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Nov 08 2024

विश्व का पहला ‘वुडेन सेटेलाइट’

विश्व का पहला ‘वुडेन सेटेलाइट’ जापान द्वारा चंद्र एवं मंगल ग्रह की खोज में लकड़ी के उपयोग के प्रारंभिक परीक्षण हेतु अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया था।

उपग्रह

  • नाम: उपग्रह का नाम लैटिन शब्द ‘वुड’ (Wood) के आधार पर ‘लिग्नोसैट’ (LignoSat) रखा गया है।
  • निर्मित: इसे ‘क्योटो विश्वविद्यालय’ (Kyoto University) एवं ‘होमबिल्डर सुमितोमो फॉरेस्ट्री’ (Homebuilder Sumitomo Forestry) (1911.T) द्वारा विकसित किया गया था।
  • प्रयुक्त सामग्री: लिग्नोसैट (LignoSat) बिना ‘स्क्रू’ या गोंद के पारंपरिक जापानी शिल्प तकनीक का उपयोग करके होनोकी (Honoki) से निर्मित किया गया है।
    • होनोकी एक प्रकार का मैगनोलिया पेड़ (Magnolia Tree) है, जो जापान की मूल प्रजाति है एवं पारंपरिक रूप से तलवार की म्यान के लिए उपयोग किया जाता है। 
  • मिशन: उपग्रह को स्पेसएक्स मिशन पर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ले जाया जाएगा एवं बाद में पृथ्वी से लगभग 400 किमी. ऊपर कक्षा में छोड़ा जाएगा। लिग्नोसैट छह महीने तक कक्षा में रहेगा।
  • उद्देश्य: ‘लिग्नोसैट’ अंतरिक्ष-ग्रेड सामग्री के रूप में लकड़ी की ब्रह्मांडीय क्षमता का प्रदर्शन करेगा, क्योंकि मनुष्य अंतरिक्ष में रहने का पता लगाते हैं।
    • यह उपग्रह NASA द्वारा प्रमाणित लकड़ी का उपग्रह है।

मिशन के उद्देश्य 

  • सहनशक्ति: प्रत्येक 45 मिनट में -100 से 100 डिग्री सेल्सियस के तापमान में उतार-चढ़ाव के साथ अंतरिक्ष के चरम वातावरण को सहन करने की ‘वुड’ की क्षमता को मापने के लिए।
  • विकिरण का प्रभाव: यह अर्द्धचालकों पर अंतरिक्ष विकिरण के प्रभाव को कम करने की लकड़ी की क्षमता को भी मापेगा, जिससे यह डेटा सेंटर निर्माण जैसे अनुप्रयोगों के लिए उपयोगी हो जाएगा।

अंतरिक्ष सामग्री के रूप में लकड़ी के लाभ

  • अंतरिक्ष मलबा: पारंपरिक धातु उपग्रह पुन: प्रवेश के दौरान एल्यूमीनियम ऑक्साइड कण बनाते हैं, लेकिन लकड़ी के उपग्रह कम प्रदूषण के साथ जल जाएंगे।
  • स्थायित्व: पृथ्वी की तुलना में अंतरिक्ष में लकड़ी अधिक टिकाऊ होती है क्योंकि वहाँ कोई जल या ऑक्सीजन नहीं होता है, जो इसे सड़ाए या जला दे।
  • एक लकड़ी का उपग्रह अपने जीवन के अंत में ‘डीकमीशनिंग’ के दौरान पर्यावरणीय प्रभाव को भी कम करता है।

प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट 2024

हाल ही में COP16 में ‘प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट 2024’ लॉन्च की गई। 

संबंधित तथ्य 

  • लॉन्च किया गया: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, विश्व संरक्षण निगरानी केंद्र (UNEP-WCMC) एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN)

‘प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट’ 

  • यह कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क के लक्ष्य 3 के अनुरूप, दुनिया भर में संरक्षित एवं संरक्षित क्षेत्रों की स्थिति का गहन मूल्यांकन करने वाली पहली रिपोर्ट है। 
    • यह रिपोर्ट ‘प्रोटेक्टेड प्लैनेट’ पहल के माध्यम से सरकारों एवं अन्य भागीदारों से नवीनतम डेटा संकलित करती है।
  • उद्देश्य: रिपोर्ट KMGBF की स्थापना के बाद से जैव विविधता संरक्षण के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धता का मूल्यांकन करती है तथा लक्ष्यों एवं चुनौतियों पर नजर रखती है।
    • 30×30 लक्ष्य: यह लक्ष्य पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने एवं जैव विविधता का समर्थन करने के लिए वर्ष 2030 तक दुनिया के कम-से-कम 30% स्थलीय तथा समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है।
    • 30×30 लक्ष्य का महत्व।
      • पारिस्थितिकी तंत्र स्थिरता: स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैव विविधता को बनाए रखने के लिए 30% भूमि एवं समुद्री क्षेत्रों का संरक्षण महत्त्वपूर्ण है।
      • जलवायु परिवर्तन शमन: संरक्षित क्षेत्र, कार्बन सिंक के रूप में कार्य कर सकते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष में मदद मिल सकती है।
      • सतत विकास: जैव विविधता संरक्षण, स्थायी आजीविका एवं प्राकृतिक संसाधनों का समर्थन करता है, जो भावी पीढ़ियों के लिए महत्त्वपूर्ण है।

‘प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट’ 2024 के मुख्य निष्कर्ष

  • कवरेज प्रगति: वर्तमान में, 17.6% भूमि एवं 8.4% समुद्री क्षेत्र संरक्षित हैं। वर्ष 2030 तक 30×30 लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, संरक्षित क्षेत्रों में पर्याप्त तीव्रता लाने एवं गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है।
  • क्षेत्र विस्तार: वर्ष 2020 के बाद से, अतिरिक्त 629,000 वर्ग किमी. भूमि एवं 1.77 मिलियन वर्ग किमी. समुद्री क्षेत्रों को संरक्षित किया गया है। हालाँकि 12.4% अधिक भूमि तथा 21.6% अधिक समुद्री क्षेत्र अभी भी सुरक्षित किए जाने चाहिए।
  • जैव विविधता संरक्षण: हालाँकि 68% प्रमुख जैव विविधता क्षेत्र (KBAs) संरक्षित और 32% असुरक्षित हैं। महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों को शामिल करने एवं पारिस्थितिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के प्रयासों की आवश्यकता है।
  • कनेक्टिविटी: केवल 8.52% भूमि संरक्षित एवं पारिस्थितिक रूप से आपस में संबंधित है, जो जैव विविधता संरक्षण के लिए आवश्यक कनेक्टिविटी में अंतर दर्शाती है।
  • संरक्षण की प्रभावशीलता: हालाँकि 177 देश प्रबंधन संबंधी डेटा की रिपोर्ट करते हैं, संरक्षण प्रभाव को मापने के लिए अधिक व्यापक शासन मूल्यांकन आवश्यक हैं।
  • समतामूलक शासन: स्वदेशी प्रबंधन संरक्षित क्षेत्रों के 3.95% तक सीमित हैं। स्वदेशी एवं सामुदायिक अधिकारों का सम्मान करने के लिए व्यापक शासन समावेशन की आवश्यकता है।
  • एकीकृत संरक्षण: संरक्षित क्षेत्रों को बड़े परिदृश्यों एवं समुद्री दृश्यों में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे सतत उपयोग तथा स्थानीय आजीविका के साथ जैव विविधता लक्ष्यों को संतुलित किया जा सके।

5G ग्रामीण कनेक्टिविटी के लिए मिलीमीटर वेव ट्रांसीवर

भारत के दूरसंचार विभाग (DoT) के तहत एक प्रमुख दूरसंचार अनुसंधान एवं विकास निकाय, ‘सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स’ (C-DOT) ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

संबंधित तथ्य

  • इस सहयोग का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार संबंधी बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु 5G ग्रामीण कनेक्टिविटी के लिए एक ‘मिलीमीटर वेव ट्रांसीवर’ विकसित करना है।
  • इस समझौते पर भारत सरकार के दूरसंचार विभाग की दूरसंचार प्रौद्योगिकी विकास निधि (TTDF) योजना के तहत हस्ताक्षर किए गए हैं। 
    • TTDF का लक्ष्य भारत के डिजिटल विभाजन को संबोधित करते हुए वहनीय ब्रॉडबैंड एवं मोबाइल सेवाएँ प्रदान करने के लिए दूरसंचार उत्पाद संबंधी नवाचार को वित्तपोषित करना है।

भारत का स्वायत्त समुद्री लक्ष्य: सागरमाला परिक्रमा

सागर डिफेंस इंजीनियरिंग द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित एक स्वायत्त सतह जहाज ने मुंबई से थूथुकुडी तक 1,500 किमी की यात्रा सफलतापूर्वक पूरी की।

संबंधित तथ्य 

  • यह स्वायत्त जहाज भारत में अपनी तरह की पहली उपलब्धि है।

सागरमाला परिक्रमा 

  • यह भारतीय नौसेना एवं सागर रक्षा इंजीनियरिंग की एक पहल है।
  • उद्देश्य: समुद्री प्रौद्योगिकी में भारत की विशेषज्ञता का प्रदर्शन करना। 
  • प्रमुख विशेषता: इस परियोजना में ‘मातंगी’ नामक एक स्वायत्त पोत है। 

मुख्य विशेषताएँ

  • मानव-मुक्त नेविगेशन: जहाज ने स्वायत्त समुद्री प्रणालियों में भारत की तकनीकी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के यह उपलब्धि हासिल की।
  • सरकारी समर्थन: भारतीय नौसेना का समर्थन, अपने नवाचार एवं स्वदेशीकरण पहल के माध्यम से, परियोजना की सफलता में सहायक था।
  • सामरिक महत्त्व: इस उपलब्धि का भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव है, जो विभिन्न समुद्री अभियानों के लिए मानवरहित प्रणालियों के प्रयोग को सक्षम बनाता है।

भारत की समुद्री सुरक्षा पर प्रभाव

  • उन्नत निगरानी: समुद्री सुरक्षा में सुधार के लिए भारत की विशाल तटरेखा की निरंतर निगरानी के लिए स्वायत्त जहाजों को तैनात किया जा सकता है।
  • कुशल संचालन: मानवरहित प्रणालियाँ नियमित कार्य कर सकती हैं, एवं अधिक जटिल मिशनों के लिए मानव संसाधनों को मुक्त कर सकती हैं।
  • कर्मियों के लिए जोखिम कम करना: खतरनाक समुद्री संचालन में मानव भागीदारी को कम करके, स्वायत्त जहाज कर्मियों के लिए जोखिम को कम कर सकते हैं।
  • तकनीकी उन्नति: यह उपलब्धि रक्षा क्षेत्र में तकनीकी उन्नति के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है, जिससे देश स्वायत्त समुद्री प्रणालियों में एक वैश्विक नेतृत्त्वकर्त्ता के रूप में स्थापित हो गया है।

पर्माफ्रॉस्ट कार्बन

(Permafrost Carbon)

उत्तरी पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र के लिए स्रोतों एवं सिंक का अध्ययन करके वर्ष 2000-20 की अवधि के लिए पहला पूर्ण ग्रीनहाउस गैस बजट (CO2, मीथेन तथा नाइट्रस ऑक्साइड के लिए) ‘ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट’ के हिस्से के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • यह पाया गया कि पर्माफ्रॉस्ट एक लघु, मध्यम CO₂ सिंक था,  जो प्रति वर्ष 29 मिलियन से 500 मिलियन टन कार्बन संग्रहीत करता था।
  • नकारात्मक कार्बन-जलवायु प्रतिक्रिया: पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से ग्लोबल वार्मिंग परिदृश्य पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा एवं शीतलन प्रभाव उत्पन्न होगा।
    • लंबे समय तक बढ़ते मौसम (ग्लोबल वार्मिंग के कारण), मृदा में उपलब्ध नाइट्रोजन में वृद्धि एवं उच्च CO₂ सांद्रता से पौधों को लंबे समय तक बढ़ने तथा अधिक कार्बन संग्रहण करने में मदद मिलेगी।
  • तटस्थ क्षमता: तीनों ग्रीनहाउस गैसों का ग्लोबल वार्मिंग में संयुक्त योगदान,  तटस्थता के निकट है क्योंकि CO₂ सिंक 100 वर्ष के चक्र में मीथेन एवं नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन से वार्मिंग को संतुलित करने में मदद करेगा।
  • ग्रीनहाउस गैसों के स्रोत:
    • CO₂: झीलें, नदियाँ एवं वनाग्नि CO₂ के स्रोत थे।
    • मीथेन: जैसे-जैसे पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, आर्द्रभूमि (ऑक्सीजन का निम्न स्तर) में वृद्धि होती है, जिससे अधिक परिदृश्यजल संतृप्त हो जाते हैं।
    • नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन: यह विघटित मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों से आया है जिसमें शुष्क टुंड्रा एवं बोरियल जंगलों से नाइट्रोजन भी शामिल है।
  • सिंक के रूप में 
    • कनाडा एवं रूस तथा अन्य छोटे क्षेत्रों के बोरियल वन, मुख्य रूप से CO₂ के अवशोषण के लिए जिम्मेदार थे।

पर्माफ्रॉस्ट 

  • पर्माफ्रॉस्ट ऐसी भूमि होती है जिसमें मिट्टी, रेत, बजरी या चट्टान की परतें होती हैं जो बर्फ से एक साथ जुड़ी होती हैं जो कम-से-कम दो वर्षों तक जमी रहती हैं एवं जलवायु की एक भूगर्भिक अभिव्यक्ति है जो तापमान से परिभाषित होती है, न कि मिट्टी की नमी या बर्फ के आवरण से।
  • क्षेत्र: पर्माफ्रॉस्ट आर्कटिक, अंटार्कटिक, ऊँचे पहाड़ों, उपसमुद्री आर्कटिक महाद्वीपीय स्थानों, यूरेशिया, उत्तरी अमेरिका एवं ग्रीनलैंड में पाया जाता है।
  • पर्माफ्रॉस्ट कार्बन: यह मुख्य रूप से सतह के पास पाए जाने वाले कार्बन (मृत पौधों का बचा हुआ पदार्थ, जो ठंड के कारण विघटित या सड़ नहीं पाता) का स्रोत है।
    • जैसे ही पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, सूक्ष्म जीव इन कार्बनिक पदार्थों पर कार्य करेंगे एवं उन्हें विघटित करेंगे, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड तथा मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में मुक्त होंगी।

भारत का 55वाँ अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव

पणजी, गोवा 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (International Film Festival of India – IFFI) की मेजबानी करेगा।

55वें IFFI की मुख्य विशेषताएँ

  • वर्ष 2024 संस्करण में 16 ‘क्यूरेटेड सेगमेंट’ की फिल्में शामिल हैं।
    • उदाहरण: ‘क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टुमॉरो’, ‘फिल्म बाजार’ एवं ‘सिने मेला’ आदि जैसे लोकप्रिय खंड।
  • फोकस का देश: ऑस्ट्रेलिया ‘फोकस’ (केंद्रीय) देश होगा एवं इसमें विभिन्न शैलियों की सात ऑस्ट्रेलियाई फिल्में प्रदर्शित होंगी।
    • भारत एवं ऑस्ट्रेलिया ने दोनों देशों के बीच गहरे सिनेमाई सहयोग का समर्थन करते हुए एक ‘ऑडियो-विजुअल सह-उत्पादन संधि’ को औपचारिक रूप दिया है।
  • अनुभाग
    • IFFI का अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा अनुभाग: यह दुनिया भर की असाधारण फिल्मों का प्रदर्शन करेगा।
    • भारतीय पैनोरमा अनुभाग: यह अपने 55वें संस्करण के दौरान 25 फीचर फिल्में एवं 20 गैर-फीचर फिल्में प्रदर्शित करेगा।
    • प्रारंभिक फिल्म 
      • फीचर फिल्म श्रेणी की शुरुआत रणदीप हुडा की ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ (हिंदी) से होगी।
      • गैर-फीचर श्रेणी की शुरुआत ‘हर्ष संगानी’ द्वारा निर्देशित घर जैसा कुछ (लद्दाखी) से होगी।
  • भारतीय फीचर फिल्म का सर्वश्रेष्ठ नवोदित निर्देशक: भारतीय सिनेमा में उभरते कलाकारों को समर्पित एक नई पुरस्कार श्रेणी बनाई गई।
    • सम्मानित नवोदित निर्देशक फ़िल्में: लक्ष्मीप्रिया देवी द्वारा बूंग (मणिपुरी); घराट गणपति (मराठी) नवज्योत बांदीवाडेकर द्वारा; मनोहर के द्वारा मिक्का बन्नदा हक्की (एक अलग पंख वाला पक्षी- कन्नड़);  रजाकर (हैदराबाद का मूक नरसंहार- तेलुगु) यता सत्यनारायण द्वारा; थानुप्प (द कोल्ड- मलयालम) रागेश नारायणन द्वारा।
  • शताब्दी श्रद्धांजलि: IFFI 2024 भारतीय सिनेमा के चार दिग्गजों को शताब्दी की श्रद्धांजलि अर्पित करेगा। अभिनेता राज कपूर, निर्देशक तपन सिन्हा, तेलुगु फिल्म आइकन अक्किनेनी नागेश्वर राव (ANR), एवं गायक मोहम्मद रफ़ी।

भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) 

  • भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) एशिया के प्रमुख फिल्म महोत्सवों में से एक है, जिसे ‘इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फिल्म प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन’ (FIAPF) से भी मान्यता प्राप्त है।
  • फाउंडेशन: इसकी स्थापना वर्ष 1952 में हुई थी।
  • आयोजित: गोवा, वर्ष 2004 से प्रतिवर्ष इस उत्सव की मेजबानी कर रहा है।
  • आयोजनकर्त्ता: सूचना प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार (राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम) तथा एंटरटेनमेंट सोसाइटी ऑफ गोवा, गोवा सरकार के सहयोग से।
  • महत्त्व: यह आयोजन एक सांस्कृतिक मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है, जो फिल्म निर्माण की कला के लिए वैश्विक सराहना को बढ़ावा देते हुए दुनिया भर के दर्शकों, फिल्म निर्माताओं एवं सिनेप्रेमियों को जोड़ता है।

संदर्भ 

गुवाहाटी में विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उन्नत अध्ययन संस्थान (Institute of Advanced Study in Science and Technology-IASST) के शोधकर्ताओं ने एक आशाजनक प्रोटीन, IL-35 की पहचान की है, जो टाइप 1 मधुमेह और ऑटोइम्यून मधुमेह के लिए नए उपचार का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

इम्यूनोथेरेपी  (Immunotherapy)

  • इम्यूनोथेरेपी एक ऐसा उपचार है, जो रोगों, विशेषकर कैंसर और स्वप्रतिरक्षी स्थितियों से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता या संशोधित करता है।
  • इम्यूनोथेरेपी के प्रकार
    • चेकपॉइंट अवरोधक: ऐसे प्रोटीन को अवरुद्ध करते हैं, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर कोशिकाओं पर हमला करने से रोकते हैं। उदाहरण के लिए पेम्ब्रोलिजुमैब, निवोलुमैब।
    • CAR-T सेल थेरेपी: कैंसर कोशिकाओं को बेहतर ढंग से पहचानने और उन्हें मारने के लिए T-कोशिकाओं की इंजीनियरिंग करना शामिल है।
    • कैंसर के टीके: कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करते हैं।
    • साइटोकाइन थेरेपी: प्रतिरक्षा कोशिकाओं को उत्तेजित करने के लिए इंटरफेरॉन और इंटरल्यूकिन जैसे प्रतिरक्षा-बढ़ाने वाले प्रोटीन का उपयोग करता है।
  • अनुप्रयोग: मेलेनोमा, फेफड़े के कैंसर, रक्त कैंसर और रुमेटी गठिया जैसी स्थितियों के उपचार में उपयोग किया जाता है।

IL-35 के बारे में

  • IL-35 एक अनूठा प्रोटीन है, जो दो विशिष्ट शृंखलाओं, IL-12α और IL-27β से बना है, जिसमें टाइप 1 और ऑटोइम्यून मधुमेह के लिए इम्यूनोथेरेपी में आशाजनक क्षमता है।
  • IL-35 को उत्प्रेरक रसायनों का उत्पादन करने वाली विशिष्ट प्रतिरक्षा कोशिकाओं को कम करके प्रतिरक्षा प्रणाली में एक सुरक्षात्मक भूमिका दर्शाते हुए अवलोकन किया गया है।
    • यह कमी अग्नाशयी कोशिका प्रवेश को कम करने में मदद करती है, जो स्वप्रतिरक्षी मधुमेह के विकास में प्रमुख योगदानकर्ता है।

ऑटोइम्यून डायबिटीज के बारे में

  • टाइप 1 डायबिटीज मेलिटस (T1DM) एक अंग-विशिष्ट ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से अग्न्याशय में इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं को लक्षित करती है और उन पर हमला करती है। 
  • कारण: यह एक जटिल बीमारी है, जिसमें आनुवंशिक प्रवृत्ति और पर्यावरणीय ट्रिगर दोनों शामिल हैं, जो बीटा कोशिकाओं के खिलाफ ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया में योगदान करते हैं।
  • प्रभाव: आनुवंशिक रूप से अतिसंवेदनशील व्यक्तियों में, बीटा कोशिकाओं पर उत्प्रेरक हमले से इंसुलिन की पुरानी कमी हो जाती है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप रक्त शर्करा के स्तर को प्रबंधित करने के लिए बाहरी (बहिर्जात) इंसुलिन पर आजीवन निर्भरता होती है।

प्रतिरक्षा प्रणाली में IL-35 की भूमिका

  • प्रतिरक्षा विनियमन: IL-35 मैक्रोफेज, T-कोशिकाओं और विनियामक B-कोशिकाओं सहित विभिन्न प्रतिरक्षा घटकों को नियंत्रित करता है, जो सभी प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं के प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण हैं।
  • IL-35 प्रतिरक्षा प्रणाली को इस प्रकार प्रभावित करता है:-
    • मैक्रोफेज सक्रियण और T-कोशिका प्रोटीन को रोकना: IL-35 प्रतिरक्षा कोशिकाओं को अग्नाशयी बीटा कोशिकाओं पर हमला करने से रोकता है, जो इंसुलिन उत्पादन के लिए आवश्यक हैं।
    • नियामक B कोशिकाओं को विनियमित करना: ये कोशिकाएँ प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं तथा अग्नाशयी कोशिकाओं पर स्वप्रतिरक्षी हमलों को रोकने में मदद करती हैं। 
    • इन्फ्लामेटरी सेल प्रोडक्शन को कम करना: इन्फ्लामेटरी केमिकल का उत्पादन करने वाली विशिष्ट प्रतिरक्षा कोशिकाओं को कम करके, IL-35 अग्नाशयी कोशिका प्रवेश को कम करता है, जो टाइप 1 और स्वप्रतिरक्षी मधुमेह दोनों में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

  • मैक्रोफेज (Macrophages): मोनोसाइट्स (अस्थि मज्जा में उत्पन्न होने वाली एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका) से उत्पन्न मैक्रोफेज प्रतिरक्षा रक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • जब विदेशी रोगाणु शरीर पर आक्रमण करते हैं तो मोनोसाइट्स मैक्रोफेज या डेंड्राइटिक कोशिकाओं में विभेदित हो सकते हैं।
  • T-कोशिकाएँ और B-कोशिकाएँ: T-कोशिकाएँ और B-कोशिकाएँ दोनों श्वेत रक्तकोशिकाएँ हैं, जिन्हें लिम्फोसाइट्स के रूप में जाना जाता है।
    • ये कोशिकाएँ प्रतिरक्षा कार्य के लिए महत्त्वपूर्ण हैं और मधुमेह में स्वप्रतिरक्षी प्रतिक्रिया में शामिल होती हैं।

IL-35 पहचान का महत्त्व 

  • वैश्विक मधुमेह महामारी, विशेष रूप से विकासशील देशों में बच्चों और किशोरों को प्रभावित कर रही है तथा इसके लिए प्रभावी नई चिकित्सा की आवश्यकता है।
    • पारंपरिक उपचार लक्षण प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन IL-35-मध्यस्थ प्रतिरक्षा चिकित्सा सीधे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को संबोधित करके एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है, जिससे रोग पर अधिक स्थायी नियंत्रण संभव हो सकता है।

संदर्भ

वियतनाम-भारत द्विपक्षीय सेना अभ्यास विनबैक्स (VINBAX) 2024 का पाँचवाँ संस्करण 4 नवंबर, 2024 को भारत के अंबाला में शुरू हुआ।

विनबैक्स (VINBAX) के बारे में

  • वर्ष 2018 में शुरू किया गया विनबैक्स (VINBAX) एक वार्षिक सैन्य प्रशिक्षण कार्यक्रम है, जो भारत और वियतनाम में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है। इसका पहला संस्करण मध्य प्रदेश के जबलपुर में आयोजित किया गया था।

विनबैक्स (VINBAX) 2024 के उद्देश्य

  • संयुक्त क्षमता निर्माण: संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में इंजीनियरिंग कंपनियों और चिकित्सा टीमों के रोजगार तथा तैनाती के लिए दोनों देशों की संयुक्त सैन्य क्षमताओं को बढ़ाना।
  • संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान: संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय VII के तहत संयुक्त राष्ट्र दल के हिस्से के रूप में इंजीनियरिंग कार्यों का संचालन करने और मानवीय प्रयासों का समर्थन करने के लिए दोनों पक्षों को सुसज्जित करना।
  • आपदा राहत: उपकरण प्रदर्शन सहित मानवीय सहायता और आपदा राहत (Humanitarian Assistance and Disaster Relief-HADR) क्षमताओं को प्रदर्शित करने के लिए 48 घंटे का सत्यापन अभ्यास आयोजित करना।

दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की हालिया रक्षा गतिविधियाँ

  • भारत-इंडोनेशिया संयुक्त विशेष बल अभ्यास गरुड़ शक्ति 2024: 1 नवंबर से 12 नवंबर, 2024 तक जकार्ता के सिजंटुंग (Cijantung) में आयोजित यह अभ्यास इंडोनेशियाई विशेष बलों के साथ संबंधों को मजबूत करता है।
  • सिंगापुर-भारत समुद्री द्विपक्षीय अभ्यास सिम्बेक्स (SIMBEX), 2024: सिम्बेक्स (SIMBEX) का 31वाँ संस्करण 23 से 29 अक्टूबर, 2024 तक विशाखापत्तनम में आयोजित किया गया, जिसमें समुद्री सुरक्षा सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया।

संदर्भ

5 नवंबर, 2024 को लोकसभा अध्यक्ष ने देशबंधु चितरंजन दास की जयंती पर संविधान सदन के सेंट्रल हॉल में उनके चित्र पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

देशबंधु चितरंजन दास के बारे में

  • जन्म: चितरंजन दास का जन्म 5 नवंबर, 1870 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में बंगाली वैद्य परिवार में हुआ था।
  • शिक्षा: उन्होंने भवानीपुर में लंदन मिशनरी सोसायटी के संस्थान में शिक्षा प्राप्त की तथा वर्ष 1890 में कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
  • कानून की पढ़ाई: दास ने इंग्लैंड के मिडिल टेम्पल में कानून की पढ़ाई की, तथा वर्ष 1894 में बैरिस्टर बन गए।

स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका एवं योगदान

  • प्रमुख नेता: ‘देशबंधु’ (राष्ट्र के मित्र) के रूप में जाने जाने वाले दास ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • मार्गदर्शन: वे सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं के मार्गदर्शक थे।
  • वे महात्मा गांधी और मोतीलाल नेहरू के साथ जलियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच करने वाली एक गैर-आधिकारिक समिति का हिस्सा थे।
  • कांग्रेस नेतृत्व: उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का सक्रिय रूप से समर्थन किया और वर्ष 1922 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
  • स्वराज पार्टी की स्थापना: परिषद में प्रवेश पर कांग्रेस के रुख से असहमत होकर, उन्होंने स्वशासन के लिए दबाव बनाने हेतु वर्ष 1923 में मोतीलाल नेहरू के साथ स्वराज पार्टी की स्थापना की।
  • अलीपुर बम कांड (वर्ष 1909): दास ने राष्ट्रवादी नेता अरबिंदो घोष का सफलतापूर्वक बचाव करके प्रसिद्धि प्राप्त की, अपनी कानूनी क्षमता और स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया
  • चितरंजन दास ढाका षडयंत्र मामले (वर्ष 1910-11) में बचाव पक्ष के वकील भी थे।
  • बंगाल समझौता (वर्ष 1923): दास ने आर्थिक असंतुलन को दूर करने और विधायी निकायों तथा सरकारी नौकरियों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव देकर हिंदू एवं मुस्लिम समुदायों के बीच एकता को बढ़ावा देने के लिए बंगाल समझौते की शुरुआत की।

चित्तरंजन दास का साहित्यिक योगदान

  • कविता: वे एक प्रशंसित बंगाली कवि थे, जिनकी मलंचा, माला और सागर संगीत जैसी रचनाएँ बंगाली संस्कृति और साहित्यिक प्रतिभा के प्रति उनके जुनून को दर्शाती हैं।
    • सागर-संगीत (समुद्र के गीत): वर्ष 1913 में प्रकाशित, कविताओं के इस संग्रह ने उनकी प्रारंभिक काव्य प्रतिभा को प्रदर्शित किया।
    • अंतर्यामी (सर्वज्ञ): वर्ष 1914 में प्रकाशित, यह कृति दार्शनिक और आध्यात्मिक विषयों पर आधारित थी।
    • किशोर-किशोरी (युवा): वर्ष 1915 में प्रकाशित, इस संग्रह ने युवाओं की आकांक्षाओं और चुनौतियों का पता लगाया।
  • साहित्यिक पत्रिका नारायण: उन्होंने पाँच वर्षों तक इस उच्च-गुणवत्ता वाली साहित्यिक पत्रिका की स्थापना की और उसका संपादन किया, जो उभरते लेखकों के लिए एक मंच प्रदान करती है तथा अपनी खुद की काव्य रचनाओं को प्रदर्शित करती है।
  • वैष्णव प्रभाव: उनकी कविताएँ अक्सर वैष्णव साहित्य की समृद्ध परंपरा से प्रेरणा लेती थीं, जो उनके कार्य पर गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक प्रभावों को दर्शाती हैं।
  • सामाजिक टिप्पणी: उनकी कुछ कविताओं ने समकालीन सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को संबोधित किया, जो सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय मुक्ति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।

संदर्भ 

हाल ही में मैसाचुसेट्स स्थित बायोटेक कंपनी वेव लाइफ साइंसेज नैदानिक ​​स्तर पर RNA एडिटिंग करके आनुवंशिक विकार का इलाज करने वाली पहली कंपनी बन गई है।

  • जीन अभिव्यक्ति और हस्तक्षेप में RNA की भूमिका, जो CRISPR-Cas9 की सफलता के लिए आवश्यक है, ने इसे सटीक चिकित्सा के क्षेत्र में अग्रणी स्थान पर पहुँचा दिया है।

RNA एडिटिंग के बारे में

  • RNA और प्रोटीन संश्लेषण: कोशिकाएँ DNA निर्देशों के आधार पर मैसेंजर RNA (mRNA) का उत्पादन करती हैं, जो फिर प्रोटीन संश्लेषण को निर्देशित करती हैं। mRNA में गलतियों के परिणामस्वरूप अवांक्षित प्रोटीन हो सकते हैं, जो विभिन्न आनुवंशिक विकारों का कारण बनते हैं।

  • ADAR एंजाइम की भूमिका: RNA पर कार्य करने वाला एडेनोसिन डीएमीनेज (Adenosine deaminase-ADAR) mRNA में एडेनोसिन को इनोसिन में परिवर्तित करता है, जो ग्वानोसिन की नकल करता है।
    • यह परिवर्तन उत्परिवर्तन को ठीक कर सकता है, जिससे कोशिकाओं को कार्यात्मक प्रोटीन बनाने में मदद मिलती है।
  • गाइड RNA (gRNA): gRNA लक्षित सुधारों के लिए ADAR को विशिष्ट mRNA साइटों पर निर्देशित करता है, जिससे एकल-बिंदु उत्परिवर्तन से जुड़ी आनुवंशिक स्थितियों के लिए संभावित उपचार मिलता है।

RNA संशोधन के तीन प्रकार क्या हैं?

  • RNA संशोधन के तीन प्रकार हैं- योग, विलोपन और प्रतिस्थापन।
  • योग तब होता है, जब एक न्यूक्लियोटाइड डाला जाता है।
  • विलोपन तब होता है, जब एक को हटा दिया जाता है।
  • और प्रतिस्थापन तब होता है, जब एक न्यूक्लियोटाइड को दूसरे से बदला जाता है।

आनुवंशिक विकारों के उपचार में नैदानिक ​​अनुप्रयोग

  • WVE-006 थेरेपी: वेव लाइफ साइंसेज ने α-1 एंटीट्रिप्सिन की कमी (Antitrypsin Deficiency-AATD) के लिए एक थेरेपी विकसित की है, जो यकृत और फेफड़ों की समस्याओं का कारण बनती है।
    • WVE-006, SERPINA1 जीन में विशिष्ट एकल-बिंदु उत्परिवर्तन को ठीक करने के लिए ADAR एंजाइमों को निर्देशित करने हेतु gRNA का उपयोग करता है।
  • व्यापक अनुप्रयोगों की संभावना: कंपनी हंटिंगटन रोग, ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और मोटापे के कुछ रूपों के लिए RNA एडिटिंग की खोज कर रही है, जो सभी एकल-बिंदु उत्परिवर्तन से जुड़े हैं।

RNA एडिटिंग क्षेत्र में अन्य कंपनियाँ

  • कोरो बायो (Korro Bio): AATD और पार्किंसंस रोग के लिए RNA एडिटिंग पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • प्रोक्यूआर थेरेप्यूटिक्स (ProQr Therapeutics): हृदय रोग और यकृत में पित्त अम्ल के निर्माण के लिए उपचार विकसित करता है।
  • शेप थेरेप्यूटिक्स (Shape Therapeutics): तंत्रिका संबंधी विकारों के लिए RNA एडिटिंग उपचारों पर कार्य करता है।
  • एस्किडियन थेरेप्यूटिक (Ascidian Therapeutic): ABCA4 रेटिनोपैथी के लिए RNA एडिटिंग का परीक्षण; ABCA4 जीन का बड़ा आकार मानक जीन थेरेपी को मुश्किल बनाता है, जिससे RNA एडिटिंग एक उपयुक्त विकल्प बन जाता है।
  • आरजनोमिक्स (Rznomics): ट्यूमर के विकास को कम करने के लिए मानव टेलोमेरेज रिवर्स ट्रांसक्रिपटेस को लक्षित करते हुए, यू.एस. और दक्षिण कोरिया में यकृत कैंसर उपचारों पर परीक्षण आयोजित करना।

RNA एडिटिंग बनाम DNA एडिटिंग 

पहलू

DNA एडिटिंग

RNA एडिटिंग

लक्ष्य अणु DNA RNA
अणु की संरचना

आमतौर पर डबल-स्ट्रैंडेड; कुछ वायरस में सिंगल-स्ट्रैंडेड DNA होता है।

अधिकतर सिंगल-स्ट्रैंडेड; कुछ वायरस (जैसे-रेट्रोवायरस) में डबल-स्ट्रैंडेड RNA होते हैं।

शर्करा घटक डीऑक्सीराइबोस (Deoxyribose) राइबोज (Ribose)
न्यूक्लियोटाइड बेस 

एडेनिन (A), गुआनिन (G), साइटोसिन (C), और थाइमिन (T)

एडेनिन (A), गुआनिन (G), साइटोसिन (C), और यूरेसिल (U)

बेस पेयरिंग नियम

A, T के साथ जोड़ी बनाता है, G, C के साथ जोड़ी बनाता है।

A, U के साथ जोड़ा जाता है, G, C के साथ जोड़ा जाता है।

एडिटिंग की स्थायित्वता

DNA अनुक्रम में स्थायी परिवर्तन

mRNA अनुक्रम में अस्थायी परिवर्तन; समय के साथ प्रभाव कम पड़ सकते हैं।

विशेषता

उच्च, लेकिन स्थायी ऑफ-टारगेट उत्परिवर्तन से बचने के लिए सटीक लक्ष्यीकरण की आवश्यकता होती है।

कम विशिष्ट हो सकता है; यदि ADAR एंजाइम गैर-लक्ष्य mRNA भागों को संशोधित करते हैं तो ऑफ-टारगेट संपादन संभव है।

प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का जोखिम

जीवाणु स्रोतों से विदेशी प्रोटीन के कारण संभावित प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाएँ (उदाहरण के लिए, CRISPR-Cas9)

प्रतिरक्षा जोखिम कम होता है, क्योंकि ADAR एंजाइम मानव कोशिकाओं में स्वाभाविक रूप से मौजूद होते हैं।

आनुवंशिक प्रभाव

व्यक्ति के जीनोम में परिवर्तन करता है; परिवर्तन भावी कोशिका पीढ़ियों तक पहुँच सकते हैं।

mRNA को अस्थायी रूप से परिवर्तित करता है; जीनोम में परिवर्तन नहीं करता, इसलिए प्रभाव वंशानुगत नहीं होते हैं।

एंजाइमों का उपयोग

DNA काटने के लिए कुछ बैक्टीरिया (जैसे, CRISPR में Cas9) से प्रोटीन का उपयोग करता है।

ADAR एंजाइम का उपयोग करता है जो एडेनोसिन (A) को इनोसिन (I) में परिवर्तित करता है, जो ग्वानोसिन (G) कार्य की नकल करता है।

सुरक्षा

इससे स्थायी क्षति का खतरा रहता है।

RNA एडिटिंग के परिवर्तन अस्थायी होते हैं, जिससे समय के साथ प्रभाव कम हो जाता है, जिससे स्थायी त्रुटियों का जोखिम कम हो जाता है।

वितरण तंत्र

अक्सर वायरल वेक्टर का उपयोग किया जाता है। (जैसे, एडेनो-एसोसिएटेड वायरस)

आमतौर पर लिपिड नैनोकणों या वायरल वैक्टर का उपयोग किया जाता है; हालाँकि, बड़े अणुओं के लिए सीमित क्षमता होती है।

अनुप्रयोग

वंशानुगत बीमारियों के उपचार, जीन थेरेपी और कृषि प्रजातियों को संशोधित करने में उपयोग किया जाता है।

एकल-बिंदु उत्परिवर्तन (जैसे, हंटिंगटन, यकृत कैंसर) के कारण होने वाली बीमारियों के लिए संभावित उपचार

RNA एडिटिंग में चुनौतियाँ

  • विशिष्टता संबंधी मुद्दे: ADAR एंजाइम लक्षित और गैर-लक्षित mRNA दोनों भागों को संपादित कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप संभावित रूप से अनपेक्षित प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं।
    • gRNA लक्ष्यीकरण सटीकता में सुधार करना मुख्य फोकस है।
  • क्षणिक प्रकृति: RNA एडिटिंग के अस्थायी प्रभावों को निरंतर लाभ के लिए बार-बार उपचार की आवश्यकता होती है।
  • वितरण सीमाएँ: लिपिड नैनोकणों और एडेनो-एसोसिएटेड वायरस (Adeno-Associated Virus-AAV) वैक्टर जैसी वर्तमान वितरण विधियों में बड़े अणुओं के परिवहन की सीमित क्षमता होती है।

RNA एडिटिंग का भविष्य

  • RNA एडिटिंग अभी अपने प्रारंभिक चरण में है तथा विश्वभर में कम-से-कम 11 कंपनियाँ विभिन्न आनुवंशिक स्थितियों के लिए उपचार विकसित कर रही हैं।
  • एली लिली, रोश और नोवो नॉर्डिस्क सहित प्रमुख दवा कंपनियों ने इसमें महत्त्वपूर्ण रुचि दिखाई है, जो यह दर्शाता है कि RNA एडिटिंग शीघ्र ही सटीक चिकित्सा में एक प्रमुख उपकरण बन सकता है।

संदर्भ 

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उच्च शिक्षा सहायता के लिए एक नई केंद्रीय क्षेत्रक पीएम विद्या लक्ष्मी योजना (PM-Vidya Laxmi Scheme) को मंजूरी दी।

राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (National Institutional Ranking Framework-NIRF)

  • उद्देश्य: गुणवत्ता सुधार और सूचित छात्र विकल्प के लिए विभिन्न मापदंडों पर भारतीय संस्थानों का मूल्यांकन और रैंकिंग करना।
  • लॉन्च: नवंबर 2015 में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा स्थापित।
  • रैंकिंग पैरामीटर: संस्थानों को पाँच मापदंडों पर रैंक किया जाता है
    • शिक्षण, सीखना और संसाधन (Teaching, Learning & Resources) (30%)
    • अनुसंधान और व्यावसायिक अभ्यास (Research & Professional Practice) (30%)
    • स्नातक परिणाम (Graduation Outcomes) (20%)
    • आउटरीच और समावेशिता (Outreach & Inclusivity) (10%)
    • धारणा (Perception) (10%)
  • श्रेणियाँ: NIRF संस्थानों को विभिन्न श्रेणियों में रैंक करता है जैसे कि ‘समग्र’, ‘शोध संस्थान’, ‘विश्वविद्यालय’, ‘कॉलेज’ और इंजीनियरिंग, प्रबंधन, फार्मेसी, कानून आदि जैसे विशिष्ट क्षेत्र।
  • वर्ष 2024 में शामिल: नई श्रेणियाँ शुरू की गईं; राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय, मुक्त विश्वविद्यालय, कौशल विश्वविद्यालय और एक ‘नवाचार’ रैंकिंग भी शामिल की गई।

पीएम विद्या लक्ष्मी योजना के बारे में

  • उद्देश्य: मेधावी विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आसान ऋण उपलब्ध कराकर वित्तीय सहायता प्रदान करना।
    • यह योजना राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 द्वारा निर्धारित आधार पर बनाई गई है।
  • पात्रता: भारत के शीर्ष 860 गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा संस्थानों (QHEI) में प्रवेश पाने वाले छात्र, जिनमें राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) में शीर्ष रैंक वाले संस्थान और चुनिंदा राज्य और केंद्र सरकार के उच्च शिक्षा संस्थान शामिल हैं।
  • डिजिटल और पारदर्शी प्रक्रिया: इस योजना को एक समर्पित पीएम-विद्यालक्ष्मी पोर्टल के माध्यम से संचालित किया जाएगा, जो पूरी तरह से डिजिटल आवेदन प्रणाली प्रदान करेगा।
    • ब्याज अनुदान का भुगतान ई-वाउचर और सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) वॉलेट के माध्यम से किया जाएगा
  • ऋण सुविधाएँ
    • बिना किसी जमानत के ऋण: छात्र बिना किसी जमानत या गारंटर के ऋण ले सकते हैं, ताकि पूरी ट्यूशन फीस और कोर्स से जुड़े खर्चों को कवर किया जा सके।
    • क्रेडिट गारंटी: 7.5 लाख रुपये तक के ऋण पर 75% क्रेडिट गारंटी होती है, जिससे बैंक ऋण देने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।
    • ब्याज छूट: 8 लाख रुपये तक की वार्षिक आय वाले परिवारों के छात्रों के लिए, स्थगन अवधि के दौरान 10 लाख रुपये तक के ऋण पर 3% ब्याज छूट।
    • सरकारी संस्थानों में तकनीकी/पेशेवर पाठ्यक्रमों को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • लाभार्थी: लगभग 22 लाख छात्रों को लाभ पहुँचाने का लक्ष्य, जिसमें 1 लाख छात्रों को प्रतिवर्ष ब्याज सहायता मिलेगी।
  • बजट: वर्ष 2024-25 से वर्ष 2030-31 तक 3,600 करोड़ रुपये का परिव्यय, इस अवधि में ब्याज सहायता कार्यक्रम के तहत 7 लाख नए छात्रों को शामिल करने का लक्ष्य।

संदर्भ

भारत में एंग्लो-इंडियन समुदाय, जिसका प्रतिनिधित्व उसके नेताओं द्वारा किया जाता है, ने केंद्र सरकार से लोकसभा (संसद के निम्न सदन) और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन के लिए आरक्षित सीटें बहाल करने का आह्वान किया है।

एंग्लो इंडियन समुदाय द्वारा उठाए गए मुद्दे

  • आरक्षित सीटों की बहाली: नेताओं ने सरकार से संसद और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन के लिए आरक्षित सीटों को बहाल करने का आग्रह किया, एक प्रावधान जिसे पहले कम जनसंख्या के आँकड़ों के कारण हटा दिया गया था।

  • जाति जनगणना का अनुरोध: नेताओं ने एंग्लो-इंडियन की सटीक गणना के लिए जाति जनगणना की माँग की, जिसमें कहा गया कि उनकी जनसंख्या 4,00,000 के करीब है, न कि वर्ष 2011 की जनगणना के पुराने आँकड़ों के अनुसार 296 है।
  • आर्थिक और शैक्षिक चुनौतियाँ: एंग्लो-इंडियन समुदाय को महत्त्वपूर्ण आर्थिक और शैक्षिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जैसा कि वर्ष 2013 के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के अध्ययन में उजागर किया गया था, जिसमें आवास संघर्ष और पहचान संकट जैसे मुद्दों की रिपोर्ट की गई थी।
  • सामुदायिक संस्थानों में प्रभाव का नुकसान: पूर्व सांसद चार्ल्स डायस ने एंग्लो-इंडियन के अपने द्वारा बनाए गए संस्थानों पर नियंत्रण में कमी, प्रवेश और रोजगार में चुनौतियों का उल्लेख किया।
  • आयोग और अलग गणना के लिए अपील: नेता अपने समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन करने के लिए एक सरकारी आयोग की माँग करते हैं और अगली जनगणना में अलग गणना के लिए कहते हैं।

प्रमुख एंग्लो इंडियन सांसद

  • फ्रैंक एंथनी को वर्ष 1952, 1957, 1962, 1967, 1971, 1980, 1984 और वर्ष 1991 में लोकसभा के लिए मनोनीत किया गया।
  • जॉस फर्नांडीज और पॉल मंटोश को वर्ष 1989 में वी. पी. सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल सरकार द्वारा मनोनीत किया गया था।
  • वर्ष 2014 में NDA सरकार ने अभिनेता जॉर्ज बेकर और केरल के शिक्षक रिचर्ड हे को मनोनीत किया।

एंग्लो-इंडियन समुदाय के बारे में

  • उत्पत्ति: भारत में एंग्लो-इंडियन समुदाय की उत्पत्ति ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की एक आधिकारिक नीति से हुई, जिसने अपने अधिकारियों और स्थानीय महिलाओं के बीच विवाह को प्रोत्साहित किया।
  • परिभाषा: ‘एंग्लो-इंडियन’ शब्द पहली बार भारत सरकार अधिनियम, 1935 में उल्लेख किया गया था।
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-366 (2) में एंग्लो-इंडियन की परिभाषा इस प्रकार दी गई है:
      • ऐसा व्यक्ति जिसके पिता या पुरुष पूर्वज यूरोपीय वंश के हों।
      • भारतीय क्षेत्र में निवास करने वाला, भारत में निवास करने वाले माता-पिता से जन्मा (अस्थायी रूप से मौजूद न हो)।
  • सामुदायिक योगदान: इस समुदाय ने भारतीय समाज में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, विशेषकर शिक्षा, रेलवे और सशस्त्र बलों जैसे क्षेत्रों में।
  • सांस्कृतिक पहचान: एंग्लो-इंडियन एक अलग सांस्कृतिक पहचान बनाए रखते हैं, जिसमें भाषा, भोजन और रीति-रिवाजों सहित पश्चिमी तथा भारतीय दोनों तरह के प्रभाव शामिल हैं।

एंग्लो-इंडियन आरक्षण के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-331: यदि समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो राष्ट्रपति को दो एंग्लो-इंडियन को लोकसभा में नामित करने की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद-333: राज्य के राज्यपाल को राज्य विधानसभा में एक एंग्लो-इंडियन को मनोनीत करने की अनुमति देता है, यदि समुदाय का प्रतिनिधित्व कम है।
  • अनुच्छेद-334(B): विधायी निकायों में एंग्लो-इंडियन आरक्षण को वर्ष 1949 से 40 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया।
  • अनुसूचित जातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग (अनुच्छेद-338): एंग्लो-इंडियन के लिए संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों की जाँच करता है तथा राष्ट्रपति को उनकी प्रभावशीलता की रिपोर्ट करता है।

आरक्षण का ऐतिहासिक संदर्भ

  • संविधान सभा का ऊदेश्य: शुरू में, संविधान सभा ने वर्ष 1950 से शुरू होने वाले SC/ST के लिए 10 वर्ष के आरक्षण की कल्पना की थी।
  • अनुच्छेद-334 में संशोधन: यह अनुच्छेद, जिसने SC/ST और एंग्लो-इंडियन आरक्षण के लिए समयसीमा निर्धारित की थी, को 8वें संशोधन (वर्ष 1969) से शुरू करके 104वें संशोधन (वर्ष 2019) के साथ समयसीमा बढ़ाने के लिए बार-बार संशोधित किया गया था।
  • 104वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2019: एंग्लो-इंडियन आरक्षण को समाप्त कर दिया और वर्ष 1950 से 80 वर्ष की अवधि के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में SC/ST आरक्षण के लिए वर्ष 2030 को अंतिम वर्ष के रूप में निर्धारित किया।

संदर्भ 

भारत सरकार ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (Regional Rural Banks- RRB) का विलय कर उनकी संख्या 43 से घटाकर 28 करने का प्रस्ताव दिया है।

संबंधित तथ्य

  • सरकार की समेकन योजना ‘एक राज्य-एक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक’ (RRB) लक्ष्य के अनुरूप है।
  • वर्तमान स्थिति: आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल सहित 12 राज्यों में वर्तमान में एक से अधिक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB) हैं।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) के समेकन के बारे में

  • डॉ. व्यास समिति (वर्ष 2001) की सिफारिशों के बाद क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) का समेकन शुरू हुआ।
  • समेकन चरण: वर्ष 2004-05 में शुरू किया गया, तीन चरणों में वर्ष 2020-21 तक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) की संख्या 196 से घटाकर 43 कर दी गई।
    • चल रहे चौथे समेकन चरण का लक्ष्य संख्या को और कम करके 28 करना है।
    • समेकन का महत्त्व: ओवरहेड व्यय को कम करता है और प्रौद्योगिकी अपनाने को बढ़ावा देता है।
    • पूँजी आधार को बढ़ाता है, परिचालन क्षेत्रों का विस्तार करता है और जोखिम को बढ़ाता है।

डॉ. व्यास समिति

  • ग्रामीण ऋण प्रणाली में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (Regional Rural Banks-RRB) की प्रासंगिकता की जाँच करने और उन्हें व्यवहार्य बनाने के उपाय सुझाने के लिए डॉ. व्यास समिति (वर्ष 2001) का गठन किया गया था।

व्यास समिति की सिफारिशें

  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) का एकीकरण: समिति ने पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं को प्राप्त करने और उनके वित्तीय स्थिति में सुधार करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) को समेकित करने की सिफारिश की।
  • शासन को मजबूत करना: समिति ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) के बोर्ड और प्रबंधन को सशक्त बनाकर उनके प्रशासनिक ढाँचे को मजबूत करने का सुझाव दिया।
  • प्रौद्योगिकी अपनाना: समिति ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) द्वारा अपनी दक्षता और पहुँच में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
  • प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना: समिति ने सिफारिश की कि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) को कृषि, छोटे और सीमांत किसानों तथा ग्रामीण कारीगरों जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को ऋण देने पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखना चाहिए।
  • मानव संसाधन विकास: समिति ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) के कर्मचारियों के प्रशिक्षण और विकास में निवेश के महत्त्व पर जोर दिया।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) के बारे में 

  • उत्पत्ति: नरसिम्हन कार्य समूह (वर्ष 1975) की सिफारिशों पर वर्ष 1975 में एक अध्यादेश के माध्यम से स्थापित किया गया, जिसे बाद में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया।
    • प्रथम क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB): प्रथमा ग्रामीण बैंक, 2 अक्टूबर 1975 को स्थापित किया गया था।
  • उद्देश्य: छोटे/सीमांत किसानों, कृषि मजदूरों और छोटे उद्यमियों को ऋण प्रदान करके ग्रामीण विकास का समर्थन करने के लिए बनाया गया।
  • परिचालन का दायरा: मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की सेवा करना, आवश्यकतानुसार शहरी क्षेत्रों में शाखाएँ खोलने की अनुमति।
  • शेयरधारिता संरचना:
    • भारत सरकार: 50% और राज्य सरकार: 15%
    • प्रायोजक बैंक: 35%
  • विनियमन: क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB) अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (सरकारी बैंक) हैं, जिनका विनियमन RBI द्वारा किया जाता है और नाबार्ड (NABARD) द्वारा उनकी निगरानी की जाती है।
  • निधियों के स्रोत: इसमें स्वामित्व वाली निधियाँ, जमाराशियाँ और नाबार्ड (NABARD), प्रायोजक बैंकों और सिडबी (SIDBI) तथा राष्ट्रीय आवास बैंक जैसी संस्थाओं से उधार शामिल हैं।
    • प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण (Priority Sector Lending-PSL) लक्ष्य: क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अपने कुल बकाया अग्रिमों का 75% PSL को आवंटित करना होगा, जबकि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए यह 40% है।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) के समेकन में चुनौतियाँ

  • एकीकरण की जटिलता: कई बैंकों के विलय के लिए विविध तकनीकी प्रणालियों और परिचालन प्रक्रियाओं के जटिल एकीकरण की आवश्यकता होती है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: विविध ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार सेवा वितरण सुनिश्चित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती हो सकती है।
  • कार्यबल समायोजन: एकीकरण के दौरान कार्यबल का पुनर्गठन एक संवेदनशील प्रक्रिया हो सकती है।

आगे की राह

  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) का एकीकरण ग्रामीण बैंकिंग क्षेत्र की दक्षता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिए एक रणनीतिक कदम है।
  • बड़े और अधिक मजबूत संस्थानों का निर्माण करके, सरकार का लक्ष्य निजी क्षेत्र के बैंकों और लघु वित्त बैंकों (Small Finance Banks-SFB) के साथ प्रतिस्पर्द्धा में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करना है।
  • इस पहल की सफलता सुनिश्चित करने के लिए, समेकन प्रक्रिया को सावधानीपूर्वक क्रियान्वित करना तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) के वित्तीय स्वास्थ्य एवं ग्रामीण समुदायों को सेवा प्रदान करने पर इसके प्रभाव की निगरानी करना महत्त्वपूर्ण है।

संदर्भ

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 की वैधता निर्धारित करने वाले मामले से निपटते समय मूल संरचना सिद्धांत के उल्लंघन के आधार पर किसी कानून की वैधता को चुनौती नही दी जा सकती है।

फैसले के मुख्य बिंदु

  • अमूर्त शब्द (Abstract Terms): मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि ऐसे दावों को मूल ढाँचे के अमूर्त तत्त्वों के बजाय विशिष्ट संवैधानिक प्रावधानों से जोड़ा जाना चाहिए।
    • मूल ढाँचे में लोकतंत्र, संघवाद तथा धर्मनिरपेक्षता जैसे अपरिभाषित सिद्धांत शामिल हैं।
    • न्यायालय के अनुसार, किसी कानून की वैधता को चुनौती देने के लिए इन अमूर्त अवधारणाओं का उपयोग करने से संवैधानिक व्याख्या में अनिश्चितता उत्पन्न हो सकती है।
  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय पर प्रतिक्रिया: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पहले माना था कि उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 धर्मनिरपेक्षता की अवहेलना करता है।
  • साधारण कानून बनाम संवैधानिक संशोधन: सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि संवैधानिक संशोधन और साधारण कानून अलग-अलग कानूनी ढाँचों के भीतर कार्य करते हैं।
    • हालाँकि संवैधानिक संशोधनों की समीक्षा मूल संरचना सिद्धांत के तहत की जा सकती है, सामान्य कानून को इस आधार पर अमान्य नहीं किया जा सकता है।

भारत में साधारण कानून और संवैधानिक कानून के बीच अंतर

पहलू

सामान्य कानून 

संवैधानिक कानून 

परिभाषा 

संविधान के अंतर्गत संसद या राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानून।

भारत का सर्वोच्च कानून, जिसमें सरकार की संरचना, कार्य और शक्तियों का विवरण दिया गया है।

उद्देश्य 

सिविल, आपराधिक और प्रशासनिक मामलों जैसे विशिष्ट क्षेत्रों को नियंत्रित करना।

शासन और नागरिक अधिकारों के मौलिक सिद्धांतों को रेखांकित करना।

संशोधन प्रक्रिया  अधिकार क्षेत्र के आधार पर संसद या राज्य विधानसभाओं में साधारण बहुमत द्वारा इसमें संशोधन किया जा सकता है।

इसके लिए एक विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता होती है, अनुच्छेद-368 के अनुसार, या तो साधारण बहुमत, दो-तिहाई बहुमत अथवा राज्यों द्वारा अनुसमर्थन।

न्यायिक समीक्षा 

यदि वे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं या विधायी क्षमता से परे हैं तो उनकी समीक्षा की जा सकती है और उन्हें रद्द किया जा सकता है।

न्यायिक समीक्षा के अधीन, लेकिन कुछ संशोधनों का परीक्षण मूल संरचना सिद्धांत के विरुद्ध किया जाता है।

मूल संरचना सिद्धांत की प्रयोज्यता 

साधारण कानूनों पर लागू नहीं। साधारण कानूनों को केवल मूल ढाँचे का उल्लंघन करने के कारण चुनौती नहीं दी जा सकती।

संवैधानिक संशोधनों पर लागू संशोधन मूल संरचना को नहीं बदल सकते (केशवानंद भारती मामले, 1973 के अनुसार)।

उदाहरण 
  • भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860
  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019।
  • मौलिक अधिकार (संविधान का भाग III)
  • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (भाग IV)
  • संविधान (42वाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 
अनुप्रयोग का दायरा

संविधान की संघ, राज्य या समवर्ती सूची में परिभाषित विशिष्ट क्षेत्रों या विषयों तक सीमित।

यह देश की संरचना और शासन पर व्यापक रूप से लागू होता है, जिसमें व्यापक शक्ति वितरण और सभी सरकारी अंगों पर सीमाएँ शामिल हैं।

संशोधन या परिवर्तन 

इसे विधायिका में किसी अन्य साधारण कानून को पारित करके संशोधित, निरस्त या प्रतिस्थापित किया जा सकता है।

संशोधनों के लिए अनुच्छेद-368 के तहत प्रक्रियाओं का पालन करना आवश्यक है। उल्लेखनीय मामलों में 24वाँ संशोधन, 1971 और 44वाँ संशोधन, 1978 शामिल हैं।

शासन में भूमिका 

लागू करने योग्य नियमों और नीतियों के माध्यम से सरकार के व्यावहारिक कामकाज को सुविधाजनक बनाता है।

सरकार की शक्ति को परिभाषित और सीमित करता है, लोकतांत्रिक शासन, संघवाद तथा अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

पिछले ऐतिहासिक मामलों का प्रभाव

  • न्यायालय ने केशवानंद भारती (वर्ष 1973) और इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण (वर्ष 1975) मामलों का उल्लेख किया, जहाँ मूल संरचना सिद्धांत को पहली बार लागू किया गया था।
  • न्यायालय ने राज नारायण मामले में मुख्य न्यायाधीश ए. एन. रे के दृष्टिकोण का हवाला दिया, जिसमें तर्क दिया गया था कि इस सिद्धांत को सामान्य विधियों पर लागू करना ‘संविधान को पुनः लिखने’ के बराबर होगा।
  • न्यायमूर्ति के. के. मैथ्यू ने सामान्य कानूनों की वैधता का आकलन करने के लिए मूल संरचना की अवधारणा को ‘बहुत अस्पष्ट’ (Too Vague) माना।

फैसले के निहितार्थ 

  • विधायी स्वायत्तता: फैसले में इस बात पर जोर दिया गया है कि संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए साधारण कानून को मूल ढाँचे का उल्लंघन करने के कारण रद्द नहीं किया जा सकता है, इस प्रकार संवैधानिक सीमाओं के भीतर विधायी स्वायत्तता को बनाए रखा जा सकता है।
  • न्यायिक स्पष्टता: यह निर्णय मूल ढाँचे के सिद्धांत को संवैधानिक संशोधनों तक सीमित करके न्यायिक समीक्षा के दायरे को मजबूत करता है, जिससे संवैधानिक न्यायनिर्णयन में स्पष्ट सीमाएँ सुनिश्चित होती हैं।
  • न्यायिक उदाहरण: यह निर्णय, जिसने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को आंशिक रूप से बरकरार रखा, एक मिसाल कायम करता है कि मूल ढाँचे के पालन के लिए केवल संवैधानिक संशोधनों की ही जाँच की जा सकती है, न कि साधारण कानूनों की।

मूल संरचना सिद्धांत (Basic Structure Doctrine) के बारे में 

  • मूल संरचना सिद्धांत भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केशवानंद भारती मामले (वर्ष 1973) में प्रस्तुत एक ऐतिहासिक न्यायिक नवाचार है।
  • यह स्थापित करता है कि भारतीय संविधान की कुछ मौलिक विशेषताओं को संसद द्वारा संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से बदला या निरस्त नहीं किया जा सकता है।
  • यह संविधान में मनमाने ढंग से किए जाने वाले परिवर्तनों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है और यह सुनिश्चित करता है कि दस्तावेज में निहित मौलिक सिद्धांत बरकरार रहें।
  • यह कई मामलों में भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने और कानून के शासन को बनाए रखने में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण रहा है।

मूल संरचना के कुछ प्रमुख पहलू

  • संविधान की सर्वोच्चता (Supremacy of the Constitution): संविधान देश का सर्वोच्च कानून है और कोई भी कानून इसके प्रावधानों को रद्द नहीं कर सकता है।
  • लोकतांत्रिक गणराज्य (Democratic Republic): भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है। इन मूलभूत विशेषताओं को बदला नहीं जा सकता है।
  • धर्मनिरपेक्षता (Secularism): धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत धार्मिक तटस्थता और धर्म की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।
  • संघवाद (Federalism): केंद्र सरकार और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन संविधान की एक मुख्य विशेषता है।
  • शक्तियों का पृथक्करण (Separation of Powers): विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत जाँच तथा संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
  • मौलिक अधिकार (Fundamental Rights): संविधान के भाग III में निहित मौलिक अधिकारों को अनुल्लंघनीय माना जाता है।
  • कानून का शासन (Rule of Law): कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि हर कोई कानून के अधीन है, जिसमें सत्ता में बैठे लोग भी शामिल हैं।
  • न्यायिक समीक्षा (Judicial Review): कानूनों की संवैधानिकता की समीक्षा करने की न्यायपालिका की शक्ति मनमानी शक्ति के खिलाफ एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा है।

संदर्भ

डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के साथ भारत, इस घटनाक्रम पर करीब से नजर रख रहा है, क्योंकि अमेरिका के साथ मजबूत संबंध उसके व्यापार, सुरक्षा और भू-राजनीतिक हितों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

संबंधित तथ्य

  • डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक 270 इलेक्टोरल कॉलेज वोटों से अधिक वोट जीते हैं।
  • वर्ष 2024 का चुनाव, 2016 में पहली बार संयुक्त राज्य अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के बाद उनका दूसरा सफल राष्ट्रपति पद का चुनाव है।
  • 78 वर्षीय ट्रंप अनिरंतर कार्यकाल पूर्ण करने वाले केवल दूसरे अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में इतिहास रचेंगे, वे ग्रोवर क्लीवलैंड के साथ शामिल होंगे, जिन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के 22वें और 24वें राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया था।

ट्रंपोनॉमिक्स (Trumponomics) के बारे में

  • परिभाषा: ‘ट्रंपोनॉमिक्स’ शब्द का प्रयोग अक्सर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अपनाई गईं आर्थिक नीतियों का वर्णन करने के लिए किया जाता है।
  • ट्रंपोनॉमिक्स के प्रमुख सिद्धांत: आर्थिक संरक्षणवाद, व्यापार घाटे में कमी, श्रमिक संरक्षण, कर कटौती, व्यवसायों पर विनियमन हटाना, आर्थिक विकास को गति देना आदि।

पृष्ठभूमि: ट्रंप के पहले कार्यकाल के मुख्य पहलू (2017–2021)

  • वीजा संबंधी मुद्दे: अपने पहले कार्यकाल के दौरान, ट्रंप ने ‘अमेरिकी खरीदें और अमेरिकी को कार्य पर रखें’ शीर्षक वाले अपने कार्यकारी आदेश के तहत H-1B और L-1 वीजा कार्यक्रमों पर कड़े नियम लागू किए थे।
    • H-1B और L-1 वीजा दोनों के लिए अस्वीकृति दर में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
    • H-1B अस्वीकृति दर 4% से बढ़कर 17% हो गई, तथा L-1 अस्वीकृति दर 12% से बढ़कर 28% हो गई। 
    • इसका प्रभाव भारत की आईटी सेवा कंपनियों पर पड़ा, जो उस समय विशेष रूप से इन वीजा पर निर्भर थीं।
      • H-1B वीजा: यह विधेयक अमेरिकी नियोक्ताओं को ‘विशिष्ट व्यवसायों’ में विदेशी पेशेवरों को नियुक्त करने की अनुमति देता है, जिनके लिए विशिष्ट ज्ञान और कम-से-कम स्नातक की डिग्री या समकक्ष अनुभव की आवश्यकता होती है।
      • L-1 वीजा: यह वीजा अंतर-कंपनी स्थानांतरण के लिए है, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने विदेशी कार्यालयों से कर्मचारियों को अमेरिकी कार्यालयों में स्थानांतरित करने की अनुमति देता है।
  • अंतरराष्ट्रीय समझौतों से पीछे हटना और वित्तपोषण में कमी
    • पेरिस जलवायु समझौता: ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को यह तर्क देते हुए हटा लिया कि यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए अनुचित है।

ट्रंप प्रशासन की प्रथम अवधि की उपलब्धियाँ

  • अब्राहम समझौते (Abraham Accords): ट्रंप ने अब्राहम समझौते की मध्यस्थता की, जिसके परिणामस्वरूप इजरायल और कई अरब देशों (यूएई, बहरीन, सूडान और मोरक्को) के बीच संबंध सामान्य हो गए।
  • ऑपरेशन वार्प सीड (Operation Warp Seed) शुरू किया गया: यह संयुक्त राज्य अमेरिका सरकार द्वारा कोविड-19 टीकों, चिकित्सा और निदान के विकास, विनिर्माण तथा वितरण को सुविधाजनक बनाने एवं तेज करने के लिए शुरू की गई एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी थी।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा समझौता (USMCA): उत्तरी अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौते (North American Free Trade Agreement- NAFTA) को समाप्त कर दिया गया, तथा इसके स्थान पर एकदम नया संयुक्त राज्य अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा समझौता (United States-Mexico-Canada Agreement- USMCA) लागू किया गया।
    • USMCA में अमेरिकी निर्माताओं, ऑटो निर्माताओं, किसानों, डेयरी उत्पादकों और श्रमिकों के लिए कड़े संरक्षण प्रावधान हैं।
  • तेल की कीमतों को स्थिर करना: कोविड-19 के दौरान OPEC (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) तेल संकट का समाधान किया गया, जिसके लिए ओपेक (OPEC), रूस और अन्य देशों से प्रतिदिन लगभग 10 मिलियन बैरल उत्पादन में कटौती करने को कहा गया, जिससे वैश्विक तेल की कीमतें स्थिर हो गईं।

    • ईरान परमाणु समझौता: अमेरिका ने ईरान के साथ वर्ष 2015 के परमाणु समझौते को रद्द कर दिया तथा पुनः प्रतिबंध लगा दिए, जिससे मध्य पूर्व में तनाव बढ़ गया।
    • ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP): ट्रंप ने TPP में शामिल होने से मना कर दिया, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ एक व्यापार समझौता था, जिसके बारे में उनका तर्क था कि यह अमेरिका के लिए हानिकारक था।
    • उन्होंने कई संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की फंडिंग बंद कर दी तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिका हट गया।
  • आर्थिक संरक्षणवाद और व्यापार युद्ध: ट्रंप ने अमेरिकी उद्योगों और नौकरियों को मजबूत करने पर केंद्रित ‘अमेरिका फर्स्ट’ व्यापार नीति एजेंडा अपनाया।
    • अमेरिका ने चीन, यूरोपीय संघ और अन्य देशों पर टैरिफ लगाया।
    • इसका लक्ष्य अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना और अमेरिकी नौकरियों की रक्षा करना था, हालाँकि इससे तनाव एवं व्यापार युद्ध शुरू हुए।
    • अमेरिकी नौकरियों और वेतन की रक्षा के लिए निष्पक्ष व्यापार, सीमित आव्रजन तथा रोजगार संबंधी प्रशिक्षण पर जोर दिया गया।
  • कर कटौती: ट्रंप की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक वर्ष 2017 का टैक्स कट्स एंड जॉब्स एक्ट था, जिसने कॉरपोरेट टैक्स की दरों को 35% से घटाकर 21% कर दिया और व्यक्तियों को कर में कटौती प्रदान की।
    • वर्ष 2024 के राष्ट्रपति अभियान के दौरान, ट्रंप ने अमेरिका-आधारित विनिर्माण के लिए कॉरपोरेट कर की दर में अतिरिक्त कटौती का प्रस्ताव रखा, जिसका लक्ष्य इसे 21% से घटाकर 15% करना था।
  • आप्रवासन: उनके प्रशासन ने अवैध आव्रजन पर भी कड़ा रुख अपनाया, जिसमें शामिल है:-
    • सीमा पर परिवारों को अलग करना।
    • DACA (डेफर्ड एक्शन फॉर चाइल्डहुड अराइवल्स) जैसे कार्यक्रमों को समाप्त करना, जो बच्चों के रूप में अमेरिका आए अनिर्दिष्ट आप्रवासियों की रक्षा करते थे।
    • अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर दीवार बनाने के लिए दबाव डाला।
  • भू-राजनीतिक रुख
    • पश्चिम एशिया 
      • इजरायली नीतियों ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान अपनी पश्चिम एशिया नीति को परिभाषित किया।
      • उन्होंने अमेरिका के दूतावास को यरुशलम में स्थानांतरित कर दिया।
      • उन्होंने सीरिया के गोलान हाइट्स पर इजरायल के अवैध कब्जे को भी मान्यता दी थी।
      • उन्होंने वर्ष 2020 में इजरायल-फिलिस्तीन के लिए एक ‘शांति योजना’ का अनावरण किया, लेकिन इसे इजरायल के पक्ष में होने के कारण पूरी तरह से खारिज कर दिया गया।
    • चीन: उन्होंने चीन के प्रति टकरावपूर्ण रुख अपनाया। 
      • उदाहरण: अमेरिका ने वर्ष 2018 में हुआवेई के 5G मोबाइल उपकरणों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
    • उत्तर कोरिया: उन्होंने उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग-उन के साथ अभूतपूर्व शिखर सम्मेलन में भाग लेने के कारण सुर्खियाँ बटोरीं, जिसका उद्देश्य परमाणु निरस्त्रीकरण करना था, हालाँकि इन प्रयासों से स्थायी परिणाम नहीं मिले।

संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव 

  • अप्रत्यक्ष चुनाव: अमेरिका में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से होता है। 
    • नागरिक सीधे राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के लिए नहीं, बल्कि निर्वाचक मंडल के सदस्यों के लिए वोट देते हैं।
  • इलेक्टोरल कॉलेज वोट: ये इलेक्टर फिर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए वोट डालते हैं।
  • बहुमत की आवश्यकता: विजेता घोषित होने के लिए उम्मीदवार को 538 इलेक्टोरल कॉलेज वोटों में से 270 जीतने की आवश्यकता होती है।
    • प्रत्येक राज्य को सीनेट और प्रतिनिधि सभा में उनके प्रतिनिधित्व के बराबर संख्या में निर्वाचक दिए गए।
    • यदि किसी भी उम्मीदवार को बहुमत नहीं मिलता है, तो प्रतिनिधि सभा राष्ट्रपति का चुनाव करती है और सीनेट उपराष्ट्रपति का चुनाव करती है।
  • अमेरिकी संविधान में 22वाँ संशोधन: फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट के चार कार्यकालों के बाद वर्ष 1951 में 22वें संशोधन की पुष्टि की गई।
    • इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति दो बार से अधिक राष्ट्रपति पद के लिए नहीं चुना जा सकता।
    • यह किसी ऐसे व्यक्ति को भी एक से अधिक बार निर्वाचित होने से रोकता है, जिसने किसी अन्य राष्ट्रपति के कार्यकाल के दो वर्ष से अधिक समय तक सेवा की हो।
  • यद्यपि ट्रंप वर्ष 2025 में दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जा रहे हैं, लेकिन 22वाँ संशोधन उन्हें वर्ष 2028 में फिर से चुनाव लड़ने से रोकता है।
    • तकनीकी रूप से, संशोधन को निरस्त या संशोधित किया जा सकता है।
      • प्रस्तावित संशोधन को अमेरिकी सदन और सीनेट दोनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए।
      • इसके बाद इसे 50 राज्यों में से तीन-चौथाई (38) राज्यों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
    • इस प्रक्रिया की जटिलता और कठिनाई को देखते हुए, निकट भविष्य में संशोधन में बदलाव की संभावना नहीं है।

वर्तमान भारत और अमेरिका संबंध

  • अमेरिका के साथ भारत का व्यापार अधिशेष: भारत अमेरिका के शीर्ष पाँच व्यापारिक साझेदारों में एकमात्र ऐसा देश है, जिसके साथ अमेरिका का व्यापार अधिशेष है, जो 36.74 बिलियन डॉलर है।
    • अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसका व्यापार 118.3 बिलियन डॉलर है।
  • सीमित अमेरिकी निर्यात हिस्सा: भारत के शीर्ष 10 व्यापारिक साझेदारों में से एक होने के बावजूद, अमेरिका का भारत के कुल निर्यात में 3% से भी कम हिस्सा है।
  • FDI का प्रमुख स्रोत: अमेरिका भारत के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है, जिसने पिछले वित्त वर्ष में 103 बिलियन डॉलर का योगदान दिया।

डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों के सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण

  • रक्षा एवं सामरिक संबंध
    • अमेरिका और भारत के लिए चीन की चुनौती: ट्रंप का प्रशासन चीन को ‘रणनीतिक खतरे’ के रूप में लेबल करने वाला पहला प्रशासन था, जिसने बीजिंग के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए गठबंधन को प्रोत्साहित किया, जिसमें वर्ष 2017 में क्वाड (Quad) का गठन भी शामिल था।
      • भारत, जो चीन के साथ लगभग 3,488 किलोमीटर लंबी विवादित सीमा साझा करता है, इस रुख पर बारीकी से नजर रखता है।
    • अमेरिकी सैन्य हार्डवेयर का विस्तार: ट्रंप प्रशासन भारत को और अधिक अमेरिकी सैन्य हार्डवेयर उपलब्ध कराएगा, जिससे दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
    • खालिस्तानी समूहों पर समर्थन: ट्रंप खालिस्तानी समूहों के खिलाफ कड़ा रुख अपना सकते हैं, जिससे संभावित रूप से ऐसे संगठनों पर कार्रवाई हो सकती है।
  • व्यापार और आर्थिक संबंध
    • व्यापार संबंधों को मजबूत करना: ट्रंप से भारत के साथ अपने सकारात्मक संबंधों को आगे बढ़ाने, व्यापार संबंधों को बढ़ाने और भारतीय कंपनियों के लिए अवसरों को बढ़ाने की उम्मीद है, विशेषकर प्रौद्योगिकी और रक्षा क्षेत्र में।
      • उदाहरण: इस बात की संभावना है कि भारत अमेरिकी बाजार में चीनी आयात का स्थान ले लेगा, क्योंकि वर्ष 2024 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने चीन से आयातित वस्तुओं पर 60% टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखा था।
    • मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर नवीनीकृत वार्ता: ट्रंप, एक मुक्त व्यापार समझौते पर वार्ता शुरू करने की योजना बना रहे हैं, जो वर्ष 2019-2020 में सक्रिय थी, लेकिन उनके राष्ट्रपति पद की समाप्ति के बाद रुक गई और जिसे आगे बढ़ाने में बाइडेन ने बहुत कम रुचि दिखाई।
    • ऊर्जा सहयोग: कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए भारत पर दबाव डालने के बजाय, ट्रंप भारत को अमेरिकी तेल और LNG में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।
      • इसमें लुइसियाना में ड्रिफ्टवुड एलएनजी संयंत्र के लिए समझौता ज्ञापन (MOU) पर पुनर्विचार करना शामिल है, जिससे भारत से महत्त्वपूर्ण निवेश आ सकता है।
  • भारत में FPI निवेश में सुधार: चीन के विरुद्ध रणनीतिक अमेरिकी साझेदार के रूप में भारत की स्थिति विदेशी निवेशकों के लिए उसकी सुगमता को बढ़ा सकती है।
    • कुछ विश्लेषकों के अनुसार, भारत की अनुकूल जनसांख्यिकी और संरचनात्मक स्थिरता इसे चीन की धीमी वृद्धि और आर्थिक चुनौतियों की तुलना में एक सुरक्षित निवेश गंतव्य के रूप में पेश करती है।
  • मानवाधिकार और कूटनीति
    • मानवाधिकारों पर कम जाँच: ट्रंप भारत में मानवाधिकार रिकॉर्ड के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करते रहे हैं।
      • उदाहरण: जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को हटाए जाने या पुलवामा आतंकी हमलों के बाद, ट्रंप ने भारत के ‘आत्मरक्षा के अधिकार’ का समर्थन किया था। 
    • NGO और विदेशी योगदान पर कम चिंता: अमेरिका संभवतः विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 से प्रभावित जलवायु और मानवाधिकार NGO के उपचार के संबंध में चिंता नहीं जताएगा, हालाँकि रिपब्लिकन कांग्रेस के सदस्य भारत में संचालित अमेरिकी ईसाई NGO के बारे में पूछताछ कर सकते हैं।
    • कनाडा के साथ कोई कूटनीतिक चिंता नहीं: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के साथ ट्रंप के पिछले तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए, भारत को ओटावा के साथ चल रहे तनाव, विशेष रूप से निज्जर हत्याकांड के संबंध में वाशिंगटन से किसी भी कूटनीतिक दबाव का सामना नहीं करना पड़ेगा।
      • कनाडा का आरोप: कनाडा ने संसद में घोषणा की कि जून में ब्रिटिश कोलंबिया में सिख अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भारत की संलिप्तता के ‘विश्वसनीय आरोप’ हैं।
      • भारत की प्रतिक्रिया: भारत ने इन आरोपों को ‘बेतुका’ बताकर खारिज कर दिया और कनाडा से अपनी सीमाओं के भीतर भारत विरोधी गतिविधियों, विशेष रूप से खालिस्तान समर्थक समूहों को निशाना बनाने पर रोक लगाने का आग्रह किया।
  • अन्य
    • ट्रंप का ग्रीन कार्ड प्रस्ताव: अमेरिकी कॉलेजों के विदेशी स्नातकों को स्वचालित ग्रीन कार्ड प्रदान करने की ट्रंप की योजना भारतीय छात्रों के लिए नए अवसर उत्पन्न कर सकती है, जिससे अमेरिका में रहना और कार्य करना आसान हो जाएगा।
    • फार्मास्यूटिकल्स: भारतीय जेनेरिक फर्मों के लिए मूल्य निर्धारण में सुधार हो सकता है।
      • विनियमन हटाने से अमेरिकी बाजार में भारतीय जेनेरिक दवाओं की पहुँच बढ़ सकती है।
    • स्टॉक और बिटकॉइन: ट्रंप की जीत का दुनिया भर के निवेशकों ने उत्साहपूर्वक स्वागत किया।
      • S&P 500 में 2.5% से अधिक की वृद्धि हुई, जो दो वर्षों में इसकी सबसे बड़ी इंट्राडे बढ़त है। इस आशावादी गति ने भारतीय बाजारों को भी ऊपर उठाया, जिसमें निफ्टी 50 और सेंसेक्स में 1% से अधिक की वृद्धि हुई। 
      • बिटकॉइन 75,000 डॉलर से अधिक के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया, क्योंकि क्रिप्टो निवेशकों ने ट्रंप की वापसी का जश्न मनाया, जिन्होंने पहले अमेरिका को ‘दुनिया की बिटकॉइन महाशक्ति’ बनाने का संकल्प लिया था।

ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों के लिए संभावित चुनौतीपूर्ण मुद्दे

  • व्यापार शुल्क कम करने पर ध्यान केंद्रित करना: ट्रंप 2.0 प्रशासन से ‘अमेरिका-प्रथम रणनीति’ पर जोर देने की उम्मीद है, जिसके तहत उन देशों को दंडित किया जाएगा, जो अमेरिकी उत्पादों एवं सेवाओं पर उच्च कर लगाते हैं।
    • भारत के लिए, टैरिफ में वृद्धि आईटी, फार्मास्यूटिकल्स और टेक्सटाइल जैसे उद्योगों के लिए चुनौती बन सकती है, जो अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं।
    • ट्रंप भारत द्वारा अमेरिकी उत्पादों पर उच्च टैरिफ के विरुद्ध काफी मुखर रहे हैं।
    • उदाहरण
      • अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने खुले तौर पर भारत से हार्ले डेविडसन बाइक पर टैरिफ कम करने को कहा था।
      • उन्होंने भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने के लिए कहा था।
  • विश्व व्यापार संगठन (WTO) शिकायतें: ट्रंप प्रशासन की WTO में शिकायत दर्ज कराने की प्रवृत्ति, यदि भारत की व्यापार नीतियों या प्रथाओं को उनके प्रशासन के तहत निशाना बनाया जाता है, तो तनाव उत्पन्न कर सकती है।
    • ट्रंप ने इससे पहले भारत पर व्यापार संबंधों में ‘बड़ा उल्लंघनकर्ता’ (Major Abuser) होने का आरोप लगाया था तथा टैरिफ और व्यापार असंतुलन पर प्रकाश डाला था।
  • GSP दर्जा रद्द करना: ट्रंप प्रशासन के पहले कार्यकाल के दौरान, भारत ने सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (Generalised System of Preferences- GSP) के तहत अपना तरजीही व्यापार दर्जा खो दिया, जिससे उसके लगभग 12% निर्यात पर असर पड़ा है।
    • यह विवाद का विषय बना रह सकता है, जिससे अमेरिकी बाजारों तक भारत की तरजीही पहुँच प्रभावित हो सकती है।

सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (Generalised System of Preferences- GSP) 

  • यह विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को दी जाने वाली एक तरजीही व्यापार व्यवस्था है। 
  • वर्ष 2019 में, अमेरिकी सरकार ने भारत को 50 से अधिक वस्तुओं पर 70 मिलियन डॉलर मूल्य के अपने GSP (सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली) लाभ वापस ले लिए हैं, जो ज्यादातर हथकरघा और कृषि क्षेत्रों से हैं।

  • आव्रजन (Immigration): ट्रंप 2.0 प्रशासन संभवतः अवैध आव्रजन के खिलाफ सख्त कदम उठाएगा, जिससे अवैध भारतीय प्रवासियों की वापसी प्रभावित होगी।
    • भारत ने कहा है कि वह अवैध आव्रजन का समर्थन नहीं करता है।
    • हालाँकि, अगर कई भारतीय नागरिक वापस लौटते हैं तो सामूहिक निर्वासन भारत के लिए चुनौती बन सकता है।
  • भू-राजनीतिक सहायता (Geopolitical Help): भारत, गाजा तथा लेबनान में इजरायल के युद्ध को समाप्त करने तथा खाड़ी देशों के साथ वार्ता को पुनः प्रारंभ करने में अमेरिकी हस्तक्षेप की भी माँग करेगा, ताकि भारत को ‘मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारे’ के लिए अपनी योजनाओं को पुनर्जीवित करने में मदद मिल सके।

संभावित आर्थिक निहितार्थ (Potential Economic Implications)

  • अमेरिका में उच्च मुद्रास्फीति
  • टैरिफ में वृद्धि और व्यापार युद्ध से संभवतः अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ेगी, जिससे उपभोक्ताओं के लिए वस्तुएँ अधिक महंगी हो जाएँगी।
  • अमेरिकी डॉलर कमजोर हो सकता है।
  • उच्च मुद्रास्फीति और बढ़ते सरकारी ऋण के कारण निवेशकों का अमेरिका में भरोसा कम हो सकता है। इससे निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं:
    • विदेशी निवेशक अमेरिकी ट्रेजरी बॉण्ड में अपने निरंतर निवेश पर सवाल उठा रहे है।
    • जिससे अमेरिकी डॉलर कमजोर हो रहा है।
    • अमेरिकी केंद्रीय बैंक (फेड) उम्मीद से पहले ही ब्याज दरों में कटौती बंद कर सकता है।
  • बाजार में अस्थिरता में वृद्धि
  • कमजोर डॉलर तथा उच्च मुद्रास्फीति के कारण वैश्विक वित्तीय बाजारों में अधिक अस्थिरता हो सकती है।
  • भारत के RBI के लिए कठिन निर्णय
  • यदि वैश्विक वित्तीय अस्थिरता बहुत अधिक है, तो भारत के केंद्रीय बैंक को ब्याज दरों में कटौती करना कठिन लग सकता है।
  • भारत में अमेरिकी फेड की कार्रवाइयों की तुलना में दरों में कटौती का चक्र धीमा हो सकता है।
  • नतीजतन, भारत जैसे देशों को आभासी सोने के निवेश पर निर्भर रहने के बजाय भौतिक स्वर्ण खरीदना शुरू करना होगा (वर्ष 2022 में स्थिति के समान जब दुनिया ने रूसी विदेशी संपत्तियों को फ्रीज कर दिया था)।

संभावित भू-राजनीतिक निहितार्थ

  • मध्य पूर्व संघर्षों में इजरायल के प्रति समर्थन: ट्रंप ने इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के प्रति मजबूत समर्थन दिखाया है, विशेष रूप से चल रहे इजरायल-गाजा संघर्ष में।
    • उन्होंने निजी तौर पर हमास और हिजबुल्लाह के खिलाफ इजरायल की आक्रामक कार्रवाइयों का समर्थन किया है और इस क्षेत्र में इजरायल की नीतियों के अधिक विस्तार को प्रोत्साहित कर सकते है।
    • लेकिन वे पश्चिम एशिया में युद्ध का विस्तार नहीं चाहते हैं क्योंकि:
      • ईरान के साथ बड़ा युद्ध होर्मुज जलडमरूमध्य के माध्यम से ऊर्जा आपूर्ति को प्रभावित कर सकता है, जो फारस की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है।
      • इससे मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है।
      • राजनीतिक, रणनीतिक तथा आर्थिक कारणों से व्यापक युद्ध ट्रंप प्रशासन के हित में नहीं है।
  • चीन: ट्रंप ने चीनी आयात पर टैरिफ को 60% तक बढ़ाने की धमकी दी है, जिससे एक बड़ा व्यापार युद्ध छिड़ सकता है।
    • विश्लेषकों के अनुसार, इससे पहले वर्ष चीन की आर्थिक वृद्धि में 2% से अधिक की कमी आ सकती है।
    • इसका मुकाबला करने के लिए, चीन अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अगले कुछ वर्षों में संभवतः अपने सकल घरेलू उत्पाद के 2-3% के बराबर एक बड़ा राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज पेश कर सकता है।
  • पाकिस्तान: अपने पिछले कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने पाकिस्तान को दी जाने वाली अधिकांश अमेरिकी सहायता रद्द कर दी थी।
    • पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) तथा विश्व बैंक से ऋण के मामले में अमेरिकी समर्थन न मिलने की भी चिंता है।
  • नेपाल, भूटान और मालदीव: बाइडेन सरकार ने इन देशों तक अपनी पहुँच बढ़ाई थी।
  • बांग्लादेश: ट्रंप ने बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर टिप्पणी की थी।
  • आव्रजन नीतियों पर चिंता: ट्रंप आक्रामक आव्रजन नीतियों की योजना बना रहे हैं, जिसमें लाखों आप्रवासियों को निर्वासित करना भी शामिल है।
    • उन्होंने मेक्सिको पर टैरिफ लगाने की धमकी भी दी है, जब तक कि देश प्रवासन को रोकने के लिए और अधिक कदम नहीं उठाता।
    • इससे अमेरिका-मेक्सिको संबंधों में तनाव आ सकता है तथा व्यापार एवं प्रवासन के परस्पर संबंध के कारण दोनों अर्थव्यवस्थाओं पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है।
  • जलवायु और बहुपक्षीय समझौते: जलवायु परिवर्तन पर वर्ष 2015 के पेरिस समझौते का भविष्य, जिसमें अमेरिका,  राष्ट्रपति जो बाइडेन के नेतृत्व में फिर से शामिल हुआ था, खतरे में आ जाएगा।
    • जलवायु परिवर्तन के बारे में ट्रंप का संदेह पर्यावरणीय मुद्दों पर वैश्विक सहयोग में बाधा उत्पन्न कर सकता है।

आगे की राह

  • इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक संरेखण: ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में, क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) पहल पर और अधिक जोर देने से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में एक प्रमुख हितधारक के रूप में भारत की भूमिका मजबूत हो सकती है।
    • सैन्य सहयोग बढ़ाकर, अमेरिका तथा भारत संयुक्त रूप से चीन की आक्रामक नीतियों का समाधान कर सकते हैं तथा स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित कर सकते हैं।
  • आतंकवाद विरोध करना: यह भारत और अमेरिका के लिए साझा हित का क्षेत्र रहा है।
    • ट्रंप के पहले प्रशासन के दौरान, उनका ‘शक्ति के माध्यम से शांति’ सिद्धांत भारत की सुरक्षा प्राथमिकताओं, विशेष रूप से पाकिस्तान के संबंध में, के साथ अच्छी तरह से मेल खाता था।
    • भारत तथा अमेरिका की साझेदारी आतंकवादी खतरों का मुकाबला करने और उग्रवाद से निपटने के लिए संयुक्त प्रयासों को मजबूत कर सकती है।
  • लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करना: अमेरिका में भारतीय प्रवासियों और पेशेवरों को समर्थन देने के लिए वीजा और आव्रजन सुधारों को सुगम बनाना, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भारतीय प्रतिभाओं के योगदान पर जोर देना।
  • रक्षा खरीद और संयुक्त उद्यम: अमेरिका से रक्षा खरीद में तेजी लाना तथा भारत की मेक इन इंडिया पहल के तहत संयुक्त उत्पादन उद्यमों की संभावना तलाशना।
  • व्यापार पैकेज पर बातचीत: अमेरिका के हित के क्षेत्रों, जैसे फार्मास्यूटिकल्स और कृषि, में रियायतें देकर व्यापार विवादों को हल करने की दिशा में कार्य करना, साथ ही भारतीय निर्यात पर शुल्क में कटौती की माँग करना।

निष्कर्ष

भारत तथा अमेरिका में तेजी से जटिल होते वैश्विक परिदृश्य में पारस्परिक आर्थिक विकास, सुरक्षा और रणनीतिक हितों के आधार पर द्विपक्षीय संबंधों को पुनः परिभाषित करने की क्षमता है।

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