में हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्टिविटी, डिजिटल वीडियो ट्रांसमिशन, ऑडियो ट्रांसमिशन और इन-फ्लाइट कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • मिशन की अवधि: 14 वर्ष
  • Ka-बैंड (Ka-Band): 27 से 40 गीगाहर्ट्ज तक की रेडियो फ्रीक्वेंसी में संचालित होता है, जो फोकस किए गए स्पॉट बीम के माध्यम से व्यापक कवरेज के साथ हाई-स्पीड डेटा ट्रांसफर को सक्षम बनाता है।
  • GSAT-20 की तकनीकी विशेषताएँ
    • 32 स्पॉट बीम से लैस।
    • 48 Gbps की उच्च थ्रूपुट क्षमता।
    • पूर्वोत्तर क्षेत्र, अंडमान और निकोबार तथा लक्षद्वीप पर विशेष ध्यान देते हुए पूरे भारत को कवर करता है।
  • प्रक्षेपण संदर्भ: इसरो ने स्पेसएक्स (SpaceX) के फाल्कन-9 (Falcon-9) को इसलिए चुना क्योंकि भारत के स्वदेशी भारी-भरकम रॉकेट, लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (Launch Vehicle Mark- LVM) में इतने भारी उपग्रह (4,700 किलोग्राम) को ले जाने की क्षमता नहीं थी।
    • यह भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधारों का हिस्सा है (जून 2020), जिससे न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) को उपयोगकर्ता की माँगों को पूरा करने के लिए उपग्रहों का निर्माण, प्रक्षेपण और संचालन करने की अनुमति मिल गई।
  • स्वामित्व और संचालन: उपग्रह का स्वामित्व और संचालन न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) द्वारा किया जाएगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि यह भारत के वाणिज्यिक और रणनीतिक अंतरिक्ष उद्देश्यों के अनुरूप हो।

SpaceX फाल्कन 9 लॉन्च के बारे में

  • रिकॉर्ड-ब्रेकिंग बूस्टर उड़ान: फाल्कन 9 प्रथम-चरण बूस्टर ने अपनी 19वीं सफल उड़ान पूरी की।
  • विविध मिशनों को समर्थन: बूस्टर ने पहले SES-22, ispace के HAKUTO-R, CRS-27, Amazonas-6 और कई स्टारलिंक मिशन जैसे मिशनों का समर्थन किया था।
  • सफल लैंडिंग: बूस्टर सुरक्षित रूप से ‘जस्ट रीड द इंस्ट्रक्शन्स’ (Just Read the Instructions) ड्रोनशिप पर उतरा।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत का सहयोग: यह प्रक्षेपण हाई-थ्रूपुट उपग्रह संचार और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष साझेदारी में भारत की बढ़ती भागीदारी को दर्शाता है।

न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (New Space India Ltd. – NSIL) के बारे में

  • निगमन: मार्च 2019 में PMO के तहत अंतरिक्ष विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में एक पूर्ण स्वामित्व वाली सरकारी कंपनी के रूप में स्थापित किया गया।
  • जिम्मेदारियाँ: भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से उत्पन्न उत्पादों एवं सेवाओं का प्रचार और व्यावसायिक दोहन।
  • प्रमुख व्यावसायिक क्षेत्र
    • प्रक्षेपण वाहनों का उत्पादन: उद्योग भागीदारी के माध्यम से PSLV और SSLV
    • अंतरिक्ष-आधारित सेवाएँ: उपग्रह संचार और सुदूर संवेदन सेवाओं का विपणन एवं प्रावधान।
    • उपग्रह विकास: घरेलू और अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के लिए उपग्रहों का निर्माण।

संदर्भ 

राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (Rajasthan Rajya Vidyut Utpadan Nigam Limited- RRVUNL) ने एक बार फिर छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग (Chhattisgarh State Scheduled Tribes Commission- CSSTC) की रिपोर्ट की वैधता पर सवाल उठाया है, जिसमें छत्तीसगढ़ के सरगुजा क्षेत्र में पारस कोयला खदान (Parsa Coal Mine) के लिए पर्यावरण मंजूरी में अनियमितताएँ पाई गई थीं।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • पर्यावरण मंजूरी में कथित अनियमितताएँ: CSSTC ने पारस कोयला खदान परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी प्राप्त करने में अनियमितताएँ पाईं।
  • जालसाजी के दावे: आयोग ने आरोप लगाया कि जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया, विशेष रूप से ग्राम सभा (ग्राम परिषद) की सहमति के संबंध में।
  • सिफारिशें: CSSTC ने सरगुजा क्षेत्र में जैव विविधता संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए परियोजना के लिए वन मंजूरी रद्द करने की सिफारिश की।

कोयले और उसके प्रकारों के बारे में

  • कोयला आसानी से जलने वाला, काला या भूरा-काला तलछटी पत्थर है, जो मुख्य रूप से कार्बन से बना होता है।
  • यह एक ठोस जीवाश्म ईंधन है, जो लाखों वर्षों में पौधों के अवशेषों से बनता है।
  • जैसे-जैसे ये पौधे उच्च दबाव एवं ऊष्मा में विघटित होते हैं, वे विभिन्न प्रकार के कोयले में बदल जाते हैं, जिनमें निम्न-श्रेणी के लिग्नाइट से लेकर उच्च-श्रेणी के एंथ्रेसाइट तक शामिल हैं।
  • भारत में कोयले के प्रकार

कोयले का प्रकार

विशेषताएँ

पाया जाता है 

एंथ्रेसाइट (Anthracite)
  • 80-95% कार्बन सामग्री वाला उच्चतम ग्रेड का कोयला
  • कठोर, भंगुर, काला और चमकदार।
जम्मू और कश्मीर
बिटुमिनस (Bituminous)
  • उच्च ताप क्षमता वाला मध्यम श्रेणी का कोयला।
  • विद्युत उत्पादन के लिए सबसे अधिक उपयोग किया जाता है।
झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश।
सबबिटुमिनस (Subbituminous)
  • काला, फीका (चमकदार नहीं), लिग्नाइट की तुलना में उच्च ऊष्मण मान वाला।
झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, अन्य गोंडवाना क्षेत्रों के कुछ हिस्से
लिग्नाइट (Lignite)
  • कम कार्बन सामग्री वाला सबसे निम्न श्रेणी का कोयला
  • भूरा-काला, मुख्य रूप से विद्युत उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है।
राजस्थान, तमिलनाडु, जम्मू और कश्मीर

भारत में कोयले का वितरण

  • गोंडवाना कोयला क्षेत्र [Gondwana Coal Fields] (250 मिलियन वर्ष प्राचीन): यह भारत के कोयला भंडार का 98% और उत्पादन का 99% हिस्सा है। इस क्षेत्र का कोयला उच्च गुणवत्ता वाला, उच्च राख सामग्री वाला है, जिसमें धातुकर्म ग्रेड कोयला भी शामिल है।

    • यह निम्नलिखित स्थानों पर पाया जाता है:
      • दामोदर घाटी (झारखंड, पश्चिम बंगाल)
      • महानदी घाटी (छत्तीसगढ़, ओडिशा)
      • गोदावरी घाटी (महाराष्ट्र)
      • नर्मदा घाटी।
  • तृतीयक कोयला क्षेत्र [Tertiary Coal Fields] (15-60 मिलियन वर्ष प्राचीन): कार्बन की मात्रा कम, नमी और सल्फर की अधिकता।
    • यह निम्नलिखित स्थानों पर पाया जाता है:-
      • प्रायद्वीपीय क्षेत्र (असम, मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर)
      • हिमालय की तलहटी (दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल)
      • राजस्थान, उत्तर प्रदेश, केरल।

भारत में कोयले पर मुख्य आँकड़े

  • 5वाँ सबसे बड़ा भू-गर्भीय भंडार: भारत के पास दुनिया का 5वाँ सबसे बड़ा कोयला भंडार है।
  • दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता: भारत वैश्विक स्तर पर कोयले का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
  • दूसरा सबसे बड़ा आयातक: भारत कोयले का दूसरा सबसे बड़ा आयातक भी है।
  • विद्युत उत्पादन: कोयला और लिग्नाइट भारत के विद्युत उत्पादन का 50.7% (वर्ष 2023 तक) समर्थन करते हैं।
  • शीर्ष कोयला भंडार वाले राज्य
    • ओडिशा: भारत में सबसे बड़ा कोयला भंडार।
    • ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ मिलकर भारत के कुल कोयला संसाधनों का 69% हिस्सा रखते हैं।
  • छत्तीसगढ़ स्थित कोल इंडिया की सहायक कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (South Eastern Coalfields Limited- SECL) की गेवरा और कुसमुंडा कोयला खदानों ने वर्ल्डएटलस डॉट कॉम (WorldAtlas.com) द्वारा जारी दुनिया की 10 सबसे बड़ी कोयला खदानों की सूची में दूसरा और चौथा स्थान हासिल किया है।

भारत के ऊर्जा क्षेत्र में कोयले की भूमिका 

  • प्रमुख ईंधन स्रोत: कोयला भारत के विद्युत उत्पादन के लिए प्राथमिक ईंधन स्रोत है, जो देश के ऊर्जा मिश्रण का एक बड़ा हिस्सा है। इसका उपयोग कुल विद्युत उत्पादन के 70% से अधिक में किया जाता है।
    • भारत में कोयला आधारित विद्युत उत्पादन ने देश की ऊर्जा माँगों को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • भारत में वर्तमान में विद्युत की माँग में पर्याप्त वृद्धि हो रही है, जो औद्योगिक विकास, तकनीकी उन्नति, जनसंख्या वृद्धि, आर्थिक विकास आदि जैसे कारकों के संयोजन से प्रेरित है।
  • औद्योगिक आधार: कोयला इस्पात, सीमेंट और उर्वरक सहित विभिन्न उद्योगों के लिए आवश्यक है।
  • आर्थिक विकास: कोयला आधारित उद्योग भारत की आर्थिक वृद्धि और रोजगार में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  • चुनौतियाँ और परिवर्तन: भारत कोयले पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए धीरे-धीरे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ रहा है। हालाँकि, कोयला देश के ऊर्जा परिदृश्य का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है।

संदर्भ

केंद्रीय बंदरगाह, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्री ने सागरमंथन: महान महासागर वार्ता में कहा कि चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री कॉरिडोर का संचालन शुरू हो गया है।

  • उन्होंने यह भी कहा कि भारत और ग्रीस पिछले वर्ष घोषित भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर (India-Middle East-Europe Economic Corridor- IMEEC) पर मिलकर कार्य करेंगे।

चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री कॉरिडोर (VCMC) के बारे में

  • चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री कॉरिडोर (VCMC) एक प्रस्तावित समुद्री मार्ग है, जो चेन्नई तथा व्लादिवोस्तोक बंदरगाहों को जोड़ता है और पूर्वी समुद्री कॉरिडोर का हिस्सा है।
    • यह मार्ग जापान सागर, दक्षिण चीन सागर, मलक्का जलडमरूमध्य, बंगाल की खाड़ी तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह से होकर गुजरेगा।
    • पूर्वी समुद्री कॉरिडोर भारत के पूर्वी तट पर स्थित बंदरगाहों को रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र के बंदरगाहों से जोड़ता है।
  • पृष्ठभूमि: VCMC पर वर्ष 2019 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के व्लादिवोस्तोक की यात्रा के दौरान हस्ताक्षर किए थे।
  • स्थान: व्लादिवोस्तोक प्रशांत महासागर पर रूस का सबसे बड़ा बंदरगाह है तथा यह चीन-रूस सीमा से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • दूरी: VCMC लगभग 5,600 समुद्री मील लंबा है।
  • उद्देश्य: VCMC का उद्देश्य भारत तथा रूस के बीच व्यापार संबंधों को बेहतर बनाना और दोनों देशों के बीच माल परिवहन के लिए अधिक लागत प्रभावी तरीका प्रदान करना है।
  • लाभ: VCMC दोनों देशों के बीच माल परिवहन में लगने वाले समय को 16 दिनों तक कम कर सकता है।
    • पश्चिमी समुद्री मार्ग तथा स्वेज नहर के माध्यम से मुंबई-सेंट पीटर्सबर्ग मार्ग 8,675 समुद्री मील लंबा है, जिससे एक कंटेनर जहाज को रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र तक पहुँचने में 40 दिन लगते हैं।
  • महत्त्व: VCMC भारत तथा रूस के लिए एक रणनीतिक कदम हो सकता है और इससे क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में संभावित रूप से बदलाव आ सकता है।
    • हालाँकि, दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ने की संभावना जैसे सुरक्षा निहितार्थों पर भी विचार करना होगा।

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (India-Middle East-Europe Economic Corridor- IMEEC) के बारे में

  • भारत में G20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC) की घोषणा की गई थी।
    • यूरोपीय संघ तथा सात देशों, अर्थात् भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), फ्राँस, जर्मनी तथा इटली के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए है।
  • उद्देश्य
    • IMEEC का लक्ष्य मौजूदा समुद्री मार्गों के पूरक के लिए एक विश्वसनीय तथा लागत प्रभावी जहाज-से-रेल पारगमन नेटवर्क स्थापित करना है।
    • इस कॉरिडोर का उद्देश्य व्यापार दक्षता को बढ़ाना, लागत कम करना, क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करना तथा आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है।

    • इससे रोजगार के अवसर उत्पन्न करने तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में भी मदद मिलेगी।
  • संरचना
    • IMEEC में दो अलग-अलग कॉरिडोर शामिल होंगे
      • पूर्वी कॉरिडोर भारत को खाड़ी से जोड़ेगा।
      • उत्तरी कॉरिडोर खाड़ी को यूरोप से जोड़ेगा।
    • इस कॉरिडोर में निम्नलिखित शामिल होंगे:-
      • मुंबई तथा मुंद्रा (गुजरात) को संयुक्त अरब अमीरात से जोड़ने वाला एक शिपिंग मार्ग है।
      • UAE, सऊदी अरब तथा जॉर्डन को इजरायल के हाइफा बंदरगाह से जोड़ने वाला रेल नेटवर्क, जो भूमध्य सागर तक जाता है।
      • हाइफा से पिरियस (ग्रीस) और आगे यूरोप तक का समुद्री मार्ग है।
    • अतिरिक्त बुनियादी ढाँचे में डेटा ट्रांसमिशन के लिए समुद्र के नीचे केबल तथा जलवायु और डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों का समर्थन करने के लिए लंबी दूरी की हाइड्रोजन पाइपलाइनें शामिल होंगी।

संदर्भ

वित्त मंत्रालय ने केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (CPSEs) द्वारा पूँजी पुनर्गठन के संबंध में दिशा-निर्देशों को संशोधित किया।

संशोधित पूँजी पुनर्गठन दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएँ

  • लाभांश भुगतान अधिदेश: सभी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (CPSEs) को शुद्ध लाभ (PAT) का न्यूनतम 30% या निवल मूल्य का 4%, जो भी अधिक हो, का न्यूनतम वार्षिक लाभांश देना आवश्यक है।
    • वित्तीय क्षेत्र के CPSE (जैसे, NBFC) के लिए, न्यूनतम लाभांश PAT का 30% है, जो कि कानूनी प्रावधानों के अधीन है। 
    • सूचीबद्ध CPSE को वित्तीय वर्ष के दौरान एक या अधिक अंतरिम किस्तों में अनुमानित वार्षिक लाभांश का कम-से-कम 90% भुगतान करना होगा।
    • त्रैमासिक और अंतरिम लाभांश: CPSE तिमाही परिणाम घोषित करने के बाद प्रत्येक तिमाही में या वर्ष में कम-से-कम दो बार अंतरिम लाभांश का भुगतान कर सकते हैं। सूचीबद्ध CPSE के लिए अंतिम लाभांश सितंबर में वार्षिक आम बैठक (AGM) के बाद भुगतान किया जाना चाहिए। 
    • असूचीबद्ध CPSE पिछले वर्ष के ऑडिट किए गए वित्तीय विवरणों के आधार पर एकल वार्षिक लाभांश का भुगतान कर सकते हैं।
  • ‘बायबैक’ (बकाया शेयरों की खरीद) विकल्प: केवल निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करने वाले CPSEs के लिए उपलब्ध हैं।
    • 3,000 करोड़ रुपये या उससे अधिक की शुद्ध संपत्ति, 
    • 1,500 करोड़ रुपये से अधिक की नकदी और बैंक बैलेंस, 
    • और पिछले छह महीनों से लगातार बुक वैल्यू से नीचे बाजार मूल्य, शेयरधारक मूल्य बढ़ाने के लिए शेयरों के ‘बायबैक’ विकल्प पर विचार कर सकता है।
  • बोनस शेयर: जिन CPSEs का भंडार और अधिशेष उनकी चुकता इक्विटी पूँजी से 20 गुना या उससे अधिक है, उन्हें बोनस शेयर जारी करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • शेयर विभाजन: सूचीबद्ध CPSEs, जहाँ बाजार मूल्य लगातार छह महीने तक शेयरों के अंकित मूल्य से 150 गुना अधिक है, शेयरों को विभाजित करने पर विचार कर सकते हैं।
    • दो क्रमिक शेयर विभाजनों के बीच कम-से-कम तीन वर्ष का ‘कूलिंग-ऑफ पीरियड’ अनिवार्य है।

वित्त मंत्रालय के अंतर्गत विभिन्न विभाग और उनकी जिम्मेदारियाँ

विभाग

प्रमुख भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ

निवेश और सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM)
  • विनिवेश और परिसंपत्ति मुद्रीकरण का प्रबंधन।
  • कार्यों में शामिल हैं:
    • रणनीतिक विनिवेश (स्वामित्व/नियंत्रण का निजी क्षेत्र को हस्तांतरण)।
    • अल्पसंख्यक हिस्सेदारी की बिक्री।
    • सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं का पूँजी पुनर्गठन।
  • 14 अप्रैल, 2016 को इसका नाम बदलकर ‘दीपम्’ कर दिया गया।
आर्थिक मामलों का विभाग
  • राजकोषीय नीति का निर्माण। 
  • रेलवे बजट सहित केंद्रीय बजट की तैयारी और प्रस्तुति। 
  • विधायिका रहित केंद्रशासित प्रदेशों और राष्ट्रपति शासन वाले राज्यों के लिए बजट बनाना। 
व्यय विभाग
  • केंद्र सरकार में सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली की देख-रेख करना। 
  • राज्य के वित्त से संबंधित मामले। 
  • वित्त आयोग और वेतन आयोग की रिपोर्टों का कार्यान्वयन।
वित्तीय सेवा विभाग
  • वित्तीय समावेशन के लिए योजनाओं का कार्यान्वयन। 
  • सभी के लिए वित्तीय सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए बैंकिंग, बीमा और पेंशन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
सार्वजनिक उद्यम विभाग
  • CPSEs का प्रशासन, वित्तीय स्वास्थ्य निगरानी और प्रदर्शन मूल्यांकन। 
  • लाभ कमाने वाले CPSEs को ‘रत्न’ का दर्जा प्रदान करता है। 
  • पूर्व में भारी उद्योग मंत्रालय के अधीन; जुलाई 2021 में वित्त मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया।
राजस्व विभाग
  • कराधान मामलों का प्रशासन:
  • केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT): आयकर का प्रबंधन करता है।
  • केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC): जीएसटी, सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क (वर्ष 2018 से पहले CBEC) को सँभालता है।
  • संबद्ध कार्यालय: प्रवर्तन निदेशालय (ED) (PMLA और फेमा को लागू करता है) और केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो।

संदर्भ

भारतीय प्रधानमंत्री ने 18 एवं 19 नवंबर, 2024 को ब्राजील के रियो डी जनेरियो में होने वाले 19वें G20 शिखर सम्मेलन में भाग लिया।

  • भारत G20 ट्रोइका (G20 Troika) के सदस्य के रूप में भाग ले रहा है, जिसमें भारत, ब्राजील एवं दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं।

G20 ट्रोइका (G20 Troika) प्रणाली

  • G20 के पास कोई स्थायी चार्टर या सचिवालय नहीं है।
  • इसकी अध्यक्षता प्रतिवर्ष चक्रीय क्रम में सदस्य देशों के मध्य होती है एवं इसे एक ट्रोइका द्वारा समर्थित किया जाता है जिसमें पूर्व, वर्तमान तथा भविष्य की G20 की अध्यक्षता करने वाले देश शामिल होते हैं।
  • इस वर्ष, भारत, ब्राजील एवं दक्षिण अफ्रीका के साथ ट्रोइका का निर्माण किया गया है।
  • भारत ने वर्ष 2023 में G20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी।
  • दक्षिण अफ्रीका वर्ष 2025 में G20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने के लिए तैयार है।

G20 के बारे में 

  • स्थापना: G20 की स्थापना वर्ष 1997-98 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद वर्ष 1999 में हुई थी, जिसने एशियाई टाइगर्स (पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों) को प्रभावित किया था।
  • प्रारंभ में, इसने प्रमुख औद्योगिक एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों के लिए एक मंच के रूप में कार्य किया।
  • नेतृत्व: वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद, G20 को राष्ट्र प्रमुखों को शामिल किया गया था।
  • वर्ष 2009 तक, इसे ‘अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए प्रमुख मंच’ के रूप में नामित किया गया था।
  • सदस्यता: G20 में 19 देश एवं यूरोपीय संघ शामिल हैं, जिसमें हाल ही में अफ्रीकी संघ भी शामिल हुआ है। 
    • इसके सदस्य अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम एवं संयुक्त राज्य अमेरिका हैं।
  • G20 की संरचना 
    • शेरपा ट्रैक: जलवायु, स्वास्थ्य, कृषि, डिजिटल अर्थव्यवस्था एवं शिक्षा जैसे सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित है। शेरपा बातचीत का समन्वय करते हैं तथा शिखर सम्मेलन के लिए एजेंडा तय करते हैं।
    • वित्त ट्रैक: वित्त मंत्रियों एवं केंद्रीय बैंक के गवर्नरों के नेतृत्व में, यह राजकोषीय तथा मौद्रिक नीति को संबोधित करता है, आमतौर पर विश्व बैंक एवं IMF सम्मेलनों के साथ बैठक करता है।
  • गैर-बाध्यकारी प्रकृति: G20 एक परामर्शदात्री मंच के रूप में कार्य करता है, जिसका अर्थ है कि इसके निर्णय विधिक रूप से बाध्यकारी नहीं हैं एवं सदस्य देश उन्हें लागू करने के लिए बाध्य नहीं हैं।

G20 का महत्त्व

  • वैश्विक मुद्दों पर ध्यान: अपने विभिन्न ट्रैकों के माध्यम से, G20 महत्त्वपूर्ण वैश्विक चुनौतियों का समाधान करता है, अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देता है।
  • आर्थिक महाशक्ति: G20 वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85% प्रतिनिधित्व करता है एवं 75% वैश्विक व्यापार को संचालित करता है।
  • वैश्विक शासन: वैश्विक आर्थिक नीतियों एवं विनियमों के लिए अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए प्रमुख मंच के रूप में कार्य करता है।
  • विविध प्रतिनिधित्व: इसमें विकसित एवं विकासशील दोनों अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं, जो विविध दृष्टिकोण तथा समाधानों के लिए एक मंच प्रदान करती हैं।

संदर्भ

वर्ष 1989 बैच के IAS अधिकारी के. संजय मूर्ति को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गिरीश चंद्र मुर्मू के स्थान पर भारत का नया नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India- CAG) नियुक्त किया है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के बारे में

  • भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) केंद्र एवं राज्य सरकारों के खातों की लेखापरीक्षा के लिए जिम्मेदार सर्वोच्च प्राधिकरण है।
  • यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद-148 के तहत स्थापित एक संवैधानिक प्राधिकरण है।
  • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) को अक्सर ‘सार्वजनिक वित्त का संरक्षक’ (Guardian of Public Finance) कहा जाता है, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) सरकारी व्यय एवं राजस्व का लेखा-परीक्षण करके जवाबदेही एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
  • डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने सार्वजनिक धन के प्रहरी के रूप में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के महत्त्व को पहचाना।
    • उन्होंने सरकारी खर्च में पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र लेखा परीक्षक की आवश्यकता पर बल दिया। 
  • भारत में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की उत्पत्ति: इसकी शुरुआत वर्ष 1860 में हुई थी, जब भारत सरकार के महालेखाकार (Accountant General) को महालेखा परीक्षक (Auditor General) के रूप में पुनः नामित किया गया था।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • संविधान का अनुच्छेद-148: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति, निष्कासन और सेवा शर्तों से संबंधित है।
  • संविधान का अनुच्छेद-149: सरकारी वित्त की लेखापरीक्षा से संबंधित कर्तव्यों और शक्तियों को निर्दिष्ट करता है।
  • संविधान का अनुच्छेद-150: सरकारी खातों के प्रारूप पर राष्ट्रपति को सलाह देता है।
  • संविधान का अनुच्छेद-151: राष्ट्रपति या राज्यपाल को लेखापरीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत करने की प्रक्रिया निर्धारित करता है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के लिए कानूनी प्रावधान [CAG  (कर्तव्य, शक्तियाँ और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 के अनुसार]

  • कार्यकाल: 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहते हैं।
  • त्याग-पत्र: भारत के राष्ट्रपति को पत्र प्रस्तुत करके त्याग-पत्र दे सकते हैं।
  • निष्कासन: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश (महाभियोग) के समान प्रक्रिया का पालन करते हुए केवल राष्ट्रपति द्वारा ही हटाया जा सकता है।
  • सेवा की शर्तें: वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें संसद द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
    • नियुक्ति के बाद इनमें नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के लिए अहितकर परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। 
  • प्रशासनिक व्यय: भारत की समेकित निधि (Consolidated Fund of India) से लिया जाता है, जिससे स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की शक्तियाँ और कार्य

  • सरकारी खातों की लेखापरीक्षा: इसमें केंद्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर समेकित निधि, आकस्मिकता निधि और सार्वजनिक लेखा शामिल हैं।
  • राजस्व और व्यय की लेखापरीक्षा: नियमों के अनुपालन और धन के उचित आवंटन को सुनिश्चित करता है।
  • सार्वजनिक संस्थाओं की लेखापरीक्षा: इसमें सरकारी निगम एवं निकाय शामिल हैं, जो सार्वजनिक निधियों द्वारा वित्तपोषित हैं।
  • सलाहकार की भूमिका: सार्वजनिक खातों के प्रारूप पर सलाह देता है और वित्त आयोग की सहायता करता है।
  • रिपोर्ट प्रस्तुत करना: संसद या राज्य विधानसभाओं को अनियमितताओं को उजागर करते हुए लेखापरीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय भूमिका: WHO और FAO जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए बाहरी लेखा परीक्षक के रूप में कार्य करता है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ऑडिट रिपोर्ट के प्रकार

  • अनुपालन ऑडिट: कानूनों, नियमों और विनियमों के अनुपालन की पुष्टि करना।
    • प्रक्रियात्मक शुद्धता और वैध व्यय पर ध्यान देना।
  • निष्पादन लेखापरीक्षा: सरकारी कार्यक्रमों की दक्षता, प्रभावशीलता और मितव्ययिता का आकलन करना।
    • उद्देश्यों एवं परिणामों के बीच अंतर को उजागर करना।
  • वित्तीय लेखा परीक्षा: वित्तीय विवरणों की सटीकता और विश्वसनीयता की जाँच करना।
    • सार्वजनिक निधियों का उचित प्रकटीकरण सुनिश्चित करना।
  • रिपोर्ट प्रस्तुत करना: रिपोर्ट राष्ट्रपति (केंद्रीय खातों के लिए) या राज्यपाल (राज्य खातों के लिए) को प्रस्तुत की जाती है।
    • इन्हें संसद या राज्य विधानसभाओं में प्रस्तुत किया जाता है तथा कार्रवाई और सिफारिशों के लिए लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee- PAC) द्वारा जाँच की जाती है।

भारत के CAG और यूनाइटेड किंगडम के CAG की तुलना

मापक (Parameter)

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)

यूनाइटेड किंगडम के CAG

शक्ति एवं भूमिका केवल महालेखा परीक्षक के रूप में कार्य करता है, नियंत्रक के रूप में नहीं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक दोनों के रूप में कार्य करता है।
लेखापरीक्षा दृष्टिकोण पूर्वव्यापी: व्यय होने के बाद खातों का लेखा-परीक्षण किया जाता है। पूर्व-लेखापरीक्षा: यह सुनिश्चित करता है कि अनुमोदन के बिना राजकोष से कोई धनराशि न निकाली जाए।
संसद सदस्यता संसद का सदस्य नहीं ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ के सदस्य
स्वायत्तता सीमित स्वायत्तता; संसाधनों के लिए कार्यपालिका पर निर्भरता। उच्च परिचालन एवं वित्तीय स्वतंत्रता।
कार्य का दायरा केंद्र एवं राज्य दोनों स्तरों पर सार्वजनिक निधियों का लेखा-परीक्षण करता है। राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक निधियों और अनुपालन पर ध्यान केंद्रित करता है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की सीमाएँ

  • प्रवर्तन शक्तियों का अभाव: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) केवल अनियमितताओं की रिपोर्ट कर सकता है; यह सुधारात्मक कार्रवाई लागू नहीं कर सकता है।
  • कार्यपालिका पर निर्भरता: सिफारिशें कार्यान्वयन के लिए विधायी एवं कार्यकारी कार्रवाइयों पर निर्भर करती हैं।
  • संसाधनों की कमी: कुशल कर्मियों की कमी लेखापरीक्षा की गुणवत्ता और दायरे को प्रभावित करती है।
  • नीतिगत पक्षाघात का जोखिम: अति उत्साही ऑडिट कभी-कभी नीति निर्माण में अत्यधिक सावधानी का कारण बन सकते हैं।

आगे की राह

  • स्वतंत्रता: यूनाइटेड किंगडम (UK) का राष्ट्रीय लेखा परीक्षा कार्यालय (National Audit Office- NAO) अधिक वित्तीय और परिचालन स्वायत्तता के साथ कार्य करता है।
  • प्रदर्शन लेखा परीक्षा: न केवल वित्तीय औचित्य पर बल्कि मूल्य-के-लिए-पैसा लेखा परीक्षा पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
  • क्षमता निर्माण: लेखा परीक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए तकनीकी कौशल और संसाधनों को मजबूत करना।
  • विधानसभा के साथ सहयोग: लेखा परीक्षा निष्कर्षों के अधिक प्रभावी कार्यान्वयन के लिए संसदीय समितियों के साथ सक्रिय जुड़ाव।

संदर्भ

फरवरी 2024 में साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि भारतीय हिमालय में बम्बल्बी (Bumblebee) की 40% प्रजातियाँ वर्ष 2050 तक अपने आवास का 90% से अधिक हिस्सा खो सकती हैं।

मधुमक्खियों की घटती प्रजाति का कारण

  • यह सब पश्चिमी मधुमक्खी कालोनियों (Western Honey bee Colonies) के आगमन के कारण हुआ, जिसके बाद कुछ बीमारियों ने स्थानीय परागणकर्ताओं (Indigenous Pollinator) की आबादी को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।

परागण (Pollination) के बारे में

  • यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें फूल के नर भाग (परागकोश) से पराग कण मादा भाग (वर्तिकाग्र) में स्थानांतरित हो जाते हैं।

  • उद्देश्य: परागण का उद्देश्य बीजों का उत्पादन है, जो नए पौधों के निर्माण के लिए आनुवंशिक सामग्री ले जाते हैं।
  • परागण वेक्टर: हवा, पानी, पक्षी, कीड़े (मधुमक्खियाँ, तितलियाँ, आदि), चमगादड़ और अन्य जीव जो फूलों पर आते हैं, उन्हें परागण वेक्टर (Pollination Vectors) के रूप में जाना जाता है।
  • परागणकर्ता (Pollinator)
    • ये वे जीव या कीट हैं, जो पराग को आगे ले जाने में मदद करते हैं।
    • यह तब होता है जब परागणकर्ता:-
      • पराग को उसके पोषण मूल्य (प्रोटीन) के लिए इकट्ठा करें।
      • फूल से रस को अवशोषित करे।

कीट परागणकों (Insect pollinators) के बारे में

  • ये वे कीट हैं, जो पराग को एक फूल से दूसरे फूल में स्थानांतरित करने में सहायता करते हैं।
  • यह पौधों में निषेचन और बीज उत्पादन को सुगम बनाता है।
  • वे जैव विविधता को बनाए रखने और कृषि को समर्थन देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

कीट परागणकों के प्रकार

  • मधुमक्खियाँ (Bees)
    • मधुमक्खियाँ [एपिस मेलिफेरा (Apis Mellifera)]: शहद उत्पादन और फसल परागण के लिए व्यापक रूप से प्रबंधित करती हैं।
    • जंगली मधुमक्खियाँ: इसमें बम्बल्बी (Bumblebee) और एकल मधुमक्खियाँ (Solitary Bees) शामिल हैं, जो अक्सर प्रबंधित मधुमक्खियों की तुलना में अधिक कुशल परागणकर्ता होती हैं।
  • ततैया (Wasps): परागण में योगदान देती हैं, हालाँकि मधुमक्खियों की तुलना में कम कुशल होते हैं।
  • भृंग (Beetles): ‘मेस एंड साॅइल’ (Mess and Soil) परागणकर्ता के रूप में जाने जाते हैं, वे कुछ फूलों के पौधों को परागण करने में मदद करते हैं।
  • मक्खियाँ (Flies): विशेष रूप से होवरफ्लाइज (Hoverflies), जो मधुमक्खियों की नकल करते हैं और विभिन्न फसलों के लिए महत्त्वपूर्ण परागणकर्ता हैं।
  • पतंगे और तितलियाँ (Moths and Butterflies): ये जीव भी फूलों के परागण के लिए उत्तरदायी होते हैं।

कीट परागणकों का महत्त्व 

  • कृषि में कीट परागणकों की भूमिका
    • 75% से ज्यादा खाद्य फसलें, फल और फूल वाले पौधे सफल पैदावार के लिए मधुमक्खियों, ततैयों, तितलियों और भृंगों जैसे परागणकों पर निर्भर करते हैं।
    • ये परागणक वैश्विक कृषि उत्पादकता और पोषण सुरक्षा के लिए जरूरी हैं।

परागणकर्ता आबादी के लिए खतरा 

  • पीड़कनाशक और प्रदूषण: परागणकों और उनके आवासों को सीधे नुकसान पहुँचाते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन: पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है और उपलब्ध संसाधनों को कम करता है।
  • संक्रामक रोग: एक नए खतरे के रूप में उभर रहे हैं, आवास के नुकसान और जैव विविधता में कमी के कारण स्थिति एवं खराब हो गई है।
  • परागण में कमी के आर्थिक निहितार्थ
    • परागणकों में गिरावट से वैश्विक स्तर पर कृषि अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है, जिससे खाद्य आपूर्ति और आजीविका प्रभावित हो सकती है।

परागणकों पर रोगाणु संचरण का प्रभाव

  • रोगजनक स्पिलओवर और स्पिलबैक (Pathogen Spillover and Spillback)
    • प्रबंधित मधुमक्खियाँ प्रायः ‘डिफार्म्ड विंग विषाणु’ (Deformed Wing Virus) और ‘ब्लैक क्वीन विषाणु’ (Black Queen Virus) जैसे रोगाणुओं को अपने साथ ले जाती हैं।
      • ये रोगाणु जंगली परागणकों में तब फैलते हैं, जब वे एक ही आवास स्थान या पुष्प संसाधनों को साझा करते हैं, इस प्रक्रिया को स्पिलओवर (Spillover) कहा जाता है।
        • रोगाणु जंगली परागणकों में भी उत्परिवर्तित हो सकते हैं तथा अधिक हानिकारक रूपों [स्पिलबैक (Spillback)] में मधुमक्खियों को पुनः संक्रमित कर सकते हैं।
  • स्विस शोध के निष्कर्ष 
    • ‘नेचर इकोलॉजी एंड इवॉल्यूशन’ (Nature Ecology and Evolution) में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया:-
      • प्रबंधित मधुमक्खियों के साथ आवास स्थान साझा करने वाले जंगली परागणकों में रोगजनक भार 10 गुना अधिक था।
      • विविध निवास स्थान और प्रचुर पुष्प संसाधनों ने रोगजनक संचरण के जोखिम को कम कर दिया।

संदर्भ

वैश्विक ऊर्जा दक्षता गठबंधन (Global Energy Efficiency Alliance) को संयुक्त अरब अमीरात द्वारा अजरबैजान में COP 29 में लॉन्च किया गया था।

  • यह गठबंधन कार्बन उत्सर्जन को कम करने और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के उद्देश्य से COP 28 में ‘UAE सर्वसम्मति’ (UAE Consensus) द्वारा उठाए गए कदमों का अनुसरण करेगा।

वैश्विक ऊर्जा दक्षता गठबंधन (Global Energy Efficiency Alliance) के बारे में

  • उद्देश्य: इस गठबंधन का लक्ष्य वर्ष 2030 तक वार्षिक वैश्विक ऊर्जा दक्षता दरों को दोगुना करना और कार्बन उत्सर्जन को कम करना है।
  • विजन: UAE ऊर्जा दक्षता, ज्ञान हस्तांतरण और निजी क्षेत्र के साथ प्रभावी साझेदारी मॉडल बनाने में अपनी विशेषज्ञता साझा करके इस गठबंधन में अग्रणी भूमिका निभाएगा।
  • महत्त्व
    • ज्ञान साझाकरण को बढ़ावा देना, क्षमता निर्माण करना तथा ऊर्जा दक्षता परियोजनाओं में निवेश को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों का मानकीकरण करना।
    • वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों के साथ संरेखित नीतियों, प्रौद्योगिकियों और निवेशों को लागू करने के लिए राष्ट्रों, बहुपक्षीय संगठनों और निजी क्षेत्र के हितधारकों के बीच सामूहिक भागीदारी।
  • फोकस देश: अफ्रीकी देशों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा तथा उनके सतत् विकास के लिए महत्त्वपूर्ण वित्तपोषण मॉडल और तकनीकी समाधान साझा करने की योजना बनाई जाएगी।

‘UAE सर्वसम्मति’ (UAE Consensus) के बारे में

  • यह एक व्यापक दस्तावेज है, जो वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए न्यायसंगत, व्यवस्थित और न्यायसंगत तरीके से ऊर्जा प्रणालियों में जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाने का आह्वान करता है।
  • कार्य योजना: यह पक्षों को अर्थव्यवस्था-व्यापी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित करता है और वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा को तीन गुना करने और ऊर्जा दक्षता को दोगुना करने सहित विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित करता है।
  • प्रतिबद्धताएँ
    • गैर CO2 उत्सर्जन में कमी: UAE सर्वसम्मति ने पहली बार मेथेन को ग्रीनहाउस गैस के रूप में स्वीकार किया है, जिसे वर्ष 2030 तक नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
    • पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि और भूमि क्षरण को एक साथ संबोधित करना।
    • जलवायु वित्त पर नए तरीके से ध्यान केंद्रित करना: यह समझौता जलवायु वित्त के लिए एक नया फ्रेमवर्क एवं सतत् भविष्य के लिए एक रोडमैप भी प्रशस्त करता है।
    • लैंगिक उत्तरदायी जलवायु कार्रवाई: आम सहमति में लैंगिक उत्तरदायी जलवायु एवं पर्यावरण प्रतिबद्धताओं पर प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए वैश्विक कार्रवाई का आह्वान शामिल है।
    • देशज लोगों की भागीदारी: इसमें पोडोंग देशज (Podong Indigenous) लोगों की पहल शामिल है, जो देशज लोगों को सीधे वित्तपोषण प्रदान करेगी।
    • निजी क्षेत्र की कार्रवाई को प्रोत्साहित करना: UAE सर्वसम्मति में नेट जीरो मोबिलाइजेशन चार्टर शामिल है, जो निजी क्षेत्र को नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य बनाने और उन्हें अपडेट करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

संदर्भ 

साँभर झील (Sambhar lake) में उच्च तापमान एवं कम लवणता ने एवियन बोटुलिज्म (Avian Botulism) के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी हैं, जिसके परिणामस्वरूप राजस्थान में प्रवासी पक्षियों की सामूहिक मृत्यु हो गई है।

  • इस महीने की शुरुआत में एवियन रिसर्च इंस्टिट्यूट (Centre for Avian Research Institute) ने कम-से-कम 600 प्रवासी पक्षियों की मौत की सूचना दी थी।

एवियन बोटुलिज्म (Avian Botulism) के बारे में

  • एवियन बोटुलिज्म (Avian botulism) एक न्यूरो-मस्कुलर बीमारी है, जो बोटुलिनम (Botulinum) के कारण होती है, जो बैक्टीरिया क्लॉस्ट्रिडियम बोटुलिनम (Bacterium Clostridium Botulinum) द्वारा उत्पादित एक प्राकृतिक विष है।
  • बैक्टीरिया का प्रभाव क्षेत्र: क्लॉस्ट्रिडियम बोटुलिनम (Clostridium Botulinum) सामान्यतः मृदा, नदियों और समुद्री जल में पाया जाता है और मनुष्यों एवं जानवरों दोनों को प्रभावित करता है।
  • विकास की स्थितियाँ: बैक्टीरिया एनारोबिक (ऑक्सीजन रहित) वातावरण में पनपते हैं और अम्लीय परिस्थितियों में इनका विकास नहीं होता है।
  • पक्षियों पर प्रभाव: यह तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है, जिससे पक्षियों के पैर एवं पंख क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
  • आर्द्रभूमि में व्यापकता: ‘बैक्टीरियल स्पोर्स’ आर्द्रभूमि अवसाद में व्यापक रूप से पाए जाते हैं और आर्द्रभूमि में रहने वाले अकशेरुकी जैसे कि कीड़े, मोलस्क और क्रस्टेशियन, साथ ही पक्षियों सहित स्वस्थ कशेरुकियों में पाए जाते हैं।
  • प्रभावकारी स्थितियाँ: बीमारी का प्रकोप प्रायः तब होता है, जब तापमान 21°C से अधिक हो जाता है और सूखे की स्थिति होती है।
  • प्रबंधन और चुनौतियाँ 
    • उपचार की सीमाएँ: एवियन बोटुलिज्म का उपचार नहीं किया जा सकता है; प्रसार को रोकने के लिए प्रभावित पक्षियों को अलग करने के साथ-साथ उनकी समाप्ति के बाद उचित निपटान करना आवश्यक है।
    • पिछली घटनाएँ: वर्ष 2019 में साँभर झील में इसी तरह के प्रकोप के कारण लगभग 18,000 पक्षियों की मौत हो गई थी।
    • पूर्वानुमान: प्रकोपों ​​का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है क्योंकि वे विशिष्ट पर्यावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं, जैसे कि प्रवासी पक्षियों के आगमन के साथ लवणता में बदलाव।
  • प्रवासी पक्षियों की भेद्यता 
    • संवेदनशीलता: लंबी उड़ानों के बाद आने वाले प्रवासी पक्षी प्रायः दुर्बल हो जाते हैं, जिससे उन्हें ‘बोटुलिज्म’ जैसी बीमारियों का खतरा अधिक होता है।
    • शवों की भूमिका: सड़ते हुए पक्षियों के शव कीड़ों को आकर्षित करते हैं, जो जल स्रोतों को दूषित कर सकते हैं और अन्य पक्षियों एवं जानवरों को संक्रमित कर सकते हैं।

साँभर झील (Sambhar lake) के बारे में

  • स्थान: जयपुर, राजस्थान से लगभग 80 किमी. दक्षिण-पश्चिम में अवस्थित है।
  • भौगोलिक महत्त्व: यह भारत की सबसे बड़ी अंतर्देशीय लवण झील है और अरावली पर्वतमाला में एक निक्षेपित भू-आकृति का प्रतिनिधित्व करती है।
  • पक्षी: फ्लेमिंगो, पेलिकन और जलपक्षी आमतौर पर साँभर झील में देखे जाते हैं।
  • पर्यावरणीय महत्त्व
    • रामसर स्थल (Ramsar Site): वर्ष 1990 में रामसर कन्वेंशन के तहत अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि घोषित की गई।
    • जल स्रोत: छह नदियों से पानी प्राप्त होता है: समोद (Samaod), खारी (Khari), मंथा (Mantha), खंडेला (Khandela), मेदथा (Medtha) और रूपनगढ़ (Roopangarh)।
    • वनस्पति: इसमें शुष्क परिस्थितियों के अनुकूल मरुद्भिदीय वनस्पतियाँ (Xerophytic Vegetations) पाई जाती है।

केंद्रीय एवियन अनुसंधान संस्थान (Central Avian Research Institute- CARI)

  • स्थान: उत्तर प्रदेश के बरेली के पास इज्जतनगर में अवस्थित।
  • स्थापना: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) के तहत वर्ष 1979 में स्थापित।
  • कार्य
    • यह कुक्कुट विज्ञान में अनुसंधान का संचालन करता है, एवियन आनुवंशिकी, प्रजनन, पोषण, कुक्कुट खाद्य प्रौद्योगिकी, शरीर विज्ञान और प्रजनन जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है। 
    • वैज्ञानिक प्रगति के माध्यम से भारतीय कुक्कुट उद्योग को बढ़ाने का लक्ष्य।

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने छत्तीसगढ़ के गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व को देश के 56वें टाइगर रिजर्व के रूप में अधिसूचित किए जाने की जानकारी राष्ट्र को दी। 

  • इस अधिसूचना के साथ, छत्तीसगढ़ में अब 4 टाइगर रिजर्व हो गए हैं, जिससे प्रोजेक्ट टाइगर के तहत राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण से मिल रही तकनीकी और वित्तीय सहायता से इस प्रजाति के संरक्षण को मजबूती मिलेगी।

संबंधित तथ्य

  • विस्तार
    • छत्तीसगढ़ सरकार ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की अनुशंसा पर छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर, कोरिया, सूरजपुर और बलरामपुर जिलों में विस्तृत गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व को अधिसूचित किया। 

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA)

  • संबंधित मंत्रालय: यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के तहत एक वैधानिक निकाय है।
  • स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 2006 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत की गई थी।
  • कार्य
    • ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ को वैधानिक अधिकार प्रदान करना ताकि इसके निर्देशों का वैध अनुपालन हो सके।
    • संघीय ढाँचे के भीतर राज्यों के साथ समझौता ज्ञापन के लिए आधार प्रदान करके ‘टाइगर रिजर्व’ के प्रबंधन में केंद्र-राज्य की जवाबदेही को बढ़ावा देना।
    • संसद द्वारा निगरानी प्रदान करना।
    • टाइगर रिजर्व के आसपास के क्षेत्रों में स्थानीय लोगों के आजीविका संबंधी हितों को संबोधित करना।
  • सदस्य
    • MoEFCC के प्रभारी मंत्री (अध्यक्ष के रूप में)।
    • MoEFCC में राज्य मंत्री (उपाध्यक्ष के रूप में)।
    • संसद के तीन सदस्य, सचिव (MoEFCC) और अन्य सदस्य।


  • क्षेत्रफल
    • कुल 2829.38 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस बाघ अभयारण्य में 2049.2 वर्ग किलोमीटर का कोर/ क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट शामिल है, 
      • इसमें गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान और तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं, और इसका बफर क्षेत्र 780.15 वर्ग किलोमीटर का है। 
  • तीसरा सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व
    • यह इसे आंध्र प्रदेश के नागार्जुन सागर-श्रीशैलम् टाइगर रिजर्व और असम के मानस टाइगर रिजर्व के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व बनाता है। 
  • गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व देश में अधिसूचित होने वाला 56वाँ टाइगर रिजर्व बन गया है।
  • निकट पारिस्थितिकी तंत्र
    • भारत की राष्ट्रीय वन्यजीव योजना में परिकल्पित संरक्षण के लिए परिदृश्य दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, नव अधिसूचित बाघ अभयारण्य मध्य प्रदेश में संजय दुबरी बाघ अभयारण्य से संलग्न है, जो लगभग 4500 वर्ग किलोमीटर का परिदृश्य परिसर बनाता है। 
    • इसके अलावा, यह अभयारण्य पश्चिम में मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ बाघ अभयारण्य और पूर्व में झारखंड के पलामू बाघ अभयारण्य से जुड़ा हुआ है। 
    • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने अक्टूबर 2021 में गुरु घासीदास-तमोर पिंगला बाघ अभयारण्य को अधिसूचित करने के लिए अंतिम मंजूरी दी थी।
  • उपस्थित प्रजातियाँ
    • भारतीय प्राणी सर्वेक्षण द्वारा गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व से 365 अकशेरुकी और 388 कशेरुकी सहित कुल 753 प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया गया है। 
      • अकशेरुकी जीवों का प्रतिनिधित्व ज्यादातर कीट वर्ग द्वारा किया जाता है। 
    • कशेरुकी जीवों में पक्षियों की 230 प्रजातियाँ और स्तनधारियों की 55 प्रजातियाँ शामिल हैं, जिनमें दोनों समूहों की कई संकटग्रस्त प्रजातियाँ शामिल हैं।

कुछ प्रमुख टाइगर रिजर्व

  • नागार्जुन सागर श्रीशैलम् (भाग) -आंध्र प्रदेश
  • नमदाफा टाइगर रिजर्व- अरुणाचल प्रदेश
  • कमलांग टाइगर रिजर्व-अरुणाचल प्रदेश
  • पक्के- अरुणाचल प्रदेश
  • मानस- असम
  • नामेरी-असम
  • ओरंग टाइगर रिजर्व- असम
  • काजीरंगा- असम
  • उदंती-सीतानदी-छत्तीसगढ़
  • अचानकमार-छत्तीसगढ़
  • इंद्रावती-छत्तीसगढ़
  • पलामू- झारखंड
  • बाँदीपुर- कर्नाटक
  • भद्रा- कर्नाटक
  • दांदेली-अंशी- कर्नाटक
  • नागरहोल- कर्नाटक
  • बिलिगिरी रंगनाथ मंदिर- कर्नाटक
  • पेरियार- केरल
  • वाल्मीकि-बिहार

भारत में बाघ संरक्षण

  • भारत विश्व के 80% बाघों का आवास है। वर्ष 2006 में, भारत में लगभग 1,400 बाघ थे, जो वर्ष 2024 में बढ़कर 3,682 के करीब हो गए हैं। 
  • 1.5 वर्ष आयु वर्ग में 408 से अधिक बड़ी बिल्लियों (बाघों) के साथ मध्य प्रदेश में सबसे अधिक बाघ (785) हैं। 
  • महत्त्वपूर्ण आबादी वाले अन्य राज्यों में उत्तराखंड (560), कर्नाटक (563), महाराष्ट्र (444) शामिल हैं। 
  • टाइगर रिजर्व के भीतर बाघों की बहुतायत संख्या जिम कॉर्बेट (260) में सबसे अधिक है। 
  • इसके बाद बाँदीपुर (150), नागरहोल (141), बांधवगढ़ (135), दुधवा (135), मुदुमलाई (114), कान्हा (105), काजीरंगा (104), सुंदरबन (100), ताडोबा (97), सत्यमंगलम् (85) और पेंच-एमपी (77) हैं।

बाघ संरक्षण की स्थिति

  • भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
  • अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) रेड लिस्ट: लुप्तप्राय
  • वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES): परिशिष्ट- I।

संदर्भ

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ब्राजील में G-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद अपनी तीन देशों की यात्रा के अंतिम चरण में गुयाना पहुँचे।

संबंधित तथ्य

  • यह पिछले 50 वर्षों से अधिक समय में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की गुयाना की पहली यात्रा है।
  • विदेश मंत्रालय के अनुसार, गुयाना में भारतीय मूल के लगभग 3,20,000 लोग निवास करते हैं।

गुयाना

  • गुयाना की अवस्थिति                                                     
    • गुयाना दक्षिण अमेरिका के उत्तरी किनारे पर स्थित है। 
    • भौगोलिक दृष्टि से यह पृथ्वी के उत्तरी और पश्चिमी दोनों गोलार्द्धों में स्थित है। 
    • सीमावर्ती क्षेत्र: गुयाना की सीमा निम्नलिखित से संलग्न है:
      • पूर्व: सूरीनाम
      • पश्चिम: वेनेजुएला 
      • उत्तर: अटलांटिक महासागर
      • दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम: ब्राजील समुद्री सीमाएँ: गुयाना अपनी समुद्री सीमाएँ बारबाडोस और त्रिनिदाद एवं टोबैगो के साथ साझा करता है।

स्मरणीय महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • राजधानी: जॉर्जटाउन 
  • पर्वत: पकाराइमा पर्वत, कनुकु पर्वत और अकाराई पर्वत। 
  • उच्चतम बिंदु: माउंट रोराइमा (ब्राजील-गुयाना-वेनेजुएला की त्रि-बिंदु सीमा पर, पकाराइमा पर्वत में स्थित) गुयाना का सबसे ऊँचा बिंदु है। 
  • सबसे निचला बिंदु अटलांटिक महासागर है।
  • झरना: कैयेतुर झरना (दुनिया के सबसे बड़े झरनों में से एक)।
  • यह नियाग्रा फॉल्स (कनाडा) से लगभग पाँच गुना ऊँचा है। 
  • नदी: एस्सेकिबो नदी देश की सबसे बड़ी नदी है।

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