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Nov 27 2024

मौजूदा सदस्य के निधन पर सदन की कार्यवाही स्थगित करने का निर्णय

संसद के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि किसी मौजूदा सदस्य के निधन पर शोक व्यक्त करने के बाद सदन की कार्यवाही कुछ समय के लिए स्थगित करने की परंपरा रही है।

  • इससे पहले, किसी मौजूदा सदस्य की मृत्यु की स्थिति में सदन को पूरे दिन के लिए स्थगित करने की परंपरा थी।

शोक संदेश संबंधी विवरण के बारे में 

  • यह सदन में किसी सदस्य, पूर्व सदस्य, मंत्री आदि की मृत्यु के बारे में समाचार मिलने के बाद यथाशीघ्र उपलब्ध अवसर पर बनाया जाता है, चाहे वह समाचार प्रेस रिपोर्ट से प्राप्त हो या किसी वर्तमान सदस्य से या मृतक के संबंधी से अथवा किसी अन्य विश्वसनीय स्रोत से।

PAN  2.0 परियोजना

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्थायी खाता संख्या (PAN) के उन्नत संस्करण PAN 2.0 परियोजना को मंजूरी दे दी है।

उद्देश्य: करदाता पंजीकरण सेवाओं को आधुनिक बनाना एवं PAN को एक सामान्य व्यवसाय पहचानकर्ता बनाना।

PAN 2.0 परियोजना की मुख्य विशेषताएँ

  • QR कोड-सक्षम PAN कार्ड: उन्नत PAN कार्ड में बेहतर सुरक्षा एवं कार्यक्षमता के लिए एक QR कोड की सुविधा होगी।
  • सामान्य व्यवसाय पहचानकर्ता: PAN व्यवसायों के लिए एक एकीकृत पहचानकर्ता के रूप में कार्य करेगा, जिससे सरकारी प्रणालियों में कई पहचान संख्याओं की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।
  • सेवा वितरण परिवर्तन: PAN 2.0 व्यावसायिक प्रक्रियाओं को पुनर्निर्मित करेगा एवं करदाता पंजीकरण सेवाओं के लिए डिजिटल ढाँचे को उन्नत करेगा।
  • व्यापक कवरेज एवं अपनाना: अब तक जारी किए गए 78 करोड़ PAN कार्डों में से 98% व्यक्तियों के हैं, जो परियोजना की व्यापक संभावित पहुँच एवं प्रभाव को दर्शाता है।
  • लागत-मुक्त अपग्रेड: नए QR कोड-सक्षम PAN कार्ड मौजूदा PAN धारकों को बिना किसी लागत के जारी किए जाएँगे, जिससे व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा मिलेगा।

नई चेतना 3.0 (Nayi Chetna 3.0)

हाल ही में केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने नई चेतना: पहल बदलाव की (Nayi Chetna – Pahal Badlaav Ki) का तीसरा संस्करण लॉन्च किया। 

नई चेतना: पहल बदलाव (Nayi Chetna – Pahal Badlaav Ki) के बारे में

  • यह लैंगिक आधारित हिंसा के विरुद्ध एक राष्ट्रीय अभियान है। 
  • आयोजक: दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (Deendayal Antyodaya Yojana – National Rural Livelihoods Mission- DAY-NRLM)।
  • दायरा: सभी भारतीय राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश।
  • फोकस: DAY-NRLM के तहत व्यापक स्व-सहायता समूह (Self-Help Group- SHG) नेटवर्क के माध्यम से जमीनी स्तर पर जुड़ाव।
  • सहयोगात्मक प्रयास
    • संपूर्ण सरकारी दृष्टिकोण: इसमें 9 मंत्रालयों एवं विभागों की भागीदारी शामिल है, जिनमें शामिल हैं:
      • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय।
      • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय।
      • गृह मंत्रालय।
      • पंचायती राज मंत्रालय, अन्य।
  • स्लोगन: ‘एक साथ, एक आवाज, हिंसा के खिलाफ’ (Together, One Voice, Against Violence)।

राजा राजा चोल प्रथम

हाल ही में प्रसिद्ध चोल सम्राट राजा राजा चोल प्रथम की 1039वीं जयंती मनाई गई।

  • यह उत्सव प्रत्येक वर्ष तमिलनाडु के तंजावुर में साध्य विझा (Sadhaya Vizha) के दौरान मनाया जाता है।

साध्य विझा: एक भव्य उत्सव

  • तमिलनाडु के तंजावुर में तमिल महीने अइप्पासी (Aippasi) (मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर) के दौरान प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
  • राजा राज चोल की विरासत
    • चोल साम्राज्य को श्रीलंका एवं मालदीव तक विस्तारित करने के लिए जाना जाता है।
    • उनके जीवन ने कल्कि कृष्णमूर्ति के उपन्यास पोन्नियिन सेलवन एवं उसके फिल्म रूपांतरण को प्रेरित किया।
    • सध्या विझा तमिल संस्कृति एवं विरासत पर उनके स्थायी प्रभाव को दर्शाता है।

राजा राज चोल प्रथम के बारे में

  • राजा राजा चोल प्रथम (947-1014 ई.), जिनका जन्म अरुल्मोझी वर्मन के रूप में हुआ, एक प्रसिद्ध तमिल सम्राट थे।
  • अपनी सैन्य शक्ति एवं प्रशासनिक प्रतिभा के लिए जाने जाते हैं।
  • उनके शासनकाल (985-1014 ई.) में सांस्कृतिक, स्थापत्य एवं क्षेत्रीय प्रगति हुई।
  • उन्हें कई महत्त्वपूर्ण उपाधियाँ दी गईं
    • मुम्मीदी चोल (Mummidi Chola): तीन मुकुटों पर अपने शासन का प्रतिनिधित्व करता है।
    • जयनकोंडा (Jayankonda): जिसका अर्थ है ‘विजयी राजा।’
    • शिवपादशेखर (Sivapadasekara): भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति दिखाते हुए।
  • सांस्कृतिक एवं धार्मिक समारोह
    • उत्सव बृहदेश्वर मंदिर में होता है, जो सम्राट द्वारा निर्मित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
    • प्रमुख अनुष्ठानों में शामिल हैं
      • पवित्र अभिषेकम्: देवता, भगवान पेरुवुदैयार (शिव) के लिए पवित्र स्नान।
      • पेरुंडीपा वाजिपाडु: दीप-प्रस्ताव के माध्यम से श्रद्धा।
      • स्वामी पुरप्पाडु: मंदिर के देवता का जुलूस।
    • भक्त शास्त्रीय नृत्य, ओधुवारों द्वारा भजन गायन एवं हिंदू देवताओं के रूप में सजे कलाकारों के प्रदर्शन को देखने के लिए इकट्ठा होते हैं।
  • बृहदेश्वर मंदिर का ऐतिहासिक महत्त्व
    • राजा राजा चोल प्रथम द्वारा 1003 एवं 1010 ई. के बीच निर्मित।
    • राजराजेश्वरम् के नाम से जाना जाने वाला यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है एवं महान जीवित चोल मंदिरों का हिस्सा है।
    • चोल साम्राज्य की वास्तुकला, सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासत का प्रतीक है।
  • स्थापत्य भव्यता
    • पूरी तरह से ग्रेनाइट से निर्मित, जो उस युग की उल्लेखनीय इंजीनियरिंग तकनीकों को प्रदर्शित करता है।
    • इसमें एक विशाल विमान (मंदिर टॉवर) है, जो 60 मीटर से अधिक ऊँचा है।
    • मंदिर के मुख्य देवता भगवान शिव हैं, जिन्हें पेरुवुडैयार के नाम से जाना जाता है।

संदर्भ

यद्यपि वित्तीय वर्ष 2023-24 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ऋण माफ करने में 18.2 प्रतिशत की कमी आई है, तथापि मार्च में समाप्त वर्ष में 1/5वें हिस्से से अधिक बैंकों द्वारा माफ किए गए ऋणों की राशि में वृद्धि देखी गई।

‘ऋण को बट्टे खाते में डालने’ संबंधी रुझान

  • बट्टे खाते में डाले गए ऋणों में वृद्धि वाले बैंक: वित्त वर्ष 2024 में सबसे अधिक ऋण माफ करने वाले शीर्ष दस बैंकों के आधिकारिक आँकड़ों से पता चला है कि शीर्ष दस बैंकों में से छह बैंक शामिल हैं।
    • पंजाब नेशनल बैंक, केनरा बैंक, एचडीएफसी बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन बैंक और एक्सिस बैंक ने वर्ष के दौरान ऋण माफी में वृद्धि दर्ज की।
  • बट्टे खाते में कुल गिरावट: वित्त वर्ष 2024 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (Scheduled Commercial Banks- SCBs) द्वारा ऋण बट्टे खाते में 18.2% की गिरावट आई, जो कि वित्त वर्ष 2023 में ₹2.08 लाख करोड़ की तुलना में ₹1.70 लाख करोड़ थी।
  • पाँच वर्षीय बट्टे खाता संबंधी आँकड़े: वित्त वर्ष 2020 से वित्त वर्ष 2024 के दौरान कुल बट्टा खाता आँकड़ा 9.90 लाख करोड़ रुपये रहा, जो वित्त वर्ष 2023 में बढ़ोतरी को छोड़कर सामान्य गिरावट दर्शाता है।
  • 31 मार्च, 2024 तक सकल NPA: ₹4.81 लाख करोड़, मार्च 2023 में ₹5.72 लाख करोड़ से कम।
    • NPA में शीर्ष योगदानकर्ता भारतीय स्टेट बैंक (₹84,276 करोड़) एवं पंजाब नेशनल बैंक (₹56,343 करोड़) हैं।
  • रिकवरी दरों में गिरावट: वित्त वर्ष 2024 में वसूली तीन वर्ष के निचले स्तर ₹1.23 लाख करोड़ (वित्त वर्ष 2023 की तुलना में -22.8%) पर थी।
    • हालाँकि वित्त वर्ष 2024 में समग्र ऋण बट्टे खाते में डालने और NPA में कमी आई, वसूली दरों में काफी गिरावट आई, जिससे खराब ऋणों की वसूली में दक्षता को लेकर चिंताएँ बढ़ गईं।

लोन राइट ऑफ (Loan Write-Off) या ‘ऋण को बट्टे खाते में डालना’ के बारे में

  • ‘लोन राइट-ऑफ’ या ‘ऋण को बट्टे खाते में डालना’ बैंकों की पुस्तकों से खराब ऋणों को हटाने की प्रक्रिया है, जिसके लिए पर्याप्त प्रावधान किए जाने के बाद उन्हें हटाया जाता है।
  • निहितार्थ: किसी ऋण को बट्टे खाते में डालने का अर्थ है कि उसे अब बैंक की बैलेंस शीट पर परिसंपत्ति के रूप में नहीं गिना जाएगा।
  • महत्व: ऋणों को बट्टे खाते में डालकर, बैंक अपनी पुस्तकों में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) के स्तर को कम कर सकते हैं।
  • उधारकर्ता दायित्व: ऋण बट्टे खाते में डालने से उधारकर्ता अपने पुनर्भुगतान दायित्वों से मुक्त नहीं होते हैं, न ही इसका मतलब यह है कि बैंक उनसे वसूली करना बंद कर देते हैं।
  • उद्देश्य: बैंकों की बैलेंस शीट को सही करने एवं उनकी वास्तविक वित्तीय स्थिति को प्रतिबिंबित करने के लिए ‘लोन राइट-ऑफ’ किया जाता है।
  • RBI के दिशा-निर्देश: बैंक चार वर्ष के बाद पूरी तरह से प्रावधानित ऋण को बट्टे खाते में डाल देते हैं।

गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets- NPA) के बारे में

  • गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPAs) किसी बैंक के ऋण या अग्रिम को संदर्भित करती हैं, जो डिफाॅल्ट या बकाया हैं।
  • NPA वर्गीकरण के लिए मानदंड: एक ऋण तब बकाया होता है, जब मूलधन या ब्याज का भुगतान देर से होता है या चूक जाता है। 
    • यह तब NPA बन जाता है, जब ब्याज एवं/या मूलधन की किस्त 90 दिनों से अधिक समय तक बकाया रहती है।

गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ का वर्गीकरण

  • अवमानक संपत्तियाँ (Sub-Standard Assets): ऐसी संपत्तियाँ, जिन्हें 12 महीने से कम या बराबर अवधि के लिए NPA के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • संदेहास्पद संपत्तियाँ (Doubtful Assets): ऐसी संपत्तियाँ, जो 12 महीने से अधिक अवधि के लिए गैर-निष्पादित रही हैं।
  • हानि वाली संपत्तियाँ (Loss Assets): ऐसी संपत्तियाँ, जिन्हें वसूला नहीं जा सकता, जहाँ वसूली की बहुत कम या कोई उम्मीद नहीं है और जिन्हें पूरी तरह से बट्टे खाते में डालने की आवश्यकता है।

परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियाँ (Asset Reconstruction Companies- ARCs) 

  • ARCs विशेष वित्तीय संस्थान हैं, जो बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों से गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPAs) खरीदते हैं।
  • NPA समाधान में भूमिका: ARCs बैंकों को खराब ऋण प्राप्त करके एवं विभिन्न रणनीतियों के माध्यम से धन की वसूली का प्रयास करके अपनी बैलेंस शीट को संरक्षित करने में मदद करते हैं।
  • वसूली के तरीके: ARCs वसूली को अधिकतम करने के लिए ऋण पुनर्गठन, परिसंपत्ति बिक्री, कानूनी कार्रवाई एवं ऋण वसूली जैसी रणनीतियों को नियोजित करते हैं।
  • विनियमन: ARCs को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा सरफेसी अधिनियम (Sarfaesi Act) अर्थात् ‘सिक्योरिटाइजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट’ (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act), 2002  के तहत विनियमित किया जाता है।

‘एवरग्रीनिंग ऑफ लोन’ 

  • ‘एवरग्रीनिंग ऑफ लोन’ एक ऐसी प्रथा है, जहाँ बैंक उन उधारकर्ताओं को नए ऋण या अतिरिक्त ऋण देते हैं, जो अपने मौजूदा ऋण को चुकाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसा ऋणों को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPAs) या बुरे ऋण के रूप में वर्गीकृत होने से रोकने के लिए किया जाता है।
  • हालाँकि यह समस्या को अस्थायी रूप से छुपा सकता है, लेकिन यह गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकता है जैसे:-
    • बैंकों के वास्तविक वित्तीय स्थिति को छिपाना: यह बैंक की वित्तीय स्थिति के बारे में गलत धारणा बना सकता है।
    • संपत्ति की गुणवत्ता में गिरावट: इससे डिफॉल्ट का जोखिम बढ़ सकता है एवं बैंक की बैलेंस शीट को और नुकसान हो सकता है।
    • वित्तीय संकेतकों को विकृत करना: इससे गलत वित्तीय रिपोर्टिंग एवं निर्णय लेने में समस्या हो सकती है।
  • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने इस प्रथा पर अंकुश लगाने एवं बेहतर ऋण प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं।

संदर्भ

केंद्रीय कैबिनेट ने नीति आयोग की प्रमुख पहल अटल इनोवेशन मिशन (Atal Innovation Mission- AIM) को कार्य के बढ़े हुए दायरे एवं 2,750 करोड़ रुपये के बजट के साथ 31 मार्च, 2028 तक जारी रखने की मंजूरी दे दी।

अटल इनोवेशन मिशन 2.0 (AIM 2.0) के बारे में

  • AIM 2.0 अटल इनोवेशन मिशन का दूसरा चरण है, जिसका उद्देश्य भारत के नवाचार एवं उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र को और मजबूत करना है।
  • समग्र लक्ष्य: एक अधिक समावेशी, कुशल एवं प्रभावशाली नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र बनाना, जो आर्थिक विकास तथा सामाजिक विकास को संचालित करता हो।

AIM 2.0 के मुख्य उद्देश्य

  • ‘नवाचार का भाषा समावेशी कार्यक्रम’ (Language Inclusive Program of Innovation- LIPI): यह पहल भारत की 22 अनुसूचित भाषाओं में नवाचार को बढ़ावा देगी, जिससे गैर-अंग्रेजी भाषी नवप्रवर्तकों, उद्यमियों एवं निवेशकों के लिए बाधाएँ कम होंगी।
  • सीमांत कार्यक्रम: वंचित क्षेत्रों में नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना।
  • मानव पूँजी विकास: पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करने के लिए पेशेवरों को प्रशिक्षित करना।
  • डीपटेक रिएक्टर: डीप-टेक स्टार्टअप को बढ़ावा देना।
  • राज्य नवप्रवर्तन मिशन: राज्यों को अपने स्वयं के पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में सहायता करना।
  • अंतरराष्ट्रीय नवाचार सहयोग: वैश्विक भागीदारी को बढ़ावा देना।
  • औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना: उद्योग-स्टार्टअप सहयोग को सुविधाजनक बनाना।
  • ‘अटल सेक्टोरल इनोवेशन लॉन्चपैड्स’ (Atal Sectoral Innovation Launchpads- ASIL): सरकारी-स्टार्टअप साझेदारी के लिए मंच तैयार करना।

अटल इनोवेशन मिशन (AIM) के बारे में

  • लॉन्च: वर्ष 2016
  • उद्देश्य: विभिन्न स्तरों-स्कूलों, विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों, MSMEs एवं उद्योगों में नवाचार तथा उद्यमिता की संस्कृति का निर्माण तथा प्रचार करना।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: नीति आयोग।

AIM की प्रमुख पहल

  • अटल टिंकरिंग लैब्स (Atal Tinkering Labs- ATLs): रोबोटिक्स किट, 3D प्रिंटर एवं AI/ML टूल्स जैसे उपकरणों के साथ जिज्ञासा, रचनात्मकता तथा डिजाइन सोच को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों में स्थापित करना। इसका उद्देश्य छात्रों में समस्या समाधान की मानसिकता विकसित करना है।
  • अटल इन्क्यूबेशन सेंटर (Atal Incubation Centers-AICs): यह विश्व स्तरीय स्टार्टअप को बढ़ावा देने एवं इन्क्यूबेशन इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में स्टार्टअप को बुनियादी ढाँचा, सलाह तथा फंडिंग प्रदान करता है।
  • अटल न्यू इंडिया चुनौतियाँ (Atal New India Challenges- ANICs): उद्योगों, क्षेत्रों एवं सरकारी मंत्रालयों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने वाले उत्पाद नवाचारों को प्रोत्साहित करने के लिए व्यावहारिक, वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों के साथ नवाचार को जोड़ना।
  • मेंटर इंडिया अभियान: राष्ट्रव्यापी मेंटरशिप नेटवर्क के माध्यम से AIM पहल का मार्गदर्शन एवं समर्थन करने के लिए सार्वजनिक/निजी क्षेत्र के पेशेवरों तथा संस्थानों के साथ सहयोग।
  • अटल सामुदायिक नवप्रवर्तन केंद्र (Atal Community Innovation Centers- ACICs): अल्पसेवित एवं असेवित क्षेत्रों (जैसे- टियर 2 एवं टियर 3 शहरों) में समुदाय-केंद्रित नवाचार को बढ़ावा देना।
    • क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने के लिए स्थानीय उद्यमियों एवं नवप्रवर्तकों को सशक्त बनाना।
  • लघु उद्यमों के लिए अटल रिसर्च एंड इनोवेशन (Atal Research and Innovation for Small Enterprises- ARISE): यह MSMEs के बीच नवाचार एवं अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए उद्योगों, सरकार तथा शैक्षणिक संस्थानों के बीच साझेदारी की सुविधा प्रदान करता है।
  • निगरानी एवं प्रबंधन: पारदर्शिता एवं प्रभावशीलता सुनिश्चित करते हुए सभी AIM पहलों की वास्तविक समय MIS सिस्टम तथा गतिशील डैशबोर्ड का उपयोग करके व्यवस्थित रूप से निगरानी की जाती है।

AIM का महत्त्व

  • AIM टियर 2/3 शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचकर समावेशिता को बढ़ावा देता है, जिससे नवाचार के अवसरों तक समान पहुँच सुनिश्चित होती है।
  • यह उद्यमशीलता विकास को बढ़ावा देने एवं सामाजिक चुनौतियों का समाधान करते हुए एक नवाचार संचालित अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करता है।

संदर्भ

‘मेजर एटमाॅस्फियरिक चेरेनकोव एक्सपेरिमेंट’ (MACE) टेलीस्कोप एक अत्याधुनिक ग्राउंड आधारित गामा-रे टेलीस्कोप है, जिसका उद्घाटन हानले, लद्दाख में किया गया।

MACE की मुख्य विशेषताएँ

  • दुनिया का सबसे ऊँचा ‘इमेजिंग चेरेनकोव टेलीस्कोप’: समुद्र तल से लगभग 4.3 किमी. ऊपर स्थित, इसमें 21 मीटर चौड़ा डिश एंटीना है, जो इसे एशिया का सबसे बड़ा इमेजिंग चेरेनकोव टेलीस्कोप एवं विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा टेलीस्कोप है।
  • उन्नत निर्माण एवं प्रौद्योगिकी
    • इसमें 356 हनीकाॅम्ब-स्ट्रक्चर्ड मिरर पैनल हैं, जिनमें से प्रत्येक पर्यावरण संरक्षण के लिए सिलिकॉन डाइऑक्साइड से लेपित है।
    • कमजोर संकेतों को बढ़ाने के लिए 1,088 फोटोमल्टीप्लायर ट्यूबों से सुसज्जित उच्च-रिजॉल्यूशन वाला कैमरा।
    • तुंगता युक्त-दिगंश प्रणाली (Altitude-Azimuth System) के साथ 180 टन की संरचना पर स्थापित, यह विमान व्यापक आकाश कवरेज के लिए क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दोनों तलों पर गति करने में सक्षम है।
  • गामा किरणों का ग्राउंड आधारित पता लगाना: जब ब्रह्मांडीय गामा किरणें पृथ्वी के वायुमंडल के साथ संपर्क करती हैं तो उत्पन्न चेरेनकोव विकिरण का उपयोग करती है।
    • उच्च-ऊर्जा गामा किरणों (>20 बिलियन इलेक्ट्रॉन वोल्ट) का अध्ययन करने के लिए अप्रत्यक्ष तकनीकों का उपयोग करते हुए, एक इमेजिंग एटमाॅस्फियरिक चेरेनकोव टेलीस्कोप (Imaging Atmospheric Cherenkov Telescope- IACT) के रूप में कार्य करता है।

गामा किरणों के बारे में

  • गामा किरण एक उच्च ऊर्जा विद्युत चुंबकीय विकिरण है, जिसमें सबसे कम तरंगदैर्ध्य, कोई आवेश एवं कोई स्थिर द्रव्यमान नहीं है।
  • वे परमाणु नाभिक के क्षय या अंतरिक्ष में उच्च-ऊर्जा प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित होते हैं।

ब्रह्मांडीय गामा किरणों के स्रोत

  • ब्लैक होल: ब्लैक होल के चारों ओर अभिवृद्धि डिस्क से गामा किरणें निकलती हैं, क्योंकि पदार्थ अत्यधिक उच्च तापमान तक गर्म होकर त्वरित हो जाता है।
  • न्यूट्रॉन तारे एवं पल्सर: ये तेजी से घूमने वाले, अत्यधिक चुंबकीय तारे शक्तिशाली किरणों में गामा किरणें उत्सर्जित करते हैं।
  • सुपरनोवा विस्फोट: विशाल तारों के पतन से भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है, जिसमें गामा किरणें भी शामिल हैं।
  • गामा किरण विस्फोट (Gamma-ray bursts- GRBs): ये ब्रह्मांड में सबसे अधिक ऊर्जावान विस्फोट हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि ये बड़े तारों के पतन या न्यूट्रॉन तारों के विलय के कारण होते हैं।

  • स्वदेशी विकास: भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Centre- BARC), टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (Tata Institute of Fundamental Research- TIFR), एवं इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (Indian Institute of Astrophysics- IIA) जैसे संस्थानों द्वारा भारत में डिजाइन तथा विकसित किया गया।

अनुप्रयोग एवं अनुसंधान उद्देश्य

  • उच्च ऊर्जा गामा किरणों का अध्ययन: पल्सर, सुपरनोवा, ब्लैक होल एवं गामा किरण विस्फोट जैसी विदेशी ब्रह्मांडीय घटनाओं से गामा किरणों की जाँच करता है।
    • इसका लक्ष्य आकाशगंगा से परे गामा किरणों का विश्लेषण करना है, जिसमें लेजर एवं गामा रे पल्सर द्वारा उत्पन्न उत्सर्जन भी शामिल है।
  • डार्क मैटर अनुसंधान: डार्क मैटर के संभावित घटक, कमजोर रूप से परस्पर क्रिया करने वाले बड़े कणों (Weakly Interacting Massive Particles- WIMPs) के साक्ष्य की तलाश करता है।
    • आकाशगंगा समूहों में या आकाशगंगा के केंद्र के पास WIMP विनाश से उत्पन्न गामा किरणों का पता लगाने में मदद करता है।
  • उच्च ऊर्जा खगोल भौतिकी में योगदान: कण भौतिकी, गामा-किरण खगोल विज्ञान एवं ब्रह्मांड विज्ञान में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
    • ब्रह्मांड की मूलभूत संरचना के बारे में मौजूदा सिद्धांतों या प्रचलित परिकल्पनाओं को चुनौती देने का समर्थन करता है।
  • खगोल विज्ञान में तकनीकी प्रगति: विश्व स्तर पर जमीन आधारित गामा किरण वेधशालाओं के लिए एक मिसाल कायम करती है एवं भारतीय खगोल भौतिकी में भविष्य के सहयोगात्मक अनुसंधान तथा प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है।

वेधशाला के लिए आदर्श स्थान के रूप में लद्दाख में हानले

  • स्पष्ट आकाशीय वातावरण: हानले में वर्ष भर स्वच्छ आसमान वाली रातों की संख्या अधिक रहती हैं, जिससे वायुमंडलीय हस्तक्षेप न्यूनतम रहता है।
  • उच्च ऊँचाई: उच्च ऊँचाई वायुमंडलीय अशांति को कम करती है, जिससे तेज एवं स्पष्ट खगोलीय अवलोकन होते हैं।
  • शुष्क जलवायु: शुष्क जलवायु वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा को कम कर देती है, जो आकाशीय पिंडों को अस्पष्ट कर सकती है।
  • अंधेरायुक्त आसमान: दूरस्थ स्थान और न्यूनतम प्रकाश प्रदूषण, धुँधले आकाशीय पिंडों के अवलोकन के लिए आदर्श परिस्थितियाँ उत्पन्न करते हैं।
  • स्थिर वातावरण: स्थिर वायुमंडलीय स्थितियाँ खगोलीय छवियों पर धुँधले प्रभाव को कम करती हैं।

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने 42वें संशोधन की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसके द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़े गए थे।

मामले के मुख्य बिंदु

  • वर्ष 2020 में दायर याचिकाओं में 42वें संविधान संशोधन (1976) के माध्यम से प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को शामिल करने का विरोध किया गया।
  • उन्होंने तर्क दिया कि:
    • संविधान सभा ने जानबूझकर ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को हटा दिया।
    • ‘समाजवादी’ शब्द ने सरकार की आर्थिक नीति विकल्पों को सीमित कर दिया, जिससे लोगों की लोकतांत्रिक इच्छाशक्ति कमजोर हो गई।
  • याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह संशोधन (26 नवंबर, 1949 से प्रभावी) संविधान के साथ धोखाधड़ी है।

प्रस्तावना में संशोधन 

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है, लेकिन कुछ सीमाओं के साथ:
    • केशवानंद भारती केस (1973): इस ऐतिहासिक फैसले ने संविधान के ‘मूल ढाँचे’ के सिद्धांत को स्थापित किया। प्रस्तावना को इस मूल ढाँचे का अभिन्न अंग माना जाता है। 
    • संशोधन की सीमाएँ: हालाँकि प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है, लेकिन इसे इस तरह से संशोधित नहीं किया जा सकता है, जिससे इसकी मूल संरचना या इसमें निहित मौलिक मूल्यों में बदलाव आए।
  • उदाहरण: वर्ष 1976 के 42वें संशोधन अधिनियम ने प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्द जोड़े। इस संशोधन को सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा क्योंकि इसने संविधान के मूल ढाँचे में कोई बदलाव नहीं किया।
  • संक्षेप में, प्रस्तावना को बदलते समय को ध्यान में रखते हुए संशोधित किया जा सकता है, लेकिन इसके मूल सिद्धांत और मूल्य बरकरार रहने चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की अगुवाई वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने ‘धर्मनिरपेक्ष’ की परिभाषा ऐसे गणराज्य के रूप में दी, जो सभी धर्मों के लिए समान सम्मान को कायम रखता है।
  • ‘समाजवादी’ की व्याख्या ऐसे गणराज्य के रूप में की गई, जो शोषण के सभी रूपों- सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक शोषण को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • न्यायालय ने याचिकाओं को खारिज कर दिया, तर्कों को त्रुटिपूर्ण और विस्तृत निर्णय के अयोग्य मानते हुए।
  • संशोधन के 44 वर्ष बाद दायर की गई याचिकाओं ने उनके पीछे के उद्देश्यों पर सवाल उठाए।
  • न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि प्रस्तावना संविधान का एक अविभाज्य हिस्सा है।
  • इसने फिर से पुष्टि की कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने के लिए अनुच्छेद-368 के तहत निर्विवाद अधिकार है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में प्रमुख शब्द

घटक

व्याख्या

स्रोत

सार्वभौम (Sovereign) भारत पूरी तरह से स्वतंत्र राज्य है।

किसी अन्य देश का प्रभुत्व या निर्भरता नहीं।

आंतरिक और बाहरी मामलों का प्रबंधन करने के लिए स्वतंत्र क्षेत्र प्राप्त कर सकता है या सौंप सकता है।

स्वतंत्रता के बाद एक गुटनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में भारत की अद्वितीय स्थिति।
लोकतांत्रिक (Democratic) जनता के प्रति जवाबदेह सरकार की स्थापना करता है।

शासितों की सहमति के सिद्धांत पर काम करता है।

एक प्रतिनिधि संसदीय लोकतंत्र की विशेषता है, जहाँ कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है।

सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, आवधिक चुनाव, विधि का शासन, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और भेदभाव की अनुपस्थिति के माध्यम से स्पष्ट है।

पश्चिमी उदार लोकतंत्र और ब्रिटिश संसदीय प्रणाली।
गणतंत्र जनता को राजनीतिक संप्रभुता प्रदान करता है। वंशानुगत राजतंत्र या वंश आधारित प्राधिकरण के विपरीत, यह राज्य के निर्वाचित प्रमुख को दर्शाता है। अमेरिकी और फ्राँसीसी रिपब्लिकन आदर्श।
न्याय सामाजिक न्याय: सामाजिक भेदभाव (जैसे, जाति, धर्म) के बिना समान व्यवहार।

आर्थिक न्याय: धन, आय और संपत्ति में असमानताओं को कम करना।

राजनीतिक न्याय: समान राजनीतिक अधिकार, कार्यालयों तक पहुँच और शासन में भागीदारी।

वितरणीय न्याय सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक तथा आर्थिक न्याय को जोड़ता है।

रूसी क्रांति।
स्वतंत्रता समानता बंधुत्व  परस्पर जुड़ी हुई अवधारणाएँ ट्रिनिटी के संघ का निर्माण करती हैं। एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में नहीं रह सकतीं; वे एक दूसरे का समर्थन करती हैं और एक दूसरे को बढ़ाती हैं। फ्राँसीसी क्रांति (स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व)।
स्वतंत्रता यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तिगत गतिविधियों और स्वतंत्रता पर कोई अनुचित प्रतिबंध न हो। फ्राँसीसी  क्रांति
समानता किसी भी समूह के लिए विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति सुनिश्चित करता है। सभी के लिए स्थिति और अवसर की समानता की गारंटी देता है। फ्राँसीसी  क्रांति
बंधुत्व  सभी नागरिकों के बीच भाईचारे और एकता की भावना को बढ़ावा देता है। फ्राँसीसी  क्रांति

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर फैसला करने के लिए केंद्र सरकार को चार सप्ताह का समय दिया।

मुख्य तथ्य 

  • मामला: दया याचिका वर्ष 1995 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के लिए वर्ष 2007 में राजोआना को दी गई मृत्युदंड की सजा के लिए है।
  • वर्तमान स्थिति: राजोआना ने अपनी सजा को कम करने के लिए एक नई याचिका दायर की, जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को दिए गए समय सीमा के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया है।

दया याचिका 

  • दया याचिका मृत्युदंड या कारावास की सजा पाए व्यक्ति द्वारा भारत के राष्ट्रपति (अनुच्छेद-72 के तहत) या किसी राज्य के राज्यपाल (अनुच्छेद-161 के तहत) से क्षमादान की माँग करने का औपचारिक अनुरोध है।
  • यह शक्ति क्षमा, स्थगन, राहत, छूट या सजा में परिवर्तन की अनुमति देती है।

भारत में प्रसिद्ध दया याचिकाएँ 

  • याकूब मेमन केस ( वर्ष 1993 मुंबई विस्फोट): वर्ष 1993 मुंबई सीरियल बम धमाकों के मुख्य साजिशकर्ता याकूब मेमन को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी। उसने भारत के राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था।
  • धनंजय चटर्जी केस (1994): मृत्युदंड की सजा पाए एक दोषी ने राष्ट्रपति से दया की गुहार लगाई। उसके मामले ने मृत्युदंड और दया याचिकाओं की भूमिका पर बहस छेड़ दी।
  • राजीव गांधी हत्याकांड केस (1991): पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में शामिल कई दोषियों ने दया याचिका दायर की, जिससे न्याय और मृत्युदंड पर सवाल उठाए गए।
  • निर्भया केस (2012): क्रूर सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में चार दोषियों ने राष्ट्रपति से दया की गुहार लगाई, जिसके कारण न्यायिक प्रक्रिया और मृत्युदंड पर व्यापक विरोध और चर्चा हुई।

दया याचिका के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-72 (राष्ट्रपति की शक्ति): राष्ट्रपति को निम्नलिखित मामलों में क्षमादान देने का अधिकार है:
    • कोर्ट-मार्शल सजाएँ: सैन्य न्यायालयों द्वारा दी गई सजा या दंड के लिए।
    • संघीय कानून अपराध: संघ की कार्यकारी शक्ति के अंतर्गत मामलों से संबंधित कानूनों के विरुद्ध अपराधों के लिए।
    • मृत्युदंड: मृत्युदंड से जुड़े सभी मामलों में।
  • अनुच्छेद-161 (राज्यपाल की शक्ति): राज्यपाल राज्य की कार्यकारी शक्ति के तहत मामलों से संबंधित कानूनों के खिलाफ अपराधों के लिए समान क्षमादान शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति: दया याचिकाओं की समीक्षा करने की सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति का भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है।
    • हालाँकि, यह संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत न्यायिक समीक्षा की अपनी अंतर्निहित शक्ति से प्राप्त होती है, जो संवैधानिक उपचारों के अधिकार की गारंटी देती है।
    • सर्वोच्च न्यायालय राज्यपाल या राष्ट्रपति द्वारा क्षमादान की शक्ति के प्रयोग की समीक्षा कर सकता है और मनमाना या दुर्भावनापूर्ण पाए जाने पर इसे रद्द कर सकता है।

दया याचिकाओं में राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्ति में अंतर

शक्ति

राज्यपाल

राष्ट्रपति 

क्षमा करने की शक्ति 

कुछ मामलों में क्षमा, प्रतिविलंब, लघुकरण, विराम या दंड में छूट दे सकता है अथवा सजा को निलंबित या माफ कर सकता है।

कुछ मामलों में प्रतिविलंब, लघुकरण, विराम या दंड में छूट दे सकता है अथवा सजा को निलंबित या माफ कर सकता है।

मृत्युदंड की सजा मृत्युदंड को माफ नहीं कर सकता।

प्रतिविलंब, लघुकरण, विराम में छूट दे सकता है या मृत्युदंड की सजा को निलंबित या माफ कर सकता है।

कोर्ट मार्शल सैन्य न्यायालय के मामलों में क्षमा करने की कोई शक्ति नहीं है।

क्षमा, प्रतिविलंब, लघुकरण, विराम में छूट दे सकता है या कुछ मामलों में सजा को निलंबित या माफ कर सकता है, जिसमें कोर्ट मार्शल द्वारा दी गई सजा भी शामिल है।

क्षेत्राधिकार राज्य कानूनों के विरुद्ध अपराध। केंद्रीय कानूनों के विरुद्ध अपराध।

दया याचिका की मुख्य विशेषताएँ

  • कोई समय सीमा नहीं: अनुच्छेद-72 और 161 दया याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए कोई विशिष्ट समय सीमा निर्धारित नहीं करते हैं।
  • विवेकाधीन प्रकृति: ये अनुच्छेद राष्ट्रपति या राज्यपाल पर सभी दया याचिकाओं को स्वीकार करने का कोई दायित्व नहीं डालते हैं।
  • व्यापक दायरा: दया याचिका में क्षमा, प्रतिविलंब, लघुकरण, विराम या प्रविलंबन शामिल हो सकते हैं।

दया का प्रकार

विवरण

क्षमा
  • यह कानून अपराधी को अपराध से पूरी तरह मुक्त कर देता है तथा उसकी दोषसिद्धि और उससे संबंधित सभी दंडों को समाप्त कर देता है।
लघुकरण
  • कठोर दंड के स्थान पर हल्का दंड दिया जाता है।
    परिहार
  • सजा की प्रकृति में परिवर्तन किए बिना उसकी अवधि कम कर दी जाती है।
प्रविलंबन
  • किसी सजा के निष्पादन को अस्थायी रूप से स्थगित कर देता है, सामान्य तौर पर अल्प समय के लिए।
विराम 
  • यह प्रविलंबन राहत के समान है, लेकिन यह अधिक लंबी अवधि के लिए होती है और अक्सर चिकित्सीय कारणों से होती है।

दया याचिका दायर करने की प्रक्रिया 

  • दया याचिका दायर करने या उस पर कार्रवाई करने के लिए कोई वैधानिक लिखित प्रक्रिया नहीं है।
  • याचिकाएँ प्राप्त करना: गृह मंत्रालय (MHA) राष्ट्रपति को संबोधित दया याचिकाएँ प्राप्त करता है।
  • जाँच: MHA याचिका, केस रिकॉर्ड और संबंधित राज्य सरकार की सिफारिशों की जाँच करता है।
  • सिफारिशें: MHA एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करता है और राष्ट्रपति को कार्रवाई की एक सिफारिश करता है।
  • राष्ट्रपति का निर्णय: राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करते हुए, दया याचिका पर अंतिम निर्णय लेता है।
  • संचार: MHA राष्ट्रपति के निर्णय को संबंधित अधिकारियों को बताता है।
  • राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से बाध्य नहीं है, लेकिन व्यवहार में, गृह मंत्रालय की सिफारिशों का आमतौर पर पालन किया जाता है।

संदर्भ

सोनी के PS5 प्रो को भारत में लॉन्च नहीं किया जा रहा है क्योंकि भारत ने अभी तक IEEE 802.11be (वाई-फाई 7) में प्रयोग  होने वाले 6GHz वायरलेस बैंड को अनुमति नहीं दी है।

6GHz वायरलेस बैंड (6GHz WiFi Spectrum)

  • 6 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम, रेडियो तरंगों का 1200 मेगाहर्ट्ज आवृत्ति युक्त बैंड है, जिसका उपयोग वाई-फाई 6ई और वाई-फाई 7 के लिए किया जाता है।
    • वाईफाई 6 प्रौद्योगिकी 2.4GHz और 5GHz दोनों आवृत्तियों का एक साथ उपयोग करती है, जिससे अधिक दक्षता प्राप्त होती है, जिसके परिणामस्वरूप बेहतर गति प्राप्त होती है।
  • स्पेक्ट्रम: स्पेक्ट्रम, 5,925 मेगाहर्ट्ज और 7,125 मेगाहर्ट्ज के बैंड आकार के बीच स्थित है। 
  • अधिकतम गति: सैद्धांतिक रूप से यह तकनीक 9.6 जीबीपीएस तक की अधिकतम गति का समर्थन कर सकती है। 
  • कनेक्शन: वाई-फाई 6GHz तक पहुँचने के लिए डिवाइस को 6.0 गीगाहर्ट्ज बैंड का समर्थन करने वाले वायरलेस ‘एक्सेस पॉइंट’ (AP) से कनेक्ट होना चाहिए।
    • ‘एक्सेस पॉइंट वायरलेस नेटवर्क’ का केंद्रीय केंद्र होता है, जो उपकरणों को एक दूसरे से जुड़ने और संचार करने में सक्षम बनाता है।
  • परिचय: वाई-फाई 6E स्पेक्ट्रम को दुनिया भर के कई नियामक प्राधिकरणों द्वारा वर्ष 2021 तक उपयोग के लिए लाइसेंस मुक्त कर दिया गया था।
    • जापान, मैक्सिको, दक्षिण कोरिया, ताइवान, संयुक्त अरब अमीरात, यू.के. और यू.एस. ने वाई-फाई के लिए स्पेक्ट्रम के तीसरे बैंड का लाइसेंस समाप्त करना शुरू कर दिया है।
  • विशेषताएँ 
    • विस्तारित बैंडविड्थ: 6GHz बैंड संयुक्त 2.4GHz और 5GHz बैंड की तुलना में दोगुनी से अधिक बैंडविड्थ प्रदान करता है, जिससे तीव्र डेटा ट्रांसमिशन और बेहतर प्रदर्शन संभव होता है।
    • कम विलंबता: वाई-फाई 6E और वाई-फाई 7 दोनों ही कम विलंबता प्रदान करते हैं, जो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ऑनलाइन गेमिंग और वर्चुअल रियलिटी जैसे रियल-टाइम अनुप्रयोगों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • कम नेटवर्क व्यस्तता: 6GHz बैंड, 2.4GHz और 5GHz बैंड की तुलना में कम व्यस्त होता है, जिससे कम हस्तक्षेप और बेहतर प्रदर्शन होता है।
    • वाइड चैनल: वाई-फाई 6E और वाई-फाई 7 उच्च बैंडविड्थ के साथ डेटा ट्रांसमिशन के लिए अधिक मार्ग प्रदान करते हैं, जिससे ओवरलैपिंग और हस्तक्षेप का जोखिम कम होता है तथा समग्र नेटवर्क प्रदर्शन में सुधार होता है।
    • तीव्र गति: यह 1200 मेगाहर्ट्ज का लाइसेंसरहित स्पेक्ट्रम प्रदान करता है, जिससे तीव्र गति, कम विलंबता और कम भीड़भाड़ संभव होती है।
    • उन्नत प्रौद्योगिकी को शामिल करता है: यह OFDMA और MU-MIMO जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों का समर्थन करता है, जिससे नेटवर्क क्षमता और दक्षता में वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरूप बेहतर, अधिक विश्वसनीय वायरलेस अनुभव प्राप्त होता है।
    • भविष्य-सुरक्षा: वाई-फाई 6E में अपग्रेड करना और वाई-फाई 7 की तैयारी करना, नेटवर्क को भविष्य की तकनीकी प्रगति में सुधार करने का सूचक है।
    • उच्च घनत्व वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त: 6GHz बैंड कम आवृत्ति बैंड, जैसे 2.4 GHz की तुलना में कम दूरी पर संचालित होता है, जो उच्च घनत्व वाले क्षेत्रों में उपयुक्त है, जहाँ नेटवर्क व्यस्तता एक चिंता का विषय है।
      • कम दूरी पर कार्य करके, 6GHz वाई-फाई एक्सेस पॉइंट उपयोगकर्ताओं के लिए एक विश्वसनीय कनेक्शन सुनिश्चित करते हुए, घर के अंदर बेहतर कवरेज प्रदान कर सकते हैं।

वाई-फाई 6E

  • यह 6 गीगाहर्ट्ज रेडियो-फ्रीक्वेंसी बैंड में वाई-फाई 6 (802.11ax) वायरलेस मानक का विस्तार है।
  • वाई-फाई 6E वाई-फाई 6 (वाई-फाई मानक की नवीनतम पीढ़ी) पर आधारित है, लेकिन केवल वाई-फाई 6E डिवाइस और एप्लिकेशन ही 6-गीगाहर्ट्ज बैंड में काम कर सकते हैं।
  • परिचय: वाई-फाई 6E को सबसे पहले वर्ष 2021 में यू.एस. फेडरल कम्युनिकेशंस कमीशन (FCC) द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका में बिना लाइसेंस के उपयोग के लिए मंजूरी दी गई थी
  • विशेषताएँ
    • फास्ट लेन: वाई-फाई 6E संगत डिवाइस और एप्लिकेशन के लिए “फास्ट लेन” का निर्माण करता है क्योंकि केवल वाई-फाई 6E डिवाइस ही नेटवर्क के साथ संगत हैं, जिसके परिणामस्वरूप तीव्र वायरलेस गति और कम विलंबता होती है।
    • वाई-फाई 6ई वाई-फाई 6 के विपरीत पहले के वाई-फाई मानकों के साथ पिछड़ा-संगत नहीं है। 
    • नया इन्फ्रास्ट्रक्चर: वाई-फाई 6E के लिए उपयोगकर्ताओं को अपने मौजूदा वायरलेस इन्फ्रास्ट्रक्चर का आकलन करने और राउटर, स्विच, एक्सेस पॉइंट तथा अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्वों को अपग्रेड करने की आवश्यकता होती है।

वाई-फाई के लिए 6GHz स्पेक्ट्रम के आवंटन पर भारत का दृष्टिकोण

  • उपग्रह उपयोग के मामलों के लिए 6GHz बैंड वर्तमान में पूरी तरह से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पास है। 
  • दूरसंचार विभाग (DoT) ने दूरसंचार ऑपरेटरों और प्रौद्योगिकी फर्मों के बीच बढ़ते विवाद के बीच 6GHz स्पेक्ट्रम के आवंटन को स्थगित कर दिया है क्योंकि स्पेक्ट्रम को 5G और वाई-फाई सेवाओं दोनों के लिए आदर्श माना जाता है। 
  • विवाद
    • दूरसंचार ऑपरेटर: वे स्पेक्ट्रम को केवल 5G सेवाओं के विस्तार के लिए आवंटित करने की वकालत करते हैं। 
    • प्रौद्योगिकी कंपनियाँ: ब्रॉडबैंड इंडिया फोरम (गूगल, मेटा, अमेजन और माइक्रोसॉफ्ट) द्वारा प्रतिनिधित्व की जाने वाली कंपनियाँ स्पेक्ट्रम को विशेष रूप से वाई-फाई सेवाओं के लिए नामित करने पर जोर दे रही हैं।
  • कार्यसमूह: दूरसंचार विभाग ने संशोधित आवृत्ति आवंटन योजना विकसित करने के लिए तीन कार्य समूहों का गठन किया है, जिसके परिणाम राष्ट्रीय आवृत्ति आवंटन योजना (NFAP) समिति द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में शामिल किए जाएँगे, जिसका नेतृत्व सरकार के ‘वायरलेस’ संबंधी सलाहकार करेंगे।
  • भारत के पास विश्व रेडियो संचार सम्मेलन से 6 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम के आवंटन पर अंतिम निर्णय लेने के लिए वर्ष 2027 तक का समय है।
  • आवंटन से जुड़ी समस्याएँ
    • इसरो सैटेलाइट संचालन में हस्तक्षेप: इसरो के सैटेलाइट संचालन में संभावित हस्तक्षेप की चिंता है, क्योंकि इसरो स्वयं दूरसंचार सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम के आवंटन के विरुद्ध है। 
      • हालाँकि, वाई-फाई की कम शक्ति के कारण, सैटेलाइट संचालन में हस्तक्षेप करने की संभावना नहीं है। 
    • आयात में वृद्धि: दूरसंचार सेवाओं को बैंड आवंटित करने से राउटर आदि जैसे वाई-फाई 6 सहायक उपकरणों के गैर-विश्वसनीय स्रोतों से आयात में वृद्धि हो सकती है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिम पैदा कर सकता है। 
    • नीलामी के बिना वाई-फाई के लिए 6 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम आवंटित करने से राष्ट्रीय कोष को काफी वित्तीय नुकसान हो सकता है।

वाई-फाई

  • यह एक वायरलेस नेटवर्किंग तकनीक है, जो कंप्यूटर, मोबाइल डिवाइस और अन्य उपकरणों जैसे उपकरणों को सूचनाओं का आदान-प्रदान करके तथा एक नेटवर्क का निर्माण कर वायरलेस राउटर के माध्यम से इंटरनेट के साथ इंटरफेस करने की अनुमति देती है।
  • मानक: वायरलेस एक्सेस पॉइंट अलग-अलग आवृत्तियों पर काम करने वाले विभिन्न IEEE मानकों का समर्थन करते हैं, भिन्न-भिन्न बैंडविड्थ प्रदान करते हैं और विभिन्न चैनलों का समर्थन करते हैं।
    • IEEE 802.11 मानक: यह उन प्रोटोकॉल को परिभाषित करता है, जो वायरलेस राउटर और वायरलेस एक्सेस पॉइंट सहित वर्तमान वाई-फाई-सक्षम वायरलेस उपकरणों के साथ संचार को सक्षम करते हैं।
  • घटक 
    • वायरलेस एक्सेस पॉइंट: एक एक्सेस पॉइंट राउटर से आने वाली बैंडविड्थ प्राप्त करता है और आस-पास के डिवाइस को नेटवर्क पर जाने के लिए उसे फैलाता है। एक एक्सेस पॉइंट नेटवर्क पर डिवाइस के बारे में उपयोगी डेटा भी प्रदान कर सक्रिय सुरक्षा प्रदान कर सकता है।
    • वायरलेस राउटर: आमतौर पर वायरलेस लोकल एरिया नेटवर्क (WLAN) डिवाइस के रूप में संदर्भित, ये हार्डवेयर डिवाइस हैं, जिनका उपयोग इंटरनेट सेवा प्रदाता केबल या xDSL इंटरनेट नेटवर्क से कनेक्ट करने के लिए करते हैं।
  • आवृत्ति बैंड: वाई-फाई मुख्य रूप से आवृत्ति के दो प्रमुख बैंडों अर्थात् 2.4GHz और 5GHz का उपयोग करता है, जबकि तीसरा बैंड अर्थात् 6GHz कई देशों में संचालन की प्रारंभिक अवस्था में है। 

संदर्भ

तमिलनाडु सरकार ने आधिकारिक तौर पर हीटवेव को राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित किया है। साथ ही राज्य ने राहत कार्यों में शामिल लोगों सहित गर्मी से संबंधित कारणों से मरने वाले व्यक्तियों के परिवारों के लिए 4 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की भी घोषणा की है।

हीटवेव के बारे में

  • परिभाषा: हीटवेव अत्यधिक गर्म मौसम की एक लंबी अवधि है, जो किसी विशेष क्षेत्र के लिए सामान्य तापमान से काफी अधिक होती है।
  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा मानदंड
    • अधिकतम तापमान: मैदानी इलाकों के लिए स्टेशन को कम-से-कम 40°C और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए कम-से-कम 30°C रिकॉर्ड करना चाहिए।
    • जब सामान्य रूप से अधिकतम तापमान 40°C से कम या उसके बराबर हो:
      • हीट वेव: सामान्य तापमान से विचलन 5°C से 6°C है।
      • गंभीर हीट वेव: स्टेशन के सामान्य तापमान से विचलन 7°C या उससे अधिक है।
    • जब किसी स्टेशन का सामान्य तापमान 40°C-45°C से अधिक हो:
      • हीट वेव: सामान्य से विचलन 4°C से 5°C है।
      • गंभीर हीट वेव: सामान्य से विचलन 6°C या उससे अधिक है।
    • जब वास्तविक अधिकतम तापमान सामान्य अधिकतम तापमान के बावजूद 45°C या उससे अधिक रहता है, तो लू की घोषणा की जानी चाहिए।

हीटवेव को राज्य विशिष्ट आपदा घोषित करने का महत्त्व

  • तत्काल राहत: यह घोषणा सरकार को अत्यधिक तापमान से प्रभावित लोगों को तत्काल राहत प्रदान करने में सक्षम बनाती है, विशेष रूप से अप्रैल 2024 और मई 2024 में अनुभव की गई भीषण गर्मी के दौरान।
  • राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) का उपयोग: सरकार इन राहत प्रयासों का समर्थन करने के लिए राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष का उपयोग करेगी।
  • राहत सहायता के लिए अतिरिक्त आपदाओं की घोषणा: सरकार ने समुद्री कटाव, आकाशीय बिजली, गरज, बवंडर और आँधी को भी आपदा घोषित किया है।
  • राज्य विशिष्ट आपदाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

राष्ट्रीय आपदा को परिभाषित करने का प्रयास

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समिति, 2001: समिति को राष्ट्रीय आपदा को परिभाषित करने वाले मापदंडों पर विचार करने का दायित्व सौंपा गया था।
    • हालाँकि, समिति ने कोई निश्चित मानदंड सुझाया नहीं है।
  • 10वाँ वित्त आयोग (1995-2000): इस प्रस्ताव की जाँच की गई कि यदि कोई आपदा किसी राज्य की एक-तिहाई आबादी को प्रभावित करती है तो उसे ‘अत्यंत गंभीर राष्ट्रीय आपदा’ कहा जाएगा।
    • पैनल ने ‘दुर्लभ गंभीरता की आपदा’ को परिभाषित नहीं किया है।
    • लेकिन कहा कि इसका मूल्यांकन मामले-दर-मामला किया जाना चाहिए, जिसमें तीव्रता, परिमाण, आवश्यक सहायता, राज्य की क्षमता और उपलब्ध राहत विकल्पों जैसे कारकों पर विचार किया जाना चाहिए।
      • उदाहरण: उत्तराखंड में अचानक आई बाढ़ और चक्रवात हुदहुद को बाद में ‘गंभीर प्रकृति’ की आपदाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया।

भारत में आपदाओं के बारे में

  • परिभाषा: आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अनुसार, आपदा एक ‘विपत्ति, दुर्घटना, आपदा या गंभीर घटना’ है, जो प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से उत्पन्न होती है, जिसके परिणामस्वरूप जीवन की भारी हानि, संपत्ति का विनाश या पर्यावरण को नुकसान होता है।

भारत में अधिसूचित आपदाओं के बारे में

  • वर्तमान में, 12 आपदाओं को अधिसूचित आपदा के रूप में वर्गीकृत किया गया है: चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, कीट हमला और पाला एवं शीत लहर।
  • राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का प्रावधान: किसी प्राकृतिक आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का कोई भी प्रावधान, कार्यकारी या कानूनी नहीं है।
  • राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF): आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 48 (1) (a) के तहत गठित SDRF, अधिसूचित आपदाओं के जवाब के लिए राज्य सरकारों के पास उपलब्ध प्राथमिक निधि है।
    • केंद्र सरकार सामान्य श्रेणी के अंतर्गत आने वाले राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के लिए SDRF आवंटन का 75% योगदान देती है।
    • विशेष श्रेणी के राज्यों (पूर्वोत्तर राज्य, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर) के लिए 90%।
  • राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (NDRF): आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 46 के तहत गठित NDRF, गंभीर प्रकृति की आपदा के मामले में राज्य के SDRF की पूर्ति करता है, बशर्ते SDRF में पर्याप्त धनराशि उपलब्ध न हो।

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005

  • नोडल एजेंसी: केंद्रीय गृह मंत्रालय को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के लिए प्रमुख एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।
  • संस्थागत संरचना: राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन ढाँचे की स्थापना करती है।
  • राष्ट्रीय स्तर की संस्थाएँ
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): आपदा प्रबंधन नीतियाँ  विकसित करता है और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है।
    • राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (NEC): NDMA की सहायता करता है, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना को वार्षिक रूप से  तैयार और अद्यतन करता है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM): आपदा प्रबंधन के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण करता है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF): आपदा प्रतिक्रिया के लिए विशेष पेशेवर इकाइयाँ।
  • राज्य और जिला प्राधिकरण: राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) और जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन की योजना बनाते हैं और उसे लागू करते हैं।
  • वित्तीय तंत्र: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) और इसी तरह के राज्य और जिला-स्तरीय कोषों के लिए प्रावधान।
  • सिविल और आपराधिक दायित्व: अधिनियम की धारा 51 आदेशों का पालन न करने पर दंडित करती है:
    • 1 वर्ष तक का कारावास, जुर्माना या दोनों।
    • यदि उल्लंघन के कारण मृत्यु हो जाती है, तो कारावास 2 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।

राज्य विशिष्ट आपदाओं/स्थानीय आपदाओं के बारे में

  • राज्य विशिष्ट आपदाएँ/स्थानीय आपदाएँ राज्य की विशिष्ट भौगोलिक, पर्यावरणीय या जलवायु परिस्थितियों के लिए विशिष्ट होती हैं।
  • घोषितकर्ता: राज्य सरकार के पास कुछ प्राकृतिक घटनाओं को ‘स्थानीय आपदाओं’ के रूप में वर्गीकृत करने का विवेकाधिकार है, जिन्हें वे राज्य के स्थानीय संदर्भ में ‘आपदा’ मानते हैं और जो गृह मंत्रालय की आपदाओं की अधिसूचित सूची में शामिल नहीं हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2015 में, ओडिशा ने सर्पदंश को राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित किया था।
  • स्थानीय आपदाओं हेतु SDRF का उपयोग: राज्य सरकार ऐसी स्थानीय आपदाओं के पीड़ितों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) के अंतर्गत आवंटित धनराशि का 10% तक उपयोग कर सकती है।
  • शर्त: राज्य सरकार को राज्य विशिष्ट प्राकृतिक आपदाओं को सूचीबद्ध करना होगा तथा राज्य प्राधिकरण अर्थात् राज्य कार्यकारी प्राधिकरण (SEC) के अनुमोदन से ऐसी आपदाओं के लिए स्पष्ट एवं पारदर्शी मानदंड और दिशा-निर्देश अधिसूचित करने होंगे।

राज्य-विशिष्ट आपदाओं को प्रभावित करने वाले कारक

  • भौगोलिक विशेषताएँ: पर्वत, समुद्र तट और शुष्क क्षेत्र जैसे भूभाग भूस्खलन, बाढ़ और सूखे को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के रूप में 
    • हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे भूकंपीय क्षेत्रों में स्थित राज्य भूकंप के प्रति संवेदनशील हैं।
    • वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश में चक्रवात हुदहुद।
  • जलवायु परिस्थितियाँ: अत्यधिक तापमान और मौसमी वर्षा के कारण पाला, हीट वेव, बादल फटना और सूखा पड़ता है।
    • उदाहरण: पूर्वोत्तर राज्य और सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य भारी वर्षा और वनों की कटाई के कारण भूस्खलन के खतरे का सामना करते हैं।
  • जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र: संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र और घनी वनस्पति को कीटों के हमले, वनाग्नि  और पारिस्थितिकी व्यवधान का सामना करना पड़ता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2024 में, केरल ने ‘मानव-पशु संघर्ष’ को राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित किया।
  • मानवीय गतिविधियाँ: अनियोजित निर्माण, वनों की कटाई और संसाधनों का अति प्रयोग भूस्खलन और सूखे जैसी आपदाओं को बढ़ाता है।
    • उदाहरण: खराब जल निकासी व्यवस्था के कारण चेन्नई, बंगलूरू जैसे शहरों में शहरी बाढ़।
    • शहरी ऊष्मा द्वीप (UHI) प्रभाव: कम हरियाली और उच्च ऊर्जा उपयोग वाले घने शहरी क्षेत्रों में उच्च तापमान और प्रवर्द्धित ऊष्मा तरंगों का जोखिम होता है।

आगे की राह

  • खतरा मानचित्रण: उन्नत GIS और सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करना।
    • उदाहरण: उत्तराखंड में भूस्खलन संभावित क्षेत्रों के मानचित्रण के लिए GIS का उपयोग करना।
  • स्थानीयकृत अनुसंधान: सूचित निर्णय लेने के लिए क्षेत्र-विशिष्ट डेटा में निवेश करना।
    • उदाहरण के लिए, बिहार जैसे बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में स्थानीय नदी पैटर्न, वर्षा और मिट्टी की स्थिति पर डेटा एकत्र करने से बाढ़ प्रबंधन रणनीतियों को तैयार करने में मदद मिल सकती है।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: समय पर और वास्तविक समय अलर्ट प्रसारित करने के लिए मजबूत प्रणाली स्थापित करना।
  • सामुदायिक प्रशिक्षण: स्थानीय समुदायों के लिए नियमित जागरूकता और मॉक ड्रिल आयोजित करना।
  • सतत् शहरी नियोजन: शहरी ताप द्वीप प्रभाव को कम करने के लिए हरित स्थानों को बढ़ाना और इमारतों को अनुकूलित करना।

निष्कर्ष

  • राज्य-विशिष्ट आपदाओं के लिए ऐसे समाधान की आवश्यकता होती है, जो राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन ढाँचे के भीतर स्थानीय कमजोरियों को संबोधित करते हैं।
  • निवारक, शमनकारी और अनुकूली उपायों को प्राथमिकता देकर, भारत अपने राज्यों में विविध आपदा जोखिमों के प्रति लचीलापन बढ़ा सकता है।

संदर्भ 

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO) और क्लाइमेट क्लब ने COP29 में ऊर्जा दिवस पर ‘ग्लोबल मैचमेकिंग प्लेटफॉर्म’ (GMP) लॉन्च किया।

ग्लोबल मैचमेकिंग प्लेटफॉर्म (GMP)

  • ग्लोबल मैचमेकिंग प्लेटफॉर्म (GMP) औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन में तेजी लाने के लिए एक नई पहल है।
  • UNIDO द्वारा आयोजित GMP, डीकार्बोनाइजेशन परियोजनाओं को लागू करने के लिए देशों को सही संसाधनों और विशेषज्ञता से जोड़ेगा।
  • उद्देश्य: भारी उत्सर्जन वाले उद्योगों में डीकार्बोनाइजेशन में तेजी लाना।
  • शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक $125 बिलियन वार्षिक वित्तीयन अंतराल को संबोधित करता है।
  • GMP की मुख्य विशेषताएँ
    • जलवायु क्लब के लिए एक समर्थन तंत्र के रूप में कार्य करता है, जिसका सचिवालय UNIDO द्वारा संचालित है।
    • OECD और अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) द्वारा संयुक्त रूप से संचालित अंतरिम सचिवालय द्वारा समर्थित।
    • देशों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उन्हें तकनीकी और वित्तीय संसाधनों से जोड़कर मिलान की सुविधा प्रदान करता है।
  • प्रतिभागी और साझेदारियाँ
    • उपस्थित राज्य पक्षकार: जर्मनी, चिली (सह-अध्यक्ष), उरुग्वे, तुर्किए, बांग्लादेश और इंडोनेशिया।
    • गैर-राज्य प्रतिभागी: UNIDO, विश्व बैंक, जलवायु निवेश कोष (CISF), जीआईजेड और अन्य।
    • सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना।

लाभ

  • GMP देशों को उनकी डीकार्बोनाइजेशन आवश्यकताओं की पहचान करने और उन्हें प्राथमिकता देने में मदद करेगा। 
  • यह सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी को सुगम बनाएगा। 
  • यह प्लेटफॉर्म डीकार्बोनाइजेशन परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए आवश्यक धन जुटाएगा।

‘क्लाइमेट क्लब’ कार्यक्रम

  • COP28 में शुरू किया गया ‘क्लाइमेट क्लब’ औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • GMP औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन में तेजी लाने के क्लब के प्रयासों का एक प्रमुख घटक है।
  • वर्तमान कार्यक्रम (2025-26) तीन स्तंभों पर केंद्रित है:
    • महत्त्वाकांक्षी जलवायु शमन नीतियाँ।
    • औद्योगिक परिवर्तन।
    • अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना।
  • GMP की भूमिका
    • GMP, COP30 के लिए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (NDCs) में औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन को शामिल करने में सहायता करेगा।

औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन

  • औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन औद्योगिक गतिविधियों से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और अन्य ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने की प्रक्रिया है। 
  • जलवायु परिवर्तन को कम करने और वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है।

डीकार्बोनाइजेशन की आवश्यकता वाले प्रमुख क्षेत्र

  • पेट्रोलियम रिफाइनिंग: हाइड्रोक्रैकिंग और कैटेलिटिक क्रैकिंग जैसी प्रक्रियाओं से उत्सर्जन को कम करना।
  • रासायनिक विनिर्माण: ऊर्जा दक्षता को बढ़ाना और ‘कार्बन फीडस्टॉक्स’ का कम उपयोग करना।
  • लोहा और इस्पात: ऊर्जा-कुशल तरीकों को अपनाना और ‘कार्बन कैप्चर’ प्रौद्योगिकियों को लागू करना।
  • सीमेंट उद्योग: उच्च तापमान वाली भट्टियों से उत्सर्जन को कम करना और वैकल्पिक ईंधन का उपयोग करना।
  • खाद्य एवं पेय क्षेत्र: ऊर्जा दक्षता और अपशिष्ट को न्यूनतम करने पर ध्यान केंद्रित करना।

औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन का महत्त्व

  • जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करना
    • पेरिस समझौते जैसे अंतरराष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • आर्थिक विकास को बढ़ावा देना
    • नवाचार को बढ़ावा देना और नए रोजगार के अवसर पैदा करना।
  • पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना
    • वायु गुणवत्ता में सुधार, प्रदूषण को कम करना और सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाना।

वैश्विक जलवायु वित्त

  • जलवायु नीति पहल की वर्ष 2024 की रिपोर्ट के अनुसार:
    • वैश्विक CO2 उत्सर्जन में उद्योग का योगदान 30% है।
    • वर्ष 2018 से 2022 तक कुल जलवायु शमन वित्त का केवल 1.4% औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन की ओर निर्देशित किया गया था।
  • जलवायु निवेश कोष (CIF) कम कार्बन प्रौद्योगिकियों के संचालन और विस्तार में जलवायु वित्त की भूमिका पर जोर देते हैं।

औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन में चुनौतियाँ

  • भारी उत्सर्जन वाले उद्योग (स्टील, सीमेंट, रसायन, एल्युमीनियम) वैश्विक औद्योगिक CO2 उत्सर्जन का 70% हिस्सा हैं।
  •  उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ (EMDE) निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करती हैं:
    • संसाधन सीमाएँ। 
    • स्वच्छ औद्योगिक प्रथाओं के लिए क्षमता और प्रौद्योगिकी की कमी।
  • नेट जीरो लक्ष्य के संगत उत्पादन संयंत्रों में वर्तमान निवेश केवल 15 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष है, जिसे वर्ष 2030 तक 70 बिलियन डॉलर तथा वर्ष 2050 तक 125 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने की आवश्यकता है।

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से पेन्नयार नदी जल विवाद पर वार्ता समिति द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा।

संबंधित तथ्य

  • सर्वोच्च न्यायालय की समयसीमा: केंद्र सरकार को रिपोर्ट पेश करने के लिए दो सप्ताह की समयसीमा दी गई। 
  • तमिलनाडु की चिंताएँ: तमिलनाडु ने वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कर्नाटक द्वारा पेन्नयार नदी पर चेक डैम और वाटर डायवर्जन संरचनाओं के निर्माण का विरोध किया गया।
    • तमिलनाडु ने तर्क दिया कि नदी का बहता जल एक राष्ट्रीय संपत्ति है; कर्नाटक तमिलनाडु के निवासियों को नुकसान पहुँचाते हुए एकतरफा तौर पर इसके जल पर दावा नहीं कर सकता।
  • वर्ष 1892 के समझौते की वैधता: तमिलनाडु ने दावा किया कि वर्ष 1892 का समझौता वैध है और दोनों राज्यों पर बाध्यकारी है और इस बात पर जोर दिया कि समझौते में न केवल मुख्य नदी बल्कि उसकी सहायक नदियाँ और योगदान देने वाली धाराएँ भी शामिल हैं। 
  • मार्कंडेय नदी संबंधी विवाद: तमिलनाडु ने तर्क दिया कि मार्कंडेय नदी, जो दोनों राज्यों में फैले जलग्रहण क्षेत्र वाली एक प्रमुख सहायक नदी है, वर्ष 1892 के समझौते के अंतर्गत आती है।
    • तमिलनाडु ने मार्कंडेय नदी पर कर्नाटक द्वारा किए जा रहे बड़े बाँधों के निर्माण का विरोध किया और कहा कि यह समझौते के तहत अस्वीकार्य है।

पेन्नयार नदी जल विवाद पर वार्ता समिति

  • जनवरी 2024 में, सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 की धारा 4 के तहत एक नई वार्ता समिति बनाने का निर्देश दिया।

  • उद्देश्य: तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच मध्यस्थता करना और समाधान निकालना।
  • मई 2023 में नई राज्य सरकार के गठन के बाद, कर्नाटक ने वर्ष 2023 में वार्ता के प्रयास शुरू किए।

अंतरराज्यीय नदी विवादों पर संवैधानिक प्रावधान

  • राज्य सूची की प्रविष्टि 17: यह जल आपूर्ति, सिंचाई, नहरें, जल निकासी, तटबंध, जल भंडारण और जलविद्युत उत्पादन सहित जल से संबंधित मामलों को संबोधित करती है। 
  • संघ सूची की प्रविष्टि 56: यह केंद्र सरकार को संसद द्वारा सार्वजनिक हित में आवश्यक घोषित सीमा तक अंतरराज्यीय नदियों और नदी घाटियों को विनियमित तथा विकसित करने का अधिकार देती है। 
  • संविधान का अनुच्छेद-262: यह संसद को किसी भी अंतरराज्यीय नदी या नदी घाटी के जल के उपयोग, वितरण या नियंत्रण से संबंधित विवादों या शिकायतों के निपटारे के लिए कानून बनाने का अधिकार देता है। 
  • संसद कानून के माध्यम से यह भी प्रावधान कर सकती है कि न तो सर्वोच्च न्यायालय और न ही कोई अन्य न्यायालय ऐसे विवादों पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करेगा। 
  • न्यायिक सीमाएँ: सर्वोच्च न्यायालय अंतरराज्यीय जल विवादों के लिए स्थापित न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए निर्णय या फॉर्मूले पर सवाल नहीं उठा सकता।
    • हालाँकि, इसके पास न्यायाधिकरण के कामकाज की समीक्षा करने का अधिकार मौजूद है।

अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत न्यायाधिकरण गठन की प्रक्रिया

  • यदि एक या अधिक राज्य केंद्र से जल विवाद को हल करने का अनुरोध करते हैं, तो केंद्र सरकार को सबसे पहले संबंधित राज्यों के बीच परामर्श के माध्यम से समाधान का प्रयास करना होगा। 
  • यदि परामर्श विफल हो जाता है, तो केंद्र विवाद को हल करने के लिए एक न्यायाधिकरण की स्थापना कर सकता है। 
  • अधिनियम में वर्ष 2002 के संशोधनों ने जल विवाद न्यायाधिकरण के गठन के लिए एक वर्ष की समय सीमा निर्धारित की। 
  • संशोधनों में यह भी अनिवार्य किया गया कि न्यायाधिकरण को तीन वर्षों के भीतर अपना निर्णय देना होगा।

पेन्नयार नदी

  • पेन्नयार नदी को कन्नड़ में दक्षिण पिनाकिनी और तमिल में थेनपेन्नई, पोन्नैयार के नाम से भी जाना जाता है।

  • उत्पत्ति: यह नदी कर्नाटक के चेन्नाकेशव पहाड़ियों में स्थित नंदीदुर्ग पर्वत की पूर्वी ढलान से निकलती है।
  • प्रवाह: पेन्नयार नदी कर्नाटक से होकर बहती है और बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले तमिलनाडु में प्रवेश करती है।
  • बेसिन वितरण: पेन्नयार नदी के जल निकासी बेसिन का लगभग 77% हिस्सा तमिलनाडु में स्थित है।
  • लंबाई: 497 किलोमीटर की लंबाई वाली पेन्नयार नदी कावेरी नदी के बाद तमिलनाडु की दूसरी सबसे लंबी नदी है।
  • सहायक नदियाँ: पेन्नयार नदी की उल्लेखनीय सहायक नदियों में मार्कंडेय, कंबैनल्लूर और पंबर नदियाँ शामिल हैं।
  • नदी के किनारे स्थित महत्त्वत्वपूर्ण शहर: पेन्नयार नदी के तट पर स्थित प्रमुख शहर बंगलूरू, होसुर, तिरुवन्नामलाई और कुड्डालोर हैं।

संदर्भ

हाल ही में केंद्र सरकार ने प्राकृतिक खेती की अपनी मुख्य परियोजना को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (National Mission on Natural Farming-NMNF) का शुभारंभ किया। 

  • राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF) कृषि मंत्रालय के अंतर्गत एक केंद्र प्रायोजित योजना होगी और इसका कुल परिव्यय 2,481 करोड़ रुपये होगा।

प्राकृतिक खेती के बारे में

  • प्राकृतिक खेती एक रसायन मुक्त और पशुधन आधारित खेती का तरीका है।
  • यह फसलों, पेड़ों और पशुधन को एकीकृत करता है, जैव विविधता और कृषि-पारिस्थितिकी संतुलन को बढ़ावा देता है।
  • इसे वैश्विक स्तर पर पुनर्योजी कृषि का एक रूप माना जाता है, जो मिट्टी की उर्वरता को बहाल करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • इसे मासानोबू फुकुओका ने अपनी पुस्तक ‘द वन-स्ट्रॉ रिवॉल्यूशन’ (वर्ष 1975) में प्रस्तुत किया था।
  • इसे भारत में पारंपरिक कृषि विकास योजना (PKVY) के अंतर्गत भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति कार्यक्रम (BPKP) के रूप में बढ़ावा दिया जाता है ताकि पारंपरिक प्रथाओं को प्रोत्साहित किया जा सके और बाहरी इनपुट को कम किया जा सके।

राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (National Mission on Natural Farming- NMNF) के बारे में 

  • यह कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत क्रियान्वित एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
  • 15वें वित्त आयोग (2025-26) के अंत तक इस योजना के लिए कुल वित्तीय परिव्यय ₹2,481 करोड़ है।
    • केंद्र ₹1,584 करोड़ का योगदान देगा, जबकि राज्य ₹897 करोड़ का योगदान देंगे।
  • विजन 
    • खेती की लागत में कटौती करने, किसानों की आय बढ़ाने और संसाधन संरक्षण तथा सुरक्षित एवं स्वस्थ मिट्टी, पर्यावरण व भोजन का अधिकार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से खरीदे गए लागत से अप्रभावी होने के लिए आत्मनिर्भर और स्वयं-उत्पादक प्राकृतिक कृषि प्रणालियों को लागू करना।

NMNF के मुख्य उद्देश्य 

  • रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा देना: इस मिशन का उद्देश्य पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं के आधार पर एक रसायन मुक्त, टिकाऊ खेती पद्धति के रूप में प्राकृतिक खेती (NF) को बढ़ावा देना है।
  • किसानों को आर्थिक सहायता: इसका उद्देश्य किसानों के लिए इनपुट लागत को कम करना और बाहरी रूप से खरीदे गए इनपुट पर उनकी निर्भरता को कम करना है।
  • पोषण सुरक्षा: इस मिशन को खेती के तरीकों में सुधार करके सभी के लिए सुरक्षित और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • पर्यावरणीय स्थिरता: इसका उद्देश्य स्वस्थ मृदा पारिस्थितिकी तंत्र को फिर से जीवंत करना और बनाए रखना, जैव विविधता को बढ़ावा देना तथा स्थानीय कृषि पारिस्थितिकी स्थितियों के लिए उपयुक्त विविध फसल प्रणालियों का समर्थन करना है।
  • जलवायु लचीलापन: NMNF का उद्देश्य जलभराव, बाढ़ और सूखे जैसे जोखिमों को संबोधित करके जलवायु लचीलापन बनाना है।
  • बाजार तक पहुँच: मिशन किसानों को उनके प्राकृतिक कृषि उत्पादों के विपणन में सहायता करने के लिए एक आसान और सरल प्रमाणन प्रणाली और सामान्य ब्रांडिंग शुरू करेगा।

कार्यान्वयन रणनीति

  • क्लस्टर विकास
    • अगले दो वर्षों में इच्छुक ग्राम पंचायतों में 15,000 क्लस्टर बनाना।
    • एक करोड़ किसानों को प्रशिक्षित करना और 7.5 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर प्राकृतिक उर्वरक प्रथाओं को लागू करना।
  • जैव-इनपुट संसाधन केंद्र (Bio-Input Resource Centres- BRCs)
    • किसानों को जीवामृत और बीजामृत जैसे आसान इनपुट उपलब्ध कराने के लिए 10,000 BRC स्थापित करना।
  • मॉडल प्रदर्शन फार्म
    • कृषि विज्ञान केंद्रों (Krishi Vigyan kendras- KVKs), कृषि विश्वविद्यालयों (AUs) और किसानों के खेतों में 2,000 फार्म स्थापित किए। 
    • प्रशिक्षित किसान मास्टर प्रशिक्षकों के साथ इन फार्मों का समर्थन करना।
  • प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण
    • जागरूकता उत्पन्न करने, लोगों को संगठित करने और उन्हें सहायता प्रदान करने के लिए 30,000 कृषि सखियों/सामुदायिक संसाधन व्यक्तियों (Community resource Persons- CRPs) को तैनात किया जा रहा है।
    • 18.75 लाख किसानों को पशुधन या BRCs से प्राप्त संसाधनों का उपयोग करके प्राकृतिक इनपुट तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण
    • वास्तविक समय प्रगति ट्रैकिंग के लिए ‘जियो-टैग्ड’ ऑनलाइन पोर्टल का उपयोग करके कार्यक्रम की निगरानी करना।
  • शिक्षा और अनुसंधान सहायता
    • ग्रामीण कृषि कार्य अनुभव (Rural Agricultural Work Experience-RAWE) कार्यक्रम के माध्यम से छात्रों को शामिल करना।
    • प्राकृतिक खेती पर समर्पित स्नातक, स्नातकोत्तर और डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू करना।
  • अन्य योजनाओं के साथ अभिसरण
    • पशुधन संवर्द्धन, बाजार संपर्क और संसाधन विकास के लिए मौजूदा योजनाओं का लाभ उठाना।
    • केंद्रीय मवेशी प्रजनन फार्म और क्षेत्रीय चारा स्टेशनों जैसे संस्थानों में मॉडल प्रदर्शन फार्म विकसित करना।
    • जिला, ब्लॉक और ग्राम पंचायत स्तर पर बाजार संपर्क प्रदान करना।

सतत् विकास लक्ष्यों के साथ संरेखण

  • SDG 2 (भुखमरी को समाप्त करना): स्थायी खेती के माध्यम से खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देता है।
  • SDG 12 (जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन): पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करता है।
  • SDG 15 (स्थल पर जीवन): दीर्घकालिक पारिस्थितिकी संतुलन के लिए मिट्टी के स्वास्थ्य और जैव विविधता को बहाल करने का लक्ष्य रखता है।

प्राकृतिक खेती, पारंपरिक खेती और जैविक खेती की तुलना

पहलू

प्राकृतिक खेती

पारंपरिक खेती

जैविक खेती

इनपुट उपयोग

स्थानीय, प्राकृतिक साधनों (गाय का गोबर, जीवामृत, आदि) पर निर्भर करता है।

सिंथेटिक रसायनों (उर्वरक, कीटनाशक) का उपयोग करता है।

जैविक इनपुट (कंपोस्ट, गोबर, अनुमोदित जैविक कीटनाशक) का उपयोग करता है।

मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन न्यूनतम जुताई के साथ स्वस्थ मृदा पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना। रसायनों के अत्यधिक उपयोग के कारण प्रायः मृदा क्षरण होता है। कार्बनिक पदार्थ और फसल चक्र के माध्यम से मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है।
पर्यावरणीय प्रभाव यह अत्यधिक पर्यावरण अनुकूल है, जैव विविधता और जलवायु लचीलेपन को बढ़ावा देता है। रासायनिक अपवाह, मृदा अपरदन के कारण नकारात्मक प्रभाव पारंपरिक की तुलना में यह अधिक पर्यावरण अनुकूल है, लेकिन अभी भी इसमें चुनौतियाँ हैं।
उत्पादन की लागत स्थानीय, रसायन मुक्त इनपुट के कारण कम लागत सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के कारण उच्च लागत जैविक इनपुट और प्रमाणीकरण प्रक्रियाओं के कारण मध्यम लागत
उत्पादकता प्रारंभिक उपज कम हो सकती है, लेकिन बेहतर मिट्टी के साथ समय के साथ स्थिर हो सकती है। रासायनिक इनपुट के साथ अल्पावधि में उच्च पैदावार शुरुआत में पैदावार कम होती है, लेकिन उचित तरीकों से समय के साथ पैदावार स्थिर हो जाती है।
स्वास्थ्य और सुरक्षा रसायन मुक्त भोजन, स्वास्थ्य जोखिम को कम करता है। कीटनाशक अवशेषों और रसायनों से स्वास्थ्य जोखिम कम रासायनिक अवशेषों वाला स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन
पशुधन के प्रति दृष्टिकोण मृदा उर्वरता और पोषक चक्रण के लिए पशुधन को एकीकृत करता है। पशुधन को फसल उत्पादन से अलग करता है। खेती के साथ एकीकृत टिकाऊ पशुधन प्रथाएँ।
लचीलापन और स्थिरता विविध प्रणालियों, जैविक प्रथाओं के माध्यम से जलवायु लचीलापन का निर्माण मृदा क्षरण और रासायनिक उपयोग के कारण जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील पारंपरिक की तुलना में अधिक लचीला, लेकिन चरम मौसम में चुनौतियों का सामना कर सकता है।

प्राकृतिक खेती की चुनौतियाँ

  • पैदावार में कमी
    • सिक्किम जैसे क्षेत्रों में, जहाँ जैविक खेती की ओर रुख किया गया, किसानों ने पैदावार में गिरावट की सूचना दी।
    • कम उत्पादकता के कारण कुछ किसान पारंपरिक खेती के तरीकों पर वापस लौट आए हैं।
  • अनिश्चित आर्थिक लाभ
    • प्राकृतिक खेती से मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में मदद मिलती है, लेकिन उत्पादकता बढ़ाने और किसानों की आय बढ़ाने की इसकी क्षमता अभी भी अनिश्चित है।
    • उपज में उतार-चढ़ाव के कारण कई किसान इस दृष्टिकोण को अपनाने से हिचकते हैं।
  • इनपुट तैयार करने में कठिनाइयाँ
    • जीवामृत और बीजामृत जैसे जैविक इनपुट तैयार करने में समय, प्रयास और संसाधनों की आवश्यकता होती है, जिसे कई किसान चुनौतीपूर्ण मानते हैं।
    • आसानी से उपलब्ध प्राकृतिक इनपुट की कमी के कारण अक्सर किसानों को बाहरी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे लागत बढ़ जाती है।
  • पोषक तत्त्वों की कमी
    • अध्ययनों से पता चलता है कि प्राकृतिक इनपुट रासायनिक उर्वरकों की तुलना में कम पोषक तत्त्व प्रदान कर सकते हैं, विशेष रूप से उच्च इनपुट कृषि प्रणालियों में।
    • समय के साथ, बड़े पैमाने पर पोषक तत्त्वों की कमी से पैदावार कम हो सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
  • बदलाव के प्रति किसानों का प्रतिरोध
    • रासायनिक आधारित खेती से प्राकृतिक खेती की ओर जाने के लिए मानसिकता और प्रथाओं में महत्त्वपूर्ण बदलाव की आवश्यकता होती है, जिसे अपनाने में कई किसान अनिच्छुक हैं।
    • जागरूकता और प्रशिक्षण की कमी संक्रमण प्रक्रिया को और भी बाधित करती है।
  • बुनियादी ढाँचे की चुनौतियाँ
    • जैव-इनपुट संसाधन केंद्रों की उपलब्धता सीमित है, जिससे किसानों के लिए आवश्यक इनपुट तक पहुँच पाना मुश्किल हो जाता है।
    • प्राकृतिक कृषि उत्पादों के लिए प्रमाणन और ब्रांडिंग तंत्र अच्छी तरह से विकसित नहीं हैं, जिससे बाजार तक पहुँच और लाभप्रदता सीमित हो जाती है।

प्राकृतिक खेती का महत्त्व

  • आर्थिक लाभ
    • प्राकृतिक खेती महंगे रासायनिक इनपुट की आवश्यकता को कम करके उत्पादन की लागत को कम करती है।
    • यह प्राकृतिक इनपुट तैयार करने, मूल्य संवर्द्धन और स्थानीय विपणन के लिए उद्यमों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर उत्पन्न करती है।
  • स्वास्थ्य लाभ
    • चूँकि प्राकृतिक खेती में सिंथेटिक उर्वरकों या कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है, इसलिए यह रासायनिक जोखिम से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को समाप्त करता है।
    • प्राकृतिक खेती से प्राप्त उपज में उच्च पोषण मूल्य होता है, जिससे किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ होता है।

  • पर्यावरणीय स्थिरता
    • प्राकृतिक खेती मिट्टी की उर्वरता को पुनर्स्थापित करती है और मिट्टी में जैविक गतिविधियों को बढ़ाती है।
    • यह फसलों, पेड़ों और पशुधन को खेती प्रणाली में एकीकृत करके जैव विविधता को बढ़ावा देती है।
  • जलवायु लचीलापन
    • प्राकृतिक खेती से फसलों की मौसम की चरम स्थितियों जैसे सूखा, बाढ़ और चक्रवातों के प्रति लचीलापन बढ़ता है।
    • यह मिट्टी की संरचना को मजबूत करने और दीर्घकालिक खेती की व्यवहार्यता में सुधार करने के लिए जैविक कार्बन संवर्द्धन और पौधों की विविधता जैसी टिकाऊ प्रथाओं का उपयोग करता है।
  • पशुधन एकीकरण
    • जीवामृत और बीजामृत जैसे जैव-उर्वरकों को तैयार करने के लिए पशुधन, पर्यावरण-अनुकूल इनपुट जैसे गाय का गोबर और मूत्र उपलब्ध कराकर प्राकृतिक खेती में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारत में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल

  • परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana-PKVY)
    • यह योजना वर्ष 2015 में राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (National Mission on Sustainable Agriculture- NMSA) के हिस्से के रूप में शुरू की गई थी।
    • यह योजना जैविक खेती और प्राकृतिक खेती के तरीकों को बढ़ावा देती है।
    • यह किसानों को जैविक और प्राकृतिक खेती के तरीकों को अपनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • यह जैविक और प्राकृतिक उत्पादों के लिए प्रमाणन और बाजार संपर्क का भी समर्थन करती है।

  • भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति कार्यक्रम (Bhartiya Prakritik Krishi Paddhati Programme-BPKP)
    • परंपरागत और स्वदेशी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के अंतर्गत शुरू किया गया।
    • इसका उद्देश्य जीवामृत और बीजामृत जैसे जैविक इनपुट के उपयोग को प्रोत्साहित करके रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम करना है।
    • इसका उद्देश्य मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखना और किसानों के लिए खेती की लागत को कम करना है।
  • शून्य बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF)
    • किसानों की महंगी रासायनिक इनपुट पर निर्भरता कम करने के लिए सरकारी पहल के हिस्से के रूप में प्रचारित करना।
    • उत्पादन लागत को कम करने के लिए स्थानीय रूप से प्राप्त इनपुट और प्राकृतिक तकनीकों का उपयोग करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन (Mission Organic Value Chain Development for North Eastern Region- MOVCDNER)
    • इसे वर्ष 2015-16 के दौरान लॉन्च किया गया था और इसने 1.73 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक खेती के अंतर्गत लाने में मदद की है, जिससे 1.89 लाख किसानों को लाभ हुआ है।
    • यह योजना विशेष रूप से भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को लक्षित करती है।
    • यह जैविक खेती और जैविक उत्पादों के मूल्य संवर्द्धन को बढ़ावा देती है।
    • यह बुनियादी ढाँचे के विकास, क्षमता निर्माण और बाजार संपर्क के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • मध्य प्रदेश का जैविक खेती मॉडल
    • मध्य प्रदेश अपने प्राकृतिक कृषि पद्धति कार्यक्रम के अंतर्गत प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहा है।
    • राज्य जैविक खादों के उपयोग, रासायनिक निर्भरता को कम करने और फसल चक्र को बढ़ावा देता है।
  • सिक्किम जैविक खेती
    • भारत का पहला पूर्ण जैविक राज्य सिक्किम ने बड़े पैमाने पर प्राकृतिक खेती को अपनाया। राज्य ने रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को पूरी तरह से समाप्त कर दिया, जिससे जैविक खेती के तरीकों को बढ़ावा मिला।
    • सरकार जैविक उत्पादों के लिए प्रमाणन, प्रशिक्षण और बाजार लिंकेज के लिए सहायता प्रदान करती है।

प्राकृतिक खेती के प्रमुख मॉडल

मासानोबू फुकुओका की ‘डू-नथिंग फार्मिंग’ (Do-Nothing Farming)

  • फुकुओका का दृष्टिकोण, जिसे ‘डू-नथिंग फार्मिंग’ के नाम से भी जाना जाता है, कृषि प्रक्रियाओं में मानवीय हस्तक्षेप को न्यूनतम करने, प्राकृतिक चक्रों पर निर्भर रहने तथा भूमि को स्वयं पुनर्जीवित होने देने पर केंद्रित है। 
  • मूल सिद्धांत
    • कोई जुताई नहीं, कोई उर्वरक नहीं, कोई कीटनाशक नहीं, और कोई सिंचाई नहीं।
    • मृदा स्वास्थ्य, जैव विविधता और प्राकृतिक कीट नियंत्रण पर जोर देता है।
    • एक समग्र दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है जहाँ फसलों, खरपतवारों और कीटों को प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के हिस्से के रूप में देखा जाता है, जिससे भूमि खुद को बनाए रख पाती है।

सुभाष पालेकर की शून्य बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF)

  • शून्य बजट प्राकृतिक कृषि (ZBNF) भारतीय कृषक सुभाष पालेकर द्वारा विकसित एक कृषि पद्धति है, जिसका उद्देश्य उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे बाहरी इनपुट की आवश्यकता के बिना खेती को आर्थिक रूप से व्यवहार्य और पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ बनाना है।
  • मूल सिद्धांत
    • शून्य लागत इनपुट: उर्वरकों और कीटनाशकों के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों जैसे गोबर, मूत्र और अन्य जैविक सामग्री का उपयोग करता है।
    • मृदा स्वास्थ्य: मल्चिंग, फसल चक्रण और खाद बनाने जैसी प्रथाओं के माध्यम से मिट्टी को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • पशुधन एकीकरण: प्राकृतिक इनपुट प्रदान करने और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के मॉडल में पशुधन केंद्रीय है।
    • जल संरक्षण: मिट्टी की नमी को संरक्षित करने के लिए मल्चिंग जैसी तकनीकों को लागू करता है।

कोरियाई प्राकृतिक खेती (Korean Natural Farming- KNF)

  • कोरियाई प्राकृतिक खेती (KNF) चो हान क्यू (Cho Han Kyu) द्वारा विकसित एक विधि है, जो मृदा स्वास्थ्य और फसल उत्पादकता बढ़ाने के लिए स्वदेशी सूक्ष्मजीवों (IMOs) और प्राकृतिक आदानों के उपयोग पर जोर देती है।
  • मूल सिद्धांत
    • मृदा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए स्वदेशी सूक्ष्मजीवों (IMOs) के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • किण्वित पौधों में उपस्थित अर्क, मछली में उपस्थित अमीनो एसिड और खाद बनाने की तकनीक जैसे प्राकृतिक उपायों का उपयोग करता है।
    • सिंथेटिक रसायनों के बजाय जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य पर जोर देता है।

पर्माकल्चर खेती (Permaculture Farming)

  • पर्माकल्चर एक समग्र कृषि प्रणाली है, जिसे प्राकृतिक प्रणालियों की नकल करके टिकाऊ कृषि पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • मूल सिद्धांत
    • कृषि प्रणालियों को आत्मनिर्भर बनाने और बाहरी इनपुट को कम करने के लिए डिजाइन करना।
    • जैव विविधता, मृदा स्वास्थ्य और जल संरक्षण पर जोर देता है।
    • संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जानवरों, पौधों और प्राकृतिक चक्रों का एकीकरण।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (National Mission on Natural Farming-NMNF) का उद्देश्य टिकाऊ, रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा देना, मृदा स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और किसान लचीलापन बढ़ाना है। इसकी सफलता मजबूत नीति समर्थन और भागीदारी के साथ किसान प्रशिक्षण, बुनियादी ढाँचे और बाजार पहुँच जैसी चुनौतियों का समाधान करने पर निर्भर करती है।

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