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Nov 09 2024

Title Subject Paper
राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक नीति Polity and governance ​, GS Paper 2,
5G ग्रामीण कनेक्टिविटी के लिए मिलीमीटर वेव ट्रांसीवर Science and Technology, GS Paper 3,
RBI द्वारा अपने स्वर्ण की इंग्लैंड से वापसी economy, GS Paper 3,
भारतीय खाद्य निगम में इक्विटी निवेश economy, GS Paper 3,
ग्लेशियरों के सिकुड़ने से हिमनद झीलों का विस्तार होता है Environment and Ecology, GS Paper 3,
सी वी रमन (C . V Raman) indian history, GS Paper 1,
समाचारों में स्थान: जांबिया (Zambia) Geography, GS Paper 1,
बंगलूरू की पहली ‘डिजिटल पापुलेशन क्लॉक’ Science and Technology, GS Paper 3,
उच्चतम न्यायालय ने जेट एयरवेज के परिसमापन का निर्देश दिया economy, GS Paper 3,
उच्चतम न्यायालय के आदेश से NCRB डेटा संग्रह में बाधा नहीं आएगी Polity and governance ​, GS Paper 2,
ओजेंपिक ड्रग Science and Technology, GS Paper 3,

संदर्भ

भारत सरकार राष्ट्रीय आतंकवाद-रोधी नीति लाने की योजना बना रही है, जिसमें आतंकवाद से निपटने और इसके पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों पर जोर दिया जाएगा।

आतंकवाद विरोधी सम्मेलन 2024 (Anti-Terror Conference 2024)

  • आतंकवाद विरोधी सम्मेलन 2024 का आयोजन राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) द्वारा नई दिल्ली में किया गया था।
  • यह सम्मेलन परिचालन बलों, तकनीकी विशेषज्ञों और एजेंसियों के लिए आतंकवाद विरोधी चुनौतियों तथा राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों पर चर्चा करने के लिए एक बैठक मंच के रूप में कार्य करता है।
  • मुख्य फोकस क्षेत्रों में हितधारकों के बीच समन्वय को बढ़ावा देना और ‘सरकार के समग्र दृष्टिकोण’ के तहत भविष्य की नीति विकास के लिए इनपुट प्रदान करना शामिल है।

संबंधित तथ्य 

  • भारत में आतंकवाद से संबंधित घटनाएँ: राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) द्वारा आयोजित आतंकवाद विरोधी सम्मेलन-2024 में केंद्रीय गृह मंत्री ने पिछले 10 वर्षों में भारत में आतंकवाद से संबंधित घटनाओं मे 70% की कमी पर प्रकाश डाला है।
  • राज्य-केंद्रीय सहयोग से हिंसा में उल्लेखनीय कमी: राज्य तथा केंद्र सरकारों के संयुक्त प्रयासों से पिछले 10 वर्षों में जम्मू-कश्मीर, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों और पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा पर काफी हद तक नियंत्रण पाया गया है।
  • आतंकवाद के मामलों में NIA द्वारा UAPA का प्रभावी उपयोग: केंद्रीय गृह मंत्री ने आतंकवाद के मामलों में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) द्वारा गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम [UAPA] के सफल प्रयोग पर प्रकाश डाला।
    • पंजीकृत 632 मामलों में से 498 में आरोप पत्र दाखिल किए गए, जिससे लगभग 95% दोषसिद्धि दर प्राप्त हुई।
  • राज्य पुलिस से UAPA लागू करने का आह्वान: उन्होंने राज्य पुलिस बलों के अधिकारियों से आतंकवाद विरोधी प्रयासों को मजबूत करने के लिए जहाँ भी लागू हो UAPA का उपयोग करने का आग्रह किया।

अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन (Comprehensive Convention on International Terrorism- CCIT)

  • वर्ष 1996 में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय (CCIT) को अपनाने का प्रस्ताव रखा।
  • यह एक प्रस्तावित संधि है, जिसका उद्देश्य सभी प्रकार के अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को अपराध घोषित करना तथा आतंकवादियों, उनके वित्तपोषकों और समर्थकों को धन, हथियार और सुरक्षित आश्रय तक पहुँच से वंचित करना है।
  • इसे अभी तक UNGA द्वारा अपनाया जाना बाकी है।

ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स (GTI) 2024

  • ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स (GTI) ‘इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस’ (IEP) द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित एक रिपोर्ट है।
  • भारत की रैंक: GTI वर्ष 2024 रिपोर्ट मे भारत 14वें स्थान पर है, जो पिछले वर्ष से एक स्थान नीचे है।
    • भारत आतंकवाद से संबंधित मौतों में सबसे अधिक कमी वाले शीर्ष दस देशों मे शामिल है।

आतंकवाद के बारे में 

  • आतंकवाद की परिभाषा: आतंकवाद की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत कानूनी परिभाषा नहीं है।
  • अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन (CCIT) की परिभाषा: आतंकवाद में निम्नलिखित कार्य शामिल हैं:-
    • मृत्यु या गंभीर चोट का कारण बनना।
    • सार्वजनिक अवसंरचना सहित संपत्ति को महत्त्वपूर्ण क्षति पहुँचाना।
    • आबादी को डराने या सरकारों अथवा अंतरराष्ट्रीय संगठनों को मजबूर करने का इरादा रखना।
  • UAPA की परिभाषा: गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) (UAPA) अधिनियम एक भारतीय कानून है, जिसका उद्देश्य भारत मे गैर-कानूनी गतिविधियों के संगठनों की रोकथाम करना है।
    • गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत, आतंकवादी कृत्य वह है जो:
    • भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा या आर्थिक स्थिरता को खतरा है। घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों या विशिष्ट वर्गों में भय पैदा करता है।
  • भारत में आतंकवाद के उदय मे योगदान देने वाले कारक
    • सांप्रदायिक राजनीति: राजनेता अक्सर चुनावी लाभ के लिए धार्मिक तथा जातीय विभाजन का लाभ उठाते है, जिससे समुदायों के बीच अविश्वास तथा शत्रुता का वातावरण बनता है, जिससे हिंसा एवं कट्टरता फैल सकती है।
    • चरमपंथी आंदोलन: विचारधारा से प्रेरित चरमपंथी समूह, जो अक्सर धार्मिक या राजनीतिक एजेंडे से प्रेरित होते हैं, अपने लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए हिंसा का इस्तेमाल करते है।
    • मानवाधिकारों का हनन: राज्य द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग और भेदभाव जैसे मानवाधिकारों का उल्लंघन आक्रोश को बढ़ाता है और ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न करता है, जो आतंकवाद को बढ़ावा देती हैं।
    • युवा बेरोजगारी में वृद्धि: आर्थिक अस्थिरता से चिह्नित उच्च युवा बेरोजगारी, आतंकवादी भर्ती के लिए संवेदनशीलता को बढ़ाती है, जो उद्देश्य और वित्तीय लाभ की भावना प्रदान करती है।

आतंकवाद के प्रकार

  • घरेलू आतंकवाद: किसी देश के भीतर व्यक्तियों या समूहों द्वारा अपनी ही सरकार या नागरिकों को निशाना बनाकर अपराध किया जाता है।
  • अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद: इसमें विभिन्न देशों के लोग शामिल होते हैं, जो अक्सर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सीमाओं को पार करते हैं।
  • राज्य प्रायोजित आतंकवाद: जब सरकारें राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आतंकवाद का समर्थन करती है।
  • वामपंथी आतंकवाद: यह उन समूहों द्वारा की जाने वाली हिंसक गतिविधियों को संदर्भित करता है, जो आमतौर पर वामपंथी विचारधाराओं की वकालत करते हैं, जो अक्सर सामाजिक न्याय, पूँजीवाद-विरोधी, साम्राज्यवाद-विरोधी और धन के पुनर्वितरण जैसे मुद्दों पर केंद्रित होते है।
  • धार्मिक आतंकवाद: धार्मिक मान्यताओं से प्रेरित, जिसका लक्ष्य विशिष्ट विचारधाराओं को थोपना या असहमत लोगों को दंडित करना है।
  • नृजातीय-राष्ट्रवादी आतंकवाद: स्वतंत्रता या स्वायत्तता चाहने वाले नृजातीय या राष्ट्रवादी समूहों द्वारा संचालित। 
    • उदाहरण: श्रीलंका में तमिल टाइगर्स (LTTE)।
  • साइबर आतंकवाद: इसमें बुनियादी ढाँचे पर हमले शुरू करने या डर फैलाने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग शामिल है।
  • ‘लोन वुल्फ’ आतंकवाद (Lone Wolf Terrorism): ‘लोन वुल्फ’ आतंकवाद से तात्पर्य ऐसे आतंकवादी कृत्यों से है, जो आतंकवादी संगठनों से प्रत्यक्ष समर्थन या सहयोग के बिना, स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाले व्यक्तियों द्वारा किए जाते हैं।
    • ये व्यक्ति आमतौर पर आत्म-कट्टरपंथी होते है तथा व्यक्तिगत विचारधाराओं, शिकायतों या विश्वासों से प्रेरित होते हैं।

    • गरीबी और निरक्षरता: गरीबी तथा निरक्षरता के कारण असुरक्षित स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे व्यक्ति अपनी शिकायतों के समाधान के लिए चरमपंथी प्रचार तथा हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है।
  • अच्छे और बुरे आतंकवादियों पर भारत का रुख: वर्ष 2022 में नई दिल्ली में 90वीं इंटरपोल महासभा के समापन सत्र में भारत ने ‘अच्छा आतंकवाद, बुरा आतंकवाद’ एवं ‘आतंकवादी हमला यानी बड़ा या छोटा’ जैसी बातों को खारिज कर दिया।
  • ‘आतंकवाद’ बनाम ‘उग्रवाद’
    • आतंकवाद: इसमे सरकार, समाज या समूह को डराने या मजबूर करने के लिए हिंसा या धमकियों का प्रयोग शामिल होता है, जिसमें अक्सर भय उत्पन्न करने और राजनीतिक, धार्मिक या वैचारिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए नागरिकों को निशाना बनाया जाता है। उदाहरण: 9/11 हमले, मैड्रिड में बम विस्फोट, या विभिन्न देशों में अकेले किए गए हमले।
    • उग्रवाद: किसी स्थापित प्राधिकारी या सरकार के विरुद्ध विद्रोह या बगावत, जिसमें आमतौर पर सशस्त्र संघर्ष शामिल होता है और जिसका उद्देश्य सत्तारूढ़ शासन को अपदस्थ कर देना या चुनौती देना होता है। उदाहरण: भारत के मणिपुर में उग्रवाद का विस्तार।
  • आतंकवादी वित्तपोषण: इसका तात्पर्य आतंकवादी संगठनों या आतंकवादी गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों को वित्तीय संसाधन या सहायता प्रदान करने की प्रक्रिया से है। उदाहरण: अवैध दान, व्यापार आधारित मनी लॉण्ड्रिंग, ड्रग तस्करी, तस्करी आदि।
    • लेयरिंग तथा इंटीग्रेशन (Layering and Integration): लेयरिंग में फंड को कई खातों के माध्यम से स्थानांतरित करना शामिल है ताकि उनका स्रोत छिपाया जा सके, जबकि इंटीग्रेशन में अवैध फंड को वैध गतिविधियों, जैसे निवेश, के साथ मिलाया जाता है ताकि उनके स्रोत को वैध बनाया जा सके और छुपाया जा सके।

प्रमुख आतंकवादी घटनाएँ

  • संयुक्त राज्य अमेरिका पर 9/11 हमले (वर्ष 2001): अलकायदा ने 11 सितंबर 2001 को विश्व व्यापार केंद्र को निशाना बनाकर चार विमानों का अपहरण कर लिया था, जिसमें लगभग 3,000 लोग मारे गए थे।
    • इस हमले ने अमेरिका को आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक सैन्य अभियान, ‘आतंकवाद पर युद्ध’ शुरू करने के लिए प्रेरित किया।
  • 26/11 मुंबई हमला, भारत (वर्ष 2008): लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के आतंकवादियों ने मुंबई में कई स्थानों पर समन्वित हमले किए, जिनमें 166 लोग मारे गए और 300 से अधिक घायल हुए थे।
  • फ्राँस में नाइस ट्रक हमला (वर्ष 2016): बास्तील दिवस समारोह के दौरान, एक हमलावर द्वारा चलाया जा रहा ट्रक भीड़ में घुस गया, जिसमें 86 लोग मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे।
  • सैमुअल पैटी का सिर कलम करना (वर्ष 2020): अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कक्षा में चर्चा के दौरान पैगंबर मुहम्मद के कैरिकेचर दिखाने के लिए एक फ्राँसीसी स्कूल शिक्षक की हत्या कर दी गई।
    • फ्राँस में धर्मनिरपेक्षता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कट्टरपंथ विरोधी रणनीतियों पर राष्ट्रीय बहस छिड़ गई।

प्रमुख आतंकवादी संगठन

  • अल-कायदा (Al-Qaeda): 9/11 हमलों और कई वैश्विक हमलों के लिए जिम्मेदार। यह सुन्नी इस्लाम की चरमपंथी व्याख्या से प्रेरित है।
  • लश्कर-ए-तैयबा (LeT): पाकिस्तान में स्थित, 26/11 हमलों के लिए जिम्मेदार, जिसका लक्ष्य कश्मीर में एक इस्लामिक राज्य स्थापित करना है।
  • जैश-ए-मोहम्मद (JeM): यह पाकिस्तान में स्थित एक चरमपंथी समूह है।
  • हिज्ब-उत-तहरीर (HuT): HuT का लक्ष्य जिहाद और आतंकवादी गतिविधियों के माध्यम से लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों को उखाड़ फेंककर, भारत सहित विश्व स्तर पर इस्लामिक राज्य और खिलाफत स्थापित करना है।

राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधी नीति की मुख्य विशेषताएँ

  • आतंकवाद से निपटने के लिए एकीकृत रणनीति: नई नीति राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA), ‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’ (RAW) और राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO) जैसी एजेंसियों के बीच समन्वय को सुव्यवस्थित करने पर केंद्रित है।
    • इस ‘संपूर्ण सरकार’ दृष्टिकोण का उद्देश्य खुफिया जानकारी साझा करने में सुधार करना, त्वरित प्रतिक्रिया को सक्षम बनाना, समन्वित कार्रवाई सुनिश्चित करना तथा संचार अंतराल एवं कार्यान्वयन में देरी को न्यूनतम करना है।
  • उभरते खतरों पर ध्यान केंद्रित: साइबर आतंकवाद और गलत सूचना के बढ़ने के साथ, नीति में डिजिटल स्पेस से उभरने वाले खतरों का मुकाबला करने के प्रावधान शामिल है।
  • आदर्श आतंकवाद निरोधी दस्ता (ATS) और विशेष कार्य बल (STF) का प्रस्ताव: सरकार ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए आदर्श आतंकवाद निरोधी दस्ता (ATS) और विशेष कार्य बल (STF) का प्रस्ताव किया है।
    • आतंकवाद से निपटने के लिए मानकीकृत मंच: यदि इन इकाइयों को अपनाया जाता है, तो वे आतंकवाद से निपटने के लिए एक मानकीकृत संरचना और मंच के रूप में कार्य करेंगी।
    • राज्य अनुकूलन के लिए लचीले SOP:  ATS और STF मॉडल के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) राज्यों के साथ साझा की जाती है, जिससे उन्हें अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलन करने की अनुमति मिलती है।
    • राज्य के अधिकार बरकरार रखना:  ATS और STF  मॉडल को अपनाने से राज्यों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा और नए ढाँचे के भीतर उनकी स्वायत्तता को संरक्षित किया जा सकेगा।
  • राज्य-केंद्रीय सहयोग में वृद्धि: नई नीति का उद्देश्य आतंकवाद से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए राज्य तथा केंद्रीय एजेंसियों के बीच सहयोग को मजबूत करना है।

मल्टी एजेंसी सेंटर (MAC) 

  • मल्टी एजेंसी सेंटर का गठन दिसंबर 2001 में कारगिल घुसपैठ और उसके बाद कारगिल समीक्षा समिति की रिपोर्ट में सुझाए गए भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र में आमूलचूल परिवर्तन के बाद किया गया था।
  • यह खुफिया ब्यूरो के तहत एक आतंकवाद विरोधी ग्रिड है, जिसमें R&AW, सशस्त्र बल और राज्य पुलिस जैसे संगठन शामिल हैं।
  • यह 24 घंटे कार्य करता है, जिससे केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच वास्तविक समय की खुफिया जानकारी साझा करने और समन्वय की सुविधा मिलती है।

आतंकवाद से निपटने में भारत के समक्ष चुनौतियाँ

  • संगठित अपराध आतंकवाद के वित्तपोषण का एक प्रमुख तत्त्व है: संगठित अपराध आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • ये गिरोह हथियार और परिवहन जैसी रसद सहायता प्रदान करते हैं।
      • धन शोधन मे सहायता करना।
      • भर्ती में सहायता करना।
      • आतंकवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह उपलब्ध कराना।
    • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) तथा विश्व बैंक के अनुसार, अपराधी प्रत्येक वर्ष अनुमानतः दो से चार ट्रिलियन डॉलर तक की धनराशि लूट लेते हैं।
  • आतंकवादी संचार के लिए प्रौद्योगिकी का बढ़ता उपयोग 
    • एन्क्रिप्टेड ऐप्स, VPN आदि: भारत में आतंकवादी समूह पहचान से बचने के लिए एन्क्रिप्टेड ऐप्स, VPN तथा सुरक्षित डिजिटल टूल का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे खुफिया जानकारी जुटाने और आतंकवाद विरोधी प्रयासों में जटिलता आ रही है।
    • नार्को ड्रोन: हथियारों, ड्रग्स तथा अन्य अवैध सामानों की तस्करी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल सीमा पार से बढ़ रहा है।
  • आतंकी भर्ती में सोशल मीडिया का बढ़ता उपयोग: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्यक्तियों, विशेषकर युवाओं को आतंकवादी विचारधाराओं में शामिल करने, कट्टरपंथी बनाने, वैचारिक बदलाव करने और भर्ती करने के लिए एक प्रमुख उपकरण के रूप में कार्य करते हैं।
    • आतंकवादी समूह इन मंचों का उपयोग दुष्प्रचार फैलाने, कार्यकर्ताओं की भर्ती करने तथा हमलों का समन्वय करने के लिए करते हैं।
  • सीमा पार तस्करी: आतंकवादी समूह भारत भर में खुली सीमाओं का लाभ उठाकर हथियार, गोला-बारूद और ड्रग्स की तस्करी करते हैं तथा इन अवैध गतिविधियों का इस्तेमाल आतंकवाद को वित्तपोषित करने के लिए करते है।
  • आतंकवादी रणनीति का विकास: आतंकवाद के नए रूपों को अपनाना, जिसमे साइबर आतंकवाद, सोशल मीडिया के माध्यम से कट्टरपंथ तथा आतंकवादियों द्वारा उन्नत तकनीकों का उपयोग शामिल है।
  • सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी: मल्टी-एजेंसी सेंटर (MAC) जैसे तंत्रों के बावजूद, केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच वास्तविक समय की खुफिया जानकारी साझा करने और समन्वय की कमी प्रभावी आतंकवाद विरोधी प्रयासों में बाधा डालती है।

आतंकवाद के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय घोषणाएँ

  • ब्रासीलिया घोषणा: इसे वर्ष 2019 में ब्रासीलिया (ब्राजील) में आयोजित 11वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में अपनाया गया था।
    • इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि आतंकवाद को किसी धर्म, राष्ट्रीयता या सभ्यता से नहीं जोड़ा जाना चाहिए तथा इस बात पर बल दिया गया कि आतंकवादी कृत्य आपराधिक तथा अनुचित हैं, चाहे उनके पीछे का उद्देश्य कुछ भी हो।
  • दिल्ली घोषणा: वर्ष 2023 में अपनाए गए G20 शिखर सम्मेलन के दिल्ली घोषणा-पत्र में सभी रूपों में आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई।

भारत में आतंकवाद से निपटने के लिए उठाए गए कदम

  • आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टाॅलरेंस नीति’: सरकार आतंकवाद के प्रति ‘जीरो टाॅलरेंस’ की नीति अपनाती है, जो आतंकी गतिविधियों तथा उनके समर्थन नेटवर्क को पूरी तरह से समाप्त करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • NIA का गठन: यह भारत में केंद्रीय आतंकवाद निरोधी कानून प्रवर्तन एजेंसी के रूप में कार्य करती है।
    • स्थापना: इसकी स्थापना 26/11 मुंबई आतंकी हमलों के बाद राष्ट्रीय जाँच एजेंसी अधिनियम, 2008 के माध्यम से की गई थी।
    • NIA के अधिकार क्षेत्र में वृद्धि: NIA अधिनियम में संशोधन करके NIA के अधिकार क्षेत्र को बढ़ा दिया गया है और अब यह विदेशों में भी आतंकी मामलों की जाँच कर सकती है।
  • राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड (NATGRID) की स्थापना: यह आतंकवाद निरोध के लिए एक एकीकृत डेटाबेस है, जो भारत में 21 प्रमुख सुरक्षा एजेंसियों के डेटाबेस को जोड़ता है।
    • यह सुरक्षा एजेंसियों के लिए व्यापक खुफिया पैटर्न तक चौबीसों घंटे पहुँच को सक्षम बनाता है।
  • UAPA में संशोधन: UAPA में संशोधन करके, अब अधिकारियों के पास संपत्ति जब्त करने और संगठनों तथा व्यक्तियों को आतंकवादी घोषित करने की शक्ति है।
  • 25 सूत्री एकीकृत योजना की तैयारी: जिहादी आतंकवाद और वामपंथी उग्रवाद सहित आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए 25 सूत्री एकीकृत योजना तैयार की गई है।
  • मल्टी एजेंसी सेंटर (MAC) का दायरा बढ़ाया गया: खुफिया जानकारी जुटाने वाले तंत्र मल्टी एजेंसी सेंटर (MAC) का दायरा बढ़ाया गया।
    • SOP का निर्माण: साइबर सुरक्षा, नार्को-आतंकवाद और उभरते कट्टरपंथी हॉटस्पॉट जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को संबोधित करने के लिए MAC के तहत मानक संचालन प्रक्रियाएँ (SOP) विकसित की गईं।
    • अपराधों की रोकथाम: विस्तारित MAC ढाँचे ने संभावित खतरों को घटित होने से पहले संबोधित करके कई अपराधों को सफलतापूर्वक रोका है।
  • राष्ट्रीय स्तर का आतंकवाद डेटाबेस
    • राष्ट्रीय स्वचालित फिंगरप्रिंट पहचान प्रणाली (National Automated Fingerprint Identification System- NAFIS): आतंकवादी संदिग्धों की पहचान और ट्रैकिंग को बढ़ाने के लिए 90 लाख से अधिक फिंगरप्रिंट रिकॉर्ड रखती है।
    • आतंकवाद की एकीकृत निगरानी (Integrated Monitoring of Terrorism- IMT): इसमें 22,000 आतंकवादी मामलों का डेटा है, जो आतंकवाद से संबंधित गतिविधियों की निगरानी और विश्लेषण में सहायता करता है।
    • गिरफ्तार नार्को-अपराधियों पर राष्ट्रीय एकीकृत डेटाबेस: ड्रग्स और आतंकवाद के बीच साँठगाँठ का मुकाबला करने के लिए नार्को-आतंकवाद में शामिल 5 लाख से अधिक अपराधियों को ट्रैक करता है।
    • मानव तस्करी अपराधियों का राष्ट्रीय डेटाबेस: आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ी मानव तस्करी से निपटने के प्रयासों का समर्थन करते हुए, लगभग 1 लाख मानव तस्करों का डेटा रखता है।
  • अन्य
    • आतंकी फंडिंग और जाली मुद्रा (Terror Funding and Fake Currency- TFFC) सेल: आतंकी फंडिंग और जाली मुद्रा मामलों की केंद्रित जाँच करने के लिए राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) में एक सेल का गठन किया गया है।
    • समन्वय समूह: नकली नोटों के प्रचलन की समस्या से निपटने के लिए राज्यों/केंद्रों की सुरक्षा एजेंसियों के बीच खुफिया जानकारी/सूचना साझा करने के लिए गृह मंत्रालय द्वारा FICN समन्वय समूह (FCORD) का गठन किया गया है।

आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए अंतरराष्ट्रीय पहल

  • संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवाद विरोधी रणनीति: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 8 सितंबर, 2006 को सर्वसम्मति से संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवाद विरोधी रणनीति को अपनाया।
    • यह रणनीति आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को बढ़ाने के लिए एक अद्वितीय वैश्विक साधन है।
    • महासभा प्रत्येक दो वर्ष मे रणनीति की समीक्षा करती है, जिससे यह सदस्य देशों की आतंकवाद-रोधी प्राथमिकताओं के अनुरूप एक जीवंत दस्तावेज बन जाता है।
  • संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद निरोधक कार्यालय (UNOCT): आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है तथा वैश्विक आतंकवादरोधी रणनीति के कार्यान्वयन में सदस्य देशों को समर्थन प्रदान करता है।
  • आतंकवाद के दमन पर SAARC सम्मेलन (वर्ष 1987): दक्षिण एशियाई देशों के बीच आतंकवाद से निपटने और क्षेत्र के भीतर आतंकवादियों के प्रत्यर्पण में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक क्षेत्रीय समझौता।
  • वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF): FATF वैश्विक मानकों को स्थापित करके और नियमित मूल्यांकन के माध्यम से देशों द्वारा अनुपालन सुनिश्चित करके मनी लॉण्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण से निपटने के लिए कार्य करता है।
  • इंटरपोल (INTERPOL): यह वैश्विक पुलिस सहयोग तथा अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से निपटने के लिए सूचना के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करता है तथा इसकी सुरक्षित संचार प्रणाली सदस्य देशों के बीच त्वरित डेटा साझाकरण को सक्षम बनाती है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) 1267 समिति: इसकी स्थापना वर्ष 1999 में की गई थी (जिसे वर्ष 2011 और 2015 में अद्यतन किया गया) और यह किसी भी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश को किसी आतंकवादी या आतंकी समूह का नाम समेकित सूची में जोड़ने का प्रस्ताव देने की अनुमति देती है।
    • आतंकवादियों की 1267 सूची एक वैश्विक सूची है, जिस पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मुहर लगी हुई है।
  • आतंकवाद के दमन पर अरब कन्वेंशन: 22 अप्रैल, 1998 को काहिरा में अरब राज्यों की लीग के महासचिवालय में आयोजित बैठक में इस पर हस्ताक्षर किए गए थे।
  • आतंकवाद की रोकथाम और मुकाबला करने पर अफ्रीकी एकता संगठन (OAU) अभिसमय: इसे 14 जुलाई, 1999 को अल्जीयर्स में अपनाया गया था। यह 06 दिसंबर, 2002 को लागू हुआ।

आगे की राह 

  • सुरक्षा के साथ मानवाधिकारों का संतुलन: आतंकवाद विरोधी उपायों को नागरिक स्वतंत्रता की सुरक्षा के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है। इसमें सत्ता के दुरुपयोग से बचने के लिए सुरक्षा अभियानों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए मानवाधिकारों की सुरक्षा करना शामिल है।
  • निरंतर जुड़ाव: स्थानीय नेताओं को शामिल करना, संवाद करना और समुदायों और सुरक्षा एजेंसियों के बीच विश्वास को बढ़ावा देना राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए महत्त्वपूर्ण होगा।
  • नीतिगत जवाबदेही और निरंतर सुधार सुनिश्चित करना: नियमित नीति समीक्षा और हितधारक सहभागिता यह सुनिश्चित करेगी कि नीति उभरते खतरों के अनुकूल हो।
    • इस प्रगति को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रशिक्षण, उन्नत प्रौद्योगिकी उन्नयन और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना महत्त्वपूर्ण है।
  • आतंकवादरोधी समन्वय और रणनीति: जिला स्तर पर आतंकवादरोधी दस्तों और स्थानीय पुलिस के बीच बेहतर समन्वय के साथ एक समान आतंकवादरोधी संरचना की आवश्यकता है।
    • भारत के सुरक्षा ढाँचे को मजबूत करने के लिए एजेंसियों के बीच समन्वय को और बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
  • सोशल मीडिया और डिजिटल उपकरणों को विनियमित करना: सोशल मीडिया विनियमन को मजबूत करना और एन्क्रिप्टेड एप्लिकेशन, VPN और वर्चुअल नंबरों के उपयोग की जाँच करना, साथ ही मादक पदार्थों की तस्करी से निपटना, आतंकवाद पर अंकुश लगाने और राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

भारत की आगामी राष्ट्रीय आतंकवादरोधी नीति देश के आंतरिक सुरक्षा ढाँचे को मजबूत करने तथा यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार है कि आतंकवादी घटनाओं में कमी जारी रहे।

संदर्भ 

भारत के दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications- DoT) के तहत एक प्रमुख दूरसंचार अनुसंधान एवं विकास निकाय, ‘सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स’ (Centre for Development of Telematics- C-DOT) ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रूड़की (IIT रूड़की) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

संबंधित तथ्य

  • इस सहयोग का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने के लिए 5G ग्रामीण कनेक्टिविटी के लिए एक मिलीमीटर वेव ट्रांसीवर विकसित करना है।
  • इस समझौते पर भारत सरकार के दूरसंचार विभाग की दूरसंचार प्रौद्योगिकी विकास निधि (Telecom Technology Development Fund- TTDF) योजना के तहत हस्ताक्षर किए गए हैं। 
    • TTDF का लक्ष्य भारत के डिजिटल विभाजन को संबोधित करते हुए किफायती ब्रॉडबैंड एवं मोबाइल सेवाएँ प्रदान करने के लिए दूरसंचार उत्पाद नवाचार को वित्तपोषित करना है।

मिलीमीटर वेव बैकहॉल प्रौद्योगिकी परियोजना (Millimetre Wave Backhaul Technology Project) के बारे में

परियोजना के उद्देश्य

  • किफायती कनेक्टिविटी: इस परियोजना का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में किफायती ब्रॉडबैंड एवं मोबाइल सेवाएँ प्रदान करना है, जिससे डिजिटल विभाजन को कम करने में मदद मिलेगी।
    • इसका उद्देश्य बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights- IPRs) उत्पन्न करना एवं 5G/6G के लिए उभरती मिलीमीटर Wave/Sub-THz तकनीक के लिए एक कुशल कार्यबल विकसित करना भी है।
  • नवोन्मेषी प्रौद्योगिकी: मिलीमीटर वेव बैकहॉल प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जहाँ छोटे सेल-आधारित स्टेशन लागत एवं आकार को कम करने के लिए मिश्रित ऑप्टिकल तथा मिलीमीटर वेव दृष्टिकोण का उपयोग करके फाइबर के माध्यम से गेटवे से जुड़ते हैं।
  • स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा: ट्रांसीवर में पॉलिमर एवं धातु सामग्री पर जोर देने का उद्देश्य सेमीकंडक्टर उद्योगों पर निर्भरता को कम करना एवं स्थानीय विनिर्माण में SME की भागीदारी को प्रोत्साहित करना है।

लाभ

  • उन्नत नेटवर्क क्षमता: मिलीमीटर वेव तकनीक पारंपरिक प्रौद्योगिकियों की तुलना में काफी अधिक बैंडविड्थ प्रदान करती है, जो तीव्र डेटा दरों एवं बेहतर नेटवर्क क्षमता को सक्षम बनाती है।
  • बेहतर नेटवर्क कवरेज: मिलीमीटर वेव उपकरण का छोटा आकार एवं कम लागत अधिक नेटवर्क बुनियादी ढाँचे की तैनाती की सुविधा प्रदान करेगी, जिससे नेटवर्क कवरेज में सुधार होगा।
  • आर्थिक विकास: यह परियोजना घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करने, रोजगार सृजित करने एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देकर भारत की आर्थिक वृद्धि में योगदान देगी।
  • तकनीकी उन्नति: मिलीमीटर वेव प्रौद्योगिकी का विकास भारत को वायरलेस संचार प्रौद्योगिकियों, नवाचार को बढ़ावा देने एवं वैश्विक निवेश को आकर्षित करने में सबसे आगे रखेगा।

संदर्भ 

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपने स्वामित्व वाले लगभग 130 मीट्रिक टन स्वर्ण को वापस लाया है एवं ‘बैंक ऑफ इंग्लैंड’ तथा ‘बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स’ (Bank for International Settlements- BIS) की सुरक्षित हिरासत में पिछले ढाई वर्षों रखा था।

बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स’ (Bank for International Settlements- BIS)

  • स्थापना: वर्ष 1930 में स्थापित, इसका मुख्यालय बेसल, स्विट्जरलैंड में है तथा इसके कार्यालय हांगकांग SAR, मैक्सिको सिटी और विश्व भर में अनेक इनोवेशन हब केंद्रों में हैं।
  • स्वामित्व: 63 केंद्रीय बैंकों के स्वामित्व में, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 95% प्रतिनिधित्व करता है।
  • मिशन: अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से मौद्रिक एवं वित्तीय स्थिरता प्राप्त करने में केंद्रीय बैंकों का समर्थन करना तथा ‘केंद्रीय बैंकों के लिए बैंक’ के रूप में कार्य करना।
  • उद्देश्य
    • अंतरराष्ट्रीय संवाद एवं सहयोग को सुगम बनाना।
    • जिम्मेदार नवाचार एवं ज्ञान-साझाकरण को प्रोत्साहित करना।
    • गहन नीति विश्लेषण एवं प्रतिस्पर्द्धी वित्तीय सेवाएँ प्रदान करना।

स्वर्ण के प्रत्यावर्तन संबंधी तथ्य

  • पृष्ठभूमि: वर्ष 1990-91 के विदेशी मुद्रा संकट के दौरान, भारत ने 405 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण सुरक्षित करने के लिए अपने स्वर्ण भंडार का एक हिस्सा ‘बैंक ऑफ इंग्लैंड’ को गिरवी रख दिया था।
    • वर्ष 1991 में ऋण चुकाए जाने के बाद, RBI ने लॉजिस्टिक लाभों के कारण सोने को UK में रखने का फैसला किया, क्योंकि विदेशी स्वर्ण का उपयोग व्यापार, स्वैप एवं रिटर्न अर्जित करने के लिए आसानी से किया जा सकता है। 
  • वित्तीय निहितार्थ: इस हस्तांतरण का भारत की GDP पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, कर संग्रह या RBI की बैलेंस शीट, क्योंकि यह RBI की संपत्ति के कुल मूल्य में बदलाव किए बिना केवल स्वर्ण के भंडारण स्थान को बदलता है।
    • इसमें कोई सीमा शुल्क या GST निहितार्थ नहीं है, क्योंकि वापस लाया जा रहा सोना पहले से ही भारत के स्वामित्व में है।

स्वर्ण प्रत्यावर्तन का औचित्य

  • लागत दक्षता: विदेशी बैंकों को भुगतान की जाने वाली कस्टोडियल शुल्क पर बचत।
  • घरेलू सुरक्षा में बढ़ा विश्वास: भारत की आर्थिक स्थिरता एवं मजबूत सुरक्षा बुनियादी ढाँचा अब घरेलू स्तर पर अधिक भंडार संगृहीत करना संभव बनाता है।
  • विदेशी संरक्षकों पर निर्भरता कम: भंडारण स्थानों में विविधता लाने से देश की सोने की संपत्ति पर रणनीतिक नियंत्रण बढ़ता है।

भारत में स्वर्ण भंडार की वर्तमान स्थिति

  • सितंबर 2024 के अंत तक, RBI का कुल सोने का भंडार 854.73 टन था।
    • इसमें से 510.46 टन (लगभग 60%) अब भारत में संगृहीत है।
  • शेष भंडार में ‘बैंक ऑफ इंग्लैंड’ एवं BIS के पास रखा 324.01 टन सोना शामिल है, जबकि 20.26 टन सोना भंडार के रूप में रखा गया है।

विदेशी मुद्रा भंडार पर प्रभाव

  • अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में, भारत के कुल विदेशी मुद्रा भंडार में स्वर्ण की हिस्सेदारी मार्च 2024 के अंत में 8.15% से बढ़कर सितंबर 2024 तक 9.32% हो गई। 
  • इसी अवधि में, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पर्याप्त वृद्धि देखी गई, जो मार्च 2024 में $646.42 बिलियन से बढ़कर सितंबर 2024 तक $705.78 बिलियन हो गया।

संदर्भ

आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने वर्ष 2024-25 में अर्थोपाय अग्रिम (‘वेज एंड मीन्स एडवांस’) को इक्विटी में परिवर्तित करके भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India – FCI) में ₹10,700 करोड़ की इक्विटी निवेश को मंजूरी दे दी है। 

  • इस वित्तीय वर्ष में इक्विटी का उपयोग FCI के लिए कार्यशील पूँजी के रूप में किया जाएगा।
  • इक्विटी इन्फ्यूजन: पिछले वित्तीय वर्ष (2023-24) में FCI की इक्विटी में वर्ष 2019-20 में ₹4,496 करोड़ से बढ़कर ₹10,157 करोड़ हो गई है।
  • उद्देश्य: FCI की परिचालन क्षमताओं को बढ़ाना ताकि इसके आवश्यक अधिदेश को पूरा किया जा सके।

इक्विटी इन्फ्यूजन के कारण

  • खरीद में वृद्धि: FCI के खाद्यान्न खरीद कार्यों को बढ़ाने के लिए क्योंकि मुख्य रूप से पंजाब एवं हरियाणा से खरीफ फसल के मौसम में धान की खरीद में देरी की शिकायतें थीं। 
    • FCI की वित्तीय स्थिति को मजबूत करना एवं इसकी कार्यशील पूँजी की आवश्यकता को पूरा करना।
  • सब्सिडी का बोझ कम करना: FCI आमतौर पर फंड की कमी से निपटने के लिए अल्पकालिक उधार पर निर्भर रहता है। इस निवेश से ब्याज का बोझ कम करने तथा अंततः भारत सरकार की सब्सिडी कम करने में मदद मिलेगी।
    • वर्ष 2014-2024 की अवधि में खाद्य सब्सिडी वर्ष 2002-2014 की अवधि के दौरान 5,15,000 करोड़ रुपये से 4 गुना से अधिक बढ़कर 21,56,000 करोड़ रुपये हो गई है।
  • स्टॉक का सतत् प्रबंधन: पिछले पाँच वर्षों में FCI की औसत स्टॉक होल्डिंग लगभग ₹80,000 करोड़ रही है। पूँजीगत प्रोत्साहन FCI को इस वृद्धि को अधिक सतत् तरीके से प्रबंधन में सक्षम बनाएगा।
  • मुद्रास्फीति: MSP में बढोतरी एवं स्टॉक के स्तर में वृद्धि के कारण मुद्रास्फीति ने FCI के लिए खाद्य खरीद की लागत बढ़ा दी है, जिससे उसकी कार्यशील पूँजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त पूँजी की आवश्यकता होती है।

भारतीय खाद्य निगम के बारे में

  • स्थापित: FCI की स्थापना खाद्य निगम अधिनियम, 1964 के तहत की गई थी।
  • उद्देश्य: खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, खाद्य कीमतों को स्थिर करना एवं कुछ कार्य करके देश के भीतर कृषि विकास को बढ़ावा देना।
    • खरीद: FCI अन्य राज्य एजेंसियों के साथ मूल्य समर्थन योजना के तहत गेहूँ एवं धान की खरीद करता है तथा किसानों को MSP एवं कमजोर वर्गों को सस्ती कीमतों पर खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करता है। 
      • खरीद कार्य कीमतों को नियंत्रण में रखने के साथ-साथ देश की समग्र खाद्य सुरक्षा में योगदान देने वाला एक प्रभावी बाजार हस्तक्षेप है।
    • संचलन: FCI एक वर्ष में औसतन 42 से 45 मिलियन टन खाद्यान्न का परिवहन देश भर में करता है,
      • अधिशेष क्षेत्रों से स्टॉक खाली करना।
      • NFSA/TDPS एवं अन्य योजनाओं के लिए घाटे वाले क्षेत्रों की आवश्यकताओं को पूरा करना।
      • घाटे वाले क्षेत्रों में बफर स्टॉक बनाना।
    • भंडारण: FCI भारत सरकार द्वारा शुरू की गई सार्वजनिक वितरण प्रणाली एवं अन्य कल्याणकारी योजनाओं की आवश्यकता को पूरा करने के लिए खरीदे गए खाद्यान्न के स्टॉक को रखने हेतु गोदामों तथा साइलो का एक नेटवर्क बनाए रखता है। 
      • साथ ही, संकट या आपदा के समय देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बफर स्टॉक बनाए रखना है।
    • वितरण: भारतीय खाद्य निगम (FCI), PDS/NFSA [प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY)] एवं अन्य कल्याणकारी योजनाओं [पीएम पोषण (PM POSHAN), अन्नपूर्णा, कल्याण संस्थान तथा छात्रावास, गेहूँ आधारित पोषण कार्यक्रम एवं किशोर लड़कियों के लिए योजना] के तहत खाद्यान्न वितरण में भी भूमिका निभाता है।
      • FCI पूरे वर्ष समाज के कमजोर वर्गों के लिए उचित मूल्य पर उपलब्ध खाद्यान्न का समान वितरण सुनिश्चित करता है।
    • गुणवत्ता नियंत्रण: FSS अधिनियम, 2006 के अनुसार, गुणवत्ता आश्वासन प्रदान करने वाले खाद्यान्नों की गुणवत्ता की प्रभावी निगरानी के लिए भारतीय खाद्य निगम की परीक्षण प्रयोगशालाएँ देश भर में फैली हुई हैं, जिससे ग्राहकों के संतुष्टि स्तर में सुधार हुआ है।

अर्थोपाय अग्रिम (Ways and Means Advance- WMA)

  • ये भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा केंद्र एवं राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों को दिए गए अल्पकालिक ऋण हैं, जिससे उन्हें अस्थायी बजट घाटे को पूरा करने में मदद मिलती है। RBI अपनी क्रेडिट पॉलिसी के तहत यह सुविधा प्रदान करता है। 
    • WMA का लाभ केवल तीन महीने (90 दिन) के भीतर पुनर्भुगतान की शर्त पर लिया जा सकता है एवं अक्सर रेपो दर पर जारी किया जाता है।
  • परिचय: WMA योजना 1 अप्रैल, 1997 को केंद्र सरकार की अस्थायी वित्त आवश्यकताओं को कवर करने के लिए तदर्थ ट्रेजरी बिल की जगह लेकर शुरू की गई थी।
  • उद्देश्य: WMA का उपयोग सरकारों को उनकी प्राप्तियों एवं व्ययों में अस्थायी विसंगतियों को प्रबंधित करने में मदद करने के लिए किया जाता है। 
  • अधिनियम: यह योजना RBI अधिनियम, 1934 की धारा 17(5) के माध्यम से प्रशासित की जाती है।
  • सीमाएँ: अर्थोपाय अग्रिमों की सीमाएँ सरकार एवं RBI द्वारा पारस्परिक रूप से तय की जाती हैं तथा समय-समय पर संशोधित की जाती हैं।
  • प्रकार: राज्य सरकारों के लिए WMA दो प्रकार के होते हैं:-
    • सामान्य WMA एवं विशेष WMA [विशेष ड्राइंग सुविधा (SDF)]। 
    • विशेष WMA में सामान्य WMA की तुलना में ब्याज दरें 1% कम होती हैं एवं ये राज्य की सरकारी परिसंपत्तियों के बदले में सबसे पहले समाप्त हो जाती हैं।
  • ओवरड्राफ्ट: यदि राशि 90 दिनों की अवधि के भीतर वापस नहीं की जाती है, तो इसे ओवरड्राफ्ट माना जाता है। ओवरड्राफ्ट पर ब्याज आमतौर पर रेपो रेट से अधिक होता है।

संदर्भ 

ग्लोबल वार्मिंग का एक उल्लेखनीय परिणाम ग्लेशियरों का सिकुड़ना है, जिससे ग्लेशियल झीलों में जल जमा हो रहा है।

हिमनद (ग्लेशियर) क्या हैं? 

  • हिमनद (ग्लेशियर) पहाड़ों पर पाए जाने वाले विशाल, सघन बर्फ के भंडार हैं, जो गुरुत्वाकर्षण एवं अपने वजन के कारण चलते हैं।

  • हिमनदों (ग्लेशियरों) की संरचना
    • संचय क्षेत्र (Accumulation Zone): ग्लेशियर का ऊपरी भाग जहाँ बर्फ जमती है और संपीड़ित होकर बर्फ के क्रिस्टल में बदल जाती है।
    • एब्लेशन जोन (Ablation Zone): ग्लेशियर का निचला हिस्सा जहाँ पिघलता है, जिसके परिणामस्वरूप बर्फ की हानि होती है।
  • गठन प्रक्रिया 
    • अपरदन प्रक्रिया: जैसे ही ग्लेशियर का संचलन होता हैं, वे चट्टानों को घर्षण के कारण पीसते हैं, जिससे मोराइन (Moraine) नामक मिश्रण बनता है, जिसमें बड़े पत्थरों से लेकर महीन चट्टानी धूल तक सब कुछ शामिल होता है।
    • झील का निर्माण: जब ग्लेशियर पिघलते हैं एवं पीछे हटते या सिकुड़ते हैं, तो पीछे बचा हुआ क्षेत्र जल से भर जाता है, जिससे हिमनद झीलों का निर्माण होता है। 
      • ग्लेशियर के अंत में मोराइन अक्सर एक प्राकृतिक बाँध के रूप में कार्य करता है, जो जल को अपनी जगह पर स्थिर रखता है।

हिमनद झीलों का महत्त्व

  • जल प्रवाह नियंत्रण: हिमानी झीलें बफर के रूप में कार्य करती हैं, पिघलते ग्लेशियर के जल के प्रवाह को धीमा कर देती हैं, जिससे जल के प्रवाह को नीचे की ओर नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

  • समुदायों पर प्रभाव: कभी-कभी, इससे जल की कमी या अचानक बाढ़ आ सकती है, जो आस-पास के समुदायों को प्रभावित करती है।
  • नदी प्रवाह विनियमन: नदी का स्थिर प्रवाह बनाए रखने में मदद करती है।
  • जलवायु प्रभाव: बर्फ के भंडारण एवं तापमान को नियंत्रित करके ग्लोबल वार्मिंग का मुकाबला करने में मदद करती हैं।

हिमानी झीलें नीले रंग की क्यों दिखाई देती हैं?

  • नीले रंग का प्रभाव: जल में निलंबित महीन चट्टानी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण हिमानी झीलें अक्सर चमकीली नीली दिखाई देती हैं।
  • हिमालय में हिमनदी झीलों के उदाहरण
    • गुरुडोंगमार झील (Gurudongmar Lake): उत्तरी सिक्किम में समुद्र तल से 5,430 मीटर ऊपर स्थित है एवं तीस्ता नदी में गिरती है।
    • पैंगोंग त्सो (Pangong Tso): लद्दाख एवं चीन के बीच सीमा क्षेत्र में 134 किलोमीटर लंबी झील शृंखला।
    • सामिति झील (Samiti Lake): सिक्किम में कंचनजंगा पर्वत के रास्ते में लगभग 4,300 मीटर की ऊँचाई पर पाई जाती है।

हिमानी झीलों पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव

  • झीलों के फटने का खतरा बढ़ रहा है: जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ता है, ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं, जिससे हिमनद झीलों में जल स्तर बढ़ जाता है एवं मोराइन बाँध टूटने का खतरा बढ़ जाता है।
  • एक केस स्टडी के रूप में दक्षिण ल्होनक झील (South Lhonak Lake)
    • तेजी से विकास: सिक्किम में दक्षिण ल्होनक झील, जो पहली बार वर्ष 1962 में उपग्रह चित्रों में दिखाई दी थी, ग्लेशियरों के पिघलने के कारण तेजी से विस्तारित हुई है।
    • संभावित खतरा: वर्ष 1977 की शुरुआत में केवल 17 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाली इस झील के निरंतर विकास के कारण वर्ष 2017 तक जल निकासी पाइपों की स्थापना की गई।
      • हालाँकि, ये पाइप अपर्याप्त हैं, जिससे हिमानी झील के फटने के खतरे के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं, जिससे बाढ़ आ सकती है।

भारत में प्रमुख हिमानी झीलें

भारत के हिमालयी क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण हिमनद झीलें हैं, जिनमें से प्रत्येक में अनूठी विशेषताएँ हैं:

  • गुरुडोंगमार झील (सिक्किम)
    • ऊँचाई: 5,430 मीटर पर दुनिया की सबसे ऊँची झीलों में से एक।
    • जल स्रोत: यह अपना जल ग्लेशियरों के पिघलने से प्राप्त करती है।
    • महत्त्व: स्थानीय समुदायों के लिए धार्मिक महत्त्व रखती है।
  • चंद्र ताल (हिमाचल प्रदेश)
    • स्थान: लाहुल-स्पीति क्षेत्र में 4,300 मीटर की ऊँचाई पर।
    • आकार: अपने सुंदर अर्द्धचंद्राकार आकार के लिए जानी जाती है एवं बर्फीले पहाड़ों से घिरी हुई है।
    • जल स्रोत: ग्लेशियर पिघलने से जल प्राप्त करती है।
  • सामिति झील (सिक्किम)
    • ट्रैकिंग स्थल: माउंट कंचनजंगा के ट्रैकिंग पथ के किनारे स्थित है।
    • विशेषताएँ: अपने स्वच्छ नीले जल के लिए प्रसिद्ध है, जो आसपास के दृश्यों को प्रतिबिंबित करता है।
  • सतोपंथ ताल (उत्तराखंड)
    • स्थान: गढ़वाल हिमालय में सतोपंथ ग्लेशियर के पास अवस्थित है।
    • सांस्कृतिक महत्त्व: स्थानीय लोगों के लिए पवित्र स्थान है।
  • दक्षिण ल्होनक झील (सिक्किम)
    • जलस्रोत: इसे तीन ग्लेशियरों से जल प्राप्त होता है।
    • जलवायु प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण इसका तेजी से विस्तार हो रहा है।
    • जोखिम: बाढ़ का खतरा है, जो आस-पास के क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है।

संदर्भ 

हाल ही में सी. वी. रमन की 136वीं जयंती मनाई गई।

सी. वी. रमन के बारे में

  • जन्म: चंद्रशेखर वेंकट रमन का जन्म 7 नवंबर, 1888 को मद्रास प्रेसीडेंसी के तिरुचिरापल्ली में हुआ था।
  • शिक्षा: उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय में अपनी स्नातक की परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त किया और भौतिकी में स्वर्ण पदक जीता।

  • उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से सर्वोच्च सम्मान के साथ अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की।
  • कॅरियर: उन्होंने कोलकाता में भारतीय वित्त सेवा में शामिल होने पर एक सहायक महालेखाकार के रूप में अपना कॅरियर शुरू किया।
    • हालाँकि, उन्होंने IACS (इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस) में शोध करना जारी रखा।
  • कॅरियर में बदलाव: उन्होंने वर्ष 1917 में अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के पालित चेयर (Palit Chair of Physics) की पेशकश स्वीकार कर ली।
  • IISc में नियुक्ति: उन्हें वर्ष 1933 में बंगलूरू में भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने वर्ष 1948 में अपनी सेवानिवृत्ति तक IISc में कार्य किया।
  • पुरस्कार 
    • वर्ष 1930 में प्रकाश के प्रकीर्णन पर उनके कार्य और रमन प्रभाव की खोज के लिए भौतिकी में नोबेल पुरस्कार दिया गया।
    • वर्ष 1954 में भारत रत्न दिया गया। 
    • लेनिन शांति पुरस्कार और फ्रैंकलिन पदक सहित कई अन्य पुरस्कार भी प्रदान किए गए।
    • वर्ष 1930 में ह्यूजेस पदक से सम्मानित किया गया। 
  • उनके सम्मान में: वर्ष 1928 में रमन प्रभाव की उनकी खोज की याद में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है।
    • रमन प्रभाव एक ऐसी घटना है, जब प्रकाश की एक धारा किसी तरल पदार्थ से होकर गुजरती है, तरल पदार्थ द्वारा प्रकीर्णित प्रकाश का एक अंश भिन्न रंग का होता है।

रमन प्रभाव के बारे में

  • प्रकाश की तरंगदैर्घ्य में परिवर्तन की घटना को संदर्भित करता है क्योंकि यह अणुओं द्वारा विकीर्णित होता है, जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा के स्तर में बदलाव होता है।

  • रमन प्रभाव, रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी के पीछे का सिद्धांत है, जिसका उपयोग रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान और पदार्थ विज्ञान जैसे विभिन्न क्षेत्रों में आणविक लक्षण वर्णन तथा पहचान के लिए किया जाता है।
  • सी. वी. रमन ने वर्ष 1928 में अपने शोध के दौरान ठोस पदार्थों में नहीं, बल्कि तरल पदार्थों में प्रकाश के विकिर्णन का अध्ययन करते हुए रमन प्रभाव की खोज की थी।

संदर्भ

हाल ही में भारत और जांबिया ने संयुक्त स्थायी आयोग (Joint Permanent Commission) के छठे सत्र में कृषि, खनन और ऊर्जा में मजबूत सहयोग पर चर्चा की।

जांबिया के बारे में 

  • स्थान: अफ्रीका में स्थित एक भू-आबद्ध देश है।
  • यह दक्षिणी गोलार्द्ध में भूमध्य रेखा और मकर रेखा के बीच लगभग मध्य में अवस्थित है।
  • देशांतरीय रूप से, यह दुनिया के पूर्वी गोलार्द्ध में स्थित है।
  • राजधानी: लुसाका
  • भाषाएँ: अंग्रेजी, न्यांजा, बेम्बा
  • पड़ोसी देश: जांबिया की सीमा आठ देशों से लगती है:-
    • उत्तर में: कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और तंजानिया।
    • पूर्व में: मलावी और मोजांबिक।
    • दक्षिण में: जिम्बाब्वे और बोत्सवाना।
    • पश्चिम में: नामीबिया और अंगोला। 
  • कांगो के बाद अफ्रीका का दूसरा सबसे बड़ा ताँबा उत्पादक देश है।
    • हालाँकि, चिली के बाद पेरू दुनिया में ताँबे का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
  • जांबिया और जिम्बाब्वे की सीमा पर अवस्थित है।
  • जांबिया, अपने अधिकांश पड़ोसियों के विपरीत, युद्ध और उथल-पुथल से बचने में कामयाब रहा है, जिसने अफ्रीका के औपनिवेशिक इतिहास के बाद के अधिकांश भाग को चिह्नित किया है, जिससे उसने राजनीतिक स्थिरता के लिए प्रतिष्ठा अर्जित की है।

जाम्बिया की भौगोलिक विशेषताएँ

  • मध्य पठार: 1,000 से 1,600 मीटर के बीच की ऊँचाई; मुख्य कृषि क्षेत्र, मक्का और तंबाकू जैसी फसलें उगाई जाती हैं।
  • घाटियाँ
    • जांबेजी घाटी (दक्षिण): जांबिया की सीमा पर कम ऊँचाई, विविध वन्य जीवन के साथ।
    • लुआंगवा घाटी (पूर्व): लुआंगवा नदी द्वारा निर्मित, समृद्ध वन्य जीवन के लिए जानी जाती है।
  • पूर्वी हाइलैंड्स (Eastern Highlands) [मुचिंगा एस्केरपमेंट (Muchinga Escarpment)]: 1,800 मीटर तक की ऊँचाई, अधिक वर्षा, कॉफी की खेती के लिए अनुकूल।
  • पश्चिमी सैंडी मैदान (Western Sandy Plains): कालाहारी बेसिन का हिस्सा, जिसमें बारोत्से फ्लडप्लेन और मिओम्बो वुडलैंड्स शामिल हैं।

नदियाँ और झीलें

  • प्रमुख नदियाँ
    • जांबेजी नदी: यह जांबिया से निकलने वाली सबसे बड़ी नदी जो हिंद महासागर में अपना जल प्रवाहित करती है। विक्टोरिया जलप्रपात जांबेजी नदी पर एक झरना है।
    • काफू(Kafue) और लुआंगवा (Luangwa) नदियाँ: जलविद्युत, सिंचाई और वन्यजीव सहायता के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • उल्लेखनीय झीलें
    • टांगानिका झील: तंजानिया के साथ जांबिया की उत्तरी सीमा पर स्थित दूसरी सबसे गहरी मीठे पानी की झील।
    • बांग्वेउलू झील और करिबा झील: मछली पकड़ने, परिवहन और पर्यटन के लिए महत्त्वपूर्ण।

संदर्भ

बंगलूरू शहर की पहली ‘डिजिटल पापुलेशन क्लॉक’ (Digital Population Clock), जो कर्नाटक और भारत की जनसंख्या का वास्तविक समय अनुमान प्रदर्शित करती है, का उद्घाटन सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन संस्थान (Institute for Social and Economic Change-ISEC) में किया गया।

‘पापुलेशन क्लॉक’ की विशेषताएँ

  • भारत की तेजी से बढ़ती जनसंख्या के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए ISEC के प्रवेश द्वार पर यह घड़ी रणनीतिक रूप से लगाई गई है।
  • वास्तविक समय की जनसंख्या गणना: वास्तविक समय के आँकड़ों के आधार पर जनसंख्या को लगातार अपडेट करता है, जिससे जनसंख्या के आकार का पल-पल का अपडेट मिलता है।
    • कर्नाटक की जनसंख्या प्रत्येक एक मिनट और 10 सेकंड में अपडेट होगी, जबकि राष्ट्रीय जनसंख्या गणना प्रत्येक दो सेकंड में अपडेट होगी।
  • जनसांख्यिकी डेटा: जनसंख्या में परिवर्तन की गणना करने के लिए जन्म दर, मृत्यु दर और प्रवासन पैटर्न को शामिल करता है।
    • इसके अलावा जीवन प्रत्याशा, प्रजनन दर और मृत्यु दर जैसे अन्य जनसांख्यिकीय कारकों को भी ध्यान में रखा गया है।
  • वैश्विक बनाम राष्ट्रीय घड़ियाँ: डिजिटल ‘पापुलेशन क्लॉक’ वैश्विक (विश्व की जनसंख्या पर नजर रखने वाली) या देश-विशिष्ट पर आधारित हो सकती हैं।

परियोजना सहयोग और उद्देश्य

  • ‘पापुलेशन क्लॉक’ सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन संस्थान (Institute for Social and Economic Change-ISEC) और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare-MoHFW) के बीच एक संयुक्त पहल है।
  • यह घड़ी केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) द्वारा एक बड़ी राष्ट्रीय परियोजना का हिस्सा है, जिसके तहत देश भर में 18 जनसंख्या अनुसंधान केंद्रों (Population Research Centres- PRC) में जनसंख्या घड़ियाँ स्थापित की जा रही हैं।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य जनसंख्या वृद्धि और सतत् विकास के लिए इसके निहितार्थों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाना है।
  • महत्त्व: जनसांख्यिकीय रुझानों में रुचि रखने वाले शोधकर्ताओं और विद्वानों के लिए मूल्यवान, प्रामाणिक डेटा प्रदान करना।

जनगणना डेटा अनुसंधान कार्य केंद्र की स्थापना

  • घड़ी के साथ-साथ, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन संस्थान (ISEC) में एक जनगणना डेटा अनुसंधान कार्य केंद्र भी स्थापित किया गया है, जिसकी देखरेख भी ISEC में जनसंख्या अनुसंधान केंद्र (Population Research Centre- PRC) के प्रमुख द्वारा की जाती है।
  • कार्य केंद्र शोधकर्ताओं और छात्रों के लिए व्यापक जनगणना डेटा तक पहुँच प्रदान करता है, जिससे गहन जनसांख्यिकीय अध्ययन और नीति नियोजन में सहायता मिलती है।
  • उन्नत सॉफ्टवेयर और विश्लेषणात्मक उपकरणों से लैस, यह जनसंख्या प्रवृत्तियों तथा नीति एवं विकास पर उनके प्रभाव का विस्तृत विश्लेषण करने में मदद करता है।

जनसंख्या अनुसंधान केंद्रों (Population Research Centres- PRC) के बारे में

  • केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW), भारत सरकार द्वारा स्थापित।
  • अधिदेश: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण कार्यक्रमों और नीतियों के लिए शोध-आधारित इनपुट प्रदान करना।
  • फोकस क्षेत्र: परिवार नियोजन, जनसांख्यिकीय अनुसंधान, जैविक अध्ययन और जनसंख्या नियंत्रण के गुणात्मक पहलू।
  • अनुसंधान के उद्देश्य
    • जनसंख्या के रुझान और गतिशीलता को समझना।
    • परिवार नियोजन कार्यक्रमों के प्रभाव का मूल्यांकन करना।
    • प्रजनन क्षमता और मृत्यु दर को प्रभावित करने वाले कारकों की पहचान करना।
    • नीति और कार्यक्रम कार्यान्वयन के लिए साक्ष्य-आधारित सिफारिशें विकसित करना।
  • गतिविधियाँ
    • मूल शोध अध्ययन संचालित करना।
    • मौजूदा डेटा और साहित्य का विश्लेषण करना।
    • प्रकाशनों और प्रस्तुतियों के माध्यम से शोध निष्कर्षों का प्रसार करना।
    • अन्य शोधकर्ताओं और संस्थानों के साथ सहयोग करना।
    • सरकारी एजेंसियों और गैर-सरकारी संगठनों को तकनीकी सहायता प्रदान करना।
  • नेटवर्क: भारत भर में 18 PRC, विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों में स्थित हैं।
  • योगदान
    • नीतिगत निर्णयों और कार्यक्रम डिजाइन को सूचित करना।
    • जनसंख्या और स्वास्थ्य हस्तक्षेपों के लिए साक्ष्य आधार को मजबूत करना।
    • जनसंख्या अनुसंधान और विश्लेषण में क्षमता का निर्माण करना।

संदर्भ 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने समाधान योजना की विफलता के बाद, कर्ज में डूबी एयरलाइन, उसके लेनदारों, कामगारों और कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए जेट एयरवेज के परिसमापन को ‘अंतिम व्यवहार्य उपाय’ के रूप में शुरू करने का निर्देश दिया।

संबंधित तथ्य

  • सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र: सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत पूर्ण शक्तियाँ प्राप्त हैं, जो एयरलाइन को दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC), 2016 के अनुपालन में परिसमापन के लिए निर्देशित करती हैं। 
  • शीघ्र समाधान की आवश्यकता: न्यायालय ने जेट एयरवेज की परिसंपत्तियों के और अधिक मूल्यह्रास को रोकने के लिए शीघ्र समाधान या वैकल्पिक रूप से समयबद्ध परिसमापन की आवश्यकता पर बल दिया।
  • अनुच्छेद-142 का आह्वान: न्यायालय ने परिसमापन को अनिवार्य बनाने के लिए संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत अपनी पूर्ण शक्तियों का उपयोग किया, जिसमें कहा गया कि समाधान योजना पर कोई महत्त्वपूर्ण प्रगति नहीं होने के बावजूद पाँच वर्ष से अधिक समय बीत चुका है।
  • NCLT को निर्देश: सर्वोच्च न्यायालय ने मुंबई स्थित राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (National Company Law Tribunal- NCLT) को परिसमापन आरंभ करने, परिसमापक (liquidator) नियुक्त करने तथा सभी आवश्यक औपचारिकताएँ पूरी करने का निर्देश दिया।
  • परफॉरमेंस बैंक गारंटी (Performance Bank Guarantee- PBG) और फंड: सर्वोच्च न्यायालय ने पहली भुगतान किश्त के खिलाफ परफॉरमेंस बैंक गारंटी को समायोजित करने के NCLAT के निर्देश की आलोचना की, इसे कानूनी रूप से अस्थिर कहा और लेनदारों को PBG को भुनाने की अनुमति दी।
    • न्यायालय ने जालान-कलरॉक कंसोर्टियम (Jalan-Kalrock Consortium) द्वारा निवेशित अतिरिक्त 200 करोड़ रुपये भी जब्त कर लिए।

परिसमापन (Liquidation) क्या है?

  • वित्त और अर्थशास्त्र में परिसमापन एक व्यवसाय को समाप्त करने और उसकी परिसंपत्तियों को दावेदारों में वितरित करने की प्रक्रिया है।
    • यह ऐसी घटना है, जो आमतौर पर तब होती है, जब कोई कंपनी दिवालिया हो जाती है, अर्थात् वह अपने दायित्वों का भुगतान समय पर नहीं कर पाती है।
  • जैसे ही कंपनी का संचालन समाप्त होता है, शेष परिसंपत्तियों का उपयोग लेनदारों और शेयरधारकों को उनके दावों की प्राथमिकता के आधार पर भुगतान करने के लिए किया जाता है। सामान्य भागीदार परिसमापन के अधीन होते हैं।
  • परिसमापन (Liquidation) शब्द का उपयोग खराब प्रदर्शन करने वाले सामानों को व्यवसाय की लागत से कम कीमत पर या व्यवसाय की इच्छा से कम कीमत पर बेचने के लिए भी किया जा सकता है।

राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal-NCLAT)

  • स्थापना: कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 410 के तहत 1 जून, 2016 को गठित, राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) NCLT के आदेशों के लिए अपीलीय प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है।
  • संरचना: एक अध्यक्ष की अध्यक्षता में, न्यायिक और तकनीकी सदस्य मामलों के निर्णय में सहायता करते हैं। सदस्यों के पास कानून, वित्त और कॉरपोरेट प्रशासन जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता होती है।
  • प्राथमिक भूमिका: NCLT, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India- CCI) और भारतीय दिवाला और दिवालियापन बोर्ड (Insolvency and Bankruptcy Board of India- IBBI) द्वारा लिए गए निर्णयों की समीक्षा करने के लिए एक अपीलीय निकाय के रूप में कार्य करता है।
  • कार्य: कंपनी कानून मामलों, IBC के तहत दिवालियापन और दिवालियापन मामलों तथा प्रतिस्पर्द्धा कानून के मुद्दों से संबंधित अपीलों को सँभालना।
  • उद्देश्य: कॉरपोरेट विवादों का निष्पक्ष और कुशल समाधान सुनिश्चित करना, कॉरपोरेट प्रशासन को बढ़ावा देना तथा हितधारकों के हितों की रक्षा करना।

जेट एयरवेज के परिसमापन (Liquidation) के बारे में

  • विफल समाधान योजना (Failed Resolution Plan): जेट एयरवेज, जिसने अप्रैल 2019 में परिचालन बंद कर दिया था, के पास राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) द्वारा अनुमोदित एक समाधान योजना थी। हालाँकि, योजना को चल रहे मुद्दों का सामना करना पड़ा और प्रगति रुक ​​गई, जिसके कारण सर्वोच्च न्यायालय ने परिसमापन का निर्णय लिया।
  • ‘जालान-कलरॉक कंसोर्टियम’ की भूमिका: मुरारी लाल जालान और फ्लोरियन फ्रिट्च (Murari Lal Jalan and Florian Fritsch) के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम ने फंड लगाने की प्रतिबद्धता जताई थी, लेकिन समाधान योजना को संतोषजनक ढंग से क्रियान्वित करने में विफल रहा।
  • लेनदारों के दावे: भारतीय स्टेट बैंक के नेतृत्व वाले लेनदार बैंकों के पास लगभग ₹7800 करोड़ के दावे थे।
    • सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उद्देश्य इन ऋणदाताओं और जेट एयरवेज के कर्मचारियों सहित अन्य हितधारकों को परिसंपत्तियों की वसूली और वितरण करना है।

दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) के तहत परिसमापन के प्रावधान 

  • अंतिम उपाय के रूप में परिसमापन: IBC तब परिसमापन की अनुमति देता है जब कॉरपोरेट देनदार की समाधान योजना विफल हो जाती है, जैसा कि जेट एयरवेज के मामले में हुआ, जहाँ पाँच वर्ष बीत जाने के बाद और बहुत कम प्रगति होने पर परिसमापन आवश्यक माना जाता है।
  • परिसमापक की भूमिका: NCLT एक परिसमापक की नियुक्ति करेगा जो परिसंपत्तियों की बिक्री और लेनदारों, कर्मचारियों तथा अन्य पात्र पक्षों को आय के वितरण के लिए जिम्मेदार होगा।
  • परिसंपत्ति संरक्षण: परिसमापन प्रक्रिया का उद्देश्य जेट एयरवेज की परिसंपत्तियों के मूल्य को संरक्षित करना और अधिकतम करना है ताकि आगे मूल्यह्रास को रोका जा सके।

संदर्भ 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने जेलों में जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने का फैसला सुनाया, जिसमें विचाराधीन और दोषी कैदियों के रजिस्टर से जाति संबंधी कॉलम एवं जाति संबंधी सभी संदर्भों को हटाना शामिल है।

विचाराधीन कैदी (Undertrial Prisoners)

  • विधि आयोग की 78वीं रिपोर्ट में परिभाषित विचाराधीन कैदी से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है, जो या तो वर्तमान में मुकदमे का सामना कर रहा हो, मुकदमे की प्रतीक्षा के दौरान रिमांड पर हो अथवा जाँच के दौरान न्यायिक हिरासत में हो।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत में 4,34,302 विचाराधीन कैदी थे, जो कुल जेलों की आबादी 5,73,220 का 76% है।

उच्चतम न्यायालय के निर्देश के मुख्य बिंदु 

  • सुकन्या शांता बनाम भारत संघ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य जेल नियमावली के उन प्रावधानों को निरस्त कर दिया, जो जाति आधारित भेदभाव को बढ़ावा देते थे।
  • औपनिवेशिक युग की प्रथाएँ: उच्चतम न्यायालय ने जाति-आधारित श्रम विभाजन, बैरकों में अलगाव और विशेष रूप से विमुक्त जनजातियों तथा आदतन अपराधियों के विरुद्ध पूर्वाग्रह जैसी औपनिवेशिक प्रथाओं के जारी रहने पर प्रकाश डाला, जिन्हें कम-से-कम 10 राज्यों की जेल नियमावलियों में बरकरार रखा गया था।
  • उच्चतम न्यायालय ने संस्थागत जातिगत भेदभाव को संबोधित करने वाले जेल रजिस्टरों में जाति कॉलम और संदर्भों को हटाने तथा कैदियों की गरिमा को बनाए रखने का निर्देश दिया।
  • गरिमा और मौलिक समानता का अधिकार: उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि गरिमा का अधिकार कैदियों पर भी लागू होता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों को जेल नियमावली और कानूनों में संशोधन करने का निर्देश दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी कैदियों की गरिमा बनी रहे।
  • जाति से ऊपर व्यक्तिगत योग्यताएँ: उच्चतम न्यायालय ने जाति के बजाय योग्यताओं के आधार पर भूमिकाएँ सौंपने पर जोर दिया।
  • पुनर्वास और सुधार: कौशल विकास और पुनर्वास के लिए समान अवसर बनाने, जातिगत पूर्वाग्रहों का प्रतिकार करने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • तीन महीने की अनुपालन अवधि: निर्णय में केंद्र और राज्यों को तीन महीने के भीतर जेल मैनुअल एवं कानूनों में आवश्यक संशोधन करने की आवश्यकता है, साथ ही अनुपालन रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल करनी होगी।
  • डेटा संग्रहण पर स्पष्टीकरण: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अपराध संबंधी आँकड़ों पर NCRB डेटा संग्रहण प्रभावित नहीं होगा।
    • NCRB को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि व्यक्तिगत जेल रिकॉर्ड में जाति का उल्लेख किए बिना भी अपराध संबंधी आँकड़े एकत्र किए जा सकें।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau-NCRB) के बारे में

  • स्थापना: अपराध और अपराधियों पर सूचना भंडार के रूप में वर्ष 1986 में गठित, NCRB भारत सरकार के गृह मंत्रालय (भारत सरकार) के अधीन कार्य करता है।
  • उत्पत्ति: NCRB की स्थापना टंडन समिति, राष्ट्रीय पुलिस आयोग (वर्ष 1977-1981) और गृह मंत्रालय के टास्क फोर्स की सिफारिशों के आधार पर की गई थी।
  • भूमिका: यह अपराध डेटा एकत्र करने, उसका विश्लेषण करने और उसे बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है, जो जाँचकर्ताओं को अपराध और अपराधियों का पता लगाने में मदद करने के लिए मूल्यवान जानकारी प्रदान करता है।
  • मुख्यालय: नई दिल्ली
  • प्रकाशन: प्रमुख रिपोर्टों में भारत में अपराध (Crime in India), आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्याएँ (Accidental Deaths & Suicides) और जेल सांख्यिकी (Prison Statistics) शामिल हैं, जो राष्ट्रीय अपराध प्रवृत्तियों और पैटर्न का विवरण देती हैं।

NCRB के कार्य

  • अपराध और अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (Crime and Criminal Tracking Network and System- CCTNS): वर्ष 2009 से, NCRB अपराध और अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क तथा सिस्टम (CCTNS) परियोजना की निगरानी, ​​समन्वय एवं कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार है, यह एक ऐसा नेटवर्क है, जो देश भर के पुलिस स्टेशनों को अपराध व अपराधी सूचनाओं का एक केंद्रीकृत डेटाबेस बनाने के लिए जोड़ता है।
  • राष्ट्रीय डिजिटल पुलिस पोर्टल (National Digital Police Portal): इस पोर्टल को वर्ष 2017 में लॉन्च किया गया, यह पोर्टल पुलिस अधिकारियों को अपराधियों और संदिग्धों को ट्रैक करने में मदद करने के लिए अपराध तथा अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (CCTNS) डेटा तक पहुँच प्रदान करता है। यह नागरिकों को ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने जैसी सेवाओं तक पहुँचने की भी अनुमति देता है।
  • यौन अपराधियों का राष्ट्रीय डेटाबेस (National Database of Sexual Offenders- NDSO): NCRB इस डेटाबेस को बनाए रखता है, अपराधियों की निगरानी में सहायता के लिए इसे नियमित रूप से राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ साझा करता है।
  • ऑनलाइन साइबर-क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (Online Cyber-Crime Reporting Portal): NCRB इस पोर्टल के लिए केंद्रीय नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है, जो नागरिकों को साइबर अपराधों, विशेष रूप से बाल पोर्नोग्राफी और यौन अपराधों से संबंधित मामलों की रिपोर्ट करने और साक्ष्य अपलोड करने में सक्षम बनाता है।
  • केंद्रीय फिंगरप्रिंट ब्यूरो (Central Finger Print Bureau): NCRB इस राष्ट्रीय फिंगरप्रिंट रिपॉजिटरी की देखरेख करता है, जो पूरे भारत में अपराध जाँच और सत्यापन प्रक्रियाओं का समर्थन करने वाले रिकॉर्ड को संगृहीत और बनाए रखता है।

मुल्ला समिति (Mulla Committee)

वर्ष 1980 में भारत सरकार ने न्यायमूर्ति ए. एन. मुल्ला की अध्यक्षता में जेल सुधार पर एक समिति गठित की।

मुल्ला समिति की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थीं:

  • मानवीय गरिमा: कैदियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिए, उन्हें दुर्व्यवहार से मुक्त रखा जाना चाहिए और उन्हें मौलिक अधिकारों से वंचित होने से बचाया जाना चाहिए।
  • बुनियादी जरूरतें: पर्याप्त भोजन, पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करना।
  • कानूनी अधिकार: कानूनी सहायता, त्वरित सुनवाई और गैर-कानूनी हिरासत को चुनौती देने का अधिकार।
  • पुनर्वास: समाज में पुनः एकीकरण में सहायता के लिए शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और परामर्श प्रदान करना।
  • संचार और मुलाकात: परिवार और दोस्तों के साथ उचित संचार की अनुमति देना।
  • शिकायत निवारण: कैदियों के लिए शिकायत दर्ज करने और न्याय पाने के लिए तंत्र स्थापित करना।
  • जेल सुधार: बुनियादी ढाँचे में सुधार, भीड़भाड़ को कम करना और मानवीय परिस्थितियों को बढ़ावा देना।

भारत में कैदियों के अधिकार

  • दोहरे खतरे के विरुद्ध अधिकार [अनुच्छेद-20(2)]: किसी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार मुकदमा नहीं चलाया जा सकता और उसे दंडित नहीं किया जा सकता।
  • निःशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार [अनुच्छेद-22(1)]: प्रत्येक व्यक्ति को वकील द्वारा बचाव का अधिकार है, विशेष रूप से गंभीर आपराधिक मामलों में।
  • शीघ्र सुनवाई का अधिकार [अनुच्छेद-22(1)]: किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा।
    • मुकदमा उचित समय के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।
  • मानवीय व्यवहार का अधिकार (अनुच्छेद-21): कैदियों को मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार है।
    • उन्हें यातना या क्रूर, अमानवीय अथवा अपमानजनक व्यवहार का सामना नहीं करना चाहिए।
  • चिकित्सा सहायता का अधिकार: कैदियों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं का अधिकार है।
  • शिक्षा और पुनर्वास का अधिकार: कैदियों को शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण का अधिकार है।
    • उन्हें पुनर्वास और समाज में पुनः एकीकरण के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए।

संदर्भ

हालाँकि दुनिया भर में सेमाग्लूटाइड (Semaglutide) के इंजेक्शन के रूप उपलब्ध हैं, भारत में उपलब्ध मौखिक रूप, डॉक्टरों को वजन घटाने के अतिरिक्त लाभ के साथ मधुमेह नियंत्रण में परिणाम देखने में मदद कर रहा है।

ओजेंपिक ड्रग के बारे में

  • ओजेंपिक एक प्रिस्क्रिप्शन इंजेक्शन वाली दवा है, जिसे सामान्य रूप से सेमाग्लूटाइड (Semaglutide) के नाम से जाना जाता है।

  • ओजेंपिक का कार्य: यह हार्मोन GLP-1 की नकल करता है, जो इंसुलिन रिलीज की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करके और लीवर से ग्लूकोज रिलीज को धीमा करके रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  • FDA अनुमोदन: टाइप 2 मधुमेह वाले वयस्कों में रक्त शर्करा के प्रबंधन के लिए वर्ष 2017 में अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) द्वारा अनुमोदित किया गया था।
    • वर्ष 2021 में, FDA ने मोटापे या वजन से संबंधित स्वास्थ्य स्थितियों (जैसे- उच्च रक्तचाप, मधुमेह, उच्च कोलेस्ट्रॉल) वाले वयस्कों में दीर्घकालिक वजन प्रबंधन के लिए सेमाग्लूटाइड के एक अन्य रूप, वेगोवी (Wegovy) को मंजूरी दी।

मधुमेह के अलावा सेमाग्लूटाइड के लाभ

  • रक्त शर्करा नियंत्रण: हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia) उत्पन्न किए बिना स्थिर रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने में प्रभावी, जो इंसुलिन का एक सामान्य दुष्प्रभाव है।
  • हृदय और गुर्दे का स्वास्थ्य: उच्च जोखिम वाले रोगियों में दिल के दौरे, स्ट्रोक और गुर्दे से संबंधित समस्याओं के जोखिम को कम करता है।
  • वजन घटाना: मधुमेह रोगियों में इंसुलिन के उपयोग से जुड़े वजन बढ़ने को कम करता है।

ओजेंपिक के उपयोग के संबंध में चिंताएँ

  • साइड इफेक्ट: आम साइड इफेक्ट में मतली, उल्टी, सूजन और अग्न्याशय शोथ और पेट के पक्षाघात जैसे अधिक गंभीर जोखिम शामिल हैं, जो कुछ रोगियों के लिए सहनशीलता को प्रभावित करते हैं।
  • ‘ओजेंपिक फेस’ (Ozempic Face): ओजेंपिक से तेजी से वजन कम होने से चेहरे पर झुर्रियाँ दिखाई देने लग सकती है और त्वचा ढीली पड़ सकती है, जो कुछ रोगियों के लिए  चिंताजनक होता है।
  • लागत एवं पहुँच: ओजेंपिक महंगा है, जिससे कई रोगियों के लिए इसे वहन करना मुश्किल हो जाता है, विशेषकर उन देशों में जहाँ स्वास्थ्य बीमा ऐसी दवाओं को कवर नहीं कर सकता है।
  • वजन घटाने के लिए दुरुपयोग: FDA द्वारा केवल मधुमेह के लिए स्वीकृति दिए जाने के बावजूद, कई गैर-मधुमेह व्यक्ति वजन घटाने के लिए ओजेंपिक का उपयोग कर रहे हैं, बिना चिकित्सकीय देखरेख के साइड इफेक्ट का जोखिम उठा रहे हैं।
  • निर्भरता और पुनः वजन बढ़ना: यदि रोगी ओजेंपिक का उपयोग करना बंद कर देते हैं, तो उनका वजन जल्दी ही पुनः बढ़ सकता है, क्योंकि स्थायी परिणाम के लिए दवा को दीर्घकालिक या आजीवन उपयोग की आवश्यकता होती है।

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