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Nov 06 2024

‘नमो ड्रोन दीदी’ योजना 

भारत सरकार ने महिला स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को कृषि सेवाओं के लिए ड्रोन प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाने के लिए ‘नमो ड्रोन दीदी’ (Namo Drone Didi) योजना शुरू की है।

स्वयं सहायता समूह (SHGs) क्या हैं?

  • ये लोगों के अनौपचारिक संगठन हैं, जो मुद्दों को सुलझाने एवं अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक साथ आर्थिक कार्य करते हैं। 
  • उद्देश्य: यह समूह अपने सदस्यों के सामाजिक एवं आर्थिक कल्याण के उत्थान पर ध्यान केंद्रित करता है। 

‘नमो ड्रोन दीदी’ योजना के बारे में

  • लॉन्च वर्ष: वर्ष 2024 में 
  • फंडिंग: ₹1261 करोड़ 
  • लक्ष्य: 14,500 चयनित महिला SHGs को कृषि संबंधी किराये की सेवाओं के लिए ड्रोन प्रदान करना।
  • अवधि: वर्ष 2024-25 से वर्ष 2025-26 तक। 
  • उद्देश्य: ड्रोन प्रौद्योगिकी के माध्यम से तरल उर्वरक एवं कीटनाशक अनुप्रयोग जैसी कृषि सेवाओं को सुविधाजनक बनाना।

योजना की मुख्य विशेषताएँ

  • यह एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है। 
  • ड्रोन प्रावधान: 14,500 महिला स्वयं सहायता समूहों को उर्वरक एवं कीटनाशकों के छिड़काव जैसे कार्यों के लिए किसानों को किराये की सेवाएँ प्रदान करने के लिए ड्रोन प्राप्त होंगे।
  • वित्तीय सहायता: केंद्र सरकार ड्रोन और सहायक उपकरण की लागत का 80%, अधिकतम 8 लाख रुपये प्रति स्वयं सहायता समूह प्रदान करेगी।
  • प्रशिक्षण एवं सहायता: SHG सदस्यों को ड्रोन संचालित करने और उनके रखरखाव के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा।
  • कार्यान्वयन:लीड फर्टिलाइजर कंपनियाँ’ (LFCs) राज्य स्तर पर योजना को लागू करने, राज्य विभागों, ड्रोन निर्माताओं एवं SHG के साथ समन्वय करने के लिए जिम्मेदार होंगी।
  • निगरानी: एक समर्पित IT-आधारित प्रबंधन सूचना प्रणाली (Management Information System- MIS) ड्रोन संचालन एवं सेवा वितरण को ट्रैक करेगी।

आयरन बीम 

(Iron Beam)

इजरायल ने आयरन बीम लेजर आधारित मिसाइल रक्षा प्रणाली के लिए लगभग 2 बिलियन शेकेल (Shekels) (इजरायल की मौद्रिक इकाई) के समझौते पर हस्ताक्षर किए।

आयरन बीम (Iron Beam) के बारे में 

  • यह एक उच्च शक्ति वाली लेजर प्रणाली है। 
  • आयरन बीम का उद्देश्य एवं आवश्यकता
    • उन्नत रक्षा: आयरन बीम का लक्ष्य इजरायल की अवरोधन क्षमताओं में सुधार करना है, विशेष रूप से ड्रोन एवं कम दूरी के प्रोजेक्टाइल जैसे छोटे हवाई खतरों के लिए।
    • आयरन डोम का पूरक: आयरन बीम आयरन डोम जैसी प्रणालियों के साथ कार्य करेगा, जो रॉकेट के खिलाफ कम दूरी की रक्षा प्रदान करता है।
    • बहु-आयामी खतरों का जवाब: इजरायल को गाजा एवं लेबनान जैसे क्षेत्रों से लगातार हवाई खतरों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें हमास के समर्थन में हिजबुल्लाह के हालिया प्रक्षेप्य हमले भी शामिल हैं।

आयरन बीम के लाभ

  • लागत दक्षता: लेजर आधारित प्रणाली पारंपरिक इंटरसेप्टर मिसाइलों का एक सस्ता विकल्प प्रदान करती है।
  • सुरक्षा में वृद्धि: यह इजरायल की बहुस्तरीय रक्षा प्रणाली को बढ़ाता है, उच्च मात्रा वाले रॉकेट एवं ड्रोन हमलों की प्रतिक्रिया में सुधार करता है तथा महंगे मिसाइल इंटरसेप्टर पर निर्भरता को कम करता है।

आयरन बीम रक्षा प्रणाली के लिए चुनौतियाँ

  • तकनीकी चुनौतियाँ
    • लक्ष्यीकरण सटीकता: एक ही समय में कई तेज गति वाली वस्तुओं को सटीक रूप से लक्षित करना कठिन है।
    • आकार में कमी: इस प्रणाली को विमान में फिट करने लायक छोटा बनाना चुनौतीपूर्ण है।
  • परिचालन चुनौतियाँ
    • मौसम का प्रभाव: खराब मौसम, जैसे बादल या कोहरा, लेजर की प्रभावशीलता को कम कर सकता है।
    • कम दृश्यता: खराब दृश्यता के कारण खतरों का सटीक रूप से पता लगाना एवं रोकना कठिन हो जाता है।
  • तार्किक चुनौतियाँ
    • सिस्टम अनुकूलता: आयरन बीम को आयरन डोम जैसी मौजूदा रक्षा प्रणालियों से जोड़ने के लिए सावधानीपूर्वक योजना की आवश्यकता होती है।
    • उच्च प्रारंभिक लागत: यद्यपि परिचालन लागत कम हो सकती है, प्रारंभिक विकास एवं तैनाती महंगी है।

तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन से चीनी अंतरिक्ष यात्री की वापसी

तीन चीनी अंतरिक्ष यात्री तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन (Tiangong Space Station) पर छह महीने रहने के बाद पृथ्वी पर लौट आए।

  • चालक दल 1:24 बजे चीन के भीतरी मंगोलिया क्षेत्र में एक दूरस्थ लैंडिंग क्षेत्र में उतरा।
  • ताइकोनॉट्स (Taikonauts) (चीनी अंतरिक्ष यात्री) प्रयोग करते हैं, स्पेसवॉक करते हैं एवं स्टेशन को अंतरिक्ष मलबे से बचाने के लिए उपकरण स्थापित करते हैं।

तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन के बारे में

  • निर्मित किया गया है: तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन एक T आकार का अंतरिक्ष स्टेशन है, जिसका अर्थ है ‘स्वर्गीय महल’ (Heavenly Palace) एवं इसे चीनी मानवयुक्त अंतरिक्ष एजेंसी (Chinese Manned Space Agency- CMSA) द्वारा बनाया गया था।
  • कक्षा: यह 217 एवं 280 मील (340 से 450 किलोमीटर) के बीच की ऊँचाई पर पृथ्वी की निचली कक्षा में पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
    • इसकी कक्षीय ऊँचाई लगभग अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के समान है। 
  • लॉन्च: अंतरिक्ष स्टेशन को 3 मॉड्यूल में बनाया गया था एवं इसे वर्ष 2021 तथा वर्ष 2022 के बीच लॉन्च किया गया था।

अंतरिक्ष स्टेशन के बारे में

  • अंतरिक्ष स्टेशन, अंतरिक्ष यान के रूप में कृत्रिम उपग्रह हैं, जो पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं एवं विस्तारित अवधि के लिए मानव निवास का समर्थन करने के लिए डिजाइन किए गए हैं।
    • ये दबावयुक्त बाड़ों, विद्युत, आपूर्ति एवं पर्यावरण प्रणालियों से सुसज्जित हैं।
  • उदाहरण: अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) एक अंतरिक्ष स्टेशन का एक प्रसिद्ध उदाहरण है, जो प्रत्येक 90 मिनट में लगभग 17,500 मील प्रति घंटे की गति से पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
    • ISS यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, कनाडा एवं जापान के बीच एक “सहकारी कार्यक्रम” है तथा इसका स्वामित्व किसी एक देश के पास नहीं है।
  • भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Bhartiya Antriksh Station- BAS): भारत अपनी बड़ी अंतरिक्ष महत्त्वाकांक्षाओं के हिस्से के रूप में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) नामक अपने स्वयं के मॉड्यूलर अंतरिक्ष स्टेशन की योजना बना रहा है। 
    • अपेक्षित लॉन्च: पहला मॉड्यूल वर्ष 2028 में लॉन्च होने की उम्मीद है एवं शेष मॉड्यूल वर्ष 2035 तक लॉन्च होने की उम्मीद है।

स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए ICMR की ‘फर्स्ट इन द वर्ल्ड चैलेंज’ पहल

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने ‘फर्स्ट इन द वर्ल्ड चैलेंज’ (First in the World Challenge) नामक एक नई उच्च जोखिम, उच्च इनाम पहल की घोषणा की है।

  • उद्देश्य: भारतीय वैज्ञानिकों को नवीन विचारों के साथ आने एवं कठिन स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • प्रस्ताव: यह योजना बेहतर स्वास्थ्य परिणामों के लिए संभावित ‘अपनी तरह के पहले’ बायोमेडिकल एवं तकनीकी नवाचारों के साथ महत्त्वपूर्ण व्यापक प्रभाव वाले अनुसंधान विचारों को वित्तपोषित करने का प्रस्ताव करती है।
    • जिन प्रस्तावों का लक्ष्य ‘वृद्धिशील ज्ञान’ या ‘प्रक्रिया नवाचार’ है, उन्हें इस योजना के माध्यम से वित्तपोषित नहीं किया जाएगा।
  • मानदंड: ऐसे विचार जो नवीन हों, लीक से हटकर हों, भविष्यवादी हों एवं नए ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करते हों। अग्रणी स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों (टीके, औषधियाँ/चिकित्सीय, निदान आदि) की खोज/विकास जिसके बारे में आज तक दुनिया में कभी सोचा, परीक्षण या प्रयास नहीं किया गया है, उस पर विचार किया जाएगा।
  • प्रतिभागी: प्रस्ताव किसी व्यक्ति या शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा प्रस्तुत किए जा सकते हैं (या तो एक ही संस्थान से अथवा कई संस्थानों से)। 

 भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR)

  • यह बायोमेडिकल अनुसंधान के निर्माण, समन्वय एवं प्रचार के लिए भारत में शीर्ष निकाय है।
  • स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1911 में ‘इंडियन रिसर्च फंड एसोसिएशन’ (Indian Research Fund Association- IRFA) के रूप में हुई थी एवं यह दुनिया के सबसे पुराने चिकित्सा अनुसंधान निकायों में से एक है।
  • वर्ष 1949 में, IRFA को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के रूप में पुनः नामित किया गया था।
  • फंडिंग: ICMR को भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है।
  • अध्यक्षता: परिषद के शासी निकाय की अध्यक्षता केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री करते हैं।
  • राष्ट्रीय रजिस्ट्री: वर्ष 2007 में, संगठन ने क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री-भारत की स्थापना की, जो क्लिनिकल परीक्षणों के लिए भारत की राष्ट्रीय रजिस्ट्री है।

भारत, अल्जीरिया ने रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए

द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर भारत एवं अल्जीरिया के बीच समझौता ज्ञापन (MoU) रणनीतिक साझेदारी को गहरा करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। 

MoU के मुख्य बिंदु

  • उन्नत रक्षा सहयोग: समझौता ज्ञापन रक्षा क्षेत्र में सहयोग के लिए एक रूपरेखा स्थापित करता है, जो आपसी समझ, ज्ञान साझा करने एवं रणनीतिक हितों को मजबूत करने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों पर केंद्रित है।
  • विशेषज्ञता का आदान-प्रदान: इसमें सैन्य अनुभवों एवं विशेषज्ञता को साझा करने के प्रावधान शामिल हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ भारत के पास विशेषज्ञता है, जैसे रक्षा उत्पादन, इसकी ‘मेक इन इंडिया’ तथा ‘मेक फॉर द वर्ल्ड’ पहल के हिस्से के रूप में।
  • शांतिपूर्ण समाधानों के प्रति प्रतिबद्धता: भारत ने संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान पर अपने रुख पर जोर दिया, भारत को एक विश्वसनीय वैश्विक भागीदार या विश्व बंधु के रूप में प्रदर्शित किया।
  • रक्षा विंग को फिर से खोलना: भारत ने अल्जीरिया में अपनी रक्षा विंग को फिर से स्थापित किया, भारत में अल्जीरिया की रक्षा विंग को फिर से खोलने का स्वागत करते हुए, द्विपक्षीय रक्षा कूटनीति के लिए एक नई प्रतिबद्धता का संकेत दिया।

‘डिजिटल इंडिया कॉमन सर्विस सेंटर’ (DICSC) परियोजना

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत के 10 जिलों में 4,740 केंद्रों तक विस्तार करने की योजना के साथ उत्तर प्रदेश के पीलीभीत एवं गोरखपुर में ‘डिजिटल इंडिया कॉमन सर्विस सेंटर’ (DICSC) परियोजना शुरू कर रहा है।

‘डिजिटल इंडिया कॉमन सर्विस सेंटर’ (DICSC) परियोजना के बारे में

  • उद्देश्य: नागरिकों को सुलभ ई-गवर्नेंस, वित्तीय एवं वाणिज्यिक सेवाएँ प्रदान करके, डिजिटल समावेशन तथा सशक्तीकरण सुनिश्चित करके ग्रामीण भारत में डिजिटल विभाजन को पाटना।
  • सेवा की पेशकश: प्रत्येक DICSC केंद्र आधार पंजीकरण, बैंकिंग, वित्तीय नियोजन, टेली-लॉ, टेलीमेडिसिन, शिक्षा एवं ई-कॉमर्स सहित कई आवश्यक सेवाएँ प्रदान करेगा, जो हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड के साथ बहु-कार्यात्मक केंद्र के रूप में कार्य करेगा।
  • बजट आवंटन: 31.6 करोड़ रुपये।
  • केंद्रीकृत निगरानी: CSC ई-गवर्नेंस सर्विसेज इंडिया लिमिटेड परियोजना कार्यान्वयन एवं तकनीकी निगरानी, ​​पारदर्शिता तथा कुशल सेवा वितरण को बढ़ावा देगी।

संदर्भ 

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) को दी गई रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme- NCAP) के कार्यान्वयन में खामियों का खुलासा हुआ है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष

  • उपलब्धियाँ: निधि उपयोग के मामले में शीर्ष पाँच शहर हैं: अमृतसर (99%), झाँसी (98%), पुणे (96%), झारखंड (94%) तथा नवी मुंबई (92%)।
    • आधार वर्ष 2017 की तुलना में अमृतसर में PM10 के स्तर में 38% सुधार देखा गया।
  • प्रमुख योगदानकर्ता: PM10 के प्रमुख स्रोत के रूप में सड़क की धूल, वाहनों से निकलने वाला धुआँ एवं उद्योग क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन है।
  • कार्यान्वयन अंतराल: इसमें ‘सोर्सेज अपोर्शनमेंट स्टडी’ के पूरा न होने और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) लक्ष्यों को पूरा करने में खराब प्रदर्शन और NCAP निधियों का कम उपयोग शामिल है।
    • NCAP निधि का कम उपयोग: NCAP के तहत निधि व्यय के मामले में दिल्ली सबसे निचले पाँच शहरों में से एक है, जहाँ इसकी 68% निधि का उपयोग नहीं हुआ है। (इसने आवंटित 42.69 करोड़ रुपये में से केवल 13.56 करोड़ रुपये का उपयोग किया है।)
      • NCR शहरों में फरीदाबाद 39% व्यय के साथ सबसे पीछे रहा, गाजियाबाद ने 89% उपयोग किया तथा नोएडा ने सबसे कम 11% उपयोग दर्ज किया।
    • प्रदूषण न्यूनीकरण लक्ष्य: रिपोर्ट के अंतर्गत शामिल 19 शहरों में से केवल पाँच शहर ही अब तक वार्षिक वायु प्रदूषण न्यूनीकरण लक्ष्य को पूरा कर पाए हैं।
      • उदाहरण: आवंटित धनराशि का 92% खर्च करने के बावजूद, नवी मुंबई में PM10 का स्तर 11% तक खराब हो गया है।
    • अपूर्ण ‘सोर्सेज अपोर्शनमेंट स्टडी’: 19 शहरों में से आठ (जैसे- फरीदाबाद, नोएडा, गाजियाबाद और अमृतसर और खुर्जा के NCR शहर) ने विभिन्न प्रदूषण स्रोतों के योगदान का आकलन करने के लिए ‘सोर्सेज अपोर्शनमेंट स्टडी’ अभी तक पूरा नहीं किया है।
      • दिल्ली के ‘सोर्सेज अपोर्शनमेंट स्टडी’ से पता चलता है कि PM10 का 17.5-30.6% स्तर मिट्टी, सड़क की धूल और निर्माण गतिविधियों से उत्पन्न होता है, जबकि 12-37% कोयला और फ्लाई ऐश से उत्पन्न होता है।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के बारे में

  • यह वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए एक ढाँचा तैयार करने का पहला राष्ट्रीय प्रयास है, जिसमें संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों के बीच सहयोगात्मक, बहु-स्तरीय और अंतर-क्षेत्रीय दृष्टिकोण शामिल है।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC)।
  • लक्ष्य: वर्ष 2017 को आधार वर्ष मानकर वर्ष 2025-26 तक PM10 सांद्रता के लिए राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों की प्राप्ति अथवा 40% तक की कमी लाना।
  • उद्देश्य
    • देश भर में एक प्रभावी और कुशल परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क को बढ़ाना और विकसित करना तथा वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण एवं उपशमन के लिए शमन उपायों का कठोर कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
  • लक्ष्य
    • PM10 के स्तर में 3-15% की कमी: 82 शहरों को PM10 के स्तर में 3-15% की कमी लानी है, जिससे वायु गुणवत्ता में PM10 के स्तर में 40% तक की समग्र कमी लाई जा सके।
      • इन्हें केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित किया जाता है और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के माध्यम से वितरित किया जाता है
    • वार्षिक PM10 स्तर में 15% की कमी: 15वें वित्त आयोग के वायु गुणवत्ता अनुदान के अंतर्गत 49 शहरों को वार्षिक औसत PM10 सांद्रता में 15% की कमी लानी है।
      • इन्हें 15वें वित्त आयोग के तहत अनुदान द्वारा वित्तपोषित किया जाता है, जो राज्य वित्त मंत्रालयों और शहरी स्थानीय निकायों के माध्यम से दिया जाता है।
  • लक्षित शहर: कार्यक्रम कुल मिलाकर 131 शहरों पर केंद्रित है, जिसमें सभी हितधारकों को शामिल करके 24 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 123 गैर-प्राप्ति शहर (Non-Attainment Cities- NAC) और अतिरिक्त दस लाख से अधिक शहर (Million-Plus Cities- MPC) शामिल हैं।
    • गैर-प्राप्ति शहर (NAC): ये वे शहर हैं, जो लगातार पाँच वर्षों तक राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) को पूरा नहीं करने के लिए पहचाने गए हैं।
    • मिलियन-प्लस शहर (MPC): वायु गुणवत्ता सुधार के लिए प्रदर्शन आधारित अनुदान प्राप्त करने के लिए 15वें वित्त आयोग द्वारा पहचाने गए।
  • प्रगति की निगरानी: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme) के कार्यान्वयन की निगरानी PRANA पोर्टल (गैर-प्राप्ति शहरों में वायु प्रदूषण के विनियमन के लिए पोर्टल) द्वारा की जाएगी।
    • यह पोर्टल शहर की वायु कार्य योजना के कार्यान्वयन की भौतिक और वित्तीय स्थिति पर नजर रखेगा तथा NCAP के अंतर्गत वायु गुणवत्ता प्रबंधन प्रयासों के बारे में जनता को जानकारी प्रदान करेगा।

राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS)

  • ये तकनीकी मानक हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाए बिना वायु में मौजूद प्रदूषकों की अधिकतम मात्रा निर्धारित करते हैं।
  • द्वारा अधिसूचित: मानकों को CPCB [वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1981 द्वारा दी गई शक्तियों के तहत] द्वारा वर्ष 2009 में अधिसूचित किया गया है।
  • कवरेज: इसमें 12 प्रदूषक शामिल हैं:- सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, PM10, PM5, ओजोन, लेड, कार्बन मोनोऑक्साइड, अमोनिया, बेंजीन, बेंजो पायरीन, आर्सेनिक, निकेल।
  • निगरानी: CPCB राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (NAMP) के माध्यम से NAAQS के अनुपालन की निगरानी करता है।

सीमाएँ

  • खराब व्यय प्रबंधन: सड़क की धूल को नियंत्रित करने के लिए गड्ढों को ढँकने, यांत्रिक सफाई मशीनों एवं जल के छिड़काव आदि जैसे कार्यों पर भारी राशि खर्च की गई है, जबकि उद्योग से होने वाले विषाक्त उत्सर्जन को नियंत्रित करने पर एक प्रतिशत से भी कम राशि खर्च की गई है।
    • ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ (CSE) की एक नई रिपोर्ट में बताया गया है कि 10,566.47 करोड़ रुपये में से 40% धनराशि अप्रयुक्त रह गई है।
  • मिश्रित परिणाम: पाँच वर्ष के अंत में यह कार्यक्रम ज्यादातर विफल रहा है, फिर भी अधिकांश शहर वर्ष 2017 के स्तर की तुलना में वायु प्रदूषण सांद्रता को 20-30% कम करने के NCAP के लक्ष्य को पूरा करने में विफल रहे हैं।
    • एक हालिया अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2014-2021 के दौरान वायु प्रदूषण को कम करने में अधिकांश लाभ तेज हवाओं एवं अन्य मौसम संबंधी कारकों के कारण हुआ है।
  • गलत क्रियान्वयन: NCAP का प्राथमिक फोकस धूल जैसे मोटे PM10 कणों को कम करना है, जबकि इसे PM2.5 कणों को कम करने पर होना चाहिए, जो तब उद्योग परिवहन और दहन के अन्य स्रोतों से उत्सर्जन को संबोधित करेंगे।
  • संकीर्ण पहुँच: ऊर्जा और स्वच्छ वायु पर अनुसंधान केंद्र के विश्लेषण के अनुसार, NCAP द्वारा कवर नहीं किए गए वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर की रिपोर्ट करने वाले शहरों की संख्या बढ़ रही है।
  • क्षेत्रीय स्तर पर बेमेल स्थिति: परिवहन से होने वाला वायु प्रदूषण भारत के वायु प्रदूषण भार का एक-चौथाई से अधिक हिस्सा बनाता है, लेकिन NCAP फंड का केवल 13% इन उत्सर्जन को संबोधित करने के लिए निर्देशित किया जाता है। इसी तरह उद्योगों से होने वाले उत्सर्जन को भी नजरअंदाज किया जाता है।
  • प्रगति के परस्पर विरोधी मीट्रिक: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) कार्यक्रम के विभिन्न घटकों में प्रगति को कवर करने वाले 258 मीट्रिक की एक सूची रखता है, लेकिन दो चैनलों (82 शहर और 49 शहर) के लिए सफलता के मीट्रिक अलग-अलग हैं, जिससे बेंचमार्किंग एक जटिल प्रयास बन जाता है।

आगे की राह

  • प्रदर्शन बेंचमार्क को फिर से परिभाषित करना: वर्तमान PM10 के बजाय PM2.5 को प्रदर्शन-संबंधी वित्तपोषण के लिए बेंचमार्क बनाना।
  • मेट्रिक्स को सरल बनाना: दहन स्रोतों को प्राथमिकता देने के लिए मेट्रिक्स में सुधार करना और वित्तपोषण को क्षेत्रीय लक्ष्यों से जोड़ना जैसे कि परिवहन क्षेत्रों से प्रदूषण को कम करने पर खर्च किए जाने वाले फंड का 25%, जो भारत के प्रदूषण में लगभग एक-चौथाई योगदान देता है।
    • शहरों में नियोजन और कार्यान्वयन के लिए मजबूत संस्थागत तंत्र और क्षमता स्थापित करना।
  • PRANA पोर्टल में सुधार: PRANA पोर्टल को सार्वजनिक डोमेन में अधिक जानकारी डालने की आवश्यकता है, जैसे कि प्रदूषण स्रोतों की सूची प्रदान करना या शहरों ने वायु प्रदूषण में कमी कैसे हासिल की है, इस बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करना।
  • ‘एयरशेड दृष्टिकोण’ (Airshed Approach) को लागू करना: यह दृष्टिकोण राजनीतिक या प्रशासनिक सीमाओं के विपरीत एक सामान्य भौगोलिक क्षेत्र में प्रदूषण को संबोधित करता है, जबकि औद्योगिक उत्सर्जन को NCAP कार्य योजनाओं के तहत टाला जाता है क्योंकि वे शहर और नगरपालिका सीमाओं से परे शहरों की परिधि में स्थित हैं।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) वायु प्रदूषण की सीमा पार प्रकृति को पहचानता है और उसका समाधान करता है।

संदर्भ 

पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच वर्ष 2020 के गतिरोध को तीन वर्ष हो गए हैं, लेकिन अभी तक सैनिकों के पीछे हटने तथा यथास्थिति पुनर्स्थापित करने का मामला सुलझा नहीं है।

संबंधित तथ्य

  • कोर कमांडर स्तर की वार्ता से आंशिक रूप से सैनिकों को पीछे हटने में सफलता मिली है, लेकिन प्रगति धीमी बनी हुई है।

भारत चीन सीमा के बारे में

  • चीन, भारत सहित 14 देशों के साथ भूमि सीमा साझा करता है; मंगोलिया और रूस के बाद भारत के साथ इसकी तीसरी सबसे लंबी साझा सीमा है।
  • भारत-चीन के बीच कोई पारस्परिक रूप से सहमत वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) नहीं है।

  • सीमा क्षेत्र
    • पूर्वी क्षेत्र: मैकमोहन रेखा पर विवाद।
    • पश्चिमी क्षेत्र: 1860 के दशक में अंग्रेजों द्वारा प्रस्तावित जॉनसन रेखा (Johnson Line) से जुड़ा हुआ, जो अक्साई चिन को जम्मू एवं कश्मीर में समाहित मानता है, लेकिन चीन इसे मान्यता नहीं देता है।
    • मध्य क्षेत्र: एकमात्र ऐसा क्षेत्र, जहाँ भारत और चीन ने मानचित्रों का आदान-प्रदान किया है और मोटे तौर पर सीमाओं पर सहमत हैं।

पूर्वी लद्दाख में LAC पर टकराव बिंदुओं की वर्तमान स्थिति

  • PP14 (गलवान): काराकोरम की पहाड़ियों में एक सँकरी घाटी, जो LAC के पास और अक्साई चिन के करीब स्थित है, जो चीनी नियंत्रण में एक विवादित क्षेत्र है, लेकिन भारत इस पर अपना दावा करता है।
    • यह जून 2020 में हुई हिंसक झड़प का केंद्र बिंदु था; आपसी वापसी के माध्यम से यहाँ सैन्य विलगन हासिल किया गया।

  • PP15 [हॉट स्प्रिंग्स (Hot Springs)]: सिंधु नदी प्रणाली के भीतर श्योक नदी की एक सहायक नदी चांग चेनमो नदी (Chang Chenmo River) के उत्तर में अवस्थित है। इस क्षेत्र में सैन्य विलगन सितंबर 2022 में पूरा हो गया था।
  • PP17A [गोगरा (Gogra)]: यह हॉट स्प्रिंग वाला स्थान है। इसे अगस्त 2021 में बंद कर दिया  गया था।
  • पैंगोंग त्सो के उत्तरी एवं दक्षिणी तट: दुनिया की सबसे ऊँची खारे जल की झील, जो तिब्बत (50% चीनी नियंत्रण में), लद्दाख (40% भारतीय नियंत्रण में) और 10% विवादित क्षेत्र के बीच विभाजित है।
    • फरवरी 2021 में इसे बंद कर दिया गया तथा दोनों पक्षों ने भविष्य में टकराव को रोकने के लिए बफर जोन बना दिया है।
  • देपसांग मैदान: उत्तरी लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी (Daulat Beg Oldi- DBO) चौकी और काराकोरम दर्रे के पास अवस्थित है। इसका समतल भू-भाग इसे टैंक चालन सहित सैन्य युद्धाभ्यास के लिए उपयुक्त बनाता है।
    • चीनी सैनिकों ने PP10, 11, 11A, 12 और 13 पर भारतीय गश्ती दल को रोक दिया है। 
    • DBO हवाई पट्टी सर्दियों के संचालन और सुदृढ़ीकरण के लिए महत्त्वपूर्ण है। यहाँ 255 किलोमीटर लंबी दरबुक-श्योक-डीबीओ सड़क (Darbuk-Shyok-DBO Road) से पहुँचा जा सकता है। 
  • डेमचोक में चार्डिंग नाला (Charding Nullah in Demchok): अक्साई चिन क्षेत्र में चीनी गतिविधियों की प्रभावी निगरानी की अनुमति देता है; यह लद्दाख के लेह जिले में चार्डिंग नाला और सिंधु नदी के संगम के पास अवस्थित है।
    • विवाद चार्डिंग ला क्षेत्र (Charding La Area) पर है, जहाँ चार्डिंग नाले (Charding Nullah) के पार चीनी तंबू स्थापित हैं।

लद्दाख की महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताएँ

  • सिंधु नदी और प्रमुख सहायक नदियाँ: श्योक-नुब्रा, चांग चेनमो, हान्ले, जास्कर और सुरु-द्रास नदियाँ इस क्षेत्र को जल प्रदान करती हैं।

  • लद्दाख रेंज (Ladakh Range): काराकोरम रेंज का दक्षिणी विस्तार, जो सिंधु नदी के उत्तर-पूर्वी तट का निर्माण करता है।
  • जास्कर रेंज (Zaskar Range): हिमालय की एक समानांतर शाखा, लद्दाख के पूर्व में अवस्थित है।
  • सियाचिन ग्लेशियर (Siachen Glacier): नुब्रा घाटी के उत्तर में भारत-पाकिस्तान सीमा के साथ पूर्वी काराकोरम रेंज में अवस्थित है। ध्रुवीय और उपध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर यह सबसे बड़ा ग्लेशियर है।
  • त्सो मोरीरी (Tso Moriri): यह लद्दाख के चांगथांग क्षेत्र में अवस्थित है और इसे दुनिया में सबसे ऊँचे रामसर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
    • यह क्षारीय जल वाली एक ओलिगोट्रोफिक झील (Oligotrophic Lake) है।

संदर्भ

हाल ही में भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने बॉम्बे हाईकोर्ट को सूचित किया कि बहुजन विकास अघाड़ी (Bahujan Vikas Aghadi- BVA) को आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए ‘सीटी’ (Whistle) चुनाव चिह्न आवंटित किया जाएगा।

संबंधित तथ्य

  • शुरुआत में यह चुनाव चिह्न जनता दल (यूनाइटेड) को लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए दिया गया था, लेकिन JD(U) ने महाराष्ट्र में चुनाव न लड़ने का फैसला किया और इस चुनाव चिह्न को वापस कर दिया।
  • बहुजन विकास अघाड़ी (BVA) द्वारा याचिका दायर किए जाने के बाद, बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ ने BVA के चुनाव चिह्न के अनुरोध की पुष्टि की, जिसके परिणामस्वरूप याचिका का निपटारा हो गया।

चुनाव चिह्नों का आवंटन

  • उत्तरदायी प्राधिकरण: भारत का चुनाव आयोग (ECI) राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों को चुनाव चिह्न आवंटित करने के लिए जिम्मेदार है।
  • शासी कानून: चुनाव चिह्न आवंटन प्रक्रिया चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 द्वारा शासित होती है। यह आदेश चुनावों में एकरूपता और स्पष्टता सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों के लिए प्रतीकों को परिभाषित, आरक्षित और आवंटित करता है।
  • उद्देश्य: प्रतीक आदेश (Symbols Order) का उद्देश्य है:
    • मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय दलों को विशेष प्रतीक प्रदान करना। 
    • मतपत्रों पर उम्मीदवारों के लिए एक अलग पहचान प्रदान करना।
  • राजपत्र में प्रकाशन: चुनाव आयोग, आवंटन को औपचारिक रूप देने के लिए भारत के राजपत्र में राजनीतिक दलों की आधिकारिक सूची उनके संबंधित प्रतीकों के साथ प्रकाशित करता है।

प्रतीकों का वर्गीकरण

  • आरक्षित चिह्न: विशेष रूप से मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों को आबंटित किये जाते हैं।
  • स्वतंत्र चिह्न: गैर-मान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों को आवंटित किये जाते हैं। ये चिह्न अनन्य नहीं हैं और इन्हें अन्य गैर-मान्यता प्राप्त उम्मीदवारों द्वारा पुनः उपयोग किया जा सकता है।

विभिन्न प्रकार की पार्टियों को प्रतीक आवंटन

  • मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल: मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों को विशिष्ट प्रतीक आवंटित किए जाते हैं, जिससे प्रत्येक चुनाव में उनका निरंतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है।
  • गैर-मान्यता प्राप्त पंजीकृत राजनीतिक दल: गैर-मान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों के उम्मीदवार स्वतंत्र प्रतीकों के समूह में से चुनाव कर सकते हैं जो अनन्य नहीं हैं।
    • प्रतीक आदेश के नियम 10B के अनुसार, गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल लगातार दो आम चुनावों के लिए एक ही सामान्य मुक्त प्रतीक का उपयोग कर सकते हैं।

प्रतीक विवाद संबंधी मामले में 

  • ऐसे मामलों में जहाँ किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के भीतर विभाजन हो, वर्ष 1968 का प्रतीक आदेश, चुनाव आयोग को प्रतीक दावों पर विवादों को हल करने का अधिकार देता है।
    • चुनाव आयोग का निर्णय सभी प्रतिद्वंद्वी गुटों पर बाध्यकारी है।
  • निर्णय मानदंड (सादिक अली बनाम भारतीय चुनाव आयोग, 1971): चुनाव आयोग यह तय करने के लिए कि कौन-सा गुट किस चुनाव चिह्न का हकदार है, निम्नलिखित परीक्षणों को लागू करता है, जैसा कि वर्ष 1971 में सादिक अली बनाम भारत के चुनाव आयोग में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले द्वारा स्थापित किया गया था। 
    • उद्देश्यों और लक्ष्यों का परीक्षण: यह निर्धारित करता है कि कौन-सा गुट पार्टी के संविधान के मूल लक्ष्यों और उद्देश्यों के साथ अधिक निकटता से जुड़ा हुआ है।
    • पार्टी संविधान का परीक्षण: संगठनात्मक संरचना और पार्टी के संवैधानिक ढाँचे के पालन पर विचार करता है।
    • बहुमत का परीक्षण: पार्टी के केंद्रीय संगठनात्मक ढाँचे के भीतर बहुमत का आकलन करके गुटीय समर्थन का मूल्यांकन करता है।
  • ये परीक्षण सुनिश्चित करते हैं कि प्रतीक आवंटन निष्पक्ष एवं सुसंगत रहे तथा पार्टी प्रतिनिधित्व में अंतर्निहित लोकतांत्रिक सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करना।

संदर्भ

अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए चुनावी अभियान में एक बार पुनः प्रौद्योगिकी और ऑनलाइन स्पेस के मुद्दे को उजागर किया है, जो महिलाओं की सुरक्षा एवं सम्मान के लिए खतरा बन रहे हैं।

पृष्ठभूमि

  • कमला हैरिस का मामला: राष्ट्रपति पद के लिए अपने समर्थन के बाद, हैरिस को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) द्वारा उत्पन्न डीप फेक और गलत सूचना कंटेंट का सामना करना पड़ा, जिसमें उनके चरित्र को निशाना बनाया गया और एक नेता के रूप में उनकी क्षमताओं पर सवाल उठाए गए।
  • वैश्विक मामले: राजनीतिक पद या उच्च प्रशासनिक पद की आकांक्षा रखने वाली महिलाओं को वैश्विक स्तर पर व्यापक ऑनलाइन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। 
    • उदाहरण: अमेरिकी राजनीतिज्ञ निक्की हेली को रिपब्लिकन प्राइमरी अभियान के दौरान छेड़छाड़ करके, स्पष्ट चित्रों के जरिए निशाना बनाया गया।
    • इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी का डीप फेक का उपयोग करके एक वीडियो बनाया गया।
    • बांग्लादेश में, राजनेताओं रुमिन फरहाना और निपुण रॉय की डीपफेक तस्वीरें जनवरी 2024 के चुनाव से ठीक पहले प्रसारित की गईं।

ऑनलाइन लैंगिक आधारित हिंसा (OGBV) के बारे में

  • परिभाषा: यह लोगों, विशेषकर महिलाओं के विरुद्ध उनके लैंगिक आधार पर प्रौद्योगिकी के माध्यम से लक्षित उत्पीड़न और पूर्वाग्रह है।
  • ऑनलाइन दुर्व्यवहार की प्रकृति पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग है: जहाँ पुरुषों को अपने कार्यों या कर्तव्यों के संबंध में गलत सूचना और भ्रामक सूचनाओं का सामना करना पड़ सकता है, वहीं महिलाओं को वस्तुकरण, यौन रूप से स्पष्ट कंटेंट और व्यक्तित्त्व को शर्मसार करने जैसी गतिविधियों का सामना करना पड़ता है।
    • पूरे विश्व में हुए अध्ययनों से पता चलता है कि 16 से 58 प्रतिशत महिलाएँ तथा लड़कियाँ ऑनलाइन हिंसा का शिकार होती हैं।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) डेटा: वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में महिलाओं के विरुद्ध साइबर अपराधों में काफी वृद्धि देखी गई।
    • वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराधों की संख्या में 11% की वृद्धि हुई है।
    • महिलाओं की यौन रूप से स्पष्ट सामग्री प्रकाशित या प्रसारित की जाने वाली घटनाएँ वर्ष 2022 में 2,251 थीं, जबकि वर्ष 2021 में 1,896 थीं।
    • वहीं, महिलाओं को निशाना बनाकर किए जाने वाले अन्य साइबर अपराध जैसे ब्लैकमेल, मानहानि, मॉर्फिंग (Morphing), फर्जी प्रोफाइल बनाना आदि वर्ष 2022 में 689 और वर्ष 2021 में 701 रहे। 
  •  डिजिटल स्थानों में हाशिए पर पड़ी महिलाओं के लिए अतिरिक्त जोखिम: LGBTQ+ महिलाओं, दिव्यांग महिलाओं आदि को जटिल दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।

जेंडरेड नेचर (Gendered Nature) के बारे में

  • ‘जेंडरेड नेचर’ शब्द का अर्थ है कि कैसे अनुभव तथा व्यवहार, लैंगिक अंतर एवं सामाजिक मानदंडों से प्रभावित होते हैं।
  • उदाहरण: महिलाओं को लैंगिक सामाजिक विचारों के आधार पर ऑनलाइन उत्पीड़न और भेदभाव के विशिष्ट प्रकारों का सामना करना पड़ता है।

OGBV के रूप 

  • यौन उत्पीड़न: महिलाओं को ऑनलाइन दुर्व्यवहार के कुछ विशेष प्रकारों का सामना करना पड़ता है, जैसे- यौन उत्पीड़न, जिसमें अनचाहे अश्लील संदेश, अश्लील टिप्पणियाँ और यौन रूप से स्पष्ट चित्र शामिल है।
  • लैंगिक आधारित धमकियाँ एवं भाषा: महिलाओं को अक्सर दुष्कर्म, डॉक्सिंग, पीछा करने और हमले की धमकियाँ मिलती हैं।
    • उदाहरण: सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार तथा राजनीतिज्ञ जैसी सार्वजनिक महिला हस्तियों को लैंगिक आधार पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है तथा उनकी दृश्यता के कारण इसे बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है।

ऑनलाइन लैंगिक आधारित हिंसा के कारण

  • प्लेटफॉर्म डिजाइन और नीतियाँ: कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में महिलाओं के विरुद्ध उत्पीड़न को संबोधित करने के लिए प्रभावी मॉडरेशन नीतियों या संसाधनों का अभाव है।
    • उदाहरण: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में सुरक्षा सुविधाओं में निवेश की कमी है।
    • बड़ी टेक कंपनियाँ अक्सर यह दावा करके जवाबदेही से बचती हैं कि उनके प्लेटफॉर्म उपयोगकर्ताओं पर प्रतिबिंबित करते हैं और वे इसे सूक्ष्मता से नियंत्रित नहीं कर सकती हैं।
      • उन्हें ‘सेफ हार्बर’ (Safe Harbour) संरक्षण के कारण उत्तरदायित्व से छूट प्राप्त है।
  • अपर्याप्त रिपोर्टिंग तंत्र: उपयोगकर्ताओं को अक्सर रिपोर्ट की गई सामग्री की समीक्षा के लिए लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है, जिससे अपमानजनक पोस्ट लंबे समय तक दृश्यमान एवं सुलभ बनी रहती है।
  • पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं का विस्तार: ऑनलाइन स्थान ऑफलाइन पितृसत्तात्मक संरचनाओं के विस्तार के रूप में कार्य कर सकता है, जहाँ महिलाओं को पारंपरिक मानदंडों के दायरे से बाहर निर्णय लेने पर नियंत्रित किया जाता है, निगरानी की जाती है और दंडित किया जाता है।
    • उदाहरण: महिलाओं के रूप-रंग, पहनावे या व्यक्तिगत पसंद आदि पर आलोचना का सामना करना पड़ता है।
  • ऑनलाइन गुमनामी (Online Anonymity): इंटरनेट द्वारा प्रदान की गई गुमनामी, व्यक्तियों को परिणामों के डर के बिना हानिकारक व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।
    • उदाहरण: ट्रोलिंग (Trolling) और साइबरबुलिंग (Cyberbullying) आदि।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पहले से स्थापित पूर्वाग्रहों को और बढ़ा सकता है।
    • स्वचालित ट्रोलिंग और उत्पीड़न: बॉट्स तथा स्वचालित खातों को ऑनलाइन माध्यम से महिलाओं को परेशान करने के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है।
    • एल्गोरिदम पूर्वाग्रह: एल्गोरिदम अनजाने में ऐसी सामग्री को बढ़ावा दे सकती हैं, जो महिलाओं के लिए हानिकारक या अपमानजनक हो।
  • डेटा पूर्वाग्रह: सामाजिक पूर्वाग्रहों से प्रभावित डेटासेट द्वारा निर्मित तथा ज्यादातर पुरुषों द्वारा विकसित डिजिटल प्रणालियों में अक्सर उस समावेशिता का अभाव होता है, जो भेदभाव को प्रभावी ढंग से चुनौती देने के लिए आवश्यक होती हैं।
    • उदाहरण: Glass.ai. के आँकड़ों के अनुसार, मेटा तथा गूगल तथा ओपनएआई में प्रौद्योगिकी विकास में महिला कर्मचारियों (महिला AI डेवलपर्स) का प्रतिनिधित्व भी कम है।
  • रिपोर्ट करने का डर: महिलाओं को लग सकता है कि उत्पीड़न की रिपोर्ट करने से कार्रवाई नहीं होगी या इससे उन्हें और भी अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ सकता है।
  • आर्थिक प्रोत्साहन: ऑनलाइन सामग्री का मुद्रीकरण महिलाओं के AI-जनरेटेड वीडियो के विकास को बढ़ावा देता है।
    • प्लेटफॉर्म उपयोगकर्ता की सहभागिता से जुड़े विज्ञापन राजस्व पर निर्भर करते है, इसलिए डीप फेक जैसे विवादास्पद या सनसनीखेज कंटेंट अधिक व्यू एवं आकर्षण उत्पन्न करते हैं।
    • यह क्रिएटर एवं प्लेटफॉर्म दोनों के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी होता है।

ऑनलाइन लैंगिक आधारित हिंसा के कारण उत्पन्न होने वाले मुद्दे

  • गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: AI द्वारा निर्मित वीडियो, विशेष रूप से डीपफेक, अक्सर व्यक्तियों की सहमति के बिना उनकी वास्तविक छवियों या वीडियो का उपयोग करते हैं।
    • यह महिलाओं के निजता अधिकारों का उल्लंघन है, क्योंकि उनकी छवियों को उनकी सहमति के बिना बदल दिया जाता है।
  • मानवीय गरिमा को नुकसान पहुँचाना: ऐसी सामग्री महिलाओं को अपमानजनक या समझौता करने वाली स्थितियों में चित्रित कर सकती है, उनकी गरिमा को नुकसान पहुँचा  सकती है, वस्तुकरण की संस्कृति में योगदान दे सकती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य तनाव: लगातार ऑनलाइन दुर्व्यवहार महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, जिससे चिंता, अवसाद तथा सामाजिक अलगाव होता है।
  • सार्वजनिक संवाद से बचना: सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण, कई महिलाओं को डिजिटल संवाद में भाग लेने से रोका जाता है, जिससे सार्वजनिक संवाद में उनकी दृश्यता सीमित हो जाती है, पेशेवर अवसर कम हो जाते हैं और इन स्थानों पर पुरुषों का प्रभुत्व बना रहता है।
    • ऑनलाइन उत्पीड़न के कारण कई महिलाएँ डिजिटल उपकरणों का उपयोग करना बंद कर देती है।
  • अपर्याप्त रिपोर्टिंग तंत्र: कई प्लेटफॉर्मों में उत्पीड़न या दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने के लिए प्रभावी प्रणालियाँ नहीं हैं, जिससे महिलाएँ खुद को शक्तिहीन महसूस करती हैं।

महिलाओं के लिए सुरक्षित डिजिटल स्पेस बनाने हेतु भारत द्वारा की गई पहल

  • प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान: इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए डिजिटल विभाजन को पाटना है।
    • इस योजना का लक्ष्य 60 मिलियन परिवारों को डिजिटल कौशल के माध्यम से ग्रामीण आबादी को सशक्त बनाना है।
  • ‘ऑनलाइन सुरक्षित रहें’ अभियान: केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा नागरिकों को ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में शिक्षित करने तथा जिम्मेदार डिजिटल जुड़ाव को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था।
    • इसकी संकल्पना भारत की G-20 अध्यक्षता के हिस्से के रूप में सुरक्षित इंटरनेट प्रथाओं, सोशल मीडिया के उपयोग और डिजिटल भुगतान प्रणालियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए की गई थी।
  • सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अपने प्लेटफॉर्म पर सामग्री के संबंध में अधिक सतर्कता बरतने का निर्देश दिया गया है।
    • स्पष्ट निर्देश: ये नियम सोशल मीडिया मध्यस्थों को डीप-फेक वीडियो या फोटो सहित हानिकारक कंटेंट को हटाने के लिए स्पष्ट जिम्मेदारियाँ सौंपते हैं।
    • शारीरिक गोपनीयता (Bodily Privacy) के उल्लंघन, प्रतिरूपण आदि से संबंधित कंटेंट के विशिष्ट मामलों में कंटेंट हटाने के लिए प्रत्यक्ष अनुरोध का प्रावधान है।
      1. शारीरिक गोपनीयता, जो लोगों की शारीरिक सुरक्षा से संबंधित है।
    • उपयोगकर्ताओं, विशेषकर महिला उपयोगकर्ताओं की ऑनलाइन सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करना: मध्यस्थों को शिकायत प्राप्त होने के 24 घंटे के भीतर ऐसी सामग्री को हटा देना चाहिए या उस तक पहुँच को अक्षम कर देना चाहिए, जो किसी व्यक्ति के निजी दायरे को उजागर करती है।
  • महिलाओं तथा बच्चों के विरुद्ध साइबर अपराध की रोकथाम (CCPWC) योजना: केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य महिलाओं तथा बच्चों के विरुद्ध साइबर अपराध को रोकना एवं उनका मुकाबला करना है।

महिलाओं के लिए सुरक्षित डिजिटल स्पेस बनाने हेतु वैश्विक पहल

  • महिलाओं की स्थिति पर आयोग का 67वाँ सत्र (CSW67), 2023: लैंगिक समानता प्राप्त करने में प्रौद्योगिकी एवं नवाचार की महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया गया तथा लैंगिक डिजिटल अंतर को कम करने के लिए अधिक निवेश पर जोर दिया गया।
  • संयुक्त राष्ट्र महिला द्वारा ‘सुरक्षित शहर और सुरक्षित सार्वजनिक स्थान’ वैश्विक कार्यक्रम: ऑनलाइन वातावरण सहित सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के विरुद्ध उत्पीड़न और हिंसा को संबोधित करना।
  • संयुक्त राष्ट्र का ‘HeForShe’ अभियान: पुरुषों को ऑनलाइन तथा ऑफलाइन दोनों माध्यमों से लैंगिक समानता एवं महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थानों की वकालत करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • यूरोपीय संघ का डिजिटल सेवा अधिनियम (DSA): वर्ष 2022 में लागू होने वाला यह अधिनियम तकनीकी कंपनियों को उनके प्लेटफॉर्मों पर लैंगिक हिंसा सहित हानिकारक कंटेंट के लिए जवाबदेह बनाता है।
  • फेसबुक: उपयोगकर्ताओं को उत्पीड़न की रिपोर्ट करने तथा सुरक्षा सुविधाओं तक पहुँच बनाने के लिए संसाधन एवं उपकरण प्रदान करता है, जैसे हानिकारक व्यवहार में संलग्न उपयोगकर्ताओं को ब्लॉक करना एवं रिपोर्ट करना।
  • सुरक्षित इंटरनेट दिवस (Safer Internet Day): यूरोपीय आयोग द्वारा शुरू किया गया एक वार्षिक कार्यक्रम, जो दुनिया भर में बच्चों तथा युवाओं द्वारा ऑनलाइन प्रौद्योगिकी और मोबाइल फोन के अधिक सुरक्षित एवं अधिक जिम्मेदार उपयोग को बढ़ावा देता है।

महिलाओं के लिए सुरक्षित डिजिटल स्थान बनाने के उपाय

  • बिग टेक में मजबूत कंटेंट मॉडरेशन तथा जवाबदेही की आवश्यकता: प्लेटफॉर्मों को अपनी गोपनीयता सेटिंग्स को बढ़ाना चाहिए, जिससे उपयोगकर्ता यह नियंत्रित कर सकें कि कौन उनसे संपर्क कर सकता है और उनकी सामग्री देख सकता है।
    • यह सुनिश्चित करने के लिए उपयोगकर्ता की गोपनीयता और डेटा की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए कि प्रौद्योगिकी का उपयोग महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध हानिकारक पूर्वाग्रह या भेदभाव को बनाए रखने के लिए नहीं किया जाता है।
      • उदाहरण: केवल AI द्वारा जनित सामग्री को लेबल करना पर्याप्त नहीं है। यौन रूप से स्पष्ट सामग्री जैसी हानिकारक सामग्री को साझा करने और देखने से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए पूरी तरह से हटा दिया जाना चाहिए।
    • बेहतर समीक्षा प्रक्रिया: हानिकारक सामग्री, विशेषकर रिपोर्ट की गई पोर्नोग्राफी की समय पर समीक्षा, नुकसान को कम करने के लिए आवश्यक है।
  • प्रौद्योगिकी कंपनियों की नैतिक जिम्मेदारी: उपयोगकर्ता-जनित सामग्री से लाभ कमाने वाली कंपनियों को सुरक्षित डिजिटल स्थान सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
  • लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल समाधान तैयार करना: डिजिटल समाधान, जो महिलाओं और लड़कियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हों।
    • समाधान में लड़कियों तथा महिलाओं की भागीदारी से डिजिटल अपनाने में तेजी आएगी और डिजिटल लैंगिक विभाजन और पहुँच को कम करने में मदद मिलेगी।
  • महिला प्रतिनिधित्व में वृद्धि: वैश्विक स्तर पर केवल 28 प्रतिशत इंजीनियरिंग स्नातक, 22 प्रतिशत कृत्रिम बुद्धिमत्ता कर्मचारी तथा तकनीकी क्षेत्र के एक-तिहाई से भी कम कर्मचारी महिलाएँ है।
  • डिजाइनिंग एथिकल AI: लैंगिक पूर्वाग्रहों के परीक्षण के लिए सुरक्षा शोधकर्ताओं तथा सिमुलेशन अभ्यासों की आवश्यकता होती है, विशेषकर जब AI शामिल हो।
    • इससे निष्पक्ष, सुरक्षित और नैतिक AI डिजाइन सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
  • डिजिटल अभियान
    • उदाहरण: यूएन वुमेन तुर्की (UN Women Turkey) द्वारा लैंगिक आधारित साइबर हिंसा के खिलाफ फायरफ्लाइज अभियान (Fireflies campaign) का उद्देश्य एक वैश्विक ई-सॉलीडेरिटी नेटवर्क (e-Solidarity Network) बनाना है जो महिलाओं एवं लड़कियों के विरुद्ध ऑनलाइन भेदभाव को समाप्त करने का समर्थन करता है।
  • स्कूल में डिजिटल नागरिकता को एकीकृत करना: ऑनलाइन तथा ऑफलाइन सकारात्मक सामाजिक मानदंडों को बढ़ावा देने के लिए स्कूल के पाठ्यक्रम में डिजिटल नागरिकता तथा डिजिटल उपकरणों के नैतिक उपयोग को एकीकृत करना।
    • युवाओं, विशेष रूप से युवा पुरुषों तथा लड़को को नैतिक एवं जिम्मेदार ऑनलाइन व्यवहार के प्रति संवेदनशील बनाना।

निष्कर्ष

डिजिटल युग में हिंसा को रोकना लैंगिक समानता के लिए महत्त्वपूर्ण है। सुरक्षित ऑनलाइन स्थान बनाकर, हम ऐसा वातावरण विकसित कर सकते हैं, जो सभी के लिए सम्मान, समावेश और समान अवसरों को बढ़ावा देता है।

संदर्भ

भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने राजनीतिक दलों के अनुरोध पर उपचुनावों की तिथि 13 नवंबर से बढ़ाकर 20 नवंबर कर दी है।

  • पुनर्निर्धारण का कारण: भाजपा, कांग्रेस (INC), BSP और RLD सहित राजनीतिक दलों ने सांस्कृतिक एवं धार्मिक त्योहारों का हवाला दिया, जो मतदान को प्रभावित कर सकते हैं।

मध्यावधि चुनाव

  • भारत में मध्यावधि चुनाव तब होते हैं, जब लोकसभा (संसद का निम्न सदन) या राज्य विधानसभा अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा करने से पहले ही भंग हो जाती है, जिसके लिए नए राष्ट्रीय चुनाव या राज्य स्तरीय चुनाव की आवश्यकता होती है।
  • ये सत्तारूढ़ सरकार द्वारा बहुमत खोने, गठबंधन की समाप्ति या अन्य राजनीतिक संकटों के कारण होते हैं।
  • मध्यावधि चुनाव और उपचुनाव के बीच अंतर: मध्यावधि चुनाव पूरी लोकसभा या राज्य विधानसभा के लिए आयोजित किए जाते हैं, जबकि उपचुनाव केवल विशिष्ट रिक्त सीटों के लिए आयोजित किए जाते हैं, जबकि सदन का बाकी हिस्सा सामान्य रूप से कार्य करना जारी रखता है।

भारत में उपचुनावों के बारे में

  • परिभाषा और उद्देश्य: उपचुनाव या ‘बाई-इलेक्शन’, संसद अथवा राज्य विधानमंडल जैसे विधायी निकायों में रिक्त सीटों को भरने के लिए आयोजित किए जाने वाले चुनाव हैं।
    • ये रिक्तियाँ किसी वर्तमान सदस्य की मृत्यु, त्याग-पत्र, अयोग्यता या निष्कासन के कारण उत्पन्न हो सकती हैं।
  • कानूनी अधिदेश: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 151A के तहत, भारत के चुनाव आयोग (ECI) को इन आकस्मिक रिक्तियों को घटना की तारीख से छह महीने के भीतर भरना आवश्यक है, बशर्ते सीट का शेष कार्यकाल कम-से-कम एक वर्ष का हो।
    • यदि एक वर्ष से कम समय शेष हो तो उपचुनाव अनिवार्य नहीं हैं।
  • महत्त्व: उपचुनाव के परिणाम सत्तारूढ़ सरकार की बहुमत की स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं।
    • यदि सत्तारूढ़ पार्टी कई उपचुनाव सीटें हार जाती है, तो इससे उसका विधायी बहुमत खतरे में पड़ सकता है, जिसका प्रभाव शासन और नीतिगत निर्णयों पर पड़ सकता है।

भारतीय चुनाव आयोग (ECI) के बारे में

  • ECI भारतीय संविधान के अनुच्छेद-324 के तहत स्थापित एक स्थायी, स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है।
  • यह संसद, राज्य विधानसभाओं और भारत के राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के लिए चुनावों की देखरेख करता है।
  • ECI शहरी स्थानीय निकायों या पंचायतों के चुनावों का प्रबंधन नहीं करता है, जिन्हें राज्य चुनाव आयोगों द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
  • संरचना: प्रारंभ में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) के नेतृत्व में एक सदस्यीय निकाय के रूप में कार्यरत ECI को वर्ष 1989 में तीन सदस्यीय निकाय के रूप में विस्तारित किया गया, ताकि मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष किए जाने के बाद बढ़ी हुई जिम्मेदारियों का प्रबंधन किया जा सके। 
    • अब चुनाव आयोग तीन सदस्यीय निकाय है, जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्त भी शामिल हैं।

भारत निर्वाचन आयोग के कार्य एवं अधिकार क्षेत्र

  • सलाहकार भूमिका: सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित मामलों पर राष्ट्रपति और राज्यपालों को सलाह देना, विशेष रूप से भ्रष्ट आचरण के मामलों में।
  • अर्द्ध-न्यायिक भूमिका: व्यय लेखा प्रस्तुत करने में विफल रहने पर उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करने का अधिकार है।
    • पार्टी मान्यता और चुनाव चिह्न आवंटन से संबंधित विवादों का समाधान करना।
  • प्रशासनिक भूमिका: निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन, मतदाता पंजीकरण और मतदाता सूची अद्यतन का प्रबंधन करता है।
    • चुनाव की तिथियाँ निर्धारित करना और आदर्श आचार संहिता को लागू करना, चुनाव के दौरान निष्पक्ष प्रचार तथा वित्तीय दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित करना।

संदर्भ

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes- NCST) ने बाघ अभयारण्यों से गाँवों को स्थानांतरित करने के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority-NTCA) के निर्देश की समीक्षा शुरू कर दी है।

स्थानांतरण की वर्तमान स्थिति

  • कोर क्षेत्रों में स्थित गाँव: NTCA के अनुसार, 19 राज्यों के 54 बाघ अभयारण्यों में 64,801 परिवारों वाले 591 गाँव महत्त्वपूर्ण बाघ आवासों के भीतर अवस्थित हैं।
  • अब तक हुए पुनर्वास: अब तक 25,007 परिवारों वाले 251 गाँवों को स्थानांतरित किया जा चुका है।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के बारे में 

  • गठन: राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की स्थापना दिसंबर 2005 में एक वैधानिक निकाय के रूप में की गई थी।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय।
  • कानूनी आधार: वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत बनाया गया, जिसे बाघ संरक्षण प्रयासों को बढ़ाने के लिए वर्ष 2006 में संशोधित किया गया।
  • उद्देश्य एवं अधिदेश
    • प्राथमिक लक्ष्य: पूरे भारत में बाघ संरक्षण को मजबूत करना।
    • कार्य: बाघ की स्थिति के आकलन, संरक्षण गतिविधियों और विशेषज्ञ समितियों की सिफारिशों के आधार पर सलाह, दिशा-निर्देश तथा निर्देश प्रदान करना।
    • प्राधिकरण: बाघ संरक्षण के लिए व्यक्तियों, अधिकारियों या प्राधिकारियों को निर्देश देने की शक्ति रखता है, जिन्हें इन निर्देशों का पालन करना होगा।

गाँवों के स्थानांतरण पर वर्ष 2018 की सिफारिशें

  • भूमि अधिनियम के आधार पर मुआवजा: NCST ने वर्ष 2018 में सिफारिश की थी कि मुआवजा भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 (Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013) के आधार पर दिया जाना चाहिए।
  • संशोधित मुआवजा: वर्ष 2021 मे, NTCA ने मुआवजे को 10 लाख रुपये से संशोधित कर 15 लाख रुपये प्रति परिवार कर दिया।

स्थानांतरण के लिए कानूनी ढाँचा

  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत बाघ अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्रों को मानव बस्तियों से मुक्त किया जा सकता है, लेकिन केवल प्रमुख शर्तों को पूरा करने के बाद:
    • वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत आदिवासी समुदायों के अधिकारों को मान्यता दी जानी चाहिए।
    • स्थानीय ग्राम सभा (ग्राम परिषद) से सूचित सहमति आवश्यक है।
    • पुनर्वास तभी हो सकता है, जब पारिस्थितिकी एवं सामाजिक विशेषज्ञ यह निष्कर्ष निकालें कि समुदायों की उपस्थिति बाघों के लिए एक महत्त्वपूर्ण खतरा है और सह-अस्तित्व संभव नहीं है।
  • पुनर्वास प्रावधान और अधिकार
    • स्वैच्छिक स्थानांतरण का विकल्प चुनने वाले परिवारों को निम्नलिखित का अधिकार हैं :
      • प्रति परिवार 15 लाख रुपये का मुआवजा।
      • पुनर्वास पैकेज जिसमें शामिल हैं:
        • दो हेक्टेयर भूमि, वासभूमि, आवास सहायता, एकमुश्त वित्तीय सहायता तथा जल, स्वच्छता, विद्युत एवं दूरसंचार जैसी बुनियादी सुविधाएँ।

संदर्भ

जैविक विविधता अभिसमय (CBD) का 16वाँ ‘काॅफ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (COP-16) कोलंबिया के कैली में आयोजित हुआ, जो नवंबर 2024 की शुरुआत में समाप्त होगा।

‘काॅफ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (COP) क्या है? 

  • COP जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है।
  • इस कन्वेंशन के सभी पक्षकार राष्ट्रों का COP में प्रतिनिधित्व होता है, जहाँ वे कन्वेंशन के कार्यान्वयन तथा COP द्वारा अपनाए गए किसी भी अन्य कानूनी साधन की समीक्षा करते हैं।
  • वे संस्थागत तथा प्रशासनिक व्यवस्थाओं सहित कन्वेंशन के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक निर्णय भी लेते हैं।

सिंथेटिक बायोलॉजी (Synthetic Biology)

  • सिंथेटिक बायोलॉजी एक वैज्ञानिक क्षेत्र है, जो नए जीवों को बनाने या मौजूदा जीवों को संशोधित करने के लिए इंजीनियरिंग सिद्धांतों का उपयोग करता है।
  • यह चिकित्सा, कृषि और विनिर्माण में समस्याओं को हल करने के लिए इंजीनियरिंग दृष्टिकोणों के साथ DNA अनुक्रमण तथा जीनोम संपादन जैसी जैव प्रौद्योगिकी तकनीकों को जोड़ता है।

COP 16 के मुख्य निष्कर्ष

  • जैव विविधता संरक्षण पर निरंतर प्रयास: वर्ष 2022 में स्थापित कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (Kunming-Montreal Global Biodiversity Framework- KMGBF) पर आधारित यह COP वैश्विक जैव विविधता लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
    • KMGBF ने वर्ष 2030 के लिए 23 कार्य-उन्मुख लक्ष्य निर्धारित किए हैं, जैसे कि 30% भूमि एवं जल को संरक्षित करने का ’30-बाई-30 (30-by-30)’ लक्ष्य।
  • जैव विविधता तथा स्वास्थ्य पर वैश्विक कार्य योजना: COP 16 में भाग लेने वाले देशों ने एक व्यापक वैश्विक कार्य योजना का समर्थन किया, जो जैव विविधता संरक्षण और सार्वजनिक स्वास्थ्य उद्देश्यों को जोड़ती है।
    • इस एकीकृत रणनीति का उद्देश्य तीन परस्पर संबंधित लक्ष्यों को प्राप्त करना है: पशुओं से मनुष्यों में फैलने वाली बीमारियों के जोखिम को कम करना, गैर-संचारी रोगों की घटनाओं को कम करना और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बढ़ावा देना।
    • यह कार्य योजना पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य परिणामों के बीच मूलभूत संबंधों को पहचानती है।
  • डिजिटल अनुक्रम सूचना (DSI) समझौता: सबसे अधिक बहस वाले मुद्दों में से एक DSI या आनुवंशिक संसाधनों से ‘लाभ-साझाकरण’ था।
    • विभिन्न राष्ट्र इस बात पर एक मत नहीं थे कि वाणिज्यिक उत्पादों (जैसे दवाइयों) में आनुवंशिक डेटा के उपयोग से होने वाले लाभों को उन देशों एवं समुदायों के साथ कैसे साझा किया जाना चाहिए, जहाँ ये संसाधन पाए जाते हैं।
  • संसाधन जुटाने की रणनीति: COP 16 में हुई चर्चाओं में नवीन वित्तपोषण तंत्रों की आवश्यकता तथा जैव विविधता प्रयासों में स्वदेशी समुदायों की भागीदारी पर प्रकाश डाला गया।
    • जैव विविधता लक्ष्यों के लिए अनुमानित वार्षिक आवश्यकता 200 बिलियन डॉलर है, लेकिन अभी तक इस धनराशि का केवल एक भाग ही प्रतिबद्ध किया गया है।
    • कुनमिंग जैव विविधता कोष (KBF) को चीन सरकार के 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर के योगदान से COP 16 में लॉन्च किया गया। KBF, विशेष रूप से विकासशील देशों में वर्ष 2030 एजेंडा और SDG लक्ष्यों तथा KMGBF के वर्ष 2050 लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए त्वरित कार्रवाई का समर्थन करता है।
  • कैली फंड (Cali Fund): कोलंबिया के कैली में आयोजित COP 16 में एक नए वित्तीय तंत्र की स्थापना की गई, जिसे ‘कैली फंड’ के नाम से जाना जाता है।
    • यह पहल आनुवंशिक अनुक्रमों का उपयोग करने वालों तथा इन संसाधनों की उत्पत्ति वाले समुदायों के बीच उचित लाभ-साझाकरण के लिए एक ढाँचा तैयार करके डिजिटल आनुवंशिक डेटा के बढ़ते महत्त्व को संबोधित करती है।
    • समतापूर्ण लाभ-साझाकरण के कन्वेंशन के मूल सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, कोष ने प्रत्यक्ष संवितरण और सरकारी चैनलों दोनों का उपयोग करते हुए, अपने संसाधनों का कम-से-कम 50% स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों को देने की प्रतिबद्धता जताई है।
  • सिंथेटिक बायोलॉजी (Synthetic Biology): सिंथेटिक बायोलॉजी COP 16 में एक प्रमुख विषय था, जिसमें जोखिमों पर विचार करते हुए इसके संभावित लाभों पर ध्यान दिया गया।
    • सिंथेटिक बायोलॉजी में विकासशील देशों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए, COP 16 क्षमता निर्माण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा ज्ञान-साझाकरण के लिए एक विषयगत कार्य योजना पेश करता है।
    • यह पहल नवाचार को बढ़ावा देने तथा जैव विविधता की रक्षा के लिए सिंथेटिक बायोलॉजी प्रौद्योगिकियों का सुरक्षित रूप से लाभ उठाने में देशों की सहायता करती है।
  • स्वदेशी प्रतिनिधित्व: जैव विविधता पर चर्चा में स्वदेशी समूहों को शामिल करने वाली एक सहायक संस्था की स्थापना की गई, जिसमें संरक्षण में उनकी भूमिका को मान्यता दी गई।
  • पारिस्थितिकी या जैविक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र (Ecologically or Biologically Significant Marine Areas- EBSA): COP-16 पारिस्थितिकी या जैविक रूप से महत्त्वपूर्ण समुद्री क्षेत्रों (EBSA) की पहचान करने के लिए एक नई तथा  विकसित प्रक्रिया पर सहमत हुआ।
    • CBD के अंतर्गत EBSA, जो महासागर के सबसे महत्त्वपूर्ण तथा संवेदनशील भागों की पहचान करता है, पर कार्य, वर्ष 2010 में शुरू हुआ तथा महासागर संबंधी कार्य का एक केंद्रीय क्षेत्र बन गया।
  • आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ: आक्रामक विदेशी प्रजातियों पर COP 16 का निर्णय जैव विविधता हानि के शीर्ष पाँच प्रत्यक्ष चालकों में से एक को संबोधित करता है तथा विकासशील देशों के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग, क्षमता निर्माण एवं तकनीकी सहायता की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
    • इसमें आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रबंधन के लिए दिशा-निर्देश प्रस्तावित किए गए हैं, जिनमें ई-कॉमर्स, बहु-मानदंड विश्लेषण पद्धतियाँ और अन्य मुद्दे शामिल हैं।

जैविक विविधता अभिसमय (CBD)

  • जैविक विविधता अभिसमय (CBD), जिसे ‘बायोडाइवर्सिटी कन्वेंशन’ या UNCBD के नाम से भी जाना जाता है, एक बहुपक्षीय संधि है, जिसका उद्देश्य है:
    • जैविक विविधता का संरक्षण (आनुवंशिक विविधता, प्रजाति विविधता और आवास विविधता)।
    • जैविक विविधता का सतत् उपयोग।
    • आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों का उचित एवं न्यायसंगत बँटवारा।
  • CBD को 5 जून, 1992 को रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन में हस्ताक्षर के लिए प्रस्तावित किया गया था तथा यह 29 दिसंबर, 1993 को लागू हुआ था।
  • यह कानूनी रूप से बाध्यकारी है तथा वर्ष 196 देशों द्वारा इसका अनुमोदन किया गया है; संयुक्त राज्य अमेरिका एकमात्र संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश है, जिसने इसका अनुमोदन नहीं किया है।
  • इसका सचिवालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में अवस्थित है।
  • शासी निकाय: ‘काॅफ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (COP) अनुसमर्थनकर्ता राष्ट्रों से मिलकर बना होता है, जो कार्यान्वयन की देखरेख करते है।

CBD के अंतर्गत प्रोटोकॉल

  • कार्टाजेना प्रोटोकॉल (वर्ष 2003): जीवित संशोधित जीवों (Living Modified Organisms- LMO) की सीमापार आवाजाही को नियंत्रित करता है।
  • नागोया प्रोटोकॉल (वर्ष 2010): आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच तथा लाभों के उचित बँटवारे के लिए एक रूपरेखा निर्धारित करता है।

प्रमुख पहल एवं लक्ष्य

  • आईची जैव विविधता लक्ष्य (वर्ष 2011 से वर्ष 2020): जैव विविधता को बचाने के लिए 20 लक्ष्यों वाली 10-वर्षीय रणनीतिक योजना।
  • कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा (GBF) (वर्ष 2022): COP 15 में अपनाई गई यह रूपरेखा वर्ष 2030 तक पृथ्वी के 30% हिस्से की सुरक्षा के लिए 4 लक्ष्य और 23 उपलक्ष्य निर्धारित करती है, जिसका उद्देश्य पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण को रोकना एवं आईची लक्ष्यों को प्रतिस्थापित करना है।

भारत COP 16 से CBD तक 

  • भारत ने KMGBF लक्ष्यों के अनुरूप अपनी अद्यतन राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (National Biodiversity Strategy and Action Plan- NBSAP) प्रस्तुत की है।
  • भारत के जैव विविधता लक्ष्य वर्ष 2030 तक जैव विविधता की हानि को रोकने पर केंद्रित हैं तथा वर्ष 2050 तक प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने की दीर्घकालिक दृष्टि रखते हैं।
  • भारत ने वर्ष 2025-30 तक जैव विविधता और संरक्षण के लिए 81,664 करोड़ रुपये के अनुमानित व्यय की घोषणा की, जो वर्ष 2018-22 तक व्यय किए गए 32,207 करोड़ रुपये से अधिक है।
  • भारत ने अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्त की आवश्यकता पर बल दिया तथा कहा कि कुल 200 बिलियन डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 30 बिलियन डॉलर के अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (National Biodiversity Strategy and Action Plan- NBSAP)

  • भारत ने कोलंबिया में जैविक विविधता अभिसमय पर COP 16 के दौरान वर्ष 2024-2030 के लिए अपनी राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (NBSAP) का अनावरण किया है। 
  • यह अद्यतन योजना भारत के जैव विविधता संरक्षण प्रयासों में एक महत्त्वपूर्ण विकास को दर्शाती है, जो वर्ष 1999 की इसकी पहली रणनीति और उसके बाद के संशोधनों पर आधारित है।

NBSAP की मुख्य विशेषताएँ

  • रणनीतिक रूपरेखा
    • जैव विविधता संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • संसाधनों के सतत् उपयोग को बढ़ावा देता है।
    • समान लाभ-साझाकरण सुनिश्चित करता है।
  • कार्यान्वयन संरचना: तीन मुख्य विषयों पर 23 राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्य निर्धारित किए गए है:
    • जैव विविधता के खतरे में कमी
    • संसाधनों का सतत् प्रबंधन
    • कार्यान्वयन उपकरण में सुधार।
  • कार्यान्वयन निकाय: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) केंद्रीय समन्वय एजेंसी के रूप में।

वैश्विक संरेखण: जैव विविधता हानि को रोकने और इसे समृद्ध करने के लिए कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क के वर्ष 2030 लक्ष्यों के साथ सामंजस्य स्थापित करता है।

भारत के अद्यतन NBSAP में प्रमुख लक्ष्य

  • संरक्षण लक्ष्य: भारत ने वर्ष 2030 तक अपने स्थलीय और समुद्री क्षेत्रों के 30% हिस्से का संरक्षण करने का संकल्प लिया है, जिसमें जैव विविधता से समृद्ध तथा पारिस्थितिकी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर विशेष जोर दिया जाएगा।
  • पारिस्थितिकी तंत्र का पुनर्स्थापन: वनों तथा आर्द्रभूमि जैसे क्षरण हो चुके पारिस्थितिकी तंत्रों को पुनर्स्थापित करने तथा तटीय एवं समुद्री क्षेत्रों का स्थायी रूप से प्रबंधन करने की दिशा में प्रयास किए जाएँगे।
  • खतरों में कमी: इसमें आक्रामक प्रजातियों, प्रदूषण, जलवायु प्रभावों और भूमि-उपयोग परिवर्तनों का प्रबंधन करना शामिल है, जिसका उद्देश्य जैव विविधता को लगभग शून्य नुकसान पहुँचाना है।

नीतिगत रूपरेखा और कार्यान्वयन दृष्टिकोण

  • भारत की जैव विविधता नीति रूपरेखा, 2002 के जैविक विविधता अधिनियम और इसके हालिया संशोधनों द्वारा निर्देशित, संरक्षण के लिए एक मजबूत संरचना निर्धारित करती है।
  • राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, राज्य बोर्ड तथा स्थानीय प्रबंधन समितियों के साथ तीन-स्तरीय प्रणाली, अद्यतन NBSAP के कार्यान्वयन का समर्थन करेगी।
  • शासन: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) भारत के जैव विविधता प्रयासों का समन्वय करता है।
  • ‘संपूर्ण सरकार और संपूर्ण समाज’ का दृष्टिकोण (Whole-of-Government and Whole-of-Society Approach): भारत का दृष्टिकोण सरकार, क्षेत्रों और समुदायों के बीच सहयोग पर जोर देता है।
  • स्थानीय समुदाय की भागीदारी: योजना पारिस्थितिकी तंत्र आधारित प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए नीचे से ऊपर तक कार्यान्वयन पर जोर देती है।

भारत की संरक्षण पहल एवं उपलब्धियाँ

  • भारत ने जैव विविधता संरक्षण में उल्लेखनीय प्रगति की है, वर्ष 2014 से अपने रामसर स्थलों को 26 से बढ़ा करके 85 कर दिया है तथा अनुमान है कि यह 100 स्थलों तक पहुँच जाएगा।
  • भारत ने ‘इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस’ की भी शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के संकेतक के रूप में प्रमुख बिग कैट प्रजातियों की रक्षा करना है।
  • नदी बेसिन तथा तटीय प्रबंधन में भारत के प्रयासों में उच्च जैव विविधता वाले पारिस्थितिकी तंत्रों को प्राथमिकता दी जाती है।

भारत में जैव विविधता संरक्षण की चुनौतियाँ

  • नीति क्रियान्वयन में कमी: हालाँकि लक्ष्य महत्त्वाकांक्षी हैं, जैव विविधता नीतियों को लागू करने में विसंगतियाँ प्रगति में बाधा डालती हैं।
  • विकास बनाम पर्यावरण: पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ और प्रतिपूरक वनरोपण अक्सर देशी पारिस्थितिकी प्रणालियों पर वृक्षारोपण को प्राथमिकता देते है।
  • सीमित प्रजातियों पर ध्यान: संरक्षण प्रयासों में संरक्षित क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे इन क्षेत्रों के बाहर कमजोर प्रजातियाँ असुरक्षित रह जाती हैं।
  • कमजोर कानून: वर्तमान पर्यावरण कानून व्यापक आवास संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र बहाली के लिए अपर्याप्त है।

आगे की राह 

  • कार्यान्वयन को मजबूत करना: एजेंसियों के बीच समन्वय बढ़ाएँ और जमीनी स्तर पर नीति कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
  • पारिस्थितिकी तंत्र आधारित वनरोपण को बढ़ावा देना: एकल-फसल वृक्षारोपण की तुलना में देशी प्रजातियों और आवास पुनर्स्थापन पर ध्यान केंद्रित करना।
  • संरक्षण क्षेत्र का विस्तार करना: संरक्षित क्षेत्रों से परे प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्रों को शामिल करने के लिए संरक्षण प्रयासों को व्यापक बनाना।
  • पर्यावरण कानूनों को सख्त बनाना: प्राकृतिक आवास संरक्षण को प्राथमिकता देने के लिए कानून को अद्यतन करना।

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