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Nov 29 2024

संदर्भ

उपभोक्ता मामले विभाग ने हाल ही में ‘ई-दाखिल’ पोर्टल के सफल राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन की घोषणा की, जो अब भारत के प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में प्रारंभ हुआ है।

  • यह महत्त्वपूर्ण उपलब्धि 22 नवंबर, 2024 को लद्दाख में पोर्टल के शुभारंभ के साथ हासिल की गई, जिससे ‘ई-दाखिल’ एक अखिल भारतीय पहल बन गई।

ई-दाखिल’ पोर्टल (E-Daakhil Portal)

  • ई-दाखिल पोर्टल को पहली बार वर्ष 2020 में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) द्वारा लॉन्च किया गया था। 
  • इसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के तहत कागजरहित तरीके से उपभोक्ता शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए पेश किया गया था। 
  • उद्देश्य: ई-दाखिल पोर्टल का प्राथमिक उद्देश्य उपभोक्ताओं को उपभोक्ता मंचों पर जाने की आवश्यकता के बिना, ऑनलाइन अपनी शिकायतें दर्ज करने और हल करने के लिए एक कुशल और सुविधाजनक तंत्र प्रदान करना है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986

  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का उद्देश्य वस्तुओं और सेवाओं से संबंधित शिकायतों का समाधान करके उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करना है। 
  • यह विवादों के शीघ्र समाधान, उपभोक्ता व्यवहार में निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए उपभोक्ता परिषदों और अन्य प्राधिकरणों की स्थापना के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है।

ई-दाखिल पोर्टल की मुख्य विशेषताएँ

  • उपयोगकर्ता-अनुकूल इंटरफेस: पोर्टल एक सहज और आसानी से नेविगेट करने वाला प्लेटफॉर्म प्रदान करता है, जिससे उपभोक्ता कम-से-कम प्रयास में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
  • ऑनलाइन शिकायत दर्ज करना: उपभोक्ता ऑनलाइन उपभोक्ता आयोगों में अपनी शिकायतें दर्ज कर सकते हैं, आवश्यक शुल्क का भुगतान कर सकते हैं और अपने मामलों की प्रगति को ट्रैक कर सकते हैं-यह सब वे अपने घर बैठे आराम से कर सकते हैं।
  • पहुँच: पोर्टल को पंजीकृत मोबाइल नंबर या ईमेल आईडी का उपयोग करके एक्सेस किया जा सकता है।
  • सभी क्षेत्रों के लिए सुविधा: ई-दाखिल पोर्टल भारत भर के उपभोक्ताओं के लिए महानगरों से लेकर सबसे दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुँच सुनिश्चित करता है।
  • भौतिक यात्राओं को कम करना: इस पहल से उपभोक्ताओं को भौतिक रूप से उपभोक्ता मंचों पर जाने की आवश्यकता कम हो जाती है, जिससे समय और संसाधनों की बचत होती है।

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC)

  • NCDRC एक अर्द्ध-न्यायिक आयोग है, जिसकी स्थापना वर्ष 1988 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत की गई थी।
  • उद्देश्य: उपभोक्ताओं को विवादों का सस्ता, त्वरित और संक्षिप्त समाधान प्रदान करना।
  • नेतृत्व: NCDRC का नेतृत्व सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश अथवा उच्च न्यायालय के वर्तमान या सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश करते हैं।
  • NCDRC का अधिकार क्षेत्र
    • NCDRC उन शिकायतों को सँभालता है, जहाँ वस्तुओं या सेवाओं का मूल्य दो करोड़ रुपये से अधिक है।
    • राज्य आयोगों या जिला मंचों द्वारा पारित आदेशों पर भी इसका अपीलीय और पुनरीक्षण अधिकार क्षेत्र है।
  • अपील: NCDRC के आदेश से व्यथित कोई भी व्यक्ति 30 दिनों की अवधि के भीतर भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।
  • निम्नलिखित द्वारा शिकायत दर्ज की जा सकती है:
    • कोई व्यक्तिगत उपभोक्ता।
    • कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत कोई भी स्वैच्छिक उपभोक्ता संघ।
    • केंद्र सरकार या कोई राज्य सरकार।
    • एक या अधिक उपभोक्ता, ऐसे मामलों में जहाँ कई उपभोक्ता एक ही शिकायत साझा करते हैं।

संदर्भ

सहकारिता मंत्री अमित शाह ने राष्ट्रीय राज्य सहकारी बैंक महासंघ (NAFSCOB) को प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) को अधिक व्यवहार्य, पारदर्शी और आधुनिक बनाने को प्राथमिकता देने का निर्देश दिया है।

NAFSCOB हीरक जयंती समारोह की मुख्य विशेषताएंँ

  • सहयोग की भावना को पुनर्जीवित करना: राज्य और जिला स्तर की संस्थाओं में सहकारिता की भावना को मजबूत करने की आवश्यकता है तथा इसके “कमजोर/समाप्त होने” (Dilution) होने से संबंधित चिंताओं का समाधान करना है।
    • वास्तविक सहयोग को सामूहिक समृद्धि को बढ़ावा देने और हितधारकों के बीच समान लाभ-साझाकरण के रूप में परिभाषित किया गया।
  • पैक्स (PACS) सुधारों पर ध्यान: इस बात पर प्रकाश डाला गया कि 1.05 लाख पैक्स में से केवल 65,000 ही वर्तमान में कार्यात्मक हैं तथा उनमें सुधार की आवश्यकता है।
  • तकनीकी उन्नयन और युवा सहभागिता: सहकारी बैंकिंग में तकनीकी उन्नति की आवश्यकता पर बल दिया गया, साथ ही इस क्षेत्र को आधुनिक बनाने और सक्रिय बनाने के लिए युवाओं की सहभागिता के लिए अवसर निर्मित करने के प्रस्ताव भी प्रस्तुत किए गए।
  • सहकारी बैंकिंग का विस्तार: आने वाले वर्षों में जिला सहकारी बैंकों की संख्या को मौजूदा 300 से 50% तक बढ़ाना, स्थानीय क्षेत्रों में कम लागत वाली जमाराशियों पर ध्यान केंद्रित करके उच्च जमा लक्ष्य और लाभ मार्जिन को बढ़ाना।
  • भावी दृष्टिकोण: सहकारिता मंत्री ने चुनौतियों का समाधान करने तथा भारत के आर्थिक विकास में ग्रामीण बैंकिंग क्षेत्र के योगदान को बढ़ाने के लिए नवीन दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया। 
  • सफल मॉडलों से सीख: उन्होंने सुधार के लिए मानक के रूप में अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक तथा गुजरात राज्य सहकारी बैंक जैसी संस्थाओं की सफलता का अध्ययन करने की सिफारिश की।

प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) के बारे में 

  • संरचना और भूमिका: पैक्स (PACS) ग्राम-स्तरीय सहकारी ऋण समितियाँ हैं, जो त्रि-स्तरीय सहकारी ऋण संरचना में सतही स्तर की कड़ी के रूप में कार्य करती हैं, राज्य स्तर पर जिसका नेतृत्व राज्य सहकारी बैंक (SCBs) करते हैं।
    • वर्ष 1904 में प्रथम PACS की स्थापना हुई थी।

  • विनियमन और प्रशासन: PACS सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं और संबंधित राज्य सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार (RCS) द्वारा प्रशासित हैं।
    • SCBs और जिला केंद्रीय सहकारी बैंक (DCCBs) भी राज्य सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा विनियमित हैं।
    • PACS बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 द्वारा शासित नहीं हैं, इसलिए ये RBI के नियामक दायरे के अंतर्गत शामिल नहीं हैं।
  • पुनर्वित्तपोषण: PACS को DCCB और SCB के माध्यम से पुनर्वित्तपोषण प्राप्त होता है, जिसे राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) द्वारा सुगम बनाया जाता है।
  • कार्य: PACS ग्रामीण उधारकर्ताओं को अल्पकालिक ऋण ऋण प्रदान करते हैं और पुनर्भुगतान के संग्रह का प्रबंधन करते हैं।
    • वे सदस्य किसानों को बीज, उर्वरक और कीटनाशकों के वितरण जैसी आगत सुविधाएँ भी प्रदान करते हैं।
  • कृषि ऋण में योगदान: भारत में सभी संस्थाओं द्वारा वितरित किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) ऋणों में पैक्स का योगदान 41% है।
    • इनमें से, वर्ष 2022 तक PACS के माध्यम से 95% KCC ऋण लघु और सीमांत किसानों को आवंटित किए जाएँगे।
  • अन्य ऋण प्रणालियों के साथ तुलना: यद्यपि भारत में कृषि ऋण में वाणिज्यिक बैंकों का योगदान अधिक (73%) है, लेकिन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) और सहकारी बैंकों द्वारा लघु और सीमांत कृषकों को उच्च ऋण वितरित किया है।

राष्ट्रीय राज्य सहकारी बैंक संघ लिमिटेड (NAFSCOB) के बारे में

  •  19 मई, 1964 को NAFSCOB की स्थापना सामान्यतः राज्य और केंद्रीय सहकारी बैंकों के परिचालन को सुविधाजनक बनाने तथा विशेष रूप से सहकारी ऋण के विकास, योजना, अनुसंधान और विकास (PRD) के उद्देश्य से की गई थी।
  • उद्देश्य: भारत में सहकारी बैंकिंग आंदोलन को बढ़ावा देना और मजबूत करना। 
  • सदस्यता: इसमें विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के राज्य सहकारी बैंक (SCBs) शामिल हैं।

NAFSCOB की भूमिका

  • SCBs को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करता है। 
  • SCBs के बीच समन्वय और सहयोग को सुगम बनाता है। 
  • राष्ट्रीय स्तर पर  SCBs के हितों का प्रतिनिधित्व करता है। 
  •  SCBs और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)  के मध्य सेतु के रूप में कार्य करता है।

संदर्भ

थल सेनाध्यक्ष (COAS) ने मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री की चार बटालियनों को प्रतिष्ठित प्रेसिडेंट्स कलर प्रदान किए।

संबंधित तथ्य

  • यह समारोह महाराष्ट्र के अहिल्यानगर में मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री सेंटर एंड स्कूल (MICS) में आयोजित किया गया।
  • सम्मानित बटालियनें
    • मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री रेजिमेंट की 26वीं और 27वीं बटालियन।
    • गार्ड्स ब्रिगेड की 20वीं और 22वीं बटालियन।
  • COAS का संबोधन और आभार: COAS ने युद्ध और शांति दोनों ही स्थितियों में मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री की अनुकरणीय सेवा, समर्पण और व्यावसायिकता पर प्रकाश डाला।
  • उन्होंने प्रमुख अभियानों में उनके योगदान के लिए बटालियनों की सराहना की जैसे:
    • ऑपरेशन पवन।
    • ऑपरेशन विजय।
    • ऑपरेशन रक्षक।
    • ऑपरेशन स्नो लेपर्ड।
    • संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन।
  • COAS ने सभी रैंकों से सेना के मूल मूल्यों और लोकाचार को बनाए रखने तथा उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने का आग्रह किया।
  • पूर्व सैनिकों का सम्मान: COAS ने पूर्व सैनिकों और समाज के कल्याण में उनके योगदान के लिए चार अनुभवी उपलब्धि हासिल करने वालों को सम्मानित किया।

प्रेसिडेंट कलर्स अवार्ड के बारे में

  • प्रेसिडेंट कलर्स, जिसे “राष्ट्रपति का निशान” भी कहा जाता है, भारत में किसी सैन्य इकाई, सैन्य प्रशिक्षण प्रतिष्ठान या राज्य/केंद्रशासित प्रदेश पुलिस बल को दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मानों में से एक है।
  • कलर फ्लैग: इस पुरस्कार का प्रतिनिधित्व एक औपचारिक ध्वज द्वारा किया जाता है, जिस पर इकाई का प्रतीक चिह्न और आदर्श वाक्य अंकित होता है, जो इसकी पहचान, विरासत तथा गौरव का प्रतीक है।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: ध्वज प्रदान करने की परंपरा औपनिवेशिक काल से चली आ रही है, जहाँ झंडे किसी इकाई की पहचान और उसके कमांडरों के स्थान का प्रतिनिधित्व करते थे।
    • 23 नवंबर, 1950 को देहरादून के चेटवुड हॉल में ब्रिटिश भारतीय सेना के ‘किंग्स कलर’ को औपचारिक रूप से सेवानिवृत्त कर दिया गया, जिससे भारत गणराज्य के तहत प्रेसिडेंट कलर्स की शुरुआत का मार्ग प्रशस्त हुआ।
    • भारतीय नौसेना प्रेसिडेंट कलर्स प्राप्त करने वाली पहली भारतीय सशस्त्र सेना थी, जिसे 27 मई, 1951 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा सम्मानित किया गया था।
  • औपचारिक और प्रतीकात्मक मूल्य: हालाँकि ध्वज अब युद्ध में प्रयुक्त नहीं होते हैं, लेकिन वे बहुत अधिक औपचारिक महत्त्व रखते हैं, जो एक इकाई के सम्मान और सेवा के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • पुरस्कार के लिए मानदंड: प्रेसिडेंट कलर्स इकाइयों को अनुकरणीय सेवा की एक निर्दिष्ट अवधि पूरी करने पर प्रदान किए जाते हैं।
    • यह पुरस्कार राष्ट्रीय सुरक्षा और कल्याण को बढ़ाने में इकाई की व्यावसायिकता, समर्पण और योगदान को मान्यता देता है।
  • महत्त्व: यह सभी रैंकों के लिए प्रेरणा और गौरव का स्रोत है तथा उन्हें राष्ट्र के प्रति सेवा एवं समर्पण के उच्चतम मानकों को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करता है।

मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री की विरासत के बारे में

  • मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री एक विशेष लड़ाकू शाखा है, जो बख्तरबंद वाहनों की गतिशीलता और मारक क्षमता को पैदल सेना के सैनिकों की बहुमुखी प्रतिभा तथा लचीलेपन के साथ जोड़ती है।
  • स्थापना: मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री की स्थापना वर्ष 1979 में हुई थी, जिससे यह भारतीय सेना की सबसे युवा शाखाओं में से एक बन गई।
  • बहुमुखी प्रतिभा: यह एक अत्यधिक बहुमुखी शाखा के रूप में प्रसिद्ध है, जो पारंपरिक पैदल सेना की ताकत को मैकेनाइज्ड बलों की गतिशीलता और मारक क्षमता के साथ जोड़ती है।
  • तैनाती: मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री बटालियन विभिन्न ऑपरेशनल थिएटरों में कार्य करती हैं, जिसमें महत्त्वपूर्ण घरेलू असाइनमेंट और संयुक्त राष्ट्र के तहत अंतरराष्ट्रीय शांति मिशन शामिल हैं।
  • प्रतिष्ठा: यह शाखा अपने साहस, अनुशासन और परिचालन उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध है, जो लगातार युद्ध और शांति दोनों भूमिकाओं में उच्च मानकों का प्रदर्शन करती है।
  • आधुनिक बल: अपनी अनुकूलनशीलता और व्यावसायिकता के साथ, मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री ने भारतीय सेना के भीतर एक आधुनिक और आगे की सोच रखने वाली सेना के रूप में अपनी प्रतिष्ठा को मजबूत किया है।

ब्रिगेड ऑफ द गार्ड्स के बारे में

  • स्थापना: वर्ष 1949
  • मोटो (Moto): “पहला हमेशा पहला” 
  • संचालन क्षेत्र: मुख्य रूप से भारत के विभिन्न भागों में मशीनीकृत पैदल सेना की भूमिकाओं में तैनात, जिसमें आतंकवाद विरोधी अभियान और शांति मिशन शामिल हैं।
  • उल्लेखनीय उपलब्धियाँ: संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन, आतंकवाद विरोधी अभियानों और विभिन्न सैन्य अभ्यासों में भागीदारी।
  • रेजिमेंटल सेंटर: कैम्पटी, महाराष्ट्र।

संदर्भ

हाल ही में सेना को पूर्वी क्षेत्र में तैनाती के लिए एंड्योर एयर सिस्टम्स से खरीदे गए सबल 20 लॉजिस्टिक्स ड्रोन प्राप्त हुए हैं।

  • एक अन्य घटनाक्रम में, आईआईटी कानपुर ने ‘मेटामटेरियल सरफेस क्लोकिंग सिस्टम – अनलक्ष्य’ को लॉन्च करके स्टील्थ प्रौद्योगिकी में एक बड़ी प्रगति की घोषणा की।

सबल 20 (Sabal 20)

  • सबल-20 एक इलेक्ट्रिक मानवरहित हेलीकॉप्टर है, जो ‘वैरिएबल पिच’ तकनीक का उपयोग करके संचालित होता है। 
  • इसे वर्ष 2018 में आईआईटी कानपुर में इनक्यूबेट की गई एक निजी कंपनी एंड्योरएयर सिस्टम्स द्वारा निर्मित किया गया है। 
  • ड्रोन को अधिक तुंगता वाले लॉजिस्टिक्स, सटीक डिलीवरी और लंबी दूरी के परिवहन जैसी परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए डिजाइन किया गया है। 
  • मुख्य विशेषताएँ
    • टेंडम रोटर विन्यास
      • ड्रोन में एक टेंडम रोटर कॉन्फिगरेशन है, जो उल्लेखनीय स्थिरता और बेहतर उच्च-तुंगता प्रदर्शन सुनिश्चित करता है। 
      • इसका डिजाइन जोखिम को कम करता है और विभिन्न इलाकों में ड्रोन की क्षमता को बढ़ाता है।
    • भार क्षमता:
      • सबल-20 की क्षमता 20 किलोग्राम तक का पेलोड ले जाने की है, जो इसके अपने वजन का 50% है।
      • भविष्य की परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पेलोड क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।
    • वर्टिकल टेक-ऑफ और लैंडिंग (VTOL) प्रौद्योगिकी
      • यह ड्रोन उन्नत VTOL प्रौद्योगिकी से युक्त है, जिससे यह सीमित स्थानों और कठिन वातावरण में भी कुशलतापूर्वक काम कर सकता है।
    • ‘स्टील्थ’ संबंधी विशेषताएँ
      • यह ड्रोन कम गति प्रति मिनट (आरपीएम) पर संचालित होता है, जिससे शोर कम होता है और संवेदनशील मिशनों में इसकी गोपनीयता बढ़ जाती है।
    • उन्नत क्षमताएँ
      • इसमें अत्याधुनिक स्वायत्त उड़ान प्रौद्योगिकी है, जो ऑपरेटर की दृष्टि रेखा से परे होने पर भी विश्वसनीय संचालन को सक्षम बनाती है। 
      • उपयोगकर्ता के अनुकूल नियंत्रण जटिल कार्यों को सरल बनाते हैं, जिससे यह विविध परिचालन परिदृश्यों के लिए उपयुक्त हो जाता है।
  • अनुप्रयोग
    • सबल-20 दूरदराज और बीहड़ इलाकों में सटीक रसद के लिए आदर्श है। 
    • इसे उच्च तुंगता युक्त मिशनों और लंबी दूरी की डिलीवरी के लिए तैनात किया जा सकता है। 
    • इसकी गोपनीय क्षमताएँ इसे संवेदनशील सैन्य अभियानों के लिए विशेष रूप से उपयोगी बनाती हैं।

वर्टिकल टेक-ऑफ और लैंडिंग (VTOL) तकनीक

  • यह विमान और ड्रोन को रनवे की आवश्यकता के बिना, लंबवत् उड़ान भरने, मंडराने और उतरने की अनुमति देता है। 
  • VTOL विमान कई प्रकार की तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
    • रोटरक्राफ्ट: उड़ने और संचलन करने के लिए रोटर ब्लेड का उपयोग करता है।
    • वेक्टर थ्रस्ट पिच को नियंत्रित करने के लिए कई रोटर्स के थ्रस्ट का उपयोग करता है।
    • हाइब्रिड: क्रूज उड़ान के लिए पारंपरिक विंग डिजाइन के साथ होवरिंग क्षमताओं को जोड़ता है।
  • VTOL विमान के उदाहरण
    • सी हैरियर: एक ‘फिक्स्ड-विंग VTOL विमान’ जिसने ब्रिटेन, अमेरिका, भारत, स्पेन और इटली सहित कई देशों में सेवा दी है। 
    • बेल/बोइंग वी-22 ऑस्प्रे: इसे दुनिया का पहला ‘प्रोडक्शन टिल्ट्रोटर’ विमान माना जाता है।

अनलक्ष्य- ‘मेटामटेरियल सरफेस क्लोकिंग सिस्टम’ (MSCS)

  • ‘अनलक्ष्य-MSCS’ आईआईटी कानपुर द्वारा विकसित एक स्टील्थ तकनीक है। इस तकनीक को विनिर्माण और तैनाती के लिए ‘मेटा तत्त्व सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड’ को लाइसेंस दिया गया है। 
  • मुख्य विशेषताएँ
    • पदार्थ
      • यह प्रणाली कपड़ा आधारित ब्रॉडबैंड मेटामटेरियल माइक्रोवेव अवशोषक का उपयोग करती है, जो उन्नत गुप्त क्षमताएँ प्रदान करती है।
    • स्टील्थ तकनीक
      • ‘क्लोकिंग सिस्टम’ व्यापक स्पेक्ट्रम में विद्युत चुंबकीय तरंगों का लगभग पूर्ण अवशोषण प्रदान करता है। 
      • यह सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) इमेजिंग का प्रतिरोध करते हुए रडार निर्देशित मिसाइलों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है।
    • स्वदेशी विकास
      • इस प्रणाली के लिए उपयोग की जाने वाली लगभग 90% सामग्री स्वदेशी रूप से प्राप्त की गई है। 
      • वर्ष 2019 और 2024 के बीच इस तकनीक का कठोर प्रयोगशाला और क्षेत्र परीक्षण किया गया, जिससे विभिन्न परिस्थितियों में इसकी प्रभावशीलता सिद्ध हुई।
  • अनुप्रयोग
    • ‘अनलक्ष्य-MSCS’ को सैन्य अभियानों में गोपनीय क्षमताओं को बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है। 
    • यह मिसाइलों सहित रडार निर्देशित खतरों के खिलाफ प्रभावी सुरक्षा प्रदान करता है और रडार प्रणालियों द्वारा पता लगाने की क्षमता को काफी कम करता है।

संदर्भ

पिछले कुछ वर्षों में मनरेगा जॉब कार्ड से नाम हटाए जाने वाले श्रमिकों की संख्या में वृद्धि देखी गई है।

मनरेगा (MGNREGA) के बारे में

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) भारत के सामाजिक सुरक्षा तंत्र की आधारशिला है।
    • यह प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति वर्ष 100 दिनों के काम की कानूनी गारंटी प्रदान करता है। 
  • यह अधिकार अधिनियम में निहित है तथा जॉब कार्ड के माध्यम से क्रियान्वित किया जाता है, लेकिन श्रमिकों के नाम हटाए जाने की बढ़ती संख्या के कारण यह अधिकार लगातार कमजोर होता जा रहा है।

मनरेगा जॉब कार्ड के बारे में

  • मनरेगा जॉब कार्ड, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत ग्रामीण परिवारों को जारी किए जाने वाले आवश्यक दस्तावेज हैं। 
  • ये कार्ड अधिनियम के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने एवं ग्रामीण परिवारों के लिए कार्य के अधिकार की गारंटी के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करते हैं।

मनरेगा जॉब कार्ड की मुख्य विशेषताएँ

  • विशिष्ट पहचान: प्रत्येक जॉब कार्ड को एक विशिष्ट पहचान संख्या दी जाती है।
  • विवरण: इसमें कार्य के लिए पात्र घर के सभी वयस्क सदस्यों के बारे में जानकारी शामिल है।
  • कार्य पात्रता: कार्डधारक को प्रति वर्ष 100 दिनों की गारंटीकृत रोजगार का अधिकार देता है।
  • वेतन संवितरण: किए गए कार्य, अर्जित मजदूरी एवं भुगतान विवरण रिकॉर्ड करता है।
  • निगरानी उपकरण: कार्य प्रगति को ट्रैक करने, वेतन भुगतान की निगरानी करने एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन का आकलन करने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • ग्राम पंचायत द्वारा जारी: स्थानीय निकाय अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर पात्र परिवारों को मनरेगा जॉब कार्ड जारी करने के लिए उत्तरदायी हैं।

अधिक संख्या में जॉब कार्ड से नाम हटाए जाने के लिए उत्तरदायी कारक

  • पिछले चार वर्षों में आश्चर्यजनक रूप से 10.43 करोड़ श्रमिकों को हटा दिया गया है, जिसमें वर्ष 2022-23 में विशेष रूप से चिंताजनक वृद्धि होगी। 
  • हटाने का कारण: मनरेगा में आधार आधारित भुगतान प्रणालियों के कार्यान्वयन को श्रमिकों के नाम हटाए जाने से जोड़ा गया है। 
  • मनमाने ढंग से विलोपन: 100% आधार सीडिंग हासिल करने की जल्दबाजी में, फील्ड अधिकारियों ने शॉर्टकट का सहारा लिया, जिसमें उन श्रमिकों के जॉब कार्ड को हटाना भी शामिल था, जिन्हें तुरंत उनके आधार नंबर से जोड़ा नहीं जा सका था।
  • पारदर्शिता का अभाव: हटाने की प्रक्रिया अक्सर पारदर्शिता एवं उचित प्रक्रिया की कमी के कारण बाधित होती है। 
    • श्रमिकों को उचित सूचना या सुनवाई का अवसर दिए बिना जॉब कार्ड से हटा दिया गया है।
    • हटाने के लिए उद्धृत कारण, जैसे ‘काम करने के इच्छुक नहीं’ या ‘डुप्लिकेट आवेदक’, अक्सर मनमाने एवं अप्रमाणित लगते हैं।

मनरेगा एवं कार्य का अधिकार: DPSP की ओर एक कदम के रूप में

  • कानूनी ढाँचा: मनरेगा ग्रामीण परिवारों को काम करने का वैधानिक अधिकार प्रदान करता है।
  • रोजगार की गारंटी: एक वित्तीय वर्ष में कम-से-कम 100 दिनों का वेतन रोजगार सुनिश्चित करता है। 
    • अनुच्छेद-41: कार्य, शिक्षा एवं सार्वजनिक सहायता का अधिकार।
  • वेतन रोजगार: रोजगार के अवसर उत्पन्न करता है, विशेषकर कृषि के ऑफ-सीजन के दौरान। 
  • सामाजिक सुरक्षा तंत्र: विशेष रूप से वंचित समुदायों के लिए सामाजिक सुरक्षा तंत्र के रूप में कार्य करता है।
  • संपत्ति निर्माण: सड़कों, तालाबों एवं सिंचाई नहरों जैसी सार्वजनिक संपत्तियों के निर्माण के माध्यम से ग्रामीण विकास में योगदान देता है।
    • अनुच्छेद-43: जीवनयापन मजदूरी, कार्य की शर्तें।
  • ग्रामीण महिलाओं का सशक्तीकरण: कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
    • अनुच्छेद-42: कार्य एवं मातृत्व राहत की उचित एवं मानवीय स्थितियाँ।

ग्रामीण आजीविका पर प्रभाव

  • यह प्रवृत्ति बेहद चिंताजनक है, क्योंकि इसका सीधा असर लाखों ग्रामीण परिवारों की आजीविका पर पड़ता है।
  • कार्य के अधिकार के क्षरण का ग्रामीण आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। 
  • जिन श्रमिकों का नाम जॉब कार्ड से हटा दिया गया है, वे रोजगार एवं सामाजिक सुरक्षा के अपने कानूनी अधिकार से वंचित हो गए हैं। 
  • यह कमजोर परिवारों को गंभीर गरीबी एवं खाद्य असुरक्षा की और ले जा सकता है।

कार्य करने का अधिकार बहाल करना

  • जवाबदेही एवं पारदर्शिता को मजबूत करना: कर्मचारियों के हटाए जाने पर नजर रखने एवं उचित प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करने के लिए मजबूत निगरानी एवं मूल्यांकन तंत्र लागू करना।
  • स्वतंत्र ऑडिट: अनियमितताओं की पहचान करने एवं उन्हें सुधारने के लिए मनरेगा कार्यान्वयन का नियमित, स्वतंत्र ऑडिट करना।
  • ग्राम सभाओं को सशक्त बनाना: मनरेगा कार्यान्वयन की निगरानी एवं श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए ग्राम सभाओं को सशक्त बनाना।
  • सार्वजनिक जागरूकता एवं शिकायत निवारण: काम करने के अधिकार के बारे में जागरूकता बढ़ाना एवं प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना।
  • डेटा संचालित निर्णय-निर्माण: मनरेगा कार्यान्वयन में सुधार करने एवं श्रमिकों को हटाने के रुझानों की पहचान करने के लिए प्रौद्योगिकी तथा डेटा विश्लेषण का लाभ उठाना।

लाभार्थी राज्य एवं आवंटन (रूपये में)

  • उत्तराखंड (139 करोड़), हिमाचल प्रदेश (139 करोड़),  आठ उत्तर-पूर्वी राज्य (378 करोड़), महाराष्ट्र (100 करोड़), कर्नाटक (72 करोड़), केरल (72 करोड़), तमिलनाडु (50 करोड़), पश्चिम बंगाल (50 करोड़)।

संदर्भ

केंद्रीय गृह मंत्री की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति (HLC) ने भारत में आपदा न्यूनीकरण और क्षमता निर्माण परियोजनाओं के लिए 1115.67 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं।

  • उद्देश्य: प्रधानमंत्री के आपदा-लचीले भारत के दृष्टिकोण का अनुसरण करते हुए, राज्यों में आपदा लचीलापन एवं तैयारियों को मजबूत करना।

HLC द्वारा प्रमुख स्वीकृतियाँ

  • राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम शमन (National Landslide Risk Mitigation- NLRM) परियोजना: उच्चस्तरीय समिति ने 15 राज्यों में भूस्खलन के जोखिम को कम करने तथा संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए 1000 करोड़ रुपये मंजूर किए। यह पहल राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण कोष (NDMF) का हिस्सा है तथा संवेदनशील क्षेत्रों में भूस्खलन से होने वाले नुकसान को कम करने की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को पूरा करती है।
  • नागरिक सुरक्षा के लिए प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण: उच्च स्तरीय समिति ने राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) के अंतर्गत 115.67 करोड़ रुपये के वित्त पोषण को मंजूरी दी।
    • उद्देश्य: आपदा तैयारियों एवं प्रतिक्रिया में सुधार के लिए सभी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण देना।

NLRM परियोजना की आवश्यकता

  • भारत का भूस्खलन जोखिम: भारत के ISRO भूस्खलन एटलस के अनुसार, भारत सबसे अधिक भूस्खलन जोखिम वाले शीर्ष चार देशों में से एक है।
  • रोकथाम एवं पूर्वानुमान: भूकंप एवं सुनामी के विपरीत, सक्रिय आपदा प्रबंधन को सक्षम करके, भूस्खलन को रोका तथा पूर्वानुमान दोनों लगाया जा सकता है।
  • वैज्ञानिक संस्कृति: NLRM परियोजना का उद्देश्य भूस्खलन की वैज्ञानिक जाँच, विश्लेषण एवं प्रबंधन की संस्कृति को बढ़ावा देना, तैयारियों तथा शमन को बढ़ाना है।

भूस्खलन क्या है?

  • परिभाषा: भूस्खलन से तात्पर्य ढलान पर चट्टान, मिट्टी एवं मलबे के नीचे की ओर सरकने से है, जो छोटे बदलावों से लेकर बड़े पैमाने पर विनाशकारी घटनाओं तक हो सकता है।
  • कारण: भूस्खलन भारी वर्षा, भूकंप, ज्वालामुखीय गतिविधियाँ, निर्माण या खनन जैसी मानवीय गतिविधियों एवं भूजल स्तर में परिवर्तन जैसे कारकों के कारण हो सकता है।

भूस्खलन से निपटने के लिए पहले की पहल

  • राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति (2019): भूस्खलन आपदा जोखिम न्यूनीकरण एवं प्रबंधन को संबोधित करने वाला एक व्यापक दस्तावेज।
  • भूस्खलन जोखिम शमन योजना (Landslide Risk Mitigation Scheme- LRMS): क्षेत्र विशिष्ट भूस्खलन शमन परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • महत्त्वपूर्ण भूस्खलन की निगरानी, ​​प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली एवं क्षमता निर्माण में आपदा रोकथाम, शमन, अनुसंधान तथा विकास (R&D) पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

  • बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण योजना (Flood Risk Mitigation Scheme-FRMS): बहुउद्देश्यीय बाढ़ क्षेत्र स्थल एवं नदी बेसिन-विशिष्ट बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करने जैसी गतिविधियों के लिए एक योजना तैयार की जा रही है।
  • भूस्खलन एवं हिमस्खलन पर राष्ट्रीय दिशानिर्देश: भूस्खलन जोखिमों को कम करने के लिए गतिविधियों का मार्गदर्शन करने हेतु राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा तैयार किया गया।
  • भारत का भूस्खलन एटलस: भारत के भूस्खलन प्रवण क्षेत्रों में भूस्खलन के विवरण को ISRO के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) द्वारा तैयार किया गया।
  • राष्ट्रीय भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण कार्यक्रम: भूस्खलन संभावित क्षेत्रों की पहचान करने के लिए वर्ष 2014-15 में भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा शुरू किया गया।

राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण कोष के बारे में

  • स्थापना: राष्ट्रीय आपदा शमन कोष की स्थापना 15वें वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2021 में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत की गई थी।
  • प्रशासित: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)।
  • उद्देश्य: यह फंड विशेष रूप से विभिन्न आपदाओं से संबंधित शमन परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के बारे में

  • स्थापना: NDMA की स्थापना 27 सितंबर, 2006 को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत की गई थी।
  • अध्यक्ष: भारत के प्रधानमंत्री NDMA के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
  • सदस्य: NDMA में अध्यक्ष के अलावा 9 अन्य सदस्य होते हैं।
  • प्राथमिक जिम्मेदारी: आपदा प्रबंधन की प्राथमिक जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों की है।
  • राष्ट्रीय नीति: आपदा प्रबंधन पर राष्ट्रीय नीति केंद्र, राज्य एवं जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए एक सक्षम वातावरण बनाती है।

आपदा न्यूनीकरण के लिए पिछली स्वीकृतियाँ]

प्रोजेक्ट का नाम

परिव्यय (करोड़ रुपये)

दायरा/विवरण

शहरी बाढ़ जोखिम शमन परियोजनाएँ 3075.65 शहरी बाढ़ के मुद्दों को संबोधित करने के लिए सात शहरों अर्थात् हैदराबाद, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बंगलूरू, अहमदाबाद एवं पुणे में लागू किया गया।
ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) जोखिम प्रबंधन 150 चार राज्यों में लागू; हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम एवं अरुणाचल प्रदेश GLOF जोखिम से प्रभावित हैं।

रियाद डिजाइन कानून संधि (Riyadh Design Law Treaty)

भारत ने विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) के सदस्य देशों के साथ मिलकर डिजाइन कानून संधि (DLT) को अपनाया है।

संधि के बारे में

  • संधि का उद्देश्य विभिन्न देशों में औद्योगिक डिजाइनों की प्रक्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करना तथा पंजीकरण प्रक्रियाओं को सरल बनाना है।
  • उद्देश्य: संधि लालफीताशाही को समाप्त करके तथा आवेदन प्रक्रियाओं को सरल बनाकर डिजाइन संरक्षण को सुगम बनाएगी, जिससे डिजाइनों की सुरक्षा तथा विपणन को आसान तथा किफायती बनाया जा सकेगा।
  • सम्मेलन: संधि पर सऊदी अरब के रियाद में हस्ताक्षर किए गए, जिसने अंतिम चरण की संधि वार्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए डिजाइन कानून संधि को समाप्त करने तथा अपनाने के लिए राजनयिक सम्मेलन की मेजबानी की है।
  • संरचना: संधि में अनुच्छेद तथा नियम शामिल होंगे।
    • अपडेशन: अनुबंधकारी पक्षों की सभा नियमों में संशोधन करने में सक्षम होगी, जिससे एक गतिशील ढाँचे को बढ़ावा मिलेगा, जिसके अंतर्गत डिजाइन कानून को और विकसित किया जा सकेगा।
  • निर्माण: विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) के ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिजाइन और भौगोलिक संकेत, ब्रांड और डिजाइन क्षेत्र विभाग।
  • प्रावधान
    • डिजाइन आवेदन प्रक्रियाओं को सरल बनाना: अब आवेदन में एक ही आवेदन में कई डिजाइन हो सकते हैं, बजाय इसके कि प्रत्येक व्यक्तिगत डिजाइन के लिए अलग से आवेदन दाखिल करना पड़े।
    • फाइलिंग तिथि प्राप्त करना आसान: आवेदकों के लिए अब पूरा आवेदन जमा करने के बजाय आवेदन के कुछ आवश्यक भाग जमा करना पर्याप्त होगा।
    • पंजीकरण के बाद की प्रक्रियाओं के लिए रूपरेखा: कुछ लेन-देन रिकॉर्ड करने के लिए अनुरोध में आवश्यक सभी तत्त्वों की स्पष्ट परिभाषा, जैसे कि नवीनीकरण, स्वामित्व में परिवर्तन या लाइसेंस आदि।
    • सुरक्षा को सुविधाजनक बनाना: आवेदक फाइलिंग तिथि प्राप्त करने के बाद भी डिजाइन की प्रकाशन तिथि पर नियंत्रण बनाए रखेंगे।
    • राहत उपाय: यदि औद्योगिक संपत्ति कार्यालय के समक्ष किसी प्रक्रिया में समय सीमा चूक जाती है, तो आवेदकों को अपने अधिकारों को खोने से बचाने में मदद करने के लिए राहत उपाय उपलब्ध होंगे।

साइबेरियन क्रेन: सुकपाक (Siberian Crane: Sukpak)

सुकपाक नामक एक साइबेरियन डेमोइसेल क्रेन ने भारत के राजस्थान में आने वाले प्रवासी पक्षियों के लिए एक नया दूरी रिकॉर्ड स्थापित किया है।

सुकपाक के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम: एंथ्रोपोइड्स विर्गो (Anthropoides virgo) (जिसे ग्रस विर्गो के नाम से भी जाना जाता है)।
  • प्रजनन और शीतकालीन क्षेत्र
    • प्रजनन: मध्य एशिया, मंगोलिया और पूर्वोत्तर चीन तक फैले हुए पाए जाते हैं।
    • शीतकाल: वे मुख्य रूप से पश्चिमी भारत, विशेष रूप से गुजरात और राजस्थान में सर्दियाँ बिताते हैं।
  • माइग्रेशन पथ
    • पारंपरिक मार्ग: आमतौर पर हिमालय की घाटियों से होकर प्रवास करते हैं।
    • उल्लेखनीय मार्ग: कुछ, जैसे कि क्रेन सुकपाक, रूस, कजाखस्तान, तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से होकर विपरीत दिशा में प्रवास करते हैं।
  • सांस्कृतिक महत्त्व 
    • भारतीय नाम: स्थानीय भाषाओं में इसे कुंज या कुरजा कहा जाता है।
    • प्रतीकात्मकता: गुजरात और राजस्थान के क्षेत्रों में इसका महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक महत्त्व है।
    • संरक्षण स्थिति
      • IUCN स्थिति: कम चिंताजनक (Least Concern) के रूप में वर्गीकृत।

प्रेसिडेंट्स कलर (President’s Colours)

सेना की मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री की चार बटालियनों को अहिल्या नगर स्थित मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री सेंटर और स्कूल में एक समारोह के दौरान सेना प्रमुख जनरल द्वारा प्रेसिडेंट्स कलर प्रदान किए गए।

  • पुरस्कार: प्रेसिडेंट्स कलर मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री रेजिमेंट की 26वीं और 27वीं बटालियनों और गार्ड्स ब्रिगेड की 20वीं और 22वीं बटालियनों को प्रदान किए गए।

मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री 

  • यह इन्फैंट्री और मैकेनाइज्ड बलों का सर्वश्रेष्ठ मिश्रण है, जिसकी बटालियनें सभी थिएटरों में और संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में भी तैनात हैं।
  • उत्पत्ति: मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री रेजिमेंट की आधिकारिक स्थापना 2 अप्रैल, 1979 को लेफ्टिनेंट जनरल ए.एस. कलकट (A.S. Kalkat) के दूरदर्शी नेतृत्व में हुई थी।

प्रेसिडेंट्स कलर पुरस्कार के बारे में

  • यह भारतीय सेना में किसी भी सैन्य इकाई को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है।
    • इसे निशान के नाम से भी जाना जाता है, जो एक प्रतीक है, जिसे सभी यूनिट अधिकारी अपनी वर्दी की बाईं बाँह पर पहनते हैं।
  • कलर एक औपचारिक ध्वज है, जिस पर यूनिट का प्रतीक चिह्न और आदर्श वाक्य अंकित होता है, जिसे संचालन तथा शांतिकाल में उनके योगदान को मान्यता देने के लिए निर्दिष्ट सराहनीय सेवा पूरी करने पर यूनिट को प्रदान किया जाता है।

भारत और ISA ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सौर परियोजनाओं पर सहयोग किया 

हाल ही में  भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) और अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के बीच चार इंडो-पैसिफिक देशों में सौर परियोजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए एक परियोजना कार्यान्वयन समझौते (PIA) पर हस्ताक्षर किए गए।

समझौते के मुख्य तथ्य

  • निवेश और कार्यान्वयन: भारत ने सौर परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई है और ISA परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में कार्य करेगा, जो देशों को तकनीकी और कार्यक्रम संबंधी सहायता प्रदान करेगा।
    • शामिल देश: फिजी, कोमोरोस, मेडागास्कर और सेशेल्स
  • परियोजना के उद्देश्य: ऊर्जा चुनौतियों का समाधान करना, जैसे कि अविश्वसनीय बिजली और कृषि उत्पादों का खराब होना।
    • फोकस क्षेत्रों में शामिल हैं:
      • सौर शीत भंडारण प्रणालियाँ।
      • स्वास्थ्य सुविधाओं का सौर्यकरण।
      • सिंचाई के लिए सौर जल पंपिंग प्रणालियाँ।
  • अपेक्षित परिणाम
    • ऊर्जा तक पहुँच और विश्वसनीयता में सुधार।
    • रोजगार के अवसरों का सृजन।
    • स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था में परिवर्तन की दिशा में प्रगति।
  • महत्त्व
    • स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ावा देने के लिए क्वाड्स विलमिंगटन (Quads Wilmington) घोषणा के अनुरूप।।
    • जलवायु परिवर्तन से निपटने और सतत् विकास सुनिश्चित करने के वैश्विक प्रयासों का समर्थन करता है।
    • समग्र आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय में योगदान देता है।
    • वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में भारत के नेतृत्व को मजबूत करता है।

रेड ब्रेस्टेड फ्लाईकैचर (Red-Breasted Flycatcher)

हैदराबाद के अमीनपुर झील में मात्र 12 सेमी. लंबे छोटे रेड-ब्रेस्टेड फ्लाईकैचर  ने पक्षी प्रेमियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।

रेड-ब्रेस्टेड फ्लाईकैचर के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम: फिसेडुला परवा (Ficedula parva)
  • प्रवास: यह छोटा पक्षी पूर्वी यूरोप से दक्षिण एशिया तक अपनी अविश्वसनीय प्रवासी यात्रा के लिए जाना जाता है।
  • स्वरुप: नर पक्षी की पहचान गर्दन के नीचे उनके चमकीले लाल-नारंगी पैच से होती है।
  • IUCN स्थिति: कम से कम चिंताजनक (Least Concern)
  • खतरा: संख्या में अपेक्षाकृत स्थिर होने के बावजूद, उनके आवास, विशेष रूप से आर्द्रभूमि और जंगल, शहरीकरण और पर्यावरणीय गिरावट के कारण खतरे में हैं।

अमीनपुर झील के बारे में

  • अमीनपुर  झील एक कृत्रिम झील है, जिसका निर्माण 16वीं शताब्दी में कुतुब शाही राजवंश के दौरान पास के बगीचे की सिंचाई के लिए किया गया था।
  • शहरी जैव विविधता विरासत स्थल: यह भारत का पहला शहरी जैव विविधता विरासत स्थल है और पक्षियों एवं वन्यजीवों के लिए एक आश्रय स्थल के रूप में अपनी स्थिति को पुनः प्राप्त कर रहा है।
  • पुनरुद्धार: हैदराबाद आपदा प्रतिक्रिया और संपत्ति संरक्षण एजेंसी (HYDRAA) ने झील के पारिस्थितिकी स्वास्थ्य को बहाल करने के लिए प्रयास किए हैं।

संदर्भ

मृत्यु या त्रासदी से जुड़े स्थलों की बिना किसी विशिष्ट उद्देश्य के यात्रा को डार्क टूरिज्म या शोक पर्यटन के रूप में संबोधित किया जाता है। 

डार्क टूरिज्म के बारे में

  • डार्क टूरिज्म में दुखद घटनाओं से जुड़ी जगहों की यात्रा  शामिल है:
    • इसे थानाटूरिज्म (Thanatourism) या शोक पर्यटन (Grief Tourism) भी कहा जाता है।
  • लोग इन जगहों पर शोक मनाने, पीड़ितों को सम्मानित करने या जिज्ञासावश जाते हैं।
  • इस पर्यटन में कब्रिस्तान, आपदा क्षेत्र, युद्धक्षेत्र, स्मारक, जेल, सैन्य हमले, युद्ध क्षेत्र, निष्पादन स्थल और अपराध स्थल जैसी जगहें शामिल हैं।
  • यह इन स्थलों के दुखद अतीत के बजाय उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्य पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • डार्क टूरिज्म गंतव्यों के उदाहरण (Examples of Dark Tourism Destinations)
    • ऑशविट्ज-बिरकेनौ, 9/11 स्मारक और चेरनोबिल जैसे प्रसिद्ध स्थल शामिल है।
    • हाल ही में जारी संघर्षों से प्रभावित क्षेत्र शामिल हैं, जैसे:
      • यूक्रेन: डोनबास युद्ध क्षेत्र और कीव के मिसाइल हमले स्थल।
      • इजरायल/फिलिस्तीन: नीर ओज किबुत्ज और नोवा संगीत समारोह, जो 7 अक्टूबर, 2023 को हमास के हमलों से जुड़ा है।
  • डार्क टूरिज्म के प्रकार
    • युद्ध क्षेत्र भ्रमण: यूक्रेन में, पर्यटक विस्थापित लोगों से मिलते हैं, नष्ट हो चुकी इमारतों को देखते हैं और युद्ध के तरीकों के बारे में जानते हैं।
    • सॉलिडेरिटी टूर: इजरायल में, पर्यटक स्थानीय लोगों के मार्गदर्शन में हमलों के बाद के हालात का पता लगाते हैं और बचे लोगों से जुड़ते हैं।
  • लोग इन साइटों पर क्यों जाते हैं?
    • एकजुटता और राजनीतिक संबद्धता (Solidarity and Political Affiliation): इस तरह के दौरे अक्सर पीड़ितों और उनके संघर्षों के लिए समर्थन दिखाते हैं, जबकि भौगोलिक और मनोवैज्ञानिक सीमाओं से जुड़ी पहचान को मजबूत करते हैं।
    • शिक्षा और चिंतन: कई पर्यटक ऐतिहासिक दर्द को समझने, नुकसान को स्वीकार करने और स्मारकों पर जाने के समान सम्मान देने का लक्ष्य रखते हैं।
  • भारत में डार्क टूरिज्म का महत्त्व
    • इतिहास का संरक्षण: डार्क टूरिज्म ऐतिहासिक घटनाओं और गुमनाम नायकों के बारे में जानने का अवसर प्रदान करते हैं।
      • यह अतीत की घटनाओं से संघर्ष और ज्ञान का संचार करता है।
      • यह लोगों को केवल किताबें पढ़ने के बजाय वास्तविक जीवन के अनुभवों का अनुभव करने की अनुमति देता है।
    • पर्यटन उद्योग को बढ़ावा: डार्क टूरिज्म त्रासदी से जुड़ा हुआ है, यह अभी भी भारतीय पर्यटन में योगदान देता है, जिसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों का समर्थन प्राप्त है।
      • यह उद्योग 10% की वार्षिक दर से बढ़ रहा है।
    • कम ज्ञात स्थलों का प्रचार-प्रसार: यह पर्यटन ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण परंतु अज्ञात स्थानों को वैश्विक मानचित्र पर लाकर उनकी ओर ध्यान आकर्षित करता है।
      • यह युवा पीढ़ी में भी रुचि की भावना उत्पन्न करता है।
  • भारत में डार्क टूरिज्म स्थल 
    • भानगढ़ किला, राजस्थान: सबसे भूतिया और डरावनी जगह
      • मान सिंह द्वारा निर्मित
    • कुलधारा गाँव, राजस्थान
    • अमृतसर में “जलियाँवाला बाग”: जनरल डायर शूट ऑर्डर के लिए प्रसिद्ध है, जिसने कई लोगों की जान ले ली थी।
    • जमाली-कमाली मस्जिद, दिल्ली: एक पुरातात्त्विक स्थल।
      • यह अपनी कई भूतिया कहानियों के लिए प्रसिद्ध है
    • जटिंगा-Jatinga, असम: पक्षियों की आत्महत्या की अस्पष्टीकृत घटना के लिए विश्व भर में लोकप्रिय एक स्थल।
    • भोपाल संग्रहालय, मध्य प्रदेश: भोपाल गैस त्रासदी को समर्पित।

संदर्भ

‘जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स’ में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि अत्यधिक भूजल निष्कर्षण के कारण पृथ्वी के घूर्णन ध्रुव में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है।

पृथ्वी की धुरी के बारे में

  • परिभाषा: पृथ्वी का अक्ष एक काल्पनिक रेखा है, जो उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक पृथ्वी के बीच से गुजरती है।
    • यह वह केंद्रीय रेखा है, जिसके चारों ओर पृथ्वी घूर्णन करती है, जो लगभग हर 24 घंटे में एक चक्कर पूरा करती है।
    • अक्ष पृथ्वी के कक्षीय तल (वह तल जिसमें पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है) के सापेक्ष 23.5 डिग्री के कोण पर झुका हुआ है।
    • यह झुकाव ऋतुओं के वार्षिक चक्र का कारण बनता है।
  • अक्ष में परिवर्तन 
    • पृथ्वी की धुरी स्थिर नहीं है: ग्रह के द्रव्यमान वितरण में परिवर्तन (जैसे- बर्फ की परतों का पिघलना, भूजल का कम होना) के कारण इसमें क्रमिक परिवर्तन होता रहता है।
      • ये संचलन, जिन्हें अक्षीय पूर्वगमन या ध्रुवीय गति के रूप में जाना जाता है, समय के साथ होती हैं और इनका पृथ्वी की स्थिरता और जलवायु पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है।

भूजल

  • भूजल पृथ्वी की सतह के नीचे चट्टान, मिट्टी और रेत की दरारों और रिक्त स्थानों में जमा जल है।
  • यह जल विज्ञान चक्र का एक प्रमुख घटक है, जो वर्षा और सतही जल के रिसाव से पुनः भर जाता है।
  • भूजल प्राकृतिक भूमिगत जलाशयों में जमा होता है, जिन्हें जलभृत कहा जाता है।
  • भूजल के अत्यधिक दोहन की चुनौतियाँ
    • ह्रास: अत्यधिक निकासी प्राकृतिक पुनर्भरण दरों से अधिक है, जिससे जल स्तर में गिरावट आती है।
    • भूमि अवतलन: अधिक पंपिंग से भूमि धँस सकती है।
    • जल गुणवत्ता: अधिक उपयोग से लवणता और प्रदूषण सहित संदूषण हो सकता है।
    • पर्यावरणीय प्रभाव: भूजल में कमी से झीलें, नदियाँ और आर्द्रभूमि सूख सकती हैं।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष (1993-2010)

  • ध्रुव विस्थापन (Pole Drift)
    • पृथ्वी की धुरी 31.5 इंच (लगभग 80 सेंटीमीटर पूर्व की ओर) झुक गई है। 
    • भूजल की कमी के कारण प्रति वर्ष 4.36 सेंटीमीटर की दर से विस्थापन हुआ।
  • भूजल निष्कर्षण 
    • इस अवधि के दौरान मनुष्यों ने अनुमानित 2,150 गीगाटन भूजल निकाला।
    • इस बड़े पैमाने पर निष्कर्षण ने समुद्र के स्तर में लगभग 0.24 इंच की वृद्धि में योगदान दिया।
  • ध्रुवीय गति का तंत्र: ध्रुवीय गति, पृथ्वी की घूर्णन अक्ष की उसकी भूपर्पटी के सापेक्ष गति, ग्रह पर द्रव्यमान वितरण में परिवर्तन से प्रभावित होती है।
    • भूजल का जलभृतों से महासागरों तक पुनर्वितरण इस गति को प्रभावित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक बनकर उभरा है।
  • भूजल और जलवायु संबंधी कारक जैसे बर्फ की चादर पिघलना
    • अध्ययन के मॉडल दर्शाते हैं कि भूजल की कमी का ध्रुवीय विस्थापन पर पहले से माने जाने वाले जलवायु-संबंधी कारकों, जैसे बर्फ की चादर के पिघलने, की तुलना में कहीं अधिक प्रभाव पड़ता है।

क्षेत्रीय प्रभाव और निहितार्थ 

  • भूजल निष्कर्षण की भूमिका: अध्ययन पृथ्वी के भू-भौतिकीय गुणों को बदलने में भूजल निष्कर्षण की गहन भूमिका को रेखांकित करता है, जिसका ग्रहीय गतिशीलता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
  • भूजल निष्कर्षण के प्रमुख क्षेत्र: शोध में पश्चिमी उत्तरी अमेरिका और उत्तर-पश्चिमी भारत को ऐसे प्रमुख क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया है, जहाँ महत्त्वपूर्ण भूजल निष्कर्षण हुआ है।
    • इन मध्य-अक्षांश क्षेत्रों का अपनी भौगोलिक स्थिति और उच्च निष्कर्षण मात्रा के कारण ध्रुवीय विस्थापन पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है।
  • तात्कालिक प्रभाव: पृथ्वी के झुकाव में वर्तमान परिवर्तन अभी तक मौसम के पैटर्न या मौसम को बदलने के लिए पर्याप्त नहीं है।
  • दीर्घकालिक जोखिम: भूजल में निरंतर कमी से भू-वैज्ञानिक समय के पैमाने पर दीर्घकालिक जलवायु प्रभाव हो सकते हैं।
    • ध्रुवीय गति में परिवर्तन अंततः वैश्विक जलवायु प्रणालियों को प्रभावित कर सकता है।

आगे की राह

  • सतत् जल प्रबंधन का आह्वान: निष्कर्षों में ध्रुवीय विस्थापन और इसके संभावित प्रभावों को कम करने के लिए सतत् भूजल प्रबंधन की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
  • मानव गतिविधियों और ग्रहीय गतिशीलता का परस्पर संबंध: यह अध्ययन न केवल मानवीय गतिविधियों और ग्रहीय गतिशीलता के परस्पर संबंध को उजागर करता है।
    • यह पृथ्वी की भौतिक प्रक्रियाओं को समझने में मानवजनित कारकों पर विचार करने के महत्त्व पर भी बल देता है।

संदर्भ

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के ‘ग्लोबल पीटलैंड इनिशिएटिव’ द्वारा ‘ग्लोबल पीटलैंड हॉटस्पॉट एटलस (GPHA), 2024 प्रकाशित किया गया है।

ग्लोबल पीटलैंड हॉटस्पॉट एटलस

  • उद्देश्य: पीटलैंड की वैश्विक स्थिति के बारे में डेटा और अंतर्दृष्टि प्रदान करना, संरक्षण तथा सतत् प्रबंधन के लिए खतरों एवं अवसरों पर प्रकाश डालना।
  • उद्देश्य: पीटलैंड संरक्षण पर सूचित निर्णय लेने के लिए विज्ञान और नीति के बीच के अंतर को कम करना।

ग्लोबल पीटलैंड हॉटस्पॉट एटलस (GPHA), 2024  के मुख्य निष्कर्ष

  • मानचित्र अद्यतन: एटलस ग्लोबल पीटलैंड्स असेसमेंट (2022) और ग्लोबल पीटलैंड मैप 2.0 पर विस्तार करता है, जो UNEP ग्लोबल पीटलैंड्स इनिशिएटिव के प्रमुख प्रयास हैं।
    • इसने जलवायु परिवर्तन, भूमि उपयोग और जैव विविधता पर डेटा को शामिल करते हुए हॉटस्पॉट मानचित्रों को अद्यतन किया।

  • पीटलैंड वितरण और क्षरण: एटलस ने वैश्विक स्तर पर 488 मिलियन हेक्टेयर पीटलैंड की पहचान की है, जिसमें से 12% को अत्यधिक क्षरण के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • पीटलैंड उत्सर्जन: मानवीय गतिविधियों के कारण क्षरण वाले पीटलैंड से महत्त्वपूर्ण उत्सर्जन हो रहा है, जो प्रति वर्ष 1,941 मीट्रिक टन CO₂ का योगदान देता है।

पीटलैंड्स के बारे में

  • परिभाषा: पीटलैंड एक आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र हैं, जहाँ जलभराव की स्थिति वनस्पति के अपघटन को धीमा कर देती है, जिससे पीट मृदा का निर्माण होता है।
  • वितरण: पीटलैंड्स लगभग सभी देशों में पाया जाता है, जो पृथ्वी की भूमि सतह के लगभग 3 से 4 प्रतिशत भाग को कवर करता है।
  • क्षेत्र: पूर्वी हिमालय, पश्चिमी घाट और उत्तर-पूर्व भारतीय क्षेत्र।
    • पीटलैंड भारत के भू-भाग के अपेक्षाकृत छोटे प्रतिशत को कवर करते हैं, अनुमान है कि यह लगभग 0.2% है जो मुख्यत: पूर्वी हिमालय, पश्चिमी घाट और उत्तर-पूर्व भारतीय क्षेत्र में विस्तृत है।
    • कांगो बेसिन में सबसे बड़ा ज्ञात उष्णकटिबंधीय पीटलैंड है।

विश्व  भर में पाए जाने वाले पीटलैंड के प्रकार

पीटलैंड का प्रकार

विवरण

अवस्थिति 

माइर्स (Mires) सक्रिय रूप से पीट का संचय, विशेष रूप से आर्द्रभूमि में। कनाडा, रूस, स्कैंडिनेविया, इंडोनेशिया और अमेजन बेसिन।
बोग्स (ओम्ब्रोजेनस माइर्स) [Bogs (Ombrogenous Mires)]

केवल वर्षा से जल प्राप्त करने वाली उन्नत पीटलैंड, पोषक तत्त्वों से विहीन और अम्लीय।

उत्तरी यूरोप (आयरलैंड, स्कॉटलैंड, फिनलैंड), कनाडा, रूस और उत्तर-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ हिस्से।

फेंस (जियोजेनस माइर्स) [Fens (Geogenous Mires)]

खनिज-समृद्ध जल से पोषित, अवसादों में स्थित पीटलैंड, दलदलों की तुलना में कम अम्लीय होते हैं।

मध्य यूरोप (जर्मनी, पोलैंड), ग्रेट लेक्स क्षेत्र (अमेरिका और कनाडा) और पश्चिमी साइबेरियाई मैदान।

सोलिजेनस फेंस (Soligenous Fens)

वर्षा और सतही अपवाह दोनों से जल प्राप्त होता है, जो प्रायः पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है।

मध्य यूरोप, आल्प्स और पूर्वी कनाडा।
लिथोजेनस फेंस (Lithogenous Fens)

घाटियों या बेसिनों में बनने वाले वर्षा और गहरे भूजल से प्राप्त जल से निर्मित

हिमालय की तराई, न्यूजीलैंड और दक्षिण अमेरिका के समशीतोष्ण क्षेत्र (पैटागोनिया)।

हिस्टोसोल्स

पीटलैंड मिट्टी में कार्बनिक कार्बन की मात्रा अधिक (12-18%) तथा न्यूनतम मोटाई 40 सेमी.।

उष्णकटिबंधीय पीटलैंड (इंडोनेशिया, मलेशिया), बोरियल पीटलैंड (रूस, कनाडा) और समशीतोष्ण क्षेत्र (स्कॉटलैंड, आयरलैंड)।

पीटलैंड (Peatlands) और वेटलैंड्स (Wetlands) के बीच अंतर 

पहलू

पीटलैंड

वेटलैंड्स (आर्द्रभूमि)

परिभाषा

पीटलैंड एक विशिष्ट प्रकार की आर्द्रभूमि है, जिसमें पीट (आंशिक रूप से सड़े हुए कार्बनिक पदार्थ) का संचय होता है।

आर्द्रभूमियाँ ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र हैं, जहाँ भूमि स्थायी रूप से या मौसमी रूप से जल से संतृप्त रहती है, जिससे जलीय वनस्पति को पोषण मिलता है।

मृदा संरचना

मुख्य रूप से कार्बन (पीट) से समृद्ध कार्बनिक मृदा से निर्मित, जिसमें कम-से-कम 40 सेमी मोटाई कार्बनिक पदार्थ होते हैं।

इनमें खनिज या कार्बनिक मृदा हो सकती है, जो प्रायः पीटलैंड की तुलना में कम कार्बन युक्त होती है।
प्राथमिक कार्य

प्रमुख कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं तथा विशाल मात्रा में कार्बनिक पदार्थ का भंडारण करते हैं।

जल निस्पंदन, बाढ़ विनियमन और विभिन्न प्रजातियों के लिए आवास जैसे विविध पारिस्थितिक गतिविधियों का क्रियान्वयन करना।

वैश्विक वितरण

ठंडे जलवायु वाले क्षेत्रों में पाया जाता है, जैसे कि बोरियल और उष्णकटिबंधीय क्षेत्र (जैसे, कनाडा, इंडोनेशिया)।

यह विश्व भर में उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण दोनों क्षेत्रों में वितरित है, जिसमें दलदली भूमि और मैंग्रोव वन शामिल हैं।

पारिस्थितिकी में पीटलैंड की भूमिका

  • कार्बन भंडारण: पीटलैंड में कार्बन की एक बड़ी मात्रा जमा होती है, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक प्राकृतिक बफर के रूप में कार्य करती है। वे विश्व के सभी वनों से भी अधिक कार्बन भंडारण करते हैं।
    • इनमें विश्व के मृदा के कार्बन का एक-तिहाई हिस्सा होता है, जो विश्व के वनों में पाए जाने वाले कार्बन की मात्रा से दोगुना है।
  • जलवायु विनियमन: वायुमंडलीय कार्बन को अलग करके, पीटलैंड जलवायु को विनियमित करने और शीतलन प्रभाव प्रदान करने में मदद करते हैं।
  • जल प्रबंधन: ये आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र जल आपूर्ति को विनियमित करने और शुद्ध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो मानव उपभोग तथा स्वस्थ जलीय पारिस्थितिकी तंत्र दोनों का समर्थन करते हैं।
  • जैव विविधता: पीटलैंड कई प्रकार के दुर्लभ और लुप्तप्राय पौधों और जानवरों की प्रजातियों के लिए महत्त्वपूर्ण आवास प्रदान करते हैं।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: पीटलैंड अपनी जलभराव स्थितियों के कारण पुरातात्त्विक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित कर सकते हैं।
  • आजीविका: स्थानीय समुदाय अक्सर पीटलैंड द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी सेवाओं और संसाधनों पर निर्भर होते हैं।

पीटलैंड क्षरण के लिए जिम्मेदार कारक

  • कृषि: जल निकासी और पीटलैंड को कृषि उपयोग के लिए परिवर्तित करने जैसी प्रथाएँ उनके क्षरण में योगदान करती हैं। 
  • पीट निष्कर्षण: ईंधन और अन्य उपयोगों के लिए पीट का निष्कर्षण सीधे पीटलैंड को नष्ट कर देता है। 
  • औद्योगिक गतिविधियाँ: खनन और तेल और गैस की खोज जैसी औद्योगिक गतिविधियाँ पीटलैंड पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर सकती हैं। 
  • बुनियादी ढाँचा विकास: सड़क निर्माण जैसी विकास परियोजनाएँ पीटलैंड की प्राकृतिक जल विज्ञान को बाधित कर सकती हैं, जिससे सूखना और क्षरण हो सकता है।

पीटलैंड का मानचित्रण 

  • पीटलैंड मैपिंग पीटलैंड के स्थान और स्थिति की पहचान करती है।
  • संरक्षण और बहाली के प्रयासों के साथ मिलकर, यह जल विनियमन सेवाओं का समर्थन करता है, जैसे कि बाढ़ की तीव्रता को कम करना, साथ ही जैव विविधता को संरक्षित करना।

मानचित्रण पद्धतियाँ

  • भू-आधारित सर्वेक्षण: प्रत्यक्ष क्षेत्र अवलोकन और मृदा का नमूना लेना।
  • रिमोट सेंसिंग: सैटेलाइट इमेजरी और हवाई फोटोग्राफी।
  • SEPAL प्लेटफॉर्म: भूमि निगरानी के लिए पृथ्वी अवलोकन डेटा एक्सेस, प्रोसेसिंग और विश्लेषण प्रणाली (SEPAL) प्लेटफॉर्म में भूमि उपयोग और भूमि उपयोग परिवर्तन निगरानी के लिए कई उपकरण शामिल हैं। इसमें पीटलैंड-विशिष्ट मॉड्यूल भी शामिल हैं।
    • यह क्लाउड-आधारित निगरानी प्लेटफॉर्म और उच्च-गुणवत्ता वाली इमेजरी तक निःशुल्क पहुँच प्रदान करता है।
  • सैटेलाइट आधारित निगरानी: वनस्पति, जल स्तर और भूमि उपयोग में परिवर्तनों को ट्रैक करने के लिए उपग्रह डेटा का उपयोग करना।
  • भू-आधारित निगरानी: पीट की गहराई, जल स्तर और वनस्पति आवरण को मापने के लिए फील्ड सर्वेक्षण।

पारिस्थितिकी पर पीटलैंड क्षरण का प्रभाव

  • उत्सर्जन: खराब हो चुके पीटलैंड ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गए हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन में तेजी आ रही है।
  • जल व्यवधान: क्षरण जल प्रबंधन में पीटलैंड की भूमिका को बाधित करता है, जिससे बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है और संभावित जल की कमी हो जाती है।
  • जैव विविधता का नुकसान: आवास विनाश और परिवर्तित पारिस्थितिकी तंत्र पीटलैंड में पाए जाने वाले वनस्पति और जंतुओं के जीवन के अस्तित्व को खतरे में डालते हैं।

पीटलैंड संरक्षण के लिए कानूनी और नीतिगत ढाँचा 

  • वैश्विक पहल
    • रामसर कन्वेंशन: यह अंतरराष्ट्रीय संधि पीटलैंड सहित आर्द्रभूमि के महत्त्व को मान्यता देती है तथा उनके संरक्षण और विवेकपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देती है।
    • UNFCCC: जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन कार्बन पृथक्करण और जलवायु शमन में पीटलैंड की भूमिका को स्वीकार करता है।
      • ग्लोबल पीटलैंड इनिशिएटिव (Global Peat land Initiative): मोरक्को के मराकेश में वर्ष 2016 UNFCCC COP में स्थापित, UNEP वैश्विक पीटलैंड पहल विश्व भर में पीटलैंड के संरक्षण और सतत् प्रबंधन की दिशा में कार्य करती है।
  • राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय नीतियाँ 
    • देश-विशिष्ट कानून: कई देशों में पीटलैंड की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय कानून और नियम हैं।
      • IUCN UK पीटलैंड कार्यक्रम ब्रिटेन में पीटलैंड पुनरुद्धार को बढ़ावा देने के लिए मौजूद है और पीटलैंड के अनेक लाभों की सिफारिश करता है।
    • क्षेत्रीय पहल: यूरोपीय संघ जैसे क्षेत्रीय संगठनों ने पीटलैंड के संरक्षण के लिए नीतियाँ  लागू की हैं।

आगे की राह

  • नीति और कार्रवाई: ग्लोबल पीटलैंड हॉटस्पॉट एटलस नीति निर्माताओं और हितधारकों के लिए कार्रवाई का आह्वान है, ताकि सूचित निर्णयों के माध्यम से पीटलैंड संरक्षण और सतत् प्रबंधन को प्राथमिकता दी जा सके।
  • वैश्विक पहल: पीटलैंड पर वैश्विक कार्रवाई के लिए दिशा-निर्देश (2002), पीटलैंड संरक्षण पर UNEA-4 संकल्प (2019), और UNEP वैश्विक पीटलैंड पहल जैसी मौजूदा पहल पीटलैंड संरक्षण की दिशा में चल रहे प्रयासों को प्रदर्शित करती हैं।
  • संधारणीय प्रथाएँ: पीटलैंड क्षेत्रों में कृषि, पीट निष्कर्षण और असंधारणीय विकास जैसी गतिविधियों को कम करना आगे के क्षरण को रोकने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • पुनर्स्थापना प्रयास: पीटलैंड बहाली परियोजनाओं में निवेश करने से कार्बन पृथक्करण, बेहतर जल प्रबंधन और जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण लाभ प्राप्त होते हैं।

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