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Nov 25 2024

Title Subject Paper
विश्व मत्स्य दिवस economy, GS Paper 3,
आदर्श गौशाला: संपीड़ित बायोगैस (CBG) संयंत्र वाली भारत की पहली आत्मनिर्भर गौशाला Environment and Ecology, GS Paper 3,
वैश्विक नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) मूल्यांकन रिपोर्ट Environment and Ecology, GS Paper 3,
जलीय कृषि में उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ: बायोफ्लोक प्रौद्योगिकी और पुनर्चक्रण जलीय कृषि प्रणालियाँ (RAS) Environment and Ecology, GS Paper 3,
रूस का नया परमाणु सिद्धांत international Relation, GS Paper 2,
विधायकों के विरुद्ध अयोग्यता संबंधी कार्यवाही Polity and governance ​, GS Paper 2,
ईरान द्वारा ‘एडवांस सेंट्रीफ्यूज’ लॉन्च करने की योजना Science and Technology, GS Paper 2,
दूरसंचार साइबर सुरक्षा नियमों को अधिसूचित करना Polity and governance ​, GS Paper 2,
29वाँ संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन Environment and Ecology, GS Paper 3,

संदर्भ

प्रतिवर्ष 21 नवंबर को विश्व भर में विश्व मत्स्य दिवस (World Fisheries Day) मनाया जाता है।

  • इसकी शुरुआत वर्ष 1997 में नई दिल्ली में विश्व मत्स्य मंच के गठन के साथ हुई, जहाँ 18 देशों के प्रतिनिधियों ने सतत मत्स्य पालन प्रथाओं को बढ़ावा देने वाले एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए।

संबंधित तथ्य 

मत्स्य पालन में सर्वोत्तम प्रदर्शन के लिए पुरस्कार

  • विश्व मत्स्य दिवस 2024 के एक भाग के रूप में, राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड, हैदराबाद निम्नलिखित तीन श्रेणियों में पुरस्कार प्रदान करता है।
    • सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला राज्य/केंद्र शासित प्रदेश- अंतर्देशीय, समुद्री, हिमालयी तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, केंद्र शासित प्रदेश।
    • सर्वश्रेष्ठ जिला- अंतर्देशीय, समुद्री, हिमालयी तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, केंद्र शासित प्रदेश।
    • सर्वश्रेष्ठ उद्यम/उद्यमी- पूरे देश में चुने गए सर्वश्रेष्ठ मत्स्यन कृषक (अंतर्देशीय और समुद्री श्रेणी), सर्वश्रेष्ठ मत्स्य सहकारी समितियाँ/FFPO, सर्वश्रेष्ठ मत्स्य उद्यम/उद्यमी।

  • केरल को सर्वश्रेष्ठ समुद्री राज्य का पुरस्कार मिला, जबकि तेलंगाना को सर्वश्रेष्ठ अंतर्देशीय राज्य का पुरस्कार मिला।

विश्व मत्स्य दिवस 2024

  • थीम: भारत का नीला परिवर्तन: लघु-स्तरीय और सतत मत्स्य पालन को मजबूत करना।
  • शुरू की गई पहल
    • 5वीं समुद्री मत्स्य पालन गणना: यह साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण के लिए एक व्यापक डेटा है।
    • शार्क पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Plan of Action- NPOA): शार्क प्रजातियों का संरक्षण करना, जो इसके अतिदोहन को रोकेगा।
    • बंगाल की खाड़ी-क्षेत्रीय कार्य योजना (Bay of Bengal-Regional Plan of Action- BoB-RPOA): यह अवैध, अप्रतिबंधित और अनियमित (IUU) मत्स्यन से निपटती है।
    • IMO-FAO ग्लोलिटर भागीदारी परियोजना (GloLitter Partnership Project): यह समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण को संबोधित करती है और स्वच्छ महासागरों को बढ़ावा देती है।
    • रेट्रोफिटेड LPG किट: इसने पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए मछली पकड़ने के जहाजों की शुरुआत की।
    • तटीय जलीय कृषि के लिए एकल खिड़की प्रणाली: इसने जलीय कृषि फार्मों के लिए ऑनलाइन पंजीकरण को सुव्यवस्थित किया।
    • स्वैच्छिक कार्बन बाजार ढाँचा: यह मत्स्य पालन क्षेत्र में कार्बन व्यापार को प्रोत्साहित करता है और स्थायी प्रथाओं को प्रोत्साहित करता है।

मत्स्य पालन में भारत का वैश्विक नेतृत्व

भारत की उपलब्धियाँ

  • FAO, 2021 के अनुसार, भारत चीन और इंडोनेशिया के बाद विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक है। 
  • दूसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि उत्पादक देश है।
  • दुनिया में सबसे बड़ा झींगा उत्पादक देश है।

संबद्ध सरकारी योजनाएँ और नीतियाँ

  • नीली क्रांति एकीकृत विकास और प्रबंधन मत्स्य पालन योजना (2015-16): इसने समुद्री और अंतर्देशीय मछली उत्पादकता में वृद्धि की।
  • प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY, 2020): इसका लक्ष्य वर्ष 2024-25 तक मत्स्य निर्यात को दोगुना करके ₹1 लाख करोड़ करना है।
  • मत्स्य पालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि (FIDF, 2018-19): यह बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में मत्स्य पालन को वित्तीय सहायता और समर्थन प्रदान करता है।
    • इसके अलावा, यह 3% ब्याज अनुदान के साथ 80% तक परियोजना लागत का वित्तपोषण प्रदान करता है।
  • ICAR-CIFE: यह मत्स्यपालन पेशेवरों को प्रशिक्षित करता है तथा अनुसंधान एवं क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है।

सतत मत्स्य पालन को बढ़ावा देना

  • समुद्री मत्स्य पालन पर राष्ट्रीय नीति (वर्ष 2017): यह संतुलित दोहन के माध्यम से स्थिरता के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती है।
  • विनाशकारी प्रथाओं का निषेध: यह एक जोड़ी ‘ट्रॉलिंग’ और LED मछली पकड़ने जैसी प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाता है।

  • समुद्री पशुपालन और कृत्रिम चट्टानें: यह समुद्री जैव विविधता को बढ़ाता है और सतत मत्स्यन प्रथाओं का समर्थन करता है।
  • वित्त पोषण: वित्त वर्ष 2024-25 के लिए ₹2,584.50 करोड़, जो पिछले वर्ष की तुलना में 15% की वृद्धि है।
  • राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड: इसे वर्ष 2006 में केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय (MoFAH&D) के तहत एक स्वायत्त संगठन के रूप में स्थापित किया गया था।

संदर्भ

आदर्श गौशाला, ग्वालियर मध्य प्रदेश ने भारत की पहली आधुनिक, आत्मनिर्भर गौशाला की स्थापना करके एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है, जिसमें अत्याधुनिक संपीड़ित बायोगैस (CBG) संयंत्र स्थापित है।

ग्वालियर के संपीड़ित बायोगैस (CBG) संयंत्र 

  • क्षमता: यह प्रतिदिन 100 टन गोबर को संसाधित कर 2-3 टन जैव-CNG तथा जैविक खेती के लिए 10-15 टन जैविक खाद तैयार कर सकता है।
  • इसमें अतिरिक्त जैविक अपशिष्ट प्रसंस्करण के लिए ‘विंडरो कम्पोस्टिंग’ को शामिल किया गया है।
    • विंडरो कम्पोस्टिंग (Windrow Composting): यह कम्पोस्टिंग की एक विधि है जिसमें जैविक अपशिष्ट को लंबी पंक्तियों में एकत्र किया जाता है, जिन्हें ‘विंडरो’ कहा जाता है, और कम्पोस्ट को बेहतर बनाने के लिए उन्हें नियमित रूप से पलटा जाता है।

संपीड़ित बायोगैस (CBG) 

  • यह एक नवीकरणीय गैसीय ईंधन है, जो कृषि अवशेषों, पशुओं के गोबर, खाद्य अपशिष्ट और नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट जैसे कार्बनिक पदार्थों के अवायवीय पाचन के माध्यम से उत्पादित होता है।
  • उत्पादन: इसके लिए बायोगैस के शुद्धिकरण की आवश्यकता होती है (कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड और नमी जैसी अशुद्धियों को हटाने के लिए)।
    • यह परिष्कृत और संपीड़ित गैस, जिसमें 90% से अधिक मीथेन होता है, CBG बन जाती है, जिसमें पारंपरिक संपीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG) के समान गुण होते हैं।
  • विशेषताएँ
    • संपीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG) के समान कैलोरी मान और गुण।
    • एक हरे, नवीकरणीय ईंधन के रूप में कार्य करता है।
  • अनुप्रयोग: यह ऑटोमोटिव, औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में CNG का स्थान ले सकता है।

संपीड़ित बायोगैस (CBG) के लिए सरकारी पहल

  • CBG का चरणबद्ध अनिवार्य सम्मिश्रण: इसकी घोषणा वर्ष 2024 के अंतरिम बजट में की गई थी, इसका उद्देश्य CNG (परिवहन) और PNG (घरेलू उपयोग) के साथ CBG को बढ़ावा देना, हरित गैस आधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण को संबोधित करना तथा स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना था।
  • जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति 2018: इसमें CBG सहित उन्नत जैव ईंधन को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है।
  • गैल्वनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज धन (GOBAR-DHAN) योजना: इसका उद्देश्य खेतों में मवेशियों के गोबर और ठोस अपशिष्ट को बायो-CNG (CBG) और खाद में बदलना है।
  • बायो-CNG के लिए केंद्रीय वित्तीय सहायता: नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा अधिसूचित।
    • कार्यक्रम के तहत बायोगैस उत्पादन, बायो CNG उत्पादन, MSW से बिजली उत्पादन, बायोमास गैसीफायर आदि के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
  • SATAT पहल: यह उद्यमियों को संपीड़ित बायोगैस संयंत्र स्थापित करने, ऑटोमोटिव और औद्योगिक ईंधन के रूप में बिक्री के लिए तेल विपणन कंपनियों को CBG का उत्पादन और आपूर्ति करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • RBI प्राथमिकता क्षेत्र ऋण: इसमें CBG संयंत्र स्थापित करने वाले स्टार्ट-अप के लिए ऋण (₹50 करोड़ तक) शामिल हैं।
  • IREDA व्यवसाय योजना (2022-2026): इसमें CBG के लिए वित्तीय सहायता को संवितरण लक्ष्यों में शामिल किया गया है।

संदर्भ

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा वैश्विक नाइट्रस ऑक्साइड आकलन संबंधी रिपोर्ट प्रकाशित की गई है।

  • यह एक दशक से अधिक समय में केवल N2O पर केंद्रित पहली अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट है।

गोथेनबर्ग प्रोटोकॉल (Gothenburg Protocol)

  • गोथेनबर्ग प्रोटोकॉल (जिसे वर्ष 1999 में अपनाया गया था) की स्थापना उन प्रदूषकों को संबोधित करने के लिए की गई थी जो अम्लीकरण और ग्राउंड-लेवल ओजोन का कारण बनते हैं।
  • यह सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, अमोनिया और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों सहित वायु प्रदूषकों पर सीमाएँ निर्धारित करता है जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं।

वैश्विक नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) मूल्यांकन रिपोर्ट पर महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि

मुख्य निष्कर्ष

  • ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
    • N₂O वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग में 0.1°C का योगदान देता है।
    • उत्सर्जन में इसकी निरंतर वृद्धि के कारण वार्मिंग को 1.5°C तक सीमित करना असंभव है।
  • मानवजनित उत्सर्जन
    • वर्ष 1980 से 40% की वृद्धि हुई है, जिसमें 75% कृषि (सिंथेटिक उर्वरक एवं गोबर) से उत्पन्न हुआ है।
  • ओजोन क्षरण और स्वास्थ्य जोखिम
    • N₂O ओजोन को प्रभावित करने वाला प्रमुख पदार्थ है, जो हानिकारक पराबैंगनी विकिरण में वृद्धि करता है।
    • मोतियाबिंद (0.2–0.8%) और त्वचा कैंसर (2–10%) का जोखिम बढ़ाता है।
  • उत्सर्जन में कमी के उपाय: रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि वर्तमान उत्सर्जन में कमी के उपाय N2O उत्सर्जन को वर्तमान स्तर से 40 प्रतिशत से अधिक कम कर सकते हैं।
  • उत्सर्जन स्रोत
    • कृषि: यह वर्तमान में उन उत्सर्जनों का 75% स्रोत है, जिनमें से लगभग 90% कृषि संबंधी मृदा पर सिंथेटिक उर्वरकों और खाद के उपयोग से और 10% खाद प्रबंधन से आता है।
    • उद्योग: औद्योगिक स्रोतों से लगभग 5% उत्सर्जन होता है, और शेष 20% जीवाश्म ईंधन दहन, अपशिष्ट जल उपचार, जलीय कृषि, बायोमास जलने और अन्य स्रोतों से होता है।
  • उत्सर्जन में वृद्धि: पूर्व-औद्योगिक युग से गैस की वायुमंडलीय प्रचुरता में 20% से अधिक की वृद्धि हुई है; पिछले पाँच वर्षों (2017-2021) में इसकी औसत वार्षिक वृद्धि दर 1.2 भाग प्रति बिलियन प्रति वर्ष थी और यह 2000 के दशक की शुरुआत (वर्ष 2000-2004) की तुलना में लगभग दोगुनी थी।

सुझाए गए उपाय

  • कृषि: संवर्द्धित दक्षता वाले उर्वरकों, नाइट्रीकरण अवरोधकों और धीमी गति से निकलने वाले फॉर्मूलेशन का उपयोग उत्सर्जन को कम कर सकता है।
  • उद्योग: उद्योग मौजूदा और अपेक्षाकृत कम लागत वाले उन्मूलन उपायों को अपनाकर N2O उत्सर्जन को समाप्त कर सकते हैं, जिसकी लागत प्रति टन नाइट्रस ऑक्साइड के लिए $1,600-6,000 हो सकती है।
  • जीवाश्म ईंधन में कमी: परिवहन और ऊर्जा उत्पादन में नवीकरणीय संसाधनों में बदलाव।
  • खाद प्रबंधन: पशु आहार में पोषक तत्वों के इनपुट को संतुलित करना, चराई की तीव्रता को कम करना और खाद के अवायवीय पाचन को लागू करना।
  • बहुपक्षीय विकल्प: ‘लॉन्ग रेंज ट्रांसबाउंड्री एयर पॉल्यूशन पर कन्वेंशन’ के तहत अमोनिया और नाइट्रोजन ऑक्साइड पर गोथेनबर्ग प्रोटोकॉल जैसे लक्ष्यों को अपनाना।
  • खाद्य उत्पादन में परिवर्तन: खाद्य उत्पादन और सामाजिक प्रणालियों में परिवर्तन से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में और भी अधिक कमी आ सकती है।

नाइट्रस ऑक्साइड और इसका अवशोषक ‘सिंक’ (Absorbent Sinks)

नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) 

  • यह एक ग्रीनहाउस गैस (GHG) है जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) से 300 गुना ज़्यादा शक्तिशाली है।
  • पृथ्वी के वायुमंडल में ग्लोबल वार्मिंग के लिए उत्तरदायी ग्रीनहाउस गैसों में CO2 और मीथेन (CH4) के बाद इसकी सांद्रता तीसरी सबसे अधिक है।
  • यह वायुमंडल में 120-125 वर्ष तक मौजूद रह सकता है और पृथ्वी को गर्म करने में प्रति टन उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड से लगभग 270 गुना अधिक शक्तिशाली है।

नाइट्रस ऑक्साइड के अवशोषक ‘सिंक’ (Absorbent ‘Sinks’ of Nitrous Oxide)

  • मृदा: मृदा में सूक्ष्मजीवी प्रक्रियाएँ N₂O उत्सर्जन को कम कर सकती हैं।
    • ‘डिनाइट्रीफाइंग बैक्टीरिया’ अवायवीय परिस्थितियों में N₂O को नाइट्रोजन गैस (N₂) में परिवर्तित कर देते हैं।
  • महासागर: गहरे और भूमिगत महासागर वायु-समुद्र इंटरफेस पर विघटन के माध्यम से वायुमंडल से N₂O को अवशोषित करते हैं।
    • समुद्री फाइटोप्लांकटन घुलनशील N₂O को अवशोषित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • समताप मंडल: N₂O ओजोन (O₃) के साथ प्रतिक्रिया करता है जिससे नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और अंततः नाइट्रोजन गैस (N₂) का निर्माण होता है।

संदर्भ

भारत के जलीय कृषि क्षेत्र में बायोफ्लोक टेक्नोलॉजी (Biofloc Technology-BFT) और ‘पुनर्चक्रण जलीय कृषि प्रणालियों’ (Recirculating Aquaculture Systems-RAS) को अधिक अपनाया गया है। 

संबंधित तथ्य

  • मत्स्य पालन विभाग राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सब्सिडी प्रदान कर BFT और RAS को बढ़ावा दे रहा है।
  • वर्तमान में, भारत वैश्विक स्तर पर (चीन के बाद) कृषि आधारित मत्स्य का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जो खाद्य सुरक्षा, रोजगार और आर्थिक विकास में योगदान देता है।

बायोफ्लोक टेक्नोलॉजी (Biofloc Technology-BFT) 

  • यह एक स्थायी जलीय कृषि तकनीक है जो अपशिष्ट उत्पादों को मछली और क्रस्टेशियंस के लिए पोषक तत्वों में बदलने के लिए सूक्ष्मजीवों का उपयोग करती है।
  • बायोफ्लोक (Biofloc): यह प्रोटीन से भरपूर ‘लाइवफीड’ है जो सूर्य की रोशनी और सशक्त वातन (Vigorous Aeration) के संपर्क में आने पर ‘कल्चर सिस्टम’ में अप्रयुक्त फीड और अपशिष्ट को प्राकृतिक भोजन में बदलने के परिणामस्वरूप प्राप्त होता है।
  • कार्य: यह मछली के उपभोग के लिए जैविक अपशिष्ट को माइक्रोबियल बायोमास में बदलने के लिए लाभकारी बैक्टीरिया (फ्लोक) का उपयोग करता है। जल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए ऑक्सीजन के स्तर और यांत्रिक निस्पंदन के लिए वातन प्रणाली की आवश्यकता होती है।
  • लाभ
    • रसायनों/एंटीबायोटिक्स की आवश्यकता को कम करता है।
    • सतत, लागत प्रभावी और छोटे किसानों या लघु भूमि पर कृषि के लिए उपयुक्त।
  • चुनौती
    • उच्च प्रारंभिक निवेश (₹4–5 लाख)।
    • कार्बन-नाइट्रोजन अनुपात और फ्लोक स्तरों की लगातार निगरानी की आवश्यकता होती है।
    • सीमित प्रजाति उपयुक्तता के कारण रोहू एवं कतला जैसी भारतीय प्रमुख कार्प का उत्तरी क्षेत्रों में पालन मुश्किल है।

‘पुनर्चक्रण जलीय कृषि प्रणालियाँ’ (Recirculating Aquaculture Systems-RAS) के बारे में

  • ‘रीसर्क्युलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम’ (RAS) एक ऐसी तकनीक है, जो इनडोर टैंकों में मछली पालन के लिए जल का पुनर्चक्रण करती है।
  • कार्य: यह यांत्रिक और जैविक निस्पंदन प्रणालियों का उपयोग करके जल को फिल्टर और पुनर्चक्रण करता है और तापमान, ऑक्सीजन एवं स्वच्छता के लिए एक नियंत्रित वातावरण बनाता है।
  • लाभ
    • यह उच्च जैव सुरक्षा, कम रोग जोखिम और एंटीबायोटिक दवाओं की कम आवश्यकता प्रदान करता है।
    • यह ‘इनडोर’ खेती या प्राकृतिक जल स्रोतों से रहित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
  • चुनौतियाँ
    • उच्च निवेश और परिचालन लागत।
    • निगरानी और रखरखाव के लिए निरंतर विद्युत आपूर्ति, बैकअप सिस्टम और कुशल श्रम की आवश्यकता होती है।

संदर्भ

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा परमाणु हथियार नीति (Nuclear Weapons Policy) को अद्यतन किया गया है।

नया परमाणु सिद्धांत

  • पृष्ठभूमि: रूस का अद्यतित परमाणु सिद्धांत यूक्रेन के साथ उसके संघर्ष की पृष्ठभूमि में लाया गया है, जहाँ हाल ही में यूक्रेन ने संघर्ष में पहली बार अमेरिका द्वारा आपूर्ति की गई ATACMS  मिसाइलों को रूस में दागा है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका के बाइडन प्रशासन ने यूक्रेन को रूस के विरुद्ध सीमित हमलों के लिए लंबी दूरी के अमेरिकी हथियारों का उपयोग करने की अनुमति दी है।
  • उद्देश्य: इन अद्यतित नियमों में संभावित परमाणु प्रतिक्रिया के अधीन देशों और गठबंधनों की संख्या, तथा सैन्य खतरों के प्रकार का विस्तार किया गया है।
  • परिदृश्य, जिसके तहत मास्को परमाणु प्रतिक्रिया पर विचार किया गया
    • परमाणु निरोध: किसी गैर-परमाणु राष्ट्र द्वारा रूस के खिलाफ कोई भी आक्रामकता जो परमाणु राष्ट्र की भागीदारी या समर्थन के साथ की जाती है, उसे संयुक्त हमला माना जाएगा।
    • बड़े पैमाने पर हमला: यदि रूस को लगता है तो वह विमानों, मिसाइलों एवं ड्रोन का उपयोग करके उस पर बड़े पैमाने पर हवाई हमला करेगा। 
    • परमाणु दायरे का विस्तार: रूस ने आधिकारिक तौर पर अपने करीबी सहयोगी बेलारूस को अपने परमाणु दायरे के अंतर्गत रखा है।
    • पारंपरिक हमले के जवाब में: परमाणु हथियारों का इस्तेमाल पारंपरिक हमले की स्थिति में भी किया जा सकता है जो ‘संप्रभुता या क्षेत्रीय अखंडता के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करता है’। 
    • रूस के विरुद्ध सैन्य गठबंधन: यदि सैन्य गठबंधन (नए या मौजूदा) दुश्मन के सैन्य बुनियादी ढाँचे को रूस की सीमाओं के निकट ले जाते हैं एवं रूस की सीमाओं के पास बड़े पैमाने पर सैन्य अभ्यास करने की योजना बनाते हैं।

परमाणु सिद्धांत 

  • परमाणु सिद्धांत, उन लक्ष्यों एवं मिशनों को स्पष्ट करते हैं जो प्रत्येक परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्रों (Nuclear Weapon States-NWS) की बल संरचना, घोषणात्मक नीति तथा कूटनीति का निर्धारण करके शांति एवं युद्ध दोनों के दौरान किसी देश द्वारा परमाणु हथियारों की तैनाती तथा उपयोग का मार्गदर्शन करेंगे।
  • परमाणु सिद्धांत के लक्ष्य: इसमें मुख्य रूप से निवारण, लक्ष्य विनाश, सहयोगियों का आश्वासन तथा अनिश्चित भविष्य के विरुद्ध बचाव शामिल है।

भारत का परमाणु सिद्धांत

  • भारत ने वर्ष 1998 में आधिकारिक तौर पर स्वयं के पास परमाणु हथियार होने की घोषणा की जब उसने राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण की एक श्रृंखला आयोजित की।
  • स्थापना: भारत ने परमाणु रणनीतिकार के. सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड की वर्ष 1999 की मसौदा रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 2003 में अपना आधिकारिक परमाणु सिद्धांत जारी किया।
  • प्राधिकरण: परमाणु जवाबी हमलों को केवल परमाणु कमान प्राधिकरण के माध्यम से नागरिक राजनीतिक नेतृत्व द्वारा अधिकृत किया जा सकता है।
    • परमाणु कमान प्राधिकरण: इसमें एक राजनीतिक परिषद एवं एक कार्यकारी परिषद शामिल है। 
      • राजनीतिक परिषद: इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं एवं यह परमाणु हथियारों के उपयोग को अधिकृत करने वाली एकमात्र संस्था है।
      • कार्यकारी परिषद: इसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार करते हैं एवं यह राजनीतिक परिषद द्वारा दिए गए निर्देशों को क्रियान्वित करती है।
  • स्तंभ
    • विश्वसनीय निरोध: परमाणु हथियारों का भंडार बनाए रखना केवल विश्वसनीय न्यूनतम निरोध के निर्माण एवं रखरखाव के संबंध में है।
    • पहले प्रयोग न करने का सिद्धांत: परमाणु हथियारों का उपयोग केवल भारतीय क्षेत्र या भारतीय बलों पर कहीं भी परमाणु हमले के विरुद्ध, जवाबी कार्रवाई में किया जाएगा एवं गैर-परमाणु हथियार वाले राज्यों के विरुद्ध परमाणु हथियारों का उपयोग नहीं किया जाएगा।
      • अपवाद: भारत या भारतीय सेनाओं के विरुद्ध कहीं भी जैविक या रासायनिक हथियारों से बड़े हमले की स्थिति में, भारत परमाणु हथियारों से जवाबी कार्रवाई करने का विकल्प बरकरार रखेगा।
    • परमाणु प्रतिशोध: एक परमाणु प्रतिशोध, पहले हमले के लिए बड़े पैमाने पर होगा एवं असहनीय तथा अस्वीकार्य क्षति पहुँचाने के लिए डिजाइन किया गया होगा।
    • परमाणु निरस्त्रीकरण: भारत वैश्विक, सत्यापन योग्य एवं गैर-भेदभावपूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण के माध्यम से परमाणु हथियार मुक्त विश्व के लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध है।
    • परमाणु अप्रसार के लिए प्रतिबद्ध: परमाणु परीक्षणों पर रोक, परमाणु एवं मिसाइल संबंधी सामग्रियों एवं प्रौद्योगिकियों के निर्यात पर सख्त नियंत्रण जारी रखना तथा विखंडनीय पदार्थ कटौती संधि वार्ता में भागीदारी।

संदर्भ 

उच्चतम न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश के छ: विधायकों की अयोग्यता से संबंधित कार्यवाही पर रोक लगाते हुए उन्हें अस्थायी राहत प्रदान दी, जिन्हें वर्ष 2023 में मुख्य संसदीय सचिव (Chief Parliamentary Secretaries- CPS) नियुक्त किया गया था। 

विधायकों के विरुद्ध अयोग्यता संबंधी कार्यवाही

  • विधान सभा के सदस्यों (विधायकों) के विरुद्ध अयोग्यता संबंधी कार्यवाही विभिन्न कारणों से की जा सकती है, जिसमें लाभ का पद धारण करना, दलबदल या संवैधानिक प्रावधानों का अन्य उल्लंघन शामिल है।

अपवाद

  • विलय: यदि किसी सदस्य की मूल राजनीतिक पार्टी का किसी अन्य पार्टी में विलय हो जाता है एवं उसके कम-से-कम दो-तिहाई सदस्य पार्टी में विलय के लिए सहमत होते हैं, तो उन्हें अयोग्यता से संबंधित प्रावधानों से छूट दी जाती है।
  • पीठासीन अधिकारी: अध्यक्ष या सभापति को अयोग्यता से छूट है यदि वे अपने कर्तव्यों को निष्पक्ष रूप से करने के लिए स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता का परित्याग कर देते हैं।
  • निवारक निरोध: निवारक निरोध कानूनों के तहत हिरासत में लिए जाने से अयोग्यता सिद्ध नहीं होती है।
  • दोषसिद्धि पर रोक: यदि उच्च न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि (सिर्फ सजा नहीं) पर रोक लगा दी जाती है या उसे पलट दिया जाता है, तो अयोग्यता से बचा जा सकता है।

विधान सभा के सदस्य हेतु अयोग्यता से संबंधित प्रावधान

  • संवैधानिक प्रावधान (अनुच्छेद 191)
    • किसी व्यक्ति को अयोग्य ठहराया जा सकता है यदि:
    • लाभ का पद धारण करना: वह एक सरकारी पद धारण करता हो, जिससे लाभ अर्जित होता हो,जब तक कि राज्य कानून द्वारा छूट न दी गई हो।
    • मानसिक स्वास्थ्य: उन्हें न्यायालय द्वारा मानसिक रूप से अयोग्य घोषित किया गया हो।
    • दिवालियापन: उन्हें दिवालिया घोषित कर दिया गया हो उसने इसे सिद्ध न किया हो।
    • नागरिकता: वह भारतीय नागरिक न ही, उसने विदेशी नागरिकता प्राप्त कर ली हो, या किसी दूसरे देश के प्रति निष्ठावान हो ।
    • संसद के कानून: संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के तहत अयोग्य।
  • दल-बदल विरोधी कानून (अनुसूची 10)
    • भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची दलबदल के आधार पर संसद एवं राज्य विधानमंडलों के सदस्यों को अयोग्य घोषित करने के नियमों की रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
    • 52वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1985 के माध्यम से प्रस्तुत किया गया, इसे सामान्यत दल-बदल विरोधी अधिनियम के रूप में जाना जाता है।
    • अयोग्यता के लिए आधार
      • स्वैच्छिक त्यागपत्र
        • यदि कोई सदस्य स्वेच्छा से अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है तो उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाता है
      • पार्टी के निर्देशों के विरुद्ध मतदान
        • यदि सदस्य पूर्वानुमति के बिना अपनी पार्टी के निर्देशों के विरुद्ध मतदान करता है या मतदान से अनुपस्थित रहता है तो उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
      • स्वतंत्र रूप से निर्वाचित सदस्य
        • चुनाव के बाद किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होने वाले स्वतंत्र सदस्य को अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
      • मनोनीत सदस्य
        • नामांकन के छ: माह के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होने वाला नामांकित सदस्य अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
    • निर्णय प्राधिकारी
      • अयोग्यता के मामलों पर संबंधित सदन का अध्यक्ष या सभापति निर्णय करता है।
      • उनका निर्णय अंतिम माना जाता है।
      • कार्यवाही।
  • इस अनुसूची के तहत अयोग्यता-संबंधी कार्यवाही को संसद या राज्य विधानमंडल की विधायी कार्यवाही के रूप में माना जाता है।
  • संसदीय कानून के तहत अयोग्यता: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 के तहत नियम
  • दोषसिद्धि के लिए अयोग्यता
    • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PCA), 1988 के तहत दोषी पाया गया विधायक।
    • सजा का प्रावधान केवल जुर्माने तक सीमित है: कारावास के लिए अयोग्य
    • सजा की तिथि से लेकर कारावास की अवधि समाप्त होने तक अयोग्य।

  • अयोग्यता का निर्णय करने का अधिकार
    • राज्यपाल की भूमिका
      • अयोग्यता से संबंधित अंतिम निर्णय राज्यपाल का होता है। (दल-बदल विरोधी मामलों को अलावा =)।
      • राज्यपाल को भारत निर्वाचन आयोग की राय लेनी चाहिए एवं उसका पालन करना चाहिए।
    • दसवीं अनुसूची के अंतर्गत स्पीकर की भूमिका
      • स्पीकर दल-बदल विरोधी अधिनियम के तहत दल-बदल से संबंधित अयोग्यता के मामलों पर निर्णय लेता है।
      • स्पीकर के फैसले की न्यायिक समीक्षा।
    • वर्ष 1992 में, उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अनुसार, दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता से संबंधित स्पीकर का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है।

    • इसके अलावा, रिहाई के बाद छ: वर्ष का अतिरिक्त समय भी मिलेगा।
    • अयोग्यता के लिए अन्य आधार
      • चुनाव के दौरान चुनावी अपराधों या भ्रष्ट आचरण का दोषी पाया गया।
      • भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति विश्वासघात के कारण सरकारी सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
      • इसके लिए दोषी ठहराया गया:
        • समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना।
        • रिश्वतखोरी या इसी प्रकार के अपराध।
      • आवश्यक समय के भीतर चुनाव व्यय लेखा प्रस्तुत करने में विफल।
      • सरकारी अनुबंधों, कार्यों या सेवाओं में रुचि रखना।
      • कम से कम 25% सरकारी शेयरधारिता वाले सरकारी स्वामित्व वाले निगम में निदेशक, प्रबंध एजेंट होना या लाभ का पद धारण करना।
      • सामाजिक अपराधों जिनके लिए दंडित किया गया हो:
        • अस्पृश्यता
        • दहेज प्रथा
        • सती प्रथा

अयोग्यता निलंबन से किस प्रकार भिन्न है?

कार्रवाई

परिभाषा

अधिकतम अवधि

लागू नियम

अयोग्यता

गंभीर कदाचार या संवैधानिक प्रावधानों या कानूनों के उल्लंघन के कारण सदस्यता से स्थायी रूप से निष्कासन।

स्थायी

भारत का संविधान, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, एवं संसद तथा राज्य विधानसभाओं के विशिष्ट नियम

निलंबन

सदन की कार्यवाही में अव्यवस्थित आचरण या जानबूझकर बाधा उत्पन्न करने के कारण सदस्यता का अस्थायी निष्कासन।

लगातार पाँच बैठकों या सत्र के शेष भाग के लिए

लोकसभा में प्रक्रिया एवं कार्य संचालन के नियम (नियम 373, 374, 374A) तथा राज्यसभा (नियम 255, 256), एवं राज्य विधानसभाओं में समान नियम

संदर्भ 

संयुक्त राष्ट्र परमाणु निगरानी संस्था के सहयोग की कमी की आलोचना करने वाले प्रस्ताव के प्रत्युत्तर में ईरान ने ‘नए एवं उन्नत’ सेंट्रीफ्यूज लॉन्च करने की योजना बनाई है।

  • ब्रिटेन, फ्राँस, जर्मनी एवं अमेरिका द्वारा समर्थित प्रस्ताव को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) द्वारा अपनाया गया था।

यूरेनियम संवर्द्धन 

  • यूरेनियम संवर्द्धन प्राकृतिक यूरेनियम में यूरेनियम-235 (U-235) की सांद्रता बढ़ाने की प्रक्रिया है। 
    • यह विद्युत रिएक्टरों के लिए परमाणु ईंधन बनाने के लिए किया जाता है, जिसके लिए 2-5% U-235 की सांद्रता वाले यूरेनियम की आवश्यकता होती है।
    • प्राकृतिक यूरेनियम की संरचना: 99.3% U-238 एवं 0.7% U-235। 
  • प्राकृतिक समस्थानिक: यूरेनियम-234 (U-234), यूरेनियम-235 (U-235) एवं यूरेनियम-238 (U-238) 
  • घटना: U-235 एवं U-238 लगभग सभी चट्टानों, मिट्टी तथा जल में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं। 
    • U-238 पर्यावरण में सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
  • समृद्ध यूरेनियम के प्रकार
    • निम्न-संवर्द्धित यूरेनियम (Low-Enriched Uranium- LEU): इसमें U-235 की सांद्रता 20% से कम होती है एवं इसका उपयोग वाणिज्यिक परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों में ईंधन के रूप में किया जाता है
    • अत्यधिक संवर्द्धित यूरेनियम (Highly Enriched Uranium- HEU): U-235 की सांद्रता 20% से अधिक होती  है एवं इसका उपयोग पारंपरिक रूप से परमाणु हथियारों सहित सैन्य अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है।

सेंट्रीफ्यूज एवं इसकी कार्यप्रणाली

  • सेंट्रीफ्यूज: ये ऐसी मशीनें हैं जो यूरेनियम को बहुत तेज गति से घुमाकर गैस में बदल देती हैं, जिससे विखंडनीय आइसोटोप सामग्री (U-235) का अनुपात बढ़ जाता है।
  • मुख्य भाग
    • रोटर: एक ट्यूब जो तेजी से घूमती (60,000 RPM तक) है।
    • यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड (UF₆) → गैसीय रूप में यूरेनियम को सेंट्रीफ्यूज में डाला जाता है।
  • भारत में यूरेनियम भंडार 
    • पहला यूरेनियम भंडार वर्ष 1951 में जादूगुड़ा, सिंहभूम थ्रस्ट बेल्ट, झारखंड में खोजा गया था।
    • अन्य महत्त्वपूर्ण यूरेनियम निक्षेप 
      • आंध्र प्रदेश: कुडप्पा बेसिन।
      • मेघालय: बलुआ पत्थर-प्रकार के यूरेनियम भंडार डोमियासियाट, वाखिन एवं मावसिनराम (महाडेक बेसिन) के रूप में पाए जाते हैं।
        • संभावित क्षेत्र: राजस्थान, कर्नाटक एवं छत्तीसगढ़ के क्षेत्र।

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी 

  • यह परमाणु क्षेत्र में सहयोग का अंतरराष्ट्रीय केंद्र है।
  • इसे संयुक्त राष्ट्र में दुनिया के ‘शांति एवं विकास के लिए परमाणु” संगठन के रूप में जाना जाता है।
  • स्थापना: वर्ष 1957 में।
  • मुख्यालय: वियना, ऑस्ट्रिया।
  • यह संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) एवं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) को रिपोर्ट करता है।
  • उद्देश्य
    • परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देता है।
    • इसका उद्देश्य परमाणु हथियारों सहित सैन्य उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के उपयोग को रोकना है।
  • कार्य
    • परमाणु प्रौद्योगिकियों के सुरक्षित एवं शांतिपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए दुनिया भर में सदस्य राज्यों एवं भागीदारों के साथ सहयोग करता है।
    • परमाणु सुरक्षा उपायों को लागू करता है एवं शांतिपूर्ण परमाणु गतिविधियों को सत्यापित करता है तथा उन्हें हथियार कार्यक्रमों को अपनाने से रोकता है।
    • परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के तहत व्यापक सुरक्षा उपायों को लागू करता है।
    • अपने सदस्य राष्ट्रों के बीच वैज्ञानिक एवं तकनीकी जानकारी के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करता है।
    • परमाणु एवं रेडियोलॉजिकल घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिए उन पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता को मजबूत करता है।

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय संचार मंत्रालय ने दूरसंचार (दूरसंचार साइबर सुरक्षा) नियम, 2024 को अधिसूचित किया, जिसमें दूरसंचार संस्थाओं के लिए कड़े सुरक्षा उपाय एवं जवाबदेही को शामिल किया गया है।

साइबर सुरक्षा

  • यह सिस्टम, नेटवर्क एवं प्रोग्राम को डिजिटल हमलों से बचाने का अभ्यास है। 
  • ये साइबर हमले आमतौर पर संवेदनशील जानकारी तक पहुँचने, बदलने या नष्ट करने के उद्देश्य से होते हैं; रैनसमवेयर के माध्यम से उपयोगकर्ताओं से पैसे वसूलना; या सामान्य व्यावसायिक प्रक्रियाओं को बाधित करना।

दूरसंचार साइबर सुरक्षा नियमों के तहत प्रमुख प्रावधान

  • प्रमुख उपाय
    • ये दूरसंचार कंपनियों के लिए सुरक्षा घटनाओं की रिपोर्ट करने एवं खुलासे करने की समय-सीमा निर्दिष्ट करते हैं।
    • यह केंद्र सरकार या उसकी अधिकृत एजेंसी को साइबर सुरक्षा उद्देश्यों के लिए दूरसंचार संस्थाओं से ट्रैफिक डेटा (संदेश कंटेंट को छोड़कर) मांगने का अधिकार देता है।
  • दूरसंचार संस्थाओं के लिए दायित्व
    • आवश्यक रूप से मुख्य दूरसंचार सुरक्षा अधिकारी की नियुक्ति करना।
    • घटना के प्रासंगिक विवरण के साथ, खोज के छह घंटे के भीतर सुरक्षा घटनाओं की रिपोर्ट करना आवश्यक है।
  • घटना की रिपोर्टिंग: 24 घंटों के भीतर, दूरसंचार संस्थाओं को विस्तृत जानकारी प्रदान करनी होगी, जिसमें शामिल हैं:
    • प्रभावित उपयोगकर्ताओं की संख्या।
    • अवधि एवं भौगोलिक क्षेत्र प्रभावित।
    • नेटवर्क या सेवा कार्यक्षमता पर प्रभाव।
    • किए गए या नियोजित उपचारात्मक कार्य।
  • IMEI पंजीकरण नियम
    • ‘इंटरनेशनल मोबाइल इक्विपमेंट आइडेंटिटी’ (IMEI) नंबर वाले उपकरण निर्माताओं को भारत में अपनी पहली बिक्री से पहले ऐसे उपकरणों की संख्या सरकार के पास पंजीकृत करानी होगी।
  • भारतीय दूरसंचार क्षेत्र एवं संबद्ध कानून 
    • दूरसंचार उद्योग के उप-क्षेत्र: बुनियादी ढाँचा, उपकरण, मोबाइल वर्चुअल नेटवर्क ऑपरेटर, व्हाइट स्पेस स्पेक्ट्रम, 5G, टेलीफोन सेवा प्रदाता एवं ब्रॉडबैंड।
    • भारत के दूरसंचार उद्योग का 1.19 बिलियन ग्राहक आधार के साथ विश्व में दूसरा स्थान है। (सितंबर 2024)
  • प्राथमिक कानून
    • भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885: वर्ष 2003 में, भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 में संशोधन करके ‘यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड’ (Universal Service Obligation Fund- USOF) की स्थापना की गई थी। 
    • भारतीय वायरलेस टेलीग्राफी अधिनियम, 1933
    • विनियामक अनुकूलनशीलता को प्रतिबिंबित करने के लिए तारयंत्र संबंधी तार (विधि-विरुद्ध अधिकार) अधिनियम, 1950 [Telegraph Wires (Unlawful Possession) Act, 1950] को निरसन एवं संशोधन अधिनियम, 2023 द्वारा निरस्त कर दिया गया था।
  • नियामक प्राधिकरण: ट्राई अधिनियम, 1997 ने टैरिफ विनियमन के लिए भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) की स्थापना की एवं दूरसंचार विवाद निपटान तथा अपीलीय न्यायाधिकरण (Telecom Disputes Settlement and Appellate Tribunal- TDSAT) का गठन किया गया।
  • लाइसेंसिंग प्राधिकारी: केंद्र सरकार।
  • दूरसंचार क्षेत्र में सरकारी पहल:
    • प्रधानमंत्री Wi-Fi एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (PM-WANI), 2020: इसका उद्देश्य विशेष रूप से ग्रामीण एवं दूरदराज के क्षेत्रों में सार्वजनिक Wi-Fi  हॉटस्पॉट स्थापित करना है।
    • भारतनेट प्रोजेक्ट, 2011: इसका लक्ष्य भारत की सभी ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करना है।
    • उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना, 2021: इसका उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है।
    • भारत 6G एलायंस, 2023: इसका लक्ष्य भारत को 6G प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास में वैश्विक नेतृत्त्वकर्त्ता के रूप में स्थापित करना है।

संदर्भ

हाल ही में, वार्षिक वैश्विक जलवायु सम्मेलन, COP-29, बाकू, अजरबैजान में संपन्न हुआ।

COP और UNFCCC 

  • COP (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज): जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) का प्राथमिक शासी निकाय।
  • UNFCCC: वर्ष 1992 में रियो डी जेनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान वैश्विक जलवायु वार्ता का मार्गदर्शन करने के लिए बनाई गई एक अंतरराष्ट्रीय संधि, जिसका उद्देश्य गंभीर मानव-जनित जलवायु व्यवधानों से बचने के लिए ग्रीनहाउस गैस सांद्रता को सुरक्षित स्तर पर स्थिर करना था।
  • सदस्यता: UNFCCC में 198 पक्षकार शामिल हैं, जिनमें 197 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं, जो जलवायु कार्रवाई के लिए लगभग सार्वभौमिक वैश्विक प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • UNFCCC, COP सम्मेलनों के इतिहास में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण समझौते हैं:
    • क्योटो प्रोटोकॉल (1997): COP-3 में एक ऐतिहासिक समझौता, जिसने विकसित देशों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी उत्सर्जन कटौती लक्ष्य निर्धारित किए।
    • कोपेनहेगन समझौता (2009): COP-15, कोपेनहेगन समझौते में, विकसित देशों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने में विकासशील देशों की मदद करने के लिए वर्ष 2020 तक वार्षिक रूप से 100 बिलियन डॉलर जलवायु वित्त प्रदान करने का संकल्प लिया।
    • पेरिस समझौता (2015): COP-21 में, राष्ट्रों ने वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे सीमित करने पर सहमति व्यक्त की, जिसका लक्ष्य इसे 1.5°C पर सीमित करना था।
    • ग्लासगो जलवायु समझौता (2021): COP-26 में, राष्ट्रों ने कोयले के चरणबद्ध उन्मूलन और जलवायु वित्त प्रतिबद्धताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया।
    • ‘लॉस एंड डैमेज’ कोष (2023): COP-28 ने जलवायु आपदाओं से प्रभावित देशों का समर्थन करने के लिए एक कोष प्रारंभ किया।

COP-29 की पृष्ठभूमि

  • जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन: संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार कोयला, तेल और गैस जलाने से वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 75 प्रतिशत से अधिक और संपूर्ण कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का लगभग 90 प्रतिशत होता है।
  • तापमान में वृद्धि: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) का अनुमान है, कि वर्ष 2024 रिकॉर्ड पर सबसे गर्म वर्ष होगा, जिसमें वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.3 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा और पिछला दशक भी इतिहास का सबसे गर्म दशक रहा है, जिसके लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
  • राजनीतिक अनिश्चितता (Political Uncertainty): डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में संभावित अमेरिकी नीतिगत परिवर्तन, जो पहले पेरिस समझौते से हट गए थे, वैश्विक जलवायु प्रतिबद्धताओं और कूटनीति को कमजोर कर सकते हैं।
  • जलवायु वित्त का पूरा न होना (Unmet Climate Finance): वर्ष 2009 से 100 बिलियन डॉलर की वार्षिक प्रतिबद्धता अभी तकअभी तक पूर्ण नहीं हुई है, जो पश्चिम एशिया और यूक्रेन में संघर्षों तथा वित्तपोषण संबंधी बहसों के कारण जटिल हो गया है।
    • इस अंतर को कम करने तथा भविष्य की प्रतिबद्धताओं पर स्पष्टता प्रदान करने के लिए एक महत्वाकांक्षी नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) की स्थापना महत्त्वपूर्ण है।

नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (New Collective Quantified Goal-NCQG)

  • NCQG उस धन को संदर्भित करता है, जो विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्त प्रदान करने के लिए विकासशील देशों को दिया जाएगा।
  • NCQG से यह अपेक्षा की जाती है कि यह वर्ष 2009 में विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को दिए जाने वाले 100 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष का अद्यतित रूप होगा, जिसे वर्ष 2020-2025 तक जुटाया जाएगा।
  • वर्ष 2015 के पेरिस COP में वर्ष 2025 तक NCQG के लिए प्रतिबद्धता जताई गई थी।

COP-29 के बारे में

  • COP-29 का तात्पर्य, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज  की 29वीं बैठक से है।
    • ये सम्मेलन जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए देशों के बीच चर्चा करने और निर्णय लेने हेतु प्रमुख मंच के रूप में कार्य करते हैं।
  • आयोजन: बाकू, अजरबैजान।
  • थीम: “सभी के लिए रहने योग्य ग्रह में निवेश करना/Investing In A Livable Planet For All”
  • COP29 का लक्ष्य:
    • ‘फाइनेंस-COP’ नाम से जाना जाने वाला यह सम्मेलन जलवायु कार्रवाई के लिए विशेषतः विकासशील देशों के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने हेतु एक नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) स्थापित करने का लक्ष्य रखता है।
    • जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा में ऊर्जा संक्रमण को गति देने के उपाय की खोज करना।
    • जलवायु भेद्यता से निपटने और 1.5°C (2.7°F) पूर्व-औद्योगिक स्तरों से नीचे वैश्विक तापमान वृद्धि को रोकने के लिए वैश्विक अनुकूलन रणनीतियाँ।
    • COP26 में शुरू की गई पहली वैश्विक स्टॉकटेक की परिणति, COP-29 का केंद्रीय विषय है।
    • सबसे अधिक प्रभावित देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए लॉस एंड डैमेज फण्ड का संचालन करना।
    • पेरिस समझौते का अनुच्छेद-6: पेरिस समझौते के अनुच्छेद-6 ने कार्बन मार्केट के लिए सिद्धांत बनाए और ऐसे तरीके बताए जिनसे देश जलवायु लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए सहयोग कर सकते हैं।
      • यद्यपि COP-26 में नियमों पर सहमति हो गई थी, फिर भी इसे कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन स्थापित करने की आवश्यकता है।

COP-29 के मुख्य परिणाम:

  • वैश्विक कार्बन बाजार: पेरिस समझौते के अनुच्छेद-6 के तहत अंतरराष्ट्रीय कार्बन बाजार मानकों पर एक समझौता हुआ है।
    • यह देशों और कंपनियों को ‘कार्बन ऑफसेट’ का व्यापार करने के लिए दो मार्ग प्रदान करता है, जो उनकी जलवायु कार्य योजनाओं में निर्धारित उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों की प्राप्ति या राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान का समर्थन करते हैं।
    • यह ढाँचा विकासशील देशों को संसाधन उपलब्ध कराने में मदद कर सकता है तथा सीमा पार सहयोग को सक्षम बनाकर प्रतिवर्ष 250 बिलियन डॉलर तक की बचत कर सकता है।
  • लॉस एंड डैमेज फण्ड को लागू करना: COP-29 ने लॉस एंड डैमेज फण्ड को क्रियान्वित करने में प्रगति की है, जो जलवायु प्रभावों के प्रति संवेदनशील देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • वैश्विक ऊर्जा भंडारण और ग्रिड संबंधी प्रतिज्ञा: यह प्रतिज्ञा, हस्ताक्षरकर्ताओं को वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर 1,500 गीगावाट ऊर्जा भंडारण करने के सामूहिक लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध करती है।
  • COP हाइड्रोजन घोषणा का शुभारंभ: यह घोषणा हस्ताक्षरकर्ता देशो को नवीकरणीय, शून्य-उत्सर्जन और कम कार्बन हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ाने और निरंतर जीवाश्म ईंधन से मौजूदा हाइड्रोजन उत्पादन के डीकार्बोनाइजेशन में तेजी लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
  • हाइड्रो-4 नेटजीरो-LAC (Hydro4 NetZero-LAC) पहल का शुभारंभ का उद्देश्य स्थायी जलविद्युत अवसंरचना का विकास और आधुनिकीकरण करना है।
  • बाकू हार्मोनिया जलवायु पहल: FAO के सहयोग से शुरू की गई, जिसका उद्देश्य अनुकूलन और शमन के माध्यम से कृषि में जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए विभिन्न प्रयासों को एकजुट करना है। 
  • वैश्विक ऊर्जा दक्षता गठबंधन, COP-29: वैश्विक ऊर्जा दक्षता गठबंधन को UAE द्वारा अजरबैजान में COP-29 में लॉन्च किया गया था, जो COP-28 के दौरान ‘UAE सर्वसम्मति-UAE Consensus’ के आधार पर स्थापित किया गया।
    • यह पहल वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देकर कार्बन उत्सर्जन को कम करने और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए UAE की प्रतिबद्धता को उजागर करती है।
  • जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक 2025 का प्रकाशन: जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (CCPI) 63 देशों और यूरोपीय संघ (जो वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 90% से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं) के जलवायु प्रदर्शन की तुलना करने के लिए एक मानकीकृत ढाँचे का उपयोग करता है,
    • जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक चार श्रेणियों के अंतर्गत निर्मित किया जाता है- GHG उत्सर्जन, नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा उपयोग और जलवायु नीति।
  • जलवायु पारदर्शिता पर बाकू घोषणा: घोषणा में संवर्द्धितत पारदर्शिता ढाँचे (ETF) के पूर्ण संचालन के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता का आह्वान किया गया है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (NDC) को मजबूत करना: देशों की प्रतिबद्धताओं को अद्यतन करने के लिए वर्ष 2025 की समय-सीमा के साथ अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (NDC) को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है

वैश्विक जलवायु शासन में भारत की उभरती भूमिका

  • प्रारंभिक सावधानी (1970 का दशक): भारत ने वैश्विक जलवायु कार्रवाई के प्रति सावधानी बरती, तथा पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया।
    • 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन में, भारत ने पर्यावरणीय चिंताओं को आर्थिक आवश्यकताओं के साथ संतुलित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
  • विकास में बाधा के रूप में पर्यावरणीय कार्रवाई की धारणा: प्रारंभ में, पर्यावरण संरक्षण को आर्थिक गतिविधियों और औद्योगीकरण में कमी की आवश्यकता के रूप में देखा गया, जो आर्थिक विकास और मानव विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता था।
  • सतत विकास को अपनाना: सतत विकास की अवधारणा ने पर्यावरण संरक्षण के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान की।
    • इस परिवर्तन ने भारत सहित विकासशील देशों को वैश्विक जलवायु कार्रवाई चर्चाओं में लाने में मदद की।
  • जलवायु न्याय के लिए सिफारिश: भारत ने लगातार साझा लेकिन विभेदित उत्तरदायित्व (CBDR) का समर्थन किया है और विकासशील देशों के लिए वित्त, प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण सहायता का आह्वान किया है।
  • अधिक सहभागिता (2000 का दशक): भारत जलवायु वार्ता में एक सक्रिय भागीदार बन गया, जिसने वर्ष 2002 में नई दिल्ली में COP-8 की मेजबानी की और घरेलू जलवायु प्रयासों को मजबूत करने के लिए वर्ष 2008 में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) प्रारंभ की।

शमन कार्य कार्यक्रम (Mitigation Work Programme-MWP) जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) द्वारा स्थापित एक प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए देशों को अपने शमन महत्वाकांक्षा और कार्यान्वयन को बढ़ाने में मदद करना है।

UNFCCC-CoP-29 के पूर्ण अधिवेशन में भारत की भूमिका 

  • शमन कार्य कार्यक्रम (MWP): भारत ने बाकू, अजरबैजान में आयोजित CoP-29 में जलवायु वित्त और शमन कार्य कार्यक्रम में शामिल होने के लिए विकसित देशों की अनिच्छा पर असंतोष व्यक्त किया है।
    • MWP के अधिदेश पर भारत का रुख यह है कि इसे खुले संवाद और विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक मंच के रूप में कार्य करना चाहिए।
    • अतः इसे गैर-दंडात्मक और गैर-निर्देशात्मक होना चाहिए।
  • यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा कर का विरोध: बाकू में COP-29 में, भारत और चीन ने यूरोपीय संघ के प्रस्तावित कार्बन सीमा कर का विरोध किया, जो उत्सर्जन को कम करते हुए यूरोपीय संघ के उत्पादों के लिए निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने के लिए स्टील, सीमेंट और एल्यूमीनियम जैसे आयातित सामग्री पर शुल्क लगाने का प्रयास करता है। उनका तर्क है, कि यह कर संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर अनुचित रूप से बोझ डालता है।
  • जलवायु कार्रवाई वित्त की जलवायु शमन से तुलना: भारत ने दृढ़ता से कहा कि वित्त से ध्यान हटाकर शमन पर बार-बार जोर देने के किसी भी प्रयास को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
  • नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG): भारत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि चूँकि अनुदान-आधारित रियायती जलवायु फाइनेंस नए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को तैयार करने और लागू करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण सक्षमकर्ता है, इसलिए कार्यान्वयन के पर्याप्त साधनों की अनुपस्थिति में कार्रवाई गंभीर रूप से प्रभावित होगी।
  • ग्लोबल स्टॉकटेक (GST): भारत GST परिणामों के अनुसरण के लिए सहमत नहीं है। पेरिस समझौते के अनुसार, GST को केवल जलवायु कार्रवाई करने के लिए पक्षों को सूचित करना चाहिए। 
  • न्यायसंगत परिवर्तन पर भारत: भारत ने दुबई के निर्णय में ‘न्यायसंगत परिवर्तन’ पर प्रचलित साझा समझ पर किसी भी तरह की पुनःवार्ता को स्वीकार करने से दृढ़तापूर्वक इनकार कर दिया। न्यायसंगत परिवर्तन को अक्सर एक घरेलू मुद्दा माना जाता है, जिसमें निष्पक्षता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय सरकारों की होती है।
    • तथापि, भारत इस बात पर जोर देता है कि वास्तविक न्यायोचित परिवर्तन वैश्विक स्तर पर शुरू होगा, जिसमें विकसित देश शमन में अग्रणी होंगे तथा विकासशील देशों को सहायता प्रदान करेंगे।”

भारत के लिए COP का महत्त्व

  • COP वार्ता भारत के लिए अपने जलवायु लक्ष्यों को आगे बढ़ाने, जलवायु वित्त तक पहुँच प्राप्त करने और स्वच्छ ऊर्जा भविष्य की ओर संक्रमण की चुनौतियों का समाधान करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • भारत की जलवायु प्रतिबद्धताएँ और NDC 
    • पहला NDC सबमिशन: भारत ने 2 अक्टूबर, 2015 को UNFCCC को अपना पहला राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (NDC) प्रस्तुत किया।
    • संशोधित NDC (2022): अगस्त 2022 में, भारत ने वर्ष 2030 के लिए जलवायु लक्ष्यों को रेखांकित करते हुए अपने NDC को संशोधित किया है।
  • जलवायु लक्ष्यों में उपलब्धियाँ
    • उत्सर्जन तीव्रता में कमी: भारत ने वर्ष 2005 के स्तर से अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को पहले ही 33-35% तक कम कर दिया है।
    • गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता: भारत ने गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा स्रोतों से अपनी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता का लगभग 40% हासिल किया है।
    • भारत ने पेरिस समझौते के तहत वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है।
  • जलवायु वित्त में भारत की भूमिका
    • कार्बन क्रेडिट बाजार: भारत भी जलवायु वित्त का लाभार्थी रहा है। वैश्विक कार्बन क्रेडिट बाजार में इसकी हिस्सेदारी लगभग 31% है।
    • CDM परियोजनाएँ: क्योटो प्रोटोकॉल के स्वच्छ विकास तंत्र (CDM) के तहत पंजीकृत परियोजनाओं की दूसरी सबसे बड़ी संख्या भारत में है।
      • क्योटो प्रोटोकॉल के CDM जीवाश्म ईंधन से ऊर्जा उत्पादन के नवीकरणीय स्रोतों की ओर भारत के स्थिर ऊर्जा संक्रमण को सुविधाजनक बनाने और तीव्र  करने के लिए महत्त्वपूर्ण साधन हैं।
      • भारत में CDM पहलों में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ लगभग 50 प्रतिशत का योगदान देती हैं।
    • LiFE पहल: भारत LiFE पहल को बढ़ावा देता है, जो वैश्विक संधारणीय उपभोग पैटर्न और पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को प्रोत्साहित करता है।
  • निवेश और तकनीकी उन्नयन की आवश्यकता 
    • जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता: अपनी ऊर्जा की 78% आवश्यकतओं को जीवाश्म ईंधन, मुख्य रूप से कोयले से पूरा करने के साथ, भारत को अक्षय ऊर्जा परिवर्तन करने में महत्त्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • लॉस एंड डैमेज फण्ड: लॉस एंड डैमेज फण्ड के तहत, भारत को महत्त्वपूर्ण संभावित वित्तीय सहायता प्राप्त होगी, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में बाढ़, चक्रवात आदि के रूप में कई चरम घटनाओं का सामना करना पड़ा है, जिससे स्थानीय समुदाय प्रभावित हुए हैं।


अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) न्यायोचित परिवर्तन को इस प्रकार परिभाषित करता है: “अर्थव्यवस्था को इस प्रकार हरित रूप प्रदान करना, जो सभी संबंधित लोगों के लिए यथासंभव निष्पक्ष और समावेशी हो, अच्छे कार्य अवसर सृजित हो और किसी को भी पीछे न छोड़ा जाए।”

COP-29 के बाद की चुनौतियाँ:

  • नए जलवायु वित्त लक्ष्य (NCQG) पर गतिरोध: विकसित देशों ने जलवायु वित्त के लिए नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) के रूप में वर्ष 2035 तक 250 बिलियन डॉलर से अधिक की पेशकश नहीं की, जबकि उन्होंने स्वीकार किया कि विकासशील देशों की मदद के लिए वर्ष 2030 तक कम से कम 700 बिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी।
    • इसे कई विकासशील देशों ने अस्वीकार्य माना, इससे देशों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (NDC) प्रभावित हो सकता है।
  • लॉस एंड डैमेज फण्ड प्रबंधन: लॉस एंड डैमेज फण्ड का संचालन अभी भी एक जटिल मुद्दा बना हुआ है।
    • जलवायु प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील देशों को निधियों का समान वितरण सुनिश्चित करने तथा इन निधियों का प्रभावी प्रबंधन करने के लिए स्पष्ट शासन संरचना, निगरानी प्रणाली तथा अंतरराष्ट्रीय निकायों के बीच समन्वय की आवश्यकता होगी।
  • समझौतों का क्रियान्वयन: हालाँकि COP-29 महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित कर सकता है, लेकिन वास्तविक चुनौती समझौतों को कार्रवाई में बदलने में है।
    • जलवायु वित्त प्रतिज्ञाओं और उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों जैसी कई पिछली प्रतिबद्धताओं में विलंब हुआ  है या वे पूर्ण ही नहीं हुई हैं।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति और वैश्विक सहयोग: जलवायु नीतियों को प्रायः राष्ट्रीय हितों, आर्थिक बाधाओं या राजनीतिक विरोध के कारण प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है।
  • निगरानी और जवाबदेही: जलवायु कार्यों के कार्यान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना मुश्किल होगा।
    • उत्सर्जन में कमी, जलवायु वित्त और अनुकूलन परियोजनाओं पर प्रगति को ट्रैक करने के लिए मजबूत तंत्र की आवश्यकता है ताकि ‘ग्रीनवाशिंग’ या प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विलंब से बचा जा सके।
  • शमन और अनुकूलन प्रतिबद्धताएँ: राष्ट्रों ने शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य का वादा किया है, परंतु विशेष रूप से विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच कार्यान्वयन और महत्वाकांक्षा में असमानताएँ बनी हुई हैं।
  • भू-राजनीतिक संघर्ष (Geopolitical Conflicts): यूक्रेन में युद्ध ने इसी तरह यूरोप का ध्यान ऊर्जा सुरक्षा की ओर आकर्षित किया है।
  • न्यायसंगत संक्रमण सुनिश्चित करना (Ensuring Just Transition): जैसे-जैसे दुनिया कम कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रही है, उच्च कार्बन उद्योगों पर निर्भर श्रमिकों और समुदायों के लिए न्यायसंगत संक्रमण सुनिश्चित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती होगी।

आगे की राह 

  • वैश्विक सहयोग को मजबूत करना: भू-राजनीतिक तनावों को दूर करने के लिए, देशों को जलवायु परिवर्तन पर सहयोगात्मक कार्रवाई को प्राथमिकता देनी चाहिए।
    • उत्सर्जन में कमी, नवीकरणीय ऊर्जा और वित्त जुटाने पर समझौतों को सुगम बनाने के लिए कूटनीतिक प्रयासों को बढ़ाने की आवश्यकता है​
  • उन्नत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: COP-29 में विकासशील देशों को स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए।
    • वैश्विक ऊर्जा संक्रमण सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसी पहलों को बढ़ाया जाना चाहिए।
  • लॉस एंड डैमेज फण्ड का संचालन: लॉस एंड डैमेज फण्ड को संचालित करने के लिए, वित्तपोषण मानदंड, स्पष्ट आवंटन तंत्र के लिए मानदंड विकसित किए जाने चाहिए।

निष्कर्ष

  • COP-29 ने अंतरराष्ट्रीय कार्बन बाजारों के लिए मानक निर्धारित करने, लॉस एंड डैमेज फण्ड को आगे बढ़ाने, तथा जलवायु वित्त में वृद्धि करने का संकल्प लेने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
  • हालाँकि, इन समझौतों को लागू करने, पर्याप्त वित्तपोषण सुनिश्चित करने और दीर्घकालिक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वैश्विक सहयोग बनाए रखने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

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