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Nov 05 2024

भारत का पहला एनालॉग स्पेस मिशन (Analog Space Mission) लॉन्च 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा लेह, लद्दाख में भारत का पहला एनालॉग स्पेस मिशन लॉन्च किया गया है।

  • कार्यान्वयन एजेंसियाँ: इस मिशन का नेतृत्व इसरो के मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र (Human Spaceflight Centre) के साथ-साथ AAKA स्पेस स्टूडियो, लद्दाख विश्वविद्यालय, आईआईटी बॉम्बे संयुक्त रूप से करेंगे। 
    • लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद इस पहल का समर्थन करेगी।
  • उद्देश्य: पृथ्वी से परे एक स्थायी बेस स्टेशन स्थापित करने की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए पृथ्वी पर अंतरग्रहीय आवास स्थितियों का अनुकरण करना।
  • महत्त्व
    • अवस्थिति: लद्दाख की भौगोलिक स्थिति, इसकी अत्यधिक एकांतता, शुष्क जलवायु, तथा बंजर, उच्च ऊँचाई वाले इलाके, मंगल ग्रह और चंद्रमा के समान आदर्श स्थितियाँ प्रदान करते हैं।
    • भावी मिशन: यह मिशन महत्त्वपूर्ण डेटा एकत्र करने में मदद करेगा, जो भारत के गगनयान कार्यक्रम और भविष्य के मिशनों का समर्थन करेगा।

एनालॉग मिशन के बारे में

  • ये क्षेत्र परीक्षण सुदूर पृथ्वी के वातावरण में चरम अंतरिक्ष स्थितियों का अनुकरण करने के लिए किए जाते हैं, जिससे शोधकर्ताओं को अंतरिक्ष जैसी चुनौतियों के प्रति मानव और रोबोट की प्रतिक्रिया का अध्ययन करने का अवसर मिलता है।
  • आवश्यकता: ये मिशन बाह्य अंतरिक्ष अभियानों के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों, आवासों, संचार प्रणालियों और अन्य उपकरणों के मूल्यांकन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • मानव व्यवहार अंतर्दृष्टि: ये मिशन अलगाव, परिरोध और टीम-संचालित परिस्थितियों में मनुष्यों के व्यावहारिक गतिशीलता का भी अध्ययन करते हैं, जो गहरे अंतरिक्ष मिशनों के लिए आवश्यक स्थितियाँ हैं।
  • लाभ
    • अंतरिक्ष की संसाधन संबंधी बाधाएँ: अंतरिक्ष में सभी प्रयोगों को करने के लिए पर्याप्त समय, धन, उपकरण और जनशक्ति नहीं है।
    • सुरक्षा जाँच: अंतरिक्ष में प्रयोग करने से पहले एनालॉग में प्रतिवाद का परीक्षण किया जा सकता है।
    • गति और दक्षता: ग्राउंड आधारित एनालॉग अध्ययन अधिक तेजी से और कम खर्च में पूरे किए जाते हैं।
  • वर्तमान एनालॉग मिशन
    • रेगिस्तान अनुसंधान और प्रौद्योगिकी अध्ययन (Desert RATS): दबावयुक्त रोवर्स का परीक्षण D-RATS आर्टेमिस-III से आगे के भविष्य के मिशनों के लिए संचालन का अभ्यास करेगा।
    • एनविहैब (Envihab): यह जर्मन अंतरिक्ष एजेंसी में एयरोस्पेस मेडिसिन संस्थान द्वारा संचालित एक शोध सुविधा है, जिसका उपयोग यह अध्ययन करने के लिए किया जाता है कि निरंतर और आंतरायिक सेंट्रीफ्यूजेशन (या स्पिनिंग) माइक्रोग्रैविटी के शारीरिक प्रभावों का मुकाबला करने में कैसे मदद कर सकता है। 
    • ह्यूस्टन, टेक्सास में HERA एक अद्वितीय 650-वर्ग-फुट का आवास है, जिसे अन्वेषण परिदृश्यों में अलगाव, परिरोध और दूरस्थ स्थितियों के लिए एक एनालॉग के रूप में कार्य करने के लिए डिजाइन किया गया है।

अभ्यास वज्र प्रहार और गरुड़ शक्ति 

हाल ही में भारत ने अमेरिका और इंडोनेशिया के साथ दो महत्त्वपूर्ण संयुक्त सैन्य अभ्यासों में भाग लिया, जिसमें सहयोग और सामरिक क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।

अभ्यास वज्र प्रहार के बारे में

  • यह भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक संयुक्त विशेष बल अभ्यास है।
  • उद्देश्य: संयुक्त सामरिक अभ्यास के माध्यम से सैन्य सहयोग को मजबूत करना और अंतर-संचालन क्षमता में सुधार करना।
  • इतिहास
    • आरंभ: भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग के एक भाग के रूप में वर्ष 2010 में शुरू हुआ।
    • आवृत्ति: भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच बारी-बारी से प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है।
  • 15वाँ संस्करण
    • तिथियाँ: 2 से 22 नवंबर, 2024 तक निर्धारित।
    • स्थान: इडाहो, संयुक्त राज्य अमेरिका।
    • प्रतिभागी: इसमें प्रत्येक देश से 45 कर्मी शामिल होंगे, जिनमें भारतीय सेना के विशेष बल और अमेरिकी सेना के ग्रीन बेरेट्स शामिल होंगे।

अभ्यास गरुड़ शक्ति के बारे में

  • यह भारत और इंडोनेशिया के बीच 1 से 12 नवंबर, 2024 तक होने वाला द्विपक्षीय संयुक्त विशेष बल अभ्यास है।
  • उद्देश्य: आतंकवाद विरोधी और विशेष अभियानों में सैन्य सहयोग में सुधार और संयुक्त परिचालन कौशल को बढ़ाना।
  • इतिहास
    • स्थापना: भारत और इंडोनेशिया के बीच रक्षा संबंधों को मजबूत करने के लिए वर्ष 2012 में शुरू किया गया।
  • महत्त्व
    • द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना: दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग का निर्माण करता है।
    • क्षेत्रीय सुरक्षा: आतंकवाद के खतरों को संबोधित करके क्षेत्रीय सुरक्षा में योगदान देता है।
    • क्षमताओं में वृद्धि: दोनों सेनाओं के लिए परिचालन प्रभावशीलता में सुधार करता है।

नई दिल्ली में पहला एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन

भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC) प्रथम एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन (ABS) का आयोजन कर रहा है।

संबंधित तथ्य

  • यह शिखर सम्मेलन 5-6 नवंबर, 2024 को नई दिल्ली में आयोजित किया जाएगा।

मुख्य विवरण

  • मेजबान: संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC) के सहयोग से।
  • स्थान: नई दिल्ली।
  • उद्देश्य: संवाद को बढ़ावा देना, बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को बढ़ावा देना और एशियाई बौद्ध समुदाय के भीतर मौजूदा मुद्दों को संबोधित करना।

विषय और उद्देश्य

  • विषय: “एशिया को मजबूत बनाने में बुद्ध के धम्म की भूमिका।”
  • उद्देश्य: एशिया भर में विविध परंपराओं से संघ नेताओं, विद्वानों, विशेषज्ञों और बौद्ध चिकित्सकों को एकजुट करना।

एशिया में बुद्ध धम्म का महत्त्व

  • सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता: बुद्ध की शिक्षाओं ने पूरे एशिया में जीवन, दिव्यता और सामाजिक मूल्यों पर एक साझा दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया है।
  • भारतीय विदेश नीति पर प्रभाव: बौद्ध धम्म का भारत की राष्ट्रीय पहचान और विदेश नीति पर एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव रहा है, जिसने बौद्ध मूल्यों को अपने कूटनीतिक दृष्टिकोण में एकीकृत किया है।
  • एक्ट ईस्ट पॉलिसी: शिखर सम्मेलन भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी को दर्शाता है, जिसका उद्देश्य एशिया में समावेशी विकास और सहयोग है, जिसमें धम्म एक मार्गदर्शक सिद्धांत है।

शिखर सम्मेलन के मुख्य विषय

शिखर सम्मेलन में आधुनिक समाज में बौद्ध धर्म की भूमिका और प्रासंगिकता पर प्रकाश डालने वाले कई विषयों पर चर्चा की जाएगी:

  • बौद्ध कला, वास्तुकला और विरासत
  • बुद्ध कारिका (बुद्ध का जीवन और शिक्षाएँ) और बुद्ध धम्म का प्रसार
  • पवित्र बौद्ध अवशेष: भूमिका और सामाजिक महत्त्व
  • वैज्ञानिक अनुसंधान और कल्याण में बुद्ध धम्म
  • 21वीं सदी में बौद्ध साहित्य और दर्शन

विशेष प्रदर्शनी और सांस्कृतिक प्रदर्शन

  • थीम: ‘भारत धम्म सेतु के रूप में’ (India as the Dhamma Setu)। 
  • उद्देश्य: बौद्ध धर्म के माध्यम से एशिया को जोड़ने में भारत की भूमिका को प्रदर्शित करना।
  • प्रदर्शन: रचनात्मक प्रदर्शन एशिया भर में भारत की बौद्ध विरासत और प्रभाव को उजागर करेंगे।

संदर्भ 

ब्राजील ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative- BRI) में शामिल होने से इनकार कर दिया है, जिससे वह भारत के बाद इस परियोजना से बाहर होने वाला दूसरा ब्रिक्स सदस्य बन गया है।

ब्राजील के बारे में

  • स्थान एवं आकार: ब्राजील दक्षिण अमेरिका के मध्य-पूर्वी भाग में स्थित है और विश्व स्तर पर पाँचवाँ सबसे बड़ा देश है।
    • यह उत्तरी, दक्षिणी और पश्चिमी गोलार्द्ध में स्थित है तथा भूमध्य रेखा और मकर रेखा दोनों को पार करता है।

  • सीमाएँ: ब्राजील की सीमा चिली और इक्वाडोर को छोड़कर सभी दक्षिण अमेरिकी देशों से लगती है।
    • इसकी सीमा उरुग्वे, अर्जेंटीना, पैराग्वे, बोलीविया, पेरू, कोलंबिया, वेनेजुएला, गुयाना, सूरीनाम और फ्रेंच गुयाना से लगती है।
  • प्रमुख जल निकाय
    • अमेजन नदी: यह अमेजन वर्षावन से होकर बहने वाली विश्व की दूसरी सबसे लंबी नदी है।
    • साओ फ्रांसिस्को नदी: पूरी तरह से ब्राजील के सीमा क्षेत्र में बहने वाली यह सबसे लंबी नदी है।
  • सबसे ऊँची चोटी: पिको दा नेब्लिना (Pico da Neblina) ब्राजील की सबसे ऊँची चोटी है।
  • समुद्र तट: अटलांटिक महासागर के किनारे लगभग 7,491 किलोमीटर तक फैला हुआ, जिसमें फर्नांडो डी नोरोन्हा (Fernando de Noronha) और अब्रोलहोस द्वीप ( Abrolhos Islands) जैसे द्वीप शामिल हैं।

अमेजन नदी बेसिन के बारे में

  • अमेजन नदी: विश्व में जल की मात्रा के अनुसार सबसे बड़ी नदी।
    • यह नदी एंडीज पर्वत से शुरू होकर अटलांटिक महासागर में गिरती है।
  • अमेजन बेसिन, दक्षिण अमेरिका का वह भाग है, जिसका जल अमेजन नदी और उसकी सहायक नदियाँ द्वारा अपवाहित होता हैं।
    • बोलीविया, ब्राजील, कोलंबिया, इक्वाडोर, गुयाना, पेरू, सूरीनाम और वेनेजुएला में स्थित है।
    • बेसिन का अधिकांश भाग अमेजन वर्षावन से ढका हुआ है, जिसे अमेजोनिया (Amazonia) के नाम से भी जाना जाता है, जो दुनिया का सबसे बड़ा वर्षावन है।
    • बेसिन दक्षिण में ब्राजीलियाई हाइलैंड्स और उत्तर में गुयाना हाइलैंड्स से घिरा है।

संदर्भ 

हाल ही में शोधकर्ताओं ने खगोलीय प्रेक्षणों के विश्लेषण के माध्यम से एक अनोखे ब्लैक होल, V404 सिग्नी (V404 Cygni) की खोज की है।

V404 सिग्नी के बारे में

  • ब्लैक होल का स्थान: V404 सिग्नी नामक यह ब्लैक होल पृथ्वी से 7,800 प्रकाश वर्ष दूर सिग्नस नक्षत्र (Constellation Cygnus) में स्थित है।
  • द्रव्यमान और संरचना: ब्लैक होल का द्रव्यमान हमारे सूर्य से लगभग नौ गुना है।
  • ट्रिपल सिस्टम: पहली बार, खगोलविदों ने एक ब्लैक होल की पहचान की है, जो गुरुत्वाकर्षण के कारण दो साधारण तारों से बँधा हुआ दिखाई पड़ता है, जो एक अद्वितीय ट्रिपल सिस्टम का निर्माण करता है।
  • नजदीकी तारा: यह ब्लैक होल अपने एक निकटस्थ साथी तारे से पदार्थ खींच रहा है, जिसका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 0.7 गुना है।
    • यह तारा प्रत्येक 6.5 दिन में ब्लैक होल की परिक्रमा करता है, जो पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी का लगभग सातवाँ भाग है।
  • दूरस्थ साथी तारा: एक अन्य तारा, जो सूर्य से लगभग 1.2 गुना अधिक द्रव्यमान वाला है, इस जोड़ी की बहुत अधिक दूरी से परिक्रमा करता है तथा प्रत्येक 70,000 वर्ष में एक परिक्रमा पूरी करता है।

द्रव्यमान के आधार पर ब्लैक होल के प्रकार

  • तारकीय द्रव्यमान वाले ब्लैक होल (Stellar-Mass Black Holes): क्षय होते हुए विशाल तारों से बने ये ब्लैक होल, जिनका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से कुछ भाग से लेकर सैकड़ों गुना तक होता है। कई बाइनरी सिस्टम में होते हैं, जो साथी तारों से गैस खींचते हैं, जिससे एक्स-रे बनते हैं।
  • सुपरमैसिव ब्लैक होल (Supermassive Black Holes): आकाशगंगा के केंद्रों में पाए जाने वाले, ये सैकड़ों हजारों से लेकर अरबों सौर द्रव्यमान तक के होते हैं, जो संभवतः शुरुआती ब्रह्मांड में बने थे।
  • मध्यम द्रव्यमान वाले ब्लैक होल (Intermediate-Mass Black Holes): एक सैद्धांतिक ‘मिसिंग लिंक’ आकार सैकड़ों से लेकर सैकड़ों हजारों सौर द्रव्यमान तक होता है, जिसका पता लगाना मुश्किल होता है।
  • आद्य ब्लैक होल (Primordial Black Holes): ये ब्लैक होल बिग बैंग के तुरंत बाद काल्पनिक रूप से बने हैं; इनका द्रव्यमान संभावित रूप से बहुत कम या 1,00,000 सौर द्रव्यमान तक होता है।

ब्लैक होल निर्माण पर नई परिकल्पना

  • विशिष्ट गठन: पारंपरिक रूप से माना जाता है कि ब्लैक होल एक विशाल नष्ट होते हुए तारे के सुपरनोवा विस्फोट के माध्यम से बनते हैं, जहाँ तारे का कोर नष्ट हो जाता है और इसकी बाहरी परतें बाहर निकल जाती हैं।
  • नई परिकल्पना: शोधकर्ताओं का सुझाव है कि कुछ ब्लैक होल विस्फोट के बिना एक लचीले ‘प्रत्यक्ष पतन’ के माध्यम से बन सकते हैं।
    • V404 सिग्नी का निर्माण संभवतः “प्रत्यक्ष पतन” या ‘फेल्ड सुपरनोवा’ के कारण हुआ, जहाँ तारा बिना किसी विस्फोटक घटना के नष्ट हो गया।
  • फेल्ड सुपरनोवा परिकल्पना (Failed Supernova Hypothesis): यह त्रिगुण प्रणाली संभवतः विस्फोटक सुपरनोवा के अभाव के कारण बची रही है।
    • विस्फोट न होने से ब्लैक होल ने सहयोगी तारों के स्थायित्त्व को बनाए रखा, तथा सुपरनोवा विस्फोट के कारण संभवतः यह तंत्र विखंडित हो गया होगा।
  • प्रत्यक्ष पतन प्रक्रिया: इस प्रक्रिया में, तारा इतनी तेजी से नष्ट होता है कि सुपरनोवा सक्रिय नहीं हो पाता, जिसके परिणामस्वरूप पदार्थ के निष्कासन के बिना ही विस्फोट हो जाता है।

निष्कर्षों के निहितार्थ

  • ट्रिपल सिस्टम इवोल्यूशन: यह खोज इस सिद्धांत का समर्थन करती है कि कई ब्लैक होल बाइनरी ट्रिपल सिस्टम के माध्यम से बन सकते हैं, जिनमें से एक अन्य तारा अंततः ब्लैक होल द्वारा निगल लिया जाता है।
  • नया साक्ष्य: यह ट्रिपल इवोल्यूशन के माध्यम से ब्लैक होल बाइनरी गठन का पहला प्रत्यक्ष प्रमाण है, जो संभावित रूप से ब्लैक होल सिस्टम की मानवीय समझ को नया रूप दे सकता है।

ब्लैक होल का महत्त्व

  • सिद्धांतों का परीक्षण: ब्लैक होल भौतिकी के मूलभूत सिद्धांतों, जैसे कि सामान्य सापेक्षता और क्वांटम यांत्रिकी के परीक्षण के लिए प्रयोगशालाएँ हैं।
  • आकाशगंगा के विकास को समझना: ब्लैक होल आकाशगंगाओं के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • ऐसा माना जाता है कि आकाशगंगा के केंद्र में स्थित अतिविशाल ब्लैक होल, जिसे सैजेटेरियस A* (Sagittarius A) कहा जाता है, ने पृथ्वी के निर्माण को प्रभावित किया है।
  • गुरुत्वाकर्षण तरंग खगोल विज्ञान: ब्लैक होल के विलय से गुरुत्वाकर्षण तरंगें उत्पन्न होती हैं, जिनका उपयोग ब्रह्मांड को नए तरीके से देखने के लिए किया जा सकता है।
  • तारकीय विकास: ब्लैक होल के निर्माण और विकास से विशाल तारों और सुपरनोवा के जीवन चक्र के बारे में जानकारी मिल सकती है।

संदर्भ 

भारत की आर्थिक वृद्धि के बावजूद, ग्रामीण मजदूरी/ वेतन स्थिर रही है, नाममात्र वृद्धि मुद्रास्फीति से मुश्किल आगे निकल पाई है और वास्तविक मजदूरी वृद्धि न्यूनतम बनी हुई है, विशेषकर कृषि क्षेत्र  में।

वृद्धि और मजदूरी पर मुख्य निष्कर्ष

  • आर्थिक वृद्धि बनाम वेतन स्थिरता: GDP वृद्धि औसतन 4.6% (वर्ष 2019-24) और हाल के वर्षों में 7.8% होने के बावजूद, ग्रामीण मजदूरी काफी हद तक स्थिर बनी हुई है, विशेषकर मुद्रास्फीति समायोजन के बाद।
    • इन क्रमशः अवधियों में कृषि में 4.2% और 3.6% की वृद्धि हुई।

  • ग्रामीण मजदूरी वृद्धि के रुझान: श्रम ब्यूरो के आँकड़ों से पता चलता है कि नाममात्र ग्रामीण मजदूरी वृद्धि (Nominal Rural Wage) 5.2% (कृषि में 5.8%) है, लेकिन मुद्रास्फीति-समायोजित वास्तविक मजदूरी वृद्धि ग्रामीण के लिए -0.4% और कृषि मजदूरी के लिए 0.2% है।
  • श्रम बल भागीदारी में वृद्धि: उज्ज्वला और हर घर जल जैसी सरकारी योजनाओं से प्रेरित होकर ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी 26.4% (वर्ष 2018-19) से बढ़कर 47.6% (वर्ष 2023-24) हो गई।
  • श्रम आपूर्ति प्रभाव: ग्रामीण महिला कार्यबल भागीदारी में वृद्धि ने श्रम आपूर्ति का विस्तार किया है, जिससे मजदूरी पर दबाव कम हुआ है।
  • श्रम की माँग: महिलाएँ मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र में रोजगार पाती हैं, क्योंकि आर्थिक वृद्धि तेजी से पूँजी-प्रधान क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित हो रही है, जिससे मजदूरी में वृद्धि सीमित हो रही है।
  • आय हस्तांतरण योजनाएं: महाराष्ट्र की ‘लड़की बहन योजना’ (Ladki Bahin Yojana) जैसी आय सहायता योजनाएँ, अतिरिक्त नकद हस्तांतरण प्रदान करती हैं, जो आंशिक रूप से स्थिर मजदूरी को कम करती हैं।

नाममात्र मजदूरी बनाम वास्तविक मजदूरी

पहलू

नाममात्र मजदूरी

वास्तविक मजदूरी

मुद्रास्फीति के लिए समायोजन
  • मुद्रास्फीति के लिए समायोजित नहीं।
  • मुद्रास्फीति के लिए समायोजित।
दर्शाता है
  • वर्तमान वेतन पैसे के संदर्भ में।
  • सच्ची क्रय शक्ति।
क्रय शक्ति
  • मुद्रास्फीति या अपस्फीति के कारण क्रय शक्ति में परिवर्तन को ध्यान में नहीं रखा जाता।
  • मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए, कर्मचारी की क्रय क्षमता का अधिक सटीक चित्र प्रस्तुत किया जाता है।
मुद्रास्फीति के साथ परिवर्तन
  • यदि मुद्रास्फीति बढ़ती है, तो नाममात्र मजदूरी की क्रय शक्ति घट जाती है।
  • मुद्रास्फीति बढ़ने पर वास्तविक मजदूरी में गिरावट आती है, जब तक कि नाममात्र मजदूरी में आनुपातिक वृद्धि न की जाए।
उदाहरण
  • यदि कोई व्यक्ति आज 50,000 रुपये प्रति माह कमाता है, तो यह उसका नाममात्र वेतन है, भले ही वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में बदलाव हो।
  • यदि कोई व्यक्ति ₹50,000 कमाता है, लेकिन मुद्रास्फीति 10% है, तो क्रय शक्ति के संदर्भ में उनका वास्तविक वेतन प्रभावी रूप से ₹45,000 होगा।

संदर्भ

31 अक्टूबर को विश्व शहर दिवस (World Cities Day) मनाया गया, जिसका उद्देश्य शहरीकरण चुनौतियों के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाना और सतत् शहरी विकास में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है।

विश्व शहर दिवस

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2013 में विश्व शहर दिवस को मनाने का प्रस्ताव पारित किया था, जो प्रत्येक वर्ष 31 अक्टूबर को मनाया जाता है।
  • वर्ष 2024 के लिए विश्व शहर दिवस की थीम: ‘शहरों के लिए जलवायु और स्थानीय कार्रवाई का नेतृत्व कर रहे युवा’ (Youth leading climate and local action for cities)। इस थीम के तहत शहरों में जलवायु मुद्दों से निपटने में युवाओं की भूमिका पर जोर दिया गया।
  • यह दिवस को मनाने का उद्देश्य था:-
    • वैश्विक शहरीकरण में अंतरराष्ट्रीय रुचि को बढ़ावा देना।
    • शहरीकरण चुनौतियों का समाधान करने के लिए देशों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।
    • स्थायी शहरी विकास में योगदान देना।
    • नवाचार, आर्थिक विकास और सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देने में शहरों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
  • विश्व शहर दिवस, अर्बन अक्टूबर (Urban October) नामक एक बड़ी पहल का हिस्सा है, जो अक्टूबर के पहले सोमवार को विश्व पर्यावास दिवस (World Habitat Day) के साथ शुरू होता है।

शहरीकरण

  • शहरीकरण का तात्पर्य ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या के स्थानांतरण, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के अनुपात में कमी और समाज द्वारा इस परिवर्तन के अनुकूल होने के तरीकों से है।
  • यह मुख्य रूप से वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कस्बों और शहरों का निर्माण होता है और वे बड़े होते जाते हैं क्योंकि अधिक लोग केंद्रीय क्षेत्रों में रहने और कार्य करने लगते हैं।

वैश्विक शहरी जनसंख्या पर मुख्य निष्कर्ष

  • शहरीकरण का विस्तार: शहरी आबादी 4.7 बिलियन (कुल आबादी का 57.5%) तक पहुँच गई है और वर्ष 2050 तक दोगुनी होने की उम्मीद है।
  • शहरी क्षेत्रों में चुनौतियाँ: शहर विशेष रूप से चरम मौसम और प्रदूषण जैसे जलवायु-संबंधी जोखिमों के प्रति संवेदनशील हैं।
  • सामाजिक और आर्थिक मुद्दे: सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) में प्रगति के बावजूद, शहर गरीबी, असमानता और पर्यावरण क्षरण से जूझ रहे हैं, विशेषकर ‘ग्लोबल साउथ’ में।
  • ‘ग्लोबल साउथ’ में चुनौतियाँ: पर्याप्त बुनियादी ढाँचे के बिना तेजी से शहरीकरण के कारण आवास की कमी, जल और स्वच्छता की खराब पहुँच और जलवायु प्रभावों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ गई है।

भारतीय शहरों के सामने प्रमुख चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त शहरी नियोजन और बुनियादी ढाँचा: पुरानी शहरी योजनाएँ अक्सर वर्तमान जनसंख्या की माँगों को पूरा करने में विफल हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप भीड़भाड़ वाली झुग्गियों का निर्माण हो  जाता हैं, जहाँ 40% शहरी आबादी रहती है।
    • सामुदायिक आवश्यकताओं की अपेक्षा पूँजी वृद्धि पर अधिक ध्यान देने से स्थानीय सहभागिता में कमी आती है तथा वास्तविक शहरी चुनौतियों का समुचित समाधान नहीं हो पाता है।
  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय मुद्दे: भारतीय शहर गंभीर प्रदूषण, शहरी बाढ़ और “हीट आइलैंड प्रभाव” का सामना कर रहे हैं, जिससे स्वास्थ्य जोखिम बढ़ रहा है और जीवन की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।
    • भारत के दस सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से आठ NCR क्षेत्र में हैं, जो वायु गुणवत्ता के संबंध में गंभीर चिंता को दर्शाता है।
  • आवास की कमी और सामाजिक असमानता: उच्च स्तरीय विकास परियोजनाएँ धनी लोगों के लिए हैं, जबकि लाखों लोग बुनियादी आवास के बिना रह जाते हैं।
    • शहरों में सामाजिक और धार्मिक अलगाव बढ़ता जा रहा है, जो पारंपरिक रूप से तटस्थ शहरी वातावरण को चुनौती दे रहा है।
  • गरीबी से प्रेरित शहरीकरण: ‘ग्लोबल नार्थ’ के विपरीत, जहाँ औद्योगिकीकरण के बाद शहरीकरण हुआ, भारतीय शहरों में ‘गरीबी से प्रेरित शहरीकरण’ का अनुभव होता है, जो मुख्य रूप से आर्थिक संकट और प्रवास के कारण होता है। 
  • अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: लगभग 90% शहरी नौकरियाँ अनौपचारिक क्षेत्र में हैं, जहाँ कार्य करने की स्थितियाँ खराब हैं, वेतन कम है और कई श्रमिकों के लिए नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं है। 
  • कमजोर शहरी शासन: 74वें संविधान संशोधन के बावजूद, शहरी सरकारों के पास अक्सर शहरी नियोजन पर अधिकार की कमी होती है और कई जिम्मेदारियाँ अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं एवं निजी संस्थाओं को आउटसोर्स की जाती हैं।
    • शहरों को अंतर-सरकारी हस्तांतरण में सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.5% ही प्राप्त होता है, जिससे बुनियादी ढाँचे और सेवाओं में प्रभावी रूप से सुधार करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।

शहरी विकास के लिए भारत सरकार की पहल

  • पारगमन-उन्मुख विकास (Transit-oriented development): सरकार 14 बड़े शहरों में पारगमन-उन्मुख विकास के लिए योजनाएँ बना रही हैं।
  • स्मार्ट सिटी परियोजना (Smart City Project): वर्ष 2015 में शुरू की गई, स्मार्ट सिटी परियोजना का उद्देश्य 100 चयनित शहरों में दक्षता, स्थिरता और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करके शहरी बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना है। प्रमुख क्षेत्रों में स्मार्ट मोबिलिटी, डिजिटल गवर्नेंस, जल प्रबंधन और ऊर्जा दक्षता शामिल हैं, जो शहरों को अधिक रहने योग्य और पर्यावरण के अनुकूल बनाते हैं।
  • अमृत मिशन (AMRUT Mission): वर्ष 2015 में शुरू किया गया ‘अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन’ (अमृत) शहरी जीवन स्तर में सुधार और बुनियादी ढाँचे की कमियों को दूर करने के लिए 500 शहरों में शहरी जल आपूर्ति, सीवेज और हरित स्थानों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • अमृत मिशन 2.0 (AMRUT Mission 2.0): वर्ष 2021 में शुरू किया गया अमृत 2.0, 1,00,000 से अधिक आबादी वाले सभी शहरों में सार्वभौमिक जल आपूर्ति और सीवेज प्रबंधन के लक्ष्य के साथ पहले चरण पर आधारित है, जो जल-सुरक्षित और हरित शहरी भविष्य को बढ़ावा देता है।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (Pradhan Mantri Awas Yojana-Urban: PMAY-U): वर्ष 2015 में शुरू की गई PMAY-U का उद्देश्य वित्तीय सहायता, इन-सीटू पुनर्विकास और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से वर्ष 2022 तक सभी शहरी गरीबों को किफायती आवास उपलब्ध कराना है, जिसमें झुग्गीवासियों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को लक्षित किया गया है।

संदर्भ

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने केरल के 10 तटीय जिलों के लिए तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना (Coastal Zone Management Plan- CZMP) को मंजूरी दे दी है।

संबंधित तथ्य

  • केरल के 10 तटीय जिले: कासरगोड, कन्नूर, कोझिकोड, मलप्पुरम, त्रिशूर, एर्नाकुलम, कोट्टायम, अलाप्पुझा, कोल्लम एवं तिरुवनंतपुरम।
  • तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना, 2019 के साथ संरेखित: योजना तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना, 2019 के साथ संरेखित है, जो अनुमति देती है:
    • तटीय जिलों को तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) नियमों में ढील का लाभ उठाने एवं समुद्र की ओर इमारतों के निर्माण सहित विकास गतिविधियाँ शुरू करने के लिए कहा गया है।

तटीय क्षेत्रों के बारे में

  • यह समुद्री एवं प्रादेशिक क्षेत्रों के बीच एक संक्रमण क्षेत्र है। 
  • इसमें तटीय पारिस्थितिकी तंत्र, आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र, मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र, मडफ्लैट पारिस्थितिकी तंत्र, समुद्री घास पारिस्थितिकी तंत्र, लवणीय दलदल पारिस्थितिकी तंत्र एवं समुद्री शैवाल पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं।

उच्च ज्वार रेखा (High Tide Line- HTL) 

  • HTL का अर्थ है स्थल पर वह रेखा, जहाँ तक ​​वसंत ज्वार के दौरान सबसे ऊँची जल रेखा पहुँचती है।

निम्न ज्वार रेखा (Low Tide Line) 

  • इसी प्रकार, इसका अर्थ स्थल पर वह रेखा है, जहाँ तक वसंत ज्वार के दौरान सबसे निचली जल रेखा पहुँचती है।

तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZs) के बारे में

  • परिभाषा: तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) तट के किनारे का एक क्षेत्र है, जो तटीय पर्यावरण की रक्षा एवं प्रबंधन के लिए विशिष्ट नियमों के लिए निर्दिष्ट है। 
    • इन क्षेत्रों को पहली बार भारत में वर्ष 1991 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत प्रस्तुत किया गया था।

CRZ की मुख्य विशेषताएँ

  • उद्देश्य: CRZ नियमों का उद्देश्य तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करना, तटीय संसाधनों पर निर्भर समुदायों की आजीविका की रक्षा करना एवं हानिकारक गतिविधियों को सीमित करके सतत् विकास सुनिश्चित करना है।
  • क्षेत्रीय प्रभाग: तटीय क्षेत्रों को उनकी पारिस्थितिकी संवेदनशीलता, विकास की स्थिति एवं जनसंख्या घनत्व के आधार पर श्रेणियों में विभाजित किया गया है। 
    • प्रत्येक जोन के अलग-अलग नियम हैं कि कौन-सी गतिविधियाँ हो सकती हैं एवं क्या नहीं।
  • ‘नो डेवलपमेंट जोन’ (NDZs): प्रत्येक क्षेत्र में उच्च ज्वार रेखा (HTL) से कुछ दूरी को NDZs के रूप में नामित किया गया है, जहाँ तट को नुकसान से बचाने के लिए निर्माण एवं औद्योगिक गतिविधियाँ प्रतिबंधित हैं।
  • विस्तार: CRZs में उच्च ज्वार रेखा (HTL) से 500 मीटर तक की तटीय भूमि एवं खाड़ी, मुहाने, बैकवाटर तथा नदियों के किनारे 100 मीटर का एक चरण शामिल है, जहाँ ज्वारीय उतार-चढ़ाव होते हैं।
  • CRZ कार्यान्वयन में भूमिकाएँ एवं जिम्मेदारियाँ: हालाँकि केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय CRZ नियम बनाता है, राज्य सरकारें अपने संबंधित तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरणों के माध्यम से उनके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार हैं।

तटीय विनियमन क्षेत्रों का महत्त्व 

  • पर्यावरण संरक्षण: CRZ नियमों का उद्देश्य समुद्र तटों, मैंग्रोव एवं प्रवाल चट्टानों सहित तटीय पारिस्थितिकी प्रणालियों का संरक्षण करना है, जो जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी संतुलन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • आपदा जोखिम में कमी: संवेदनशील तटीय क्षेत्रों में निर्माण एवं विकास को विनियमित करके, CRZ सुनामी, चक्रवात तथा बढ़ते समुद्र के स्तर जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जोखिम को कम करने में मदद करता है।
  • पर्यावास संरक्षण: विभिन्न समुद्री एवं स्थलीय प्रजातियों के लिए महत्त्वपूर्ण आवासों की रक्षा करता है, जो तटीय पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर वनस्पतियों तथा जीवों के संरक्षण में योगदान देता है।
  • सामुदायिक आजीविका: आवश्यक संसाधन प्रदान करने वाले स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखते हुए मछली पकड़ने, पर्यटन एवं अन्य तटीय गतिविधियों पर निर्भर स्थानीय समुदायों की आजीविका का समर्थन करता है।
  • नियामक ढाँचा: तटीय विकास के लिए एक स्पष्ट कानूनी एवं नियामक ढाँचा स्थापित करता है, भूमि-उपयोग योजना का मार्गदर्शन करता है तथा पर्यावरण मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करता है।
  • पर्यटन को बढ़ावा देना: प्राकृतिक सुंदरता की रक्षा करके एवं जिम्मेदार पर्यटन प्रथाओं को बढ़ावा देकर पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन को प्रोत्साहित करता है, जो पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ा सकता है।
    • जलवायु परिवर्तन शमन: तटीय क्षेत्रों एवं पारिस्थितिकी तंत्रों को संरक्षित करके, CRZ कार्बन पृथक्करण में योगदान देता है तथा संवेदनशील तटीय क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद करता है।

शैलेश नायक समिति रिपोर्ट, 2015

  • राज्यों द्वारा वर्ष 2011 की CRZ अधिसूचना द्वारा निर्धारित सीमाओं के संबंध में असंतोष व्यक्त करने के बाद जून 2014 में शैलेश नायक समिति का गठन किया गया था। 
  • इसकी स्थापना भारत में तटीय विनियमन क्षेत्र नियमों की समीक्षा एवं संशोधन का सुझाव देने के लिए की गई थी।

रिपोर्ट जनवरी 2015 में प्रस्तुत की गई थी।

  • ‘नो डेवलपमेंट जोन’ (NDZ) का युक्तीकरण: सिफारिशों में NDZ का पुनर्मूल्यांकन शामिल है, जिसमें पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को बनाए रखते हुए विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए कुछ क्षेत्रों में कटौती का सुझाव दिया गया है।
  • तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाएँ (CZMP): रिपोर्ट में राज्य सरकारों द्वारा तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाओं की तैयारी एवं कार्यान्वयन की सिफारिश की गई है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र आधारित प्रबंधन: रिपोर्ट में तटीय प्रबंधन के लिए पारिस्थितिकी तंत्र आधारित दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया गया है, जिसमें तटीय और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों के परस्पर संबंध तथा आजीविका एवं जैव विविधता में उनके योगदान को ध्यान में रखा गया है।
  • केंद्र सरकार की सीमित भूमिका: तटीय क्षेत्रों में केंद्र सरकार की भूमिका पर्यावरणीय मंजूरी एवं पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों को विनियमित करने तक सीमित होगी।

नवीनतम CZMP अधिसूचना: तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना (CZMP), 2019

  • भारत सरकार ने तटीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा, तटीय समुदायों के लिए आजीविका सुरक्षित करने एवं सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2019 में तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना जारी की। 
  • CRZ का पदनाम: यह अंडमान, निकोबार एवं लक्षद्वीप द्वीपों को छोड़कर, देश के तटीय हिस्सों तथा प्रादेशिक जल को CRZ के रूप में नामित करता है।
  • CRZ श्रेणियाँ
    • CRZ-IA: पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA)
    • CRZ-IB: इंटरटाइडल जोन
    • CRZ-II: नगरपालिका या शहरी सीमा के भीतर विकसित भूमि क्षेत्र
    • CRZ-IIIA: 2,161 प्रति वर्ग किमी. (वर्ष 2011 की जनगणना) से अधिक जनसंख्या घनत्व वाले अविकसित ग्रामीण क्षेत्र; उच्च ज्वार रेखा (HTL) से पहला 50 मीटर ‘नो डेवलपमेंट जोन’ (NDZ) है।
    • CRZ-IIIB: 2,161 प्रति वर्ग किमी. से कम जनसंख्या घनत्व वाले अविकसित ग्रामीण क्षेत्र; HTL से पहला 200 मीटर ‘नो डेवलपमेंट जोन’ (NDZ) है।
    • CRZ-IVA: निम्न ज्वार रेखा (LTL) से समुद्र की ओर 12 समुद्री मील तक फैला हुआ जल एवं समुद्री क्षेत्र।
    • CRZ-IVB: ज्वारीय तटों के बीच का जल और तल क्षेत्र, उस बिंदु तक जहाँ सबसे शुष्क मौसम के दौरान लवणता पाँच भाग प्रति हजार तक पहुँच जाती है।
  • मैंग्रोव के लिए
    • सीमित सुरक्षा: वर्ष 2019 की अधिसूचना ने 1,000 वर्ग मीटर से 50 मीटर के बफर जोन तक की सरकारी होल्डिंग्स की कानूनी सुरक्षा को सीमित कर दिया है।
    • निजी भूमि के लिए कोई अनिवार्य बफर नहीं: निजी भूमि पर मैंग्रोव के चारों ओर बफर जोन की आवश्यकता को हटा दिया गया है।
      • इन परिवर्तनों के कारण मैंग्रोव का अधिक दोहन हो सकता है।

केरल के लिए नए CZMP की आवश्यकता

  • व्यापक तटरेखा: केरल की तटरेखा अरब सागर के साथ लगभग 590 किमी. तक फैली हुई है।
  • उच्च तटीय जनसंख्या घनत्व: वर्ष 2011 की जनगणना से पता चलता है कि केरल में जनसंख्या घनत्व 859 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है, जो राष्ट्रीय औसत 382 से दोगुने से भी अधिक है।
  • महत्त्वपूर्ण तटीय क्षेत्र कवरेज: केरल के 14 जिलों में से 9 जिले तट के किनारे अवस्थित हैं, अनुमानित रूप से पाँच निगम, 36 नगर पालिकाएँ एवं 245 ग्राम पंचायतें 10 तटीय जिलों में तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) के अंतर्गत आती हैं।
  • तीव्र भूमि दबाव: तटीय केरल में राज्य के अन्य हिस्सों की तुलना में उच्च जनसंख्या घनत्व का अनुभव होता है, जिसके परिणामस्वरूप तटीय भूमि संसाधनों पर महत्त्वपूर्ण दबाव पड़ता है।
  • बड़े पैमाने पर CRZ नियमों का उल्लंघन: उच्च जनसांख्यिकीय माँग के कारण, केरल के तट पर CRZ नियमों का व्यापक उल्लंघन देखा गया है। यह भी शामिल है:
    • अवैध भूमि संशोधन: अनधिकृत भूमि संशोधन के हजारों उदाहरण, जैसे आर्द्रभूमि का पुनर्ग्रहण।
    • अनधिकृत निर्माण: तट के किनारे सैकड़ों अवैध निर्माण, जो CRZ प्रतिबंधों की अवहेलना करते हैं।

केरल में CZMP की कार्यान्वयन प्रक्रिया

  • स्वीकृत CZMP की उपलब्धता: केरल सरकार को एक महीने के भीतर केरल तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण की वेबसाइट पर सभी 10 जिलों के लिए हस्ताक्षरित CZMP प्रतियाँ प्रकाशित करनी होंगी।
  • CRZD अधिसूचना, 2019 का आवेदन: CRZ मंजूरी के लिए आवेदन अब CRZ, 2019 दिशा-निर्देशों का पालन करेंगे, जिसका उद्देश्य स्थानीय समुदायों के लिए सतत् विकास का समर्थन करते हुए तटीय एवं समुद्री पर्यावरण की रक्षा करना है।

केरल के लिए नए CZMP का महत्त्व

  • ‘नो डेवलपमेंट जोन’ (NDZ) में कमी: केरल के CRZ क्षेत्रों में NDZs को घटाकर आधा कर दिया जाएगा। 
    • जैसा कि CRZ 2011 अधिसूचना द्वारा तय किया गया था, यह पहले के 239.431 वर्ग किमी. के मुकाबले 108.397 वर्ग किमी. होगा।
    • ज्वार-प्रभावित जल निकायों के आसपास NDZ को 100 मीटर से घटाकर 50 मीटर कर दिया गया है, विशेष रूप से घनी आबादी वाले ग्रामीण क्षेत्रों में, जिससे अधिक निर्माण के अवसर मिलते हैं।
      • हालाँकि, कम NDZs से पर्यावरणीय क्षरण हो सकता है, जिसमें तटीय एवं समुद्री प्रजातियों के आवास स्थान का नुकसान, प्रदूषण में वृद्धि तथा विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान शामिल है।
  • स्थानीय आबादी को प्रत्यक्ष लाभ: CZMP की मंजूरी से पहले के निर्माण प्रतिबंधों में ढील, नए आवास एवं मौजूदा घरों की मरम्मत की अनुमति देकर लगभग 10 लाख लोगों को सीधे लाभ होने का अनुमान है।

संदर्भ 

साइबर अपराधियों द्वारा सोशल इंजीनियरिंग विधियों का उपयोग करके उपयोगकर्ताओं को ठगने के नए साधन के रूप में दुर्भावनापूर्ण एंड्रॉइड पैकेज प्रारूप (APK) फाइलों का उपयोग किया जा रहा है।

संबंधित तथ्य 

  • साइबर धोखाधड़ी के एक हालिया मामले में, एक महिला ने दावा किया कि बंगलूरू हवाई अड्डे के लाउंज में व्हाट्सऐप पर APK फाइल के माध्यम से अपने आईफोन पर एक ऐप डाउनलोड करने के बाद उसे 1 लाख रुपये तक का नुकसान हुआ।
    • सोशल इंजीनियरिंग तकनीक का उपयोग दुर्भावनापूर्ण ऐप्स को डाउनलोड करने के लिए किया गया था, जिसके द्वारा डिवाइस तक पहुँच बनाई गई थी और संभवतः कॉल फॉरवर्ड सक्षम किया गया था।

साइबर अपराध में सोशल इंजीनियरिंग के बारे में

  • सोशल इंजीनियरिंग एक साइबर अपराध तकनीक है, जो उपयोगकर्ताओं को संवेदनशील जानकारी प्रकट करने या सुरक्षा गलतियाँ करने के लिए मनोवैज्ञानिक बदलाव एवं मानवीय भावनाओं को धोखा देने का उपयोग करती है।

  • सामान्य तकनीकें
    • फिशिंग (Phishing): ये ईमेल एवं टेक्स्ट संदेश होते हैं, जिनका उद्देश्य पीड़ितों में तात्कालिकता की भावना उत्पन्न करना या उन्हें संवेदनशील जानकारी प्रकट करने, दुर्भावनापूर्ण वेबसाइटों के लिंक पर क्लिक करने अथवा मैलवेयर वाले अनुलग्नकों को खोलने के लिए प्रेरित करना है।
      • उदाहरण: किसी ऑनलाइन सेवा के उपयोगकर्ताओं को भेजा गया एक ईमेल, जिसमें उन्हें नीति उल्लंघन के बारे में सचेत किया जाता है, जिसके लिए उन्हें तत्काल कार्रवाई करनी होती है, जैसे कि पासवर्ड बदलना।
    • बैटिंग (Baiting): एक ऐसी तकनीक, जो पीड़ितों को जाल में फँसाने के लिए झूठे वादे का उपयोग करती है, जो उनकी व्यक्तिगत जानकारी चुरा लेती है या उनके सिस्टम को मैलवेयर से संक्रमित कर देती है।
      • उदाहरण: बैटिंग आमतौर पर उन क्षेत्रों में मैलवेयर (आमतौर पर मैलवेयर-संक्रमित फ्लैश ड्राइव) को फैलाने के लिए फिजिकल मीडिया का उपयोग करता है, जहाँ संभावित पीड़ितों को उन्हें देखना निश्चित है (उदाहरण के लिए, बाथरूम, लिफ्ट इत्यादि)। इसके अलावा प्रलोभन के ऑनलाइन रूपों में लुभावने विज्ञापन शामिल होते हैं, जो दुर्भावनापूर्ण साइटों तक ले जाते हैं।
    • स्केयरवेयर (Scareware): एक ऐसी तकनीकम, जिसमें यूजर के सिस्टम  में झूठे संदेशों एवं धमकियों को भेजा जाता है ताकि वे ऐसा सॉफ्टवेयर इंस्टॉल कर लें, जो या तो मैलवेयर है अथवा जिसका कोई वास्तविक लाभ नहीं है।
      • उदाहरण: वेब सर्फिंग के दौरान ब्राउजर में दिखाई देने वाले पॉपअप बैनर एक सामान्य उदाहरण हैं, जो ऐसे टेक्स्ट को प्रदर्शित करते हैं जैसे, ‘आपका कंप्यूटर हानिकारक स्पाइवेयर प्रोग्राम से संक्रमित हो सकता है।’ 
    • प्रीटेक्सटिंग (Pretexting): एक तकनीक, जिसमें झूठ बोलकर पीड़ित का विश्वास हासिल किया जाता है, अक्सर यह दिखावा करके कि उसे किसी महत्त्वपूर्ण कार्य को करने के लिए संवेदनशील जानकारी की आवश्यकता है।
    • प्रतिदान (Quid pro quo): एक तकनीक जो लोगों की अच्छे कार्यों के प्रति प्रतिक्रिया करने की प्रवृत्ति का लाभ उठाती है।
      • उदाहरण के लिए, एक हमलावर पीड़ित को अपने एंटीवायरस सॉफ्टवेयर को बंद करने के बदले में मुफ्त तकनीकी सहायता की पेशकश कर सकता है। 
    • डीपफेक (Deep Fakes): एक तकनीक जो वास्तविक लोगों की नकल करने वाले यथार्थवादी लेकिन नकली ऑडियो, वीडियो या चित्र बनाने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग करती है। 
      • वाटरिंग होल अटैक (Watering Hole Attack): एक लक्षित तकनीक जिसमें एक ऐसी वेबसाइट से समझौता करना शामिल है, जिस पर लोगों के एक विशेष समूह द्वारा दौरा किए जाने की संभावना है।

भारत में साइबर अपराध

  • वर्ष 2023 में बैंक खातों से छेड़छाड़ के मामलों की संख्या में भारत विश्व स्तर पर पाँचवें स्थान पर था, जहाँ 5.3 मिलियन खातों की जानकारी लीक होने की संभावना है तथा नागरिक प्रत्येक मिनट साइबर अपराधियों के कारण लगभग 1.3 से 1.5 लाख रुपये गँवा रहे हैं।
  • नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (NCRP) के अनुसार, वर्ष 2023 में डिजिटल वित्तीय धोखाधड़ी के पीड़ितों द्वारा कम-से-कम ₹10,319 करोड़ का नुकसान होने की सूचना मिली है, जिसमें अब तक 5,252 संदिग्ध URL रिपोर्ट किए गए हैं।
  • भारतीय साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले तीन वर्षों में डिजिटल वित्तीय धोखाधड़ी ₹1.25 लाख करोड़ तक पहुँच गई है।  
  • वित्त पर संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट ‘साइबर सुरक्षा एवं साइबर/व्हाइट काॅलर क्राइम की बढ़ती घटनाएँ’ में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2023 में पर्यवेक्षण संस्थाओं (SE) द्वारा रिपोर्ट की गई घरेलू धोखाधड़ी कुल ₹2,537.35 करोड़ थी।

हमलों को रोकने के उपाय

  • मानकीकरण: सभी बैंकों को वास्तविक के रूप में पहचान करने के लिए अपने ग्राहक सेवा नंबर की शुरुआत में ‘160’ लगाने के लिए कहा गया है।
    • तीन अंकों का नंबर 10 अंकों के मोबाइल नंबर का हिस्सा होगा एवं बिना नंबर के किसी भी कॉल को नागरिकों द्वारा नहीं उठाया जाना चाहिए।
  • URL फिशिंग धोखाधड़ी: भारत के सभी बैंकों के URL में .bnk.in होगा एवं वित्तीय संस्थानों के यूआरएल में .fin.in होगा।
  • व्हाइट लिस्टिंग (White Listing): सभी दूरसंचार ऑपरेटर नागरिकों को संदेशों (SMS सहित) के माध्यम से भेजे गए लिंक को ‘व्हाइट-लिस्ट’ करेंगे। जो लिंक व्हाइट-लिस्ट नहीं हैं, उन्हें ऑपरेटर स्तर पर निपटाया जाएगा और वे ग्राहकों तक नहीं पहुँचेंगे।
  • ‘नो योर कस्टमर’ (KYC) प्रक्रियाओं को मजबूत करना, निरीक्षण एवं ऑडिट में सुधार करना तथा विनियमन का अनुपालन सुनिश्चित करना।

इसकी व्यापकता के कारण

  • सुरक्षा ज्ञान का अभाव: कई कर्मचारियों में इस प्रकार के हमलों के विरुद्ध खुद को पहचानने एवं उनका बचाव करने के लिए ज्ञान का अभाव है क्योंकि सोशल इंजीनियरिंग हमले मानवीय कमजोरियों का लाभ उठाने के लिए डिजाइन किए गए हैं।
    • सोशल मीडिया उपस्थिति: सोशल इंजीनियर धोखाधड़ी एवं हेरफेर का उपयोग करके खुद को दोस्त या परिवार के सदस्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं अथवा बैंक या सरकारी एजेंसी जैसे किसी विश्वसनीय संगठन से होने का दिखावा करते हैं, जो अक्सर सक्रिय सोशल मीडिया उपस्थिति वाले लोगों को लक्षित करते हैं।
    • लालच की अपील: वर्ष 2018 का कुख्यात ईमेल नाइजीरियाई प्रिंस घोटाला लालच की मानवीय प्रकृति को बढ़ावा देने का एक उदाहरण है। इस घोटाले में, एक नाइजीरियाई शाही व्यक्ति प्राप्तकर्ता के बैंक खाते की जानकारी या एक छोटी-सी अग्रिम फीस के बदले में एक बड़ा वित्तीय इनाम देने का दावा करता है।
    • उदारता की अपील: यह पीड़ितों के बेहतर स्वभाव का भी लाभ उठा सकता है, जैसे किसी मित्र को तकनीकी सहायता प्रदान करना या सर्वेक्षण में भाग लेने के लिए कहना, यह दावा करना कि प्राप्तकर्ता का पोस्ट वायरल हो गया है और किसी फर्जी वेबसाइट या मैलवेयर डाउनलोड का नकली लिंक प्रदान करना।
  • सोशल इंजीनियरिंग रोकथाम
    • जानकारी की दोबारा जाँच करना: संदिग्ध या अज्ञात स्रोतों से आए ईमेल एवं अटैचमेंट को न खोलना। साथ ही संदेह होने पर हमेशा अन्य स्रोतों, जैसे टेलीफोन के माध्यम से या सीधे सेवा प्रदाता की साइट से ईमेल में समाचार को क्रॉस-चेक करना तथा पुष्टि करना।
    • मल्टीफैक्टर ऑथेंटिकेशन का उपयोग करना: मल्टी फैक्टर ऑथेंटिकेशन का उपयोग करने से सिस्टम से समझौता होने की स्थिति में आपके खाते की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलती है क्योंकि उपयोगकर्ता क्रेडेंशियल हमलावरों द्वारा माँगी जाने वाली सबसे मूल्यवान जानकारी में से एक है।
    • अद्यतन एंटीवायरस/एंटीमैलवेयर सॉफ्टवेयर: यह सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर जाँच करते रहें कि अपडेट लागू हो गए हैं तथा संभावित संक्रमणों के लिए अपने सिस्टम को स्कैन करते रहना।
    • साइबर सुरक्षा जागरूकता: विभिन्न प्रकार के सामाजिक इंजीनियरिंग घोटालों पर सामान्य शिक्षा तथा संगठन को मजबूत करने एवं मानव जोखिम को कम करने के लिए फिशिंग सिमुलेटर, प्रशिक्षण वीडियो और साइबर सुरक्षा आकलन जैसे निःशुल्क उपकरणों का उपयोग करना।
    • प्रशिक्षण मॉड्यूल: सामाजिक इंजीनियरिंग जागरूकता प्रशिक्षण मॉडल निरंतर समर्थन प्रदान करने के लिए एनिमेटेड वीडियो, इंटरैक्टिव ऑनलाइन प्रशिक्षण, प्रबंधित सुरक्षा सेवाएँ, माइक्रोलर्निंग मॉड्यूल और फिशिंग सिमुलेशन का उपयोग करता है।

‘एंड्रॉइड पैकेज फॉर्मेट’ या ‘एंड्रॉइड पैकेज किट’ फाइलों (APKs) के बारे में

  • APKs फाइलों के प्रारूप में होते हैं, जिनका उपयोग Android ऐप्स वितरित करने और इंस्टॉल करने के लिए करता है। एक APK फाइल में वह सारा डेटा होता है, जिसकी किसी ऐप को जरूरत होती है, जिसमें सॉफ्टवेयर प्रोग्राम के सभी कोड, संपत्तियाँ और संसाधन शामिल होते हैं।
    • सभी Android ऐप्स या तो Google Play Store से डाउनलोड किए जाते हैं या मैन्युअल रूप से APK फाइलों का उपयोग करते हैं।
  • प्रकृति: APK एक आर्काइव फाइल (इसमें कई फाइलें होती हैं, साथ ही उनके बारे में कुछ मेटाडेटा भी होता है, जैसे: ZIP फाइलें) है  और यह JAR (जावा आर्काइव) फाइल प्रारूप का एक प्रकार है।
    • सभी APK मूल रूप से ZIP फाइलें हैं, लेकिन APK के रूप में ठीक से कार्य करने के लिए उनमें अतिरिक्त जानकारी होनी चाहिए। इसलिए सभी APK, ZIP हैं, लेकिन सभी ZIP, APK नहीं हैं।
  • घटक 
    • DEX फाइलें: संकलित कोड जो ऐप चलाने के लिए आवश्यक है।
    • संसाधन: बाहरी तत्त्व जैसे चित्र, स्ट्रिंग एवं XML फाइलें।
    • मेनिफेस्ट फाइल: ऐप की अनुमतियों, सुविधाओं एवं आवश्यकताओं की घोषणा करती है। 
  • एंड्रॉइड पैकेज किट फाइल खोलने का तरीका
    • एंड्रॉइड: ऐप्स को एंड्रॉइड फोन पर Google Play Store के माध्यम से या मैन्युअल रूप से डाउनलोड किया जा सकता है। 
      • मैन्युअल रूप से: उपयोगकर्ता को सबसे पहले एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम सेटिंग्स में अज्ञात स्रोतों से डाउनलोड को सक्षम करना होगा और फिर इसे किसी अन्य फाइल की तरह डाउनलोड करना होगा और अनुरोध पर खोलना होगा।
    • विंडोज 11 एवं macOS: उपयोगकर्ता एंड्रॉइड के लिए विंडोज सबसिस्टम का उपयोग करके मैन्युअल रूप से APK फाइलें इंस्टॉल कर सकते हैं, जिससे उपयोगकर्ता अमेजन ऐपस्टोर पर उपलब्ध एंड्रॉइड एप्लिकेशन डाउनलोड कर सकते हैं। 
      • ब्लूस्टैक्स जैसे एंड्रॉइड एमुलेटर का उपयोग विंडोज OS पर APK फाइलें खोलने के लिए भी किया जा सकता है। 
  • iOS डिवाइस: APK फाइलें आमतौर पर iOS डिवाइस पर इंस्टॉल नहीं की जा सकती हैं, लेकिन iPhone उपयोगकर्ता iOS के भीतर एक छिपी हुई सेटिंग को सक्षम करके उपयोगकर्ताओं को डेवलपर्स के ऐप्स के बीटा या अप्रकाशित संस्करणों का परीक्षण करने की अनुमति देते हैं।
  • एप्पल का स्विफ्ट SDK स्क्रीन शेयरिंग की भी अनुमति देता है (इन-ऐप एवं बैकग्राउंड दोनों में)।

संदर्भ

आदित्य-L1 मिशन का पहला तार्किक परिणाम सामने आ गया है।

संबंधित तथ्य 

आदित्य-L1 मिशन ने अपने प्राथमिक पेलोड, ‘विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ’ (Visible Emission Line Coronagraph- VELC) का उपयोग करके 16 जुलाई को सूर्य से ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ के प्रारंभ समय का सटीक अनुमान लगाने में अपनी पहली वैज्ञानिक उपलब्धि हासिल की है।

मिशन के मुख्य अवलोकन

  • निकट-सीमा CME अवलोकन: VELC का अद्वितीय स्पेक्ट्रोस्कोपिक डेटा वैज्ञानिकों को सूर्य की सतह के पास CME का अध्ययन करने की अनुमति देता है, जो आमतौर पर केवल दृश्य-प्रकाश अवलोकन के साथ चुनौतीपूर्ण होता है।
  • ऊष्मागतिकीय अंतर्दृष्टि: VELC वैज्ञानिकों को सूर्य पर उनके स्रोत क्षेत्रों के निकट CME के ऊष्मागतिकीय गुणों को समझने में मदद करता है तथा सौर विस्फोटों के बारे में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
  • सौर चक्र निगरानी: सूर्य वर्तमान में अपने सौर चक्र (चक्र संख्या 25) के चरम पर पहुँच रहा है, जो CME गतिविधियों में वृद्धि का संकेत देता है।
    • विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ  (VELC) की निरंतर निगरानी से इन विस्फोटों के बारे में व्यापक वैज्ञानिक डेटा प्राप्त हो सकता है।

कोरोनल मास इजेक्शन (CME) 

  • परिभाषा: कोरोनल मास इजेक्शन (CME) सूर्य के कोरोना से अंतरिक्ष में प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र का एक विशाल उत्सर्जन है।
  • कारण: CME, सूर्य के चुंबकीय क्षेत्रों के अचानक पुनर्गठन के कारण होता है, जिससे ऊर्जा का एक विस्फोटक उत्सर्जन होता है।
  • आवृत्ति: सूर्य के 11 वर्षीय सौर चक्र के चरम के दौरान CME अधिक बार होते हैं।
  • विशेषताएँ: इनमें अरबों टन आवेशित कण (प्लाज्मा) होते हैं, जो सैकड़ों से हजारों किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से यात्रा करते हैं।
  • पृथ्वी पर प्रभाव
    • उपग्रह व्यवधान: CME उपग्रह इलेक्ट्रॉनिक्स को नुकसान पहुँचा सकते हैं और GPS तथा संचार प्रणालियों को प्रभावित कर सकते हैं।
    • भू-चुंबकीय तूफान: जब CME पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ संपर्क करते हैं, तो वे भू-चुंबकीय तूफान उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से विद्युत ग्रिड और रेडियो संचार बाधित हो सकते हैं।
    • ऑरोरा: CME ऑरोरा को तीव्र कर सकते हैं, जिससे ध्रुवों के पास प्रकाश का प्रदर्शन हो सकता है।

आदित्य L1 मिशन के बारे में

  • लॉन्च की तारीख: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 2 सितंबर, 2023 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आदित्य-L1 मिशन लॉन्च किया।

  • मिशन का लक्ष्य: आदित्य-L1 सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत का पहला समर्पित वैज्ञानिक मिशन है।
  • पेलोड: मिशन का प्राथमिक पेलोड, ‘विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ’ (Visible Emission Line Coronagraph- VELC), भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIAp), बंगलूरू द्वारा विकसित किया गया था।
  • वर्तमान कक्षा: आदित्य-L1 को 6 जनवरी, 2024 को पृथ्वी-सूर्य लैग्रेंज बिंदु (L1) के चारों ओर एक हेलो कक्षा में रखा गया था।
  • मिशन का जीवनकाल: आदित्य-L1 को पाँच वर्ष तक संचालित करने के लिए डिजाइन किया गया है, जो लगातार सौर घटनाओं का अवलोकन और डेटा एकत्र करता रहेगा।

संदर्भ

शोधकर्ताओं ने ‘लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग’ (Light Detection and Ranging- LiDAR) तकनीक का उपयोग करके मेक्सिको के घने जंगल में छिपे एक पहले से अज्ञात माया सभ्यता के शहर की पहचान की है।

माया सभ्यता (Mayan Civilization)

  • यह सभ्यता एक ‘मेसोअमेरिकन संस्कृति’ (Mesoamerican Culture) थी।
  • यह सभ्यता जानी जाती है: प्राचीन मंदिर, ग्लिफ (लिखित लिपि), परिष्कृत कला, वास्तुकला, गणित और खगोलीय प्रणालियाँ।
  • भूगोल: इसमें दक्षिण-पूर्वी मेक्सिको तथा उत्तरी मध्य अमेरिका के क्षेत्र शामिल थे।
  • कला एवं वास्तुकला
    • सांस्कृतिक परिष्कार (Cultural Sophistication): उन्होंने मूर्तियों के लिए लकड़ी, जाडे (Jade), ओब्सीडियन, चीनी मिट्टी की चीजें और पत्थर जैसी सामग्रियों का उपयोग करके कला का सृजन किया।
    • भवन के प्रकार: वास्तुकला में पिरामिड-मंदिर, महल और औपचारिक बॉल कोर्ट शामिल थे।
  • राजनीतिक संरचना
    • राजा भगवान और लोगों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता था।
      • उसे आमतौर पर पितृवंशीय वंश से चुना जाता था।

संबंधित तथ्य

  • इस तकनीक से उन्हें घनी वनस्पतियों को पार करके प्राचीन शहर का पता लगाने में मदद मिली।
    • अब मेक्सिको के कैम्पेचे क्षेत्र (Campeche Region) में इसे वेलेरियाना (Valeriana) कहा जाता है।
      • शहर में पिरामिड, प्लाजा, एक बॉल कोर्ट (Ballcourt) और एक जलाशय है।

सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकी (Remote Sensing Technology) क्या है?

  • यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें किसी क्षेत्र की भौतिक विशेषताओं का पता लगाया जाता है और उनकी निगरानी की जाती है।
    • यह आमतौर पर किसी उपग्रह से दूरी पर परावर्तित एवं उत्सर्जित विकिरण के मापन के माध्यम से किया जाता है।
    • विशेष कैमरे दूर से संवेदी चित्र कैप्चर करते हैं।
      • यह शोधकर्ताओं को पृथ्वी के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद करता है।

LiDAR क्या है? 

  • LiDAR का अर्थ है:- ‘लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग’ (Light Detection and Ranging)।
  • यह एक रिमोट सेंसिंग तकनीक है, जो सेंसर एवं पृथ्वी की सतह के बीच की दूरी को मापने के लिए लेजर पल्स का उपयोग करती है।

  • परावर्तित प्रकाश का विश्लेषण करके, LiDAR इलाके के विस्तृत 3D मानचित्र बनाता है।
  • LiDAR के प्रकार 
    • स्थलाकृतिक: यह पृथ्वी की सतह का मानचित्र बनाता है और जल के ऊपर भूमि की विशेषताओं को कैप्चर करता है।
    • बाथेमेट्रिक (Bathymetric): यह LiDAR जल के नीचे मापता है और समुद्र तल का मानचित्र बनाता है।
  • LiDAR कैसे कार्य करता है? 
    • घटक: LiDAR प्रौद्योगिकी में एक लेजर, स्कैनर और GPS रिसीवर शामिल है।
    • प्रक्रिया
      • लेजर तरंगें वनस्पतियों, इमारतों या भूमि जैसी सतहों से टकराते हैं।
      • परावर्तित प्रकाश को रिकॉर्ड किया जाता है और प्रत्येक तरंग का दो-तरफा यात्रा समय मापा जाता है।
      • GPS और जड़त्वीय माप प्रणाली (IMS) डेटा को दूरी निर्धारित करने और ऊँचाई मानचित्र बनाने के लिए संयोजित किया जाता है।
    • पॉइंट क्लाउड डेटा
      • एकत्रित डेटा एक बिंदु बादल के रूप में दिखाई देता है, जो विभिन्न सतहों से प्रतिबिंबों को रिकॉर्ड करता है।
      • वैज्ञानिक विभिन्न विशेषताओं (जैसे, वनस्पति बनाम इमारतें) की पहचान करने के लिए इन प्रतिबिंबों का विश्लेषण करते हैं।

    • डिजिटल उन्नयन मॉडल 
      • डेटा को परिष्कृत करके एक ‘बेयर अर्थ’ (Bare Earth) मॉडल तैयार किया जा सकता है, जिसमें पेड़ों एवं संरचनाओं को हटा दिया जाता है तथा केवल जमीन की ऊँचाई दिखाई जाती है।

पुरातत्त्व में LiDAR का महत्त्व

  • बड़े क्षेत्रों का त्वरित सर्वेक्षण: LiDAR विशाल क्षेत्रों को तेजी से स्कैन कर सकता है, छिपी हुई संरचनाओं और विशेषताओं को उजागर कर सकता है।
  • सघन वनस्पति में प्रवेश करना: यह सघन वनस्पति में प्रवेश कर सकता है, पुरातात्त्विक स्थलों को प्रकट कर सकता है, जो अन्यथा अस्पष्ट होते हैं।
  • उच्च-रिजॉल्यूशन मैपिंग: LiDAR विस्तृत 3D मानचित्र प्रदान करता है, जो प्राचीन बस्तियों के सटीक विश्लेषण की अनुमति देता है।
    • ये मानचित्र भूगोलवेत्ताओं, संरक्षणवादियों और इंजीनियरों के लिए मूल्यवान है।
  • गैर-आक्रामक अन्वेषण: यह पुरातात्त्विक स्थलों को होने वाले नुकसान को कम करता है, तथा उन्हें भविष्य के अध्ययन के लिए संरक्षित करता है।
  • उच्च दक्षता: पारंपरिक तरीकों के विपरीत, जिसमें श्रम-गहन अन्वेषण शामिल है, LiDAR वैज्ञानिकों को प्रयोगशालाओं से विशाल क्षेत्रों का शीघ्रता से विश्लेषण करने की अनुमति देता है।

LiDAR प्रणालियों की चुनौतियाँ

  • सिग्नल को अलग करना: LiDAR प्रणालियों को कमजोर परावर्तित सिग्नल को अधिक प्रबल लेजर किरण से अलग करने की आवश्यकता होती है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि सेंसर लक्ष्य का सटीक पता लगाता है और अपने ही प्रकाश से अभिभूत होने से बचता है।
  • वायुमंडलीय हस्तक्षेप: धूल, कोहरा और अन्य वायुजनित कण लेजर बीम को उसके इच्छित लक्ष्य तक पहुँचने से पहले परावर्तित करके गलत रीडिंग बना सकते है।
  • शक्ति सीमाएँ: अधिक शक्तिशाली लेजर बीम अधिक सटीक डेटा प्रदान करती हैं, लेकिन अधिक शक्ति की आवश्यकता होती है और संचालन के लिए अधिक महंगी होती है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: उच्च शक्ति वाले लेजर मानव आँखों के लिए खतरनाक हो सकते हैं।
  • डिवाइस क्रॉसटॉक: आस-पास के LiDAR उपकरणों से सिग्नल एक-दूसरे के साथ हस्तक्षेप कर सकते है।
  • लागत और रखरखाव: LiDAR प्रणालियाँ अन्य सेंसरों की तुलना में महंगी हो सकती हैं।
  • अनपेक्षित वस्तु वापसी: LiDAR पक्षियों या अन्य उड़ती हुई अवांछित वस्तुओं से प्रतिबिंबों को प्राप्त कर सकता है।

LiDAR प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग

  • वायुमंडलीय विज्ञान: वायुमंडलीय कणों, हवा के पैटर्न, बादलों और मौसम प्रोफाइल का अध्ययन करने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • खगोल विज्ञान: LiDAR उच्च परिशुद्धता के साथ चंद्रमा जैसी दूर की वस्तुओं की दूरी को मापने में मदद करता है और दूरबीनों के लिए मार्गदर्शक तारे बनाता है।
  • ऑटोमोबाइल उद्योग: LiDAR स्व-चालित वाहनों में एक प्रमुख सेंसर है, जो पर्यावरण में वस्तुओं का पता लगाने के लिए कैमरों और रडार के साथ कार्य करता है।
  • स्थलाकृतिक और बाथेमेट्रिक मानचित्रण: स्थलाकृतिक LiDAR भूमि का मानचित्रण करने के लिए अवरक्त किरणों का उपयोग करता है, जबकि बाथेमेट्रिक LiDAR नदी के तल और समुद्र तल जैसी जल के नीचे की विशेषताओं का मानचित्रण करने के लिए ग्रीन प्रकाश का उपयोग करता है।
  • कृषि: भूमि स्थलाकृति का मानचित्रण करने, फसल की वृद्धि की निगरानी करने और उर्वरकों तथा सिंचाई की आवश्यकताओं का आकलन करने में मदद करता है।
  • पुरातत्त्व: पुरानी सड़कों और खंडहरों एवं सघन वनस्पतियों के नीचे प्राचीन संरचनाओं का मानचित्रण करने में सक्षम बनाता है।
  • पर्यावरण और तटीय प्रबंधन: तटीय क्षेत्रों के लिए बाढ़ मॉडलिंग, तटरेखा मानचित्रण, आपातकालीन प्रतिक्रिया और भेद्यता आकलन का समर्थन करता है।
  • उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स: लघु LiDAR का उपयोग अब मोबाइल फोन में किया जाता है, जो 3D स्कैनिंग और संवर्द्धित वास्तविकता अनुप्रयोगों को बढ़ाता है।

संदर्भ

अवैतनिक देखभाल कार्य, पालन-पोषण तथा घरेलू जिम्मेदारियों के माध्यम से अर्थव्यवस्था में महिलाओं के योगदान की अदृश्यता अनुसंधान एवं चर्चा का एक बढ़ता हुआ विषय रहा है।

राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (SNA)

  • राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (SNA) एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानक है, जो आर्थिक गतिविधियों के उपायों को संकलित करने के संबंध में सिफारिशें प्रदान करता है।
  • SNA में शामिल कुछ प्रमुख घटक हैं: सकल घरेलू उत्पाद (GDP), उत्पादन संबंधी खाते, आय संबंधी खाते, व्यय संबंधी खाते, वित्तीय संबंधी खाते, बैलेंस शीट, सेक्टोरल अकाउंट इत्यादि।

संबंधित तथ्य 

  • संयुक्त राष्ट्र की राष्ट्रीय लेखा प्रणाली में घरेलू उत्पादन को सकल घरेलू उत्पाद की गणना में शामिल किया जाता है, लेकिन अवैतनिक देखभाल कार्य को इसमें शामिल नहीं किया जाता है।
  • महिलाओं द्वारा वहन किए जाने वाले अवैतनिक श्रम के महत्त्वपूर्ण भार को दर्शाने वाले आँकड़े
    • टाइम यूज सर्वे (Time Use Survey), 2019 के आँकड़ों के अनुसार, कामकाजी आयु वर्ग की महिलाएँ अकेले अवैतनिक घरेलू कार्यों में प्रतिदिन लगभग सात घंटे बिताती हैं।
    • नौकरीपेशा महिलाएँ भी इसी तरह के कार्यों में 5.8 घंटे बिताती हैं।
    • इसके विपरीत, बेरोजगार पुरुष चार घंटे से भी कम समय कार्य में लगाते हैं, जबकि नौकरीपेशा पुरुष प्रतिदिन केवल 2.7 घंटे ही कार्य में लगाते हैं।
  • भारत के सकल घरेलू उत्पाद में देखभाल कार्य का योगदान लगभग 15-17% होने का अनुमान लगाया गया है।

केयर इकोनॉमी (Care Economy) के बारे में 

  • परिभाषा: केयर इकोनॉमी या देखभाल अर्थव्यवस्था से तात्पर्य अर्थव्यवस्था के उस क्षेत्र से है, जो देखभाल सेवाओं एवं गतिविधियों जैसे बुजुर्गों एवं बच्चों की देखभाल, खाना पकाने आदि पर केंद्रित है।
    • देखभाल अर्थव्यवस्था, व्यक्तियों को कार्यबल में भाग लेने में सक्षम बनाकर परिवारों, समुदायों और समग्र अर्थव्यवस्था को समर्थन देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • इसमें शामिल है: इसमें भुगतान एवं अवैतनिक दोनों प्रकार के देखभाल कार्य शामिल हैं।
    • सशुल्क देखभाल कार्य (Paid Care Work): सशुल्क देखभाल कार्य में औपचारिक रोजगार शामिल होता है, जहाँ देखभाल करने वालों को उनकी सेवाओं के लिए पारिश्रमिक दिया जाता है।
      • उदाहरण: नर्स तथा स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर, बाल देखभाल कार्यकर्ता, घरेलू कामगार आदि।
    • अवैतनिक देखभाल कार्य (Unpaid Care Work): अवैतनिक देखभाल कार्य उन देखभाल गतिविधियों को संदर्भित करता है, जिनकी आर्थिक रूप से क्षतिपूर्ति नहीं की जाती है।
      • उदाहरण: बच्चों का पालन-पोषण और बच्चों की परवरिश, परिवार के बुजुर्ग सदस्यों की देखभाल, घरेलू कार्य (सफाई, खाना बनाना, कपड़े धोना), सामुदायिक देखभाल और स्वयंसेवा आदि।
      • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर महिलाएँ, पुरुषों की तुलना में तीन गुना से अधिक अवैतनिक देखभाल कार्य करती हैं।
      • अवैतनिक देखभाल कार्य महिलाओं को औपचारिक कार्यबल में शामिल होने से रोकने वाली मुख्य बाधाओं में से एक है।
    • भारत में अवैतनिक कार्य का अनुमान 
      • भारतीय स्टेट बैंक की वर्ष 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अवैतनिक कार्य लगभग ₹22.7 लाख करोड़ या देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 7.5% योगदान देता है।
      • महिलाएँ अवैतनिक कार्यों पर प्रति सप्ताह लगभग 36 घंटे बिताती हैं, जबकि पुरुष 16 घंटे बिताते हैं।
      • अवैतनिक कार्यों में लैंगिक असमानताओं को दूर करने से भारत की सकल घरेलू उत्पाद में 27% की वृद्धि हो सकती है।

महिला श्रम बल भागीदारी दर (Female Labour Force Participation Rate)

  • महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) उन महिलाओं के अनुपात को मापती है, जो या तो किसी विशिष्ट आबादी में कार्यरत हैं या सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रही हैं।
  • भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) वर्ष 2004-05 से ऐतिहासिक रूप से घट रही है।
  • वर्ष 2022-23 के दौरान, श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रूप से बढ़कर 37.0% हो गई है।
    • ऐसा ग्रामीण महिलाओं, विशेष तौर पर कृषि क्षेत्र में स्वरोजगार में वृद्धि के कारण हुआ है।
    • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, 2022-23 के अनुसार, कृषि क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़कर 64% हो गई है।

महिलाओं के अवैतनिक देखभाल संबंधी कार्य के कारण उत्पन्न होने वाले मुद्दे

  • आर्थिक मुद्दे
    • अल्परोजगार और श्रम बाजार में भागीदारी: कई महिलाएँ देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों के कारण वेतन वाली नौकरी नहीं कर पाती हैं, जिसके कारण भागीदारी दर कम हो जाती है और श्रम का कम उपयोग होता है।
    • बाजार विफलता: देखभाल कार्य का कम भुगतान और कम मूल्यांकन आर्थिक उपायों में इसकी अदृश्यता में योगदान देता है, जिसके परिणामस्वरूप बाजार विफलता होती है।
    • अवैतनिक कार्य का मूल्यांकन: अवैतनिक देखभाल कार्य के आर्थिक योगदान को अक्सर GDP गणनाओं में पहचाना नहीं जाता है, जिससे महिलाओं के आर्थिक प्रभाव की विकृत समझ उत्पन्न होती है।
    • आय असमानता: अवैतनिक देखभाल कार्य में संलग्न महिलाओं को वित्तीय निर्भरता और आर्थिक असुरक्षा की उच्च दर का सामना करना पड़ता है।
    • समय की कमी: महिलाओं को अक्सर ‘समय की कमी’ का सामना करना पड़ता है, जिससे वे वेतनभोगी कार्य या अवकाश में शामिल नहीं हो पातीं, जिससे उत्पादकता और आर्थिक उत्पादन प्रभावित होता है।
  • स्वास्थ्य एवं कल्याण संबंधी मुद्दे
    • मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ: अवैतनिक देखभाल कार्य का तनाव तथा माँग चिंता और अवसाद जैसे मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों में योगदान कर सकता है।
    • शारीरिक स्वास्थ्य जोखिम: देखभाल करने से दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ और शारीरिक तनाव हो सकता है, क्योंकि महिलाएँ अपनी स्वास्थ्य आवश्यकताओं की उपेक्षा कर सकती हैं।
    • कार्य का दोहरा बोझ: कार्य के दोहरे बोझ को किसी भी प्रकार के भुगतान वाले कार्य के साथ-साथ घर पर किए जाने वाले अवैतनिक कार्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
      • अवैतनिक देखभाल कार्य और वेतनभोगी रोजगार के बीच संतुलन बनाने की चुनौती से थकान और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट हो सकती है।
  • सामाजिक एवं सांस्कृतिक मुद्दे
    • लैंगिक भूमिकाओं का सुदृढ़ीकरण: पारंपरिक मानदंड अक्सर यह तय करते हैं कि देखभाल करना एक महिला की जिम्मेदारी है, जो रूढ़िवादिता को बनाए रखता है और महिलाओं के अवसरों को सीमित करता है।
    • सामाजिक अपेक्षाएँ: सांस्कृतिक दबाव महिलाओं को व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाओं पर पारिवारिक दायित्वों को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, जिससे उनके कॅरियर के विकल्प और आकांक्षाएँ प्रभावित होती है।
  • सहायता प्रणालियों और बुनियादी ढाँचे का अभाव
    • बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल सेवाओं का अभाव: सस्ती और सुलभ देखभाल सेवाओं का अभाव महिलाओं पर अतिरिक्त बोझ डालता है, जिससे उन्हें अधिक अवैतनिक कार्य करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
    • सीमित सरकारी सहायता: कई देशों में ऐसी नीतियों का अभाव है, जो देखभाल करने वालों को पर्याप्त सहायता प्रदान करती हैं, जैसे कि माता-पिता की छुट्टी, लचीली कार्य व्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा लाभ।
    • सामुदायिक सहायता नेटवर्क: कमजोर सामुदायिक सहायता प्रणालियाँ तथा बढ़ता एकल परिवार देखभालकर्ताओं को और अधिक अलग-थलग कर सकता है एवं साझा संसाधनों या सहायता तक उनकी पहुँच को सीमित कर सकता है।
    • वैश्विक संकटों का प्रभाव: महामारी या आर्थिक मंदी जैसी घटनाएँ महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित करती हैं, जिससे अक्सर उनकी देखभाल का बोझ बढ़ जाता है, जबकि उनके आर्थिक अवसर कम हो जाते है।
  • नीतिगत बाधाएँ: नीतिगत चर्चाओं में अवैतनिक देखभाल कार्य को अपर्याप्त रूप से मान्यता दी जाती है।

अवैतनिक देखभाल कार्य को परिमाणित करने का महत्त्व

  • सकल घरेलू उत्पाद में मूल्यांकन: अवैतनिक देखभाल कार्य की मात्रा निर्धारित करके, सरकारें इसके आर्थिक मूल्य को राष्ट्रीय खातों में शामिल कर सकती हैं, जिससे समग्र आर्थिक गतिविधियों और योगदान की अधिक व्यापक समझ प्राप्त होती है।
  • महिलाओं के योगदान को आर्थिक मान्यता: यह बेहतर जानकारी वाली आर्थिक नीतियों की अनुमति देता है, जो अर्थव्यवस्था में महिलाओं तथा देखभाल करने वालों के वास्तविक योगदान को प्रतिबिंबित करती है।
  • सहायता सेवाओं को लक्षित करना: मात्रा निर्धारण से देखभाल सेवाओं में अंतराल की पहचान की जा सकती है, जिससे देखभाल करने वालों के लिए आवश्यक बाल देखभाल, वृद्ध देखभाल और अन्य सहायता प्रणालियों तक बेहतर पहुँच हो सकती है।
  • श्रम के अल्प-उपयोग को समझना: अवैतनिक देखभाल कार्य का परिमाणीकरण करने से यह स्पष्ट परिदृश्य मिलता है कि कितने संभावित श्रमिक अवैतनिक जिम्मेदारियों के कारण श्रम बल से बाहर रह जाते हैं।
  • सतत् विकास लक्ष्य (SDG 5- लैंगिक समानता) में योगदान: लक्ष्य 5.4 का उद्देश्य विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों मे वर्ष 2030 तक सहायक नीतियों तथा साझा घरेलू जिम्मेदारियों के माध्यम से अवैतनिक देखभाल एवं घरेलू कार्य को मान्यता देना है।
  • रूढ़िवादिता को चुनौती देना: अवैतनिक देखभाल कार्य के मूल्य को स्वीकार करने से पारंपरिक लैंगिक रूढ़िवादिता को चुनौती दी जा सकती है तथा घरेलू जिम्मेदारियों के अधिक न्यायसंगत वितरण की दिशा में सांस्कृतिक बदलाव को बढ़ावा मिल सकता है।

अवैतनिक घरेलू गतिविधियों के मौद्रिक मूल्य का अनुमान लगाने की विधियाँ

  • अवसर लागत विधि (GOC): यह दृष्टिकोण भुगतान न किए गए श्रम के मूल्य की गणना, भुगतान किए गए कार्यों के बजाय भुगतान न किए गए घरेलू कार्यों में संलग्न होने पर व्यक्तियों द्वारा छोड़े गए मौद्रिक लाभों पर विचार करके करता है।
    • मूलतः, यह अनुमान लगाता है कि यदि कोई व्यक्ति उस समय को वेतन सहित कार्य करके बिताता, तो वह कितना कमा सकता था।
  • प्रतिस्थापन लागत विधि (RCM): इस पद्धति से यह गणना की जाती है कि किसी व्यक्ति को बिना वेतन के घरेलू कार्य करने के लिए नियुक्त करने में कितना खर्च आएगा।
    • यह उन खर्चों का निर्धारण करके अवैतनिक कार्यों के मूल्य का अनुमान लगाता है, जिन्हें समाज को वहन करना होगा यदि उन कार्यों को भुगतान किए गए श्रमिकों द्वारा किया जाता है।

अवैतनिक देखभाल कार्य की मात्रा निर्धारित करने से जुड़ी चुनौतियाँ

  • डेटा संग्रहण की जटिलता: अवैतनिक घरेलू श्रम पर सटीक डेटा एकत्र करना जटिल और संसाधन-गहन है, जो स्पष्ट या उपयोगी जानकारी प्रदान नहीं कर सकता है।
    • उदाहरण: समय उपयोग सर्वेक्षण आयोजित करने के लिए गतिविधियों की विस्तृत ट्रैकिंग की आवश्यकता होती है, जो कई परिवारों के लिए जटिल हो सकता है, विशेषकर कम संसाधन वाली व्यवस्था में।
  • देखभाल कार्य का अंतर्निहित मूल्य: देखभाल कार्य की उसके अंतर्निहित मूल्य के लिए सराहना की जानी चाहिए, न कि केवल आर्थिक दृष्टि से मापा जाना चाहिए।
    • इसे परिमाणित करने से देखभाल के संबंधपरक पहलुओं का वस्तुकरण हो सकता है।
    • उदाहरण: देखभाल में पोषण, भावनात्मक समर्थन और सामाजिक बंधन शामिल है, जिसे आर्थिक शब्दों में पर्याप्त रूप से व्यक्त नहीं किया जा सकता है।
  • देखभाल की गुणवत्ता की उपेक्षा: अवैतनिक कार्य की मात्रा पर जोर देने से देखभाल की गुणवत्ता की अनदेखी हो सकती है।
    • उदाहरण: एक देखभालकर्ता देखभाल प्रदान करने में काफी घंटे खर्च कर सकता है, लेकिन उस देखभाल की गुणवत्ता (भावनात्मक समर्थन, जुड़ाव, आदि) मात्रात्मक माप में परिलक्षित नहीं होती है।
  • सांस्कृतिक परिवर्तनशीलता: अवैतनिक देखभाल कार्य का मूल्य और प्रकृति संस्कृतियों में काफी भिन्न होती है, जिससे स्थानीय प्रथाओं और मूल्यों को प्रतिबिंबित करने वाले मानकीकृत उपाय बनाना मुश्किल हो जाता है।
  • सरकार के लिए वहनीयता: वर्ष 2019 के आर्थिक सर्वेक्षण ने भारतीय अर्थव्यवस्था में अवैतनिक कार्य के महत्त्व को मान्यता दी है।
    • हालाँकि, इसके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, विशेष रूप से सरकारी सामर्थ्य तथा संबद्ध मूल्यों की सटीक गणना के संबंध में।

देखभाल कार्य से संबंधित पहल

  • भारत में समय उपयोग सर्वेक्षण: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) ने वर्ष 2019 में भारत में पहला व्यापक समय उपयोग सर्वेक्षण आयोजित किया, ताकि यह डेटा एकत्र किया जा सके कि लोग किस तरह से अपना समय विभिन्न गतिविधियों के लिए आवंटित करते हैं, जिसमें अवैतनिक घरेलू और देखभाल संबंधी कार्य शामिल हैं।
  • यूएन वुमेन का ‘देखभाल को दृश्यमान बनाना’ अभियान (UN Women’s ‘Making Care Visible’ Campaign): इस पहल का उद्देश्य अवैतनिक देखभाल कार्य के महत्त्व और महिलाओं की आर्थिक भागीदारी पर इसके प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
    • यह देखभाल कार्य को पहचानने एवं पुनर्वितरित करने के महत्त्व को बढ़ावा देता है।
  • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का सभ्य देखभाल कार्य के लिए ‘5R’ फ्रेमवर्क
    • पहचान करना (Recognize): अर्थव्यवस्था और समाज में योगदान देने में भुगतान किए गए और अवैतनिक देखभाल कार्य दोनों के मूल्य को स्वीकार करना।
    • कम करना (Reduce): सहायता सेवाएँ प्रदान करके और साझा जिम्मेदारियों को बढ़ावा देकर अवैतनिक देखभाल कार्य के बोझ को कम करना।
    • पुनर्वितरित करना (Redistribute): लिंग और समुदाय के सदस्यों के बीच देखभाल की भूमिकाओं के न्यायसंगत बँटवारे को प्रोत्साहित करना।
    • पुरस्कृत करना (Reward): मान्यता और समर्थन के माध्यम से अवैतनिक देखभाल को महत्त्व देते हुए भुगतान किए गए देखभाल कर्मियों के लिए उचित मुआवजा एवं लाभ सुनिश्चित करना।
    • प्रतिनिधित्व करना (Represent): देखभाल कर्मियों को निर्णय लेने में मुद्दों को संबोधित करना और सुनिश्चित करना कि वकालत तथा संगठन के माध्यम से उनके अधिकारों की रक्षा की जाए।

‘ग्लोबल केयर चेन’ (Global Care Chain)

  • ‘ग्लोबल केयर चेन’ एक ऐसी प्रणाली को संदर्भित करती है, जिसमें देखभाल की जिम्मेदारियाँ एक महिला से दूसरी महिला को हस्तांतरित की जाती हैं, जो अक्सर सीमाओं और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्तरों को पार करती है।
  • यह परिघटना तब उभरती है, जब अधिक विशेषाधिकार प्राप्त समुदायों की महिलाएँ तेजी से कार्यबल में प्रवेश कर रही हैं, जिससे एक ‘देखभाल अंतराल’ (Care Gap) उत्पन्न हो रहा है, जिसे अक्सर प्रवासी महिलाओं और हाशिए की पृष्ठभूमि से आने वाली महिलाओं द्वारा पूरा किया जाता है।
  • परिणामस्वरूप, सामाजिक-आर्थिक सीढ़ी के निचले स्तर पर स्थित महिलाएँ सबसे अधिक असुरक्षित हैं और शृंखला में सबसे निचले स्तर पर ही रहती हैं।

देखभाल कार्य की मान्यता के लिए उठाए जा सकने वाले कदम

  • सामाजिक देखभाल अवसंरचना: बाल देखभाल तथा सामाजिक देखभाल जैसी किफायती तथा सुलभ सार्वजनिक देखभाल सेवाओं में निवेश और प्रावधान से उन महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे, जो पहले से ही देखभाल करने वाली भूमिकाओं में अनुभवी हैं।
  •  ILO के सुझाव के अनुसार, देखभाल सेवा क्षेत्र में निवेश बढ़ाने से वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर 475 मिलियन नौकरियाँ उत्पन्न होने की संभावना है।
    • इससे पारंपरिक रूप से अवैतनिक कार्य को तथा अधिक औपचारिक बनाया जा सकेगा।
  • महिलाओं की श्रम बाजार पहुँच को बढ़ाना: देखभाल कर्मियों के लिए न्यूनतम मजदूरी कानून लागू करना और उन्हें औपचारिक श्रम ढाँचे में शामिल करना, देखभाल कार्य को कुशल श्रम के रूप में मान्यता दे सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, घरेलू कामगारों, बाल देखभाल प्रदाताओं जैसे अनौपचारिक देखभालकर्ताओं को पेंशन, स्वास्थ्य बीमा और मातृत्व लाभ प्रदान करने से उनकी आर्थिक स्थिरता में सुधार हो सकता है और उचित कार्य स्थितियाँ सुनिश्चित हो सकती हैं।
  • व्यापक आर्थिक नीतियों में अवैतनिक कार्य को मान्यता देना और उसका प्रतिनिधित्व करना: भारत ने वर्ष 2019 में एक समय उपयोग सर्वेक्षण किया, जो अवैतनिक देखभाल कार्य के बोझ को समझने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
    • ऐसे सर्वेक्षणों से प्राप्त आँकड़ों से अवैतनिक देखभाल कार्य के मूल्य का आकलन किया जा सकता है तथा इसकी अवधारणा को घरेलू कर्तव्य से उत्पादक आर्थिक गतिविधियों में बदला जा सकता है।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों को चुनौती देना: अवैतनिक कार्य को कलंकमुक्त करने की आवश्यकता है, जिससे लैंगिक रूढ़िवादिता और देखभाल कार्य को बदलने में मदद मिलेगी।
    • उदाहरण: सार्वजनिक अभियान, शैक्षिक कार्यक्रम और मीडिया संबंधी कार्यों में पुरुषों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने में भूमिका निभा सकते है।
      • सरकारी नीतियाँ पितृत्व एवं अभिभावकीय अवकाश को प्रोत्साहित कर सकती हैं, पुरुषों को बच्चों की देखभाल के लिए समय निकालने के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं और देखभाल में पुरुषों की भागीदारी को सामान्य बना सकती हैं।
  • देखभाल को मुख्य स्तंभ के रूप में स्थापित करना: देशों में सामाजिक-आर्थिक विकास के मूलभूत घटक के रूप में देखभाल कार्य की पहचान करना और उसे प्राथमिकता देना।
    • उदाहरण: भारत के लिए, वर्ष 2047 तक विकसित भारत में महिलाओं के नेतृत्व में विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए देखभाल अर्थव्यवस्था को मजबूत करना आवश्यक है।

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